तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 18
अब तक आपने पढ़ा:
मैं: अपना फ़ोन लाओ!
भौजी अपना फ़ोन ले आईं| मैंने उन्हें अपने बराबर बिठाया और फ़ोन में VPN चलाते हुए porn देखना सीखा दिया|
मैं: जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो porn देखने का तो ऐसे देख लेना!
फ़ोन में porn देखने से भौजी खुश तो हुईं मगर मेरा बिना देखने का उनका मन नहीं था!
भौजी: आपके बिना मन नहीं करेगा?
भौजी उदास होते हुए बोलीं|
मैं: जान मैंने कहा की ‘जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो तब’, वरना तो हम साथ ही देखेंगे! लेकिन ध्यान रखना की कोई आपको porn देखते हुए देख न ले!
भौजी मेरी बात मन गईं और जब कभी मैं घर नहीं होता और उनका मन porn देखने का होता था तो वो छुपके porn देखने लगीं!
अब आगे:
अगला एक हफ्ता काम के कारन मैं बहुत व्यस्त रहा, इस समय एक साथ 4 साइट पर काम चल रहा था| माल गिरवाना और एक साइट से दूसरी साइट पर लेबर को घुमाने में बड़ा टाइम लगता था, ऊपर से सतीश जी भी अपने फ्लैट का काम करवाने के लिए हमारे पीछे पड़े थे| इसी सब के चलते मैं काम में बहुत व्यस्त था, बच्चों के जागने से पहले निकल जाता और रात को उनके सोने के बाद ही घर लौटता| रात को सोते समय बच्चों को मुझसे थोड़ा बहुत प्यार मिल जाता था लेकिन भौजी बेचारी मेरे प्यार के लिए तरस रहीं थीं|
रविवार का दिन आया और मैं सुबह जल्दी उठ कर बाथरूम में नहा रहा था| बच्चे अभी भी सो रहे थे, भौजी उन्हें जगाने आईं मगर बच्चे और सोना चाहते थे| मैं बाथरूम से निकला तो देखा भौजी मेरी ओर पीठ कर के बच्चों को उठने के लिए कह रहीं थीं| भौजी को यूँ देख कर मेरा मन मचलने लगा, मैं दबे पाँव उनके नजदीक आया और अपने दोनों हाथों को भौजी की कमर से होते हुए उनकी नाभि पर कस लिए तथा उन्हें कस कर अपने सीने से लगा लिया! भौजी मेरा स्पर्श पहचानती थीं, वो एकदम से मेरी तरफ घूमीं और मुझसे शिकायत करते हुए बोलीं;
भौजी: मुझ पर जरा भी तरस नहीं आता न आपको? एक हफ्ते से आपको ठीक से देख भी नहीं पाई!
मैं: मेरी जान, मुझे माफ़ कर दो! काम इतना बढ़ गया है इसलिए टाइम नहीं मिल रहा था, मैं ध्यान रखूँगा की अपनी जानेमन को दुबारा शिकायत का मौका न दूँ!
मैंने भौजी के माथे को चूमते हुए कहा| तभी दोनों बच्चे जाग गए और पलंग पर खड़े हो कर ख़ुशी से कूदने लगे!
मैं भौजी से अलग हुआ और दोनों को बच्चों को अपनी बाहों में भर कर लाड करने लगा| पिता का लाड-प्यार मिला तो बच्चों को सब कुछ मिल गया था, वहीं इतने दिनों बाद बच्चों को यूँ सीने से लगा कर मन प्रफुल्लित हो गया था! मिनट भर मैं बच्चों को ऐसे ही अपने सीने से चिपटाये खड़ा था की तभी आयुष बोला;
आयुष: पापा जी नीनी आ रही है!
इतना सुन्ना था की मैं दोनों बच्चों को अपनी छाती से चिपटाये लेट गया, मैंने सोचा आज थोड़ा लेट चला जाऊँगा मगर बच्चों को सुलाने के चक्कर में मेरी भी आँख लग गई! माँ 8 बजे मुझे उठाने आईं और बच्चों के साथ ऐसे लिपट कर सोता देख चुपचाप वापस चली गईं| माँ के बाहर आने पर पिताजी ने मेरे बारे में पुछा तो माँ बोलीं;
माँ: आज मानु को घर रहने दो, पिछले एक हफ्ते से बहुत भगा-दौड़ी कर रहा है!
माँ की बात सुन पिताजी कुछ सोचने लगे और फिर बोले;
पिताजी: ठीक है मानु की माँ, आज भर आराम कर लेने दो कहीं उसकी तबियत न खराब हो जाए!
पिताजी ने नाश्ता कर लिया था इसलिए वो अकेले साइट पर चले गए|
चन्दर ने पिछले कुछ दिनों से रात को साइट पर रुकना शुरू कर दिया था, दरअसल दिन में उसने अपने कुछ निजी ठेके निपटाने शुरू कर दिए थे, इन ठेकों से जो कमाई हो रही थी वो चन्दर की थी| दिन का समय वो अपनी जेब भरनेमें लगा देता था इसलिए रात का समय वो पिताजी के काम को देता था| कभी-कभार वो रात को देर से आता था तो कभी सुबह 8-9 बजे आ कर नहा-धो कर अपने निजी ठेके पर काम करवाने चला जाता था| पिताजी अपने बड़े भाई के कारन चन्दर को कुछ कहते नहीं थे, वरना अगर मैं इस तरह कर रहा होता तो मुझे खूब डाँटते!
नौ बजे मैं हड़बड़ा कर जागा, बच्चे अब भी कस कर मुझसे लिपटे हुए सो रहे थे| उन्हें यूँ सोता हुआ छोड़ कर जाने का मन तो नहीं था लेकिन रोज़ी से मुँह भी नहीं मोड़ सकता था| तैयार हो कर मैं बाहर आया तो मुझे देखते ही माँ बोलीं;
माँ: आज का दिन घर पर ही रहकर आराम कर! ज्यादा भागदौड़ करेगा तो तबियत खराब हो जायेगी तेरी!
माँ की बात ठीक थी पर मुझे पिताजी की चिंता थी, वो अकेले साइट पर काम कैसे सँभालते?
मैं: माँ पिताजी अकेले काम नहीं संभाल पाएँगे!
मैंने अपनी चिंता जाहिर की तो माँ बोलीं;
माँ: चन्दर अभी-अभी निकला है, वो और तेरे पिताजी मिलकर काम सँभाल लेंगे! अब चुप-चाप कपडे बदल!
माँ का आदेश सुन मैंने कपडे बदले और बाहर बैठक में बैठ गया|
कुछ देर में बच्चे उठ गए और मेरी गोदी में बैठ गए, भौजी ने नाश्ता बनाया और हम तीनों ने एक साथ नाश्ता किया| नाश्ता खत्म हुआ तो माँ ने नवरात्रों की बात छेड़ी;
माँ: बेटा नवरात्रे आ रहे हैं, तो घर की सफाई ठीक से करनी है इसलिए एक दिन छुट्टी कर लियो!
नवरात्रों की बात सुन मैं फ़ौरन खुश होते हुए बोला;
मैं: ठीक है माँ! लेकिन एक बात पहले बता दूँ, मैं सारे व्रत रखूँगा!
माँ: बिलकुल नहीं, डॉक्टर ने मना किया है न?!
माँ ने मेरे व्रत रखने की बात से एकदम से इंकार कर दिया था, इसलिए मैंने माँ को मक्खन लगाना शुरू कर दिया;
मैं: कुछ नहीं होगा माँ! देखो मैं निर्जला व्रत तो कर नहीं रहा, फ्रूट वगैरह खाता रहूँगा.....
लेकिन मेरे मक्खन लगाने का माँ पर कोई असर नहीं होना था, उन्होंने एकदम से मेरी बात काट दी;
माँ: बोला न नहीं! डॉक्टर ने तुझे भूखा रहने से मना किया है! ऊपर से तू व्रत में दवाई नहीं लेगा तो बीमार पड़ जाएगा!
माँ का डरना सही था पर मैं उन्हें किसी भी तरह से मनाना चाहता था|
उधर डॉक्टर और दवाइयों की बात सुन भौजी के मन में जिज्ञासा पैदा हो गई, उन्होंने माँ से इस बारे में सब पुछा तो माँ ने उन्हें मेरे बारहवीं के boards से कुछ दिन पहले मेरे बीमार होने की सारी बात बता दी| ये सब सुन कर भौजी सन्न रह गईं, वो जानती थीं की मैं पढ़ाई का pressure लेने वालों में से नहीं था, फिर उसी समय तो आयुष पैदा हुआ था और भौजी ने मुझे फ़ोन करके ये ख़ुशी मुझसे नहीं बाँटी थी, इसलिए हो न हो इसी बात को दिल से लगा कर मैं बीमार पड़ा था! ये सब सोचते हुए भौजी की आँखें भर आईं, जैसे-तैसे उन्होंने अपने जज्बात काबू किये और माँ की तरफ हो गईं और मुझे व्रत रखने से मना करने लगीं;
भौजी: कौन सी किताब में लिखा है की नवरात्रों में व्रत रखना जर्रूरी होता है? देवी माँ की भक्ति तो पूजा कर के भी होती है|
अपनी प्रियतमा को समझाना आसान था, मगर माँ को समझाना थोड़ा टेढ़ी खीर थी, इसलिए मैंने माँ को समझाने पर जोर देना शुरू किया;
मैं: माँ कोई चिंता करने वाली बात नहीं है! मैं पूरा ध्यान बरतूँगा, फलाहार करूँगा, दूध पी लूँगा, कोई tension पालने वाला काम नहीं करूँगा, सूरज ढलने से पहले घर आ जाऊँगा और अगर ज़रा सी भी तबियत ढीली हुई तो मैं व्रत नहीं रखूँगा! Please माँ मना मत करो!
दिमाग में जितने तर्क थे सब दे ते हुए माँ के आगे हाथ जोड़ दिए! माँ जानती थी की मैं कितना धर्मिक हूँ और इसलिए आधे मन से ही सही वो मान गईं मगर उन्होंने ढेर सारी हिदायतों के बाद ही मुझे व्रत रखने की इजाजत दी!
माँ तो मान गईं मगर मेरी जानेमन नाराज हो गई, वो चुपचाप उठीं और मेरे कमरे में बिस्तर ठीक करने चली गईं| मैं उन्हें मनाने के लिए जैसे ही उठा की आयुष बोल पड़ा;
आयुष: दादी जी, मैं भी व्रत रखूँगा!
आयुष नहीं जानता था की व्रत रखना क्या होता है इसलिए उसकी बचकानी बात सुन मैं और माँ हँस पड़े!
भौजी: हाँ-हाँ बिलकुल!
भौजी कमरे के भीतर से मुझे उल्हाना देते हुए बोलीं! इतने में नेहा भी अपने भाई के साथ हो ली;
नेहा: फिर तो मैं भी व्रत रखूँगी!
भौजी: हाँ-हाँ तुम दोनों तो जररु व्रत रखो!
भौजी ने कमरे के भीतर से मुझे फिर से उल्हना देते हुए कहा|
बच्चे जब बड़ों की तरह बात करते हैं तो और भी प्यारे लगते हैं! मैंने दोनों बच्चों को अपने गले लगा लिया और उन्हें बड़े प्यार से समझाते हुए बोला;
मैं: बेटा, बच्चे व्रत नहीं रखते! आपका दिल बहुत साफ़ होता है, इसलिए अगर आप सच्चे मन से देवी माँ की भक्ति करोगे तो देवी माँ वैसे ही बहुत खुश हो जाएँगी! फिर दूसरी बात आपकी उम्र में आपका शरीर बढ़ रहा होता है, जो खाना आप खाते हो वो आपको ताक़त देता है जिससे आपके दिमाग के साथ-साथ आपके शरीर का विकास होता है| अगर आप खाना नहीं खाओगे तो कमजोर रह जाओगे, इसलिए कभी भी भूखे नहीं रहना!
बच्चों को मेरी बात समझ आ गई थी, लेकिन उनका मन था मेरे साथ व्रत रखने का इसलिए उनका मन रखते हुए मैंने कहा;
मैं: ऐसा करते हैं की आप व्रत रखने के बजाए मेरे साथ पूजा करना!
मेरे साथ पूजा करने के नाम से ही दोनों बच्चे खुश हो गए और फिर से चहकने लगे|
चलो बच्चे तो मन गए थे, अब मुझे अपनी दिलरुबा को मनाना था इसलिए मैं उठ कर अपने कमरे में आया| भौजी चादर ठीक करने के लिए झुकीं थी, जैसे ही वो चादर ठीक कर के उठीं मैंने उन्हें पीछे से अपनी बाहों में भर लिया और उनके दाहिने गाल को चूम लिया!
भौजी: जानू….सब मेरी वजह से हुआ....मेरी वजह से आपको ये बिमारी लगी.... न मैं आपको खुद से अलग करती न आप....
इस वक़्त भौजी बहुत भावुक हो चुकी थीं, वो आगे कुछ कहतीं उससे पहले मैंने उनके होठों पर ऊँगली रख दी!
मैं: बस-बस! जो होना था वो हो गया, अब उसे याद कर के अपना दिल न जलाओ!
ये कहते हुए मैंने भौजी के बाएँ गाल को चूम लिया! मेरी बात सुन भौजी का दिल शांत हो रहा था, मैंने सोचा की मौके का फायदा उठा कर क्यों न दूसरी वाली किश्त ले ही ली जाए?! मैंने भौजी को अपनी ओर घुमाया ओर उनके चेहरे को अपने हाथ में थामते हुए बोला;
मैं: मैं सोच रहा था की आज आपसे दूसरी किश्त और ब्याज ले लूँ?
मैंने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा| भौजी ने अपनी आँखें झुका कर मुझे मूक स्वीकृति दे दी, लेकिन इससे पहले की हमारे लब मिलते बच्चे दौड़ते हुए कमरे में आ गए!
भौजी: इन शैतानो के होते हुए आपको कुछ नहीं मिलने वाला!
भौजी उल्हाना देते हुए बाहर चली गईं!
अब बच्चों को क्या समझाता, मैंने दोनों को गोद में लिया और बाहर बैठक में बैठ गया| आयुष को cartoon देखना था इसलिए मैंने cartoon लगाया और हम दोनों ninja hatori कार्टून देखने लगे| नेहा को पढ़ाई का शौक था इसलिए वो कमरे में बैठ कर पढ़ने लगी| भौजी और माँ दोपहर के खाने की तैयारी करने जाने वाले थे तो मैंने उन्हें रोक दिया, क्योंकि आज मेरा मन बाहर से खाना खाने के था| बाहर से खाना खाने की बात सुन नेहा अपनी किताब ले कर बाहर दौड़ आई, दोनों बच्चों ने मिलकर 'चाऊमीन' की रट लगानी शुरू कर दी|
मैं: हम तीनों तो चाऊमीन खाएंगे!
मैंने बच्चों की टीम में जाते हुए कहा|
भौजी: और मैं और माँ?
भौजी की बात सुन माँ बोल पड़ीं;
माँ: मेरे लिए दाल-रोटी मँगवा दे और बहु के लिए जो उसे अच्छा लगता है मँगवा दे!
भौजी जानती थीं की दाल-रोटी सस्ती होती है और ऐसे में वो कुछ ख़ास खाना माँग कर पैसे खर्च नहीं करवाना चाहतीं थीं, इसलिए अपनी कंजूसी भरी चाल चलते हुए उन्होंने थोड़ा बचपना दिखा कर माँ के साथ दाल-रोटी खाने की बात कही;
भौजी: मैं भी दाल-रोटी खाऊँगी!
माँ के दाल-रोटी खाने का कारन ये था की उन्हें बाहर का खाना पसंद नहीं था, मगर भौजी के दाल-रोटी खाने का कारन था की वो पैसे खर्च नहीं करना चाहती थीं| मेरे न चाहते हुए भी कहीं न कहीं भौजी के मन में मेरे द्वारा पैसे खर्च करने को ले कर दुःख पनप चूका था|
मैं: यार आप खाने-पीने को ले कर पैसे का मुँह मत देखा करो! माँ बाहर से खाती-पीती नहीं इसलिए वो बस सादा खाना खातीं हैं, लेकिन आपको तो ऐसी कोई दिक्कत नहीं?!
मैंने भौजी को थोड़ा डाँटते हुए कहा| मेरी बात सुन माँ ने भौजी को प्यार से समझाया;
माँ: देख बेटी मैं सादा खातीं हूँ क्योंकि मुझे अपनी तबियत खराब होने का डर लगता है, लेकिन मैं कभी तुम सब को बाहर खाने से नहीं रोकती! जो भी खाओ अच्छा खाओ, 4 पैसे बचाने के लिए कँजूसी करना मुझे पसंद नहीं! आगे से तूने कभी ऐसी छोटी बात सोची तो मैं डंडे से तेरी पिटाई करुँगी!
माँ की डंडे से पीटने की बात सुनकर हम सभी हँस पड़े!
दोपहर को मैंने बाहर से खाना मँगाया, मेरे और बच्चों के लिए चाऊमीन आई, माँ के लिए दाल(तड़का)-रोटी आई तथा भौजी के लिए मैंने special थाली मँगाई! चन्दर और पिताजी दोपहर को आने वाले नहीं थे इसलिए हम चारों dining table पर बैठ गए| खाना खाते समय भौजी ने कई बार मुझे माँ से छुपके खाना खिलाने का इशारा किया, पर मैं हर बार माँ के डर के कारन मना कर देता| खाना खा कर माँ सोने चली गईं, नेहा और आयुष मेरे कमरे में सो गए| अब बचे मैं और भौजी तो हम बैठक में बैठ कर टी.वी. देखने लगे|
मैं: तो कितना porn देख लिया?
मैंने भौजी को छेड़ते हुए बात शुरू की| मुझे लगा भौजी शर्मा जाएँगी पर वो तो मुझे बड़े विस्तार से विवरण देने लगीं| उन्होंने porn के सभी प्रमुख प्रकार खोज-खोज कर देख लिए थे, उनके इस 'व्यख्यान' को सुन कर मेरे कान खड़े हो गए और मैं मन ही मन बोला; ' लोग कुल्हाड़ी पाँव पर मारते हैं और तूने पाँव ही कुल्हाड़ी पर दे मारा! Just wait for this to blow on your face!' मैं जानता था की एक न एक दिन मुझे अपने इस किये का फल भुगतना पड़ेगा, मगर कब बस इसी का इंतजार था!
खैर दिन बीतने लगे, बच्चे तो मेरा भरपूर प्यार पाने लगे मगर भौजी के नसीब में प्यार के कुछ कतरे ही लिखे थे| नवरात्रे शुरू होने से एक दिन पहले मैंने काम से छुट्टी ली, उस दिन मैंने और बच्चों ने मिल कर पूरे घर की सफाई करनी थी| मैंने दोनों बच्चों को dusting वाला कपड़ा दिया और उन्हें dusting करनी सिखाई और मैं पूरे घर में झाड़ू लगाने लगा| मुझे झाड़ू लगाते देख भौजी ने मेरी मदद करनी चाही, मगर माँ ने उन्हें रोक दिया;
माँ: सफाई आज ये तीनों ही करेंगे, बदले में शाम को मैं इन्हें ख़ास चीज खिलाऊँगी!
खाने-पीने के नाम से बाप-बेटा-बेटी का जोश देखने लायक था, तीनों ने ऐसी सफाई की कि पूरा घर चमकने लगा| शाम को माँ ने दोनों बच्चों को चॉकलेट दी मगर मुझे कुछ मिला ही नहीं! जब मैंने माँ से मुँह फुला कर शिकायत की तो माँ और भौजी खिलखिलाकर हँसने लगे! तब दोनों बच्चे मेरे पास आये और मुझे अपनी चॉकलेट में से आधा हिस्सा दिया! मैंने माँ और भौजी को जीभ चिढ़ाई और बच्चों के साथ बच्चा बन कर चॉकलेट खाने लगा! मेरा बचपना देख माँ और भौजी खिलखिलाकर हँसने लगे|
अगले दिन से नवरात्रे शरू थे और माँ ने मेरे पीछे भौजी की duty लगा दी| सुबह उठ कर मैं पूजा करने के लिए तैयार होने लगा तो नेहा अपने आप उठ गई, फिर उसने आयुष को उठाया और दोनों माँ के कमरे में तैयार हो कर मेरे पास आ गए| दोनों को पूजा के लिए तैयार देख मुझे उनपर प्यार आने लगा| मैं दोनों को गोद में उठाता उससे पहले ही दोनों बच्चों ने झुक कर मेरे पाँव छुए, मैंने इसकी कतई उम्मीद नहीं की थी इसलिए मैंने एकदम से दोनों बच्चों को गोद में उठा लिया और उनकी सैकड़ों पप्पियाँ ले डाली| मुझे बच्चों को प्यार करता देख माँ बोल पड़ीं;
माँ: तूने बच्चों की पप्पियाँ ले ली, अब काहे का व्रत?
माँ की बात सुन पिताजी, चन्दर और भौजी हँस पड़े!
पूरे परिवार ने खड़े हो कर माँ की आराधना की, बच्चे स्कूल के लिए तैयार थे तो मैं उन्हें school van में बिठा आया| नाश्ते में भौजी ने दूध पीने के लिए दिया, उसे पी मैं काम पर निकल गया| आज दिनभर में भौजी ने हर आधे घंटे में मुझ से what's app पर पुछा की मेरी तबियत ठीक तो है? दोपहर हुई तो उन्होंने मुझे अपनी कसम से बाँधते हुए घर बुलाया, खाने का समय हुआ तो दोनों बच्चे अपनी-अपनी थाली ले कर मेरे सामने खड़े हो गए| जब भी मैं घर पर होता था तो बच्चे मेरे हाथ से ही खाना खाते थे, मैंने दोनों को खाना खिलाना शुरू किया तो चन्दर टोकते हुए बोला;
चन्दर: तुम दोनों जन का चैन है की नाहीं?! आज मानु भैया वर्ती हैं, आपन हाथ से खाये नाहीं पावत हो?
चन्दर का टोकना मुझे हमेशा अखरता था, मैं चिढ कर उसे जवाब देने को हुआ था मगर इस बार भी पिताजी बीच में बोल पड़े;
पिताजी: अरे कउनो बात नाहीं बेटा, बच्चन का खाना खिलाये से थोड़े ही व्रत टूट जावत है?!
मैंने दोनों बच्चों का ध्यान खाने में लगाए रखा और उनसे उनके स्कूल के बारे में पूछता रहा| आयुष के पास बताने को बहुत कुछ होता था, क्लास में हुई हर एक घटना उसे मुझे बतानी होती थी मगर नेहा का दिन बड़ा सामान्य होता था| एक-आध बार उसने बताया था की उसकी teacher ने उसकी तारीफ की लेकिन उसके अलावा उसने कभी कोई रोचक बात नहीं बताई|
बच्चों का खाना हुआ तो भौजी ने मेरे लिए फल काट कर दे दिए, मेरा खाने का मन कतई नहीं था लेकिन माँ के डर के मारे मैं खाने लगा और बच्चों को भी खिलाने लगा| भौजी ने जैसे ही बच्चों को मेरे हिस्से के फल खाते देखा तो उन्होंने बच्चों को टोक दिया;
भौजी: आयुष-नेहा, अभी खाना खाया न तुमने? ये फल तुम्हारे लिए नहीं हैं!
भौजी का यूँ खाने को ले कर बच्चों को टोकने से मुझे बहुत गुस्सा आया, मैंने उन्हें घूर कर देखा तो भौजी खामोश हो गईं| उधर भौजी का यूँ टोकना माँ-पिताजी को बुरा लगा था, पिताजी ने थोड़ा नरमी से भौजी को समझाते हुए कहा;
पिताजी: बहु अइसन बच्चन का खाने का लेकर कभौं न टोका करो! का होइ ग्वा अगर ऊ फल खावत हैं?! तू और फल काट दियो, अगर घर मा फल नाहीं हैं तो हमका बताओ हम लाइ देब! लेकिन आज के बाद बच्चन का कभौं खाये-पीये का न टोका करो!
भौजी ने पिताजी की बात सर झुका कर सुनी और उनसे माफ़ी भी माँग ली;
भौजी: माफ़ कर दीजिये पिताजी, आगे से ध्यान रखूँगी!
भौजी के माफ़ी माँग लेने से माँ-पिताजी ने उन्हें माफ़ कर दिया और खाना खाने लगे|
खाना खा कर मैं, पिताजी और चन्दर काम पर निकल गए| शाम 5 बजे मुझे नेहा ने फ़ोन किया और पूजा की याद दिलाई;
मैं: हाँ जी बेटा जी, मुझे याद है! मैं बस साइट से निकल रहा हूँ| मेरे आने तक आप और आयुष नाहा-धो कर तैयार रहना|
मैंने फोन रखा और घर की ओर चल पड़ा| घर पहुँच कर मैं नहा-धोकर तैयार हुआ, बच्चे, माँ और भौजी पहले से ही तैयार थे| हम चारों ने विधिवत द्वारा पूजा की, पूजा खत्म होने के बाद दोनों बच्चों ने मेरे पैर छू कर आशीर्वाद लिया| मैंने दोनों को गोद में उठा लिया और जी भर कर उन्हें दुलार करने लगा| माँ और भौजी आस भरी नजरों से मुझे बच्चों को प्यार करते हुए देख रहे थे| जहाँ माँ को ये प्यार एक चाचा का मोह लग रहा था, वहीं भौजी का दिल एक बाप को अपने बच्चों को चाहते हुए प्रफुल्लित हो उठा था|
भौजी खाना बना रहीं थी और मैं माँ के साथ बैठक में बैठा था, माँ ने बातों-बातों में मुझे बताया की भौजी ने भी व्रत रखा है| मुझे भौजी के व्रत रखने से कोई आपत्ति नहीं थी, बस हैरानी हो रही थी की उन्होंने व्रत रखा और मुझे बताया भी नहीं| रात में भौजी ने सबको खाना परोसा, मैंने बच्चों का खाना लिया और उन्हें ले कर मैं अपने कमरे में आ गया| बच्चों का खाना होने के बाद दोनों बच्चे बाहर चले गए और भौजी मेरे लिए फल काट कर ले आईं|
मैं: आजकल मुझसे बात छुपाने लगे हो?
मैंने भौजी को आँखें तार्रेर कर देखते हुए कहा| भौजी मेरा सवाल सुन असमंजस में थीं, उन्हें समझ नहीं आया की आखिरी कौन सी बात उन्होंने मुझसे छुपाई है?
मैं: व्रत रखा और मुझे बताया भी नहीं?!
मैंने भौजी को बात याद दिलाते हुआ कहा| भौजी मुस्कुरा कर मुझे देखने लगीं और बड़े प्यार से बोलीं;
भौजी: आप ही बताओ की अच्छा लगता है की मेरा पति भूखा रहे और मैं खाना खाऊँ?
भौजी की बात सुन मुझे हँसी आ गई|
मैं: ठीक है! अब जा आकर अपने लिए भी फल काट कर यहीं ले आओ!
मेरी बात सुन भौजी कुछ सोच में पड़ गईं, वो उठ कर रसोई में गईं और वहाँ से उबले हुए आलू ले कर आ गईं|
हमारे गाँव में नवरात्रों के व्रत रखने का तरीका कुछ यूँ हैं, सुबह पूजा करने के बाद से कोई कुछ खाता-पीता नहीं है, सीधा शाम को पूजा करने के बाद वर्ती लोग उबले हुए आलू खाते हैं! मैं भी इसी नियम का पालन करता मगर माँ की हिदायतों के कारन मुझे फलाहार करना पड़ रहा था|
अब मैं फल खाऊँ और मेरी प्रेयसी आलू ये मुझे मंजूर नहीं था;
मैं: आलू छोडो और फल ले कर आओ!
मैंने भौजी को आदेश देते हुए कहा|
भौजी: फल आप खाओ, मुझे ये ही पसंद हैं!
भौजी ने मेरी बात को हलके में लते हुए कहा|
मैं: ठीक है, फिर मैं भी यही खाऊँगा|
ये कहते हुए मैंने एक आलू का टुकड़ा उठा लिया| भौजी जानती थीं की मुझे उबले आलू खाना पसंद नहीं इसलिए उन्होंने मेरे हाथ से आलू का टुकड़ा ले लिया!
भौजी: अच्छा बाबा! ला रही हूँ!
भौजी मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोलीं| भौजी अपने लिए भी फल काट कर ले आईं और हम दोनों साथ बैठ कर फल खाने लगे|
मैं: अगर मेरी पत्नी मुझे भूखा नहीं देख सकती तो मैं भी अपनी पत्नी को उबले हुए आलू खाते हुए नहीं देख सकता!
मैंने प्यार से भौजी को अपनी नारजगी का कारन बताया जिसे सुन वो मुस्कुराने लगीं|
इतने में दोनों बच्चे कूदते हुए आ गए और मेरे सामने मुँह खोल कर खड़े हो गए| मैंने दोनों को फल खिलाये और मुस्कुराते हुए भौजी से बोला;
मैं: आप जानते हो की मैं व्रत क्यों रख रहा हूँ?
मुझे लगा था की भौजी इस सवाल का जवाब नहीं जानती होंगी, लेकिन मैं भूल गया था की हमारे दिल connected हैं, इसलिए मैं जो भी सोचता या महसूस करता हूँ भौजी उस बात को पढ़ लेती हैं!
भौजी: जानती हूँ! देवी माँ ने जो बिना माँगे आपको आपके बच्चों से मिलवा दिया, उसके लिए आप उन्हें धन्यवाद करना चाहते हो!
भौजी की बात अधूरी थी इसलिए मैंने उसे पूरा करते हुए कहा;
मैं: बच्चों के साथ-साथ मुझे मेरा प्यार भी वापस मिल गया!
मैंने बात कुछ इस ढंग से कही जिससे भौजी को महसूस हो गया की मैं केवल बच्चों से ही प्यार नहीं करता बल्कि उनसे भी करता हूँ!
व्रत के नौ दिन इतने मधुरमई बीते की इसकी कल्पना मैंने नहीं की थी, प्रत्येक दिन बच्चे पूजा के समय मेरे साथ खड़े होते थे, प्रत्येक दिन मैं और भौजी साथ बैठ कर फलाहार करते थे और जो पिछले कुछ दिनों से मैं भौजी को समय नहीं दे पा रहा था उसकी कमी अब जाकर पूरी हो गई थी| जिस दिन व्रत खुला उस दिन भौजी ने सबके लिए आलू-पूरी बनाई, उस दिन तो पूरे नौ दिन की कसर खाने पर निकाली गई! मैंने और बच्चों ने पेट भरकर पूरियाँ खाई और फिर हम फ़ैल कर सोये!
अगले दिन दशेरा था और इस दिन से हमारी (भौजी और मेरी) एक ख़ास याद जुडी थी! गाँव में मैंने दशेरे की छुट्टियों में आने का वादा किया था, लेकिन अपना वादा पूरा न कर पाने पर पाँच साल पहले आज ही के दिन मैं बहुत उदास था! मुझे लगता था की भौजी को ये बात याद नहीं होगी लेकिन ऐसा नहीं था| सुबह जब वो मुझे जगाने आईं तो बहुत भावुक थीं, मैंने उन्हें अपने पास बिठाते हुए बात पूछी तो उन्होंने इस बात को फिर से दोहरा दिया| अब मैं अपनी प्रेयसी को कैसे रोने देता इसलिए मैंने उनका ध्यान भटका दिया;
मैं: जान, जो होना था हो गया, उसे भूल जाओ! अभी तो हम साथ हैं, इसलिए ये सब बात छोडो और शाम को हम मेला घूमने जायेंगे तथा रावण दहन देखेंगे|
भौजी कुछ प्रतिक्रिया देतीं उससे पहले ही घूमने की बात सुन दोनों बच्चे उठ बैठे और आ कर मेरे से लिपट गए!
आयुष: पापा जी मुझे वो गोल-गोल झूले पर बैठना है!
नेहा: मुझे भी! मुझे रावण भी देखना है!
दोनों बच्चों ने अपनी फरमाइशें पेश कर दीं जिसे सुन मैं और भौजी हँस पड़े|
दोनों बच्चों को गोदी ले कर मैं बाहर आया और पिताजी से आज शाम घूमने जाने का प्लान बताया| माँ-पिताजी ने तो भीड़-भाड़ के चलते जाने से मना कर दिया, चन्दर ने रात को साइट पर रुकने की बात कर के अपना पल्ला झाड़ दिया अब बचे दोनों बच्चे, मैं और भौजी! मैं बोलने वाला था की हम चारों जायेंगे की तभी माँ ने मेरा काम आसान करते हुए कहा;
माँ: तुम चारों हो आओ, लेकिन भीड़-भाड़ में बच्चों का ध्यान रखना!
कई बार माँ बिन मेरे कुछ कहे ही मेरा रास्ता आसान कर दिया करती थीं|
पिताजी दोनों बच्चों को आज के दिन के महत्त्व के बारे में बताना चाहते थे, इसलिए उन्होंने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया और उन्हें गोदी में बिठा कर बात करने लगे;
पिताजी: बच्चों आपको पता है की आज के दिन का महत्त्व क्या है? हम दशहरा क्यों मनाते हैं?
पिताजी का सवाल सुन नेहा ने फ़ट से अपना हाथ उठाया और बोली;
नेहा: दादा जी मैं...मैं ...मैं बताऊँ?
नेहा का उत्साह देख पिताजी मुस्कुराने लगे और सर हाँ में हिला कर नेहा को बोलने का मौका दिया|
नेहा: आज के दिन भगवान राम जी ने रावण का वध कर के सीता माता को छुड़ाया था|
नेहा की बात से पिताजी बहुत प्रभावित हुए और उनके चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई! छोटे बच्चे जब पूछे गए सवाल का सही जवाब देते हैं तो वो बहुत प्यारे लगते हैं और उन पर बहुत प्रेम आता है, ऐसा ही प्रेम पिताजी को नेहा पर आ रहा था, नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए पिताजी बड़े गर्व से बोले;
पिताजी: बिलकुल सही कहा बेटा! लेकिन ये आपको किसने बताया?
नेहा: मम्मी ने!
नेहा ने अपनी मम्मी की तरफ इशारा करते हुए कहा|
पिताजी: शाबाश बहु! तूने सच में बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं!
अपनी तारीफ सुन भौजी गर्व से फूली नहीं समाईं!
पिताजी की बात खत्म हुई तो मेरे मन में इच्छा जगी की क्या बच्चों ने कभी रावण दहन देखा है?
मैं: नेहा-आयुष, बेटा आप दोनों ने कभी रावण दहन देखा है?
सवाल मैंने बच्चों से पुछा था मगर जवाब देने ससुरा चन्दर कूद पड़ा;
चन्दर: एक बार गाँव में राम-लीला हुई रही तब हम सभय रावण दहन देखेन रहा!
चन्दर मुस्कुराते हुए बोला| मैं समझ गया की गाँव में बच्चों ने क्या ही रावण दहन देखा होगा?!
शाम 5 बजे हम चारों तैयार हो कर निकलने को हुए की तभी दिषु का फ़ोन आ गया, उसने मुझसे मेले में मिलने की बात कही| मैं तो पहले से ही तैयार था, मैंने उससे मिलने की जगह तय की तथा बच्चों और भौजी के साथ घर से निकल पड़ा| नारंगी साडी में भौजी आज बहुत सुंदर लग रहीं थीं, रास्ते भर मैं बहाने से उनका हाथ पकड़ लिया करता और उनके हाथ को हलके से दबा दिया करता, मेरे ऐसा करने पर भौजी के चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान आ जाया करती! मेले में पहुँच कर वहाँ की रौनक देख कर हम चारों बहुत खुश थे, बच्चों ने जैसे ही विशालकाय रावण, मेहघनाद और कुम्भकरण का पुतला देखा तो दोनों बच्चों ने मेरा हाथ पकड़ कर मेरा ध्यान उस ओर खींचा| भौजी ने भी जब इतना विशालकाय पुतला देखा तो वो कुछ घबरा गईं और मुझे दूर खींच कर ले जाने लगीं!
आयुष: पापा जी इतना बड़ा रावण?
आयुष आश्चर्यचकित होते हुए बोला|
नेहा: गाँव वाला रावण तो बहुत छोटा सा था, ये तो बहुत-बहुत बड़ा है!
नेहा अपने हैरानी से खुले हुए मुँह पर हाथ रखते हुए बोली!
भौजी: जानू इतना बड़ा रावण बनाते कैसे होंगे?
भौजी का सवाल सुन मैं हँस पड़ा और उन्हें चिढ़ाते हुए बोला;
मैं: क्यों? अगले साल आप रावण बनाओगे?
मेरा कटाक्ष सुन भौजी ने प्यार से मेरी बाजू पर मुक्का मारा|
दिषु को आने में अभी समय था इसलिए हमने घूमना शुरू कर दिया| मेले में कुछ खिलौनों की दुकानें थीं, मुझे याद है जब मैं छोटा था तो खिलौनों के लिए पिताजी से कहा करता था और वो हर बार मुझे मना कर देते थे! मैंने सोच लिया की अगर मेरे बच्चे खिलौने माँगेंगे तो मैं उन्हीं कतई मना नहीं करूँगा, मैं इंतजार करने लगा की बच्चे मुझसे खिलौने लेने की जिद्द करें और में उन्हें बढ़िया सा खलौना खरीद कर दूँ| आयुष को चाहिए थी खिलौने वाली गाडी, इसलिए आयुष ने अपनी ऊँगली उसकी तरफ ऊँगली कर के इशारा किया| मैंने गाडी खरीद कर आयुष को दी तो आयुष का चेहरा ख़ुशी से खिल गया| जब मैंने नेहा से पुछा की उसे क्या चाहिए तो नेहा ने न में सर हिला दिया!
मैं: मेरे प्यारे बच्चे को कुछ नहीं चाहिए?
मैंने नेहा के सर पर हाथ रख कर पुछा| दरअसल नेहा अपनी मम्मी के डर से कुछ नहीं बोल रही थी, जब मैंने नेहा के सर पर हाथ रखा तो उसने हिम्मत कर के एक गुड़िया की तरह इशारा किया| मैंने नेहा को गुड़िया खरीद कर दी तो वो भी ख़ुशी से कूदने लगी! अब बारी थी झूलों में झूलने की, दोनों बच्चों को मैंने छोटे वाले giant wheel पर बिठाया! Giant wheel पर बैठ कर बच्चे ख़ुशी से चीखने लगे, उन्हें चीखता हुआ देख मैं और भौजी बहुत खुश थे| Giant wheel में बैठते वक़्त बच्चों ने mickey mouse वाला झूला देख लिया था| Giant wheel से उतरते ही दोनों बच्चों ने "mickey mouse" चिल्लाना शुरू कर दिया! हम चारों उस झूले के पास पहुँचे तो देखा तो हवा वाले pump से भरा हुआ एक बहुत बड़ा झूला है, बच्चे उस फूले हुए झूले पर चढ़ रहे थे और फिसलते हुए उतर रहे थे| दोनों बच्चे उस झूले पर मस्ती करने लगे, इधर मैं और भौजी बच्चों को मस्ती करते हुए देख कर हँसने लगे| सच कहता हूँ, बच्चों को यूँ उछल-कूद करते हुए देखने का सुख कुछ और ही होता है?! न उन्हें किसी बात की चिंता होती है, न कोई डर, उन्हें तो बस मस्ती करनी होती है!
मौज-मस्ती के बाद अब बारी थी पेट-पूजा की, हम चारों चाट खाने के लिए एक stall के सामने पहुँचे| भौजी ने गोलगप्पे खाने थे, आयुष और नेहा को टिक्की, बचा मैं तो मैंने अपने लिए लिए भल्ले-पपड़ी ली| सारी चाट हम चारों ने मिल-बाँट कर खाई, बच्चों को मिर्ची लगी तो दोनों ने 'सी..सी..सी..' की रट लगानी शुरू कर दी! दोनों बच्चों को सी-सी करते देख भौजी को बहुत मज़ा आ रहा था! मैंने फटाफट पानी की बोतल खरीदी और दोनों बच्चों को दी, आयुष ने फटाफट पानी गटका! नेहा से सब्र नहीं हो रहा था तो उसने आयुष से बोतल छीन ली और फटाफट पानी पीने लगी! पानी पीने से दोनों बच्चों को लगी मिर्ची थोड़ी बहुत ही कम हुई थी, इसलिए मैंने उन्हें एक सूखी पूरी खाने को दी जिससे दोनों बच्चों को लगी मिर्ची खत्म हुई!
भौजी: और खाओगे चाट?
भौजी ने बच्चों को चिढ़ाते हुए पुछा| भौजी की बात सुन दोनों बच्चे अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगे और मेरी टाँगों से लिपट गए|
कुछ पल बाद दिषु का फ़ोन आया तो मैंने उसे बताया की हम कहाँ खड़े हैं| आज दिषु पहलीबार भौजी से मिलने वाला था, भौजी को देखते ही दिषु ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा;
दिषु: नमस्ते भाभी जी!
दिषु की आवाज में हलकी सी शैतानी थी जिसे महसूस कर हम दोनों भाई हँसने लगे! हमने हाथ मिलाया और मैंने हँसते हुए उसे कहा;
मैं: सुधर जा!
दोनों बच्चे हैरानी से हम दोनों को देख रहे थे| नेहा तो दिषु से मिल चुकी थी, इसलिए उसने आगे बढ़ते हुए दिषु के पाँव छूते हुए कहा;
नेहा: नमस्ते चाचू!
दिषु एकदम से नीचे झुका और नेहा के सर पर हाथ रखते हुए बोला;
दिषु: जीते रहो बेटा!
अब मुझे आयुष को दिषु से मिलवाना था;
मैं: आयुष बेटा मैंने उस दिन आपको आपके दिषु चाचा के बारे में बताया था न? ये हैं आपके दिषु चाचा!
आयुष ने अपने हाथ जोड़े और दिषु के पाँव छूने लगा| दिषु ने आयुष को गोदी में उठा लिया और उसके गाल चूमते हुए मुझसे बोला;
दिषु: अरे तो ये हमारे साहबज़ादे! आपके (मेरे) सूपपुत्र जी?!
दिषु समझ गया की आयुष भौजी और मेरा बेटा है, उसके आयुष को साहबजादा कहने से हम तीनों हँसने लगे|
दिषु: वैसे बच्चों आपने तो पाँव छू कर मुझे इतनी जल्दी बूढा बना दिया!
दिषु का मज़ाक सुन हम सब हँसने लगे! हँसी-ख़ुशी का माहौल था तो मौका पा कर भौजी ने दिषु से बात शुरू की;
भौजी: दिषु भैया, thank you आपने इन्हें सँभाला और इनका ख्याल रखा!
भौजी ने हाथ जोड़ते हुए कहा|
दिषु: भाभी जी भाई है ये मेरा! आपको दिल से प्यार करता है, एक बार तो मैंने इसे सँभाल लिया, लेकिन अगर इसका दिल दुबारा टूटा तो ये सम्भल नहीं पायेगा!
दिषु की बात सुन कर भौजी भावुक हो गईं थीं, मुझे दुबारा खोने के डर के कारन उनके आँसूँ छलक आये थे!
भौजी: नहीं भैया! एक बार इन्हें खुद से अलग करने का पाप कर चुकी हूँ, लेकिन वादा करती हूँ की मैं कभी इनका दिल नहीं दुखाऊँगी!
भौजी रो पड़ती उससे पहले ही मैंने उन्हें कस कर अपने गले लगा लिया और सर पर हाथ फेरते हुए चुप कराया;
मैं: बस जान, रोना नहीं है!
हम दोनों को गले लगे हुए देख दिषु बोला;
दिषु: आप दोनों घूम कर आओ, तब तक मैं अपने भतीजे-भतीजी को घुमा लाता हूँ!
दिषु की बात सुन भौजी मुस्कुराने लगीं, दिषु बच्चों के साथ घूमने निकला और मैं भौजी का हाथ पकड़ कर मेला घूमने लगा| मेले में हम बड़ों के लिए खाने-पीने के इलावा कुछ ख़ास नहीं था इसलिए हम दोनों घुमते-घामते रामलीला देखने लगे| रावण दहन शुरू होने से पहले दिषु दोनों बच्चों को घुमा लाया और उन्हें अपनी तरफ से खिलौने खरीद कर दिए| जब मैंने उससे पुछा की उसने खिलौने क्यों खरीदे तो वो बड़े गर्व से बोला;
दिषु: मैं चाचू हूँ इनका तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता है की मैं अपने भतीजे-भतीजी को कुछ गिफ्ट दूँ!
दिषु की बात सुन भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं;
भौजी: ठीक है दिषु भैया आप भी लाड कर लीजिये!
रावण दहन शुरू होने वाला था और बच्चों को वो देखने का बड़ा चाव था! दोनों बच्चों ने रावण के पुतले की तरफ इशारा कर चिल्लाना शुरू कर दिया;
नेहा: पापा जी रावण देखो?
आयुष: पापा जी, रावण कब जलेगा?
दोनों बच्चों का जोश देख मैंने दोनों को गोद में उठा लिया| गोद में आने से बच्चों को रावण का पुतला साफ़ नजर आ रहा था| हम लोग उचित दूरी पर खड़े थे इसलिए डरने की कोई बात नहीं थी! रावण दहन शुरू हुआ और पटाखे फूटते हुए देख दोनों बच्चों ने ताली बजाना शुरू कर दिया! पटाखों के शोर से भौजी डर गईं और मेरा हाथ पकड़ कर मेरे से चिपक गईं! जब तक रावण, मेघनाद और कुम्भकरण का दहन पूर्ण नहीं हुआ तबतक भौजी मुझसे चिपकी खड़ी रहीं|
रावण दहन सम्पत हुआ और दिषु को bye कर हम सब घर लौटे, रास्ते भर दोनों बच्चों ने दहन को ले कर अपनी बचकानी बातों से रास्ते का सफर मनोरम बनाये रखा| बच्चों की बातें, उनका आपस में बहस करना सुन कर अलग ही आनंद आता है, क्योंकि उनकी बहस खुद को सही साबित करने के लिए नहीं होती बल्कि अपने अनुभव को साझा करने की होती है, उन्हें बस अपनी बात सुनानी होती है और बदले में वो बस आपसे इतना ही चाहते हैं की आप उनकी बात ध्यान से सुनें तथा उनकी सराहना करें!
जारी रहेगा भाग - 19 में...
dasahre ka tyohar jab-jab aata tha hum bachpan mein isse mahino pehle dher saari sapne bunne lagte the ke aisa kareng waisa karenge, navratri shuru hote hee dadi maa ke saath maa durga kee kahaniya sunne ka chaska rahta tha aur jo pooja ke baad prasad milta tha uska hame besabri se intejar rahta tha.
yeh bara anutha tyohar hain mata ke pratima ke saath-saath ravan dahan dekhne ke liye toh hum mein bahut hi utsah hota tha.
aapne phir se apne bachho ke jariye un yaado ko doobara jahan mein wapas la diya.
ab jab bare ho gaye toh apne bachhe ko us khushi ko mehsoos kar ke hi khus ho lete hain.
jis tarah se wo ravan dahan dekhne ke liye utsahit rahte hain, hum bhi unke saath bachhe ban jaate hain.
aur saath mein aapki preyashi ho to hatho meiin haath bas rahe tera saath, kya kehne.
jo un dono mein bina kahe hi jo prem izhar hota rahta hain wo bara anutha hain.
aur agar aapne koi raz chhupa ke rakhha hua hain aur koi aapka razdar ho to uske samne khul ke ussse batne ka jo maza hain wo bayan nahin kar shakte.
jis khushi ke saath un dono ne dishu ke samne apne rishte ko swikar kiya wo to wahee jante honge kee wo kaisi feeling hain.
aur usne bhi keh hi diya kee aapke suputra jee, koi to ho jiske samne aap parde mein na rahe khul ke swikar kar shakte hain apne pyar ko khul ke jee shakte hain.
koi rok-tok nahin koi bandish nahin bas swachhand vichran karna hain, koi dar nahin kisi ke hone ka kisis ke jaan lene ka.
wo azadi se pyar karne kee khushi wahee samajhta hain jo apne pyar ko apne seene mein dafan karne pe mazboor ho.
bas yeh dasehra ne unke andar ek nayee urja ka sanchar kar diya hain unke rishte mein, kyunki dashera se hi kayee karvee yaade juri hui hian kehne ko to wo bol deta hain kee main bhool gaya hoon aap bhi bhool jao lekin jo tanhai jo dard usne sahe hain wo kaheen na kaheen abhi bhi jinda hain wo dar kee kaheen phir se unhe kho na doon, kyunki abhi bhi unhe khul ke swikar nahin kar shakte.
abhi tak waheen hi hain bas yahee ek sukoon hain kee wo pas hain unhe dekh sshakte hain mehsoos kar shakte hain.