भाग 144
अब तक अपने पढ़ा…
सुगना अपने कमरे से सोनू को देख रही थी जो अब एक पूर्ण मर्द बन चुका था। सोनू की मजबूत भुजाएं चौड़ा सीना और गठीली कमर किसी भी स्त्री को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम थी।
अचानक सोनू ने सुगना के कमरे की तरफ देखा खिड़की से ललचायी आंखों से ताकती सुगना की निगाहें सोनू से मिल गई। आंखों ने आंखों की भाषा पढ़ ली सुगना सोनू में जो देख रही थी उसका असर उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था। सुगना की बुर पानिया गई थी।
Bahut badhiya! Sugna is incomparable
नजरे मिलते ही सुगाना ने अपनी आंखें झुका ली। पर लंड और तन गया…
अब आगे…
सोनू वापस बाल्टी में पानी भरने लगा उसे वह दिन याद आने लगा जब बनारस में लगभग यही स्थिति उत्पन्न हो गई थी तब भी सुगना उसे इसी प्रकार रसोई से नहाते हुए देख रही थी।
सोनू जैसे-जैसे उसे दिन के बारे में सोचता गया उसके मन में तरह-तरह की भावनाएं आने लगीं और मन शैतान होने लगा।
।।।।।।पुराने भाग 83 से उद्धृत।।।।
उस दिन सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा
"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"
"हमार कपड़ा कहां बा? "
सुगना ने लाली से कहा
"ए लाली एकर कपरवा दे दे"
लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।
देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।
"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"
सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।
बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।
सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।
वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।
सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।
सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..
लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.
सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…
"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."
सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला
"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली
"तो जो अभियो नहला दे .."
सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे
"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."
सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..
आगन से आवाज आई…
" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".
सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।
और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा
"दीदी पानी चला द"
सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा
"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"
लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..
"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "
सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा
"काहे अपन भाई से लाज लगता का?
सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..
सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..
सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।
हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।
परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..
रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा
" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"
सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।
सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा
"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..
उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.
"दीदी आवा न,"
सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..
सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।
मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…
उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…
उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.
सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..
"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."
"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..
"रुक रुक हमारा के जाए दे"
सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..
सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..
सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…
सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…
लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।
।।।। उद्धरण समाप्त ।।।
ऐसा नहीं था कि उस दृश्य के बारे में सोनू अकेला सोच रहा था सुगना भी अपने दिमाग में उन्हीं दृश्यों को याद कर रही थी। कैसे सोनू हैंडपंप पर नहा रहा था और जब उसने उसे पानी चलाने के लिए हैंडपंप पर बुलाया उसका कलेजा धक-धक कर रहा था फिर भी उसने सोनू के लिए हैंड पंप चलाए और…. हे भगवान उस दिन उसने सोनू के लंड को साक्षात साबुन में लिपटे हुए देखा था।
तभी बाल्टी और लोटे की आवाज से सुगना की तंद्रा टूटी और उसकी आंखों के सामने ठीक वही दृश्य दिखाई पड़ने लगे सोनू सुगना की तरफ अपना चेहरा कर बाल्टी से अपने बदन पर पानी डालने लगा मजबूत सीने से उतरती पानी की बूंदे सोनू की कमर पर बंधी धोती से टकराती और धीरे-धीरे उसके अधोभाग को भिगोने लगी।
कुछ ही देर में पतली धोती सोनू के लंड को छुआ पाने में असमर्थ थी। भीगी हुई धोती के पीछे उसका लंड अब दिखाई पड़ने लगा था। ऐसा लग रहा था जैसे सपेरे ने काले नाग को सफेद कपड़े से ढक रखा हो। सुगना अब भी सोनू को एक टक देख रही थी पर निगाहें सोनू के चेहरे से हटकर उसकी जांघों के बीच तक जा पहुंची थी जिसे सोनू ने बखूबी महसूस कर लिया था अचानक सोनू में आवाज लगाई ..
दीदी तनी हैंड पंप चला दे पानी खत्म हो गईल बा..
सुगना का कलेजा एक बार फिर धक-धक करने लगा वह सोनू के आग्रह को टाल नहीं पाई और आंगन में आ गई।
क्या खूबसूरत नजारा था। सुहाग सेज पर बिछने को तैयार एक सजी-धजी अप्सरा हैंडपंप चला रही थी और उसके समक्ष एक गठीला नौजवान उसके सामने उसी पानी से नहा रहा था।
उस दिन बनारस में जो कुछ हुआ था आज वह पुनः घटित हो रहा था पर परिस्थितिया तब अलग थी आज अलग।
सोनू और सुगना दोनों उस दिन की यादों में खोए हुए थे तभी सोनू ने अपने बदन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। सुगना सोचने लगी…हे भगवान क्या सोनू भी वही सोच रहा है?
सुगना मन ही मन सोचने लगी हे भगवान क्या सोनू ने उस दिन जो किया था जानबूझकर किया था क्या सच में वह अपना लंड उसे दिखाना चाह रहा था। नहीं नहीं उस दिन तो वह लाली का इंतजार कर रहा था। अब तक सुगना यही समझ रही थी कि उस दिन उसने सोनू का लंड अकारण ही देख लिया था पर आज सुगना को यकीन नहीं हो रहा था। कुछ ही देर में सोनू के हाथ उसकी जांघों तक पहुंच गए और वही हुआ जिसका डर था। सोनू के हाथ में उसका तना और फूला हुआ लंड आ चुका था। सोनू की हथेलियों ने उसके लंड पर साबुन मलना शुरू कर दिया। स्थित ठीक उसी दिन जैसी हो चुकी थी सुगना एक टक सोनू के लंड को देख रही थी तभी सोनू ने अपनी आंखें खोल दी और मुस्कुराते हुए बोला..
“का देखत बाड़े? पहले नईखे देखले का?
सुगना झेंप गई वह कुछ बोली नहीं अपितु उसने अपनी आंखें हटा ली।
“ले पानी भर गइल अब जल्दी नहा ले” सुगना ने बखूबी बात बदल दी”
“दीदी तनी पीठ पर साबुन लगा दे”
सुगना हिचकिचा रही थी तभी सोनू ने फिर कहा..
“आज का लाज लगता पहले भी तो लगावले बाड़ू”
सुगना क्या कहती वह धीरे-धीरे सोनू के पास पहुंच गई और उसकी मांसल पीठ पर साबुन लगाने लगी नजरे बरबस ही सोनू के लंड पर जा रही थी जो सोनू के मजबूत हाथों में आगे पीछे हो रहा था कभी उसका सुपड़ा उछल कर बाहर आता कभी सोनू अपनी हथेलियों से उसे ढक लेता ऐसा लग रहा था जैसे सोनू सुगना को दिखाकर उसे हिला रहा था।
अचानक सोनू ने अपना हाथ पीछे किया और सुगना की कलाई पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।
सजी-धजी सुगना सोनू की गोद में आकर गिर गई। एक तरफ सुगना लहंगा चोली में पूरी तरह सजी-धजी थी दूसरी तरफ सोनू साबुन में लिपटा हुआ नंग धड़ंग..
नियति इस अनोखे जोड़े को देखकर मुस्कुरा रही थी।
“ई का कईले. तोहरे खातिर अतना सजनी धजनी सब बिगाड़ देले.” सुगना ने अपने चेहरे पर झूठी नाराजगी के भाव लाते हुए कहा परंतु सोनू की गोद में आकर आज उसे पहली बार महसूस हो रहा था कि जिस सोनू को उसने अब तक अपनी गोद में उठाया था वह सोनू आज स्वयं उसे गोद में लेने लायक हो गया था।
सोनू ने सुगना को चूमने की कोशिश की तभी सुगना ने कहा
“अरे हमार लहंगा भी खराब हो गईल देख साबुन लाग गइल”
सोनू ने सुगना के चेहरे को छोड़कर उसके लहंगे की तरफ देखा लहंगे के ठीक ऊपर सुगना की सुंदर नाभी दिखाई पड़ गई। गोरे सपाट पेट पर मणि जैसी चमकती नाभि को देखकर सोनू मदहोश होने लगा..
खूबसूरती अनुभव और संयम की चीज है इसका रसपान जितना धीरे हो उतना अच्छा।
सुगना ने सोनू की गोद से उठने की कोशिश की पर सोनू के मजबूत हाथों ने सुगना को यथा स्थिति में रहने के लिए विवश कर दिया यद्यपि यह जबरदस्ती नहीं थी परंतु एक मजबूत इशारा जरूर था।
सोनू के साबुन लगे हाथ सुगना की गोरे पेट पर थे.. सुगना सिहर उठी.. उसने आज के लिए न जाने क्या-क्या सोचा था और क्या हो रहा था.
अचानक सोनू ने सुगना के लहंगे की डोरी खींच दी कमर पर कसा लहंगा ढीला हो गया।
“ई का करत बाड़े “ सुगना ने शरमाते हुए सोनू का ध्यान अपनी तरफ खींचा..
एक बार फिर सोनू सुगना के चेहरे की तरफ देखने लगा पर उसके हाथ ना रुके सुगना का लहंगा नीचे सरकता जा रहा था.. यह सोनू की सम्मोहक आंखों का जादू था या सोनू और सुगना के बीच गहरे प्यार का नतीजा सुगना की कमर स्स्वतः ही उठती गई और लहंगा धीरे-धीरे उसकी जांघों से नीचे आ गया…
सुगना ने जैसे ही अपनी कमर नीचे की उसके गदराए नितंबों पर सोनू के तने हुए लंड का संपर्क हुआ..
सुगना सहम गई उसने स्वयं को सोनू की गोद में व्यवस्थित करने की कोशिश की और सोनू के लंड को अपनी जांघों के बीच से बाहर आ जाने दिया शायद यही उसके पास एक मात्र रास्ता था.
सुगना की यह हरकत सोनू बखूबी महसूस कर रहा था.. पर वह लगातार सुगना की आंखों में देखे जा रहा था जैसे उसके मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं परंतु आज सुगना बीच-बीच में मारे शर्म के अपनी आंखें बंद कर ले रही थी सोनू का बर्ताव आज पूरी तरह मर्दाना था उसका छोटा सोनू अब मर्द बन चुका था..
तभी सुगना ने अपने लहंगे को अपने घुटनों पिंडलियों और फिर पैर से बाहर निकलते हुए महसूस किया। सुगना के पैरों की पायल की हुक ने लहंगे को फंसा कर रोकने की कोशिश की पर सोनू के हल्के तनाव से वह प्रतिरोध भी टूट गया और सुगना का लहंगा हैंडपंप के बगल में पड़ा अपनी मालकिन को नग्न देख रहा था वह उसकी आबरू बचाने में नाकाम और लाचार पड़ा अब अपनी नग्न मालकिन की खूबसूरती निहार रहा था।
लहंगे पर विजय प्राप्त करने के बाद सोनू के हाथ सुगना की चोली से खेलने लगे। अब जब भरतपुर लुट ही चुका था सुगना ने चोली के हक को भी खुल जाने दिया उसका ध्यान ब्रा पर केंद्रित था वह उसे किसी हाल में भिगोना नहीं चाहती थी यही एकमात्र ब्रा थी जिसे पहन कर उसे वापस जाना था।
चोली का हुक खुलने के बाद सुगना ने शरमाते हुए धीरे से बोला..
“ब्रा के मत भीगईहे ईहे पहन के जाए के बा” इतना कहकर सुगना ने स्वयं अपने हाथों से ब्रा के हुक को खोलने लगी। सुगना को अंदेशा था की सोनू पहले की भांति कभी भी ब्रा के हुक तोड़ सकता है वह पहले भी ऐसा कर चुका था। सुगना की चूचियों को देखने के लिए कोई भी अधीर हो जाता सोनू भी इससे अछूता नहीं था। पर आज सोनू ने सुगना की मदद की और ब्रा को सुरक्षित सुगना के शरीर से अलग कर दूर रख दिया…
हल्की धूप में चमकता सुगना का नग्न बदन देखकर सोनू की वासना भड़क उठी…
सुगना की आत्मा प्रफुल्लित थी उसे नग्न तो होना ही था बिस्तर पर ना सही घर के खुले आंगन में ही सही। वह पहले भी सरयू सिंह के साथ यह आनंद ले चुकी थी पर आज वह अपने सोनू की बाहों में थी।
सुगना के होठों पर लाली और चमकता चेहरा सोनू को अपनी और खींच रहा था सोनू ने अपना सर झुकाया और अपनी हथेली से सुगना के सर को हल्का ऊपर उठाया और अपने होंठ सुगना के होठों से सटा दिए…
सुगना और सोनू में एक दूसरे के भीतर समा जाने की होड़ लग गई। सुगना और सोनू की जीभ को एक दूसरे के मुख में प्रवेश कर उसकी गर्मी का आकलन करने लगी।
सोनू का दाहिना हाथ चूचियों को सहला रहा था जैसे वह उन्हें तसल्ली दे रहा हूं कि चुंबन का अवसर उन्हें भी अवश्य प्राप्त होगा और हुआ भी वही..
सुगना के अधरो का अमृत पान करने के पश्चात सोनू सुगना की चूचियों की तरफ आ गया…आज सोनू का दिया मंगलसूत्र ही चूचियों की रक्षा करने पर आमादा था जब-जब सोनू सुगना की चूचियों को मुंह में भरने की कोशिश करता वह मंगलसूत्र उसके आड़े आ जाता..
सोनू अधीर हो रहा था और सुगना मुस्कुरा रही थी.. इधर सोनू सुगना की चुचियों में खोया था उधर उसकी नासिका में इत्र की सुगंध आ रही थी…
उस मोहक और मादक सुगंध की तलाश में सोनू ने चुचियों का आकर्षण छोड़ दिया और अपना सर और नीचे करता गया…
पर सोनू अपनी गर्दन को और नहीं झुका पाया यह संभव भी नहीं था सुगना की नाभि तक आते-आते उसके गर्दन की लोच खत्म हो गई..
सुगना द्वारा अपनी जांघों पर लगाए गए इत्र की खुशबू सोनू की नथनो में भर रही थी…सुगना की जांघों के बीच से झांकता उसका लंड उसे दिखाई पड़ रहा था पर वह चाहकर भी इस अवस्था में सुगना के बुर को चूम पाने में असमर्थ था..
स्थिति को असहज होते देख सुगना ने कहा
“अब मन भर गइल न… तब चल नहा ले…”
“दीदी एक बात बताओ की ई विशेष इत्र काहे लगावल जाला?” सोनू ने सुगना की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा..
इस दौरान वह सुगना की चूचियों को अपनी दाहिनी हथेली से सहलाते जा रहा था.. और बाएं हाथ से उसके गर्दन को सहारा दिए हुए थे सुगना सोनू की गोद में थी।
सुगना मन ही मन सोच रही थी कि वह कभी छोटे सोनू को इसी प्रकार अपनी गोद में लिया करती थी परंतु तब शायद वह दोनों वासना मुक्त थे। पर आज स्थिति उलट थी छोटा सोनू अब पूर्ण मर्द था और सुगना उम्र में बड़े होने के बावजूद अभी कमसिन कचनार थी..
“बता ना दीदी ..” सुगना मुस्कुराने लगी वह जानती थी कि सोनू उसे छेड़ रहा है लाली सोनू को उस पारंपरिक इत्र के प्रयोग और उसकी अहमियत पहले ही बता चुकी थी।
“तोरा मालूम नइखे का…”
“ना” सोनू भोली सूरत बनाते हुए बोला..
“लाली सुहागरात में ना लगवले रहे का..”
“ना “ सोनू सुगना के गाल से अपने गाल रगड़ते हुए बोला..हथेलियां चूचियों को अपने आगोश में भरने का अब भी प्रयास कर रहीं थी..
“अच्छा रुक बतावत बानी”
सुगना ने खुद को सोनू की गोद में व्यवस्थित किया पर गोद से उतरी नहीं..और अपनी कातिल मुस्कान लिए अपनी आंखों से अपनी पनियाई बुर की तरफ इशारा करते हुए अपनी जांघें खोल दी और बोला..
“एकर पुजाई खातिर लगावल जाला…”
सोनू की आंखों ने सुगना की निगाहों का पीछा किया और सुगना की रसभरी गुलाबी बुर उसे दिखाई पड़ गई…
सोनू की हथेली जब तक सुगना की चूची को छोड़कर उसकी बुर को अपने आगोश में ले पाती सुगना के कोमल हाथों ने सोनू की मजबूत कलाई थाम ली और उसे आगे बढ़ने से रोक लिया.. और अपनी बुर के कपाट अपनी जांघों से फिर बंद कर दिए. सोनू का लंड अब अभी जांघों के बीच था..
“अभी ना… पहिले नहा ले “ सुगना ने सोनू से कहा और उसे सांत्वना स्वरूप एक मीठा सा चुंबन दे दिया।
“ठीक बा ..पहले साबुन त लगा दे..”सोनू ने शरारती लहजे में कहा। सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था।
सोनू ने सुगना पर अपनी पकड़ ढीली की और सुगना सावधानी पूर्वक खड़ी हो गई. उसे अपनी नग्नता का एहसास तब हुआ जब सोनू ने अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच सटा दिया.. और अपने नथुनों से सुगना के इत्र की खुशबू सूंघने लगा..
सुगना के काम रस की खुशबू और इत्र की खुशबू दोनों ने सोनू को कामान्ध कर दिया.. वह अधीर होकर सुगना की बुर को चूमने की कोशिश करने लगा..
सुगना खड़ी थी इस अवस्था में सोनू के होंठ बुर के होठों से मिल नहीं पा रहे थे। सोनू ने अपनी मजबूत हथेलियां से सुगना के कूल्हे पकड़े और उसे अपनी तरफ हल्के से खींचा। सुगना का बैलेंस बिगड़ा और उसने सोनू का सर थामकर खुद को गिरने से बचाया।
सोनू को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सुगना ने स्वेच्छा से उसके सर को अपनी बुर की तरफ धकेला है। सोनू और भी कामुक हो गया उसने अपनी लंबी जीभ निकाली और सुगना की जांघों के बीच गहराई तक उतार दी। सुगना की बुर की सुनहरी दरार से रस चुराते हुए सोनू की जीभ सुगना के भागनाशे से तक आ पहुंची…
सोनू की जिह्वा अपनी बहन के अमृत रस से शराबोर हो गई..
सोनू ने अपना सर अलग किया और सुगना की तरफ देखा उसकी जीभ और होंठो से सुगना की बुर की लार अब भी टपक रही थी..
“दीदी ठीक लागत बा नू..?”
सुगना मदहोश थी अपने छोटे भाई का यह प्रश्न इस अवस्था में बेमानी थी। बुर की लार सुगना की अवस्था चीख चीख कर बता रही थी..
सुगना मारे शर्म के पानी पानी थी उसने अपनी पलके बंद कर ली और एक बार फिर सोनू के सर को अपनी जांघों से सटा दिया..
सोनू एक बार फिर उसे अमृत कलश से अमृत चाटने की कोशिश करने लगा सुगना से और बर्दाश्त नहीं हुआ उसे लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी…सुगना को यह मंजूर नहीं था आज उसे जी भर कर काम सुख का आनंद लेना था उसने सोनू के सर को खुद से अलग करते हुए कहा
“तोरा शरीर का पूरा साबुन सूख गया है पहले नहा ले यह सब बाद में…”
सोनू ने सुगना का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसके नितंबों पर से अपना हाथ हटा लिया…
और सुगना की तरफ देखते हुए बोला
“दीदी ठीक बा नहला द” सोनू ने जिस अंदाज में यह बात कही थी उसने सुगना को सोनू के बचपन की याद दिला दी। पर आज परिस्थितिया भिन्न थी ।
नंगी सुगना आगे झुकी बाल्टी में से लोटे में पानी निकला इस दौरान उसकी झूलती हुई चूचियां सोनू की आंखों के सामने थिरक रही थी। सोनू से बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी हथेलियों से सुगना की चूची पकड़ ली। सुगना को जैसे करंट सा लगा..
“ए सोनू बाबू अभी छोड़ दे हम गिर जाएब.. तंग मत कर”
नंगी सुगना क्या-क्या बचाती सब कुछ दिन की दूधिया रोशनी में सोनू की आंखों के सामने था। गोरी मांसल जांघों के बीच सुगना की बुर के फूले हुए होंठ और उसमें में से लटकती हुई काम रस की बूंद सोनू का ध्यान खींचे हुए थी..
सुगना ने लौटे का पानी सोनू के सर पर डाल दिया.. सोनू ने अपने हाथों से पानी को अपने सर और बदन पर फैलाया तब तक सुगना एक बार और लोटे से पानी उसके सर पर डाल चुकी थी।
सुगना साबुन उठाने के लिए सोनू के बगल में झुकी और सोनू की पीठ पर साबुन मलने लगी। जांघों में हो रही हलचल से बुर की फांके सोनू के आंखों के सामने बार-बार उस गुलाबी छेद को दिखा रही थी जो इस सृष्टि की रचयिता थी। सोनू से रहा न गया उसकी उंगलियों ने सुगना की बुर से लटकती हुई लार को छीनने की कोशिश की.. और उसने सुगना की संवेदनशील बुर पर अपनी उंगलियां फिरा दी। सुगना चिहुंक उठी और अपना संतुलन खो बैठी परंतु सोनू ने उसे संभाल लिया और वह सीधा सोनू की गोद में आ गिरी..
सुगना के दोनों पैर सोनू की कमर के दोनों तरफ थे। सोनू का लंड सुगना और उसके पेट के बीच फंस गया था। सोनू और सुगना का चेहरा एक दूसरे के सामने था…भरी भरी चूचियां सोनू के मजबूत सीने से सटकर सपाट हो रही थी पर निप्पलो का तनाव सोनू महसूस कर पा रहा था।
सोनू अपनी मजबूत बाहों से सुगना को अपनी तरफ खींचा हुआ था और अपनी मजबूत जांघों से सुगना के नितंबों को सहारा दिए हुए था।
सोनू सुगना की आंखों में देखते हुए बेहद का कामुक अंदाज में बोला..
“तू इतना सुंदर काहे बाड़ू “ सोनू सुगना की सपाट और चिकनी पीठ पर अपने हाथ फेरे जा रहा था।
इस बार सुगना ने प्रति उत्तर में सोनू के अधरों को चूम लिया और अपनी हथेलियां में पड़े साबुन को सोनू की पीठ पर मलने लगी..
सुगना जैसे-जैसे सोनू की पीठ पर साबुन लगाती गई उसकी चूचियां लगातार सोनू के सीने से रगड़ खाती रहीं और सोनू का लंड सुगना के पेट से रगड़ खाकर और तनता चला गया। लंड में हो रही संवेदना सोनू को बेहद पसंद आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे सोनू का लंड सुगना की नाभि से टकरा रहा था।
सुगना ने अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए अपने पंजों पर जोर लगाया और अपने कूल्हे को थोड़ा ऊंचा किया ताकि वह सोनू की पीठ पर आसानी से पहुंच सके…
सुगना की बुर भी साथ-साथ उठ गई थी.. सोनू ने सुगना को अपने और समीप खींचा और सुगना की बुर के होठों पर सोनू के लंड ने दस्तक दे दी।
सुगना सोनू की पीठ पर साबुन लगाती रही और जाने अनजाने अपनी बुर को सोनू के लंड के सुपाड़े पर हल्के-हल्के रगड़ती रही यह संवेदना जितना सोनू को पसंद आ रही थी उतना ही सुगना को दोनों चुप थे पर आनंद में शराबोर थे। सुगना की चूचियां सोनू के चेहरे से सट रही थी वह उन्हें अपने होठों में भरने की कोशिश कर रहा था पर सफल नहीं हो पा रहा था।
सोनू की हथेलियां सुगना के नंगे नितंबों पर घूम रही थी धीरे-धीरे वह नितंबों के बीच की घाटी में उतरती गई और आखिरकार सोनू की भीगी उंगलियों ने सुगना की गुदांज गांड को छू लिया…
सुगना अपना संतुलन एक बार फिर खो बैठी पर इस बार उसे सोनू के मजबूत खूंटे का सहारा मिला सोनू का लंड जो अब तक सुगना की बुर को चूम रहा था अब उसकी गहराइयों में उतरता गया…
कई महीनो बाद आज सोनू का मजबूत लंड सुगना की बुर में प्रवेश कर रहा था.. सुगना की बुर अब अभी सोनू के लिए तंग ही थी। सुगना ने अपने अंदर एक भराव महसूस हुआ और जब तक सुगना संभल पाती सोनू के लंड ने उसके गर्भाशय को चूम लिया.. सुगना कराह उठी..
“आह सोनू बाबू तनी धीरे से….”
उसने अपने होठों को अपने दांतों से दबाया और खुद को व्यवस्थित करने लगी लंड अब भी सुगना के गर्भाशय पर दबाव बनाया हुआ था.. खुद को संतुलित करने के बाद
सुगना ने सोनू की तरफ घूरकर देखा जैसे उससे पूछ रही हो कि उसने उसकी गांड को क्यों छुआ?
सोनू को अपनी गलती पता थी उसने तुरंत अपनी उंगलियां सुगना की गांड से हटा ली और सुगना के होठों को अपने होठों के बीच भर लिया। उसने अपनी जांघों को थोड़ा ऊंचा कर उसने सुखना को ऊपर उठने में मदद की और फिर अपनी जांघें फैला दी सुगना एक बार फिर लंड पर पूरी तरह बैठ गई और सोनू के लंड ने सुगना के किले में अपनी जगह बना ली। सोनू ने अपनी जांघें ऊंची और नीची कर अपने लंड को सुखना की बुर में धीरे-धीरे हिलाना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबने लगी। सोनू ने जो गलती सुगना की गांड को छू कर की थी शायद उसने उसका प्रायश्चित कर दिया था सुगना खुश थी और सोनू भी।
सोनू का लंड सुगना की बुर में जड़ तक धस चुका था.. सुगना सोनू की गर्दन को पकड़ कर अपना बैलेंस बनाए हुए थी। कुछ पलों के लिए गहरी शांति हो गई थी। पर सोनू का लंड अंदर थिरक रहा था…
सोनू और सुगना संभोग की मुद्रा में आ चुके थे। सुगना की पलकें बंद हो चुकी थी वह आनंद में डूबी थी..
क्या हुआ कैसे हुआ कहना कठिन था पर सुगना की कमर अब हिल रही थी सोनू का लंड उसकी दीदी सुगना की बुर से कुछ पलों के लिए बाहर आता और फिर सुगना की प्यासी बर उसे पूरी तरह लील देती…
सुगना की आंखें बंद थी और चेहरा आकाश की तरफ था.. अधर खुले थे सुगना गहरी सांस भर रही थी…भरी भरी चूचियां सोनू के सीने से रगड़ खा रही थी.. सोनू की हथेलियां सुगना के नितंबों को थामें उसे सहारा दे रही थी… सोनू अपने होठों से सुगना की चूचियों को पकड़ने की कोशिश करता परंतु सुगना के निप्पल उसकी पहुंच से बाहर थे…सोनू का दिल सुगना की गुदांज गांड को छूने के लिए बेताब था। पर सोनू ने सुगना का तारतम्य बिगाड़ने की कोशिश ना कि वह अपनी बहन को परमआनंद में डूबते उतराते देख रहा था…आज सोनू नटखट छोटे भाई की बजाए एक मर्द की तरह बर्ताव कर रहा था। सोनू का सुगना के प्रति प्यार अनोखा था वासना थी पर उसे सुगना की खुशी का एहसास भी था। सुगना मदहोश थी और यंत्रवत अपनी कमर हिलाये जा रही थी.. चेहरे पर तेज और तृप्ति के भाव स्पष्ट थे..
सोनू की वासना आज जागृत थी वह मन ही मन इस मिलन को यादगार बनाना चाह रहा था.. उसके नथुनों में सुगना के काम रास और उस इत्र की खुशबू अब भी आ रही थी ..
नियति ने रति क्रिया में पूरी तन्मयता से लिप्त सोनू और सुगना को कुछ पल के लिए उन्हीं के हाल में छोड़ दिया.. और सोनू केअंतरमन को पढ़ने का प्रयास करने लगी।
शेष अगले भाग में…