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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143
 
Last edited:

sunoanuj

Well-Known Member
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बहुत ही अद्भुत रचना है आपकी ! हर अपडेट अपने आप में एक पूर्ण रूप है, जितना भी पढ़े अगले भाग की प्रतीक्षा उतनी ही अधिक होती है !

बहुत ही शानदार और जबर्दस्त अपडेट है। !

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

lambalaunda2020

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साथियों बस इतने से काम नहीं चलेगा कुछ लिखिए कुछ बताइए कुछ नहीं तो इसी संदर्भंको फोटो ही चिपका दीजिए
Lovely bhai ji aap iss tarah se samajh lijiye ki har kahani ki main jaan uske paatro ke beech ka sambaad hota hai aur aapki story mein paatro ke beech ka sambaad hindi mein nhi hota hai jo ki poori tarah se meri samajh mein nhi aata hai usko translate karke samjhna padta hai , fir bhi intejaar rehta hai har update ka besabri se , aap se gujarish hai ab toh sughna hindi seekh gayi hai toh sonu sugna ke sambaad thode hindi mein karwa do next dhuaandhaar milan mein
 

Lovely Anand

Love is life
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Sonu sugna ki jordaar chudai kare iss baar.

बहुत ही अद्भुत रचना है आपकी ! हर अपडेट अपने आप में एक पूर्ण रूप है, जितना भी पढ़े अगले भाग की प्रतीक्षा उतनी ही अधिक होती है !

बहुत ही शानदार और जबर्दस्त अपडेट है। !

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
थैंक्स जुड़े रहिए
Kahani bohot achhi ja rahi hai.aage dekhiye kya hota hai
Thanks
Lovely bhai ji aap iss tarah se samajh lijiye ki har kahani ki main jaan uske paatro ke beech ka sambaad hota hai aur aapki story mein paatro ke beech ka sambaad hindi mein nhi hota hai jo ki poori tarah se meri samajh mein nhi aata hai usko translate karke samjhna padta hai , fir bhi intejaar rehta hai har update ka besabri se , aap se gujarish hai ab toh sughna hindi seekh gayi hai toh sonu sugna ke sambaad thode hindi mein karwa do next dhuaandhaar milan mein
Aapne 143 elisodeepisode Nahi padha kya...
Sugna kuchh Kuchh Hindi bolna seekh gayi hai..
 
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Reactions: lambalaunda2020

deep_aman

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Bhai bahut chota update diya par romanchak hai. Sugna or sonu ka milan vistar se or openly bataiyega. Next heroine to soni hai hi par mujhe lagta hai pathak log pahle sugna or sonu ka hi milan padna ya dekhna chahege. Aage aapki icha.
 

Napster

Well-Known Member
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भाग 139

मोनी का बदन कांपने लगा…नाभि के नीचे ऐंठन सी होने लगी। और फिर प्रेम रसधार फूट पड़ी पर रतन जिसने मटकी फोड़ने में जी तोड़ मेहनत की थी उसे अब रस पीने का भरपूर अवसर मिल रहा था..

मोनी स्खलित हो रही थी.. आज पहली बार उसे पुरुषों की उपयोगिता समझ में आ रही थी…काश वह उसे पुरुष को देख पाती उसे समझ पाती और उसका तहे दिल से धन्यवाद अदा कर पाती…

कूपे में रहने का निर्धारित दस मिनट का समय पूरा हो चुका था।


मोनी उस दिव्य पुरुष से मिलना चाहती थी जिसने उसे यह अलौकिक सुख दिया था..

अब आगे..


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उधर अमेरिका में सोनी और विकास वासना की नई ऊंचाइयां छू रहे थे। ब्लू फिल्मों की सीडी अब उनके बेडरूम का आम हिस्सा हो चुकी थी। विकास सोनी को तरह-तरह के कामुक प्रयोग के लिए प्रेरित करता कुछ तो सोनी मान जाती और कुछ के लिए साफ मना कर देती। सोनी का शरीर लचीला था उसे नए नए आसान प्रयोग करने मे विशेष दिक्कत महसूस नहीं होती थी पर काम संबंधों में गुदाद्वार का प्रयोग उसे कतई पसंद नहीं था।

जब ब्लू फिल्मों का असर धीरे-धीरे विकास और सोनी में उत्तेजना जागृत करने में नाकाम रहा तो विकास ने एक रात नई तरकीब लगाई…

हमेशा की भांति टीवी पर ब्लू फिल्म चल रही थी। एक नीग्रो एक सुंदर गोरी अंग्रेजन को चोदने के लिए उसकी पैंटी उतार रहा था । स्क्रीन पर उसकी गोरी बेदाग बुर को देख सोनी बोल उठी…

“ हम इंडियन्स का इतना गोरा क्यों नहीं होता?”


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ऐसा नहीं था कि सोनी गोरी नहीं थी पर फिर भी उसके निचले और ऊपरी होंठो में अंतर स्पष्ट था..

सोनी के इस प्रश्न पर विकास द्रवित हो गया उसे सोनी पर बेहद प्यार आया और उसने तुरंत नीचे खिसक कर सोनी की जांघों के बीच लिसलिसी बुर को चूम लिया और बोला

“मेरी जान तुम्हारी मुनिया तो इतनी जानदार है कि साठ साल का बूढ़ा भी देख ले तो जवान हो जाए”

सोनी के दिमाग में तुरंत ही सरयू सिंह का चेहरा घूम गया।

सोनी ने अपना ध्यान भटकाया और विकास का मन टटोलने के लिए मुस्कुराते हुए पूछा

“कौन बूढ़ा?” यदि कहीं गलती से विकास सरयू सिंह का नाम ले लेता तो शायद सोनी उसे कतई नहीं रोकती। पर विकास सपने में भी सरयू सिंह को अपनी कामुक बातों के बीच में नहीं ला सकता था कारण स्पष्ट था सरयू सिंह के बारे में इस तरह की बात सोचना भी पाप था और विकास सोनी की मनोदशा से पूरी तरह अनभिज्ञ था। उसने अपनी बात को बदला और सोनी की आंखों में देखते हुए बोला

“और यदि ये नीग्रो देख ले तो..”

सोनी शर्मा गई…उसका पति जो कल्पना कर रहा था वो निराली थी।

“हट आप भी ना…” सोनी ने अपना चेहरा अपने हाथों से छुपाने की कोशिश पर जांघो को फैला दिया।

अचानक विकास की उत्तेजना को एक जोरदार किक मिली उसने अपनी बड़ी सी जीभ निकाली और सोनी के बुर को नीचे से चाटते हुए उसके दाने तक आ गया। उसकी जीभ सोनी के बुर के होठों को फैलाने में कामयाब रही थी और उसे इसका पारितोषिक रसीले कामरस के रूप में मिला।

सोनी भी सिहर उठी..

अचानक उसने टीवी पर कराहने की आवाज सुनी..


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उसने देखा वह नीग्रो आईने मोटे लंड के फूले हुए सुपाड़े को उस गोरी लड़की के बुर पर रगड़ रहा था जैसे ही वह लंड को अंदर घुसाने को कोशिश करता वो लड़की चिहुंक उठती और उसकी कराह निकल जाती।

सोनी अपनी कल्पना में उस लड़की की जगह ले चुकी थी। उसने अपनी बुर के कसाव का अंदाजा लिया जिसका आभाष विकास को भी हुआ को अभी भी उसकी बुर को चूम चाट रहा था। बुर के संकुचन को महसूस कर विकास ने सोनी को बुर को और जोर से चूस दिया..

सोनी कराह उठी और बोली..

“एजी तनी धीरे से ….दुखाता”

सोनी के मुंह से भोजपुरी के कामुक शब्द सुनकर विकास ने सोनी की तरफ देखा …यह अनुभव विकास के लिए नया था।

सोनी खुद शर्मशार थी सरयू सिंह उसके दिमाग पर इस कदर छ जाएंगे उसे अंदाजा नहीं था।

वह नीग्रो अब अधीर हो रहा था। जब जब वह उस अंग्रेजन के बुर में अपना लंड घुसता वो अपने हाथों से उसे रोकने की कोशिश करती पर अब सब्र का बांध टूटने वाल था।

सोनी की मनोदशा कमोबेश उसी लड़की की थी।तभी उस नीग्रो ने उस अंग्रेजन के मुंह पर हांथ रखा और अपना काली मूसल अंदर ठास दिया..

अंग्रेजन की आवाज तो बाहर नहीं आई पर आंखे बाहर आने लगी। उसके चेहरे पर पीड़ा के भाव आ गए


एक पल के लिए सोनी को लगा ये बेमेल मिलन हकीकत में संभव नहीं। शायद इसीलिए सरयू चाचा आज तक कुवारे थे। उस भीषण लंड को अपने भीतर लेना …सोनी के लिए ये रोंगटे खड़े कर देने वाला था।

फिल्मी नाटकीय होती है अभी तक पीड़ा में कर रही अंग्रेजन धीरे-धीरे सामान्य हो चुकी थी नीग्रो उसकी बुर में लंड अब भी पूरा नहीं घुस पाया था और शायद यह मुमकिन भी नहीं था यदि नीग्रो इसे और ज्यादा घुसने का प्रयास करता तो निश्चित ही अंग्रेजन की आतें बाहर आने लगती।

गोरी गुलाबी बुर से काला मुसल जब बाहर आता सोनी उस चमकते हुए लंड को देखकर रोमांचित हों जाती. विकास सोनी के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था…

सोनी ने उसे अपने चेहरे की तरफ देखते हुए ताड़ लिया और मुस्कुराते हुए बोली

“मुझे क्या देख रहे हो टीवी में देखो..”

“क्या उसे लड़की को तकलीफ नहीं हो रही होगी?” विकास ने पूछा

सोनी मुस्कुराते हुए बोली

“अभी तो उसके हाव-भाव देखकर ऐसा लग तो नहीं रहा”

“क्या तुम्हारी मुनिया भी इतना बड़ा…”विकास अपनी बात कंप्लीट करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया परंतु सोनी ने उसकी बात समझ ली और उसे उठाते हुए बोली

“क्या-क्या क्या बोलना चाह रहे हो साफ-साफ बोलो”

“क्या इतना मोटा और बड़ा सामान इस कसी हुई मुनिया में जा सकता है? विकास ने हिम्मत जुटा के आखिर अपनी बात कह ही दी और यह बात कहते हुए उसके हाथ सोनी की बुर पर चले गए बुर की लार ने विकास की उंगलियों को गीला कर दिया..

सोनी उत्तर देने की स्थिति में नहीं थी उसने विकास को अपने आलिंगन में लेने की कोशिश की विकास सोनी का इशारा समझ चुका था। उसने अपना लंड सोने की बुर में डाल दिया पर यह क्या सोनी की बुर आज पूरी तरह चिपचिपी और फिसलन भरी थी शायद सोनी जरूरत से ज्यादा उत्तेजित थी। विकास का खुद का लंड आज पहली बार छोटा महसूस हो रहा था। सोनी भी अपने भीतर कुछ खालीपन महसूस कर रही थी और थोड़ा से शिथिल महसूस कर रही थी।

विकास ने सोनी को और भी उत्तेजित करते हुए कहा..

“एक बार सोच कर देख कि वो काला मुसल तेरे ही अंदर है…”

“अरे वाह ये तुम कह रहें हो” सोनी को यकीन नहीं हो रहा था।

“ अरे सोचने को ही तो कह रहा हूं ..कौन सा वो नीग्रो तुम्हे चो……द रहा है..” विकास अब स्वयं बहुत उत्तेजित हो चुका था अपनी कल्पनाओं में वह स्वयं सोनी को उस नीग्रो से चुदवाने हुए देख रहा था।

सोनी अब भी विकास को छेड़ रही थी .. उसने अपनी कमर हिलाते हुए विकास से कहा..

“चलो मान लिया पर उस समय तुम कहां हो….”.

कल्पना को सच में परिवर्तित करना कठिन था इतना तो विकास में भी नहीं सोचा था।

नीचे सोनी की बुर की चुदाई जारी रही थी…विकास हंस रहा था और पूरी ताकत से सोनी को चोद रहा था.. अब जब सोनी उसका साथ दे ही रही थी तो उसने आगे बढ़ते हुए बोला..

“मैं अपनी सोनी के पास ही रहूंगा..”

सोनी उस दृश्य की कल्पना करने लगी…जब सरयू सिंह उसे विकास की उपस्थिति में ही चोद रहे हों।

बेहद बेढंगी और बेहद वाहियात कल्पना थी सोनी की । पर कामुक कल्पनाओं का सबसे वाहियात रूप चरमोत्कर्ष के दौरान ही होता है सोनी और विकास अपनी-अपनी कल्पनाओं में उस दृश्य की कल्पना कर रहे थे। पर दोनों की कल्पनाओं में एक ही चीज कॉमन थी वह था सोनी की कचनार बुर में वह काला मुसल जैसा लंड..

वासना अपने फोन पर थी और थोड़ी ही देर में सोनी और विकास पूरी तृप्ति के साथ झड़ने लगे। दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे। सेक्स का ऐसा क्लाइमैक्स कई दिनों बाद आया था।

दोनों की सांसे सामान्य होते ही…विकास ने सोनी को छेड़ते हुए कहा..

“आज तो मजा आ गया काला मुसल है तो जोरदार यह सीडी संभाल कर रखना..”

सोनी ने अपनी आंखें बंद करते हुए कहा “ हट क्या-क्या सोचते हैं और मुझे भी सोचने पर मजबूर करते हैं”

विकास ने सोनी के होठों को चूम लिया और सोनी ने भी प्रत्युत्तर में विकास को अपने फ्रेंच किस पाश में बांध लिया।

सोनी और विकास सुखद दांपत्य जीवन जी रहे थे। सोनी सोनी अब पूरी तरह गदरा गई थी.. चूचियां भी फुल कर 36 का आकार ले चुकी थी.. और नितंब भी सीने की बराबरी कर रहे थे। पर कमर को सोनी ने बढ़ने नहीं दिया था आज भी वह उसी प्रकार एक्सरसाइज कर अपने शरीर की कमानीयता बनाए रखने में कामयाब थी। सोनी की सबसे बड़ी अमानत थी उसके भरे भरे नितंब जो बरबस ही सबका मन मोह लेते। एक अजब सी कशिश थी।

सोनी जब सड़क पर चलती युवा मर्द शायद ही उसे कभी क्रॉस करते और यदि करते भी तो यह तय था की या तो वह ब्रिस्क वॉक कर रहे होते या कहीं जल्दी में जा रहे होते। पर समानता सोनी पुरुषों की चाल को धीमा करने में अक्सर कामयाब रहती। सेक्स के दौरान विकास कभी-कभी उसे नीग्रो और उसके काले लंड का जिक्र करता कभी-कभी सोनी उसे रोकती पर अधिकतर दोनों उसे अपनी उत्तेजना जागृत करने के लिए गाहे बगाहे उसे बीच ले ही आते.. और अपना चरमोत्कर्ष बेहतर बना लेते.

सुखद समय जल्दी बीत जाता है और अब विकास और सोनी के विवाह को लगभग 1 वर्ष होने वाले थे.. आगे की कहानी विकास से ही सुनते हैं..

(मैं विकास)

मुझे साउथ अफ्रीका जाना था वहां पर मेरा तीन दिन का सेमिनार था मैंने जब यह बात सोनी को बताई वह बहुत खुश हुई उसने कहा

"मैं भी आपके साथ साउथ अफ्रीका जाना चाहती हूँ। मैंने वहां के बारे में बहुत सुना है"

“सुना है कि देखा है…” विकास ने उसे आंख मारते हुए कहा..

सोनी झेंप गई और मेरी छाती पर मुक्के मारते हुए मुझसे लिपट गई…वह मुझसे अपनी नजरे नहीं मिला रही थी..पर मुझे उसकी इच्छा का भी पता था उसकी बुर की भी।

मेरे साउथ अफ्रीका जाने के दिन करीब आ रहे थे. सोनी बहुत उत्साहित थी…वह अपनी दबी हुई उस अनोखी इच्छा के बारे में अब बात नहीं करती पर मुझे उसकी झिझक और उसके चेहरे पर शर्म मुझे उसकी इच्छा को पूरा करने पर मजबूर कर रही थी।



साउथ अफ्रीका में बीच पर पहला दिन

एयरपोर्ट से होटल जाते समय केपटाउन शहर का खूबसूरत नजारा देखकर सोनीमंत्रमुग्ध हो गई थी. वह बार-बार मुझसे लिपटती मैं उसकी जांघों पर हाथ रखकर उसे सहलाता और उसे प्यार कर इस खूबसूरत लम्हे को यादगार बनाता।

सोनी अभी भी खूबसूरत शहर को निहार रही थी। थकावट की वजह से मेरी आंख लग गई। टायरों के चीखने की आवाज से मेरी नींद खुली मैंने देखा होटल आ चुका था।हम दोनों रिसेप्शन की तरफ बढ़ चले अटेंडेंट हमारा लगेज लेकर पीछे-पीछे आ रहा था।


यह होटल एक पांच सितारा होटल था जिसमें एक प्राइवेट बीच भी था। मैंने यह होटल खास इसी मकसद के लिए चुना था जिससे हम बीच का आनंद बिना किसी थकावट के उठा पाऐं। मेरा सेमिनार स्थल भी इस होटल के बहुत ही करीब था।

मैं और सोनीदोपहर में आराम करने के पश्चात शाम को बीच पर जाने की तैयारी करने लगे। मैने 2- 3 सुंदर बिकनी जो वह खासकर सोनीके लिए लाई थी उसे दिखाई और बोला यही पहन कर बीच पर चलना है।

“हट अब इतना भी नंगापन ठीक नहीं पता नहीं कैसे कैसे लोग होंगे?” , पर मन ही मन खुश थी।

“जब मैं हूं तो क्या डर है..?” विकास ने उसे उत्साहित किया..


मैंने उसे बिकनी पहनने और उसके ऊपर एक गाउन डालने के लिए कहा जिसे वह आवश्यकतानुसार बीच पर उतार सकती थी उसने दिखावटी थोड़ा प्रतिरोध किया पर मान गई। वह इतनी बार मुझसे चुद चुकी थी पर कामुक परिस्थितियों में अभी भी उसके गाल लाल हो जाते।

कुछ ही देर में हम बीच पर थे. होटल का यह बीच बहुत ही खूबसूरत था। संगमरमर सी चमकती रेत और आकाश की नीलिमा लिए हुए समुंद्र का स्वच्छ जल और किनारों पर प्रकृति द्वारा सजाई गई हरियाली इस बीच को स्वर्गीय रूप दे रहे थे। स्वच्छ रेत पर कई सारे नवयुवक एवं सुंदर नवयुवतियां अर्धनग्न अवस्था में टहल रहे थे। अद्भुत कामुक माहौल था। वहां उपस्थित अधिकतर लड़कियां और युवतियां बिकनी में ही थे। कुछ ही औरतें विशेष प्रकार का स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहने हुई थी।

मैंने सोनीको उत्साहित किया तो उसने अपना गाउन उतार दिया और बिकनी में समुद्र की तरफ बढ़ चली।

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मैं ही क्या वहां पर उपस्थित सभी स्त्री पुरुष मेरी सोनी की इस नग्नता का आनंद ले रहे थे। जिस किसी की भी नजर सोनीके खूबसूरत बदन और उस लाल रंग की प्रिंटेड बिकनी पर पड़ती वह एक नजर उसे जी भर कर देखता और अपने मन में उपजी कामुकता को लेकर अपनी प्रियतमा के साथ आगे बढ़ जाता। मेरी सोनी एक खूबसूरत पोर्न स्टार की तरह समुद्र की तरफ बढ़ रही थी। पीछे से उसके गोल नितंब और गोरी पीठ उसे और मादक बना रहे थे।

इसी बीच पर टहलते हुए भारतीय मूल के किशोर लड़के आपस मे …

"अबे देख क्या गच्च माल है"

"साली के चूतड़ कितने गोल हैं। जाने किसके हिस्से में आयी है"

मुझे सिर्फ साली सब्द पर क्रोध आया जो उनकी विकृत मानसिकता के कारण था बाकी जो उनके अंदर की आवाज थी जो सच ही था।

ऐसा लगता था सोनीको भगवान ने एक अद्भुत और इकलौते सांचे में ढाला था। सुगना की बहन सोनी वाकई कमाल थी। कुछ ही देर में मैं और सोनी समुद्र की लहरों से अठखेलियां कर रहे थे। सोनीको स्विमिंग आती थी पर उसने समुंद्र का इस तरह आनंद नहीं लिया था। वह बेहद उत्साहित होकर समंदर की लहरों से टकराकर बार-बार मेरे ऊपर गिरती और मैं उसे संभाल लेता। इस दौरान मैं भी अपने हिस्से की कामुकता का आनंद ले रहा था। जब वह मेरे आगोश में आती उसके नितंब और स्तन मेरे हाथों से बच नहीं पाते कभी-कभी उसकी बुर भी मेरी उंगलियों का स्पर्श पाती। हम दोनों अपनी उत्तेजना कायम रखते हुए समुद्र का आनंद ले रहे थे। मेरा लंड भी इस दौरान लगातार तन कर सोनीके हाथों की प्रतीक्षा कर रहा था। वह अपना धर्म बीच-बीच में निभा भी रही थी। उसे भी लंड को प्यार करना अच्छा लगता था। मैने महसूस किया कि लंड को सहलाते समय वह खोई खोई सी रहती थी।


मेरी वाइन पीने की इच्छा हुई मैं सोनीको लेकर बीच के किनारे एक रेस्टोरेंट में गया। रेस्टोरेंट्स बहुत खूबसूरत था इसमें 60 -70 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। सोनीखूबसूरत लाल बिकनी में अपने अद्भुत यौवन को संजोए हुए मेरे साथ रेस्टोरेंट में आ चुकी थी। मैंने सोनीकी पसंद की रेड वाइन ऑर्डर की। मैंने यह बात नोटिस की कि इस होटल में काम करने वाले सभी युवक नीग्रो प्रजाति के थे और उनका शारीरिक सौष्ठव दर्शनीय था उनकी कद काठी भी आश्चर्यजनक थी वहां पर कुछ लड़कियां भी कार्यरत वह भी उसी प्रजाति की थी उनकी शारीरिक संरचना भी बेहद खूबसूरत थी।

रेस्टोरेंट अद्भुत था कई देशों से आए हुए खूबसूरत जोड़े इस रेस्टोरेंट की शोभा बढ़ा रहे थे। वेटर के रूप में उपस्थित नीग्रो प्रजाति के युवक और युवतियां अपनी शारीरिक संरचना से सभी का मन मोह रहे थे। होटल के इन सभी कर्मचारियों के पीठ पर एक नंबर पड़ा हुआ था मुझे लगता है इन नंबरों से इन्हें पहचाना जा सकता था।


सोनी की रेड वाइन आ चुकी थी लाल बिकनी पहनी हुई सोनीके हाथों में रेड वाइन बेहद खूबसूरत लग रही थी। वहां उपस्थित सभी महिलाओं और युवतियों में सोनीसबसे सुंदर और सुडोल थी। वहां से गुजरने वाले सभी स्त्री और पुरुष हमें एक बार अवश्य देख रहे थे उन्हें लग रहा था जैसे बॉलीवुड से कोई हीरोइन यहां पर छुट्टियां मनाने आई हुई थी।

रेस्टोरेंट के काउंटर पर बैठा हुआ 20- 22 वर्ष का नवयुवक सोनीको लगातार घूरे जा रहा था। उसकी आंखों में सोनीके प्रति एक अजीब किस्म की हवस दिखाई दे रही थी। सोनी की पीठ उस आदमी की तरह थी निश्चय ही वह सोनी के गोरे नितंबों को और गोरी पीठ को घूर रहा था। मैं उसे देख कर एक बार क्रोधित भी हुआ पर उसकी इस हरकत में उसकी गलती कम ही थी। सोनी इतनी कामुक लग रही थी कि जो भी पुरुष उसे नहीं देखता मैं उसकी मर्दानगी पर अवश्य प्रश्नचिन्ह लगा देता।

मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया परंतु उसने अपनी आंखें सोनी से नहीं हटायीं। रेड वाइन खत्म हो चुकी थी मैंने बिल पे करने के लिए सोनी को ही रिसेप्शन पर जाने के लिए कहा ऐसा कहकर मैं उस व्यक्ति की उत्तेजना को और चरम पर ले जाना चाहता था। वह निश्चय ही अपनी तरफ आती हुई सोनीके स्तनों को भी देखता और सोनीके कोमल मुख मंडल को भी। वह सोनीकी बुरको तो वह नहीं देख पाता पर जांघों के बीच से उसके आकार की कल्पना वह अवश्य कर सकता था। बुरके फूले हुए होंठ अपनी मादकता का एहसास बिकिनी के अंदर से भी करा रहे थे।


सोनीअपनी पूर्ण मादकता के साथ उसकी तरफ बढ़ रही थी। सोनीवहां पहुंची उसने बिल दिया और वह व्यक्ति उसके स्तनों पर लगातार अपनी निगाहें गड़ाए रखा।

मुझे लगता है यदि वेद व्यास को जो शक्तियां महाभारत के समय प्राप्त थी यह दिव्य शक्ति उस व्यक्ति के पास होती तो मेरी सोनीइतनी देर में 2-3 पुत्रों की मां बन गई होती। उसकी निगाहों में इतनी वासना थी।

सोनीने भी उसकी कामुक दृष्टि अवश्य महसूस की होगी। सोनीबहुत ही समझदार थी वह अपने आसपास पनप रही कामुकता को पहचानती थी तथा अपनी इच्छा अनुसार उसे बढ़ावा देती या रोक देती थी।

हम दोनों वापस बीच पर आ गए। कुछ ही देर में हम एक बार फिर समुंद्र के अंदर अठखेलियां कर रहे थे। रेड वाइन के नशे में हमारी कामुकता और बढ़ चली थी। हम बीच के उस हिस्से में आ गए जहां पर बहुत ही कम लोग थे। मैं सोनीको अब उत्तेजक तरीके से छू रहा था। मैंने सोनीकी बुरको अपनी उंगलियों से छुआ। उसका प्रेम रस रिस रिस कर समुद्र में बह रहा था परंतु बुरका गीलापन मेरी उंगलियों ने पहचान लिया। मैंने अपने लंड को वही बुरमें प्रवेश कराने की कोशिश की। मुझे इसमें कुछ सफलता तो मिली पर पूरी तरह से नहीं समुंदर का साफ पानी हमारे संभोग दृश्य को छुपा पाने में नाकाम हो रहा था मैंने और प्रयास ना करते हुए उसे बाहर निकाल लिया और अपनी उंगलियों से ही उसकी बुरको स्खलित करने का प्रयास करने लगा। मैं और सोनीकुछ ही देर के प्रयासों में स्खलित हो गए। मेरा वीर्य समंदर की विशाल लहरों में विलुप्त हो गया सोनीमेरे होठों का चुंबन लेते हुए समंदर के नमकीन पानी का भी रस ले रही थी। शाम गहरा रही थी। हम धीरे-धीरे बीच की तरफ आ रहे थे। जैसे ही सोनीकी कमर पानी से बाहर आयी मैंने देखा उसकी बिकिनी का नीचे वाला भाग गायब था। मैंने सोनीका ध्यान उस तरफ दिलाया तो वह वापस पानी में चली गई। मुझे लगता है हमारी आपस की छेड़खानी में उसके पैरों से फिसलते हुए वह समुद्र में विलीन हो गई थी।


सोनीअब नीचे से पूरी तरह नग्न थी। इसी अवस्था में उसे बीच के किनारे तक जाना था। अभी भी बीच पर पर्याप्त रोशनी थी इस तरह सरेआम नग्न होकर बीच पर पहुंचना कठिन था। मैं उसे छोड़कर वापस बीच पर आया उसका गांउन लेकर वापस समुंद्र में आ गया। इस दौरान सोनीनग्न होकर ही समुद्र के अंदर खड़ी थी। समुद्र के साफ पानी से उसकी नग्नता झलक रही थी। आसपास के युवक और युवतियां सोनीको देख रहे थे सोनीशर्म से पानी पानी हुए अपनी गर्दन झुकाए मेरी प्रतीक्षा कर रही थी।

तभी अचानक वह होटल वाला लड़का जो सोनी को ताड़ रहा था पीछे से आ रहा था उसके हाथ में सोने की पैंटी थी…

“मैंम इस इट योर्स”

सोनी नीचे से नग्न थी किसी अनजान व्यक्ति को इतने पास देखकर वह तुरंत घुटनों के बाल नीचे बैठ गई और अपनी नमिता को छुपाने का प्रयास करने लगी। मैं भी अब तक उसके पास आ चुका था मैंने उसे व्यक्ति से सोने की पैंटी को लेते हुए बोला..

“थैंक यू बट हाउ यू गॉट इट?”

मेरी बात उसे इंग्लिश में ही हो रही थी परंतु हिंदी कहानी होने के नाते में उसे बातचीत को हिंदी में ही बताना चाहूंगा

“मैं पीछे स्विमिंग कर रहा था तभी यह पैंटी मुझे दिखाई पड़ी मैंने ये खूबसूरत लाल रंग देखा और सामने मैडम को देखा जो कुछ खोज रही थीं मुझे लगा निश्चित ही यह उनकी ही है”

ठीक है शुक्रिया…वह लड़का हम लोगों से दूर वापस समुद्र में जा रहा था. सोनी शर्मा के मारे अपनी गर्दन झुकाए हुए थे उसके दूर चले जाने के बाद उसने अपनी पैंटी पहनी और ऊपर से गाउन डाल लिया।

हम धीरे-धीरे होटल की तरफ पर चल पड़े। सोनी बार-बार उसे लड़के के बारे में सोच रही थी क्या उसने उसे नॉन देख लिया था जिस समय वह अपनी पैंटी खोज रही थी उसे समय वह निश्चित ही पूरी तरह नग्न थी। हे भगवान वह आदमी क्या सोच रहा होगा…सोनी की बुर जो बाहर से गीली थी अब अंदर से भी गीली होने लगी।


अपनी नग्नता का सोनी ने भी उतना ही आनंद लिया था जितना उसके आस पड़ोस के युवक-युवतियों उसे देख कर लिया था। सोनीअनचाहे में भी कामुकता की ऐसी मिसाल पेश कर देती थी जो उसके आस पास के पुरुषों में स्वाभाविक रूप उत्तेजना फैला दे रही थी।

उधर वह लड़का सोनी के बारे में सोच रहा था…

शेष अगले भाग में
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
ये सोनी और विकास की काम लिलायें दिनों दिन एक नयी उचांईयों को प्राप्त कर रहीं हैं और साथ में उनकी कल्पना भी नयी बुलंदीया प्राप्त करनें में लगी रहती हैं दोनों में एक तरहा से होड लगी हैं विकास और सोनी अपनी अपनी और से वासना की बुलंदीयों को छुने का पुर्ण प्रयत्न कर रहें हैं
अब बीच पर सोनी को जो अनुभव प्राप्त हुआ वो लगता हैं एक अलग ही मोड पर जाने की संभावना लगती हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

Deepak@123

New Member
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बहोत ही कामुक अपडेट सगुना और सोनु का मिलन धीरे धीरे परम आंनद कि तरफ बढ रही है बहोत दिनो बाद सोनु और सगुना का मिलन पढने बहोत मस्त लग रहा है अगले अपडेट कि प्रतीक्षा है
 

ChaityBabu

New Member
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भाग 143

अरे सोनू तनी धीरे चल नाता हमरा के बिस्तर पर ले जाए से पहले अस्पताल पहुंचा देबे” सुगना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

हस्ती खिलखिलाती सुगना को यदि कोई मर्द देख ले तो उसकी नपुंसकता कुछ ही पलों में समाप्त हो जाए ऐसी खूबसूरत और चंचल थी सुगना सोनू ने अपनी रफ़्तार कुछ कम की और मन ही मन सुगना को खुश और संतुष्ट करने के लिए प्लानिंग करने लगा।


उधर सुगना भी सोनू को खुश करने के बारे में सोच रही थी। आज वह उसे दीपावली की काली रात में घटित पाप को पूरी सहमति और समर्पण के साथ अपनाने जा रही थी।


अब आगे…

सोनू बेहद उत्साहित था। रात भर वह अगले दिन के बारे में सोचता रहा और मन ही मन अपने ईश्वर से प्रार्थना करता रहा की सुगना और उसके मिलन में कोई व्यवधान नहीं आए उसे इतना तो विश्वास हो चला था कि जब सुगना ने ही मिलन का मन बना लिया है तो विधाता उसका मन जरूर रखेंगे..

अगली सुबह सुगना के बच्चों सूरज और मधु को भी यह एहसास हो चला था कि उनकी मां उन्हें कुछ घंटे के लिए छोड़कर सलेमपुर जाने वाली है। वह दोनों सुबह से ही दुखी और मुंह लटकाए हुए थे।

बच्चों का अपना नजरिया होता है सुगना को छोड़ना उन्हें किसी हालत में गवारा नहीं था सोनू ने उन दोनों को खुश करने की भरसक कोशिश की तरह-तरह के पुराने खिलौने बक्से से निकाल कर दिए पर फिर भी स्थिति कमोवेश वैसी ही रही।

तभी सरयू सिंह ने बाकी बच्चों को बाहर पार्क चलने के लिए आग्रह किया लाली के बच्चे तुरंत ही तैयार हो गए और अब सूरज और मधु भी अपने साथियों और दोस्तों के साथ पार्क में जाने के लिए राजी हो गए।

सोनू और सुगना दोनों संतुष्ट थे। सरयू सिंह ने अपनी पुत्री सुगना की खुशी का अनजाने में ही ख्याल रख लिया था।

सोनू ने और देर नहीं की उसने गाड़ी स्टार्ट की और अपनी अप्सरा को अपनी बगल में बैठा कर सलेमपुर के लिए निकल पड़ा।

अपने मोहल्ले से बाहर निकलते ही सोनू ने सुगना की तरफ देखा जो कनखियों से सोनू को ही देख रही थी

आंखें चार होते ही सोनू ने मुस्कुराते हुए पूछा

“दीदी का देखत बाड़े”

सुगना ने अपनी नज़रें झुकाए हुए कहा.

“तोर गर्दन के दाग देखत रहनि हा”

“अब तो दाग बिल्कुल नईखे..” सोनू ने उत्साहित होते हुए कहा।

“हमरा से दूर रहबे त दाग ना लागी” सुगना ने संजीदा होते हुए कहा उसे इस बात का पूरी तरह इल्म हो चुका था कि सोनू के गर्दन का दाग निश्चित ही उनके कामुक मिलन की वजह से ही उत्पन्न होता था।

“हमारा अब भी ई बात पर विश्वास ना होला. सरयू चाचा के भी तो ऐसा ही दाग होते रहे ऊ कौन गलत काम करत रहन” सोनू ने इस जटिल प्रश्न को पूछ कर सुगना को निरुत्तर कर दिया था। सरयू सिंह सुगना की दुखती रख थे। यह बात वह भली भांति जानती थी कि उनके माथे का दाग भी सुगना से मिलन के कारण ही था परंतु उनके बारे में बात कर वह स्वयं को और अपने रिश्ते को आशंकित नहीं करना चाहती थी उसने तुरंत ही बात पलटी और बोला..

“चल ठीक बा …और लाली के साथ मन लगे लगल”

“का भइल सोनी के गइला के बाद हिंदी प्रैक्टिस छूट गईल का?” शायद सोनू इस वक्त अपने और लाली के बारे में बात नहीं करना चाहता था उसका पूरा ध्यान सुगना पर केंद्रित था।

“नहीं नहीं मैं अब भी हिंदी बोल सकती हूं” सुगना ने हिंदी में बोलकर सोनू के ऑब्जरवेशन को झूठलाने की कोशिश की।

“अच्छा ठीक है मान लिया…वास्तव में आप साफ-साफ हिंदी बोलने लगी हैं.. “

अपनी तारीफ सुनकर सुगना खुश हो गई और सोनू की तरफ देखते हुए उसके आगे बोलने का इंतजार करने लगी..

“दीदी एक बात बता उस रात जो मैंने सलेमपुर में किया था क्या वह गलत था?”

एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे सोनू इस काली रात की बात कर रहा है जब उसने सुगना के साथ पहली बार संभोग किया था। पर सुगना को यह उम्मीद नहीं थी अनजान बनते हुए उसने प्रश्न टालने की कोशिश की “किस दिन?”

“वो दीपावली के दिन”

अब कुछ सोचने समझने की संभावना नहीं थी सुगना को उस काली रात की याद आ गई जब उसके और सोनू के बीच पाप घटित हुआ था।

पर शायद वह पाप ही था जिसने सोनू और सुगना को बेहद करीब ला दिया था इतना करीब कि दोनों दो जिस्म एक जान हो चुके थे।


प्यार सुगना पहले भी सोनू से करती थी परंतु प्यार का यह रूप प्रेम की पराकाष्ठा थी और उसका आनंद सोनू और सुगना बखूबी उठा रहे थे। सोनू के प्रश्न का उत्तर यदि वर्तमान स्थिति में था तो यही था कि

सुगना के अंतरात्मा चीख चीख कर कह रही थी…”हां सोनू तुमने उस दिन जो किया था अच्छा ही किया था पर सुगना यह बात बोल नहीं पाई वह तब भी मर्यादित थी और अब भी”

“बोल ना दीदी चुप काहे बाड़े”

सोनू ने एक बार फिर अपनी मातृभाषा बोलकर सुगना की संवेदनाओं को जागृत किया।

“हां ऊ गलत ही रहे”

“पर क्यों अब तो आप उसको गलत नहीं मानती”

“तब मुझे नहीं पता था की मैं तुम्हारी सगी बहन नहीं हूं”

सुगना ने अपना पक्ष रखने की कोशिश की तभी उसे सोनू की बात याद आने लगी।

अच्छा सोनू यह तो बता “मैं किसकी पुत्री हूं मेरे पिता कौन है?”

“माफ करना दीदी मैं यह बात कर हम दोनों की मां पदमा को शर्मसार नहीं कर सकता हो सकता है उन्होंने कभी भावावेश में आकर किसी पर पुरुष से संबंध बनाए हों पर अब उसे बारे में बात करना उचित नहीं होगा”

सुगना महसूस कर रही थी कि उसके और सोनू के बीच बातचीत संजीदा हो रही थी। उधर सुगना आज स्वयं मिलन का मूड बनाए हुए थी। उसने अपना ध्यान दूसरी तरफ केंद्रित किया और सोनू को उकसाते हुए बोली..

“तोरा अपना बहिनी के संग ही मन लागेला का?”

काहे? सोनू ने उत्सुकता बस पूछा।

“ते पहिले लाली के संग भी सुतत रहले अब हमरो के भी घसीट लीहले”

(आशय : तुम पहले लाली के साथ भी सो रहे थे और बाद में मुझे भी उसमें घसीट लिया।)

अब सोनू भी पूरी तरह मूड में आ चुका था उसने कहा..

“तोहर लोग के प्यार अनूठा बा…”

काहे…? सुगना ने सोनू के मनोभाव को समझने की चेष्टा की।

सोनू ने अपना बाया हाथ बढ़ाकर सुगना की जांघों को दबाने का प्रयास किया पर सुगना ने उसकी कलाई पकड़ ली और खुद से दूर करते हुए बोली।

“ठीक से गाड़ी चलाओ ई सब घर पहुंच कर”

सुगना की बात सुनकर सोनू बाग बाग हो गया उसने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी सुगना मुस्कुराने लगी उसने सोनू की जांघों पर हाथ रखकर बोला

“अरे सोनू तनी धीरे चल नहीं तो मैं पलंग की बजाय अस्पताल में लेटी मिलूंगी” सुगना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

हस्ती खिलखिलाती सुगना को यदि कोई मर्द देख ले तो उसकी नपुंसकता कुछ ही पलों में समाप्त हो जाए ऐसी खूबसूरत और चंचल थी सुगना। सोनू ने अपनी रफ़्तार कुछ कम की और मन ही मन सुगना को खुश और संतुष्ट करने के लिए प्लानिंग करने लगा।

उधर सुगना भी सोनू को खुश करने के बारे में सोच रही थी। आज वह दीपावली की काली रात में घटित पाप को अपना चुकी थी और और अब पूरी सहमति और समर्पण के साथ सोनू को अपनाने जा रही थी।

कितना अजीब सहयोग था सुगना के माथे का सिंदूर का रंग बदल चुका था । गले का मंगलसूत्र भी सोनू द्वारा ही लाया हुआ था। और उसके दिलों दिमाग पर अब सरयू सिंह की जगह सोनू राज कर रहा था।

सोनू स्वयं सुगना के बारे में सोच रहा था।

सुगना के प्रति सोनू के मन में आकर्षण तभी उत्पन्न हुआ था जब वह किशोरावस्था से गुजर रहा था स्त्री शरीर की पहली परिकल्पना उसने सुगना के रूप में ही की थी। अपनी किशोरावस्था में जब-जब वह सुगना के अंगों को देखता उसे अंदर ही अंदर एक अजब सी संवेदना होती पर मन में पाप अपराध बोध भी जन्म लेता।

उस समय सुगना के कामुक अंगों को देख पाना लगभग असंभव था पर पर इसके बावजूद वह सुगना की गोरी पीठ और घुटने के नीचे सुंदर टांगों को देखने में कामयाब रहा था वैसे भी सुगना की सुडौल कद काठी स्वयं ही उसकी चोली के पीछे छुपे खजाने का बखान करती थी।

जितना ही सोनू उन दिनों के बारे में सोचता सुगना का मासूम चेहरा उसकी आंखों के सामने घूमने लगता गांव की एक सुंदर अल्हड़ लड़की सुगना आज एक पूर्ण युवती बन चुकी थी जो इस समय कार के शीशे से बाहर लहलहाती फसलों को देख रही थी।

सुगना के विवाह के पश्चात सोनू और सुगना दूर हो गए थे पर सोनू को लाली का सानिध्य प्राप्त हो चुका था। लाली ने सोनू को अपने मुंह बोले भाई की तरह अपना लिया था आखिर वह उसकी सहेली का भाई था। लाली सोनू के करीब आती गई और सोनू की कामुकता अब लाली के सहारे उफान भरने लगी…

बनारस हॉस्टल आने के बाद जब सोनू ने लाली से और नजदीकी बढ़ाई तब जाकर उसे स्त्री शरीर के उन दोनों अद्भुत अंगों का दर्शन और स्पर्श सुख का लाभ प्राप्त हुआ…

जब एक बार सोनू ने लाली की चूचियों और बुर का स्वाद चख लिया उसकी कल्पना में न जाने कब सुगना वापस अपना स्थान खोजने लगी। सोनू को पता था कि उसका जीजा सुगना को छोड़कर जा चुका था। सुंदर और अतृप्त सुगना के कामुक जीवन में अपनी जगह बनाने के लिए सोनू मन ही मन सुगना के नजदीक आने की कोशिश करने लगा नियति ने सोनू का साथ दिया और आज वह अपनी प्यारी सुगना को उसके ही पलंग पर भोगने उसी के घर पर ले जा रहा था।

सुगना को उसके अपने ही सुहाग सेज पर चोदने की कल्पना कर सोनू का लंड पूरी तरह खड़ा हो गया जैसे ही सोनू ने स्टेरिंग से अपने हाथ हटाकर अपने लंड को व्यवस्थित करना चाह सुगना ने सोनू की यह हरकत ताड़ ली..

सोनू शर्मा गया इससे पहले की सोनू कुछ बोलता सुगना का हाथ सोनू की जांघों के बीच आ गया और सुगना में सोनू के तने हुए लंड का आकलन अपनी हथेलियां के दबाव से महसूस कर लिया और तुरंत ही सोनू के कंधे पर चपत लगाते हुए कहा..

“तोहरा दिन भर यही सब में मन लागेला का सोचत रहले हा…?”

जो सोनू सो रहा था वह बता पाना कठिन था पर उसने बेहद संजीदगी से बात बदलते हुए कहा..

“दीदी उस दिन जब सलेमपुर में पूजा थी और रतन जीजू आए थे और आप लोगों ने साथ में पूजा की थी उस दिन आप बहुत सुंदर लग रही थी”

सुगना को वह दिन याद आ गया जब उसने रतन को एक बार फिर अपने पति के रूप में स्वीकार किया था और अपने कुलदेवी के सामने पूजा अर्चना की थी और उसके बाद रतन के साथ अपनी सुहागरात मनाई थी। पर हाय री सुगना की किस्मत पुरुषार्थ से भरा रतन जो एक खूबसूरत और तगड़े लंड का स्वामी था अभिशप्त सुगना को स्खलित करने में नाकामयाब रहा था।

“बोल ना दीदी”

सुगना ने अपने चेहरे पर आश्चर्य के भाव लाते हुए सोनू से पूछा

“क्यों क्या बात है क्यों पूछ रहे हो?”

“उस दिन आपने सुन्दर लहंगा पहना था और जो इत्र लगाया था वह अनूठा था”

सुगना को उसे दिन की पूरी घटनाएं याद आ गई उसे यह भी बखूबी याद था कि जब सोनू उसके चरण छूने के लिए नीचे झुका था तो उसके लहंगे से उठ रही इत्र की खुशबू को उसने जिस तरह सूंघा था वह अलग था और बेहद कामुक था सुगना को तब सोनू से यह अपेक्षा कतई नहीं थी।

सुगना ने सोनू कि इस हरकत को बखूबी नोट किया था परंतु जानबूझकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी उसे इतना तो इल्म अवश्य ताकि सोनू लाली के साथ कामुक गतिविधियों में लिप्त है और शायद यही वजह हो कि उसने अपनी काम इच्छा के बस में आकर यह हिमाकत की थी।


परंतु कई बातों पर प्रतिक्रिया न देना ही उचित होता है शायद सुगना ने तब इसीलिए अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी थी पर अब जब सोनू ने वह बात छेड़ ही दी थी तो सुगना ने पूछा..

“ते इत्र कहा सूंघले?

सोनू से उत्तर देते नहीं बना। वह किस्म से कहता है कि वह अपनी बड़ी बहन की बुर पर लगा इत्र सूंघ रहा था । पर अब जब उसके और सुगना के बीच शर्म की दीवार हट रही थी उसने हिम्मत जुटा और बोला..

“दीदी हम बता ना सकी पर वह दिन तो बिल्कुल अप्सरा जैसन लागत रहलू और ऊ खुशबू…. सोनू ने एक लंबी आह भरी…

सोनू कहना तो बहुत कुछ चाहता था परंतु अब भी हिचकचा रहा था।

इससे पहले की उन दोनों का बात और आगे बढ़ती सलेमपुर का बाजार आ चुका था। सोनू ने गाड़ी रोकी और मिठाई की दुकान से जाकर जलपान के लिए कुछ आइटम और मिठाइयां खरीद लाया।

कुछ भी देर बाद उसकी कार सलेमपुर गांव के बीच से गुजरती सरयू सिंह के दरवाजे तक जा पहुंची।

कार का पीछा कर रहे पिछड़े वर्ग के बच्चे अब थक चुके थे। सुगना कार से बाहर आई और सोनू द्वारा खरीदी गई मिठाई में से कुछ भाग उन बच्चों में बांट दिया। बच्चे सुगना दीदी दीदी...चिल्ला कर अपनी मिठाई मांग रहे थे और सुगना सबको मिठाई बाट रही थी।सुगना निराली थी शायद इसीलिए वह हर दिल अजीज थी।

लाली के माता पिता हरिया और उसकी पत्नी भी अब तक बाहर आ चुके थे। अपनी पुत्री को ना देख कर वह थोड़े उदास हुए पर जब सुगना ने पूरी बात समझाइ वह सुगना और सोनू के आदर् सत्कार में लग गए।

जलपान कर सुगना और सोनू अपने घर में आ गए।


सुगना ने सर्वप्रथम कजरी द्वारा बताए गए गहने को उसके बक्से से निकला और सोनू को देते हुए बोली..

“सोनू इकरा के जाकर मुखिया जी के घर दे आओ और हां जाए से पहले गाड़ी में से हमरा बैग निकाल दे”

“तू हिंदी ना बोल पईबू” सोनू सुगना को चिढ़ाते हुए बोला

“ठीक है एसडीएम साहब अब हिंदी ही बोलूंगी …अब जो”

सुगना मुस्कुरा रही थी और सोनू को अपनी अदाओं से घायल किया जा रही थी।

“अब जो…. ये तो हिंदी नहीं है”

सुगना सोनू को बड़ी अदा से मारने दौड़ी..पर सोनू हंसते हुए गाड़ी से बैग निकालने चला गया।


पर न जाने क्यों सुगना से रहा नहीं क्या वह उसके पीछे-पीछे गाड़ी तक आ गई सोनू ने सुगना से पूछा

“ दो-चार घंटा खातिर अतना बड़ बैग काहे ले आइल बाड़ू”

“अब ते काहे भोजपुरी बोलत बाड़े” सुगना ने सोनू को उलाहना देते हुए कहा।

“बताव ना पूजाई के समान लेले बाड़ू का”

सोनू ने जिस संदर्भ में यह बात कही थी वह सुगना बखूबी समझ चुकी थी। बुर की पूजा का मतलब सुगना भली भांति समझती थी और सोनू इस भाषा को सीख चुका था।

सुगना एक पल के लिए शर्मा गई पर अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए बोली

“अपना काम से काम रख ….”

वह सोनू से नज़रे चुराते हुए बैग लेकर अंदर जाने लगी तभी सोनू ने उसे पीछे से आकर पकड़ लिया अपने हाथों से उसके नंगे पेट को सहलाने लगा। उसकी हथेलियां ऊपर की तरफ बढ़ने लगी वह सुगना के कानों को चूमने की कोशिश कर रहा था और कान में फुसफुसाकर बोला..

“हमार इनाम कब मिली?”

“पहले मुखिया के घर जो और हां बाहर से ताला लगा दीहे वापस आवत समय पीछे के दरवाजा से आ जाईहे.”

सोनू सुगना की बात को पूरी तरह समझ चुका था बाहर ताला लगा होने का मतलब यह था कि घर में कोई नहीं था पिछले दरवाजे से आकर वह बिना किसी रुकावट के सुगना के साथ रंगरलिया मना सकता था।

सोनू ने अपनी पकड़ ढीली की और एक बार उसकी दोनों चूचियों को अपनी हथेली में भरते हुए बोला..

“जो हुकुम मेरे आका…”

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी वह उसकी पकड़ से दूर हुई और उसे धकेलते हुए बोली

“अब जो ना त देर होई “

“ फेर भोजपुरी…”

सोनू मुस्कुराते हुए उससे दूर हुआ पर दरवाजे से निकलने से पहले उसने एक बार फिर सुगना की तरफ देखा और अपने होठों को गोल कर उसे चूमने की कोशिश की यह कुछ-कुछ फ्लाइंग किस जैसा ही था सुगना ने उसी प्रकार सोनू को रिप्लाई कर उसे खुश कर दिया..

सोनू के जाने के पश्चात सुगना अपनी तैयारी में लग गई।

सजना सवरना हर स्त्री को पसंद होता है सुगना भी इससे अछूती नहीं थी। और आज तो उसे सोनू को खुश करना था जब स्त्री किसी पुरुष को अपनी अंतरात्मा से प्यार करती है तो वह उसके लिए पूरी तन्मयता से खुद को तैयार करती है आज सुगना भी अपने बैग में वही गुलाबी लहंगा चोली लेकर आई थी जो सोनू ने अपनी होने वाली पत्नी लाली के लिए चुना था और जो तात्कालिक परिस्थिति बस सुगना के भाग्य में आ गया था।

सुगना ने स्नान किया अपने केस सवारे और सोनू द्वारा दिया हुआ लहंगा चोली पहन लिया अंतर वस्त्रों की जरूरत शायद नहीं थी इसलिए सुगना ने पैंटी नहीं पहनी। पर चोली सुगना की कोमल चूचियों को तंग कर रही थी सुगना ने ब्रा ढूंढने के लिए अपना पुराना संदूक खोला..

संदूक खोलते ही सुगना की पुरानी यादें ताजा हो गई..

सरयू सिंह के साथ बिताई गई पहली रात और उसका गवाह वह लाल जोड़ा सुगना को आकर्षित कर रहा था उसने उसे लाल जोड़े को बाहर निकाल लिया और उस खूबसूरत जोड़े को सहलाते हुए सरयू सिंह के साथ बिताई गई अपनी पहली रात को याद करने लगी।

सरयू सिंह ने उसे जितना प्यार दिया था उसने उसके जीवन में खुशियों के रंग बिखेर दिए थे सुगना तब एक अल्लढ नवयौवना थी.. और सरयू सिंह कामकला में पारंगत जिस खूबसूरती से उन्होंने सुगना में वासना के रंग भरे और उसे पुष्पित पल्लवित होने दिया.. उसने सुगना के व्यक्तित्व को और निखार दिया था। व्यक्तित्व ही क्या सुगना की चूचियां उसके नितंब कटीली कमर सब कुछ कहीं ना कहीं सरयू सिंह के कारण ही थे।

वह उसके जनक भी थे उसे सजाने संवारने वाले भी थे और भोगने वाले भी।

उन्होंने न जाने कितनी बार सुगना को नग्न कर उसकी मालिश की थी कभी तेल से कभी अपने श्वेत धवल वीर्य से।

सुगना ने लहंगे पर लगे सरयू सिंह के वीर्य और अपने रज रस के दागों को देखा और मन ही मन मुस्कुराने लगी चेहरे की चमक बढ़ती चली गई।

अचानक सुगना का ध्यान संदूक में रखे अपने दूसरे लहंगे पर गया जो उसकी सास कजरी ने उसके लिए लाया था यह वही लहंगा था जो उसने रतन को अपने पति स्वरूप में स्वीकार करने के बाद घर की उसे विशेष पूजा में पहना था। पर शायद सुगना स्वाभाविक संबंधों के लिए बनी ही नहीं थी रतन के लाख जतन करने के बाद भी वह सुगना को स्खलित करने में नाकामयाब रहा था और यह जोड़ा सिर्फ और सिर्फ रतन के वीर्य का गवाह था पर सुगना का काम रास इस लहंगे के भाग में न था।

संदूक खाली हो चुका था और सुगना जिस खूबसूरत लाल ब्रा को ढूंढ रही थी वो अब साफ दिखाई पड़ रही थी सुगना ने उसे अपने हाथों में ले लिया यह ब्रा भी सुगना की पहली रात की गवाह थी पर सबसे पहले उसका साथ छोड़ कर जाने वाली या ब्रा पूरी तरह कुंवारी थी सरयू सिंह के वीर्य के दाग इस पर अब भी नहीं लगे थे।

सुगना ने अपनी चोली को उतारा और उसे खूबसूरत ब्रा को पहनने की कोशिश की।

सुगना चाह कर भी उस छोटी ब्रा में अपनी भरी भरी चूचियों को कैद करने में नाकाम रही…

सुगना की चूचियां अब अपना आकर ले चुकी थी और अब वह छोटी ब्रा में कैद होने के लिए तैयार नहीं थी एक तो उसके पहले मिलन की यादों ने उसकी चूचियों को और भी तान दिया था….

आखिरकार सुगना ने आज पहनी हुई अपनी पुरानी ब्रा को ही धारण किया अपनी चोली पहनी और अपने लहंगे को संदूक में वापस रखने लगी तभी अचानक उसे एहसास हुआ जैसे सोनू घर के पिछले दरवाजे को खोल रहा है।

वह अपने अतीत को अपने वर्तमान पर हावी नहीं होने देना चाहती थी आज उसका एकमात्र उद्देश्य सोनू को खुश करना था और कई दिनों से उसके अपने बदन में उठ रही काम अग्नि को शांत करना था। उसने फटाफट अपने पुराने लहंगे को वापस संदूक में बंद किया अपने कपड़े को व्यवस्थित किया और अपने बालों में कंघी करने लगी। अभी वह अपने बाल सवांर ही रही थी कि सोनू उसके समक्ष आ गया।

अभी सुगना की तैयारी में एक कमी थी वह थी सुगंधित इत्र का प्रयोग सुगना ने उसे बक्से से निकाल तो लिया था परंतु इसका प्रयोग नहीं कर पाई थी।

उसने सोनू से कहा..

“ए सोनू पीछे पलट हमारा तरफ मत देखिहे “

सोनू अधीर था वह सुगना की खूबसूरती का वैसे ही कायल था और इस समय तो सुगना बला की खूबसूरत लग रही थी। कमरे में व्याप्त स्नान की ही सुगना की खुशबू उसे मदहोश कर रही थी। सजी धजी सुगना से नज़रें हटाना कठिन था।

सोनू ने सुगना के दोनों कंधों को अपनी हथेलियां से पकड़ लिया और उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोला..

“कुछ बाकी बा का ?”

“….तोहरा से जवन बोला तानी ऊ कर” सुगना ने अपने हाथों से सोनू को पलटने का निर्देश देते हुए कहा।

अभी सोनू सुगना को जी भर कर देख भी नहीं पाया था पर बड़ी बहन सुगना का निर्देश टाल पाना कठिन था..

सोनू कोई और चारा न देख पलट गया ..

तभी सुगना की एक और हिदायत आई

“जब तक ना कहब पीछे मत देखिहे”

सोनू ने न जाने क्यों अपनी आंखें बंद कर ली शायद वह पीछे हो रहे घटनाक्रम का अंदाजा लगाना चाहता था।

सुगना ने इत्र की बोतल निकाली अपना लहंगा उठाया और इत्र में भीगी हुई रुई को अपनी दोनों जांघों के जोड़ पर रगड़ दिया।

इससे पहले कि वह इत्र की शीशी बंद कर पाती…

सोनू बोल उठा..

“दीदी ई खुशबू तो हम पहले भी सूंघले बानी”

सुगना मुस्कुरा उठी उसे पता था यह इत्र उसने कब लगाया था और यह भी बखूबी याद था कि सोनू ने उसके चरण छुते समय इस खुशबु को महसूस किया था।

“कब सूंघले बाड़े ते ही बता दे”

“पहले बोल मुड़ जाई?” सोनू अब बेचैन हो रहा था पर बिना सुगना के निर्देश के वह वापस नहीं मुड़ सकता था।

“ले हम ही तोरा सामने आ गईनी अब बता दे”

सोनू खूबसूरत और सजी-धजी सुगना को देखकर उसकी धड़कने तेज हो गईं..

सुगना के केश अब भी हल्के गीले थे..चेहरा दमक रहा था माथे पर सिंदूर आंखों में कजरा और होंठो पर लिपस्टिक उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रहे थे।

गर्दन में लटक रहा सोनू का मंगलसूत्र चूचियों की घाटी में और गहरे उतर जाने को व्याकुल था।

भरी भरी मदमस्त चूचियां चोली के आवरण में कैद थी पर छलक छलक कर अपने अस्तित्व का एहसास करा रही थी।

चूचियों के ठीक नीचे सुगना का सपाट पेट और कटावदार कमर जो इस उम्र में भी किशोरियों जैसे थी सुगना का व्यक्तित्व और सुंदरता निखार रही थी।

नाभि का खूबसूरत बटन न जाने कितने मर्दों की नींद उड़ाई लेता था वह सोनू को बरबस आकर्षित कर रहा था। जिस प्रकार मिठाई की दुकान पर खड़ा ग्राहक मिठाइयों को लेकर कंफ्यूज रहता है उसी प्रकार सोनू की स्थिति थी सुगना के खजाने को वह जी भर कर देखना चाह रहा था पर नज़रें इधर-उधर फिसल रही थी।

सोनू अभी सुगना को निहार ही रहा था तभी सुगना बोल पड़ी

“ का देखे लगले कुछ बतावत रहले हा ऊ खुशबू के बारे में.”

सोनू घुटनों के बल बैठ गया.. उसने अपना सर नीचे किया और सुगना के अलता लगे खूबसूरत पैरों की तरफ अपना सर ले जाने लगा एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे वह उसके पैरों पर अपना कर रख रहा हो।

शायद सुगना इसके लिए तैयार न थी उसने झुक कर सोनू को पकड़ने की कोशिश की पर तब तक सोनू के होंठ सुगना के पंजों को चूम चुके थे।

लहंगे के भीतर से आ रही इत्र की खुशबू सोनू के नथुनों में पढ़ चुकी थी।

सोनू अपना सर उठाता गया और इत्र की खुशबू के स्रोत को ढूंढता गया। सुगना का लहंगा सोनू के सर के साथ-साथ ऊपर उठ रहा था न जाने क्यों सुगना यंत्रवत खड़ी थी। सोनू लगातार सुगना के पैरों को चूमें जा रहा था.. घुटनों के ऊपर पहुंचते पहुंचते सुगना का सब्र जवाब दे गया। उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ यदि वह सोनू को नहीं रोकती तो काम रस की बूंदे उसकी प्यासी बर से छलक कर टपक पड़ती। वह एक कदम पीछे हटी और लहंगे ने वापस नीचे गिर कर उसके खूबसूरत पैरों को ढक लिया।

सोनू को यह यह नागवार गुजरा उसने आश्चर्य से सुगना की तरफ देखा। कितना तारतम्य था सुगना और सोनू में सुगना ने सोनू के मनोभाव को ताड़ लिया और अपनी सरल मुस्कान से उसकी तरफ देखते हुए बोला

“ना पहचानले नू?”

सोनू के मन में उपजा गुस्सा तुरंत शांत हो गया..

उसने लहंगे के ऊपर से ही सुगना की जांघों को सूंघते हुए बोला

“दीदी ये वही खुशबू ह जब तू रतन जीजा के साथ पूजा करे के समय लगवले रहलू “

“तब से बहुत बदमाश बाड़े ओ समय भी तू यही सूंघत रहले”

सोनू शर्मा गया। …पर अब सुगना और सोनू के बीच शर्म की दीवार हट रही थी।

“तू पहले भी अप्सरा जैसन रहलू मन तो बहुत करत रहे पर डर लागत रहे”

“का मन करत रहे?” सुगना ने मुस्कुराते हुए सोनू को छेड़ा.

सोनू अचानक उठ खड़ा हुआ और सुगना को अपनी बाहों में भरते हुए उसके होठों को चूम लिया और अपने बदन से सटाए हुए सुगना को सोनू पूरी तरह आलिंगन में भर चुका था उसकी हथेलियां सुगना की पीठ से होते हुए नितंबों की तरफ बढ़ रही थी।

सुगना खिले हुए फूलों की तरह दमक रही थी परंतु सोनू शायद उतना फ्रेश महसूस नहीं कर रहा था अचानक उसने कहा…

“दीदी 1 मिनट रुक तनी हम भी नहा ली”

सुगना ने उसे नहीं रोका उसने तुरंत ही सरयू सिंह की एक धोती लाकर सोनू को दी और कुछ ही पलों में सोनू वह धोती पहनकर आंगन में लगे हैंड पंप पर आ गया।

सोनू का गठीला बदन हल्की धूप में चमक रहा था। धोती को अपनी जांघों पर लपेटे सोनू हैंड पंप चलाकर बाल्टी में पानी भर रहा था।

सुगना अपने कमरे से सोनू को देख रही थी जो अब एक पूर्ण मर्द बन चुका था। सोनू की मजबूत भुजाएं चौड़ा सीना और गठीली कमर किसी भी स्त्री को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम थी।

अचानक सोनू ने सुगना के कमरे की तरफ देखा खिड़की से ललचायी आंखों से ताकती सुगना की निगाहें सोनू से मिल गई। आंखों ने आंखों की भाषा पढ़ ली सुगना सोनू में जो देख रही थी उसका असर उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था। सुगना की बुर पानिया गई थी।

नजरे मिलते ही सुगाना ने अपनी आंखें झुका ली। पर लंड और तन गया…

शेष अगले भाग में…
Nice
 
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