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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143
 
Last edited:

nagendra8352

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भाग 131

लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…


अब आगे..

सुबह-सुबह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारीयो को निभाने के पश्चात सुगना अपने भगवान के समक्ष अपने परिवार के कुशल क्षेम की प्रार्थना कर रही थी। सोनू के नसबंदी कर लेने के पश्चात यह सुनिश्चित हो चुका था कि सोनू अब विवाह नहीं कर सकता । पूरे परिवार में यह बात सिर्फ सुगना को पता थी और उसने इसीलिए सोनू और लाली के विवाह का निर्णय ले लिया था।

सुगाना यह चाहती थी की लाली और सोनू पति-पत्नी के रूप में साथ में रहने लगे जिससे सोनू की वासना तृप्ति होती रहे और सोनू जिसका ध्यान भटकते भटकते स्वयं उसकी तरफ आ चुका था वह उससे दूर ही रहे। परंतु सुगना को शायद यह अंदाजा न था कि सोनू और सुगना एक दूसरे के लिए ही बने थे उन्हें अलग कर पाना इतना आसान न था।

दोपहर में सुगना और लाली भोजन के पश्चात एक ही बिस्तर पर लेटे हुए थे । सुगना ने लाली की ओर करवट ली और बोली..

“सोनूआ शनिचर के आवता…सोचा तनी सोनी के सीतापुर भेज दी… सोमवार के भी छुट्टी बा 2 दिन मां के साथ रहली अच्छा लागी।

लाली मंद मंद मुस्कुराने लगी। वह जानती थी कि सोनी की उपस्थिति में सोनू से संभोग करना एक आसान कार्य न था। पिछली बार बड़े दिनों बाद जब सोनू और लाली का मिलन हुआ था तब सोनी घर में थी और लाली और सोनू दोनों के बीच कामुक गतिविधियों के दौरान दोनों अहसज महसूस कर रहे थे।

एक तरफ जहां सुगना की उपस्थिति लाली और सोनू दोनों में जोश भर देती थी। वहीं दूसरी तरफ सोनी से लाली और सोनू दोनों अपने अनूठे रिश्ता का पर्दा रखते थे।


सोनी को यह इल्म भी ना था की उसके सोनू भैया जो उसके लिए एक आदर्श थे अपनी मुंह बोली बहन लाली के साथ बिस्तर पर धमा चौकड़ी करते थे।

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

“ठीक कहा त बाड़े , दो-चार दिन घुम आईबे तो ओकरो अच्छा लागी”

सुगना में उसे चिकौटी काटते हुए कहा

“और ताहरा?”

लाली सुगना से सटकर गले लग गई।

सोनी के अनुपस्थित होने पर जब भी सोनू घर में होता, सुगना घर के सभी बच्चों को संभाल लेती । वह उनके साथ खेलती उन्हें कहानियां सुनाती बातें करती इसी दौरान लाली और सोनू अपनी कामवासना को शांत कर लेते। दिन हो या रात सुगना के रहने से लाली और सोनू को पूरा एकांत मिलता दोनों इसके लिए सुगना के शुक्रगुजार भी थे और कृतज्ञ भी।

सुगना ने हिम्मत जुटा कर लाली से सोनू और उसके विवाह के बारे में बात करने की सोची और उसकी बाहों पर अपनी हथेली रखते हुए बोली

“ए लाली जौनपुर अबकी ते सोनू के साथ जौनपुर चल जो सोनू तोर पसंद के पलंग सजाबले बा. मन भर सुख लीहे.. ओकर घर बहुत सुंदर बा”

“जाए के तो हमरो मन करता पर बच्चन के के स्कूल चलता।

“ते जो हम संभाल लेब” सुगना ने रास्ता सुझाया।

“पगला गई बाड़े का । सोनू के साथ अकेले जाएब तो लोग का सोची ? हम ओकर बहिन हई बीबी ना..” लाली मुस्कुराने लगी।

समझदार सुगना ने न जाने ऐसी बात कैसे बोल दी थी। लाली का प्रश्न उचित था सोनू के साथ बिना बच्चों के जाना मुमकिन ना था।

पर अब जब सुगना के मुख से बात निकल ही गई थी उसने इसे अवसर में तब्दील कर दिया और बेहद संजीदगी से बोली..

“अच्छा ई बताओ लाली तोरा सोनूवा के साथ हमेशा रहे के मन करेला की ना?”

“काहे पूछत बाडू तू ना जाने लू का? अगला जन्म में भगवान हमारा हिस्सा में सोनुआ के देते त हमार भाग जाग जाएत..”

“और भगवान एही जन्म में दे देस तब?”

सुगना ने पूरी संजीदगी से उसकी आंखों में आंखें डालते हुए कहा।

सुगना ने लाली की दुखती रंग छेड़ दी थी जो लाली कभी अपनी कल्पनाओं में इस बात को सोचती थी आज सुगना ने अपने मुंह से वह बात कह कर अकस्मात लाली को उसकी संभावनाओं पर सोचने के लिए विवश कर दिया था। फिर भी वह सतर्क थी उसने मुंह बिचकाते हुए कहा

“ काहे ए अभागन से मजाक करत बाड़े। जतना प्यार हमरा सोनू से मिलेला हम ओतना से खुश बानी हमरा के ढेर लालची मत बनाव “

सुगना भली-भांति समझती थी की लाली सोनू को अपने पति रूप में स्वीकार करना चाहती तो अवश्य होगी पर सांसारिक और वैचारिक बंधनों से यह एक बेहद कठिन कार्य था।

आखिरकार सुगना ने अपने चिर परिचित दृढ़ अंदाज में लाली से कहा..

“लाली यदि सोनू तोहरा से खुद विवाह करें के इच्छा व्यक्त करी तो मना मत करिह बाकी सब हम देख लेब” लाली सुगना की बात सुनकर आश्चर्यचकित थी.

“ए सुगना अइसन मजाक मत कर”

“हम सच कहत बानी बस तू ओकर प्रस्ताव स्वीकार कर लीह “

“और घर परिवार के लोग “

“उ सब हमारा पर छोड़ दा?

“लाली पर सोनू हमरा से छोट ह और ईद दु दु गो बच्चा लोग ?” इ शादी बेमेल लागी।

लाली का प्रश्न सही था। निश्चित ही यह शादी बच्चों की वजह से कुछ अटपटी और बेमेल लग रही थी। परंतु लाली और सोनू जब अगल-बगल खड़े होते तो उम्र का अंतर बहुत ज्यादा नहीं प्रतीत होता था। सोनू अपनी उम्र से ज्यादा मेहनत कर अपना शरीर एक मर्द की तरह बना चुका था और इसके इतर लाली अब भी अपनी कमानीयता बरकरार रखने में कायम रही थी। उम्र में कुछ वर्ष बड़े होने के बावजूद उसने अपने शरीर को मेंटेन करते हुए इस उम्र के पहले को यथासंभव कम कर दिया था।

इसके बावजूद लाली को सुगना की बातें एक दिवास्वप्न की तरह लग रही थी। पर जिस संगीदगी से सुगना ने यह बात कही थी उसे सिरे से नकार देना संभव न था।

लाली के तो मन में अब लड्डू फूटने लगे थे। परंतु क्या यह इतना आसान होगा? क्या उसके और उसके परिवार के लोग इस बात को स्वीकार करेंगे ? क्या वह सचमुच सोनू से विवाह करेंगी? हे भगवान क्या उसकी कल्पना एक मूर्त रूप लेने जा रही थी? वह सुगना के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करते हुए उसकी दोनों हथेलियां को अपने हाथों में ले ली और बेहद प्यार से सहलाते हुए बोली

“सुगना हमरा के माफ कर दीहे हम तोहरा साथ बहुत नाइंसाफी कइले बानी”

सुगना ने प्रश्नवाचक निगाहों से लाली की तरफ देखा जैसे उसके इस वाक्य का मतलब समझाना चाह रही हो लाली की आंखों में आंसू थे उसने अपनी पलके झुकाए हुएकहा..


“सुगना ऊ दिवाली के रात सोनुआ तोहरा साथ जवन काईले रहे ओ में हमारे गलती रहे। हम ही ओकरा के उकसावले रहनी की की तु ओकरा से मिलन खाती तैयार बाडू।”

सुगना आश्चर्यचकित होकर लाली को देख रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की लाली के इस कन्फेशन से वह खुश हो या दुखी । एक तरफ उसके कन्फेशन सोनू को कुछ हद तक दोष मुक्त कर रहे थे और दूसरी तरफ उसका अंतरमन लाली का धन्यवाद दे रहा था जो उसने सोनू से उसका मिलन जाने अनजाने आसान कर दिया था। और उसके जीवन में एक बार फिर प्रेम और वासना की तरंगे छोड़ दी थी

सुगना ने खुद को संयमित किया वह उस बारे में और बात करना नहीं चाह रही थी उसने लाली की बात को ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहा…

“तोरा कारण का का परेशानी भइल जानते बाड़े ..पर शायद कौनों पाप रहे कट गईल अब भूल जो ऊ सब”

बच्चों के ऑटो की आवाज सुनकर दोनों सहेलियों का वार्तालाप बंद हुआ लाली खुशी बच्चों को लेने बाहर गई और सुगना एक लंबी आह भरते हुए आगे की रणनीति बनाने लगी।

सुगना ने मन ही मन अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी उसे भी पता था यह कार्य बेहद कठिन था सोनू जैसे सजीले मर्द जो एक अच्छे प्रशासनिक पद पर भी था और तो और इसके लिए कई नामी गिरामी लोगों की लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे ऐसे में सोनू लाली जैसी दो बच्चों वाली विधवा से विवाह के लिए सभी परिवार वालों को राजी करना बेहद कठिन था।

परंतु सुगना यह बात भली भांति जानती थी कि जब से सोनू ने अपनी नसबंदी करा ली थी उसका विवाह किसी सामान्य लड़की से करना उचित न था। यह उस लड़की के साथ भी अन्याय होता और उसके परिवार के साथ भी। यह धोखा था जिसे सुगना कतई नहीं चाहती थी।

सुगना की विडंबना यह थी कि वह सोनू की नसबंदी की बात किसी से साझा नहीं कर सकती थी यह राज सिर्फ उन दोनों के बीच था।

आखिरकार सोनू शनिवार को बनारस आने वाला था लाली और सुगना दोनों तैयार हो रहीं थी। एक सोनू के स्वागत के लिए और दूसरी सोनू के आने वाले जीवन में खुशियां बिखरने के लिए।

कुछ ही देर बाद सोनी और सुगना अपने दोनों बच्चों के साथ सीतापुर के लिए निकल पड़े। लाली को यह कुछ अजीब सा लगा

“अरे काल चल जईहे आज सोनू से मुलाकात कर ले..”

“ना ओकरा आवे में देर होई…अगला सप्ताह भेंट होखी” ऑटो में बैठ चुके बच्चे उछल कूद मचा रहे थे। सोनी और सुगना सीतापुर के लिए निकल चुके थे। वैसे भी सोनू का आना जाना एक सामान्य बात थी।

सुगना को पता था की सोनू निश्चित ही किसी न किसी बहाने उसे अपने मोहपाश में बांधेगा और उसकी निगोडी बुर में कामेच्छा जागृत करेगा और मौका देखकर संसर्ग के लिए किसी न किसी प्रकार उसे मना लेगा। ठीक वैसे ही जैसे वह बचपन में सुगना का उसका मन ना होते हुए भी अपने खेल में घसीट लेता था।

वैसे भी अभी सुगना की प्राथमिकताएं दूसरी थी अपने और लाली के घर वालों को मनाना उसके लिए एक कठिन कार्य था।

सोनू बनारस आया पर सुगना को घर में ना देखकर उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। परंतु लाली खुश थी। आज उसके मिलन में कोई भी व्यवधान न था। सुगना से तो उसे वैसे भी कोई दिक्कत न थी परंतु सोनी……से पार पाना कठिन था। उसकी उपस्थिति में फूक फूक कर कदम रखना पड़ता था।

लाली का ध्यान सोनू की गर्दन की तरफ गया। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। लाली खुश हो गई। पर सोनू की आंखों से चमक गायब थी। जिससे मिलने के लिए वह दिल में तड़प लिए बनारस आया था वह न जाने क्यों उसे छोड़कर चली गई थी।

शाम होते होते वस्तु स्थिति को स्वीकार करने के अलावा सोनू के पास और कोई चारा नहीं था। लाली जी जान से रात की तैयारी कर रही थी सोनू अब अपनी खुशी लाली में ही तलाश रहा था। लाली ने जिस तरीके से सुगना के समक्ष अपनी गलती मानी थी तब से उसकी मन हल्का हो गया था और वह अपनी सहेली सुगना के प्रति दिल से कृतज्ञ थी जिसने उसके वीरान जिंदगी में सोनू जैसा हीरा डालने का वचन दिया था।

लाली ने मन ही मन सोच लिया कि वह सोनू को संभोग के समय सुगना का नाम लेकर और नहीं उकसाएगी…

परंतु रात में जब सोनू और लाली एक दूसरे की प्रेम अग्न बुझा रहे थे बरबस ही सुगना का ध्यान उन दोनों के मनो मस्तिष्क में घूम रहा था। लाली द्वारा सुगना का जिक्र न किए जाने के बावजूद सोनू तो सुगना में ही खोया हुआ था। सोनू के आवेग और वेग में कमी नहीं थी। अपनी सुगना के लिए जितनी वासना सोनू ने अपने तन बदन में समेट रखी थी वह सारी लाली पर उड़ेल कर वह निढाल हो गया।

उधर सुगना अपने परिवार के बीच पहुंच चुकी थी..

सुगना जिस मिशन पर गई थी वह एक दो मुलाकातों में पूरा नहीं होने वाला था परंतु जब सुगना मन बना चुकी थी.. तो उसके लिए कोई भी कार्य दुष्कर न था।

अगले दो तीन महीने यूं ही बीत गए। हर शनिवार सोनू सुगना से मिलने बनारस आता पर कभी सुगना अपने गांव चली जाती कभी अपनी मां या कजरी और सरयू सिंह को बनारस बुला लेती इन दोनों ही परिस्थितियों में सोनू और सुगना का मिलन असंभव था । और सपना के प्यार में कोई कमी न थी। वह सब की उपस्थिति में सोनू से पूर्व की भांति प्यार करती उससे सटती कभी उसके गोद में सर रख देती पर उसे कामुक होने का कोई मौका नहीं देती। कभी-कभी सोनू एकांत में सुगना को बाहर घूमाने की जिद करता परंतु सुगना सोनू को उसे घुमाने का मूल उद्देश्य जानती थी और बड़ी सफाई से बिना उसे आहत किए बच निकलती..

जिस तरह मछली को पानी में पकड़ना मुश्किल होता है वह हांथ तो आती है पर पकड़ में नहीं आती सुगना भी अपने परिवार के बीच सुनहरी मछली जैसी ही थी..

सोनू उसका स्पर्श सुख तो बीच बीच में ले पा रहा था पर उछलती मचलती सुगना उसकी पकड़ से दूर थी..

ऐसा नहीं था कि सुगना ने इस दौरान सोनू को नजरअंदाज कर दिया था बस दूरी बना ली थी यद्यपि बीच-बीच में वह उसमें वासना की तरंगे भरने का काम जरुर कर देती थी।

आखिरकार सुगना अपने घर वालों और लाली के घर वालों को इस अनोखे विवाह के लिए राजी करने में कामयाब हो गई। सर्वसम्मति से यह विवाह आर्य समाज विधि से साधारण रूप से किसी पवित्र मंदिर में किया जाना निश्चित हुआ।

पूरे घर में खुशियों का माहौल था। इस अनूठे रिश्ते से सोनी सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित थी। सोनू और लाली कब मुंह बोले भाई बहन से एक दूसरे के प्रेमी बन गए थे सोनी ने शायद इसकी कल्पना भी ना की थी। परंतु सोनू के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह करने का ना तो सोनी के पास कोई अधिकार था और नहीं कोई जरूरत जब मियां बीबी राजी तो वह बीच में कई काजी की भूमिका अदा नहीं करना चाहती थी।

शुरुवात में सोनू की मां पद्मा का मन थोड़ा दुखी जरूर था परंतु लाली ने पदमा की सेवा कर उसका भी मन जीत लिया था। पूरे परिवार ने आखिरकार मिलकर यह हत्या किया कि यह विवाह सोनी के विवाह के बात करना उचित होगा अन्यथा सोनी के ससुराल वाले इस विवाह पर प्रश्न चिन्ह लगा सकते थे।

सुगना के लिए सोनू की तड़प बढ़ती जा रही थी और अब कमोबेश यही हाल सुगना का भी था इन दो-तीन महीनो में सुगना ने लाली और सोनू को हमेशा के लिए एक करने के लिए भरपूर प्रयास किया था और सफल भी रही थी। उसका कोमल तन बदन सोनू के मजबूत आलिंगन में आने को तड़प रहा था। पर अपने मन पर मजबूत नियंत्रण रखने वाली सुगना अपनी भावनाओं को काबू में किए हुए थी।

आज शुक्रवार का दिन था। लाली अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता से मिलने सलेमपुर गई हुई थी। शायद उसके माता-पिता ने उसके लिए घर पर कोई छोटी पूजा रखी थी जिसमें उसका उपस्थित रहना जरूरी था। सुगना ने लाली को हिदायत दी थी की कैसे भी करके कल शाम तक बनारस आ जाना। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कल सोनू को बनारस आना था और सुगना कतई नहीं चाहती थी कि सोनू बिना लाली की उपस्थिति के बनारस में उसके साथ एक ही छत के नीचे रहे। सुगना अब तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में कामयाब रही थी और सोनू अपनी भावनाओं को काबू में रखने को मजबूर था।

सुगना अपने दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद पूरी तरह खाली थी। आज उसने पूरी तन्मयता से स्नान किया स्नान करते वक्त अपनी छोटी सी बुर के चारों तरफ उग आए काले बालों की झुरमुट को सोनू के पुराने रेजर से साफ किया। इस दौरान न जाने क्यों वह सोनू को याद करती रही ।


सुगना महसूस कर रही थी कि पिछले कुछ महीनो में उसने सोनू को हद से ज्यादा बेचैन कर दिया था पर उसकी नजरों में शायद यही उचित था। बिस्तर पर जब जब सुगना स्वयं उत्तेजना का शिकार होती अपनी जांघों के बीच तकिया फसाकर जौनपुर में सोनू के साथ बिताए पल को याद करती सोनू को याद करते-करते उसकी उंगलियां उसकी बुर को थपकियां देकर सुलाने की कोशिश करती।

कभी वह रहीम और फातिमा की किताब निकाल कर पढ़ती और इसी दौरान न जाने कब सुगना की बुर उसकी जांघों को ऐंठने पर मजबूर कर देती और सुगना तृप्ति का सुखद एहसास लिए नींद में खो जाती। रहीम एवं फातिमा की किताब अब उसके लिए एक अनमोल धरोहर हो चुकी थी जो उसके एकांत और सुख की साथी थी..

सुगना ने तसल्ली से स्नान किया खूबसूरत मैरून कलर की साटिन की नाईटी पहनी …. बालों की सफाई होने के पश्चात उसकी बुर संवेदनशील हो चुकी थी अतः उसने अंतर्वस्त्र पहनने को आवश्यकता नहीं समझी पर एहतियातन अपनी चूचियों को ब्रा सहारा दे दिया। वैसे भी आज कई दिनों वह घर में नितांत अकेली थी और आज दोपहर रहीम और फातिमा की किताब पढ़ते हुए अपने कामोत्तेजना शांत करने वाली थी।

स्नान के बाद ध्यान की बारी थी। अपने इष्ट देव को याद करते हुए सुगना पूजा पाठ में संलग्न हो गई। सुगना ने आरती दिखाई और अपने परिवार की खुशियों को कामना की..इसी बीच उसने लाली और सोनू का भी ध्यान किया और उनके विवाह के लिए मंगल कामना की। इधर सुगना ने अंतरमन ने सोनू को याद कर लिया…उधर

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई.. हाथ में आरती की थाल लिए अपने घर और बरामदे में आरती दिखाते हुए सुगना दरवाजे तक गई और दरवाजा खोल दिया..

सामने सोनू खड़ा था.. सुगना सुगना आश्चर्यचकित थी..पर बेहद खुश थी

“अरे सोनू बाबू आज कैसे? छुट्टी बा का?”

“ना दीदी बनारस में काम रहे…” सुंदर नाइटी में फूल सी खिली सुगना की मादक सुगंध में खोए हुए सोनू ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया..

उसने झुक कर सुगना के चरण छुए… उठते वक्त उसने सुगना के हाथ में पकड़ी आरती की थाल को पूरे आदर और सम्मान से अपनी दोनों हथेलियों से स्वीकार किया और उसे अपने माथे पर लगा लिया।


सुगना खुश भी थी और आश्चर्यचकित भी उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और सर पर रखकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद दिया..नियति मुस्कुरा रही थी सुगना ने अनजाने में उसे स्वयं को समर्पित कर दिया था आखिर इस वक्त सोनू की एकमात्र मनोकामना सुगना स्वयं थी। सुगना वापस पूजा का थाल रखना अपने छोटे से मंदिर में चली गई..

इधर सोनू अपना सामान लाली के कमरे में रख चुका था कमरे की स्थिति यह बता रही थी की लाली अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सलेमपुर जा चुकी थी..

अब तक सोनू को पिछले कुछ महीने से खुद से दूर रख पाने में सफल सुगना आज अचानक ही नियत के खेल में फंस चुकी थी। सोनू की खुशी सातवें आसमान पर थी और अपने इष्ट देव के समक्ष सर झुकाए सुगना का दिल धड़क रहा था…सुगना को स्वयं यह समझ नहीं आ रहा था कि वह ईश्वर से मांगे तो क्या मांगे जो जीवन में उसे सबसे प्यारा था वह उसके समक्ष था.

सोनू मंदिर के दरवाजे पर खड़ा सुगना के बाहर आने का इंतजार कर रहा था..

जैसे ही सुगना अपने पूजा कक्ष से बाहर आई सोनू ने उसे सोनू ने उसे एक झटके में ही अपनी गोद में उठा लिया..सुगना ने अपनी खुशी को नियंत्रित करते हुए पर अपनी मादक मुस्कान बिखरते हुए सोनू से कहा..

“अरे रुक भगवान जी के सामने…”

सोनू ने सुगना को अपनी गोद में लिए हुए अपने घर के मंदिर के सामने लगे परदे को खींचने का अवसर दिया। सुगना ने अपने इष्ट देव को एक बार फिर प्रणाम किया जब तक सुगना अपने ईस्ट से अपने मन की बात कह पाती तब तक सोनू सुगना को अपने गोद में लिए हुए सुगना के कक्ष की तरफ बढ़ चला।

उसकी उंगलियां सुगना के नंगे पेट से सट रही थी वह बीच-बीच में सुगना के पेट को अपनी उंगलियों से गुदगुदा देता। सुगना का अंतर्मन फूल की तरह खिल गया था वह खिलखिला रही थी।

नियति को हंसती खिलखिलाती सुगना एक कामातुर तरुणी की तरह प्रतीत हो रही थी…

नियति सतर्क थी..और सोनू और सुगना के मिलन की प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए आतुर थी…

शेष अगले भाग में.



पहले की ही भांति अगला एपिसोड उन्हीं पाठकों को भेजा जाएगा जिन्होंने कहानी से कमेंट के माध्यम से अपना जुड़ाव दिखाया है..
प्रतीक्षार
sirji apke kahani ke liye bahut din intjar karna para please send me part 132
 

sakir

New Member
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update is super bhai ji and aap ko wapas dekh kar bhot khushi hui kab se wait kar raha tha ki aap fir se writing suru karo
 

brij1728

माँ लवर
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भाग 131

लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…


अब आगे..

सुबह-सुबह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारीयो को निभाने के पश्चात सुगना अपने भगवान के समक्ष अपने परिवार के कुशल क्षेम की प्रार्थना कर रही थी। सोनू के नसबंदी कर लेने के पश्चात यह सुनिश्चित हो चुका था कि सोनू अब विवाह नहीं कर सकता । पूरे परिवार में यह बात सिर्फ सुगना को पता थी और उसने इसीलिए सोनू और लाली के विवाह का निर्णय ले लिया था।

सुगाना यह चाहती थी की लाली और सोनू पति-पत्नी के रूप में साथ में रहने लगे जिससे सोनू की वासना तृप्ति होती रहे और सोनू जिसका ध्यान भटकते भटकते स्वयं उसकी तरफ आ चुका था वह उससे दूर ही रहे। परंतु सुगना को शायद यह अंदाजा न था कि सोनू और सुगना एक दूसरे के लिए ही बने थे उन्हें अलग कर पाना इतना आसान न था।

दोपहर में सुगना और लाली भोजन के पश्चात एक ही बिस्तर पर लेटे हुए थे । सुगना ने लाली की ओर करवट ली और बोली..

“सोनूआ शनिचर के आवता…सोचा तनी सोनी के सीतापुर भेज दी… सोमवार के भी छुट्टी बा 2 दिन मां के साथ रहली अच्छा लागी।

लाली मंद मंद मुस्कुराने लगी। वह जानती थी कि सोनी की उपस्थिति में सोनू से संभोग करना एक आसान कार्य न था। पिछली बार बड़े दिनों बाद जब सोनू और लाली का मिलन हुआ था तब सोनी घर में थी और लाली और सोनू दोनों के बीच कामुक गतिविधियों के दौरान दोनों अहसज महसूस कर रहे थे।

एक तरफ जहां सुगना की उपस्थिति लाली और सोनू दोनों में जोश भर देती थी। वहीं दूसरी तरफ सोनी से लाली और सोनू दोनों अपने अनूठे रिश्ता का पर्दा रखते थे।


सोनी को यह इल्म भी ना था की उसके सोनू भैया जो उसके लिए एक आदर्श थे अपनी मुंह बोली बहन लाली के साथ बिस्तर पर धमा चौकड़ी करते थे।

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

“ठीक कहा त बाड़े , दो-चार दिन घुम आईबे तो ओकरो अच्छा लागी”

सुगना में उसे चिकौटी काटते हुए कहा

“और ताहरा?”

लाली सुगना से सटकर गले लग गई।

सोनी के अनुपस्थित होने पर जब भी सोनू घर में होता, सुगना घर के सभी बच्चों को संभाल लेती । वह उनके साथ खेलती उन्हें कहानियां सुनाती बातें करती इसी दौरान लाली और सोनू अपनी कामवासना को शांत कर लेते। दिन हो या रात सुगना के रहने से लाली और सोनू को पूरा एकांत मिलता दोनों इसके लिए सुगना के शुक्रगुजार भी थे और कृतज्ञ भी।

सुगना ने हिम्मत जुटा कर लाली से सोनू और उसके विवाह के बारे में बात करने की सोची और उसकी बाहों पर अपनी हथेली रखते हुए बोली

“ए लाली जौनपुर अबकी ते सोनू के साथ जौनपुर चल जो सोनू तोर पसंद के पलंग सजाबले बा. मन भर सुख लीहे.. ओकर घर बहुत सुंदर बा”

“जाए के तो हमरो मन करता पर बच्चन के के स्कूल चलता।

“ते जो हम संभाल लेब” सुगना ने रास्ता सुझाया।

“पगला गई बाड़े का । सोनू के साथ अकेले जाएब तो लोग का सोची ? हम ओकर बहिन हई बीबी ना..” लाली मुस्कुराने लगी।

समझदार सुगना ने न जाने ऐसी बात कैसे बोल दी थी। लाली का प्रश्न उचित था सोनू के साथ बिना बच्चों के जाना मुमकिन ना था।

पर अब जब सुगना के मुख से बात निकल ही गई थी उसने इसे अवसर में तब्दील कर दिया और बेहद संजीदगी से बोली..

“अच्छा ई बताओ लाली तोरा सोनूवा के साथ हमेशा रहे के मन करेला की ना?”

“काहे पूछत बाडू तू ना जाने लू का? अगला जन्म में भगवान हमारा हिस्सा में सोनुआ के देते त हमार भाग जाग जाएत..”

“और भगवान एही जन्म में दे देस तब?”

सुगना ने पूरी संजीदगी से उसकी आंखों में आंखें डालते हुए कहा।

सुगना ने लाली की दुखती रंग छेड़ दी थी जो लाली कभी अपनी कल्पनाओं में इस बात को सोचती थी आज सुगना ने अपने मुंह से वह बात कह कर अकस्मात लाली को उसकी संभावनाओं पर सोचने के लिए विवश कर दिया था। फिर भी वह सतर्क थी उसने मुंह बिचकाते हुए कहा

“ काहे ए अभागन से मजाक करत बाड़े। जतना प्यार हमरा सोनू से मिलेला हम ओतना से खुश बानी हमरा के ढेर लालची मत बनाव “

सुगना भली-भांति समझती थी की लाली सोनू को अपने पति रूप में स्वीकार करना चाहती तो अवश्य होगी पर सांसारिक और वैचारिक बंधनों से यह एक बेहद कठिन कार्य था।

आखिरकार सुगना ने अपने चिर परिचित दृढ़ अंदाज में लाली से कहा..

“लाली यदि सोनू तोहरा से खुद विवाह करें के इच्छा व्यक्त करी तो मना मत करिह बाकी सब हम देख लेब” लाली सुगना की बात सुनकर आश्चर्यचकित थी.

“ए सुगना अइसन मजाक मत कर”

“हम सच कहत बानी बस तू ओकर प्रस्ताव स्वीकार कर लीह “

“और घर परिवार के लोग “

“उ सब हमारा पर छोड़ दा?

“लाली पर सोनू हमरा से छोट ह और ईद दु दु गो बच्चा लोग ?” इ शादी बेमेल लागी।

लाली का प्रश्न सही था। निश्चित ही यह शादी बच्चों की वजह से कुछ अटपटी और बेमेल लग रही थी। परंतु लाली और सोनू जब अगल-बगल खड़े होते तो उम्र का अंतर बहुत ज्यादा नहीं प्रतीत होता था। सोनू अपनी उम्र से ज्यादा मेहनत कर अपना शरीर एक मर्द की तरह बना चुका था और इसके इतर लाली अब भी अपनी कमानीयता बरकरार रखने में कायम रही थी। उम्र में कुछ वर्ष बड़े होने के बावजूद उसने अपने शरीर को मेंटेन करते हुए इस उम्र के पहले को यथासंभव कम कर दिया था।

इसके बावजूद लाली को सुगना की बातें एक दिवास्वप्न की तरह लग रही थी। पर जिस संगीदगी से सुगना ने यह बात कही थी उसे सिरे से नकार देना संभव न था।

लाली के तो मन में अब लड्डू फूटने लगे थे। परंतु क्या यह इतना आसान होगा? क्या उसके और उसके परिवार के लोग इस बात को स्वीकार करेंगे ? क्या वह सचमुच सोनू से विवाह करेंगी? हे भगवान क्या उसकी कल्पना एक मूर्त रूप लेने जा रही थी? वह सुगना के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करते हुए उसकी दोनों हथेलियां को अपने हाथों में ले ली और बेहद प्यार से सहलाते हुए बोली

“सुगना हमरा के माफ कर दीहे हम तोहरा साथ बहुत नाइंसाफी कइले बानी”

सुगना ने प्रश्नवाचक निगाहों से लाली की तरफ देखा जैसे उसके इस वाक्य का मतलब समझाना चाह रही हो लाली की आंखों में आंसू थे उसने अपनी पलके झुकाए हुएकहा..


“सुगना ऊ दिवाली के रात सोनुआ तोहरा साथ जवन काईले रहे ओ में हमारे गलती रहे। हम ही ओकरा के उकसावले रहनी की की तु ओकरा से मिलन खाती तैयार बाडू।”

सुगना आश्चर्यचकित होकर लाली को देख रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की लाली के इस कन्फेशन से वह खुश हो या दुखी । एक तरफ उसके कन्फेशन सोनू को कुछ हद तक दोष मुक्त कर रहे थे और दूसरी तरफ उसका अंतरमन लाली का धन्यवाद दे रहा था जो उसने सोनू से उसका मिलन जाने अनजाने आसान कर दिया था। और उसके जीवन में एक बार फिर प्रेम और वासना की तरंगे छोड़ दी थी

सुगना ने खुद को संयमित किया वह उस बारे में और बात करना नहीं चाह रही थी उसने लाली की बात को ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहा…

“तोरा कारण का का परेशानी भइल जानते बाड़े ..पर शायद कौनों पाप रहे कट गईल अब भूल जो ऊ सब”

बच्चों के ऑटो की आवाज सुनकर दोनों सहेलियों का वार्तालाप बंद हुआ लाली खुशी बच्चों को लेने बाहर गई और सुगना एक लंबी आह भरते हुए आगे की रणनीति बनाने लगी।

सुगना ने मन ही मन अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी उसे भी पता था यह कार्य बेहद कठिन था सोनू जैसे सजीले मर्द जो एक अच्छे प्रशासनिक पद पर भी था और तो और इसके लिए कई नामी गिरामी लोगों की लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे ऐसे में सोनू लाली जैसी दो बच्चों वाली विधवा से विवाह के लिए सभी परिवार वालों को राजी करना बेहद कठिन था।

परंतु सुगना यह बात भली भांति जानती थी कि जब से सोनू ने अपनी नसबंदी करा ली थी उसका विवाह किसी सामान्य लड़की से करना उचित न था। यह उस लड़की के साथ भी अन्याय होता और उसके परिवार के साथ भी। यह धोखा था जिसे सुगना कतई नहीं चाहती थी।

सुगना की विडंबना यह थी कि वह सोनू की नसबंदी की बात किसी से साझा नहीं कर सकती थी यह राज सिर्फ उन दोनों के बीच था।

आखिरकार सोनू शनिवार को बनारस आने वाला था लाली और सुगना दोनों तैयार हो रहीं थी। एक सोनू के स्वागत के लिए और दूसरी सोनू के आने वाले जीवन में खुशियां बिखरने के लिए।

कुछ ही देर बाद सोनी और सुगना अपने दोनों बच्चों के साथ सीतापुर के लिए निकल पड़े। लाली को यह कुछ अजीब सा लगा

“अरे काल चल जईहे आज सोनू से मुलाकात कर ले..”

“ना ओकरा आवे में देर होई…अगला सप्ताह भेंट होखी” ऑटो में बैठ चुके बच्चे उछल कूद मचा रहे थे। सोनी और सुगना सीतापुर के लिए निकल चुके थे। वैसे भी सोनू का आना जाना एक सामान्य बात थी।

सुगना को पता था की सोनू निश्चित ही किसी न किसी बहाने उसे अपने मोहपाश में बांधेगा और उसकी निगोडी बुर में कामेच्छा जागृत करेगा और मौका देखकर संसर्ग के लिए किसी न किसी प्रकार उसे मना लेगा। ठीक वैसे ही जैसे वह बचपन में सुगना का उसका मन ना होते हुए भी अपने खेल में घसीट लेता था।

वैसे भी अभी सुगना की प्राथमिकताएं दूसरी थी अपने और लाली के घर वालों को मनाना उसके लिए एक कठिन कार्य था।

सोनू बनारस आया पर सुगना को घर में ना देखकर उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। परंतु लाली खुश थी। आज उसके मिलन में कोई भी व्यवधान न था। सुगना से तो उसे वैसे भी कोई दिक्कत न थी परंतु सोनी……से पार पाना कठिन था। उसकी उपस्थिति में फूक फूक कर कदम रखना पड़ता था।

लाली का ध्यान सोनू की गर्दन की तरफ गया। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। लाली खुश हो गई। पर सोनू की आंखों से चमक गायब थी। जिससे मिलने के लिए वह दिल में तड़प लिए बनारस आया था वह न जाने क्यों उसे छोड़कर चली गई थी।

शाम होते होते वस्तु स्थिति को स्वीकार करने के अलावा सोनू के पास और कोई चारा नहीं था। लाली जी जान से रात की तैयारी कर रही थी सोनू अब अपनी खुशी लाली में ही तलाश रहा था। लाली ने जिस तरीके से सुगना के समक्ष अपनी गलती मानी थी तब से उसकी मन हल्का हो गया था और वह अपनी सहेली सुगना के प्रति दिल से कृतज्ञ थी जिसने उसके वीरान जिंदगी में सोनू जैसा हीरा डालने का वचन दिया था।

लाली ने मन ही मन सोच लिया कि वह सोनू को संभोग के समय सुगना का नाम लेकर और नहीं उकसाएगी…

परंतु रात में जब सोनू और लाली एक दूसरे की प्रेम अग्न बुझा रहे थे बरबस ही सुगना का ध्यान उन दोनों के मनो मस्तिष्क में घूम रहा था। लाली द्वारा सुगना का जिक्र न किए जाने के बावजूद सोनू तो सुगना में ही खोया हुआ था। सोनू के आवेग और वेग में कमी नहीं थी। अपनी सुगना के लिए जितनी वासना सोनू ने अपने तन बदन में समेट रखी थी वह सारी लाली पर उड़ेल कर वह निढाल हो गया।

उधर सुगना अपने परिवार के बीच पहुंच चुकी थी..

सुगना जिस मिशन पर गई थी वह एक दो मुलाकातों में पूरा नहीं होने वाला था परंतु जब सुगना मन बना चुकी थी.. तो उसके लिए कोई भी कार्य दुष्कर न था।

अगले दो तीन महीने यूं ही बीत गए। हर शनिवार सोनू सुगना से मिलने बनारस आता पर कभी सुगना अपने गांव चली जाती कभी अपनी मां या कजरी और सरयू सिंह को बनारस बुला लेती इन दोनों ही परिस्थितियों में सोनू और सुगना का मिलन असंभव था । और सपना के प्यार में कोई कमी न थी। वह सब की उपस्थिति में सोनू से पूर्व की भांति प्यार करती उससे सटती कभी उसके गोद में सर रख देती पर उसे कामुक होने का कोई मौका नहीं देती। कभी-कभी सोनू एकांत में सुगना को बाहर घूमाने की जिद करता परंतु सुगना सोनू को उसे घुमाने का मूल उद्देश्य जानती थी और बड़ी सफाई से बिना उसे आहत किए बच निकलती..

जिस तरह मछली को पानी में पकड़ना मुश्किल होता है वह हांथ तो आती है पर पकड़ में नहीं आती सुगना भी अपने परिवार के बीच सुनहरी मछली जैसी ही थी..

सोनू उसका स्पर्श सुख तो बीच बीच में ले पा रहा था पर उछलती मचलती सुगना उसकी पकड़ से दूर थी..

ऐसा नहीं था कि सुगना ने इस दौरान सोनू को नजरअंदाज कर दिया था बस दूरी बना ली थी यद्यपि बीच-बीच में वह उसमें वासना की तरंगे भरने का काम जरुर कर देती थी।

आखिरकार सुगना अपने घर वालों और लाली के घर वालों को इस अनोखे विवाह के लिए राजी करने में कामयाब हो गई। सर्वसम्मति से यह विवाह आर्य समाज विधि से साधारण रूप से किसी पवित्र मंदिर में किया जाना निश्चित हुआ।

पूरे घर में खुशियों का माहौल था। इस अनूठे रिश्ते से सोनी सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित थी। सोनू और लाली कब मुंह बोले भाई बहन से एक दूसरे के प्रेमी बन गए थे सोनी ने शायद इसकी कल्पना भी ना की थी। परंतु सोनू के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह करने का ना तो सोनी के पास कोई अधिकार था और नहीं कोई जरूरत जब मियां बीबी राजी तो वह बीच में कई काजी की भूमिका अदा नहीं करना चाहती थी।

शुरुवात में सोनू की मां पद्मा का मन थोड़ा दुखी जरूर था परंतु लाली ने पदमा की सेवा कर उसका भी मन जीत लिया था। पूरे परिवार ने आखिरकार मिलकर यह हत्या किया कि यह विवाह सोनी के विवाह के बात करना उचित होगा अन्यथा सोनी के ससुराल वाले इस विवाह पर प्रश्न चिन्ह लगा सकते थे।

सुगना के लिए सोनू की तड़प बढ़ती जा रही थी और अब कमोबेश यही हाल सुगना का भी था इन दो-तीन महीनो में सुगना ने लाली और सोनू को हमेशा के लिए एक करने के लिए भरपूर प्रयास किया था और सफल भी रही थी। उसका कोमल तन बदन सोनू के मजबूत आलिंगन में आने को तड़प रहा था। पर अपने मन पर मजबूत नियंत्रण रखने वाली सुगना अपनी भावनाओं को काबू में किए हुए थी।

आज शुक्रवार का दिन था। लाली अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता से मिलने सलेमपुर गई हुई थी। शायद उसके माता-पिता ने उसके लिए घर पर कोई छोटी पूजा रखी थी जिसमें उसका उपस्थित रहना जरूरी था। सुगना ने लाली को हिदायत दी थी की कैसे भी करके कल शाम तक बनारस आ जाना। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कल सोनू को बनारस आना था और सुगना कतई नहीं चाहती थी कि सोनू बिना लाली की उपस्थिति के बनारस में उसके साथ एक ही छत के नीचे रहे। सुगना अब तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में कामयाब रही थी और सोनू अपनी भावनाओं को काबू में रखने को मजबूर था।

सुगना अपने दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद पूरी तरह खाली थी। आज उसने पूरी तन्मयता से स्नान किया स्नान करते वक्त अपनी छोटी सी बुर के चारों तरफ उग आए काले बालों की झुरमुट को सोनू के पुराने रेजर से साफ किया। इस दौरान न जाने क्यों वह सोनू को याद करती रही ।


सुगना महसूस कर रही थी कि पिछले कुछ महीनो में उसने सोनू को हद से ज्यादा बेचैन कर दिया था पर उसकी नजरों में शायद यही उचित था। बिस्तर पर जब जब सुगना स्वयं उत्तेजना का शिकार होती अपनी जांघों के बीच तकिया फसाकर जौनपुर में सोनू के साथ बिताए पल को याद करती सोनू को याद करते-करते उसकी उंगलियां उसकी बुर को थपकियां देकर सुलाने की कोशिश करती।

कभी वह रहीम और फातिमा की किताब निकाल कर पढ़ती और इसी दौरान न जाने कब सुगना की बुर उसकी जांघों को ऐंठने पर मजबूर कर देती और सुगना तृप्ति का सुखद एहसास लिए नींद में खो जाती। रहीम एवं फातिमा की किताब अब उसके लिए एक अनमोल धरोहर हो चुकी थी जो उसके एकांत और सुख की साथी थी..

सुगना ने तसल्ली से स्नान किया खूबसूरत मैरून कलर की साटिन की नाईटी पहनी …. बालों की सफाई होने के पश्चात उसकी बुर संवेदनशील हो चुकी थी अतः उसने अंतर्वस्त्र पहनने को आवश्यकता नहीं समझी पर एहतियातन अपनी चूचियों को ब्रा सहारा दे दिया। वैसे भी आज कई दिनों वह घर में नितांत अकेली थी और आज दोपहर रहीम और फातिमा की किताब पढ़ते हुए अपने कामोत्तेजना शांत करने वाली थी।

स्नान के बाद ध्यान की बारी थी। अपने इष्ट देव को याद करते हुए सुगना पूजा पाठ में संलग्न हो गई। सुगना ने आरती दिखाई और अपने परिवार की खुशियों को कामना की..इसी बीच उसने लाली और सोनू का भी ध्यान किया और उनके विवाह के लिए मंगल कामना की। इधर सुगना ने अंतरमन ने सोनू को याद कर लिया…उधर

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई.. हाथ में आरती की थाल लिए अपने घर और बरामदे में आरती दिखाते हुए सुगना दरवाजे तक गई और दरवाजा खोल दिया..

सामने सोनू खड़ा था.. सुगना सुगना आश्चर्यचकित थी..पर बेहद खुश थी

“अरे सोनू बाबू आज कैसे? छुट्टी बा का?”

“ना दीदी बनारस में काम रहे…” सुंदर नाइटी में फूल सी खिली सुगना की मादक सुगंध में खोए हुए सोनू ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया..

उसने झुक कर सुगना के चरण छुए… उठते वक्त उसने सुगना के हाथ में पकड़ी आरती की थाल को पूरे आदर और सम्मान से अपनी दोनों हथेलियों से स्वीकार किया और उसे अपने माथे पर लगा लिया।


सुगना खुश भी थी और आश्चर्यचकित भी उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और सर पर रखकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद दिया..नियति मुस्कुरा रही थी सुगना ने अनजाने में उसे स्वयं को समर्पित कर दिया था आखिर इस वक्त सोनू की एकमात्र मनोकामना सुगना स्वयं थी। सुगना वापस पूजा का थाल रखना अपने छोटे से मंदिर में चली गई..

इधर सोनू अपना सामान लाली के कमरे में रख चुका था कमरे की स्थिति यह बता रही थी की लाली अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सलेमपुर जा चुकी थी..

अब तक सोनू को पिछले कुछ महीने से खुद से दूर रख पाने में सफल सुगना आज अचानक ही नियत के खेल में फंस चुकी थी। सोनू की खुशी सातवें आसमान पर थी और अपने इष्ट देव के समक्ष सर झुकाए सुगना का दिल धड़क रहा था…सुगना को स्वयं यह समझ नहीं आ रहा था कि वह ईश्वर से मांगे तो क्या मांगे जो जीवन में उसे सबसे प्यारा था वह उसके समक्ष था.

सोनू मंदिर के दरवाजे पर खड़ा सुगना के बाहर आने का इंतजार कर रहा था..

जैसे ही सुगना अपने पूजा कक्ष से बाहर आई सोनू ने उसे सोनू ने उसे एक झटके में ही अपनी गोद में उठा लिया..सुगना ने अपनी खुशी को नियंत्रित करते हुए पर अपनी मादक मुस्कान बिखरते हुए सोनू से कहा..

“अरे रुक भगवान जी के सामने…”

सोनू ने सुगना को अपनी गोद में लिए हुए अपने घर के मंदिर के सामने लगे परदे को खींचने का अवसर दिया। सुगना ने अपने इष्ट देव को एक बार फिर प्रणाम किया जब तक सुगना अपने ईस्ट से अपने मन की बात कह पाती तब तक सोनू सुगना को अपने गोद में लिए हुए सुगना के कक्ष की तरफ बढ़ चला।

उसकी उंगलियां सुगना के नंगे पेट से सट रही थी वह बीच-बीच में सुगना के पेट को अपनी उंगलियों से गुदगुदा देता। सुगना का अंतर्मन फूल की तरह खिल गया था वह खिलखिला रही थी।

नियति को हंसती खिलखिलाती सुगना एक कामातुर तरुणी की तरह प्रतीत हो रही थी…

नियति सतर्क थी..और सोनू और सुगना के मिलन की प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए आतुर थी…

शेष अगले भाग में.



पहले की ही भांति अगला एपिसोड उन्हीं पाठकों को भेजा जाएगा जिन्होंने कहानी से कमेंट के माध्यम से अपना जुड़ाव दिखाया है..
प्रतीक्षारत
Amazing. Want episode 132. Please send me link
 
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Ajju Landwalia

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भाग 141

मैं मैं वापस अपनी चेतना में लौट आई अपने हाथ नीचे किया और पेटी को वापस ऊपर कर अपनी अमानत को ढक लिया। वापस नाव पर चढ़ना बेहद कठिन था अल्बर्ट को आखिर मेरी मदद करनी पड़ी मुझे नाव पर चढ़ने के लिए अल्बर्ट ने मेरे नितंबों को थाम लिया और ऊपर की तरफ धकेला .. किसी पराए मर्द का मजबूत हाथ आज पहली बार मेरे नितंबों से सट रहा था…मुझे अभी विकास का चैलेंज पूरा करना था…

कुछ होने वाला था…

क्या सोनी कामयाब रहेगी…या ये कामयाबी उसे महंगी पड़ेगी…

अब आगे..


मेरे गदराए हुए कूल्हों को थाम कर अल्बर्ट भी आनंदित था। उंगलियों की हरकत जब तक मैं महसूस कर पाती तभी समुद्र की एक तेज लहर आयी।

अचानक आयी इस लहर ने हम दोनों को असंतुलित कर दिया। मैं पूरी तरह उसके आलिंगन में आ गई। मुझे सहारा देने के लिए उसने मुझे अपने आप से चिपका लिया। एक पल के लिए मुझे लगा जैसे किसी काले साए ने मुझे अपने आगोश में ले लिया। अल्बर्ट की हथेलियां मेरी पीठ और नितंबों पर थी वह उनसे मुझे सहारा दिए हुए था। उसके विशालकाय लिंग का एहसास मुझे अपने जांघों पर हो रहा था। वह मुझसे कद काठी में काफी बड़ा था और मैं सामान्य कद काठी की। अल्बर्ट ने अपने हाथ वापस पानी में डाल कर हिलाने लगा ताकि वह हम दोनों को पानी के ऊपर तैरता रख सके। उसके अचानक मेरी पीठ पर से हाथ हटाने से मैं पानी में नीचे जाने लगी।


डूबते को तिनके का सहारा

मैंने अपनी सारी हिम्मत जुटा कर उस दिव्य हथियार को पकड़ लिया जो बरमूडा के अंदर एक खूंटे की भांति तना था।


मैं उस का सहारा लेकर ऊपर आने की कोशिश की इस दौरान मैंने उसके लिंग का अंदाज लगा लिया। इस छोटी सी घटना ने अल्बर्ट के मन में भी उम्मीद जगा दी होगी। वह बेहद खुश दिखाई दे रहा था। न जाने उसके मन में हिम्मत कहां से आई उसने एक बार फिर अपनी हथेलियां का सपोर्ट हटा लिया और मैं फिर पानी में जाने लगी। पर इस बार मै सचेत थी मैंने अल्बर्ट के गले में अपनी गोरी बाहें डाल दीं। मेरी चूची अल्बर्ट के ठुड्ढी के पास थी।

हम दोनों की अठखेलियां कुछ देर यूं ही चली।

मैंने मुस्कुराते हुए अल्बर्ट से वापस वोट पर चलने को कहा मैं अब थक चुकी थी। उसने मुझे मेरे पैरों से पकड़ कर ऊपर उठा लिया। उसके वोट पर जाने वाली सीढ़ी थोड़ी ऊंची थी। अल्बर्ट के दोनों हाथ मेरी जांघों के निचले हिस्से पर थे तथा उसका चेहरा मेरे पेट से टकरा रहा था। उसके मोटे मोटे होंठ मेरी बुरके बिल्कुल समीप थे।


यद्यपि मैं जानती थी कि मेरा और अल्बर्ट का मेल असंभव है हम दोनों एक दूसरे के लिए नहीं बने थे। वह अलग था और मैं अलग। परंतु जिस सहजता से वह मुझे पेश आ रहा था मुझे बेहद अच्छा लग रहा था।

मैंने बोट की सीढ़ी पकड़ ली और धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगी। और अपने गदराए हुए कूल्हे उसकी आंखों के सामने परोस दिए। क्या मंजर रहा होगा वह भी पीछे पीछे ऊपर आ गया। मैने पलट कर देखा उसने झट से अपनी पलके झुका लीं।

बरमूडा के अंदर उसका लिंग अब और भी स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। बरमूडा गीला होने से वो उसके शरीर से चिपक गया था। वो उसे छुपाने की कोशिश कर रहा था परंतु उसकी मर्दानगी छुपने लायक नहीं थी।


हम दोनों वोट पर आ चुके थे मेरी नग्नता का दर्शन अब वोट पर बैठा दूसरा आदमी भी कर रहा था। मैंने अपनी जालीदार नाइटी पहनने की कोशिश नहीं की। अल्बर्ट ने वोट से लाकर एक साफ और सुंदर तोलिया मुझे अपना शरीर पोछने के लिए दिया। वह पूरी व्यवस्था करके आया था। थोड़ा आराम करते हुए मैं आईलैंड के आने का इंतजार कर रही थी।

तभी मैंने देखा वह दूसरा आदमी रेड वाइन की बोतल और गिलास लिए हुए हमारे पास आ गया उसने भी बड़े आदर से मुझे कहा "मैम यू आर सो ब्यूटीफुल आर यू इन बॉलीवुड?"

मैं उसकी बात से बहुत खुश हो गई.

अल्बर्ट ने कहा

"ही इज माय फ्रेंड माइकल"

मैंने रेड वाइन की बोतल ले ली और अपने हाथों से उसे तीन गिलासों में डाल दिया.


माइकल मेरे हाथों से रेड वाइन का ग्लास पकड़ते हुए बहुत खुश था। कभी कभी मैं सोचने लगती कि यदि अल्बर्ट और माइकल दोनों के मन में पाप होता तो मेरा क्या होता। यदि वह अपनी दरिंदगी पर आते तो मेरी दुर्गति करने के लिए एक ही काफी था और यहां तो दो दो थे। पर अभी तक मुझे उनके व्यवहार मे सिर्फ और सिर्फ सौम्यता नजर आ रही थी। उनमें उत्तेजना तो अवश्य थी पर उन्होंने उसे नियंत्रित किया हुआ था।

यही बात मुझे सर्वाधिक पसंद है। मुझे लगता है की स्त्रियों को ही कामुकता की कमान संभालनी चाहिए और पुरुषों को उनकी इच्छा अनुसार ही उनका साथ देना चाहिए और उनकी पूर्ण सहमति से सहवास करना चाहिए.

मैं रेड वाइन पीते हुए और समुंद्र की ओर देखते हुए यह बातें सोच रही थी और वह दोनों मेरी नग्नता का जी भर कर आनंद ले रहे थे। रेड वाइन का ग्लास खत्म हो चुका था और मैं हलके सुरूर में आ चुकी थी।


बोट आइलैंड के बिल्कुल समीप आ चुकी थी. मैं और अल्बर्ट उतरकर किनारे पर आ गए माइकल ने भी वोट को किनारे पर बांध दिया और वोट पर से आवश्यक सामग्री लेकर हमारे साथ आईलैंड को देखने निकल पड़ा.

हम तीनों आईलैंड की खूबसूरती का आनंद लेते हुए अंदर की तरफ चल पड़े ऊपर वाले ने आईलैंड बेहद खूबसूरती से बनाया था वहां पूरी तरह हरियाली थी अलग प्रकार के पेड़ थे और छोटी-छोटी पहाड़िया थीं. अद्भुत दृश्य था मैं प्रकृति के द्वारा बनाई खूबसूरत जगह पर धूप का आनंद ले रही थी. प्रकृति के दो अनमोल नगीने मेरे साथ में थे मैं मन ही मन सोच रही थी की प्रकृति किस किस तरह के जीव बनाती है निश्चय हैं उसकी इन खूबसूरत कलाकृतियों में कोई न कोई बात रहती है जिससे हम सभी का उनमें आकर्षण बना रहता है।

एक अनोखी बात थी। बीच पर काफी कम लोग दिखाई पड़ रहे थे उनमें अक्सर मेरी उम्र की ही कई सारी युवतियां थी और सभी के साथ माइकल और अल्बर्ट जैसे लोग थे।

अधिकतर युवतियों बेहद उत्तेजक बिकनी में थी और कई टॉपलेस होकर घूम रही थी।

एक अंग्रेजन तो पूरी तरह नंगी थी और दो काले सायों के बीच मिस फिक्र होकर चल रही थी उनसे हंस कर बातें कर रही थी यह देखकर मुझे भी साहस आ रहा था। यह कैसा अनोखा द्वीप था। सभी युवतियां यहां अकेली ही आई थी। क्या वह भी मेरे जैसी हिम्मतवाली थी या यह कोई अनोखा द्वीप था और इसके नियम भी अनोखे थे।

मैं इस रहस्य को समझने में पूरी तरह नाकाम थी। कुछ भी देर बाद एक और भी युवती जो मुझे कल होटल के रेस्टोरेंट में मिली थी वह भी दो मुस्टंड नीग्रो के साथ इस बीच पर टहल रही थी।

मेरा आत्मविश्वास अब पूरी तरह बढ़ चुका था इतना तो अवश्य था कि मैं यहां अकेली नही थी।

मैं इस खूबसूरत आईलैंड पर आकर अपने आप को खुशकिस्मत महसूस कर रही थी काश विकास मेरे साथ होता। कुछ ही देर में हम थक चुके थे. दोपहर के लगभग 1:00 बज रहे होंगे.


मुझे भूख लग आई थी मैंने अल्बर्ट से कहा वह बोला

"यस मैम आई हैव समथिंग फॉर यू"

माइकल और अल्बर्ट ने अपने साथ लाए सामान से एक चादर निकाली. हमने वही चादर बिछाकर खाना खाया अल्बर्ट और माइकल ने आईलैंड पर आने की पूरी तैयारी की थी चादर निकालते समय बैग से कंडोम के पैकेट भी निकल कर गिर गया एक बार के लिए मेरी रूह कांप गई.

ऐसा लगा जैसे इसी चादर पर मेरा योनि मर्दन होने वाला था। पर अल्बर्ट ने अपनी नज़रें झुकाए हुए ही उस पैकेट को पकड़ा और वापस बाग में डाल दिया। मेरे मन का डर अल्बर्ट और माइकल की सौम्यता ने दबा रखा था.

कुछ ही देर में हम तीनों खाना खा रहे थे मैंने थोड़ा सा ही खाना खाया क्योंकि वह समुद्री फूड था अंत में माइकल ने एक सुंदर स्वीट डिश निकाली यह कॉन्टिनेंटल डिश थी जो मुझे बेहद पसंद थी. मैंने उसे खाया और मैं तृप्त हो गई.

मुझे यह बात समझ नहीं आ रही थी कि अल्बर्ट को मेरी पसंद की स्वीट डिश का पता कैसे चला। मैं जब अल्बर्ट से पूछा तो वो बोला..

“ मोस्ट ऑफ द इंडियन विमेन लाइक दिस”


मैं अभी भी अपनी बिकनी में ही थी वह दोनों मेरी नग्नता के आदि हो चुके थे. मैं भी अपने आप को सहज महसूस कर रही थी.

मेरा पेट भर चुका था सुनहरी धूप में बैठे बैठे मुझे नींद आने लगी . अल्बर्ट ने हवा से फूलने वाला तकिया निकाला और अपने बड़े-बड़े फेफड़ों से तीन-चार फूक में ही उसे फुला दिया और मुझसे कहा


"मैम, यू कैन टेक रेस्ट"

मेरा इतना आदर और सत्कार उन दोनों द्वारा किया जा रहा था जो एक तरफ मुझे सहज भी कर रहा था पर दूसरी तरफ कही न कहीं मेरे मन में डर भी था. फिर भी मैं वह तकिया लेकर करवट लेकर सो गयी. उसी दौरान अल्बर्ट के एक बात कही

" मैम, इफ यू डोंट माइंड वी कैन गिव यू रिलैक्सिंग फुट मसाज"


मैं वास्तव में थकी हुई थी और मेरे कोमल पैर दर्द भी कर रहे थे. मुझे अंततः अल्बर्ट का वीर्य दोहन करना ही था मैंने उसे अनुमति दे दी. कुछ ही देर में अल्बर्ट मेरे पैरों को दबा रहा था उसकी हथेलियां मेरे पैरों को घुटनों तक दबा रही थी वह उसके ऊपर नहीं आ रहा था शायद उसे अपनी मर्यादा मालूम थी. माइकल ने भी मेरे हाथों को दबाना शुरू किया था.

उन दोनों के इस तरह मसाज करने से मुझे अद्भुत आनंद आ रहा था मुझे पता था उन दोनों को भी मेरे कोमल शरीर को छूने में निश्चय ही आनंद आ रहा होगा. मुझे कब झपकी लग गई मुझे याद भी नहीं। अल्बर्ट के हाथ मेरी जांघों तक पहुंच चुके थे। कुछ देर तक तो मैं उसके अनोखे स्पर्श का आनंद लेती रही पर मन में डर अब भी कायम था। उधर माइकल की उंगलियां मेरे कंधों तक पहुंच चुकी थी। यदि मैं उन्हें नहीं रोकती तो शायद उनकी उंगलियां मेरी बुर और चूचियों को सहला रही होती।


मैंने अपनी पलकें खोल दीं. वह दोनों झेंप गए .. काले काले होठों के बीच से मोती जैसे दांत दिखाई पड़ने लगे उन दोनों के ही लिंग पूरी तरह तने हुए थे। मैंने मन ही मन यह सोच लिया। मेरे लिए अल्बर्ट और माइकल दोनों एक जैसे ही थे दोनों का व्यवहार अनूठा था मैं सोच लिया यदि संभव हुआ तो मैं दोनों का ही वीर्य दोहन करूंगी.

"मैम, आर यू कंफर्टेबल नाउ"


मैंने मुस्कुराकर हां में सर हिलाया. मेरी अंगड़ाई से मेरे स्तनों का उभार एक बार और उनकी निगाहों में आ चुका था. मैंने उन दोनों को ढेर सारा थैंक्यू बोला खासकर उनके उस रिलैक्सिंग मसाज के लिए. अब मुझे अपने असली उद्देश्य को पूरा करना था.

मैंने अल्बर्ट से कहा

"आई वांट टू गो वॉशरूम"

वह दोनों हंसने लगे अल्बर्ट ने कहा

"मैम, यह प्राकृतिक द्वीप है आपको यहां यह कार्य प्राकृतिक तरीके से ही करना होगा हां आप हमसे दूर जाकर किसी पेड़ का सहारा ले सकती हैं."

हम बीच की जिस जगह पर थे वहां से हरियाली कुछ दूर थी मेरी वहां अकेले जाने की हिम्मत नहीं थी. मैंने अल्बर्ट को कहा अपने साथ चलने के लिए कहा वह मेरे साथ चल पड़ा.

मैं रास्ते में अपने अगले स्टेप के बारे में सोच रही थी अल्बर्ट थोड़ा दूर खड़ा था और मैं बाथरूम करने के लिए झाड़ी की ओट का सहारा लेकर अपनी पैंटी पहले नीचे की फिर कुछ सोचकर मैने उसे बाहर निकाल दिया। मेरा दिल धक धक करने लगा अल्बर्ट पास ही खड़ा था मैं पेड़ की ओट में थी पर उसके करीब थी।

आखिर मैं नीचे बैठ चुकी थी। इस मूत्र विसर्जन में अद्भुत आनंद आ रहा था. बहती हुई हवा मेरी नंगी बुरको सहला रही थी यह सिहरन एक अद्भुत सुख दे रही थी. मैं कई वर्षों बाद बाहर खुले में मूत्र विसर्जन कर रही थी और शायद इस तरह से खुले में नग्न होकर पहली बार।


मैंने मूत्र को काफी देर से रोका हुआ था। एक बार जब मूत्र विसर्जन शुरू हुआ उसकी धार अद्भुत रूप से तेज थी। मूत्र की धार निकलते हुए वैसे भी अवरुद्ध सीटी की आवाज निकाल रही थी । मूत्र की धार तेज थी वह लगभग मेरे शरीर से एक हाथ दूर गिर रही थी। वहीं पास में कुछ छोटे कीड़े मकोड़े चल रहे थे मेरे न चाहते हुए भी वह उससे भीगते हुए तितर-बितर हो रहे थे। मुझे भी अब उन्हें भीगोने में मजा आने लगा था। मैं अपनी कमर को ऊपर नीचे कर अपनी मूत्र की धार से उन पर निशाना लगाती। मेरी इस प्रक्रिया में मेरे कोमल नितंब कभी ऊपर उठते कभी नीचे। अचानक मुझे ध्यान आया अल्बर्ट पीछे ही खड़ा है। वह क्या सोच रहा होगा? मैं शर्म के मारे लाल हो गयी अपनी मैंम का यह रूप उसने शायद सोचा भी नहीं होगा। पर जो गलती होनी थी वह हो चुकी थी।

मैंने यह अनुभव अपनी युवावस्था में कभी महसूस नहीं किया था. . जब मैं उठ कर खड़ी हुई तभी मैंने निर्णय लिया कि यदि अभी नहीं तो कभी नहीं.मैंने अपनी लाल बिकिनी अपने हाथ में ली. मैं उसी अवस्था में बाहर आ गयी. अल्बर्ट मुझे इस तरह नग्न देखकर आश्चर्यचकित था.


वाह अपनी बड़ी बड़ी आंखें फाड़े मुझे देख रहा था वह मेरे बिल्कुल करीब आ चुका था. मुझे ऐसा लग रहा था कि वह कभी भी अपने सब्र का बांध तोड़ कर मुझे अपनी आगोश में भर लेगा. मेरा डर एक बार फिर उफान पर था. मैं झुक कर अपनी बिकनी दोबारा पहनने लगी. अल्बर्ट ने घुटनों के बल बैठ कर मुझसे कहा

"मैम, इफ यू डोंट माइंड प्लीज बी लाइक दिस. आई हैव नेवर सीन सच ए ब्यूटीफुल लेडी इन माई लाइफ. वी विल नॉट टच यू. यू आर द मोस्ट ब्यूटीफुल वूमेन आई हैव एवर सीन"

तारीफ हर सुंदरी को पसंद आती है मैं भी इससे अछूती नहीं थी. मैं उसकी इस अदा की कायल हो गयी. मैंने कहा

"ओके..ओके.. बट प्लीज डोंट टच मी"

उसने अपने दोनों कान पकड़ लिए और सर झुकाए हुए बोला..

विल टच यू ओनली व्हेन यू विश ..

वो मेरी नंगी बुर को छोड़ मेरी चूचियों को देख रहा था। मैं उसका इरादा समझ गई…

मैंने अपनी बिकनी के दूसरे भाग की तरफ इशारा किया जिसने मेरे खूबसूरत स्तनों को थोड़ा बहुत ढक कर रखा था. और मुस्कुराते हुए बोली


यू वांट मी टू रिमूव दिस?

उसने एक बार फिर खीसें निपोर दीं

"मैम, सो नाइस आफ यू"

मैंने अंततः बिकिनी का वह भाग भी हटा दिया और मैं पूरी तरह नग्न हो गयी. इस बीच पर पूरी तरह नग्न होने वाली में पहली युवती नहीं थी। इस तरह अल्बर्ट के सामने नग्न होकर मैंने अपनी हिम्मत की नई मिसाल पेश की थी. पर अल्बर्ट को देखकर लगता नहीं था कि वह उग्र होकर मेरे साथ कोई जबर्दस्ती करेगा. अल्बर्ट बड़ी बड़ी आंखों से मेरी नग्नता का आनंद ले रहा था. मेरे हाथ में मेरी बिकिनी थी अल्बर्ट में हाथ बढ़ाकर वह बिकनी मुझसे ले ली और अपनी बरमूडा की जेब में डाल दिया.

हम दोनों वापस माइकल की तरफ आने लगे अल्बर्ट को यह उम्मीद नहीं थी कि मैं इस तरह माइकल की तरफ चल पड़ूँगी.

मैंने यह जान लिया था कि वह दोनों दोस्त एक ही थे रास्ते में मैंने अल्बर्ट से पूछा

"आर यू सेटिस्फाइड नाउ?"


"यस मैम, यू आर वेरी ब्यूटीफुल लाइक दिस आईलैंड. ऑल नेचुरल."

मेरे साथ चलने की वजह से वह मुझे ध्यान से नहीं देख पा रहा था. कुछ ही देर में हम माइकल के पास आ चुके थे मुझे नग्न देखकर माइकल की आंखें फटी रह गई थीं. एक बार फिर मैं वापस में चादर पर बैठ चुकी थी. मैंने स्वयं को वज्रासन में व्यवस्थित कर लिया था जिससे मेरी बुरके होंठ मेरी जांघों के बीच छूप गए थे पर मेरे दोनों नग्न स्तन उन दोनों विशालकाय पुरुषों को खुला निमंत्रण दे रहे थे.

उन्होंने मुझे फिर से एक बार रेड वाइन ऑफर की मैंने ग्लास ले लिया वह दोनों मेरी नग्नता का आनंद ले रहे थे. अचानक मैंने अल्बर्ट से कहा..

"मैं यहां पर पूर्णतया नग्न हूं और आप दोनों कपड़े पहने हुए यह उचित नहीं" वह दोनों मुस्कुराने लगे उन्होंने एक ही झटके में अपने बरमूडा को अपने शरीर से अलग कर दिया. मेरे सामने दो काले साए अपने विशालकाय लिंग जो अब पूरी तरह उत्तेजित अवस्था में थे के साथ खड़े थे.

मैं उन दोनों को देखकर अपने आप को एक दूसरी दुनिया में महसूस कर रही थी. कभी-कभी मुझे लगता कि जैसे मैं एक स्वप्नलोक में आ गयी हूँ जिसमें हम तीनों के अलावा कोई नहीं था.

मैं पूरी तरह नग्न थी और वह दोनों भी. उनके लिंग बेहद आकर्षक थे और पूरी तरह काले थे. लिंग का अगला भाग हल्का मशरूम के जैसे लाल था लिंग के ऊपर की चमड़ी स्वता ही पीछे हो गई थी. बड़े नींबू के आकार के उनके सुपारे अपने रंग को शरीर के रंग से अलग किए हुए थे. उनके अंडकोष छोटे ही थे परंतु उनमें गजब का तनाव था. दोनों की उम्र 20 -22 वर्ष के आसपास रही होगी ऐसे उत्तेजक और जवान नवयुवक मैंने आज तक नहीं देखे थे.

भगवान ने उनके चेहरे को छोड़कर बाकी हर जगह सुंदरता भर भर के प्रधान की थी।

उनकी उत्तेजना और असीम काम शक्ति अद्भुत थी. मुझ जैसी कोमलंगी निश्चय ही इनके लिए नहीं बनी थी पर जिस तरह सफेद छोटा रसगुल्ला छोटे -बड़े सभी लोगों की प्यास बुझाता है मेरी सुंदरता इन दोनों के लिए एक उसी तरह थी.


उनके लिंग में आई उत्तेजना में निश्चय ही मेरा योगदान था. वह दोनों इस तरह मेरे सामने खड़े थे मुझे देखकर हंसी भी आ रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने शारीरिक सौष्ठव का प्रदर्शन मेरे सामने कर रहे थे. मैं उठ खड़ी हुई मैंने कहा

"आप दोनों बेहद सुंदर हैं एंड योर …. "


मेरे जुबान से लन्ड शब्द नहीं निकला पर मेरी निगाहों ने उनके लंड की तरफ इशारा कर दिया।

“मैंम वुड यू लाइक तो टच इट”


यह सुनहरा अवसर था मेरे हाथ आगे बढ़े और उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई मैंने अल्बर्ट और माइकल में भेद नहीं किया और कुछ ही पलों में मेरे दोनों हाथों में दो अद्भुत लंड थे जिसकी हूबहू कल्पना तो मैं नहीं की थी तुरंत यह सरयू सिंह के लंड से मिलते-जुलते थे।

वह दोनों खुश हो गए मैंने अपने दोनों हाथों से उन दोनों के लिंग को अपनी मुट्ठी में पकड़ने की कोशिश की। मैं सफल तो नहीं हुई परंतु उनके लंड में अचानक एक उछाल आया ऐसा लगा जैसे मैं किसी जिंदा कोबरे को पकड़ लिया हो। मेरी रूह कांप रही थी. मेरे सीने की धड़कन तेज थी.

मुझे लगता है लिंग का आकार मेरी कलाई से लेकर कोहनी तक था लिंग की मोटाई भी कमोबेश वैसी ही थी.

मैं उनके लिंग को छू रही थी ऐसा लग रहा था जैसे मैं उसका पचीस प्रतिशत भाग ही हथेलियों में पकड़ पा रही थी. बाकी का भाग अभी भी खुला हुआ था. मैंने उनके लिंग को ऊपर से नीचे तक सहलाया. वह दोनों आनंद में अपनी आंखें ऊपर किये आकाश की तरफ देख रहे थे.

अद्भुत उत्तेजक माहौल में मेरी बुरभी अपना प्रेम रस अपने होठों तक ले आयी थी. अचानक अल्बर्ट की नजर उस पर पड़ गई वह मुस्कुराते हुए बोला

"मैम, आपको अच्छा लगा?

मैंने कहा

"यस यू बोथ आर मैग्नीफिसेंट"


माइकल ने इस पर हिम्मत जुटाकर कहा "क्या हम आपको दोबारा छू सकते हैं?"

मैं भी अब पूरी तरह उत्तेजित हो चली थी मैं जिस उद्देश्य के लिए वीरान टापू पर आई थी वह पूरा होने वाला था. मैंने सर हिलाकर माइकल को अपनी सहमति दे दी जिसे अल्बर्ट ने भी देख लिया. वह दोनों मेरे समीप आ चुके थे और मेरे कंधे और पीठ को सहला रहे थे शायद उन्हें मेरी अनमोल अमानतों को छूने के लिए नीचे झुकना पड़ रहा था। अल्बर्ट ने मेरे कंधों को पड़कर ऊपर उठाना चाहा और मैं खड़ी हो गई। उन दोनों काले सायों ने मुझे घेर लिया।

वह दोनों मेरी पीठ को सहलाना शुरू कर चुके थे मेरा हाथ अभी भी उन दोनों के लिंग को सहला रहा था. उत्तेजना बढ़ रही थी. कुछ ही देर में उन्होंने उनकी हथेलियां मेरे नितंबों तक आ गयीं. मैंने मना नहीं किया वह उन्हें प्यार से सहला रहे थे मैं चाहती थी कि वह उन्हें थोड़ा और तेजी से दबाए पर शायद वो इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे.

मैंने स्वयं उनके लिंग को और तेजी से सहलाया जिससे उन्हें अद्भुत उत्तेजना हुयी इस उत्तेजना में उन्होंने मेरे नितंबों को तेजी से पकड़ लिया. उनकी बड़ी-बड़ी हथेलियों मेरे नितंबों को पूरी तरह अपने आगोश में ले चुकीं थीं. उनकी उंगलियां मेरे नितंबों के बीच की दरार में कभी-कभी मेरी को भी छू रहीं थी.

तभी अल्बर्ट का हाथ ने सामने से आकर मेरी बुर को घेर लिया। बर से रस रही लार को सहारा मिला और वह माइकल की उंगलियों को भिगो गई। उसने अपना हाथ हटाया और मेरे चेहरे के सामने से लाते हुए अपनी नासिक पर ले गया और उसे सूंघते हुए बोला..

“मैम यू स्मेल सो नाइस…”

मैं स्वयं बेहद उत्तेजित महसूस कर रही थी। अल्बर्ट की इस हरकत में मुझे और भी ज्यादा उत्तेजित कर दिया था।

तभी अल्बर्ट में अपनी रस से भीगी उंगलियां माइकल के नथुनों से सटा दी और उससे अपनी भाषा में कुछ बोला..

उन दोनों को अनजान भाषा में बात करते हुए देखकर मैं डर गई और इंटरफेयर किया

“व्हाट यू पीपल आर टॉकिंग”

सॉरी मैंम .. यू स्मैल सो नाइस.. वी कुड नॉट कंट्रोल अप्रेसिंग यू..

एक बार फिर अल्बर्ट की उंगलियां मेरी बुर पर थी.. मेरा ध्यान उनके लैंड से हटकर अपनी उत्तेजना पर केंद्रित हो रहा था मैं आई थी यहां कुछ और करने पर हो कुछ और रहा था। माइकल की उंगलियों को अपनी बुर पर फिसलते हुए महसूस कर मुझे मन ही मन या ख्याल आ रहा था कि अल्बर्ट अपनी उंगली मेरी बुरके अंदर प्रवेश करा दे उनकी उंगलियां एक सामान्य किशोर के लिंग जितनी मोटी थी पर उन्होंने यह नहीं किया. मैं स्वयं आगे बढ़कर उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकती थी. यह उनकी उत्तेजना को और भड़का सकता था और संभव था कि वह संभोग के लिए मुझ पर दबाव बनाने लगते.

मुझे बहुत संभाल कर चलना था. अचानक मेरे दिमाग में एक ख्याल आया. वहां पास में एक पेड़ की ठूंठ पड़ी थी जिसका ऊपरी भाग समतल था. मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि यदि मैं उस पर खड़ी हो जाओ तो मेरी बुर इनके लिंग के उचाई तक आ जाएगी.

मैं अल्बर्ट और माइकल के लिंग को पकड़े हुए उधर चल पड़ी. मैंने अगल-बगल निगाह दौड़ाई.. कुछ ही दूर पर कई सारे जोड़े कामुक गतिविधियों में लिप्त थे. अब लगभग यह द्वीप एक नग्न द्वीप में तब्दील हो चुका था। मेरा ध्यान बाई तरफ गया…कुछ दूर पर मेरे अल्बर्ट की तरह ही दिखने वाला एक नीग्रो एक अंग्रेजन को चोद रहा था..

मैं अपनी फटी हुई आंखों से एक लाइव ब्लू फिल्म देख रही थी अल्बर्ट और माइकल मेरे आगे बढ़ने का इंतजार कर रहे थे मुझे आश्चर्य से इनका मुख घटनाओं को देखते हुए अल्बर्ट ने कहा

मैं यहां पर यह सामान्य बात है यह द्वीप इसीलिए अनोखा है। यहां पर लगभग सभी लोग इसीलिए आते हैं। यह सब लोग आपके ही होटल में रह रहें हैं।

मुझे अब सहज महसूस हो रहा था। मैं अपने मिशन पर आगे बढ़ चुकी थी


वह दोनों भी आज्ञाकारी बच्चों की तरह मेरे साथ साथ वहां तक आ गए. मैं लकड़ी के ठूंठ पर खड़ी हो गई और अल्बर्ट को अपने पीछे आने के लिए कहा.

अल्बर्ट मेरे पीछे आ चुका था. मैंने उसके लिंग को अपनी दोनों जांघों के बीच से निकालते हुए सामने ला दिया और स्वयं अपना भार अल्बर्ट के सीने पर दे दिया. मेरी पीठ उसके सीने से सटी हुई थी मेरे नितंब की जांघों उसे छू रहे थे उसका लिंग मेरी बुरसे सटा हुआ सामने की तरफ मेरी हथेलियों में था.


मैं अपनी इच्छा से उसके लिंग को सहला रही थी. सुपारे पर हाथ फिराते समय उसका लिंग उछल जाता और मेरी बुरके होठों को थपथपा देता. उत्तेजना मुझ में पूरी तरह भर चुकी थी बुरका प्रेम रस उसके लिंग को भिगो रहा था.

माइकल मेरे ठीक सामने था। मैं अल्बर्ट और माइकल के बीच में सैंडविच बनी हुई थी। माइकल का लैंड मेरी नाभि से टकरा रहा था। मैं एक हाथ से माइकल के लंड के सुपाड़े को सहला रही थी और दूसरे हाथ से अल्बर्ट के लंड को अपनी बुर पर रगड़ भी रही थी और हथेलियां से उसके सुपाड़े को मसल रही थी। माइकल मेरी दोनों चूचियों को हल्के-हल्के सहला रहा था। बीच-बीच में वह शायद अपनी उत्तेजना पर काबू नहीं रख पाता और चूचियों को जोर से मसल देता..

अल्बर्ट की उंगलियां भी मेरी मदद करने को आ पहुंची थी। वह स्वयं अपने लंड को मेरी बुर पर रगड़ रहा था और अपनी उंगलियों से मेरी भगनासा को छू रहा था..


चिपचिपा प्रेम रस उसके लिंग को सहलाने में मेरी मदद कर रहा था मेरी आंखें बंद हो रही थी. कुछ ही देर में माइकल और अल्बर्ट ने अपनी स्थितियां बदल लीं।

मैंने माइकल को भी उसी तरह अपनी बुरके संपर्क में ला दिया था. मेरे लिए वह दोनों एक ही थे अद्भुत विशालकाय और एक मजबूत लिंग के स्वामी जिनका मुझे बीर्य दोहन करना था.

कुछ ही देर में उन दोनों के लिंग में अद्भुत कठोरता महसूस होने लगी। ऐसा नहीं था की लार सिर्फ मेरी बुर से बह रही थी उनके लंड से भी वीर्य रिस रिस कर बाहर आ रहा था..

किसकी उंगलियां कहां से प्रेम रस चुरा रही थी यह कहना कठिन था पर दोनों के लंड मेरी हथेली में फिसल रहे थे..

माइकल का लंड मेरी बुर पर रगड़ रहा था…एक पल के लिए मुझे लगा जैसे मैं स्वयं भी उसे अंग्रेजन में की भांति यहीं पर चुद जाऊं….

इस विचार मात्र ने मेरी उत्तेजना को चरम पर पहुंचा दिया। अपने पति से विश्वासघात ना ना यह पाप…मैं नहीं करूंगी..

अल्बर्ट की उंगलियां लगातार मेरे भागना से को शहला रही थी। आखिर उन्होंने ही तो मुझे वीर्य दोहन के लिए भेजा है अब जब मैं पराए मर्द का लंड पकड़ ही लिया है तो उसे…आह अपनी बुर…में…..आह….

मेरा ध्यान भटक रहा था मैं यहां उनका वीर्य दोहन करने आई थी और खुद स्खलन की कगार पर पहुंच गई थी..

मेरा बदन कांप रहा था…. अचानक मेरे सामने खड़ा माइकल नीचे झुका और मेरी चूचियों के ठीक सामने अपने होठों को रखते हुए मेरी तरफ देखा जैसे मुझे अनुमति मांग रहा हो…

मैं उत्तेजना की पराकाष्ठा पर थी मना कर पाना मेरे बस में नहीं था मैंने अपने होंठ अपने दांतों में भींच रखे थे..

मैंने सहमति में अपनी पलके झुका दी और मेरी आधी चूंची अल्बर्ट के मुंह में थी..

इधर उसने मेरी चूची चुसनी शुरू की और उधर मेरी बुर ने रसदार छोड़ दी मैं मदहोश होने लगी मेरे हाथ रुक गए और मैं इस स्खलन के परमानंद में खो गई। कुछ देर तक उन्होंने मेरे शरीर के साथ क्या किया मुझे इसका अंदाजा भी नहीं लगा पर इतना अवश्य था मैं तृप्त थी और इस अद्भुत सुख के लिए उनके शुक्रगुजार थी।

वापस अपनी चेतना में आने के बाद मैंने खुद को नियंत्रित किया और उस ठूंठ पर से उतर कर वापस रेत पर आ गई मैं घुटनों के बल बैठ चुकी थी..

मेरी तेज चलती हुई सांसों को देखकर माइकल ने बड़े अदब से पूछा..

मैंम वुड यू लाइक टू टेक वॉटर

मैंने उसकी नम्रता को दिल से सलाम किया कि इस उत्तेजक घड़ी में भी वह अपना संयम बनाए हुए था और अपनी मेहमान नवाजी में कोई कमी नहीं रख रहा था मैंने अपने हाथ आगे बढ़ाएं और वापस उन दोनों के लंड को पकड़ते हुए बोला


“लेट मी फिनिश एंड रिटर्न यू द फेवर”

मैं अपने छोटे-छोटे कोमल हाथों से उन्हें आगे पीछे कर रही थी मेरे हाथ दुखने लगे थे वह दोनों मेरे गालों को सहना रहे थे. वह दोनों आसमान की तरफ देख रहे थे।

अचानक अल्बर्ट और माइकल ने अपने हाथों को मेरी मदद के लिए ला दिया उनकी बड़ी-बड़ी हथेलियां उनके लिंग के अनुसार ही थी और उसके लिए सर्वथा उपयुक्त थी मैं अपनी कोमल हथेलियों से उनके सुपारे को मसलने लगी अचानक अल्बर्ट के लिंग से निकली वीर्य धारा मेरे गालों पर पड़ी। जब तक मैं अपने आप को संभाल पाती तब तक माइकल का स्खलन भी प्रारंभ हो गया।

मैं अपने चेहरे को दोनों हथेलियों से ढकी हुई थी और वह दोनों अपने वीर्य की धार से मुझे भिगो रहे थे उनके मुख से एक अजीब सी बुदबुदाने गदगुदाने की आवाज आ रही थी जिसमें कभी-कभी मैम शब्द सुनाई पड़ रहा था मुझे पता था वह अपनी कल्पनाओं में मेरा योनि मर्दन कर रहे थे पर यह उनकी कल्पना थी जिस पर उनका हक था और उनके हक पर मुझे कोई आपत्ति नहीं थी.

मैंने उनकी उत्तेजना शांत होने का इंतजार किया वीर्य वर्षा रुक जाने के पश्चात मैंने चेहरे पर से अपने हाथ हटाए और उठ खड़ी हुयी. वीर्य की कुछ बूंदे मेरे स्तनों से होती हुई मेरी जांघों के जोड़ तक पहुंच चुकी थी जो मेरी योनि के होठों को स्पर्श कर रहीं थीं. मेरी बुर से स्खलित हुआ प्रेम रस उन अद्भुत मर्दों की वीर्य से मिल रहा था।

अंततः मैंने विकास के चैलेंज को पूरा कर दिया था। मैं विकास के पास जल्द से जल्द पहुंचना चाहती थी और उनसे अपनी विजय की सूचना देकर उनका प्यार और प्रोत्साहन पाना चाहती थी।

वह दोनों संतुष्ट दिखाई पड़ रहे थे. अल्बर्ट और माइकल ने मेरे स्तनों पर लगे हुए वीर्य को अपनी हथेलियों से पोछना चाहा। जितना ही उन्होंने इसे पोछा उतना ही वह फैलता गया। वैसे मुझे इसकी आदत पड़ चुकी थी विकास की यह पसंदीदा आदत थी.

मैं उठ खड़ी हुई।

तभी माइकल और अल्बर्ट दोनों घुटनों के बल आकर मुझसे क्षमा मांगने लगे..


"मैम आई एम सॉरी वी कुड नॉट कंट्रोल"

मैंने उनके सर पर हाथ रख दिया और उनके बालों को सहला दिया मेरी इस क्रिया से उनकी आत्मग्लानि कम हुई और उन दोनों ने अपना चेहरा मेरी नग्न जांघों से सटा दिया उनके होठों से निकलने वाली गर्म सांसे मेरी बुर पर महसूस हुई।

"इट्स ओके, इट्स ओके नो प्रॉब्लम"


वह दोनों खुश हो गए काले चेहरों के पीछे से उनके सुंदर और सफेद दात स्पष्ट दिखाई पड़ने लगे।

माइकल भागकर तोलिया ले आया पर तब तक मेरे शरीर पर लगा हुआ वीर्य लगभग सूख चुका था। वीर्य की लकीरें मेरे पेट और स्तनों पर साफ दिखाई पड़ रही थीं। मैंने माइकल से तौलिया ले लिया और अपनी कमर के चारों तरफ लपेट लिया। मेरी नग्नता ने अपना कार्य कर लिया था हम तीनों रेत पर पड़ी हुई चादर की तरफ चल पड़े।

अल्बर्ट ने मेरी बिकनी अपनी बरमूडा से निकाली और बिकनी का निचला भाग अपने हाथों में पकड़ कर रेत पर पर बैठ गया जैसे वह मुझे इसे पहनाने में मदद करना चाह रहा था। मैंने तोलिया गिरा दिया और अपने पैरों को बारी-बारी से बिकनी के अंदर डाल दिया। अल्बर्ट की उंगलियां उसे खींचती हुई मेरी कमर तक ले आयी। इस दौरान मेरी जांघों पर एक बार फिर अल्बर्ट की हथेलियों का स्पर्श महसूस हुआ। एक पल के लिए मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे अल्बर्ट के अंगूठे ने मेरी बुरके मुकुट (भगनासा) को छू लिया था मैं सिहर गयी थी।

पैंटी से मेरी बुर को ढकते हुए अल्बर्ट ने मेरी आंखों में देखते हुए बोला..

“इट लुक लाइक ए हेवन एंड स्मेल लाइक नेक्टर योर हसबैंड इस वेरी लकी”


मेरा ध्यान अपनी बुर पर था तभी मैंने माइकल के हाथों को अपने स्तनों पर महसूस किया वह मुझे बिकनी का उपरी भाग पहना रहा था। उन दोनों का यह प्रेम देखकर मैं मन ही मन उनकी सौम्यता की कायल हो गई थी।

उन दोनों में अद्भुत समानता थी दोनों ही अपनी उत्तेजना को काबू में रखना जानते थे जो मुझे पुरुषों में सर्वाधिक प्रिय है। उन्होंने आज मेरी नग्नता का जी भर कर आनंद लिया था शायद यह उनसे ज्यादा मेरी जरूरत थी। मुझे भी आज उनके लिंग का जो दिव्य दर्शन प्राप्त हुआ था यह मेरे लिए यादगार था।

हम तीनों वापस अपने होटल की तरफ चल पड़े थे इस वीरान टापू पर इन दो पुरुषों का वीर्य स्खलन मेरे जीवन की अद्भुत रोमांचक घटना थी। मैं विकास से मिलने के लिए बेकरार थी। मैं उनसे अपनी इस विषय पर निश्चय ही कोई अद्भुत उपहार चाहती थी।

मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी और इस तरह सकुशल लौटने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी। अल्बर्ट और माइकल मेरे पसंदीदा हो चुके थे इन्होंने मुझे आज खुश कर दिया था। कुछ देर बाद होटल की खूबसूरत बिल्डिंग दिखाई देने लगी।

मेरी अधीरता बढ़ती जा रही थी शाम के 5:00 बज रहे थे काश विकास वहां पर होते। बोट के किनारे लगते ही मैं बीच पर उतर गयी। अचानक विकास दिखाई पड़े मैं उनकी तरफ भागी ठीक उसी प्रकार से जिस तरह से जेल से छूटा हुआ कोई कैदी अपने परिवार जनों को देखकर दौड़ता है।

उन दोनों ने मेरे साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया था पर विकास को देखकर मैं बिना उनका शुक्रिया अदा किये ही उनकी तरफ भाग गयी थी। कुछ ही देर में वह दोनों मेरी जालीदार टॉप को हाथों में लिए मेरे पास आये और बोले

"मैम यू हैव लेफ्ट योरटॉप"


मैंने विकास से उन दोनों का परिचय कराया और कहा

"अल्बर्ट और माइकल इन दोनों लोगों ने मुझे एक खूबसूरत टापू दिखाया और कई सारे प्राकृतिक नजारे भी ये बहुत अच्छे हैं" वह दोनों मुस्कुरा रहे थे.


विकास ने उन्हें थैंक्यू कहा और वह दोनों रेस्टोरेंट की तरफ चल पड़े। मैं और विकास एक बार फिर समंदर की लहरों के बीच में आ गए। विकास मेरी और प्रश्नवाचक निगाहों से देख रहा था। पर मैं कुछ नहीं बोल रही थी। समुद्र के अंदर जाते हैं विकास ने मेरे स्तनों को छुआ उन्हें अपने हाथ पर चिपचिपाहट का एहसास हुआ वाह तुरंत ही समझ गए।

उन्होंने मेरे होठों को अपने होठों के बीच भर लिया और बेहद प्यार से चूमने लगे कुछ देर के लिए उन्होंने अपने होंठ अलग किया और बोला.

. ब्रेव सोनी यू वोंन द चैलेंज..


उन्होंने स्वयं अपने वीर्य से न जाने मुझे कितनी बार भिगोया था और नहाते समय उसे अपने ही हाथों से साफ किया था उन्हें अंदाज लग गया था कि मैं जीत चुकी थी।वह बेहद खुश थे।

समुद्र में बिकास के साथ अठखेलियां करके मैं तरोताजा हो गई थी मुझे पता था विकास मेरे अद्भुत कार्य के लिए मुझे होटल ले जाकर कसकर चोदने लिए तैयार थे और मैं भी इसका इंतजार कर रही थी। हम दोनों बेहद खुश थे।

मैंने विकास से पूछा..

अरे आपका चैलेंज मैने पूरा किया मेरा इनाम कहां है..

“कल मिलेगा बराबर मिलेगा…” विकास मुस्कुरा रहे थे…

शेष अगले भाग में..

Bahut hi umda update he Lovely Anand Bro,

Ekdum mast, jhakasss update

Keep rocking Bro
 
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