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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143
 
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chodumahan

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A marvelous long story and still continuing.
Every characters connects and develops a special bond with readers.
But for new readers there are missing episodes.
And request by every new reader is quite cumbersome.
I found episode 90, 91, 101, 102, 109, 120 are not available on thread.
Request you to post the missing updates at appropriate places.
Thanks for effort in writing such a wonderful story.
 

Lovely Anand

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अद्भुत अप्रतिम अविस्मरणीय रोमांचकारी और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
आखिर नियती ने अपना खेल खेल कर बडी बहन सुगना और छोटे भाई सोनू का एक प्रेम से ओतप्रोत भरा मिलन कर ही दिया और दोनों को संतुष्टी प्रदान हो गई
वही सरयु सिंह अपनी पुत्री सुगना को संभोगरत सपना देखकर उसकी शादी कराने के बारें मन बना रहा हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
थैंक्स....be in touch aur इसी प्रकार अपनी समीक्षा देते रहिए
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आपका कहानी के पटल पर हार्दिक स्वागत है। मुझे पाठकों के कमेंट उनके कहानी से जुड़ाव का प्रतीक लगते हैं
इसीलिए मैं अपने प्रत्येक पाठक से कमेंट के माध्यम से उनके विचार और राय जानना चाहता हूं..

रही बात मिसिंग एपिसोड्स को भेजने की वो मैने लगभग सभी रेगुलर पाठकों को भेजा है और उन्हें भी जिन्होंने कमेंट देकर अपना जुड़ाव तो नहीं दिखाया पर इसकी मांग की है। चाहे इसमें मेरा वक्त भी जाया हुआ हो।

दोस्त वो पाठक हो क्या जो चार पांच घंटे की मेहनत से लिखे एपिसोड्स पर कमेंट के लिए चार पांच मिनट न निकाल ले...
आपको भी सभी एपिसोड्स भेज दिए है...
अपने नए और पुराने पाठकों के इंतजार में
 
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Lovely Anand

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भाग 131

लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…


अब आगे..

सुबह-सुबह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारीयो को निभाने के पश्चात सुगना अपने भगवान के समक्ष अपने परिवार के कुशल क्षेम की प्रार्थना कर रही थी। सोनू के नसबंदी कर लेने के पश्चात यह सुनिश्चित हो चुका था कि सोनू अब विवाह नहीं कर सकता । पूरे परिवार में यह बात सिर्फ सुगना को पता थी और उसने इसीलिए सोनू और लाली के विवाह का निर्णय ले लिया था।

सुगाना यह चाहती थी की लाली और सोनू पति-पत्नी के रूप में साथ में रहने लगे जिससे सोनू की वासना तृप्ति होती रहे और सोनू जिसका ध्यान भटकते भटकते स्वयं उसकी तरफ आ चुका था वह उससे दूर ही रहे। परंतु सुगना को शायद यह अंदाजा न था कि सोनू और सुगना एक दूसरे के लिए ही बने थे उन्हें अलग कर पाना इतना आसान न था।

दोपहर में सुगना और लाली भोजन के पश्चात एक ही बिस्तर पर लेटे हुए थे । सुगना ने लाली की ओर करवट ली और बोली..

“सोनूआ शनिचर के आवता…सोचा तनी सोनी के सीतापुर भेज दी… सोमवार के भी छुट्टी बा 2 दिन मां के साथ रहली अच्छा लागी।

लाली मंद मंद मुस्कुराने लगी। वह जानती थी कि सोनी की उपस्थिति में सोनू से संभोग करना एक आसान कार्य न था। पिछली बार बड़े दिनों बाद जब सोनू और लाली का मिलन हुआ था तब सोनी घर में थी और लाली और सोनू दोनों के बीच कामुक गतिविधियों के दौरान दोनों अहसज महसूस कर रहे थे।

एक तरफ जहां सुगना की उपस्थिति लाली और सोनू दोनों में जोश भर देती थी। वहीं दूसरी तरफ सोनी से लाली और सोनू दोनों अपने अनूठे रिश्ता का पर्दा रखते थे।


सोनी को यह इल्म भी ना था की उसके सोनू भैया जो उसके लिए एक आदर्श थे अपनी मुंह बोली बहन लाली के साथ बिस्तर पर धमा चौकड़ी करते थे।

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

“ठीक कहा त बाड़े , दो-चार दिन घुम आईबे तो ओकरो अच्छा लागी”

सुगना में उसे चिकौटी काटते हुए कहा

“और ताहरा?”

लाली सुगना से सटकर गले लग गई।

सोनी के अनुपस्थित होने पर जब भी सोनू घर में होता, सुगना घर के सभी बच्चों को संभाल लेती । वह उनके साथ खेलती उन्हें कहानियां सुनाती बातें करती इसी दौरान लाली और सोनू अपनी कामवासना को शांत कर लेते। दिन हो या रात सुगना के रहने से लाली और सोनू को पूरा एकांत मिलता दोनों इसके लिए सुगना के शुक्रगुजार भी थे और कृतज्ञ भी।

सुगना ने हिम्मत जुटा कर लाली से सोनू और उसके विवाह के बारे में बात करने की सोची और उसकी बाहों पर अपनी हथेली रखते हुए बोली

“ए लाली जौनपुर अबकी ते सोनू के साथ जौनपुर चल जो सोनू तोर पसंद के पलंग सजाबले बा. मन भर सुख लीहे.. ओकर घर बहुत सुंदर बा”

“जाए के तो हमरो मन करता पर बच्चन के के स्कूल चलता।

“ते जो हम संभाल लेब” सुगना ने रास्ता सुझाया।

“पगला गई बाड़े का । सोनू के साथ अकेले जाएब तो लोग का सोची ? हम ओकर बहिन हई बीबी ना..” लाली मुस्कुराने लगी।

समझदार सुगना ने न जाने ऐसी बात कैसे बोल दी थी। लाली का प्रश्न उचित था सोनू के साथ बिना बच्चों के जाना मुमकिन ना था।

पर अब जब सुगना के मुख से बात निकल ही गई थी उसने इसे अवसर में तब्दील कर दिया और बेहद संजीदगी से बोली..

“अच्छा ई बताओ लाली तोरा सोनूवा के साथ हमेशा रहे के मन करेला की ना?”

“काहे पूछत बाडू तू ना जाने लू का? अगला जन्म में भगवान हमारा हिस्सा में सोनुआ के देते त हमार भाग जाग जाएत..”

“और भगवान एही जन्म में दे देस तब?”

सुगना ने पूरी संजीदगी से उसकी आंखों में आंखें डालते हुए कहा।

सुगना ने लाली की दुखती रंग छेड़ दी थी जो लाली कभी अपनी कल्पनाओं में इस बात को सोचती थी आज सुगना ने अपने मुंह से वह बात कह कर अकस्मात लाली को उसकी संभावनाओं पर सोचने के लिए विवश कर दिया था। फिर भी वह सतर्क थी उसने मुंह बिचकाते हुए कहा

“ काहे ए अभागन से मजाक करत बाड़े। जतना प्यार हमरा सोनू से मिलेला हम ओतना से खुश बानी हमरा के ढेर लालची मत बनाव “

सुगना भली-भांति समझती थी की लाली सोनू को अपने पति रूप में स्वीकार करना चाहती तो अवश्य होगी पर सांसारिक और वैचारिक बंधनों से यह एक बेहद कठिन कार्य था।

आखिरकार सुगना ने अपने चिर परिचित दृढ़ अंदाज में लाली से कहा..

“लाली यदि सोनू तोहरा से खुद विवाह करें के इच्छा व्यक्त करी तो मना मत करिह बाकी सब हम देख लेब” लाली सुगना की बात सुनकर आश्चर्यचकित थी.

“ए सुगना अइसन मजाक मत कर”

“हम सच कहत बानी बस तू ओकर प्रस्ताव स्वीकार कर लीह “

“और घर परिवार के लोग “

“उ सब हमारा पर छोड़ दा?

“लाली पर सोनू हमरा से छोट ह और ईद दु दु गो बच्चा लोग ?” इ शादी बेमेल लागी।

लाली का प्रश्न सही था। निश्चित ही यह शादी बच्चों की वजह से कुछ अटपटी और बेमेल लग रही थी। परंतु लाली और सोनू जब अगल-बगल खड़े होते तो उम्र का अंतर बहुत ज्यादा नहीं प्रतीत होता था। सोनू अपनी उम्र से ज्यादा मेहनत कर अपना शरीर एक मर्द की तरह बना चुका था और इसके इतर लाली अब भी अपनी कमानीयता बरकरार रखने में कायम रही थी। उम्र में कुछ वर्ष बड़े होने के बावजूद उसने अपने शरीर को मेंटेन करते हुए इस उम्र के पहले को यथासंभव कम कर दिया था।

इसके बावजूद लाली को सुगना की बातें एक दिवास्वप्न की तरह लग रही थी। पर जिस संगीदगी से सुगना ने यह बात कही थी उसे सिरे से नकार देना संभव न था।

लाली के तो मन में अब लड्डू फूटने लगे थे। परंतु क्या यह इतना आसान होगा? क्या उसके और उसके परिवार के लोग इस बात को स्वीकार करेंगे ? क्या वह सचमुच सोनू से विवाह करेंगी? हे भगवान क्या उसकी कल्पना एक मूर्त रूप लेने जा रही थी? वह सुगना के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करते हुए उसकी दोनों हथेलियां को अपने हाथों में ले ली और बेहद प्यार से सहलाते हुए बोली

“सुगना हमरा के माफ कर दीहे हम तोहरा साथ बहुत नाइंसाफी कइले बानी”

सुगना ने प्रश्नवाचक निगाहों से लाली की तरफ देखा जैसे उसके इस वाक्य का मतलब समझाना चाह रही हो लाली की आंखों में आंसू थे उसने अपनी पलके झुकाए हुएकहा..


“सुगना ऊ दिवाली के रात सोनुआ तोहरा साथ जवन काईले रहे ओ में हमारे गलती रहे। हम ही ओकरा के उकसावले रहनी की की तु ओकरा से मिलन खाती तैयार बाडू।”

सुगना आश्चर्यचकित होकर लाली को देख रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की लाली के इस कन्फेशन से वह खुश हो या दुखी । एक तरफ उसके कन्फेशन सोनू को कुछ हद तक दोष मुक्त कर रहे थे और दूसरी तरफ उसका अंतरमन लाली का धन्यवाद दे रहा था जो उसने सोनू से उसका मिलन जाने अनजाने आसान कर दिया था। और उसके जीवन में एक बार फिर प्रेम और वासना की तरंगे छोड़ दी थी

सुगना ने खुद को संयमित किया वह उस बारे में और बात करना नहीं चाह रही थी उसने लाली की बात को ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहा…

“तोरा कारण का का परेशानी भइल जानते बाड़े ..पर शायद कौनों पाप रहे कट गईल अब भूल जो ऊ सब”

बच्चों के ऑटो की आवाज सुनकर दोनों सहेलियों का वार्तालाप बंद हुआ लाली खुशी बच्चों को लेने बाहर गई और सुगना एक लंबी आह भरते हुए आगे की रणनीति बनाने लगी।

सुगना ने मन ही मन अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी उसे भी पता था यह कार्य बेहद कठिन था सोनू जैसे सजीले मर्द जो एक अच्छे प्रशासनिक पद पर भी था और तो और इसके लिए कई नामी गिरामी लोगों की लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे ऐसे में सोनू लाली जैसी दो बच्चों वाली विधवा से विवाह के लिए सभी परिवार वालों को राजी करना बेहद कठिन था।

परंतु सुगना यह बात भली भांति जानती थी कि जब से सोनू ने अपनी नसबंदी करा ली थी उसका विवाह किसी सामान्य लड़की से करना उचित न था। यह उस लड़की के साथ भी अन्याय होता और उसके परिवार के साथ भी। यह धोखा था जिसे सुगना कतई नहीं चाहती थी।

सुगना की विडंबना यह थी कि वह सोनू की नसबंदी की बात किसी से साझा नहीं कर सकती थी यह राज सिर्फ उन दोनों के बीच था।

आखिरकार सोनू शनिवार को बनारस आने वाला था लाली और सुगना दोनों तैयार हो रहीं थी। एक सोनू के स्वागत के लिए और दूसरी सोनू के आने वाले जीवन में खुशियां बिखरने के लिए।

कुछ ही देर बाद सोनी और सुगना अपने दोनों बच्चों के साथ सीतापुर के लिए निकल पड़े। लाली को यह कुछ अजीब सा लगा

“अरे काल चल जईहे आज सोनू से मुलाकात कर ले..”

“ना ओकरा आवे में देर होई…अगला सप्ताह भेंट होखी” ऑटो में बैठ चुके बच्चे उछल कूद मचा रहे थे। सोनी और सुगना सीतापुर के लिए निकल चुके थे। वैसे भी सोनू का आना जाना एक सामान्य बात थी।

सुगना को पता था की सोनू निश्चित ही किसी न किसी बहाने उसे अपने मोहपाश में बांधेगा और उसकी निगोडी बुर में कामेच्छा जागृत करेगा और मौका देखकर संसर्ग के लिए किसी न किसी प्रकार उसे मना लेगा। ठीक वैसे ही जैसे वह बचपन में सुगना का उसका मन ना होते हुए भी अपने खेल में घसीट लेता था।

वैसे भी अभी सुगना की प्राथमिकताएं दूसरी थी अपने और लाली के घर वालों को मनाना उसके लिए एक कठिन कार्य था।

सोनू बनारस आया पर सुगना को घर में ना देखकर उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। परंतु लाली खुश थी। आज उसके मिलन में कोई भी व्यवधान न था। सुगना से तो उसे वैसे भी कोई दिक्कत न थी परंतु सोनी……से पार पाना कठिन था। उसकी उपस्थिति में फूक फूक कर कदम रखना पड़ता था।

लाली का ध्यान सोनू की गर्दन की तरफ गया। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। लाली खुश हो गई। पर सोनू की आंखों से चमक गायब थी। जिससे मिलने के लिए वह दिल में तड़प लिए बनारस आया था वह न जाने क्यों उसे छोड़कर चली गई थी।

शाम होते होते वस्तु स्थिति को स्वीकार करने के अलावा सोनू के पास और कोई चारा नहीं था। लाली जी जान से रात की तैयारी कर रही थी सोनू अब अपनी खुशी लाली में ही तलाश रहा था। लाली ने जिस तरीके से सुगना के समक्ष अपनी गलती मानी थी तब से उसकी मन हल्का हो गया था और वह अपनी सहेली सुगना के प्रति दिल से कृतज्ञ थी जिसने उसके वीरान जिंदगी में सोनू जैसा हीरा डालने का वचन दिया था।

लाली ने मन ही मन सोच लिया कि वह सोनू को संभोग के समय सुगना का नाम लेकर और नहीं उकसाएगी…

परंतु रात में जब सोनू और लाली एक दूसरे की प्रेम अग्न बुझा रहे थे बरबस ही सुगना का ध्यान उन दोनों के मनो मस्तिष्क में घूम रहा था। लाली द्वारा सुगना का जिक्र न किए जाने के बावजूद सोनू तो सुगना में ही खोया हुआ था। सोनू के आवेग और वेग में कमी नहीं थी। अपनी सुगना के लिए जितनी वासना सोनू ने अपने तन बदन में समेट रखी थी वह सारी लाली पर उड़ेल कर वह निढाल हो गया।

उधर सुगना अपने परिवार के बीच पहुंच चुकी थी..

सुगना जिस मिशन पर गई थी वह एक दो मुलाकातों में पूरा नहीं होने वाला था परंतु जब सुगना मन बना चुकी थी.. तो उसके लिए कोई भी कार्य दुष्कर न था।

अगले दो तीन महीने यूं ही बीत गए। हर शनिवार सोनू सुगना से मिलने बनारस आता पर कभी सुगना अपने गांव चली जाती कभी अपनी मां या कजरी और सरयू सिंह को बनारस बुला लेती इन दोनों ही परिस्थितियों में सोनू और सुगना का मिलन असंभव था । और सपना के प्यार में कोई कमी न थी। वह सब की उपस्थिति में सोनू से पूर्व की भांति प्यार करती उससे सटती कभी उसके गोद में सर रख देती पर उसे कामुक होने का कोई मौका नहीं देती। कभी-कभी सोनू एकांत में सुगना को बाहर घूमाने की जिद करता परंतु सुगना सोनू को उसे घुमाने का मूल उद्देश्य जानती थी और बड़ी सफाई से बिना उसे आहत किए बच निकलती..

जिस तरह मछली को पानी में पकड़ना मुश्किल होता है वह हांथ तो आती है पर पकड़ में नहीं आती सुगना भी अपने परिवार के बीच सुनहरी मछली जैसी ही थी..

सोनू उसका स्पर्श सुख तो बीच बीच में ले पा रहा था पर उछलती मचलती सुगना उसकी पकड़ से दूर थी..

ऐसा नहीं था कि सुगना ने इस दौरान सोनू को नजरअंदाज कर दिया था बस दूरी बना ली थी यद्यपि बीच-बीच में वह उसमें वासना की तरंगे भरने का काम जरुर कर देती थी।

आखिरकार सुगना अपने घर वालों और लाली के घर वालों को इस अनोखे विवाह के लिए राजी करने में कामयाब हो गई। सर्वसम्मति से यह विवाह आर्य समाज विधि से साधारण रूप से किसी पवित्र मंदिर में किया जाना निश्चित हुआ।

पूरे घर में खुशियों का माहौल था। इस अनूठे रिश्ते से सोनी सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित थी। सोनू और लाली कब मुंह बोले भाई बहन से एक दूसरे के प्रेमी बन गए थे सोनी ने शायद इसकी कल्पना भी ना की थी। परंतु सोनू के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह करने का ना तो सोनी के पास कोई अधिकार था और नहीं कोई जरूरत जब मियां बीबी राजी तो वह बीच में कई काजी की भूमिका अदा नहीं करना चाहती थी।

शुरुवात में सोनू की मां पद्मा का मन थोड़ा दुखी जरूर था परंतु लाली ने पदमा की सेवा कर उसका भी मन जीत लिया था। पूरे परिवार ने आखिरकार मिलकर यह हत्या किया कि यह विवाह सोनी के विवाह के बात करना उचित होगा अन्यथा सोनी के ससुराल वाले इस विवाह पर प्रश्न चिन्ह लगा सकते थे।

सुगना के लिए सोनू की तड़प बढ़ती जा रही थी और अब कमोबेश यही हाल सुगना का भी था इन दो-तीन महीनो में सुगना ने लाली और सोनू को हमेशा के लिए एक करने के लिए भरपूर प्रयास किया था और सफल भी रही थी। उसका कोमल तन बदन सोनू के मजबूत आलिंगन में आने को तड़प रहा था। पर अपने मन पर मजबूत नियंत्रण रखने वाली सुगना अपनी भावनाओं को काबू में किए हुए थी।

आज शुक्रवार का दिन था। लाली अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता से मिलने सलेमपुर गई हुई थी। शायद उसके माता-पिता ने उसके लिए घर पर कोई छोटी पूजा रखी थी जिसमें उसका उपस्थित रहना जरूरी था। सुगना ने लाली को हिदायत दी थी की कैसे भी करके कल शाम तक बनारस आ जाना। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कल सोनू को बनारस आना था और सुगना कतई नहीं चाहती थी कि सोनू बिना लाली की उपस्थिति के बनारस में उसके साथ एक ही छत के नीचे रहे। सुगना अब तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में कामयाब रही थी और सोनू अपनी भावनाओं को काबू में रखने को मजबूर था।

सुगना अपने दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद पूरी तरह खाली थी। आज उसने पूरी तन्मयता से स्नान किया स्नान करते वक्त अपनी छोटी सी बुर के चारों तरफ उग आए काले बालों की झुरमुट को सोनू के पुराने रेजर से साफ किया। इस दौरान न जाने क्यों वह सोनू को याद करती रही ।


सुगना महसूस कर रही थी कि पिछले कुछ महीनो में उसने सोनू को हद से ज्यादा बेचैन कर दिया था पर उसकी नजरों में शायद यही उचित था। बिस्तर पर जब जब सुगना स्वयं उत्तेजना का शिकार होती अपनी जांघों के बीच तकिया फसाकर जौनपुर में सोनू के साथ बिताए पल को याद करती सोनू को याद करते-करते उसकी उंगलियां उसकी बुर को थपकियां देकर सुलाने की कोशिश करती।

कभी वह रहीम और फातिमा की किताब निकाल कर पढ़ती और इसी दौरान न जाने कब सुगना की बुर उसकी जांघों को ऐंठने पर मजबूर कर देती और सुगना तृप्ति का सुखद एहसास लिए नींद में खो जाती। रहीम एवं फातिमा की किताब अब उसके लिए एक अनमोल धरोहर हो चुकी थी जो उसके एकांत और सुख की साथी थी..

सुगना ने तसल्ली से स्नान किया खूबसूरत मैरून कलर की साटिन की नाईटी पहनी …. बालों की सफाई होने के पश्चात उसकी बुर संवेदनशील हो चुकी थी अतः उसने अंतर्वस्त्र पहनने को आवश्यकता नहीं समझी पर एहतियातन अपनी चूचियों को ब्रा सहारा दे दिया। वैसे भी आज कई दिनों वह घर में नितांत अकेली थी और आज दोपहर रहीम और फातिमा की किताब पढ़ते हुए अपने कामोत्तेजना शांत करने वाली थी।

स्नान के बाद ध्यान की बारी थी। अपने इष्ट देव को याद करते हुए सुगना पूजा पाठ में संलग्न हो गई। सुगना ने आरती दिखाई और अपने परिवार की खुशियों को कामना की..इसी बीच उसने लाली और सोनू का भी ध्यान किया और उनके विवाह के लिए मंगल कामना की। इधर सुगना ने अंतरमन ने सोनू को याद कर लिया…उधर

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई.. हाथ में आरती की थाल लिए अपने घर और बरामदे में आरती दिखाते हुए सुगना दरवाजे तक गई और दरवाजा खोल दिया..

सामने सोनू खड़ा था.. सुगना सुगना आश्चर्यचकित थी..पर बेहद खुश थी

“अरे सोनू बाबू आज कैसे? छुट्टी बा का?”

“ना दीदी बनारस में काम रहे…” सुंदर नाइटी में फूल सी खिली सुगना की मादक सुगंध में खोए हुए सोनू ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया..

उसने झुक कर सुगना के चरण छुए… उठते वक्त उसने सुगना के हाथ में पकड़ी आरती की थाल को पूरे आदर और सम्मान से अपनी दोनों हथेलियों से स्वीकार किया और उसे अपने माथे पर लगा लिया।


सुगना खुश भी थी और आश्चर्यचकित भी उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और सर पर रखकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद दिया..नियति मुस्कुरा रही थी सुगना ने अनजाने में उसे स्वयं को समर्पित कर दिया था आखिर इस वक्त सोनू की एकमात्र मनोकामना सुगना स्वयं थी। सुगना वापस पूजा का थाल रखना अपने छोटे से मंदिर में चली गई..

इधर सोनू अपना सामान लाली के कमरे में रख चुका था कमरे की स्थिति यह बता रही थी की लाली अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सलेमपुर जा चुकी थी..

अब तक सोनू को पिछले कुछ महीने से खुद से दूर रख पाने में सफल सुगना आज अचानक ही नियत के खेल में फंस चुकी थी। सोनू की खुशी सातवें आसमान पर थी और अपने इष्ट देव के समक्ष सर झुकाए सुगना का दिल धड़क रहा था…सुगना को स्वयं यह समझ नहीं आ रहा था कि वह ईश्वर से मांगे तो क्या मांगे जो जीवन में उसे सबसे प्यारा था वह उसके समक्ष था.

सोनू मंदिर के दरवाजे पर खड़ा सुगना के बाहर आने का इंतजार कर रहा था..

जैसे ही सुगना अपने पूजा कक्ष से बाहर आई सोनू ने उसे सोनू ने उसे एक झटके में ही अपनी गोद में उठा लिया..सुगना ने अपनी खुशी को नियंत्रित करते हुए पर अपनी मादक मुस्कान बिखरते हुए सोनू से कहा..

“अरे रुक भगवान जी के सामने…”

सोनू ने सुगना को अपनी गोद में लिए हुए अपने घर के मंदिर के सामने लगे परदे को खींचने का अवसर दिया। सुगना ने अपने इष्ट देव को एक बार फिर प्रणाम किया जब तक सुगना अपने ईस्ट से अपने मन की बात कह पाती तब तक सोनू सुगना को अपने गोद में लिए हुए सुगना के कक्ष की तरफ बढ़ चला।

उसकी उंगलियां सुगना के नंगे पेट से सट रही थी वह बीच-बीच में सुगना के पेट को अपनी उंगलियों से गुदगुदा देता। सुगना का अंतर्मन फूल की तरह खिल गया था वह खिलखिला रही थी।

नियति को हंसती खिलखिलाती सुगना एक कामातुर तरुणी की तरह प्रतीत हो रही थी…

नियति सतर्क थी..और सोनू और सुगना के मिलन की प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए आतुर थी…

शेष अगले भाग में.



पहले की ही भांति अगला एपिसोड उन्हीं पाठकों को भेजा जाएगा जिन्होंने कहानी से कमेंट के माध्यम से अपना जुड़ाव दिखाया है..
प्रतीक्षारत
 
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chodumahan

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धन्यवाद मित्र...
आपके द्वारा भेजे गए एपिसोड ९०, ९१, १०१ व् १०२ प्राप्त हुए...
एक शानदार और उत्कृष्ट कृति के बचे हुए भागों को पढ़ने पर एक नया रस मिला...
आपका एपिसोड १३१ सोनू और सुगना के प्यार भरे संबंधों को गहराई से अभिभूत करता है..
बचे हुए १०९ और १२० की प्रतीक्षा में...
 

chodumahan

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भाग 131

लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…


अब आगे..

सुबह-सुबह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारीयो को निभाने के पश्चात सुगना अपने भगवान के समक्ष अपने परिवार के कुशल क्षेम की प्रार्थना कर रही थी। सोनू के नसबंदी कर लेने के पश्चात यह सुनिश्चित हो चुका था कि सोनू अब विवाह नहीं कर सकता । पूरे परिवार में यह बात सिर्फ सुगना को पता थी और उसने इसीलिए सोनू और लाली के विवाह का निर्णय ले लिया था।

सुगाना यह चाहती थी की लाली और सोनू पति-पत्नी के रूप में साथ में रहने लगे जिससे सोनू की वासना तृप्ति होती रहे और सोनू जिसका ध्यान भटकते भटकते स्वयं उसकी तरफ आ चुका था वह उससे दूर ही रहे। परंतु सुगना को शायद यह अंदाजा न था कि सोनू और सुगना एक दूसरे के लिए ही बने थे उन्हें अलग कर पाना इतना आसान न था।

दोपहर में सुगना और लाली भोजन के पश्चात एक ही बिस्तर पर लेटे हुए थे । सुगना ने लाली की ओर करवट ली और बोली..

“सोनूआ शनिचर के आवता…सोचा तनी सोनी के सीतापुर भेज दी… सोमवार के भी छुट्टी बा 2 दिन मां के साथ रहली अच्छा लागी।

लाली मंद मंद मुस्कुराने लगी। वह जानती थी कि सोनी की उपस्थिति में सोनू से संभोग करना एक आसान कार्य न था। पिछली बार बड़े दिनों बाद जब सोनू और लाली का मिलन हुआ था तब सोनी घर में थी और लाली और सोनू दोनों के बीच कामुक गतिविधियों के दौरान दोनों अहसज महसूस कर रहे थे।

एक तरफ जहां सुगना की उपस्थिति लाली और सोनू दोनों में जोश भर देती थी। वहीं दूसरी तरफ सोनी से लाली और सोनू दोनों अपने अनूठे रिश्ता का पर्दा रखते थे।


सोनी को यह इल्म भी ना था की उसके सोनू भैया जो उसके लिए एक आदर्श थे अपनी मुंह बोली बहन लाली के साथ बिस्तर पर धमा चौकड़ी करते थे।

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

“ठीक कहा त बाड़े , दो-चार दिन घुम आईबे तो ओकरो अच्छा लागी”

सुगना में उसे चिकौटी काटते हुए कहा

“और ताहरा?”

लाली सुगना से सटकर गले लग गई।

सोनी के अनुपस्थित होने पर जब भी सोनू घर में होता, सुगना घर के सभी बच्चों को संभाल लेती । वह उनके साथ खेलती उन्हें कहानियां सुनाती बातें करती इसी दौरान लाली और सोनू अपनी कामवासना को शांत कर लेते। दिन हो या रात सुगना के रहने से लाली और सोनू को पूरा एकांत मिलता दोनों इसके लिए सुगना के शुक्रगुजार भी थे और कृतज्ञ भी।

सुगना ने हिम्मत जुटा कर लाली से सोनू और उसके विवाह के बारे में बात करने की सोची और उसकी बाहों पर अपनी हथेली रखते हुए बोली

“ए लाली जौनपुर अबकी ते सोनू के साथ जौनपुर चल जो सोनू तोर पसंद के पलंग सजाबले बा. मन भर सुख लीहे.. ओकर घर बहुत सुंदर बा”

“जाए के तो हमरो मन करता पर बच्चन के के स्कूल चलता।

“ते जो हम संभाल लेब” सुगना ने रास्ता सुझाया।

“पगला गई बाड़े का । सोनू के साथ अकेले जाएब तो लोग का सोची ? हम ओकर बहिन हई बीबी ना..” लाली मुस्कुराने लगी।

समझदार सुगना ने न जाने ऐसी बात कैसे बोल दी थी। लाली का प्रश्न उचित था सोनू के साथ बिना बच्चों के जाना मुमकिन ना था।

पर अब जब सुगना के मुख से बात निकल ही गई थी उसने इसे अवसर में तब्दील कर दिया और बेहद संजीदगी से बोली..

“अच्छा ई बताओ लाली तोरा सोनूवा के साथ हमेशा रहे के मन करेला की ना?”

“काहे पूछत बाडू तू ना जाने लू का? अगला जन्म में भगवान हमारा हिस्सा में सोनुआ के देते त हमार भाग जाग जाएत..”

“और भगवान एही जन्म में दे देस तब?”

सुगना ने पूरी संजीदगी से उसकी आंखों में आंखें डालते हुए कहा।

सुगना ने लाली की दुखती रंग छेड़ दी थी जो लाली कभी अपनी कल्पनाओं में इस बात को सोचती थी आज सुगना ने अपने मुंह से वह बात कह कर अकस्मात लाली को उसकी संभावनाओं पर सोचने के लिए विवश कर दिया था। फिर भी वह सतर्क थी उसने मुंह बिचकाते हुए कहा

“ काहे ए अभागन से मजाक करत बाड़े। जतना प्यार हमरा सोनू से मिलेला हम ओतना से खुश बानी हमरा के ढेर लालची मत बनाव “

सुगना भली-भांति समझती थी की लाली सोनू को अपने पति रूप में स्वीकार करना चाहती तो अवश्य होगी पर सांसारिक और वैचारिक बंधनों से यह एक बेहद कठिन कार्य था।

आखिरकार सुगना ने अपने चिर परिचित दृढ़ अंदाज में लाली से कहा..

“लाली यदि सोनू तोहरा से खुद विवाह करें के इच्छा व्यक्त करी तो मना मत करिह बाकी सब हम देख लेब” लाली सुगना की बात सुनकर आश्चर्यचकित थी.

“ए सुगना अइसन मजाक मत कर”

“हम सच कहत बानी बस तू ओकर प्रस्ताव स्वीकार कर लीह “

“और घर परिवार के लोग “

“उ सब हमारा पर छोड़ दा?

“लाली पर सोनू हमरा से छोट ह और ईद दु दु गो बच्चा लोग ?” इ शादी बेमेल लागी।

लाली का प्रश्न सही था। निश्चित ही यह शादी बच्चों की वजह से कुछ अटपटी और बेमेल लग रही थी। परंतु लाली और सोनू जब अगल-बगल खड़े होते तो उम्र का अंतर बहुत ज्यादा नहीं प्रतीत होता था। सोनू अपनी उम्र से ज्यादा मेहनत कर अपना शरीर एक मर्द की तरह बना चुका था और इसके इतर लाली अब भी अपनी कमानीयता बरकरार रखने में कायम रही थी। उम्र में कुछ वर्ष बड़े होने के बावजूद उसने अपने शरीर को मेंटेन करते हुए इस उम्र के पहले को यथासंभव कम कर दिया था।

इसके बावजूद लाली को सुगना की बातें एक दिवास्वप्न की तरह लग रही थी। पर जिस संगीदगी से सुगना ने यह बात कही थी उसे सिरे से नकार देना संभव न था।

लाली के तो मन में अब लड्डू फूटने लगे थे। परंतु क्या यह इतना आसान होगा? क्या उसके और उसके परिवार के लोग इस बात को स्वीकार करेंगे ? क्या वह सचमुच सोनू से विवाह करेंगी? हे भगवान क्या उसकी कल्पना एक मूर्त रूप लेने जा रही थी? वह सुगना के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करते हुए उसकी दोनों हथेलियां को अपने हाथों में ले ली और बेहद प्यार से सहलाते हुए बोली

“सुगना हमरा के माफ कर दीहे हम तोहरा साथ बहुत नाइंसाफी कइले बानी”

सुगना ने प्रश्नवाचक निगाहों से लाली की तरफ देखा जैसे उसके इस वाक्य का मतलब समझाना चाह रही हो लाली की आंखों में आंसू थे उसने अपनी पलके झुकाए हुएकहा..


“सुगना ऊ दिवाली के रात सोनुआ तोहरा साथ जवन काईले रहे ओ में हमारे गलती रहे। हम ही ओकरा के उकसावले रहनी की की तु ओकरा से मिलन खाती तैयार बाडू।”

सुगना आश्चर्यचकित होकर लाली को देख रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की लाली के इस कन्फेशन से वह खुश हो या दुखी । एक तरफ उसके कन्फेशन सोनू को कुछ हद तक दोष मुक्त कर रहे थे और दूसरी तरफ उसका अंतरमन लाली का धन्यवाद दे रहा था जो उसने सोनू से उसका मिलन जाने अनजाने आसान कर दिया था। और उसके जीवन में एक बार फिर प्रेम और वासना की तरंगे छोड़ दी थी

सुगना ने खुद को संयमित किया वह उस बारे में और बात करना नहीं चाह रही थी उसने लाली की बात को ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहा…

“तोरा कारण का का परेशानी भइल जानते बाड़े ..पर शायद कौनों पाप रहे कट गईल अब भूल जो ऊ सब”

बच्चों के ऑटो की आवाज सुनकर दोनों सहेलियों का वार्तालाप बंद हुआ लाली खुशी बच्चों को लेने बाहर गई और सुगना एक लंबी आह भरते हुए आगे की रणनीति बनाने लगी।

सुगना ने मन ही मन अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी उसे भी पता था यह कार्य बेहद कठिन था सोनू जैसे सजीले मर्द जो एक अच्छे प्रशासनिक पद पर भी था और तो और इसके लिए कई नामी गिरामी लोगों की लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे ऐसे में सोनू लाली जैसी दो बच्चों वाली विधवा से विवाह के लिए सभी परिवार वालों को राजी करना बेहद कठिन था।

परंतु सुगना यह बात भली भांति जानती थी कि जब से सोनू ने अपनी नसबंदी करा ली थी उसका विवाह किसी सामान्य लड़की से करना उचित न था। यह उस लड़की के साथ भी अन्याय होता और उसके परिवार के साथ भी। यह धोखा था जिसे सुगना कतई नहीं चाहती थी।

सुगना की विडंबना यह थी कि वह सोनू की नसबंदी की बात किसी से साझा नहीं कर सकती थी यह राज सिर्फ उन दोनों के बीच था।

आखिरकार सोनू शनिवार को बनारस आने वाला था लाली और सुगना दोनों तैयार हो रहीं थी। एक सोनू के स्वागत के लिए और दूसरी सोनू के आने वाले जीवन में खुशियां बिखरने के लिए।

कुछ ही देर बाद सोनी और सुगना अपने दोनों बच्चों के साथ सीतापुर के लिए निकल पड़े। लाली को यह कुछ अजीब सा लगा

“अरे काल चल जईहे आज सोनू से मुलाकात कर ले..”

“ना ओकरा आवे में देर होई…अगला सप्ताह भेंट होखी” ऑटो में बैठ चुके बच्चे उछल कूद मचा रहे थे। सोनी और सुगना सीतापुर के लिए निकल चुके थे। वैसे भी सोनू का आना जाना एक सामान्य बात थी।

सुगना को पता था की सोनू निश्चित ही किसी न किसी बहाने उसे अपने मोहपाश में बांधेगा और उसकी निगोडी बुर में कामेच्छा जागृत करेगा और मौका देखकर संसर्ग के लिए किसी न किसी प्रकार उसे मना लेगा। ठीक वैसे ही जैसे वह बचपन में सुगना का उसका मन ना होते हुए भी अपने खेल में घसीट लेता था।

वैसे भी अभी सुगना की प्राथमिकताएं दूसरी थी अपने और लाली के घर वालों को मनाना उसके लिए एक कठिन कार्य था।

सोनू बनारस आया पर सुगना को घर में ना देखकर उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। परंतु लाली खुश थी। आज उसके मिलन में कोई भी व्यवधान न था। सुगना से तो उसे वैसे भी कोई दिक्कत न थी परंतु सोनी……से पार पाना कठिन था। उसकी उपस्थिति में फूक फूक कर कदम रखना पड़ता था।

लाली का ध्यान सोनू की गर्दन की तरफ गया। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। लाली खुश हो गई। पर सोनू की आंखों से चमक गायब थी। जिससे मिलने के लिए वह दिल में तड़प लिए बनारस आया था वह न जाने क्यों उसे छोड़कर चली गई थी।

शाम होते होते वस्तु स्थिति को स्वीकार करने के अलावा सोनू के पास और कोई चारा नहीं था। लाली जी जान से रात की तैयारी कर रही थी सोनू अब अपनी खुशी लाली में ही तलाश रहा था। लाली ने जिस तरीके से सुगना के समक्ष अपनी गलती मानी थी तब से उसकी मन हल्का हो गया था और वह अपनी सहेली सुगना के प्रति दिल से कृतज्ञ थी जिसने उसके वीरान जिंदगी में सोनू जैसा हीरा डालने का वचन दिया था।

लाली ने मन ही मन सोच लिया कि वह सोनू को संभोग के समय सुगना का नाम लेकर और नहीं उकसाएगी…

परंतु रात में जब सोनू और लाली एक दूसरे की प्रेम अग्न बुझा रहे थे बरबस ही सुगना का ध्यान उन दोनों के मनो मस्तिष्क में घूम रहा था। लाली द्वारा सुगना का जिक्र न किए जाने के बावजूद सोनू तो सुगना में ही खोया हुआ था। सोनू के आवेग और वेग में कमी नहीं थी। अपनी सुगना के लिए जितनी वासना सोनू ने अपने तन बदन में समेट रखी थी वह सारी लाली पर उड़ेल कर वह निढाल हो गया।

उधर सुगना अपने परिवार के बीच पहुंच चुकी थी..

सुगना जिस मिशन पर गई थी वह एक दो मुलाकातों में पूरा नहीं होने वाला था परंतु जब सुगना मन बना चुकी थी.. तो उसके लिए कोई भी कार्य दुष्कर न था।

अगले दो तीन महीने यूं ही बीत गए। हर शनिवार सोनू सुगना से मिलने बनारस आता पर कभी सुगना अपने गांव चली जाती कभी अपनी मां या कजरी और सरयू सिंह को बनारस बुला लेती इन दोनों ही परिस्थितियों में सोनू और सुगना का मिलन असंभव था । और सपना के प्यार में कोई कमी न थी। वह सब की उपस्थिति में सोनू से पूर्व की भांति प्यार करती उससे सटती कभी उसके गोद में सर रख देती पर उसे कामुक होने का कोई मौका नहीं देती। कभी-कभी सोनू एकांत में सुगना को बाहर घूमाने की जिद करता परंतु सुगना सोनू को उसे घुमाने का मूल उद्देश्य जानती थी और बड़ी सफाई से बिना उसे आहत किए बच निकलती..

जिस तरह मछली को पानी में पकड़ना मुश्किल होता है वह हांथ तो आती है पर पकड़ में नहीं आती सुगना भी अपने परिवार के बीच सुनहरी मछली जैसी ही थी..

सोनू उसका स्पर्श सुख तो बीच बीच में ले पा रहा था पर उछलती मचलती सुगना उसकी पकड़ से दूर थी..

ऐसा नहीं था कि सुगना ने इस दौरान सोनू को नजरअंदाज कर दिया था बस दूरी बना ली थी यद्यपि बीच-बीच में वह उसमें वासना की तरंगे भरने का काम जरुर कर देती थी।

आखिरकार सुगना अपने घर वालों और लाली के घर वालों को इस अनोखे विवाह के लिए राजी करने में कामयाब हो गई। सर्वसम्मति से यह विवाह आर्य समाज विधि से साधारण रूप से किसी पवित्र मंदिर में किया जाना निश्चित हुआ।

पूरे घर में खुशियों का माहौल था। इस अनूठे रिश्ते से सोनी सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित थी। सोनू और लाली कब मुंह बोले भाई बहन से एक दूसरे के प्रेमी बन गए थे सोनी ने शायद इसकी कल्पना भी ना की थी। परंतु सोनू के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह करने का ना तो सोनी के पास कोई अधिकार था और नहीं कोई जरूरत जब मियां बीबी राजी तो वह बीच में कई काजी की भूमिका अदा नहीं करना चाहती थी।

शुरुवात में सोनू की मां पद्मा का मन थोड़ा दुखी जरूर था परंतु लाली ने पदमा की सेवा कर उसका भी मन जीत लिया था। पूरे परिवार ने आखिरकार मिलकर यह हत्या किया कि यह विवाह सोनी के विवाह के बात करना उचित होगा अन्यथा सोनी के ससुराल वाले इस विवाह पर प्रश्न चिन्ह लगा सकते थे।

सुगना के लिए सोनू की तड़प बढ़ती जा रही थी और अब कमोबेश यही हाल सुगना का भी था इन दो-तीन महीनो में सुगना ने लाली और सोनू को हमेशा के लिए एक करने के लिए भरपूर प्रयास किया था और सफल भी रही थी। उसका कोमल तन बदन सोनू के मजबूत आलिंगन में आने को तड़प रहा था। पर अपने मन पर मजबूत नियंत्रण रखने वाली सुगना अपनी भावनाओं को काबू में किए हुए थी।

आज शुक्रवार का दिन था। लाली अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता से मिलने सलेमपुर गई हुई थी। शायद उसके माता-पिता ने उसके लिए घर पर कोई छोटी पूजा रखी थी जिसमें उसका उपस्थित रहना जरूरी था। सुगना ने लाली को हिदायत दी थी की कैसे भी करके कल शाम तक बनारस आ जाना। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कल सोनू को बनारस आना था और सुगना कतई नहीं चाहती थी कि सोनू बिना लाली की उपस्थिति के बनारस में उसके साथ एक ही छत के नीचे रहे। सुगना अब तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में कामयाब रही थी और सोनू अपनी भावनाओं को काबू में रखने को मजबूर था।

सुगना अपने दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद पूरी तरह खाली थी। आज उसने पूरी तन्मयता से स्नान किया स्नान करते वक्त अपनी छोटी सी बुर के चारों तरफ उग आए काले बालों की झुरमुट को सोनू के पुराने रेजर से साफ किया। इस दौरान न जाने क्यों वह सोनू को याद करती रही ।


सुगना महसूस कर रही थी कि पिछले कुछ महीनो में उसने सोनू को हद से ज्यादा बेचैन कर दिया था पर उसकी नजरों में शायद यही उचित था। बिस्तर पर जब जब सुगना स्वयं उत्तेजना का शिकार होती अपनी जांघों के बीच तकिया फसाकर जौनपुर में सोनू के साथ बिताए पल को याद करती सोनू को याद करते-करते उसकी उंगलियां उसकी बुर को थपकियां देकर सुलाने की कोशिश करती।

कभी वह रहीम और फातिमा की किताब निकाल कर पढ़ती और इसी दौरान न जाने कब सुगना की बुर उसकी जांघों को ऐंठने पर मजबूर कर देती और सुगना तृप्ति का सुखद एहसास लिए नींद में खो जाती। रहीम एवं फातिमा की किताब अब उसके लिए एक अनमोल धरोहर हो चुकी थी जो उसके एकांत और सुख की साथी थी..

सुगना ने तसल्ली से स्नान किया खूबसूरत मैरून कलर की साटिन की नाईटी पहनी …. बालों की सफाई होने के पश्चात उसकी बुर संवेदनशील हो चुकी थी अतः उसने अंतर्वस्त्र पहनने को आवश्यकता नहीं समझी पर एहतियातन अपनी चूचियों को ब्रा सहारा दे दिया। वैसे भी आज कई दिनों वह घर में नितांत अकेली थी और आज दोपहर रहीम और फातिमा की किताब पढ़ते हुए अपने कामोत्तेजना शांत करने वाली थी।

स्नान के बाद ध्यान की बारी थी। अपने इष्ट देव को याद करते हुए सुगना पूजा पाठ में संलग्न हो गई। सुगना ने आरती दिखाई और अपने परिवार की खुशियों को कामना की..इसी बीच उसने लाली और सोनू का भी ध्यान किया और उनके विवाह के लिए मंगल कामना की। इधर सुगना ने अंतरमन ने सोनू को याद कर लिया…उधर

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई.. हाथ में आरती की थाल लिए अपने घर और बरामदे में आरती दिखाते हुए सुगना दरवाजे तक गई और दरवाजा खोल दिया..

सामने सोनू खड़ा था.. सुगना सुगना आश्चर्यचकित थी..पर बेहद खुश थी

“अरे सोनू बाबू आज कैसे? छुट्टी बा का?”

“ना दीदी बनारस में काम रहे…” सुंदर नाइटी में फूल सी खिली सुगना की मादक सुगंध में खोए हुए सोनू ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया..

उसने झुक कर सुगना के चरण छुए… उठते वक्त उसने सुगना के हाथ में पकड़ी आरती की थाल को पूरे आदर और सम्मान से अपनी दोनों हथेलियों से स्वीकार किया और उसे अपने माथे पर लगा लिया।


सुगना खुश भी थी और आश्चर्यचकित भी उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और सर पर रखकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद दिया..नियति मुस्कुरा रही थी सुगना ने अनजाने में उसे स्वयं को समर्पित कर दिया था आखिर इस वक्त सोनू की एकमात्र मनोकामना सुगना स्वयं थी। सुगना वापस पूजा का थाल रखना अपने छोटे से मंदिर में चली गई..

इधर सोनू अपना सामान लाली के कमरे में रख चुका था कमरे की स्थिति यह बता रही थी की लाली अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सलेमपुर जा चुकी थी..

अब तक सोनू को पिछले कुछ महीने से खुद से दूर रख पाने में सफल सुगना आज अचानक ही नियत के खेल में फंस चुकी थी। सोनू की खुशी सातवें आसमान पर थी और अपने इष्ट देव के समक्ष सर झुकाए सुगना का दिल धड़क रहा था…सुगना को स्वयं यह समझ नहीं आ रहा था कि वह ईश्वर से मांगे तो क्या मांगे जो जीवन में उसे सबसे प्यारा था वह उसके समक्ष था.

सोनू मंदिर के दरवाजे पर खड़ा सुगना के बाहर आने का इंतजार कर रहा था..

जैसे ही सुगना अपने पूजा कक्ष से बाहर आई सोनू ने उसे सोनू ने उसे एक झटके में ही अपनी गोद में उठा लिया..सुगना ने अपनी खुशी को नियंत्रित करते हुए पर अपनी मादक मुस्कान बिखरते हुए सोनू से कहा..

“अरे रुक भगवान जी के सामने…”

सोनू ने सुगना को अपनी गोद में लिए हुए अपने घर के मंदिर के सामने लगे परदे को खींचने का अवसर दिया। सुगना ने अपने इष्ट देव को एक बार फिर प्रणाम किया जब तक सुगना अपने ईस्ट से अपने मन की बात कह पाती तब तक सोनू सुगना को अपने गोद में लिए हुए सुगना के कक्ष की तरफ बढ़ चला।

उसकी उंगलियां सुगना के नंगे पेट से सट रही थी वह बीच-बीच में सुगना के पेट को अपनी उंगलियों से गुदगुदा देता। सुगना का अंतर्मन फूल की तरह खिल गया था वह खिलखिला रही थी।

नियति को हंसती खिलखिलाती सुगना एक कामातुर तरुणी की तरह प्रतीत हो रही थी…

नियति सतर्क थी..और सोनू और सुगना के मिलन की प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए आतुर थी…

शेष अगले भाग में.



पहले की ही भांति अगला एपिसोड उन्हीं पाठकों को भेजा जाएगा जिन्होंने कहानी से कमेंट के माध्यम से अपना जुड़ाव दिखाया है..
प्रतीक्षारत
मानवीय भावनाओं की अप्रितम अभिव्यक्ति....
 
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Raj k m

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भाग 100
सुगना अपने मन की अवस्था कतई बताना नहीं चाहती थी। सोनू उसके ख्वाबों खयालों में आकर पिछले कई दिनों से उसे स्खलित करता आ रहा था …

"अच्छा सोनुआ तोर भाई ना होेखित तब?"

"काश कि तोर बात सच होखित"

सुगना में बात समाप्त करने के लिए यह बात कह तो दी परंतु उसके लिए यह शब्द सोनू के कानों तक पहुंच चुके थे और उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा…


सुगना की बात में छुपा हुआ सार सोनू अपने मन मुताबिक समझ चुका था…उसे यह आभास हो रहा था की सुगना के मन में भी उसको लेकर कामूक भावनाएं और ख्याल हैं परंतु वह झूठी मर्यादा के अधीन होकर इस प्रकार के संबंधों से बच रहीं है…नजरअंदाज कर रही है…. सोनू अपने मन में आगे की रणनीति बनाने लगा सुगना को पाना अब उसका लक्ष्य बन चुका था…

अब आगे...

सरयू सिंह के घर पर आज मेला लगा हुआ था बनारस से पूरी पलटन सरयू सिंह के घर आ चुकी थी..

आखिरकार वह दीपावली आ गई जिसका इंतजार सबको था।

सलेमपुर और उसके आसपास के गांव के लोग सरयू सिंह द्वारा आयोजित भंडारे का इंतजार कर रहे थे..

सरयू सिंह पंडित का इंतजार कर रहे थे और पदमा अपनी बेटी मोनी का जो फूल तोड़ने गई थी पर अब तक वापस न लौटी थी..

कजरी सुगना का इंतजार कर रही थी जो अपने कमरे में तैयार हो रही थी…

"अरे सुगना जल्दी चल पंडित जी आवत होइहें तैयारी पूरा करे के बा…."

सुगना इंतजार कर रही थी लाली का जिसे आकर सुगना के पैरों में आलता लगाना था…

सोनी इंतजार कर रही थी विकास का जो अब तक बनारस से सलेमपुर नहीं पहुंचा था…

और सोनू को इंतजार था अपनी ख्वाबों खयालों की मल्लिका बन चुकी सुगना का…जो अपनी कोठरी में तैयार हो रही थी..

आखिरकार सुगना का इंतजार खत्म हुआ लाली उसके कमरे में गई और सुगना को तैयार होने में मदद की और कुछ ही समय पश्चात सजी-धजी सुगना अपनी कोठरी से बाहर आ गई…

सुगना ने एक बेहद ही खूबसूरत गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी जिसमें उसका मदमस्त बदन और सुडौल काया दिखाई पड़ रही थी…

सजी-धजी सुगना को सामने देख सोनू उसे देखता ही रह गया..

सुगना धीरे-धीरे सोनू के पास आ गई और उसने उसके गाल पर लगे तिनके को हटाते हुए कहा

"एसडीएम साहब चलअ पूजा में बैठे के तैयारी कर…" सुगना ने जिस अल्हड़पन से सोनू के गाल छुए थे वह सोनू को अंदर तक गुदगुदा गया उसे अपनी बड़ी बहन सुगना एक अल्हड़ और मदमस्त युवती प्रतीत होने लगी।


धीरे धीरे सबका इंतजार खत्म हुआ…

पंडित आ चुका था और सरयू सिंह एक बार फिर उत्साहित थे पूजा की तैयारियां होने लगी… सोनू के लिए आज विशेष पूजन का कार्यक्रम रखा गया था सुगना के आने के बाद सोनू हंसी खुशी पंडित के सामने बैठ गया और पूजा की विधियों में भाग लेने लगा।


सुगना कभी उसके दाएं बैठती कभी बाएं और अपने भाई की मदद करती। जब जब दूर खड़ी नियति सुगना और सोनू को एक साथ देखती वो अपना तना बाना बुनने लगती…

सरयू सिंह अपनी सुगना और सोनू को साथ देखकर प्रसन्न थे। सोनू जिस तरह से अपनी बहन का ख्याल रखता था सरयू सिंह को यह बात बेहद पसंद आती थी। सोनू की सफलता ने निश्चित ही सबका दिल जीत लिया था विशेषकर सरयू सिंह का। भाई और बहन का यह प्यार देख सरयू सिंह हमेशा प्रसन्न रहते । उनके मन में हमेशा यही भावना आती कि कालांतर में उनके जाने के पश्चात भी सुगना का खैर ख्याल रखने वाला कोई तो था जो उससे बेहद प्यार करता था। परंतु सरयू सिंह को क्या पता था कि भाई बहन का प्यार अब एक नया रूप ले चुका था।

पंडित जी ने मंत्रोच्चार शुरू कर दिए… कृत्रिम ध्वनि यंत्रों से आवाजें चारों तरफ गूंजने लगी। गांव वालों का भी इंतजार खत्म हुआ वह अपने घर से निकल निकल कर सरयू सिंह के दरवाजे पर इकट्ठा होने लगे।


सोनी का इंतजार भी खत्म हुआ। विकास अपनी फटफटिया पर बैठ अपनी महबूबा और पत्नी सोनी के लिए बनारस से आ चुका था.. सोनी घर के आंगन से दरवाजे की ओट लेकर बार-बार विकास को देख रही थी परंतु विकास अभी पुरुष समाज में सबसे मिल रहा था विदेश जाने का असर उसके शरीर और चेहरे पर दिखाई पड़ रहा था सजा धजा विकास एक अलग ही शख्सियत का मालिक बन चुका था सरयू सिंह… विकास और सोनू की तुलना करने से बाझ न आते।

दोनों अपनी अपनी जगह सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे थे एक तरफ सोनू जिसने अपनी लगन और मेहनत से यह मुकाम हासिल किया था दूसरी तरफ विकास जिसे उसके माता-पिता ने पढ़ने विदेश भेज दिया था जहां से उसकी सफलता की राह भी आसान हो गई थी।

मौका देख कर सोनी आगन से बाहर आई और धीरे धीरे दालान के पीछे बने बगीचे की तरफ चली गई विकास ने सोनी को जाते देख लिया और उसके पीछे चल पड़ा।


विकास और सोनी नीम के पेड़ की ओट में एक दूसरे के आलिंगन में आ गए थे कई महीनों बाद यह मिलन बेहद सुकून देने वाला था …परंतु कुछ ही पलों में वह वासना के गिरफ्त में आ गया । विकास ने सोनी के गदराए नितंबों को अपने हथेलियों से सहलाते उसने उन्हें उत्तेजक तरीके से दबा दिया सोनी उसका इशारा बखूबी समझ चुकी थी उसने विकास के कानों में धीरे से कहा "अभी ना रात में…_

"अच्छा बस एक बार छुआ द"

विकास सोनी की बुर पर हाथ फेरना चाहता था परंतु सोनी शर्मा रही थी। विकास के आलिंगन में आकर वह पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी और बुर के होठों पर काम रस छलक आया था।


ऐसी अवस्था में वह विकास की उंगलियों के अपनी बुर तक आने से रोकना चाह रही थी परंतु विकास की इस इच्छा को रोक पाना उसके बस में ना था ।

विकास ने उसके होंठों को चूमते हुए अपनी हथेलियां उसकी बुर तक पहुंचा दी और अपनी मध्यमा से बुर के होठों की लंबाई नापते हुए उन्हें सोनी के काम रस से भिगो लिया …उसने मध्यमा उंगली से बुर की गहराई नापने की कोशिश की परंतु सोनी ने उसका हाथ खींच कर बाहर निकाल दिया… और बोला

" अभी पूजा पाठ के टाइम बा पूजा में मन लगाइए ई कुल रात में…"

सोनी ने बड़ी अदा से विकास से दूरी बनाई और बलखाती हुई एक बार फिर पूजा स्थल की तरफ बढ़ गई। विकास की कामुक नजरें सोनी की बलखाती मादक कमर पर टिकी हुई थी। उसे रात्रि का इंतजार था वह अपने मन में रात्रि में सुखद मिलन की कामना लिए पूजा स्थल की तरफ चल पड़ा..

उधर मोनी घर के पीछे बनी बाड़ी में फूल लेने गई थी उसने कुछ फूल तोड़े परंतु तभी उसे बहुत जोर की सूसू लग गई घर में भीड़-भाड़ थी उसे पता था गुसलखाना खाली न होगा उसने हिम्मत जुटाई और बाग के एक कोने में बैठ कर मूत्र विसर्जन करने लगी। उसी समय पंडित जी का एक सहयोगी पूजा में प्रयुक्त होने वाली कोई विशेष घास लेने उसी बाग में आ पहुंचा।

मोनी ने उसे देख लिया उठ कर खड़ा हो जाना चाहती थी पर मूत्र की धार को रोक पाना उसके वश में न था उसने अपने लहंगे से अपने नितंबों और पैरों को पूरी तरह ढक लिया और मूत्र की धार को संतुलित करते हुए मूत्र विसर्जन करने लगी…वह अपने हाथों से आसपास पड़ी घास को छू रही थी…अल्हड़ मोनी खुद को संयमित किए हुए यह जताना चाह रही थी कि जैसे उसने उस व्यक्ति को देखा ही ना हो।

पंडित जी का शिष्य दर्जे का हरामी था…अनजान बनते हुए मोनी के पास आ गया…और बोला..

" एहीजा बैठ के आराम करत बाडू जा सब केहू फूल के राह दिखाता "

मोनी सकपका गई वह कुछ कह पाने की स्थिति में न थी.. मोनी की पेंटी घुटनों पर फंसी हुई थी और कोरे और गुलाबी नितंब अनावृत थे…यद्यपि यद्यपि मोनी के लहंगे ने उसके अंगों को ढक रखा था परंतु मोनी को अपनी नग्नता का एहसास बखूबी हो रहा था।

मोनी ने उसे झिड़का

"जो अपन काम कर हम का करतानी तोरा उसे का मतलब?"

वह लड़का वहां से कुछ दूर हट तो गया परंतु वहां से गया नहीं उसने अंदाज लिया था की मोनी क्या कर रही है..

अचानक मोनी द्वारा अपनी उंगलियों से उखाड़ ली जा रही घास में से एक पतला परंतु लंबा कीड़ा निकलकर मोनी के लहंगे की तरफ आया गांव में उसे किसी अन्य नाम से जाना जाता होगा परंतु वह सांप न था।

मोनी हड़बड़ा गई और अचानक उठने की कोशिश में वह लड़खड़ा गिर पड़ी…और मोनी के नितंबों की जगह कमर ने धरती का सहारा लिया और मोनी के पैर हवा में हो गए…घुटनों पर फंसी लाल चड्डी गोरे गोरे जांघों के संग दिखाई पड़ने लगी..

वह लड़का वह लड़का मोनी के पास आया और इससे पहले कि वह सहारा देकर मोनी को उठाता उसने मोनी के खजाने को देख लिया बेहद खूबसूरत और हल्की रोएंदार बुर के गुलाबी होंठ को देखकर वह मदहोश हो गया…गुलाबी होठों पर मूत्र की बूंदे चमक रही थी…


वासना घृणा को खत्म कर देती है अति कामुक व्यक्ति वासना के अधीन होकर ऐसे ऐसे कृत्य करते हैं जो शायद बिना वासना के कतई संभव नहीं हो सकते।

उस व्यक्ति की जीभ लपलपाने लगी यदि मोनी उसे मौका देती तो वह मोनी के बुर के होठों पर सीप के मोतियों की तरह चमक रही मूत्र की बूंदों को अपनी जिह्वा से चाट चाट कर साफ़ कर देता…

उस युवक के होंठो पर लार और लंड पर धार आ गई..

उसने मोनी को उठाया…. मोनी उठ खड़ी हुई और अपने हाथों से अपनी लाल चड्डी को सरकाकर अपने खजाने को ढक लिया…

और बोली …

"पूजा-पाठ छोड़कर एही कुल में मन लगाव …..भगवान तोहरा के दंड दीहे…" मोनी यह कह कर जाने लगी।

लड़का भी ढीठ था उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"भगवान त हमरा के फल दे देले …हमरा जवन चाहिं ओकर दर्शन हो गइल…"

मोनी ने उसे पलट कर घूर कर देखा और अपनी हथेलियां दिखाकर उसे चांटा मारने का इशारा किया…और अपने नितंब लहराते हुए वापस चली गई।

उसने तोड़े हुए फूल धोए वापस आकर पूजा में सुगना का हाथ बटाने लगी..

धीरे धीरे पंडित जी के मंत्र गति पकड़ते गए और सुगना सोनू के बगल में बैठ अपने हाथ जोड़े अपने इष्ट से उसकी खुशियां मांगती रही और उधर सोनू अपने भगवान से सुगना को मांग रहा था…

पूजा में बैठे परिवार के बाकी सदस्य कजरी पदमा सोनू की खुशियों के लिए कामना कर रहे थे दूर बैठे सरयू सिंह सुगना के चेहरे को देखते और उसके चेहरे पर उत्साह देखकर खुश हो जाते सोनू की सफलता ने सुगना के जीवन में भी खुशियां ला दी थी…

पूजा पाठ खत्म हुआ और सोनू ने सबसे पहले अपनी मां के चरण छुए फिर सरयू सिंह के फिर कजरी के परंतु आज वह सुगना के चरण छूने में हिचकिचा रहा था…न जाने उसके मन में क्या चल रहा था परंतु सोनू सुगना के चरण छुए बिना वहां से हट जाए यह संभव न था पद्मा ने सोनू से कहा

"अरे जवन तोहरा के ए लायक बनावले बिया ओकर पैर ना छुवाला…"


सोनू के मन में चल रहा द्वंद्व एक ही पल मैं निष्कर्ष पर आ गया उसने सुगना के पैर छुए और गोरे गोरे पैरों पर आलता लगे देख एक बार उसका शरीर फिर सिहर गया..

इस समय वासना मुक्त सुगना ने सोनू के माथे पर हाथ फेरा और बोला

"भगवान तोहरा के हमेशा खुश राखस और तोहार सब इच्छा पूरा करस और आगे बड़का कलेक्टर बनावस " सुगना की आंखों में खुशी के आंसू थे भावनाएं उफान पर थी और एक बड़ी बहन अपने छोटे भाई के लिए उसकी खुशियों की कामना कर रही थी। सुगना की मनोस्थिति देखकर नियति का मन भी द्रवित हो रहा था परंतु विधाता ने जो सुगना के भाग्य में लिखा था वह होना था।

सोनू घूम घूम कर सभी बड़े बुजुर्गों के चरण छूने लगा और सब से आशीर्वाद प्राप्त करता गया सब जैसे उसे खुश होने का ही आशीर्वाद दे रहे थे और सोनू की सारी खुशियां सुगना अपने घागरे में लिए घूम रही थी…

यदि ऊपर वाले की निगाहों में दुआओं का कोई भी मोल होता तो विधाता को सोनू की खुशियां पूरी करने के लिए मजबूर हो जाना पड़ता…

परंतु सोनू जो मांग रहा था वह पाप था। अपनी ही बड़ी बहन से संबंध बनाने की सोनू की मांग अनुचित थी परंतु दुआओं का जोर विधाता को मजबूर कर रहा था..

बाहर अचानक हलचल तेज हो गई और गांव वालों की भीड़ पंक्तिबध होकर भोज का आनंद लेने के लिए जमीन पर बैठ गई…

सोनू ने आज दुआ बटोरने में कोई कमी ना रखी थी वह एक बार फिर गांव वालों को अपने हाथों से भोजन परोसने लगा एक एसडीएम द्वारा अपने गांव वालों को अपने हाथों से भोजन कराते देख सब लोग सोनू की सहृदयता के कायल हो गए और उन्होंने उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया।


दुआओं में बहुत ताकत होती है यदि आप अपने व्यवहार और कर्मों से किसी की दुआ में स्थान पाते हैं तो समझिए की विधाता ने आपको निश्चित ही खास बनाया है…

सोनू की खुशियों को पूरा करने के लिए विधाता भी मजबूर थे और नियति भी सोनू और सुगना का मिलन अब नियति की प्राथमिकता बन चुकी थी।

परंतु सुगना कभी सोच भी नहीं सकती थी कि सोनू पूजा जैसे पवित्र कार्य के पश्चात भी भगवान से वरदान के रूप में उससे अंतरंगता मांगेगा । वह यह बात अवश्य जानती थी की सोनू के मन में उसे लेकर कामुकता भरी हुई है और हो सकता है उसने अपनी वासना जन्य सोच को लेकर अपने ख्वाबों खयालों में उसके कामुक बदन को याद किया हो जैसे वह स्वयं किया करती थी परंतु अपनी ही बड़ी बहन से संभोग ….. छी छी सोनू इतना गिरा हुआ नहीं हो सकता परंतु जब जब उसे वह ट्रेन की घटना याद आती है घबरा जाती।

खैर जिसे सोनू के लिए दुआ मांगनी थी उसने दुआ मांगी जिसे आशीर्वाद देना था उसने आशीर्वाद दिया और अब सोनू अपने परिवार के साथ बैठकर भोजन का आनंद ले रहा था आंगन में सरयू सिंह, उनका साथी हरिया, सोनू और विकास एक साथ बैठे थे…सूरज भी अपने पिता सरयू सिंह की गोद में बैठा हुआ था …बाकी सारे पहले ही खाना खा चुके थे .

सुगना खाना परोस रही थी और सोनू बार-बार सुगना को देख मदहोश हो रहा था वह साड़ी के पीछे छुपी छुपी सुगना की गोरी जांघें ब्लाउज के अंदर की भरी भरी चूचियां चिकना पेट और गदराई हुई कमर…

सोनू की भूख और प्यास मिट गई थी उसे सिर्फ और सिर्फ सुगना चाहिए थी पर कैसे,? उसने मन ही मन यह सोच लिया कि वह यहां से जाने के बाद बनारस में उससे और भी नजदीकियां बढ़ आएगा और खुलकर अपने प्यार का इजहार कर देगा…उसे यकीन था कि जब उसकी सुगना दीदी यह सुनेगी कि वह उसकी सगी बहन नहीं है तो निश्चित ही उसका भी प्रतिरोध धीमा पड़ेगा और मिलन के रास्ते आसान हो जाएंगे जाएंगे…

सोनू का एकमात्र सहारा उसकी लाली दीदी भी सज धज कर खाना परोस रही थी …सोनू को पता था चाहे वह अपनी वासना को किसी भी मुकाम पर ले जाए उसका अंत लाली की जांघों के बीच ही होना था।

घर की सभी महिलाएं और पुरुष अपने अपने निर्धारित स्थानों पर आराम करने चले गए करने और विकास और सोनू अगल-बगल लेटे हुए अपने अपने मन में आज रात की रणनीति बनाने लगे…


सोनू लाली से प्रेम युद्ध की तैयारियां करने लगा…और विकास अपनी पत्नी को बाहों में लेकर उसे चोदने की तैयारी करने लगा…

उधर लाली का सुगना को छेड़ना जारी था…जब-जब सुगना और लाली एकांत में होती लाली बरबस ही वही बात छोड़ देती। सोनू की मर्दानगी की तुलना सभी पुरषो से की जाती और सोनू निश्चित ही भारी पड़ता…सुगना चाह कर भी सरयू सिंह को इस तुलना में शामिल न कर पाती….और बातचीत का अंत हर बार एक ही शब्द पर जाकर खत्म होता काश …सोनू सुगना का भाई ना होता…


सोनू यह बात सुगना के मुख से भी सुन चुका था कि "काश वह उसका भाई ना होता…" और यही बात उसकी उम्मीदों को बल दिए हुए थी…

दिन का दौर खत्म हुआ सुनहरी शाम आ चुकी थी आ चुकी थी शाम को रोशन करने के लिए दीपावली की पूजा के लिए तैयारियां फिर शुरू हो गई..

एक बार फिर सुगना और लाली तैयार होने लगीं सोनू द्वारा अपनी दोनों बड़ी बहनों के लिए लाया गया लहंगा चोली एक से बढ़कर एक था सुगना और लाली दोनों अतिसुंदर वस्त्रों के आवरण में आकर और भी खूबसूरत हो गई ..

सोनू अब तक अपने दोनों बहनों के लिए कई वस्त्र खरीद चुका था उसे अब पूरी तरह स्त्रियों के वस्त्रों की समझ आ चुकी थी चूचियों के साइज के बारे में भी उसका ज्ञान बढ़ चुका था और चूचियों के बीच गहरी घाटी कितनी दिखाई पड़े और कितनी छुपाई जाए इसका भी ज्ञान सोनू को प्राप्त हो चुका था।

आज आज सुगना और लाली ने जो ब्लाउज पहना था वह शायद सोनू ने विशेष रूप से ही बनवाया था गोरी चूचियों के बीच की घाटी खुलकर दिखाई पड़ रही यदि उन पर से दुपट्टे का आवरण हट जाता तो वह निश्चित ही पुरुषों का ध्यान खींचती।

सुगना ने नाराज होते हुए कहा

"लाली ते पगला गईल बाड़े …सोनुआ से ई सब कपड़ा मांगावेले…. हम ना पहनब …. सीधा-साधा पाके ते ओकरा के बिगाड़ देले बाड़े अइसन चूची दिखावे वाला कपड़ा हम ना पहनब…

निराली थी सुगना…. आज भी वह अपने ही भाई का पक्ष ले रही थी…. लाली ने कुछ सोचा और कहा

"देख बड़ा साध से ले आईल बा…ना पहिनबे त उदास हो जाई"


लाली मन ही मुस्कुरा रही थी और सुगना शर्मा रही थी आखरी समय पर पूर्व निर्धारित वस्त्र की जगह अन्य वस्त्र पहनने का निर्णय करना कठिन था …आखिरकार सुगना और लाली ने सोनू के द्वारा लाए हुए लहंगा और चोली को अपने शरीर पर धारण किया और एक दूसरे को देख कर अपनी खूबसूरती का अंदाजा लगा लिया उस दौरान आदम कद आईने सुगना के घर में बनारस में तो उपलब्ध थे पर सलेमपुर में नहीं…

सुगना अपनी सुंदरता को लेकर आज भी सचेत थी अपने वस्त्रों को दुरुस्त कर उसने लाली से पूछा

" देख ठीक लागत बानू?"

"हमरा से का पुछत बाड़े जाकर सोनुआ से पूछ ले .. अपना दीदी खातिर ले आईल बा और तनी झलका भी दीहे….(अपनी चूचियां झलकाते हुए) हमरा राती में ढेर मेहनत ना करें के परी "

सुगना लाली को मारने दौड़ी पर अब तक सोनी कमरे में आ चुकी थी थी। दोनों सहेलियों की हंसी ठिठोली पर विराम लग गया…

तीन सजी-धजी युवतियां एक से बढ़कर एक…. नियति मंत्रमुग्ध होकर उनकी खूबसूरती का आनंद ले रही थी।

स्त्रियों की उम्र उनकी कामुकता को एक नया रूप देती है जहां सोनी एक नई नवेली जवान हुई थी थी वहीं सुगना और लाली यौवन की पराकाष्ठा पर थीं । लाली और सुगना ने वासना और भोग के कई रुप देखे थे और परिपक्वता उनके चेहरे पर स्पष्ट झलकती थी परंतु सोनी ने अभी इस क्षेत्र में कदम ही रखा था पर प्रतिभा उसमें भी कूट-कूट कर भरी थी बस निखारने में वक्त का इंतजार था..

कुछ ही देर में दीपावली पूजा का कार्यक्रम संपन्न हुआ और सरयू सिंह का आगन और घर कई सारे दीयों से जगमगा गया… परिवार के छोटे बड़े सभी दिया जलाने में व्यस्त थे और युवा सदस्य अपने मन में उम्मीदों का दिया जलाए एक दूसरे के पीछे घूम रहे थे…

सरयू सिंह सुगना को देखकर कभी अपने पुराने दिनों में खो जाते उनका दिमाग उन्हें कचोटने लगता। यही दीपावली के दिन उन्होंने पहली बार अपनी पुत्री के साथ संभोग करने का पाप किया था। मन में मलाल लिए वह ईश्वर से अनजाने में किए गए इस कृत्य के लिए क्षमा मांगते। परंतु उनका लंड रह-रहकर हरकत में आ जाता.. उसे न तो पाप से मतलब था न पुण्य से..सुगना नाम से जैसे उनके शरीर में रक्त संचार बढ़ जाता।

पटाखे सुख और समृद्धि का प्रतीक होते हैं सोनू ने भी अपनी नई क्षमता और ओहदे के अनुसार बनारस से ढेर सारे पटाखे खरीदे थे। उनमें से कुछ पटाखे तो ऐसे थे जो शायद सुगना, लाली और सोनी ने कभी नहीं देखे थे सोनू ने सभी को उनकी काबिलियत के अनुसार पटाखे दे दिए और सब अपने-अपने पटाखों के साथ मशगूल हो गए सोनी और विकास के साथ पटाखे छोड़ने में उनकी मदद कर रहे थे और विकास रह-रहकर सोनी से नजदीकियां बढ़ाने की होने की कोशिश कर रहा था…

सरयू सिंह अब सोनी पर ध्यान लगाए हुए थे उसका बाहरी लड़के विकास से मेल मिलाप उन्हें रास नहीं आ रहा था सोनू का दोस्त होने के कारण वह विकास को कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे परंतु मन में एक घुटन सी हो रही थी..

इधर सुगना अनार जलाने जा रही थी वह बार-बार प्रयास करती परंतु डर कर भाग आती पटाखों से डरना स्वाभाविक था अनार कई बार जलाते समय फूट जाता है यह बात सुगना भली-भांति जानती थी…

जमीन पर रखे अनार को चलाते समय सुगना पूरी तरह झुक जाती और लहंगे के पीछे छुपे उसके नितंब और कामुक रूप में अपने सोनू की निगाहों के सामने आ जाते जो पीछे खड़ा अपनी बड़ी बहन सुगना को अनार जलाते हुए देख रहा था..

अपनी बड़ी बहन के नितंबों के बीच न जाने क्या खोजती हुई सोनू की आंखें लाली ने पढ़ ली वह सोनू के पास गई और थोड़ा ऊंची आवाज में ही बोली

"अरे तनी सुगना के मदद कर द"

लाली की आवाज सबने सुनी और सोनू को बरबस सुगना की मदद के लिए जाना पड़ा वह सुगना के पास गया और उसी तरह झुक कर सुगना के हाथ पकड़ कर उससे अनार जलवाने लगा सोनू और सुगना की जोड़ी देखने लायक थी अपने शौर्य और ऐश्वर्य से भरा हुआ युवा सोनू और अपनी अद्भुत और अविश्वसनीय सुंदरता लिए हुए सुगना…. नियति एक बार फिर सुगना और सोनू को साथ देख रही थी।

अनार के जलते ही सुगना ने एक बार फिर भागने की कोशिश की और उठ का खड़े हो चुके सोनू से लिपट गई सोनू ने उसका चेहरा. अपने हाथों से पकड़ा और उससे जलते हुए अनार की तरफ कर दिखाते हुए बोला

"दीदी देख त कितना सुंदर लगता"

सुगना जलते हुए अनार की तरफ देखने लगी रोशनी में उसका चेहरा और दगमगाने लगा। युवा सुगना का बचपन उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। पटाखे जलाते समय स्वाभाविक रूप से उम्र कुछ कम हो जाती है। सोनू को सुगना एक अबोध किशोरी की तरह दिखाई पड़ने लगी और उसका प्यार एक बार फिर उमड़ आया।

मोनी अब भी अपनी मां पदमा और कजरी के साथ खानपान की तैयारी कर रही थी उसे न तो पटाखों का शौक था और न ही उसका मन ऐसे त्योहारों से हर्षित होता…पर आज बाड़ी में जो उसके साथ हुआ उसने गलती से ही सही परंतु वह पहली बार उसके लहंगे में छुपा खजाना किसी पुरुष की निगाहों में आया था…मोनी को रह-रहकर व दृश्य याद आ रहे थे…

भोजन के उपरांत अब बारी सोने की थी…सोनू पुरुषों की सोने की व्यवस्था देख रहा था और लाली महिलाओं की। लाली और सरयू सिंह का घर इस विशेष आयोजन के लिए लगभग एक हो चुका था….

नियति ने भी सोनू की मिली सब की दुआओं और आशीर्वाद की लाज रखने की ठान ली….पर सुगना अपने ही भाई से संभोग के लिए कैसे राजी होगी यह यक्ष प्रश्न कायम था…

शेष अगले भाग में….

प्रिय पाठको मैंने इस 100 वें एपिसोड को आप सबके लिए बेहद खास बनाने की कोशिश की थी परंतु चाह कर भी मैं उसे इस अपडेट में पूरा नहीं कर पाया दरअसल बिना कथानक और परिस्थितियों के सोनू और सुगना का मिलन करा पाना मेरे बस में नहीं है। और वह अब तक लिखी गई कहानी और सुगना के व्यक्तित्व के साथ अन्याय होगा….

जो 100 वे एपिसोड में होना था वह 101 वे एपिसोड में होगा…और यह उन्ही पाठकों के लिए DM के रूप में उपलब्ध होगा जिन्होंने अपनी प्रतिक्रिया देकर अपना जुड़ाव दिखाया है…


आप सब को इंतजार कराने के लिए खेद है।
 
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Lovely Anand

Love is life
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धन्यवाद मित्र...
आपके द्वारा भेजे गए एपिसोड ९०, ९१, १०१ व् १०२ प्राप्त हुए...
एक शानदार और उत्कृष्ट कृति के बचे हुए भागों को पढ़ने पर एक नया रस मिला...
आपका एपिसोड १३१ सोनू और सुगना के प्यार भरे संबंधों को गहराई से अभिभूत करता है..
बचे हुए १०९ और १२० की प्रतीक्षा में...
Thanks... aapko kahani pasand aayi.
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मानवीय भावनाओं की अप्रितम अभिव्यक्ति....
Thanks
Bahut hi shandar update hai
Thanks
Nice update par apne 101 102 update kab bhejoge
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