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Hmmm so to haiThodi kathinayi to ho rhi hai padhne me
Kab story past me jati hai kab present me rahti hai kab kisse bat ho rhi sare mix ho ja rhe hai dubara tibara padhna par rha hai jisse samjh aaye back jake kuch kuch chizon ko dekhna par rha hai kya ho rha hai
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बहुत बहुत धन्यवाद भाईshandaar kahani bhai ..agle update ka beasbri se intezaar
चेक बॉक्स या फिर पोल क्रियेशनराईटर रिवियू के लिये ज्यादा उत्सुक होते है। इसके लिये मेरा सुझाव है कि हर कहानी की पोस्ट पर अपडेट नंबर, पेज या पोस्ट नंबर दे कर उसके आगे तीन चार वोटिंग के चेक बाक्स बना दे.
(अच्छी है, साधारण है, बेकार है, अपडेट दो) और वोटो की संख्या दर्शाये। कम से कम राईटर को पता लगेगा कि उसकी कहानी लोग पसंद भी कर रहे है या नहीं। बाकी पाठक कोई टिप्पणी करना चाहे वो अलग से करता रहे...
वोटिंग पोस्ट हर पेज के टॉप पर हो ताकि पाठको को वोट देने के लिये. कहीं और ना जाना पडे.. और उसी पेज पर पाठको को सारे अपडेट्स की जानकारी भी मिल जाया करेगी।
बहुत ही रोचक अपडेट मित्र हां थोड़ा सावधानी से पढ़ना पड़ता है ताकि कहानी कहां चल रही है उसमें कोई असमंजस ना हो जाए, अम्मी की कामुकता देख मन खुश हो रहा है और लंड कड़क,UPDATE 004
तोहफा
अजीब सी उलझन थी , रियर मिरर में वो मुझे लगातार निहारे जा रही थी और मेरे कंधे पर रखे हुए उसके हाथ भीतर से मुझे सिहरा दे रहे थे ,
तभी मेरी नजर आगे के स्पीड ब्रेकर पर गई और मैने एकदम से स्पीड जीरो कर दी और बहुत ही आराम से पैर लगा कर ब्रेकर क्रॉस किया मगर वो चतुर नार बड़ी ही होशियार । घिसक आई मेरे पीछे और मैं भी आगे टंकी तक तक , अभी भी उसके सूट का उभार मेरे पीठ में गुदगुदी पैदा कर रहा था
: रोकना (मैने ब्रेक लगा कर बाइक साइड की और उसने गुस्से से मुझे घूरा )
: तुम जाओ मैं चली जाऊंगी रिक्शा करके ( मुंह फेर पर बोली अलीना बोली )
: क्या हुआ ( मेरी एकदम से फटी )
: कुछ नही हुआ तुम जाओ
: अच्छा सॉरी बाबा , बैठ जाओ
: इतना ही अजीब लगता है मेरे साथ तो आए क्यू लिवा कर ( वो भुनभुनाते हुए बाइक पर बैठ गई , रियर मिरर के उसका गुस्से से गुलाबी होता चेहरा साफ दिख रहा था
मैंने अपनी जगह बनाई और वो लगभग मेरे से चिपक सी ही गई इस बार
: चलो लेट हो जाएगा
: ऑटो से नही लेट होता ( मै बुदबुदाया )
हम शहर में घुस चुके थे और जल्द ही अगला स्पीड ब्रेकर वो भी बड़ा
: अगर स्लो हुए तो देखना ( वो रियर मिरर में मुझे ही घूरते हुए भुनभुनाई )
मै हंसता हुआ तेजी से स्पीड ब्रेकर पर चढ़ा दिया ।
: अरे अरे अरे गिराएगा क्या मुझे , देख कर चला ना ( अम्मी ने मेरे कंधे और बाइक की पिछली कैरियर को कस कर पकड़े हुए स्पीड ब्रेकर पर उछलती हुई बोली ।
: कुछ नही होगा मुझे कस कर पकड़ लो अम्मी ( मैने रियर मियर में अम्मी को देख कर मुस्कुराया )
: धत्त बदमाश कही का , सही से चल ( अम्मी मेरे कंधे पर हल्की चपेड़ लगा कर लजाइ और मिरर में उसकी नजरो ने उनकी भावनाएं मुझसे कह दी )
: क्या अम्मी यहां अब आपको कौन पहचानेगा , चांस मार लो ना ( मेरा इशारा बुर्खे में पर्दानसिन हुए उनकी पहचान की ओर था )
: हा जैसे तु बड़ा हैंडसम है जो चांस मार लू, गाड़ी रोक आ गए हम लोग (अम्मी ने बुरखे के भीतर से मुझे हड़काया , जैसे मैं डर ही जाऊंगा
मैंने गाड़ी रोकी और वो मुस्कुराते हुए उतरी , अभी भी उसके 32 साइज के गोल मटोल पाव का गुलगुला स्पर्श मुझे मेरी पीठ पर महसूस हो रहा था ।
: कही जाना मत बस 2 घंटे लगेंगे मुझे ( पूरा हक जताते हुए वो सुरमई आंखो वाली बोली )
: जी , और कुछ सेवा मैम
: आकर बताती हुं
और वो किसी चिड़िया की तरह फुरर से गायब हो गई एग्जाम सेंटर की भीड़ में ।
जब किसी का इंतजार हो या फिर अम्मी के साथ शॉपिंग करनी हो , घड़ी की सुइयां मानो रेंगने लगती हो ।
: अम्मी और कितनी देर कबसे घुमा रही हो , पैर दुख रहे है मेरे ( मै उनके पीछे चलता हुआ बोला और वो तेजी से अपने कूल्हे मटकाते हुए दूसरे सेकसन में घुस गई )
: अम्मी ये सब तो मिलता है ना काजीपुर में , फिर इतनी क्यू खरीद रही हो
: तू चुप कर , यहां माल में चीजे सस्ती है समझा और ऑफर भी चल रहा है
: अम्मी कुछ खा ले फिर ( मै एकदम से एक जगह ठहर गया और मुंह बना कर उनको देखा )
वो मुझे मुस्कुराई और हम एक अच्छे से resturant में चले गए
: हम्मम ये लो और बताओ क्या खाना है
: तुम अपनी पसंद से कुछ भी खिला दो ( एक फिर अलीना ने अपनी मतवाली आंखे से मेरी आंखो में निहारते हुए बोली )
: जहर चलेगी ( मैने मुंह बनाया )
: हम्मम खिला दो अपने हाथ से वो भी खा लूंगी ( वो थोड़ा उखड़ कर बोली )
: अब मुंह न बनाओ , बताओ क्या खाना है ?
फिर उसने ऑडर किया और हम खा कर निकल गए घर के लिए उसने मुझे आगे चौक कर एक कास्मेटिक दुकान पर रोकने को कहा ।
हम वहा पहुंचे और उस वक्त दुकान में हम दोनो ही थे , एक लेडीज ने उससे पूछा क्या चाहिए
: मुझे अंडरगारमेंट्स चाहिए थे
: साइज ( उस महिला दुकानदार ने पूछा )
: 40 और नीचे वाला 48 में ( अम्मी ने मुझसे नज़रे चुराते हुए उससे बोली )
मेरा गला सूखने लगा अम्मी के गदराए जिस्म का साइज सुन कर , लंड खुद से ही अकड़ने लगा ।
: इसको नाप सकती हूं ( अम्मी ने उस महिला दुकानदार से पूछा तो वो औरत उसे एक केबिन नूमा कमरे में ले गई और खुद बाहर आ गई )
: शानू इधर आना बेटा (अम्मी की आवाज आई)
मै लपक कर उस केबिन के पास पहुंचा मेरी नजरें नीचे ही थी जब अम्मी ने दरवाजा खोला और उनका हाथ बाहर आया , साथ में झूलता हुआ वो कटोरेदार ब्रा : बेटा उनको बोल दे कि 40DD दे दे
अब अम्मी की के चूचों के पहाड़ जैसे उभार की कल्पनाएं उठने लगी थी , मन में छवि सी उठने लगी कि भीतर अम्मी बिना ब्रा के खड़ी होगी । मगर मेरी किस्मत तो देखो खुला दरवाजा पाकर भी मैं झाक कर देख नही सकता था , लंड एकदम से फौलादी हो गया था , पेंट में एडजेस्ट करता तो काउंटर पर बैठी वो महिला मुझे देख लेती ।
मैं बिना को हरकत के दुकान में आया और उस महिला से बात की फिर उसने साइज बदल कर दिया , इधर कुछ ग्राहक आ गए और वो बिजी हो गई
मै दूसरी ब्रा लेकर उस चेंजिंग रूम के पास पहुंचा और हाथ दरवाजे से घुसा कर ब्रा भीतर करता हू : हम्मम ये ट्राई करो
और अगले ही पल उसने मुझे भीतर खींच लिया
: क्यू भागते हो मुझसे ( मेरे जिस्म से ऐसे लिपट गई थी जैसे पेड़ो से बेल, उसकी आंखे मुझे मदहोश कर रही थी , दिल जैसे स्लो मोशन में रूक रूक कर पूरी शिद्दत से धकड़ने लगा और वही उसके नायाब कसे हुए तीर के जैसे नुकीले भूरे दाने वाले निप्पल शर्त फाड़ कर मेरी छाती को कोंच रहे थे ।
उसकी आंखे उसके इरादे बयां कर रहे थे मानो कह रहे हो कि आज तेरे दिल में अपने जोबनो से छेद कर रास्ता बनाऊंगी ।
एक गुदगुदाहट सी थी मेरे पेट में शायद बाहर उस लेडीज का डर मूझपे हावी हो रहा था
: प्लीज यहां नही ( मै हड़बड़ाया )
: तो फिर कहां ( उसके पतले होठ जिनपे डार्क मैरून मैट लिपस्टिक लगी थी वो मेरे करीब आ रहे थे , जैसे कोई चुंबक सा हो उनमें और मेरे होठ लोहे की जर्दियो के जैसे सूख कर फड़फड़ाने लगे )
मुझे समझ नही आया क्या जवाब दू उसकी कोमल कलाइयों में ना जाने कितना जोर था जो मैं चाह कर भी छूट नहीं पा रहा था
: बस यहां नही ( मै उफनाती सासों के साथ बोला )
: ठीक है ( वो मुस्कुरा कर मेरे गालों पर चुम्मी ले ली और मुझे रिहा कर दिया )
मेरा गला सुख रहा था ,फेफड़े धौकनी के जैसे उठ बैठ रहे थे और माथा पूरा पसीना पसीना मै भागकर बाहर दुकान में आ गया ।
वो महिला दुकानदार मुझे अजीब नजरो से निहार रही थी , जैसे मेरे मन की चोरी पकड़ ली हो । मै इधर उधर देखने लगा कि
: हो गया बहन जी यही फाइनल कर दीजिए उफ्फ ( अम्मी ने वो ब्रा उस महिला दुकानदार को देते हुए बोली )
: अम्मी फिर घर चलें
: बस बेटा एक जगह और जाना है
: क्या यार अम्मी ( मै उखड़ कर बोला तो अम्मी मुस्कुराए जा रही थी । )
कुछ देर बाद दुकान बाजार बदलने के बाद हमारी शॉपिंग पूरी हो गई
हमे देर हो रही थी और ढलती शाम को देखते हुए अम्मी की बेचैन हुई जा रही थी , कारण था एक तो आज संडे उसपे से अब्बू घर पर थे और उनका सामना करने की हिम्मत किसमे भला थी ।
: अम्मी मुझे डर लग रहा है , अब्बू जरूर गुस्सा करेंगे देखना
: अब जो होगा देख लेंगे , तू जल्दी चला और खोवामंडी में घुसने से पहले फैजान के मेडिकल स्टोर पर गाड़ी रोक देना
मै हाईवे से उतर कर काजीपुर टाउन के लिए बढ़ चुका था , ढलती शाम का सन्नाटा अपने पाव पसार रहा था ।
अम्मी मेरे कंधे से मुझे कसके कर पकड़े हुए थी और मैं तेजी से बाइक लेकर आगे बढ़ रहा था और सीधा फैजान के मेडिकल स्टोर पर गाड़ी रोकी मैने और अम्मी की छाती हच्च से मेरे पीठ में धंसती पिचकती चली गई ।
: हट बदमाश कही का ,अब आगे से तेरी गाड़ी पर मैं नही बैठूंगी ।किसी रोज नाली में गिरा देगा मुझे ( अम्मी बड़बड़ाई)
: बोला तो था कस कर पकड़ लो मुझे ( मै बुदबुदाया तो अम्मी मुझे मारने को हाथ उठाने लगी तो मैं हसने लगा )
: अब लेट नही हो रहा है ( मैने उन्हे याद दिलाया और वो मुंह बनाती हुई मुझे सबक सिखाने के इशारे में अपना गुस्सा दिखाती हुई सीढ़िया चढ़ कर मेडिकल स्टोर पर चली गई ,
सड़क से जहा मै बाइक लेकर खड़ा था उस दुकान के काउंटर की दूरी 20-25 मीटर रही होगी ।
मै गुनगुनाते हुए आस पास देख रहा था और मेरी नजर मेडिकल स्टोर के काउंटर पर गई ।
जहा अम्मी खड़ी थी , उनकी आवाज उस शीशे वाले दरवाजे से बाहर तो नही आ रही थी मगर बाहर से स्टोर में चल रही हलचल का अंदाजा था ।
अम्मी फैजान से कुछ बात करती है और फैजान अंदर चला जाता है और कुछ देर बाद उसकी अम्मी बाहर आती है
फैजान की अम्मी मेरी अम्मी को देख कर मुस्कुराने लगती है फिर दोनो के होठ बस हिल रहे थे जैसे वहा भी खुसफुसाहट वाली ही बात चीत हो रही थी
स्टोर के अंदर से दोनो बार बार मुझे ही देख रही थी , मुझे अजीब लग रहा था कि क्या हो रहा होगा वहा ।
फिर फैजान की अम्मी ने एक चौकोर पैकेट को दवाई वाले लिफाफे में रखा , पैकेट चौड़ा था उसमे दवाओ के पत्ते भी नजर आ रहे थे ।
जैसे ही अम्मी ने मेरी ओर फिर से देखा मैने नजरें फेर ली मानो कुछ नहीं देखा मैने
और फिर अम्मी ने वो पैकेट अपने पर्स में रख लिया फिर पैसे देकर बाहर आ गई ।
: चल अब जल्दी ( अम्मी मुझे कंधे से पकड़ते हुए बाइक पर बैठते हुए बोली )
: क्या ले रही थी अम्मी कबसे और दवा किसको खानी है
: वो तेरे अब्बू को मनाने की दवाई है ( अम्मी को होठ सिकोड़ कर छिपी हुई मुस्कुराहट के साथ मैने रियर मिरर में देखा )
: मनाने की दवाई , अब दवाई खाना किसे अच्छा लगता है भला ( मैने अजीब सा मुंह बनाया )
: वो होती है एक , उसे खाने से गुस्सा नही होता है , तू आगे देख कर चला ना
फिर मैंने बाइक तेज कर दी और सीधे घर के सामने रोक दी । वो बाइक से बड़ी आहिस्ता से उतरी
उसके चेहरे पर मुस्कुराहट अभी भी थी मगर उसके पीछे का दर्द मै भी समझ सकता था ।
: मै भी चलू साथ में
: नही मै चली जाऊंगी ( अलीना अपने पैर को सीधी करने की कोशिश में बाइक का सहारा लेती हुई खड़ी हुई )
: अम्मी पूछेगी तो क्या कहोगी ( मैने फिकर में उससे कहा )
: तुम फिकर ना करो , अब घर जाओ नही तो ( उसने एक बार फिर अपनी जादुई नजर से मुझे घूरा और मुस्कुराई )
फिर मैने बाइक घुमाई और अपने फ्लैट के लिए निकल गया ।
घर में घुसते ही वही सब रोज का ड्रामा इंतजार कर रहा था ।अब्बू को गवारा नहीं कि उनके खानदान की औरतें देर शाम तक घर से बाहर रहें। वही खानदानी रिवाज , असूल और अदब पेशायगी की बकचोदी ।
अम्मी ने मुझे ऊपर जाने का इशारा किया और कुछ ही देर में नीचे एकदम चुप्पी
ना जाने औरतों में क्या खासियत रही है वो ऐसे परिस्थितियों को संभालने में हमेशा से सक्षम रही है ।
कमरे में सोफे पर बैठा हुआ मै अलीना से फोन पर बातें किए जा रहा था
: और सिराज के अब्बू , वो नही बोले कुछ
: ऊहू , वो तो बाहर गए थे
: थैंक गॉड यार मुझे तो बहुत डर लग रहा था
: मुझसे बेहतर कौन जानेगा कि तुम कितना डरते हो ( अलीना फोन पर हसीं)
: अम्मी कैसे है ? ( मै हिचक कर पूछा उससे )
: सुबह से बेहतर लग रही है ,चल फिर रही है ( बोलते बोलते उसके बातों में छिपी हसीं की खनक मुझे साफ साफ सुनाई दी )
: यार इतना भी क्या मजे लेना अब , छोड़ो ना ( मैं उखड़ कर उससे बोला )
: शानू !! ( अपनी आवाज भारी करती हुई बोली )
: हम्मम बोलो ( मुझे अजीब लगा पहले की उसने मुझे नाम से नही बुलाया था )
: मेरा नाम लेके बुलाओ ना मुझे
" मेरा नाम लेके बुलाओ ना मुझे बेटा " , सिराज की अम्मी मेरे खड़े लंड पर अपनी बड़ी सी फैली हुई गाड़ को पटकती हुई बोली ।
: उह्ह्ह्ह ना मुझे यही बुलाना पसंद है आपको ( मै उनकी रस छोड़ती बुर में अपना लोहे सा तपता मोटा लंड घुसाए हुए बोला )
: क्या पसंद है तुझे , अअह्ह्ह्हह बोल लल्ला ( सिराज की अम्मी मेरे आंखो मे देखते हुए बोली )
: अअह्ह्ह्ह अम्मीइ उह्ह्ह्ह आएगा मेरा अअह्ह्ह्ह और तेज करो ना मेरी अम्मी उह्ह्ह्ह मजा आ रहा है अह्ह्ह्ह्ह सीईईईईईआईआई अअह्ह्ह्हह
: शानू , चुप क्यों हो बोलो ना ( वो थोड़ी तेज आवाज में बोली )
: अह कुछ कहा क्या तुमने ( मै सिराज की अम्मी की यादों से निकलता हुआ अपना सर उठाता लंड मसल कर बोला )
: मुझे मेरे नाम से बुलाओ ना प्लीज ( वो लगभग शरमाते हुए लहजे में बोली )
उसकी बातें और फरमाइश मेरे होठ सुखा देते थे , बहुत छोटी सी बात थी उसका नाम लेना , महज तीन अक्षरों को होठों से पुकारना था। उसमे भी मुझे बेचैनी होने लगी थी ।
: बोलो न ( उसने फिर से मीठी सी जिद दिखाई )
: पता नही क्यों मुझसे नाम नही लिया जाता , अजीब सा लगता है
: मेरा नाम अजीब है क्या ?
: नही वो बात नही है , तुम्हारे नाम से मुझे वो कुछ कुछ होने लगता है ( मैने अपनी दिल के जज्बात उसको समझाना चाहा )
: सच में ? क्या होने लगता है ( वो खिलखिला कर बोली )
: पता नही , वही समझ नही आता । बस सांसे तेज हो जाती है , होठ सूखने लग जाते है , दिल बैचेन होने लगता है
: और ? ( वो बहुत प्यार से पूरे इंतजार से बोली , मानो उसे ये सब सुनना कितना भा रहा हो )
: बस तुम नजर आ जाती हो और फिर तुम्हारे वो दो बड़े बड़े खूबसूरत गोल मटोल...
: धत्त गंदे ( वो शरमाई )
: अरे मै तुम्हारी मतवाली आंखों की बात कर रहा था यार ( मै हसा )
: अच्छा जी , मुझे मत बनाओ मुझे पता है तुम्हारी नजरें कब कहा होती है ( कुछ लजा कर तो कुछ इतरा कर वो बोली )
कुछ देर बाद मैंने फोन रख दिया एक बार फिर बिस्तर पर लेटे लेटे अम्मी की यादें मुझपे हावी होने लगी , मन फिर उदास होने लगा ।
अम्मी की फिकर सी होने लगी , हर बार वो मेरे लिए अब्बू से लड़ जाती थी और उन्हें मना ही लेती थी मगर आज मेडिकल स्टोर पर जो देखा उसने मुझे और भी बेचैन कर रखा था ।
मुझसे रहा नही गया और मैं दबे पाव सीढ़िया उतरने लगा
रात के इस पहर में पूरी खोवामंडी में कुत्तों के सिवा दूसरा कोई जाग रहा था तो शायद मेरा ही परिवार रहा होगा ।
जीने से उतरते हुए अम्मी और अब्बू के कमरे से उनकी खुसफुसाहट आ रही थी , मगर इतनी भी साफ नही कि मैं सही सही उनका मतलब निकाल सकूं।
तभी मेरे पाव एकदम से ठहर गए और आंखे फेल गई । जीने के जिस हिस्से मै उसकी रेलिंग पकड़ कर खड़ा था उसके ठीक सामने अम्मी के कमरे की खिड़की के ऊपर वाला रोशनदान खुला हुआ था और कमरे में पीली रोशनी उससे निकल कर पूरे हाल में फैल रही थी ।
मगर मेरे हरकत में आने का कारण कुछ और था जिसकी छवियां अम्मी के कमरे की दीवाल पर उभरी हुई थी और जीने के जिस हिस्से पर मैं खड़ा था वहा से रोशनदान के माध्यम वो दृश्य साफ साफ मुझे परछाइयों में नजर आ रहा था ।
मेरा कलेजा जोरो से धड़कने लगा था और मेरी नजर बस वही जम सी गई । मेरे हाथ मेरे लंड को छूने लगे ,
सामने रोशनदान के उसपर कमरे की दीवार पर उकरी हुई छवियों में अम्मी अब्बू का लंड चूस रही थी
बड़ा विशालकाय मोटा टोपे वाला , परछाईंयो वो दृश्य काफी कामोतेजक दिख रहा था ,
अम्मी अब्बू के लंड को जोरो से भींच कर हिलाती हुई मुंह ले रही थी । लंड हिलाते हुए उनके बोलते होठ भी साफ साफ परछाइयों में हिल रहे थे ।
अम्मी का ये रूप देख कर मेरा लंड पूरा तनकर रॉड सा हो गया और मैने लोअर नीचे कर उसको बाहर निकाला फिर सहलाते हुए एक बार फिर रोशनदान से कमरे में झांका तो अम्मी बिस्तर पर आ चुकी थी और अब्बू का मुंह उनकी मोटी गदराई जांघो के बीच था
मेरी हालत खराब होती जा रही थी , अम्मी की सुडौल जांघें दीवाल पर उभरी हुई उन परछाइयों में और भी भड़किली और मोटी मोटी दिख रही थी जिसे वो हवा में उठाए हुए अब्बू से अपनी बुर चटवा रही थी
अम्मी की मादक सिसकियो की मीठी गुनगुनाहट अब मेरे कानो में आने लगी थी
मैं भी जोरो से अपना मूसल मसलने लगा था , आज अम्मी के लिए मेरे दिल में प्यार और भी बढ़ गया था ।
अब्बू का लंड अब हचर हचर उनकी गुदाज लचीली फुद्दी में जा रहा था ,
अम्मी को अब्बू से चुदते देख कर मुझे लग रहा था मानो अम्मी ने आज मेरे लिए कितना बड़ा बलिदान दे दिया हो और उस बलिदान का तोहफा आज मेरे हाथ में था ।
मैंने अपने लोअर से वो नया मोबाइल निकाला जिसे अम्मी ने मुझे 12th पास करने की खुशी में दिलाया था और अब वो अब्बू को मेरे लिए मना रही थी
मेरा लंड दिल सब कुछ फड़क कर धड़क कर उन्हे अपना प्यार दिए जा रहा था और कमरे में वो औंधी झुकी हुई पीछे से अब्बू के लंबे मोटे मूसल को अपनी चूत में लिए जा रही थी
अम्मी के मोटे हिल्कोरे खाते चूतड देख कर मेरे सबर का फब्बारा फूट पड़ा और जीने की सीढियों पर मैं अपनी धार छोड़ने लगा ।
उस मोबाइल को अपने होठों से लगाए जिसकी जलती स्क्रीन पर अम्मी की तस्वीर वॉलपेपर पर लगी थी ।
: अअह्ह्ह्हह मेरी अम्मीई उह्ह्ह्ह अअह्ह्ह्ह फक्क्क् उह्ह्ह्ह गॉड उम्मम्म
मै देर तक झड़ता रहा और वही सोफे पर सो गया ।
जारी रहेगी ।
Super Update BhaiUPDATE 004
तोहफा
अजीब सी उलझन थी , रियर मिरर में वो मुझे लगातार निहारे जा रही थी और मेरे कंधे पर रखे हुए उसके हाथ भीतर से मुझे सिहरा दे रहे थे ,
तभी मेरी नजर आगे के स्पीड ब्रेकर पर गई और मैने एकदम से स्पीड जीरो कर दी और बहुत ही आराम से पैर लगा कर ब्रेकर क्रॉस किया मगर वो चतुर नार बड़ी ही होशियार । घिसक आई मेरे पीछे और मैं भी आगे टंकी तक तक , अभी भी उसके सूट का उभार मेरे पीठ में गुदगुदी पैदा कर रहा था
: रोकना (मैने ब्रेक लगा कर बाइक साइड की और उसने गुस्से से मुझे घूरा )
: तुम जाओ मैं चली जाऊंगी रिक्शा करके ( मुंह फेर पर बोली अलीना बोली )
: क्या हुआ ( मेरी एकदम से फटी )
: कुछ नही हुआ तुम जाओ
: अच्छा सॉरी बाबा , बैठ जाओ
: इतना ही अजीब लगता है मेरे साथ तो आए क्यू लिवा कर ( वो भुनभुनाते हुए बाइक पर बैठ गई , रियर मिरर के उसका गुस्से से गुलाबी होता चेहरा साफ दिख रहा था
मैंने अपनी जगह बनाई और वो लगभग मेरे से चिपक सी ही गई इस बार
: चलो लेट हो जाएगा
: ऑटो से नही लेट होता ( मै बुदबुदाया )
हम शहर में घुस चुके थे और जल्द ही अगला स्पीड ब्रेकर वो भी बड़ा
: अगर स्लो हुए तो देखना ( वो रियर मिरर में मुझे ही घूरते हुए भुनभुनाई )
मै हंसता हुआ तेजी से स्पीड ब्रेकर पर चढ़ा दिया ।
: अरे अरे अरे गिराएगा क्या मुझे , देख कर चला ना ( अम्मी ने मेरे कंधे और बाइक की पिछली कैरियर को कस कर पकड़े हुए स्पीड ब्रेकर पर उछलती हुई बोली ।
: कुछ नही होगा मुझे कस कर पकड़ लो अम्मी ( मैने रियर मियर में अम्मी को देख कर मुस्कुराया )
: धत्त बदमाश कही का , सही से चल ( अम्मी मेरे कंधे पर हल्की चपेड़ लगा कर लजाइ और मिरर में उसकी नजरो ने उनकी भावनाएं मुझसे कह दी )
: क्या अम्मी यहां अब आपको कौन पहचानेगा , चांस मार लो ना ( मेरा इशारा बुर्खे में पर्दानसिन हुए उनकी पहचान की ओर था )
: हा जैसे तु बड़ा हैंडसम है जो चांस मार लू, गाड़ी रोक आ गए हम लोग (अम्मी ने बुरखे के भीतर से मुझे हड़काया , जैसे मैं डर ही जाऊंगा
मैंने गाड़ी रोकी और वो मुस्कुराते हुए उतरी , अभी भी उसके 32 साइज के गोल मटोल पाव का गुलगुला स्पर्श मुझे मेरी पीठ पर महसूस हो रहा था ।
: कही जाना मत बस 2 घंटे लगेंगे मुझे ( पूरा हक जताते हुए वो सुरमई आंखो वाली बोली )
: जी , और कुछ सेवा मैम
: आकर बताती हुं
और वो किसी चिड़िया की तरह फुरर से गायब हो गई एग्जाम सेंटर की भीड़ में ।
जब किसी का इंतजार हो या फिर अम्मी के साथ शॉपिंग करनी हो , घड़ी की सुइयां मानो रेंगने लगती हो ।
: अम्मी और कितनी देर कबसे घुमा रही हो , पैर दुख रहे है मेरे ( मै उनके पीछे चलता हुआ बोला और वो तेजी से अपने कूल्हे मटकाते हुए दूसरे सेकसन में घुस गई )
: अम्मी ये सब तो मिलता है ना काजीपुर में , फिर इतनी क्यू खरीद रही हो
: तू चुप कर , यहां माल में चीजे सस्ती है समझा और ऑफर भी चल रहा है
: अम्मी कुछ खा ले फिर ( मै एकदम से एक जगह ठहर गया और मुंह बना कर उनको देखा )
वो मुझे मुस्कुराई और हम एक अच्छे से resturant में चले गए
: हम्मम ये लो और बताओ क्या खाना है
: तुम अपनी पसंद से कुछ भी खिला दो ( एक फिर अलीना ने अपनी मतवाली आंखे से मेरी आंखो में निहारते हुए बोली )
: जहर चलेगी ( मैने मुंह बनाया )
: हम्मम खिला दो अपने हाथ से वो भी खा लूंगी ( वो थोड़ा उखड़ कर बोली )
: अब मुंह न बनाओ , बताओ क्या खाना है ?
फिर उसने ऑडर किया और हम खा कर निकल गए घर के लिए उसने मुझे आगे चौक कर एक कास्मेटिक दुकान पर रोकने को कहा ।
हम वहा पहुंचे और उस वक्त दुकान में हम दोनो ही थे , एक लेडीज ने उससे पूछा क्या चाहिए
: मुझे अंडरगारमेंट्स चाहिए थे
: साइज ( उस महिला दुकानदार ने पूछा )
: 40 और नीचे वाला 48 में ( अम्मी ने मुझसे नज़रे चुराते हुए उससे बोली )
मेरा गला सूखने लगा अम्मी के गदराए जिस्म का साइज सुन कर , लंड खुद से ही अकड़ने लगा ।
: इसको नाप सकती हूं ( अम्मी ने उस महिला दुकानदार से पूछा तो वो औरत उसे एक केबिन नूमा कमरे में ले गई और खुद बाहर आ गई )
: शानू इधर आना बेटा (अम्मी की आवाज आई)
मै लपक कर उस केबिन के पास पहुंचा मेरी नजरें नीचे ही थी जब अम्मी ने दरवाजा खोला और उनका हाथ बाहर आया , साथ में झूलता हुआ वो कटोरेदार ब्रा : बेटा उनको बोल दे कि 40DD दे दे
अब अम्मी की के चूचों के पहाड़ जैसे उभार की कल्पनाएं उठने लगी थी , मन में छवि सी उठने लगी कि भीतर अम्मी बिना ब्रा के खड़ी होगी । मगर मेरी किस्मत तो देखो खुला दरवाजा पाकर भी मैं झाक कर देख नही सकता था , लंड एकदम से फौलादी हो गया था , पेंट में एडजेस्ट करता तो काउंटर पर बैठी वो महिला मुझे देख लेती ।
मैं बिना को हरकत के दुकान में आया और उस महिला से बात की फिर उसने साइज बदल कर दिया , इधर कुछ ग्राहक आ गए और वो बिजी हो गई
मै दूसरी ब्रा लेकर उस चेंजिंग रूम के पास पहुंचा और हाथ दरवाजे से घुसा कर ब्रा भीतर करता हू : हम्मम ये ट्राई करो
और अगले ही पल उसने मुझे भीतर खींच लिया
: क्यू भागते हो मुझसे ( मेरे जिस्म से ऐसे लिपट गई थी जैसे पेड़ो से बेल, उसकी आंखे मुझे मदहोश कर रही थी , दिल जैसे स्लो मोशन में रूक रूक कर पूरी शिद्दत से धकड़ने लगा और वही उसके नायाब कसे हुए तीर के जैसे नुकीले भूरे दाने वाले निप्पल शर्त फाड़ कर मेरी छाती को कोंच रहे थे ।
उसकी आंखे उसके इरादे बयां कर रहे थे मानो कह रहे हो कि आज तेरे दिल में अपने जोबनो से छेद कर रास्ता बनाऊंगी ।
एक गुदगुदाहट सी थी मेरे पेट में शायद बाहर उस लेडीज का डर मूझपे हावी हो रहा था
: प्लीज यहां नही ( मै हड़बड़ाया )
: तो फिर कहां ( उसके पतले होठ जिनपे डार्क मैरून मैट लिपस्टिक लगी थी वो मेरे करीब आ रहे थे , जैसे कोई चुंबक सा हो उनमें और मेरे होठ लोहे की जर्दियो के जैसे सूख कर फड़फड़ाने लगे )
मुझे समझ नही आया क्या जवाब दू उसकी कोमल कलाइयों में ना जाने कितना जोर था जो मैं चाह कर भी छूट नहीं पा रहा था
: बस यहां नही ( मै उफनाती सासों के साथ बोला )
: ठीक है ( वो मुस्कुरा कर मेरे गालों पर चुम्मी ले ली और मुझे रिहा कर दिया )
मेरा गला सुख रहा था ,फेफड़े धौकनी के जैसे उठ बैठ रहे थे और माथा पूरा पसीना पसीना मै भागकर बाहर दुकान में आ गया ।
वो महिला दुकानदार मुझे अजीब नजरो से निहार रही थी , जैसे मेरे मन की चोरी पकड़ ली हो । मै इधर उधर देखने लगा कि
: हो गया बहन जी यही फाइनल कर दीजिए उफ्फ ( अम्मी ने वो ब्रा उस महिला दुकानदार को देते हुए बोली )
: अम्मी फिर घर चलें
: बस बेटा एक जगह और जाना है
: क्या यार अम्मी ( मै उखड़ कर बोला तो अम्मी मुस्कुराए जा रही थी । )
कुछ देर बाद दुकान बाजार बदलने के बाद हमारी शॉपिंग पूरी हो गई
हमे देर हो रही थी और ढलती शाम को देखते हुए अम्मी की बेचैन हुई जा रही थी , कारण था एक तो आज संडे उसपे से अब्बू घर पर थे और उनका सामना करने की हिम्मत किसमे भला थी ।
: अम्मी मुझे डर लग रहा है , अब्बू जरूर गुस्सा करेंगे देखना
: अब जो होगा देख लेंगे , तू जल्दी चला और खोवामंडी में घुसने से पहले फैजान के मेडिकल स्टोर पर गाड़ी रोक देना
मै हाईवे से उतर कर काजीपुर टाउन के लिए बढ़ चुका था , ढलती शाम का सन्नाटा अपने पाव पसार रहा था ।
अम्मी मेरे कंधे से मुझे कसके कर पकड़े हुए थी और मैं तेजी से बाइक लेकर आगे बढ़ रहा था और सीधा फैजान के मेडिकल स्टोर पर गाड़ी रोकी मैने और अम्मी की छाती हच्च से मेरे पीठ में धंसती पिचकती चली गई ।
: हट बदमाश कही का ,अब आगे से तेरी गाड़ी पर मैं नही बैठूंगी ।किसी रोज नाली में गिरा देगा मुझे ( अम्मी बड़बड़ाई)
: बोला तो था कस कर पकड़ लो मुझे ( मै बुदबुदाया तो अम्मी मुझे मारने को हाथ उठाने लगी तो मैं हसने लगा )
: अब लेट नही हो रहा है ( मैने उन्हे याद दिलाया और वो मुंह बनाती हुई मुझे सबक सिखाने के इशारे में अपना गुस्सा दिखाती हुई सीढ़िया चढ़ कर मेडिकल स्टोर पर चली गई ,
सड़क से जहा मै बाइक लेकर खड़ा था उस दुकान के काउंटर की दूरी 20-25 मीटर रही होगी ।
मै गुनगुनाते हुए आस पास देख रहा था और मेरी नजर मेडिकल स्टोर के काउंटर पर गई ।
जहा अम्मी खड़ी थी , उनकी आवाज उस शीशे वाले दरवाजे से बाहर तो नही आ रही थी मगर बाहर से स्टोर में चल रही हलचल का अंदाजा था ।
अम्मी फैजान से कुछ बात करती है और फैजान अंदर चला जाता है और कुछ देर बाद उसकी अम्मी बाहर आती है
फैजान की अम्मी मेरी अम्मी को देख कर मुस्कुराने लगती है फिर दोनो के होठ बस हिल रहे थे जैसे वहा भी खुसफुसाहट वाली ही बात चीत हो रही थी
स्टोर के अंदर से दोनो बार बार मुझे ही देख रही थी , मुझे अजीब लग रहा था कि क्या हो रहा होगा वहा ।
फिर फैजान की अम्मी ने एक चौकोर पैकेट को दवाई वाले लिफाफे में रखा , पैकेट चौड़ा था उसमे दवाओ के पत्ते भी नजर आ रहे थे ।
जैसे ही अम्मी ने मेरी ओर फिर से देखा मैने नजरें फेर ली मानो कुछ नहीं देखा मैने
और फिर अम्मी ने वो पैकेट अपने पर्स में रख लिया फिर पैसे देकर बाहर आ गई ।
: चल अब जल्दी ( अम्मी मुझे कंधे से पकड़ते हुए बाइक पर बैठते हुए बोली )
: क्या ले रही थी अम्मी कबसे और दवा किसको खानी है
: वो तेरे अब्बू को मनाने की दवाई है ( अम्मी को होठ सिकोड़ कर छिपी हुई मुस्कुराहट के साथ मैने रियर मिरर में देखा )
: मनाने की दवाई , अब दवाई खाना किसे अच्छा लगता है भला ( मैने अजीब सा मुंह बनाया )
: वो होती है एक , उसे खाने से गुस्सा नही होता है , तू आगे देख कर चला ना
फिर मैंने बाइक तेज कर दी और सीधे घर के सामने रोक दी । वो बाइक से बड़ी आहिस्ता से उतरी
उसके चेहरे पर मुस्कुराहट अभी भी थी मगर उसके पीछे का दर्द मै भी समझ सकता था ।
: मै भी चलू साथ में
: नही मै चली जाऊंगी ( अलीना अपने पैर को सीधी करने की कोशिश में बाइक का सहारा लेती हुई खड़ी हुई )
: अम्मी पूछेगी तो क्या कहोगी ( मैने फिकर में उससे कहा )
: तुम फिकर ना करो , अब घर जाओ नही तो ( उसने एक बार फिर अपनी जादुई नजर से मुझे घूरा और मुस्कुराई )
फिर मैने बाइक घुमाई और अपने फ्लैट के लिए निकल गया ।
घर में घुसते ही वही सब रोज का ड्रामा इंतजार कर रहा था ।अब्बू को गवारा नहीं कि उनके खानदान की औरतें देर शाम तक घर से बाहर रहें। वही खानदानी रिवाज , असूल और अदब पेशायगी की बकचोदी ।
अम्मी ने मुझे ऊपर जाने का इशारा किया और कुछ ही देर में नीचे एकदम चुप्पी
ना जाने औरतों में क्या खासियत रही है वो ऐसे परिस्थितियों को संभालने में हमेशा से सक्षम रही है ।
कमरे में सोफे पर बैठा हुआ मै अलीना से फोन पर बातें किए जा रहा था
: और सिराज के अब्बू , वो नही बोले कुछ
: ऊहू , वो तो बाहर गए थे
: थैंक गॉड यार मुझे तो बहुत डर लग रहा था
: मुझसे बेहतर कौन जानेगा कि तुम कितना डरते हो ( अलीना फोन पर हसीं)
: अम्मी कैसे है ? ( मै हिचक कर पूछा उससे )
: सुबह से बेहतर लग रही है ,चल फिर रही है ( बोलते बोलते उसके बातों में छिपी हसीं की खनक मुझे साफ साफ सुनाई दी )
: यार इतना भी क्या मजे लेना अब , छोड़ो ना ( मैं उखड़ कर उससे बोला )
: शानू !! ( अपनी आवाज भारी करती हुई बोली )
: हम्मम बोलो ( मुझे अजीब लगा पहले की उसने मुझे नाम से नही बुलाया था )
: मेरा नाम लेके बुलाओ ना मुझे
" मेरा नाम लेके बुलाओ ना मुझे बेटा " , सिराज की अम्मी मेरे खड़े लंड पर अपनी बड़ी सी फैली हुई गाड़ को पटकती हुई बोली ।
: उह्ह्ह्ह ना मुझे यही बुलाना पसंद है आपको ( मै उनकी रस छोड़ती बुर में अपना लोहे सा तपता मोटा लंड घुसाए हुए बोला )
: क्या पसंद है तुझे , अअह्ह्ह्हह बोल लल्ला ( सिराज की अम्मी मेरे आंखो मे देखते हुए बोली )
: अअह्ह्ह्ह अम्मीइ उह्ह्ह्ह आएगा मेरा अअह्ह्ह्ह और तेज करो ना मेरी अम्मी उह्ह्ह्ह मजा आ रहा है अह्ह्ह्ह्ह सीईईईईईआईआई अअह्ह्ह्हह
: शानू , चुप क्यों हो बोलो ना ( वो थोड़ी तेज आवाज में बोली )
: अह कुछ कहा क्या तुमने ( मै सिराज की अम्मी की यादों से निकलता हुआ अपना सर उठाता लंड मसल कर बोला )
: मुझे मेरे नाम से बुलाओ ना प्लीज ( वो लगभग शरमाते हुए लहजे में बोली )
उसकी बातें और फरमाइश मेरे होठ सुखा देते थे , बहुत छोटी सी बात थी उसका नाम लेना , महज तीन अक्षरों को होठों से पुकारना था। उसमे भी मुझे बेचैनी होने लगी थी ।
: बोलो न ( उसने फिर से मीठी सी जिद दिखाई )
: पता नही क्यों मुझसे नाम नही लिया जाता , अजीब सा लगता है
: मेरा नाम अजीब है क्या ?
: नही वो बात नही है , तुम्हारे नाम से मुझे वो कुछ कुछ होने लगता है ( मैने अपनी दिल के जज्बात उसको समझाना चाहा )
: सच में ? क्या होने लगता है ( वो खिलखिला कर बोली )
: पता नही , वही समझ नही आता । बस सांसे तेज हो जाती है , होठ सूखने लग जाते है , दिल बैचेन होने लगता है
: और ? ( वो बहुत प्यार से पूरे इंतजार से बोली , मानो उसे ये सब सुनना कितना भा रहा हो )
: बस तुम नजर आ जाती हो और फिर तुम्हारे वो दो बड़े बड़े खूबसूरत गोल मटोल...
: धत्त गंदे ( वो शरमाई )
: अरे मै तुम्हारी मतवाली आंखों की बात कर रहा था यार ( मै हसा )
: अच्छा जी , मुझे मत बनाओ मुझे पता है तुम्हारी नजरें कब कहा होती है ( कुछ लजा कर तो कुछ इतरा कर वो बोली )
कुछ देर बाद मैंने फोन रख दिया एक बार फिर बिस्तर पर लेटे लेटे अम्मी की यादें मुझपे हावी होने लगी , मन फिर उदास होने लगा ।
अम्मी की फिकर सी होने लगी , हर बार वो मेरे लिए अब्बू से लड़ जाती थी और उन्हें मना ही लेती थी मगर आज मेडिकल स्टोर पर जो देखा उसने मुझे और भी बेचैन कर रखा था ।
मुझसे रहा नही गया और मैं दबे पाव सीढ़िया उतरने लगा
रात के इस पहर में पूरी खोवामंडी में कुत्तों के सिवा दूसरा कोई जाग रहा था तो शायद मेरा ही परिवार रहा होगा ।
जीने से उतरते हुए अम्मी और अब्बू के कमरे से उनकी खुसफुसाहट आ रही थी , मगर इतनी भी साफ नही कि मैं सही सही उनका मतलब निकाल सकूं।
तभी मेरे पाव एकदम से ठहर गए और आंखे फेल गई । जीने के जिस हिस्से मै उसकी रेलिंग पकड़ कर खड़ा था उसके ठीक सामने अम्मी के कमरे की खिड़की के ऊपर वाला रोशनदान खुला हुआ था और कमरे में पीली रोशनी उससे निकल कर पूरे हाल में फैल रही थी ।
मगर मेरे हरकत में आने का कारण कुछ और था जिसकी छवियां अम्मी के कमरे की दीवाल पर उभरी हुई थी और जीने के जिस हिस्से पर मैं खड़ा था वहा से रोशनदान के माध्यम वो दृश्य साफ साफ मुझे परछाइयों में नजर आ रहा था ।
मेरा कलेजा जोरो से धड़कने लगा था और मेरी नजर बस वही जम सी गई । मेरे हाथ मेरे लंड को छूने लगे ,
सामने रोशनदान के उसपर कमरे की दीवार पर उकरी हुई छवियों में अम्मी अब्बू का लंड चूस रही थी
बड़ा विशालकाय मोटा टोपे वाला , परछाईंयो वो दृश्य काफी कामोतेजक दिख रहा था ,
अम्मी अब्बू के लंड को जोरो से भींच कर हिलाती हुई मुंह ले रही थी । लंड हिलाते हुए उनके बोलते होठ भी साफ साफ परछाइयों में हिल रहे थे ।
अम्मी का ये रूप देख कर मेरा लंड पूरा तनकर रॉड सा हो गया और मैने लोअर नीचे कर उसको बाहर निकाला फिर सहलाते हुए एक बार फिर रोशनदान से कमरे में झांका तो अम्मी बिस्तर पर आ चुकी थी और अब्बू का मुंह उनकी मोटी गदराई जांघो के बीच था
मेरी हालत खराब होती जा रही थी , अम्मी की सुडौल जांघें दीवाल पर उभरी हुई उन परछाइयों में और भी भड़किली और मोटी मोटी दिख रही थी जिसे वो हवा में उठाए हुए अब्बू से अपनी बुर चटवा रही थी
अम्मी की मादक सिसकियो की मीठी गुनगुनाहट अब मेरे कानो में आने लगी थी
मैं भी जोरो से अपना मूसल मसलने लगा था , आज अम्मी के लिए मेरे दिल में प्यार और भी बढ़ गया था ।
अब्बू का लंड अब हचर हचर उनकी गुदाज लचीली फुद्दी में जा रहा था ,
अम्मी को अब्बू से चुदते देख कर मुझे लग रहा था मानो अम्मी ने आज मेरे लिए कितना बड़ा बलिदान दे दिया हो और उस बलिदान का तोहफा आज मेरे हाथ में था ।
मैंने अपने लोअर से वो नया मोबाइल निकाला जिसे अम्मी ने मुझे 12th पास करने की खुशी में दिलाया था और अब वो अब्बू को मेरे लिए मना रही थी
मेरा लंड दिल सब कुछ फड़क कर धड़क कर उन्हे अपना प्यार दिए जा रहा था और कमरे में वो औंधी झुकी हुई पीछे से अब्बू के लंबे मोटे मूसल को अपनी चूत में लिए जा रही थी
अम्मी के मोटे हिल्कोरे खाते चूतड देख कर मेरे सबर का फब्बारा फूट पड़ा और जीने की सीढियों पर मैं अपनी धार छोड़ने लगा ।
उस मोबाइल को अपने होठों से लगाए जिसकी जलती स्क्रीन पर अम्मी की तस्वीर वॉलपेपर पर लगी थी ।
: अअह्ह्ह्हह मेरी अम्मीई उह्ह्ह्ह अअह्ह्ह्ह फक्क्क् उह्ह्ह्ह गॉड उम्मम्म
मै देर तक झड़ता रहा और वही सोफे पर सो गया ।
जारी रहेगी ।
Thanks For Update Bhaiदेर सवेर होने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं
कहानी की अगली कड़ी साझा कर दी गई है
मेरी चूक के लिए मेरी मेहनत से मुंह न फेरियेगा
दिल से जो कुछ भी शब्द उठे , तारीफ हो या गाली दिल खोलकर दीजिएगा
मगर रेवो आना चाहिए बस