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Chapter
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हा, अभी आगे पार्ट्स के लिए फैमिली पर ही फोकस रहेगा ज्यादातर. बाकी शुक्रिया।जरा शुभम के फैमिली की डिटेल्स भी दो भाई।
बाकी कहानी अच्छी जा रही है, अब उसको दोनों परिवार को देखना है, और इसका अहसास भी जरूरी है
Agli sunday ke baad aayegiWaiting for NeXT update … mitr shubham ki family ki detail bhi do thodi …
Ok Mitr intezaar rahega!Agli sunday ke baad aayegi
#८.कढ़ाई
अपने कमरे में विद्या उसकी बहन शारदा से फ़ोन पर बात कर रही थी।
विद्या: "सुयोग तो बच्चा है, लेकिन उसकी माँ को भी मेरी याद कहाँ आती है?"
शारदा: "अरे विद्या! मैं घर पर आई और काम ही तो थे मेरे पीछे। मैंने उन्हें भी कहा था कि विद्या को फ़ोन करना होगा, लेकिन वक़्त ही नहीं मिला।"
विद्या (चुप होकर): "अच्छा, ठीक है। माँ से बात करेंगी आप?"
शारदा: "नहीं, माँ से दोपहर में ही बात कर ली। तू बता, कैसा चल रहा है? माँ तुझे सता तो नहीं रही ना?"
विद्या: "हा, लेकिन उसमें मां की की क्या गलती, माँ भी मेरे लिए ही ये सब चाहती है। वह क्या करेगी बिचारी?"
शारदा: "हाँ, वह भी है। लेकिन तू चिंता मत कर, सब ठीक हो जाएगा। माँ-पिताजी तो हैं ही तेरे करीब। मैं भी आती रहूँगी।"
विद्या: "दीदी, आपको मेरी चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है, मैं संभाल लूँगी।"
शारदा: "विद्या, मुझे पता है तू नाराज़ है कि मैं जल्दी चली गई।"
विद्या: "नहीं दीदी, आपसे कैसी नाराज़गी? आप तो मुझे जानती ही हैं, मुझे बस कुछ वक़्त चाहिए।"
शारदा (सहानुभूति के साथ): "लेकिन कब तक? कब तक ऐसे अकेले रहना पसंद करोगी? ज़िंदगी अकेले तो नहीं काट सकती।"
विद्या: "क्यों नहीं काट सकती? अगर मैं नहीं चाहती कि कोई मेरे साथ हो, तो क्यों नहीं काट सकती?"
शारदा कुछ देर चुप हो गई। विद्या को अपने शब्दों पर पछतावा हो रहा था, लेकिन वह इस बात से इनकार नहीं कर सकती थी क्योंकि वह सब सच था।
विद्या सोचते हुए अपने कमरे में लेती थी। तभी किसीके पैरों की आहट हुई। विद्या को तभी अपने सर पर उसकी मां शीला का हाथ सर पर महसूस हुआ।
शीला:"सो गई थी क्या?"
विद्या:"नहीं बस लेती थी।"
शीला:"क्यों नींद नहीं आ रही?"
विद्या:"नहीं, बस लेटे रहने का मन करता है, बिना सोए।"
शीला हल्की मुस्कुराई:"मैं जानती हु काम और पुलिस के चक्कर में थक जाती होगी।"
विद्या ने हल्के से "हा" कहा।
शीला:"शारदा का फोन आया था। उसे तेरी चिंता हो रही थी।"
विद्या:"कह देना था कि मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।"
शीला:"बेटी तू जानती है। भलेही तू मुझसे नाराज हो सकती है अपनी बहन से नहीं।"
विद्या:"मैं नाराज थोड़ी हु। बस मन नहीं कर रहा बात करने का।"
शीला:"क्यों?"
विद्या:"मुझे नहीं पता। शायद मैं उसकी खुशहाल जिंदगी में मेरी मनहूसियत नहीं लाना चाहती।"
शीला:"बेटी तू ये सच में नहीं सोचती?"
विद्या:"क्यों नहीं सोच सकती, आप सब की जिंदगी खुशहाल है, बस मेरी वजह से आप सब अपने सुख दाव पर लगा रहे हो। जिसमें आप की गलती भी नहीं है।"
शीला:"लेकिन बेटा उसे ही तो परिवार कहते है। तेरा दुख हमारा भी है। तू मेरी बच्ची है, कितनी भी बड़ी हो जाए।"
विद्या:" लेकिन फिर भी, मुझे सब को मेरी चिंता करते देख बुरा लगता है।"
___________
शहर से थोड़ा दूर एक सुनसान जगह, सिन्हा कुर्सी से बंधा जोर लगा रहा था, उसके नजरे अचानक मेरी और हुई। आंखे फाड़ कर वो मुझे देखने की कोशिश कर रहा था। लेकिन वो चेहरा नहीं देख पाया।
सिन्हा अपनी शरीर की हर एक पसली के साथ चीखते हुए:"क्या चाहते हो तुम मुझसे? तुम्हे शायद पता नहीं होगा की किसी पुलिस अफसर को बंदी बनाना कितना बड़ा गुनाह है।"
मैं कमिश्नर के फोन को नीचे रखकर पास में रखा बड़ा सा हथौड़ा उठाया।:"मुझे आपसे तो नहीं सुनना की मैं कितना गलत हु।" इतना कहकर हाठोडे की धुल पर फुक मारी।
कमिश्नर कांप रहा था "कौन हो तुम?"
मैने कमिश्नर को आंख दिखाकर
*धाड़*
कड्याक की आवाज सुन कोई भी समझ सकता था कि जांघ के पास की हड्डी टूट चुकी है, सिन्हा की चीखे अब बढ़ चुकी थी।
मैंने गहरी सांसों के साथ:"कहां था ना कि कोई सवाल नहीं?मैं जितना पूछूं उतना ही मुझे सुनना पसंद है।"
सिन्हा रोते और चीखते हुए :"ब...ताता हु, क्या चाहिए तुम्हे?"
मैं:"ये बताओ कि उस दिन आरव और बाकी पुलिस अफसर को धोखा क्यों दिया। "
सिन्हा की आंखे अब बड़ी ही चुकी थी।
मैं:"सवाल नहीं, क्योंकि मुझे तुम्हारी चीखो से कोई परेशानी नहीं है।"
सिन्हा लंबी लंबी सांसों के साथ:
"मुझे कुछ नहीं प..."
*धाड़*
एक जोरदार मुक्का उसके चेहरे के बीचोबीच लगा।
*धाड़*
*धाड़*
*कड़ाक*
*धाड़*
उसके चेहरे और छाती पर लगातार दो से तीन मुक्के पड़े। मुंह से खून निकल रहा था। नाक टेढ़ी हो चुकी थी। उसकी धड़कन सिन्हा के अब काबू में नहीं थी। साथ ही मैं मेरी हाथ की पसलियों में अब दर्द हो रहा था। शायद सिन्हा से ज्यादा दर्द मेरे शरीर में हो रहा था। खुदकी सांसे ठीक की और फिर सिन्हा का सर ऊपर किया।
मैं:"मुझे बस कोई चाहिए था मारने के लिए।जल्दी बताओ कि शेरा के साध को मिला हुआ था, वरना मैं शायद तुम्हे ऐसे ही मार दु।"
सिन्हा:"मैने ही शेरा को खबर दी थी, कि विमल सोलंके को बचाने कितने पुलिस अफसर के साथ वहां पर आने वाला है।"
मैं:"क्यों?"
सिन्हा:"क्योंकि मैं भी शेरा का साथीदार था उसके धंधे में। "
मैं:"अब उसके मरने के बाद कौन है? कोई तो होगा जो शेरा के ऊपर था जैसे ही शेरा मर वो आ गए।"
सिन्हा का चेहरा खून से लतपथ था उसकी आँखें चौड़ी थी। शायद उसे आश्चर्य था और संदेह भी कौन हो सकता हु मैं?
सिन्हा:"नहीं, मैं उन सब के बारे में नहीं जानता।"
मैं:"लग तो नहीं रहा मुझे। पैन्सी गैंग आज शेरा का धंधा संभाल रही है। कुछ उसके बारे में बताना चाहोगे।"
सिन्हा:"मैं कुछ नहीं जानता।"
मैने फिरसे हथौड़े को हाथ मैं लिया।
सिन्हा:"नहीं मैं सच में नहीं जानता, तुम्हे मुझे मारकर कुछ नहीं मिलेगा।"
मैं:"नहीं अब नहीं, तुम्हे इतनी कड़ी सुरक्षा से उठा सकता हु तो तुम्हारा बेटा क्या चीज है। उसे तो अच्छे से मारूंगा।"
सिन्हा:"नहीं , हाथ जोड़ता हु, ऐसा मत करना, हा.. हा उनके बारे में थोड़ा सुना है, वो एक बहुत बड़ी गैंग है, कुछ ही वक्त में उन्होंने अपना संपर्क बढ़ाया है, और वो शेरा के पुराने साथियों को खत्म करना चाहते है।"
मुझे सिन्हा की बात सुन गुस्सा आ रहा था:"तो फिर पता होगा कि आरव से उसके परिवार से किसे अब क्या चाहिए?"
सिन्हा रोते हुए:"मैं सच कह रहा हु, मुझे नहीं पता, शायद आरव का कोई संबंध होगा शेरा से।"
*धाड़*
जोरदार मुक्का सिन्हा के मुंह पर मारा।
सिन्हा शायद नहीं जानता था कि उसके सामने आरव ही खड़ा था। वरना उसकी हिम्मत नहीं होती, शेरा का आदमी कहने की। मैने सिन्हा को घूरते हुए अपना सर ना में घुमाया और हथौड़ा फिर से उठानें लगा।
सिन्हा गिड़गिड़ाते हुए:"मैं सच कहा रहा हु। प्यानसी के बारे मे और कुछ नहीं जानता।"
मैं:"लगता है ,तुम्हे जान प्यारी नहीं। ठीक है लेकिन ध्यान रहे मैं तुम्हारे बेटे को इससे भी ज्यादा तड़पाकर मारूंगा। और मुझे उसमें इतना मजा आएगा, कि क्या बताऊं। आखिरी बार पूछ रहा हु!"
मैं उसे बुरी तरीके से मारने लगा।
सिन्हा को शायद अब तक मैं आरव का करीबी हु इतना तो समज आ चुका होगा। इसीलिए मैं इसे जिंदा तो नहीं रख सकता।लेकिन सवालों के जवाब भी मुझे अधूरे ही मिले थे।
मैं:"फिर ये बताओ, प्यांनसी शेरा से क्या दुश्मनी है। और अगर तुम कुछ नहीं जानते तो तुम्हे कैसे पता कि वो शेरा के साथियों को मारना चाहते है।"
सिन्हा:"क्योंकि मुझे मारने की कोशिश हुई है। मुझे तो अब तक लग रहा था कि तुम उनके लिए ही काम करते हो। मेरा बस अंदाजा है, की वो लोग उनके कामों में किसी की दखल अंदाजी नहीं चाहते जो कोई भी उनके लिए धोखा तैयार करे।"
मैं:"तू बहुत ही ज्यादा फेक रहा है। उन्होंने शेरा के पुराने साथी विजू को अपने साथ काम पर रखा है। और उन्हें तुझ जैसे गांड चाटने वाले से क्या दिक्कत होगी?"
सिन्हा:"मैं सच कह रहा हु, उन्होंने मुझे मारने की कोशिश की है।"
मैंने गुस्से मे उसपर हमला किया। अचानक मुझे कुछ आवाज सुनाई दी। मैं समझ गया कि पुलिस आ चुकी है। वो आयेगी मुझे पता ही था क्योंकि मैने कमिश्नर का फोन जो चालू रखा था। लेकिन वो इतनी जल्दी आएगी ये अपेक्षा नहीं थी।
मैं जल्दी काम निपटाकर वहां से निकल गया। मेरी गाड़ी वहा से आधा किलो मीटर दूर थी। गाड़ी लेकर मैं मेरे और विद्या के घर के पास आ गया। मुझे अब डर नहीं था कि कोई मुझे विद्या के घर के पास पकड़ ले। क्योंकि विमल ने बताया था। अगर नहीं बोलता तो भी मैं सिर्फ विद्या को देखने के लिए वहां आ जाता। लेकिन शायद वो अपने कमरे में थी। मैं वहा पर रुका रहा।
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मेरी नींद पूरी नहीं हुई थी। आज रविवार था, छत पर सुचित्रा और उसके पति के झगड़ने की आवाज आ रही थी। मैं बाहर आंगन में बैठा दांत घिस रहा था। अपनी ही सोच में था, तभी सामने से श्वेता आई और घूरते हुए ऊपर चली गई।
कुछ देर बाद मुझे किचेन से आवाज आई।किचेन मेरे कमरे और हॉल के पास ही था।
मैं व्यायाम कर रहा था इस वजह भूख भी लगी हुई थी। जाकर देखा तो श्वेता नाश्ता बना रही थी।
मैं(अंदर आते हुए):"क्या हुआ दीदी मां कहा है?"
श्वेता (आंखे दिखाते हुए):"क्यों तेरा मन नहीं भरा उसे तकलीफ दे कर।"
मैं:"क्या बोल रही हो दीदी? मैं तो बस रोज वो नाश्ता बनाती है इसीलिए पूछा।"
कढ़ाई में कुछ भुन रहा था, मिर्च और राय की खुशबू नाकों में चढ़ रही थी। श्वेता ने तभी आंच धीमी की।
श्वेता:"आज मैं बना रही हु। मां के पीछे पहले ही बहुत चिंता है, तेरे वजह आज सुबह 'मां' के साथ 'पापा' ने झगड़ा किया। क्या क्या संभालेगी बिचारी।"
मैं:"क्यों लेकिन?"
श्वेता:"तू कभी घर पर रहता है। कभी भी मुंह उठाके चला आया जैसे भाड़े पे रह रहा है और हमे पैसे देता हो।"
मैं आगे बोल नहीं पाया।
श्वेता:"पहले लगा था, तू अपनी जिंदगी के साथ कुछ भी करे लेकिन मां का तो ख्याल रख ही लेगा। लेकिन नहीं, तूने तो ठेका ले रखा है बच्चों से भी गुजरा बरताव करणे की।"
मेरे पास बोलने को शब्द नहीं थे। वो मुझे जो इंसान समझती है उसी वजह से वो मुझसे यानी शुभम से आशाएं रखते है। जो कि उनके हिसाब से सही है। लेकिन मेरी जिम्मेदारी ये नहीं थी, विद्या थी, मेरी मां थी।
श्वेता गुस्से में:"क्यों पता नहीं, उस एक्सीडेंट में बचकर तूने क्या कर दिया? तभी मर जाता तो ही अच्छा होता।"
उसने पीछे देखा तो शुभम वहां नहीं था। कढ़ाई में भुन रहे मसाले अब जल चुके थे। आंच धीमी थी लेकिन देर भी उसे बहुत हुई थी। जोश में किए गए काम से श्वेता पर भी उसका असर हुआ, हाथ जल चुका था। अब दर्द उसे भी बहुत हो रहा था।
मैं वहा से अपने कमरे में चला गया। कुछ वक्त ऐसे ही बैठने के बाद श्वेता वहां पर आई।
श्वेता:"ये लो नाश्ता कर लो।"
मैने उसके हाथ से प्लेट ले ली। और शांति से खाने लगा।
श्वेता:"ये पहली बार नहीं है, तुमसे कितनी बार मैने कहा है, लेकिन तुम खुदको को बदलते ही नहीं हो।"
मैं:"मैं कोशिश कर रहा हु।" मुझे यही जवाब सही लगा।
श्वेता:"मुझसे झूठ मत बोलो, मैं तुम्हे इस लिए डांटती हु क्योंकि मेरा हक है। तुम भाई हो मेरे, मेरी अपेक्षाएं है तुमसे।"
मैं:"जानता हु।"
श्वेता:"बहुत बड़ी नहीं लेकिन कुछ तो कर पाओ, मां हमेशा तुम्हारे लिए पापा से नहीं लड़ सकती, क्योंकि पापा भी सही है, वो सब तुम्हारी देखभाल जिदंगी भर नहीं करेंगे।"
मैने अपना सर नीचे कर लिए। मेरी नजर श्वेता के जले हाथ पर गई, लेकिन कुछ कहने की क्षमता मुझमें नहीं थी। भलेही मैं वो इंसान नहीं था जिससे श्वेता की अपेक्षा होनी चाहिए लेकिन मेरी भी थोड़ी बहुत गलती थी। काश मैं सभी चीजें अच्छे से संभाल पाता, इन सब में मेरा भी दोष था। मुझ पर अब शुभम की जिम्मेदारी थी। उसका शरीर मुझे एक भेट के रूप में मिला है, तो उसके साथ मुझे उसकी जिम्मेदारी भी लेनी पड़ेगी।
श्वेता:"मैं कुछ नहीं चाहती तुमसे। ये सब तुम्हारे लिए कह रही हु। ये ड्रग्स,शराब और याराना सब बर्बाद कर रहा है तुम्हे।"
मैं:"दीदी, वो सब मैने छोड़ दिया है। मुझे उन सब की जरूरत नहीं है।"
श्वेता:"तू सच बोल रहा है? फिर उस गौतम के साथ क्यों घूम रहा था? और बाहर बाहर क्यों रहता है दिन भर?"
मैं:"मुझे इंस्पेक्टर विमल मदत कर रहे है, उन सब से निकलने के लिए।"
श्वेता:"सच, ये तेरा कोई झूठ तो नहीं?"
मैं:"नहीं बिल्कुल झूठ नहीं कह रहा हु। वो तो बस उनकी मदद कर रहा हु। मैं ये सब नहीं चाहता लेकिन मेरी की गलती को सुधारना तो होगा ही।"
श्वेता के चेहरे पर थोड़ी खुशी तो थी। शायद वो गुस्सा इसलिए थी क्योंकि वो शुभम की चिंता करती थी।
.....लाइक करदो भाइयों, ये अपडेट जल्दी दे दी, क्योंकि फ्री था और कल त्यौहार भी है। बाकी अपने विचार जरूर रखना।
Thanks, Hafte me ek baar dene ki koshish karunga ekhadi jaldi bhi aa jaye shayad. Agli shayad aaj yaa kal aayegi.Bohot badhiya story hai. Bas updates thoda jaldi dene ka try karo bhai
Ok bro waitingThanks, Hafte me ek baar dene ki koshish karunga ekhadi jaldi bhi aa jaye shayad. Agli shayad aaj yaa kal aayegi.