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ThanksBahut hee jabardast update hai….
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अब अगली अपडेट तो कल आयेगी। आधी लिखी है। एक week में एक आएगी। अगर फ्री रहा तो दो एक हफ्ते में।स्टोरी बहुत अच्छी है लेकिन अपडेट बहुत ही ज्यादा स्लो आ रहे है । बस अपडेट जल्दी दे दो भाई ........
ज़रूर मित्र इंतज़ार रहेगा अगले अपडेट का !अब अगली अपडेट तो कल आयेगी। आधी लिखी है। एक week में एक आएगी। अगर फ्री रहा तो दो एक हफ्ते में।
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Shaandar jabardast Romanchak Update![]()
Badhiya Story!
Bahut badiya :![]()
Lovely starting maja aa gaya bus update jaldi dene ki try karna![]()
Bahut hi umda upate he Anatole Bro,
Shubham aur Vidhya ka aamna samna hota he, lekin shubhak chah kar bhi apne baare me kuch bhi vidhya ko nahi bata sakta.............
Shubham ke mama ki NGO ko vahi godown rent par diya he.....
Ho sakta he chetan mama ka bhi koi haath ho us drug rackit me
Keep rocking Bro
Bahut hee jabardast update hai….
भाग 6 आ गया हैस्टोरी बहुत अच्छी है लेकिन अपडेट बहुत ही ज्यादा स्लो आ रहे है । बस अपडेट जल्दी दे दो भाई ........
Shaandar jabardast Romanchak Update#६.तुम्हे ये अधिकार किसने दिया?
श्याम का वक्त था, हर दिन की तरह आज भी मैं बाहर था।
मुझे थोड़ा डर लग रहा था। मैं पुलिस वाला था। तब वो लोगों की रक्षा के लिए जो किया वो मेरा कर्तव्य था। कर्तव्य आत्मा का होता है ऐसा सुना था , लेकिन मैं अभी भी उन सब से भाग सकता था। विमल क्या करेगा? उसका मुझे कुछ पता नहीं था। उसे मुझपर शक तो होगा ही। और क्योंकि मैं उसे सच नहीं बता सकता, अगर कोई मुझे भी ये बात बताता तब भी मैं ये ना मानता। लेकिन मानने ना मानने से क्या होगा सच नहीं बदलेगा। पर ये तो सब कहने की बात है, विमल के सामने मुझे झूठ ही बोलना पड़ेगा जो कि सच जैसा लगे।
विमल के घर आया, एक छोटा सा कमरा था, जिसमें ना कोई सामान था नाही ज्यादा कुछ बस कुछ कुर्सियां थी। यहां में पहली बार नहीं आया था। लेकिन कौन भला अपने घर में ऐसे कमरे बनवाता है। विमल ने अपने पास रखी कुर्सी पर मुझे बैठने को कहा।
विमल : "तुम आरव को कैसे जानते थे?"
मैं:"दरअसल मैने आरव की जान बचाई थी एक बार, और ये बात लगभग 2 साल पहले की है, जब किसी चंपक नाम के गुंडे ने माल पर हमला किया था तब।"
विमल:"हा याद आया,जहां पर आरव अकेला फंस चुका था, शायद मैं उस वक्त छुट्टी पर था।"
मैं:"उस वक्त मैं आरव के साथ ही था, और उसके बाद मैने ही आरव को अस्पताल ले जाने में मदत की।"
विमल :"हा लेकिन मैं जब आरव से मिलने आया तो वहां तो कोई नहीं था।"
मैं:"दअरसल मेरे घर वाले बहुत चिंता करते है मेरी और तब मैं अठारह साल का भी नहीं था। और मैं डर भी गया था, पर उसके बाद आरव खुद मिलने आया था।"
विमल:"सर कहो, तुम किसके बारे में बात कर रहे हो याद रखो।"
मैं:"सॉरी, वो.. माफ करना। हा इस तरह मेरी उनसे पहचान हुई, और फिर उनकी मौत की खबर आई।"
विमल:"समझ गया, आरव तुम्हारे लिए प्रेरणा है, इसीलिए तुम ये सब करना चाहते हो।"
मैं:"नहीं मेरे लिए आरव ... सर प्रेरणा नहीं है, उन्होंने भी बहुत गलतियां की है।"
विमल:"उसने कुर्बानी दी है। वो इन गुनहगारों के विरुद्ध मशाल है।"
मैं:"हा ये जानता हु,उनकी कुर्बानी मेरे लिए मायने रखती है। और इसीलिए अच्छे बुरे से ज्यादा वो किस लिए लड़ा है ये जरूरी है।"
विमल मेरी और देखता रह गया। शायद में कुछ ज्यादा ही बोल गया था।
विमल:"वैसे क्या नाम बताया? ..शुभम, अपनी उमर के हिसाब से बेहद होशियार लगते हो। और हा, तुम पर ‘आरव‘ की वजह से, भरोसा कर रहा हु ये ध्यान रखना। "
मैने सर हिलाकर हा कहा।
विमल:"अब ये बताओ तुम उस गोडाउन क्या करने गए थे।"
मैं:"मुझे आरव की मौत के बाद भरोसा नहीं हो रहा था,इसीलिए खुद जहां उसने आखिरी दम तोड़े वहां देखने गया। लेकिन मुझे वहां बहुत से गुंडे हथियार लिए दिखे। वहां पर कुछ लोगों के हाथों में पुड़िया दिखाई दी मैं समझ गया कि। मांजरा क्या है।"
विमल:"वैसे गोडाउन होना तो उस संस्थान के पास ही चाहिए, लेकिन तुम्हारे कहे अनुसार नहीं है। इसीलिए तुमने विद्या को परेशान किया, पुलिस के पास आने से पहले।"
मैं:"मेरा सताने का उद्देश्य बिल्कुल नहीं था। लेकिन मैं किसी भरोसेमंद पुलिस अफसर को जानता भी नहीं हु। और विद्या जी वही पर काम करती है।"
विमल ने मेरी तरफ घूरते हुए कहा:"अच्छा ज्यादा होशियार बन रहे हो, हमे भी पता है कि तुम कितने दूध के धूले हुए हो, इतने देर से पागल बना रहे हो नहीं।
मैं:"क्या?"
विमल:"ज्यादा होशियार मत बनो, तुम्हे क्या लगता है, लाशे बिछाकर तुम आराम से पुलिस के सामने खड़े होंगे और पुलिस कुछ कर नहीं पाएगी। तुम्हे ये अधिकार किसने दिया? जो तुम कुछ भी करोगे और हम चुपचाप देखते रहेंगे?"
मैंने अपने भावों को काबू करने की कोशिश की।
मैं:"सर आप ये कैसी पागलों जैसी बाते कर रहे हो, लाशे बिछाई है क्या बोल रहे है?"
विमल:"अरे खुद 30 लोगो की जान ली और एक तो लगभग मरने की कगार पर है और तुम कह रहे हो कि मैं पागलों जैसी बाते कर रहा हु।"
मैं:"30 लाशे, आप ये पहले बेहूदी बाते बंद करो? मुझे पता था कि पुलिस नकारी है, लेकिन इतनी कभी नहीं सोचा था की, 30 लोगो के कत्ल का इल्जाम किसी भी 18 साल के लड़के पर डाल दे। क्योंकि उनसे अपना काम ढंग से नहीं होता।"
विमल :"मैने कहा ना, कि तुम उमर के हिसाब से ज्यादा होशियार हो। लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार तो खूनी 18 साल का है, और तुम्हारे पास कारण भी है।"
मैं:"मैं किसी का खून क्यों करूंगा? मैने अब तक किसी से झगड़ा तक नहीं किया खून तो दूर की बात? "
विमल:"अच्छा, अब ये भी बोल दो कि तुमने अब तक नहीं सुना कि किसी एक इंसान ने 30 लोगो मारा है।"
मैं आगे कुछ नहीं बोला।
विमल:"बोल दो, मैने भी तुमसे बड़े बड़े देखे है, और मैं आंखों देख पहचान लेता हु कि उसके इरादे कितने बड़े है, आरव को तो जानते ही होंगे और उसी से ये सब सिखा होगा। उसका तरीका भी पूरी तरह ऐसा ही था, और तुम्हारी बातों के तरीके से ये कह सकता हु कि तुम शायद आरव को मुझसे जानते थे, क्योंकि उसने तो मुझे तुम्हारे बारे में नहीं बताया।"
मैं:"मतलब आप सिर्फ में आरव को जानता हु, उस बिनाह पर मुझे दोषी ठहरा रहे है। शायद विद्याजी ने आप पर भरोसा कर, गलती कर दी।"
विमल:"देखो शुभम, तुम भी जानते हो मैं भी। तो इसीलिए वो बाते छोड़ो और सीधे मुद्दे की बात करता हु, मैं तुम्हे दोषी नहीं ठहरा रहा, बल्कि एक मौका दे रहा हु, तुम मेरे साथ काम करो। जैसा कि तुम कर रहे हो बस मेरे लिए कानून के लिए।"
मैंने चिढ़ते हुए कहा:"आप जो सोच रहे है वो मैं नहीं हु?"
विमल:"और कोण हो सकता है, रंग रूप और उमर भी जैसी बताई वैसी ही है।उसने बताया तो भरोसा नहीं हुआ कि एक पतला सा 18 साल का लड़का ये सब कर सकता है, लेकिन सबूत है और तुम कहो तो हम अस्पताल चलके दूध का दूध और पानी का पानी कर लेते है। और मुझपर भरोसा रखो, मैं तुम्हे गुनहगार नहीं मानता। बल्कि तुम तो एक योद्धा जिसे कानून के साथ लड़ना चाहिए, ना कि उनके लिए बोझ बढ़ाना चाहिए।"
मैं आगे कुछ नहीं बोला। मुझे विमल की पूरी बाते चौंकाने वालीं थी। उसे थोड़ा तो भरोसा था न्याय व्यवस्था पर लेकिन वो अब कम होता दिख रहा था। और मैं ये इतना भी पागल नहीं था कि जान ना पाऊं कि विमल मेरे साथ खेल खेल रहा है।
मैं:"हा मैं ही था।"
विमल हल्का सा हंसा।
विमल:"मुझे इंसानों की परख है।और ये याद रखना तुम मेरे लिए काम कर रहे हो। खुदको कोई होशियारी मत करना, तुम्हारा परिवार,घर और हरकते सब जानता हु मैं।"
मैने चुपचाप उसकी बाते सुनता गया। थोड़ा डर था कि शायद इसे शुभम के ड्रग से के बारे के पता होगा। और ऊपर से विमल थोड़ा होशियार तो था लेकिन बहुत गलत लोगों पर भरोसा कर देता था। और ये जानकारी ये किसी को ना बता दे बस इसी बात का डर था।
मैं:"सर मेरी गुजारिश है कि कुछ वक्त के लिए आप ये बाते अपने तक ही रखिए।"
विमल गुस्से से:"अच्छा अब तुम मुझे पागल समझते हो, मैं जो तुम्हे काम दूंगा वो तुम करोगे, और तुम्हारा सबसे जरूरी काम, विद्या जी रक्षा करना। भलेही वो मन से मजबूत औरत है लेकिन अपना पति और बाद में बच्चा खोने के बाद इंसान कुछ चीजें अच्छे से सोच नहीं पाता ।" ये शब्द सुनते ही मैं कुछ पल के लिए कुछ सुन नहीं पाया। कुछ समझ नहीं पा रहा था। ये क्या हुआ। मेरी ये बात अब तक ध्यान क्यों नहीं आई, ये सब मेरी गलती थी। मेरी वजह से आज मेरा बच्चा जिंदा नहीं है। और कैसा बाप हु मैं।
विमल: " इसीलिए तुम उनके आसपास रहोगे तो उन्हें शायद ज्यादा आपत्ति ना होगी जितनी पुलिस से होती है।"
घर आतें ही चेतन(शुभम के मामा),सुचिता(मां) और श्वेता मेरे कमरे के बाहर हॉल में बैठे हुए मिले।
चेतन:"कहा गए थे? कबसे तुम्हे फोन लगाया उठाया क्यों नहीं।" मैने उनकी बात का जवाब नहीं दिया और वहा से सीधे कमरे में चला गया।
वहां बैठी सुचित्रा मेरे पीछे आई।
"बेटा क्या हुआ?, ऐसा अपने मामा के साथ कोई व्यवहार करता है क्या?"
मैं अपनी लाल आंखे जो आंसू बाहर आने को उतावली हो रही थी, उसे अपने सीने में दबाते हुए बोला।:"मुझे नहीं पता।"
सुचित्रा:"जबान लड़ाता है?" एक करारा थप्पड़ मेरे मुंह पे पड़ा।"कोई परिवार से ऐसा बर्ताव करता है?"
मैने चिल्लाते हुए कहा,"नहीं पता मुझे कुछ।" जिसके साथ आंखों से आंसू बहने लगे।"मुझे नहीं है समझ किसी चीज की।"
मुझे इस तरह रोते और चिल्लाते देख श्वेता और चेतन दोनो खड़े हुए।
चेतन:"बेटे क्या हुआ?किसीने कुछ कहा क्या?"
मैंने लंबी लंबी सांस लेते ना में सर हिलाया।
सुचित्रा:"तो फिर हुआ क्या बेटा?" इतना कहते हुए सुचित्रा ने अपना हाथ मेरे चेहरे पर घुमाया।
मेरा मुंह थरथरा रहा था। सभी को मेरे लिए इतनी चिंता देख मुझे मेरे इस तरह चिल्लाने पर पछतावा हुआ।
मैं हल्की सांसों के साथ आंसू पहुंचते हुए:"कुछ नहीं, मुझे इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था। प्लीज मुझे माफ कर देना।"
सुचित्रा:"हा वो तो ठीक है। लेकिन तुझे हुआ क्या बेटा इस तरह रोने के लिए। कुछ हुआ क्या?"
नीचे झुके सर के साथ ना में इशारा किया।
"क्या हुआ?क्यों चिल्ला रहे थे इतने जोर से?" शुभम के पिता ने दरवाजे पर खड़े हो कर कहा।
शू. पिता:"आवाज ऊपर के कमरे तक आ रही थी।"
सुचित्रा:"कुछ नहीं जी, वो बस जोर से बाते कर कर रहे थे।"
शू.पिता:"तो फिर ये साहब क्यों रो रहे है? और इतनी जोर से चिल्ला क्यों रहे थे। तुम्हे किसने अधिकार दिया अपनी मां पर चिल्लाने का?"
चेतन:"प्लीज,जीजाजी रहने दीजिए ?"
शू.पिता:"क्यों रहने दु? जब उसका मन करे तब आयेगा। किसी पर भी चिल्लाएगा, जैसे मां बाप नहीं नौकर है उसके, और आज भी क्यों आया?
रो तो ऐसे रहा था जैसे कोई मर गया हो।"
बस इतना कहना था मैने वही से कमरे में घुसकर दरवाजा बंद कर दिया। बाहर शू.पिता के चिल्लाने के आवाज आ रही थी। उन्हें क्या पता किसी पता मुझ पर क्या बीत रही है? मेरा बहुत मन हो रहा था विद्या से मिलने का वहीं थी जो मेरा हम जानती थी। वो ये लिए जी रही थी और मैं इन लोगों के साथ परिवार परिवार खेलने के व्यस्थ था। विद्या की इसमें कोई गलती नहीं थी। मुझे ही हीरो बनने का बड़ा शौक था। शायद वो मेरी जिंदगी में ना आई होती, बिचारी खुश तो रहती। मैं बहुत वक्त तक रोता रहा। शायद इतना कभी रोया नहीं था।
तभी दरवाजे पर खटखटाहट हुई।
श्वेता:"शुभम"
दो तीन बार खटखटाते हुए , आवाज दिया।
मैने दरवाजा खोला।
श्वेता ने मेरी तरफ देखा।
श्वेता:"लगता है अब मूड थोड़ा ठीक है।"
मैंने उसकी बात को अनसुना कर:"बोलो क्या बात है?"
श्वेता:"दरअसल, तुम सुबह पूछ रहे थे ना कि, मुझे क्या हुआ है?"
मैं:"तो उसका अभी क्या?"
श्वेता:"मुझे पता है ये वक्त सही नहीं है, लेकिन मुझे बहुत जरूरत है श्रद्धा से मिलने की अभी।"
मैं:"क्यों?"
श्वेता:"मैने पूछा क्या तुम्हे? की तुम क्यों रो रहे थे लड़कियों जैसे?"
मेरे चेहरे पर शायद अपनी बात से निराशा देख कर वो बोली:"देखो, मुझे पता है कि तुम मुझे अपनी कोई बात नहीं बताओगे? जैसा कि आज तक हुआ है, लेकिन मैं मेरी समस्या सच में तुम्हे बता नहीं सकती। तुम बस मेरी मदत करो ये बहुत जरूरी है।"
मैं कुछ नहीं बोला, बस सोचते हुए देखता रहा।
श्वेता:"तुम्हे मैं भी मदत करूंगी अगर कुछ लगे तो।"
वैसे मुझे अब बाहर जाने के लिए मनाई तो नहीं थी। डांट मिलती थी लेकिन उतनी सुन लूंगा, पर क्या पता आगे श्वेता मुझे उसके मां बाप से बचाले।
मैं:"ठीक है। मैं मुंह धोकर आता हु।"
____________
श्रद्धा को देखते ही श्वेता सीधे उसके गले लग गई।
श्वेता:"श्रद्धा,क्या हुआ तुझे ऐसी हालत क्यों बना के रखी?"
श्रद्धा:"उसने मुझे छूने की कोशिश की।"
इतना कहकर श्रद्धा रोने लगी।
श्वेता:"मैंने यहां जल्दी आने की कोशिश की लेकिन मेरे घर पर ..."
वो आगे कुछ बोलती तभी उसकी नजर सामने पड़ी। वैसे ही उसने श्रद्धा की तरफ देखा।
श्वेता का गला अब कांपने लगा:"क्या हुआ था यहां?"
श्रद्धा कुछ नहीं बोली बस रोती रही।
श्वेता:"ये सब कैसे हुआ, क्या वो लोग आए थे?"
श्रद्धा रोते हुए:" मेरे पीता जी को वो उठाके ले गए। कह रहे थे कि अगर मैने पुलिस थाने जाकर अगर शिकायत वापस नहीं ली, तो वो मेरे पिताजी को मार देंगे।"
श्वेता ने पूरे कमरे में देखा, सभी तरफ चीजें गिरी हुई थी। श्रद्धा की हालत रो रो कर खराब हो चुकी थी।
श्रद्धा:"मैं इसीलिए आज कॉलेज नहीं आई, मुझे रात को धमकी भरा फोन आया था, और आज ये।"
श्वेता:"श्रद्धा तू चिंता मत कर हम पुलिस के पास जाएंगे तो वो हमारी मदत जरूर करेंगे।"
श्रद्धा:"कोई मदत नहीं करेगा हमारी, मैं शिकायत वापस ले लेती हु, उसके अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है।"
श्वेता:"श्रद्धा तू ठीक से सोच नहीं रही है। अब तो शिकायत के डर से तेरे साथ कुछ नहीं कर रहे अगर किया तो वो जेल चला जाएगा। लेकिन वापस लेने पर उसे कौन रोकेगा।"
श्रद्धा:"मुझे कुछ भी हो? मैं अपने पापा को नहीं खो सकती।"
श्वेता :"क्या तुम्हे लगता है, की शिकायत वापस लेने के बाद तेरे पापा को छोड़ेंगे। लेकिन अगर तू पुलिस के पास जाएगी तो शायद वो हमारी कुछ मदत कर दे।"
श्रद्धा:"नहीं वो नहीं करेगी। उनका जरूर कोई हम पर नजर रखे हुए होगा।"
वो इतना बोल रही थी कि उनके दरवाजे पर खटखटाहट हुई।
"दीदी, मैं हु।"
शुभम की आवाज आते ही श्रद्धा ने कहा:"ये यह क्या कर रहा है?"
श्वेता:"रुक, देखती हु।"
दरवाजा खोलते हुए श्वेता:"क्या हुआ?"
शुभम अन्दर आकर:"कुछ नहीं, वो बस मैने सब सुन लिया।"
.....लाइक और अपनी विचार रखो।
ये अपडेट छोटी लगेगी क्योंकि इसमें ज्यादा भाग विमल और आरव की बाते थी। मैंने वो पार्ट दो दिन पहले ही लिख दिया था। बस वो रोने वाला सीन लिखने में वक्त लगा। थोड़ी writing मिस्टेक्स होगी तो माफ कर देना।
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Thanks Bhai,Shaandar jabardast Romanchak Update![]()
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कहानी लाजवाब है#६.तुम्हे ये अधिकार किसने दिया?
श्याम का वक्त था, हर दिन की तरह आज भी मैं बाहर था।
मुझे थोड़ा डर लग रहा था। मैं पुलिस वाला था। तब वो लोगों की रक्षा के लिए जो किया वो मेरा कर्तव्य था। कर्तव्य आत्मा का होता है ऐसा सुना था , लेकिन मैं अभी भी उन सब से भाग सकता था। विमल क्या करेगा? उसका मुझे कुछ पता नहीं था। उसे मुझपर शक तो होगा ही। और क्योंकि मैं उसे सच नहीं बता सकता, अगर कोई मुझे भी ये बात बताता तब भी मैं ये ना मानता। लेकिन मानने ना मानने से क्या होगा सच नहीं बदलेगा। पर ये तो सब कहने की बात है, विमल के सामने मुझे झूठ ही बोलना पड़ेगा जो कि सच जैसा लगे।
विमल के घर आया, एक छोटा सा कमरा था, जिसमें ना कोई सामान था नाही ज्यादा कुछ बस कुछ कुर्सियां थी। यहां में पहली बार नहीं आया था। लेकिन कौन भला अपने घर में ऐसे कमरे बनवाता है। विमल ने अपने पास रखी कुर्सी पर मुझे बैठने को कहा।
विमल : "तुम आरव को कैसे जानते थे?"
मैं:"दरअसल मैने आरव की जान बचाई थी एक बार, और ये बात लगभग 2 साल पहले की है, जब किसी चंपक नाम के गुंडे ने माल पर हमला किया था तब।"
विमल:"हा याद आया,जहां पर आरव अकेला फंस चुका था, शायद मैं उस वक्त छुट्टी पर था।"
मैं:"उस वक्त मैं आरव के साथ ही था, और उसके बाद मैने ही आरव को अस्पताल ले जाने में मदत की।"
विमल :"हा लेकिन मैं जब आरव से मिलने आया तो वहां तो कोई नहीं था।"
मैं:"दअरसल मेरे घर वाले बहुत चिंता करते है मेरी और तब मैं अठारह साल का भी नहीं था। और मैं डर भी गया था, पर उसके बाद आरव खुद मिलने आया था।"
विमल:"सर कहो, तुम किसके बारे में बात कर रहे हो याद रखो।"
मैं:"सॉरी, वो.. माफ करना। हा इस तरह मेरी उनसे पहचान हुई, और फिर उनकी मौत की खबर आई।"
विमल:"समझ गया, आरव तुम्हारे लिए प्रेरणा है, इसीलिए तुम ये सब करना चाहते हो।"
मैं:"नहीं मेरे लिए आरव ... सर प्रेरणा नहीं है, उन्होंने भी बहुत गलतियां की है।"
विमल:"उसने कुर्बानी दी है। वो इन गुनहगारों के विरुद्ध मशाल है।"
मैं:"हा ये जानता हु,उनकी कुर्बानी मेरे लिए मायने रखती है। और इसीलिए अच्छे बुरे से ज्यादा वो किस लिए लड़ा है ये जरूरी है।"
विमल मेरी और देखता रह गया। शायद में कुछ ज्यादा ही बोल गया था।
विमल:"वैसे क्या नाम बताया? ..शुभम, अपनी उमर के हिसाब से बेहद होशियार लगते हो। और हा, तुम पर ‘आरव‘ की वजह से, भरोसा कर रहा हु ये ध्यान रखना। "
मैने सर हिलाकर हा कहा।
विमल:"अब ये बताओ तुम उस गोडाउन क्या करने गए थे।"
मैं:"मुझे आरव की मौत के बाद भरोसा नहीं हो रहा था,इसीलिए खुद जहां उसने आखिरी दम तोड़े वहां देखने गया। लेकिन मुझे वहां बहुत से गुंडे हथियार लिए दिखे। वहां पर कुछ लोगों के हाथों में पुड़िया दिखाई दी मैं समझ गया कि। मांजरा क्या है।"
विमल:"वैसे गोडाउन होना तो उस संस्थान के पास ही चाहिए, लेकिन तुम्हारे कहे अनुसार नहीं है। इसीलिए तुमने विद्या को परेशान किया, पुलिस के पास आने से पहले।"
मैं:"मेरा सताने का उद्देश्य बिल्कुल नहीं था। लेकिन मैं किसी भरोसेमंद पुलिस अफसर को जानता भी नहीं हु। और विद्या जी वही पर काम करती है।"
विमल ने मेरी तरफ घूरते हुए कहा:"अच्छा ज्यादा होशियार बन रहे हो, हमे भी पता है कि तुम कितने दूध के धूले हुए हो, इतने देर से पागल बना रहे हो नहीं।
मैं:"क्या?"
विमल:"ज्यादा होशियार मत बनो, तुम्हे क्या लगता है, लाशे बिछाकर तुम आराम से पुलिस के सामने खड़े होंगे और पुलिस कुछ कर नहीं पाएगी। तुम्हे ये अधिकार किसने दिया? जो तुम कुछ भी करोगे और हम चुपचाप देखते रहेंगे?"
मैंने अपने भावों को काबू करने की कोशिश की।
मैं:"सर आप ये कैसी पागलों जैसी बाते कर रहे हो, लाशे बिछाई है क्या बोल रहे है?"
विमल:"अरे खुद 30 लोगो की जान ली और एक तो लगभग मरने की कगार पर है और तुम कह रहे हो कि मैं पागलों जैसी बाते कर रहा हु।"
मैं:"30 लाशे, आप ये पहले बेहूदी बाते बंद करो? मुझे पता था कि पुलिस नकारी है, लेकिन इतनी कभी नहीं सोचा था की, 30 लोगो के कत्ल का इल्जाम किसी भी 18 साल के लड़के पर डाल दे। क्योंकि उनसे अपना काम ढंग से नहीं होता।"
विमल :"मैने कहा ना, कि तुम उमर के हिसाब से ज्यादा होशियार हो। लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार तो खूनी 18 साल का है, और तुम्हारे पास कारण भी है।"
मैं:"मैं किसी का खून क्यों करूंगा? मैने अब तक किसी से झगड़ा तक नहीं किया खून तो दूर की बात? "
विमल:"अच्छा, अब ये भी बोल दो कि तुमने अब तक नहीं सुना कि किसी एक इंसान ने 30 लोगो मारा है।"
मैं आगे कुछ नहीं बोला।
विमल:"बोल दो, मैने भी तुमसे बड़े बड़े देखे है, और मैं आंखों देख पहचान लेता हु कि उसके इरादे कितने बड़े है, आरव को तो जानते ही होंगे और उसी से ये सब सिखा होगा। उसका तरीका भी पूरी तरह ऐसा ही था, और तुम्हारी बातों के तरीके से ये कह सकता हु कि तुम शायद आरव को मुझसे जानते थे, क्योंकि उसने तो मुझे तुम्हारे बारे में नहीं बताया।"
मैं:"मतलब आप सिर्फ में आरव को जानता हु, उस बिनाह पर मुझे दोषी ठहरा रहे है। शायद विद्याजी ने आप पर भरोसा कर, गलती कर दी।"
विमल:"देखो शुभम, तुम भी जानते हो मैं भी। तो इसीलिए वो बाते छोड़ो और सीधे मुद्दे की बात करता हु, मैं तुम्हे दोषी नहीं ठहरा रहा, बल्कि एक मौका दे रहा हु, तुम मेरे साथ काम करो। जैसा कि तुम कर रहे हो बस मेरे लिए कानून के लिए।"
मैंने चिढ़ते हुए कहा:"आप जो सोच रहे है वो मैं नहीं हु?"
विमल:"और कोण हो सकता है, रंग रूप और उमर भी जैसी बताई वैसी ही है।उसने बताया तो भरोसा नहीं हुआ कि एक पतला सा 18 साल का लड़का ये सब कर सकता है, लेकिन सबूत है और तुम कहो तो हम अस्पताल चलके दूध का दूध और पानी का पानी कर लेते है। और मुझपर भरोसा रखो, मैं तुम्हे गुनहगार नहीं मानता। बल्कि तुम तो एक योद्धा जिसे कानून के साथ लड़ना चाहिए, ना कि उनके लिए बोझ बढ़ाना चाहिए।"
मैं आगे कुछ नहीं बोला। मुझे विमल की पूरी बाते चौंकाने वालीं थी। उसे थोड़ा तो भरोसा था न्याय व्यवस्था पर लेकिन वो अब कम होता दिख रहा था। और मैं ये इतना भी पागल नहीं था कि जान ना पाऊं कि विमल मेरे साथ खेल खेल रहा है।
मैं:"हा मैं ही था।"
विमल हल्का सा हंसा।
विमल:"मुझे इंसानों की परख है।और ये याद रखना तुम मेरे लिए काम कर रहे हो। खुदको कोई होशियारी मत करना, तुम्हारा परिवार,घर और हरकते सब जानता हु मैं।"
मैने चुपचाप उसकी बाते सुनता गया। थोड़ा डर था कि शायद इसे शुभम के ड्रग से के बारे के पता होगा। और ऊपर से विमल थोड़ा होशियार तो था लेकिन बहुत गलत लोगों पर भरोसा कर देता था। और ये जानकारी ये किसी को ना बता दे बस इसी बात का डर था।
मैं:"सर मेरी गुजारिश है कि कुछ वक्त के लिए आप ये बाते अपने तक ही रखिए।"
विमल गुस्से से:"अच्छा अब तुम मुझे पागल समझते हो, मैं जो तुम्हे काम दूंगा वो तुम करोगे, और तुम्हारा सबसे जरूरी काम, विद्या जी रक्षा करना। भलेही वो मन से मजबूत औरत है लेकिन अपना पति और बाद में बच्चा खोने के बाद इंसान कुछ चीजें अच्छे से सोच नहीं पाता ।" ये शब्द सुनते ही मैं कुछ पल के लिए कुछ सुन नहीं पाया। कुछ समझ नहीं पा रहा था। ये क्या हुआ। मेरी ये बात अब तक ध्यान क्यों नहीं आई, ये सब मेरी गलती थी। मेरी वजह से आज मेरा बच्चा जिंदा नहीं है। और कैसा बाप हु मैं।
विमल: " इसीलिए तुम उनके आसपास रहोगे तो उन्हें शायद ज्यादा आपत्ति ना होगी जितनी पुलिस से होती है।"
घर आतें ही चेतन(शुभम के मामा),सुचिता(मां) और श्वेता मेरे कमरे के बाहर हॉल में बैठे हुए मिले।
चेतन:"कहा गए थे? कबसे तुम्हे फोन लगाया उठाया क्यों नहीं।" मैने उनकी बात का जवाब नहीं दिया और वहा से सीधे कमरे में चला गया।
वहां बैठी सुचित्रा मेरे पीछे आई।
"बेटा क्या हुआ?, ऐसा अपने मामा के साथ कोई व्यवहार करता है क्या?"
मैं अपनी लाल आंखे जो आंसू बाहर आने को उतावली हो रही थी, उसे अपने सीने में दबाते हुए बोला।:"मुझे नहीं पता।"
सुचित्रा:"जबान लड़ाता है?" एक करारा थप्पड़ मेरे मुंह पे पड़ा।"कोई परिवार से ऐसा बर्ताव करता है?"
मैने चिल्लाते हुए कहा,"नहीं पता मुझे कुछ।" जिसके साथ आंखों से आंसू बहने लगे।"मुझे नहीं है समझ किसी चीज की।"
मुझे इस तरह रोते और चिल्लाते देख श्वेता और चेतन दोनो खड़े हुए।
चेतन:"बेटे क्या हुआ?किसीने कुछ कहा क्या?"
मैंने लंबी लंबी सांस लेते ना में सर हिलाया।
सुचित्रा:"तो फिर हुआ क्या बेटा?" इतना कहते हुए सुचित्रा ने अपना हाथ मेरे चेहरे पर घुमाया।
मेरा मुंह थरथरा रहा था। सभी को मेरे लिए इतनी चिंता देख मुझे मेरे इस तरह चिल्लाने पर पछतावा हुआ।
मैं हल्की सांसों के साथ आंसू पहुंचते हुए:"कुछ नहीं, मुझे इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था। प्लीज मुझे माफ कर देना।"
सुचित्रा:"हा वो तो ठीक है। लेकिन तुझे हुआ क्या बेटा इस तरह रोने के लिए। कुछ हुआ क्या?"
नीचे झुके सर के साथ ना में इशारा किया।
"क्या हुआ?क्यों चिल्ला रहे थे इतने जोर से?" शुभम के पिता ने दरवाजे पर खड़े हो कर कहा।
शू. पिता:"आवाज ऊपर के कमरे तक आ रही थी।"
सुचित्रा:"कुछ नहीं जी, वो बस जोर से बाते कर कर रहे थे।"
शू.पिता:"तो फिर ये साहब क्यों रो रहे है? और इतनी जोर से चिल्ला क्यों रहे थे। तुम्हे किसने अधिकार दिया अपनी मां पर चिल्लाने का?"
चेतन:"प्लीज,जीजाजी रहने दीजिए ?"
शू.पिता:"क्यों रहने दु? जब उसका मन करे तब आयेगा। किसी पर भी चिल्लाएगा, जैसे मां बाप नहीं नौकर है उसके, और आज भी क्यों आया?
रो तो ऐसे रहा था जैसे कोई मर गया हो।"
बस इतना कहना था मैने वही से कमरे में घुसकर दरवाजा बंद कर दिया। बाहर शू.पिता के चिल्लाने के आवाज आ रही थी। उन्हें क्या पता किसी पता मुझ पर क्या बीत रही है? मेरा बहुत मन हो रहा था विद्या से मिलने का वहीं थी जो मेरा हम जानती थी। वो ये लिए जी रही थी और मैं इन लोगों के साथ परिवार परिवार खेलने के व्यस्थ था। विद्या की इसमें कोई गलती नहीं थी। मुझे ही हीरो बनने का बड़ा शौक था। शायद वो मेरी जिंदगी में ना आई होती, बिचारी खुश तो रहती। मैं बहुत वक्त तक रोता रहा। शायद इतना कभी रोया नहीं था।
तभी दरवाजे पर खटखटाहट हुई।
श्वेता:"शुभम"
दो तीन बार खटखटाते हुए , आवाज दिया।
मैने दरवाजा खोला।
श्वेता ने मेरी तरफ देखा।
श्वेता:"लगता है अब मूड थोड़ा ठीक है।"
मैंने उसकी बात को अनसुना कर:"बोलो क्या बात है?"
श्वेता:"दरअसल, तुम सुबह पूछ रहे थे ना कि, मुझे क्या हुआ है?"
मैं:"तो उसका अभी क्या?"
श्वेता:"मुझे पता है ये वक्त सही नहीं है, लेकिन मुझे बहुत जरूरत है श्रद्धा से मिलने की अभी।"
मैं:"क्यों?"
श्वेता:"मैने पूछा क्या तुम्हे? की तुम क्यों रो रहे थे लड़कियों जैसे?"
मेरे चेहरे पर शायद अपनी बात से निराशा देख कर वो बोली:"देखो, मुझे पता है कि तुम मुझे अपनी कोई बात नहीं बताओगे? जैसा कि आज तक हुआ है, लेकिन मैं मेरी समस्या सच में तुम्हे बता नहीं सकती। तुम बस मेरी मदत करो ये बहुत जरूरी है।"
मैं कुछ नहीं बोला, बस सोचते हुए देखता रहा।
श्वेता:"तुम्हे मैं भी मदत करूंगी अगर कुछ लगे तो।"
वैसे मुझे अब बाहर जाने के लिए मनाई तो नहीं थी। डांट मिलती थी लेकिन उतनी सुन लूंगा, पर क्या पता आगे श्वेता मुझे उसके मां बाप से बचाले।
मैं:"ठीक है। मैं मुंह धोकर आता हु।"
____________
श्रद्धा को देखते ही श्वेता सीधे उसके गले लग गई।
श्वेता:"श्रद्धा,क्या हुआ तुझे ऐसी हालत क्यों बना के रखी?"
श्रद्धा:"उसने मुझे छूने की कोशिश की।"
इतना कहकर श्रद्धा रोने लगी।
श्वेता:"मैंने यहां जल्दी आने की कोशिश की लेकिन मेरे घर पर ..."
वो आगे कुछ बोलती तभी उसकी नजर सामने पड़ी। वैसे ही उसने श्रद्धा की तरफ देखा।
श्वेता का गला अब कांपने लगा:"क्या हुआ था यहां?"
श्रद्धा कुछ नहीं बोली बस रोती रही।
श्वेता:"ये सब कैसे हुआ, क्या वो लोग आए थे?"
श्रद्धा रोते हुए:" मेरे पीता जी को वो उठाके ले गए। कह रहे थे कि अगर मैने पुलिस थाने जाकर अगर शिकायत वापस नहीं ली, तो वो मेरे पिताजी को मार देंगे।"
श्वेता ने पूरे कमरे में देखा, सभी तरफ चीजें गिरी हुई थी। श्रद्धा की हालत रो रो कर खराब हो चुकी थी।
श्रद्धा:"मैं इसीलिए आज कॉलेज नहीं आई, मुझे रात को धमकी भरा फोन आया था, और आज ये।"
श्वेता:"श्रद्धा तू चिंता मत कर हम पुलिस के पास जाएंगे तो वो हमारी मदत जरूर करेंगे।"
श्रद्धा:"कोई मदत नहीं करेगा हमारी, मैं शिकायत वापस ले लेती हु, उसके अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है।"
श्वेता:"श्रद्धा तू ठीक से सोच नहीं रही है। अब तो शिकायत के डर से तेरे साथ कुछ नहीं कर रहे अगर किया तो वो जेल चला जाएगा। लेकिन वापस लेने पर उसे कौन रोकेगा।"
श्रद्धा:"मुझे कुछ भी हो? मैं अपने पापा को नहीं खो सकती।"
श्वेता :"क्या तुम्हे लगता है, की शिकायत वापस लेने के बाद तेरे पापा को छोड़ेंगे। लेकिन अगर तू पुलिस के पास जाएगी तो शायद वो हमारी कुछ मदत कर दे।"
श्रद्धा:"नहीं वो नहीं करेगी। उनका जरूर कोई हम पर नजर रखे हुए होगा।"
वो इतना बोल रही थी कि उनके दरवाजे पर खटखटाहट हुई।
"दीदी, मैं हु।"
शुभम की आवाज आते ही श्रद्धा ने कहा:"ये यह क्या कर रहा है?"
श्वेता:"रुक, देखती हु।"
दरवाजा खोलते हुए श्वेता:"क्या हुआ?"
शुभम अन्दर आकर:"कुछ नहीं, वो बस मैने सब सुन लिया।"
.....लाइक और अपनी विचार रखो।
ये अपडेट छोटी लगेगी क्योंकि इसमें ज्यादा भाग विमल और आरव की बाते थी। मैंने वो पार्ट दो दिन पहले ही लिख दिया था। बस वो रोने वाला सीन लिखने में वक्त लगा। थोड़ी writing मिस्टेक्स होगी तो माफ कर देना।
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बहुत ही बढ़िया अपडेट दिया है ! अब आयेगा एक्शन फिर से कहानी में बहुत ही अच्छा लिख रहे है आप ….#६.तुम्हे ये अधिकार किसने दिया?
श्याम का वक्त था, हर दिन की तरह आज भी मैं बाहर था।
मुझे थोड़ा डर लग रहा था। मैं पुलिस वाला था। तब वो लोगों की रक्षा के लिए जो किया वो मेरा कर्तव्य था। कर्तव्य आत्मा का होता है ऐसा सुना था , लेकिन मैं अभी भी उन सब से भाग सकता था। विमल क्या करेगा? उसका मुझे कुछ पता नहीं था। उसे मुझपर शक तो होगा ही। और क्योंकि मैं उसे सच नहीं बता सकता, अगर कोई मुझे भी ये बात बताता तब भी मैं ये ना मानता। लेकिन मानने ना मानने से क्या होगा सच नहीं बदलेगा। पर ये तो सब कहने की बात है, विमल के सामने मुझे झूठ ही बोलना पड़ेगा जो कि सच जैसा लगे।
विमल के घर आया, एक छोटा सा कमरा था, जिसमें ना कोई सामान था नाही ज्यादा कुछ बस कुछ कुर्सियां थी। यहां में पहली बार नहीं आया था। लेकिन कौन भला अपने घर में ऐसे कमरे बनवाता है। विमल ने अपने पास रखी कुर्सी पर मुझे बैठने को कहा।
विमल : "तुम आरव को कैसे जानते थे?"
मैं:"दरअसल मैने आरव की जान बचाई थी एक बार, और ये बात लगभग 2 साल पहले की है, जब किसी चंपक नाम के गुंडे ने माल पर हमला किया था तब।"
विमल:"हा याद आया,जहां पर आरव अकेला फंस चुका था, शायद मैं उस वक्त छुट्टी पर था।"
मैं:"उस वक्त मैं आरव के साथ ही था, और उसके बाद मैने ही आरव को अस्पताल ले जाने में मदत की।"
विमल :"हा लेकिन मैं जब आरव से मिलने आया तो वहां तो कोई नहीं था।"
मैं:"दअरसल मेरे घर वाले बहुत चिंता करते है मेरी और तब मैं अठारह साल का भी नहीं था। और मैं डर भी गया था, पर उसके बाद आरव खुद मिलने आया था।"
विमल:"सर कहो, तुम किसके बारे में बात कर रहे हो याद रखो।"
मैं:"सॉरी, वो.. माफ करना। हा इस तरह मेरी उनसे पहचान हुई, और फिर उनकी मौत की खबर आई।"
विमल:"समझ गया, आरव तुम्हारे लिए प्रेरणा है, इसीलिए तुम ये सब करना चाहते हो।"
मैं:"नहीं मेरे लिए आरव ... सर प्रेरणा नहीं है, उन्होंने भी बहुत गलतियां की है।"
विमल:"उसने कुर्बानी दी है। वो इन गुनहगारों के विरुद्ध मशाल है।"
मैं:"हा ये जानता हु,उनकी कुर्बानी मेरे लिए मायने रखती है। और इसीलिए अच्छे बुरे से ज्यादा वो किस लिए लड़ा है ये जरूरी है।"
विमल मेरी और देखता रह गया। शायद में कुछ ज्यादा ही बोल गया था।
विमल:"वैसे क्या नाम बताया? ..शुभम, अपनी उमर के हिसाब से बेहद होशियार लगते हो। और हा, तुम पर ‘आरव‘ की वजह से, भरोसा कर रहा हु ये ध्यान रखना। "
मैने सर हिलाकर हा कहा।
विमल:"अब ये बताओ तुम उस गोडाउन क्या करने गए थे।"
मैं:"मुझे आरव की मौत के बाद भरोसा नहीं हो रहा था,इसीलिए खुद जहां उसने आखिरी दम तोड़े वहां देखने गया। लेकिन मुझे वहां बहुत से गुंडे हथियार लिए दिखे। वहां पर कुछ लोगों के हाथों में पुड़िया दिखाई दी मैं समझ गया कि। मांजरा क्या है।"
विमल:"वैसे गोडाउन होना तो उस संस्थान के पास ही चाहिए, लेकिन तुम्हारे कहे अनुसार नहीं है। इसीलिए तुमने विद्या को परेशान किया, पुलिस के पास आने से पहले।"
मैं:"मेरा सताने का उद्देश्य बिल्कुल नहीं था। लेकिन मैं किसी भरोसेमंद पुलिस अफसर को जानता भी नहीं हु। और विद्या जी वही पर काम करती है।"
विमल ने मेरी तरफ घूरते हुए कहा:"अच्छा ज्यादा होशियार बन रहे हो, हमे भी पता है कि तुम कितने दूध के धूले हुए हो, इतने देर से पागल बना रहे हो नहीं।
मैं:"क्या?"
विमल:"ज्यादा होशियार मत बनो, तुम्हे क्या लगता है, लाशे बिछाकर तुम आराम से पुलिस के सामने खड़े होंगे और पुलिस कुछ कर नहीं पाएगी। तुम्हे ये अधिकार किसने दिया? जो तुम कुछ भी करोगे और हम चुपचाप देखते रहेंगे?"
मैंने अपने भावों को काबू करने की कोशिश की।
मैं:"सर आप ये कैसी पागलों जैसी बाते कर रहे हो, लाशे बिछाई है क्या बोल रहे है?"
विमल:"अरे खुद 30 लोगो की जान ली और एक तो लगभग मरने की कगार पर है और तुम कह रहे हो कि मैं पागलों जैसी बाते कर रहा हु।"
मैं:"30 लाशे, आप ये पहले बेहूदी बाते बंद करो? मुझे पता था कि पुलिस नकारी है, लेकिन इतनी कभी नहीं सोचा था की, 30 लोगो के कत्ल का इल्जाम किसी भी 18 साल के लड़के पर डाल दे। क्योंकि उनसे अपना काम ढंग से नहीं होता।"
विमल :"मैने कहा ना, कि तुम उमर के हिसाब से ज्यादा होशियार हो। लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार तो खूनी 18 साल का है, और तुम्हारे पास कारण भी है।"
मैं:"मैं किसी का खून क्यों करूंगा? मैने अब तक किसी से झगड़ा तक नहीं किया खून तो दूर की बात? "
विमल:"अच्छा, अब ये भी बोल दो कि तुमने अब तक नहीं सुना कि किसी एक इंसान ने 30 लोगो मारा है।"
मैं आगे कुछ नहीं बोला।
विमल:"बोल दो, मैने भी तुमसे बड़े बड़े देखे है, और मैं आंखों देख पहचान लेता हु कि उसके इरादे कितने बड़े है, आरव को तो जानते ही होंगे और उसी से ये सब सिखा होगा। उसका तरीका भी पूरी तरह ऐसा ही था, और तुम्हारी बातों के तरीके से ये कह सकता हु कि तुम शायद आरव को मुझसे जानते थे, क्योंकि उसने तो मुझे तुम्हारे बारे में नहीं बताया।"
मैं:"मतलब आप सिर्फ में आरव को जानता हु, उस बिनाह पर मुझे दोषी ठहरा रहे है। शायद विद्याजी ने आप पर भरोसा कर, गलती कर दी।"
विमल:"देखो शुभम, तुम भी जानते हो मैं भी। तो इसीलिए वो बाते छोड़ो और सीधे मुद्दे की बात करता हु, मैं तुम्हे दोषी नहीं ठहरा रहा, बल्कि एक मौका दे रहा हु, तुम मेरे साथ काम करो। जैसा कि तुम कर रहे हो बस मेरे लिए कानून के लिए।"
मैंने चिढ़ते हुए कहा:"आप जो सोच रहे है वो मैं नहीं हु?"
विमल:"और कोण हो सकता है, रंग रूप और उमर भी जैसी बताई वैसी ही है।उसने बताया तो भरोसा नहीं हुआ कि एक पतला सा 18 साल का लड़का ये सब कर सकता है, लेकिन सबूत है और तुम कहो तो हम अस्पताल चलके दूध का दूध और पानी का पानी कर लेते है। और मुझपर भरोसा रखो, मैं तुम्हे गुनहगार नहीं मानता। बल्कि तुम तो एक योद्धा जिसे कानून के साथ लड़ना चाहिए, ना कि उनके लिए बोझ बढ़ाना चाहिए।"
मैं आगे कुछ नहीं बोला। मुझे विमल की पूरी बाते चौंकाने वालीं थी। उसे थोड़ा तो भरोसा था न्याय व्यवस्था पर लेकिन वो अब कम होता दिख रहा था। और मैं ये इतना भी पागल नहीं था कि जान ना पाऊं कि विमल मेरे साथ खेल खेल रहा है।
मैं:"हा मैं ही था।"
विमल हल्का सा हंसा।
विमल:"मुझे इंसानों की परख है।और ये याद रखना तुम मेरे लिए काम कर रहे हो। खुदको कोई होशियारी मत करना, तुम्हारा परिवार,घर और हरकते सब जानता हु मैं।"
मैने चुपचाप उसकी बाते सुनता गया। थोड़ा डर था कि शायद इसे शुभम के ड्रग से के बारे के पता होगा। और ऊपर से विमल थोड़ा होशियार तो था लेकिन बहुत गलत लोगों पर भरोसा कर देता था। और ये जानकारी ये किसी को ना बता दे बस इसी बात का डर था।
मैं:"सर मेरी गुजारिश है कि कुछ वक्त के लिए आप ये बाते अपने तक ही रखिए।"
विमल गुस्से से:"अच्छा अब तुम मुझे पागल समझते हो, मैं जो तुम्हे काम दूंगा वो तुम करोगे, और तुम्हारा सबसे जरूरी काम, विद्या जी रक्षा करना। भलेही वो मन से मजबूत औरत है लेकिन अपना पति और बाद में बच्चा खोने के बाद इंसान कुछ चीजें अच्छे से सोच नहीं पाता ।" ये शब्द सुनते ही मैं कुछ पल के लिए कुछ सुन नहीं पाया। कुछ समझ नहीं पा रहा था। ये क्या हुआ। मेरी ये बात अब तक ध्यान क्यों नहीं आई, ये सब मेरी गलती थी। मेरी वजह से आज मेरा बच्चा जिंदा नहीं है। और कैसा बाप हु मैं।
विमल: " इसीलिए तुम उनके आसपास रहोगे तो उन्हें शायद ज्यादा आपत्ति ना होगी जितनी पुलिस से होती है।"
घर आतें ही चेतन(शुभम के मामा),सुचिता(मां) और श्वेता मेरे कमरे के बाहर हॉल में बैठे हुए मिले।
चेतन:"कहा गए थे? कबसे तुम्हे फोन लगाया उठाया क्यों नहीं।" मैने उनकी बात का जवाब नहीं दिया और वहा से सीधे कमरे में चला गया।
वहां बैठी सुचित्रा मेरे पीछे आई।
"बेटा क्या हुआ?, ऐसा अपने मामा के साथ कोई व्यवहार करता है क्या?"
मैं अपनी लाल आंखे जो आंसू बाहर आने को उतावली हो रही थी, उसे अपने सीने में दबाते हुए बोला।:"मुझे नहीं पता।"
सुचित्रा:"जबान लड़ाता है?" एक करारा थप्पड़ मेरे मुंह पे पड़ा।"कोई परिवार से ऐसा बर्ताव करता है?"
मैने चिल्लाते हुए कहा,"नहीं पता मुझे कुछ।" जिसके साथ आंखों से आंसू बहने लगे।"मुझे नहीं है समझ किसी चीज की।"
मुझे इस तरह रोते और चिल्लाते देख श्वेता और चेतन दोनो खड़े हुए।
चेतन:"बेटे क्या हुआ?किसीने कुछ कहा क्या?"
मैंने लंबी लंबी सांस लेते ना में सर हिलाया।
सुचित्रा:"तो फिर हुआ क्या बेटा?" इतना कहते हुए सुचित्रा ने अपना हाथ मेरे चेहरे पर घुमाया।
मेरा मुंह थरथरा रहा था। सभी को मेरे लिए इतनी चिंता देख मुझे मेरे इस तरह चिल्लाने पर पछतावा हुआ।
मैं हल्की सांसों के साथ आंसू पहुंचते हुए:"कुछ नहीं, मुझे इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था। प्लीज मुझे माफ कर देना।"
सुचित्रा:"हा वो तो ठीक है। लेकिन तुझे हुआ क्या बेटा इस तरह रोने के लिए। कुछ हुआ क्या?"
नीचे झुके सर के साथ ना में इशारा किया।
"क्या हुआ?क्यों चिल्ला रहे थे इतने जोर से?" शुभम के पिता ने दरवाजे पर खड़े हो कर कहा।
शू. पिता:"आवाज ऊपर के कमरे तक आ रही थी।"
सुचित्रा:"कुछ नहीं जी, वो बस जोर से बाते कर कर रहे थे।"
शू.पिता:"तो फिर ये साहब क्यों रो रहे है? और इतनी जोर से चिल्ला क्यों रहे थे। तुम्हे किसने अधिकार दिया अपनी मां पर चिल्लाने का?"
चेतन:"प्लीज,जीजाजी रहने दीजिए ?"
शू.पिता:"क्यों रहने दु? जब उसका मन करे तब आयेगा। किसी पर भी चिल्लाएगा, जैसे मां बाप नहीं नौकर है उसके, और आज भी क्यों आया?
रो तो ऐसे रहा था जैसे कोई मर गया हो।"
बस इतना कहना था मैने वही से कमरे में घुसकर दरवाजा बंद कर दिया। बाहर शू.पिता के चिल्लाने के आवाज आ रही थी। उन्हें क्या पता किसी पता मुझ पर क्या बीत रही है? मेरा बहुत मन हो रहा था विद्या से मिलने का वहीं थी जो मेरा हम जानती थी। वो ये लिए जी रही थी और मैं इन लोगों के साथ परिवार परिवार खेलने के व्यस्थ था। विद्या की इसमें कोई गलती नहीं थी। मुझे ही हीरो बनने का बड़ा शौक था। शायद वो मेरी जिंदगी में ना आई होती, बिचारी खुश तो रहती। मैं बहुत वक्त तक रोता रहा। शायद इतना कभी रोया नहीं था।
तभी दरवाजे पर खटखटाहट हुई।
श्वेता:"शुभम"
दो तीन बार खटखटाते हुए , आवाज दिया।
मैने दरवाजा खोला।
श्वेता ने मेरी तरफ देखा।
श्वेता:"लगता है अब मूड थोड़ा ठीक है।"
मैंने उसकी बात को अनसुना कर:"बोलो क्या बात है?"
श्वेता:"दरअसल, तुम सुबह पूछ रहे थे ना कि, मुझे क्या हुआ है?"
मैं:"तो उसका अभी क्या?"
श्वेता:"मुझे पता है ये वक्त सही नहीं है, लेकिन मुझे बहुत जरूरत है श्रद्धा से मिलने की अभी।"
मैं:"क्यों?"
श्वेता:"मैने पूछा क्या तुम्हे? की तुम क्यों रो रहे थे लड़कियों जैसे?"
मेरे चेहरे पर शायद अपनी बात से निराशा देख कर वो बोली:"देखो, मुझे पता है कि तुम मुझे अपनी कोई बात नहीं बताओगे? जैसा कि आज तक हुआ है, लेकिन मैं मेरी समस्या सच में तुम्हे बता नहीं सकती। तुम बस मेरी मदत करो ये बहुत जरूरी है।"
मैं कुछ नहीं बोला, बस सोचते हुए देखता रहा।
श्वेता:"तुम्हे मैं भी मदत करूंगी अगर कुछ लगे तो।"
वैसे मुझे अब बाहर जाने के लिए मनाई तो नहीं थी। डांट मिलती थी लेकिन उतनी सुन लूंगा, पर क्या पता आगे श्वेता मुझे उसके मां बाप से बचाले।
मैं:"ठीक है। मैं मुंह धोकर आता हु।"
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श्रद्धा को देखते ही श्वेता सीधे उसके गले लग गई।
श्वेता:"श्रद्धा,क्या हुआ तुझे ऐसी हालत क्यों बना के रखी?"
श्रद्धा:"उसने मुझे छूने की कोशिश की।"
इतना कहकर श्रद्धा रोने लगी।
श्वेता:"मैंने यहां जल्दी आने की कोशिश की लेकिन मेरे घर पर ..."
वो आगे कुछ बोलती तभी उसकी नजर सामने पड़ी। वैसे ही उसने श्रद्धा की तरफ देखा।
श्वेता का गला अब कांपने लगा:"क्या हुआ था यहां?"
श्रद्धा कुछ नहीं बोली बस रोती रही।
श्वेता:"ये सब कैसे हुआ, क्या वो लोग आए थे?"
श्रद्धा रोते हुए:" मेरे पीता जी को वो उठाके ले गए। कह रहे थे कि अगर मैने पुलिस थाने जाकर अगर शिकायत वापस नहीं ली, तो वो मेरे पिताजी को मार देंगे।"
श्वेता ने पूरे कमरे में देखा, सभी तरफ चीजें गिरी हुई थी। श्रद्धा की हालत रो रो कर खराब हो चुकी थी।
श्रद्धा:"मैं इसीलिए आज कॉलेज नहीं आई, मुझे रात को धमकी भरा फोन आया था, और आज ये।"
श्वेता:"श्रद्धा तू चिंता मत कर हम पुलिस के पास जाएंगे तो वो हमारी मदत जरूर करेंगे।"
श्रद्धा:"कोई मदत नहीं करेगा हमारी, मैं शिकायत वापस ले लेती हु, उसके अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है।"
श्वेता:"श्रद्धा तू ठीक से सोच नहीं रही है। अब तो शिकायत के डर से तेरे साथ कुछ नहीं कर रहे अगर किया तो वो जेल चला जाएगा। लेकिन वापस लेने पर उसे कौन रोकेगा।"
श्रद्धा:"मुझे कुछ भी हो? मैं अपने पापा को नहीं खो सकती।"
श्वेता :"क्या तुम्हे लगता है, की शिकायत वापस लेने के बाद तेरे पापा को छोड़ेंगे। लेकिन अगर तू पुलिस के पास जाएगी तो शायद वो हमारी कुछ मदत कर दे।"
श्रद्धा:"नहीं वो नहीं करेगी। उनका जरूर कोई हम पर नजर रखे हुए होगा।"
वो इतना बोल रही थी कि उनके दरवाजे पर खटखटाहट हुई।
"दीदी, मैं हु।"
शुभम की आवाज आते ही श्रद्धा ने कहा:"ये यह क्या कर रहा है?"
श्वेता:"रुक, देखती हु।"
दरवाजा खोलते हुए श्वेता:"क्या हुआ?"
शुभम अन्दर आकर:"कुछ नहीं, वो बस मैने सब सुन लिया।"
.....लाइक और अपनी विचार रखो।
ये अपडेट छोटी लगेगी क्योंकि इसमें ज्यादा भाग विमल और आरव की बाते थी। मैंने वो पार्ट दो दिन पहले ही लिख दिया था। बस वो रोने वाला सीन लिखने में वक्त लगा। थोड़ी writing मिस्टेक्स होगी तो माफ कर देना।