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Thanks bhaiसुंदर.... लगता है कि अब मौसम के आने से मौसम बदलने वाला है
ThanksWoooow ek aurat ki kaam agni ko esse jada ache se koi nahi dikha sakta
Par scene thode detailed hote toh ye maza kai guna hota
![]()
अगले दस मिनट में शीला रूखी के घर के बाहर खड़ी थी.. उसने धीरे से दरवाजा खोला.. रूखी का मिसकोल अभी आया नहीं था.. पर शीला से रहा ही नहीं जा रहा था.. मुख्य कमरे से गुजरते हुए वह दूसरे कमरे के दरवाजे के पीछे सटकर अंदर का नजारा देखने की कोशिश करने लगी.. अंदर का द्रश्य देखकर शीला के भोसड़े में १०००० वॉल्ट का झटका लगा..
रूखी का ससुर और रूखी दोनों ही खटिया पर नंगे थे.. वो बूढ़ा रूखी के मदमस्त बबले पकड़कर दबाते हुए रूखी से कुछ बात कर रहा था.. रूखी धोती के ऊपर से अपने ससुर के लंड से खेल रही थी.. दोनों सारी लाज-शर्म त्याग चुके थे.. रूखी ने ससुर को अपने ऊपर खींच लिया और बाहों में दबा दिया..
ससुर: "अरे बहु.. दरवाजा तो ठीक से बंद कर लेती.. बड़ी जल्दी है तुझे तो.. रुक.. मुझे दरवाजा बंद करने दे.. " वो उठकर दरवाजा बंद करने आया.. शीला साइड में छुप गई.. उसी वक्त रूखी ने शीला को मिसकोल किया.. शीला को यकीन था की जैसे ही बूढ़ा खटिया पर लेटेगा, रूखी किसी न किसी बहाने से दरवाजा खोल ही देगी..
रूखी: "बाबूजी, मैं जरा पानी पीकर आती हूँ" पानी पीने के बहाने वो उठी और उसने दरवाजे की कुंडी खोल दी.. और फिर ससुर के साथ खटिया में लेट गई..
रूखी: "बाबूजी, दरवाजे की कुंडी खराब हो गई है.. ठीक से बंद ही नहीं होती.. कोई जोर से धक्का दे तो भी खुल जाती है.. उसे ठीक करवा दीजिए"
रूखी के ५-५ किलो को चुचे दबाते हुए बूढ़ा बोला "अरे जो होगा देखा जाएगा बेटा.. अभी यहाँ कौन आने वाला है.. आह्ह रूखी बेटा.. ये तेरा जोबन.. वाहह.. देख तो.. कितना कडक हो गया मेरा.. जवानी में भी ऐसा सख्त नहीं होता था.. क्या जादू है तेरे जोबन का मेरी बहुरानी.. !!"
काले नाग की तरह खड़ा होकर फुँकार रहा था बूढ़े का लंड.. रूखी ने अपने हाथों से भेस के थन की तरह ससुर का लंड पकड़ा.. उसे ऐसा लगा मानों लोहे का गरम सरिया हाथ में ले लिया हो.. शीला को अब तक दरवाजा खोलकर अंदर आ जाना चाहिए था पर वह भी इस बूढ़े का लंड देखती ही रह गई..
ससुर: "बहु.. तू बड़ा मस्त चूसती है.. चल मुंह में लेकर चूस दे.. " रूखी ने ससुर के लंड का सुपाड़ा मुँह में लिया ही था की तभी..
"रूखी घर में है???" शीला बाहर से चिल्लाई.. और दरवाजे को धक्का देकर अंदर चली आई
"अरे बाप रे.. !!" ससुर ने बस इतना ही कहा.. वह आजू बाजू चादर ढूँढने लगा.. पर रूखी का आयोजन एकदम सटीक था..सारे कपड़े उसने दूर रख दिए था.. थोड़ी सी दूरी से शीला को बूढ़े का झांटों से भरा हुआ खूँटे जैसा लंड दिखने लगा.. शीला ने शर्माने की एक्टिंग की और बोली
शीला: "हाय माँ.. ये क्या कर रही है तू रूखी?? कुछ शर्म हया है या नहीं तुझे?? अपने सगे ससुर के साथ ही..!!!! "
रूखी: "अरे भाभी.. आप यहाँ? फोन करके आना चाहिए था आपको.. "
बूढ़े के हाथ अभी भी रूखी के स्तनों पर ही थे.. उसका दिमाग काम ही नहीं कर रहा था.. वह स्तब्ध होकर शीला की ओर देख रहा था.. रूखी तो एक्टिंग कर रही थी.. पर बूढ़े की गांड फटकार दरवाजा हो गई थी..
शीला: "हाँ.. अब तो मुझे भी लगता है की फोन करके ही आना चाहिए था.. आप लोगों के रंग में भंग तो नहीं पड़ता.. !!"
रूखी: "भाभी आप रसोईघर में जाइए.. मैं आती हूँ अभी"
शीला: "नहीं रूखी.. मैं अब यहाँ एक पल भी नहीं रुकने वाली" शीला वापिस चलने लगी
ससुर: "अरे एक मिनट.. मेरी बात तो सुनिए आप.. !!" शीला रुक गई तो ससुर आगे बोला "आप कृपा करके किसीको ये बात मत बताना.. वरना हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी" दो हाथ जोड़कर नंगे खड़े ससुर ने शीला से विनती की.. शीला शर्मा गई.. आँखें झुकाकर शीला उस बूढ़े के लटक रहे लंबे लंड को निहार रही थी.. पहले के मुकाबले लंड सिकुड़ चुका था.. डर के कारण.. रूखी का नंगा जिस्म इतना सेक्सी लग रहा था की देखते ही शीला को कुछ होने लगा.. बेचारे ससुर का क्या दोष?
शीला को अपने लंड को तांकते देख बूढ़ा दौड़कर अपनी धोती ले आया.. और कमर पर जैसे तैसे बांध ली.. खटिया पर बैठकर उसने रूखी की ओर देखा और बोला
ससुर: "बहु, तुम अपनी सहेली को जरा समझाओ.. ये अगर किसी को बता देगी तो हम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचेंगे"
रूखी ने इशारा कर अपने ससुर को चुप रहने के लिए बताया.. फिर वो शीला के पास आई और उसे कोने में ले जाकर बोली
रूखी: "भाभी अब क्या करना है.. ? आपने जैसा कहा था वैसा ही मैंने किया.. "
शीला ने रूखी के कान में कहा "तेरे ससुर को समझा की अगर ईसे चुप करवाना हो तो किसी भी तरह हमारे साथ शामिल करना पड़ेगा.. मैं मना करती रहूँगी.. पर तुम दोनों अड़े रहना.. "
रूखी अपने ससुर के पास आई और शीला सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गई.. रूखी ने अपने ससुर को वैसे ही समझाया.. ससुर थोड़ा सा झिझक रहा था पर मानने के अलावा ओर कोई चारा भी तो नहीं था.. आखिर इज्जत का सवाल था.. एक बुरे काम को छुपाने के लिए ओर दस बुरे काम करने पड़ते है..
बूढ़ा खड़ा हुआ.. और कुर्सी के पीछे जाकर शीला से लिपट कर उसके स्तन मसलने लग गया
शीला घबराने का अभिनय करते हुए "अरे ये क्या कर रहे है आप?? आपकी बेटी की उम्र की हूँ मैं.. कुछ शर्म है की नहीं आपको.. रूखी जरा समझा इनको"
ससुर ने शीला की निप्पलों को ब्लाउस के ऊपर से ही मरोड़ते हुए कहा " बाप जैसा हूँ.. पर बाप तो नहीं हूँ ना.. तू भी एक बार चुदवा ले.. फिर देख.. रोज मेरे पास आएगी.. तू भी रूखी से कम नहीं है.. आह्ह" शीला के दोनों पपीतों को हथेलियों से सहलाते हुए बूढ़ा बोला
शीला: "छोड़ दीजिए मुझे वरना मैं चिल्लाऊँगी" शीला ने अपने आप को छुड़वाने की नाकाम कोशिश की
अब रूखी करीब आई और उसने शीला का पल्लू हटा लिया और बोली
रूखी: "उन्हे कर लेने दीजिए भाभी.. आपके छेद में थोड़ा सा अंदर बाहर कर लेंगे उसमें आपका क्या बिगड़ जाएगा?? वैसे भी आपके पति है नहीं.. आपको भी थोड़ा सा मज़ा मिल जाएगा.. बाबूजी आप कीजिए.. मैं भी देखती हूँ कैसे मना करती है ये"
छूटने के लिए शीला जानबूझकर कमजोर प्रयास कर रही थी.. और रूखी का ससुर शीला पर टूट पड़ा.. पर हुआ यह की इस सारी घटना के कारण बुढ़ऊ का लंड खड़ा ही नहीं हो पा रहा था.. अपने ससुर का मुरझाया लंड देखकर रूखी बोली
"ईसे खड़ा तो कीजिए बाबूजी.. !!! वरना आप भाभी को कैसे चोदोगे?"
ससुर: "तुझे पता तो है बहु.. बिना चूसे ये खड़ा ही नहीं होता.. और इन्हे देखकर ये शर्मा गया है.. इनसे कहो की ये ही कुछ करे ईसे जगाने के लिए"
शीला का हाथ पकड़कर रूखी ने बूढ़े ससुर के लंड पर रख दिया.. शीला शर्माने का नाटक करने लगी.. "ये सब ठीक नहीं हो रहा रूखी.. किसी को पता चल गया तो?"
रूखी ने शीला के ब्लाउस के हुक खोल दिए और ब्रा ऊपर कर दी.. दोनों पपीते बाहर झूलने लगे.. शीला के मदमस्त चुचे देखते ही बूढ़े के लंड में जान आने लगी.. थोड़ी ही देर में उस सुस्त लंड ने घातक स्वरूप धारण कर लिया
रूखी घुटनों के बल बैठ गई और शीला के हाथ से लंड ले लिया.. और चटकारे लेकर चूसने लगी.. बूढ़ा शीला के स्तनों को मसले जा रहा था.. थोड़ी देर लंड चूसकर रूखी खड़ी हो गई.. और बोली "बाबूजी, भाभी की चुत चाटिए.. तो वो जल्दी मान जाएगी.. जैसे मेरी चाटते हो बिल्कुल वैसे ही चाटना.. " शीला के घाघरे का नाड़ा खींच लिया रूखी ने
ससुर: "अच्छा ऐसी बात है.. तो अभी मना लेता हूँ ईसे.. "
घाघरा उतरते ही मदमस्त हथनी जैसी जांघों के बीच बिना बालों वाली रसीली चूत को एकटक देखने लगा बूढ़ा.. रूखी ने शीला के भोसड़े के दोनों होंठ अपनी उंगलियों से चौड़े कीये.. और अंदर का गुलाब सौन्दर्य दिखाने लगी अपने ससुर को.. रूखी का ससुर उकड़ूँ बैठकर शीला की चूत के करीब आया.. पहले तो उसने चूत को प्यार से चूमा.. शीला की सिसकी निकल गई.. "आआआआह्ह.. !!!"
रूखी ने हस्तक्षेप किया.. शीला का हाथ पकड़कर उसे खटिया पर लिटा दिया.. ससुर भी कूदकर शीला की दोनों जांघों के बीच बैठ गया.. रूखी ने शीला की कमर के नीचे एक तकिया लगा दिया.. बूढ़े ने शीला के भोसड़े को अब बड़ी ही मस्ती से चाटना शुरू कर दिया..
अब रूखी और शीला दोनों निश्चिंत हो गए.. सब कुछ प्लान के मुताबिक हो रहा था.. शीला ने बूढ़े का सर अपने दोनों हाथों से पकड़कर चूत पर दबा दिया..
शीला: "आह्ह रूखी.. तेरा ससुर क्या मस्त चाटता है.. ऊई.. ओह्ह.. अमममम.. !!"
रूखी अपने दोनों पैर शीला के चेहरे के इर्दगिर्द जमाकर बैठ गई और अपनी झांटेदायर चुत को शीला के नाके के साथ रगड़ने लगी..
शीला: "उफ्फ़ रूखी.. तू ये बाल साफ क्यों नहीं करती? जंगल जैसा हो गया है पूरा"
शीला के स्तनों को अपने कूल्हों से रगड़ते हुए रूखी ने कहा "भाभी, बाबूजी को झांटों वाली पसंद है इसलिए.. "
बूढ़ा चाटते हुए बोला "वैसे बिना बालों वाली भी बहोत सुंदर लगती है.. " वो फिर से शीला के भोसड़े की गहराइयों में खो गया.. उसका लंड अभी भी लटक रहा था.. शीला ने आखिर रूखी की लकीर में अपनी जीभ घुसा ही दी.. साथ ही साथ वो रूखी के मटके जैसे बड़े स्तनों को दबा रही थी.. बूढ़े की जीभ उसके भोसड़े में ऐसा कहर ढा रही थी.. शीला उत्तेजित होकर रूखी की चूत चाट रही थी.. काफी देर तक ये सिलसिला चलता रहा
फिर रूखी शीला के ऊपर से उतर गई.. और अपने ससुर के सर के बाल खींचकर उन्हे शीला की चूत से अलग किया
रूखी: "क्या बाबूजी.. आपको नई वाली मिल गई तो मुझे भूल गए? मेरी भी चाटिए ना.. "
ससुर: "अरे बहु.. तुम्हारी तो रोज चाटता हूँ.. आज मेहमान आए है तो पहले उन्हे तो खुश करने दो.. " रूखी ने एक ना सुनी और ससुर का चेहरा खींचकर अपनी चूत पर लगा दिया.. शीला उठकर बूढ़े के लंड को सहलाने लगी.. रूखी की चुत थोड़ी देर चूसकर वह बूढ़ा फिर से शीला की ओर बढ़ा.. शीला की गोरी लचकदार चूचियों के ऊपर टूट पड़ा.. उन मदमस्त उरोजों को वह दोनों हाथों से मसलने लगा.. शीला उस बूढ़े के खड़े लंड की चमड़ी आगे पीछे कर रही थी.. बूढ़े ने उंगली और अंगूठे के बीच शीला की निप्पल को दबा दिया.. शीला की चीख निकल गई.. उसने बूढ़े को धक्का देकर खटिया पर सुला दिया और उसके लंड को मस्ती से चूसने लग गई
रूखी अपने ससुर के मुंह पर सवार हो गई.. ससुर अपनी बहु की चुत चाट रहा था और शीला उसका लंड चूस रही थी.. शीला का चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था.. थोड़ा सा चूसने के बाद शीला से ओर रहा नहीं गया.. उसने अपने चूत के होंठ फैलाए और बूढ़े के लंड के ऊपर बैठ गई..
ऊपर नीचे करते हुए उसने गति बढ़ाई.. बूढ़े के मुंह पर रूखी की चूत थी और लंड पर शीला चढ़ी हुई थी.. थोड़ी देर कूदने पर ही शीला की चूत ने पानी छोड़ दिया.. भोसड़ा एकदम सिकुड़ गया.. और उसके अंदर फंसे लंड का गला घोंट दिया.. बूढ़ा ससुर भी आनंद से कराहने लगा..
शीला: "बहोत मज़ा आ रहा है आह्ह आह्ह आह्ह" अपने स्तन दबाते हुए वह अब अभी आखिरी धक्के लगा रही थी
रूखी के चुत ने भी रस छोड़ दिया.. अपनी जीभ और लंड से उस बूढ़े ससुर ने दो दो औरतों को एक साथ तृप्त कर दिया था.. सिसकियाँ भरते हुए रूखी अपनी चुत के होंठ ससुर के मुंह पर रगड़े जा रही थी.. स्खलित होते हुए वह कराह रही थी.. उसके ससुर ने रूखी के स्तनों को इतनी जोर से दबाया की दूध की पिचकारी से उनका पूरा सर गीला हो गया.. शीला ठंडी होकर नीचे उतर गई.. बूढ़े ने अब रूखी को लेटाया और उसपर सवार होकर धक्के लगाने लगा.. थोड़े ही धक्कों के बाद बूढ़ा आउट हो गया.. पर आउट होने से पहले उसने रूखी की चुत से एक बार ओर पानी निकाल दिया.. ध्वस्त होकर वो रूखी के बड़े बड़े स्तनों के बीच गिर गया.. और वहीं पड़ा रहा
थोड़ी देर वैसे ही खटिया में पड़े रहने के बाद सबसे पहले शीला खड़ी हुई.. बूढ़े ससुर के लंड पर आभार-सूचक किस करते हुए उसके लाल टोपे पर अपनी जीभ फेर दी.. सुपाड़े की नोक पर लगी वीर्य की बूंद को भी चख लिया.. लंड ने एक बार ठुमक कर शीला को सलामी दी..
अपनी बहु के स्तनों से खेलते हुए बूढ़े ने कहा "मज़ा आया तुम दोनों को?"
रूखी: "मुझे तो बहोत मज़ा आया.. आप शीला भाभी से पूछिए.. " रूखी उठकर ब्लाउस पहनने लगी.. उस दौरान शीला अपने कपड़े पहन चूकी थी..
रूखी: "आप साड़ी में कितनी खूबसूरत लगती हो भाभी!!! कितना मस्त शरीर है आपका.. एकदम भरा हुआ.. ठीक कहा न मैंने बाबूजी" आखिरी हुक को बड़ी ही मुश्किल से बंद करते हुए रूखी ने कहा.. शीला रूखी के बड़े स्तनों को बस देखती ही रही.. उसकी चूत में नए सिरे से चुनचुनी होने लगी..
शीला: "रुखी, मुझसे तो कहीं ज्यादा तुम सुंदर हो.. तुझे पता नहीं है.. अगर फेशनेबल कपड़े पहनकर बाहर निकले तो लोग मूठ मार मारकर मार जाए.. अब मुझे चलना चाहिए.. काफी देर हो गई.. चलिए बाबूजी, मैं चलती हूँ.. फिर कभी आऊँगी.. मुझे भी अपनी बहु ही समझिए आप.. सिर्फ रूखी बहु का ही नहीं.. अब से आपको शीला बहु का भी ध्यान रखना होगा"
ससुर: "हाँ हाँ बहु रानी.. जब मन करें तब चली आना.. मैं तैयार हो आपको खुश करने के लिए"
शीला: "रूखी, तू मेरे घर पर आकर मुझे मिल.. मेरे पति कुछ दिनों में वापिस लौट आएंगे.. उससे पहले मिलने आ जाना"
रूखी: "हाँ भाभी.. जरूर आऊँगी"
अपना भोसड़ा ठंडा कर शीला वहाँ से घर की ओर निकल गई.. उसके चेहरे पर संतोष और तृप्तता के भाव थे.. घर पहुँचने की उसे कोई जल्दी नहीं थी.. इसलिए रिक्शा लेने के बजाए वह चलने लगी..
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अपने कूल्हें मटकाते हुई शीला रास्ते पर चलती जा रही थी.. बड़े बड़े स्तन, गदराया बदन, कमर से नीचे पहनी हुई साड़ी और मटकों जैसे चूतड़.. ऐसी कोई स्त्री चलते हुए जा रही हो तो स्वाभाविक तौर पर सब की नजर उस पर चिपक जाएगी.. क्या जवान और क्या बूढ़े.. जो भी देखता था.. देखकर ही अपने लंड एडजस्ट करने लगता था.. कुछ साहसी तो मन ही मन मूठ मारने लगे थे.. जिन बूढ़ों से कुछ हो नहीं पा रहा था वह चक्षु-चोदन का आनंद ले रहे थे..
घर पहुंचकर शीला बिस्तर पर पड़ी.. सोच रही थी "मदन के आने के बाद ये सब बंद कर देना पड़ेगा.. वैसे मदन के लौटने के बाद इन सब के जरूरत भी नहीं रहेगी.. पर एक बार बाहर का खाने का चस्का लग जाएँ फिर याद तो आएगी ही.. जो होगा देख लेंगे.. जब मौका मिले तब चौका लगा देना ही गनीमत है.. बाकी फिर मदन तो है ही.. !! और इस तरह रूखी के घर जाकर अपना कार्यकरम निपटा लूँ तो मदन को भी पता नहीं चलेगा.. हाँ रूखी की सास का प्रॉब्लेम है.. पर वो बुढ़िया और कितना जिएगी.. ?? जल्दी मर जाएँ तो अच्छा.. झंझट खतम हो.. "
तभी डोरबेल बजने की आवाज आई.. आईने में खुद को ठीक करके शीला बाहर आई और दरवाजा खोला
संजय आया हुआ था..
संजय: "चलिए मम्मी जी, मैं आपको लेने आया हूँ"
शीला आश्चर्य से "लेने आए हो? पर कहाँ जाना है?"
संजय: "आप घर पर अकेली हो.. वैशाली भी चार दिनों बाद लौटेगी.. यहाँ बैठे रहने से तो अच्छा है की आप मेरे साथ चलिए.. मुझे भी कंपनी मिलेगी"
शीला: "लेकिन जाना कहाँ है??" शीला असमंजस में थी
संजय: "आप तीन दिन के कपड़े पैक कर लो.. कहाँ जाना है ये मैं बाद में बताता हूँ.. आप के लिए सरप्राइज़ है.. अभी नहीं बताऊँगा"
शीला: "नहीं.. ऐसे मैं घर छोड़कर नहीं चल सकती.. "
संजय: "मम्मी जी, आपको वैशाली की कसम.. किस बात का डर है आपको?"
शीला: "डर नहीं है बेटा.. पर सोचना तो पड़ता है ना.. !!"
संजय: "अपने दामाद के साथ चलने में क्या सोचना?? चलिए एक घंटे में निकलना है.. आप कपड़े पेक कीजिए.. अभी गाड़ी आती ही होगी"
शीला: "अरे पर मुझे ये तो बताओ की जाना कहाँ है?"
संजय: "आपको मुझ पर भरोसा नहीं है? "
शीला मन में सोचने लगी.. "भरोसा तो पूरा है तुझ पर मादरचोद.. की तू एक नंबर का कमीना है.. इसीलिए तो इतना सोचना पड़ रहा है" शीला को पता नहीं चल रहा था की वो क्या करें
VAKHARIYA BHAI MAST LIKHTE HO YAAR UDHAR KAVITA VAISHALI MAUSAM FALGUNI CHUDNE KI TYEYAARI ME HAIN AUR IDHAR SANJAY SHEELA KO CHODNE KI TYEYYARI KAR RAHA HAIN BAHUT BADIYAअगले दस मिनट में शीला रूखी के घर के बाहर खड़ी थी.. उसने धीरे से दरवाजा खोला.. रूखी का मिसकोल अभी आया नहीं था.. पर शीला से रहा ही नहीं जा रहा था.. मुख्य कमरे से गुजरते हुए वह दूसरे कमरे के दरवाजे के पीछे सटकर अंदर का नजारा देखने की कोशिश करने लगी.. अंदर का द्रश्य देखकर शीला के भोसड़े में १०००० वॉल्ट का झटका लगा..
रूखी का ससुर और रूखी दोनों ही खटिया पर नंगे थे.. वो बूढ़ा रूखी के मदमस्त बबले पकड़कर दबाते हुए रूखी से कुछ बात कर रहा था.. रूखी धोती के ऊपर से अपने ससुर के लंड से खेल रही थी.. दोनों सारी लाज-शर्म त्याग चुके थे.. रूखी ने ससुर को अपने ऊपर खींच लिया और बाहों में दबा दिया..
ससुर: "अरे बहु.. दरवाजा तो ठीक से बंद कर लेती.. बड़ी जल्दी है तुझे तो.. रुक.. मुझे दरवाजा बंद करने दे.. " वो उठकर दरवाजा बंद करने आया.. शीला साइड में छुप गई.. उसी वक्त रूखी ने शीला को मिसकोल किया.. शीला को यकीन था की जैसे ही बूढ़ा खटिया पर लेटेगा, रूखी किसी न किसी बहाने से दरवाजा खोल ही देगी..
रूखी: "बाबूजी, मैं जरा पानी पीकर आती हूँ" पानी पीने के बहाने वो उठी और उसने दरवाजे की कुंडी खोल दी.. और फिर ससुर के साथ खटिया में लेट गई..
रूखी: "बाबूजी, दरवाजे की कुंडी खराब हो गई है.. ठीक से बंद ही नहीं होती.. कोई जोर से धक्का दे तो भी खुल जाती है.. उसे ठीक करवा दीजिए"
रूखी के ५-५ किलो को चुचे दबाते हुए बूढ़ा बोला "अरे जो होगा देखा जाएगा बेटा.. अभी यहाँ कौन आने वाला है.. आह्ह रूखी बेटा.. ये तेरा जोबन.. वाहह.. देख तो.. कितना कडक हो गया मेरा.. जवानी में भी ऐसा सख्त नहीं होता था.. क्या जादू है तेरे जोबन का मेरी बहुरानी.. !!"
काले नाग की तरह खड़ा होकर फुँकार रहा था बूढ़े का लंड.. रूखी ने अपने हाथों से भेस के थन की तरह ससुर का लंड पकड़ा.. उसे ऐसा लगा मानों लोहे का गरम सरिया हाथ में ले लिया हो.. शीला को अब तक दरवाजा खोलकर अंदर आ जाना चाहिए था पर वह भी इस बूढ़े का लंड देखती ही रह गई..
ससुर: "बहु.. तू बड़ा मस्त चूसती है.. चल मुंह में लेकर चूस दे.. " रूखी ने ससुर के लंड का सुपाड़ा मुँह में लिया ही था की तभी..
"रूखी घर में है???" शीला बाहर से चिल्लाई.. और दरवाजे को धक्का देकर अंदर चली आई
"अरे बाप रे.. !!" ससुर ने बस इतना ही कहा.. वह आजू बाजू चादर ढूँढने लगा.. पर रूखी का आयोजन एकदम सटीक था..सारे कपड़े उसने दूर रख दिए था.. थोड़ी सी दूरी से शीला को बूढ़े का झांटों से भरा हुआ खूँटे जैसा लंड दिखने लगा.. शीला ने शर्माने की एक्टिंग की और बोली
शीला: "हाय माँ.. ये क्या कर रही है तू रूखी?? कुछ शर्म हया है या नहीं तुझे?? अपने सगे ससुर के साथ ही..!!!! "
रूखी: "अरे भाभी.. आप यहाँ? फोन करके आना चाहिए था आपको.. "
बूढ़े के हाथ अभी भी रूखी के स्तनों पर ही थे.. उसका दिमाग काम ही नहीं कर रहा था.. वह स्तब्ध होकर शीला की ओर देख रहा था.. रूखी तो एक्टिंग कर रही थी.. पर बूढ़े की गांड फटकार दरवाजा हो गई थी..
शीला: "हाँ.. अब तो मुझे भी लगता है की फोन करके ही आना चाहिए था.. आप लोगों के रंग में भंग तो नहीं पड़ता.. !!"
रूखी: "भाभी आप रसोईघर में जाइए.. मैं आती हूँ अभी"
शीला: "नहीं रूखी.. मैं अब यहाँ एक पल भी नहीं रुकने वाली" शीला वापिस चलने लगी
ससुर: "अरे एक मिनट.. मेरी बात तो सुनिए आप.. !!" शीला रुक गई तो ससुर आगे बोला "आप कृपा करके किसीको ये बात मत बताना.. वरना हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी" दो हाथ जोड़कर नंगे खड़े ससुर ने शीला से विनती की.. शीला शर्मा गई.. आँखें झुकाकर शीला उस बूढ़े के लटक रहे लंबे लंड को निहार रही थी.. पहले के मुकाबले लंड सिकुड़ चुका था.. डर के कारण.. रूखी का नंगा जिस्म इतना सेक्सी लग रहा था की देखते ही शीला को कुछ होने लगा.. बेचारे ससुर का क्या दोष?
शीला को अपने लंड को तांकते देख बूढ़ा दौड़कर अपनी धोती ले आया.. और कमर पर जैसे तैसे बांध ली.. खटिया पर बैठकर उसने रूखी की ओर देखा और बोला
ससुर: "बहु, तुम अपनी सहेली को जरा समझाओ.. ये अगर किसी को बता देगी तो हम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचेंगे"
रूखी ने इशारा कर अपने ससुर को चुप रहने के लिए बताया.. फिर वो शीला के पास आई और उसे कोने में ले जाकर बोली
रूखी: "भाभी अब क्या करना है.. ? आपने जैसा कहा था वैसा ही मैंने किया.. "
शीला ने रूखी के कान में कहा "तेरे ससुर को समझा की अगर ईसे चुप करवाना हो तो किसी भी तरह हमारे साथ शामिल करना पड़ेगा.. मैं मना करती रहूँगी.. पर तुम दोनों अड़े रहना.. "
रूखी अपने ससुर के पास आई और शीला सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गई.. रूखी ने अपने ससुर को वैसे ही समझाया.. ससुर थोड़ा सा झिझक रहा था पर मानने के अलावा ओर कोई चारा भी तो नहीं था.. आखिर इज्जत का सवाल था.. एक बुरे काम को छुपाने के लिए ओर दस बुरे काम करने पड़ते है..
बूढ़ा खड़ा हुआ.. और कुर्सी के पीछे जाकर शीला से लिपट कर उसके स्तन मसलने लग गया
शीला घबराने का अभिनय करते हुए "अरे ये क्या कर रहे है आप?? आपकी बेटी की उम्र की हूँ मैं.. कुछ शर्म है की नहीं आपको.. रूखी जरा समझा इनको"
ससुर ने शीला की निप्पलों को ब्लाउस के ऊपर से ही मरोड़ते हुए कहा " बाप जैसा हूँ.. पर बाप तो नहीं हूँ ना.. तू भी एक बार चुदवा ले.. फिर देख.. रोज मेरे पास आएगी.. तू भी रूखी से कम नहीं है.. आह्ह" शीला के दोनों पपीतों को हथेलियों से सहलाते हुए बूढ़ा बोला
शीला: "छोड़ दीजिए मुझे वरना मैं चिल्लाऊँगी" शीला ने अपने आप को छुड़वाने की नाकाम कोशिश की
अब रूखी करीब आई और उसने शीला का पल्लू हटा लिया और बोली
रूखी: "उन्हे कर लेने दीजिए भाभी.. आपके छेद में थोड़ा सा अंदर बाहर कर लेंगे उसमें आपका क्या बिगड़ जाएगा?? वैसे भी आपके पति है नहीं.. आपको भी थोड़ा सा मज़ा मिल जाएगा.. बाबूजी आप कीजिए.. मैं भी देखती हूँ कैसे मना करती है ये"
छूटने के लिए शीला जानबूझकर कमजोर प्रयास कर रही थी.. और रूखी का ससुर शीला पर टूट पड़ा.. पर हुआ यह की इस सारी घटना के कारण बुढ़ऊ का लंड खड़ा ही नहीं हो पा रहा था.. अपने ससुर का मुरझाया लंड देखकर रूखी बोली
"ईसे खड़ा तो कीजिए बाबूजी.. !!! वरना आप भाभी को कैसे चोदोगे?"
ससुर: "तुझे पता तो है बहु.. बिना चूसे ये खड़ा ही नहीं होता.. और इन्हे देखकर ये शर्मा गया है.. इनसे कहो की ये ही कुछ करे ईसे जगाने के लिए"
शीला का हाथ पकड़कर रूखी ने बूढ़े ससुर के लंड पर रख दिया.. शीला शर्माने का नाटक करने लगी.. "ये सब ठीक नहीं हो रहा रूखी.. किसी को पता चल गया तो?"
रूखी ने शीला के ब्लाउस के हुक खोल दिए और ब्रा ऊपर कर दी.. दोनों पपीते बाहर झूलने लगे.. शीला के मदमस्त चुचे देखते ही बूढ़े के लंड में जान आने लगी.. थोड़ी ही देर में उस सुस्त लंड ने घातक स्वरूप धारण कर लिया
रूखी घुटनों के बल बैठ गई और शीला के हाथ से लंड ले लिया.. और चटकारे लेकर चूसने लगी.. बूढ़ा शीला के स्तनों को मसले जा रहा था.. थोड़ी देर लंड चूसकर रूखी खड़ी हो गई.. और बोली "बाबूजी, भाभी की चुत चाटिए.. तो वो जल्दी मान जाएगी.. जैसे मेरी चाटते हो बिल्कुल वैसे ही चाटना.. " शीला के घाघरे का नाड़ा खींच लिया रूखी ने
ससुर: "अच्छा ऐसी बात है.. तो अभी मना लेता हूँ ईसे.. "
घाघरा उतरते ही मदमस्त हथनी जैसी जांघों के बीच बिना बालों वाली रसीली चूत को एकटक देखने लगा बूढ़ा.. रूखी ने शीला के भोसड़े के दोनों होंठ अपनी उंगलियों से चौड़े कीये.. और अंदर का गुलाब सौन्दर्य दिखाने लगी अपने ससुर को.. रूखी का ससुर उकड़ूँ बैठकर शीला की चूत के करीब आया.. पहले तो उसने चूत को प्यार से चूमा.. शीला की सिसकी निकल गई.. "आआआआह्ह.. !!!"
रूखी ने हस्तक्षेप किया.. शीला का हाथ पकड़कर उसे खटिया पर लिटा दिया.. ससुर भी कूदकर शीला की दोनों जांघों के बीच बैठ गया.. रूखी ने शीला की कमर के नीचे एक तकिया लगा दिया.. बूढ़े ने शीला के भोसड़े को अब बड़ी ही मस्ती से चाटना शुरू कर दिया..
अब रूखी और शीला दोनों निश्चिंत हो गए.. सब कुछ प्लान के मुताबिक हो रहा था.. शीला ने बूढ़े का सर अपने दोनों हाथों से पकड़कर चूत पर दबा दिया..
शीला: "आह्ह रूखी.. तेरा ससुर क्या मस्त चाटता है.. ऊई.. ओह्ह.. अमममम.. !!"
रूखी अपने दोनों पैर शीला के चेहरे के इर्दगिर्द जमाकर बैठ गई और अपनी झांटेदायर चुत को शीला के नाके के साथ रगड़ने लगी..
शीला: "उफ्फ़ रूखी.. तू ये बाल साफ क्यों नहीं करती? जंगल जैसा हो गया है पूरा"
शीला के स्तनों को अपने कूल्हों से रगड़ते हुए रूखी ने कहा "भाभी, बाबूजी को झांटों वाली पसंद है इसलिए.. "
बूढ़ा चाटते हुए बोला "वैसे बिना बालों वाली भी बहोत सुंदर लगती है.. " वो फिर से शीला के भोसड़े की गहराइयों में खो गया.. उसका लंड अभी भी लटक रहा था.. शीला ने आखिर रूखी की लकीर में अपनी जीभ घुसा ही दी.. साथ ही साथ वो रूखी के मटके जैसे बड़े स्तनों को दबा रही थी.. बूढ़े की जीभ उसके भोसड़े में ऐसा कहर ढा रही थी.. शीला उत्तेजित होकर रूखी की चूत चाट रही थी.. काफी देर तक ये सिलसिला चलता रहा
फिर रूखी शीला के ऊपर से उतर गई.. और अपने ससुर के सर के बाल खींचकर उन्हे शीला की चूत से अलग किया
रूखी: "क्या बाबूजी.. आपको नई वाली मिल गई तो मुझे भूल गए? मेरी भी चाटिए ना.. "
ससुर: "अरे बहु.. तुम्हारी तो रोज चाटता हूँ.. आज मेहमान आए है तो पहले उन्हे तो खुश करने दो.. " रूखी ने एक ना सुनी और ससुर का चेहरा खींचकर अपनी चूत पर लगा दिया.. शीला उठकर बूढ़े के लंड को सहलाने लगी.. रूखी की चुत थोड़ी देर चूसकर वह बूढ़ा फिर से शीला की ओर बढ़ा.. शीला की गोरी लचकदार चूचियों के ऊपर टूट पड़ा.. उन मदमस्त उरोजों को वह दोनों हाथों से मसलने लगा.. शीला उस बूढ़े के खड़े लंड की चमड़ी आगे पीछे कर रही थी.. बूढ़े ने उंगली और अंगूठे के बीच शीला की निप्पल को दबा दिया.. शीला की चीख निकल गई.. उसने बूढ़े को धक्का देकर खटिया पर सुला दिया और उसके लंड को मस्ती से चूसने लग गई
रूखी अपने ससुर के मुंह पर सवार हो गई.. ससुर अपनी बहु की चुत चाट रहा था और शीला उसका लंड चूस रही थी.. शीला का चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था.. थोड़ा सा चूसने के बाद शीला से ओर रहा नहीं गया.. उसने अपने चूत के होंठ फैलाए और बूढ़े के लंड के ऊपर बैठ गई..
ऊपर नीचे करते हुए उसने गति बढ़ाई.. बूढ़े के मुंह पर रूखी की चूत थी और लंड पर शीला चढ़ी हुई थी.. थोड़ी देर कूदने पर ही शीला की चूत ने पानी छोड़ दिया.. भोसड़ा एकदम सिकुड़ गया.. और उसके अंदर फंसे लंड का गला घोंट दिया.. बूढ़ा ससुर भी आनंद से कराहने लगा..
शीला: "बहोत मज़ा आ रहा है आह्ह आह्ह आह्ह" अपने स्तन दबाते हुए वह अब अभी आखिरी धक्के लगा रही थी
रूखी के चुत ने भी रस छोड़ दिया.. अपनी जीभ और लंड से उस बूढ़े ससुर ने दो दो औरतों को एक साथ तृप्त कर दिया था.. सिसकियाँ भरते हुए रूखी अपनी चुत के होंठ ससुर के मुंह पर रगड़े जा रही थी.. स्खलित होते हुए वह कराह रही थी.. उसके ससुर ने रूखी के स्तनों को इतनी जोर से दबाया की दूध की पिचकारी से उनका पूरा सर गीला हो गया.. शीला ठंडी होकर नीचे उतर गई.. बूढ़े ने अब रूखी को लेटाया और उसपर सवार होकर धक्के लगाने लगा.. थोड़े ही धक्कों के बाद बूढ़ा आउट हो गया.. पर आउट होने से पहले उसने रूखी की चुत से एक बार ओर पानी निकाल दिया.. ध्वस्त होकर वो रूखी के बड़े बड़े स्तनों के बीच गिर गया.. और वहीं पड़ा रहा
थोड़ी देर वैसे ही खटिया में पड़े रहने के बाद सबसे पहले शीला खड़ी हुई.. बूढ़े ससुर के लंड पर आभार-सूचक किस करते हुए उसके लाल टोपे पर अपनी जीभ फेर दी.. सुपाड़े की नोक पर लगी वीर्य की बूंद को भी चख लिया.. लंड ने एक बार ठुमक कर शीला को सलामी दी..
अपनी बहु के स्तनों से खेलते हुए बूढ़े ने कहा "मज़ा आया तुम दोनों को?"
रूखी: "मुझे तो बहोत मज़ा आया.. आप शीला भाभी से पूछिए.. " रूखी उठकर ब्लाउस पहनने लगी.. उस दौरान शीला अपने कपड़े पहन चूकी थी..
रूखी: "आप साड़ी में कितनी खूबसूरत लगती हो भाभी!!! कितना मस्त शरीर है आपका.. एकदम भरा हुआ.. ठीक कहा न मैंने बाबूजी" आखिरी हुक को बड़ी ही मुश्किल से बंद करते हुए रूखी ने कहा.. शीला रूखी के बड़े स्तनों को बस देखती ही रही.. उसकी चूत में नए सिरे से चुनचुनी होने लगी..
शीला: "रुखी, मुझसे तो कहीं ज्यादा तुम सुंदर हो.. तुझे पता नहीं है.. अगर फेशनेबल कपड़े पहनकर बाहर निकले तो लोग मूठ मार मारकर मार जाए.. अब मुझे चलना चाहिए.. काफी देर हो गई.. चलिए बाबूजी, मैं चलती हूँ.. फिर कभी आऊँगी.. मुझे भी अपनी बहु ही समझिए आप.. सिर्फ रूखी बहु का ही नहीं.. अब से आपको शीला बहु का भी ध्यान रखना होगा"
ससुर: "हाँ हाँ बहु रानी.. जब मन करें तब चली आना.. मैं तैयार हो आपको खुश करने के लिए"
शीला: "रूखी, तू मेरे घर पर आकर मुझे मिल.. मेरे पति कुछ दिनों में वापिस लौट आएंगे.. उससे पहले मिलने आ जाना"
रूखी: "हाँ भाभी.. जरूर आऊँगी"
अपना भोसड़ा ठंडा कर शीला वहाँ से घर की ओर निकल गई.. उसके चेहरे पर संतोष और तृप्तता के भाव थे.. घर पहुँचने की उसे कोई जल्दी नहीं थी.. इसलिए रिक्शा लेने के बजाए वह चलने लगी..
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अपने कूल्हें मटकाते हुई शीला रास्ते पर चलती जा रही थी.. बड़े बड़े स्तन, गदराया बदन, कमर से नीचे पहनी हुई साड़ी और मटकों जैसे चूतड़.. ऐसी कोई स्त्री चलते हुए जा रही हो तो स्वाभाविक तौर पर सब की नजर उस पर चिपक जाएगी.. क्या जवान और क्या बूढ़े.. जो भी देखता था.. देखकर ही अपने लंड एडजस्ट करने लगता था.. कुछ साहसी तो मन ही मन मूठ मारने लगे थे.. जिन बूढ़ों से कुछ हो नहीं पा रहा था वह चक्षु-चोदन का आनंद ले रहे थे..
घर पहुंचकर शीला बिस्तर पर पड़ी.. सोच रही थी "मदन के आने के बाद ये सब बंद कर देना पड़ेगा.. वैसे मदन के लौटने के बाद इन सब के जरूरत भी नहीं रहेगी.. पर एक बार बाहर का खाने का चस्का लग जाएँ फिर याद तो आएगी ही.. जो होगा देख लेंगे.. जब मौका मिले तब चौका लगा देना ही गनीमत है.. बाकी फिर मदन तो है ही.. !! और इस तरह रूखी के घर जाकर अपना कार्यकरम निपटा लूँ तो मदन को भी पता नहीं चलेगा.. हाँ रूखी की सास का प्रॉब्लेम है.. पर वो बुढ़िया और कितना जिएगी.. ?? जल्दी मर जाएँ तो अच्छा.. झंझट खतम हो.. "
तभी डोरबेल बजने की आवाज आई.. आईने में खुद को ठीक करके शीला बाहर आई और दरवाजा खोला
संजय आया हुआ था..
संजय: "चलिए मम्मी जी, मैं आपको लेने आया हूँ"
शीला आश्चर्य से "लेने आए हो? पर कहाँ जाना है?"
संजय: "आप घर पर अकेली हो.. वैशाली भी चार दिनों बाद लौटेगी.. यहाँ बैठे रहने से तो अच्छा है की आप मेरे साथ चलिए.. मुझे भी कंपनी मिलेगी"
शीला: "लेकिन जाना कहाँ है??" शीला असमंजस में थी
संजय: "आप तीन दिन के कपड़े पैक कर लो.. कहाँ जाना है ये मैं बाद में बताता हूँ.. आप के लिए सरप्राइज़ है.. अभी नहीं बताऊँगा"
शीला: "नहीं.. ऐसे मैं घर छोड़कर नहीं चल सकती.. "
संजय: "मम्मी जी, आपको वैशाली की कसम.. किस बात का डर है आपको?"
शीला: "डर नहीं है बेटा.. पर सोचना तो पड़ता है ना.. !!"
संजय: "अपने दामाद के साथ चलने में क्या सोचना?? चलिए एक घंटे में निकलना है.. आप कपड़े पेक कीजिए.. अभी गाड़ी आती ही होगी"
शीला: "अरे पर मुझे ये तो बताओ की जाना कहाँ है?"
संजय: "आपको मुझ पर भरोसा नहीं है? "
शीला मन में सोचने लगी.. "भरोसा तो पूरा है तुझ पर मादरचोद.. की तू एक नंबर का कमीना है.. इसीलिए तो इतना सोचना पड़ रहा है" शीला को पता नहीं चल रहा था की वो क्या करें
nice update
Thanksnice update
Mast updateअगले दस मिनट में शीला रूखी के घर के बाहर खड़ी थी.. उसने धीरे से दरवाजा खोला.. रूखी का मिसकोल अभी आया नहीं था.. पर शीला से रहा ही नहीं जा रहा था.. मुख्य कमरे से गुजरते हुए वह दूसरे कमरे के दरवाजे के पीछे सटकर अंदर का नजारा देखने की कोशिश करने लगी.. अंदर का द्रश्य देखकर शीला के भोसड़े में १०००० वॉल्ट का झटका लगा..
रूखी का ससुर और रूखी दोनों ही खटिया पर नंगे थे.. वो बूढ़ा रूखी के मदमस्त बबले पकड़कर दबाते हुए रूखी से कुछ बात कर रहा था.. रूखी धोती के ऊपर से अपने ससुर के लंड से खेल रही थी.. दोनों सारी लाज-शर्म त्याग चुके थे.. रूखी ने ससुर को अपने ऊपर खींच लिया और बाहों में दबा दिया..
ससुर: "अरे बहु.. दरवाजा तो ठीक से बंद कर लेती.. बड़ी जल्दी है तुझे तो.. रुक.. मुझे दरवाजा बंद करने दे.. " वो उठकर दरवाजा बंद करने आया.. शीला साइड में छुप गई.. उसी वक्त रूखी ने शीला को मिसकोल किया.. शीला को यकीन था की जैसे ही बूढ़ा खटिया पर लेटेगा, रूखी किसी न किसी बहाने से दरवाजा खोल ही देगी..
रूखी: "बाबूजी, मैं जरा पानी पीकर आती हूँ" पानी पीने के बहाने वो उठी और उसने दरवाजे की कुंडी खोल दी.. और फिर ससुर के साथ खटिया में लेट गई..
रूखी: "बाबूजी, दरवाजे की कुंडी खराब हो गई है.. ठीक से बंद ही नहीं होती.. कोई जोर से धक्का दे तो भी खुल जाती है.. उसे ठीक करवा दीजिए"
रूखी के ५-५ किलो को चुचे दबाते हुए बूढ़ा बोला "अरे जो होगा देखा जाएगा बेटा.. अभी यहाँ कौन आने वाला है.. आह्ह रूखी बेटा.. ये तेरा जोबन.. वाहह.. देख तो.. कितना कडक हो गया मेरा.. जवानी में भी ऐसा सख्त नहीं होता था.. क्या जादू है तेरे जोबन का मेरी बहुरानी.. !!"
काले नाग की तरह खड़ा होकर फुँकार रहा था बूढ़े का लंड.. रूखी ने अपने हाथों से भेस के थन की तरह ससुर का लंड पकड़ा.. उसे ऐसा लगा मानों लोहे का गरम सरिया हाथ में ले लिया हो.. शीला को अब तक दरवाजा खोलकर अंदर आ जाना चाहिए था पर वह भी इस बूढ़े का लंड देखती ही रह गई..
ससुर: "बहु.. तू बड़ा मस्त चूसती है.. चल मुंह में लेकर चूस दे.. " रूखी ने ससुर के लंड का सुपाड़ा मुँह में लिया ही था की तभी..
"रूखी घर में है???" शीला बाहर से चिल्लाई.. और दरवाजे को धक्का देकर अंदर चली आई
"अरे बाप रे.. !!" ससुर ने बस इतना ही कहा.. वह आजू बाजू चादर ढूँढने लगा.. पर रूखी का आयोजन एकदम सटीक था..सारे कपड़े उसने दूर रख दिए था.. थोड़ी सी दूरी से शीला को बूढ़े का झांटों से भरा हुआ खूँटे जैसा लंड दिखने लगा.. शीला ने शर्माने की एक्टिंग की और बोली
शीला: "हाय माँ.. ये क्या कर रही है तू रूखी?? कुछ शर्म हया है या नहीं तुझे?? अपने सगे ससुर के साथ ही..!!!! "
रूखी: "अरे भाभी.. आप यहाँ? फोन करके आना चाहिए था आपको.. "
बूढ़े के हाथ अभी भी रूखी के स्तनों पर ही थे.. उसका दिमाग काम ही नहीं कर रहा था.. वह स्तब्ध होकर शीला की ओर देख रहा था.. रूखी तो एक्टिंग कर रही थी.. पर बूढ़े की गांड फटकार दरवाजा हो गई थी..
शीला: "हाँ.. अब तो मुझे भी लगता है की फोन करके ही आना चाहिए था.. आप लोगों के रंग में भंग तो नहीं पड़ता.. !!"
रूखी: "भाभी आप रसोईघर में जाइए.. मैं आती हूँ अभी"
शीला: "नहीं रूखी.. मैं अब यहाँ एक पल भी नहीं रुकने वाली" शीला वापिस चलने लगी
ससुर: "अरे एक मिनट.. मेरी बात तो सुनिए आप.. !!" शीला रुक गई तो ससुर आगे बोला "आप कृपा करके किसीको ये बात मत बताना.. वरना हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी" दो हाथ जोड़कर नंगे खड़े ससुर ने शीला से विनती की.. शीला शर्मा गई.. आँखें झुकाकर शीला उस बूढ़े के लटक रहे लंबे लंड को निहार रही थी.. पहले के मुकाबले लंड सिकुड़ चुका था.. डर के कारण.. रूखी का नंगा जिस्म इतना सेक्सी लग रहा था की देखते ही शीला को कुछ होने लगा.. बेचारे ससुर का क्या दोष?
शीला को अपने लंड को तांकते देख बूढ़ा दौड़कर अपनी धोती ले आया.. और कमर पर जैसे तैसे बांध ली.. खटिया पर बैठकर उसने रूखी की ओर देखा और बोला
ससुर: "बहु, तुम अपनी सहेली को जरा समझाओ.. ये अगर किसी को बता देगी तो हम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचेंगे"
रूखी ने इशारा कर अपने ससुर को चुप रहने के लिए बताया.. फिर वो शीला के पास आई और उसे कोने में ले जाकर बोली
रूखी: "भाभी अब क्या करना है.. ? आपने जैसा कहा था वैसा ही मैंने किया.. "
शीला ने रूखी के कान में कहा "तेरे ससुर को समझा की अगर ईसे चुप करवाना हो तो किसी भी तरह हमारे साथ शामिल करना पड़ेगा.. मैं मना करती रहूँगी.. पर तुम दोनों अड़े रहना.. "
रूखी अपने ससुर के पास आई और शीला सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गई.. रूखी ने अपने ससुर को वैसे ही समझाया.. ससुर थोड़ा सा झिझक रहा था पर मानने के अलावा ओर कोई चारा भी तो नहीं था.. आखिर इज्जत का सवाल था.. एक बुरे काम को छुपाने के लिए ओर दस बुरे काम करने पड़ते है..
बूढ़ा खड़ा हुआ.. और कुर्सी के पीछे जाकर शीला से लिपट कर उसके स्तन मसलने लग गया
शीला घबराने का अभिनय करते हुए "अरे ये क्या कर रहे है आप?? आपकी बेटी की उम्र की हूँ मैं.. कुछ शर्म है की नहीं आपको.. रूखी जरा समझा इनको"
ससुर ने शीला की निप्पलों को ब्लाउस के ऊपर से ही मरोड़ते हुए कहा " बाप जैसा हूँ.. पर बाप तो नहीं हूँ ना.. तू भी एक बार चुदवा ले.. फिर देख.. रोज मेरे पास आएगी.. तू भी रूखी से कम नहीं है.. आह्ह" शीला के दोनों पपीतों को हथेलियों से सहलाते हुए बूढ़ा बोला
शीला: "छोड़ दीजिए मुझे वरना मैं चिल्लाऊँगी" शीला ने अपने आप को छुड़वाने की नाकाम कोशिश की
अब रूखी करीब आई और उसने शीला का पल्लू हटा लिया और बोली
रूखी: "उन्हे कर लेने दीजिए भाभी.. आपके छेद में थोड़ा सा अंदर बाहर कर लेंगे उसमें आपका क्या बिगड़ जाएगा?? वैसे भी आपके पति है नहीं.. आपको भी थोड़ा सा मज़ा मिल जाएगा.. बाबूजी आप कीजिए.. मैं भी देखती हूँ कैसे मना करती है ये"
छूटने के लिए शीला जानबूझकर कमजोर प्रयास कर रही थी.. और रूखी का ससुर शीला पर टूट पड़ा.. पर हुआ यह की इस सारी घटना के कारण बुढ़ऊ का लंड खड़ा ही नहीं हो पा रहा था.. अपने ससुर का मुरझाया लंड देखकर रूखी बोली
"ईसे खड़ा तो कीजिए बाबूजी.. !!! वरना आप भाभी को कैसे चोदोगे?"
ससुर: "तुझे पता तो है बहु.. बिना चूसे ये खड़ा ही नहीं होता.. और इन्हे देखकर ये शर्मा गया है.. इनसे कहो की ये ही कुछ करे ईसे जगाने के लिए"
शीला का हाथ पकड़कर रूखी ने बूढ़े ससुर के लंड पर रख दिया.. शीला शर्माने का नाटक करने लगी.. "ये सब ठीक नहीं हो रहा रूखी.. किसी को पता चल गया तो?"
रूखी ने शीला के ब्लाउस के हुक खोल दिए और ब्रा ऊपर कर दी.. दोनों पपीते बाहर झूलने लगे.. शीला के मदमस्त चुचे देखते ही बूढ़े के लंड में जान आने लगी.. थोड़ी ही देर में उस सुस्त लंड ने घातक स्वरूप धारण कर लिया
रूखी घुटनों के बल बैठ गई और शीला के हाथ से लंड ले लिया.. और चटकारे लेकर चूसने लगी.. बूढ़ा शीला के स्तनों को मसले जा रहा था.. थोड़ी देर लंड चूसकर रूखी खड़ी हो गई.. और बोली "बाबूजी, भाभी की चुत चाटिए.. तो वो जल्दी मान जाएगी.. जैसे मेरी चाटते हो बिल्कुल वैसे ही चाटना.. " शीला के घाघरे का नाड़ा खींच लिया रूखी ने
ससुर: "अच्छा ऐसी बात है.. तो अभी मना लेता हूँ ईसे.. "
घाघरा उतरते ही मदमस्त हथनी जैसी जांघों के बीच बिना बालों वाली रसीली चूत को एकटक देखने लगा बूढ़ा.. रूखी ने शीला के भोसड़े के दोनों होंठ अपनी उंगलियों से चौड़े कीये.. और अंदर का गुलाब सौन्दर्य दिखाने लगी अपने ससुर को.. रूखी का ससुर उकड़ूँ बैठकर शीला की चूत के करीब आया.. पहले तो उसने चूत को प्यार से चूमा.. शीला की सिसकी निकल गई.. "आआआआह्ह.. !!!"
रूखी ने हस्तक्षेप किया.. शीला का हाथ पकड़कर उसे खटिया पर लिटा दिया.. ससुर भी कूदकर शीला की दोनों जांघों के बीच बैठ गया.. रूखी ने शीला की कमर के नीचे एक तकिया लगा दिया.. बूढ़े ने शीला के भोसड़े को अब बड़ी ही मस्ती से चाटना शुरू कर दिया..
अब रूखी और शीला दोनों निश्चिंत हो गए.. सब कुछ प्लान के मुताबिक हो रहा था.. शीला ने बूढ़े का सर अपने दोनों हाथों से पकड़कर चूत पर दबा दिया..
शीला: "आह्ह रूखी.. तेरा ससुर क्या मस्त चाटता है.. ऊई.. ओह्ह.. अमममम.. !!"
रूखी अपने दोनों पैर शीला के चेहरे के इर्दगिर्द जमाकर बैठ गई और अपनी झांटेदायर चुत को शीला के नाके के साथ रगड़ने लगी..
शीला: "उफ्फ़ रूखी.. तू ये बाल साफ क्यों नहीं करती? जंगल जैसा हो गया है पूरा"
शीला के स्तनों को अपने कूल्हों से रगड़ते हुए रूखी ने कहा "भाभी, बाबूजी को झांटों वाली पसंद है इसलिए.. "
बूढ़ा चाटते हुए बोला "वैसे बिना बालों वाली भी बहोत सुंदर लगती है.. " वो फिर से शीला के भोसड़े की गहराइयों में खो गया.. उसका लंड अभी भी लटक रहा था.. शीला ने आखिर रूखी की लकीर में अपनी जीभ घुसा ही दी.. साथ ही साथ वो रूखी के मटके जैसे बड़े स्तनों को दबा रही थी.. बूढ़े की जीभ उसके भोसड़े में ऐसा कहर ढा रही थी.. शीला उत्तेजित होकर रूखी की चूत चाट रही थी.. काफी देर तक ये सिलसिला चलता रहा
फिर रूखी शीला के ऊपर से उतर गई.. और अपने ससुर के सर के बाल खींचकर उन्हे शीला की चूत से अलग किया
रूखी: "क्या बाबूजी.. आपको नई वाली मिल गई तो मुझे भूल गए? मेरी भी चाटिए ना.. "
ससुर: "अरे बहु.. तुम्हारी तो रोज चाटता हूँ.. आज मेहमान आए है तो पहले उन्हे तो खुश करने दो.. " रूखी ने एक ना सुनी और ससुर का चेहरा खींचकर अपनी चूत पर लगा दिया.. शीला उठकर बूढ़े के लंड को सहलाने लगी.. रूखी की चुत थोड़ी देर चूसकर वह बूढ़ा फिर से शीला की ओर बढ़ा.. शीला की गोरी लचकदार चूचियों के ऊपर टूट पड़ा.. उन मदमस्त उरोजों को वह दोनों हाथों से मसलने लगा.. शीला उस बूढ़े के खड़े लंड की चमड़ी आगे पीछे कर रही थी.. बूढ़े ने उंगली और अंगूठे के बीच शीला की निप्पल को दबा दिया.. शीला की चीख निकल गई.. उसने बूढ़े को धक्का देकर खटिया पर सुला दिया और उसके लंड को मस्ती से चूसने लग गई
रूखी अपने ससुर के मुंह पर सवार हो गई.. ससुर अपनी बहु की चुत चाट रहा था और शीला उसका लंड चूस रही थी.. शीला का चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था.. थोड़ा सा चूसने के बाद शीला से ओर रहा नहीं गया.. उसने अपने चूत के होंठ फैलाए और बूढ़े के लंड के ऊपर बैठ गई..
ऊपर नीचे करते हुए उसने गति बढ़ाई.. बूढ़े के मुंह पर रूखी की चूत थी और लंड पर शीला चढ़ी हुई थी.. थोड़ी देर कूदने पर ही शीला की चूत ने पानी छोड़ दिया.. भोसड़ा एकदम सिकुड़ गया.. और उसके अंदर फंसे लंड का गला घोंट दिया.. बूढ़ा ससुर भी आनंद से कराहने लगा..
शीला: "बहोत मज़ा आ रहा है आह्ह आह्ह आह्ह" अपने स्तन दबाते हुए वह अब अभी आखिरी धक्के लगा रही थी
रूखी के चुत ने भी रस छोड़ दिया.. अपनी जीभ और लंड से उस बूढ़े ससुर ने दो दो औरतों को एक साथ तृप्त कर दिया था.. सिसकियाँ भरते हुए रूखी अपनी चुत के होंठ ससुर के मुंह पर रगड़े जा रही थी.. स्खलित होते हुए वह कराह रही थी.. उसके ससुर ने रूखी के स्तनों को इतनी जोर से दबाया की दूध की पिचकारी से उनका पूरा सर गीला हो गया.. शीला ठंडी होकर नीचे उतर गई.. बूढ़े ने अब रूखी को लेटाया और उसपर सवार होकर धक्के लगाने लगा.. थोड़े ही धक्कों के बाद बूढ़ा आउट हो गया.. पर आउट होने से पहले उसने रूखी की चुत से एक बार ओर पानी निकाल दिया.. ध्वस्त होकर वो रूखी के बड़े बड़े स्तनों के बीच गिर गया.. और वहीं पड़ा रहा
थोड़ी देर वैसे ही खटिया में पड़े रहने के बाद सबसे पहले शीला खड़ी हुई.. बूढ़े ससुर के लंड पर आभार-सूचक किस करते हुए उसके लाल टोपे पर अपनी जीभ फेर दी.. सुपाड़े की नोक पर लगी वीर्य की बूंद को भी चख लिया.. लंड ने एक बार ठुमक कर शीला को सलामी दी..
अपनी बहु के स्तनों से खेलते हुए बूढ़े ने कहा "मज़ा आया तुम दोनों को?"
रूखी: "मुझे तो बहोत मज़ा आया.. आप शीला भाभी से पूछिए.. " रूखी उठकर ब्लाउस पहनने लगी.. उस दौरान शीला अपने कपड़े पहन चूकी थी..
रूखी: "आप साड़ी में कितनी खूबसूरत लगती हो भाभी!!! कितना मस्त शरीर है आपका.. एकदम भरा हुआ.. ठीक कहा न मैंने बाबूजी" आखिरी हुक को बड़ी ही मुश्किल से बंद करते हुए रूखी ने कहा.. शीला रूखी के बड़े स्तनों को बस देखती ही रही.. उसकी चूत में नए सिरे से चुनचुनी होने लगी..
शीला: "रुखी, मुझसे तो कहीं ज्यादा तुम सुंदर हो.. तुझे पता नहीं है.. अगर फेशनेबल कपड़े पहनकर बाहर निकले तो लोग मूठ मार मारकर मार जाए.. अब मुझे चलना चाहिए.. काफी देर हो गई.. चलिए बाबूजी, मैं चलती हूँ.. फिर कभी आऊँगी.. मुझे भी अपनी बहु ही समझिए आप.. सिर्फ रूखी बहु का ही नहीं.. अब से आपको शीला बहु का भी ध्यान रखना होगा"
ससुर: "हाँ हाँ बहु रानी.. जब मन करें तब चली आना.. मैं तैयार हो आपको खुश करने के लिए"
शीला: "रूखी, तू मेरे घर पर आकर मुझे मिल.. मेरे पति कुछ दिनों में वापिस लौट आएंगे.. उससे पहले मिलने आ जाना"
रूखी: "हाँ भाभी.. जरूर आऊँगी"
अपना भोसड़ा ठंडा कर शीला वहाँ से घर की ओर निकल गई.. उसके चेहरे पर संतोष और तृप्तता के भाव थे.. घर पहुँचने की उसे कोई जल्दी नहीं थी.. इसलिए रिक्शा लेने के बजाए वह चलने लगी..
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अपने कूल्हें मटकाते हुई शीला रास्ते पर चलती जा रही थी.. बड़े बड़े स्तन, गदराया बदन, कमर से नीचे पहनी हुई साड़ी और मटकों जैसे चूतड़.. ऐसी कोई स्त्री चलते हुए जा रही हो तो स्वाभाविक तौर पर सब की नजर उस पर चिपक जाएगी.. क्या जवान और क्या बूढ़े.. जो भी देखता था.. देखकर ही अपने लंड एडजस्ट करने लगता था.. कुछ साहसी तो मन ही मन मूठ मारने लगे थे.. जिन बूढ़ों से कुछ हो नहीं पा रहा था वह चक्षु-चोदन का आनंद ले रहे थे..
घर पहुंचकर शीला बिस्तर पर पड़ी.. सोच रही थी "मदन के आने के बाद ये सब बंद कर देना पड़ेगा.. वैसे मदन के लौटने के बाद इन सब के जरूरत भी नहीं रहेगी.. पर एक बार बाहर का खाने का चस्का लग जाएँ फिर याद तो आएगी ही.. जो होगा देख लेंगे.. जब मौका मिले तब चौका लगा देना ही गनीमत है.. बाकी फिर मदन तो है ही.. !! और इस तरह रूखी के घर जाकर अपना कार्यकरम निपटा लूँ तो मदन को भी पता नहीं चलेगा.. हाँ रूखी की सास का प्रॉब्लेम है.. पर वो बुढ़िया और कितना जिएगी.. ?? जल्दी मर जाएँ तो अच्छा.. झंझट खतम हो.. "
तभी डोरबेल बजने की आवाज आई.. आईने में खुद को ठीक करके शीला बाहर आई और दरवाजा खोला
संजय आया हुआ था..
संजय: "चलिए मम्मी जी, मैं आपको लेने आया हूँ"
शीला आश्चर्य से "लेने आए हो? पर कहाँ जाना है?"
संजय: "आप घर पर अकेली हो.. वैशाली भी चार दिनों बाद लौटेगी.. यहाँ बैठे रहने से तो अच्छा है की आप मेरे साथ चलिए.. मुझे भी कंपनी मिलेगी"
शीला: "लेकिन जाना कहाँ है??" शीला असमंजस में थी
संजय: "आप तीन दिन के कपड़े पैक कर लो.. कहाँ जाना है ये मैं बाद में बताता हूँ.. आप के लिए सरप्राइज़ है.. अभी नहीं बताऊँगा"
शीला: "नहीं.. ऐसे मैं घर छोड़कर नहीं चल सकती.. "
संजय: "मम्मी जी, आपको वैशाली की कसम.. किस बात का डर है आपको?"
शीला: "डर नहीं है बेटा.. पर सोचना तो पड़ता है ना.. !!"
संजय: "अपने दामाद के साथ चलने में क्या सोचना?? चलिए एक घंटे में निकलना है.. आप कपड़े पेक कीजिए.. अभी गाड़ी आती ही होगी"
शीला: "अरे पर मुझे ये तो बताओ की जाना कहाँ है?"
संजय: "आपको मुझ पर भरोसा नहीं है? "
शीला मन में सोचने लगी.. "भरोसा तो पूरा है तुझ पर मादरचोद.. की तू एक नंबर का कमीना है.. इसीलिए तो इतना सोचना पड़ रहा है" शीला को पता नहीं चल रहा था की वो क्या करें
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
"दीदीईईईईई................!!!" किसी लड़की की शरारती चीख ने अनुमौसी के घर पर सब को चोंका दिया.. खाना पका रही कविता ने उस परिचित आवाज को पहचान लिया.. वह भागकर बाहर आई
"अरे.. क्या बात है !! मौसम तू यहाँ कैसे?? किसके साथ आई है? आने से पहले फोन तो किया होता, मैं तुझे लेने आ जाती" कविता की खुशी का कोई ठिकाना न रहा.. मौसम कविता की छोटी बहन थी
"अगर फोन करती तो तुम्हें सरप्राइज़ कैसे दे पाती?"
कविता हाथ पकड़कर अपनी छोटी बहन को घर के अंदर ले गई
अनुमौसी: "अरे, बेटा मौसम.. कैसी हो? परीक्षा खतम हो गई तेरी?"
मौसम: "ठीक हूँ आंटी.. ये बोर्ड की परीक्षा ने परेशान कर रखा था.. बाप रे.. पढ़ पढ़कर जान निकल गई मेरी.. और दुनिया भर की पाबंदियाँ.. टीवी मत देखो.. सहेलियों से मिलने मत जाओ.. मूवी देखने मत जो.. बस पूरा दिन पढ़ते ही रहो.. मैंने तय किया था की परीक्षा खतम होते ही मैं आप सब को मिलने आऊँगी"
अनुमौसी: "हाँ भई.. अब तो पढ़ाई लिखाई का ही जमाना है.. हमारे जमाने में तो लड़कियों को लिखना पढ़ना सिखाकर ब्याह देते थे.. तू अब यहाँ आराम से रहना और अपनी थकान उतारना"
मौसम: "हाँ आंटी.. दीदी के हाथ का बना बोर्नवीटा वाला दूध पीऊँगी तो मेरी सारी थकान उतर जाएगी" खिलखिलाकर हँसती हुई मौसम ने मंदिर की घंटी जैसी सुरीली आवाज में कहा
मौसम.. मौसम.. मौसम.. बारिश की पहली बूंद जैसी.. छोटी हिरनी जैसी.. मोती चुनते राजहंस जैसी..चहचहाती चिड़िया जैसी..
कविता मौसम को देखकर बेहद खुश हो गई.. मायके की हर चीज लड़की को प्यारी होती है.. और ये तो उसकी सगी छोटी बहन थी.. देखने में कविता जैसी ही.. पर थोड़ी सी ज्यादा सुंदर.. अठारह की हो चुकी थी मौसम.. बिंदास और शरारती स्वभाव की मौसम को देखते ही जो बात सबसे ज्यादा ध्यान खींचती थी.. वो थी उसकी मुस्कुराहट.. जब वो हँसती थी तब उसके गाल के डिम्पल इतने प्यारे लगते थे की देखने वाले की नजर ही न हटे.. उसके सहपाठी लड़के मॉसम के गालों के गड्ढों को देखने के लिए तरसते रहते.. सुराहीदार गर्दन.. मोम की पुतली जैसा जिस्म.. मीठी आवाज.. मौसम को देखने में ही सब ऐसे खो गए की उसके साथ आई लड़की का स्वागत करना ही भूल गए.. उस लड़की पर अनुमौसी का ध्यान गया
"अरे मौसम का स्वागत करने में हम सब इस लड़की को तो भूल ही गए.. !!" अनुमौसी ने कविता से कहा.. लगभग मौसम की उम्र की लड़की की पीठ सहलाते हुए उन्हों ने पूछा "क्या नाम है तेरा बेटा ?"
"जी नमस्ते आंटी जी, मेरा नाम फाल्गुनी है"
"मम्मी जी, हमारे पड़ोस में रहते सुधीरअंकल की बेटी है फाल्गुनी.. इसके और मौसम के बीच ऐसी गहरी दोस्ती है की दोनों कभी अलग होती ही नहीं है.. मैंने ही कहा था मौसम से.. की जब भी यहाँ आए तब फाल्गुनी को साथ लेते आए.. वो भी बेचारी थोड़ी फ्रेश हो जाएगी.. क्यों सही कहा ना मैंने फाल्गुनी?" हँसते हुए कविता ने कहा
फाल्गुनी: "हाँ दीदी, बड़ी मुश्किल से तो वेकेशन मिलता है.. और तभी ये पगली यहाँ दौड़ आती है.. फिर मैं अकेली वहाँ क्या करू? बोर हो जाती मैं.. इसलिए यहाँ इसके साथ ही आ गई.. अब पूरा एक महिना आपका दिमाग खाऊँगी.. " फाल्गुनी का स्वभाव ही ऐसा था की आते ही सब के साथ घुलमिल गई
फाल्गुनी.... बोलने के समय बोलती थी पर वैसे काफी शांत.. थोड़ी सी गंभीर.. गोरी और कद में ऊंची थी.. उसे देखते ही सब से पहली जो चीज नजर आती थी वो थे उसके घने लंबे बाल.. उसकी चोटी घुटनों तक लंबी थी.. बरसात के बादलों जैसे काले बाल!!
इन दोनों चिड़ियाओं की चहचहाट से अनुमौसी के पूरे घर में जान आ गई.. दोनों हरदम इतनी बातें कर रही थी.. थकती ही नहीं थी.. कविता किचन में खाना बनाने गई.. साथ में ये दोनों भी उसकी मदद करने गए.. अनुमौसी बाहर निकली.. थोड़ा सा चलने के लिए.. रास्ते में ही उन्हे शीला मिल गई.. जो सब्जी लेकर आ रही थी
शीला और मौसी काफी दिन बाद मिले थे.. दोनों बातों में मशरूफ़ हो गई.. बातों ही बातों में शीला ने मौसी को वैशाली के वैवाहिक जीवन की परेशानी के बारे में बताया.. अपने दामाद संजय के बारे में भी कहा.. कैसे वो कुछ काम नहीं करता और उधार लेकर गुलछर्रे उड़ाता रहता है.. अनुभवी अनुमौसी से शीला को मार्गदर्शन की अपेक्षा थी इसीलिए वह अपनी बेटी के निजी जीवन की सारी बातें बता रही थी
एक लंबी सांस लेकर अनुमौसी ने कहा "अब ऐसी स्थिति में क्या कर सकते है ? बेचारी वैशाली के पास बर्दाश्त करने के अलावा ओर कोई चारा नहीं है.. अगर वो अलग होना चाहती है अभी सही वक्त होगा ऐसा करने के लिए.. जैसे जैसे समय बीतता जाएगा, समस्या ओर गंभीर बन जाएगी"
शीला: "आपने कहा अभी सही वक्त है, मतलब? मैं समझी नहीं.."
अनुमौसी: "देख शीला.. पति-पत्नी के झगड़े अक्सर रात को बिस्तर पर जाते ही थम जाते है.. भगवान न करें कहीं वैशाली प्रेग्नन्ट हो गई तो?? बच्चे के आने के बाद तलाक काफी कठिन और मुश्किल हो जाएगा.. ये था मेरे कहने का मतलब!!"
शीला डर गई "मौसी.. कहीं वैशाली पहले से प्रेग्नन्ट तो नहीं होगी ना.. !!"
अनुमौसी: "तू उसकी माँ है.. सीधा पूछ ही ले.. जो होगा वो बता देगी तुझे.. और अगर हुई भी तो बिना किसी शोर-शराबे के बच्चे को गिरा दे.. अगर तेरे दामाद के सुधरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे है तो.. और हाँ.. उस कमीने को भनक नहीं लगनी चाहिए अगर वैशाली प्रेग्नन्ट हुई तो.. वरना वो कमीना उसे ब्लेकमेल कर सकता है" अपने सालों के अनुभव को सांझा किया मौसी ने
ये सुनकर मन ही मन कांप उठी शीला.. पर वो भी हार मानने वालों में से नहीं थी.. संजय को तो सबक सिखाना ही पड़ेगा.. ऐसे कैसे वो किसी लड़की का जीवन तबाह करके ऐशोआराम की जिंदगी बीता सकता है!! वैशाली से बात करने का निश्चय करके शीला घर लौटी
रात का खाना खाकर जब दोनों माँ-बेटी झूले पर बैठे थे तब शीला ने वैशाली से सब कुछ पूछ लिया.. बातों बातों में उसने संजय और वैशाली के बेडरूम के जीवन के बारे में भी पूछ लिया.. जब शीला ने ये जाना की वैशाली भरी जवानी में शारीरिक भूख से तड़प रही थी तब उसका दिल ही बैठ गया.. इस उम्र में मुझसे रहा नहीं जाता तो ये बेचारी कैसे गुजारा करती होगी !!! इस बारे में मैं भी क्या कर सकती हूँ?? वाकई बिना पति के रहना बेहद कठिन है.. वैशाली के वैवाहिक जीवन को कैसे बचाया जाए ये सोचते हुए उसने वैशाली से संजय की कमजोरियों के बारे में पूछ लिया.. आखिर उन दोनों के बीच के झगड़े की जड़ तक जाना जरूरी था.. वो क्या कारण था की जिसके कारण दोनों के बीच अनबन शुरू हुई? इस बारे में सब कुछ जानना जरूरी था पर कुछ बातें ऐसी थी जो वो वैशाली से सीधे पूछ नहीं सकती थी.. इसके लिए शीला ने कविता की मदद लेने का तय किया.. दोनों माँ बेटी साथ में बिस्तर पर बातें करते हुए सो गई
सुबह शीला ने कविता को फोन किया.. अपनी छोटी बहन और उसकी सहेली की मौजूदगी के चलते कविता ने आने में असमर्थता जताई.. पर वादा किया की समय मिलते ही वह तुरंत मिलने आएगी..
शीला ने अब चेतना को फोन किया.. यह जानने की संजय के बारे में जानकारी प्राप्त करने का जो काम उसने चेतना को दिया था उस में कुछ जानने मिला भी या नहीं !!
चेतना: "सच कहूँ शीला.. दो दिन से मैं कुछ न कुछ काम में ऐसी उलझी रही की तेरे दामाद के बारे में पता करने का वक्त ही नहीं मिला.. हाँ सुबह सुबह गेस्टहाउस की बालकनी में वो खड़ा जरूर होता है.. बाकी कुछ नया जानने को मिलेगा तो में तुरंत तुझे बताऊँगी" चेतना ने अपनी जूठी कहानी सुनाई
फोन रखकर शीला सोच में पड़ गई.. आज ये चेतना की आवाज में झिझक क्यों महसूस हो रही थी!! हर बार की तरह बात नहीं कर रही थी वो.. जैसे कुछ छुपा रही हो.. !!
क्या करू? किस से कहू? शीला ने वैशाली की किसी सहेली की मदद लेने का सोचा.. काफी देर तक सोचते रहने के बाद उसे फोरम की याद आई.. वैशाली की कॉलेज की सहेली.. थोड़ी दिन पहले ही मंडी में फोरम की मम्मी शीला को मिल गई थी..फोरम ने प्रेम विवाह किया था और वो इसी शहर में रहती थी.. पर वो कहाँ रहती थी ये पता नहीं था..
शीला सोचती रही.. सोचती रही.. सोचती रही.. फिर उसे याद आया की टेलीफोन डायरी में उसका नंबर लिखा होगा.. वैशाली कहीं बाहर गई थी.. शीला ने डायरी निकाली और फोरम के घर का लेंडलाइन नंबर ढूंढकर फोन लगाया.. किसी पुरुष ने फोन उठाया
शीला ने नम्र आवाज में पूछा "जी आप कौन?"
"जी मैं मणिलाल ठक्कर.. आपको किसका काम है?"
"आप, फोरम के पापा हो ना.. !!"
"जी हाँ.. पर आप कौन बोल रही है?"
"जी नमस्ते, मेरा नाम शीला है.. मेरी बेटी वैशाली और फोरम दोनों सहेलियाँ है"
"ओह नमस्ते शीला बहन.. कैसे है आप? वैशाली को अच्छे से जानता हूँ मैं.. वह अक्सर मेरे घर आती रहती थी.. कहिए क्या काम था?"
"जी मुझे फोरम का काम था.. "
"वो तो अपने ससुराल है.. कुछ अर्जेंट काम हो तो आप उसके मोबाइल पर कॉल कर सकती है.. मैं नंबर देता हूँ"
"हाँ हाँ.. नंबर दीजिए प्लीज.. काम तो वैसे कुछ खास नहीं है.. वैशाली मायके आई हुई है.. वो फोरम को याद कर रही थी.. तो सोचा उसे फोन कर दु"
शीला ने चालाकी से फोरम का नंबर जान लिया.. और फोरम को फोन किया.. फोरम को संक्षिप्त में सारी बात समझकर उसे इस बारे में जानकारी प्राप्त करके मदद करने के लिए कहा
फोरम: "आंटी, आप चिंता मत कीजिए.. मैं सब कुछ जान लूँगी"
शीला: "मैंने तुझे फोन किया है इस बारे में वैशाली को पता नहीं चलना चाहिए"
फोरम: "मैं उसे कुछ नहीं बताऊँगी.. आप इत्मीनान रखिए.. मैं ऐसे आ टपकूँगी और उससे सारी बातें पूछ लूँगी"
शीला: "ठीक है बेटा.. मुझे बहोत चिंता हो रही है.. तू सब कुछ जान ले फिर आगे क्या करना वो पता चले मुझे"
शाम को शीला और वैशाली खाना खा रहे थे तभी डोरबेल बजी.. वैशाली ने उठकर दरवाजा खोला और अचंभित हो गई
"अरे.. फोरम तू.. !!!! तुझे कैसे पता चला की मैं यहाँ हूँ" वैशाली ने फोरम को गले से लगा लिया..
फोरम: "कुछ दिन पहले मेरी मम्मी आंटी से बाजार में मिली थी.. तभी उन्होंने बताया था की तू आई है.. तो आ गई मैं तुझे सप्राइज़ देने.. तू बता यार.. कैसा चल रहा है सब कुछ? तो तो यार मस्त गोरी हो गई कलकता जा कर.. "
शीला: "आओ बेटा फोरम.. वैशाली खाना ठंडा हो रहा है.. पहले खाना खतम कर.. फिर दोनों आराम से बातें करना.. फोरम, तू भी आजा.. थोड़ा सा खा ले.. "
फोरम: "नहीं आंटी, मैं खाना खाकर ही आई हूँ.. " कहते हुए वो डाइनिंग टेबल पर वैशाली के साथ बैठ गई..
शीला ने खाना जल्दी खतम किया और खड़ी हो गई "आप दोनों आराम से बात करो.. मुझे थोड़ा काम है" दोनों को अकेले बात करने का मौका देने के लिए शीला चली गई
फोरम ने बातों बातों में वैशाली से जान लिया की संजय और उसके बीच क्या तकलीफ थी.. उन दोनों के संबंध काफी खराब हो चुके थे.. दोनों बहोत ही खास सहेलियाँ थी इसलिए वैशाली सब कुछ बेझिझक फोरम को बताया.. सब कुछ.. यहाँ तक की बेडरूम लाइफ के बारे में भी
वैशाली और फोरम को प्राइवसी देने के लिए शीला अनुमौसी के घर चली आई.. कविता और पीयूष दोनों शीला को देखकर खुश हो गए.. शीला जब मौसी से बात कर रही थी तब चिमनलाल सोफ़े पर हिप्पो की तरह लेटे हुए आई.पी.एल के मेच देख रहा था.. तीरछी नज़रों से वो शीला के स्तनों को देख रहा था इस बात का पता था शीला को.. किसी भी एंगल से लाइन मारने योग्य नहीं था चिमनलाल.. इसलिए उसकी नजर शीला को चुभ रही थी.. ऊपर से पीयूष जिस तरह से मौसम के कंधे पर हाथ रखकर हंस हँसकर बात कर रहा था ये देखकर शीला थोड़ी ओर अस्वस्थ हो गई.. इस हरामी पीयूष को जवान साली क्या मिल गई.. मेरे सामने तो देख भी नहीं रहा!! उस रात मूवी देखते वक्त तो मेरे बबलों पर टूट पड़ा था कमीना..
मौसम की छाती पर नजर फेरते ही शीला को पता चल गया की माल एकदम कोरा था.. अभी तक किसी का हाथ नहीं पड़ा था उसके सख्त और विकसित हो रहे स्तनों पर..
उसके स्तन जवान थे तो शीला के स्तनों में बड़े आकार का जादू था.. पीयूष का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए शीला ने अपना पल्लू गिरा दिया.. उसकी एक तरफ की ब्लाउस की कटोरी खुली होते ही पीयूष एल.बी.डब्ल्यू हो गया.. अब वो बार बार शीला के उरोज को देख रहा था ये बात कविता के ध्यान में भी थी
मौसम और फाल्गुनी इन नज़रों के खेल से अनजान थी क्योंकि वो दोनों शीला के बगल में बैठी थी.. कविता पीयूष के पास बैठी थी.. शीला के मदमस्त उरोजों को देखकर वो भी मन ही मन आहें भर रही थी.. सोच रही थी.. एक लड़की होकर भी मेरी नजर शीला के स्तनों पर चिपक जाती है.. तो बेचारे पीयूष का क्या दोष? अनुमौसी भी इन सब से अनजान तो नहीं थे पर रीटायर हो चुके खिलाड़ी की तरह वह सबकुछ देखते हुए शीला से बातें कर रही थी
मौसम: "जीजू, आप कल हमें घुमाने लेकर चलेंगे ना !! "
पीयूष: "कल तो मुश्किल होगा मौसम.. ऑफिस में बहोत काम है.. तू कविता को ही बोल.. वो तुझे ले जाएगी घुमाने"
शीला: "जहां भी जाओ.. वैशाली को साथ लेकर ही जाना.. वो बेचारी अकेले अकेले बोर हो जाती है"
वैशाली का जिक्र होते ही पीयूष की आँखें चमक उठी.. ये बात शीला की नज़रों से छिपी नहीं थी.. वो सोच में पड़ गई.. कहीं वैशाली और पीयूष के बीच भी कुछ.. ??? ये मादरभगत माँ और बेटी दोनों को घुमा रहा है शायद..
शीला: "मैं चलती हु अब.. साढ़े दस बज गए.. "
कविता: "बैठिए ना भाभी.. वैसे वैशाली कहाँ है? दिखी ही नहीं.. उस दिन संजयकुमार को भी देखा था मैंने.. कहीं बाहर तो नहीं गए वो दोनों?"
संजय का नाम सुनते ही पीयूष का दिमाग खराब हो गया.. उसने कुछ सोचकर कहा "मैं देखता हूँ.. अगर राजेश सर मुझे छुट्टी देते है तो मैं परसों गुरुवार और शुक्रवार दो दिन की छुट्टी ले लूँगा.. शनिवार और रविवार को वैसे भी छुट्टी है.. चार दिन कहीं जाने का प्रोग्राम बनाते है.. शीला भाभी और वैशाली को भी साथ ले लेंगे.. मज़ा आएगा"
ये सुनते ही मौसम उछल पड़ी और पीयूष को गले लगाकर बोली "थेंकयू जिजू.." मौसम के इस बर्ताव से किसी को ताज्जुब नहीं हुआ पर शीला की नजर मौसम के कच्चे अमरूद जैसी चूचियों पर गई जो पीयूष के शरीर से दबकर चपटी हो गई थी..
"आप चलोगे ना भाभी?" पीयूष ने आँख मारते हुए शीला से पूछा
"देखते है.. अगर वैशाली राजी हो गई तो चलूँगी.. उसे अकेला छोड़कर कैसे आ सकती हूँ? और अगर संजयकुमार अचानक घर पर आ गए तो? मुझे सब देखना पड़ता है " शीला ने पोलिटिकल जवाब दीया
"अरे वैशाली को तो मैं मना लूँगा.. वो भी बेचारी.. कितने सालों के बाद मायके आई है.. वो भी थोड़ा सा इन्जॉय कर ले" पीयूष ने कहा
कविता ने अपनी कुहनी पीयूष की कमर पर मारते हुए कहा "क्या बात है.. वैशाली की बड़ी फिक्र हो रही है तुझे.. !! कहीं उसके साथ तेरा.. !!" कविता ने बात अधूरी छोड़ दी
पीयूष सकपका गया.. जैसे रंगेहाथों पकड़ा गया हो.. वो कुछ नहीं बोला और नजरें झुकाकर बैठा ही रहा
"मैं देखती हूँ.. जो भी होगा कल बताऊँगी" कहते हुए शीला उठकर अपने घर चल दी
शीला जब घर पहुंची तब वैशाली किसी के साथ मोबाइल पर बात कर रही थी.. फोरम जा चुकी थी.. शीला ने देखा की उसके आते ही वैशाली ने फोन कट कर दिया.. होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. वो भी अब शादीशुदा है और बड़ी हो गई है.. हर बात पर पूछना या टोकना ठीक नहीं होगा.. हो सकता है की संजय से ही बात कर रही हो !! लेकिन संजय का फोन होता तो इस तरह काट नहीं देती.. हिम्मत से बात कर रही होगी?? क्या पता !!
अपनी एकलौती बेटी का संसार उझड़ता हुआ देखकर शीला को बहोत दुख हो रहा था.. पर उससे भी ज्यादा दुख इस बात का था की उसका पति मदन अभी मौजूद नहीं था.. अगर वो होता तो संजय को ठीक कर देता.. अभी और १८ दिन बाकी थे मदन के लौटने में..
अपने पति को याद करते हुए शीला सो गई और उसके बगल में वैशाली भी.. सुबह ४ बजे के करीब वैशाली को पेट में बहोत दर्द होने लगा.. पर वो बिस्तर में पड़ी रही.. बेकार में मम्मी की नींद खराब होगी ये सोचकर.. थोड़ी देर यूंही पड़े रहने के बाद वह बाथरूम जाने के लिए उठने ही वाली थी तब डोरबेल बजी.. शीला तुरंत उठ गई.. मम्मी शायद दूध लेकर बाथरूम जाएगी तो उनके लौटने के बाद मैं जाऊँगी ये सोचकर वैशाली बिस्तर में पड़ी रही..
शीला ने दरवाजा खोला.. सामने रसिक था.. रसिक को देखते ही वह उससे लिपट पड़ी.. अपनी छाती को रसिक के जिस्म से रगड़ते हुए वह बोली
शीला: "ओह्ह रसिक.. बहोत मन कर रहा है यार.. पर क्या करू.. वैशाली के आने के बाद कोई सेटिंग हो ही नहीं पा रहा.. तेरा "ये" मुझे बहोत याद आता है.. कहीं ले चल मुझे यार.. अंदर ऐसी आग लगी है की तुझे क्या बताऊँ!!" कहते हुए शीला ने रसिक के पाजामे के ऊपर से ही उसका लंड पकड़ लिया
बेडरूम के दरवाजे के पीछे छुपकर देख रही वैशाली को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था.. ये क्या हो रहा है? मम्मी एक दूधवाले के साथ?? छी छी.. एक पल के लिए तो वो अपने पेट का दर्द भी भूल गई.. अपनी माँ का ये नया ही रूप देखा था उसने..
रसिक अपने मजबूत हाथों से शीला की पीठ और कूल्हों को गाउन के ऊपर से ही मसलते हुए शीला के होंठ चूस रहा था.. चूसते चूसते आहें भी भर रहा था
"आवाज मत कर पागल.. वो जाग गई तो आफत आ जाएगी" शीला ने कहा
रसिक का सख्त मूसल जैसा लंड मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे करते हुए शीला का भोसड़ा चुदवाने के लिए तड़पने लगा.. उससे रहा नहीं जा रहा था लेकिन वैशाली की मौजूदगी में ऐसा कुछ भी कर पाना असंभव था.. हररोज केवल वो रसिक का लंड चूसकर ठंडा करती पर उसकी चूत की प्यास अधूरी ही रह जाती, ये बात बड़ी खल रही थी शीला को..
"ओह्ह भाभी.. रोज की तरह आज भी मेरा चूसकर सारा जहर बाहर निकाल दो.. तो मैं जाऊँ.. ये नरम नहीं होगा तबतक मैं किसी के घर जा नहीं पाऊँगा.. देखो तो सही.. कितना बड़ा उभार हो गया है पजामे में??" शीला के गाउन में हाथ डालकर जोर से मसल दिए उसके स्तन रसिक ने.. निप्पलों पर रसिक की खुरदरी उँगलियाँ रगड़ते ही शीला की वासना उफान पर चढ़ने लगी.. वो रसिक के लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगी.. अचंभित होकर वैशाली अपनी माँ की सारी करतूतें देखती ही रही.. शीला और रसिक की सारी बातें ठीक से सुनाई तो नहीं दे रही थी पर उनकी हरकतें देखने के बाद, बातें सुनने की जरूरत भी नहीं थी..
यह सारी कामलीला देखकर वैशाली की चूचियाँ भी सख्त और लाल हो गई.. वैशाली को एक पल के लिए नफरत हो गई अपनी माँ से.. फिर उसने सोचा.. दो साल से पापा विदेश थे.. मर्द की जरूरत हर औरत को पड़ती है.. तो उसमें गलत क्या है !! पर मम्मी को थोड़ा लेवल का भी ध्यान रखना चाहिए ना!! वैशाली ने देखा की थोड़ी सी आनाकानी के बाद उसकी माँ घुटनों पर बैठ गई.. कम रोशनी के कारण उसे रसिक का लंड नजर नहीं आ रहा था.. थोड़ी देर के बाद रसिक चला गया.. और शीला अपने मुंह में भरे वीर्य को थूकने के लिए वॉशबेसिन पर आई.. ये देख वैशाली को घिन आने लगी.. माय गॉड.. मम्मी के मुंह में उसने पिचकारी मार दी.. !!!!!!!
शीला को बेडरूम की ओर आता देख वैशाली तुरंत बिस्तर पर लेट गई और करवट लेकर गहरी नींद में होने का नाटक करने लगी.. शीला ने वैशाली की ओर देखा.. उसे गहरी नींद में देख शीला का मन शांत हुआ.. अच्छा है ये सो रही है.. ये साला रसिक भी.. उसका लंड पकड़ते ही मेरी चूत में झटके लगने लगते है.. रहा ही नहीं जाता.. कितना टाइट है उसका.. हाय.. अंदर लेने का मन करने लगता है.. क्या करू यार.. बिना चुदे रहा नहीं जाता मुझसे अब.. कुछ सेटिंग तो करना ही पड़ेगा.. पर कहाँ करू? रसिक को चेतना के घर बुला लूँ?? आइडिया तो अच्छा है पर उस रंडी चेतना का कोई भरोसा नहीं.. एक बार उसने अगर रसिक का देख लिया तो बिना चुदवाए नहीं रहेगी.. और एक बार उससे चुद गई तो उसे अपना बना ही लेगी वो कमीनी.. नहीं नहीं.. ऐसा जोखिम नहीं उठाना..
शीला घर के काम में मशरूफ़ हो गई और उसका मन चुदवाने के बंदोबस्त के बारे में सोचने लगा.. करीब साढ़े आठ के करीब वैशाली जाग गई.. वह नहा-धोकर तैयार हो गई और कविता के साथ बाजार चली गई.. रास्ते में कविता ने वैशाली को चार दिन बाहर जाने के प्रोग्राम के बारे में बताया.. अपनी बहन मौसम और उसकी सहेली फाल्गुनी के बारे में भी कहा..
कविता: "तू आएगी ना साथ.. पीयूष कह रहा था की तुझे तो वो जरूर लेके चलेगा.. तेरे लिए कुछ ज्यादा ही जज्बाती है पीयूष.. और क्यों न हो.. तुम दोनों के बीच वो वाला खास रिश्ता जो है!!" शरारत करते हुए कविता ने कहा
वैशाली: "कुछ भी मत बोल.. उस समय जो होना था वो हो चुका.. बीत गई सो बात गई.. एक भूल हुई थी जो ईमानदारी से मैंने तेरे सामने कुबूल भी कर ली.. तू तो ऐसे बोल रही है जैसे मैं रोज पीयूष से करवाती हूँ"
कविता: "अरे यार मज़ाक कर रही हूँ.. क्या तू भी !! तू साथ चलेगी तो बहोत मज़ा आएगा.. यार वैशाली.. भूख लग रही है.. चल पानी पूरी खाते है.. तू ही बता.. यहाँ कौन सब से अच्छे गोलगप्पे खिलाता है?"
वैशाली: "चल तुझे ऐसी जगह नाश्ता करवाती हूँ की याद रखेगी.. थोड़ा दूर है पर मज़ा आएगा"
हाथ दिखाकर वैशाली ने रिक्शा को रोका और दोनों अंदर बैठ गए.. वैशाली ने पता बताया और ऑटो वाला उस ओर चलाने लगा..
रास्ते में कविता ने रसिक के साथ उस दिन हुई द्विअर्थी बातों के बारे में बताया.. रसिक का नाम सुनते ही वैशाली के कान खड़े हो गए.. वह कविता से और जानकारी प्राप्त करने के मकसद से घूम फिराकर पूछने लगी.. कविता को भी आश्चर्य हुआ की रसिक के बारे में इतना सब क्यों पूछ रही थी वैशाली !! दोनों ने उस जगह पहुंचकर नाश्ता किया और घर वापिस आए
घर आते ही शीला ने वैशाली को बताया "कविता और पीयूष, घर आए मेहमानों को लेकर ४ दिन कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बना रहे है.. मुझे पूछ रहे थे अगर हम दोनों भी साथ चलना चाहे तो.. "
वैशाली: "मुझे मूड नहीं है जाने का मम्मी.. तुम्हें जाना है तो जाओ"
शीला: "अगर तू नहीं चलेगी तो मैं भी जाकर क्या करूंगी !!"
वैशाली: "मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा मम्मी.. संजय को लेकर मैं बहोत परेशान हूँ.. इसलिए नहीं जाना चाहती.. पर तू तो चली जा.. दो सालों से तुम कहीं नहीं गई.. थोड़ा माहोल बदलेगा तो तुझे भी अच्छा लगेगा.. "
शीला ने जवाब नहीं दिया.. वैसे वैशाली की बात तो सही थी.. २ साल हो गए थे मदन को गए.. दो सालों से वो कहीं नहीं गई थी.. बस एक बार अनुमौसी और महिला मण्डल पर एक दिन की यात्रा पर गई थी उसके अलावा कहीं भी नहीं.. वैशाली काफी उदास रहती थी.. और उसके कारण पूरा घर एकदम शांत और गंभीर लगता था.. बेटी की उदासी देखकर माँ को चिंता होना स्वाभाविक था