अगले दस मिनट में शीला रूखी के घर के बाहर खड़ी थी.. उसने धीरे से दरवाजा खोला.. रूखी का मिसकोल अभी आया नहीं था.. पर शीला से रहा ही नहीं जा रहा था.. मुख्य कमरे से गुजरते हुए वह दूसरे कमरे के दरवाजे के पीछे सटकर अंदर का नजारा देखने की कोशिश करने लगी.. अंदर का द्रश्य देखकर शीला के भोसड़े में १०००० वॉल्ट का झटका लगा..
रूखी का ससुर और रूखी दोनों ही खटिया पर नंगे थे.. वो बूढ़ा रूखी के मदमस्त बबले पकड़कर दबाते हुए रूखी से कुछ बात कर रहा था.. रूखी धोती के ऊपर से अपने ससुर के लंड से खेल रही थी.. दोनों सारी लाज-शर्म त्याग चुके थे.. रूखी ने ससुर को अपने ऊपर खींच लिया और बाहों में दबा दिया..
ससुर: "अरे बहु.. दरवाजा तो ठीक से बंद कर लेती.. बड़ी जल्दी है तुझे तो.. रुक.. मुझे दरवाजा बंद करने दे.. " वो उठकर दरवाजा बंद करने आया.. शीला साइड में छुप गई.. उसी वक्त रूखी ने शीला को मिसकोल किया.. शीला को यकीन था की जैसे ही बूढ़ा खटिया पर लेटेगा, रूखी किसी न किसी बहाने से दरवाजा खोल ही देगी..
रूखी: "बाबूजी, मैं जरा पानी पीकर आती हूँ" पानी पीने के बहाने वो उठी और उसने दरवाजे की कुंडी खोल दी.. और फिर ससुर के साथ खटिया में लेट गई..
रूखी: "बाबूजी, दरवाजे की कुंडी खराब हो गई है.. ठीक से बंद ही नहीं होती.. कोई जोर से धक्का दे तो भी खुल जाती है.. उसे ठीक करवा दीजिए"
रूखी के ५-५ किलो को चुचे दबाते हुए बूढ़ा बोला "अरे जो होगा देखा जाएगा बेटा.. अभी यहाँ कौन आने वाला है.. आह्ह रूखी बेटा.. ये तेरा जोबन.. वाहह.. देख तो.. कितना कडक हो गया मेरा.. जवानी में भी ऐसा सख्त नहीं होता था.. क्या जादू है तेरे जोबन का मेरी बहुरानी.. !!"
काले नाग की तरह खड़ा होकर फुँकार रहा था बूढ़े का लंड.. रूखी ने अपने हाथों से भेस के थन की तरह ससुर का लंड पकड़ा.. उसे ऐसा लगा मानों लोहे का गरम सरिया हाथ में ले लिया हो.. शीला को अब तक दरवाजा खोलकर अंदर आ जाना चाहिए था पर वह भी इस बूढ़े का लंड देखती ही रह गई..
ससुर: "बहु.. तू बड़ा मस्त चूसती है.. चल मुंह में लेकर चूस दे.. " रूखी ने ससुर के लंड का सुपाड़ा मुँह में लिया ही था की तभी..
"रूखी घर में है???" शीला बाहर से चिल्लाई.. और दरवाजे को धक्का देकर अंदर चली आई
"अरे बाप रे.. !!" ससुर ने बस इतना ही कहा.. वह आजू बाजू चादर ढूँढने लगा.. पर रूखी का आयोजन एकदम सटीक था..सारे कपड़े उसने दूर रख दिए था.. थोड़ी सी दूरी से शीला को बूढ़े का झांटों से भरा हुआ खूँटे जैसा लंड दिखने लगा.. शीला ने शर्माने की एक्टिंग की और बोली
शीला: "हाय माँ.. ये क्या कर रही है तू रूखी?? कुछ शर्म हया है या नहीं तुझे?? अपने सगे ससुर के साथ ही..!!!! "
रूखी: "अरे भाभी.. आप यहाँ? फोन करके आना चाहिए था आपको.. "
बूढ़े के हाथ अभी भी रूखी के स्तनों पर ही थे.. उसका दिमाग काम ही नहीं कर रहा था.. वह स्तब्ध होकर शीला की ओर देख रहा था.. रूखी तो एक्टिंग कर रही थी.. पर बूढ़े की गांड फटकार दरवाजा हो गई थी..
शीला: "हाँ.. अब तो मुझे भी लगता है की फोन करके ही आना चाहिए था.. आप लोगों के रंग में भंग तो नहीं पड़ता.. !!"
रूखी: "भाभी आप रसोईघर में जाइए.. मैं आती हूँ अभी"
शीला: "नहीं रूखी.. मैं अब यहाँ एक पल भी नहीं रुकने वाली" शीला वापिस चलने लगी
ससुर: "अरे एक मिनट.. मेरी बात तो सुनिए आप.. !!" शीला रुक गई तो ससुर आगे बोला "आप कृपा करके किसीको ये बात मत बताना.. वरना हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी" दो हाथ जोड़कर नंगे खड़े ससुर ने शीला से विनती की.. शीला शर्मा गई.. आँखें झुकाकर शीला उस बूढ़े के लटक रहे लंबे लंड को निहार रही थी.. पहले के मुकाबले लंड सिकुड़ चुका था.. डर के कारण.. रूखी का नंगा जिस्म इतना सेक्सी लग रहा था की देखते ही शीला को कुछ होने लगा.. बेचारे ससुर का क्या दोष?
शीला को अपने लंड को तांकते देख बूढ़ा दौड़कर अपनी धोती ले आया.. और कमर पर जैसे तैसे बांध ली.. खटिया पर बैठकर उसने रूखी की ओर देखा और बोला
ससुर: "बहु, तुम अपनी सहेली को जरा समझाओ.. ये अगर किसी को बता देगी तो हम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचेंगे"
रूखी ने इशारा कर अपने ससुर को चुप रहने के लिए बताया.. फिर वो शीला के पास आई और उसे कोने में ले जाकर बोली
रूखी: "भाभी अब क्या करना है.. ? आपने जैसा कहा था वैसा ही मैंने किया.. "
शीला ने रूखी के कान में कहा "तेरे ससुर को समझा की अगर ईसे चुप करवाना हो तो किसी भी तरह हमारे साथ शामिल करना पड़ेगा.. मैं मना करती रहूँगी.. पर तुम दोनों अड़े रहना.. "
रूखी अपने ससुर के पास आई और शीला सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गई.. रूखी ने अपने ससुर को वैसे ही समझाया.. ससुर थोड़ा सा झिझक रहा था पर मानने के अलावा ओर कोई चारा भी तो नहीं था.. आखिर इज्जत का सवाल था.. एक बुरे काम को छुपाने के लिए ओर दस बुरे काम करने पड़ते है..
बूढ़ा खड़ा हुआ.. और कुर्सी के पीछे जाकर शीला से लिपट कर उसके स्तन मसलने लग गया
शीला घबराने का अभिनय करते हुए "अरे ये क्या कर रहे है आप?? आपकी बेटी की उम्र की हूँ मैं.. कुछ शर्म है की नहीं आपको.. रूखी जरा समझा इनको"
ससुर ने शीला की निप्पलों को ब्लाउस के ऊपर से ही मरोड़ते हुए कहा " बाप जैसा हूँ.. पर बाप तो नहीं हूँ ना.. तू भी एक बार चुदवा ले.. फिर देख.. रोज मेरे पास आएगी.. तू भी रूखी से कम नहीं है.. आह्ह" शीला के दोनों पपीतों को हथेलियों से सहलाते हुए बूढ़ा बोला
शीला: "छोड़ दीजिए मुझे वरना मैं चिल्लाऊँगी" शीला ने अपने आप को छुड़वाने की नाकाम कोशिश की
अब रूखी करीब आई और उसने शीला का पल्लू हटा लिया और बोली
रूखी: "उन्हे कर लेने दीजिए भाभी.. आपके छेद में थोड़ा सा अंदर बाहर कर लेंगे उसमें आपका क्या बिगड़ जाएगा?? वैसे भी आपके पति है नहीं.. आपको भी थोड़ा सा मज़ा मिल जाएगा.. बाबूजी आप कीजिए.. मैं भी देखती हूँ कैसे मना करती है ये"
छूटने के लिए शीला जानबूझकर कमजोर प्रयास कर रही थी.. और रूखी का ससुर शीला पर टूट पड़ा.. पर हुआ यह की इस सारी घटना के कारण बुढ़ऊ का लंड खड़ा ही नहीं हो पा रहा था.. अपने ससुर का मुरझाया लंड देखकर रूखी बोली
"ईसे खड़ा तो कीजिए बाबूजी.. !!! वरना आप भाभी को कैसे चोदोगे?"
ससुर: "तुझे पता तो है बहु.. बिना चूसे ये खड़ा ही नहीं होता.. और इन्हे देखकर ये शर्मा गया है.. इनसे कहो की ये ही कुछ करे ईसे जगाने के लिए"
शीला का हाथ पकड़कर रूखी ने बूढ़े ससुर के लंड पर रख दिया.. शीला शर्माने का नाटक करने लगी.. "ये सब ठीक नहीं हो रहा रूखी.. किसी को पता चल गया तो?"
रूखी ने शीला के ब्लाउस के हुक खोल दिए और ब्रा ऊपर कर दी.. दोनों पपीते बाहर झूलने लगे.. शीला के मदमस्त चुचे देखते ही बूढ़े के लंड में जान आने लगी.. थोड़ी ही देर में उस सुस्त लंड ने घातक स्वरूप धारण कर लिया
रूखी घुटनों के बल बैठ गई और शीला के हाथ से लंड ले लिया.. और चटकारे लेकर चूसने लगी.. बूढ़ा शीला के स्तनों को मसले जा रहा था.. थोड़ी देर लंड चूसकर रूखी खड़ी हो गई.. और बोली "बाबूजी, भाभी की चुत चाटिए.. तो वो जल्दी मान जाएगी.. जैसे मेरी चाटते हो बिल्कुल वैसे ही चाटना.. " शीला के घाघरे का नाड़ा खींच लिया रूखी ने
ससुर: "अच्छा ऐसी बात है.. तो अभी मना लेता हूँ ईसे.. "
घाघरा उतरते ही मदमस्त हथनी जैसी जांघों के बीच बिना बालों वाली रसीली चूत को एकटक देखने लगा बूढ़ा.. रूखी ने शीला के भोसड़े के दोनों होंठ अपनी उंगलियों से चौड़े कीये.. और अंदर का गुलाब सौन्दर्य दिखाने लगी अपने ससुर को.. रूखी का ससुर उकड़ूँ बैठकर शीला की चूत के करीब आया.. पहले तो उसने चूत को प्यार से चूमा.. शीला की सिसकी निकल गई.. "आआआआह्ह.. !!!"
रूखी ने हस्तक्षेप किया.. शीला का हाथ पकड़कर उसे खटिया पर लिटा दिया.. ससुर भी कूदकर शीला की दोनों जांघों के बीच बैठ गया.. रूखी ने शीला की कमर के नीचे एक तकिया लगा दिया.. बूढ़े ने शीला के भोसड़े को अब बड़ी ही मस्ती से चाटना शुरू कर दिया..
अब रूखी और शीला दोनों निश्चिंत हो गए.. सब कुछ प्लान के मुताबिक हो रहा था.. शीला ने बूढ़े का सर अपने दोनों हाथों से पकड़कर चूत पर दबा दिया..
शीला: "आह्ह रूखी.. तेरा ससुर क्या मस्त चाटता है.. ऊई.. ओह्ह.. अमममम.. !!"
रूखी अपने दोनों पैर शीला के चेहरे के इर्दगिर्द जमाकर बैठ गई और अपनी झांटेदायर चुत को शीला के नाके के साथ रगड़ने लगी..
शीला: "उफ्फ़ रूखी.. तू ये बाल साफ क्यों नहीं करती? जंगल जैसा हो गया है पूरा"
शीला के स्तनों को अपने कूल्हों से रगड़ते हुए रूखी ने कहा "भाभी, बाबूजी को झांटों वाली पसंद है इसलिए.. "
बूढ़ा चाटते हुए बोला "वैसे बिना बालों वाली भी बहोत सुंदर लगती है.. " वो फिर से शीला के भोसड़े की गहराइयों में खो गया.. उसका लंड अभी भी लटक रहा था.. शीला ने आखिर रूखी की लकीर में अपनी जीभ घुसा ही दी.. साथ ही साथ वो रूखी के मटके जैसे बड़े स्तनों को दबा रही थी.. बूढ़े की जीभ उसके भोसड़े में ऐसा कहर ढा रही थी.. शीला उत्तेजित होकर रूखी की चूत चाट रही थी.. काफी देर तक ये सिलसिला चलता रहा
फिर रूखी शीला के ऊपर से उतर गई.. और अपने ससुर के सर के बाल खींचकर उन्हे शीला की चूत से अलग किया
रूखी: "क्या बाबूजी.. आपको नई वाली मिल गई तो मुझे भूल गए? मेरी भी चाटिए ना.. "
ससुर: "अरे बहु.. तुम्हारी तो रोज चाटता हूँ.. आज मेहमान आए है तो पहले उन्हे तो खुश करने दो.. " रूखी ने एक ना सुनी और ससुर का चेहरा खींचकर अपनी चूत पर लगा दिया.. शीला उठकर बूढ़े के लंड को सहलाने लगी.. रूखी की चुत थोड़ी देर चूसकर वह बूढ़ा फिर से शीला की ओर बढ़ा.. शीला की गोरी लचकदार चूचियों के ऊपर टूट पड़ा.. उन मदमस्त उरोजों को वह दोनों हाथों से मसलने लगा.. शीला उस बूढ़े के खड़े लंड की चमड़ी आगे पीछे कर रही थी.. बूढ़े ने उंगली और अंगूठे के बीच शीला की निप्पल को दबा दिया.. शीला की चीख निकल गई.. उसने बूढ़े को धक्का देकर खटिया पर सुला दिया और उसके लंड को मस्ती से चूसने लग गई
रूखी अपने ससुर के मुंह पर सवार हो गई.. ससुर अपनी बहु की चुत चाट रहा था और शीला उसका लंड चूस रही थी.. शीला का चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था.. थोड़ा सा चूसने के बाद शीला से ओर रहा नहीं गया.. उसने अपने चूत के होंठ फैलाए और बूढ़े के लंड के ऊपर बैठ गई..
ऊपर नीचे करते हुए उसने गति बढ़ाई.. बूढ़े के मुंह पर रूखी की चूत थी और लंड पर शीला चढ़ी हुई थी.. थोड़ी देर कूदने पर ही शीला की चूत ने पानी छोड़ दिया.. भोसड़ा एकदम सिकुड़ गया.. और उसके अंदर फंसे लंड का गला घोंट दिया.. बूढ़ा ससुर भी आनंद से कराहने लगा..
शीला: "बहोत मज़ा आ रहा है आह्ह आह्ह आह्ह" अपने स्तन दबाते हुए वह अब अभी आखिरी धक्के लगा रही थी
रूखी के चुत ने भी रस छोड़ दिया.. अपनी जीभ और लंड से उस बूढ़े ससुर ने दो दो औरतों को एक साथ तृप्त कर दिया था.. सिसकियाँ भरते हुए रूखी अपनी चुत के होंठ ससुर के मुंह पर रगड़े जा रही थी.. स्खलित होते हुए वह कराह रही थी.. उसके ससुर ने रूखी के स्तनों को इतनी जोर से दबाया की दूध की पिचकारी से उनका पूरा सर गीला हो गया.. शीला ठंडी होकर नीचे उतर गई.. बूढ़े ने अब रूखी को लेटाया और उसपर सवार होकर धक्के लगाने लगा.. थोड़े ही धक्कों के बाद बूढ़ा आउट हो गया.. पर आउट होने से पहले उसने रूखी की चुत से एक बार ओर पानी निकाल दिया.. ध्वस्त होकर वो रूखी के बड़े बड़े स्तनों के बीच गिर गया.. और वहीं पड़ा रहा
थोड़ी देर वैसे ही खटिया में पड़े रहने के बाद सबसे पहले शीला खड़ी हुई.. बूढ़े ससुर के लंड पर आभार-सूचक किस करते हुए उसके लाल टोपे पर अपनी जीभ फेर दी.. सुपाड़े की नोक पर लगी वीर्य की बूंद को भी चख लिया.. लंड ने एक बार ठुमक कर शीला को सलामी दी..
अपनी बहु के स्तनों से खेलते हुए बूढ़े ने कहा "मज़ा आया तुम दोनों को?"
रूखी: "मुझे तो बहोत मज़ा आया.. आप शीला भाभी से पूछिए.. " रूखी उठकर ब्लाउस पहनने लगी.. उस दौरान शीला अपने कपड़े पहन चूकी थी..
रूखी: "आप साड़ी में कितनी खूबसूरत लगती हो भाभी!!! कितना मस्त शरीर है आपका.. एकदम भरा हुआ.. ठीक कहा न मैंने बाबूजी" आखिरी हुक को बड़ी ही मुश्किल से बंद करते हुए रूखी ने कहा.. शीला रूखी के बड़े स्तनों को बस देखती ही रही.. उसकी चूत में नए सिरे से चुनचुनी होने लगी..
शीला: "रुखी, मुझसे तो कहीं ज्यादा तुम सुंदर हो.. तुझे पता नहीं है.. अगर फेशनेबल कपड़े पहनकर बाहर निकले तो लोग मूठ मार मारकर मार जाए.. अब मुझे चलना चाहिए.. काफी देर हो गई.. चलिए बाबूजी, मैं चलती हूँ.. फिर कभी आऊँगी.. मुझे भी अपनी बहु ही समझिए आप.. सिर्फ रूखी बहु का ही नहीं.. अब से आपको शीला बहु का भी ध्यान रखना होगा"
ससुर: "हाँ हाँ बहु रानी.. जब मन करें तब चली आना.. मैं तैयार हो आपको खुश करने के लिए"
शीला: "रूखी, तू मेरे घर पर आकर मुझे मिल.. मेरे पति कुछ दिनों में वापिस लौट आएंगे.. उससे पहले मिलने आ जाना"
रूखी: "हाँ भाभी.. जरूर आऊँगी"
अपना भोसड़ा ठंडा कर शीला वहाँ से घर की ओर निकल गई.. उसके चेहरे पर संतोष और तृप्तता के भाव थे.. घर पहुँचने की उसे कोई जल्दी नहीं थी.. इसलिए रिक्शा लेने के बजाए वह चलने लगी..
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अपने कूल्हें मटकाते हुई शीला रास्ते पर चलती जा रही थी.. बड़े बड़े स्तन, गदराया बदन, कमर से नीचे पहनी हुई साड़ी और मटकों जैसे चूतड़.. ऐसी कोई स्त्री चलते हुए जा रही हो तो स्वाभाविक तौर पर सब की नजर उस पर चिपक जाएगी.. क्या जवान और क्या बूढ़े.. जो भी देखता था.. देखकर ही अपने लंड एडजस्ट करने लगता था.. कुछ साहसी तो मन ही मन मूठ मारने लगे थे.. जिन बूढ़ों से कुछ हो नहीं पा रहा था वह चक्षु-चोदन का आनंद ले रहे थे..
घर पहुंचकर शीला बिस्तर पर पड़ी.. सोच रही थी "मदन के आने के बाद ये सब बंद कर देना पड़ेगा.. वैसे मदन के लौटने के बाद इन सब के जरूरत भी नहीं रहेगी.. पर एक बार बाहर का खाने का चस्का लग जाएँ फिर याद तो आएगी ही.. जो होगा देख लेंगे.. जब मौका मिले तब चौका लगा देना ही गनीमत है.. बाकी फिर मदन तो है ही.. !! और इस तरह रूखी के घर जाकर अपना कार्यकरम निपटा लूँ तो मदन को भी पता नहीं चलेगा.. हाँ रूखी की सास का प्रॉब्लेम है.. पर वो बुढ़िया और कितना जिएगी.. ?? जल्दी मर जाएँ तो अच्छा.. झंझट खतम हो.. "
तभी डोरबेल बजने की आवाज आई.. आईने में खुद को ठीक करके शीला बाहर आई और दरवाजा खोला
संजय आया हुआ था..
संजय: "चलिए मम्मी जी, मैं आपको लेने आया हूँ"
शीला आश्चर्य से "लेने आए हो? पर कहाँ जाना है?"
संजय: "आप घर पर अकेली हो.. वैशाली भी चार दिनों बाद लौटेगी.. यहाँ बैठे रहने से तो अच्छा है की आप मेरे साथ चलिए.. मुझे भी कंपनी मिलेगी"
शीला: "लेकिन जाना कहाँ है??" शीला असमंजस में थी
संजय: "आप तीन दिन के कपड़े पैक कर लो.. कहाँ जाना है ये मैं बाद में बताता हूँ.. आप के लिए सरप्राइज़ है.. अभी नहीं बताऊँगा"
शीला: "नहीं.. ऐसे मैं घर छोड़कर नहीं चल सकती.. "
संजय: "मम्मी जी, आपको वैशाली की कसम.. किस बात का डर है आपको?"
शीला: "डर नहीं है बेटा.. पर सोचना तो पड़ता है ना.. !!"
संजय: "अपने दामाद के साथ चलने में क्या सोचना?? चलिए एक घंटे में निकलना है.. आप कपड़े पेक कीजिए.. अभी गाड़ी आती ही होगी"
शीला: "अरे पर मुझे ये तो बताओ की जाना कहाँ है?"
संजय: "आपको मुझ पर भरोसा नहीं है? "
शीला मन में सोचने लगी.. "भरोसा तो पूरा है तुझ पर मादरचोद.. की तू एक नंबर का कमीना है.. इसीलिए तो इतना सोचना पड़ रहा है" शीला को पता नहीं चल रहा था की वो क्या करें