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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

vakharia

Supreme
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खाना खतम कर शीला बाहर बरामदे में बैठ गई.. संजय भी आकर उसके बगल में बैठ गया.. तभी वहाँ पीयूष आया.. रात के दस बज रहे थे.. पीयूष के पीछे पीछे कविता, मौसम और फाल्गुनी भी आए.. पूरा घर भर गया.. इन सब के आने से शीला को बहोत अच्छा लगा.. इन सब की मौजूदगी में संजय कुछ भी उल्टा सीधा नहीं कर पाएगा.. दूसरी तरफ संजय अफसोस कर रहा था.. हाथ में आया हुआ गोल्डन चांस चला गया..

पीयूष को देखते ही वैशाली के चेहरे पर चमक आ गई.. पीयूष शीला भाभी की बगल में बैठ गया और वैशाली उसके बाजू में.. कविता को ये बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा.. पर वो कर भी क्या सकती थी !! पीयूष की दोनों तरफ उसकी दोनों पसंदीदा प्रेमिकाएं बैठी थी.. दोनों पर वो हाथ साफ कर चुका था.. दोनों के स्तनों की साइज़ जरूर अलग अलग थी पर उत्तेजना एक सी ही थी.. उस दिन मूवी देखकर लौटने के बाद जब वो चाबी देने आया तब शीला ने जिस हवस का प्रदर्शन किया था.. और वहाँ खंडहर में रेत के ढेर पर वैशाली जिस तरह उस पर सवार हो गई थी.. माँ और बेटी दोनों की वासना एक बराबर थी.. पीयूष के दोनों हाथों में लड्डू थे..

पीयूष को दोनों के बीच बैठ देखकर कविता जल कर खाक हो गई.. रेणुका से बात करने के बाद शीला भाभी की जो अच्छी छवि उसके मन में बनी थी वह एक ही पल में ध्वस्त हो गई.. अपने पति के पास बैठकर हंस हँसकर बातें कर रही शीला को देखकर बहोत गुस्सा आया उसे.. बातों बातों म एन वैशाली ने हँसकर पीयूष के हाथ पर ताली दी.. कविता के मन में जल रही आग में जैसे किसी ने पेट्रोल डाल दिया.. कविता की शक्ल रोने जैसी हो गई.. पर वैशाली या शीला.. दोनों में से किसी ने भी कविता की तरफ ध्यान नहीं दिया.. सब अपनी ही मस्ती में मस्त थे.. संजय कोने में बैठकर सिगरेट फूँकते हुए मौसम के नाइट ड्रेस से दिख रही ब्रा की पट्टी को देख रहा था..

कविता को इतना गुस्सा आया की उसका बस चलता तो अभी पीयूष को खींचकर घर ले जाती.. पर वो क्या कर सकती थी!!! और हकीकत तो यह थी की शीला उसके बगल में आकर नहीं बैठी थी.. खुद पीयूष ही जाकर उनके पास बैठ गया था.. जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरों को क्या दोष देना ? कुछ समय से बहोत बिगड़ गया है ये पीयूष.. वैशाली के आने के बाद कुछ ज्यादा ही नखरे बढ़ गए है इसके.. कविता का दिमाग घूम रहा था.. जब दिमाग में शक का कीड़ा एक बार घुस गया तो उसे बाहर निकालना बहोत कठिन हो जाता है.. कविता की मानसिक स्थिति बिल्कुल ठीक नहीं थी.. लेकिन तभी पीयूष ने कुछ ऐसा कहा जिससे कविता का रोम रोम पुलकित हो उठा.. उदास कविता के मन में जो मुकेश के दर्द भरे नगमे चल रहे थे.. उसके स्थान पर मनहर उधास की रोमेन्टीक ग़ज़ल बजने लगी..

पीयूष ने कहा की राजेश सर की वाइफ का बर्थडे आ रहा था और वोह कंपनी के पूरे स्टाफ को टूर पर ले जाना चाहते थे..

पीयूष: "मैंने उनसे गुरुवार और शुक्रवार की छुट्टी मांगी तो उन्होंने इस टूर के बारे में बताया और कहा की मैं मौसम और फाल्गुनी को भी साथ ले लूँ.. मैंने हाँ बोल दिया है.. तो हम कल सुबह सात बजे ऑफिस के बाहर मिलने वाले है.. तू साथ चलेगी ना वैशाली?"

पीयूष को वैशाली के प्रति आकर्षित होता देख उसे पीटने का मन कर रहा था कविता का.. पर मन ही मन वो रेणुका को थेंक्स बोल रही थी.. उनके कारण ही यह मुमकिन हो पाया.. और अब पिंटू भी शीला भाभी के चंगुल में नहीं फँसेगा.. सब सही हो रहा था.. रेणुका वाकई बड़े काम की चीज है.. चुतकी बजाते मेरा प्रॉब्लेम सॉल्व कर दिया।।

कविता: "लेकिन पीयूष, बाहर के लोगों के लिए जगह होगी भी?" वैशाली को नीचा दिखाने का मौका मिल गया कविता को.. लेकिन उसके यह बोलने से वैशाली को कुछ फरक नहीं पड़ा

पीयूष ने बड़े उत्साह के साथ कहा.. "अरे, राजेश सर ने बड़ी वाली बस मँगवाई है.. कम से कम १० सीट खाली रहेगी.. अगर शीला भाभी चलना चाहें तो वो भी आ सकती है.. " पीयूष को दोनों हाथों में लड्डू चाहिए थे.. पर कविता भी कम नहीं थी

कविता: "फिर तो हम संजय कुमार को भी साथ ले लेते है.. वह भी हमारे मेहमान है.. हम सब जाएँ और वो यहाँ अकेले रहे तो अच्छा नहीं लगेगा.. " कविता की इस गुगली के आगे सारे बेटसमेन अपनी विकेट बचाने में लग गए। कविता जानती थी की संजय की मौजूदगी में वैशाली या शीला दोनों अपनी हद में रहेंगे.. और उसके पति को उन दोनों से दूर रख पाएगी.. और अगर नजर बचाकर शीला भाभी थोड़ा बहोत कुछ कर भी लेती है तो कोई हर्ज नहीं है.. मैं भी उस दौरान पिंटू के साथ मजे कर लूँगी.. वैसे भी शीला भाभी अब ५-६ दिन की मेहमान थी.. मदन भाई के लौटने के बाद यह खिलाड़ी रिटायर्ड हर्ट होकर पेवेलियन लौट जाने वाला था.. वाह.. खुद की पीठ थपथपाने का मन हो रहा था कविता को

संजय को शामिल करने की बात सुनते ही पीयूष बॉखला गया.. सिर्फ उस आदमी की मौजूदगी से पूरी टूर का सत्यानाश हो जाएगा.. वैशाली और शीला के संग गुलछरों का आनंद लेने का सपना टूटता हुआ दिखा.. वैसे रेणुका भी साथ चलने वाली थी पर राजेश सर के साथ रहते हुए उनके करीब जाने की सोच भी नहीं सकता था पीयूष.. अगले दिन रेणुका की हवस देखकर उतना तो तय था की टूर के दौरान एकाध किस करने या बबले दबाने का मौका तो मिल ही जाएगा उसके साथ..

इन सारे प्रपंचों से अनजान मौसम और फाल्गुनी अंताक्षरी खेल रहे थे..

मौसम अपनी सुरीली आवाज में गा रही थी "ये दिल तुम बिन.. कहीं.. लगता नहीं, हम क्या करें.. !!" वह इतना सुरीला गा रही थी की बाकी बैठे सब चुप होकर उसके गीत को सुनने लगे.. शीला को मदन की याद आ गई.. सब से नजर बचाते हुए उसने अपने गाल से आँसू पोंछ लिए..

सुरीले मुखड़े के बाद मौसम अब अंतरा गा रही थी

"बुझा दो, आग दिल की या उसे खुल कर हवा दे दो.. जो उसका मोल दे पाए, उसे अपनी वफ़ा दे दो..
तुम्हारे दिल में क्या है बस, हमे इतना पता दे दो.. के अब तन्हा सफर कटता नहीं, हम क्या करें.. "

गीत खतम होते ही सब ने तालियों से उसे नवाजा.. "वाह वाह मौसम.. बहोत बढ़िया.. कितना अच्छा गाती हो तुम" अपनी छोटी बहन की तारीफ सुनकर कविता गदगद हो गई.. तभी संजय उठकर मौसम के पास आया और वॉलेट से ५०० का नोट निकालकर मौसम को देते हुए बोला

संजय: "वाह मौसम वाह.. तेरे कंठ में तो साक्षात सरस्वती बिराजमान है.. बुरा मत मानना.. ये कोई बखशीश नहीं है.. बस देवी के चरण में भक्त की भेंट अर्पण कर रहा हूँ.. ऐसी सुंदर गायकी की कदर तो होनी ही चाहिए"

मौसम ने शरमाते हुए कहा "अगर पैसे न लूँ तो आपका अपमान होगा.. लेकिन इस कुदरत की देन का व्यापार करना मुझे ठीक नहीं लगता.. बाकी दीदी जैसा कहेंगी मैं वैसा ही करूंगी"

कविता ने सोचकर कहा "देख मौसम, जीवन की पहली कमाई हम परिवार पर खर्च करते है.. हम भी एक परिवार जैसे ही है.. फाल्गुनी, तू भागकर नुक्कड़ की दुकान पर जा और सबके लिए आइसक्रीम लेकर आ.. इन्ही पैसों से हम सब पार्टी करेंगे.. ठीक है ना !!"

मौसम और फाल्गुनी दोनों आइसक्रीम लेने गए.. कविता और वैशाली बातें करने लगे.. बरामदे की कुर्सियों पर सब झुंड बनाकर बैठे थे.. सब का ध्यान बातों में था तब पीयूष ने अंधेरे का फायदा उठाते हुए शीला का हाथ पकड़ लिया.. शीला मदन को याद करते हुए बेचैन हुए जा रही थी और उसे वैसे भी किसी के सहारे की जरूरत थी.. शीला और पीयूष पीछे की कुर्सी पर बैठे थे और बाकी सबकी पीठ उनके तरफ थी इसलिए किसी ने देखा नहीं था.. शीला के हाथों का नरम गरम स्पर्श मिलते ही पीयूष के मन का मोर नाचने लगा.. शीला को भी मज़ा आ रहा था..

अचानक पीयूष का हाथ छुड़ाकर शीला खड़ी होकर बोली "ये दोनों आइसक्रीम लेकर आती ही होगी.. मैं बाउल लेकर आती हूँ" पीयूष निराश हो गया.. तभी अंदर से शीला की आवाज सुनाई दी.. "अरे पीयूष.. जरा अंदर आना.. ऊपर से बॉक्स उतारना है.. मेरा हाथ नहीं पहुँच रहा"

"आया भाभी.. " कहते हुए पीयूष दौड़कर किचन में पहुँच गया.. बॉक्स तो पहले से ही नीचे उतार चूकी थी शीला.. शीला ने पीयूष को अपनी बाहों में भर लिया.. और आठ-दस किस कर दी उसके चेहरे पर.. पीयूष भी अपने पसंदीदा स्तनों को दबाने लगा.. मात्र ५ सेकंड में ये सारा खेल निपट गया.. पीयूष तुरंत भागकर बाहर आ गया ताकि किसी को शक न हो.. शीला भी कांच के बाउल लेकर बाहर आई तब तक मौसम और फाल्गुनी आइसक्रीम लेकर आ चुके थे

फेमिली पेक को खोलकर पीयूष ने छोटी छोटी स्लाइस काटकर सब के लिए बाउल तैयार कीये.. सब बातें करते हुए आइसक्रीम का लुत्फ उठाने लगे.. बातों बातों में पीयूष ने शीला से पूछा

पीयूष: "आप भी साथ चलोगे न भाभी?" कविता भी कहाँ पीछे रहने वाली थी.. !! उसने संजय को कहा

कविता: "जिजू, आपको तो चलना ही होगा.. आप के बगैर मज़ा नहीं आएगा"

पीयूष को इतना गुस्सा आया कविता पर.. !! ये कविता मेरे सारे प्लान की माँ चोद रही है.. साला ये संजय कौनसा अपना सगा है जो तुझे उसके बगैर मज़ा नहीं आएगा !!!


लेकिन कविता ओर कोई दांव खेल पाती उससे पहले ही शीला ने आने से मना कर दिया और संजय ने भी कह दिया की उसे ऑफिस का काम कभी भी आ सकता था इसलिए वह जुड़ नहीं पाएगा.. वैशाली और पीयूष के चेहरे चाँद की तरह खिल उठे.. कविता भी यह सोचकर खुश हो रही थी की आखिर पीयूष शीला से दूर रहेगा और टूर पर साथ होगा तो कभी न कभी कोई मौका मिल ही जाएगा उसे.. सुबह जल्दी जाना था इसलिए सब अपने घर चले गए

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शीला के घर से लौटने के बाद कविता देर तक पॅकिंग करती रही.. और फिर पीयूष की बगल में लेट गई.. पीयूष अभी सोया नहीं था.. अपने मोबाइल पर पॉर्न क्लिप देखते हुए.. चादर के नीचे मूठ लगा रहा था.. कविता ने अंगड़ाई लेकर अपने स्तन पीयूष की छाती पर लाद दिए.. "तेरे सामने मैं हूँ फिर तुझे हिलाने की क्या जरूरत है? यहाँ मर्सिडीज खड़ी है और तू साइकिल क्यों चला रहा है?"

पीयूष: "तू भले ही अपने आप को मर्सिडीज समझती रहे.. पर शीला भाभी के आगे तेरा कोई मोल नहीं है" कविता ने जिस तरह प्यार से संजय को न्योता दिया था उसका गुस्सा अब भी पीयूष के सर पर सवार था

खुद को महत्व न देते हुए पीयूष ने शीला की जिस तरह तारीफ की.. उससे सुलग गई कविता की.. बेडरूम में पति किसी पराई औरत के गुणगान करे ये कोई पत्नी सहन नहीं करती.. एक सेकंड में कविता के चेहरे का रंग बदल गया.. घूमने जाना हो तब पत्नी कितनी खुश होती है!! मन में ढेर सारे प्लान बन गए होते है.. यहाँ जाएंगे.. वहाँ जाएंगे.. शॉपिंग करेंगे.. फोटोस लेंगे.. अगले तीन चार दिन शायद मौका न मिले इसलिए वो आज पीयूष पर सवारी करके सारी कसर पूरी कर देना चाहती थी.. लेकिन पीयूष के मुंह से यह सुनते ही कविता बेहद गुस्सा हो गई।

कविता: "पीयूष, तू पहले ये तय कर की तुझे शीला भाभी ज्यादा पसंद है या वैशाली? बिना पेंदे के लोटे की तरह कभी माँ को दाने डालता है तो कभी बेटी को.. कितना खराब लगता है जब सब के सामने तू उन माँ-बेटी पर लट्टूगिरी करता है.. एक नंबर का चोदू लगता है"

पीयूष: "हाँ.. तुझे तो अब में चोदू ही लगूँगा ना.. जब से संजय को देखा है, तेरी भी नियत बदल गई है.. पर संजय ने वैशाली की क्या हालत कर दी है ये तुझे पता नहीं है.. एक नंबर का नालायक आदमी है संजय.. सिर्फ दिखने में हेंडसम है.. बाकी उसके लक्षण तो बंदरों जैसे है.. कभी इस डाल पर तो कभी उस डाल पर.. "

कविता: "सभी मर्द यही करते है.. तू भी कौनसा दूध का धुला है?? पहले अपने गिरहबान में झाँककर देख.. फिर दूसरों की बात करना..!!"

संजय: "अरे वाह.. बड़ी वकालत हो रही है संजय की.. कहीं वो भड़वा तुझे पटाने की फिराक में तो नहीं?? मैं पहले ही बता दे रहा हूँ तुझे.. उस संजय से तेरा मेलझोल मुझे जरा भी पसंद नहीं है"

कविता: "आखिर बाहर आ ही गया तेरे अंदर का दकियानूसी मर्द.. पुराने खयालों वाले.. तू शीलाभाभी के साथ जो कुछ भी करता है.. उतना तो मैं संजय के साथ कर ही सकती हूँ"

पीयूष चोंककर : "मैंने ऐसा क्या गलत किया है शीला भाभी के साथ?"

कविता: "पर मैंने कब कहा की तूने कुछ गलत किया भाभी के साथ? मैंने तो बस एक बात कही "

पीयूष डर गया.. कहीं भाभी के साथ छुपा-छुपी खेलने में ऐसा न हो की कविता हाथ से चली जाए.. भाभी तो थोड़े दिनों में अपने पति की बाहों में छुप जाएगी.. मेरी तरफ देखेगी भी नहीं.. फिर कविता ने भी हाथ लगाने नहीं दिया तो ये लंड सिर्फ जड़ीबूटी कूटने के काम आएगा.. लेकिन अभी अगर उसने बात छोड़ दी तो उससे यह साबित हो जाता की उसके और शीला भाभी के बीच कुछ चल रहा है..

गुस्से में पीयूष मूठ लगाता रहा.. कविता भी रूठकर उलटी दिशा में करवट लेकर सो गई.. चार दिनों की कसर पूरी करने के खयाल पर पानी फिर गया.. दोनों अब एक दूसरे से कतराने लगे और बात नहीं कर रहे थे

रोज सुबह एक आदर्श पत्नी के तरह "गुड मॉर्निंग" कहकर वो पीयूष को जगाती.. पर आज तो उसने पीयूष की तरफ देखा तक नही.. साढ़े पाँच बजे उठकर वो अपने सास-ससुर के लिए चाय और खाना बनाने किचन में चली गई.. साढ़े छ बज गए लेकिन पीयूष अब भी सो रहा था। अनुमौसी को गुस्सा आया.. वह बेडरूम में जाकर पीयूष को झाड़ने लगे "जब कहीं बाहर जाना हो तो समय पर उठना सीख.. जल्दी उठ.. सात बजे तुम्हें पहुंचना है और अभी तक तू बिस्तर पर ही पड़ा है? बहु बेचारी कब से जागकर घर का काम निपटा रही है.. और तू यहाँ कुम्भकरण की तरह खर्राटे ले रहा है? "

मुंह बिगाड़कर पीयूष खड़ा हुआ और बाथरूम में घुस गया.. फटाफट तैयार होकर वो दो मिनट में बाहर आया.. उसे इतनी जल्दी बाहर आया देखकर अनुमौसी ने कहा "इतनी जल्दी तैयार भी हो गया? नहाया भी की नहीं? या सिर्फ मुंह धो लिया? ब्रश किया की नहीं ठीक से? हे भगवान.. ये आजकल के नौजवान.. कब सुधरेंगे??"

सबकुछ सुन रही कविता कुछ नहीं बोली.. वो मौसम और फाल्गुनी को कपड़े बेग में भरने में मदद कर रही थी.. उसने पीयूष की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया.. वैशाली कब से तैयार होकर अपना बेग लिए उनके ड्रॉइंगरूम में बैठी थी

आखिर वह पाँच लोग दो ऑटो में बैठकर ऑफिस पहुंचे.. साढ़े सात बज गए पहुंचते पहुंचते.. आधा घंटा देर हो गई थी.. पूरा स्टाफ बस में बैठ चुका था.. बस उन्ही पाँच का इंतज़ार था.. माउंट आबू जाने के लिए लक्जरी बस रावण हुई.. बस में अब भी ८ सीट खाली थी.. जरा भी भीड़भाड़ नहीं थी.. सब बड़े उत्साह में थे और मज़ाक के मूड में भी..

पिंटू को देखते ही कविता की सांसें थम गई.. पिंटू अपने एक सहकर्मी के साथ बैठा था.. और उसके बाएं तरफ की सीट पर कविता और पीयूष बैठ गए.. राजेश बस के आगे के हिस्से में खड़ा हुआ था.. रेणुका पिंक साड़ी में जबरदस्त लग रही थी.. बार बार वो पीयूष की तरफ देखकर स्माइल करती रही.. मौसम और फाल्गुनी तो बिल्कुल आखिर वाली सीटों पर जा बैठी.. दोनों अपनी ही मस्ती में मस्त थी.. अंदर अंदर बातें करते हुए वह दोनों बार बार हंस पड़ती..

उनकी हंसी की आवाज सुनकर राजेश का ध्यान मौसम की ओर आकर्षित हुआ.. तीरछी नज़रों से वह मौसम के कच्चे सौन्दर्य का लुत्फ उठाने लगा.. मौसम जब हँसती तब उसके गाल पर हसीन डिम्पल पड़ते.. देखकर ही राजेश फ़ीदा हो गया था.. बस जैसे जैसे आगे बढ़ती रही वैसे ही सारे प्रवासी रंग में आते जा रहे थे.. सब हंसी खुशी मज़ाक मस्ती कर रहे थे.. पीयूष और कविता को छोड़कर..


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❣️and let ❣️
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खाना खतम कर शीला बाहर बरामदे में बैठ गई.. संजय भी आकर उसके बगल में बैठ गया.. तभी वहाँ पीयूष आया.. रात के दस बज रहे थे.. पीयूष के पीछे पीछे कविता, मौसम और फाल्गुनी भी आए.. पूरा घर भर गया.. इन सब के आने से शीला को बहोत अच्छा लगा.. इन सब की मौजूदगी में संजय कुछ भी उल्टा सीधा नहीं कर पाएगा.. दूसरी तरफ संजय अफसोस कर रहा था.. हाथ में आया हुआ गोल्डन चांस चला गया..

पीयूष को देखते ही वैशाली के चेहरे पर चमक आ गई.. पीयूष शीला भाभी की बगल में बैठ गया और वैशाली उसके बाजू में.. कविता को ये बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा.. पर वो कर भी क्या सकती थी !! पीयूष की दोनों तरफ उसकी दोनों पसंदीदा प्रेमिकाएं बैठी थी.. दोनों पर वो हाथ साफ कर चुका था.. दोनों के स्तनों की साइज़ जरूर अलग अलग थी पर उत्तेजना एक सी ही थी.. उस दिन मूवी देखकर लौटने के बाद जब वो चाबी देने आया तब शीला ने जिस हवस का प्रदर्शन किया था.. और वहाँ खंडहर में रेत के ढेर पर वैशाली जिस तरह उस पर सवार हो गई थी.. माँ और बेटी दोनों की वासना एक बराबर थी.. पीयूष के दोनों हाथों में लड्डू थे..

पीयूष को दोनों के बीच बैठ देखकर कविता जल कर खाक हो गई.. रेणुका से बात करने के बाद शीला भाभी की जो अच्छी छवि उसके मन में बनी थी वह एक ही पल में ध्वस्त हो गई.. अपने पति के पास बैठकर हंस हँसकर बातें कर रही शीला को देखकर बहोत गुस्सा आया उसे.. बातों बातों म एन वैशाली ने हँसकर पीयूष के हाथ पर ताली दी.. कविता के मन में जल रही आग में जैसे किसी ने पेट्रोल डाल दिया.. कविता की शक्ल रोने जैसी हो गई.. पर वैशाली या शीला.. दोनों में से किसी ने भी कविता की तरफ ध्यान नहीं दिया.. सब अपनी ही मस्ती में मस्त थे.. संजय कोने में बैठकर सिगरेट फूँकते हुए मौसम के नाइट ड्रेस से दिख रही ब्रा की पट्टी को देख रहा था..

कविता को इतना गुस्सा आया की उसका बस चलता तो अभी पीयूष को खींचकर घर ले जाती.. पर वो क्या कर सकती थी!!! और हकीकत तो यह थी की शीला उसके बगल में आकर नहीं बैठी थी.. खुद पीयूष ही जाकर उनके पास बैठ गया था.. जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरों को क्या दोष देना ? कुछ समय से बहोत बिगड़ गया है ये पीयूष.. वैशाली के आने के बाद कुछ ज्यादा ही नखरे बढ़ गए है इसके.. कविता का दिमाग घूम रहा था.. जब दिमाग में शक का कीड़ा एक बार घुस गया तो उसे बाहर निकालना बहोत कठिन हो जाता है.. कविता की मानसिक स्थिति बिल्कुल ठीक नहीं थी.. लेकिन तभी पीयूष ने कुछ ऐसा कहा जिससे कविता का रोम रोम पुलकित हो उठा.. उदास कविता के मन में जो मुकेश के दर्द भरे नगमे चल रहे थे.. उसके स्थान पर मनहर उधास की रोमेन्टीक ग़ज़ल बजने लगी..

पीयूष ने कहा की राजेश सर की वाइफ का बर्थडे आ रहा था और वोह कंपनी के पूरे स्टाफ को टूर पर ले जाना चाहते थे..

पीयूष: "मैंने उनसे गुरुवार और शुक्रवार की छुट्टी मांगी तो उन्होंने इस टूर के बारे में बताया और कहा की मैं मौसम और फाल्गुनी को भी साथ ले लूँ.. मैंने हाँ बोल दिया है.. तो हम कल सुबह सात बजे ऑफिस के बाहर मिलने वाले है.. तू साथ चलेगी ना वैशाली?"

पीयूष को वैशाली के प्रति आकर्षित होता देख उसे पीटने का मन कर रहा था कविता का.. पर मन ही मन वो रेणुका को थेंक्स बोल रही थी.. उनके कारण ही यह मुमकिन हो पाया.. और अब पिंटू भी शीला भाभी के चंगुल में नहीं फँसेगा.. सब सही हो रहा था.. रेणुका वाकई बड़े काम की चीज है.. चुतकी बजाते मेरा प्रॉब्लेम सॉल्व कर दिया।।

कविता: "लेकिन पीयूष, बाहर के लोगों के लिए जगह होगी भी?" वैशाली को नीचा दिखाने का मौका मिल गया कविता को.. लेकिन उसके यह बोलने से वैशाली को कुछ फरक नहीं पड़ा

पीयूष ने बड़े उत्साह के साथ कहा.. "अरे, राजेश सर ने बड़ी वाली बस मँगवाई है.. कम से कम १० सीट खाली रहेगी.. अगर शीला भाभी चलना चाहें तो वो भी आ सकती है.. " पीयूष को दोनों हाथों में लड्डू चाहिए थे.. पर कविता भी कम नहीं थी

कविता: "फिर तो हम संजय कुमार को भी साथ ले लेते है.. वह भी हमारे मेहमान है.. हम सब जाएँ और वो यहाँ अकेले रहे तो अच्छा नहीं लगेगा.. " कविता की इस गुगली के आगे सारे बेटसमेन अपनी विकेट बचाने में लग गए। कविता जानती थी की संजय की मौजूदगी में वैशाली या शीला दोनों अपनी हद में रहेंगे.. और उसके पति को उन दोनों से दूर रख पाएगी.. और अगर नजर बचाकर शीला भाभी थोड़ा बहोत कुछ कर भी लेती है तो कोई हर्ज नहीं है.. मैं भी उस दौरान पिंटू के साथ मजे कर लूँगी.. वैसे भी शीला भाभी अब ५-६ दिन की मेहमान थी.. मदन भाई के लौटने के बाद यह खिलाड़ी रिटायर्ड हर्ट होकर पेवेलियन लौट जाने वाला था.. वाह.. खुद की पीठ थपथपाने का मन हो रहा था कविता को

संजय को शामिल करने की बात सुनते ही पीयूष बॉखला गया.. सिर्फ उस आदमी की मौजूदगी से पूरी टूर का सत्यानाश हो जाएगा.. वैशाली और शीला के संग गुलछरों का आनंद लेने का सपना टूटता हुआ दिखा.. वैसे रेणुका भी साथ चलने वाली थी पर राजेश सर के साथ रहते हुए उनके करीब जाने की सोच भी नहीं सकता था पीयूष.. अगले दिन रेणुका की हवस देखकर उतना तो तय था की टूर के दौरान एकाध किस करने या बबले दबाने का मौका तो मिल ही जाएगा उसके साथ..

इन सारे प्रपंचों से अनजान मौसम और फाल्गुनी अंताक्षरी खेल रहे थे..

मौसम अपनी सुरीली आवाज में गा रही थी "ये दिल तुम बिन.. कहीं.. लगता नहीं, हम क्या करें.. !!" वह इतना सुरीला गा रही थी की बाकी बैठे सब चुप होकर उसके गीत को सुनने लगे.. शीला को मदन की याद आ गई.. सब से नजर बचाते हुए उसने अपने गाल से आँसू पोंछ लिए..

सुरीले मुखड़े के बाद मौसम अब अंतरा गा रही थी

"बुझा दो, आग दिल की या उसे खुल कर हवा दे दो.. जो उसका मोल दे पाए, उसे अपनी वफ़ा दे दो..
तुम्हारे दिल में क्या है बस, हमे इतना पता दे दो.. के अब तन्हा सफर कटता नहीं, हम क्या करें.. "

गीत खतम होते ही सब ने तालियों से उसे नवाजा.. "वाह वाह मौसम.. बहोत बढ़िया.. कितना अच्छा गाती हो तुम" अपनी छोटी बहन की तारीफ सुनकर कविता गदगद हो गई.. तभी संजय उठकर मौसम के पास आया और वॉलेट से ५०० का नोट निकालकर मौसम को देते हुए बोला

संजय: "वाह मौसम वाह.. तेरे कंठ में तो साक्षात सरस्वती बिराजमान है.. बुरा मत मानना.. ये कोई बखशीश नहीं है.. बस देवी के चरण में भक्त की भेंट अर्पण कर रहा हूँ.. ऐसी सुंदर गायकी की कदर तो होनी ही चाहिए"

मौसम ने शरमाते हुए कहा "अगर पैसे न लूँ तो आपका अपमान होगा.. लेकिन इस कुदरत की देन का व्यापार करना मुझे ठीक नहीं लगता.. बाकी दीदी जैसा कहेंगी मैं वैसा ही करूंगी"

कविता ने सोचकर कहा "देख मौसम, जीवन की पहली कमाई हम परिवार पर खर्च करते है.. हम भी एक परिवार जैसे ही है.. फाल्गुनी, तू भागकर नुक्कड़ की दुकान पर जा और सबके लिए आइसक्रीम लेकर आ.. इन्ही पैसों से हम सब पार्टी करेंगे.. ठीक है ना !!"

मौसम और फाल्गुनी दोनों आइसक्रीम लेने गए.. कविता और वैशाली बातें करने लगे.. बरामदे की कुर्सियों पर सब झुंड बनाकर बैठे थे.. सब का ध्यान बातों में था तब पीयूष ने अंधेरे का फायदा उठाते हुए शीला का हाथ पकड़ लिया.. शीला मदन को याद करते हुए बेचैन हुए जा रही थी और उसे वैसे भी किसी के सहारे की जरूरत थी.. शीला और पीयूष पीछे की कुर्सी पर बैठे थे और बाकी सबकी पीठ उनके तरफ थी इसलिए किसी ने देखा नहीं था.. शीला के हाथों का नरम गरम स्पर्श मिलते ही पीयूष के मन का मोर नाचने लगा.. शीला को भी मज़ा आ रहा था..

अचानक पीयूष का हाथ छुड़ाकर शीला खड़ी होकर बोली "ये दोनों आइसक्रीम लेकर आती ही होगी.. मैं बाउल लेकर आती हूँ" पीयूष निराश हो गया.. तभी अंदर से शीला की आवाज सुनाई दी.. "अरे पीयूष.. जरा अंदर आना.. ऊपर से बॉक्स उतारना है.. मेरा हाथ नहीं पहुँच रहा"

"आया भाभी.. " कहते हुए पीयूष दौड़कर किचन में पहुँच गया.. बॉक्स तो पहले से ही नीचे उतार चूकी थी शीला.. शीला ने पीयूष को अपनी बाहों में भर लिया.. और आठ-दस किस कर दी उसके चेहरे पर.. पीयूष भी अपने पसंदीदा स्तनों को दबाने लगा.. मात्र ५ सेकंड में ये सारा खेल निपट गया.. पीयूष तुरंत भागकर बाहर आ गया ताकि किसी को शक न हो.. शीला भी कांच के बाउल लेकर बाहर आई तब तक मौसम और फाल्गुनी आइसक्रीम लेकर आ चुके थे

फेमिली पेक को खोलकर पीयूष ने छोटी छोटी स्लाइस काटकर सब के लिए बाउल तैयार कीये.. सब बातें करते हुए आइसक्रीम का लुत्फ उठाने लगे.. बातों बातों में पीयूष ने शीला से पूछा

पीयूष: "आप भी साथ चलोगे न भाभी?" कविता भी कहाँ पीछे रहने वाली थी.. !! उसने संजय को कहा

कविता: "जिजू, आपको तो चलना ही होगा.. आप के बगैर मज़ा नहीं आएगा"

पीयूष को इतना गुस्सा आया कविता पर.. !! ये कविता मेरे सारे प्लान की माँ चोद रही है.. साला ये संजय कौनसा अपना सगा है जो तुझे उसके बगैर मज़ा नहीं आएगा !!!


लेकिन कविता ओर कोई दांव खेल पाती उससे पहले ही शीला ने आने से मना कर दिया और संजय ने भी कह दिया की उसे ऑफिस का काम कभी भी आ सकता था इसलिए वह जुड़ नहीं पाएगा.. वैशाली और पीयूष के चेहरे चाँद की तरह खिल उठे.. कविता भी यह सोचकर खुश हो रही थी की आखिर पीयूष शीला से दूर रहेगा और टूर पर साथ होगा तो कभी न कभी कोई मौका मिल ही जाएगा उसे.. सुबह जल्दी जाना था इसलिए सब अपने घर चले गए

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शीला के घर से लौटने के बाद कविता देर तक पॅकिंग करती रही.. और फिर पीयूष की बगल में लेट गई.. पीयूष अभी सोया नहीं था.. अपने मोबाइल पर पॉर्न क्लिप देखते हुए.. चादर के नीचे मूठ लगा रहा था.. कविता ने अंगड़ाई लेकर अपने स्तन पीयूष की छाती पर लाद दिए.. "तेरे सामने मैं हूँ फिर तुझे हिलाने की क्या जरूरत है? यहाँ मर्सिडीज खड़ी है और तू साइकिल क्यों चला रहा है?"

पीयूष: "तू भले ही अपने आप को मर्सिडीज समझती रहे.. पर शीला भाभी के आगे तेरा कोई मोल नहीं है" कविता ने जिस तरह प्यार से संजय को न्योता दिया था उसका गुस्सा अब भी पीयूष के सर पर सवार था

खुद को महत्व न देते हुए पीयूष ने शीला की जिस तरह तारीफ की.. उससे सुलग गई कविता की.. बेडरूम में पति किसी पराई औरत के गुणगान करे ये कोई पत्नी सहन नहीं करती.. एक सेकंड में कविता के चेहरे का रंग बदल गया.. घूमने जाना हो तब पत्नी कितनी खुश होती है!! मन में ढेर सारे प्लान बन गए होते है.. यहाँ जाएंगे.. वहाँ जाएंगे.. शॉपिंग करेंगे.. फोटोस लेंगे.. अगले तीन चार दिन शायद मौका न मिले इसलिए वो आज पीयूष पर सवारी करके सारी कसर पूरी कर देना चाहती थी.. लेकिन पीयूष के मुंह से यह सुनते ही कविता बेहद गुस्सा हो गई।

कविता: "पीयूष, तू पहले ये तय कर की तुझे शीला भाभी ज्यादा पसंद है या वैशाली? बिना पेंदे के लोटे की तरह कभी माँ को दाने डालता है तो कभी बेटी को.. कितना खराब लगता है जब सब के सामने तू उन माँ-बेटी पर लट्टूगिरी करता है.. एक नंबर का चोदू लगता है"

पीयूष: "हाँ.. तुझे तो अब में चोदू ही लगूँगा ना.. जब से संजय को देखा है, तेरी भी नियत बदल गई है.. पर संजय ने वैशाली की क्या हालत कर दी है ये तुझे पता नहीं है.. एक नंबर का नालायक आदमी है संजय.. सिर्फ दिखने में हेंडसम है.. बाकी उसके लक्षण तो बंदरों जैसे है.. कभी इस डाल पर तो कभी उस डाल पर.. "

कविता: "सभी मर्द यही करते है.. तू भी कौनसा दूध का धुला है?? पहले अपने गिरहबान में झाँककर देख.. फिर दूसरों की बात करना..!!"

संजय: "अरे वाह.. बड़ी वकालत हो रही है संजय की.. कहीं वो भड़वा तुझे पटाने की फिराक में तो नहीं?? मैं पहले ही बता दे रहा हूँ तुझे.. उस संजय से तेरा मेलझोल मुझे जरा भी पसंद नहीं है"

कविता: "आखिर बाहर आ ही गया तेरे अंदर का दकियानूसी मर्द.. पुराने खयालों वाले.. तू शीलाभाभी के साथ जो कुछ भी करता है.. उतना तो मैं संजय के साथ कर ही सकती हूँ"

पीयूष चोंककर : "मैंने ऐसा क्या गलत किया है शीला भाभी के साथ?"

कविता: "पर मैंने कब कहा की तूने कुछ गलत किया भाभी के साथ? मैंने तो बस एक बात कही "

पीयूष डर गया.. कहीं भाभी के साथ छुपा-छुपी खेलने में ऐसा न हो की कविता हाथ से चली जाए.. भाभी तो थोड़े दिनों में अपने पति की बाहों में छुप जाएगी.. मेरी तरफ देखेगी भी नहीं.. फिर कविता ने भी हाथ लगाने नहीं दिया तो ये लंड सिर्फ जड़ीबूटी कूटने के काम आएगा.. लेकिन अभी अगर उसने बात छोड़ दी तो उससे यह साबित हो जाता की उसके और शीला भाभी के बीच कुछ चल रहा है..

गुस्से में पीयूष मूठ लगाता रहा.. कविता भी रूठकर उलटी दिशा में करवट लेकर सो गई.. चार दिनों की कसर पूरी करने के खयाल पर पानी फिर गया.. दोनों अब एक दूसरे से कतराने लगे और बात नहीं कर रहे थे

रोज सुबह एक आदर्श पत्नी के तरह "गुड मॉर्निंग" कहकर वो पीयूष को जगाती.. पर आज तो उसने पीयूष की तरफ देखा तक नही.. साढ़े पाँच बजे उठकर वो अपने सास-ससुर के लिए चाय और खाना बनाने किचन में चली गई.. साढ़े छ बज गए लेकिन पीयूष अब भी सो रहा था। अनुमौसी को गुस्सा आया.. वह बेडरूम में जाकर पीयूष को झाड़ने लगे "जब कहीं बाहर जाना हो तो समय पर उठना सीख.. जल्दी उठ.. सात बजे तुम्हें पहुंचना है और अभी तक तू बिस्तर पर ही पड़ा है? बहु बेचारी कब से जागकर घर का काम निपटा रही है.. और तू यहाँ कुम्भकरण की तरह खर्राटे ले रहा है? "

मुंह बिगाड़कर पीयूष खड़ा हुआ और बाथरूम में घुस गया.. फटाफट तैयार होकर वो दो मिनट में बाहर आया.. उसे इतनी जल्दी बाहर आया देखकर अनुमौसी ने कहा "इतनी जल्दी तैयार भी हो गया? नहाया भी की नहीं? या सिर्फ मुंह धो लिया? ब्रश किया की नहीं ठीक से? हे भगवान.. ये आजकल के नौजवान.. कब सुधरेंगे??"

सबकुछ सुन रही कविता कुछ नहीं बोली.. वो मौसम और फाल्गुनी को कपड़े बेग में भरने में मदद कर रही थी.. उसने पीयूष की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया.. वैशाली कब से तैयार होकर अपना बेग लिए उनके ड्रॉइंगरूम में बैठी थी

आखिर वह पाँच लोग दो ऑटो में बैठकर ऑफिस पहुंचे.. साढ़े सात बज गए पहुंचते पहुंचते.. आधा घंटा देर हो गई थी.. पूरा स्टाफ बस में बैठ चुका था.. बस उन्ही पाँच का इंतज़ार था.. माउंट आबू जाने के लिए लक्जरी बस रावण हुई.. बस में अब भी ८ सीट खाली थी.. जरा भी भीड़भाड़ नहीं थी.. सब बड़े उत्साह में थे और मज़ाक के मूड में भी..

पिंटू को देखते ही कविता की सांसें थम गई.. पिंटू अपने एक सहकर्मी के साथ बैठा था.. और उसके बाएं तरफ की सीट पर कविता और पीयूष बैठ गए.. राजेश बस के आगे के हिस्से में खड़ा हुआ था.. रेणुका पिंक साड़ी में जबरदस्त लग रही थी.. बार बार वो पीयूष की तरफ देखकर स्माइल करती रही.. मौसम और फाल्गुनी तो बिल्कुल आखिर वाली सीटों पर जा बैठी.. दोनों अपनी ही मस्ती में मस्त थी.. अंदर अंदर बातें करते हुए वह दोनों बार बार हंस पड़ती..

उनकी हंसी की आवाज सुनकर राजेश का ध्यान मौसम की ओर आकर्षित हुआ.. तीरछी नज़रों से वह मौसम के कच्चे सौन्दर्य का लुत्फ उठाने लगा.. मौसम जब हँसती तब उसके गाल पर हसीन डिम्पल पड़ते.. देखकर ही राजेश फ़ीदा हो गया था.. बस जैसे जैसे आगे बढ़ती रही वैसे ही सारे प्रवासी रंग में आते जा रहे थे.. सब हंसी खुशी मज़ाक मस्ती कर रहे थे.. पीयूष और कविता को छोड़कर..

Kya update likhi hai, jeewan ke sabhi rang bhar diye, kuchh shaq , kuchh romanch, kuchh ummid.Sab tharkion ka group ban gya lagta hai.Kuch sexy hoga Mount Abu mein aisa lagta hai.
Superb erotic gazab vartalap
👌👌👌👌👌👌
✅✅✅✅✅
💯💯💯💯
 

Pitaji

घर में मस्ती
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५५ साल की शीला, रात को १० बजे रसोईघर की जूठन फेंकने के लिए बाहर निकली... थोड़ी देर पहले ही बारिश रुकी थी। चारों तरफ पानी के पोखर भरे हुए थे... भीनी मिट्टी की मदमस्त खुशबू से ठंडा वातावरण बेहद कामुक बना देने वाला था। दूर कोने मे एक कुत्तिया... अपनी पुत्ती खुद ही चाट रही थी... शीला देखती रह गई..!! वह सोचने लगी की काश..!! हम औरतें भी यह काम अगर खुद कर पाती तो कितना अच्छा होता... मेरी तरह लंड के बिना तड़पती, न जाने कितनी औरतों को, इस मदमस्त बारिश के मौसम में, तड़पना न पड़ता...

वह घर पर लौटी... और दरवाजा बंद किया... और बिस्तर पर लेट गई।

उसका पति दो साल के लिए, कंपनी के काम से विदेश गया था... और तब से शीला की हालत खराब हो गई थी। वैसे तो पचपन साल की उम्र मे औरतों को चुदाई की इतनी भूख नही होती... पर एकलौती बेटी की शादी हो जाने के बाद... दोनों पति पत्नी अकेले से पड़ गए थे.. पैसा तो काफी था... और उसका पति मदन, ५८ साल की उम्र मे भी.. काफी शौकीन मिजाज था.. रोज रात को वह शीला को नंगी करके अलग अलग आसनों मे भरपूर चोदता.. शीला की उम्र ५५ साल की थी... मेनोपोज़ भी हो चुका था.. फिर भी साली... कूद कूद कर लंड लेती.. शीला का पति मदन, ऐसे अलग अलग प्रयोग करता की शीला पागल हो जाती... उनके घर पर ब्लू-फिल्म की डीवीडी का ढेर पड़ा था.. शीला ने वह सब देख रखी थी.. उसे अपनी चुत चटवाने की बेहद इच्छा हो रही थी... और मदन की नामौजूदगी ने उसकी हालत और खराब कर दी थी।

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ऊपर से उस कुत्तीया को अपनी पुत्ती चाटते देख... उसके पूरे बदन मे आग सी लग गई...

अपने नाइट ड्रेस के गाउन से... उसने अपने ४० इंच के साइज़ के दोनों बड़े बड़े गोरे बबले बाहर निकाले.. और अपनी हथेलियों से निप्पलों को मसलने लगी.. आहहहह..!! अभी मदन यहाँ होता तो... अभी मुझ पर टूट पड़ा होता... और अपने हाथ से मेरी चुत सहला रहा होता.. अभी तो उसे आने मे और चार महीने बाकी है.. पिछले २० महीनों से... शीला के भूखे भोसड़े को किसी पुरुष के स्पर्श की जरूरत थी.. पर हाय ये समाज और इज्जत के जूठे ढकोसले..!! जिनके डर के कारण वह अपनी प्यास बुझाने का कोई और जुगाड़ नही कर पा रही थी।

"ओह मदन... तू जल्दी आजा... अब बर्दाश्त नही होता मुझसे...!!" शीला के दिल से एक दबी हुई टीस निकली... और उसे मदन का मदमस्त लोडा याद आ गया.. आज कुछ करना पड़ेगा इस भोसड़े की आग का...

शीला उठकर खड़ी हुई और किचन मे गई... फ्रिज खोलकर उसने एक मोटा ताज़ा बैंगन निकाला.. और उसे ही मदन का लंड समझकर अपनी चुत पर घिसने लगी... बैंगन मदन के लंड से तो पतला था... पर मस्त लंबा था... शीला ने बैंगन को डंठल से पकड़ा और अपने होंठों पर रगड़ने लगी... आँखें बंद कर उसने मदन के सख्त लंड को याद किया और पूरा बैंगन मुंह मे डालकर चूसने लगी... जैसे अपने पति का लंड चूस रही हो... अपनी लार से पूरा बैंगन गीला कर दिया.. और अपने भोसड़े मे घुसा दिया... आहहहहहहह... तड़पती हुई चुत को थोड़ा अच्छा लगा...

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आज शीला.. वासना से पागल हो चली थी... वह पूरी नंगी होकर किचन के पीछे बने छोटे से बगीचे मे आ गई... रात के अंधेरे मे अपने बंगले के बगीचे मे अपनी नंगी चुत मे बैंगन घुसेड़कर, स्तनों को मरोड़ते मसलते हुए घूमने लगी.. छिटपुट बारिश शुरू हुई और शीला खुश हो गई.. खड़े खड़े उसने बैंगन से मूठ मारते हुए भीगने का आनंद लिया... मदन के लंड की गैरमौजूदगी में बैंगन से अपने भोंसड़े को ठंडा करने का प्रयत्न करती शीला की नंगी जवानी पर बारिश का पानी... उसके मदमस्त स्तनों से होते हुए... उसकी चुत पर टपक रहा था। विकराल आग को भी ठंडा करने का माद्दा रखने वाले बारिश के पानी ने, शीला की आग को बुझाने के बजाए और भड़का दिया। वास्तविक आग पानी से बुझ जाती है पर वासना की आग तो ओर प्रज्वलित हो जाती है। शीला बागीचे के गीले घास में लेटी हुई थी। बेकाबू हो चुकी हवस को मामूली बैंगन से बुझाने की निरर्थक कोशिश कर रही थी वह। उसे जरूरत थी.. एक मदमस्त मोटे लंबे लंड की... जो उसके फड़फड़ाते हुए भोसड़े को बेहद अंदर तक... बच्चेदानी के मुख तक धक्के लगाकर, गरम गरम वीर्य से सराबोर कर दे। पक-पक पुच-पुच की आवाज के साथ शीला बैंगन को अपनी चुत के अंदर बाहर कर रही थी। आखिर लंड का काम बैंगन ने कर दिया। शीला की वासना की आग बुझ गई.. तड़पती हुई चुत शांत हो गई... और वह झड़कर वही खुले बगीचे में नंगी सो गई... रात के तीन बजे के करीब उसकी आँख खुली और वह उठकर घर के अंदर आई। अपने भोसड़े से उसने पिचका हुआ बैंगन बाहर निकाला.. गीले कपड़े से चुत को पोंछा और फिर नंगी ही सो गई।

सुबह जब वह नींद से जागी तब डोरबेल बज रही थी "दूध वाला रसिक होगा" शीला ने सोचा, इतनी सुबह, ६ बजे और कौन हो सकता है!! शीला ने उठकर दरवाजा खोला... बाहर तेज बारिश हो रही थी। दूधवाला रसिक पूरा भीगा हुआ था.. शीला उसे देखते ही रह गई... कामदेव के अवतार जैसा, बलिष्ठ शरीर, मजबूत कदकाठी, चौड़े कंधे और पेड़ के तने जैसी मोटी जांघें... बड़ी बड़ी मुछों वाला ३५ साल का रसिक.. शीला को देखकर बोला "कैसी हो भाभीजी?"

गाउन के अंदर बिना ब्रा के बोबलों को देखते हुए रसिक एक पल के लिए जैसे भूल ही गया की वह किस काम के लिए आया था!! उसके भीगे हुए पतले कॉटन के पतलून में से उसका लंड उभरने लगा जो शीला की पारखी नजर से छिप नही सका।

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"अरे रसिक, तुम तो पूरे भीग चुके हो... यहीं खड़े रहो, में पोंछने के लिए रुमाल लेकर आती हूँ.. अच्छे से जिस्म पोंछ लो वरना झुकाम हो जाएगा" कहकर अपने कूल्हे मटकाती हुई शीला रुमाल लेने चली गई।

"अरे भाभी, रुमाल नही चाहिए,... बस एक बार अपनी बाहों में जकड़ लो मुझे... पूरा जिस्म गरम हो जाएगा" अपने लंड को ठीक करते हुए रसिक ने मन में सोचा.. बहेनचोद साली इस भाभी के एक बोबले में ५-५ लीटर दूध भरा होगा... इतने बड़े है... मेरी भेस से ज्यादा तो इस शीला भाभी के थन बड़े है... एक बार दुहने को मिल जाए तो मज़ा ही आ जाए...

रसिक घर के अंदर ड्रॉइंगरूम में आ गया और डोरक्लोज़र लगा दरवाजा अपने आप बंद हो गया।

शीला ने आकर रसिक को रुमाल दिया। रसिक अपने कमीज के बटन खोलकर रुमाल से अपनी चौड़ी छाती को पोंछने लगा। शीला अपनी हथेलियाँ मसलते उसे देख रही थी। उसके मदमस्त चुचे गाउन के ऊपर से उभरकर दिख रहे थे। उन्हे देखकर रसिक का लंड पतलून में ही लंबा होता जा रहा था। रसिक के सख्त लंड की साइज़ देखकर... शीला की पुच्ची बेकाबू होने लगी। उसने रसिक को बातों में उलझाना शुरू किया ताकि वह ओर वक्त तक उसके लंड को तांक सके।

"इतनी सुबह जागकर घर घर दूध देने जाता है... थक जाता होगा.. है ना!!" शीला ने कहा

"थक तो जाता हूँ, पर क्या करूँ, काम है करना तो पड़ता ही है... आप जैसे कुछ अच्छे लोग को ही हमारी कदर है.. बाकी सब तो.. खैर जाने दो" रसिक ने कहा। रसिक की नजर शीला के बोबलों पर चिपकी हुई थी.. यह शीला भी जानती थी.. उसकी नजर रसिक के खूँटे जैसे लंड पर थी।

शीला ने पिछले २० महीनों से.. तड़प तड़प कर... मूठ मारकर अपनी इज्जत को संभाले रखा था.. पर आज रसिक के लंड को देखकर वह उत्तेजित हथनी की तरह गुर्राने लगी थी...

"तुझे ठंड लग रही है शायद... रुक में चाय बनाकर लाती हूँ" शीला ने कहा

"अरे रहने दीजिए भाभी, में आपकी चाय पीने रुका तो बाकी सारे घरों की चाय नही बनेगी.. अभी काफी घरों में दूध देने जाना है" रसिक ने कहा

फिर रसिक ने पूछा "भाभी, एक बात पूछूँ? आप दो साल से अकेले रह रही हो.. भैया तो है नही.. आपको डर नही लगता?" यह कहते हुए उस चूतिये ने अपने लंड पर हाथ फेर दिया

रसिक के कहने का मतलब समझ न पाए उतनी भोली तो थी नही शीला!!

"अकेले अकेले डर तो बहोत लगता है रसिक... पर मेरे लिए अपना घर-बार छोड़कर रोज रात को साथ सोने आएगा!!" उदास होकर शीला ने कहा

"चलिए भाभी, में अब चलता हूँ... देर हो गई... आप मेरे मोबाइल में अपना नंबर लिख दीजिए.. कभी अगर दूध देने में देर हो तो आप को फोन कर बता सकूँ"

तिरछी नजर से रसिक के लंड को घूरते हुए शीला ने चुपचाप रसिक के मोबाइल में अपना नंबर स्टोर कर दिया।

"आपके पास तो मेरा नंबर है ही.. कभी बिना काम के भी फोन करते रहना... मुझे अच्छा लगेगा" रसिक ने कहा

शीला को पता चल गया की वह उसे दाने डाल रहा था

"चलता हूँ भाभी" रसिक मुड़कर दरवाजा खोलते हुए बोला

उसके जाते ही दरवाजा बंद हो गया। शीला दरवाजे से लिपट पड़ी, और अपने स्तनों को दरवाजे पर रगड़ने लगी। जिस रुमाल से रसिक ने अपनी छाती पोंछी थी उसमे से आती मर्दाना गंध को सूंघकर उस रुमाल को अपने भोसड़े पर रगड़ते हुए शीला सिसकने लगी।

कवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतल और मेघदूत में जैसे वर्णन किया है बिल्कुल उसी प्रकार.. शीला इस बारिश के मौसम में कामातुर हो गई थी। दूध गरम करने के लिए वो किचन में आई और फिर उसने फ्रिज में से एक मोटा गाजर निकाला। दूध को गरम करने गेस पर चढ़ाया.. और फिर अपने तड़पते भोसड़े में गाजर घुसेड़कर अंदर बाहर करने लगी।

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रूम के अंदर बहोत गर्मी हो रही थी.. शीला ने एक खिड़की खोल दी.. खिड़की से आती ठंडी हवा उसके बदन को शीतलता प्रदान कर रही थी और गाजर उसकी चुत को ठंडा कर रहा था। खिड़की में से उसने बाहर सड़क की ओर देखा... सामने ही एक कुत्तीया के पीछे १०-१२ कुत्ते, उसे चोदने की फिराक में पागल होकर आगे पीछे दौड़ रहे थे।

शीला मन में ही सोचने लगी "बहनचोद.. पूरी दुनिया चुत के पीछे भागती है... और यहाँ में एक लंड को तरस रही हूँ"

सांड के लंड जैसा मोटा गाजर उसने पूरा अंदर तक घुसा दिया... उसके मम्मे ऐसे दर्द कर रहे थे जैसे उनमे दूध भर गया हो.. भारी भारी से लगते थे। उस वक्त शीला इतनी गरम हो गई की उसका मन कर रहा था की गैस के लाइटर को अपनी पुच्ची में डालकर स्पार्क करें...

शीला ने अपने सख्त गोभी जैसे मम्मे गाउन के बाहर निकाले... और किचन के प्लेटफ़ॉर्म पर उन्हे रगड़ने लगी.. रसिक की बालों वाली छाती उसकी नजर से हट ही नही रही थी। आखिर दूध की पतीली और शीला के भोसड़े में एक साथ उबाल आया। फरक सिर्फ इतना था की दूध गरम हो गया था और शीला की चुत ठंडी हो गई थी।

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रोजमर्रा के कामों से निपटकर, शीला गुलाबी साड़ी में सजधज कर सब्जी लेने के लिए बाजार की ओर निकली। टाइट ब्लाउस में उसके बड़े बड़े स्तन, हर कदम के साथ उछलते थे। आते जाते लोग उन मादक चूचियों को देखकर अपना लंड ठीक करने लग जाते.. उसके मदमस्त कूल्हे, राजपुरी आम जैसे बबले.. और थिरकती चाल...

एक जवान सब्जी वाले के सामने उकड़ूँ बैठकर वह सब्जी देखने लगी। शीला के पैरों की गोरी गोरी पिंडियाँ देखकर सब्जीवाला स्तब्ध रह गया। घुटनों के दबाव के कारण शीला की बड़ी चूचियाँ ब्लाउस से उभरकर बाहर झाँकने लगी थी..

शीला का यह बेनमून हुस्न देखकर सब्जीवाला कुछ पलों के लिए, अपने आप को और अपने धंधे तक को भूल गया।

शीला के दो बबलों को बीच बनी खाई को देखकर सब्जीवाले का छिपकली जैसा लंड एक पल में शक्करकंद जैसा बन गया और एक मिनट बाद मोटी ककड़ी जैसा!!!

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"मुली का क्या भाव है?" शीला ने पूछा

"एक किलो के ४० रूपीए"

"ठीक है.. मोटी मोटी मुली निकालकर दे मुझे... एक किलो" शीला ने कहा

"मोटी मुली क्यों? पतली वाली ज्यादा स्वादिष्ट होती है" सब्जीवाले ने ज्ञान दिया

"तुझे जितना कहा गया उतना कर... मुझे मोटी और लंबी मुली ही चाहिए" शीला ने कहा

"क्यों? खाना भी है या किसी ओर काम के लिए चाहिए?"

शीला ने जवाब नही दिया तो सब्जीवाले को ओर जोश चढ़ा

"मुली से तो जलन होगी... आप गाजर ले लो"

"नही चाहिए मुझे गाजर... ये ले पैसे" शीला ने थोड़े गुस्से के साथ उसे १०० का नोट दिया

बाकी खुले पैसे वापिस लौटाते वक्त उस सब्जीवाले ने शीला की कोमल हथेलियों पर हाथ फेर लिया और बोला "और क्या सेवा कर सकता हूँ भाभीजी?"

उसकी ओर गुस्से से घूरते हुए शीला वहाँ से चल दी। उसकी बात वह भलीभाँति समझ सकती थी। पर क्यों बेकार में ऐसे लोगों से उलझे... ऐसा सोचकर वह किराने की दुकान के ओर गई।

बाकी सामान खरीदकर वह रिक्शा में घर आने को निकली। रिक्शा वाला हरामी भी मिरर को शीला के स्तनों पर सेट कर देखते देखते... और मन ही मन में चूसते चूसते... ऑटो चला रहा था।

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एक तरफ घर पर पति की गैरहाजरी, दूसरी तरफ बाहर के लोगों की हलकट नजरें.. तीसरी तरफ भोसड़े में हो रही खुजली तो चौथी तरफ समाज का डर... परेशान हो गई थी शीला!!

घर आकर वह लाश की तरह बिस्तर पर गिरी.. उसकी छाती से साड़ी का पल्लू सरक गया... यौवन के दो शिखरों जैसे उत्तुंग स्तन.. शीला की हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे। लेटे लेटे वह सोच रही थी "बहनचोद, इन माँस के गोलों में भला कुदरत ने ऐसा क्या जादू किया है की जो भी देखता है बस देखता ही रह जाता है!!" फिर वह सोचने लगी की वैसे तो मर्द के लंड में भी ऐसा कौनसा चाँद लगा होता है, जो औरतें देखते ही पानी पानी हो जाती है!!

शीला को अपने पति मदन के लंड की याद आ गई... ८ इंच का... मोटे गाजर जैसा... ओहहह... ईशशश... शीला ने इतनी गहरी सांस ली की उसकी चूचियों के दबाव से ब्लाउस का हुक ही टूट गया।

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कुदरत ने मर्दों को लंड देकर, महिलाओं को उनका ग़ुलाम बना दिया... पूरा जीवन... उस लंड के धक्के खा खाकर अपने पति और परिवार को संभालती है.. पूरा दिन घर का काम कर थक के चूर हो चुकी स्त्री को जब उसका पति, मजबूत लंड से धमाधम चोदता है तो स्त्री के जनम जनम की थकान उतर जाती है... और दूसरे दिन की महेनत के लिए तैयार हो जाती है।

शीला ने ब्लाउस के बाकी के हुक भी खोल दिए... अपने मम्मों के बीच की कातिल चिकनी खाई को देखकर उसे याद आ गया की कैसे मदन उसके दो बबलों के बीच में लंड घुसाकर स्तन-चुदाई करता था। शीला से अब रहा नही गया... घाघरा ऊपर कर उसने अपनी भोस पर हाथ फेरा... रस से भीग चुकी थी उसकी चुत... अभी अगर कोई मिल जाए तो... एक ही झटके में पूरा लंड अंदर उतर जाए... इतना गीला था उसका भोसड़ा.. चुत के दोनों होंठ फूलकर कचौड़ी जैसे बन चुके थे।

शीला ने चुत के होंठों पर छोटी सी चिमटी काटी... दर्द तो हुआ पर मज़ा भी आया... इसी दर्द में तो स्वर्गिक आनंद छुपा था.. वह उन पंखुड़ियों को और मसलने लगी.. जितना मसलती उतनी ही उसकी आग और भड़कने लगी... "ऊईईई माँ... " शीला के मुंह से कराह निकल गई... हाय.. कहीं से अगर एक लंड का बंदोबस्त हो जाए तो कितना अच्छा होगा... एक सख्त लंड की चाह में वह तड़पने लगी.. थैली से उसने एक मस्त मोटी मुली निकाली और उस मुली से अपनी चुत को थपथपाया... एक हाथ से भगोष्ठ के संग खेलते हुए दूसरे हाथ में पकड़ी हुई मुली को वह अपने छेद पर रगड़ रही थी। भोसड़े की गर्मी और बर्दाश्त न होने पर, उसने अपनी गांड की नीचे तकिया सटाया और उस गधे के लंड जैसी मुली को अपनी चुत के अंदर घुसा दिया।

लगभग १० इंच लंबी मुली चुत के अंदर जा चुकी थी। अब वह पूरे जोश के साथ मुली को अपने योनिमार्ग में रगड़ने लगी.. ५ मिनट के भीषण मुली-मैथुन के बाद शीला का भोसड़ा ठंडा हुआ... शीला की छाती तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी। सांसें नॉर्मल होने के बाद उसने मुली बहार निकाली। उसके चुत रस से पूरी मुली सन चुकी थी.. उस प्यारी सी मुली को शीला ने अपनी छाती से लगा लिया... बड़ा मज़ा दिया था उस मुली ने! मुली की मोटाई ने आज तृप्त कर दिया शीला को!!

मुली पर लगे चिपचिपे चुत-रस को वह चाटने लगी.. थोड़ा सा रस लेकर अपनी निप्पल पर भी लगाया... और मुली को चाट चाट कर साफ कर दिया।

अब धीरे धीरे उसकी चुत में जलन होने शुरू हो गई.. शीला ने चूतड़ों के नीचे सटे तकिये को निकाल लिया और दोनों जांघें रगड़ती हुई तड़पने लगी... "मर गई!!! बाप रे!! बहुत जल रहा है अंदर..." जलन बढ़ती ही गई... उस मुली का तीखापन पूरी चुत में फैल चुका था.. वह तुरंत उठी और भागकर किचन में गई.. फ्रिज में से दूध की मलाई निकालकर अपनी चुत में अंदर तक मल दी शीला ने.. !! ठंडी ठंडी दूध की मलाई से उसकी चुत को थोड़ा सा आराम मिला.. और जलन धीरे धीरे कम होने लगी.. शीला अब दोबारा कभी मुली को अपनी चुत के इर्द गिर्द भी भटकने नही देगी... जान ही निकल गई आज तो!!

rad
शाम तक चुत में हल्की हल्की जलन होती ही रही... बहनचोद... लंड नही मिल रहा तभी इन गाजर मूलियों का सहारा लेना पड़ रहा है..!! मादरचोद मदन... हरामी.. अपना लंड यहाँ छोड़कर गया होता तो अच्छा होता... शीला परेशान हो गई थी.. अब इस उम्र में कीसे पटाए??
वाह भई क्या शानदार शुरूवात है ..... अच्छा प्लेटफार्म तैयार किया है ... और सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट ये है कि कहानी हिन्दी में है ..... 👏👏👏👏
 

vakharia

Supreme
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174
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thanks a lot, Napster bhai :love3: :heart:
 
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