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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

vakharia

Supreme
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प्रिय पाठक और वाचक मित्रों,

नमस्कार!

सबसे पहले, मैं आप सभी का दिल से धन्यवाद करता हूँ कि आप मेरी कहानियों को पढ़ते हैं और उन्हें सराहते हैं। यह आपके समर्थन और प्रेम के बिना संभव नहीं होता। साथ ही साथ मैं आप सब से यह अनुरोध करना चाहता हूँ – कृपया अपनी टिप्पणियाँ और प्रतिक्रियाएँ अवश्य दे।

जब भी मैं लिखने बैठता हूँ, तो मेरी यह कोशिश होती है कि कुछ ऐसा लिखूँ जो आपको प्रभावित करे, आपके दिल को छुए, और साथ ही साथ आपका मनोरंजन भी करे। लेकिन एक लेखक के लिए सबसे बड़ा इनाम तब होता है जब उसके पाठक अपनी प्रतिक्रियाएँ और सुझाव साझा करते हैं। आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए केवल प्रतिक्रिया का माध्यम नहीं हैं, बल्कि मेरी प्रेरणा का स्रोत भी हैं। आगे और अच्छा लिखने की ताकत प्रदान करती है.. पिछले दो महीनों में मैंने ३२ अपडेट्स दिए है.. मतलब औसतन हर दूसरे दिन एक अपडेट.. !! कोशिश यही रहती है की वाचकों को जल्द अपडेट देकर कहानी में उनकी रुचि को बनाया रखा जाएँ..

अंत में, मैं आप सभी से पुनः अनुरोध करता हूँ कि कृपया अपनी कमेंट्स और प्रतिक्रियाएँ अवश्य दे।

धन्यवाद..

वखारिया :love:
 

Gauravv

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वैशाली कविता के घर पहुँच गई थी... और संजय नुक्कड़ की टपरी पर खड़ा होकर सिगरेट फूँक रहा था

शीला के घर से निकालने के बाद जैसे ही चेतना टपरी के करीब से गुजरी.. तब उसने संजय को देखा.. वो ओर तेजी से चलते हुए आगे निकल गई.. संजय भी उसके पीछे पीछे चलने लगा था.. सीटी बस-स्टेंड पर खड़े खड़े चेतना १२४ नंबर की बस के इंतज़ार में थी..

बस आते ही वो अंदर बैठ गई.. संजय भी बस में चढ़ गया और चेतना की बगल की सीट पर बैठ गया.. चेतना को बड़ा आश्चर्या हुआ.. संजय का कंधा उसके कंधे से छूते ही चेतना के भूखे शरीर में करंट सा दौड़ गया.. वो कुछ बोली नहीं.. कंडक्टर के आते ही संजय ने दोनों की टिकट ले ली..

चेतना: "आपने मेरा टिकट क्यों लिया? मैं तू आपको जानती तक नहीं..!!"

संजय: "पर मैं तो आपको जानता हूँ.. रोज सुबह देखता हूँ आपको जब आप दूध लेने जाती हो"

चेतना: "मेरे जाते वक्त कौन मुझे देखता है उससे मुझे क्या लेना देना?"

संजय ने जवाब नहीं दिया.. दोनों चुपचाप बैठे रहे.. तभी चेतना का स्टेंड आ गया

संजय: "आपको एतराज न हो तो गेस्टहाउस पर मेरे कमरे पर चलिए.. थोड़ी देर बैठ कर बातें करेंगे"

चेतना: "तुम पागल हो क्या? मेरे घर के एरिया में अगर मुझे कोई गेस्टहाउस में जाते हुए देखेगा तो कोई क्या सोचेगा?"

संजय समझ गया.. चेतना को आने में दिक्कत नहीं थी.. उसे डर था तो किसी के देख लेने का

संजय ने हाथ दिखा कर एक रिक्शा को खड़ा रखा..

संजय: "आपको गेस्टहाउस में आने से ही दिक्कत है ना !! अगर में आपको किसी ओर जगह ले चलू तो.. ??"

चेतना शर्म से पानी पानी हो गई.. यहाँ बाहर जितनी देर वो खड़ी रहती.. किसी के देख लेने का जोखिम उतना ही बढ़ जाता.. बिना कुछ सोचे चेतना रिक्शा में बैठ गई.. उसका दिल धकधक कर रहा था..

संजय ने रिक्शा वाले से कुछ कहा.. और रिक्शा चल पड़ी.. साथ ही साथ चेतना का दिमाग भी चलने लगा

चेतना शीला को फोन करना चाहती थी पर संजय के साथ होने के कारण यह मुमकिन न था.. बारिश के कारण टूटे हुए रास्तों पर रिक्शा उछल रही थी.. और चेतना का कंधा और जांघ संजय के शरीर के साथ रगड़ रहे थे.. चेतना सोच रही थी.. ३५ दिन गुजर चुके थे.. और उसकी चुत को लंड नसीब नहीं हुआ था.. आखिर कोई कब तक बर्दाश्त करे? संजय के हर स्पर्श के साथ चेतना की चुत में सुरसुरी हो रही थी

रिक्शा एक गेस्टहाउस के पास जाकर रुकी.. यह एरिया चेतना के घर से काफी दूर था.. संजय के पीछे पीछे चेतना तेजी से अंदर घुस गई.. संजय रीसेप्शन पर बात कर रहा था और चेतना का दिल तेजी से धडक रहा था। थोड़ी देर में वेटर चाबी लेकर आया और एक कमरा खोलकर चला गया.. चेतना अंदर जाकर बिस्तर पर बैठी।

रजिस्ट्रेशन निपटाकर संजय कमरे के अंदर आया और दरवाजा बंद कर दिया। उसने पूछा "क्या नाम है आपका?"

"चेतना .. "

"मस्त नाम है आपका.. मेरा नाम संजय है.. वो तो आपको मेरी सास ने आपको बता ही दिया होगा"

"नहीं नहीं.. मैं तो उन्हे जानती नहीं हूँ.. मैं तो सिलाई का काम करती हूँ.. उनका ब्लाउस देने गई थी" चेतना ने खुद को और शीला को बचाने के लिए झूठ बोला.. संजय को भी यह सुनकर राहत हुई.. उसे डर था की कहीं इसने शीला को उसके और प्रेमिला के बारे में बता न दिया हो

चेतना के स्तनों को ललचाई नजर से देखते हुए संजय के अंदर का पुरुष और खामोश न रह पाया.. ऐसे मौकों पर समय हमेशा कम होता है.. जितना जल्दी मुद्दे पर आया जाएँ.. उतना समय ज्यादा मिलता है काम निपटाने के लिए.. पर कभी कभी जल्दी करने में बात बिगड़ भी जाती है.. और चेतना के पास कितना समय था ये वो जानता नहीं था

चेतना भी घबराहट के मारे सोच रही थी.. यहाँ न आई होती तो अच्छा होता.. किसी ने देख लिया होगा तो? अगर मेरे पति को पता चल गया तो? अगर शीला या वैशाली को पता चल गया तो? इन संभावनाओ को सोचकर ही वो कांपने लगी

एक तरफ डर था.. तो दूसरी तरफ जिस्म की भूख थी.. कुछ तय नहीं कर पा रही थी वो.. एक विचार ये भी आया की ये अच्छा मौका था संजय के बारे में जानकारी हासिल करने का.. उसने शीला को वादा जो किया था.. अगर शीला को पता चल भी गया तो वो ये बोल देगी की संजय के बारे में जानने के लिए उसे उसके साथ गेस्टहाउस आना पड़ा.. भूखी चुत चेतना को वकील की तरह बहस करना सीखा रही थी

चेतना ने अब तय कर लिया था.. जो भी होगा देखा जाएगा.. वैसे भी बंद कमरे के अंदर क्या हो रहा है वो किसको पता चलेगा? पर ये कमीना कुछ कर क्यों नहीं रहा?? बैठे-बैठे सिगरेट चूस रहा है.. जो चूसना चाहिए वो तो चूस नहीं रहा.. चेतना के दिमाग में अनगिनत विचार चल रहे थे

फूँक फूँक कर कदम रख रहा संजय... बुझी हुई सिगरेट को एश-ट्रे में डालकर बोला "मैं स्मोक करू तो आपको दिक्कत तो नहीं है ना!!"

चेतना को गुस्सा आया.. साला सिगरेट फूँक लेने के बाद पूछ रहा है.. उसने कोई जवाब नहीं दिया

संजय ने अपने पत्ते बिछाने शुरू कीये "चेतना, जब भी आपको सुबह सुबह देखता हूँ तब मुझे कुछ कुछ होने लगता है.. आपके अंदर कोई ऐसा आकर्षण है जो मुझे आपके करीब खींचता जा रहा है.. अपने मन को कंट्रोल करने की बहोत कोशिश करता हूँ पर पूरा दिन आप ही मेरे दिलों दिमाग पर छाई रहती हो.. आज तक किसी लड़की या औरत के लिए मुझे ऐसा कभी नहीं हुआ.. फिर आपको देखकर ही ऐसा क्यों हुआ होगा??"

अपनी तारीफ सुनकर किसी भी स्त्री के दिमाग को वश में किया जा सकता है.. ऐसा संजय का मानना था.. तारीफ सुनकर चेतना शर्म से लाल हो गई.. अपने जिस्म को लुटाने के लिए बेताब हो गई.. "ऐसा तो क्या देख लिया आपने मुझ में ? और आपके साथ तो वो सुंदर लड़की हमेशा रहती ही है ना ?"

संजय उठकर चेतना के पास बैठ गया और उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया.. चेतना इस स्पर्श से सिहर उठी.. आगे जो होने वाला था उसकी अपेक्षा में उसका शरीर डोलने लगा.. उसकी हवस अंगड़ाई लेकर जाग गई.. बिना फोरप्ले के.. केवल स्पर्श से ही चेतना की गीली हो गई

संजय चेतना के गालों के सहलाने लगा और उसके साथ ही चेतना ने अपना पल्लू गिरा दिया.. उसकी बड़ी छातियाँ हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी.. ब्लाउस में कैद उसका मदमस्त जोबन, वी-नेक गले से बाहर झाँक रहा था.. दो स्तनों के बीच की कातिल खाई को देखकर संजय का लंड झटके से खड़ा हो गया..

संजय ने फिर से सिगरेट जलाई.. और उस सिगरेट को चेतना के होंठों पर रखकर कहा "एक दम खींचकर देखो.. मज़ा आ जाएगा" चेतना को सिगरेट की गंध से बड़ी ही नफरत थी.. और सिगरेट कैसे फूंकते है उसका उसे पता न था.. उसने अपना मुंह फेर लिया..

संजय चेतना की गर्दन के पीछे के हिस्से को सहलाने लगा.. इस हरकत से चेतना की आँखें बंद हो गई.. संजय के गरम हाथ का स्पर्श उस उकसा रहा था.. संजय ने सिगरेट चेतना के हाथों में थमा दी और अपनी पेंट की चैन खोलने लगा.. सिगरेट पकड़ना बड़ा ही अटपटा सा लग रहा था चेतना को.. पर संजय का लंड देखा तो वो सब कुछ भूल ही गई.. लंड की गंध और सिगरेट की बू का संमिश्रण ने चेतना के लिए वियाग्रा का काम किया.. उसकी चूत से भांप निकालने लगी थी.. संजय को खड़े लंड को देखकर उसके स्तन सख्त हो गए.. जैसे अभी ब्लाउस फाड़कर बाहर निकाल आएंगे.. अपने लंड को चेतना के उभारों पर और चेहरे पर रगड़ते हुए संजय ने एक हाथ उसके स्तन पर रख दिया.. उभारों पर गरम सुपाड़े का स्पर्श होते ही चेतना बेकाबू होने लगी..

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शर्म की सारी सीमाएं तोड़कर चेतना ने संजय का लंड पकड़ लिया.. चेतना की मुठ्ठी में लंड दबते ही संजय जैसे उसका ग़ुलाम बन गया.. और चेतना मस्त हो गई.. लंड की तलाश में ही तो वो शीला के घर आई थी.. वह अब खड़ी हुई और अपने ब्लाउस के सारे हुक खोलकर संजय के होश उड़ाने के लिए तैयार हो गई.. ब्रा निकालकर वो संजय के ऊपर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी..

संजय के जिस्म को हर जगह पागलों की तरह चूमते हुए उसने उसका शर्ट और बनियान उतरवा दिए.. उतना ही नहीं.. पेंट की क्लिप खोलकर, अंडरवेर के साथ वो भी उतार दिया.. संजय अब पूरा नंगा था.. उसका पूरा शरीर बालों से ढंका हुआ था.. सारा संचालन अपने हाथ में ही रखना चाह रही चेतना घुटनों के बल बैठ गई.. संजय के फुँकारते लंड को चूम लिया और फिर आँखें बंद करके पूरा लंड मुंह में लिया और चूसने लगी..

बेबस संजय.. लाचार होकर चेतना को अपना लंड चूसते देखता ही रहा.. दोनों हाथों से चेतना का सर पकड़कर वोह धक्के लगाते हुए.. उसके मुंह को ही चूत समझकर चोदने लगा.. जिस तरह चेतना बिना किसी विरोध के चुदवाने के लिए आसानी से तैयार हो गई ये देखकर संजय को आश्चर्य हुआ। वरना औरतों को लंड मुंह में लेने के लिए कितनी मिन्नते करनी पड़ती है वो संजय जानता था.. प्रेमिला को तो नया ड्रेस खरीद कर देने का वादा करो तभी मुंह में लेती थी.. और वो भी सिर्फ थोड़ी देर के लिए..

चेतना की हवस देखकर संजय को मज़ा ही आ गया.. वह उसके मुंह में धनाधन धक्के लगाता जा रहा था.. चेतना भी संजय के कड़े लंड को चूसकर धन्य हो गई थी.. उसने संजय को धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.. बालों से ढंका हुआ संजय डरावने भालू जैसा लग रहा था पर चेतना को इससे कोई फरक नहीं पड़ता था क्योंकि उसकी नजर केवल उसके लंड पर थी। संजय के जिस्म पर सवार होते हुए चेतना ने अपनी ब्रा, साड़ी और घाघरा उतार दिया और मादरजात नंगी हो गई..

चेतना के मादक गदराए जिस्म को देखकर संजय मंत्रमुग्ध हो गया और उसका लंड ठुमकने लगा.. संजय के फुँकारते लंड को देखकर चेतना से ओर रहा न गया.. अपनी दोनों जांघों को फैलाते हुए वो संजय के मुख पर अपनी चूत के होंठों को रखकर बैठ गई और झुककर उसके लंड को फिरसे मुंह में लेकर चूसने लगी.. एक दो मिनट तक उसके लंड को मुंह के अंदर पीपरमिंट की तरह घुमाने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और नीचे हो रही चूत चटाई का आनंद लेने लगी.. असह्य उत्तेजना से बेकाबू होकर वो अपनी चूत को संजय के मुंह के ऊपर दबा देती.. संजय का दम घुटने लगा.. चेतना की इस आक्रामकता ने उसे झकझोर दिया..

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चेतना की क्लिटोरिस को अपने दोनों होंठों के बीच दबाकर चूसते हुए संजय, चूत के कामरस को भी चाट रहा था.. चेतना अब संजय के लंड को मन भरकर निहारने लगी.. लंड की लंबाई, परिघ.. मोटाई.. सुपाड़े का रंग.. खून के भरावे से फुली हुई नसें.. खूंखार था उसका लंड.. चेतना की मुठ्ठी में बस आधा लंड ही समाता था.. उस पर से उसने लंड की लंबाई का अंदाजा लगा लिया.. मस्त और अद्भुत!!

चेतना ने अब संजय के अंडकोशों को पकड़कर दबाते हुए लंड के मूल से लेकर टोपे तक चाटकर गीला कर दिया.. संजय दो पल के लिए चूत चाटना छोड़कर इस चुसाई का मज़ा लेते हुए पागल सा होने लगा.. अद्भुत भारी और बड़े बड़े.. सांड जैसे अंडकोश.. पुष्ट वीर्य से भरपूर.. !! चेतना ने लंड को पकड़कर ऐसे खींचा की संजय बिस्तर से एक फुट ऊपर उछल पड़ा.. चेतना को जो चाहिए था वो मिल गया.. झांटों से भरपूर आँड उसके मुंह के बिल्कुल सामने थे जिसे उसने गप्प से मुंह में भर लिया.. ऐसे चूसने लगी जैसे गोलगप्पा मुंह में डाला हो..

चेतना की इस अदा का दीवाना हो गया संजय!! इस कामुक मुख मैथुन का भरपूर मज़ा उठाते हुए वो सिसकने लगा..

संजय: "आह्ह चेतना.. यू आर मेकिंग मी क्रेजी.. आई लव यू.. ओह्ह.. यू आर सकीन्ग लाइक अ बीच.. ओह यस.. !!"

चेतना ओर उत्तेजित हॉक दोगुने जोश के साथ संजय के लंड और आँड को चाटने लगी.. अपने मुंह से वैक्यूम क्लीनर की तरह वो लंड को चूस रही थी.. "ओह्ह नो.. ओह नो.. !!" कहते हुए संजय उछला और उसके साथ ही लंड ने पिचकारी छोड़ दी.. चेतना के सर के ऊपर बालों तक वीर्य की धार जाके लगी.. उसके सारे बाल वीर्य से मिश्रित होकर चिपचिपे हो गए.. मुठ्ठी भी वीर्य से भर गई.. गजब का फ़्लो था संजय के लंड का.. बड़े ही अहोभाव सो वो ठुमकते हुए लंड की तड़प को देख रही थी.. वो सोचने लगी.. ऐसा तो क्या होता होगा वीर्य स्त्राव के वक्त जो लंड इतना ठुमकता होगा??

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अब चेतना की चूत में गजब की चुनचुनी हो रही थी.. जो अब किसी भी हाल में वह सह नहीं पा रही थी.. उसने अपनी मांसल जांघों के बीच संजय के सर को दबा दिया.. संजय की मुछ पर अपनी क्लिटोरिस को रगड़ते हुए वो बेतहाशा उछल रही थी.. संजय अपनी जीभ से क्लिटोरिस को उकसाते हुए दबा रहा था.. थोड़ी ही देर में चेतना ने अपनी चूत को उठाके पटक दिया और अपने अमृत की धारा सनज के मुंह में छोड़ दी.. हवस की आंधी थम जाने से संजय ने चैन की सांस ली.. अब चेतना की जांघों से उसे मुक्ति मिलने की आशा थी.. चेतना ने भी अपना शरीर ढीला छोड़ दिया.. और संजय के शरीर पर गिर गई.. बिना योनि प्रवेश के दोनों झड़ गए थे..

दोनों एक दूसरे के जिस्मों को सहलाते हुए थकान उतारने लगे.. ऑर्गैज़म की थकान भी कितनी मीठी लगती है!! चेतना संजय के हारे हुए सैनिक जैसे ढल चुके लंड पर हाथ पसार रही थी.. उसके स्तन संजय की छाती से दबकर चपटे हो गए.. संजय उसके नग्न कूल्हों को सहला रहा था और उसकी गांड की लकीर में उँगलियाँ फेरते हुए छिद्र को गुदगुदा रहा था.. चेतना को अंदाजा लग गया की उसके पीछे के छेद को क्यों टटोला जा रहा था.. उसने तुरंत कमर हिलाकर संजय की उंगलियों से अपने छेद को दूर हटा दिया.. संजय ने गांड को छोड़ कर उसकी चूत पर ध्यान केंद्रित किया.. चूत पर स्पर्श होते ही चेतना के जिस्म में नए सिरे से चुदवाने की भूख जागृत हो गई.. तो दूसरी तरफ चेतना के जिस्म की गर्मी से संजय का लंड भी अंगड़ाई लेकर जाग गया..

लंड को हरकत करता देख चेतना की आँखों में चमक आ गई.. अपने कामुक हाथों में उस अर्ध-जागृत यंग को लेकर उसने दबाकर देखा.. अभी तक लंड की सख्ती चूत में घुसाने लायक नहीं हुई थी.. पर संजय अब फिर से चेतना की चूत पर पहुंचकर फिर से चाटने लगा था.. दोनों 69 की पज़िशन में सेट हो गए थे.. चेतना अपनी उंगलियों से लंड की चमड़ी को पीछे करने लगी.. जैसे बादल छटते ही पूर्णिमा का सुंदर चाँद बाहर निकलता है.. वैसे ही चमड़ी पीछे सरकाते ही सुंदर सुपाड़ा बाहर निकला.. उसे देखते ही चेतना को बेहद प्यार आया.. अपनी चिपचिपी चूत को वो संजय के मुंह पर रगड़ रही थी..

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संजय का लंड अब तैयार होकर यहाँ वहाँ झूलने लगा था.. उस मस्त लोड़े को चूम कर चेतना चूसने लगी.. उसकी उत्तेजना को परखकर संजय ने चाटते हुए अपनी एक उंगली अंदर घुसेड़ दी..

चेतना: "बहोत मज़ा आ रहा है.. ओह्ह संजय.. फक यार.. आह्ह"

चूत में उंगली अंदर बाहर होते ही चेतना एकदम मस्त हो गई.. संजय जान चुका था की लोहा अब गरम हो चुका था.. उसने अपनी दूसरी उंगली चेतना की गांड के छेद पर दबा दी.. चूत के रस से भीगी हुई उंगली ने गांड के छेद को भिगोकर रेशम जैसा मुलायम कर दिया.. इस बार चेतना ने कोई विरोध नहीं किया.. क्योंकि वह खुद भी बेहद उत्तेजित थी.. संजय की उंगली गांड के अंदर पूरी घुस चुकी होने के बावजूद उसे दर्द का एहसास नहीं हो रहा था.. या फिर अगर हो भी रहा था तो वो दर्द के चूत में उंगली घुसने से मिल रहे आनंद के तले दबकर रह गया था

संजय ने बड़ी मुश्किल से अपने वीर्य को स्खलित होने से रोक रखा था.. जिस तरह चेतना उसके सुपाड़े से खेल रही थी उसका लंड पिचकारी मारने के लिए उतावला हुए जा रहा था.. चेतना अब पूर्ण रूप से उत्तेजित होकर बेकाबू सी होने लगी थी.. काफी समय से बिना लंड के रहने की वजह से उसकी ये दशा हो गई थी.. उसकी आक्रामकता का एक कारण यह भी था की वह इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहती थी.. फिर ये जाम-ए-मोहब्बत मिले ना मिले!! वह आज संजय के लंड से तृप्त होना चाहती थी..

संजय चेतना के दोनों मस्त बबलों को मसल रहा था.. चेतना भी अब पूरी तरह संजय के लंड पर टूट पड़ी.. संजय को आश्चर्य हो रहा था की ७ इंच लंबा लंड वह कितनी आसानी से निगल रही थी..

"ओह्ह चेतना.. बस भी कर अब.. कितना चुसेगी? तेरा तों मन ही नहीं भरता.. पता है तुझे.. कितना कंट्रोल करना पड़ रहा है!! अभी निकल जाता मेरा.. आह्ह.. "

चेतना अब पलंग पर लेट गई.. बिना चूत की चुदाई के अगर संजय का लंड झड़ गया तो वो प्यासी ही रह जाएगी.. संजय के लंड के स्वागत के लिए उसने अपनी दोनों टांगें चौड़ी कर दी.. संजय चेतना की छाती पर सवार हो गया.. उसने चेतना के दोनों स्तनों को दबाकर एक किया और बीच में अपना लंड घुसेड़कर चोदने लगा.. चेतना को अपने दोनों स्तनों के बीच से आगे पीछे होता हुआ संजय का विकराल सुपाड़ा नजर या रहा था.. उसने अपनी गर्दन थोड़ी सी ऊपर की ताकि वो आगे पीछे होते हुए सुपाड़े को आसानी से चाट सकें.. लंड के इर्दगिर्द चरबीदार स्तनों का दबाव.. और टोपे पर चेतना के कामुक होंठ और जीभ के स्पर्श से ही संजय को ऐसा महसूस होने लगा की वो झड़ जाएगा.. वह तुरंत उसकी छाती से उतर गया..

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अब उसने चेतना की चौड़ी टांगों को अपने हाथों से और चौड़ा किया.. और अपने कंधों पर ले लिया.. आहाहाहाहा.. क्या सीन था!! केले के पेड़ के तने जैसी गोरी चिकनी मस्त जांघें.. और उन जांघों के बीच लसलसित बुर की फांक.. मुलायम जांघों पर हाथ फेरते ही.. प्रेमिला और वैशाली दोनों को भूल गया संजय.. उसने अपना सुपाड़ा चेतना की चुत के दरवाजे पर रखा.. गोली छूटने के बाद बंदूक की नली जितनी गरम होती है.. उतना ही गरम महसूस हुआ उस सुपाड़े का स्पर्श चेतना को..

संजय ने अब चेतना को तड़पाना शुरू कर दिया.. अपने टोपे को वो चेतना की क्लिटोरिस पर रगड़ते हुए उसे चूमने लगा.. संजय के इस दोहरे हमले से चेतना के होश उड़ गए.. संजय की लाल आँखें उसे डरा रही थी.. बेकाबू सांड जैसा लग रहा था संजय.. !! चेतना के दोनों हाथों को बिस्तर पर दबाकर लगभग ५ मिनट तक वह उसके होंठ चूसता रहा.. उस दौरान संजय का लंड चेतना की बुर की लकीर पर ऊपर से नीचे तक घिस रही थी.. चेतना के गाल, गर्दन और होंठों को काटते हुए तहस नहस कर दिया उसे संजय ने..

इतनी आक्रामकता के लिए चेतना तैयार नहीं थी.. हालांकि उसकी जिस्म की आग ऐसे रौंदे जाने से बेहद उत्तेजित था.. संजय के हमले के जवाब में चेतना ने भी अपने नाखून इतनी जोर से संजय की पीठ पर गाड़ दिए की उसकी पीठ पर खून के निशान बन गए..

गुस्साए संजय ने खींचकर एक तमाचा रसीद कर दिया चेतना के गोरे गालों पर "मादरचोद.. नाखून मारती है.. !! तेरी माँ को चोदू" कहते ही संजय ने चेतना को बालों से पकड़कर खड़ा कर दिया.. संजय के तेज-तर्रार चाटे से चेतना के कानों में सीटी बजने लगी.. चक्कर आ गया उसे.. दोनों वासना में इतने बेकाबू होकर क्या कर रहे थे उन्हे खुद पता नहीं था.. चेतना की आँखों में आँसू चमकने लगे.. उसने भी गुस्से में आकर संजय के लंड को पकड़कर इतनी जोर से खींचा की वह अपना संतुलन खो बैठा.. संजय को जरा भी अंदाजा नहीं था की चेतना जवाबी हमला करेगी.. उसका लंड दर्द करने लगा.. गुस्से में आकर उसने एक साथ दो उँगलियाँ चेतना की गांड में डाल दी..

चेतना ने अपनी चीख को बड़े ही मुश्किल से रोक रखा.. वह मजबूर थी.. ऐसे अनजाने गेस्टहाउस में उसकी चीख सुनकर अगर लोग इकठ्ठा हो गए तो उसकी ही बदनामी होती.. लेकिन जिस्म का दर्द ऐसी किसी भी मजबूरी के परे होता है.. वह थोड़ी समझता है?? दबाने के बावजूद हल्की सी चीख तो निकल ही गई.. संजय अब चेतना के स्तनों को ऐसे बेरहमी से मसल रहा था जैसे उसमें जान ही न हो..

चेतना की नजर संजय के सख्त खड़े लंड पर गई.. देखते ही उसकी चूत में चुनचुनी होने लगी.. कितने दिनों से उसकी भूखी चूत.. चुदने के लिए बेताब होकर आँसू बहा रही थी.. संजय ने चेतना को पकड़कर उल्टा कर दिया.. उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़कर ऊपर कर दिया.. चेतना अब कुत्तिया की तरह चार पैरों पर हो गई.. संजय ने चेतना के गोरे चूतड़ों पर धड़ाधड़ तमाचे लगाकर उन्हे लाल कर दिया.. चूत के छेद पर सुपाड़ा टीकाकार उसने एक जबरदस्त धक्का लगाया.. चेतना जोर से कराही.. उसकी चूत की दीवारें फाड़कर संजय का आधा लंड अंदर घुस गया.. दूसरा दमदार धक्का लगते ही चेतना की चूत की किल्ला फतेह हो गया..

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भख भख धक्के लगाते हुए संजय ने अपनी लय प्राप्त कर ली.. दोनों हाथों से मस्त कूल्हों को चौड़ा कर गांड के छेद में उंगली करते हुए वह बेरहमी से चोदने लगा.. चेतना भी अब बेहद उत्तेजित हो चुकी थी.. लंड के प्रत्येक धक्के से उसे इतना मज़ा आ रहा था की गांड के दर्द को उसने नजरअंदाज कर दिया.. इस तरह चुदवाने में चेतना को बहोत मज़ा आ रहा था.. संजय भी चेतना की टाइट चूत को बड़ी मस्ती से चोद रहा था.. उसकी जांघें चेतना के भव्य कूल्हों से टकराकर एक विशिष्ट प्रकार की ध्वनि उत्पन्न कर रही थी.. पूरा कमरा फ़च फ़च की आवाज से गूंज रहा था..

चेतना ने अपनी चूत की दीवारों को भींच लिया.. लंड पर अधिक दबाव महसूस होते ही संजय को धक्के लगाने में मज़ा आ गया.. करीब १० मिनट तक धक्कों का दौर यूँही चलता रहा.. चेतना की महीनों पुरानी भूख आज मिट रही थी.. एक हल्की सी कराह के साथ संजय के लंड ने इस्तीफा दे दिया.. उसके गरम वीर्य की बौछार से चेतना की बंजर चूत में बहार सी छा गई.. सुखी धरती पर बारिश की प्रथम बूंद के साथ जैसे धरती तृप्त हो जाती है वैसे ही चेतना तृप्त हो गई..

दो मिनट तक संजय का ठुमकता लंड चूत के अंदर पानी छोड़ता रहा और फिर दोनों बेड पर हांफते हुए गिर गए.. संजय का एक हाथ चेतना के मस्त उरोज पर था.. हल्के हाथों से वह उसका मर्दन कर रहा था.. करीब पंद्रह मिनट तक यूँही निष्क्रिय पड़े रहने के बाद दोनों सामान्य हो गए.. चेतना ने संजय के गाल पर किस किया

चेतना: "संजय, आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूँगी.. दोबारा कब मिलेंगे ये तो बता नहीं सकती.. पर हाँ.. तू अपना मोबाइल नंबर मुझे दे देना.. मौका मिलते ही मैं तुझे कॉल करूंगी.. "

संजय ने चेतना को बाहों में भरकर एक झकझोर देने वाला आलिंगन दिया.. फिर वह उठ खड़ा हुआ और बाथरूम में चला गया.. चेतना भी उसके पीछे बाथरूम में गई और कमोड पर बैठकर मूतते हुए वो पेशाब कर रहे संजय के लंड को देखती रही.. देखकर ही उसे इतना प्यार आया की उसने मूत रहे लंड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया.. और उस मूत्र को संजय के लंड और आँड़ों पर मल दिया.. चेतना की मुठ्ठी से अपना लंड छुड़ाकर संजय ने अपनी पेशाब की धार का निशाना उसके स्तनों पर लगाया.. गरम गरम पेशाब से चेतना के दोनों स्तन भीग गए.. वह सारा मूत्र स्तनों से गुजरकर नाभि पर होते हुए चेतना की क्लिटोरिस से टपक कर कमोड में गिरने लगा..

लंड की चमड़ी को पीछे कर अपने सुपाड़े को दबाते हुए संजय अटक अटक के पेशाब कर रहा था.. चेतना का हाथ पकड़कर उसने खड़ा किया और उल्टा मोड दिया.. हल्का सा धक्का देने पर चेतना नीचे झुक गई.. अपने मूत रहे लंड को संजय ने चेतना की गीली चूत में आधा घुसा दिया और चूत में ही मूतने लगा.. इस विचित्र और विकृत हरकत से चेतना भी मस्त हो गई.. मूत्र की आखिरी गरम पिचकारी अपनी बच्चेदानी पर महसूस होते ही चेतना को इतना मज़ा आया की वह सिसकने लगी..

अपने अर्ध जागृत लंड को चूत से निकालकर उसने गांड के छेद पर रगड़ना शुरू कर दिया.. इस हरकत से चेतना पागल सी हो गई.. अपना हाथ पीछे ले जाकर उसने खुद ही गांड के छेद को थोड़ा सा चौड़ा किया.. गांड का खुला हुआ छेद लंड को अंदर आने का आमंत्रण दे रहा था.. संजय ने छेद पर सुपाड़ा दबाया.. लेकिन उस सँकरे छेद में आधा मुरझाया लंड घुस नहीं पाया.. संजय को अपने लंड पर गुस्सा आया.. जब औरत सामने से गांड मरवाने के लिए उत्सुक हो तब लंड साथ न दे तब गुस्सा आना स्वाभाविक है..

चेतना: "मज़ा आ रहा है संजय.. थोड़ा सा और अंदर डाल.. मैंने आज तक पीछे नहीं करवाया है.. पता नहीं आज पीछे क्यों खुजली हो रही है!!"

संजय लाचार था.. जब उसका लंड तैयार था तब चेतना तैयार नहीं थी.. अब जब वह सामने से तैयार थी तब लंड साथ देने से इनकार कर रहा था.. बड़ी ही विडंबना थी..

संजय: "नहीं घुस रहा है यार.. तेरा छेद बहोत टाइट है.. दबाता हूँ तो मुड़ जाता है मेरा"

चेतना: "अरे यार.. एन मौके पर ही काम नहीं कर रहा तेरा हथियार.. एक काम कर.. उंगली डाल दे.. खुजली हो रही है मीठी सी"

लंड को बाहर खींचकर संजय ने अपना अंगूठा डाल दिया और रगड़ने लगा

चेतना: "आह्ह.. आह्ह.. मज़ा आ रहा है यार.. मस्त खुजा रहा है.. देख ना अगर तेरा लंड खड़ा हो तो.. उसमें ज्यादा मज़ा आएगा मुझे"

दो बार डिस्चार्ज हो चुका लंड खड़ा होने का नाम ही नहीं ले रहा था.. एक घंटे में दो बार स्खलित होने के बाद लंड का न उठना स्वाभाविक था

चेतना: "संजय, प्लीज मेरी एक इच्छा पूरी करेगा?"

संजय: "हाँ बोल ना डार्लिंग"

चेतना: "पीछे के छेद पर एक किस कर दे.. मुझे वहाँ पप्पी करवानी है"

संजय को बड़ी ही घिन आ रही थी पर वो चेतना जैसे मस्त माल को निराश करना नहीं चाहता था.. वैसे भी वो प्रेमिला के नखरों से तंग आ चुका था.. और मोनिका कुछ भी करने के पैसे लेती थी..

संजय ने बिना कुछ कहे झुककर चेतना की गांड पर हल्के से किस किया.. "कर दिया.. अब खुश ??"

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चेतना: "ऐसे नहीं यार.. तूने कब किस की मुझे तो पता भी नहीं चला.. ठीक से कर.. होंठों पर जैसे किस करता है तू बिल्कुल वैसे ही"

संजय सोच रहा था "क्या मुसीबत है यार!!! गांड पर लिप-किस ??" गुस्सा तो बहोत आया उसे पर फिर भी उसने कूल्हों को चौड़ा कर बादामी रंग के उस छेद पर अपने होंठ रख दिए

चेतना: "हाँ हाँ.. बिल्कुल वैसे ही.. ईशशशश.. ओह संजय.. आई लव यू यार.. बरसों पुरानी इच्छा पूरी कर दी तूने.. आह्ह.. अपनी जीभ थोड़ी सी अंदर डाल.. ऊँहह.. ओह गॉड..यस.. संजु मेरी जान.. " संजय ने अपनी नापसंद को दरकिनार करके अपनी जीभ अंदर डाली.. खेल की शुरुआत भले ही संजय ने की थी पर अब अंत का संचालन चेतना ही कर रही थी.. पालतू कुत्ते की तरह वो चेतना के हर आदेश को मान रहा था.. एक चूत के लिए आदमी को क्या क्या करना पड़ता है !!

उत्तेजित होकर चेतना मन ही मन में सोच रही थी "चाट मेरी गांड भड़वे.. तूने मुझ पर हाथ उठाया था ना!! उसी का बदला है ये.. अब चाट मेरी गांड साले"

संजय परेशान होकर चाट रहा था.. उससे बदबू बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. चेतना की गांड पर हो रही इस हरकत का असर उसकी चूत पर पड़ा.. अंदर से कामरस बहते हुए बाहर रिसने लगा.. पूरे बाथरूम में एक मस्की सी गंध फैल गई.. इस गंध को सूंघते ही संजय का लंड ताव में आने लगा.. झुककर गांड चटवा रही चेतना ने नीचे से संजय का उठा हुआ लंड देखा और घबरा गई "अरे बाप रे.. अगर अभी इस लंड को नरम नहीं किया तो गांड में घुसकर उसे फ्लावर बना देगा.. बाप रे.. इतना बड़ा अंदर जाएगा तो मेरी गांड फट जाएगी.. ईसे बचाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा"

चेतना तुरंत घूम गई.. "बस बस संजय.. अब मुझे तेरा लंड चूसने दे.. यार मज़ा आ गया आज तो.. तेरे जैसा मर्द मैंने आजतक नहीं देखा.. " कहते हुए वह घुटनों के बल बैठ गई.. और संजय का डंडा मुंह में लेकर चूसने लगी.. दो बार स्खलित हो चुके लंड को फिर से झड़ाने में चेतना को समय तो लगा.. पर जब गांड पर रॉकेट तना हुआ हो तब कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता.. वह चूसते चूसते थक गई.. उसके गाल और जबड़े दर्द करने लगे.. पर फिर भी वह चूसती ही रही.. आखिर उसकी मेहनत रंग लाई.. और संजय के लंड का वीर्यस्त्राव हो ही गया.. जब तक वीर्य की सारी बूंदें उसने चाट न ली.. तब तक लंड मुंह से बाहर नहीं निकाला चेतना ने.. संजय उसे बस देखता ही रह गया.. अब भी चेतना लंड को चूसे जा रही थी.. संजय की गांड फट गई "कहीं ये चेतना मेरे लंड को एक बार और तैयार करने के फिराक में तो नहीं है?" कांप उठा संजय.. तीन तीन बार झड़ने के बाद उसमें और एक बार करने की ताकत नहीं बची थी..

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चेतना ने तब तक चूसना जारी रखा जब तक की संजय का लंड पूरी तरह से मुरझा नहीं गया.. पूरी तरह से तसल्ली होने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और निकालते वक्त सुपाड़े को एक बार ओर चाटकर ये चेक भी कर लिया की कहीं उसमें अब भी जान बच तो नहीं गई थी!! निश्चिंत होने के बाद उसने लंड को बाइज्जत बरी किया

संजय मन में सोच रहा था "लंड बच गया मेरा" चेतना सोच रही थी "गांड बची सो लाखों पाएं"

दोनों ने कपड़े पहने और अपना हुलिया ठीकठाक किया.. औ गेस्टहाउस से बाहर निकले.. सड़क पर आकर दोनों ने रिक्शा ली और चेतना की घर के तरफ निकले.. रास्ते में दोनों ने एक दूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए.. और दूसरी बार मिलने का वादा भी किया

चेतना: "मेरा घर अब नजदीक ही है.. मैं यहीं उतर जाती हूँ.. वरना कोई देख लेगा.. "

संजय: "एक काम करते है.. मैं यहाँ उतर जाता हूँ.. तुम ऑटो लेकर घर चली जाना.. वैसे भी मुझे बाजार में थोड़ा काम है.. वो निपटाकर गेस्टहाउस चला जाऊंगा"

चेतना: "तेरा ससुराल यहीं शहर में ही है फिर क्यों गेस्टहाउस में रहता है तू?"


संजय: "लंबी कहानी है.. कभी इत्मीनान से बात करेंगे.. अरे भैया, ऑटो यहीं रोक दीजिए" संजय ने उतरकर पैसे चुकाये और चेतना के गाल पर हाथ सहलाकर चल दिया.. चेतना मुस्कुराकर उसे जाते हुए देखती रही.. अपने पर्स से छोटा सा मिरर निकालकर अपना चेहरा चेक किया उसने.. कहीं कोई निशानी तो नहीं रह गई.. !! तसल्ली करने के बाद वह अपने घर के बाहर उतर गई..
Pehale hi meeting me choot de baithi...ab lgta hai sila v apne damaad ka lund khayegi
 

Sanju@

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वैशाली को देखकर शीला खुश हो गई.. उसके आने से ही पूरा घर भरा भरा सा लगने लगा.. २७ साल की फेशनेबल, भरे भरे जिस्म वाली, एकदम गोरी और बॉब कट हेयर स्टाइल वाली वैशाली.. एकदम बातुनी लड़की थी.. वो और शीला दोनों बातें करने लगे.. वैशाली ने अपने पापा के बारे में पूछा और शीला ने उसे उसके पति संजय और ससुराल के बारे में बातें की

बातों ही बातों में वैशाली ने शीला को बताया की वो ससुराल में बिल्कुल भी खुश नहीं थी.. उसका पति संजय अपने काम पर ध्यान ही नहीं देता था और बार बार नौकरियों से निकाल दिया जाता था.. पूरा दिन सिगरेट फूंकता रहता था.. शराब पीता था.. दोस्तों से ब्याज पर पैसे उधार लेता था और जब लौटा न पाएं तब शहर छोड़कर भाग जाता था.. पूरा दिन घर पर कोई न कोई वसूली करने आ पहुंचता था.. वैशाली उसे टोकती तो वो अनाब शनाब बोलकर उसे हड़का देता.. उसके सास-ससुर भी संजय की इस स्थिति के लिए वैशाली को जिम्मेदार ठहराते.. ससुर के पेंशन से घर आराम से चल तो रहा था पर उसकी सास बात पर उसे ताने मारती रहती थी। अपनी स्थिति के बारे में बताते हुए वैशाली फुट फुट कर रोने लगी.. शीला ने उसकी पीठ पर हाथ सहलाकर उसे शांत किया.. अपनी माँ के साथ दुख बांटकर वह काफी हल्का महसूस करने लगी।

शीला: "तू चिंता मत कर बेटा.. मेरे होते हुए.. मैं सब कुछ ठीक कर दूँगी"

शीला की बात सुनकर वैशाली के दिल को थोड़ी तसल्ली मिली.. वैशाली का मूड ठीक करने के लिए शीला ने कहा "तू आराम से टीवी देख.. मैं तेरी पसंद का कुछ अच्छा खाने के लिए बना देती हूँ"

शीला किचन में गई और वैशाली पैर पर पैर चढ़ाकर आराम से टीवी देखने लगी.. मायके में आकर बेटियों को एक अनोखी शांति का एहसास होता है.. दोपहर में माँ बेटी ने खाना खाया और फिर से बातें करने लगी.. शाम के साढ़े पाँच कब बज गए पता ही नहीं चला..

शीला ने फोन करके कविता को घर बुलाया और उसकी पहचान वैशाली से करवाई..

शीला: "कविता, तू और वैशाली एक ही हमउम्र हो.. तू इसे कंपनी देना.. वैशाली, ये कविता है.. अपने अनुमौसी के बेटे पीयूष की पत्नी.. बहोत ही अच्छा स्वभाव है इसका.. तुम दोनों की साथ में अच्छी पटेगी.. "

दोनों लड़कियों की दोस्ती होने में समय नहीं लगा.. एक दिन में तो दोनों एकदम खास सहेलियाँ बन चुकी थी.. दोनों देर रात तक साथ बैठती और बातें करती रहती.. रोज रात को खाना खाने के बाद दोनों वॉक पर जाने लगी.. इन दोनों की दोस्ती से अनुमौसी और पीयूष भी बड़े खुश थे।

रात को वॉक पर जाते वक्त, वैशाली टाइट टीशर्ट और छोटी सी शॉर्ट्स पहनकर निकलती.. टीशर्ट के अंदर ब्रा भी नहीं होती थी.. चलते चलते हर कदम के साथ उसके उछलते हुए वक्ष देखकर कविता को अपने मायके की याद आ जाती.. लड़की अपने मायके में बिना किसी बंधन के कितने आराम से रहती है !! ससुराल में तो पूरा दिन "ये करो.. ये मत करो.. ऐसे मत बैठो.. ऐसे कपड़े मत पहनो" ऐसी रोकटोक में ही जीवन निकल जाता है..

वैशाली के ठुमकते जोबन को नुक्कड़ पर खड़े लड़के घूर घूरकर ताड़ते रहते.. वैशाली को उन लड़कों की नजर से कोई फरक पड़ता नहीं दिखा.. वो तो गर्व से अपना सीना तानकर उनके बगल से निकल गई.. उन लड़कों की लफंगी नज़रों से कविता शर्म से लाल हो गई

कविता: "यार वैशाली, लोग कैसी गंदी गंदी नज़रों से देख रहे है.. "

वैशाली: "देखने दे.. मुझे घंटा फरक नहीं पड़ता.. "

कविता: "पता नहीं यार.. ये लोग हमेशा हमारे बूब्स को देखकर क्या सोचते होंगे??"

वैशाली: "यहीं की एक बार टीशर्ट के अंदर हाथ डालकर दबाने मिल जाए तो मज़ा आ जाए.. हा हा हा हा.. "

वैशाली बोलने में एकदम बिंदास लड़की थी.. और स्वभाव से कामुक भी थी.. आखिर थी तो वो शीला की ही बेटी.. कोई हेंडसम लड़का दिख जाएँ तब वो भी उसे ऊपर से नीचे तक स्कैन कर लेती.. वैशाली बार बार कविता को उसकी सेक्स लाइफ के बारे में पूछती रहती.. इतना ही नहीं.. वो पीयूष के बारे में भी अलग अलग प्रश्न पूछती रहती कविता से.. वो सिर्फ पूछती ही नहीं थी.. अपने बारे में बताती भी थी

शुरू शुरू में ऐसी बातें करने में कविता को झिझक होती थी.. जब वैशाली "लंड" "चुत" और "बबलों" जैसे शब्दों का खुलकर उपयोग करती.. धीरे धीरे कविता भी वैशाली के आगे खुलने लगी..

एक बार वैशाली ने कविता से बेधड़क पूछ लिया "तूने कभी शादी से पहले किसी के साथ सेक्स किया था?"

कविता: "नहीं रे नहीं.. मैंने तो सब से पहले पीयूष के साथ ही किया था.. वैशाली तू ने किया था क्या?"

वैशाली: "हाँ किया था.. अब ये मत पूछना की किसके साथ.. क्योंकी वो मैं बता नहीं सकती.. " वैशाली ने कविता को अगला प्रश्न पूछने से रोक लिया

कविता सोचने लगी.. सब कुछ खुलकर बता रही है तो ये बताने में भला क्या हर्ज !!

कविता की ओर देखकर वैशाली ने कहा "तुझ जैसी सुंदर छुईमुई को किसी ने शादी से पहले लाइन न मारी हो ऐसा हो तो नहीं सकता.. पक्का तू मुझसे कुछ छुपा रही है"

कविता: "ऐसा कुछ भी नहीं है.. जब तू मुझे इतना सब खुलकर सब बता रही है तो फिर मुझे बताने में क्या दिक्कत होती !!!" कविता शीला की पक्की शिष्य थी.. अपने राज को कैसे दबाकर रखना वो बखूबी सीख चुकी थी। दूसरे के राज कैसे उगलवाना उसका मंत्र भी उसने शीला से ही सीखा था।

कविता ने धीरे से वैशाली से पूछा "बड़ी होशियार है तू वैशाली.. शादी से पहले ही सेक्स किया तो तुझे तेरे माँ-बाप को पता चल जाने का डर नहीं लगा था? मेरी तो ऊपर ऊपर से करवाने में ही डर के मारे जान निकल गई थी"

वैशाली ने चुटकी बजाते हुए कहा "मतलब तू जब ब्याह कर आई तब थोड़ा बहोत कर ही चुकी थी.. ऊपर ऊपर से मतलब? लंड अंदर नहीं लिया था क्या ??"

कविता: "मेरे मायके में एक लड़का था पिंटू.. मुझे बहोत पसंद था.. अभी भी मैं उसके साथ.. पर शादी से पहले मैंने कुछ नहीं किया था"

वैशाली: "ऐसा कैसे हो सकता है !! कोई भी लड़का तेरे जैसा कोरा माल बिना चोदे कैसे छोड़ देगा भला ??"

कविता: "वही तो.. मैंने काफी बार उसे मुझे चोदने के लिए कहा.. पर उसका कहना था की जब तक शादी न हो जाए तब तक वो कुछ नहीं करेगा"

वैशाली: "बड़ा आया सत्यवादी हरीशचंद्र.. इसका मतलब ये हुआ की पीयूष को सुहागरात पर सील-पेक माल ही मिला था.. पर तुझे सील-पेक माल नहीं मिला.. तुझे क्या पता की पीयूष इससे पहले किसी के साथ कर चुका है या नहीं"

कविता चोंक उठी "सच सच बता वैशाली"

वैशाली ने ठहाका लगाते हुए कहा "अरे यार बीती बातें भूल जा.. पीयूष ने सब से पहली बार मेरे साथ ही किया था.. " कविता के पैरों तले से धरती हिल गई.. चक्कर सा आने लगा उसे.. !!!!

उदास हो गई कविता और उसका चेहरा भी लटक गया.. फिर उसने सोचा की वो भी कहाँ दूध से धुली थी !! प्रत्येक परिणित स्त्री का एक भूतकाल होता ही है.. वैसे वैशाली और पीयूष का भी था.. और पीयूष की बातों ऐसा कभी प्रतीत भी नहीं हुआ की उसे वैशाली की कभी याद भी आई थी

लेकिन स्त्री-सहज ईर्ष्या होना तो स्वाभाविक था.. कविता की असमंजस को वैशाली ने परख लिया

वैशाली: "तू उदास क्यों हो गई?? टेंशन मत ले.. मेरे और पीयूष के बीच जो कुछ भी हुआ था वो पुरानी बात है.. और वह एक भूल ही थी.. जो नादान उम्र के बच्चे अक्सर करते है.. और तेरा भी ऐसा ही भूतकाल पिंटू के साथ भी रहा ही है ना.. !! १७ से २२ की उम्र ही ऐसी होती है.. शरीर विकसित हो जाता है.. अन्तःस्त्राव शुरू हो जाते है.. दिल पंछी की तरह उड़कर अलग अलग डाल पर बैठने लगता है.. विजातीय आकर्षण होने लगता है.. मायके में दिल के अंदर बसे प्रियतम को भूलकर वह अन्य व्यक्ति के साथ अपने जीवन की शुरुआत करते ही सब कुछ भूल जाती है.. "

कविता को वैशाली की बात ठीक लगी.. "सच बॉल रही है तू वैशाली.. मैं भी जवान हुई तभी पिंटू के साथ प्रेम विकसित हुआ था.. मुझे ये बता.. शादी के बाद तुझे किसी के लिए आकर्षण हुआ है कभी??"

वैशाली बोलने में बिंदास थी.. "जिंदगी बिताने के लिए पति और प्रेमी दोनों की आवश्यकता होती है.. वरना जीने में मज़ा ही नहीं आता.. पति जब हमारा दिल दुखाएं तब सहारे के लिए एक कंधा तो चाहिए ना !! अपना दर्द बांटने के लिए कोई होना तो चाहिए.. मेरे तो पर्सनल प्रॉब्लेम इतने है की अगर मेरा प्रेमी नहीं होता तो अब तक पंखे से लटक गई होती"

इंसान जब अपने जीवन के दर्द भरे पन्ने किसी के सामने खोलता है तब दुख और दर्द उसकी इंतहाँ पर होते है.. वैशाली अपनी दास्तां सुनाती गई

"शादी के बाद मम्मी पापा का घर छोड़ा.. उसके साथ ही खुशी और सुख क्या होते है.. मैं तो जैसे भूल ही गई.. पापा के घर मुझे एक भी काम नहीं करना पड़ता था.. पापा अक्सर मुझे टोकते.. कहते की कामकाज सिख ले वरना ससुराल में बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा.. आज उनकी कही सारी बातें याद आ रही है.. संजय से शादी के पहले पाँच साल तो बड़े ही शानदार तरीके से बीते.. पहला झटका तब लगा जब मुझे संजय के अफेर के बारे में पता चला.. मैं आज तक समझ नहीं पाई.. मैंने उसे हर तरह से खुश रखा था.. ऐसी कौन सी कमी थी मुझ में जो संजय को किसी और के पास जाना पड़ा !!! उसे जो चाहिए था मैंने सब कुछ दिया.. किसी बात के लिए कभी जिद नहीं की.. उसकी हर बात मानती थी मैं.. अरे शुरुआत के दिनों में उसे पूरा दिन सेक्स की चूल मची रहती.. एक रात में चार चार बार.. कभी कभी पाँच बार सेक्स करते.. मैंने कभी मना नहीं किया.. बिना सोये पूरी रात चुदवाने के बावजूद में सुबह जल्दी उठ जाती.. तुझे पता है ना.. की चुदाई के बाद कैसी नींद आती है!! संजय तो हल्का होकर देर तक सोते हुए अपनी थकान उतारता.. पर मैं घर के सारे काम में व्यस्त हो जाती.. दोपहर को जब थोड़ा सा आराम करने बिस्तर पर लेटती.. संजय फिर से तैयार हो जाता.. और कम से कम दो बार सेक्स करने के बाद ही दम लेता.. मैं ये सोचकर सब कुछ बर्दाश्त करती की आखिर पति है वो मेरा.. उसे हक है मेरे शरीर को भोगने का.. पर इतना सब करने के बाद भी जब वो किसी और के साथ मुंह मारने लगा.. " वैशाली आगे बोल नहीं पाई

"कौन थी वो? नाम क्या था उसका? तूने उसे सबक सिखाया की नहीं?" कविता ने पूछा

वैशाली ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा "यार.. जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो गैरों को बोलकर क्या फायदा !! संजय कुछ कमाता तो था नहीं. बस दिन भर बिस्तर पर पड़ा रहता और मौका मिलते ही मेरी टांगें चौड़ी करके मेरे छेद में घुसा देता.. उसे २४ घंटे चुदाई के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं थी.. तंग आ गई थी मैं उस ज़िंदगी से.. जब पति ही ऐसा हो तो कैसे कटेगी पूरी ज़िंदगी उसके साथ !! तभी मैंने दूसरा साथी तलाश लिया.. लाखों में एक है वो कविता.. अपने एरिया में ही रहता ही.. अब तक हम सिर्फ बातें ही करते है.. मेरा ससुराल नजदीक होता तो हम मिल भी पाते.. पर कलकत्ता में रहते हुए ये मुमकिन हो न सका.. तुझे पता है कविता.. एक तरफ मेरा पति है जिसके दिमाग में हर वक्त औरतों को भोगने का जुनून सवार रहता है.. स्त्री को हमेशा एक साधन की तरह ही इस्तेमाल करता है.. जब देखो तब मुझे कहता रहता है "अरे वो देख वो लड़की की गांड कितनी मस्त है.. आह्ह वो वाली की चूचियाँ" मुझे तो बोलने में भी शर्म आती है.. कभी कभी तो मेरी मम्मी के बारे में भी गंदी गंदी बातें करता है.. दूसरी तरह मेरा प्रेमी.. जो इतने दूर रहकर भी मुझे शब्दों से सहारा देता है.. मेरी हिम्मत बढ़ाता है.. मेरी बात सुनता है.. मेरे दर्द बांटता है.. और इसके बदले उसने कभी मुझसे कुछ भी नहीं मांगा.. हिम्मत है उसका नाम.. आई लव हिम्मत" वैशाली भावुक हो गई

कविता: "ऐसे हरामजादे मर्दों को तो गोली मार देनी चाहिए.."

वैशाली: "नसीब की बलिहारी तो देख कविता.. हिम्मत की पत्नी का चार महीने पहले ही देहांत हो गया.. सिर्फ ८ साल में ही उसका गृहस्थ जीवन समाप्त हो गया.. फिर भी इस नाजुक वक्त पर में उसे सहारा न दे पाई.. "

कविता: "इतनी छोटी उम्र में ही हिम्मत की पत्नी चल बसी?? क्या हुआ था उसे?"

वैशाली: "हिम्मत की बीवी को गर्भाशय का केन्सर था.. अकेला पड़ गया है बेचारा.. अच्छे लोगों के साथ ही ऐसा क्यों होता है? तू मानेगी नहीं.. हिम्मत अपनी बीवी की मौजूदगी में मुझसे बातें करता.. अब बता.. कोई पत्नी ऐसा बर्दाश्त कर सकती है भला?? पर संध्या ने कभी एतराज नहीं जताया.. बहोत ही अच्छी थी संध्या.. हिम्मत संध्या से कभी कुछ भी छुपाता नहीं था.. कभी कभार संध्या भी मुझसे बात करती और मेरा होसला बढ़ाती.. संजय जब घर पर नहीं होता था तब मैं घंटों हिम्मत से बात करती थी.. सिर्फ उसी की बदौलत मैं अब तक संजय के साथ टीक पाई हूँ.. आज मैं हिम्मत से भी ज्यादा संध्या को मिस कर रही हूँ" वैशाली की आँखों से आँसू टपकने लगे

वैशाली ने बात आगे बढ़ाई "शादी से पहले के इस प्यार को हम दोनों ने मेरी शादी के बाद दफना दिया था.. कभी उसने मुझे आई लव यू तक नहीं कहा.. बस दोस्ती का रिश्ता ही रखा था.. संध्या ने एक बार मुझे कहा था की उनकी शादी से पहले ही हिम्मत ने उसे मेरे बारे में बता दिया था। ऐसा ईमानदार इंसान अब कहाँ मिलेगा!! " वैशाली के शब्दों के दर्द ने कविता को भी हिला दिया

कविता: "तू चार दिन से आई है.. फोन किया की नहीं?"

वैशाली: "नहीं यार.. उसकी पत्नी को मरे कुछ ही महीने हुए है.. मैं अकेली उसके घर जाऊँगी तो लोगों को बातें बनाने का मौका मिल जाएगा.. मम्मी को लेकर तो जा नहीं सकती.. कोई साथ हो तो ठीक है.. पर अकेले जाने में लोग तरह तरह की बातें करेंगे और बेकार में हिम्मत परेशान हो जाएगा"

कविता: "तुझे एतराज न हो तो मैं तेरे साथ चलूँ?"

वैशाली: "मुझे क्यों एतराज होगा भला.. और अगर होता तो मैं ये सब बातें तुझे क्यों बताती !! पर सिर्फ हम दो लड़कियां उस अकेले मर्द के घर जाएगी तो अच्छा नहीं लगेगा.. कोई मर्द साथ होता तो फिर किसी के मन में कोई शक ही पैदा नहीं होगा. पर किसे लेकर जाएँ यही प्रॉब्लेम है.. खैर मेरे प्रॉब्लेम तो चलते ही रहेंगे.. तू अपनी बता.. पिंटू के साथ तेरे संबंध कैसे थे?"

कविता ने अथ से इति तक सब कुछ बताया पिंटू के बारे में.. बात करते करते वो शर्म के मारी लाल लाल हो गई

वैशाली: "बड़ी किस्मत वाली है तू.. कम से कम तेरा प्रेमी नजदीक तो है.. जब चाहे उसे देख सकती है तू.. पर ये बता की शादी के बाद तूने उससे संबंध कैसे बनाए रखे?? तेरे घर पर सास ससुर हमेशा रहते है.. तुम लोग कैसे मिलते हो फिर?"

कविता: "यार हम लोग कभी कभार तेरे घर पर ही मिलते है.. तेरी मम्मी को सब कुछ पता है इसके बारे में... "

वैशाली चकित हो गई "मम्मी ऐसी बातों में तुझे सपोर्ट कर रही है ये ताज्जुब की बात है.. वैसे मम्मी बड़ी स्ट्रिक्ट है.. "

कविता: "बहोत दिन हो गए है यार उसे मिले हुए.. अब रहा नहीं जाता "

वैशाली: "मतलब तुम दोनों जब भी मिलते हो तब सेक्स भी करते हो?"

कविता ने जवाब नहीं दिया बस "हाँ" कहते हुए गर्दन हिलाई फिर धीरे से बोली "अकेले में मिलना होता है तब करते है.. बहोत मज़ा आता है उसके साथ.. वैसा मज़ा तो मुझे पीयूष के साथ भी नहीं आता कभी"

वैशाली: "वैसा ही होता है.. घर की मुर्गी दाल बराबर"

कविता: "मुझे एक आइडिया आया है वैशाली"

वैशाली: "तो बता ना.. "

कविता: "तु हिम्मत को मिलने के लिए अपने घर ही बुला ले.. मैं शीला भाभी को २ घंटों के लिए कहीं बाहर ले जाऊँगी"

वैशाली सोच में पड़ गई.. "वो तो ठीक है यार.. पर मुझे डर लगता है"

कविता: "डरने वाली कौन सी बात है? तेरी मम्मी तो मेरे साथ ही होगी"

सुनते ही वैशाली की आँखें चमकने लगी.. संजय से वो इतनी नफरत करती थी की हिम्मत से अकेले में मिलने के खयाल मात्र से उसकी पेन्टी गीली होने लगी.. "यार ऐसा कुछ सेटिंग हो तो मज़ा आ जाएगा.. हिम्मत को और मुझे एकांत की सख्त जरूरत है.. मैं कुछ करती हूँ"

दोनों बातें करते करते घर पहुंचे और अपने अपने घर चले गए। वैशाली जब दरवाजा खोलकर अंदर आ रही थी तब उसने खिड़की से देखा की मम्मी किसी से फोन पर हंस हँसकर बात कर रही थी.. वैशाली को देखते ही उसने फोन काट दिया.. पर यह बात वैशाली के दिमाग मे नोट हो गई थी

"काफी दोस्ती हो गई है तेरी और कविता की.. हैं ना.. !! मैंने कहा था ना तुझे.. बहुत अच्छी लड़की है.. मेरे साथ भी उसकी अच्छी पटती है.. " अपने मोबाइल पर नजर रखे हुए शीला ने कहा


वैशाली: "हाँ मम्मी.. कविता बहोत ही अच्छी लड़की है"
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
शीला की बेटी भी शीला की ही तरह है वैशाली ने अपने सारे राज कविता को बता दिए हैं उसने यह भी बता दिया कि उसकी पहली चूदाई पीयूष ने की थी शीला पति के बिना दुखी हैं और वैशाली पति से दुखी हैं जरूरत दोनो को प्यार की ही है
 

Rajizexy

❣️and let ❣️
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वैशाली कविता के घर पहुँच गई थी... और संजय नुक्कड़ की टपरी पर खड़ा होकर सिगरेट फूँक रहा था

शीला के घर से निकालने के बाद जैसे ही चेतना टपरी के करीब से गुजरी.. तब उसने संजय को देखा.. वो ओर तेजी से चलते हुए आगे निकल गई.. संजय भी उसके पीछे पीछे चलने लगा था.. सीटी बस-स्टेंड पर खड़े खड़े चेतना १२४ नंबर की बस के इंतज़ार में थी..

बस आते ही वो अंदर बैठ गई.. संजय भी बस में चढ़ गया और चेतना की बगल की सीट पर बैठ गया.. चेतना को बड़ा आश्चर्या हुआ.. संजय का कंधा उसके कंधे से छूते ही चेतना के भूखे शरीर में करंट सा दौड़ गया.. वो कुछ बोली नहीं.. कंडक्टर के आते ही संजय ने दोनों की टिकट ले ली..

चेतना: "आपने मेरा टिकट क्यों लिया? मैं तू आपको जानती तक नहीं..!!"

संजय: "पर मैं तो आपको जानता हूँ.. रोज सुबह देखता हूँ आपको जब आप दूध लेने जाती हो"

चेतना: "मेरे जाते वक्त कौन मुझे देखता है उससे मुझे क्या लेना देना?"

संजय ने जवाब नहीं दिया.. दोनों चुपचाप बैठे रहे.. तभी चेतना का स्टेंड आ गया

संजय: "आपको एतराज न हो तो गेस्टहाउस पर मेरे कमरे पर चलिए.. थोड़ी देर बैठ कर बातें करेंगे"

चेतना: "तुम पागल हो क्या? मेरे घर के एरिया में अगर मुझे कोई गेस्टहाउस में जाते हुए देखेगा तो कोई क्या सोचेगा?"

संजय समझ गया.. चेतना को आने में दिक्कत नहीं थी.. उसे डर था तो किसी के देख लेने का

संजय ने हाथ दिखा कर एक रिक्शा को खड़ा रखा..

संजय: "आपको गेस्टहाउस में आने से ही दिक्कत है ना !! अगर में आपको किसी ओर जगह ले चलू तो.. ??"

चेतना शर्म से पानी पानी हो गई.. यहाँ बाहर जितनी देर वो खड़ी रहती.. किसी के देख लेने का जोखिम उतना ही बढ़ जाता.. बिना कुछ सोचे चेतना रिक्शा में बैठ गई.. उसका दिल धकधक कर रहा था..

संजय ने रिक्शा वाले से कुछ कहा.. और रिक्शा चल पड़ी.. साथ ही साथ चेतना का दिमाग भी चलने लगा

चेतना शीला को फोन करना चाहती थी पर संजय के साथ होने के कारण यह मुमकिन न था.. बारिश के कारण टूटे हुए रास्तों पर रिक्शा उछल रही थी.. और चेतना का कंधा और जांघ संजय के शरीर के साथ रगड़ रहे थे.. चेतना सोच रही थी.. ३५ दिन गुजर चुके थे.. और उसकी चुत को लंड नसीब नहीं हुआ था.. आखिर कोई कब तक बर्दाश्त करे? संजय के हर स्पर्श के साथ चेतना की चुत में सुरसुरी हो रही थी

रिक्शा एक गेस्टहाउस के पास जाकर रुकी.. यह एरिया चेतना के घर से काफी दूर था.. संजय के पीछे पीछे चेतना तेजी से अंदर घुस गई.. संजय रीसेप्शन पर बात कर रहा था और चेतना का दिल तेजी से धडक रहा था। थोड़ी देर में वेटर चाबी लेकर आया और एक कमरा खोलकर चला गया.. चेतना अंदर जाकर बिस्तर पर बैठी।

रजिस्ट्रेशन निपटाकर संजय कमरे के अंदर आया और दरवाजा बंद कर दिया। उसने पूछा "क्या नाम है आपका?"

"चेतना .. "

"मस्त नाम है आपका.. मेरा नाम संजय है.. वो तो आपको मेरी सास ने आपको बता ही दिया होगा"

"नहीं नहीं.. मैं तो उन्हे जानती नहीं हूँ.. मैं तो सिलाई का काम करती हूँ.. उनका ब्लाउस देने गई थी" चेतना ने खुद को और शीला को बचाने के लिए झूठ बोला.. संजय को भी यह सुनकर राहत हुई.. उसे डर था की कहीं इसने शीला को उसके और प्रेमिला के बारे में बता न दिया हो

चेतना के स्तनों को ललचाई नजर से देखते हुए संजय के अंदर का पुरुष और खामोश न रह पाया.. ऐसे मौकों पर समय हमेशा कम होता है.. जितना जल्दी मुद्दे पर आया जाएँ.. उतना समय ज्यादा मिलता है काम निपटाने के लिए.. पर कभी कभी जल्दी करने में बात बिगड़ भी जाती है.. और चेतना के पास कितना समय था ये वो जानता नहीं था

चेतना भी घबराहट के मारे सोच रही थी.. यहाँ न आई होती तो अच्छा होता.. किसी ने देख लिया होगा तो? अगर मेरे पति को पता चल गया तो? अगर शीला या वैशाली को पता चल गया तो? इन संभावनाओ को सोचकर ही वो कांपने लगी

एक तरफ डर था.. तो दूसरी तरफ जिस्म की भूख थी.. कुछ तय नहीं कर पा रही थी वो.. एक विचार ये भी आया की ये अच्छा मौका था संजय के बारे में जानकारी हासिल करने का.. उसने शीला को वादा जो किया था.. अगर शीला को पता चल भी गया तो वो ये बोल देगी की संजय के बारे में जानने के लिए उसे उसके साथ गेस्टहाउस आना पड़ा.. भूखी चुत चेतना को वकील की तरह बहस करना सीखा रही थी

चेतना ने अब तय कर लिया था.. जो भी होगा देखा जाएगा.. वैसे भी बंद कमरे के अंदर क्या हो रहा है वो किसको पता चलेगा? पर ये कमीना कुछ कर क्यों नहीं रहा?? बैठे-बैठे सिगरेट चूस रहा है.. जो चूसना चाहिए वो तो चूस नहीं रहा.. चेतना के दिमाग में अनगिनत विचार चल रहे थे

फूँक फूँक कर कदम रख रहा संजय... बुझी हुई सिगरेट को एश-ट्रे में डालकर बोला "मैं स्मोक करू तो आपको दिक्कत तो नहीं है ना!!"

चेतना को गुस्सा आया.. साला सिगरेट फूँक लेने के बाद पूछ रहा है.. उसने कोई जवाब नहीं दिया

संजय ने अपने पत्ते बिछाने शुरू कीये "चेतना, जब भी आपको सुबह सुबह देखता हूँ तब मुझे कुछ कुछ होने लगता है.. आपके अंदर कोई ऐसा आकर्षण है जो मुझे आपके करीब खींचता जा रहा है.. अपने मन को कंट्रोल करने की बहोत कोशिश करता हूँ पर पूरा दिन आप ही मेरे दिलों दिमाग पर छाई रहती हो.. आज तक किसी लड़की या औरत के लिए मुझे ऐसा कभी नहीं हुआ.. फिर आपको देखकर ही ऐसा क्यों हुआ होगा??"

अपनी तारीफ सुनकर किसी भी स्त्री के दिमाग को वश में किया जा सकता है.. ऐसा संजय का मानना था.. तारीफ सुनकर चेतना शर्म से लाल हो गई.. अपने जिस्म को लुटाने के लिए बेताब हो गई.. "ऐसा तो क्या देख लिया आपने मुझ में ? और आपके साथ तो वो सुंदर लड़की हमेशा रहती ही है ना ?"

संजय उठकर चेतना के पास बैठ गया और उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया.. चेतना इस स्पर्श से सिहर उठी.. आगे जो होने वाला था उसकी अपेक्षा में उसका शरीर डोलने लगा.. उसकी हवस अंगड़ाई लेकर जाग गई.. बिना फोरप्ले के.. केवल स्पर्श से ही चेतना की गीली हो गई

संजय चेतना के गालों के सहलाने लगा और उसके साथ ही चेतना ने अपना पल्लू गिरा दिया.. उसकी बड़ी छातियाँ हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी.. ब्लाउस में कैद उसका मदमस्त जोबन, वी-नेक गले से बाहर झाँक रहा था.. दो स्तनों के बीच की कातिल खाई को देखकर संजय का लंड झटके से खड़ा हो गया..

संजय ने फिर से सिगरेट जलाई.. और उस सिगरेट को चेतना के होंठों पर रखकर कहा "एक दम खींचकर देखो.. मज़ा आ जाएगा" चेतना को सिगरेट की गंध से बड़ी ही नफरत थी.. और सिगरेट कैसे फूंकते है उसका उसे पता न था.. उसने अपना मुंह फेर लिया..

संजय चेतना की गर्दन के पीछे के हिस्से को सहलाने लगा.. इस हरकत से चेतना की आँखें बंद हो गई.. संजय के गरम हाथ का स्पर्श उस उकसा रहा था.. संजय ने सिगरेट चेतना के हाथों में थमा दी और अपनी पेंट की चैन खोलने लगा.. सिगरेट पकड़ना बड़ा ही अटपटा सा लग रहा था चेतना को.. पर संजय का लंड देखा तो वो सब कुछ भूल ही गई.. लंड की गंध और सिगरेट की बू का संमिश्रण ने चेतना के लिए वियाग्रा का काम किया.. उसकी चूत से भांप निकालने लगी थी.. संजय को खड़े लंड को देखकर उसके स्तन सख्त हो गए.. जैसे अभी ब्लाउस फाड़कर बाहर निकाल आएंगे.. अपने लंड को चेतना के उभारों पर और चेहरे पर रगड़ते हुए संजय ने एक हाथ उसके स्तन पर रख दिया.. उभारों पर गरम सुपाड़े का स्पर्श होते ही चेतना बेकाबू होने लगी..

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शर्म की सारी सीमाएं तोड़कर चेतना ने संजय का लंड पकड़ लिया.. चेतना की मुठ्ठी में लंड दबते ही संजय जैसे उसका ग़ुलाम बन गया.. और चेतना मस्त हो गई.. लंड की तलाश में ही तो वो शीला के घर आई थी.. वह अब खड़ी हुई और अपने ब्लाउस के सारे हुक खोलकर संजय के होश उड़ाने के लिए तैयार हो गई.. ब्रा निकालकर वो संजय के ऊपर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी..

संजय के जिस्म को हर जगह पागलों की तरह चूमते हुए उसने उसका शर्ट और बनियान उतरवा दिए.. उतना ही नहीं.. पेंट की क्लिप खोलकर, अंडरवेर के साथ वो भी उतार दिया.. संजय अब पूरा नंगा था.. उसका पूरा शरीर बालों से ढंका हुआ था.. सारा संचालन अपने हाथ में ही रखना चाह रही चेतना घुटनों के बल बैठ गई.. संजय के फुँकारते लंड को चूम लिया और फिर आँखें बंद करके पूरा लंड मुंह में लिया और चूसने लगी..

बेबस संजय.. लाचार होकर चेतना को अपना लंड चूसते देखता ही रहा.. दोनों हाथों से चेतना का सर पकड़कर वोह धक्के लगाते हुए.. उसके मुंह को ही चूत समझकर चोदने लगा.. जिस तरह चेतना बिना किसी विरोध के चुदवाने के लिए आसानी से तैयार हो गई ये देखकर संजय को आश्चर्य हुआ। वरना औरतों को लंड मुंह में लेने के लिए कितनी मिन्नते करनी पड़ती है वो संजय जानता था.. प्रेमिला को तो नया ड्रेस खरीद कर देने का वादा करो तभी मुंह में लेती थी.. और वो भी सिर्फ थोड़ी देर के लिए..

चेतना की हवस देखकर संजय को मज़ा ही आ गया.. वह उसके मुंह में धनाधन धक्के लगाता जा रहा था.. चेतना भी संजय के कड़े लंड को चूसकर धन्य हो गई थी.. उसने संजय को धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.. बालों से ढंका हुआ संजय डरावने भालू जैसा लग रहा था पर चेतना को इससे कोई फरक नहीं पड़ता था क्योंकि उसकी नजर केवल उसके लंड पर थी। संजय के जिस्म पर सवार होते हुए चेतना ने अपनी ब्रा, साड़ी और घाघरा उतार दिया और मादरजात नंगी हो गई..

चेतना के मादक गदराए जिस्म को देखकर संजय मंत्रमुग्ध हो गया और उसका लंड ठुमकने लगा.. संजय के फुँकारते लंड को देखकर चेतना से ओर रहा न गया.. अपनी दोनों जांघों को फैलाते हुए वो संजय के मुख पर अपनी चूत के होंठों को रखकर बैठ गई और झुककर उसके लंड को फिरसे मुंह में लेकर चूसने लगी.. एक दो मिनट तक उसके लंड को मुंह के अंदर पीपरमिंट की तरह घुमाने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और नीचे हो रही चूत चटाई का आनंद लेने लगी.. असह्य उत्तेजना से बेकाबू होकर वो अपनी चूत को संजय के मुंह के ऊपर दबा देती.. संजय का दम घुटने लगा.. चेतना की इस आक्रामकता ने उसे झकझोर दिया..

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चेतना की क्लिटोरिस को अपने दोनों होंठों के बीच दबाकर चूसते हुए संजय, चूत के कामरस को भी चाट रहा था.. चेतना अब संजय के लंड को मन भरकर निहारने लगी.. लंड की लंबाई, परिघ.. मोटाई.. सुपाड़े का रंग.. खून के भरावे से फुली हुई नसें.. खूंखार था उसका लंड.. चेतना की मुठ्ठी में बस आधा लंड ही समाता था.. उस पर से उसने लंड की लंबाई का अंदाजा लगा लिया.. मस्त और अद्भुत!!

चेतना ने अब संजय के अंडकोशों को पकड़कर दबाते हुए लंड के मूल से लेकर टोपे तक चाटकर गीला कर दिया.. संजय दो पल के लिए चूत चाटना छोड़कर इस चुसाई का मज़ा लेते हुए पागल सा होने लगा.. अद्भुत भारी और बड़े बड़े.. सांड जैसे अंडकोश.. पुष्ट वीर्य से भरपूर.. !! चेतना ने लंड को पकड़कर ऐसे खींचा की संजय बिस्तर से एक फुट ऊपर उछल पड़ा.. चेतना को जो चाहिए था वो मिल गया.. झांटों से भरपूर आँड उसके मुंह के बिल्कुल सामने थे जिसे उसने गप्प से मुंह में भर लिया.. ऐसे चूसने लगी जैसे गोलगप्पा मुंह में डाला हो..

चेतना की इस अदा का दीवाना हो गया संजय!! इस कामुक मुख मैथुन का भरपूर मज़ा उठाते हुए वो सिसकने लगा..

संजय: "आह्ह चेतना.. यू आर मेकिंग मी क्रेजी.. आई लव यू.. ओह्ह.. यू आर सकीन्ग लाइक अ बीच.. ओह यस.. !!"

चेतना ओर उत्तेजित हॉक दोगुने जोश के साथ संजय के लंड और आँड को चाटने लगी.. अपने मुंह से वैक्यूम क्लीनर की तरह वो लंड को चूस रही थी.. "ओह्ह नो.. ओह नो.. !!" कहते हुए संजय उछला और उसके साथ ही लंड ने पिचकारी छोड़ दी.. चेतना के सर के ऊपर बालों तक वीर्य की धार जाके लगी.. उसके सारे बाल वीर्य से मिश्रित होकर चिपचिपे हो गए.. मुठ्ठी भी वीर्य से भर गई.. गजब का फ़्लो था संजय के लंड का.. बड़े ही अहोभाव सो वो ठुमकते हुए लंड की तड़प को देख रही थी.. वो सोचने लगी.. ऐसा तो क्या होता होगा वीर्य स्त्राव के वक्त जो लंड इतना ठुमकता होगा??

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अब चेतना की चूत में गजब की चुनचुनी हो रही थी.. जो अब किसी भी हाल में वह सह नहीं पा रही थी.. उसने अपनी मांसल जांघों के बीच संजय के सर को दबा दिया.. संजय की मुछ पर अपनी क्लिटोरिस को रगड़ते हुए वो बेतहाशा उछल रही थी.. संजय अपनी जीभ से क्लिटोरिस को उकसाते हुए दबा रहा था.. थोड़ी ही देर में चेतना ने अपनी चूत को उठाके पटक दिया और अपने अमृत की धारा सनज के मुंह में छोड़ दी.. हवस की आंधी थम जाने से संजय ने चैन की सांस ली.. अब चेतना की जांघों से उसे मुक्ति मिलने की आशा थी.. चेतना ने भी अपना शरीर ढीला छोड़ दिया.. और संजय के शरीर पर गिर गई.. बिना योनि प्रवेश के दोनों झड़ गए थे..

दोनों एक दूसरे के जिस्मों को सहलाते हुए थकान उतारने लगे.. ऑर्गैज़म की थकान भी कितनी मीठी लगती है!! चेतना संजय के हारे हुए सैनिक जैसे ढल चुके लंड पर हाथ पसार रही थी.. उसके स्तन संजय की छाती से दबकर चपटे हो गए.. संजय उसके नग्न कूल्हों को सहला रहा था और उसकी गांड की लकीर में उँगलियाँ फेरते हुए छिद्र को गुदगुदा रहा था.. चेतना को अंदाजा लग गया की उसके पीछे के छेद को क्यों टटोला जा रहा था.. उसने तुरंत कमर हिलाकर संजय की उंगलियों से अपने छेद को दूर हटा दिया.. संजय ने गांड को छोड़ कर उसकी चूत पर ध्यान केंद्रित किया.. चूत पर स्पर्श होते ही चेतना के जिस्म में नए सिरे से चुदवाने की भूख जागृत हो गई.. तो दूसरी तरफ चेतना के जिस्म की गर्मी से संजय का लंड भी अंगड़ाई लेकर जाग गया..

लंड को हरकत करता देख चेतना की आँखों में चमक आ गई.. अपने कामुक हाथों में उस अर्ध-जागृत यंग को लेकर उसने दबाकर देखा.. अभी तक लंड की सख्ती चूत में घुसाने लायक नहीं हुई थी.. पर संजय अब फिर से चेतना की चूत पर पहुंचकर फिर से चाटने लगा था.. दोनों 69 की पज़िशन में सेट हो गए थे.. चेतना अपनी उंगलियों से लंड की चमड़ी को पीछे करने लगी.. जैसे बादल छटते ही पूर्णिमा का सुंदर चाँद बाहर निकलता है.. वैसे ही चमड़ी पीछे सरकाते ही सुंदर सुपाड़ा बाहर निकला.. उसे देखते ही चेतना को बेहद प्यार आया.. अपनी चिपचिपी चूत को वो संजय के मुंह पर रगड़ रही थी..

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संजय का लंड अब तैयार होकर यहाँ वहाँ झूलने लगा था.. उस मस्त लोड़े को चूम कर चेतना चूसने लगी.. उसकी उत्तेजना को परखकर संजय ने चाटते हुए अपनी एक उंगली अंदर घुसेड़ दी..

चेतना: "बहोत मज़ा आ रहा है.. ओह्ह संजय.. फक यार.. आह्ह"

चूत में उंगली अंदर बाहर होते ही चेतना एकदम मस्त हो गई.. संजय जान चुका था की लोहा अब गरम हो चुका था.. उसने अपनी दूसरी उंगली चेतना की गांड के छेद पर दबा दी.. चूत के रस से भीगी हुई उंगली ने गांड के छेद को भिगोकर रेशम जैसा मुलायम कर दिया.. इस बार चेतना ने कोई विरोध नहीं किया.. क्योंकि वह खुद भी बेहद उत्तेजित थी.. संजय की उंगली गांड के अंदर पूरी घुस चुकी होने के बावजूद उसे दर्द का एहसास नहीं हो रहा था.. या फिर अगर हो भी रहा था तो वो दर्द के चूत में उंगली घुसने से मिल रहे आनंद के तले दबकर रह गया था

संजय ने बड़ी मुश्किल से अपने वीर्य को स्खलित होने से रोक रखा था.. जिस तरह चेतना उसके सुपाड़े से खेल रही थी उसका लंड पिचकारी मारने के लिए उतावला हुए जा रहा था.. चेतना अब पूर्ण रूप से उत्तेजित होकर बेकाबू सी होने लगी थी.. काफी समय से बिना लंड के रहने की वजह से उसकी ये दशा हो गई थी.. उसकी आक्रामकता का एक कारण यह भी था की वह इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहती थी.. फिर ये जाम-ए-मोहब्बत मिले ना मिले!! वह आज संजय के लंड से तृप्त होना चाहती थी..

संजय चेतना के दोनों मस्त बबलों को मसल रहा था.. चेतना भी अब पूरी तरह संजय के लंड पर टूट पड़ी.. संजय को आश्चर्य हो रहा था की ७ इंच लंबा लंड वह कितनी आसानी से निगल रही थी..

"ओह्ह चेतना.. बस भी कर अब.. कितना चुसेगी? तेरा तों मन ही नहीं भरता.. पता है तुझे.. कितना कंट्रोल करना पड़ रहा है!! अभी निकल जाता मेरा.. आह्ह.. "

चेतना अब पलंग पर लेट गई.. बिना चूत की चुदाई के अगर संजय का लंड झड़ गया तो वो प्यासी ही रह जाएगी.. संजय के लंड के स्वागत के लिए उसने अपनी दोनों टांगें चौड़ी कर दी.. संजय चेतना की छाती पर सवार हो गया.. उसने चेतना के दोनों स्तनों को दबाकर एक किया और बीच में अपना लंड घुसेड़कर चोदने लगा.. चेतना को अपने दोनों स्तनों के बीच से आगे पीछे होता हुआ संजय का विकराल सुपाड़ा नजर या रहा था.. उसने अपनी गर्दन थोड़ी सी ऊपर की ताकि वो आगे पीछे होते हुए सुपाड़े को आसानी से चाट सकें.. लंड के इर्दगिर्द चरबीदार स्तनों का दबाव.. और टोपे पर चेतना के कामुक होंठ और जीभ के स्पर्श से ही संजय को ऐसा महसूस होने लगा की वो झड़ जाएगा.. वह तुरंत उसकी छाती से उतर गया..

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अब उसने चेतना की चौड़ी टांगों को अपने हाथों से और चौड़ा किया.. और अपने कंधों पर ले लिया.. आहाहाहाहा.. क्या सीन था!! केले के पेड़ के तने जैसी गोरी चिकनी मस्त जांघें.. और उन जांघों के बीच लसलसित बुर की फांक.. मुलायम जांघों पर हाथ फेरते ही.. प्रेमिला और वैशाली दोनों को भूल गया संजय.. उसने अपना सुपाड़ा चेतना की चुत के दरवाजे पर रखा.. गोली छूटने के बाद बंदूक की नली जितनी गरम होती है.. उतना ही गरम महसूस हुआ उस सुपाड़े का स्पर्श चेतना को..

संजय ने अब चेतना को तड़पाना शुरू कर दिया.. अपने टोपे को वो चेतना की क्लिटोरिस पर रगड़ते हुए उसे चूमने लगा.. संजय के इस दोहरे हमले से चेतना के होश उड़ गए.. संजय की लाल आँखें उसे डरा रही थी.. बेकाबू सांड जैसा लग रहा था संजय.. !! चेतना के दोनों हाथों को बिस्तर पर दबाकर लगभग ५ मिनट तक वह उसके होंठ चूसता रहा.. उस दौरान संजय का लंड चेतना की बुर की लकीर पर ऊपर से नीचे तक घिस रही थी.. चेतना के गाल, गर्दन और होंठों को काटते हुए तहस नहस कर दिया उसे संजय ने..

इतनी आक्रामकता के लिए चेतना तैयार नहीं थी.. हालांकि उसकी जिस्म की आग ऐसे रौंदे जाने से बेहद उत्तेजित था.. संजय के हमले के जवाब में चेतना ने भी अपने नाखून इतनी जोर से संजय की पीठ पर गाड़ दिए की उसकी पीठ पर खून के निशान बन गए..

गुस्साए संजय ने खींचकर एक तमाचा रसीद कर दिया चेतना के गोरे गालों पर "मादरचोद.. नाखून मारती है.. !! तेरी माँ को चोदू" कहते ही संजय ने चेतना को बालों से पकड़कर खड़ा कर दिया.. संजय के तेज-तर्रार चाटे से चेतना के कानों में सीटी बजने लगी.. चक्कर आ गया उसे.. दोनों वासना में इतने बेकाबू होकर क्या कर रहे थे उन्हे खुद पता नहीं था.. चेतना की आँखों में आँसू चमकने लगे.. उसने भी गुस्से में आकर संजय के लंड को पकड़कर इतनी जोर से खींचा की वह अपना संतुलन खो बैठा.. संजय को जरा भी अंदाजा नहीं था की चेतना जवाबी हमला करेगी.. उसका लंड दर्द करने लगा.. गुस्से में आकर उसने एक साथ दो उँगलियाँ चेतना की गांड में डाल दी..

चेतना ने अपनी चीख को बड़े ही मुश्किल से रोक रखा.. वह मजबूर थी.. ऐसे अनजाने गेस्टहाउस में उसकी चीख सुनकर अगर लोग इकठ्ठा हो गए तो उसकी ही बदनामी होती.. लेकिन जिस्म का दर्द ऐसी किसी भी मजबूरी के परे होता है.. वह थोड़ी समझता है?? दबाने के बावजूद हल्की सी चीख तो निकल ही गई.. संजय अब चेतना के स्तनों को ऐसे बेरहमी से मसल रहा था जैसे उसमें जान ही न हो..

चेतना की नजर संजय के सख्त खड़े लंड पर गई.. देखते ही उसकी चूत में चुनचुनी होने लगी.. कितने दिनों से उसकी भूखी चूत.. चुदने के लिए बेताब होकर आँसू बहा रही थी.. संजय ने चेतना को पकड़कर उल्टा कर दिया.. उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़कर ऊपर कर दिया.. चेतना अब कुत्तिया की तरह चार पैरों पर हो गई.. संजय ने चेतना के गोरे चूतड़ों पर धड़ाधड़ तमाचे लगाकर उन्हे लाल कर दिया.. चूत के छेद पर सुपाड़ा टीकाकार उसने एक जबरदस्त धक्का लगाया.. चेतना जोर से कराही.. उसकी चूत की दीवारें फाड़कर संजय का आधा लंड अंदर घुस गया.. दूसरा दमदार धक्का लगते ही चेतना की चूत की किल्ला फतेह हो गया..

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भख भख धक्के लगाते हुए संजय ने अपनी लय प्राप्त कर ली.. दोनों हाथों से मस्त कूल्हों को चौड़ा कर गांड के छेद में उंगली करते हुए वह बेरहमी से चोदने लगा.. चेतना भी अब बेहद उत्तेजित हो चुकी थी.. लंड के प्रत्येक धक्के से उसे इतना मज़ा आ रहा था की गांड के दर्द को उसने नजरअंदाज कर दिया.. इस तरह चुदवाने में चेतना को बहोत मज़ा आ रहा था.. संजय भी चेतना की टाइट चूत को बड़ी मस्ती से चोद रहा था.. उसकी जांघें चेतना के भव्य कूल्हों से टकराकर एक विशिष्ट प्रकार की ध्वनि उत्पन्न कर रही थी.. पूरा कमरा फ़च फ़च की आवाज से गूंज रहा था..

चेतना ने अपनी चूत की दीवारों को भींच लिया.. लंड पर अधिक दबाव महसूस होते ही संजय को धक्के लगाने में मज़ा आ गया.. करीब १० मिनट तक धक्कों का दौर यूँही चलता रहा.. चेतना की महीनों पुरानी भूख आज मिट रही थी.. एक हल्की सी कराह के साथ संजय के लंड ने इस्तीफा दे दिया.. उसके गरम वीर्य की बौछार से चेतना की बंजर चूत में बहार सी छा गई.. सुखी धरती पर बारिश की प्रथम बूंद के साथ जैसे धरती तृप्त हो जाती है वैसे ही चेतना तृप्त हो गई..

दो मिनट तक संजय का ठुमकता लंड चूत के अंदर पानी छोड़ता रहा और फिर दोनों बेड पर हांफते हुए गिर गए.. संजय का एक हाथ चेतना के मस्त उरोज पर था.. हल्के हाथों से वह उसका मर्दन कर रहा था.. करीब पंद्रह मिनट तक यूँही निष्क्रिय पड़े रहने के बाद दोनों सामान्य हो गए.. चेतना ने संजय के गाल पर किस किया

चेतना: "संजय, आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूँगी.. दोबारा कब मिलेंगे ये तो बता नहीं सकती.. पर हाँ.. तू अपना मोबाइल नंबर मुझे दे देना.. मौका मिलते ही मैं तुझे कॉल करूंगी.. "

संजय ने चेतना को बाहों में भरकर एक झकझोर देने वाला आलिंगन दिया.. फिर वह उठ खड़ा हुआ और बाथरूम में चला गया.. चेतना भी उसके पीछे बाथरूम में गई और कमोड पर बैठकर मूतते हुए वो पेशाब कर रहे संजय के लंड को देखती रही.. देखकर ही उसे इतना प्यार आया की उसने मूत रहे लंड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया.. और उस मूत्र को संजय के लंड और आँड़ों पर मल दिया.. चेतना की मुठ्ठी से अपना लंड छुड़ाकर संजय ने अपनी पेशाब की धार का निशाना उसके स्तनों पर लगाया.. गरम गरम पेशाब से चेतना के दोनों स्तन भीग गए.. वह सारा मूत्र स्तनों से गुजरकर नाभि पर होते हुए चेतना की क्लिटोरिस से टपक कर कमोड में गिरने लगा..

लंड की चमड़ी को पीछे कर अपने सुपाड़े को दबाते हुए संजय अटक अटक के पेशाब कर रहा था.. चेतना का हाथ पकड़कर उसने खड़ा किया और उल्टा मोड दिया.. हल्का सा धक्का देने पर चेतना नीचे झुक गई.. अपने मूत रहे लंड को संजय ने चेतना की गीली चूत में आधा घुसा दिया और चूत में ही मूतने लगा.. इस विचित्र और विकृत हरकत से चेतना भी मस्त हो गई.. मूत्र की आखिरी गरम पिचकारी अपनी बच्चेदानी पर महसूस होते ही चेतना को इतना मज़ा आया की वह सिसकने लगी..

अपने अर्ध जागृत लंड को चूत से निकालकर उसने गांड के छेद पर रगड़ना शुरू कर दिया.. इस हरकत से चेतना पागल सी हो गई.. अपना हाथ पीछे ले जाकर उसने खुद ही गांड के छेद को थोड़ा सा चौड़ा किया.. गांड का खुला हुआ छेद लंड को अंदर आने का आमंत्रण दे रहा था.. संजय ने छेद पर सुपाड़ा दबाया.. लेकिन उस सँकरे छेद में आधा मुरझाया लंड घुस नहीं पाया.. संजय को अपने लंड पर गुस्सा आया.. जब औरत सामने से गांड मरवाने के लिए उत्सुक हो तब लंड साथ न दे तब गुस्सा आना स्वाभाविक है..

चेतना: "मज़ा आ रहा है संजय.. थोड़ा सा और अंदर डाल.. मैंने आज तक पीछे नहीं करवाया है.. पता नहीं आज पीछे क्यों खुजली हो रही है!!"

संजय लाचार था.. जब उसका लंड तैयार था तब चेतना तैयार नहीं थी.. अब जब वह सामने से तैयार थी तब लंड साथ देने से इनकार कर रहा था.. बड़ी ही विडंबना थी..

संजय: "नहीं घुस रहा है यार.. तेरा छेद बहोत टाइट है.. दबाता हूँ तो मुड़ जाता है मेरा"

चेतना: "अरे यार.. एन मौके पर ही काम नहीं कर रहा तेरा हथियार.. एक काम कर.. उंगली डाल दे.. खुजली हो रही है मीठी सी"

लंड को बाहर खींचकर संजय ने अपना अंगूठा डाल दिया और रगड़ने लगा

चेतना: "आह्ह.. आह्ह.. मज़ा आ रहा है यार.. मस्त खुजा रहा है.. देख ना अगर तेरा लंड खड़ा हो तो.. उसमें ज्यादा मज़ा आएगा मुझे"

दो बार डिस्चार्ज हो चुका लंड खड़ा होने का नाम ही नहीं ले रहा था.. एक घंटे में दो बार स्खलित होने के बाद लंड का न उठना स्वाभाविक था

चेतना: "संजय, प्लीज मेरी एक इच्छा पूरी करेगा?"

संजय: "हाँ बोल ना डार्लिंग"

चेतना: "पीछे के छेद पर एक किस कर दे.. मुझे वहाँ पप्पी करवानी है"

संजय को बड़ी ही घिन आ रही थी पर वो चेतना जैसे मस्त माल को निराश करना नहीं चाहता था.. वैसे भी वो प्रेमिला के नखरों से तंग आ चुका था.. और मोनिका कुछ भी करने के पैसे लेती थी..

संजय ने बिना कुछ कहे झुककर चेतना की गांड पर हल्के से किस किया.. "कर दिया.. अब खुश ??"

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चेतना: "ऐसे नहीं यार.. तूने कब किस की मुझे तो पता भी नहीं चला.. ठीक से कर.. होंठों पर जैसे किस करता है तू बिल्कुल वैसे ही"

संजय सोच रहा था "क्या मुसीबत है यार!!! गांड पर लिप-किस ??" गुस्सा तो बहोत आया उसे पर फिर भी उसने कूल्हों को चौड़ा कर बादामी रंग के उस छेद पर अपने होंठ रख दिए

चेतना: "हाँ हाँ.. बिल्कुल वैसे ही.. ईशशशश.. ओह संजय.. आई लव यू यार.. बरसों पुरानी इच्छा पूरी कर दी तूने.. आह्ह.. अपनी जीभ थोड़ी सी अंदर डाल.. ऊँहह.. ओह गॉड..यस.. संजु मेरी जान.. " संजय ने अपनी नापसंद को दरकिनार करके अपनी जीभ अंदर डाली.. खेल की शुरुआत भले ही संजय ने की थी पर अब अंत का संचालन चेतना ही कर रही थी.. पालतू कुत्ते की तरह वो चेतना के हर आदेश को मान रहा था.. एक चूत के लिए आदमी को क्या क्या करना पड़ता है !!

उत्तेजित होकर चेतना मन ही मन में सोच रही थी "चाट मेरी गांड भड़वे.. तूने मुझ पर हाथ उठाया था ना!! उसी का बदला है ये.. अब चाट मेरी गांड साले"

संजय परेशान होकर चाट रहा था.. उससे बदबू बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. चेतना की गांड पर हो रही इस हरकत का असर उसकी चूत पर पड़ा.. अंदर से कामरस बहते हुए बाहर रिसने लगा.. पूरे बाथरूम में एक मस्की सी गंध फैल गई.. इस गंध को सूंघते ही संजय का लंड ताव में आने लगा.. झुककर गांड चटवा रही चेतना ने नीचे से संजय का उठा हुआ लंड देखा और घबरा गई "अरे बाप रे.. अगर अभी इस लंड को नरम नहीं किया तो गांड में घुसकर उसे फ्लावर बना देगा.. बाप रे.. इतना बड़ा अंदर जाएगा तो मेरी गांड फट जाएगी.. ईसे बचाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा"

चेतना तुरंत घूम गई.. "बस बस संजय.. अब मुझे तेरा लंड चूसने दे.. यार मज़ा आ गया आज तो.. तेरे जैसा मर्द मैंने आजतक नहीं देखा.. " कहते हुए वह घुटनों के बल बैठ गई.. और संजय का डंडा मुंह में लेकर चूसने लगी.. दो बार स्खलित हो चुके लंड को फिर से झड़ाने में चेतना को समय तो लगा.. पर जब गांड पर रॉकेट तना हुआ हो तब कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता.. वह चूसते चूसते थक गई.. उसके गाल और जबड़े दर्द करने लगे.. पर फिर भी वह चूसती ही रही.. आखिर उसकी मेहनत रंग लाई.. और संजय के लंड का वीर्यस्त्राव हो ही गया.. जब तक वीर्य की सारी बूंदें उसने चाट न ली.. तब तक लंड मुंह से बाहर नहीं निकाला चेतना ने.. संजय उसे बस देखता ही रह गया.. अब भी चेतना लंड को चूसे जा रही थी.. संजय की गांड फट गई "कहीं ये चेतना मेरे लंड को एक बार और तैयार करने के फिराक में तो नहीं है?" कांप उठा संजय.. तीन तीन बार झड़ने के बाद उसमें और एक बार करने की ताकत नहीं बची थी..

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चेतना ने तब तक चूसना जारी रखा जब तक की संजय का लंड पूरी तरह से मुरझा नहीं गया.. पूरी तरह से तसल्ली होने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और निकालते वक्त सुपाड़े को एक बार ओर चाटकर ये चेक भी कर लिया की कहीं उसमें अब भी जान बच तो नहीं गई थी!! निश्चिंत होने के बाद उसने लंड को बाइज्जत बरी किया

संजय मन में सोच रहा था "लंड बच गया मेरा" चेतना सोच रही थी "गांड बची सो लाखों पाएं"

दोनों ने कपड़े पहने और अपना हुलिया ठीकठाक किया.. औ गेस्टहाउस से बाहर निकले.. सड़क पर आकर दोनों ने रिक्शा ली और चेतना की घर के तरफ निकले.. रास्ते में दोनों ने एक दूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए.. और दूसरी बार मिलने का वादा भी किया

चेतना: "मेरा घर अब नजदीक ही है.. मैं यहीं उतर जाती हूँ.. वरना कोई देख लेगा.. "

संजय: "एक काम करते है.. मैं यहाँ उतर जाता हूँ.. तुम ऑटो लेकर घर चली जाना.. वैसे भी मुझे बाजार में थोड़ा काम है.. वो निपटाकर गेस्टहाउस चला जाऊंगा"

चेतना: "तेरा ससुराल यहीं शहर में ही है फिर क्यों गेस्टहाउस में रहता है तू?"


संजय: "लंबी कहानी है.. कभी इत्मीनान से बात करेंगे.. अरे भैया, ऑटो यहीं रोक दीजिए" संजय ने उतरकर पैसे चुकाये और चेतना के गाल पर हाथ सहलाकर चल दिया.. चेतना मुस्कुराकर उसे जाते हुए देखती रही.. अपने पर्स से छोटा सा मिरर निकालकर अपना चेहरा चेक किया उसने.. कहीं कोई निशानी तो नहीं रह गई.. !! तसल्ली करने के बाद वह अपने घर के बाहर उतर गई..
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वैशाली कविता के घर पहुँच गई थी... और संजय नुक्कड़ की टपरी पर खड़ा होकर सिगरेट फूँक रहा था

शीला के घर से निकालने के बाद जैसे ही चेतना टपरी के करीब से गुजरी.. तब उसने संजय को देखा.. वो ओर तेजी से चलते हुए आगे निकल गई.. संजय भी उसके पीछे पीछे चलने लगा था.. सीटी बस-स्टेंड पर खड़े खड़े चेतना १२४ नंबर की बस के इंतज़ार में थी..

बस आते ही वो अंदर बैठ गई.. संजय भी बस में चढ़ गया और चेतना की बगल की सीट पर बैठ गया.. चेतना को बड़ा आश्चर्या हुआ.. संजय का कंधा उसके कंधे से छूते ही चेतना के भूखे शरीर में करंट सा दौड़ गया.. वो कुछ बोली नहीं.. कंडक्टर के आते ही संजय ने दोनों की टिकट ले ली..

चेतना: "आपने मेरा टिकट क्यों लिया? मैं तू आपको जानती तक नहीं..!!"

संजय: "पर मैं तो आपको जानता हूँ.. रोज सुबह देखता हूँ आपको जब आप दूध लेने जाती हो"

चेतना: "मेरे जाते वक्त कौन मुझे देखता है उससे मुझे क्या लेना देना?"

संजय ने जवाब नहीं दिया.. दोनों चुपचाप बैठे रहे.. तभी चेतना का स्टेंड आ गया

संजय: "आपको एतराज न हो तो गेस्टहाउस पर मेरे कमरे पर चलिए.. थोड़ी देर बैठ कर बातें करेंगे"

चेतना: "तुम पागल हो क्या? मेरे घर के एरिया में अगर मुझे कोई गेस्टहाउस में जाते हुए देखेगा तो कोई क्या सोचेगा?"

संजय समझ गया.. चेतना को आने में दिक्कत नहीं थी.. उसे डर था तो किसी के देख लेने का

संजय ने हाथ दिखा कर एक रिक्शा को खड़ा रखा..

संजय: "आपको गेस्टहाउस में आने से ही दिक्कत है ना !! अगर में आपको किसी ओर जगह ले चलू तो.. ??"

चेतना शर्म से पानी पानी हो गई.. यहाँ बाहर जितनी देर वो खड़ी रहती.. किसी के देख लेने का जोखिम उतना ही बढ़ जाता.. बिना कुछ सोचे चेतना रिक्शा में बैठ गई.. उसका दिल धकधक कर रहा था..

संजय ने रिक्शा वाले से कुछ कहा.. और रिक्शा चल पड़ी.. साथ ही साथ चेतना का दिमाग भी चलने लगा

चेतना शीला को फोन करना चाहती थी पर संजय के साथ होने के कारण यह मुमकिन न था.. बारिश के कारण टूटे हुए रास्तों पर रिक्शा उछल रही थी.. और चेतना का कंधा और जांघ संजय के शरीर के साथ रगड़ रहे थे.. चेतना सोच रही थी.. ३५ दिन गुजर चुके थे.. और उसकी चुत को लंड नसीब नहीं हुआ था.. आखिर कोई कब तक बर्दाश्त करे? संजय के हर स्पर्श के साथ चेतना की चुत में सुरसुरी हो रही थी

रिक्शा एक गेस्टहाउस के पास जाकर रुकी.. यह एरिया चेतना के घर से काफी दूर था.. संजय के पीछे पीछे चेतना तेजी से अंदर घुस गई.. संजय रीसेप्शन पर बात कर रहा था और चेतना का दिल तेजी से धडक रहा था। थोड़ी देर में वेटर चाबी लेकर आया और एक कमरा खोलकर चला गया.. चेतना अंदर जाकर बिस्तर पर बैठी।

रजिस्ट्रेशन निपटाकर संजय कमरे के अंदर आया और दरवाजा बंद कर दिया। उसने पूछा "क्या नाम है आपका?"

"चेतना .. "

"मस्त नाम है आपका.. मेरा नाम संजय है.. वो तो आपको मेरी सास ने आपको बता ही दिया होगा"

"नहीं नहीं.. मैं तो उन्हे जानती नहीं हूँ.. मैं तो सिलाई का काम करती हूँ.. उनका ब्लाउस देने गई थी" चेतना ने खुद को और शीला को बचाने के लिए झूठ बोला.. संजय को भी यह सुनकर राहत हुई.. उसे डर था की कहीं इसने शीला को उसके और प्रेमिला के बारे में बता न दिया हो

चेतना के स्तनों को ललचाई नजर से देखते हुए संजय के अंदर का पुरुष और खामोश न रह पाया.. ऐसे मौकों पर समय हमेशा कम होता है.. जितना जल्दी मुद्दे पर आया जाएँ.. उतना समय ज्यादा मिलता है काम निपटाने के लिए.. पर कभी कभी जल्दी करने में बात बिगड़ भी जाती है.. और चेतना के पास कितना समय था ये वो जानता नहीं था

चेतना भी घबराहट के मारे सोच रही थी.. यहाँ न आई होती तो अच्छा होता.. किसी ने देख लिया होगा तो? अगर मेरे पति को पता चल गया तो? अगर शीला या वैशाली को पता चल गया तो? इन संभावनाओ को सोचकर ही वो कांपने लगी

एक तरफ डर था.. तो दूसरी तरफ जिस्म की भूख थी.. कुछ तय नहीं कर पा रही थी वो.. एक विचार ये भी आया की ये अच्छा मौका था संजय के बारे में जानकारी हासिल करने का.. उसने शीला को वादा जो किया था.. अगर शीला को पता चल भी गया तो वो ये बोल देगी की संजय के बारे में जानने के लिए उसे उसके साथ गेस्टहाउस आना पड़ा.. भूखी चुत चेतना को वकील की तरह बहस करना सीखा रही थी

चेतना ने अब तय कर लिया था.. जो भी होगा देखा जाएगा.. वैसे भी बंद कमरे के अंदर क्या हो रहा है वो किसको पता चलेगा? पर ये कमीना कुछ कर क्यों नहीं रहा?? बैठे-बैठे सिगरेट चूस रहा है.. जो चूसना चाहिए वो तो चूस नहीं रहा.. चेतना के दिमाग में अनगिनत विचार चल रहे थे

फूँक फूँक कर कदम रख रहा संजय... बुझी हुई सिगरेट को एश-ट्रे में डालकर बोला "मैं स्मोक करू तो आपको दिक्कत तो नहीं है ना!!"

चेतना को गुस्सा आया.. साला सिगरेट फूँक लेने के बाद पूछ रहा है.. उसने कोई जवाब नहीं दिया

संजय ने अपने पत्ते बिछाने शुरू कीये "चेतना, जब भी आपको सुबह सुबह देखता हूँ तब मुझे कुछ कुछ होने लगता है.. आपके अंदर कोई ऐसा आकर्षण है जो मुझे आपके करीब खींचता जा रहा है.. अपने मन को कंट्रोल करने की बहोत कोशिश करता हूँ पर पूरा दिन आप ही मेरे दिलों दिमाग पर छाई रहती हो.. आज तक किसी लड़की या औरत के लिए मुझे ऐसा कभी नहीं हुआ.. फिर आपको देखकर ही ऐसा क्यों हुआ होगा??"

अपनी तारीफ सुनकर किसी भी स्त्री के दिमाग को वश में किया जा सकता है.. ऐसा संजय का मानना था.. तारीफ सुनकर चेतना शर्म से लाल हो गई.. अपने जिस्म को लुटाने के लिए बेताब हो गई.. "ऐसा तो क्या देख लिया आपने मुझ में ? और आपके साथ तो वो सुंदर लड़की हमेशा रहती ही है ना ?"

संजय उठकर चेतना के पास बैठ गया और उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया.. चेतना इस स्पर्श से सिहर उठी.. आगे जो होने वाला था उसकी अपेक्षा में उसका शरीर डोलने लगा.. उसकी हवस अंगड़ाई लेकर जाग गई.. बिना फोरप्ले के.. केवल स्पर्श से ही चेतना की गीली हो गई

संजय चेतना के गालों के सहलाने लगा और उसके साथ ही चेतना ने अपना पल्लू गिरा दिया.. उसकी बड़ी छातियाँ हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी.. ब्लाउस में कैद उसका मदमस्त जोबन, वी-नेक गले से बाहर झाँक रहा था.. दो स्तनों के बीच की कातिल खाई को देखकर संजय का लंड झटके से खड़ा हो गया..

संजय ने फिर से सिगरेट जलाई.. और उस सिगरेट को चेतना के होंठों पर रखकर कहा "एक दम खींचकर देखो.. मज़ा आ जाएगा" चेतना को सिगरेट की गंध से बड़ी ही नफरत थी.. और सिगरेट कैसे फूंकते है उसका उसे पता न था.. उसने अपना मुंह फेर लिया..

संजय चेतना की गर्दन के पीछे के हिस्से को सहलाने लगा.. इस हरकत से चेतना की आँखें बंद हो गई.. संजय के गरम हाथ का स्पर्श उस उकसा रहा था.. संजय ने सिगरेट चेतना के हाथों में थमा दी और अपनी पेंट की चैन खोलने लगा.. सिगरेट पकड़ना बड़ा ही अटपटा सा लग रहा था चेतना को.. पर संजय का लंड देखा तो वो सब कुछ भूल ही गई.. लंड की गंध और सिगरेट की बू का संमिश्रण ने चेतना के लिए वियाग्रा का काम किया.. उसकी चूत से भांप निकालने लगी थी.. संजय को खड़े लंड को देखकर उसके स्तन सख्त हो गए.. जैसे अभी ब्लाउस फाड़कर बाहर निकाल आएंगे.. अपने लंड को चेतना के उभारों पर और चेहरे पर रगड़ते हुए संजय ने एक हाथ उसके स्तन पर रख दिया.. उभारों पर गरम सुपाड़े का स्पर्श होते ही चेतना बेकाबू होने लगी..

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शर्म की सारी सीमाएं तोड़कर चेतना ने संजय का लंड पकड़ लिया.. चेतना की मुठ्ठी में लंड दबते ही संजय जैसे उसका ग़ुलाम बन गया.. और चेतना मस्त हो गई.. लंड की तलाश में ही तो वो शीला के घर आई थी.. वह अब खड़ी हुई और अपने ब्लाउस के सारे हुक खोलकर संजय के होश उड़ाने के लिए तैयार हो गई.. ब्रा निकालकर वो संजय के ऊपर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी..

संजय के जिस्म को हर जगह पागलों की तरह चूमते हुए उसने उसका शर्ट और बनियान उतरवा दिए.. उतना ही नहीं.. पेंट की क्लिप खोलकर, अंडरवेर के साथ वो भी उतार दिया.. संजय अब पूरा नंगा था.. उसका पूरा शरीर बालों से ढंका हुआ था.. सारा संचालन अपने हाथ में ही रखना चाह रही चेतना घुटनों के बल बैठ गई.. संजय के फुँकारते लंड को चूम लिया और फिर आँखें बंद करके पूरा लंड मुंह में लिया और चूसने लगी..

बेबस संजय.. लाचार होकर चेतना को अपना लंड चूसते देखता ही रहा.. दोनों हाथों से चेतना का सर पकड़कर वोह धक्के लगाते हुए.. उसके मुंह को ही चूत समझकर चोदने लगा.. जिस तरह चेतना बिना किसी विरोध के चुदवाने के लिए आसानी से तैयार हो गई ये देखकर संजय को आश्चर्य हुआ। वरना औरतों को लंड मुंह में लेने के लिए कितनी मिन्नते करनी पड़ती है वो संजय जानता था.. प्रेमिला को तो नया ड्रेस खरीद कर देने का वादा करो तभी मुंह में लेती थी.. और वो भी सिर्फ थोड़ी देर के लिए..

चेतना की हवस देखकर संजय को मज़ा ही आ गया.. वह उसके मुंह में धनाधन धक्के लगाता जा रहा था.. चेतना भी संजय के कड़े लंड को चूसकर धन्य हो गई थी.. उसने संजय को धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.. बालों से ढंका हुआ संजय डरावने भालू जैसा लग रहा था पर चेतना को इससे कोई फरक नहीं पड़ता था क्योंकि उसकी नजर केवल उसके लंड पर थी। संजय के जिस्म पर सवार होते हुए चेतना ने अपनी ब्रा, साड़ी और घाघरा उतार दिया और मादरजात नंगी हो गई..

चेतना के मादक गदराए जिस्म को देखकर संजय मंत्रमुग्ध हो गया और उसका लंड ठुमकने लगा.. संजय के फुँकारते लंड को देखकर चेतना से ओर रहा न गया.. अपनी दोनों जांघों को फैलाते हुए वो संजय के मुख पर अपनी चूत के होंठों को रखकर बैठ गई और झुककर उसके लंड को फिरसे मुंह में लेकर चूसने लगी.. एक दो मिनट तक उसके लंड को मुंह के अंदर पीपरमिंट की तरह घुमाने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और नीचे हो रही चूत चटाई का आनंद लेने लगी.. असह्य उत्तेजना से बेकाबू होकर वो अपनी चूत को संजय के मुंह के ऊपर दबा देती.. संजय का दम घुटने लगा.. चेतना की इस आक्रामकता ने उसे झकझोर दिया..

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चेतना की क्लिटोरिस को अपने दोनों होंठों के बीच दबाकर चूसते हुए संजय, चूत के कामरस को भी चाट रहा था.. चेतना अब संजय के लंड को मन भरकर निहारने लगी.. लंड की लंबाई, परिघ.. मोटाई.. सुपाड़े का रंग.. खून के भरावे से फुली हुई नसें.. खूंखार था उसका लंड.. चेतना की मुठ्ठी में बस आधा लंड ही समाता था.. उस पर से उसने लंड की लंबाई का अंदाजा लगा लिया.. मस्त और अद्भुत!!

चेतना ने अब संजय के अंडकोशों को पकड़कर दबाते हुए लंड के मूल से लेकर टोपे तक चाटकर गीला कर दिया.. संजय दो पल के लिए चूत चाटना छोड़कर इस चुसाई का मज़ा लेते हुए पागल सा होने लगा.. अद्भुत भारी और बड़े बड़े.. सांड जैसे अंडकोश.. पुष्ट वीर्य से भरपूर.. !! चेतना ने लंड को पकड़कर ऐसे खींचा की संजय बिस्तर से एक फुट ऊपर उछल पड़ा.. चेतना को जो चाहिए था वो मिल गया.. झांटों से भरपूर आँड उसके मुंह के बिल्कुल सामने थे जिसे उसने गप्प से मुंह में भर लिया.. ऐसे चूसने लगी जैसे गोलगप्पा मुंह में डाला हो..

चेतना की इस अदा का दीवाना हो गया संजय!! इस कामुक मुख मैथुन का भरपूर मज़ा उठाते हुए वो सिसकने लगा..

संजय: "आह्ह चेतना.. यू आर मेकिंग मी क्रेजी.. आई लव यू.. ओह्ह.. यू आर सकीन्ग लाइक अ बीच.. ओह यस.. !!"

चेतना ओर उत्तेजित हॉक दोगुने जोश के साथ संजय के लंड और आँड को चाटने लगी.. अपने मुंह से वैक्यूम क्लीनर की तरह वो लंड को चूस रही थी.. "ओह्ह नो.. ओह नो.. !!" कहते हुए संजय उछला और उसके साथ ही लंड ने पिचकारी छोड़ दी.. चेतना के सर के ऊपर बालों तक वीर्य की धार जाके लगी.. उसके सारे बाल वीर्य से मिश्रित होकर चिपचिपे हो गए.. मुठ्ठी भी वीर्य से भर गई.. गजब का फ़्लो था संजय के लंड का.. बड़े ही अहोभाव सो वो ठुमकते हुए लंड की तड़प को देख रही थी.. वो सोचने लगी.. ऐसा तो क्या होता होगा वीर्य स्त्राव के वक्त जो लंड इतना ठुमकता होगा??

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अब चेतना की चूत में गजब की चुनचुनी हो रही थी.. जो अब किसी भी हाल में वह सह नहीं पा रही थी.. उसने अपनी मांसल जांघों के बीच संजय के सर को दबा दिया.. संजय की मुछ पर अपनी क्लिटोरिस को रगड़ते हुए वो बेतहाशा उछल रही थी.. संजय अपनी जीभ से क्लिटोरिस को उकसाते हुए दबा रहा था.. थोड़ी ही देर में चेतना ने अपनी चूत को उठाके पटक दिया और अपने अमृत की धारा सनज के मुंह में छोड़ दी.. हवस की आंधी थम जाने से संजय ने चैन की सांस ली.. अब चेतना की जांघों से उसे मुक्ति मिलने की आशा थी.. चेतना ने भी अपना शरीर ढीला छोड़ दिया.. और संजय के शरीर पर गिर गई.. बिना योनि प्रवेश के दोनों झड़ गए थे..

दोनों एक दूसरे के जिस्मों को सहलाते हुए थकान उतारने लगे.. ऑर्गैज़म की थकान भी कितनी मीठी लगती है!! चेतना संजय के हारे हुए सैनिक जैसे ढल चुके लंड पर हाथ पसार रही थी.. उसके स्तन संजय की छाती से दबकर चपटे हो गए.. संजय उसके नग्न कूल्हों को सहला रहा था और उसकी गांड की लकीर में उँगलियाँ फेरते हुए छिद्र को गुदगुदा रहा था.. चेतना को अंदाजा लग गया की उसके पीछे के छेद को क्यों टटोला जा रहा था.. उसने तुरंत कमर हिलाकर संजय की उंगलियों से अपने छेद को दूर हटा दिया.. संजय ने गांड को छोड़ कर उसकी चूत पर ध्यान केंद्रित किया.. चूत पर स्पर्श होते ही चेतना के जिस्म में नए सिरे से चुदवाने की भूख जागृत हो गई.. तो दूसरी तरफ चेतना के जिस्म की गर्मी से संजय का लंड भी अंगड़ाई लेकर जाग गया..

लंड को हरकत करता देख चेतना की आँखों में चमक आ गई.. अपने कामुक हाथों में उस अर्ध-जागृत यंग को लेकर उसने दबाकर देखा.. अभी तक लंड की सख्ती चूत में घुसाने लायक नहीं हुई थी.. पर संजय अब फिर से चेतना की चूत पर पहुंचकर फिर से चाटने लगा था.. दोनों 69 की पज़िशन में सेट हो गए थे.. चेतना अपनी उंगलियों से लंड की चमड़ी को पीछे करने लगी.. जैसे बादल छटते ही पूर्णिमा का सुंदर चाँद बाहर निकलता है.. वैसे ही चमड़ी पीछे सरकाते ही सुंदर सुपाड़ा बाहर निकला.. उसे देखते ही चेतना को बेहद प्यार आया.. अपनी चिपचिपी चूत को वो संजय के मुंह पर रगड़ रही थी..

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संजय का लंड अब तैयार होकर यहाँ वहाँ झूलने लगा था.. उस मस्त लोड़े को चूम कर चेतना चूसने लगी.. उसकी उत्तेजना को परखकर संजय ने चाटते हुए अपनी एक उंगली अंदर घुसेड़ दी..

चेतना: "बहोत मज़ा आ रहा है.. ओह्ह संजय.. फक यार.. आह्ह"

चूत में उंगली अंदर बाहर होते ही चेतना एकदम मस्त हो गई.. संजय जान चुका था की लोहा अब गरम हो चुका था.. उसने अपनी दूसरी उंगली चेतना की गांड के छेद पर दबा दी.. चूत के रस से भीगी हुई उंगली ने गांड के छेद को भिगोकर रेशम जैसा मुलायम कर दिया.. इस बार चेतना ने कोई विरोध नहीं किया.. क्योंकि वह खुद भी बेहद उत्तेजित थी.. संजय की उंगली गांड के अंदर पूरी घुस चुकी होने के बावजूद उसे दर्द का एहसास नहीं हो रहा था.. या फिर अगर हो भी रहा था तो वो दर्द के चूत में उंगली घुसने से मिल रहे आनंद के तले दबकर रह गया था

संजय ने बड़ी मुश्किल से अपने वीर्य को स्खलित होने से रोक रखा था.. जिस तरह चेतना उसके सुपाड़े से खेल रही थी उसका लंड पिचकारी मारने के लिए उतावला हुए जा रहा था.. चेतना अब पूर्ण रूप से उत्तेजित होकर बेकाबू सी होने लगी थी.. काफी समय से बिना लंड के रहने की वजह से उसकी ये दशा हो गई थी.. उसकी आक्रामकता का एक कारण यह भी था की वह इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहती थी.. फिर ये जाम-ए-मोहब्बत मिले ना मिले!! वह आज संजय के लंड से तृप्त होना चाहती थी..

संजय चेतना के दोनों मस्त बबलों को मसल रहा था.. चेतना भी अब पूरी तरह संजय के लंड पर टूट पड़ी.. संजय को आश्चर्य हो रहा था की ७ इंच लंबा लंड वह कितनी आसानी से निगल रही थी..

"ओह्ह चेतना.. बस भी कर अब.. कितना चुसेगी? तेरा तों मन ही नहीं भरता.. पता है तुझे.. कितना कंट्रोल करना पड़ रहा है!! अभी निकल जाता मेरा.. आह्ह.. "

चेतना अब पलंग पर लेट गई.. बिना चूत की चुदाई के अगर संजय का लंड झड़ गया तो वो प्यासी ही रह जाएगी.. संजय के लंड के स्वागत के लिए उसने अपनी दोनों टांगें चौड़ी कर दी.. संजय चेतना की छाती पर सवार हो गया.. उसने चेतना के दोनों स्तनों को दबाकर एक किया और बीच में अपना लंड घुसेड़कर चोदने लगा.. चेतना को अपने दोनों स्तनों के बीच से आगे पीछे होता हुआ संजय का विकराल सुपाड़ा नजर या रहा था.. उसने अपनी गर्दन थोड़ी सी ऊपर की ताकि वो आगे पीछे होते हुए सुपाड़े को आसानी से चाट सकें.. लंड के इर्दगिर्द चरबीदार स्तनों का दबाव.. और टोपे पर चेतना के कामुक होंठ और जीभ के स्पर्श से ही संजय को ऐसा महसूस होने लगा की वो झड़ जाएगा.. वह तुरंत उसकी छाती से उतर गया..

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अब उसने चेतना की चौड़ी टांगों को अपने हाथों से और चौड़ा किया.. और अपने कंधों पर ले लिया.. आहाहाहाहा.. क्या सीन था!! केले के पेड़ के तने जैसी गोरी चिकनी मस्त जांघें.. और उन जांघों के बीच लसलसित बुर की फांक.. मुलायम जांघों पर हाथ फेरते ही.. प्रेमिला और वैशाली दोनों को भूल गया संजय.. उसने अपना सुपाड़ा चेतना की चुत के दरवाजे पर रखा.. गोली छूटने के बाद बंदूक की नली जितनी गरम होती है.. उतना ही गरम महसूस हुआ उस सुपाड़े का स्पर्श चेतना को..

संजय ने अब चेतना को तड़पाना शुरू कर दिया.. अपने टोपे को वो चेतना की क्लिटोरिस पर रगड़ते हुए उसे चूमने लगा.. संजय के इस दोहरे हमले से चेतना के होश उड़ गए.. संजय की लाल आँखें उसे डरा रही थी.. बेकाबू सांड जैसा लग रहा था संजय.. !! चेतना के दोनों हाथों को बिस्तर पर दबाकर लगभग ५ मिनट तक वह उसके होंठ चूसता रहा.. उस दौरान संजय का लंड चेतना की बुर की लकीर पर ऊपर से नीचे तक घिस रही थी.. चेतना के गाल, गर्दन और होंठों को काटते हुए तहस नहस कर दिया उसे संजय ने..

इतनी आक्रामकता के लिए चेतना तैयार नहीं थी.. हालांकि उसकी जिस्म की आग ऐसे रौंदे जाने से बेहद उत्तेजित था.. संजय के हमले के जवाब में चेतना ने भी अपने नाखून इतनी जोर से संजय की पीठ पर गाड़ दिए की उसकी पीठ पर खून के निशान बन गए..

गुस्साए संजय ने खींचकर एक तमाचा रसीद कर दिया चेतना के गोरे गालों पर "मादरचोद.. नाखून मारती है.. !! तेरी माँ को चोदू" कहते ही संजय ने चेतना को बालों से पकड़कर खड़ा कर दिया.. संजय के तेज-तर्रार चाटे से चेतना के कानों में सीटी बजने लगी.. चक्कर आ गया उसे.. दोनों वासना में इतने बेकाबू होकर क्या कर रहे थे उन्हे खुद पता नहीं था.. चेतना की आँखों में आँसू चमकने लगे.. उसने भी गुस्से में आकर संजय के लंड को पकड़कर इतनी जोर से खींचा की वह अपना संतुलन खो बैठा.. संजय को जरा भी अंदाजा नहीं था की चेतना जवाबी हमला करेगी.. उसका लंड दर्द करने लगा.. गुस्से में आकर उसने एक साथ दो उँगलियाँ चेतना की गांड में डाल दी..

चेतना ने अपनी चीख को बड़े ही मुश्किल से रोक रखा.. वह मजबूर थी.. ऐसे अनजाने गेस्टहाउस में उसकी चीख सुनकर अगर लोग इकठ्ठा हो गए तो उसकी ही बदनामी होती.. लेकिन जिस्म का दर्द ऐसी किसी भी मजबूरी के परे होता है.. वह थोड़ी समझता है?? दबाने के बावजूद हल्की सी चीख तो निकल ही गई.. संजय अब चेतना के स्तनों को ऐसे बेरहमी से मसल रहा था जैसे उसमें जान ही न हो..

चेतना की नजर संजय के सख्त खड़े लंड पर गई.. देखते ही उसकी चूत में चुनचुनी होने लगी.. कितने दिनों से उसकी भूखी चूत.. चुदने के लिए बेताब होकर आँसू बहा रही थी.. संजय ने चेतना को पकड़कर उल्टा कर दिया.. उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़कर ऊपर कर दिया.. चेतना अब कुत्तिया की तरह चार पैरों पर हो गई.. संजय ने चेतना के गोरे चूतड़ों पर धड़ाधड़ तमाचे लगाकर उन्हे लाल कर दिया.. चूत के छेद पर सुपाड़ा टीकाकार उसने एक जबरदस्त धक्का लगाया.. चेतना जोर से कराही.. उसकी चूत की दीवारें फाड़कर संजय का आधा लंड अंदर घुस गया.. दूसरा दमदार धक्का लगते ही चेतना की चूत की किल्ला फतेह हो गया..

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भख भख धक्के लगाते हुए संजय ने अपनी लय प्राप्त कर ली.. दोनों हाथों से मस्त कूल्हों को चौड़ा कर गांड के छेद में उंगली करते हुए वह बेरहमी से चोदने लगा.. चेतना भी अब बेहद उत्तेजित हो चुकी थी.. लंड के प्रत्येक धक्के से उसे इतना मज़ा आ रहा था की गांड के दर्द को उसने नजरअंदाज कर दिया.. इस तरह चुदवाने में चेतना को बहोत मज़ा आ रहा था.. संजय भी चेतना की टाइट चूत को बड़ी मस्ती से चोद रहा था.. उसकी जांघें चेतना के भव्य कूल्हों से टकराकर एक विशिष्ट प्रकार की ध्वनि उत्पन्न कर रही थी.. पूरा कमरा फ़च फ़च की आवाज से गूंज रहा था..

चेतना ने अपनी चूत की दीवारों को भींच लिया.. लंड पर अधिक दबाव महसूस होते ही संजय को धक्के लगाने में मज़ा आ गया.. करीब १० मिनट तक धक्कों का दौर यूँही चलता रहा.. चेतना की महीनों पुरानी भूख आज मिट रही थी.. एक हल्की सी कराह के साथ संजय के लंड ने इस्तीफा दे दिया.. उसके गरम वीर्य की बौछार से चेतना की बंजर चूत में बहार सी छा गई.. सुखी धरती पर बारिश की प्रथम बूंद के साथ जैसे धरती तृप्त हो जाती है वैसे ही चेतना तृप्त हो गई..

दो मिनट तक संजय का ठुमकता लंड चूत के अंदर पानी छोड़ता रहा और फिर दोनों बेड पर हांफते हुए गिर गए.. संजय का एक हाथ चेतना के मस्त उरोज पर था.. हल्के हाथों से वह उसका मर्दन कर रहा था.. करीब पंद्रह मिनट तक यूँही निष्क्रिय पड़े रहने के बाद दोनों सामान्य हो गए.. चेतना ने संजय के गाल पर किस किया

चेतना: "संजय, आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूँगी.. दोबारा कब मिलेंगे ये तो बता नहीं सकती.. पर हाँ.. तू अपना मोबाइल नंबर मुझे दे देना.. मौका मिलते ही मैं तुझे कॉल करूंगी.. "

संजय ने चेतना को बाहों में भरकर एक झकझोर देने वाला आलिंगन दिया.. फिर वह उठ खड़ा हुआ और बाथरूम में चला गया.. चेतना भी उसके पीछे बाथरूम में गई और कमोड पर बैठकर मूतते हुए वो पेशाब कर रहे संजय के लंड को देखती रही.. देखकर ही उसे इतना प्यार आया की उसने मूत रहे लंड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया.. और उस मूत्र को संजय के लंड और आँड़ों पर मल दिया.. चेतना की मुठ्ठी से अपना लंड छुड़ाकर संजय ने अपनी पेशाब की धार का निशाना उसके स्तनों पर लगाया.. गरम गरम पेशाब से चेतना के दोनों स्तन भीग गए.. वह सारा मूत्र स्तनों से गुजरकर नाभि पर होते हुए चेतना की क्लिटोरिस से टपक कर कमोड में गिरने लगा..

लंड की चमड़ी को पीछे कर अपने सुपाड़े को दबाते हुए संजय अटक अटक के पेशाब कर रहा था.. चेतना का हाथ पकड़कर उसने खड़ा किया और उल्टा मोड दिया.. हल्का सा धक्का देने पर चेतना नीचे झुक गई.. अपने मूत रहे लंड को संजय ने चेतना की गीली चूत में आधा घुसा दिया और चूत में ही मूतने लगा.. इस विचित्र और विकृत हरकत से चेतना भी मस्त हो गई.. मूत्र की आखिरी गरम पिचकारी अपनी बच्चेदानी पर महसूस होते ही चेतना को इतना मज़ा आया की वह सिसकने लगी..

अपने अर्ध जागृत लंड को चूत से निकालकर उसने गांड के छेद पर रगड़ना शुरू कर दिया.. इस हरकत से चेतना पागल सी हो गई.. अपना हाथ पीछे ले जाकर उसने खुद ही गांड के छेद को थोड़ा सा चौड़ा किया.. गांड का खुला हुआ छेद लंड को अंदर आने का आमंत्रण दे रहा था.. संजय ने छेद पर सुपाड़ा दबाया.. लेकिन उस सँकरे छेद में आधा मुरझाया लंड घुस नहीं पाया.. संजय को अपने लंड पर गुस्सा आया.. जब औरत सामने से गांड मरवाने के लिए उत्सुक हो तब लंड साथ न दे तब गुस्सा आना स्वाभाविक है..

चेतना: "मज़ा आ रहा है संजय.. थोड़ा सा और अंदर डाल.. मैंने आज तक पीछे नहीं करवाया है.. पता नहीं आज पीछे क्यों खुजली हो रही है!!"

संजय लाचार था.. जब उसका लंड तैयार था तब चेतना तैयार नहीं थी.. अब जब वह सामने से तैयार थी तब लंड साथ देने से इनकार कर रहा था.. बड़ी ही विडंबना थी..

संजय: "नहीं घुस रहा है यार.. तेरा छेद बहोत टाइट है.. दबाता हूँ तो मुड़ जाता है मेरा"

चेतना: "अरे यार.. एन मौके पर ही काम नहीं कर रहा तेरा हथियार.. एक काम कर.. उंगली डाल दे.. खुजली हो रही है मीठी सी"

लंड को बाहर खींचकर संजय ने अपना अंगूठा डाल दिया और रगड़ने लगा

चेतना: "आह्ह.. आह्ह.. मज़ा आ रहा है यार.. मस्त खुजा रहा है.. देख ना अगर तेरा लंड खड़ा हो तो.. उसमें ज्यादा मज़ा आएगा मुझे"

दो बार डिस्चार्ज हो चुका लंड खड़ा होने का नाम ही नहीं ले रहा था.. एक घंटे में दो बार स्खलित होने के बाद लंड का न उठना स्वाभाविक था

चेतना: "संजय, प्लीज मेरी एक इच्छा पूरी करेगा?"

संजय: "हाँ बोल ना डार्लिंग"

चेतना: "पीछे के छेद पर एक किस कर दे.. मुझे वहाँ पप्पी करवानी है"

संजय को बड़ी ही घिन आ रही थी पर वो चेतना जैसे मस्त माल को निराश करना नहीं चाहता था.. वैसे भी वो प्रेमिला के नखरों से तंग आ चुका था.. और मोनिका कुछ भी करने के पैसे लेती थी..

संजय ने बिना कुछ कहे झुककर चेतना की गांड पर हल्के से किस किया.. "कर दिया.. अब खुश ??"

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चेतना: "ऐसे नहीं यार.. तूने कब किस की मुझे तो पता भी नहीं चला.. ठीक से कर.. होंठों पर जैसे किस करता है तू बिल्कुल वैसे ही"

संजय सोच रहा था "क्या मुसीबत है यार!!! गांड पर लिप-किस ??" गुस्सा तो बहोत आया उसे पर फिर भी उसने कूल्हों को चौड़ा कर बादामी रंग के उस छेद पर अपने होंठ रख दिए

चेतना: "हाँ हाँ.. बिल्कुल वैसे ही.. ईशशशश.. ओह संजय.. आई लव यू यार.. बरसों पुरानी इच्छा पूरी कर दी तूने.. आह्ह.. अपनी जीभ थोड़ी सी अंदर डाल.. ऊँहह.. ओह गॉड..यस.. संजु मेरी जान.. " संजय ने अपनी नापसंद को दरकिनार करके अपनी जीभ अंदर डाली.. खेल की शुरुआत भले ही संजय ने की थी पर अब अंत का संचालन चेतना ही कर रही थी.. पालतू कुत्ते की तरह वो चेतना के हर आदेश को मान रहा था.. एक चूत के लिए आदमी को क्या क्या करना पड़ता है !!

उत्तेजित होकर चेतना मन ही मन में सोच रही थी "चाट मेरी गांड भड़वे.. तूने मुझ पर हाथ उठाया था ना!! उसी का बदला है ये.. अब चाट मेरी गांड साले"

संजय परेशान होकर चाट रहा था.. उससे बदबू बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. चेतना की गांड पर हो रही इस हरकत का असर उसकी चूत पर पड़ा.. अंदर से कामरस बहते हुए बाहर रिसने लगा.. पूरे बाथरूम में एक मस्की सी गंध फैल गई.. इस गंध को सूंघते ही संजय का लंड ताव में आने लगा.. झुककर गांड चटवा रही चेतना ने नीचे से संजय का उठा हुआ लंड देखा और घबरा गई "अरे बाप रे.. अगर अभी इस लंड को नरम नहीं किया तो गांड में घुसकर उसे फ्लावर बना देगा.. बाप रे.. इतना बड़ा अंदर जाएगा तो मेरी गांड फट जाएगी.. ईसे बचाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा"

चेतना तुरंत घूम गई.. "बस बस संजय.. अब मुझे तेरा लंड चूसने दे.. यार मज़ा आ गया आज तो.. तेरे जैसा मर्द मैंने आजतक नहीं देखा.. " कहते हुए वह घुटनों के बल बैठ गई.. और संजय का डंडा मुंह में लेकर चूसने लगी.. दो बार स्खलित हो चुके लंड को फिर से झड़ाने में चेतना को समय तो लगा.. पर जब गांड पर रॉकेट तना हुआ हो तब कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता.. वह चूसते चूसते थक गई.. उसके गाल और जबड़े दर्द करने लगे.. पर फिर भी वह चूसती ही रही.. आखिर उसकी मेहनत रंग लाई.. और संजय के लंड का वीर्यस्त्राव हो ही गया.. जब तक वीर्य की सारी बूंदें उसने चाट न ली.. तब तक लंड मुंह से बाहर नहीं निकाला चेतना ने.. संजय उसे बस देखता ही रह गया.. अब भी चेतना लंड को चूसे जा रही थी.. संजय की गांड फट गई "कहीं ये चेतना मेरे लंड को एक बार और तैयार करने के फिराक में तो नहीं है?" कांप उठा संजय.. तीन तीन बार झड़ने के बाद उसमें और एक बार करने की ताकत नहीं बची थी..

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चेतना ने तब तक चूसना जारी रखा जब तक की संजय का लंड पूरी तरह से मुरझा नहीं गया.. पूरी तरह से तसल्ली होने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और निकालते वक्त सुपाड़े को एक बार ओर चाटकर ये चेक भी कर लिया की कहीं उसमें अब भी जान बच तो नहीं गई थी!! निश्चिंत होने के बाद उसने लंड को बाइज्जत बरी किया

संजय मन में सोच रहा था "लंड बच गया मेरा" चेतना सोच रही थी "गांड बची सो लाखों पाएं"

दोनों ने कपड़े पहने और अपना हुलिया ठीकठाक किया.. औ गेस्टहाउस से बाहर निकले.. सड़क पर आकर दोनों ने रिक्शा ली और चेतना की घर के तरफ निकले.. रास्ते में दोनों ने एक दूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए.. और दूसरी बार मिलने का वादा भी किया

चेतना: "मेरा घर अब नजदीक ही है.. मैं यहीं उतर जाती हूँ.. वरना कोई देख लेगा.. "

संजय: "एक काम करते है.. मैं यहाँ उतर जाता हूँ.. तुम ऑटो लेकर घर चली जाना.. वैसे भी मुझे बाजार में थोड़ा काम है.. वो निपटाकर गेस्टहाउस चला जाऊंगा"

चेतना: "तेरा ससुराल यहीं शहर में ही है फिर क्यों गेस्टहाउस में रहता है तू?"


संजय: "लंबी कहानी है.. कभी इत्मीनान से बात करेंगे.. अरे भैया, ऑटो यहीं रोक दीजिए" संजय ने उतरकर पैसे चुकाये और चेतना के गाल पर हाथ सहलाकर चल दिया.. चेतना मुस्कुराकर उसे जाते हुए देखती रही.. अपने पर्स से छोटा सा मिरर निकालकर अपना चेहरा चेक किया उसने.. कहीं कोई निशानी तो नहीं रह गई.. !! तसल्ली करने के बाद वह अपने घर के बाहर उतर गई..
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

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वैशाली कविता के घर पहुँच गई थी... और संजय नुक्कड़ की टपरी पर खड़ा होकर सिगरेट फूँक रहा था

शीला के घर से निकालने के बाद जैसे ही चेतना टपरी के करीब से गुजरी.. तब उसने संजय को देखा.. वो ओर तेजी से चलते हुए आगे निकल गई.. संजय भी उसके पीछे पीछे चलने लगा था.. सीटी बस-स्टेंड पर खड़े खड़े चेतना १२४ नंबर की बस के इंतज़ार में थी..

बस आते ही वो अंदर बैठ गई.. संजय भी बस में चढ़ गया और चेतना की बगल की सीट पर बैठ गया.. चेतना को बड़ा आश्चर्या हुआ.. संजय का कंधा उसके कंधे से छूते ही चेतना के भूखे शरीर में करंट सा दौड़ गया.. वो कुछ बोली नहीं.. कंडक्टर के आते ही संजय ने दोनों की टिकट ले ली..

चेतना: "आपने मेरा टिकट क्यों लिया? मैं तू आपको जानती तक नहीं..!!"

संजय: "पर मैं तो आपको जानता हूँ.. रोज सुबह देखता हूँ आपको जब आप दूध लेने जाती हो"

चेतना: "मेरे जाते वक्त कौन मुझे देखता है उससे मुझे क्या लेना देना?"

संजय ने जवाब नहीं दिया.. दोनों चुपचाप बैठे रहे.. तभी चेतना का स्टेंड आ गया

संजय: "आपको एतराज न हो तो गेस्टहाउस पर मेरे कमरे पर चलिए.. थोड़ी देर बैठ कर बातें करेंगे"

चेतना: "तुम पागल हो क्या? मेरे घर के एरिया में अगर मुझे कोई गेस्टहाउस में जाते हुए देखेगा तो कोई क्या सोचेगा?"

संजय समझ गया.. चेतना को आने में दिक्कत नहीं थी.. उसे डर था तो किसी के देख लेने का

संजय ने हाथ दिखा कर एक रिक्शा को खड़ा रखा..

संजय: "आपको गेस्टहाउस में आने से ही दिक्कत है ना !! अगर में आपको किसी ओर जगह ले चलू तो.. ??"

चेतना शर्म से पानी पानी हो गई.. यहाँ बाहर जितनी देर वो खड़ी रहती.. किसी के देख लेने का जोखिम उतना ही बढ़ जाता.. बिना कुछ सोचे चेतना रिक्शा में बैठ गई.. उसका दिल धकधक कर रहा था..

संजय ने रिक्शा वाले से कुछ कहा.. और रिक्शा चल पड़ी.. साथ ही साथ चेतना का दिमाग भी चलने लगा

चेतना शीला को फोन करना चाहती थी पर संजय के साथ होने के कारण यह मुमकिन न था.. बारिश के कारण टूटे हुए रास्तों पर रिक्शा उछल रही थी.. और चेतना का कंधा और जांघ संजय के शरीर के साथ रगड़ रहे थे.. चेतना सोच रही थी.. ३५ दिन गुजर चुके थे.. और उसकी चुत को लंड नसीब नहीं हुआ था.. आखिर कोई कब तक बर्दाश्त करे? संजय के हर स्पर्श के साथ चेतना की चुत में सुरसुरी हो रही थी

रिक्शा एक गेस्टहाउस के पास जाकर रुकी.. यह एरिया चेतना के घर से काफी दूर था.. संजय के पीछे पीछे चेतना तेजी से अंदर घुस गई.. संजय रीसेप्शन पर बात कर रहा था और चेतना का दिल तेजी से धडक रहा था। थोड़ी देर में वेटर चाबी लेकर आया और एक कमरा खोलकर चला गया.. चेतना अंदर जाकर बिस्तर पर बैठी।

रजिस्ट्रेशन निपटाकर संजय कमरे के अंदर आया और दरवाजा बंद कर दिया। उसने पूछा "क्या नाम है आपका?"

"चेतना .. "

"मस्त नाम है आपका.. मेरा नाम संजय है.. वो तो आपको मेरी सास ने आपको बता ही दिया होगा"

"नहीं नहीं.. मैं तो उन्हे जानती नहीं हूँ.. मैं तो सिलाई का काम करती हूँ.. उनका ब्लाउस देने गई थी" चेतना ने खुद को और शीला को बचाने के लिए झूठ बोला.. संजय को भी यह सुनकर राहत हुई.. उसे डर था की कहीं इसने शीला को उसके और प्रेमिला के बारे में बता न दिया हो

चेतना के स्तनों को ललचाई नजर से देखते हुए संजय के अंदर का पुरुष और खामोश न रह पाया.. ऐसे मौकों पर समय हमेशा कम होता है.. जितना जल्दी मुद्दे पर आया जाएँ.. उतना समय ज्यादा मिलता है काम निपटाने के लिए.. पर कभी कभी जल्दी करने में बात बिगड़ भी जाती है.. और चेतना के पास कितना समय था ये वो जानता नहीं था

चेतना भी घबराहट के मारे सोच रही थी.. यहाँ न आई होती तो अच्छा होता.. किसी ने देख लिया होगा तो? अगर मेरे पति को पता चल गया तो? अगर शीला या वैशाली को पता चल गया तो? इन संभावनाओ को सोचकर ही वो कांपने लगी

एक तरफ डर था.. तो दूसरी तरफ जिस्म की भूख थी.. कुछ तय नहीं कर पा रही थी वो.. एक विचार ये भी आया की ये अच्छा मौका था संजय के बारे में जानकारी हासिल करने का.. उसने शीला को वादा जो किया था.. अगर शीला को पता चल भी गया तो वो ये बोल देगी की संजय के बारे में जानने के लिए उसे उसके साथ गेस्टहाउस आना पड़ा.. भूखी चुत चेतना को वकील की तरह बहस करना सीखा रही थी

चेतना ने अब तय कर लिया था.. जो भी होगा देखा जाएगा.. वैसे भी बंद कमरे के अंदर क्या हो रहा है वो किसको पता चलेगा? पर ये कमीना कुछ कर क्यों नहीं रहा?? बैठे-बैठे सिगरेट चूस रहा है.. जो चूसना चाहिए वो तो चूस नहीं रहा.. चेतना के दिमाग में अनगिनत विचार चल रहे थे

फूँक फूँक कर कदम रख रहा संजय... बुझी हुई सिगरेट को एश-ट्रे में डालकर बोला "मैं स्मोक करू तो आपको दिक्कत तो नहीं है ना!!"

चेतना को गुस्सा आया.. साला सिगरेट फूँक लेने के बाद पूछ रहा है.. उसने कोई जवाब नहीं दिया

संजय ने अपने पत्ते बिछाने शुरू कीये "चेतना, जब भी आपको सुबह सुबह देखता हूँ तब मुझे कुछ कुछ होने लगता है.. आपके अंदर कोई ऐसा आकर्षण है जो मुझे आपके करीब खींचता जा रहा है.. अपने मन को कंट्रोल करने की बहोत कोशिश करता हूँ पर पूरा दिन आप ही मेरे दिलों दिमाग पर छाई रहती हो.. आज तक किसी लड़की या औरत के लिए मुझे ऐसा कभी नहीं हुआ.. फिर आपको देखकर ही ऐसा क्यों हुआ होगा??"

अपनी तारीफ सुनकर किसी भी स्त्री के दिमाग को वश में किया जा सकता है.. ऐसा संजय का मानना था.. तारीफ सुनकर चेतना शर्म से लाल हो गई.. अपने जिस्म को लुटाने के लिए बेताब हो गई.. "ऐसा तो क्या देख लिया आपने मुझ में ? और आपके साथ तो वो सुंदर लड़की हमेशा रहती ही है ना ?"

संजय उठकर चेतना के पास बैठ गया और उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया.. चेतना इस स्पर्श से सिहर उठी.. आगे जो होने वाला था उसकी अपेक्षा में उसका शरीर डोलने लगा.. उसकी हवस अंगड़ाई लेकर जाग गई.. बिना फोरप्ले के.. केवल स्पर्श से ही चेतना की गीली हो गई

संजय चेतना के गालों के सहलाने लगा और उसके साथ ही चेतना ने अपना पल्लू गिरा दिया.. उसकी बड़ी छातियाँ हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी.. ब्लाउस में कैद उसका मदमस्त जोबन, वी-नेक गले से बाहर झाँक रहा था.. दो स्तनों के बीच की कातिल खाई को देखकर संजय का लंड झटके से खड़ा हो गया..

संजय ने फिर से सिगरेट जलाई.. और उस सिगरेट को चेतना के होंठों पर रखकर कहा "एक दम खींचकर देखो.. मज़ा आ जाएगा" चेतना को सिगरेट की गंध से बड़ी ही नफरत थी.. और सिगरेट कैसे फूंकते है उसका उसे पता न था.. उसने अपना मुंह फेर लिया..

संजय चेतना की गर्दन के पीछे के हिस्से को सहलाने लगा.. इस हरकत से चेतना की आँखें बंद हो गई.. संजय के गरम हाथ का स्पर्श उस उकसा रहा था.. संजय ने सिगरेट चेतना के हाथों में थमा दी और अपनी पेंट की चैन खोलने लगा.. सिगरेट पकड़ना बड़ा ही अटपटा सा लग रहा था चेतना को.. पर संजय का लंड देखा तो वो सब कुछ भूल ही गई.. लंड की गंध और सिगरेट की बू का संमिश्रण ने चेतना के लिए वियाग्रा का काम किया.. उसकी चूत से भांप निकालने लगी थी.. संजय को खड़े लंड को देखकर उसके स्तन सख्त हो गए.. जैसे अभी ब्लाउस फाड़कर बाहर निकाल आएंगे.. अपने लंड को चेतना के उभारों पर और चेहरे पर रगड़ते हुए संजय ने एक हाथ उसके स्तन पर रख दिया.. उभारों पर गरम सुपाड़े का स्पर्श होते ही चेतना बेकाबू होने लगी..

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शर्म की सारी सीमाएं तोड़कर चेतना ने संजय का लंड पकड़ लिया.. चेतना की मुठ्ठी में लंड दबते ही संजय जैसे उसका ग़ुलाम बन गया.. और चेतना मस्त हो गई.. लंड की तलाश में ही तो वो शीला के घर आई थी.. वह अब खड़ी हुई और अपने ब्लाउस के सारे हुक खोलकर संजय के होश उड़ाने के लिए तैयार हो गई.. ब्रा निकालकर वो संजय के ऊपर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी..

संजय के जिस्म को हर जगह पागलों की तरह चूमते हुए उसने उसका शर्ट और बनियान उतरवा दिए.. उतना ही नहीं.. पेंट की क्लिप खोलकर, अंडरवेर के साथ वो भी उतार दिया.. संजय अब पूरा नंगा था.. उसका पूरा शरीर बालों से ढंका हुआ था.. सारा संचालन अपने हाथ में ही रखना चाह रही चेतना घुटनों के बल बैठ गई.. संजय के फुँकारते लंड को चूम लिया और फिर आँखें बंद करके पूरा लंड मुंह में लिया और चूसने लगी..

बेबस संजय.. लाचार होकर चेतना को अपना लंड चूसते देखता ही रहा.. दोनों हाथों से चेतना का सर पकड़कर वोह धक्के लगाते हुए.. उसके मुंह को ही चूत समझकर चोदने लगा.. जिस तरह चेतना बिना किसी विरोध के चुदवाने के लिए आसानी से तैयार हो गई ये देखकर संजय को आश्चर्य हुआ। वरना औरतों को लंड मुंह में लेने के लिए कितनी मिन्नते करनी पड़ती है वो संजय जानता था.. प्रेमिला को तो नया ड्रेस खरीद कर देने का वादा करो तभी मुंह में लेती थी.. और वो भी सिर्फ थोड़ी देर के लिए..

चेतना की हवस देखकर संजय को मज़ा ही आ गया.. वह उसके मुंह में धनाधन धक्के लगाता जा रहा था.. चेतना भी संजय के कड़े लंड को चूसकर धन्य हो गई थी.. उसने संजय को धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.. बालों से ढंका हुआ संजय डरावने भालू जैसा लग रहा था पर चेतना को इससे कोई फरक नहीं पड़ता था क्योंकि उसकी नजर केवल उसके लंड पर थी। संजय के जिस्म पर सवार होते हुए चेतना ने अपनी ब्रा, साड़ी और घाघरा उतार दिया और मादरजात नंगी हो गई..

चेतना के मादक गदराए जिस्म को देखकर संजय मंत्रमुग्ध हो गया और उसका लंड ठुमकने लगा.. संजय के फुँकारते लंड को देखकर चेतना से ओर रहा न गया.. अपनी दोनों जांघों को फैलाते हुए वो संजय के मुख पर अपनी चूत के होंठों को रखकर बैठ गई और झुककर उसके लंड को फिरसे मुंह में लेकर चूसने लगी.. एक दो मिनट तक उसके लंड को मुंह के अंदर पीपरमिंट की तरह घुमाने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और नीचे हो रही चूत चटाई का आनंद लेने लगी.. असह्य उत्तेजना से बेकाबू होकर वो अपनी चूत को संजय के मुंह के ऊपर दबा देती.. संजय का दम घुटने लगा.. चेतना की इस आक्रामकता ने उसे झकझोर दिया..

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चेतना की क्लिटोरिस को अपने दोनों होंठों के बीच दबाकर चूसते हुए संजय, चूत के कामरस को भी चाट रहा था.. चेतना अब संजय के लंड को मन भरकर निहारने लगी.. लंड की लंबाई, परिघ.. मोटाई.. सुपाड़े का रंग.. खून के भरावे से फुली हुई नसें.. खूंखार था उसका लंड.. चेतना की मुठ्ठी में बस आधा लंड ही समाता था.. उस पर से उसने लंड की लंबाई का अंदाजा लगा लिया.. मस्त और अद्भुत!!

चेतना ने अब संजय के अंडकोशों को पकड़कर दबाते हुए लंड के मूल से लेकर टोपे तक चाटकर गीला कर दिया.. संजय दो पल के लिए चूत चाटना छोड़कर इस चुसाई का मज़ा लेते हुए पागल सा होने लगा.. अद्भुत भारी और बड़े बड़े.. सांड जैसे अंडकोश.. पुष्ट वीर्य से भरपूर.. !! चेतना ने लंड को पकड़कर ऐसे खींचा की संजय बिस्तर से एक फुट ऊपर उछल पड़ा.. चेतना को जो चाहिए था वो मिल गया.. झांटों से भरपूर आँड उसके मुंह के बिल्कुल सामने थे जिसे उसने गप्प से मुंह में भर लिया.. ऐसे चूसने लगी जैसे गोलगप्पा मुंह में डाला हो..

चेतना की इस अदा का दीवाना हो गया संजय!! इस कामुक मुख मैथुन का भरपूर मज़ा उठाते हुए वो सिसकने लगा..

संजय: "आह्ह चेतना.. यू आर मेकिंग मी क्रेजी.. आई लव यू.. ओह्ह.. यू आर सकीन्ग लाइक अ बीच.. ओह यस.. !!"

चेतना ओर उत्तेजित हॉक दोगुने जोश के साथ संजय के लंड और आँड को चाटने लगी.. अपने मुंह से वैक्यूम क्लीनर की तरह वो लंड को चूस रही थी.. "ओह्ह नो.. ओह नो.. !!" कहते हुए संजय उछला और उसके साथ ही लंड ने पिचकारी छोड़ दी.. चेतना के सर के ऊपर बालों तक वीर्य की धार जाके लगी.. उसके सारे बाल वीर्य से मिश्रित होकर चिपचिपे हो गए.. मुठ्ठी भी वीर्य से भर गई.. गजब का फ़्लो था संजय के लंड का.. बड़े ही अहोभाव सो वो ठुमकते हुए लंड की तड़प को देख रही थी.. वो सोचने लगी.. ऐसा तो क्या होता होगा वीर्य स्त्राव के वक्त जो लंड इतना ठुमकता होगा??

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अब चेतना की चूत में गजब की चुनचुनी हो रही थी.. जो अब किसी भी हाल में वह सह नहीं पा रही थी.. उसने अपनी मांसल जांघों के बीच संजय के सर को दबा दिया.. संजय की मुछ पर अपनी क्लिटोरिस को रगड़ते हुए वो बेतहाशा उछल रही थी.. संजय अपनी जीभ से क्लिटोरिस को उकसाते हुए दबा रहा था.. थोड़ी ही देर में चेतना ने अपनी चूत को उठाके पटक दिया और अपने अमृत की धारा सनज के मुंह में छोड़ दी.. हवस की आंधी थम जाने से संजय ने चैन की सांस ली.. अब चेतना की जांघों से उसे मुक्ति मिलने की आशा थी.. चेतना ने भी अपना शरीर ढीला छोड़ दिया.. और संजय के शरीर पर गिर गई.. बिना योनि प्रवेश के दोनों झड़ गए थे..

दोनों एक दूसरे के जिस्मों को सहलाते हुए थकान उतारने लगे.. ऑर्गैज़म की थकान भी कितनी मीठी लगती है!! चेतना संजय के हारे हुए सैनिक जैसे ढल चुके लंड पर हाथ पसार रही थी.. उसके स्तन संजय की छाती से दबकर चपटे हो गए.. संजय उसके नग्न कूल्हों को सहला रहा था और उसकी गांड की लकीर में उँगलियाँ फेरते हुए छिद्र को गुदगुदा रहा था.. चेतना को अंदाजा लग गया की उसके पीछे के छेद को क्यों टटोला जा रहा था.. उसने तुरंत कमर हिलाकर संजय की उंगलियों से अपने छेद को दूर हटा दिया.. संजय ने गांड को छोड़ कर उसकी चूत पर ध्यान केंद्रित किया.. चूत पर स्पर्श होते ही चेतना के जिस्म में नए सिरे से चुदवाने की भूख जागृत हो गई.. तो दूसरी तरफ चेतना के जिस्म की गर्मी से संजय का लंड भी अंगड़ाई लेकर जाग गया..

लंड को हरकत करता देख चेतना की आँखों में चमक आ गई.. अपने कामुक हाथों में उस अर्ध-जागृत यंग को लेकर उसने दबाकर देखा.. अभी तक लंड की सख्ती चूत में घुसाने लायक नहीं हुई थी.. पर संजय अब फिर से चेतना की चूत पर पहुंचकर फिर से चाटने लगा था.. दोनों 69 की पज़िशन में सेट हो गए थे.. चेतना अपनी उंगलियों से लंड की चमड़ी को पीछे करने लगी.. जैसे बादल छटते ही पूर्णिमा का सुंदर चाँद बाहर निकलता है.. वैसे ही चमड़ी पीछे सरकाते ही सुंदर सुपाड़ा बाहर निकला.. उसे देखते ही चेतना को बेहद प्यार आया.. अपनी चिपचिपी चूत को वो संजय के मुंह पर रगड़ रही थी..

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संजय का लंड अब तैयार होकर यहाँ वहाँ झूलने लगा था.. उस मस्त लोड़े को चूम कर चेतना चूसने लगी.. उसकी उत्तेजना को परखकर संजय ने चाटते हुए अपनी एक उंगली अंदर घुसेड़ दी..

चेतना: "बहोत मज़ा आ रहा है.. ओह्ह संजय.. फक यार.. आह्ह"

चूत में उंगली अंदर बाहर होते ही चेतना एकदम मस्त हो गई.. संजय जान चुका था की लोहा अब गरम हो चुका था.. उसने अपनी दूसरी उंगली चेतना की गांड के छेद पर दबा दी.. चूत के रस से भीगी हुई उंगली ने गांड के छेद को भिगोकर रेशम जैसा मुलायम कर दिया.. इस बार चेतना ने कोई विरोध नहीं किया.. क्योंकि वह खुद भी बेहद उत्तेजित थी.. संजय की उंगली गांड के अंदर पूरी घुस चुकी होने के बावजूद उसे दर्द का एहसास नहीं हो रहा था.. या फिर अगर हो भी रहा था तो वो दर्द के चूत में उंगली घुसने से मिल रहे आनंद के तले दबकर रह गया था

संजय ने बड़ी मुश्किल से अपने वीर्य को स्खलित होने से रोक रखा था.. जिस तरह चेतना उसके सुपाड़े से खेल रही थी उसका लंड पिचकारी मारने के लिए उतावला हुए जा रहा था.. चेतना अब पूर्ण रूप से उत्तेजित होकर बेकाबू सी होने लगी थी.. काफी समय से बिना लंड के रहने की वजह से उसकी ये दशा हो गई थी.. उसकी आक्रामकता का एक कारण यह भी था की वह इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहती थी.. फिर ये जाम-ए-मोहब्बत मिले ना मिले!! वह आज संजय के लंड से तृप्त होना चाहती थी..

संजय चेतना के दोनों मस्त बबलों को मसल रहा था.. चेतना भी अब पूरी तरह संजय के लंड पर टूट पड़ी.. संजय को आश्चर्य हो रहा था की ७ इंच लंबा लंड वह कितनी आसानी से निगल रही थी..

"ओह्ह चेतना.. बस भी कर अब.. कितना चुसेगी? तेरा तों मन ही नहीं भरता.. पता है तुझे.. कितना कंट्रोल करना पड़ रहा है!! अभी निकल जाता मेरा.. आह्ह.. "

चेतना अब पलंग पर लेट गई.. बिना चूत की चुदाई के अगर संजय का लंड झड़ गया तो वो प्यासी ही रह जाएगी.. संजय के लंड के स्वागत के लिए उसने अपनी दोनों टांगें चौड़ी कर दी.. संजय चेतना की छाती पर सवार हो गया.. उसने चेतना के दोनों स्तनों को दबाकर एक किया और बीच में अपना लंड घुसेड़कर चोदने लगा.. चेतना को अपने दोनों स्तनों के बीच से आगे पीछे होता हुआ संजय का विकराल सुपाड़ा नजर या रहा था.. उसने अपनी गर्दन थोड़ी सी ऊपर की ताकि वो आगे पीछे होते हुए सुपाड़े को आसानी से चाट सकें.. लंड के इर्दगिर्द चरबीदार स्तनों का दबाव.. और टोपे पर चेतना के कामुक होंठ और जीभ के स्पर्श से ही संजय को ऐसा महसूस होने लगा की वो झड़ जाएगा.. वह तुरंत उसकी छाती से उतर गया..

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अब उसने चेतना की चौड़ी टांगों को अपने हाथों से और चौड़ा किया.. और अपने कंधों पर ले लिया.. आहाहाहाहा.. क्या सीन था!! केले के पेड़ के तने जैसी गोरी चिकनी मस्त जांघें.. और उन जांघों के बीच लसलसित बुर की फांक.. मुलायम जांघों पर हाथ फेरते ही.. प्रेमिला और वैशाली दोनों को भूल गया संजय.. उसने अपना सुपाड़ा चेतना की चुत के दरवाजे पर रखा.. गोली छूटने के बाद बंदूक की नली जितनी गरम होती है.. उतना ही गरम महसूस हुआ उस सुपाड़े का स्पर्श चेतना को..

संजय ने अब चेतना को तड़पाना शुरू कर दिया.. अपने टोपे को वो चेतना की क्लिटोरिस पर रगड़ते हुए उसे चूमने लगा.. संजय के इस दोहरे हमले से चेतना के होश उड़ गए.. संजय की लाल आँखें उसे डरा रही थी.. बेकाबू सांड जैसा लग रहा था संजय.. !! चेतना के दोनों हाथों को बिस्तर पर दबाकर लगभग ५ मिनट तक वह उसके होंठ चूसता रहा.. उस दौरान संजय का लंड चेतना की बुर की लकीर पर ऊपर से नीचे तक घिस रही थी.. चेतना के गाल, गर्दन और होंठों को काटते हुए तहस नहस कर दिया उसे संजय ने..

इतनी आक्रामकता के लिए चेतना तैयार नहीं थी.. हालांकि उसकी जिस्म की आग ऐसे रौंदे जाने से बेहद उत्तेजित था.. संजय के हमले के जवाब में चेतना ने भी अपने नाखून इतनी जोर से संजय की पीठ पर गाड़ दिए की उसकी पीठ पर खून के निशान बन गए..

गुस्साए संजय ने खींचकर एक तमाचा रसीद कर दिया चेतना के गोरे गालों पर "मादरचोद.. नाखून मारती है.. !! तेरी माँ को चोदू" कहते ही संजय ने चेतना को बालों से पकड़कर खड़ा कर दिया.. संजय के तेज-तर्रार चाटे से चेतना के कानों में सीटी बजने लगी.. चक्कर आ गया उसे.. दोनों वासना में इतने बेकाबू होकर क्या कर रहे थे उन्हे खुद पता नहीं था.. चेतना की आँखों में आँसू चमकने लगे.. उसने भी गुस्से में आकर संजय के लंड को पकड़कर इतनी जोर से खींचा की वह अपना संतुलन खो बैठा.. संजय को जरा भी अंदाजा नहीं था की चेतना जवाबी हमला करेगी.. उसका लंड दर्द करने लगा.. गुस्से में आकर उसने एक साथ दो उँगलियाँ चेतना की गांड में डाल दी..

चेतना ने अपनी चीख को बड़े ही मुश्किल से रोक रखा.. वह मजबूर थी.. ऐसे अनजाने गेस्टहाउस में उसकी चीख सुनकर अगर लोग इकठ्ठा हो गए तो उसकी ही बदनामी होती.. लेकिन जिस्म का दर्द ऐसी किसी भी मजबूरी के परे होता है.. वह थोड़ी समझता है?? दबाने के बावजूद हल्की सी चीख तो निकल ही गई.. संजय अब चेतना के स्तनों को ऐसे बेरहमी से मसल रहा था जैसे उसमें जान ही न हो..

चेतना की नजर संजय के सख्त खड़े लंड पर गई.. देखते ही उसकी चूत में चुनचुनी होने लगी.. कितने दिनों से उसकी भूखी चूत.. चुदने के लिए बेताब होकर आँसू बहा रही थी.. संजय ने चेतना को पकड़कर उल्टा कर दिया.. उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़कर ऊपर कर दिया.. चेतना अब कुत्तिया की तरह चार पैरों पर हो गई.. संजय ने चेतना के गोरे चूतड़ों पर धड़ाधड़ तमाचे लगाकर उन्हे लाल कर दिया.. चूत के छेद पर सुपाड़ा टीकाकार उसने एक जबरदस्त धक्का लगाया.. चेतना जोर से कराही.. उसकी चूत की दीवारें फाड़कर संजय का आधा लंड अंदर घुस गया.. दूसरा दमदार धक्का लगते ही चेतना की चूत की किल्ला फतेह हो गया..

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भख भख धक्के लगाते हुए संजय ने अपनी लय प्राप्त कर ली.. दोनों हाथों से मस्त कूल्हों को चौड़ा कर गांड के छेद में उंगली करते हुए वह बेरहमी से चोदने लगा.. चेतना भी अब बेहद उत्तेजित हो चुकी थी.. लंड के प्रत्येक धक्के से उसे इतना मज़ा आ रहा था की गांड के दर्द को उसने नजरअंदाज कर दिया.. इस तरह चुदवाने में चेतना को बहोत मज़ा आ रहा था.. संजय भी चेतना की टाइट चूत को बड़ी मस्ती से चोद रहा था.. उसकी जांघें चेतना के भव्य कूल्हों से टकराकर एक विशिष्ट प्रकार की ध्वनि उत्पन्न कर रही थी.. पूरा कमरा फ़च फ़च की आवाज से गूंज रहा था..

चेतना ने अपनी चूत की दीवारों को भींच लिया.. लंड पर अधिक दबाव महसूस होते ही संजय को धक्के लगाने में मज़ा आ गया.. करीब १० मिनट तक धक्कों का दौर यूँही चलता रहा.. चेतना की महीनों पुरानी भूख आज मिट रही थी.. एक हल्की सी कराह के साथ संजय के लंड ने इस्तीफा दे दिया.. उसके गरम वीर्य की बौछार से चेतना की बंजर चूत में बहार सी छा गई.. सुखी धरती पर बारिश की प्रथम बूंद के साथ जैसे धरती तृप्त हो जाती है वैसे ही चेतना तृप्त हो गई..

दो मिनट तक संजय का ठुमकता लंड चूत के अंदर पानी छोड़ता रहा और फिर दोनों बेड पर हांफते हुए गिर गए.. संजय का एक हाथ चेतना के मस्त उरोज पर था.. हल्के हाथों से वह उसका मर्दन कर रहा था.. करीब पंद्रह मिनट तक यूँही निष्क्रिय पड़े रहने के बाद दोनों सामान्य हो गए.. चेतना ने संजय के गाल पर किस किया

चेतना: "संजय, आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूँगी.. दोबारा कब मिलेंगे ये तो बता नहीं सकती.. पर हाँ.. तू अपना मोबाइल नंबर मुझे दे देना.. मौका मिलते ही मैं तुझे कॉल करूंगी.. "

संजय ने चेतना को बाहों में भरकर एक झकझोर देने वाला आलिंगन दिया.. फिर वह उठ खड़ा हुआ और बाथरूम में चला गया.. चेतना भी उसके पीछे बाथरूम में गई और कमोड पर बैठकर मूतते हुए वो पेशाब कर रहे संजय के लंड को देखती रही.. देखकर ही उसे इतना प्यार आया की उसने मूत रहे लंड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया.. और उस मूत्र को संजय के लंड और आँड़ों पर मल दिया.. चेतना की मुठ्ठी से अपना लंड छुड़ाकर संजय ने अपनी पेशाब की धार का निशाना उसके स्तनों पर लगाया.. गरम गरम पेशाब से चेतना के दोनों स्तन भीग गए.. वह सारा मूत्र स्तनों से गुजरकर नाभि पर होते हुए चेतना की क्लिटोरिस से टपक कर कमोड में गिरने लगा..

लंड की चमड़ी को पीछे कर अपने सुपाड़े को दबाते हुए संजय अटक अटक के पेशाब कर रहा था.. चेतना का हाथ पकड़कर उसने खड़ा किया और उल्टा मोड दिया.. हल्का सा धक्का देने पर चेतना नीचे झुक गई.. अपने मूत रहे लंड को संजय ने चेतना की गीली चूत में आधा घुसा दिया और चूत में ही मूतने लगा.. इस विचित्र और विकृत हरकत से चेतना भी मस्त हो गई.. मूत्र की आखिरी गरम पिचकारी अपनी बच्चेदानी पर महसूस होते ही चेतना को इतना मज़ा आया की वह सिसकने लगी..

अपने अर्ध जागृत लंड को चूत से निकालकर उसने गांड के छेद पर रगड़ना शुरू कर दिया.. इस हरकत से चेतना पागल सी हो गई.. अपना हाथ पीछे ले जाकर उसने खुद ही गांड के छेद को थोड़ा सा चौड़ा किया.. गांड का खुला हुआ छेद लंड को अंदर आने का आमंत्रण दे रहा था.. संजय ने छेद पर सुपाड़ा दबाया.. लेकिन उस सँकरे छेद में आधा मुरझाया लंड घुस नहीं पाया.. संजय को अपने लंड पर गुस्सा आया.. जब औरत सामने से गांड मरवाने के लिए उत्सुक हो तब लंड साथ न दे तब गुस्सा आना स्वाभाविक है..

चेतना: "मज़ा आ रहा है संजय.. थोड़ा सा और अंदर डाल.. मैंने आज तक पीछे नहीं करवाया है.. पता नहीं आज पीछे क्यों खुजली हो रही है!!"

संजय लाचार था.. जब उसका लंड तैयार था तब चेतना तैयार नहीं थी.. अब जब वह सामने से तैयार थी तब लंड साथ देने से इनकार कर रहा था.. बड़ी ही विडंबना थी..

संजय: "नहीं घुस रहा है यार.. तेरा छेद बहोत टाइट है.. दबाता हूँ तो मुड़ जाता है मेरा"

चेतना: "अरे यार.. एन मौके पर ही काम नहीं कर रहा तेरा हथियार.. एक काम कर.. उंगली डाल दे.. खुजली हो रही है मीठी सी"

लंड को बाहर खींचकर संजय ने अपना अंगूठा डाल दिया और रगड़ने लगा

चेतना: "आह्ह.. आह्ह.. मज़ा आ रहा है यार.. मस्त खुजा रहा है.. देख ना अगर तेरा लंड खड़ा हो तो.. उसमें ज्यादा मज़ा आएगा मुझे"

दो बार डिस्चार्ज हो चुका लंड खड़ा होने का नाम ही नहीं ले रहा था.. एक घंटे में दो बार स्खलित होने के बाद लंड का न उठना स्वाभाविक था

चेतना: "संजय, प्लीज मेरी एक इच्छा पूरी करेगा?"

संजय: "हाँ बोल ना डार्लिंग"

चेतना: "पीछे के छेद पर एक किस कर दे.. मुझे वहाँ पप्पी करवानी है"

संजय को बड़ी ही घिन आ रही थी पर वो चेतना जैसे मस्त माल को निराश करना नहीं चाहता था.. वैसे भी वो प्रेमिला के नखरों से तंग आ चुका था.. और मोनिका कुछ भी करने के पैसे लेती थी..

संजय ने बिना कुछ कहे झुककर चेतना की गांड पर हल्के से किस किया.. "कर दिया.. अब खुश ??"

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चेतना: "ऐसे नहीं यार.. तूने कब किस की मुझे तो पता भी नहीं चला.. ठीक से कर.. होंठों पर जैसे किस करता है तू बिल्कुल वैसे ही"

संजय सोच रहा था "क्या मुसीबत है यार!!! गांड पर लिप-किस ??" गुस्सा तो बहोत आया उसे पर फिर भी उसने कूल्हों को चौड़ा कर बादामी रंग के उस छेद पर अपने होंठ रख दिए

चेतना: "हाँ हाँ.. बिल्कुल वैसे ही.. ईशशशश.. ओह संजय.. आई लव यू यार.. बरसों पुरानी इच्छा पूरी कर दी तूने.. आह्ह.. अपनी जीभ थोड़ी सी अंदर डाल.. ऊँहह.. ओह गॉड..यस.. संजु मेरी जान.. " संजय ने अपनी नापसंद को दरकिनार करके अपनी जीभ अंदर डाली.. खेल की शुरुआत भले ही संजय ने की थी पर अब अंत का संचालन चेतना ही कर रही थी.. पालतू कुत्ते की तरह वो चेतना के हर आदेश को मान रहा था.. एक चूत के लिए आदमी को क्या क्या करना पड़ता है !!

उत्तेजित होकर चेतना मन ही मन में सोच रही थी "चाट मेरी गांड भड़वे.. तूने मुझ पर हाथ उठाया था ना!! उसी का बदला है ये.. अब चाट मेरी गांड साले"

संजय परेशान होकर चाट रहा था.. उससे बदबू बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. चेतना की गांड पर हो रही इस हरकत का असर उसकी चूत पर पड़ा.. अंदर से कामरस बहते हुए बाहर रिसने लगा.. पूरे बाथरूम में एक मस्की सी गंध फैल गई.. इस गंध को सूंघते ही संजय का लंड ताव में आने लगा.. झुककर गांड चटवा रही चेतना ने नीचे से संजय का उठा हुआ लंड देखा और घबरा गई "अरे बाप रे.. अगर अभी इस लंड को नरम नहीं किया तो गांड में घुसकर उसे फ्लावर बना देगा.. बाप रे.. इतना बड़ा अंदर जाएगा तो मेरी गांड फट जाएगी.. ईसे बचाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा"

चेतना तुरंत घूम गई.. "बस बस संजय.. अब मुझे तेरा लंड चूसने दे.. यार मज़ा आ गया आज तो.. तेरे जैसा मर्द मैंने आजतक नहीं देखा.. " कहते हुए वह घुटनों के बल बैठ गई.. और संजय का डंडा मुंह में लेकर चूसने लगी.. दो बार स्खलित हो चुके लंड को फिर से झड़ाने में चेतना को समय तो लगा.. पर जब गांड पर रॉकेट तना हुआ हो तब कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता.. वह चूसते चूसते थक गई.. उसके गाल और जबड़े दर्द करने लगे.. पर फिर भी वह चूसती ही रही.. आखिर उसकी मेहनत रंग लाई.. और संजय के लंड का वीर्यस्त्राव हो ही गया.. जब तक वीर्य की सारी बूंदें उसने चाट न ली.. तब तक लंड मुंह से बाहर नहीं निकाला चेतना ने.. संजय उसे बस देखता ही रह गया.. अब भी चेतना लंड को चूसे जा रही थी.. संजय की गांड फट गई "कहीं ये चेतना मेरे लंड को एक बार और तैयार करने के फिराक में तो नहीं है?" कांप उठा संजय.. तीन तीन बार झड़ने के बाद उसमें और एक बार करने की ताकत नहीं बची थी..

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चेतना ने तब तक चूसना जारी रखा जब तक की संजय का लंड पूरी तरह से मुरझा नहीं गया.. पूरी तरह से तसल्ली होने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और निकालते वक्त सुपाड़े को एक बार ओर चाटकर ये चेक भी कर लिया की कहीं उसमें अब भी जान बच तो नहीं गई थी!! निश्चिंत होने के बाद उसने लंड को बाइज्जत बरी किया

संजय मन में सोच रहा था "लंड बच गया मेरा" चेतना सोच रही थी "गांड बची सो लाखों पाएं"

दोनों ने कपड़े पहने और अपना हुलिया ठीकठाक किया.. औ गेस्टहाउस से बाहर निकले.. सड़क पर आकर दोनों ने रिक्शा ली और चेतना की घर के तरफ निकले.. रास्ते में दोनों ने एक दूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए.. और दूसरी बार मिलने का वादा भी किया

चेतना: "मेरा घर अब नजदीक ही है.. मैं यहीं उतर जाती हूँ.. वरना कोई देख लेगा.. "

संजय: "एक काम करते है.. मैं यहाँ उतर जाता हूँ.. तुम ऑटो लेकर घर चली जाना.. वैसे भी मुझे बाजार में थोड़ा काम है.. वो निपटाकर गेस्टहाउस चला जाऊंगा"

चेतना: "तेरा ससुराल यहीं शहर में ही है फिर क्यों गेस्टहाउस में रहता है तू?"

संजय: "लंबी कहानी है.. कभी इत्मीनान से बात करेंगे.. अरे भैया, ऑटो यहीं रोक दीजिए" संजय ने उतरकर पैसे चुकाये और चेतना के गाल पर हाथ सहलाकर चल दिया.. चेतना मुस्कुराकर उसे जाते हुए देखती रही.. अपने पर्स से छोटा सा मिरर निकालकर अपना चेहरा चेक किया उसने.. कहीं कोई निशानी तो नहीं रह गई.. !! तसल्ली करने के बाद वह अपने घर के बाहर उतर गई..
Kya kamaal ka update Diya hai maza aa gaya.meri dili Tamanna hai ki ek story BAAP or shadishuda betiyon ke relation per bhi likho
 
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