Gauravv
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Garam updateमैं उठ कर बैठ गया. चाची चाचाजी से बोली.
"लल्ला को अब तीन दिन छुट्टी देते हैं ताकि यह पूरा ताजा तवाना हो जाये. तुम दो दिन मुझे खूब भोगो, मुझे खुश कर दो."
मैंने तीन दिन सेक्स से वंचित रखे जाने के प्लान पर विरोध किया पर दोनों ने मेरी एक न सुनी. हाँ, मुझे एक चुदाई का आखिरी उपहार देने के स्वरूप मेरी चुदैल चाची ने यह इच्छा जाहिर की कि आज की रात में और चाचाजी एक साथ उन्हे आगे पीछे से भोग सकेंगे. जाहिर था कि चाची की कामोत्तेजना अब चरम सीमा पर थी. अपने दोनों छेदों में एक एक लंड एक साथ लेना चाहती थी.
दोपहर भर आराम करके हम फ़िर चुस्त हुए. रात को बिस्तर में एक दूसरे से चूमा चाटते करते हुए हमने यह फ़ैसला किया कि पहले चाचाजी उसकी चूत चोदेंगे और मैं गांड मारूँगा. चाचाजी ने पहले तो चाची की चूत चूसी और उसे गरम किया. एक दो बार झड़ाकर रस पिया. फिर अपनी पत्नी की बुर में अपना लोडा घुसाकर वे उसे बाँहों में भरकर पीठ के बल लेट गये जिससे चाची उनके ऊपर हो गई. चाची की गांड उन्हों ने अपने हाथों से मेरे लिये फ़ैलायी और मैंने अपना लंड चाची के कोमल गुदा में आसानी से उतार दिया.
चाची को अब हम दोनों एक साथ चोदने लगे. मैं ऊपर से उनकी गांड मारने लगा और नीचे से चाचाजी अपनी कमर उछाल उछाल कर चोदने लगे. कुछ ही समय में एक लय बंध गयी और चाची के दोनों छेदों में सटा सट लंड चलने लगे. वे तृप्त होकर सिसकारियाँ भरने लगी. हर दस मिनिट में हम पलट लेते जिससे कभी चाचाजी ऊपर होते तो कभी मैं. कभी करवट पर लेट कर आगे पीछे से चोदते. चाची तो निहाल होकर किसी रंडी जैसी गंदी गालियां देती हुई इस डबल चुदाई का आनंद ले रही थी.
चाचाजी बेतहाशा चाची को चूमते हुए उसे चोद रहे थे. चाची की चूत और गुदा के बीच की दीवार तन कर इतनी पतली हो गयी थी कि मेरे और चाचाजी के लंड आपस में रगड रहे थे मानों हम लंड लड़ा रहे हों. हमने ऐसी लय बांध ली कि जब मेरा लंड अंदर होता तो चाचाजी का बाहर और जब वे चूत में लंड पेलते तो मैं गांड में से बाहर खींच लेता. इससे हमारे लंड आपस मे ऐसे मस्त सटक रहे थे कि जैसे बीच में कुछ न हो.
झड़ने के बाद हमने एक दूसरे के वीर्य का पान चाची के छेदों में से किया. मैंने उनकी चूत चूसी और चाचाजी ने गांड. फ़िर हमने चोदने के लिये छेद बदल लिये. इस बार मेरा लंड चाची की चूत में था और चाचाजी का लंड चाची की गांड में था. यह चुदाई आधी रात के बाद तक चलती रही और तभी खतम हुई जब आखिर चाची चुद चुद कर बेहोश हो गयी. मैं और चाचाजी भी झड़ कर निढाल होकर बिस्तर पर गिर गए.
दूसरे दिन से मेरी छुट्टी हो गयी. लंड खड़ा होकर तकलीफ़ न दे और खूब नींद आये ऐसी दवा चाचाजी ने मुझे दी. बस मैं खाता था और सोता था. एक तरह से मेरे लिये यह अच्छा भी हुआ क्योंकी दो हफ्तों के निरंतर संभोग के बाद मेरे शरीर को आराम की सख्त जरूरत थी.
लगता है कि चाचाजी ने अपनी पत्नी की ओर उनकी जिम्मेदारी पूरी निभाई क्योंकी दो दिन में चाची की चुद चुद कर ऐसी हालत हो गयी जैसे एक साथ दस बारह लोगों ने चोद डाला हो. पर उनके चेहरे पर बहुत खुशी और सुकून था. वे बिलकुल तृप्त नजर आती थी.
एक बात और भी हुई, और वह यह कि चाचाजी भी अपनी पत्नी के बुर का शरबत पीने लगे. इसका पता मुझे तब चला जब एक दिन दोपहर को मैंने छुप कर उनके कमरे में देखा. बात यह थी कि मेरे बहुत कहने पर भी उन तीन दिनों में चाची ने मुझे अपना मूत नहीं पिलाया. कहती कि मुझे पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये.
उसे मेरे मुंह में मूतने में कितना मजा आता था यह मैं जानता था. उधर चाचाजी भी मुझे कभी पानी पीते नहीं दिखते थे. कुतूहल से मैंने आखिर एक दिन दरवाजे की दरार में से देखा तो चाची साड़ी कमर तक ऊपर करके पैर फ़ैलाकर खड़ी थी और चाचाजी अपने पत्नी की टांगों के बीच बैठे मुंह उठाये उसका मूत पी रहे थे. चाची हंसती हुई उनका सिर पकडकर उनके मुंह में मूतती हुई उन्हें उलाहना दे रही थी.
"आखिर मैं तुम दोनों की कैसे प्यास बुझाऊँगी? दो दो दीवाने हैं अब मेरे बुर के शरबत के. लगता है हर दस मिनिट में गिलास भर पानी पीना पड़ेगा." में ईर्षा से जलते हुए वापिस अपने कमरे में आकर सो गया
चाचाजी तो सुबह फ़िर अपने दौरे पर निकल गये.
--- आगे ---
चाचाजी के जाने के बाद मैं चाची से लिपट गया. वे प्यार से मुझे चूमते हुए बोली.
"तीन दिन आराम करके कैसा महसूस हो रहा है?"
मैं बेचैन होकर बोला.
"मेरी तो हालत खराब कर दी, ना आपको चोदना नसीब हो रहा था ना ही आपकी बुर का शर्बत पीने मिल रहा था!"
चाची बोली. "मेरी रातें तो बढ़िया कटी, मुझे पूरा खलास कर दिया उन्हों ने. लगता है कि अब कही वे जाकर सही तरीके से मेरे पति बने हैं. और इसका सारा श्रेय तुझे है."
मैंने उनके मम्मे चूमते हुए कहा. "तो इनाम देगी ना चाची अपने इस भक्त को?"
"हाँ लल्ला, मैं भूली नहीं हूँ, मुन्नी आज शाम को वापस आ रही है. उसे चोद ले. वह लड़की नखरा करेगी पर कहाँ जायेगी? एक बार चुदाई का चस्का लग जाएगा फिर बार बार चुदवाएगी। उसे चोदने में मैं तेरी सहायता करूंगी. और भी जो करना है वह कर लेना, मन चाहे वैसा चोदना, वैसे चुदाते समय वह ज्यादा नहीं रोएगी. एक नम्बर की छिनाल है वह लौंडी, हाँ उसकी नाजुक गांड में लंड जायेगा तो जरूर चीखेगी."
मेरा लंड अब दो दिन के आराम से फ़िर तन्ना कर खड़ा हो गया था और चाची पर चढने को मैं मरा जा रहा था. पर उन्हों ने ही मना कर दिया. "आज रात अब तेरी है. लंड मस्त रख, मजा आयेगा. आखिर कुंवारी चूत चोदना है, बहुत कसी होगी, मेहनत करना पड़ेगी."
"और चाची गांड भी तो मारनी है मुन्नी की" मैंने मचलकर कहा.
"उसके लिये भी कडा लंड चाहिये. खैर तू जवान छोकरा है, तेरा लंड तो हमेशा कडक रहता है. गांड भी मार लेना उस लौंडी की आज ही. पूरा चोद ले उसे अलट पलट कर दोनों ओर से" वे बोली. फ़िर साड़ी ऊपर उठाकर पलंग पर लेट गई. "तुझे दिन भर सब्र करना है, मुझे नहीं. मेरा काम तो तुझे करना ही पड़ेगा. चल लग जा चूत चूसने में."
दिन भर आते जाते जैसे समय मिले, चाची ने मुझसे बुर चुसवायी, खड़े लंड को किसी तरह दिलासा देते हुए मैं दिन भर उनकी सेवा करता रहा.
शाम को मुन्नी आयी. दस दिन बिना शारीरिक संपर्क के रह कर वह ऐसी गरमा गयी थी कि आते ही अपनी मौसी से लिपट गयी. चाची ने बड़ी मुश्किल से उसे रोका और कहा कि रात तक रुके. उसे हमने चाचाजी के साथ हुई हमारी सामूहिक रति के बारे में कुछ नहीं बताया.
रात को हम छत पर न जाकर चाची के कमरे में ही सोये. चाची ने पहले ही मुझे बता दिया था. "लड़की थोड़ा सा चीखेगी, इसलिये बंद कमरे में शिकार करेंगे उसका."
कपड़े उतारकर हम एक दूसरे से लिपट गये. मेरे तनकर खड़े लंड को देखकर मुन्नी चहक उठी. "हाय, कितनी जोर से खड़ा है भैया का लंड, लगता है आज की रात आपकी गांड फ़िर मारी जाने वाली है मौसी." चाची सिर्फ़ हंसी और कुछ नहीं बोली.
पहले बहुत देर चूत चुसाई हुई. मुन्नी और चाची ने मन भर के एक दूसरे की बुर का पानी पिया और फ़िर मैने भी उन दोनों की चूत चूसी. मुन्नी की कुंवारी संकरी चूत चूसते हुए मुझे ऐसा लग रहा था कि कब इसमे लोडा डालूँ और फ़ाड दूँ. जब मैं मुन्नी की बुर चाट रहा था तो चाची ने कहा. "अनुराग, मुन्नी को बाँहों में ले और प्यार कर, देखूँ तुम दोनों की जोड़ी कैसी लगती है."
मन भर कर मुन्नी की चूत चूसने के बाद मैं मुन्नी को बाँहों में लेकर लेट गया और उसकी कड़ी जरा जरा सी चूचियाँ दबाता हुआ उसे चूमने लगा. वह शरमा रही थी पर बड़े प्यार से चुम्मा दे रही थी. चाची हमारे पास आकर बैठ गई और हमारा प्रेमालाप देखने लगी.
मुन्नी अब तक काफ़ी गरमा गयी थी और मेरे लंड को हाथ से पकड कर मुठिया रही थी. उसे मैंने पलंग पर लिटाया और उसके नितंबों के नीचे एक तकिया रखा. वह अब थोड़ा घबरा गयी. "क्या कर रहे हो अनुराग भैया?"
चाची ने जब कहा कि अब उसकी चुदाई होगी तो वह नखरा करने लगी. बच्ची चुदाना तो चाहती थी पर मेरे तन्नाये लंड को देखकर वह काफ़ी भयभीत थी. चाची के पुचकारने पर आखिर उसने जांघें फैलाई और मैं उसकी टांगों के बीच अपना लंड संभाल कर बैठ गया. मैने चाची को आँख मारी कि समय आ गया है.
चाची समझ गई और मुन्नी के सर पर हाथ फेरकर उसे ढाढ़स बांधने लगी. मुन्नी थोड़ी सी घबरा गई "यह क्या कर रहे हो अनुराग भैया, जाने दो मुझे" मैंने अब अपना सुपाड़ा मुन्नी की कुंवारी चूत पर रखा और दबाना शुरू किया. चाची बोली "थोड़ा सा ही दुखेगा बेटी, तू ज्यादा मत छटपटाना घबराना मत, बहुत मजा भी आएगा, और पहली बार चुदाने का मजा तो तभी आता है जब थोड़ा दर्द हो."
मैने अपनी उंगलियों से उसकी चूत चौड़ी की और लंड को कस कर पेला. फ़च्च से सुपाड़ा उसकी कसी बुर के अंदर हो गया और मुन्नी दर्द से बिलबिला उठी. चीखने ही वाली थी कि चाची ने अपने हाथ से उसका मुंह दबोच दिया. तड़पती मुन्नी की परवाह न करके मैने लंड फ़िर पेला और आधा अंदर कर दिया. मुन्नी छटपटाते हुए अपने बंद मुंह से गोम्गियानि लगी.
उस कुंवारी मखमली चूत ने मेरे लंड को ऐसे पकड रखा था जैसे किसी ने मुठ्ठी में पकड़ा हो. मुन्नी की आँखों में आँसू छलक आये थे. उन्हें देखकर चाची और मैं और उत्तेजित हो उठे और एक दूसरे को चूमने लगे. मुन्नी को चोदने में मुझे बड़ा मजा आ रहा था इसलिये मैं जान बूझ कर बोला. "चाची, मजा आ गया, मुन्नी की चूत तो आज फ़ट जायेगी मेरे मोटे लंड से, पर मैं नहीं छोड़ने वाला इसे, चोद चोद कर फ़ुकला कर दूंगा साली को"
वह और घबराई तो मैंने झुककर उसका एक नन्हा निप्पल मुंह में लिया और चूसने लगा. मैंने सोचा कि अभी ज्यादा डराना ठीक नहीं है क्योंकी उसकी गांड भी मारनी थी. इसलिये उसे तड़पा तड़पा कर चोदने की अपनी इच्छा मैंने उसकी गांड के लिये बचा कर रखी. दूसरे स्तन को चाची प्यार से सहलाने लगी. धीरे धीरे मुन्नी का तड़पना कम हुआ और उसने बिलबिलाना बंद कर दिया.
चाची ने जब उसके मुंह से हाथ हटाया तो लड़की बोली. "हाय मौसी, बहुत दर्द होता है, अनुराग भैया, प्लीज़ अपना लोडा निकाल लो."
चाची ने मुझसे कहा "तुम चोदो अनुराग, मेरी यह भांजी जरा ज्यादा ही नाजुक है, इसकी परवाह मत करो. बाद में देखना, चुदते हुए कैसे किलकारियाँ भरेगी"
चाची ने झुककर अपने होंठ मुन्नी के मुंह पर जमा दिये और जोर से चूस चूस कर उसका चुंबन लेने लगी. मुन्नी अब शांत हो चली थी और उसकी चूत फ़िर गीली होने लगी थी. मैने बचा हुआ लंड धीरे धीरे इंच इंच करके उसकी चूत में पेलना शुरू किया. जब मुन्नी तड़पती तो मैं लंड घुसेडना बंद कर देता था. आखिर पूरा लंड उस कसी बुर में समा गया और मैने एक सुख की सांस ली.
"देख मुन्नी, पूरा लंड तेरी चूत में है और खून भी नहीं निकला है. कैसे प्यार से दिया है तेरी चूत में, तू फ़ालतू घबराती थी"
मुन्नी ने थोड़ा सिर उठा कर अपनी जांघों के बीच देखा तो हैरान रह गई. फ़िर शरमा कर मेरी ओर देखने लगी. चाची उसे पुचकार कर बोली. "शाबास मेरी बहादुर बिटिया, बस दर्द का काम खतम, अब मजा ही मजा है. अनुराग, तू चोद, मैं मुन्नी से अपनी चूत की सेवा करवाती हूँ"
चाची उठ कर मुन्नी के मुंह पर अपनी चूत जमाकर बैठ गई और धीरे धीरे उसका मुंह चोदने लगी. मैने अब धीरे धीरे लंड अंदर बाहर करना शुरू किया. पहले तो कसी चूत में लंड बड़ी मुश्किल से खिसक रहा था. मैने मुन्नी के क्लिटोरिस को अपनी उंगली से मसलना शुरू कर दिया और वह कमसिन बुर एक ही मिनट में इतनी पसीज गई कि लंड आसानी से फ़िसलने लगा. मैं अब उसे मस्त चोदने लगा.
मुन्नी को चोदते चोदते मैने पीछे से चाची की चूचियाँ पकड लीं और दबाने लगा. चुदाई का एक समां सा बंध गया. चाची अपना सिर घुमाकर मुझे चुंबन देते हुए अपनी भांजी के मुंह पर बैठ कर उससे अपनी चूत चुसवा रही थी और मैं पीछे से चाची के मम्मे दबाता हुआ उनकी चिकनी पीठ को चूमता हुआ हचक हचक कर मुन्नी की बुर चोद रहा था.
दोनों चूते खूब झड़ीं और खुशी की किलकारियाँ कमरे में गूजने लगी. आखिर मुझसे न रहा गया और मैने चाची को हटने को कहा.
"चाची, मुझसे अब नहीं रहा जाता, मैं मुन्नी पर चढ कर जोर जोर से चोदूंगा."
चाची हट गई और हस्तमैथुन करते हुए हमारी कामक्रीडा का आखिरी भाग देखने लगी. मैंने मुन्नी पर लेट कर उसे बाहों में जकड लिया और अपनी जांघों में उसके कोमल तन को दबोचकर उसे चूमता हुआ हचक हचक कर चोदने लगा. कुछ ऐसे ही जैसे चाचाजी ने मुझे चोदा था. मुन्नी की गरम सांसें अब जोर से चल रही थी, वह उत्तेजित कन्या चुदने को बेताब थी.
"चोदो भैया, और जोर से चोदो ना, अब नहीं दुखता, मजा आ रहा है, उई ऽ मां ऽ."
उसकी जीभ मुंह में लेकर चूसता हुआ मैंने उसे पूरी शक्ति से चोद डाला. सुख से मैं पागल हुआ जा रहा था. कुंवारी बुर में लंड चलने से ’पॉक पॉक’ की मस्त आवाज आ रही थी. आखिर मैंने एक करारा धक्का लगाया और लंड को मुन्नी की बुर में जड तक गाड कर स्खलित हो गया. मुन्नी की बुर अभी भी मेरे लोडे को पकड कर जकड़े हुए थी.
पूरा झड़ने के बाद मैने मुन्नी का प्यार से एक चुंबन लिया और उठ कर लंड खींच कर बाहर निकाला. लंड उसकी चूत के पानी से गीला था. चाची तुरंत मेरे पास आई और उसे मुंह में लेकर चूस डाला. मेरा लंड साफ़ करके मुझे बाजू में हटने को कहते हुए वे खुद मुन्नी की जांघों को फ़ैलाते हुए बोली. "अब देखूँ तो, मेरी भांजी की पहली बार चुदी बुर में अपनी मौसी के लिये क्या तोहफ़ा है!" और झुक कर मुन्नी की बुर चूसने लगी. मेरा सारा वीर्य और मुन्नी का पानी वे चटखारे ले ले कर निगलने लगी.
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UpdatedAaj updates aayega kya mitr…
Thanks
nice updateमैं उठ कर बैठ गया. चाची चाचाजी से बोली.
"लल्ला को अब तीन दिन छुट्टी देते हैं ताकि यह पूरा ताजा तवाना हो जाये. तुम दो दिन मुझे खूब भोगो, मुझे खुश कर दो."
मैंने तीन दिन सेक्स से वंचित रखे जाने के प्लान पर विरोध किया पर दोनों ने मेरी एक न सुनी. हाँ, मुझे एक चुदाई का आखिरी उपहार देने के स्वरूप मेरी चुदैल चाची ने यह इच्छा जाहिर की कि आज की रात में और चाचाजी एक साथ उन्हे आगे पीछे से भोग सकेंगे. जाहिर था कि चाची की कामोत्तेजना अब चरम सीमा पर थी. अपने दोनों छेदों में एक एक लंड एक साथ लेना चाहती थी.
दोपहर भर आराम करके हम फ़िर चुस्त हुए. रात को बिस्तर में एक दूसरे से चूमा चाटते करते हुए हमने यह फ़ैसला किया कि पहले चाचाजी उसकी चूत चोदेंगे और मैं गांड मारूँगा. चाचाजी ने पहले तो चाची की चूत चूसी और उसे गरम किया. एक दो बार झड़ाकर रस पिया. फिर अपनी पत्नी की बुर में अपना लोडा घुसाकर वे उसे बाँहों में भरकर पीठ के बल लेट गये जिससे चाची उनके ऊपर हो गई. चाची की गांड उन्हों ने अपने हाथों से मेरे लिये फ़ैलायी और मैंने अपना लंड चाची के कोमल गुदा में आसानी से उतार दिया.
चाची को अब हम दोनों एक साथ चोदने लगे. मैं ऊपर से उनकी गांड मारने लगा और नीचे से चाचाजी अपनी कमर उछाल उछाल कर चोदने लगे. कुछ ही समय में एक लय बंध गयी और चाची के दोनों छेदों में सटा सट लंड चलने लगे. वे तृप्त होकर सिसकारियाँ भरने लगी. हर दस मिनिट में हम पलट लेते जिससे कभी चाचाजी ऊपर होते तो कभी मैं. कभी करवट पर लेट कर आगे पीछे से चोदते. चाची तो निहाल होकर किसी रंडी जैसी गंदी गालियां देती हुई इस डबल चुदाई का आनंद ले रही थी.
चाचाजी बेतहाशा चाची को चूमते हुए उसे चोद रहे थे. चाची की चूत और गुदा के बीच की दीवार तन कर इतनी पतली हो गयी थी कि मेरे और चाचाजी के लंड आपस में रगड रहे थे मानों हम लंड लड़ा रहे हों. हमने ऐसी लय बांध ली कि जब मेरा लंड अंदर होता तो चाचाजी का बाहर और जब वे चूत में लंड पेलते तो मैं गांड में से बाहर खींच लेता. इससे हमारे लंड आपस मे ऐसे मस्त सटक रहे थे कि जैसे बीच में कुछ न हो.
झड़ने के बाद हमने एक दूसरे के वीर्य का पान चाची के छेदों में से किया. मैंने उनकी चूत चूसी और चाचाजी ने गांड. फ़िर हमने चोदने के लिये छेद बदल लिये. इस बार मेरा लंड चाची की चूत में था और चाचाजी का लंड चाची की गांड में था. यह चुदाई आधी रात के बाद तक चलती रही और तभी खतम हुई जब आखिर चाची चुद चुद कर बेहोश हो गयी. मैं और चाचाजी भी झड़ कर निढाल होकर बिस्तर पर गिर गए.
दूसरे दिन से मेरी छुट्टी हो गयी. लंड खड़ा होकर तकलीफ़ न दे और खूब नींद आये ऐसी दवा चाचाजी ने मुझे दी. बस मैं खाता था और सोता था. एक तरह से मेरे लिये यह अच्छा भी हुआ क्योंकी दो हफ्तों के निरंतर संभोग के बाद मेरे शरीर को आराम की सख्त जरूरत थी.
लगता है कि चाचाजी ने अपनी पत्नी की ओर उनकी जिम्मेदारी पूरी निभाई क्योंकी दो दिन में चाची की चुद चुद कर ऐसी हालत हो गयी जैसे एक साथ दस बारह लोगों ने चोद डाला हो. पर उनके चेहरे पर बहुत खुशी और सुकून था. वे बिलकुल तृप्त नजर आती थी.
एक बात और भी हुई, और वह यह कि चाचाजी भी अपनी पत्नी के बुर का शरबत पीने लगे. इसका पता मुझे तब चला जब एक दिन दोपहर को मैंने छुप कर उनके कमरे में देखा. बात यह थी कि मेरे बहुत कहने पर भी उन तीन दिनों में चाची ने मुझे अपना मूत नहीं पिलाया. कहती कि मुझे पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये.
उसे मेरे मुंह में मूतने में कितना मजा आता था यह मैं जानता था. उधर चाचाजी भी मुझे कभी पानी पीते नहीं दिखते थे. कुतूहल से मैंने आखिर एक दिन दरवाजे की दरार में से देखा तो चाची साड़ी कमर तक ऊपर करके पैर फ़ैलाकर खड़ी थी और चाचाजी अपने पत्नी की टांगों के बीच बैठे मुंह उठाये उसका मूत पी रहे थे. चाची हंसती हुई उनका सिर पकडकर उनके मुंह में मूतती हुई उन्हें उलाहना दे रही थी.
"आखिर मैं तुम दोनों की कैसे प्यास बुझाऊँगी? दो दो दीवाने हैं अब मेरे बुर के शरबत के. लगता है हर दस मिनिट में गिलास भर पानी पीना पड़ेगा." में ईर्षा से जलते हुए वापिस अपने कमरे में आकर सो गया
चाचाजी तो सुबह फ़िर अपने दौरे पर निकल गये.
--- आगे ---
चाचाजी के जाने के बाद मैं चाची से लिपट गया. वे प्यार से मुझे चूमते हुए बोली.
"तीन दिन आराम करके कैसा महसूस हो रहा है?"
मैं बेचैन होकर बोला.
"मेरी तो हालत खराब कर दी, ना आपको चोदना नसीब हो रहा था ना ही आपकी बुर का शर्बत पीने मिल रहा था!"
चाची बोली. "मेरी रातें तो बढ़िया कटी, मुझे पूरा खलास कर दिया उन्हों ने. लगता है कि अब कही वे जाकर सही तरीके से मेरे पति बने हैं. और इसका सारा श्रेय तुझे है."
मैंने उनके मम्मे चूमते हुए कहा. "तो इनाम देगी ना चाची अपने इस भक्त को?"
"हाँ लल्ला, मैं भूली नहीं हूँ, मुन्नी आज शाम को वापस आ रही है. उसे चोद ले. वह लड़की नखरा करेगी पर कहाँ जायेगी? एक बार चुदाई का चस्का लग जाएगा फिर बार बार चुदवाएगी। उसे चोदने में मैं तेरी सहायता करूंगी. और भी जो करना है वह कर लेना, मन चाहे वैसा चोदना, वैसे चुदाते समय वह ज्यादा नहीं रोएगी. एक नम्बर की छिनाल है वह लौंडी, हाँ उसकी नाजुक गांड में लंड जायेगा तो जरूर चीखेगी."
मेरा लंड अब दो दिन के आराम से फ़िर तन्ना कर खड़ा हो गया था और चाची पर चढने को मैं मरा जा रहा था. पर उन्हों ने ही मना कर दिया. "आज रात अब तेरी है. लंड मस्त रख, मजा आयेगा. आखिर कुंवारी चूत चोदना है, बहुत कसी होगी, मेहनत करना पड़ेगी."
"और चाची गांड भी तो मारनी है मुन्नी की" मैंने मचलकर कहा.
"उसके लिये भी कडा लंड चाहिये. खैर तू जवान छोकरा है, तेरा लंड तो हमेशा कडक रहता है. गांड भी मार लेना उस लौंडी की आज ही. पूरा चोद ले उसे अलट पलट कर दोनों ओर से" वे बोली. फ़िर साड़ी ऊपर उठाकर पलंग पर लेट गई. "तुझे दिन भर सब्र करना है, मुझे नहीं. मेरा काम तो तुझे करना ही पड़ेगा. चल लग जा चूत चूसने में."
दिन भर आते जाते जैसे समय मिले, चाची ने मुझसे बुर चुसवायी, खड़े लंड को किसी तरह दिलासा देते हुए मैं दिन भर उनकी सेवा करता रहा.
शाम को मुन्नी आयी. दस दिन बिना शारीरिक संपर्क के रह कर वह ऐसी गरमा गयी थी कि आते ही अपनी मौसी से लिपट गयी. चाची ने बड़ी मुश्किल से उसे रोका और कहा कि रात तक रुके. उसे हमने चाचाजी के साथ हुई हमारी सामूहिक रति के बारे में कुछ नहीं बताया.
रात को हम छत पर न जाकर चाची के कमरे में ही सोये. चाची ने पहले ही मुझे बता दिया था. "लड़की थोड़ा सा चीखेगी, इसलिये बंद कमरे में शिकार करेंगे उसका."
कपड़े उतारकर हम एक दूसरे से लिपट गये. मेरे तनकर खड़े लंड को देखकर मुन्नी चहक उठी. "हाय, कितनी जोर से खड़ा है भैया का लंड, लगता है आज की रात आपकी गांड फ़िर मारी जाने वाली है मौसी." चाची सिर्फ़ हंसी और कुछ नहीं बोली.
पहले बहुत देर चूत चुसाई हुई. मुन्नी और चाची ने मन भर के एक दूसरे की बुर का पानी पिया और फ़िर मैने भी उन दोनों की चूत चूसी. मुन्नी की कुंवारी संकरी चूत चूसते हुए मुझे ऐसा लग रहा था कि कब इसमे लोडा डालूँ और फ़ाड दूँ. जब मैं मुन्नी की बुर चाट रहा था तो चाची ने कहा. "अनुराग, मुन्नी को बाँहों में ले और प्यार कर, देखूँ तुम दोनों की जोड़ी कैसी लगती है."
मन भर कर मुन्नी की चूत चूसने के बाद मैं मुन्नी को बाँहों में लेकर लेट गया और उसकी कड़ी जरा जरा सी चूचियाँ दबाता हुआ उसे चूमने लगा. वह शरमा रही थी पर बड़े प्यार से चुम्मा दे रही थी. चाची हमारे पास आकर बैठ गई और हमारा प्रेमालाप देखने लगी.
मुन्नी अब तक काफ़ी गरमा गयी थी और मेरे लंड को हाथ से पकड कर मुठिया रही थी. उसे मैंने पलंग पर लिटाया और उसके नितंबों के नीचे एक तकिया रखा. वह अब थोड़ा घबरा गयी. "क्या कर रहे हो अनुराग भैया?"
चाची ने जब कहा कि अब उसकी चुदाई होगी तो वह नखरा करने लगी. बच्ची चुदाना तो चाहती थी पर मेरे तन्नाये लंड को देखकर वह काफ़ी भयभीत थी. चाची के पुचकारने पर आखिर उसने जांघें फैलाई और मैं उसकी टांगों के बीच अपना लंड संभाल कर बैठ गया. मैने चाची को आँख मारी कि समय आ गया है.
चाची समझ गई और मुन्नी के सर पर हाथ फेरकर उसे ढाढ़स बांधने लगी. मुन्नी थोड़ी सी घबरा गई "यह क्या कर रहे हो अनुराग भैया, जाने दो मुझे" मैंने अब अपना सुपाड़ा मुन्नी की कुंवारी चूत पर रखा और दबाना शुरू किया. चाची बोली "थोड़ा सा ही दुखेगा बेटी, तू ज्यादा मत छटपटाना घबराना मत, बहुत मजा भी आएगा, और पहली बार चुदाने का मजा तो तभी आता है जब थोड़ा दर्द हो."
मैने अपनी उंगलियों से उसकी चूत चौड़ी की और लंड को कस कर पेला. फ़च्च से सुपाड़ा उसकी कसी बुर के अंदर हो गया और मुन्नी दर्द से बिलबिला उठी. चीखने ही वाली थी कि चाची ने अपने हाथ से उसका मुंह दबोच दिया. तड़पती मुन्नी की परवाह न करके मैने लंड फ़िर पेला और आधा अंदर कर दिया. मुन्नी छटपटाते हुए अपने बंद मुंह से गोम्गियानि लगी.
उस कुंवारी मखमली चूत ने मेरे लंड को ऐसे पकड रखा था जैसे किसी ने मुठ्ठी में पकड़ा हो. मुन्नी की आँखों में आँसू छलक आये थे. उन्हें देखकर चाची और मैं और उत्तेजित हो उठे और एक दूसरे को चूमने लगे. मुन्नी को चोदने में मुझे बड़ा मजा आ रहा था इसलिये मैं जान बूझ कर बोला. "चाची, मजा आ गया, मुन्नी की चूत तो आज फ़ट जायेगी मेरे मोटे लंड से, पर मैं नहीं छोड़ने वाला इसे, चोद चोद कर फ़ुकला कर दूंगा साली को"
वह और घबराई तो मैंने झुककर उसका एक नन्हा निप्पल मुंह में लिया और चूसने लगा. मैंने सोचा कि अभी ज्यादा डराना ठीक नहीं है क्योंकी उसकी गांड भी मारनी थी. इसलिये उसे तड़पा तड़पा कर चोदने की अपनी इच्छा मैंने उसकी गांड के लिये बचा कर रखी. दूसरे स्तन को चाची प्यार से सहलाने लगी. धीरे धीरे मुन्नी का तड़पना कम हुआ और उसने बिलबिलाना बंद कर दिया.
चाची ने जब उसके मुंह से हाथ हटाया तो लड़की बोली. "हाय मौसी, बहुत दर्द होता है, अनुराग भैया, प्लीज़ अपना लोडा निकाल लो."
चाची ने मुझसे कहा "तुम चोदो अनुराग, मेरी यह भांजी जरा ज्यादा ही नाजुक है, इसकी परवाह मत करो. बाद में देखना, चुदते हुए कैसे किलकारियाँ भरेगी"
चाची ने झुककर अपने होंठ मुन्नी के मुंह पर जमा दिये और जोर से चूस चूस कर उसका चुंबन लेने लगी. मुन्नी अब शांत हो चली थी और उसकी चूत फ़िर गीली होने लगी थी. मैने बचा हुआ लंड धीरे धीरे इंच इंच करके उसकी चूत में पेलना शुरू किया. जब मुन्नी तड़पती तो मैं लंड घुसेडना बंद कर देता था. आखिर पूरा लंड उस कसी बुर में समा गया और मैने एक सुख की सांस ली.
"देख मुन्नी, पूरा लंड तेरी चूत में है और खून भी नहीं निकला है. कैसे प्यार से दिया है तेरी चूत में, तू फ़ालतू घबराती थी"
मुन्नी ने थोड़ा सिर उठा कर अपनी जांघों के बीच देखा तो हैरान रह गई. फ़िर शरमा कर मेरी ओर देखने लगी. चाची उसे पुचकार कर बोली. "शाबास मेरी बहादुर बिटिया, बस दर्द का काम खतम, अब मजा ही मजा है. अनुराग, तू चोद, मैं मुन्नी से अपनी चूत की सेवा करवाती हूँ"
चाची उठ कर मुन्नी के मुंह पर अपनी चूत जमाकर बैठ गई और धीरे धीरे उसका मुंह चोदने लगी. मैने अब धीरे धीरे लंड अंदर बाहर करना शुरू किया. पहले तो कसी चूत में लंड बड़ी मुश्किल से खिसक रहा था. मैने मुन्नी के क्लिटोरिस को अपनी उंगली से मसलना शुरू कर दिया और वह कमसिन बुर एक ही मिनट में इतनी पसीज गई कि लंड आसानी से फ़िसलने लगा. मैं अब उसे मस्त चोदने लगा.
मुन्नी को चोदते चोदते मैने पीछे से चाची की चूचियाँ पकड लीं और दबाने लगा. चुदाई का एक समां सा बंध गया. चाची अपना सिर घुमाकर मुझे चुंबन देते हुए अपनी भांजी के मुंह पर बैठ कर उससे अपनी चूत चुसवा रही थी और मैं पीछे से चाची के मम्मे दबाता हुआ उनकी चिकनी पीठ को चूमता हुआ हचक हचक कर मुन्नी की बुर चोद रहा था.
दोनों चूते खूब झड़ीं और खुशी की किलकारियाँ कमरे में गूजने लगी. आखिर मुझसे न रहा गया और मैने चाची को हटने को कहा.
"चाची, मुझसे अब नहीं रहा जाता, मैं मुन्नी पर चढ कर जोर जोर से चोदूंगा."
चाची हट गई और हस्तमैथुन करते हुए हमारी कामक्रीडा का आखिरी भाग देखने लगी. मैंने मुन्नी पर लेट कर उसे बाहों में जकड लिया और अपनी जांघों में उसके कोमल तन को दबोचकर उसे चूमता हुआ हचक हचक कर चोदने लगा. कुछ ऐसे ही जैसे चाचाजी ने मुझे चोदा था. मुन्नी की गरम सांसें अब जोर से चल रही थी, वह उत्तेजित कन्या चुदने को बेताब थी.
"चोदो भैया, और जोर से चोदो ना, अब नहीं दुखता, मजा आ रहा है, उई ऽ मां ऽ."
उसकी जीभ मुंह में लेकर चूसता हुआ मैंने उसे पूरी शक्ति से चोद डाला. सुख से मैं पागल हुआ जा रहा था. कुंवारी बुर में लंड चलने से ’पॉक पॉक’ की मस्त आवाज आ रही थी. आखिर मैंने एक करारा धक्का लगाया और लंड को मुन्नी की बुर में जड तक गाड कर स्खलित हो गया. मुन्नी की बुर अभी भी मेरे लोडे को पकड कर जकड़े हुए थी.
पूरा झड़ने के बाद मैने मुन्नी का प्यार से एक चुंबन लिया और उठ कर लंड खींच कर बाहर निकाला. लंड उसकी चूत के पानी से गीला था. चाची तुरंत मेरे पास आई और उसे मुंह में लेकर चूस डाला. मेरा लंड साफ़ करके मुझे बाजू में हटने को कहते हुए वे खुद मुन्नी की जांघों को फ़ैलाते हुए बोली. "अब देखूँ तो, मेरी भांजी की पहली बार चुदी बुर में अपनी मौसी के लिये क्या तोहफ़ा है!" और झुक कर मुन्नी की बुर चूसने लगी. मेरा सारा वीर्य और मुन्नी का पानी वे चटखारे ले ले कर निगलने लगी.
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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयामैं जाकर उनके पास नीचे बैठ गया. उनकी आँखों में आँखें डालकर बोला "हाँ माया चाची, आप तो मेरी जान हो. आज से आप छत पर नहीं मूतेंगी." फ़िर रुक कर बोला. "इस शरबत के लिये तो मैं कब से मरा जा रहा हूँ. पर डरता था कि आप बुरा न मान जाएँ. मेरे मुंह में मूतिये माया चाची, एक बूंद नहीं छलकने दूंगा. चलिये बिस्तर पर."
चाची खिल उठीं. "सच कहते हो लल्ला? मेरे दिल की बात कह दी. मैंने भी बहुत किताबों में पढ़ा है और एक दो तस्वीरें भी देखी हैं. मन करता था कि किसी अपने प्यारे के साथ ऐसा करूँ. इसी बच्ची ने आखिर कहा कि अनुराग भैया से कहती क्यों नहीं. बड़ी बदमाश है. कहती है कि उसकी सहेली की बहन तो रोज अपने पति के मुंह में मूतती है. इन दोनों ने कई बार छुपकर देखा है."
मुन्नी ने चाची को चिढ़ाकर कहा. "अब अनुराग भैया तो मान गये, अब मारने दोगी गांड?" चाची ने हंस कर कहा. "बिलकुल, पर एक शर्त है अनुराग." मैंने धडकते दिल से पूछा "क्या शर्त है चाची? बोल कर तो देखो?"
वे सीरियस होकर बोली. "सिर्फ़ मेरा ही नहीं, इस बच्ची का भी मूत पीना पड़ेगा. इसने राह दिखायी है, इसे भी इनाम मिलना चाहिये." मुन्नी टेन्शन में मेरी ओर कुछ शरमा कर देख रही थी कि मैं क्या कहता हूँ. जवाब में मुन्नी की चूत को चूम कर मैं बोला. "यह तो ऐसा हो गया चाची कि अंधा मांगे एक आँख और मिल जाएँ दोनों. तुम्हारे बुर के शरबत के साथ इस कन्या की चूत की शराब भी मिल जाये तो क्या कहने."
दोनों खुशी से उछल पड़ीं. मैं नीचे लेट गया. "आज यहीं खुली छत पर मेरे मुंह में मूत लो चाची. कल से बिस्तर पर ही कर लेना." चाची उठ कर मेरे सिर के दोनों और पाँव जमाकर घुटनों के बल बैठ गयी. "देख लल्ला, अब रोज की बात है, दिन में भी यही होगा! मना तो नहीं करेगा." जवाब में मैंने उन्हें नीचे खींच कर उनकी बुर चूम ली. "अब करो भी चाची, प्यास लगी है." मुन्नी भी बिलकुल पास आकर बैठ गयी कि ठीक से इस क्रीडा को देख सके.
चाची ने मेरा सिर पकडकर स्थिर किया और निशाना लगाकर मेरे मुंह में मूतने लगी. उस खारे गरमागरम शरबत को मैं गटागट निगलने लगा. मुझे अपना मूत पीते देख चाची ऐसी गरमाई कि बिना रुके और जोर से मूतने लगी. मैं चुपचाप पीता रहा पर मुन्नी ही मेरे मन की बात समझ कर बोली. "क्या मौसी तुम भी? धीरे धीरे मूतो ना! आखिर भैया को भी आराम से पीने दो, स्वाद तो लगे, अभी तो बस गटागट निगले जा रहा है बेचारा."
चाची थोड़ा शरमायीम और फ़िर रुक रुक कर मूतने लगी जिससे मुंह में भरे मूत को मैं ठीक से चख सकूँ. जब तक उनका मूतना समाप्त हुआ, वे ऐसी गरम हो गई कि सीधे मेरे मुंह पर बैठ कर अपनी चूत मेरे होंठों पर रगड रगड कर एक मिनिट में स्खलित हो गयी. मुझे बोनस में शरबत के साथ शहद भी मिल गया. झड़ते हुए मेरे बाल प्यार से सहला कर बोली. "मजा आ गया लल्ला. तू नहीं समझेगा. असल में अपने किसी को अपने शरीर का रस पिलाना औरतों को बहुत अच्छा लगता है. ऐसा लगता है कि अपना कर्तव्य पूरा कर रही हूँ तेरी प्यास बुझा कर. मेरा बस चले तो अपने शरीर का हर रस तुझे दे दूँ."
अब मुन्नी की बारी थी. उसकी आँखें भी कामुकता से चमक रही थी. "भैया, मैं तो खड़े खड़े ही मूतूँगी, हम लड़कियां स्कूल में अक्सर ऐसे ही करती हैं, नीचे बैठा नहीं जाता, इतनी गम्दगी होती है इसलिये." और वह अपनी टाँगे फ़ैलाकर खड़ी हो गयी.
उसकी बात मान कर मैं उसकी टांगों के बीच मुंह खोल कर सिर ऊपर करके बैठ गया. उसने मेरा सिर पकडकर निशाना लगाया और रुपहली धार मेरे मुंह में गिरने लगी. मुन्नी ने बड़े प्यार से अपना मूत मुझे पिलाया. मुंह भरते ही रुक जाते थी जिससे मैं स्वाद ले सकूँ. उधर चाची पास आकर मुन्नी से लिपटकर खड़ी हो गई और उस बच्ची के चुंबन लेते हुए और उसके कच्चे उरोज दबाते हुए पास से इस अनूठे काम को देखने का मजा लेने लगी.
चाची की धार जहाँ मोटी और धीमी थी, मुन्नी की एकदम पतली और तेज थी, पिचकारी जैसी. स्वाद दोनों का एकदम मस्त था, बुर की सौंधी खुशबू से भिना हुआ. आखिर मुन्नी का पूरा मूत पीकर मैं उठा और उसे उठा कर बिस्तर पर ले गया. वहाँ पटककर पहले उसकी बुर चूसी और फ़िर चाची पर चढ कर उन्हें चोद डाला.
चाची कहती ही रह गई. "अरे गांड नहीं मारेगा क्या, मैंने वायदा किया है तुझ से." मैंने कहा. "ऐसे सस्ते में थोड़े छोड़ूँगा चाची! आज तो झड़ झड़ कर लंड मुरझा गया है, तुम तो आराम से ले लोगी गांड में. कल दोपहर को मारूँगा, मस्त खड़ा कर के. आप को भी तो पता चले कि जब मस्त सूजा लंड गांड में जाता है तो कैसा लगता है. उस रात को खड़ा किया था, उससे भी मोटा होगा कल."
दूसरे दिन सुबह से बड़ा सस्पेंस का माहौल था. चाची और मुन्नी में रोज की तरह नौकरानी की आँख बचाकर एक दो बार चूमा चाटी हुई पर मैं अलग से मन शांत कर के बैठा था. लंड को जितना हो सकता था उतना आराम दे रहा था. मेरी ओर कनखियों से देख कर मुन्नी हंस रही थी, उसे मालूम था कि मैं क्यों चुप बैठा हूँ.
आखिर दोपहर हुई और हम हमेशा की तरह चाची के कमरे में इकठ्ठे हुए. कपड़े निकालने के बाद पहला काम मैंने यह किया कि दोनों का मूत पिया. वहीं कमरे के फ़र्श पर लेटकर और उन दोनों चुदैलो को अपने मुंह पर बिठाकर. दोनों को यह अपेक्षित नहीं था, उन्हों ने सोचा था कि कल रात वाली बात तो मौके पर वासना के अतिरेक में हो गयी थी. पर जब मैंने खुद ही उनका मूत पीने में पहल की, यह कहते हुए कि मैंने कल ही कहा था कि आज से मेरी दोनों खूबसूरत साथिने मेरे मुंह के सिवाय कही नहीं मूतेंगी, तो मुन्नी मेरे मुंह में मूतते हुए शैतानी से बोली.
"भैया, हाय पहले मालूम होता तो आपका चार पाँच गिलास शरबत बेकार नहीं जाता. मैं और मौसी सुबह से दो बार बाथरूम जा चुके हैं." चाची ने उसे हटाकर मेरे मुंह पर बैठते हुए उसे डाँट लगायी. "चुप कर शैतान, नौकरानी के आगे आखिर क्या करते? बोतल में मूत कर अनुराग लल्ला के लिये रखते?"
चाची का मूत पीने के बाद होंठ पोंछते हुए मैंने जवाब दिया. "हाँ चाची, प्लीज़, कल से चार पाँच बड़ी पेप्सी की बोतलें धो कर रख दो. जब मेरे मुंह में मूतना सम्भव न हो, तो दोनों इन बोतलो का इस्तेमाल करके उन्हें फ़्रिज़ में रख दिया करो. मैं बाद में पी लूँगा. इस अमृत की एक बूंद व्यर्थ नहीं जाना चाहिये."
खैर! उसके बाद चाची और मुन्नी का बाथरूम जाना ही बंद हो गया. मेरे होते उन दोनों को कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. बोतलों की जरूरत भी नहीं पड़ी क्योंकी जब भी पिशाब लगती, वे चुपचाप मुझे कही अकेले में ले जातीं, अपने साड़ी या स्कर्ट ऊपर करती और मेरे मुंह में मूत देती. मेरा मुंह उनका यह अमृत पीने के लिये सदा हाजिर होता. मैंने कभी एक बूंद नहीं छलकायी इसलिये आराम से बिस्तर में लेटे लेटे भी यह काम दोनों कर लेती थी. मुझे भी उन दोनों चुदैलो के मूत का ऐसा चसका लगा कि आदत ही लग गयी. आज भी अपने सेक्स पार्टनर का मूत पीने में मुझे बड़ा मजा आता है.
अब तक उन दोनों मद भरी बुरों के शरबत ने मेरा लंड खड़ा कर दिया था. सोलह घंटे के आराम के बाद वह अब मस्त तन्ना रहा था. "अब देखिये चाची, अब यह इस अवस्था में है कि आप की गांड की प्यास बुझा सके." चाची थोड़ा घबरा कर उसकी ओर देख रही थी. पर नजर में बड़ी मादक प्यास भी थी. "नहीं लल्ला, अभी माफ़ करो, रात में मार लेना."
"जब फ़िर मुरझा जाये? नहीं मौसी तुमने वायदा किया था भैया से, चलो गांड मराओ." मुन्नी मेरा साथ देती हुई अपनी बुर रगड़ती हुई बोली. उसे बड़ा मजा आ रहा था. अपने लंड को और कस कर खड़ा करने का मुझे अचानक एक उपाय सूझा. आज मैं जरा दुष्ट मूड में था और यही सोच रहा था कि जितना हो सके लंड को मस्त करूँ ताकि माया चाची कुछ और जोर से बिलबिलाये गांड मराते समय. आखिर मुझे भी तो इतने दिन का हिसाब वसूलना था. बस मुझे अपने आप पर पूरा कंट्रोल रखना जरूरी था.
"माया चाची, चलो एक काम करते हैं. आप दोनों मिलकर मेरे लंड से खेलो, चूसो, कुछ भी करो. बीस मिनिट का समय देता हूँ. अगर मुझे झड़ा लिया तो आपकी गांड बच जायेगी. नहीं तो फ़िर बिना तेल लगाये ही मारूँगा, आपको तड़पा तड़पा कर और मजा लेने के लिये. बोलो है मंजूर?"
चाची ने कुछ देर सोचा और एक शर्त अपनी भी रख दी. आखिर पक्की छिनाल जो थी. "ठीक है लल्ला, पर भले तेल न लगाना, चूसना जरूर पड़ेगी. मेरी गांड का छेद मुंह से और जीभ से गीला करना पड़ेगा, बोलो है मंजूर?" उन्हें लगा कि शायद मुझे गंदा लगे इसलिये मैं न मानूँ पर मैं तुरंत तैयार हो गया. मेरी प्यारी मतवाली चाची की गांड चूसना तो मेरे लिये मानों एक और उपहार था.
घड़ी में बीस मिनिट का अलार्म लगाया गया और फ़िर दोनों मिलकर मेरे लंड पर टूट पड़ीं. बारी बारी से चूमने और चूसने लगी. चाची बीच बीच में उसे अपने गोल मटॊल स्तनों के बीच पकड कर बेलन जैसे रगड़ने लगतीं. कभी अपने घने बालों में लपेट लेती. मुन्नी भी बड़े चाव से चाची का साथ दे रही थी.
दस मिनिट में भी जब मैं न झड़ा तो चाची थोड़ा घबराई. मुन्नी को बोली. "बेटी तू इसके मुंह पर चढ जा, इसे अपनी चूत चुसवा. मैं इसे चोदती हूँ, देखें कैसे नहीं झड़ता."
मुन्नी मेरे मुंह पर बैठ गयी और मैं जीभ डालकर उस कोमल मखमली कच्ची बुर का रस पीने लगा. उधर चाची मुझ पर चढ कर मुझे चोदने लगी.
अगले दस मिनिट मेरी परीक्षा के थे पर मैं खरा उतरा. किसी तरह अपने सुख से मचलते लंड पर काबू किये रहा. मुन्नी की चूत के रस ने और चाची की बुर के घर्षण ने मुझ पर ऐसा जादू किया कि मेरा लंड घोड़े के लंड जैसा खड़ा हो गया. आखिर अलार्म बजा तो मुन्नी उठ कर खड़ी हो गयी. कई बार मेरे मुंह में झड़ कर तृप्त हो गयी थी. हंस कर चाची को बोली. "चलो मौसी तुम शर्त हार गई, अब तो गांड मराना ही पड़ेगी."
चाची भी कई बार झड़ चुकी थी. हांफते हुए लस्त होकर किसी तरह मेरे लंड को अपनी गीली बुर में से खींच कर निकाला तो लोडे की साइज़ देखकर उनकी आँखें पथरा गई. "हाय लल्ला, यह तो और मुश्टंडा हो गया. लगता है मैंने अपनी कब्र खुद बना ली, तू मार डालेगा मुझे बेटे, दया कर, चोद ले अभी, गांड बाद में मारना." पर डरने का सिर्फ़ बहाना था, उनकी आँखों में गजब की कामुकता थी. गांड चुदाने को वे भी मरी जा रही थी.
उनकी एक न मान कर मैंने उन्हें उठा कर बिस्तर पर औंधे लिटा दिया. वे बोली. "मुन्नी बिटिया, गांड तो मुझे मरवाना ही है तो ऐसा कर, तू मेरे नीचे उलटी तरफ़ से आ जा रानी. सिक्सटी नाइन करते हुए मरवाऊँगी तो दर्द थोड़ा कम हो जायेगा." मुन्नी तपाक से उनके नीचे घुस गयी. अपनी टाँगे खोलती हुई बोली. "लो चूसो मौसी" फ़िर मौसी के चूतड पकडकर उनकी बुर चाटती हुई मुझसे बोली. "अनुराग भैया, मुझे तो बिलकुल बाल्कनी की सीट मिल गयी शो देखने को. दो इंच दूर से मौसी की गांड में तुम्हारा लोडा घुसते देखूँगी."
मैं झुक कर अपनी जीभ और होंठों से चाची के नितंबों की पूजा करने लगा. जब उनके गुदा में जीभ डाली तो वे सिहर उठीं. उनकी गांड का छेद पकपकाने लगा और मेरी जीभ को पकडने लगा. गांड का सौंधा खटमिठ्ठा स्वाद लेते हुए मैंने खूब गांड चूसी और फ़िर आखिर बिस्तर पर चढकर उनके गुदा पर लंड जमाता हुआ बोला. "मुन्नी जरा हेल्प कर, अपनी हाथों से तेरी मौसी की गांड चौड़ी कर." मेरी सुपाड़ा फ़ूल कर टमाटर सा हो गया था और मौसी की गांड में उसका घुसना असंभव सा लग रहा था.
मौसी की बुर में जीभ डालकर मुन्नी ने अपनी पूरी शक्ति से उनके गोरे नितंब फ़ैलाये. मैंने कस के लंड पेला और सुपाड़ा अंदर घुसेड दिया. मौसी के मुंह से एक चीख निकल गयी. "मार डाला रे मुझे तूने बेदर्दी, फ़ाड दी मेरी." मैं हंसते हुए बोला. "नहीं चाची, ऐसे थोड़े फ़टेगी आपकी गांड, आखिर मारने के लिये ही बनाई है कामदेव ने तो फ़टेगी कैसे. हाँ, आप भी गुदा ढीला कीजिये नहीं तो दर्द होगा ही."
चाची अपना दर्द कम करने को मुन्नी की चूत चूसने लगी. मुन्नी ने भी अपनी गोरी कमसिन जांघें उसके सिर के इर्द गिर्द जकड लीं. चाची का दर्द कुछ कम हुआ तो मैंने लंड और पेलना शुरू किया. जब वे दर्द से कराह उठती तो मैं फ़िर रुक जाता. इस तरह आखिर मैंने जड तक लंड उनके चूतड़ों के बीच उतार ही दिया.
कुछ देर मैं मजा लेता हुआ पड़ा रहा. चाची की गांड कस के मेरे लंड को पकड़े हुए थी. मैं बस झड़ने ही वाला था. आखिर न रहकर मैने उनकी गांड मारना शुरू कर दी. अब तक सब थूक सूख जाने से मेरा लंड और उनकी गांड का छेद सूख गये थे और इसलिये लंड फ़िसल नहीं रहा था, बस फंसा हुआ था उनकी गांड में. मुझे तो इस घर्षण से बड़ा मजा आया. पर चाची बिलबिला उठीं. गांड में फंसे लोडे के आगे पीछे होने से उन्हें बहुत तकलीफ़ हो रही थी. पर मै अब इतना उत्तेजित हो गया था कि उनके सिसकने की परवाह न करके कस के दस बारा धक्के लगाये और झड़ गया.
Mst update intzar rahega agle update kaमैं उठ कर बैठ गया. चाची चाचाजी से बोली.
"लल्ला को अब तीन दिन छुट्टी देते हैं ताकि यह पूरा ताजा तवाना हो जाये. तुम दो दिन मुझे खूब भोगो, मुझे खुश कर दो."
मैंने तीन दिन सेक्स से वंचित रखे जाने के प्लान पर विरोध किया पर दोनों ने मेरी एक न सुनी. हाँ, मुझे एक चुदाई का आखिरी उपहार देने के स्वरूप मेरी चुदैल चाची ने यह इच्छा जाहिर की कि आज की रात में और चाचाजी एक साथ उन्हे आगे पीछे से भोग सकेंगे. जाहिर था कि चाची की कामोत्तेजना अब चरम सीमा पर थी. अपने दोनों छेदों में एक एक लंड एक साथ लेना चाहती थी.
दोपहर भर आराम करके हम फ़िर चुस्त हुए. रात को बिस्तर में एक दूसरे से चूमा चाटते करते हुए हमने यह फ़ैसला किया कि पहले चाचाजी उसकी चूत चोदेंगे और मैं गांड मारूँगा. चाचाजी ने पहले तो चाची की चूत चूसी और उसे गरम किया. एक दो बार झड़ाकर रस पिया. फिर अपनी पत्नी की बुर में अपना लोडा घुसाकर वे उसे बाँहों में भरकर पीठ के बल लेट गये जिससे चाची उनके ऊपर हो गई. चाची की गांड उन्हों ने अपने हाथों से मेरे लिये फ़ैलायी और मैंने अपना लंड चाची के कोमल गुदा में आसानी से उतार दिया.
चाची को अब हम दोनों एक साथ चोदने लगे. मैं ऊपर से उनकी गांड मारने लगा और नीचे से चाचाजी अपनी कमर उछाल उछाल कर चोदने लगे. कुछ ही समय में एक लय बंध गयी और चाची के दोनों छेदों में सटा सट लंड चलने लगे. वे तृप्त होकर सिसकारियाँ भरने लगी. हर दस मिनिट में हम पलट लेते जिससे कभी चाचाजी ऊपर होते तो कभी मैं. कभी करवट पर लेट कर आगे पीछे से चोदते. चाची तो निहाल होकर किसी रंडी जैसी गंदी गालियां देती हुई इस डबल चुदाई का आनंद ले रही थी.
चाचाजी बेतहाशा चाची को चूमते हुए उसे चोद रहे थे. चाची की चूत और गुदा के बीच की दीवार तन कर इतनी पतली हो गयी थी कि मेरे और चाचाजी के लंड आपस में रगड रहे थे मानों हम लंड लड़ा रहे हों. हमने ऐसी लय बांध ली कि जब मेरा लंड अंदर होता तो चाचाजी का बाहर और जब वे चूत में लंड पेलते तो मैं गांड में से बाहर खींच लेता. इससे हमारे लंड आपस मे ऐसे मस्त सटक रहे थे कि जैसे बीच में कुछ न हो.
झड़ने के बाद हमने एक दूसरे के वीर्य का पान चाची के छेदों में से किया. मैंने उनकी चूत चूसी और चाचाजी ने गांड. फ़िर हमने चोदने के लिये छेद बदल लिये. इस बार मेरा लंड चाची की चूत में था और चाचाजी का लंड चाची की गांड में था. यह चुदाई आधी रात के बाद तक चलती रही और तभी खतम हुई जब आखिर चाची चुद चुद कर बेहोश हो गयी. मैं और चाचाजी भी झड़ कर निढाल होकर बिस्तर पर गिर गए.
दूसरे दिन से मेरी छुट्टी हो गयी. लंड खड़ा होकर तकलीफ़ न दे और खूब नींद आये ऐसी दवा चाचाजी ने मुझे दी. बस मैं खाता था और सोता था. एक तरह से मेरे लिये यह अच्छा भी हुआ क्योंकी दो हफ्तों के निरंतर संभोग के बाद मेरे शरीर को आराम की सख्त जरूरत थी.
लगता है कि चाचाजी ने अपनी पत्नी की ओर उनकी जिम्मेदारी पूरी निभाई क्योंकी दो दिन में चाची की चुद चुद कर ऐसी हालत हो गयी जैसे एक साथ दस बारह लोगों ने चोद डाला हो. पर उनके चेहरे पर बहुत खुशी और सुकून था. वे बिलकुल तृप्त नजर आती थी.
एक बात और भी हुई, और वह यह कि चाचाजी भी अपनी पत्नी के बुर का शरबत पीने लगे. इसका पता मुझे तब चला जब एक दिन दोपहर को मैंने छुप कर उनके कमरे में देखा. बात यह थी कि मेरे बहुत कहने पर भी उन तीन दिनों में चाची ने मुझे अपना मूत नहीं पिलाया. कहती कि मुझे पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये.
उसे मेरे मुंह में मूतने में कितना मजा आता था यह मैं जानता था. उधर चाचाजी भी मुझे कभी पानी पीते नहीं दिखते थे. कुतूहल से मैंने आखिर एक दिन दरवाजे की दरार में से देखा तो चाची साड़ी कमर तक ऊपर करके पैर फ़ैलाकर खड़ी थी और चाचाजी अपने पत्नी की टांगों के बीच बैठे मुंह उठाये उसका मूत पी रहे थे. चाची हंसती हुई उनका सिर पकडकर उनके मुंह में मूतती हुई उन्हें उलाहना दे रही थी.
"आखिर मैं तुम दोनों की कैसे प्यास बुझाऊँगी? दो दो दीवाने हैं अब मेरे बुर के शरबत के. लगता है हर दस मिनिट में गिलास भर पानी पीना पड़ेगा." में ईर्षा से जलते हुए वापिस अपने कमरे में आकर सो गया
चाचाजी तो सुबह फ़िर अपने दौरे पर निकल गये.
--- आगे ---
चाचाजी के जाने के बाद मैं चाची से लिपट गया. वे प्यार से मुझे चूमते हुए बोली.
"तीन दिन आराम करके कैसा महसूस हो रहा है?"
मैं बेचैन होकर बोला.
"मेरी तो हालत खराब कर दी, ना आपको चोदना नसीब हो रहा था ना ही आपकी बुर का शर्बत पीने मिल रहा था!"
चाची बोली. "मेरी रातें तो बढ़िया कटी, मुझे पूरा खलास कर दिया उन्हों ने. लगता है कि अब कही वे जाकर सही तरीके से मेरे पति बने हैं. और इसका सारा श्रेय तुझे है."
मैंने उनके मम्मे चूमते हुए कहा. "तो इनाम देगी ना चाची अपने इस भक्त को?"
"हाँ लल्ला, मैं भूली नहीं हूँ, मुन्नी आज शाम को वापस आ रही है. उसे चोद ले. वह लड़की नखरा करेगी पर कहाँ जायेगी? एक बार चुदाई का चस्का लग जाएगा फिर बार बार चुदवाएगी। उसे चोदने में मैं तेरी सहायता करूंगी. और भी जो करना है वह कर लेना, मन चाहे वैसा चोदना, वैसे चुदाते समय वह ज्यादा नहीं रोएगी. एक नम्बर की छिनाल है वह लौंडी, हाँ उसकी नाजुक गांड में लंड जायेगा तो जरूर चीखेगी."
मेरा लंड अब दो दिन के आराम से फ़िर तन्ना कर खड़ा हो गया था और चाची पर चढने को मैं मरा जा रहा था. पर उन्हों ने ही मना कर दिया. "आज रात अब तेरी है. लंड मस्त रख, मजा आयेगा. आखिर कुंवारी चूत चोदना है, बहुत कसी होगी, मेहनत करना पड़ेगी."
"और चाची गांड भी तो मारनी है मुन्नी की" मैंने मचलकर कहा.
"उसके लिये भी कडा लंड चाहिये. खैर तू जवान छोकरा है, तेरा लंड तो हमेशा कडक रहता है. गांड भी मार लेना उस लौंडी की आज ही. पूरा चोद ले उसे अलट पलट कर दोनों ओर से" वे बोली. फ़िर साड़ी ऊपर उठाकर पलंग पर लेट गई. "तुझे दिन भर सब्र करना है, मुझे नहीं. मेरा काम तो तुझे करना ही पड़ेगा. चल लग जा चूत चूसने में."
दिन भर आते जाते जैसे समय मिले, चाची ने मुझसे बुर चुसवायी, खड़े लंड को किसी तरह दिलासा देते हुए मैं दिन भर उनकी सेवा करता रहा.
शाम को मुन्नी आयी. दस दिन बिना शारीरिक संपर्क के रह कर वह ऐसी गरमा गयी थी कि आते ही अपनी मौसी से लिपट गयी. चाची ने बड़ी मुश्किल से उसे रोका और कहा कि रात तक रुके. उसे हमने चाचाजी के साथ हुई हमारी सामूहिक रति के बारे में कुछ नहीं बताया.
रात को हम छत पर न जाकर चाची के कमरे में ही सोये. चाची ने पहले ही मुझे बता दिया था. "लड़की थोड़ा सा चीखेगी, इसलिये बंद कमरे में शिकार करेंगे उसका."
कपड़े उतारकर हम एक दूसरे से लिपट गये. मेरे तनकर खड़े लंड को देखकर मुन्नी चहक उठी. "हाय, कितनी जोर से खड़ा है भैया का लंड, लगता है आज की रात आपकी गांड फ़िर मारी जाने वाली है मौसी." चाची सिर्फ़ हंसी और कुछ नहीं बोली.
पहले बहुत देर चूत चुसाई हुई. मुन्नी और चाची ने मन भर के एक दूसरे की बुर का पानी पिया और फ़िर मैने भी उन दोनों की चूत चूसी. मुन्नी की कुंवारी संकरी चूत चूसते हुए मुझे ऐसा लग रहा था कि कब इसमे लोडा डालूँ और फ़ाड दूँ. जब मैं मुन्नी की बुर चाट रहा था तो चाची ने कहा. "अनुराग, मुन्नी को बाँहों में ले और प्यार कर, देखूँ तुम दोनों की जोड़ी कैसी लगती है."
मन भर कर मुन्नी की चूत चूसने के बाद मैं मुन्नी को बाँहों में लेकर लेट गया और उसकी कड़ी जरा जरा सी चूचियाँ दबाता हुआ उसे चूमने लगा. वह शरमा रही थी पर बड़े प्यार से चुम्मा दे रही थी. चाची हमारे पास आकर बैठ गई और हमारा प्रेमालाप देखने लगी.
मुन्नी अब तक काफ़ी गरमा गयी थी और मेरे लंड को हाथ से पकड कर मुठिया रही थी. उसे मैंने पलंग पर लिटाया और उसके नितंबों के नीचे एक तकिया रखा. वह अब थोड़ा घबरा गयी. "क्या कर रहे हो अनुराग भैया?"
चाची ने जब कहा कि अब उसकी चुदाई होगी तो वह नखरा करने लगी. बच्ची चुदाना तो चाहती थी पर मेरे तन्नाये लंड को देखकर वह काफ़ी भयभीत थी. चाची के पुचकारने पर आखिर उसने जांघें फैलाई और मैं उसकी टांगों के बीच अपना लंड संभाल कर बैठ गया. मैने चाची को आँख मारी कि समय आ गया है.
चाची समझ गई और मुन्नी के सर पर हाथ फेरकर उसे ढाढ़स बांधने लगी. मुन्नी थोड़ी सी घबरा गई "यह क्या कर रहे हो अनुराग भैया, जाने दो मुझे" मैंने अब अपना सुपाड़ा मुन्नी की कुंवारी चूत पर रखा और दबाना शुरू किया. चाची बोली "थोड़ा सा ही दुखेगा बेटी, तू ज्यादा मत छटपटाना घबराना मत, बहुत मजा भी आएगा, और पहली बार चुदाने का मजा तो तभी आता है जब थोड़ा दर्द हो."
मैने अपनी उंगलियों से उसकी चूत चौड़ी की और लंड को कस कर पेला. फ़च्च से सुपाड़ा उसकी कसी बुर के अंदर हो गया और मुन्नी दर्द से बिलबिला उठी. चीखने ही वाली थी कि चाची ने अपने हाथ से उसका मुंह दबोच दिया. तड़पती मुन्नी की परवाह न करके मैने लंड फ़िर पेला और आधा अंदर कर दिया. मुन्नी छटपटाते हुए अपने बंद मुंह से गोम्गियानि लगी.
उस कुंवारी मखमली चूत ने मेरे लंड को ऐसे पकड रखा था जैसे किसी ने मुठ्ठी में पकड़ा हो. मुन्नी की आँखों में आँसू छलक आये थे. उन्हें देखकर चाची और मैं और उत्तेजित हो उठे और एक दूसरे को चूमने लगे. मुन्नी को चोदने में मुझे बड़ा मजा आ रहा था इसलिये मैं जान बूझ कर बोला. "चाची, मजा आ गया, मुन्नी की चूत तो आज फ़ट जायेगी मेरे मोटे लंड से, पर मैं नहीं छोड़ने वाला इसे, चोद चोद कर फ़ुकला कर दूंगा साली को"
वह और घबराई तो मैंने झुककर उसका एक नन्हा निप्पल मुंह में लिया और चूसने लगा. मैंने सोचा कि अभी ज्यादा डराना ठीक नहीं है क्योंकी उसकी गांड भी मारनी थी. इसलिये उसे तड़पा तड़पा कर चोदने की अपनी इच्छा मैंने उसकी गांड के लिये बचा कर रखी. दूसरे स्तन को चाची प्यार से सहलाने लगी. धीरे धीरे मुन्नी का तड़पना कम हुआ और उसने बिलबिलाना बंद कर दिया.
चाची ने जब उसके मुंह से हाथ हटाया तो लड़की बोली. "हाय मौसी, बहुत दर्द होता है, अनुराग भैया, प्लीज़ अपना लोडा निकाल लो."
चाची ने मुझसे कहा "तुम चोदो अनुराग, मेरी यह भांजी जरा ज्यादा ही नाजुक है, इसकी परवाह मत करो. बाद में देखना, चुदते हुए कैसे किलकारियाँ भरेगी"
चाची ने झुककर अपने होंठ मुन्नी के मुंह पर जमा दिये और जोर से चूस चूस कर उसका चुंबन लेने लगी. मुन्नी अब शांत हो चली थी और उसकी चूत फ़िर गीली होने लगी थी. मैने बचा हुआ लंड धीरे धीरे इंच इंच करके उसकी चूत में पेलना शुरू किया. जब मुन्नी तड़पती तो मैं लंड घुसेडना बंद कर देता था. आखिर पूरा लंड उस कसी बुर में समा गया और मैने एक सुख की सांस ली.
"देख मुन्नी, पूरा लंड तेरी चूत में है और खून भी नहीं निकला है. कैसे प्यार से दिया है तेरी चूत में, तू फ़ालतू घबराती थी"
मुन्नी ने थोड़ा सिर उठा कर अपनी जांघों के बीच देखा तो हैरान रह गई. फ़िर शरमा कर मेरी ओर देखने लगी. चाची उसे पुचकार कर बोली. "शाबास मेरी बहादुर बिटिया, बस दर्द का काम खतम, अब मजा ही मजा है. अनुराग, तू चोद, मैं मुन्नी से अपनी चूत की सेवा करवाती हूँ"
चाची उठ कर मुन्नी के मुंह पर अपनी चूत जमाकर बैठ गई और धीरे धीरे उसका मुंह चोदने लगी. मैने अब धीरे धीरे लंड अंदर बाहर करना शुरू किया. पहले तो कसी चूत में लंड बड़ी मुश्किल से खिसक रहा था. मैने मुन्नी के क्लिटोरिस को अपनी उंगली से मसलना शुरू कर दिया और वह कमसिन बुर एक ही मिनट में इतनी पसीज गई कि लंड आसानी से फ़िसलने लगा. मैं अब उसे मस्त चोदने लगा.
मुन्नी को चोदते चोदते मैने पीछे से चाची की चूचियाँ पकड लीं और दबाने लगा. चुदाई का एक समां सा बंध गया. चाची अपना सिर घुमाकर मुझे चुंबन देते हुए अपनी भांजी के मुंह पर बैठ कर उससे अपनी चूत चुसवा रही थी और मैं पीछे से चाची के मम्मे दबाता हुआ उनकी चिकनी पीठ को चूमता हुआ हचक हचक कर मुन्नी की बुर चोद रहा था.
दोनों चूते खूब झड़ीं और खुशी की किलकारियाँ कमरे में गूजने लगी. आखिर मुझसे न रहा गया और मैने चाची को हटने को कहा.
"चाची, मुझसे अब नहीं रहा जाता, मैं मुन्नी पर चढ कर जोर जोर से चोदूंगा."
चाची हट गई और हस्तमैथुन करते हुए हमारी कामक्रीडा का आखिरी भाग देखने लगी. मैंने मुन्नी पर लेट कर उसे बाहों में जकड लिया और अपनी जांघों में उसके कोमल तन को दबोचकर उसे चूमता हुआ हचक हचक कर चोदने लगा. कुछ ऐसे ही जैसे चाचाजी ने मुझे चोदा था. मुन्नी की गरम सांसें अब जोर से चल रही थी, वह उत्तेजित कन्या चुदने को बेताब थी.
"चोदो भैया, और जोर से चोदो ना, अब नहीं दुखता, मजा आ रहा है, उई ऽ मां ऽ."
उसकी जीभ मुंह में लेकर चूसता हुआ मैंने उसे पूरी शक्ति से चोद डाला. सुख से मैं पागल हुआ जा रहा था. कुंवारी बुर में लंड चलने से ’पॉक पॉक’ की मस्त आवाज आ रही थी. आखिर मैंने एक करारा धक्का लगाया और लंड को मुन्नी की बुर में जड तक गाड कर स्खलित हो गया. मुन्नी की बुर अभी भी मेरे लोडे को पकड कर जकड़े हुए थी.
पूरा झड़ने के बाद मैने मुन्नी का प्यार से एक चुंबन लिया और उठ कर लंड खींच कर बाहर निकाला. लंड उसकी चूत के पानी से गीला था. चाची तुरंत मेरे पास आई और उसे मुंह में लेकर चूस डाला. मेरा लंड साफ़ करके मुझे बाजू में हटने को कहते हुए वे खुद मुन्नी की जांघों को फ़ैलाते हुए बोली. "अब देखूँ तो, मेरी भांजी की पहली बार चुदी बुर में अपनी मौसी के लिये क्या तोहफ़ा है!" और झुक कर मुन्नी की बुर चूसने लगी. मेरा सारा वीर्य और मुन्नी का पानी वे चटखारे ले ले कर निगलने लगी.
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Wah chachi Munni inaam me de rahi hain.आज की रात सफ़ल रही थी. मैंने पहले अपना पुरस्कार वसूल किया. मैंने मस्ती से चाची की चूत चूसी. आज उसमें गजब का रस था. उन्हों ने भी बड़े प्यार से चुसवाई. "मेरे लाडले, मेरे लल्ला, तूने तो आज निहाल कर दिया अपनी चाची को." मैंने उनकी बुर चूसते हुए कहा. "अभी तो कुछ नहीं हुआ चाची, कल जब चाचाजी तुम्हें चोदेंगे, तब कहना."
फ़िर मैं चाची पर चढ कर उन्हें चोदने लगा. चाचाजी बड़े चाव से मेरा यह कारनामा देख रहे थे; आखिर कल उन्हें भी करना था. बीच में चुदते चुदते चाची ने मेरे कान में हल्के से पूछा. "लल्ला, ये मेरी बुर कब चूसेंगे? मैं मरी जा रही हूँ अपना पानी इन्हें पिलाने को." चाची के कान में फ़ुसफ़ुसा कर मैंने जवाब दिया."आज ही शुरुआत किये देता हूँ चाची, तुम देखती जाओ, एक बार तुम्हारे माल का स्वाद लग जाए इनके मुंह में, कल से खुद ही गिड़गिड़ाएंगे तुम्हारे सामने."
झड़ने के बाद जब मैंने लंड चाची की चूत से बाहर निकाला तो उसमें मेरे वीर्य और चाची के शहद का मिश्रण लिपटा हुआ था. चाचाजी कुछ देर देखते ही रह गए.
मैंने उनके बाल प्यार से बिखेर कर कहा. "चाचाजी, ऐसा माल चाची जी की चुत में बहुत सारा है, यहाँ देखिये" कह कर मैंने चाची की बुर की ओर इशारा किया. उसमें से मेरा वीर्य और उनका रस बह रहा था. चाचाजी झट से अपनी पत्नी की टांगों के बीच घुस कर चाची की चूत से बहता मेरा वीर्य चाटने लगे.
चाची सुख से सिहर उठीं. अपने पति का सिर पकडकर अपनी जांघों में जकड लिया और मुंह बुर पर दबा लिया. "अब नहीं छोड़ूँगी प्राणनाथ, पूरा रस पिलाकर ही रहूँगी." और वे धक्के दे देकर चाचाजी का मुंह चोदने लगी. चाचाजी भी उसे चाटने में जो जुटे तो चाची की बुर में से जीभ डाल कर आखिरी कतरा तक चूस डाला.
तब तक चाची तीन चार बार झड़ा चुकी थी. वह सब रस भी उनके पतिदेव के मुंह में गया. लगता है नारी की योनि का रस पसंद आया क्योंकी चाचाजी के चेहरे पर कोई हिचक नहीं थी. आखिर में तो प्यार से वे काफ़ी देर अपनी पत्नी की चूत चाटते रहे.
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चाचाजी और मैं फ़िर मूतने के लिये छत पर चले गये. ’तू भी मूत ले रानी, फ़िर आगे का काम शुरू करते हैं." चाचाजी प्यार से बोले.
"मैं अलग से कर लूँगी. तुम हो आओ." वे मुस्कराकर बोली.
“आ जा अनुराग, तेरा शरबत तैयार है." माया चाची ने कहा
चाचाजी ने उनसे पूछा "कौन सा शरबत है जो प्यार से बिस्तर में पिलाती हो? जरा मैं भी तो देखूँ!" चाची खिलखिलाकर बोली. "जल्दी आ अनुराग, नहीं तो छलक जायेगा. अब नहीं रहा जाता मुझसे."
चाची बिस्तर पर घुटने टेक कर तैयार थी. मैं झट से उनकी टांगों के बीच घुस कर लेट गया. अपनी झांटें बाजू में करके चाची ने अपनी बुर मेरे मुंह पर जमायी और मूतने लगी. मैं चटखारे लेकर उनका मूत पीने लगा. चाचाजी के चेहरे पर आश्चर्य और कामवासना के भाव उमड आये. "अरे तू तो मूत रही है अनुराग के मुंह में?"
चाची हंस कर बोली. "यही तो शरबत है मेरे लाडले का. दिन भर और रात को भी पिलाती हूँ. इसने तो पानी पीना ही छोड. दिया है. और तुम्हारी कसम, दो हफ़्ते से मैंने बाथरूम में मूतना ही छोड. दिया है. यही है अब मेरा प्यारा मस्त चलता फ़िरता जिन्दा बाथरूम."
चाची का मूतना खतम होते होते मेरा तन कर खड़ा हो गया. इस मतवाली क्रिया को देखकर दो मिनिट में चाचाजी का भी लोडा तन्ना गया. चाची ने मौका देखकर तुरंत उनका लंड मुंह में ले लिया और चूसने लगी. पति की मलाई खाने का इससे अच्छा मौका नहीं था. उधर चाचाजी गरमा कर चाची जी के मम्मे मसलने लगे. मैंने देखा तो चाची अपनी टाँगे खोल कर अपनी बुर मे उंगली करते हुए मुझे इशारे कर रही थी. मैं समझ गया और किसी तरह सरक कर उनकी टांगों में सिर डालकर उनकी बुर चूसने लगा.
यह मादक त्रिकोण सबकी प्यास बुझा कर ही टूटा. चाची तीन बार मेरे मुंह में झड़ीं. चाचाजी ने चाची का सिर पकडकर खूब धक्के लगाये और उनके मुंह में झड़ कर उन्हें अपनी मलाई खिलाई.
उस रात का संभोग यहीं खतम हुआ और हम सो गये. दूसरे दिन दोपहर में आगे कहानी शुरू हुई. मेरे मुंह में चाची के मूतने से कार्यक्रम शुरू हुआ. इससे हम तीनों मस्त गरम हो गये थे. पति पत्नी बातें करने लगे कि आज क्या किया जाए. जवाब सहज था, चाची की चूत चोदना बाकी था .
उसम्मे चाचाजी अब भी थोड़ा हिचक रहे थे. आखिर पक्के गांड मारू जो थे! हमने एक बार कोशिश की पर चाची की चूत में घुसते घुसते उनका बैठ गया. चाचाजी भी परेशान थे क्योंकी वे सच में अपनी पत्नी को चोदना चाहते थे.
आखिर मैंने राह निकाली. मैंने अपने कपड़े उतारे और मेरे नंगे चिकने बदन को देखकर चाचा जी के लंड में फिर से जान आई।
वे खुश हो गये.
चाची अब हस्तमैथुन करने में जुट गयी थी. उन्हों ने मुझे अपने पास खींचा और जोर जोर से मेरा लंड चूस कर गीला किया और फ़िर बोली. "बेटा, अगर तेरे चाचाजी से ना हो पाएं तो तू पेल देना क्योंकी मेरा तवा अब गरम हो चुका है"
चाची अब तक बिलकुल तैयार थी. नीचे बिस्तर पर एक तकिये पर अपने नितंब टिका कर और पैर फ़ैला कर चूत खोले बाँहें फ़ैलाये अपने पति का इंतज़ार कर रही थी. चाचाजी उठे और उनके पैरों के बीच झुक कर बैठ गये. उनका लंड अब पूरा जोर से खड़ा था. चाचीने खुद उनके सुपाड़े को अपनी बुर के द्वार पर रखा और एक झटके में अंदर डाल दिया। अब चाचाजी मस्त पेलने लगे.
इंच इंच करके वह सोंटे जैसा लंड चाची की चूत में घुसने लगा. चाची आनंद से सिहर उठीं. "हाऽय मेरे प्राणनाथ, आज तो प्रसाद चढ़ाऊँगी! मेरी बुर कब से आपका इंतज़ार कर रही थी. मर गई रे!." वे दर्द से चिल्लाई जब जड तक नौ इंची शिश्न उनकी जांघों के बीच में धंस गया.
चाचाजी भी अब मजा ले रहे थे. "मेरी रानी, दुखा क्या? कितनी मखमली है तेरी चूत, और कितनी गीली! अरे मुझे पता होता कि चोदने में इतना मजा आता है तो क्यों इतना समय मैं गँवाता." में उन्हे आनंद करता देख मुठियाने लगा। चाचाजी सिसक कर चाची पर लेट गये और उन्हें चोदने लगे. चाची भी अब तक अपना दर्द भूल कर चुदने में मशरूफ़ हो गयी थी.
चाचाजी अब पूरे जोर से चाची को चोदने लगे. चाची भी उनका फौलादी लंड आराम से सह रही थी क्योंकी इतने मोटे लंड से चुदाने में उन्हें स्वर्ग का आनंद आ रहा था. "चोदो जी, और जोर से चोदो, अपनी बीवी की चूत फ़ाड डालो, तुम्हें हक है मेरे नाथ." ऐसा चिल्लाते हुए चाची चूतड उचका कर चुदवा रही थी.
चाचाजी भी सुख के शिखर पर थे. उनका शिश्न एक तपती गीली मखमली म्यान का मजा ले रहा था. "मज़ा आ गया रानी... इतना गरम और मुलायम लग रहा है... और तेरा छेद तो अंदर गुनगुना पानी छोड़े ही जा रहा है"
में हस्तमैथुन करते हुए चाची के कोमल बड़े स्तनों को दबाने लगा.
में मुठियाते हुए बेहद उत्तेजित हो गया और बस झड़ने ही वाला था पर चाची समझ गई, बोली "बेटे, झड़ना नहीं, तुझे मेरी कसम, इन्हें घंटे भर मुझे चोदने दे, जब ये झड़ें फ़िर ही तू झड़ना." मैंने किसी तरह अपने आप को रोका और हांफता हुआ पड़ा रहा.
मेरे इस संयम पर खुश होकर चाची ने मुझे चूम लिया. उनके मीठे चुंबन से मेरा हौसला बढ़ा और मैं उनकी निप्पल चूसने लगा. चाचाजी ने भी चाची की जांघों को और चौड़ा किया और चुत के अंदर तक बच्चेदानी पर वार करने लगे."
मैंने अपने होंठ चाची के होंठों पर रख दिये और पास से उनकी वासना भरी आँखों में एक प्रेमी की तरह झांकता हुआ उनका मुंह चूसने लगा. चाचाजी चहक उठे. "दबा तेरी चाची की छातियाँ, मां कसम, मैं भी आज तेरी चाची को चोद चोद कर फ़ुकला कर देता हूँ, हमेशा याद रखेगी."
घंटे भर तो नहीं पर आधा घंटे हम तीनों की यह चुदाई चलती रही. अंत में चाची झड़ झड़ कर इतनी थक गयी थी कि चाचाजी से उन्हें छोड देने की गुहार करने लगी. चाचाजी तैश में थे, और जोर से चोदने लगे. आखिर जब चाची लस्त होकर बेहोश सी हो गई तब जाकर वे झड़ें. उनके झड़ते ही मैंने भी कस के मुठ्ठी लगाई और चाचीजी की निप्पल चूसते हुए झड़ गया. चाचीजी की चुत ने चाचाजी के लंड को मानों दुहते हुए पूरा वीर्य निचोड लिया.
आखिर झड़ा लंड हाथ में लिए मैं पलंग पर पड़ा सुस्ताने लगा. अब पति पत्नी पड़े पडे प्यार से चूमा चाटी कर रहे थे. मुझे देख कर बड़ा अच्छा लगा. आखिर मेरी भी मेहनत थी. साथ साथ अब मुन्नी को मन चाहे भोगने मिलेगा यह मस्त एहसास था.
आखिर जब चाचाजी ने अपना लंड चाची की चूत से निकाला तो मैं तैयार था. चाची ने तुरंत अपनी टाँगे हवा में उठा लीं ताकि चूत मे भरा वीर्य टपक न जाये. में आखिर उस खजाने की ओर मुड़ा जो चाची की बुर में जमा था. चूत से मुंह लगा कर जीभ घुसेड कर मैं उस मिश्रण का पान करने लगा. मुझे मानों अमृत मिल गया था.
मैं चाची की बुर चूस रहा था तब मैंने मुंह उठाकर चाची से पूछा “अब तो मुन्नी को मुझे चोदने देंगी ना!!”
चाची मेरे सिर को अपनी बुर पर कस कर दबा चूत चुसवाती हुई बोली. "बस नरसो करा दूँगी. अब दो दिन मुझे तेरे चाचा से रात दिन चुदवाने दे फिर तेरा भी काम होगा, तू फ़िकर न कर."
मैं उठ कर बैठ गया. चाची चाचाजी से बोली. "लल्ला को अब तीन दिन छुट्टी देते हैं ताकि यह पूरा ताजा तवाना हो जाये. तुम दो दिन मुझे खूब भोगो, मुझे खुश कर दो."