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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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अध्याय - 84
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"जिसे जो सोचना है सोचे।" मां ने हाथ झटकते हुए कहा____"मुझे किसी के सोचने की कोई परवाह नहीं है। मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि मेरी बेटी हर हाल में ख़ुश रहे।"

मां की बात सुन कर जहां मुझे बड़ा फक्र सा महसूस हुआ वहीं भाभी एकदम से ही मां से लिपट कर रोने लगीं। मां ने उन्हें किसी बच्ची की तरह अपने सीने से छुपका लिया। उनकी आंखें भी छलक पड़ीं थी। ये मंज़र देख मुझे ये सोच कर खुशी हो रही थी कि मेरी मां कितनी अच्छी हैं जो अपनी बहू को बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मान कर उनकी खुशियों की परवाह कर रही हैं।



अब आगे....


मुंशी चंद्रकांत साहूकारों के खेत पहुंचा। गौरी शंकर अपने खेत में बने छोटे से मकान के बरामदे में बैठा हुआ था। रूपचंद्र मजदूरों से काम करवा रहा था। चंद्रकांत को आया देख गौरी शंकर एकदम से ही चौंक गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि चंद्रकांत अब दुबारा कभी उसके सामने आएगा। उसे देखते ही उसको वो सब कुछ एक झटके में याद आने लगा जो कुछ हो चुका था।

"कैसे हैं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत बरामदे में ही रखी एक लकड़ी की मेज़ पर बैठते हुए बोला____"आप तो हमें भूल ही गए।"

"तुम भूलने वाली चीज़ नहीं हो चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने थोड़ा सख़्त भाव से कहा____"बल्कि तुम तो वो चीज़ हो जिसका अगर साया भी किसी पर पड़ जाए तो समझो इंसान बर्बाद हो गया।"

"ये आप कैसी बात कह रहे हैं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत ने हैरानी से उसे देखा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके लिए आप मुझे ऐसा बोल रहे हैं?"

"ये भी मुझे ही बताना पड़ेगा क्या?" गौरी शंकर ने उसे घूरते हुए कहा____"मैं ये मानता हूं कि हम लोग उतने भी होशियार और चालाक नहीं थे जितना कि हम खुद को समझते थे। सच तो ये है कि तुम्हें समझने में हमसे बहुत बड़ी ग़लती हुई।"

"आप ये क्या कह रहे हैं?" चंद्रकांत अंदर ही अंदर घबरा सा गया____"मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा।"

"अंजान बनने का नाटक मत करो चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"सच यही है कि हमारे साथ मिल जाने की तुम्हारी पहले से ही योजना थी। अगर मैं ये कहूं तो ग़लत न होगा कि हमारे कंधों पर बंदूक रख तुम दादा ठाकुर से अपनी दुश्मनी निकालना चाहते थे और अपने इस मक़सद में तुम कामयाब भी हो गए। अपने सामने हम सबको रख कर तुमने सारा खेल खेला। ये उसी का परिणाम है कि हम सब तो मिट्टी में मिल गए मगर तुम्हारा बाल भी बांका नहीं हुआ।"

"आप बेवजह मुझ पर आरोप लगा रहे हैं गौरी शंकर जी।" चंद्रकांत अपनी हालत को किसी तरह सम्हालते हुए बोला____"जबकि आप भी जानते हैं कि मैंने और मेरे बेटे ने आपका साथ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आप कहते हैं कि हमारा बाल भी बांका नहीं हुआ तो ये ग़लत है। हमारा भी बहुत नुकसान हुआ है। पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि मैं दादा ठाकुर के साथ ऐसा कर सकता हूं जबकि अब सबको पता चल चुका है। इस सब में अगर आप अकेले रह गए हैं तो मैं भी तो अकेला ही रह गया हूं। हवेली से मेरा हर तरह से ताल्लुक ख़त्म हो गया, जबकि पहले मैं दादा ठाकुर का मुंशी था। लोगों के बीच मेरी एक इज्ज़त थी मगर अब ऐसा कुछ नहीं रहा। हां ये ज़रूर है कि दादा ठाकुर के क़हर का शिकार होने से मैं और मेरा बेटा बच गए। किंतु ये भी ऊपर वाले की मेहरबानी से ही हो सका है।"

"बातें बनानी तुम्हें खूब आती हैं चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा_____"जीवन भर मुंशीगीरी किए हो और लोगों को जैसे चाहा चूतिया बनाया है तुमने। मुझे सब पता है कि तुमने इतने सालों में दादा ठाकुर की आंखों में धूल झोंक कर अपने लिए क्या कुछ बना लिया है।"

"इस बात से मैं कहां इंकार कर रहा हूं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत ने कहा____"सबसे पहले अपने बारे में और अपने हितों के बारे में सोचना तो इंसान की फितरत होती है। मैंने भी वही किया है। ख़ैर छोड़िए, मैंने सुना है कि कल आपके घर दादा ठाकुर खुद चल कर आए थे?"

"तुम्हें इससे क्या मतलब है?" गौरी शंकर ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा।

"म...मुझे मतलब क्यों नहीं होगा गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत हड़बड़ाते हुए बोला____"आख़िर हम दोनों उसके दुश्मन हैं और जो कुछ भी किया है हमने साथ मिल कर किया है। पंचायत में भले ही चाहे जो फ़ैसला हुआ हो किंतु हम तो अभी भी एक साथ ही हैं न? ऐसे में अगर आपके घर हमारा दुश्मन आएगा तो उसके बारे में हम दोनों को ही तो सोचना पड़ेगा ना?"

"तुम्हें बहुत बड़ी ग़लतफहमी है चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"इतना कुछ हो जाने के बाद और पंचायत में फ़ैसला हो जाने के बाद दादा ठाकुर से मेरी कोई दुश्मनी नहीं रही। दूसरी बात, हम दोनों के बीच भी अब कोई ताल्लुक़ नहीं रहा।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत बुरी तरह हैरान होते हुए बोला____"जिस इंसान ने आपका समूल नाश कर दिया उसे अब आप अपना दुश्मन नहीं मानते? बड़े हैरत की बात है ये।"

"अगर तुम्हारा भी इसी तरह समूल नाश हो गया होता तो तुम्हारी भी मानसिक अवस्था ऐसी ही हो जाती चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"मुझे अच्छी तरह एहसास हो चुका है कि हमने बेकार में ही इतने वर्षों से हवेली में रहने वालों के प्रति बैर भाव रखा हुआ था। जिसने हमारे साथ ग़लत किया था वो तो वर्षों पहले ही मिट्टी में मिल गया था। उसके पुत्रों ने अथवा उसके पोतों ने तो कभी हमारा कुछ बुरा किया ही नहीं था, फिर क्यों हमने उनसे इतना बड़ा बैर भाव रखा? सच तो यही है चंद्रकांत कि हमारी तबाही में दादा ठाकुर से कहीं ज़्यादा हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। दादा ठाकुर सच में एक नेक व्यक्ति हैं जो इस सबके बावजूद खुद को हमारा अपराधी समझते हैं और खुद चल कर हमारे घर आए। ये उनकी उदारता और नेक नीयती का ही सबूत है कि वो अभी भी हमसे अपने रिश्ते सुधारने का सोचते हैं और हम सबका भला चाहते हैं।"

"कमाल है।" चंद्रकांत हैरत से आंखें फाड़े बोल पड़ा____"आपका तो कायाकल्प ही हो गया है गौरी शंकर जी। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि जिस व्यक्ति ने आप सबको मिट्टी में मिला दिया उसके बारे में आप इतने ऊंचे ख़याल रखने लगे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इतना कुछ हो जाने के बाद आप दादा ठाकुर से कुछ इस क़दर ख़ौफ खा गए हैं कि अब भूल से भी उनसे बैर नहीं रखना चाहते, दुश्मनी निभाने की तो बात ही दूर है।"

"तुम्हें जो समझना है समझ लो चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"किंतु तुम्हारे लिए मेरी मुफ़्त की सलाह यही है कि तुम भी अब अपने दिलो दिमाग़ से हवेली में रहने वालों के प्रति दुश्मनी के भाव निकाल दो वरना इसका अंजाम ठीक वैसा ही भुगतोगे जैसा हम भुगत चुके हैं।"

"यानि मेरा सोचना सही है।" चंद्रकांत इस बार मुस्कुराते हुए बोला____"आप सच में दादा ठाकुर से बुरी तरह ख़ौफ खा गए हैं जिसके चलते अब आप उन्हें एक अच्छा इंसान मानने लगे हैं। ख़ैर आप भले ही उनसे डर गए हैं किंतु मैं डरने वाला नहीं हूं। उनके बेटे ने आपके घर की बहू बेटियों की इज्ज़त को नहीं रौंदा है जबकि उस वैभव ने अपने दादा की तरह मेरे घर की इज्ज़त को रौंदा है। इस लिए जब तक उस नामुराद को मार नहीं डालूंगा तब तक मेरे अंदर की आग शांत नहीं हो सकती।"

"तुम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाओगे चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"अगर तुम ये मानते हो कि वो अपने दादा की ही तरह है तो तुम्हें ये भी मान लेना चाहिए कि जब तुम उसके दादा का कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो उसके पोते का क्या बिगाड़ लोगे? उसे बच्चा समझने की भूल मत करना चंद्रकांत। वो तुम्हारी सोच से कहीं ज़्यादा की चीज़ है।"

"अब तो ये आने वाला वक्त ही बताएगा गौरी शंकर जी कि कौन क्या चीज़ है?" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"आप भी देखेंगे कि उस नामुराद को उसके किए की क्या सज़ा मिलती है?"

चंद्रकांत की बात सुन कर गौरी शंकर बस मुस्कुरा कर रह गया। जबकि चंद्रकांत उठा और चला गया। उसके जाने के कुछ ही देर बाद रूपचंद्र उसके पास आया।

"ये मुंशी किस लिए आया था काका?" रूपचंद्र ने पूछा____"क्या आप दोनों फिर से कुछ करने वाले हैं?"

"नहीं बेटे।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"मैं तो अब कुछ भी करने का नहीं सोचने वाला किंतु हां चंद्रकांत ज़रूर बहुत कुछ करने का मंसूबा बनाए हुए है।"

"क्या मतलब?" रूपचंद्र की आंखें फैलीं।

"वो आग से खेलना चाहता है बेटे।" गौरी शंकर ने कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी वो दादा ठाकुर को अपना दुश्मन समझता है, खास कर वैभव को। उसका कहना है कि वो वैभव को उसके किए की सज़ा दे कर रहेगा।"

"मरेगा साला।" रूपचंद्र ने कहा____"पर आपके पास किस लिए आया था वो?"

"शायद उसे कहीं से पता चल गया है कि दादा ठाकुर कल हमारे घर आए थे।" गौरी शंकर ने कहा____"इस लिए उन्हीं के बारे में पूछ रहा था कि किस लिए आए थे वो?"

"तो आपने क्या बताया उसे?" रूपचंद्र ने पूछा।

"मैं उसे क्यों कुछ बताऊंगा बेटे?" गौरी शंकर ने रूपचंद्र की तरफ देखा____"उससे अब मेरा कोई ताल्लुक़ नहीं है। तुम भी इन बाप बेटे से कोई ताल्लुक़ मत रखना। पहले ही हम अपनी ग़लतियों की वजह से अपना सब कुछ खो चुके हैं। अब जो शेष बचा है उसे किसी भी कीमत पर नहीं खोना चाहते हम। मैंने उससे साफ कह दिया है कि उससे अब मेरा या मेरे परिवार का कोई ताल्लुक़ नहीं है। दादा ठाकुर से अब हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। वो अगर उन्हें अपना दुश्मन समझता है तो समझे और उसे जो करना है करे लेकिन हमसे अब वो कोई मतलब ना रखे।"

"बिल्कुल सही कहा आपने उससे।" रूपचंद्र ने कहा____"वैसे काका, क्या आपको सच में यकीन है कि दादा ठाकुर हमें अपना दुश्मन नहीं समझते हैं और वो हमसे अपने रिश्ते जोड़ कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं?"

"असल में बात ये है बेटे कि जो व्यक्ति जैसा होता है वो दूसरे को भी अपने जैसा ही समझता है।" गौरी शंकर ने जैसे समझाने वाले अंदाज़ में कहा____"जबकि असलियत इससे जुदा होती है। हम दादा ठाकुर पर यकीन करने से इस लिए कतरा रहे हैं कि क्योंकि हम ऐसे ही हैं। जबकि सच तो यही है कि वो सच में हमें अपना ही समझते हैं और हमसे रिश्ता सुधार कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं। पहले भी तो यही हुआ था, ये अलग बात है कि पहले जब हमने रिश्ते सुधारने की पहल की थी तो उसमें हमारी नीयत पूरी तरह से दूषित थी।"

"तो क्या आपको लगता है कि दादा ठाकुर हमसे रिश्ते सुधारने के लिए एक नया रिश्ता जोड़ेंगे?" रूपचंद्र ने झिझकते हुए पूछा____"मेरा मतलब है कि क्या वो अपने छोट भाई की बेटी का ब्याह मेरे साथ करेंगे?"

"अगर वो ऐसा करें तो समझो ये हमारे लिए सौभाग्य की ही बात होगी बेटे।" गौरी शंकर ने कहा____"किंतु मुझे नहीं लगता कि ये रिश्ता हो सकेगा। कुसुम अगर उनकी अपनी बेटी होती तो यकीनन वो उसका ब्याह तुमसे कर देते किंतु वो उनके उस भाई की बेटी है जिसकी हमने हत्या की है। खुद सोचो कि क्या कोई औरत अपनी बेटी का ब्याह उस घर में करेगी जिस घर के लोगों ने उसके पति और उसकी बेटी के बाप की हत्या की हो? उनकी जगह हम होते तो हम भी नहीं करते, इस लिए इस बात को भूल ही जाओ कि ये रिश्ता होगा।"

"पर बड़ी मां ने तो दादा ठाकुर से यही शर्त रखी है ना?" रूपचंद्र ने कहा____"शर्त के अनुसार अगर दादा ठाकुर कुसुम का ब्याह मेरे साथ नहीं करेंगे तो हमारे संबंध भी उनसे नहीं जुड़ेंगे।"

"ऐसा कुछ नहीं है बेटे।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"तुम्हारी बड़ी मां ने तो दादा ठाकुर से शर्त के रूप में ये बात सिर्फ इस लिए कही थी क्योंकि वो देखना चाहती थीं कि दादा ठाकुर ऐसे संबंध पर अपनी क्या प्रतिक्रिया देते हैं? ख़ैर छोड़ो इन बातों को, सच तो ये है कि अगर दादा ठाकुर सच में हमसे रिश्ते सुधार कर एक नई शुरुआत करने को कहेंगे तो हम यकीनन ऐसा करेंगे। मर्दों के नाम पर अब सिर्फ हम दोनों ही बचे हैं बेटे और हमें इसी गांव में रहते हुए अपने परिवार की देख भाल करनी है। दादा ठाकुर जैसे ताकतवर इंसान से बैर रखना हमारे लिए कभी भी हितकर नहीं होगा।"

✮✮✮✮

चंद्रकांत गुस्से में अपने घर पहुंचा।
उसका बेटा रघुवीर घर पर ही था। उसने जब अपने पिता को गुस्से में देखा तो उसे किसी अनिष्ट की आशंका हुई जिसके चलते वो अंदर ही अंदर घबरा गया।

"क्या बात है बापू?" फिर उसने अपने पिता से झिझकते हुए पूछा____"तुम इतने गुस्से में क्यों नज़र आ रहे हो? कुछ हुआ है क्या?"

"वो गौरी शंकर साला डरपोक और कायर निकला।" चंद्रकांत ने अपने दांत पीसते हुए कहा____"दादा ठाकुर से इस क़दर डरा हुआ है कि अब वो कुछ करना ही नहीं चाहता।"

"तुम गौरी शंकर के पास गए थे क्या?" रघुवीर ने चौंकते हुए उसे देखा।

"हां।" चंद्रकांत ने सिर हिलाया____"आज जब तुमने मुझे ये बताया था कि दादा ठाकुर उसके घर गया था तो मैंने सोचा गौरी शंकर से मिल कर उससे पूछूं कि आख़िर दादा ठाकुर उसके घर किस मक़सद से आया था?"

"तो फिर क्या बताया उसने?" रघुवीर उत्सुकता से पूछ बैठा।

"बेटीचोद इस बारे में कुछ भी नहीं बताया उसने।" चंद्रकांत गुस्से में सुलगते हुए बोला____"उल्टा मुझ पर ही आरोप लगाने लगा कि उसके और उसके भाईयों को ढाल बना कर सारा खेल मैंने ही खेला है जिसके चलते आज उन सबका नाश हो गया है।"

"कितना दोगला है कमीना।" रघुवीर ने हैरत से कहा____"अपनी बर्बादी का सारा आरोप अब हम पर लगा रहा है जबकि सब कुछ करने की योजनाएं तो वो सारे भाई मिल कर ही बनाते थे। हम तो बस उनके साथ थे।"

"वही तो।" चंद्रकांत ने कहा____"सारा किया धरा तो उसके और उसके भाईयों का ही था इसके बाद भी आज वो हर चीज़ का आरोप मुझ पर लगा रहा था। उसके बाद जब मैंने इस बारे में कुछ करने को कहा तो उल्टा मुझे नसीहत देने लगा कि मैं अब कुछ भी करने का न सोचूं वरना इसका अंजाम मुझे भी उनकी तरह ही भुगतना पड़ेगा।"

"तो इसका मतलब ये हुआ कि अब वो दादा ठाकुर के खिलाफ़ कुछ भी नहीं करने वाला।" रघुवीर ने कहा____"एक तरह से उसने हमसे किनारा ही कर लिया है।"

"हां।" चंद्रकांत ने कहा____"उसने स्पष्ट रूप से मुझसे कह दिया है कि अब से उसका हमसे कोई ताल्लुक़ नहीं है।"

"फ़िक्र मत करो बापू।" रघुवीर अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुराया____"मैंने कुछ ऐसा कर दिया है कि उसका मन फिर से बदल जाएगा। बल्कि ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि वो फिर से दादा ठाकुर को अपना दुश्मन समझ बैठेगा।"

"क्या मतलब?" चंद्रकांत अपने बेटे की इस बात से बुरी तरह चौंका था, बोला____"ऐसा क्या कर दिया तुमने कि गौरी शंकर का मन बदल जाएगा और वो दादा ठाकुर को अपना दुश्मन मानने लगेगा?"

"आज मेरे एक पहचान वाले ने मुझे बहुत ही गज़ब की ख़बर दी थी बापू।" रघुवीर ने मुस्कुराते हुए कहा____"उसने बताया कि आज सुबह दादा ठाकुर का सपूत हरि शंकर की बेटी से मिला था। हरि शंकर की बेटी रूपा के साथ गौरी शंकर की बेटी राधा भी थी उस वक्त। मेरे पहचान के उस खास आदमी ने बताया कि वैभव काफी देर तक उन दोनों के पास खड़ा रहा था। ज़ाहिर है वो उन दोनों को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए ही फांसने की कोशिश करता रहा होगा।"

"उस हरामजादे से इसके अलावा और किस बात की उम्मीद कर सकता है कोई?" चंद्रकांत ने सख़्त भाव से कहा____"ख़ैर फिर क्या हुआ? मेरा मतलब है कि तुम्हारे उस आदमी के ये सब बताने के बाद तुमने क्या किया फिर?"

"मुझे जैसे ही ये बात पता चली तो मैं ये सोच कर मन ही मन खुश हो गया कि दोनों परिवारों के बीच दुश्मनी पैदा करने का इससे बेहतर मौका और क्या हो सकता है?" रघुवीर ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"बस, फिर मैंने भी इस सुनहरे अवसर को गंवाना उचित नहीं समझा और पहुंच गया साहूकारों के घर। गौरी शंकर अथवा रूपचंद्र तो नहीं मिले लेकिन उसके घर की औरतें मिल गईं। मैंने उनसे सारी बातें बता दी। मेरी बातें सुनने के बाद मैंने देखा कि उन सभी औरतों के चेहरे पर गुस्से के भाव उभर आए थे। मैं समझ गया कि अब वो औरतें खुद ही आगे का काम सम्हाल लेंगी, यानि आग लगाने का काम। वो गौरी शंकर और रूपचंद्र को बताएंगी कि कैसे दादा ठाकुर का सपूत उनकी दोनों बेटियों को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए उन्हें रास्ते में रोके हुए था आज? मुझे पूरा यकीन है बापू कि सवाल जब इज्ज़त का आ जाएगा तो गौरी शंकर और रूपचंद्र चुप नहीं बैठेंगे। यानि कोई न कोई बखेड़ा ज़रूर होगा अब।"

"ये तो कमाल ही हो गया बेटे।" चंद्रकांत एकदम से खुश हो कर बोला____"इतने दिनों से मैं यही सोच सोच के कुढ़ सा रहा था कि आख़िर कैसे दादा ठाकुर के खिलाफ़ कुछ बोलने का मौका मिले मगर अब मिल चुका है। शाबाश! बेटा, यकीनन ये बहुत ही गज़ब का मौका हाथ लगा है और तुमने भी बहुत ही समझदारी से काम लिया कि सारी बातें साहूकारों के घर वालों को बता दी। अब निश्चित ही हंगामा होगा। मैं भी देखता हूं कि मुझे नसीहतें देने वाला गौरी शंकर अब कैसे शांत बैठता है?"

"मेरा तो ख़याल ये है बापू कि इसके बाद अब हमें कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।" रघुवीर ने कहा____"बल्कि गौरी शंकर अब इस बात के आधार पर खुद ही दादा ठाकुर को तबाह करने का समान जुटा लेगा। बात अगर पंचायत तक गई तो देखना इस बार दादा ठाकुर पर कोई रियायत नहीं की जाएगी।"

"मैं तो चाहता ही हूं कि उन लोगों पर कोई किसी भी तरह की रियायत न करे।" चंद्रकांत ने जबड़े भींचते हुए कहा____"अगर ऐसा हुआ तो पंचायत में दादा ठाकुर को या फिर उसके सपूत को इस गांव से निष्कासित करने का ही फ़ैसला होगा। अगर वो हरामजादा सच में इस गांव से निष्कासित कर दिया गया तो फिर उसे हम जिस तरह से चाहेंगे ख़त्म कर सकेंगे।"

"मैं तो उसे तड़पा तड़पा कर मारूंगा बापू।" रघुवीर ने एकाएक आवेश में आ कर कहा____"उसे ऐसी बद्तर मौत दूंगा कि वर्षों तक लोग याद रखेंगे।"

"वो तो ठीक है बेटे।" चंद्रकांत ने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन इसके अलावा मैंने एक और फ़ैसला कर लिया है जिसके बारे में मैं तुम्हें सही वक्त आने पर बताऊंगा।"



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जो इतना बदनाम रह चुका है, उसको और बदनाम क्या करेगा कोई?

वैसे भी, दादा ठाकुर ही कान का इतना कच्चा है, कि महज़ इस बात से वैभव को सजा दे कि वो रूपा से मिला।
इस बार तो रूपा की भी गवाही होगी ही - लिहाज़ा चंद्रकांत का ये पैंतरा बचकाना है। हाँ, अगर दादा ठाकुर 'बाहुबली' फिल्म की राजमाता टाइप है, तो अलग बात है!

एक अलग तरह का खेल साहूकारों का है। वो जानते हैं कि मुंशी अब इनके किसी काम का नहीं है। इसलिए उससे दरकिनार कर लेना ही बेहतर है।

क्या खेल खेलेंगे वो लोग, वो भविष्य में ही पता चलेगा। लेकिन सफ़ेदपोश ने शायद कोई पेशकश दी हो उनको।
देखते हैं।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Patni ke naam se aapki dahshat dekh ke hi apan ko yakeen ho gayela hai ki biwi kya bala hai :D
खैर अनुभव सुनने और अनुभव करने में अंतर है।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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दोस्तों, जैसा कि आप सबको पता चल ही चुका है कि मेरे बड़े दादा जी का निधन हो गया है इस लिए हम सबको दिल्ली से गांव जाना है अब। वहां गांव में इससे संबंधित जो कार्यक्रम होंगे उसमें हम सब व्यस्त हो जाएंगे। ज़ाहिर है ऐसे में मैं ना तो अपडेट लिख सकूंगा और ना ही यहां पोस्ट कर सकूंगा। ये आख़िरी अपडेट था जिसे मैंने कल रात लिखा था, इस लिए इसे आप लोगों के सामने पेश कर दिया है। अब कहानी का अगला अपडेट पंद्रह या बीस दिनों के बाद ही आ सकेगा।

उम्मीद करता हूं कि आप सब मेरी मनोदशा और मेरी मजबूरियों को समझते हुए धैर्य से काम लेंगे और इसी तरह अपना साथ बनाए रखेंगे। अब पंद्रह बीस दिनों के बाद ही मुलाकात होगी। खुश रहें और अपना खयाल रखें। :ciao:
आप पहले अपने परिवार को देखें, इधर की चिंता बाद में।
 

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अध्याय - 83
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"जिन लोगों ने ये सब किया था उनके साथ भी तो वैसा ही किया गया है।" मैंने सहसा सख़्त भाव से कहा____"अब वो लोग ख़्वाब में भी किसी के साथ ऐसा करने का नहीं सोचेंगे।"

थोड़ी देर इसी संबंध में कुछ बातें हुईं उसके बाद मैं भुवन से ये कह कर वहां से चला आया कि अगले दिन सभी मजदूरों से मिलना है जिसके लिए सारा इंतजाम कर दे। असल में अनुराधा की मौजूदगी से मैं कुछ ज़्यादा ही असहज हो रहा था। उसके चेहरे पर छाई उदासी मुझे अंदर ही अंदर कचोटने लगी थी। यही वजह थी कि मैं वहां से चल पड़ा था।



अब आगे....


अगले दो चार दिनों तक मैं काफी ब्यस्त रहा।
इस बीच मैंने खेतों पर काम करने वाले सभी मजदूरों से मिला और उनसे हर चीज़ के बारे में जानकारी लेने के साथ साथ उन्हें बताया भी कि अब से सब कुछ किस तरीके से करना है। मैं सभी से बहुत ही तरीके से बातें कर रहा था इस लिए सभी मजदूर मुझसे काफी खुश हो गए थे। मुझे इस बात का बखूबी एहसास था कि ग़रीब मजदूर अगर खुश रहेगा तो वो हमारे लिए कुछ भी कर सकता है और इसी लिए मैंने सबको खुश रखने का सोच लिया था।

पिता जी से मैंने एक दो नए ट्रेक्टर लेने को बोल दिया था ताकि खेती बाड़ी के काम में किसी भी तरह की परेशानी अथवा रुकावट न हो सके। पिता जी को मेरा सुझाव उचित लगा इस लिए उन्होंने दो ट्रैक्टर लेने की मंजूरी दे दी। अगले ही दिन मैं भुवन को ले कर शहर से दो ट्रैक्टर ले आया और साथ में उसका सारा समान भी। हमारे पास पहले से ही दो ट्रैक्टर थे किंतु वो थोड़ा पुराने हो चुके थे। हमारे पास बहुत सारी ज़मीनें थीं। ज़मीनों की जुताई करने में काफी समय लग जाता था, ऐसा मुझे मजदूरों से ही पता चला था।

आसमान में काले बादलों ने डेरा तो डाल रखा था किंतु दो दिनों तक बारिश नहीं हुई। तीसरे दिन थोड़ा थोड़ा कर के सारा दिन बारिश हुई जिससे ज़मीनों में पानी ही पानी नज़र आने लगा था। दूसरी तरफ मुरारी काका के घर को भी मैंने दो मजदूर लगवा कर छवा दिया था और उन्हीं मजदूरों को मैंने उसके खेतों की जुताई के लिए लगवा दिया। सरोज काकी मेरे इस उपकार से बड़ा खुश थी तो वहीं अनुराधा अब एकदम ख़ामोश और गुमसुम सी रहने लगी थी। उसे इस हालत में देख सरोज काकी को उसकी फ़िक्र होने लगी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर उसकी बेटी को हुआ क्या है?

मैं पिता जी के कहे अनुसार अब पूरी ईमानदारी से अपनी ज़िम्मेदारी निभाने लगा था। मुझे इस तरह काम करता देख जहां मेरे माता पिता राहत भरी नज़रों से मुझे देखने लगे थे वहीं भाभी भी काम के प्रति मेरे इस समर्पण भाव से खुश थीं। आज कल मेरा ज़्यादातर समय हवेली से बाहर ही गुज़र रहा था जिसके चलते मैं भाभी को ज़्यादा समय नहीं दे पा रहा था।

एक दिन सुबह सुबह ही मैं हवेली से मोटर साईकिल ले कर खेतों की तरफ निकला तो रास्ते में मुझे साहूकार हरि शंकर की बेटी रूपा नज़र आ गई। उसके साथ में गौरी शंकर की बेटी राधा भी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही रूपा ने पहले इधर उधर देखा और फिर मुझे रुकने का इशारा किया। उसके इस तरह इशारा करने पर जहां मैं थोड़ा हैरान हुआ वहीं उसके पास ही खड़ी राधा भी उसे हैरत से देखने लगी थी। उसने उससे कुछ कहा जिस पर रूपा ने भी कुछ कहा। बहरहाल मैं कुछ ही पलों में उन दोनों के क़रीब पहुंच गया।

मैंने देखा रूपा पहले से काफी कमज़ोर दिख रही थी। उसके चेहरे पर पहले की तरह नूर नहीं था। आंखों के नीचे काले धब्बे से नज़र आ रहे थे। मुझे अपने पास ही मोटर साईकिल पर बैठा देख वो बड़े ही उदास भाव से मुझे देखने लगी। वहीं राधा थोड़ी घबराई हुई नज़र आ रही थी। इधर मुझे समझ न आया कि उसने मुझे क्यों रुकने का इशारा किया है और खुद मैं उससे क्या कहूं?

"क्या बात है?" फिर मैंने आस पास नज़र डालने के बाद आख़िर उससे पूछा____"मुझे किस लिए रुकने का इशारा किया है तुमने? क्या तुम्हें भय नहीं है कि अगर किसी ने तुम्हें मेरे पास यूं खड़े देख लिया तो क्या सोचेगा?"

"हमने किसी के सोचने की परवाह करना छोड़ दिया है वैभव।" रूपा ने अजीब भाव से कहा____"अब इससे ज़्यादा क्या बुरा हो सकता है कि हम सब ख़ाक में ही मिला दिए गए।"

"ख़ाक में मिलाने की शुरुआत तो तुम्हारे ही अपनों ने की थी।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"हमने तो कभी तुम लोगों से बैर भाव नहीं रखा था। तुम लोगों ने रिश्ते भी सुधारे तो सिर्फ इस लिए कि उसकी आड़ में धोखे से हम पर वार कर सको। सच कहूं तो तुम्हारे अपनों के साथ जो कुछ हुआ है उसके ज़िम्मेदार वो खुद थे। अपने हंसते खेलते और खुश हाल परिवार को अपने ही हाथों एक झटके में तबाह कर लिया उन्होंने। इसके लिए तुम हमें ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकती क्योंकि जब ऐसे वाक्यात होते हैं तो उसका अंजाम अच्छा तो हो ही नहीं सकता। फिर चाहे वो किसी के लिए भी हो।"

"हां जानती हूं।" रूपा ने संजीदगी से कहा____"ख़ैर छोड़ो, तुम कैसे हो? हमें तो भुला ही दिया तुमने।"

"तुम्हारी इनायत से ठीक हूं।" मैंने कहा____"और मैं उस शक्स को कैसे भूल सकता हूं जिसने मेरी हिफाज़त के लिए अपने ही लोगों की जान के ख़तरे को ताक पर रख दिया था।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" रूपा सकपकाते हुए बोली।

"वो तुम ही थी ना जिसने मेरे पिता जी को इस बात की सूचना दी थी कि कुछ लोग चंदनपुर में मुझे जान से मारने के इरादे से जाने वाले हैं?" मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा____"वैसे शुक्रिया इस इनायत के लिए। तुम्हारा ये उपकार मैं ज़िंदगी भर नहीं भूलूंगा लेकिन मुझे ये नहीं पता है कि तुम्हारे साथ दूसरी औरत कौन थी?"

"मेरी भाभी कुमुद।" रूपा ने नज़रें झुका कर कहा तो मैंने उसे हैरानी से देखते हुए कहा____"कमाल है, वैसे मेरे लिए इतना कुछ करने की क्या ज़रूरत थी वो भी अपने ही लोगों की जान को ख़तरे में डाल कर?"

"क्या तुमने मुझे इतना बेगाना समझ लिया है?" रूपा की आंखें एकदम से नम होती नज़र आईं, बोली____"क्या सच में तुम्हें ये एहसास नहीं है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए क्या है?"

"ओह! तो तुम अभी भी उसी बात को ले के बैठी हुई हो?" मैंने हैरान होते हुए कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि इतना कुछ होने के बाद भी तुम्हारी ख़्वाइश अथवा तुम्हारी चाहत पूरी होगी? अरे! जब पहले ऐसा संभव नहीं था तो अब भला कैसे संभव होगा?"

"होने को तो कुछ भी हो सकता है दुनिया में।" रूपा ने कहा____"दरकार सिर्फ इस बात की होती है कि हमारे अंदर ऐसा करने की चाह हो। अगर तुम ही नहीं चाहोगे तो सच में ऐसा संभव नहीं हो सकता।"

"दीदी चलिए यहां से।" मेरे कुछ बोलने से पहले ही राधा बोल पड़ी____"देखिए उधर से कोई आ रहा है।"

"मेरे प्रेम को यूं मत ठुकराओ वैभव।" रूपा की आंखें छलक पड़ीं____"तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती। मैंने पहले ही तुम्हें अपना सब कुछ मान लिया था और अपना सब कुछ तुम्हें....।"

"तुम्हें ये सब कहने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने उसकी बात बीच में काट कर कहा____"मुझे पता है कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए बहुत कुछ है और इसका सबूत तुम पहले ही दे चुकी हो। दूसरी बात मैं तुम्हारे प्रेम को ठुकरा नहीं रहा बल्कि ये कह रहा हूं कि हमारा हमेशा के लिए एक होना संभव ही नहीं है। पहले थोड़ी बहुत संभावना भी थी किंतु अब तो कहीं रत्ती भर भी संभावना नहीं है। मुझे पूरा यकीन है कि ये सब होने के बाद तुम्हारे घर वाले किसी भी कीमत पर ये नहीं चाहेंगे कि उनके घर की बेटी हवेली में बहू बन कर जाए।"

"मुझे किसी की परवाह नहीं है।" रूपा ने दृढ़ता से कहा____"परवाह सिर्फ इस बात की है कि तुम क्या चाहते हो? अगर तुम ही मुझे अपनाना नहीं चाहोगे तो मैं भला क्या कर लूंगी?"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैंने संदेह पूर्ण भाव से उसे देखा।
"क्या तुम मुझसे ब्याह करोगे?" रूपा ने स्पष्ट भाव से पूछा।

"ये कैसा सवाल है?" मेरे माथे पर शिकन उभरी।
"बड़ा सीधा सा सवाल है वैभव।" रूपा ने कहा____"अगर तुम मुझसे ब्याह करने के लिए राज़ी हो तो फिर हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकेगा। मैं अपने परिवार से लड़ जाऊंगी तुम्हारी बनने के लिए।"

रूपा की बातें सुन कर मैं भौचक्का सा देखता रह गया उसे। यही हाल उसके बगल से खड़ी राधा का भी था। मैं ये तो जानता था कि रूपा मुझसे प्रेम करती है और मुझसे ब्याह भी करना चाहती है लेकिन इसके लिए वो इस हद तक जाने का बोल देगी इसकी कल्पना नहीं की थी मैंने।

"दीदी ये आप कैसी बातें कर रही हैं इनसे?" राधा से जब न रहा गया तो वो बोल ही पड़ी____"आप ऐसा कैसे कह सकती हैं? पिता जी और रूप भैया को पता चला तो वो आपकी जान ले लेंगे।"

"मेरी जान तो वैभव है छोटी।" रूपा ने मेरी तरफ देखते हुए गंभीरता से कहा____"मैं तो सिर्फ एक बेजान जिस्म हूं। इसका भला कोई क्या करेगा?"

"अच्छा चलता हूं मैं।" मैंने रास्ते में एक आदमी को आते देखा तो बोला और फिर बिना किसी की कोई बात सुने ही मोटर साईकिल को स्टार्ट कर आगे बढ़ चला।

मेरे दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चल पड़ीं थी। मैंने इसके पहले रूपा को इतना आहत सा नहीं देखा था। मुझे एहसास था कि वो क्या चाहती है लेकिन मुझे ये भी पता था कि वो जो चाहती है वो उसे मिलना आसान नहीं है। मेरे दिल में उसके लिए इज्ज़त की भावना पहले भी थी और जब से मैंने ये जाना है कि उसी ने मेरी जान भी बचाने का काम किया है तब से उसके लिए और भी इज्ज़त बढ़ गई थी। मुझे उससे पहले भी प्रेम नहीं था और आज भी उसके लिए मेरे दिल में प्रेम जैसी भावना नहीं थी। मगर आज जिस तरह से उसने ये सब कहा था उससे मैं काफी विचलित हो गया था। मैं हैरान भी था कि वो मेरे राज़ी हो जाने की सूरत में अपने ही लोगों से लड़ जाएगी। ज़ाहिर है ये या तो उसके प्रेम की चरम सीमा थी या फिर उसका पागलपन।

दोपहर तक मैं खेतों में ही रहा और खेतों की जुताई करवाता रहा। बार बार ज़हन में रूपा की बातें उभर आती थीं जिसके चलते मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होने लगता था। मैं एक ऐसे मरहले में आ गया था जहां एक तरफ रूपा थी तो दूसरी तरफ अनुराधा। दोनों ही अपनी अपनी जगह मेरे लिए ख़ास थीं। एक मुझसे बेपनाह प्रेम करती थी तो दूसरी को मैं प्रेम करने लगा था। अगर दोनों की तुलना की जाए तो रूपा की सुंदरता के सामने अनुराधा कहीं नहीं ठहरती थी किंतु यहां सवाल सिर्फ सुंदरता का नहीं था बल्कि प्रेम का था। बात जब प्रेम की हो तो इंसान को सिर्फ वही व्यक्ति सबसे सुंदर और ख़ास नज़र आता है जिससे वो प्रेम करता है, बाकी सब तो फीके ही लगते हैं। बहरहाल आज रूपा की बातों से मैं काफी विचलित था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसके लिए क्या फ़ैसला करूं?

✮✮✮✮

दोपहर को खाना खाने के लिए मैं हवेली आया तो मां से पता चला कि पिता जी कुल गुरु से मिलने गए हुए हैं। हालाकि पिता जी के साथ शेरा तथा कुछ और भी मुलाजिम गए हुए थे किंतु फिर भी मैं पिता जी के लिए फिक्रमंद हो उठा था। ख़ैर खा पी कर मैं आराम करने के लिए अपने कमरे में चला आया। पलंग पर लेट कर मैं आंखें बंद किए जाने किन किन विचारों में खोने लगा था।

मेरे दिलो दिमाग़ से रूपा की बातें जा ही नहीं रहीं थी। पंचायत के दिन के बाद आज ही देखा था उसे। उसे इतने क़रीब से देखने पर ही मुझे नज़र आया था कि क्या हालत हो गई थी उसकी। मैं ये खुले दिल से स्वीकार करता था कि उसने अपने प्रेम को साबित करने के लिए बहुत कुछ किया था। एक लड़की के लिए उसकी आबरू सबसे अनमोल चीज़ होती है जिसे खुशी खुशी उसने सौंप दिया था मुझे। उसके बाद उसने मेरी जान बचाने का हैरतंगेज कारनामा भी कर दिया था। ये जानते हुए भी कि उसके ऐसा करने से उसके परिवार पर भयानक संकट आ सकता है। ये उसका प्रेम ही तो था जिसके चलते वो इतना कुछ कर गई थी। मैं सोचने लगा कि उसके इतना कुछ करने के बाद भी अगर मैं उसके प्रेम को न क़बूल करूं तो मुझसे बड़ा स्वार्थी अथवा बेईमान शायद ही कोई होगा।

प्रेम क्या होता है और उसकी तड़प क्या होती है ये अब जा कर मुझे समझ आने लगा था। मेरे अंदर इस तरह के एहसास पहले कभी नहीं पैदा हुए थे या फिर ये कह सकते हैं कि मैंने कभी ऐसे एहसासों को अपने अंदर पैदा ही नहीं होने दिया था। मुझे तो सिर्फ खूबसूरत लड़कियों और औरतों को भोगने से ही मतलब होता था। इसके पहले कभी मैंने अपने अंदर किसी के लिए भावनाएं नहीं पनपने दी थी। पिता जी ने गांव से निष्कासित किया तो अचानक ही मेरा सामना अनुराधा जैसी एक साधारण सी लड़की से हो गया। जाने क्या बात थी उसमें कि उसे अपने जाल में बाकी लड़कियों की तरह फांसने का मन ही नहीं किया। उसकी सादगी, उसकी मासूमियत, उसका मेरे सामने छुई मुई सा नज़र आना और उसकी नादानी भरी बातें कब मेरे अंदर घर कर गईं मुझे पता तक नहीं चला। जब पता चला तो जैसे मेरा कायाकल्प ही हो गया।

मुझे मुकम्मल रूप से बदल देने में अनुराधा का सबसे बड़ा योगदान था। उसका ख़याल आते ही दिलो दिमाग़ में हलचल होने लगती है। मीठा मीठा सा दर्द होने लगता है और फिर उसे देखने की तड़प जाग उठती है। कदाचित यही प्रेम था जिसे अब मैं समझ चुका था। आज जब रूपा को देखा और उसकी बातें सुनी तो मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हुआ कि वो किस क़दर मेरे प्रेम में तड़प रही होगी। मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि क्या मुझे उसके प्रेम को इस तरह नज़रअंदाज़ करना चाहिए? कदाचित नहीं, क्योंकि ये उसके साथ नाइंसाफी होगी, एक सच्चा प्रेम करने वाली के साथ अन्याय होगा। मैंने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि मैं रूपा के प्रेम को ज़रूर स्वीकार करूंगा। रही बात उससे ब्याह करने की तो समय आने पर उसके बारे में भी सोच लिया जाएगा।

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। मैं सोचो के गहरे समुद्र से बाहर आया और जा कर दरवाज़ा खोला। बाहर भाभी खड़ी थीं।

"भाभी आप?" उन्हें देखते ही मैंने पूछा।

"माफ़ करना, तुम्हारे आराम पर खलल डाल दिया मैने।" भाभी ने खेद पूर्ण भाव से कहा।
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है भाभी।" मैंने एक तरफ हट का उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया____"आइए, अंदर आ जाइए।"

"और कैसा चल रहा है तुम्हारा काम धाम?" एक कुर्सी पर बैठते ही भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"काफी मेहनत हो रही है ना आज कल?"

"खेती बाड़ी के काम में मेहनत तो होती ही है भाभी।" मैंने कहा____"वैसे भी मेरे लिए ये मेरा पहला अनुभव है इस लिए शुरुआत में तो मुझे यही आभास होगा जैसे इस काम में बहुत मेहनत लगती है।"

"हां ये तो है।" भाभी ने कहा____"चार ही दिन में तुम्हारे चेहरे का रंग बदल गया है। काफी थके थके से नज़र आ रहे हो किंतु उससे ज़्यादा मुझे तुम कुछ परेशान और चिंतित भी दिख रहे हो। सब ठीक तो है न?"

"हां सब ठीक ही है भाभी।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"असल में एकदम से ही इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी मेरे कंधे पर आ गई है इस लिए उसी के प्रति ये सोच कर थोड़ा चिंतित हूं कि मैं सब कुछ अच्छे से सम्हाल लूंगा कि नहीं?"

"बिल्कुल सम्हाल लोगे वैभव।" भाभी ने जैसे मुझे प्रोत्साहित करते हुए कहा____"मानती हूं कि शुरुआत में हर चीज़ को समझने में और उसे सम्हालने में थोड़ी परेशानी होती है किंतु मुझे यकीन है कि तुम ये सब बेहतर तरीके से कर लोगे।"

"आपने इतना कह दिया तो मुझे सच में एक नई ऊर्जा सी मिल गई है।" मैंने खुश होते हुए कहा____"क्या आप कल सुबह मेरे साथ चलेंगी खेतों पर?"

"म...मैं??" भाभी ने हैरानी से देखा____"मैं भला कैसे वहां जा सकती हूं?"

"क्यों नहीं जा सकती आप?" मैंने कहा____"आपने मुझसे वादा किया था कि आप मेरे साथ चला करेंगी और अब आप ऐसा बोल रही हैं?"

"कहने में और करने में बहुत फ़र्क होता है वैभव।" भाभी ने सहसा बेचैन हो कर कहा____"तुम तो जानते हो कि इसके पहले मैं कभी भी इस हवेली से बाहर नहीं गई हूं।"

"हां तो क्या हुआ?" मैंने लापरवाही से कंधे उचकाए____"ज़रूरी थोड़ी ना है कि आप अगर पहले कभी नहीं गईं हैं तो आगे भी कभी नहीं जाएंगी। इंसान को अपने काम से बाहर तो जाना ही होता है, उसमें क्या है?"

"तुम समझ नहीं रहे हो वैभव।" भाभी ने मेरी तरफ चिंतित भाव से देखा____"पहले में और अब में बहुत अंतर हो चुका है। पहले मैं एक सुहागन थी, जबकि अब एक विधवा हूं। इतना सब कुछ होने के बाद अगर मैं तुम्हारे साथ कहीं बाहर जाऊंगी तो लोग मुझे देख कर जाने क्या क्या सोचने लगेंगे।"

"लोग तो सबके बारे में कुछ न कुछ सोचते ही रहते हैं भाभी।" मैंने कहा____"अगर इंसान ये सोचने लगे कि लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे तो फिर वो जीवन में कभी सहजता से जी ही नहीं सकेगा। आप इस हवेली की बहू हैं और सब जानते हैं कि आप कितनी अच्छी हैं। दूसरी बात, मुझे किसी के सोचने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे सिर्फ इस बात की परवाह है कि मेरी भाभी हमेशा खुश रहें। इस लिए आप कल सुबह मेरे साथ खेतों पर चलेंगी।"

"मां जी को हवेली में अकेला छोड़ कर कैसे जाउंगी मैं?" भाभी ने जैसे फ़ौरन ही बहाना ढूंढ लिया____"नहीं वैभव ये ठीक नहीं है। मुझसे ये नहीं होगा।"

"आप कुछ ज़्यादा ही सोच रही हैं भाभी।" मैंने कहा____"अच्छा ठीक है, मैं इस बारे में मां से बात करूंगा। मां की इजाज़त मिलने पर तो आप चलेंगी न मेरे साथ?"

"बहुत ज़िद्दी हो तुम?" भाभी ने बड़ी मासूमियत से देखा____"क्या कोई इस तरह अपनी भाभी को परेशान करता है?"

"किसी और का तो नहीं पता।" मैंने सहसा मुस्कुरा कर कहा____"पर मैं तो अपनी प्यारी सी भाभी को परेशान करूंगा और ये मेरा हक़ है।"

"अच्छा जी?" भाभी ने आंखें फैला कर मुझे देखा____"मुझे परेशान करोगे तो मार भी खाओगे, समझे?"

"मंज़ूर है।" मैं फिर मुस्कुराया____"आपकी खुशी के लिए तो सूली पर चढ़ जाना भी मंज़ूर है मुझे।"

"सूली पर चढ़ें तुम्हारे दुश्मन।" भाभी ने कहा____"मेरे देवर की तरफ कोई आंख उठा कर देखेगा तो आंखें निकाल लूंगी उसकी।"

"फिर तो मुझे अपने लिए किसी अंगरक्षक को रखने की ज़रूरत ही नहीं है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मेरी बहादुर भाभी ही काफी हैं मेरे दुश्मनों से मेरी हिफाज़त करने के लिए।"

"क्यों तंग कर रहा है तू मेरी फूल सी बच्ची को?" कमरे में सहसा मां की आवाज़ सुन कर हम दोनों ही उछल पड़े।

मां को कमरे में आया देख भाभी जल्दी ही कुर्सी से उठ कर खड़ी हो गईं। मैं और भाभी दोनों ही उन्हें हैरानी से देखे जा रहे थे। आज वो काफी समय बाद ऊपर आईं थी वरना वो सीढियां नहीं चढ़ती थीं। बहरहाल मां आ कर मेरे पास ही पलंग पर बैठ गईं।

"मां जी आप यहां?" भाभी ने मां से कहा____"कोई काम था तो किसी नौकरानी से संदेश भेजवा देतीं आप?"

"अरे! ऐसी कोई बात नहीं है बेटी।" मां ने बड़े स्नेह से कहा____"आज ठाकुर साहब भी नहीं हैं इस लिए मैंने सोचा कि तेरे पास ही कमरे में आ जाती हूं। सीढियां चढ़े भी काफी समय हो गया था तो सोचा इसी बहाने ये भी देख लेती हूं कि मुझमें सीढियां चढ़ने की क्षमता है कि नहीं।"

"वैसे मां, पिता जी किस काम से गए हैं कुल गुरु से मिलने?" मैंने मां से पूछा।

"पता नहीं आज कल क्या चलता रहता है उनके जहन में?" मां ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मुझे भी कुछ नहीं बताया उन्होंने। सिर्फ इतना ही कहा कि शाम तक वापस आ जाएंगे। अब तो उनके आने पर ही उनसे पता चलेगा कि वो किस काम से गुरु जी मिलने गए थे?" कहने के साथ ही मां ने भाभी की तरफ देखा फिर उनसे कहा____"अरे! बेटी तू खड़ी क्यों है? बैठ जा कुर्सी पर और ये तुझे तंग कर रहा था क्या?"

"नहीं मां जी।" भाभी ने कुर्सी में बैठे हुए कहा____"वैभव तो मेरा मन बहलाने की कोशिश कर रहे थे।"

"फिर तो ठीक है।" मां ने मेरी तरफ देखा____"मेरी बेटी को अगर तूने किसी बात पर तंग किया तो सोच लेना। ये मत समझना कि तू बड़ा हो गया है तो मैं तुझे पीटूंगी नहीं।"

"अरे! मां ये आप कैसी बात कर रही हैं?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"आप बेशक मुझे पीट सकती हैं मेरी ग़लती पर। वैसे आपने ये कैसे सोच लिया कि मैं अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी भाभी को तंग कर सकता हूं?"

"तो फिर क्या बोल रहा था तू अभी इसे?" मां ने आंखें दिखाते हुए मुझसे पूछा।

"अरे! वो तो मैं ये कह रहा था कि भाभी को मेरे साथ खेतों पर चलना चाहिए।" मैंने कहा____"इससे इनका मन भी बहलेगा और हवेली के अंदर चौबीसों घंटे रहने से जो घुटन होती रहती है वो भी दूर होगी।"

"हां ये तो तू सही कह रहा है।" मां ने सिर हिलाते हुए कहा____"मुझे खुशी हुई कि तुझे अपनी भाभी की फ़िक्र है।" कहने के साथ ही मां भाभी से मुखातिब हुईं____"तुम्हारा देवर सही कह रहा है बेटी। मेरे ज़हन में तो ये बात आई ही नहीं कि तुम कैसा महसूस करती होगी इन चार दीवारियों के अंदर। तुम्हारे दुख का एहसास है मुझे। ये मैं ही जानती हूं कि तुम्हें इस सफ़ेद लिबास में देख कर मेरे कलेजे में कैसे बर्छियां चलती हैं। मेरा मन करता है कि दुनिया के कोने कोने से खुशियां ला कर अपनी फूल सी बेटी की झोली में भर दूं।"

"चिंता मत कीजिए मां जी।" भाभी ने अधीरता से कहा____"ईश्वर ने ये दुख दिया है तो किसी तरह इसे सहने की ताक़त भी देगा। वैसे भी जिसके पास आप जैसी प्यार करने वाली मां और इतना स्नेह देने वाला देवर हो वो भला कब तक दुखी रह सकेगी?"

"मैं तेरा जीवन खुशियों से भरा हुआ देखना चाहती हूं बेटी।" मां की आंखों से आंसू छलक पड़े____"मैं तुझे इस रूप में नहीं देख सकती। मैं तेरी ज़िंदगी में खुशियों के रंग ज़रूर भरूंगी, फिर भले ही चाहे मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े।"

"ये आप क्या कह रही हैं मां जी?" भाभी ने हैरत से मां की तरफ देखा। मैं भी मां की बातें सुन कर हैरत में पड़ गया था।

"तू फ़िक्र मत मेरी बच्ची।" मां पलंग से उठ कर भाभी के पास आ कर बोलीं____"विधाता ने तेरा जीवन बिगाड़ा है तो अब मैं उसे संवारूंगी। बस कुछ समय की बात है।"

"आप क्या कह रही हैं मां जी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा?" भाभी का दिमाग़ जैसे चकरघिन्नी बन गया था। यही हाल मेरा भी था।

"तुझे इस हवेली में क़ैद रहने की ज़रूरत नहीं है मेरी बच्ची।" मां ने भाभी के मुरझाए चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच ले कर कहा____"और ना ही घुट घुट कर जीने की ज़रूरत है। मैंने हमेशा तुझे बहू से ज़्यादा अपनी बेटी माना है और हमेशा तेरी खुशियों की कामना की है। मैं वैभव की बात से सहमत हूं। तेरा जब भी दिल करे तू इसके साथ खेतों में चली जाया करना। इससे तेरा मन भी बहलेगा और तुझे अच्छा भी महसूस होगा।"

"मैं भी यही कह रहा था मां।" मैंने कहा____"पर भाभी मना कर रहीं थी। कहने लगीं कि अगर ये मेरे साथ बाहर कहीं घूमने जाएंगी तो लोग क्या सोचेंगे?"

"जिसे जो सोचना है सोचे।" मां ने हाथ झटकते हुए कहा____"मुझे किसी के सोचने की कोई परवाह नहीं है। मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि मेरी बेटी हर हाल में ख़ुश रहे।"

मां की बात सुन कर जहां मुझे बड़ा फक्र सा महसूस हुआ वहीं भाभी एकदम से ही मां से लिपट कर रोने लगीं। मां ने उन्हें किसी बच्ची की तरह अपने सीने से छुपका लिया। उनकी आंखें भी छलक पड़ीं थी। ये मंज़र देख मुझे ये सोच कर खुशी हो रही थी कि मेरी मां कितनी अच्छी हैं जो अपनी बहू को बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मान कर उनकी खुशियों की परवाह कर रही हैं।




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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
 

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अध्याय - 84
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"जिसे जो सोचना है सोचे।" मां ने हाथ झटकते हुए कहा____"मुझे किसी के सोचने की कोई परवाह नहीं है। मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि मेरी बेटी हर हाल में ख़ुश रहे।"

मां की बात सुन कर जहां मुझे बड़ा फक्र सा महसूस हुआ वहीं भाभी एकदम से ही मां से लिपट कर रोने लगीं। मां ने उन्हें किसी बच्ची की तरह अपने सीने से छुपका लिया। उनकी आंखें भी छलक पड़ीं थी। ये मंज़र देख मुझे ये सोच कर खुशी हो रही थी कि मेरी मां कितनी अच्छी हैं जो अपनी बहू को बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मान कर उनकी खुशियों की परवाह कर रही हैं।



अब आगे....


मुंशी चंद्रकांत साहूकारों के खेत पहुंचा। गौरी शंकर अपने खेत में बने छोटे से मकान के बरामदे में बैठा हुआ था। रूपचंद्र मजदूरों से काम करवा रहा था। चंद्रकांत को आया देख गौरी शंकर एकदम से ही चौंक गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि चंद्रकांत अब दुबारा कभी उसके सामने आएगा। उसे देखते ही उसको वो सब कुछ एक झटके में याद आने लगा जो कुछ हो चुका था।

"कैसे हैं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत बरामदे में ही रखी एक लकड़ी की मेज़ पर बैठते हुए बोला____"आप तो हमें भूल ही गए।"

"तुम भूलने वाली चीज़ नहीं हो चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने थोड़ा सख़्त भाव से कहा____"बल्कि तुम तो वो चीज़ हो जिसका अगर साया भी किसी पर पड़ जाए तो समझो इंसान बर्बाद हो गया।"

"ये आप कैसी बात कह रहे हैं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत ने हैरानी से उसे देखा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके लिए आप मुझे ऐसा बोल रहे हैं?"

"ये भी मुझे ही बताना पड़ेगा क्या?" गौरी शंकर ने उसे घूरते हुए कहा____"मैं ये मानता हूं कि हम लोग उतने भी होशियार और चालाक नहीं थे जितना कि हम खुद को समझते थे। सच तो ये है कि तुम्हें समझने में हमसे बहुत बड़ी ग़लती हुई।"

"आप ये क्या कह रहे हैं?" चंद्रकांत अंदर ही अंदर घबरा सा गया____"मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा।"

"अंजान बनने का नाटक मत करो चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"सच यही है कि हमारे साथ मिल जाने की तुम्हारी पहले से ही योजना थी। अगर मैं ये कहूं तो ग़लत न होगा कि हमारे कंधों पर बंदूक रख तुम दादा ठाकुर से अपनी दुश्मनी निकालना चाहते थे और अपने इस मक़सद में तुम कामयाब भी हो गए। अपने सामने हम सबको रख कर तुमने सारा खेल खेला। ये उसी का परिणाम है कि हम सब तो मिट्टी में मिल गए मगर तुम्हारा बाल भी बांका नहीं हुआ।"

"आप बेवजह मुझ पर आरोप लगा रहे हैं गौरी शंकर जी।" चंद्रकांत अपनी हालत को किसी तरह सम्हालते हुए बोला____"जबकि आप भी जानते हैं कि मैंने और मेरे बेटे ने आपका साथ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आप कहते हैं कि हमारा बाल भी बांका नहीं हुआ तो ये ग़लत है। हमारा भी बहुत नुकसान हुआ है। पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि मैं दादा ठाकुर के साथ ऐसा कर सकता हूं जबकि अब सबको पता चल चुका है। इस सब में अगर आप अकेले रह गए हैं तो मैं भी तो अकेला ही रह गया हूं। हवेली से मेरा हर तरह से ताल्लुक ख़त्म हो गया, जबकि पहले मैं दादा ठाकुर का मुंशी था। लोगों के बीच मेरी एक इज्ज़त थी मगर अब ऐसा कुछ नहीं रहा। हां ये ज़रूर है कि दादा ठाकुर के क़हर का शिकार होने से मैं और मेरा बेटा बच गए। किंतु ये भी ऊपर वाले की मेहरबानी से ही हो सका है।"

"बातें बनानी तुम्हें खूब आती हैं चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा_____"जीवन भर मुंशीगीरी किए हो और लोगों को जैसे चाहा चूतिया बनाया है तुमने। मुझे सब पता है कि तुमने इतने सालों में दादा ठाकुर की आंखों में धूल झोंक कर अपने लिए क्या कुछ बना लिया है।"

"इस बात से मैं कहां इंकार कर रहा हूं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत ने कहा____"सबसे पहले अपने बारे में और अपने हितों के बारे में सोचना तो इंसान की फितरत होती है। मैंने भी वही किया है। ख़ैर छोड़िए, मैंने सुना है कि कल आपके घर दादा ठाकुर खुद चल कर आए थे?"

"तुम्हें इससे क्या मतलब है?" गौरी शंकर ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा।

"म...मुझे मतलब क्यों नहीं होगा गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत हड़बड़ाते हुए बोला____"आख़िर हम दोनों उसके दुश्मन हैं और जो कुछ भी किया है हमने साथ मिल कर किया है। पंचायत में भले ही चाहे जो फ़ैसला हुआ हो किंतु हम तो अभी भी एक साथ ही हैं न? ऐसे में अगर आपके घर हमारा दुश्मन आएगा तो उसके बारे में हम दोनों को ही तो सोचना पड़ेगा ना?"

"तुम्हें बहुत बड़ी ग़लतफहमी है चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"इतना कुछ हो जाने के बाद और पंचायत में फ़ैसला हो जाने के बाद दादा ठाकुर से मेरी कोई दुश्मनी नहीं रही। दूसरी बात, हम दोनों के बीच भी अब कोई ताल्लुक़ नहीं रहा।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं गौरी शंकर जी?" चंद्रकांत बुरी तरह हैरान होते हुए बोला____"जिस इंसान ने आपका समूल नाश कर दिया उसे अब आप अपना दुश्मन नहीं मानते? बड़े हैरत की बात है ये।"

"अगर तुम्हारा भी इसी तरह समूल नाश हो गया होता तो तुम्हारी भी मानसिक अवस्था ऐसी ही हो जाती चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"मुझे अच्छी तरह एहसास हो चुका है कि हमने बेकार में ही इतने वर्षों से हवेली में रहने वालों के प्रति बैर भाव रखा हुआ था। जिसने हमारे साथ ग़लत किया था वो तो वर्षों पहले ही मिट्टी में मिल गया था। उसके पुत्रों ने अथवा उसके पोतों ने तो कभी हमारा कुछ बुरा किया ही नहीं था, फिर क्यों हमने उनसे इतना बड़ा बैर भाव रखा? सच तो यही है चंद्रकांत कि हमारी तबाही में दादा ठाकुर से कहीं ज़्यादा हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। दादा ठाकुर सच में एक नेक व्यक्ति हैं जो इस सबके बावजूद खुद को हमारा अपराधी समझते हैं और खुद चल कर हमारे घर आए। ये उनकी उदारता और नेक नीयती का ही सबूत है कि वो अभी भी हमसे अपने रिश्ते सुधारने का सोचते हैं और हम सबका भला चाहते हैं।"

"कमाल है।" चंद्रकांत हैरत से आंखें फाड़े बोल पड़ा____"आपका तो कायाकल्प ही हो गया है गौरी शंकर जी। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि जिस व्यक्ति ने आप सबको मिट्टी में मिला दिया उसके बारे में आप इतने ऊंचे ख़याल रखने लगे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इतना कुछ हो जाने के बाद आप दादा ठाकुर से कुछ इस क़दर ख़ौफ खा गए हैं कि अब भूल से भी उनसे बैर नहीं रखना चाहते, दुश्मनी निभाने की तो बात ही दूर है।"

"तुम्हें जो समझना है समझ लो चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"किंतु तुम्हारे लिए मेरी मुफ़्त की सलाह यही है कि तुम भी अब अपने दिलो दिमाग़ से हवेली में रहने वालों के प्रति दुश्मनी के भाव निकाल दो वरना इसका अंजाम ठीक वैसा ही भुगतोगे जैसा हम भुगत चुके हैं।"

"यानि मेरा सोचना सही है।" चंद्रकांत इस बार मुस्कुराते हुए बोला____"आप सच में दादा ठाकुर से बुरी तरह ख़ौफ खा गए हैं जिसके चलते अब आप उन्हें एक अच्छा इंसान मानने लगे हैं। ख़ैर आप भले ही उनसे डर गए हैं किंतु मैं डरने वाला नहीं हूं। उनके बेटे ने आपके घर की बहू बेटियों की इज्ज़त को नहीं रौंदा है जबकि उस वैभव ने अपने दादा की तरह मेरे घर की इज्ज़त को रौंदा है। इस लिए जब तक उस नामुराद को मार नहीं डालूंगा तब तक मेरे अंदर की आग शांत नहीं हो सकती।"

"तुम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाओगे चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"अगर तुम ये मानते हो कि वो अपने दादा की ही तरह है तो तुम्हें ये भी मान लेना चाहिए कि जब तुम उसके दादा का कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो उसके पोते का क्या बिगाड़ लोगे? उसे बच्चा समझने की भूल मत करना चंद्रकांत। वो तुम्हारी सोच से कहीं ज़्यादा की चीज़ है।"

"अब तो ये आने वाला वक्त ही बताएगा गौरी शंकर जी कि कौन क्या चीज़ है?" चंद्रकांत ने दृढ़ता से कहा____"आप भी देखेंगे कि उस नामुराद को उसके किए की क्या सज़ा मिलती है?"

चंद्रकांत की बात सुन कर गौरी शंकर बस मुस्कुरा कर रह गया। जबकि चंद्रकांत उठा और चला गया। उसके जाने के कुछ ही देर बाद रूपचंद्र उसके पास आया।

"ये मुंशी किस लिए आया था काका?" रूपचंद्र ने पूछा____"क्या आप दोनों फिर से कुछ करने वाले हैं?"

"नहीं बेटे।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"मैं तो अब कुछ भी करने का नहीं सोचने वाला किंतु हां चंद्रकांत ज़रूर बहुत कुछ करने का मंसूबा बनाए हुए है।"

"क्या मतलब?" रूपचंद्र की आंखें फैलीं।

"वो आग से खेलना चाहता है बेटे।" गौरी शंकर ने कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी वो दादा ठाकुर को अपना दुश्मन समझता है, खास कर वैभव को। उसका कहना है कि वो वैभव को उसके किए की सज़ा दे कर रहेगा।"

"मरेगा साला।" रूपचंद्र ने कहा____"पर आपके पास किस लिए आया था वो?"

"शायद उसे कहीं से पता चल गया है कि दादा ठाकुर कल हमारे घर आए थे।" गौरी शंकर ने कहा____"इस लिए उन्हीं के बारे में पूछ रहा था कि किस लिए आए थे वो?"

"तो आपने क्या बताया उसे?" रूपचंद्र ने पूछा।

"मैं उसे क्यों कुछ बताऊंगा बेटे?" गौरी शंकर ने रूपचंद्र की तरफ देखा____"उससे अब मेरा कोई ताल्लुक़ नहीं है। तुम भी इन बाप बेटे से कोई ताल्लुक़ मत रखना। पहले ही हम अपनी ग़लतियों की वजह से अपना सब कुछ खो चुके हैं। अब जो शेष बचा है उसे किसी भी कीमत पर नहीं खोना चाहते हम। मैंने उससे साफ कह दिया है कि उससे अब मेरा या मेरे परिवार का कोई ताल्लुक़ नहीं है। दादा ठाकुर से अब हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। वो अगर उन्हें अपना दुश्मन समझता है तो समझे और उसे जो करना है करे लेकिन हमसे अब वो कोई मतलब ना रखे।"

"बिल्कुल सही कहा आपने उससे।" रूपचंद्र ने कहा____"वैसे काका, क्या आपको सच में यकीन है कि दादा ठाकुर हमें अपना दुश्मन नहीं समझते हैं और वो हमसे अपने रिश्ते जोड़ कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं?"

"असल में बात ये है बेटे कि जो व्यक्ति जैसा होता है वो दूसरे को भी अपने जैसा ही समझता है।" गौरी शंकर ने जैसे समझाने वाले अंदाज़ में कहा____"जबकि असलियत इससे जुदा होती है। हम दादा ठाकुर पर यकीन करने से इस लिए कतरा रहे हैं कि क्योंकि हम ऐसे ही हैं। जबकि सच तो यही है कि वो सच में हमें अपना ही समझते हैं और हमसे रिश्ता सुधार कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं। पहले भी तो यही हुआ था, ये अलग बात है कि पहले जब हमने रिश्ते सुधारने की पहल की थी तो उसमें हमारी नीयत पूरी तरह से दूषित थी।"

"तो क्या आपको लगता है कि दादा ठाकुर हमसे रिश्ते सुधारने के लिए एक नया रिश्ता जोड़ेंगे?" रूपचंद्र ने झिझकते हुए पूछा____"मेरा मतलब है कि क्या वो अपने छोट भाई की बेटी का ब्याह मेरे साथ करेंगे?"

"अगर वो ऐसा करें तो समझो ये हमारे लिए सौभाग्य की ही बात होगी बेटे।" गौरी शंकर ने कहा____"किंतु मुझे नहीं लगता कि ये रिश्ता हो सकेगा। कुसुम अगर उनकी अपनी बेटी होती तो यकीनन वो उसका ब्याह तुमसे कर देते किंतु वो उनके उस भाई की बेटी है जिसकी हमने हत्या की है। खुद सोचो कि क्या कोई औरत अपनी बेटी का ब्याह उस घर में करेगी जिस घर के लोगों ने उसके पति और उसकी बेटी के बाप की हत्या की हो? उनकी जगह हम होते तो हम भी नहीं करते, इस लिए इस बात को भूल ही जाओ कि ये रिश्ता होगा।"

"पर बड़ी मां ने तो दादा ठाकुर से यही शर्त रखी है ना?" रूपचंद्र ने कहा____"शर्त के अनुसार अगर दादा ठाकुर कुसुम का ब्याह मेरे साथ नहीं करेंगे तो हमारे संबंध भी उनसे नहीं जुड़ेंगे।"

"ऐसा कुछ नहीं है बेटे।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"तुम्हारी बड़ी मां ने तो दादा ठाकुर से शर्त के रूप में ये बात सिर्फ इस लिए कही थी क्योंकि वो देखना चाहती थीं कि दादा ठाकुर ऐसे संबंध पर अपनी क्या प्रतिक्रिया देते हैं? ख़ैर छोड़ो इन बातों को, सच तो ये है कि अगर दादा ठाकुर सच में हमसे रिश्ते सुधार कर एक नई शुरुआत करने को कहेंगे तो हम यकीनन ऐसा करेंगे। मर्दों के नाम पर अब सिर्फ हम दोनों ही बचे हैं बेटे और हमें इसी गांव में रहते हुए अपने परिवार की देख भाल करनी है। दादा ठाकुर जैसे ताकतवर इंसान से बैर रखना हमारे लिए कभी भी हितकर नहीं होगा।"

✮✮✮✮

चंद्रकांत गुस्से में अपने घर पहुंचा।
उसका बेटा रघुवीर घर पर ही था। उसने जब अपने पिता को गुस्से में देखा तो उसे किसी अनिष्ट की आशंका हुई जिसके चलते वो अंदर ही अंदर घबरा गया।

"क्या बात है बापू?" फिर उसने अपने पिता से झिझकते हुए पूछा____"तुम इतने गुस्से में क्यों नज़र आ रहे हो? कुछ हुआ है क्या?"

"वो गौरी शंकर साला डरपोक और कायर निकला।" चंद्रकांत ने अपने दांत पीसते हुए कहा____"दादा ठाकुर से इस क़दर डरा हुआ है कि अब वो कुछ करना ही नहीं चाहता।"

"तुम गौरी शंकर के पास गए थे क्या?" रघुवीर ने चौंकते हुए उसे देखा।

"हां।" चंद्रकांत ने सिर हिलाया____"आज जब तुमने मुझे ये बताया था कि दादा ठाकुर उसके घर गया था तो मैंने सोचा गौरी शंकर से मिल कर उससे पूछूं कि आख़िर दादा ठाकुर उसके घर किस मक़सद से आया था?"

"तो फिर क्या बताया उसने?" रघुवीर उत्सुकता से पूछ बैठा।

"बेटीचोद इस बारे में कुछ भी नहीं बताया उसने।" चंद्रकांत गुस्से में सुलगते हुए बोला____"उल्टा मुझ पर ही आरोप लगाने लगा कि उसके और उसके भाईयों को ढाल बना कर सारा खेल मैंने ही खेला है जिसके चलते आज उन सबका नाश हो गया है।"

"कितना दोगला है कमीना।" रघुवीर ने हैरत से कहा____"अपनी बर्बादी का सारा आरोप अब हम पर लगा रहा है जबकि सब कुछ करने की योजनाएं तो वो सारे भाई मिल कर ही बनाते थे। हम तो बस उनके साथ थे।"

"वही तो।" चंद्रकांत ने कहा____"सारा किया धरा तो उसके और उसके भाईयों का ही था इसके बाद भी आज वो हर चीज़ का आरोप मुझ पर लगा रहा था। उसके बाद जब मैंने इस बारे में कुछ करने को कहा तो उल्टा मुझे नसीहत देने लगा कि मैं अब कुछ भी करने का न सोचूं वरना इसका अंजाम मुझे भी उनकी तरह ही भुगतना पड़ेगा।"

"तो इसका मतलब ये हुआ कि अब वो दादा ठाकुर के खिलाफ़ कुछ भी नहीं करने वाला।" रघुवीर ने कहा____"एक तरह से उसने हमसे किनारा ही कर लिया है।"

"हां।" चंद्रकांत ने कहा____"उसने स्पष्ट रूप से मुझसे कह दिया है कि अब से उसका हमसे कोई ताल्लुक़ नहीं है।"

"फ़िक्र मत करो बापू।" रघुवीर अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुराया____"मैंने कुछ ऐसा कर दिया है कि उसका मन फिर से बदल जाएगा। बल्कि ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि वो फिर से दादा ठाकुर को अपना दुश्मन समझ बैठेगा।"

"क्या मतलब?" चंद्रकांत अपने बेटे की इस बात से बुरी तरह चौंका था, बोला____"ऐसा क्या कर दिया तुमने कि गौरी शंकर का मन बदल जाएगा और वो दादा ठाकुर को अपना दुश्मन मानने लगेगा?"

"आज मेरे एक पहचान वाले ने मुझे बहुत ही गज़ब की ख़बर दी थी बापू।" रघुवीर ने मुस्कुराते हुए कहा____"उसने बताया कि आज सुबह दादा ठाकुर का सपूत हरि शंकर की बेटी से मिला था। हरि शंकर की बेटी रूपा के साथ गौरी शंकर की बेटी राधा भी थी उस वक्त। मेरे पहचान के उस खास आदमी ने बताया कि वैभव काफी देर तक उन दोनों के पास खड़ा रहा था। ज़ाहिर है वो उन दोनों को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए ही फांसने की कोशिश करता रहा होगा।"

"उस हरामजादे से इसके अलावा और किस बात की उम्मीद कर सकता है कोई?" चंद्रकांत ने सख़्त भाव से कहा____"ख़ैर फिर क्या हुआ? मेरा मतलब है कि तुम्हारे उस आदमी के ये सब बताने के बाद तुमने क्या किया फिर?"

"मुझे जैसे ही ये बात पता चली तो मैं ये सोच कर मन ही मन खुश हो गया कि दोनों परिवारों के बीच दुश्मनी पैदा करने का इससे बेहतर मौका और क्या हो सकता है?" रघुवीर ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"बस, फिर मैंने भी इस सुनहरे अवसर को गंवाना उचित नहीं समझा और पहुंच गया साहूकारों के घर। गौरी शंकर अथवा रूपचंद्र तो नहीं मिले लेकिन उसके घर की औरतें मिल गईं। मैंने उनसे सारी बातें बता दी। मेरी बातें सुनने के बाद मैंने देखा कि उन सभी औरतों के चेहरे पर गुस्से के भाव उभर आए थे। मैं समझ गया कि अब वो औरतें खुद ही आगे का काम सम्हाल लेंगी, यानि आग लगाने का काम। वो गौरी शंकर और रूपचंद्र को बताएंगी कि कैसे दादा ठाकुर का सपूत उनकी दोनों बेटियों को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए उन्हें रास्ते में रोके हुए था आज? मुझे पूरा यकीन है बापू कि सवाल जब इज्ज़त का आ जाएगा तो गौरी शंकर और रूपचंद्र चुप नहीं बैठेंगे। यानि कोई न कोई बखेड़ा ज़रूर होगा अब।"

"ये तो कमाल ही हो गया बेटे।" चंद्रकांत एकदम से खुश हो कर बोला____"इतने दिनों से मैं यही सोच सोच के कुढ़ सा रहा था कि आख़िर कैसे दादा ठाकुर के खिलाफ़ कुछ बोलने का मौका मिले मगर अब मिल चुका है। शाबाश! बेटा, यकीनन ये बहुत ही गज़ब का मौका हाथ लगा है और तुमने भी बहुत ही समझदारी से काम लिया कि सारी बातें साहूकारों के घर वालों को बता दी। अब निश्चित ही हंगामा होगा। मैं भी देखता हूं कि मुझे नसीहतें देने वाला गौरी शंकर अब कैसे शांत बैठता है?"

"मेरा तो ख़याल ये है बापू कि इसके बाद अब हमें कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।" रघुवीर ने कहा____"बल्कि गौरी शंकर अब इस बात के आधार पर खुद ही दादा ठाकुर को तबाह करने का समान जुटा लेगा। बात अगर पंचायत तक गई तो देखना इस बार दादा ठाकुर पर कोई रियायत नहीं की जाएगी।"

"मैं तो चाहता ही हूं कि उन लोगों पर कोई किसी भी तरह की रियायत न करे।" चंद्रकांत ने जबड़े भींचते हुए कहा____"अगर ऐसा हुआ तो पंचायत में दादा ठाकुर को या फिर उसके सपूत को इस गांव से निष्कासित करने का ही फ़ैसला होगा। अगर वो हरामजादा सच में इस गांव से निष्कासित कर दिया गया तो फिर उसे हम जिस तरह से चाहेंगे ख़त्म कर सकेंगे।"

"मैं तो उसे तड़पा तड़पा कर मारूंगा बापू।" रघुवीर ने एकाएक आवेश में आ कर कहा____"उसे ऐसी बद्तर मौत दूंगा कि वर्षों तक लोग याद रखेंगे।"

"वो तो ठीक है बेटे।" चंद्रकांत ने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन इसके अलावा मैंने एक और फ़ैसला कर लिया है जिसके बारे में मैं तुम्हें सही वक्त आने पर बताऊंगा।"



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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
ये साला मुंशी चंद्रकांत अपने कुटीलता से बाज नहीं आयेगा उसके खुरापती दिमाग से दुश्मनी नहीं निकल रही आगे वैभव से दोनों बाप बेटे पिटेगे
गौरीशंकर और रुपचंद समझ गये की दुश्मनी का करने का परिणाम क्या होता है अब वो दादा ठाकूर के परिवार से संबंध सुधारणे का सोच रहे हैं अच्छा है खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

ruhi92

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दोस्तों, जैसा कि आप सबको पता चल ही चुका है कि मेरे बड़े दादा जी का निधन हो गया है इस लिए हम सबको दिल्ली से गांव जाना है अब। वहां गांव में इससे संबंधित जो कार्यक्रम होंगे उसमें हम सब व्यस्त हो जाएंगे। ज़ाहिर है ऐसे में मैं ना तो अपडेट लिख सकूंगा और ना ही यहां पोस्ट कर सकूंगा। ये आख़िरी अपडेट था जिसे मैंने कल रात लिखा था, इस लिए इसे आप लोगों के सामने पेश कर दिया है। अब कहानी का अगला अपडेट पंद्रह या बीस दिनों के बाद ही आ सकेगा।

उम्मीद करता हूं कि आप सब मेरी मनोदशा और मेरी मजबूरियों को समझते हुए धैर्य से काम लेंगे और इसी तरह अपना साथ बनाए रखेंगे। अब पंद्रह बीस दिनों के बाद ही मुलाकात होगी। खुश रहें और अपना खयाल रखें। :ciao:
Rip dadaji...... TheBlackBlood take your time take care
 

Sanju@

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अध्याय - 81
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मेरी बात सुन कर भाभी ने खुद को सम्हाला और अपने आंसू पोंछ कर बिना कुछ कहे ही कमरे से बाहर निकल गईं। इधर मुझे अपने आप पर बेहद गुस्सा आ रहा था कि मैंने उनसे ऐसी बात ही क्यों कही जिसके चलते उन्हें रोना आ गया? ख़ैर अब क्या हो सकता था। मैं वापस पलंग पर जा कर लेट गया और मन ही मन सोचने लगा कि अब से मैं सिर्फ वही काम करूंगा जिससे भाभी को न तो तकलीफ़ हो और ना ही उनकी आंखों से आंसू निकलें।


अब आगे....


"ये क्या कह रहे हैं आप?" पिता जी की बातें सुनते ही मां ने चकित हो कर उनकी तरफ देखा____"मणि शंकर भाई साहब की पत्नी ऐसा बोल सकती हैं? हमें यकीन नहीं हो रहा लेकिन आप कह रहे हैं तो सच ही होगा। वैसे आपको उनके घर जाना ही नहीं चाहिए था।"

"ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" पिता जी ने कहा____"क्या आप नहीं चाहतीं कि सब कुछ भुला कर हम उनसे अपने रिश्ते बेहतर बना लें?"

"हम ये मानते हैं कि जीवन में कभी भी किसी से बैर भाव नहीं रखना चाहिए।" मां ने गंभीरता से कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि ऐसे व्यक्ति से रिश्ता बनाना भी बेकार है जो किसी शर्त के आधार पर रिश्ता बनाने की बात करे। हमारे साथ तो अपराध करना उन्होंने ही शुरू किया था जिसका बदला अगर हमने इस तरह से ले लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया हमने? फिर भी मान लेते हैं कि आपने उनके साथ अपराध किया है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो आपको नीचा दिखाने के लिए आपसे कुछ भी कहने लगें।"

"क्या आपको सच में ऐसा लगता है कि वो हमसे ऐसा कह कर हमें नीचा दिखाने की कोशिश कर रहीं थी?" पिता जी ने कहा।

"और नहीं तो क्या।" मां ने दृढ़ता से कहा____"उनके ऐसा कहने का यही मतलब है। वो आपकी नर्मी को आपकी दुर्बलता समझ रही हैं और इसी लिए उन्होंने आपसे बेहतर रिश्ते बनाने के लिए ऐसी शर्त रखी। हमें तो हैरानी हो रही है कि उनकी हिम्मत कैसे हुई हमारी फूल जैसी बेटी के साथ अपने बेटे के रिश्ते की बात कहने की?"

"वैसे अगर ये रिश्ता हो भी जाता है तो इसमें कोई बुराई तो नहीं है।" पिता जी ने मां की तरफ देखते हुए कहा____"हमें लगता है कि इस तरह से दोनों परिवारों के बीच काफी गहरा और मजबूत रिश्ता बन जाएगा।"

"इसका मतलब आप भी चाहते हैं कि हमारी फूल जैसी बेटी का ब्याह उनके बेटे से हो जाए?" मां ने आश्चर्य से पिता जी को देखा____"हमें बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि आप ऐसा चाहते हैं।"

"क्या आप नहीं चाहतीं?" पिता जी ने पूछा।

"नहीं, बिल्कुल भी नहीं।" मां ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"हम अपनी बेटी का ब्याह उस घर में कदापि नहीं करेंगी जिस घर के लोगों की मानसिकता इतनी गिरी हुई हो। आप एक बात अच्छी तरह समझ लीजिए कि हमारे संबंध उनसे बेहतर हों या ना हों लेकिन हमारी बेटी का ब्याह उस घर में किसी भी कीमत पर नहीं होगा।"

मां का एकदम से ही तमतमा गया चेहरा देख पिता जी ख़ामोश रह गए। उन्हें बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि उनकी धर्म पत्नी ऐसे रिश्ते की बात सुन कर इस तरह से गुस्सा हो जाएंगी।

"एक बार आप इस बारे में मेनका से भी पूछ लीजिएगा।" पिता जी ने धड़कते हुए दिल से मां से कहा____"हो सकता है कि उसे इस रिश्ते से कोई आपत्ति न हो।"

"आपको क्या हो गया है आज?" मां ने हैरानी से पिता जी को देखा____"आप क्यों उनसे हमारी बेटी का रिश्ता करवाना चाहते हैं? क्या आपको अपनी बेटी से प्यार नहीं है? क्या आपको उसके सुखों का ख़याल नहीं है?"

"बिल्कुल है सुगंधा।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"आप ऐसा कैसे कह सकती हैं कि हमे हमारी बेटी से प्यार नहीं है अथवा हमें उसके सुखों का ख़याल नहीं है? वो इस हवेली की इकलौती बेटी है। हम सबकी जान बसती है उसमें। फिर भला हम कैसे उसके लिए कोई ग़लत फ़ैसला कर सकते हैं अथवा उसके भविष्य को बिगाड़ सकते हैं?"

"साहूकारों के घर में अपनी बेटी का ब्याह करना मतलब उसके भविष्य को बिगाड़ देना ही है ठाकुर साहब।" मां ने कहा____"क्या आपको इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी एहसास नहीं हुआ है कि वो किस तरह की सोच और मानसिकता वाले लोग हैं? इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्हें अपनी ग़लतियों का एहसास नहीं है, बल्कि वो तो यही समझते हैं कि सिर्फ हमने ही उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है। ख़ैर अगर वो सच में दोनों परिवारों के बीच बेहतर संबंध बना लेने का सोचते तो इसके लिए वो ऐसी शर्त नहीं रखते और ना ही आपको नीचा दिखाने की कोशिश करते।"

"हां हम समझते हैं सुगंधा।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"किंतु किसी को तो झुकना ही पड़ेगा ना। वो भले ही खुद को दोषी अथवा अपराधी न समझते हों किंतु हम तो समझते हैं न कि हम उनके अपराधी हैं इस लिए उनके सामने हमें ही झुकना होगा।"

"बेशक आप झुकिए ठाकुर साहब।" मां ने स्पष्ट रूप से कहा____"लेकिन अपने साथ किसी और को इस तरह से मत झुकाइए। अगर आप समझते हैं कि आप उनके अपराधी हैं और उनके साथ किए गए अपराध के लिए आप प्रायश्चित के रूप में उनके लिए कुछ करना चाहते हैं तो सिर्फ वो कीजिए जिसमें सिर्फ आपका ही हक़ हो। कुसुम आपके छोटे भाई की बेटी है। भले ही हम उसे उसके मां बाप से भी ज़्यादा प्यार करते हैं मगर उसके लिए कोई फ़ैसला करने का हक़ हमें नहीं है। एक और बात, अपने बेटे को भी मत भूलिए। अगर उसे पता चला कि आपने उसकी लाडली बहन का ब्याह साहूकारों के यहां करने का मन बनाया है तो जाने वो क्या कर डालेगा?"

पिता जी कुछ न बोले। बस गहरी सोच में डूबे नज़र आने लगे। इतना तो वो भी समझते थे कि कुसुम का रिश्ता साहूकारों के यहां करना उचित नहीं है किंतु वो ये भी चाहते थे कि सब कुछ बेहतर हो जाए। एकाएक ही उनके चेहरे पर गहन चिंता के भाव उभरते नज़र आने लगे।

✮✮✮✮

सरोज ने जब दरवाज़ा खोला तो बाहर भुवन पर उसकी नज़र पड़ी और साथ ही उसके पीछे खड़े वैद्य जी पर। भुवन तो ख़ैर रोज़ ही आता था उसके घर लेकिन इस वक्त उसके साथ वैद्य को देख कर उसे बड़ी हैरानी हुई।

"भुवन बेटा तुम्हारे साथ वैद्य जी क्यों आए हैं? सब ठीक तो है न?" फिर उसने उत्सुकतावश पूछा।

"फ़िक्र मत करो काकी।" भुवन ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"अंदर चलो सब बताता हूं तुम्हें।"

सरोज एक तरफ हुई तो भुवन दरवाज़े के अंदर आ गया और उसके पीछे वैद्य जी भी अपना थैला लटकाए आ गए। सरोज दरवाज़े को यूं ही आपस में भिड़ा कर उनके पीछे आंगन में आ गई। इस बीच भुवन ने खुद ही बरामदे से चारपाई निकाल कर आंगन में बिछा दिया था। बारिश होने की वजह से आंगन में कीचड़ हो गया था।

भुवन ने वैद्य जी को चारपाई पर बैठाया और सरोज से उनके लिए पानी लाने को कहा। सरोज अपने मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए जल्दी ही लोटा ग्लास में पानी ले आई और वैद्य जी को पकड़ा दिया। आंगन में लोगों की आवाज़ें सुन कर अनुराधा भी अपने कमरे से निकल कर बाहर बरामदे में आ गई। भुवन के साथ वैद्य जी को देख उसे कुछ समझ न आया।

"काकी बात असल में ये है कि अनुराधा जब मेरे पास गई थी तो वो बारिश में बहुत ज़्यादा भीग गई थी।" भुवन ने एक नज़र अनुराधा पर डालने के बाद सरोज से कहा____"और फिर मेरे मना करने के बाद भी बारिश में भींगते हुए ये घर चली आई। कह रही थी कि तुम गुस्सा करोगी इस पर। उस समय मेरे पास छोटे कुंवर भी थे, जब ये मेरे मना करने पर भी चली आई तो वो बोले कि कहीं ये भींगने की वजह से बीमार न पड़ जाए इस लिए मैं वैद्य जी को ले कर यहां आ जाऊं।"

"हाय राम! ये लड़की भी न।" सारी बातें सुन कर सरोज एकदम से बोल पड़ी____"किसी की भी नहीं सुनती है आज कल। अभी कुछ देर पहले जब ये भीगते हुए यहां आई थी तो मैं भी इसे डांट रही थी कि बारिश में भीगने से बीमार पड़ जाएगी तो कैसे इलाज़ करवाऊंगी? वो तो शुक्र है छोटे कुंवर का जो उन्होंने वैद्य जी को तुम्हारे साथ भेज दिया। जब से अनू के बापू गुज़रे हैं तब से हमारा हर तरह से ख़याल रख रहे हैं वो।"

सरोज एकदम से भावुक हो गई। उधर अनुराधा ये सोचे जा रही थी कि भुवन ने कितनी सफाई से बातों को बदल कर सच को छुपा लिया था। उसे इस बात से काफी शर्मिंदगी हुई किंतु ये सोच कर उसे रोना भी आने लगा कि वैभव ने उसकी सेहत का ख़याल कर के भुवन के साथ वैद्य जी को यहां भेज दिया है। एक बार फिर से उसकी आंखों के सामने वो दृश्य उजागर हो गया जब वैभव छाता लिए उसके पास खड़ा था और उससे बातें कर रहा था। अनुराधा के कानों में एकाएक ही उसकी बातें गूंजने लगीं जिससे उसके दिल में एकदम से दर्द सा होने लगा।

"मेरी बहन बारिश में भींगने से बीमार तो नहीं हुई है ना?" भुवन ने अनुराधा की तरफ देखते हुए कहा____"इधर आओ ज़रा और वैद्य जी को दिखाओ खुद को।"

मजबूरन अनुराधा को बरामदे से निकल कर आंगन में वैद्य जी के पास आना ही पड़ा। वैद्य जी ने पहले उसके माथे को छुआ और फिर उसकी नाड़ी देखने लगे।

"घबराने की कोई बात नहीं है।" कुछ पलों बाद वैद्य जी ने अनुराधा की नाड़ी को छोड़ कर कहा____"बस हल्का सा ताप है इसे जोकि भींगने की वजह से ही है। हम दवा दे देते हैं जल्दी ही आराम मिल जाएगा।"

वैद्य जी ने अपने थैले से दवा निकाल कर उसे एक पुड़िया बना कर सरोज को पकड़ा दिया।

"वैद्य जी बारिश का मौसम शुरू हो गया है तो सर्दी जुखाम और बुखार की दवा थोड़ी ज़्यादा मात्रा में दे दीजिए।" भुवन ने कहा____"आपको भी बार बार यहां आने की तकलीफ़ नहीं उठानी पड़ेगी।"

वैद्य जी ने अपने थैले से एक एक कर के दवा निकाल कर तथा उनकी पुड़िया बना कर सरोज को पकड़ा दिया। ये भी बता दिया कि कौन सी पुड़िया में किस मर्ज़ की दवा है। भुवन ने सरोज से सभी का हाल चाल पूछा और फिर वो वैद्य को ले कर चला गया।

"अब तुझे क्या हुआ?" अनुराधा को अजीब भाव से कहीं खोए हुए देख सरोज ने पूछा____"और तेरे पांव में तो मोच आई थी ना तो तू यहां क्यों खड़ी है? जा जा के आराम कर।"

अनुराधा तो मोच के बारे में भूल ही गई थी। मां के मुख से मोच का सुन कर वो एकदम से घबरा गई। उसने जल्दी से हां में सिर हिलाया और फिर लंगड़ाने का नाटक करते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चली।

"अच्छा ये तो बता कि आज कल तू किसी की बात क्यों नहीं मानती है?" अनुराधा को जाता देख सरोज ने पीछे से कहा____"भुवन तुझे अपनी छोटी बहन मानता है और तेरे लिए इतनी फ़िक्र करता है फिर भी तूने उसकी बात नहीं मानी और बारिश में भींगते हुए यहां चली आई। वहां उसके पास वैभव भी था, तेरी ये हरकत देख कर क्या सोचा होगा उसने कि कैसी बेसहूर लड़की है तू।"

अनुराधा अपनी मां की बात सुन कर ठिठक गई किंतु उसने कोई जवाब नहीं दिया। असल में वो कोई जवाब देने की हालत में ही नहीं थी। उसे तो अब जी भर के रोना आ रहा था। वैभव की बातें अभी भी उसके कानों में गूंज रहीं थी।

"वैसे काफी समय से वैभव हमारे घर नहीं आया।" सरोज ने जैसे खुद से ही कहा____"पहले तो दो तीन दिन में आ जाता था हमारा हाल चाल पूछने के लिए। माना कि उसके परिवार में बहुत दुखद घटना घट गई थी लेकिन फिर भी वो यहां ज़रूर आता। भुवन ने बताया कि वो उसके पास ही उसके नए बन रहे मकान में था। फिर वो यहां क्यों नहीं आया?"

सरोज की ये बातें अनुराधा के कानों में भी पहुंच रहीं थी। जो सवाल उसकी मां के मुख से निकले थे उनके जवाब भले ही सरोज के पास न थे किंतु अनुराधा के पास तो यकीनन थे। उसे तो पता ही था कि वैभव उसके घर क्यों नहीं आता है। एकाएक ही ये सब सोच कर उसके अंदर हूक सी उठी। इससे पहले कि उसे खुद को सम्हाल पाना मुश्किल हो जाता वो जल्दी से अपने कमरे में दाखिल हो गई। दरवाज़ा बंद कर के वो तेज़ी से चारपाई पर आ कर औंधे मुंह गिर पड़ी और तकिए में मुंह छुपा कर फूट फूट कर रोने लगी।

"तुम्हारी आंखों में आसूं अच्छे नहीं लगते।" अचानक ही उसके कानों में वैभव द्वारा कही गई बातें गूंज उठी____"इन आंसुओं को तो मेरा मुकद्दर बनना चाहिए। यकीन मानो ऐसे मुकद्दर से कोई शिकवा नहीं होगा मुझे।"

"न...नहीं....रुक जाइए। भगवान के लिए रुक जाइए।"
"किस लिए?"
"म...मुझे आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं और...और मुझे आपसे कुछ सुनना भी है।"

"मतलब?? मुझसे भला क्या सुनना है तुम्हें?"
"ठ...ठकुराइन।" उसने नज़रें झुका कर भारी झिझक के साथ कहा था____"हां मुझे आपसे यही सुनना है। एक बार बोल दीजिए न।"

"क्यों?"
"ब...बस सुनना है मुझे।"

"पर मैं ऐसा कुछ भी नहीं बोल सकता।" उसके कानों में वैभव की आवाज़ गूंज उठी____"अब दिल में चाहत जैसी चीज़ को फिर से नहीं पालना चाहता। तुम्हारी यादें बहुत हैं मेरे लिए।"

अनुराधा बुरी तरह तड़प कर पलटी और सीधा लेट गई। उसका चेहरा आंसुओं से तर था। उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सीधा लेट जाने की वजह से उसके आंसू उसकी आंखों के किनारे से बह कर जल्दी ही उसके कानों तक पहुंच गए।

"ऐसा क्यों कर रहे हैं आप मेरे साथ?" फिर वो दुखी भाव से रोते हुए धीमी आवाज़ में बोल पड़ी____"मेरी ग़लती की और कितनी सज़ा देंगे मुझे? क्यों मुझे आपकी इतनी याद आती है? क्यों आपकी बातें मेरे कानों में गूंज उठती हैं और फिर मुझे बहुत ज़्यादा दुख होता है? भगवान के लिए एक बार माफ़ कर दीजिए मुझे। पहले की तरह फिर से मुझे ठकुराईन कहिए न।"

अनुराधा इतना सब कहने के बाद फिर से पलट गई और तकिए में चेहरा छुपा कर सिसकने लगी। उसे ये तो एहसास हो चुका था कि उसकी उस दिन की बातों का वैभव को बुरा लग गया था किंतु उसे इस बात का ज्ञान नहीं हो रहा था कि उसको वैभव की इतनी याद क्यों आ रही थी और इतना ही नहीं वो उसको देखने के लिए क्यों इतना तड़पती थी? आखिर इसका क्या मतलब था? भोली भाली, मासूम और नादान अनुराधा को पता ही नहीं था कि इसी को प्रेम कहते हैं।

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शाम का धुंधलका छा गया था। चंद्रकांत की बहू रजनी दिशा मैदान करने के लिए अकेली ही घर से निकल कर खेतों की तरफ जा रही थी। उसकी सास की तबीयत ख़राब थी इस लिए उसे अकेले ही जाना पड़ गया था। उसकी ननद कोमल रात के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। रघुवीर कहीं गया हुआ था इस लिए उसे अकेले घर से निकलने में समस्या नहीं हुई थी। हालाकि उसका ससुर चंद्रकांत बाहर बैठक में ज़रूर बैठा था मगर उसने उसे अकेले जाने से रोका नहीं था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि अब उसे ये यकीन हो गया था कि उसकी बहू कोई ग़लत काम नहीं करेगी।

रजनी हल्के अंधेरे में धीरे धीरे क़दम बढ़ाते हुए जा रही थी। बारिश की वजह से हर जगह कीचड़ और पानी भर गया था इस लिए उसे बड़े ही एहतियात से चलना पड़ रहा था। जब उसने देखा कि इस तरफ कोई नहीं आएगा और ये ठीक जगह है तो उसने ज़मीन पर लोटा रखने के बाद अपनी साड़ी को ऊपर कमर तक उठा लिया और फिर हगने के लिए बैठ गई।

कुछ समय बाद जब वो वापस आने लगी तो सहसा रास्ते में उसे एक जगह अंधेरे में एक साया नज़र आया। साए को देख उसके अंदर भय व्याप्त हो गया और उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। अब क्योंकि रास्ता सिर्फ वही था इस लिए उसे उसी रास्ते से जाना था। इस लिए वो ये सोच कर डरते डरते आगे बढ़ी कि शायद कोई आदमी होगा जो उसकी ही तरह दिशा मैदान के लिए आया होगा। जल्दी ही वो उस साए के पास पहुंच गई और तब उसे उस साए की आकृति स्पष्ट रूप से नज़र आई। उसे पहचानते ही रजनी पहले तो चौंकी फिर एकदम से उसके अंदर थोड़ी घबराहट पैदा हो गई।

"बड़ी देर लगा दी तूने आने में।" साए के रूप में नज़र आने वाला व्यक्ति जोकि रूपचंद्र था वो उसे देख बोल पड़ा____"मैं काफी देर से तेरे लौटने का इंतज़ार कर रहा था।"

"क...क्यों इंतज़ार कर रहे थे भला?" रजनी ने खुद की घबराहट पर काबू पाते हुए कहा____"देखो अगर तुम किसी ग़लत इरादे से मेरा इंतज़ार कर रहे थे तो समझ लो अब ऐसा कुछ नहीं हो सकता।"

"क्यों भला?" रूपचंद्र धीमें से बोला____"देख ज़्यादा नाटक मत कर। तेरे साथ मज़ा किए हुए काफी समय हो गया है। इस लिए आज मुझे मना मत करना वरना तेरे लिए ठीक नहीं होगा।"

"रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया।" रजनी ने थोड़ा सख़्त भाव अख़्तियार करते हुए कहा____"तुम लोगों का दादा ठाकुर ने समूल नाश कर दिया फिर भी इतना अकड़ रहे हो? और हां, अगर इतनी ही तुम्हारे अंदर आग लगी हुई है ना तो जा कर अपनी बहन के साथ बुझा लो।"

"मादरचोद तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की?" रूपचंद्र बुरी तरह तिलमिला कर गुस्से से बोल पड़ा____"रुक अभी बताता हूं तुझे।"

"ख़बरदार।" रजनी ने एकदम से गुर्राते हुए कहा____"अगर तुमने मुझे हाथ भी लगाया तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा। अभी तक तो मैंने किसी को तुम्हारे बारे में बताया नहीं था लेकिन अगर तुमने मुझे हाथ लगाया तो चीख चीख कर सारे गांव को बताऊंगी कि तुमने ज़बरदस्ती मेरी इज्ज़त लूटने की कोशिश की है। मुझे अपनी इज्ज़त की कोई परवाह नहीं है लेकिन तुम अपने बारे में सोचो। पंचायत के फ़ैसले के बाद जब लोग तुम्हारे इस कांड के बारे में जानेंगे तो क्या होगा तुम्हारे साथ?"

रजनी की बातें सुन कर रूपचंद्र का गुस्सा पलक झपकते ही ठंडा पड़ गया। उसे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि रजनी उसे इस तरह की धमकी दे सकती है। आंखें फाड़े वो देखता रह गया था उसे।

"जिसने तुम्हारी बहन के साथ मज़ा किया उसका तो तुम कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए।" रजनी ने जैसे उसके ज़ख़्मों को कुरेदा____"और बेशर्मों की तरह यहां मुझे अपनी मर्दानगी दिखाने आए हो? मैंने पहले भी कहा था कि तुम उसके सामने कुछ भी नहीं हो और अब भी कहती हूं कि तुम आगे भी कभी उसके सामने कुछ नहीं रहोगे। असली मर्द तो वही है। एक बात कहूं, भले ही इतना सब कुछ हो गया है मगर सीना ठोक के कहती हूं कि अगर वो तुम्हारी जगह होता तो इसी वक्त उसके सामने अपनी टांगें फैला कर लेट जाती।"

"साली रण्डी।" रूपचंद्र गुस्से से तिलमिलाते हुए बोला और फिर पैर पटकते हुए वहां से जा कर जल्दी ही अंधेरे में गुम हो गया।

उसे यूं चला गया देख रजनी के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। उसने आंखें बंद कर के वैभव की मोहिनी सूरत का दीदार किया और फिर ठंडी आहें भरते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चली।




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ठकुराइन की एक एक बात बिल्कुल सच है ठाकुर साहब को यह रिश्ता नही करना चाहिए। रिश्तों की नींव शर्तों पर नही होनी चाहिए। रिश्तों में शर्त रखकर फूलवती ने अपनी धूर्तता को दर्शाया है अगर ये रिश्ता हुआ तो संबंध सुधरेंगे नही बल्कि और बिगड़ जायेंगे ।
अनुराधा अब वैभव से प्यार करने लगी है उसे वैभव के अतीत से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह कैसा इंसान हैं
 
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