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Adultery तेरे प्यार में .....

Napster

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#14

वहां पर ताई जी मोजूद थी , मैं उन्हें वहां पर देख कर चौंक गया वो मुझे देख कर चौंक गयी.

“ऐसे क्या देख रही हो तुम्हारा कबीर ही हु मैं ” मैंने ताई को गले से लगाते हुए कहा.

ताई- कबीर,बहुत इंतज़ार करवाया बहुत देर की लौटने में

मैं- लौट आया हूँ अब तुम बताओ कैसी हो और इस वक्त क्या कर रही हो यहाँ

ताई- दिन काट रही हूँ अपने , गाँव के एक आदमी ने बताया की किसी ने खेतो पर ट्रेक्टर चला दिया है तो देखने आ गयी, बारिश शुरू हुई तो रुक गयी इधर ही .

मैं- मैं ही था वो. खेतो की इतनी दुर्दशा देखि नहीं गयी

ताई- सब वक्त का फेर है वक्त रूठा जमीनों से तो फिर कुछ बचा नहीं

मैं- परिवार में क्या कोई ऐसा नहीं जो खेत देख सके

ताई- परिवार बचा ही कहाँ , कुनबे का सुख बरसो पहले ख़तम हो गया.

मैं- ताऊ के बारे में मालूम हुआ मुझे

ताई- फिर भी तू नहीं आया , तू भी बदल गया कबीर गया दुनिया के जैसे

मैं- पुजारी बाबा ने बताया मुझे ताऊ के बारे में. मैं सीधा तुम्हारे पास ही आना चाहता था पर फिर उलझ गया ऊपर से निशा भी आ गयी

ताई- हाँ तो उसको तेरे साथ आना ही था न

मैं- तुझे भी लगता है की मैंने उसके साथ ब्याह कर लिया है

ताई- लगता क्या है, शादी तो कर ही न तुमने

मैं- हाँ ताई.

अब उस से क्या कहता की एक हम ही थे जो साथ न होकर भी साथ थे ज़माने के लिए. बारिश रुकने का आसार तो नहीं था और इधर रुक भी नहीं सकते थे .

मैं- चलते है

ताई- गाँव तक पैदल जायेंगे तो पक्का बीमार ही होना है

मैं- आ तो सही

जल्दी ही हम जीप तक आ गए. ताई जीप को देख कर चौंक गयी.

“ये तो देवर जी की गाडी है , ” बोली वो

मैं- हाँ उनकी ही है.

जल्दी ही हम लोग ताई के घर तक आ पहुचे थे.

“अन्दर आजा ” ताई बोली

मैंने भरपूर नजर ताई के गदराये जिस्म पर डाली बयालीस -पैंतालिस उम्र की ताई अपने ज़माने की बहुत ही गदराई औरत थी ये बात मुझसे बेहतर कौन जानता था . ये मौसम की नजाकत और मादकता से भरी भीगी देह ताई की , पर मुझे और काम था तो मैंने मना कर दिया.

“कल सुबह आऊंगा अभी जरुरी काम है मुझे. ” मैने ताई को घर छोड़ा और गाडी मंजू के घर की तरफ मोड़ दी.

“कहाँ थे तुम अब तक ” निशा ने सवालिया निगाहों से देखा मुझे

नीली साडी में क्या खूब ही लग रही थी वो .दिल ठहर सा गया.

“कितनी बार कहा है ऐसे न देखा करो ” बोली वो

मैं- तुम्हारे सिवा और कुछ है ही नहीं देखने को

मैंने जल्दी से कपडे बदले और चाय का कप लेकर सीढियों पर ही बैठ गया. वो पीठ से पीठ लगा कर बैठ गयी.

मैं- कल तुम्हे चलना है मेरे साथ

निशा- कहाँ

मैं- बस यही कही . बहुत दिन हुए तुम्हारा हाथ पकड़ कर चला नहीं मैं

निशा- ठीक है

मैं- कैसा रहा प्रोग्राम

निशा- तुम्हे पूछने की जरुरत नहीं, चाची को मालूम हो गया है की तुम लौट आये हो

मैं- फिर भी आई नहीं वो

निशा—बात करने से बात बनती है कबीर, तुम अगर कदम आगे बढ़ा दोगे तो छोटे नहीं हो जाओगे.

मैं- बात वो नहीं है सरकार, चाचा की दिक्कत है

निशा- बात करने से मसले अक्सर सुलझ जाते ही है

अब मैं उसे क्या बताता की मसला किस कदर उलझा हुआ है. दिल तो दुखता था की अपने ही घर की शादी में अजनबियों जैसे महसूस हो रहा था पर क्या करे चाचा अपनी जगह सही था मैं उसका कोई दोष नहीं मानता था और मेरे पास कोई जवाब भी नहीं था .हम तीनो ने खाना खाया और फिर मंजू बिस्तर लेकर दुसरे कमरे में चली गयी हालाँकि निशा ऐसा नहीं चाहती थी.

“ऐसे क्या देख रहे हो ” बोली वो

मैं- अभी थोड़ी देर पहले तो बताया न की सिर्फ तुम्हे ही देखता हूँ

निशा- कैसी किस्मत है न हमारी

मैं- फर्क नहीं पड़ता , मेरी किस्मत तू है

निशा- मैं वादा नहीं निभा पाई न

मैं- तूने ही तो कहा था न की इश्क में शर्ते नहीं होती अपने हिस्से का सुख हमें जरुर मिलेगा.

निशा- उम्मीद तो है .

मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया , उसके माथे को चूमा और बोला- ख़ुशी बहुत है तेरी तरक्की देख कर

निशा- क्या फायदा जब उसमे तू नहीं है

मैं- अपने दिल से पूछ कर देख

निशा- मैंने dsp को कहा था , फिर तू रुका क्यों नहीं

मैं- वो सही जगह नहीं थी , छोटी के ब्याह का कार्ड देखा वहां तो रोक न सका खुद को फिर.

निशा- तेरे साथ रह कर मैं भी तेरेजैसी हो गयी हूँ,

मैं- सो तो है , अब सो जा

निशा- थोड़ी देर और बात कर ले

थोड़ी थोडी देर के चक्कर में रात लगभग बीत ही गयी थी जब मेरी आँख लगी.

“कबीर, तेरी पसंद के परांठे बनाये है जल्दी आ ठन्डे हो जायेगे ” माँ की आवाज मेरे मन में गूँज रही थी, सपने में मैं माँ के साथ था की तभी नींद टूट गयी.

“बहुत गलत समय पर जगाया मंजू तूने ” मैंने झल्लाते हुए कहा

मंजू- उठ जा घडी देख जरा

मैंने देखा नौ बज रहे थे .

“निशा कहा है ” मैंने कहा

मंजू- शिवाले पर , कह कर गयी है की जैसे ही तू उठे तुरंत वहां पहुँच जाये

जल्दी से मैं तैयार हुआ, वो गाड़ी छोड़ कर गयी थी मैं तुरंत शिवाले पहुंचा, जल चढ़ाया बाबा संग चाय पी और फिर निशा को अपने साथ बिठा लिया

“बता तो सही किधर जा रहे है ” बोली वो.

मैं- बस यही तक

जल्दी ही गाड़ी गाँव को पार कर गयी थी, कच्चे सेर के रस्ते पर जैसे ही गाड़ी मुड़ी, निशा ने मेरा हाथ पकड़ लिया. “नहीं कबीर ” उसने मुझसे कहा .

“मैं हु न ” मैंने कहा

निशा- इसी बात का तो डर है मुझे

मैं- चुपचाप बैठी रह फिर

निशा ने नजर खिड़की की तरफ कर ली और मेरी बाजु पकड़ ली. करीब दस मिनट बाद मैंने गाड़ी उस जगह रोक दी जो कभी निशा का घर होता था .

“उतर ” मैंने कहा

निशा – मुझसे नहीं होगा

मैं- आ तो सही मेरी सरकार.

कांपते कदमो से निशा उतरी, भीगी पलकों से उसने घर को देखा . आगे बढ़ कर मैंने दरवाजा खोला निशा के भाई ने जैसे ही उसे देखा दौड़ कर लिपट गया वो अपनी बहन से . जोर से रोने लगा वो. मैंने नजरे दूसरी तरफ कर ली.................
बहुत ही खुबसुरत लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

kas1709

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#14

वहां पर ताई जी मोजूद थी , मैं उन्हें वहां पर देख कर चौंक गया वो मुझे देख कर चौंक गयी.

“ऐसे क्या देख रही हो तुम्हारा कबीर ही हु मैं ” मैंने ताई को गले से लगाते हुए कहा.

ताई- कबीर,बहुत इंतज़ार करवाया बहुत देर की लौटने में

मैं- लौट आया हूँ अब तुम बताओ कैसी हो और इस वक्त क्या कर रही हो यहाँ

ताई- दिन काट रही हूँ अपने , गाँव के एक आदमी ने बताया की किसी ने खेतो पर ट्रेक्टर चला दिया है तो देखने आ गयी, बारिश शुरू हुई तो रुक गयी इधर ही .

मैं- मैं ही था वो. खेतो की इतनी दुर्दशा देखि नहीं गयी

ताई- सब वक्त का फेर है वक्त रूठा जमीनों से तो फिर कुछ बचा नहीं

मैं- परिवार में क्या कोई ऐसा नहीं जो खेत देख सके

ताई- परिवार बचा ही कहाँ , कुनबे का सुख बरसो पहले ख़तम हो गया.

मैं- ताऊ के बारे में मालूम हुआ मुझे

ताई- फिर भी तू नहीं आया , तू भी बदल गया कबीर गया दुनिया के जैसे

मैं- पुजारी बाबा ने बताया मुझे ताऊ के बारे में. मैं सीधा तुम्हारे पास ही आना चाहता था पर फिर उलझ गया ऊपर से निशा भी आ गयी

ताई- हाँ तो उसको तेरे साथ आना ही था न

मैं- तुझे भी लगता है की मैंने उसके साथ ब्याह कर लिया है

ताई- लगता क्या है, शादी तो कर ही न तुमने

मैं- हाँ ताई.

अब उस से क्या कहता की एक हम ही थे जो साथ न होकर भी साथ थे ज़माने के लिए. बारिश रुकने का आसार तो नहीं था और इधर रुक भी नहीं सकते थे .

मैं- चलते है

ताई- गाँव तक पैदल जायेंगे तो पक्का बीमार ही होना है

मैं- आ तो सही

जल्दी ही हम जीप तक आ गए. ताई जीप को देख कर चौंक गयी.

“ये तो देवर जी की गाडी है , ” बोली वो

मैं- हाँ उनकी ही है.

जल्दी ही हम लोग ताई के घर तक आ पहुचे थे.

“अन्दर आजा ” ताई बोली

मैंने भरपूर नजर ताई के गदराये जिस्म पर डाली बयालीस -पैंतालिस उम्र की ताई अपने ज़माने की बहुत ही गदराई औरत थी ये बात मुझसे बेहतर कौन जानता था . ये मौसम की नजाकत और मादकता से भरी भीगी देह ताई की , पर मुझे और काम था तो मैंने मना कर दिया.

“कल सुबह आऊंगा अभी जरुरी काम है मुझे. ” मैने ताई को घर छोड़ा और गाडी मंजू के घर की तरफ मोड़ दी.

“कहाँ थे तुम अब तक ” निशा ने सवालिया निगाहों से देखा मुझे

नीली साडी में क्या खूब ही लग रही थी वो .दिल ठहर सा गया.

“कितनी बार कहा है ऐसे न देखा करो ” बोली वो

मैं- तुम्हारे सिवा और कुछ है ही नहीं देखने को

मैंने जल्दी से कपडे बदले और चाय का कप लेकर सीढियों पर ही बैठ गया. वो पीठ से पीठ लगा कर बैठ गयी.

मैं- कल तुम्हे चलना है मेरे साथ

निशा- कहाँ

मैं- बस यही कही . बहुत दिन हुए तुम्हारा हाथ पकड़ कर चला नहीं मैं

निशा- ठीक है

मैं- कैसा रहा प्रोग्राम

निशा- तुम्हे पूछने की जरुरत नहीं, चाची को मालूम हो गया है की तुम लौट आये हो

मैं- फिर भी आई नहीं वो

निशा—बात करने से बात बनती है कबीर, तुम अगर कदम आगे बढ़ा दोगे तो छोटे नहीं हो जाओगे.

मैं- बात वो नहीं है सरकार, चाचा की दिक्कत है

निशा- बात करने से मसले अक्सर सुलझ जाते ही है

अब मैं उसे क्या बताता की मसला किस कदर उलझा हुआ है. दिल तो दुखता था की अपने ही घर की शादी में अजनबियों जैसे महसूस हो रहा था पर क्या करे चाचा अपनी जगह सही था मैं उसका कोई दोष नहीं मानता था और मेरे पास कोई जवाब भी नहीं था .हम तीनो ने खाना खाया और फिर मंजू बिस्तर लेकर दुसरे कमरे में चली गयी हालाँकि निशा ऐसा नहीं चाहती थी.

“ऐसे क्या देख रहे हो ” बोली वो

मैं- अभी थोड़ी देर पहले तो बताया न की सिर्फ तुम्हे ही देखता हूँ

निशा- कैसी किस्मत है न हमारी

मैं- फर्क नहीं पड़ता , मेरी किस्मत तू है

निशा- मैं वादा नहीं निभा पाई न

मैं- तूने ही तो कहा था न की इश्क में शर्ते नहीं होती अपने हिस्से का सुख हमें जरुर मिलेगा.

निशा- उम्मीद तो है .

मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया , उसके माथे को चूमा और बोला- ख़ुशी बहुत है तेरी तरक्की देख कर

निशा- क्या फायदा जब उसमे तू नहीं है

मैं- अपने दिल से पूछ कर देख

निशा- मैंने dsp को कहा था , फिर तू रुका क्यों नहीं

मैं- वो सही जगह नहीं थी , छोटी के ब्याह का कार्ड देखा वहां तो रोक न सका खुद को फिर.

निशा- तेरे साथ रह कर मैं भी तेरेजैसी हो गयी हूँ,

मैं- सो तो है , अब सो जा

निशा- थोड़ी देर और बात कर ले

थोड़ी थोडी देर के चक्कर में रात लगभग बीत ही गयी थी जब मेरी आँख लगी.

“कबीर, तेरी पसंद के परांठे बनाये है जल्दी आ ठन्डे हो जायेगे ” माँ की आवाज मेरे मन में गूँज रही थी, सपने में मैं माँ के साथ था की तभी नींद टूट गयी.

“बहुत गलत समय पर जगाया मंजू तूने ” मैंने झल्लाते हुए कहा

मंजू- उठ जा घडी देख जरा

मैंने देखा नौ बज रहे थे .

“निशा कहा है ” मैंने कहा

मंजू- शिवाले पर , कह कर गयी है की जैसे ही तू उठे तुरंत वहां पहुँच जाये

जल्दी से मैं तैयार हुआ, वो गाड़ी छोड़ कर गयी थी मैं तुरंत शिवाले पहुंचा, जल चढ़ाया बाबा संग चाय पी और फिर निशा को अपने साथ बिठा लिया

“बता तो सही किधर जा रहे है ” बोली वो.

मैं- बस यही तक

जल्दी ही गाड़ी गाँव को पार कर गयी थी, कच्चे सेर के रस्ते पर जैसे ही गाड़ी मुड़ी, निशा ने मेरा हाथ पकड़ लिया. “नहीं कबीर ” उसने मुझसे कहा .

“मैं हु न ” मैंने कहा

निशा- इसी बात का तो डर है मुझे

मैं- चुपचाप बैठी रह फिर

निशा ने नजर खिड़की की तरफ कर ली और मेरी बाजु पकड़ ली. करीब दस मिनट बाद मैंने गाड़ी उस जगह रोक दी जो कभी निशा का घर होता था .

“उतर ” मैंने कहा

निशा – मुझसे नहीं होगा

मैं- आ तो सही मेरी सरकार.


कांपते कदमो से निशा उतरी, भीगी पलकों से उसने घर को देखा . आगे बढ़ कर मैंने दरवाजा खोला निशा के भाई ने जैसे ही उसे देखा दौड़ कर लिपट गया वो अपनी बहन से . जोर से रोने लगा वो. मैंने नजरे दूसरी तरफ कर ली.................
Nice update....
 

Ajju Landwalia

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#11

मेरे पिता कहने को तो वन दरोगा थे पर उनकी रूचिया हमेशा से किताबो में ही रही .मैंने हमेशा उनके हाथो में किताबे देखी थी, ड्यूटी पर भी घर पर भी. धर्म कर्म में भी वो हमेशा आगे ही रहते हमारे घर से कभी कोई भूखा नहीं लौटा. पर जैसा की अक्सर होता है सिक्के के दो पहलु होते है और सिक्के का दूसरा पहलु थी मेरी चाची या मौसी जो भी कहे..ये सब कभी शुरू ही नहीं होता अगर उस शाम मैंने पशुओ के चारे वाले कमरे में वो मंजर नहीं देखा होता जहाँ चाची मेरे पिता को बाँहों में थी. जीजा-साली का रिश्ता जैसा भी था मैंने जो देखा वो थोडा बढ़ कर ही था.असल जिदंगी में पहली बार चुदाई देखी थी वो भी घर में ही. साइकिल के स्टैंड को पकडे झुकी चाची और पीछे मेरे पिता. ये वो घटना थी जिसने मेरे कानो को गर्म कर दिया था मुझे लड़के से आदमी बनने को प्रेरित कर दिया था.

बाहर से आई आवाज ने मुझे यादो के झरोखे से वर्तमान में ला पटका. दरवाजा खुला था तो कुत्ता घुस आया था . पिताजी की बड़ी सी तस्वीर को देखते हुए मैं बहुत कुछ सोच रहा था . सब कुछ तो था हमारे पास एक जिन्दगी जीने के लिए फिर कैसे ये सब बिखर गया. पहले चाचा का अलग होना फिर ताऊ का रह गए थे हम लोग . वक्त का फेर ना जाने कैसे बैठा की फिर ये घर, घर ना रहा .करने को कुछ ख़ास नहीं था बस ऐसे ही पुराने सामान में हाथ मार रहा था . पिताजी की अलमारी में ढेरो किताबे थी बेशक धुल जमी हुई थी पर सलीके से बहुत थी. मैंने एक कपडा लिया और धुल साफ करने लगा तभी नजर एक किताब पर पड़ी. सैकड़ो किताबो में ये किताब अलग सी थी, क्योंकि सिर्फ ये ही एक किताब थी जिसे उल्टा लगाया गया था बाकी सब कतार में थी.

पता नहीं क्यों मैंने उस किताब को बाहर निकाल लिया ,किस्मत साली बहुत कुत्ती चीज होती है गुनाहों का देवता नाम उस किताब का पहले पन्ने पर ही गुलाब की सूखी हुई पंखुड़िया अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी. किताब को बस यूँ ही पलटना शुरू किया बीच में कुछ पन्ने गायब थे और उनकी जगह हाथ से लिखी गयी कुछ बाते थी.

“कोई और होता तो नहीं मानता पर मैं तो नकार कैसे दू, किस्से कहानियो में बहुत सुना था पर हकीकत में सामने देख कर कहने को कुछ बचा नहीं है ,चाहे तो सात पीढियों को उबार दे चाहे तो सबका नाश कर दे. इसका प्रारंभ न जाने क्या है पर अंत दुःख दाई हो सकता है, मुझे छुपाकर ही रखना होगा सामने आये तो परेशानी होगी. ” इतना लिखने के बाद निचे एक छोटा सा चित्र बनाया गया था .

मैंने अगला पन्ना पलटा –“छोड़ने का मोह नहीं त्याग पा रहा हूं बार बार मेरे कदम तुम्हारे पास आते है . ये जानते हुए भी की तुम्हारा मेरा साथ नहीं है , न जाने किसकी अमानत है मन का चोर कहता है की तुझे मिला तेरा हुआ. दिमाग का साहूकार कहता है ये पतन का कारण बन जायेगा. समझ नहीं आ रहा की किस और चलू ” फिर से एक छोटा चित्र बना था .

लिखाई तो पिताजी की थी पर ये पन्ने इस किताब के बीच क्यों रखे गए थे कुछ तो छिपाया गया था जो समझ नहीं आ रहा था बहुत देर तक माथापच्ची करने के बाद बी कुछ समझ नहीं आया तो मैं बाहर की तरफ आ गया. पुजारी बाबा के पास जा ही रहा था की बाजे की आवाज सुनाई दी. चाचा के नए घर से आ रही थी विवाह की रस्मे शुरू हो गयी थी , दिल में ख़ुशी होना लाज़मी था अपने घर के आयोजन में भला कौन खुश नहीं होगा .पर अगले ही पल मन बुझ सा गया.



सामने से मैंने गाडी में चाचा को आते देखा, देखा तो उसने भी मुझे क्योंकि नजरे मिलते ही उसने अपने चश्मे को उतार लिया था एक पल को गाडी धीरे हुई मुझे लगा की शायद वो बात करेगा पर फिर वो आगे बढ़ गया. शाम तक मैं शिवाले में बाबा के पास रहा बहुत सी बाते की . रात घिरने लगी थी ना मैं मंजू के घर जाना चाहता था ना मैं हवेली जाना चाहता था . तलब मुझे शराब की थी तो गाँव के बाहर की तरफ बने ठेके पर पहुँच गया. बोतल खरीदी और वही मुह से लगा ली. उफ़, कलेजा जब तक जलन महसूस ना करे तब तक साला लगता ही नहीं की पी है .

“हट न भोसड़ी के , उधर जाके मर ले रस्ते में ही पीनी जरुरी है क्या ” किसी ने मुझे धक्का देकर परे धकेला.

“तेरे बाप का ठेका है क्या ” मैंने पलटते हुए कहा .पर जब हमारी नजरे मिली तो मिल कर ही रह गयी , फिर न वो कुछ बोल पाया ना मैं कुछ कह सका.

“कबीर, भैया ” बस इतना ही बोल सका वो और सीधा मेरे सीने से लग गया.

“यकीन नहीं होता आप ऐसे मिल जायेंगे , सोर्री भैया वो गलती से गाली निकल गयी ” मुझे आगोश में भरते हुए बोला वो.

मैं- कैसा है तू, ठीक तो है न

“मैं ठीक हूँ भैया, दीदी कैसी है , क्या आपके साथ आई है वो. ” बोला वो

मैं-मुझे क्या मालूम ये तो तुझे पता होना चाहिए न

“ये आप क्या कह रहे है , दीदी तो आपके साथ है न . आपके साथ ही तो गयी थी वो .” उसने कहा.

मैं- तुझसे किस ने कहा ये

“आप मजाक कर रहे है न सबको मालूम है की आप दोनों ने शादी कर ली है . बताओ न दीदी आई है क्या बहुत साल हो गए उनको देखे .मैं पिताजी से नहीं कहूँगा, किसी से नहीं कहूँगा बस एक बार दीदी से मिलवा दो ” निशा का भाई बहुत भावुक हो गया. मैं उसे कैसे बताता की वो मेरे साथ नहीं थी शादी करने का ही तो रोला था .


“वो जल्दी ही आने वाली है , मैं आ गया हूँ वो भी आ जाएगी. ” मैंने उसका दिल रखने को कह तो दिया था पर क्या जानता था की कभी कभी मुह से निकली बात यूँ ही सच हो जाती है. आधी रात तक वो मेरे पास रहा बहुत बाते करता रहा. निशा से मिलने को बहुत आतुर था वो होता भी क्यों नहीं रक्षा बंधन भी जो आ रहा था और बहने तो अनमोल होती है भाइयो के लिए. नशे में धुत्त अपने विचारो में खोये हुए मैं ये ही सोच रहा था की ज़माने में ये खबर फैली हुई थी की हम दोनों ने भाग कर ब्याह रचा लिया था. ब्याह तो करना था उस से , न जाने कब मैं इश्क के उन दिनों में खो गया सब सब बहुत अच्छा अच्छा था . उसके खयालो में इतना खो गया था की पीछे से आती हॉर्न की आवाज तक को महसूस नहीं किया मैंने.

Bahut hi shandar update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Kabir ke pitaji bhi kuch kam na the apne samay me............

Chachi kahe ya mausi, sambandh the dono ke beech...........

Us kitab me mile panno ka kya rahasay he??

Gaanv me afvah faili he ki kabir aur nisha dono ne bhag kar shadi kar li............

Keep rocking Bro
 
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