• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार में .....

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,849
89,833
259
बहुत ही जबरदस्त और खतरनाक प्रारंभ हैं भाई कहानी का
Kosish hai ki ek badhiya kahani Likh pau bhai
बहुत ही शानदार लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया

Nice update and awesome story

बहुत ही सुंदर लाजवाब और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया

Nice update
Thanks all
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,849
89,833
259
बहुत ही शानदार लाजवाब और रोमांचकारी अपडेट है भाई मजा आ गया

बहुत ही जबरदस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया

बहुत ही शानदार लाजवाब और जानदार अपडेट हैं भाई मजा आ गया

बहुत ही शानदार लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
Thanks bhai
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,849
89,833
259
बढ़िया अपडेट भाई

जमाने में अफवाह है की दोनो साथ है और यहां ये हाल है की देखना भी नही हुआ एकदूसरे को बरसों से

कबीर के पिता जी को ऐसा क्या मिल गया जिसे वो छोड़ना नहीं चाहते शायद कोई खजाना जंगल में क्योंकि वो वन दरोगा है तो मुमकिन है कि जंगल के अंदर उन्हें मिल गया हो और ये बात कोई दूसरा या दूसरी भी जानती है जो उन्हे उसे लेने से मना कर रही है क्योंकि धन अपने साथ दुश्मन भी लेकर आता है

अब तो इंतेजार है की कब कहानी पूरी तरह फ्लैशबैक में जाए तभी पता चलेगा की आखिर हुआ क्या है जिसने सब बर्बाद कर दिया
इश्क का मतलब ही जुदाई है पा लिया तो फिर क्या इश्क रहा. पिताजी का क्या लेना-देना है वो आने वाले भागों मे मालूम होगा
 

Luckyloda

Well-Known Member
2,624
8,459
158
#11

मेरे पिता कहने को तो वन दरोगा थे पर उनकी रूचिया हमेशा से किताबो में ही रही .मैंने हमेशा उनके हाथो में किताबे देखी थी, ड्यूटी पर भी घर पर भी. धर्म कर्म में भी वो हमेशा आगे ही रहते हमारे घर से कभी कोई भूखा नहीं लौटा. पर जैसा की अक्सर होता है सिक्के के दो पहलु होते है और सिक्के का दूसरा पहलु थी मेरी चाची या मौसी जो भी कहे..ये सब कभी शुरू ही नहीं होता अगर उस शाम मैंने पशुओ के चारे वाले कमरे में वो मंजर नहीं देखा होता जहाँ चाची मेरे पिता को बाँहों में थी. जीजा-साली का रिश्ता जैसा भी था मैंने जो देखा वो थोडा बढ़ कर ही था.असल जिदंगी में पहली बार चुदाई देखी थी वो भी घर में ही. साइकिल के स्टैंड को पकडे झुकी चाची और पीछे मेरे पिता. ये वो घटना थी जिसने मेरे कानो को गर्म कर दिया था मुझे लड़के से आदमी बनने को प्रेरित कर दिया था.

बाहर से आई आवाज ने मुझे यादो के झरोखे से वर्तमान में ला पटका. दरवाजा खुला था तो कुत्ता घुस आया था . पिताजी की बड़ी सी तस्वीर को देखते हुए मैं बहुत कुछ सोच रहा था . सब कुछ तो था हमारे पास एक जिन्दगी जीने के लिए फिर कैसे ये सब बिखर गया. पहले चाचा का अलग होना फिर ताऊ का रह गए थे हम लोग . वक्त का फेर ना जाने कैसे बैठा की फिर ये घर, घर ना रहा .करने को कुछ ख़ास नहीं था बस ऐसे ही पुराने सामान में हाथ मार रहा था . पिताजी की अलमारी में ढेरो किताबे थी बेशक धुल जमी हुई थी पर सलीके से बहुत थी. मैंने एक कपडा लिया और धुल साफ करने लगा तभी नजर एक किताब पर पड़ी. सैकड़ो किताबो में ये किताब अलग सी थी, क्योंकि सिर्फ ये ही एक किताब थी जिसे उल्टा लगाया गया था बाकी सब कतार में थी.

पता नहीं क्यों मैंने उस किताब को बाहर निकाल लिया ,किस्मत साली बहुत कुत्ती चीज होती है गुनाहों का देवता नाम उस किताब का पहले पन्ने पर ही गुलाब की सूखी हुई पंखुड़िया अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी. किताब को बस यूँ ही पलटना शुरू किया बीच में कुछ पन्ने गायब थे और उनकी जगह हाथ से लिखी गयी कुछ बाते थी.

“कोई और होता तो नहीं मानता पर मैं तो नकार कैसे दू, किस्से कहानियो में बहुत सुना था पर हकीकत में सामने देख कर कहने को कुछ बचा नहीं है ,चाहे तो सात पीढियों को उबार दे चाहे तो सबका नाश कर दे. इसका प्रारंभ न जाने क्या है पर अंत दुःख दाई हो सकता है, मुझे छुपाकर ही रखना होगा सामने आये तो परेशानी होगी. ” इतना लिखने के बाद निचे एक छोटा सा चित्र बनाया गया था .

मैंने अगला पन्ना पलटा –“छोड़ने का मोह नहीं त्याग पा रहा हूं बार बार मेरे कदम तुम्हारे पास आते है . ये जानते हुए भी की तुम्हारा मेरा साथ नहीं है , न जाने किसकी अमानत है मन का चोर कहता है की तुझे मिला तेरा हुआ. दिमाग का साहूकार कहता है ये पतन का कारण बन जायेगा. समझ नहीं आ रहा की किस और चलू ” फिर से एक छोटा चित्र बना था .

लिखाई तो पिताजी की थी पर ये पन्ने इस किताब के बीच क्यों रखे गए थे कुछ तो छिपाया गया था जो समझ नहीं आ रहा था बहुत देर तक माथापच्ची करने के बाद बी कुछ समझ नहीं आया तो मैं बाहर की तरफ आ गया. पुजारी बाबा के पास जा ही रहा था की बाजे की आवाज सुनाई दी. चाचा के नए घर से आ रही थी विवाह की रस्मे शुरू हो गयी थी , दिल में ख़ुशी होना लाज़मी था अपने घर के आयोजन में भला कौन खुश नहीं होगा .पर अगले ही पल मन बुझ सा गया.



सामने से मैंने गाडी में चाचा को आते देखा, देखा तो उसने भी मुझे क्योंकि नजरे मिलते ही उसने अपने चश्मे को उतार लिया था एक पल को गाडी धीरे हुई मुझे लगा की शायद वो बात करेगा पर फिर वो आगे बढ़ गया. शाम तक मैं शिवाले में बाबा के पास रहा बहुत सी बाते की . रात घिरने लगी थी ना मैं मंजू के घर जाना चाहता था ना मैं हवेली जाना चाहता था . तलब मुझे शराब की थी तो गाँव के बाहर की तरफ बने ठेके पर पहुँच गया. बोतल खरीदी और वही मुह से लगा ली. उफ़, कलेजा जब तक जलन महसूस ना करे तब तक साला लगता ही नहीं की पी है .

“हट न भोसड़ी के , उधर जाके मर ले रस्ते में ही पीनी जरुरी है क्या ” किसी ने मुझे धक्का देकर परे धकेला.

“तेरे बाप का ठेका है क्या ” मैंने पलटते हुए कहा .पर जब हमारी नजरे मिली तो मिल कर ही रह गयी , फिर न वो कुछ बोल पाया ना मैं कुछ कह सका.

“कबीर, भैया ” बस इतना ही बोल सका वो और सीधा मेरे सीने से लग गया.

“यकीन नहीं होता आप ऐसे मिल जायेंगे , सोर्री भैया वो गलती से गाली निकल गयी ” मुझे आगोश में भरते हुए बोला वो.

मैं- कैसा है तू, ठीक तो है न

“मैं ठीक हूँ भैया, दीदी कैसी है , क्या आपके साथ आई है वो. ” बोला वो

मैं-मुझे क्या मालूम ये तो तुझे पता होना चाहिए न

“ये आप क्या कह रहे है , दीदी तो आपके साथ है न . आपके साथ ही तो गयी थी वो .” उसने कहा.

मैं- तुझसे किस ने कहा ये

“आप मजाक कर रहे है न सबको मालूम है की आप दोनों ने शादी कर ली है . बताओ न दीदी आई है क्या बहुत साल हो गए उनको देखे .मैं पिताजी से नहीं कहूँगा, किसी से नहीं कहूँगा बस एक बार दीदी से मिलवा दो ” निशा का भाई बहुत भावुक हो गया. मैं उसे कैसे बताता की वो मेरे साथ नहीं थी शादी करने का ही तो रोला था .

“वो जल्दी ही आने वाली है , मैं आ गया हूँ वो भी आ जाएगी. ” मैंने उसका दिल रखने को कह तो दिया था पर क्या जानता था की कभी कभी मुह से निकली बात यूँ ही सच हो जाती है. आधी रात तक वो मेरे पास रहा बहुत बाते करता रहा. निशा से मिलने को बहुत आतुर था वो होता भी क्यों नहीं रक्षा बंधन भी जो आ रहा था और बहने तो अनमोल होती है भाइयो के लिए. नशे में धुत्त अपने विचारो में खोये हुए मैं ये ही सोच रहा था की ज़माने में ये खबर फैली हुई थी की हम दोनों ने भाग कर ब्याह रचा लिया था. ब्याह तो करना था उस से , न जाने कब मैं इश्क के उन दिनों में खो गया सब सब बहुत अच्छा अच्छा था . उसके खयालो में इतना खो गया था की पीछे से आती हॉर्न की आवाज तक को महसूस नहीं किया मैंने.
अब सबसे पहले तो गुनाहों के देवता padhne हैं.....


बहुत ही सुंदर updates.....


पूरे गाँव में शोर हैं कि भाग के ब्याह कर लिया... Aur ये मकान मालकिन के साथ रह रहे और निशा पुलिस में
 

Tiger 786

Well-Known Member
6,305
22,861
188
#11

मेरे पिता कहने को तो वन दरोगा थे पर उनकी रूचिया हमेशा से किताबो में ही रही .मैंने हमेशा उनके हाथो में किताबे देखी थी, ड्यूटी पर भी घर पर भी. धर्म कर्म में भी वो हमेशा आगे ही रहते हमारे घर से कभी कोई भूखा नहीं लौटा. पर जैसा की अक्सर होता है सिक्के के दो पहलु होते है और सिक्के का दूसरा पहलु थी मेरी चाची या मौसी जो भी कहे..ये सब कभी शुरू ही नहीं होता अगर उस शाम मैंने पशुओ के चारे वाले कमरे में वो मंजर नहीं देखा होता जहाँ चाची मेरे पिता को बाँहों में थी. जीजा-साली का रिश्ता जैसा भी था मैंने जो देखा वो थोडा बढ़ कर ही था.असल जिदंगी में पहली बार चुदाई देखी थी वो भी घर में ही. साइकिल के स्टैंड को पकडे झुकी चाची और पीछे मेरे पिता. ये वो घटना थी जिसने मेरे कानो को गर्म कर दिया था मुझे लड़के से आदमी बनने को प्रेरित कर दिया था.

बाहर से आई आवाज ने मुझे यादो के झरोखे से वर्तमान में ला पटका. दरवाजा खुला था तो कुत्ता घुस आया था . पिताजी की बड़ी सी तस्वीर को देखते हुए मैं बहुत कुछ सोच रहा था . सब कुछ तो था हमारे पास एक जिन्दगी जीने के लिए फिर कैसे ये सब बिखर गया. पहले चाचा का अलग होना फिर ताऊ का रह गए थे हम लोग . वक्त का फेर ना जाने कैसे बैठा की फिर ये घर, घर ना रहा .करने को कुछ ख़ास नहीं था बस ऐसे ही पुराने सामान में हाथ मार रहा था . पिताजी की अलमारी में ढेरो किताबे थी बेशक धुल जमी हुई थी पर सलीके से बहुत थी. मैंने एक कपडा लिया और धुल साफ करने लगा तभी नजर एक किताब पर पड़ी. सैकड़ो किताबो में ये किताब अलग सी थी, क्योंकि सिर्फ ये ही एक किताब थी जिसे उल्टा लगाया गया था बाकी सब कतार में थी.

पता नहीं क्यों मैंने उस किताब को बाहर निकाल लिया ,किस्मत साली बहुत कुत्ती चीज होती है गुनाहों का देवता नाम उस किताब का पहले पन्ने पर ही गुलाब की सूखी हुई पंखुड़िया अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी. किताब को बस यूँ ही पलटना शुरू किया बीच में कुछ पन्ने गायब थे और उनकी जगह हाथ से लिखी गयी कुछ बाते थी.

“कोई और होता तो नहीं मानता पर मैं तो नकार कैसे दू, किस्से कहानियो में बहुत सुना था पर हकीकत में सामने देख कर कहने को कुछ बचा नहीं है ,चाहे तो सात पीढियों को उबार दे चाहे तो सबका नाश कर दे. इसका प्रारंभ न जाने क्या है पर अंत दुःख दाई हो सकता है, मुझे छुपाकर ही रखना होगा सामने आये तो परेशानी होगी. ” इतना लिखने के बाद निचे एक छोटा सा चित्र बनाया गया था .

मैंने अगला पन्ना पलटा –“छोड़ने का मोह नहीं त्याग पा रहा हूं बार बार मेरे कदम तुम्हारे पास आते है . ये जानते हुए भी की तुम्हारा मेरा साथ नहीं है , न जाने किसकी अमानत है मन का चोर कहता है की तुझे मिला तेरा हुआ. दिमाग का साहूकार कहता है ये पतन का कारण बन जायेगा. समझ नहीं आ रहा की किस और चलू ” फिर से एक छोटा चित्र बना था .

लिखाई तो पिताजी की थी पर ये पन्ने इस किताब के बीच क्यों रखे गए थे कुछ तो छिपाया गया था जो समझ नहीं आ रहा था बहुत देर तक माथापच्ची करने के बाद बी कुछ समझ नहीं आया तो मैं बाहर की तरफ आ गया. पुजारी बाबा के पास जा ही रहा था की बाजे की आवाज सुनाई दी. चाचा के नए घर से आ रही थी विवाह की रस्मे शुरू हो गयी थी , दिल में ख़ुशी होना लाज़मी था अपने घर के आयोजन में भला कौन खुश नहीं होगा .पर अगले ही पल मन बुझ सा गया.



सामने से मैंने गाडी में चाचा को आते देखा, देखा तो उसने भी मुझे क्योंकि नजरे मिलते ही उसने अपने चश्मे को उतार लिया था एक पल को गाडी धीरे हुई मुझे लगा की शायद वो बात करेगा पर फिर वो आगे बढ़ गया. शाम तक मैं शिवाले में बाबा के पास रहा बहुत सी बाते की . रात घिरने लगी थी ना मैं मंजू के घर जाना चाहता था ना मैं हवेली जाना चाहता था . तलब मुझे शराब की थी तो गाँव के बाहर की तरफ बने ठेके पर पहुँच गया. बोतल खरीदी और वही मुह से लगा ली. उफ़, कलेजा जब तक जलन महसूस ना करे तब तक साला लगता ही नहीं की पी है .

“हट न भोसड़ी के , उधर जाके मर ले रस्ते में ही पीनी जरुरी है क्या ” किसी ने मुझे धक्का देकर परे धकेला.

“तेरे बाप का ठेका है क्या ” मैंने पलटते हुए कहा .पर जब हमारी नजरे मिली तो मिल कर ही रह गयी , फिर न वो कुछ बोल पाया ना मैं कुछ कह सका.

“कबीर, भैया ” बस इतना ही बोल सका वो और सीधा मेरे सीने से लग गया.

“यकीन नहीं होता आप ऐसे मिल जायेंगे , सोर्री भैया वो गलती से गाली निकल गयी ” मुझे आगोश में भरते हुए बोला वो.

मैं- कैसा है तू, ठीक तो है न

“मैं ठीक हूँ भैया, दीदी कैसी है , क्या आपके साथ आई है वो. ” बोला वो

मैं-मुझे क्या मालूम ये तो तुझे पता होना चाहिए न

“ये आप क्या कह रहे है , दीदी तो आपके साथ है न . आपके साथ ही तो गयी थी वो .” उसने कहा.

मैं- तुझसे किस ने कहा ये

“आप मजाक कर रहे है न सबको मालूम है की आप दोनों ने शादी कर ली है . बताओ न दीदी आई है क्या बहुत साल हो गए उनको देखे .मैं पिताजी से नहीं कहूँगा, किसी से नहीं कहूँगा बस एक बार दीदी से मिलवा दो ” निशा का भाई बहुत भावुक हो गया. मैं उसे कैसे बताता की वो मेरे साथ नहीं थी शादी करने का ही तो रोला था .


“वो जल्दी ही आने वाली है , मैं आ गया हूँ वो भी आ जाएगी. ” मैंने उसका दिल रखने को कह तो दिया था पर क्या जानता था की कभी कभी मुह से निकली बात यूँ ही सच हो जाती है. आधी रात तक वो मेरे पास रहा बहुत बाते करता रहा. निशा से मिलने को बहुत आतुर था वो होता भी क्यों नहीं रक्षा बंधन भी जो आ रहा था और बहने तो अनमोल होती है भाइयो के लिए. नशे में धुत्त अपने विचारो में खोये हुए मैं ये ही सोच रहा था की ज़माने में ये खबर फैली हुई थी की हम दोनों ने भाग कर ब्याह रचा लिया था. ब्याह तो करना था उस से , न जाने कब मैं इश्क के उन दिनों में खो गया सब सब बहुत अच्छा अच्छा था . उसके खयालो में इतना खो गया था की पीछे से आती हॉर्न की आवाज तक को महसूस नहीं किया मैंने.
Awesome update
 

Naik

Well-Known Member
22,316
78,992
258
#9

“क्या तुम सचमुच हो कबीर या फिर मेरा भरम है ” उसने कहा

मैं- भरम ही रहे तो ठीक है न

अगले ही पल उसने मुझे सीने से लगा लिया .

“कहाँ चला गया था तू , एक पल भी नहीं सोचा की पीछे क्या छोड़ आया तू ” बोली वो .

मैं- सब कुछ यही रह गया मंजू, ना इधर का मोह छूट सका न जिन्दगी आगे बढ़ सकी. मालूम हुआ की बहन की शादी है तो रोक न सका खुद को .

मंजू- तू आज भी नहीं बदला कबीर, अरे अब तो अपने परायो का फर्क करना सीख ले.

मैं- बहन है छोटी,

मंजू- बहन,कितने बरस बीत गए कबीर, हम जैसो ने भी किसी होली दिवाली तुझे याद किया होगा पर उन लोगो ने नहीं. मेरी बात कडवी बहुत लगेगी तुझे कबीर पर तेरे जाने का फर्क पड़ा नहीं उनको .

मैं- जानता हु मंजू , छोड़ उनकी बाते. अपनी बता . खूबसूरत हो गयी रे तू तो.

मंजू- क्या ख़ाक खूबसूरत हो गयी . कितनी तो मोटी हो गयी हूँ

हम दोनों ही हंस पड़े.

मैं- वैसे इधर किधर भटक रही थी .

मंजू- सरकारी नौकरी लग गयी है , आजकल मास्टरनी हो गयी हूँ पडोसी गाँव के स्कूल में ड्यूटी है तो बस उधर से ही आ रही थी.

मैं-और सुना तेरे पति के क्या हाल चाल है .

मंजू- छोड़ दिया उसे मैंने कबीर,

मैं- ये तो गलत किया

मंजू- क्या करती कबीर , साले ने जीना ही हराम किया हुआ था . जब देखो शक ही शक करता था . घूँघट नहीं किया तो उसको दिक्कत. छत पर खड़ी हो गयी तो शक, एक दिन फिर मैंने फैसला ले लिया. माँ-बाप को दिक्कत हुई कुछ दिन रही उनके साथ तो भाई-भाभी बहनचोदो को परेशानी होने लगी . पर फिर किस्मत ने साथ दिया और नौकरी मिल गयी अभी ठीक है सब

मैंने मंजू के सर को सहलाया.

मंजू- चल घर चलते है बहुत बाते करनी है तुझसे

मैं- तू चल मैं आता हूँ इसी बहाने तेरे माँ-बाप से भी मिल लूँगा.

मंजू- उनसे मिलना है तो उनके घर जाना, मैं अलग रहती हूँ उनसे.

मैं- क्या यार तू भी

मंजू- नयी बस्ती में घर बना लिया है मैंने

मैं- भाई भाभी के घर की तरफ

मंजू- हाँ , उधर ही

मैं- कैसी है भाभी

मंजू- जी रही है . तुझे बहुत याद करती है वो . एक बार मिल ले

मैं- अभी नहीं , थोड़ी देर अपनी जमीन को निहार लेने दे फिर आता हूँ.

मंजू- मैं भी रूकती हूँ तेरे साथ ही ,

मैं मुस्कुरा दिया .

मंजू मेरे बचपन की साथी, साथ ही पले बढे साथ ही पढाई की . बहुत बाते उसकी सुनी बहुत सुनाई.

“याद है तुझे ऐसे ही मेरे काँधे पर सर रख कर बैठा करता था तू ” बोली वो

मैं- क्या दिन थे यार वो. न कोई फिकर ना किसी से लेना देना बस अपनी मस्ती में मस्त.

मंजू- इतने दिन तू लापता रहा तुझे याद नहीं आई किसी की भी .

मैं- तुझे तो मालूम ही है क्या हालात थे उस वक्त. कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है. घर को ना जाने किसकी नजर लगी. माँ-बाप का मरना आसान नहीं होता जवान बेटे के लिए. और फिर परिवार का रंग तो देख ही लिया.

मंजू- पर घर नहीं छोड़ना था कबीर

मैं- कौन जाना चाहता था इस जन्नत को छोड़ कर मंजू, पर जाना पड़ा अगर नहीं जाता तो तू भी लाश ही देखती मेरी.

मंजू ने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- ऐसा मत बोल कबीर.

मैं- तुझे बताऊंगा की मेरे साथ क्या हुआ था सही वक्त आने दे.

चबूतरे पर बैठे मैंने मंजू के हाथ को अपने हाथ में ले लिया. आसमान से हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी थी.

मंजू- अबका सा सावन बहुत सालो बाद आया है

मैं- हम भी तो बहुत सालो बाद मिले है

मंजू- मिलने से याद आया निशा कैसी है . मिली क्या तुझे .

मैं- ठीक ही होगी , मालूम हुआ की बड़ी अफसर हो गयी है पुलिस में

मंजू- पता है मुझे नौकरी लगते ही सबसे पहले वो शिवाले ही आई थी . पर तू ना मिला. फिर शायद वो भी अपनी जिन्दगी में रम गयी अरसा हो गया उसे मिले हुए.

मैं- ठीक ही तो हैं न , उसे भी उसके हिस्से की ख़ुशी मिलनी ही चाहिए. ये बता मुझे मालूम हुआ की चाचा बहुत बड़ा बन गया है.

मंजू- ऐसा ही है .

बारिश रफ़्तार बढाने लगी थी. आस्मां काले बादलो से ढक सा गया था .

मंजू- जोर का में बरसेगा, चलना चाहिए.

मैं-तुझे ठीक लगे तो हवेली चल मेरे साथ

मंजू- ये भी कोई कहने की बात है पर अभी नहीं, फिलहाल तू मेरे घर चलेगा. बहुत दिन बीते साथ खाना खाए हुए. फिर तू जहाँ कहेगा चलूंगी.

मैं- आलू के परांठे बनाएगी न .

मंजू- तू चल तो सही यार.

फूलो के डिजाइन वाली साडी में मंजू बड़ी ही गंडास लग रही थी वजन बढ़ा लिया था उसने. ऊपर से ये में. भीगते हुए हम लोग उसके घर तक आये. भीगी जुल्फों को झटकते हुए मंजू ताला खोलने को झुकी तो उसकी गांड पर दिल ठहर सा गया.

“अन्दर आजा ” बोली वो.

मैं- तू चल मैं आया.

मैंने गली में देखते हुए कहा

मंजू- थोडा दूर है उनका घर ऐसे नहीं दिखेगा.

मैं अन्दर चल दिया. दो कमरों का घर था मंजू का एक रसोई.

मैं- अच्छा सजाया है

मंजू- जो है यही है. . तौलिया ले और बदन पोंछ ले वर्ना बीमार हो जायेगा.

मैंने उसकी बात मानी, उसने भी अपने कपडे बदले और खाना बनाने लगी. .

“ऐसे क्या देख रहा है ” बोली वो

मैं- बस तुझे ही देख रहा हूँ

मंजू- सब कुछ तो देख लिया तूने अब क्या कसर बाकी रही .

मैं- तू जाने या ये मन जाने


“देख तो सही मसाला ठीक है या नहीं ” मंजू ने आलू से सनी ऊँगली मेरे होंठो पर लगाई मैंने मुह खोला और उसकी ऊँगली को चूसने लगा. मसाले का स्वाद था या बचपन के किये कांडो की यादे. हमारी नजरे आपस में मिली और मंजू ने अपने तपते होंठो को मेरे होंठो से जोड़ लिया.
Tow bachpan ki saheli mil gayi kabeer ko bahot saari yaade taza huwi or BAAT fir romance par bahoch gayi ab dekhte h yeh kiss Kitna aage tak jaati h
 
Top