#11
मेरे पिता कहने को तो वन दरोगा थे पर उनकी रूचिया हमेशा से किताबो में ही रही .मैंने हमेशा उनके हाथो में किताबे देखी थी, ड्यूटी पर भी घर पर भी. धर्म कर्म में भी वो हमेशा आगे ही रहते हमारे घर से कभी कोई भूखा नहीं लौटा. पर जैसा की अक्सर होता है सिक्के के दो पहलु होते है और सिक्के का दूसरा पहलु थी मेरी चाची या मौसी जो भी कहे..ये सब कभी शुरू ही नहीं होता अगर उस शाम मैंने पशुओ के चारे वाले कमरे में वो मंजर नहीं देखा होता जहाँ चाची मेरे पिता को बाँहों में थी. जीजा-साली का रिश्ता जैसा भी था मैंने जो देखा वो थोडा बढ़ कर ही था.असल जिदंगी में पहली बार चुदाई देखी थी वो भी घर में ही. साइकिल के स्टैंड को पकडे झुकी चाची और पीछे मेरे पिता. ये वो घटना थी जिसने मेरे कानो को गर्म कर दिया था मुझे लड़के से आदमी बनने को प्रेरित कर दिया था.
बाहर से आई आवाज ने मुझे यादो के झरोखे से वर्तमान में ला पटका. दरवाजा खुला था तो कुत्ता घुस आया था . पिताजी की बड़ी सी तस्वीर को देखते हुए मैं बहुत कुछ सोच रहा था . सब कुछ तो था हमारे पास एक जिन्दगी जीने के लिए फिर कैसे ये सब बिखर गया. पहले चाचा का अलग होना फिर ताऊ का रह गए थे हम लोग . वक्त का फेर ना जाने कैसे बैठा की फिर ये घर, घर ना रहा .करने को कुछ ख़ास नहीं था बस ऐसे ही पुराने सामान में हाथ मार रहा था . पिताजी की अलमारी में ढेरो किताबे थी बेशक धुल जमी हुई थी पर सलीके से बहुत थी. मैंने एक कपडा लिया और धुल साफ करने लगा तभी नजर एक किताब पर पड़ी. सैकड़ो किताबो में ये किताब अलग सी थी, क्योंकि सिर्फ ये ही एक किताब थी जिसे उल्टा लगाया गया था बाकी सब कतार में थी.
पता नहीं क्यों मैंने उस किताब को बाहर निकाल लिया ,किस्मत साली बहुत कुत्ती चीज होती है गुनाहों का देवता नाम उस किताब का पहले पन्ने पर ही गुलाब की सूखी हुई पंखुड़िया अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी. किताब को बस यूँ ही पलटना शुरू किया बीच में कुछ पन्ने गायब थे और उनकी जगह हाथ से लिखी गयी कुछ बाते थी.
“कोई और होता तो नहीं मानता पर मैं तो नकार कैसे दू, किस्से कहानियो में बहुत सुना था पर हकीकत में सामने देख कर कहने को कुछ बचा नहीं है ,चाहे तो सात पीढियों को उबार दे चाहे तो सबका नाश कर दे. इसका प्रारंभ न जाने क्या है पर अंत दुःख दाई हो सकता है, मुझे छुपाकर ही रखना होगा सामने आये तो परेशानी होगी. ” इतना लिखने के बाद निचे एक छोटा सा चित्र बनाया गया था .
मैंने अगला पन्ना पलटा –“छोड़ने का मोह नहीं त्याग पा रहा हूं बार बार मेरे कदम तुम्हारे पास आते है . ये जानते हुए भी की तुम्हारा मेरा साथ नहीं है , न जाने किसकी अमानत है मन का चोर कहता है की तुझे मिला तेरा हुआ. दिमाग का साहूकार कहता है ये पतन का कारण बन जायेगा. समझ नहीं आ रहा की किस और चलू ” फिर से एक छोटा चित्र बना था .
लिखाई तो पिताजी की थी पर ये पन्ने इस किताब के बीच क्यों रखे गए थे कुछ तो छिपाया गया था जो समझ नहीं आ रहा था बहुत देर तक माथापच्ची करने के बाद बी कुछ समझ नहीं आया तो मैं बाहर की तरफ आ गया. पुजारी बाबा के पास जा ही रहा था की बाजे की आवाज सुनाई दी. चाचा के नए घर से आ रही थी विवाह की रस्मे शुरू हो गयी थी , दिल में ख़ुशी होना लाज़मी था अपने घर के आयोजन में भला कौन खुश नहीं होगा .पर अगले ही पल मन बुझ सा गया.
सामने से मैंने गाडी में चाचा को आते देखा, देखा तो उसने भी मुझे क्योंकि नजरे मिलते ही उसने अपने चश्मे को उतार लिया था एक पल को गाडी धीरे हुई मुझे लगा की शायद वो बात करेगा पर फिर वो आगे बढ़ गया. शाम तक मैं शिवाले में बाबा के पास रहा बहुत सी बाते की . रात घिरने लगी थी ना मैं मंजू के घर जाना चाहता था ना मैं हवेली जाना चाहता था . तलब मुझे शराब की थी तो गाँव के बाहर की तरफ बने ठेके पर पहुँच गया. बोतल खरीदी और वही मुह से लगा ली. उफ़, कलेजा जब तक जलन महसूस ना करे तब तक साला लगता ही नहीं की पी है .
“हट न भोसड़ी के , उधर जाके मर ले रस्ते में ही पीनी जरुरी है क्या ” किसी ने मुझे धक्का देकर परे धकेला.
“तेरे बाप का ठेका है क्या ” मैंने पलटते हुए कहा .पर जब हमारी नजरे मिली तो मिल कर ही रह गयी , फिर न वो कुछ बोल पाया ना मैं कुछ कह सका.
“कबीर, भैया ” बस इतना ही बोल सका वो और सीधा मेरे सीने से लग गया.
“यकीन नहीं होता आप ऐसे मिल जायेंगे , सोर्री भैया वो गलती से गाली निकल गयी ” मुझे आगोश में भरते हुए बोला वो.
मैं- कैसा है तू, ठीक तो है न
“मैं ठीक हूँ भैया, दीदी कैसी है , क्या आपके साथ आई है वो. ” बोला वो
मैं-मुझे क्या मालूम ये तो तुझे पता होना चाहिए न
“ये आप क्या कह रहे है , दीदी तो आपके साथ है न . आपके साथ ही तो गयी थी वो .” उसने कहा.
मैं- तुझसे किस ने कहा ये
“आप मजाक कर रहे है न सबको मालूम है की आप दोनों ने शादी कर ली है . बताओ न दीदी आई है क्या बहुत साल हो गए उनको देखे .मैं पिताजी से नहीं कहूँगा, किसी से नहीं कहूँगा बस एक बार दीदी से मिलवा दो ” निशा का भाई बहुत भावुक हो गया. मैं उसे कैसे बताता की वो मेरे साथ नहीं थी शादी करने का ही तो रोला था .
“वो जल्दी ही आने वाली है , मैं आ गया हूँ वो भी आ जाएगी. ” मैंने उसका दिल रखने को कह तो दिया था पर क्या जानता था की कभी कभी मुह से निकली बात यूँ ही सच हो जाती है. आधी रात तक वो मेरे पास रहा बहुत बाते करता रहा. निशा से मिलने को बहुत आतुर था वो होता भी क्यों नहीं रक्षा बंधन भी जो आ रहा था और बहने तो अनमोल होती है भाइयो के लिए. नशे में धुत्त अपने विचारो में खोये हुए मैं ये ही सोच रहा था की ज़माने में ये खबर फैली हुई थी की हम दोनों ने भाग कर ब्याह रचा लिया था. ब्याह तो करना था उस से , न जाने कब मैं इश्क के उन दिनों में खो गया सब सब बहुत अच्छा अच्छा था . उसके खयालो में इतना खो गया था की पीछे से आती हॉर्न की आवाज तक को महसूस नहीं किया मैंने.