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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
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yenjvoy

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भाग 127
आज एक बार फिर सुगना का किरदार मेरे जेहन में घूम रहा है और मेरी लेखनी ना चाहते हुए भी इस कामुक उपन्यास को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है।

जौनपुर में सुगना और सोनू ने डॉक्टर की नसीहत को बखूबी एक हफ्ते तक अमल में लाया और दोनों के जननांग वापस यथा स्थिति में आ गए। परंतु दोनों की ही मनोस्थिति कुछ अलग थी। वासना के भंवर में दोनों जब गोते लगा रहे होते तो वह स्वार्गिक सुख के समान होता परंतु चेतना आते ही सुगना के मन में अपराध भाव जन्म लेता। सोनू यद्यपि सुगना को यह बात समझा चुका था कि वह दोनों एक ही पिता की संतान नहीं है परंतु फिर भी जिस सुगना ने अपने छोटे भाई सोनू का लालन-पालन शुरू से अब तक किया था अचानक उसे अपने प्रेमी के रूप में स्वीकार करना बेहद दुरूह कार्य था।

उधर सोनू की मनो स्थिति ठीक उलट थी उसे अपने ख्वाबों की मलिका मिल चुकी थी और पिछले एक हफ्ते में उसने सुगना के साथ और संसर्ग का अनूठा आनंद उठाया था परंतु सुगना एक रहस्यमई किताब की तरह थी। जितना ही सोनू उसके पन्ने पलटता उसकी रुचि सुगना में और गहरी होती जाती। सोनू के मन में अपनी बड़ी बहन सुगना के साथ किए जा रहे संभोग को लेकर कोई अपराध भाव न था।

संभोग का सुख अनूठा होता है विशेषकर तब, जब अपने साथी के प्रति अगाध प्रेम हो। सोनू और सुगना कुदरत के दो नायब नगीने थे और एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे वो जो जब संभोग क्रिया में लिप्त होते तो खजुराहो की मूर्तियों को मात दे रहे होते और नियति भी उनका मिलन रचने के लिए बाध्य हो जाती।

सुनहरा सप्ताह बीत चुका था और अगली सुबह..

“सोनू उठ कितना देर हो गई लखनऊ पहुंचे में टाइम भी लागी “

सुगना ने सोनू को एक बार फिर जगाया अब से कुछ देर पहले वह सोनू को एक बार उठा चुकी थी पर जैसे ही सुगना नहाने गई थी सोनू एक बार फिर अपनी पलकें बंद कर सो गया था निश्चित थी सोनू ने रात भर जी तोड़ मेहनत की थी अपनी बहन का का खेत जोतने के लिए।

“दीदी छोड़ ना कुछ दिन बाद चलल जाई “ सोनू इन सुखद दिनो का अंत होते हुए नहीं देखना चाह रहा था उसका अभी भी सुगना से जी न भरा था। दिन पर दिन जैसे-जैसे वह सुगना से और अंतरंग हो रहा था उसका उत्साह बढ़ता जा रहा था और अभी तो उसे अपनी नई प्रेमिका के तन-बदन से पूरी तरह रूबरू होना था । अपनी क्षमता और मर्दानगी की बातें करनी थी सुगना की पसंद जाननी थी। यह एक विडंबना ही थी कि इतने दिनों के बाद भी अब तक वह सुगना को पूरी तरह नग्न नहीं देख पाया था । सुगना भी प्रेम कला की माहिर खिलाड़ी थी अपने खूबसूरत और अनमोल बदन यूं ही एक बार में परोस देना उसे गवारा न था।

सुगना ने बिना देर किए सोनू के शरीर से लिहाफ खींच लिया और बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू अपनी नग्नता छुपाने के लिए तकिए को अपनी जांघों के बीच रख लिया।

सोनू असहज जरूर हुआ परंतु वह अपनी दीदी सुगना पर कभी गुस्सा नहीं हो सकता था। वह प्रेम ही क्या जो सामने वाले की प्रतिक्रिया समझ ना सके, सुगना ने सोनू के मनोभाव पढ़ लिए और मुस्कुरा कर बोली..

“सोनू बाबू जल्दी तैयार हो जो ना त लखनऊ पहुंचे में बहुत देर हो जाइ और अस्पताल भी बंद हो जाइ”

सोनू को अंदाज़ हो चुका था कि सुगना मानने वाली न थी। कुछ ही देर बाद सोनू सुगना और दोनों बच्चे एक बार फिर लखनऊ के सफर पर थे।

डॉक्टर ने सुगना और सोनू दोनों का चेकअप किया और आशा अनुरूप दोनों के जननांगों को सुखद और सामान्य स्थिति में देखकर डॉक्टर ने सुगना से कहा।

“अब आप दोनों पूरी तरह से सामान्य है। अवांछित गर्भधारण की समस्या भी अब नहीं रही आप दोनों अपने वैवाहिक जीवन का सुख जी भरकर ले सकते हैं। “

अंतिम शब्द बोलते हुए डॉक्टर कनखियों से सुगना को देख रही थी और उसके होठों पर मुस्कान कायम थी।

सुगना और सोनू को वापस बनारस के लिए निकलना था परंतु घड़ी शाम के पांच बजा रही थी और बनारस पहुंचने में 6 से 7 घंटे का वक्त लगना था.. सोनू ने सुगना से कहा..

“दीदी बनारस पहुंचे में बहुत टाइम लगी आज लखनऊ में ही रुक जयल जाऊ कल सुबह बनारस चलेके”

सुगना थोड़ी असमंजस में थी वह शीघ्र बनारस पहुंचाना चाहती थी परंतु सोनू ने जो बात कही थी वह सत्य थी रात में सफर करना अनुचित था और वैसे भी आज सुबह से सुगना और उसका परिवार सफर ही कर रहे थे। अंततः सुगना ने रुकने के लिए रजामंदी दे दी..

सोनू आज की रात रंगीन करने की तैयारी करने लगा। सोनू मन ही मन आज रात सुगना के साथ संभावित कई संभोग मुद्राएं सोच कर मुस्कुरा रहा था और उसका लन्ड रह रह कर थिरक रहा था।

जैसे-जैसे शाम गहरा रही थी सोनू की सोनू के मन में वासना हिलोरे मार रही थी। अपने दायित्वों के प्रति सचेत सोनू ने सुगना के दोनों बच्चों और अपनी सुगना की पूरी तन्वयता के साथ सेवा की उन्हें मनपसंद खाना खिलाया आइसक्रीम खिलाई और होटल के एक बड़े से फैमिली रूम में बच्चों को मखमली बेड पर सुन कर परियों की कहानी सुनने लगा इसी दौरान सोनू की परी सुगना हमेशा की तरह अपने रात्रि स्नान के लिए बाथरूम में प्रवेश कर चुकी थी।


इधर सोनू सूरज और मधु को परियों की कहानी सुना रहा था उधर उसके जेहन मैं उसकी सुगना नग्न हो रही थी। सुगना के मादक अंग प्रत्यङ्गो के बारे में सोचते सोचते कभी सोनू की जबान लड़खड़ाने लगती। अब तक थोड़ा समझदार हो चुका सूरज सोनू कहानी से भटकाव को समझ जाता एक दो बार इस भटकाव को नोटिस करने के बाद सूरज ने कहा…

“मांमा कहानी सुनावे में मन नईखे लागत छोड़ द “ सूरज की आवाज में थोड़ी चिढ़न थी । उसे सोनू द्वारा सुनाई जा रही कहानी पसंद आ रही थी परंतु उसमें भटकावउसे बिल्कुल भी पसंद ना था।

आखिरकार सोनू ने अपनी परियों की कहानी पर ध्यान केंद्रित किया और छोटे सूरज के माथे पर थपकियां देते देते उसे सुलाने में कामयाब हो गया। उसकी पुत्री मधु इसी दौरान न जाने कब सो चुकी थी।


बच्चों के सोने के बाद सोनू बिस्तर से उठा बच्चों के लिए लिहाफ और तकिया को ठीक किया और बेसब्री से सुगना का इंतजार करने लगा।

सोनू के लिए एक-एक पल भारी पड़ रहा था वह रह रहकर अपने लंड को थपकियां देकर सब्र करने के लिए समझा रहा था परंतु सोनू का लन्ड जैसे उसके बस में ही न था। वह तो अपनी सहेली जो सुगना की जांघों के बीच अभी स्नान सुख ले रही थी के लिए तरस रहा था।

खड़े लन्ड के साथ अपनी प्रेमिका का इंतजार बेहद कठिन होता है एक-एक पल भारी पड़ता है सोनू भी अधीर हो रहा था। और हो भी क्यों ना सुगना साक्षात रति का अवतार थी उसके साथ संभोग करने का सुख अद्वितीय था। पिछले हफ्ते सुगना के साथ अलग-अलग अवस्थाओं में किए गए संभोग को याद कर सोनू अपने लंड को सहला रहा था जब जब वह सुगना के अंग प्रत्यंगों के बारे में सोचता उसकी उत्तेजना बढ़ जाती। पिछले दिनों सोनू और सुगना के बीच हुए मिलन में पूर्ण नग्नता न थी पर आनंद अप्रतिम था। सुगना ने या तो अपने शरीर पर आंशिक वस्त्रों को धारण किया हुआ था या फिर अंधेरे की चादर ओढ़े हुए थी।

बाथरूम के दरवाजे की कुंडी के खुलने की आवाज सुनकर सोनू सतर्क हो गया और अपने खड़े लन्ड को वापस अपनी लुंगी में डाल सुगना के बाहर आने का इंतजार करने लगा।

कोमल कचनार सुगना के लक्स साबुन से नहाए बदन की खुशबू सोनू के नथुनों से टकराई और मादक सुगना को अपने समक्ष देखकर सोनू उसे अपने आलिंगन में लेने के लिए तड़प उठा..

सुगना अपने बालों को तौलिए से पोछते हुए ड्रेसिंग टेबल के सामने गई वह एक सुंदर सी नाइटी पहने हुई थी।

सोनू से और बर्दाश्त ना हुआ उसने सुगना को पीछे से जाकर अपने आलिंगन में ले लिया। हाथ सुगना की चूचियों पर न थे परंतु उसने अपनी दोनों भुजाएं सुगना की चूचियों के ठीक नीचे रख कर उसे अपनी तरफ खींचा और अपना लंड सुगना के मादक कूल्हों से सटा दिया।


जैसे ही सोनू ने सुगना के बदन को अपने आलिंगन में लिया सुगना ने सोनू का हाथ पकड़ लिया और खुद से दूर करते हुए बोली।

“सोनू अब बस…. पिछला हफ्ता जवन भइल डॉक्टर के कहला अनुसार भइल , ऊ तोहरा खातिर बहुत जरूरी रहे पर अब इ कुल ठीक नरखे”

सोनू की कामुक भावनाओं पर जैसे वज्रपात हो गया हो वह उदास और निरुत्तर हो गया। उसे सुगना से यह उम्मीद ना थी। वह सुगना से दूर हटा और बिस्तर पर बैठ गया उसका सर झुका हुआ था और नजरे जमीन पर थीं। बुझे हुए मन से वह अपनी पैरों की उंगलियों से कमरे के फर्श को कुरेदने की कोशिश करने लगा


सुगना सोनू को पलट कर देख रही थी और उसकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही थी परंतु सोनू चुपचाप था और उसकी आंखें निर्विकार भाव से कमरे की फर्श को निहार रहीं थीं ।

सोनू को शायद इसका अंदाजा रहा होगा उसे पता था सुगना और सोनू के बीच जो हुआ था उसमें निश्चित ही डॉक्टर की सलाह का असर था परंतु जिस तरह आखिरी कुछ दिनों में सुगना ने सोनू का संभोग के खुलकर साथ दिया था उससे सोनू को उम्मीद हो चली थी कि उसके और सुगना के बीच में यह संबंध निरंतर कायम रह सकता है परंतु आज सुगना ने जो व्यवहार किया था उसने सोनू की आशंका को असलियत का जामा पहना दिया था।

कोई उत्तर न पाकर सुगना सोनू के पास आई और अपनी कोमल हथेलियों से सोनू के चेहरे को ऊपर तरफ करते हुए बोली।

“का भइल ?”

कोई उत्तर न पा कर सुगना अधीर हो गई उसने सोनू के कंधे को छूते हुए बोला..

“ बोल ना चुप कहे हो गइले?”

स्पर्श की भाषा अलग होती है स्पर्श के पश्चात पूछा गया प्रश्न आपको उत्तर देने को बाध्य कर देता है आप उसे चाह कर भी नजरअंदाज नहीं कर सकते आखिर सोनू रुवासे मन से सुगना की तरफ मुखातिब हुआ और बोला..

“दीदी हम तोहरा बिना ना रह सकेनी” सोनू की आवाज में दर्द था एक कशिश थी जो निश्चित थी उसके आहत मन के दुख को समेटे हुए थी। सुगना अपने हाथ से उसके गर्दन को सहलाते हुई बोली ..

“आपन गर्दन के दाग देख दिन पर दिन बढ़ते जाता। लगता हमनी से कोई गलती होता एही से ही दाग बढ़ल जाता “


सुगना को अभी भी यह बात समझ में नहीं आ रही थी की सोनू के गर्दन पर यह दाग क्यों हुआ था। परंतु पिछले कुछ दिनों में यह दाग दिन पर दिन बढ़ रहा था।

अचानक सुगना को सरयू सिंह के माथे का दाग याद आने लगा जब-जब सरयू सिंह और सुगना अंतरंग होते और सरयू सिंह अपनी वासना में गोते लगा रहे होते उनके माथे का दाग बढ़ता जाता और कुछ दिनों की दूरी के पश्चात वह दाग वापस सामान्य हो जाता।

सोनू ने उठकर शीशे में अपने दाग और देखा और बोला

“ अरे ई छोट मोट दाग ह हट जाए ”

सोनू उस दाग को नजरअंदाज करने की कोशिश कर रहा था परंतु उसे भी इसकी गंभीरता मालूम थी निश्चित ही या दाग सुगना से संभोग करने के बाद ही प्राप्त हुआ था और पिछले कुछ दिनों में और बढ़ गया था।

“पहले हमार सोनुआ बेदाग रहे.. जब से ते हमारा साथ ई सब कईले तभी से ही दाग बढ़ल बा…हमारा मन में एकरा लेकर चिंता बा अब इ सब हमरा से ना होई” सुगना सोनू के समीप आकर उसकी हथेली को अपनी हथेलियां में रखकर सहला रही थी।

सोनू ने एक बार फिर सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और उसके कानों और गालों को चूमते हुए बोला..

“ दीदी तू हमर जान हउ हमरा के अपना ल.. तू हमरा के छोड़ देबू त हम ना जी पाइब”

“एक त ते हमारा के दीदी बोलेले और इस सब करेले सोनू ई सब पाप ह.. तोर दाग एहि से बढ़ता” सुगना ने समझदारी दिखाते हुए सोनू को समाझाने की कोशिश की….

सोनू को तो जैसे सुगना का नशा हो चुका था उसे पता था जो वह जो कर रहा है वह अनुचित है समाज में अमान्य है परंतु वह उसका मन और उसका लन्ड तीनों सुगना के दीवाने हो चुके थे। सुगना का प्रतिरोध देखकर आखिर का सोनू ने आखिरी दाव खेला..

“ दीदी कल बनारस पहुंचला के बाद हम तोहरा से अलग हो जाएब वैसे भी वहां चाह कर भी हम तहरा से नाम मिल पाएब .. बस आज रात एक बार और फिर हम ना बोलब..”

सोनू के अनुरोध ने सुगना को पिघलने पर मजबूर कर दिया परंतु उसे पता था कि यदि उसने सोनू के साथ आज फिर संभोग किया तो निश्चित थी उसका दाग और भी ज्यादा बढ़ जाएगा उसने स्थिति संभालते हुए कहा…

“सोनू आज हमार बात मान ले जब तोर दाग खत्म हो जाए हम एक बार फिर…तोर साध बुता देब…” सुगना यह बात करते हुए सोनू से नजरे नहीं मिला पा रही थी। …सुगना में स्त्री सुलभ लज्जा अभी भी कायम थी।

तभी सुगना की पुत्री मधु के रोने की आवाज है और सुगना इस वार्तालाप से विमुख होकर अपनी पुत्री मधु के पास जाकर उसे वापस सुलाने की कोशिश करने लगी कमरे में कुछ देर के लिए बाला के शांति हो गई सोनू बिस्तर पर बैठे-बैठे सुगना और उसके दोनों बच्चों को निहार रहा था और नियति को कोस रहा था कि क्यों कर उसने उसके गर्दन पर यह दाग रच दिया था जो निश्चित थी सुगना से संभोग करने के साथ साथ निरंतर बढ़ता जा रहा था।

सोनू भी अब मधु के सोने का इंतजार कर रहा था उसे अब भी उम्मीद थी कि सुगना उसे निराश न करेगी और वह सुगना को इस व्यभिचार के लिए फिर से मना लेना..

लिए कुछ समय के लिए सुगना और सोनू को उनके विचारों के साथ छोड़ देते हैं और आपको बनारस लिए चलते हैं जहां लाली आज सलेमपुर से वापस आ चुकी थी। उसके माता और पिता अब अपना ख्याल रख पाने में अब सक्षम थे। बनारस में सोनी उसका इंतजार कर रही थी परंतु लाली को जिसका इंतजार था वह सोनू और सुगना थे। सुगना उसकी प्यारी सहेली और उसकी हमराज थी और सोनू वह तो उसका सर्वस्व था। वह वह सोनू के साथ जौनपुर ना जा पाई थी इस बात का उसे मलाल था।


सोनी से बात करने के बाद उसे यहां हुए घटनाक्रम का पता चला और सुगना के जौनपुर जाने की बात मालूम हुई।

एक तरफ सोनू के साथ सुगना के जाने की खबर से खुश हुई थी की चलो सुगना सोनू का घर अच्छे से सजा देगी उसे इस बात का कतई अंदाजा न था सुगना और सोनू कभी इस प्रकार अंतरंग हो सकते हैं।

“सुगना कब वापस आईहें ?”

“आज ही आवे के रहे लखनऊ से” सोनी के उत्तर दिया…

लखनऊ की बात सुनकर लाली को वह सारे दृश्य याद आ गए जो पिछले कुछ दिनों में घटित हुए थे। सोनू को उकसाने के पश्चात उसके द्वारा अपनी बहन सुगना के साथ किया गया वह संभोग निश्चित थी एक पाप था जिसकी जिम्मेदार कुछ हद तक लाली भी थी। इस पाप की सजा सुगना गर्भधारण कर और फिर गर्भपात करा कर भुगत ही चुकी थी…..

स्त्री और पुरुष में शारीरिक आकर्षण होने पर दोनों एक दूसरे को स्वाभाविक रूप से पसंद करने लगते हैं सोनू और सुगना के बीच जाने कब और कैसे यह आकर्षण पड़ता गया। लाली और सोनू के बीच चल रहे प्रेम प्रसंग ने सोनू के मर्दाना रूप को उसकी आंखों के सामने परोस दिया.. सुगना का अकेलापन और लाली के उकसावे ने सुगना के सोनू के प्रति वासना रहित प्यार ने धीरे-धीरे वासना का जहर घोल दिया।

तभी सोनी ने लाली से पूछा..

“सोनू भैया सुगना दीदी के बार-बार लखनऊ काहे ले जा ले?”

लाली को कोई उत्तर नहीं सूझा तो उसने कहा..

आईहें त पूछ लीहे..

आखिर लाली किस मुंह से कहती…कि सोनू ने न सिर्फ अपनी बहन का खेत जोत था बल्कि जोता ही क्या रोपा भी था और अब उसी का इलाज कराने गया था…

इधर लाली और सोनी सुगना और सोनू का इंतजार कर रहे थे उधर सोनू का इंतजार खत्म हो रहा था मधु सो चुकी थी और सुगना एक बार उठकर फिर सोनू के पास रखे पानी के जग से पानी निकाल रही थी…तभी सोनू ने कहा…

“दीदी बस आज एक बार हमरा के जी भर के तोहरा के प्यार कर ले वे द। हम सब कुछ करब बस उ ना करब जउना से दाग बढ़त बा…” सोनू ने इशारे से सुगना कोविश्वास दिलाने की कोशिश की कि वह उसके साथ संभोग नहीं करेगा अभी तो उसे सिर्फ जी भर कर प्यार करेगा।


सुगना सोनू को पूरी तरह समझती थी परंतु वह उसके इस वाक्य का अर्थ न समझ पाई.. और प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी तरफ देखा…जैसे उसे एक बार फिर अपना आशय समझने के लिए कह रही हो…

सोनू ने एक बार फिर हिम्मत जुटा और कहा

“दीदी बस आधा घंटा खातिर हमरा के तहरा के जी भर के देख लेवे द और हमारा के प्यार कर ले बे द हम विश्वास दिलावत बानी कि हम संभोग न करब..बस प्यार करब और ….. सोनू की आवाज हलक में ही रह गई..

“और का… पूरा बात बोल…

सोनू का गला सुख गया था..अपनी बड़ी बहन से अपने मन का नंगापन साझा कर पाने को उसकी हिम्मत न थी…

सोनू को निरुत्तर कर सुगना मुस्कुराने लगी। सोनू ने यह आश्वासन दे कर कि वह सुगना के साथ संभोग नहीं करेगा उसका मन हल्का कर दिया था।

चल ठीक बा …बस आधा घंटा सुगना ने आगे बढ़कर कमरे की ट्यूबलाइट बंद कर दी कमरे में जल रहा नाइट लैंप अपनी रोशनी बिखेरने लगा..

तभी सोनू ने एक और धमाका किया…

“दीदी बत्ती जला के…” सोनू ने अपने चेहरे पर बला की मासूमियत लाते हुए सुगना के समक्ष अपने दोनों हाथ जोड़ लिए…

अब सुगना निरुत्तर थी…उसका कलेजा धक धक करने लगा ..कमरे की दूधिया रोशनी में सोनू के सामने ....प्यार....हे भगवान..

शेष अगले भाग में…
Bhai sach me ek keel si baith gayi thi dil me ki ye ek bahut hi pyaari aur alag Kahani adhoori reh gayi. Aap vaapas aaye aur phir shuru Kiya ye dekh kar kitni Khushi hui bataana mushkil hai. Please continue rakhiye. Itni achhi kriti ko majhdhar me chhorna anyaay hoga. Asha hai ab Kahani rukegi nahi. Swagat hai ♥️🙏👍
 

Lovely Anand

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अपने कई सारे नए पुराने पाठकों को देखकर अच्छा लगा जो नए पाठक इस कहानी से जुड़े हैं या जुड़े हुए हैं मैं उनका स्वागत करता हूं और उम्मीद करता हूं कि वह अपनी झिझक मतकर कहानी के बटन पर आकर अपने विचार जरूर रखेंगे... और मुझे उनकी मन की भावनाएं समझने का मौका देंगे एक बार फिर सभी को दिल से धन्यवाद जुड़े रहिए।
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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भाग 132

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उसकी उंगलियां सुगना के नंगे पेट से सट रही थी वह बीच-बीच में सुगना के पेट को अपनी उंगलियों से गुदगुदा देता। सुगना का अंतर्मन फूल की तरह खिल गया था वह खिलखिला रही थी।

नियति को हंसती खिलखिलाती सुगना एक कामातुर तरुणी की तरह प्रतीत हो रही थी…

नियति सतर्क थी..और सोनू और सुगना के मिलन की प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए आतुर थी…


अब आगे...

बहुत सुंदर कथानक, अति कामोत्तेजक अपडेट क्रमांक १३२... Lovely Anand भाई जी आपने बहुत सुंदर अभिव्यक्तियां कि है... मज़ा आ गया।

जय जय
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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उपर कि टिप्पणी मात्र एक विज्ञापन है... :mahboi::akshay::dscream:

...


मैं कहना चाहूंगा कि जीन पाठकों ने अभी तक नहीं पढ़ा है उन्होंने बहुत कुछ छोड़ दिया है। जल्दी करें आवेदन, अपने अपडेट क्रमांक १३२ को मंगवाएं और पढ़ कर अपनी प्रतिक्रियाएं दें...
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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अपने कई सारे नए पुराने पाठकों को देखकर अच्छा लगा जो नए पाठक इस कहानी से जुड़े हैं या जुड़े हुए हैं मैं उनका स्वागत करता हूं और उम्मीद करता हूं कि वह अपनी झिझक मतकर कहानी के बटन पर आकर अपने विचार जरूर रखेंगे... और मुझे उनकी मां की भावनाएं समझने का मौका देंगे एक बार फिर सभी को दिल से धन्यवाद जुड़े रहिए।
उनकी मां की भावनाएं समझने का मौका ?
 
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Lovely Anand

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उनकी मां की भावनाएं समझने का मौका ?
मन की वॉयस टाइपिंग की मिस्टेक है पर सच अर्थ का अनर्थ हो रहा था।
थैंक्यू
 
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Pratik maurya

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Sugna ke bhagya mein kya likha hai yah to niyati hi jane magar mai to sonu aur soni ka milan bhi chahta hu
Update 132 bhejne ka kasht kare
 

rekhayadav1

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कहानी पुनः प्रारंभ करने के लिए आपको बधाई
132 नंबर अपडेट भेज दें।
 
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