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Update postedहम दोनों बाप बेटी बहुत ही खुश थे. खुश होते भी क्यों नहीं आखिर मेरी इतने दिन की मेहनत आज रंग लायी थी और मैं अपने मकसद यानि अपने प्यारे पापा से चुदवाने में सफल हो ही गयी थी.
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दुसरे चाहे अब मम्मी और नानी आ चुकी थी पर अब मुझे उतनी चिंता नहीं थी क्योंकि मैं जानती थी कि मम्मी तो अब उम्र में काफी ज्यादा हो चुकी हैं और पापा इतने सालों से उनकी चूत मार मार कर ढीली कर चुके हैं, तो अब जब उन्हें उनकी बेटी की जवान चूत मिल रही है तो क्यों वे बूढी और ढीली चूत को पसंद करेंगे? अब तो हम बाप बेटी की चुदाई चालू ही रहने वाली थी. जब भी मौका मिलेगा तो हम आपस में मजे ले ही लिया करेंगे.
खैर हम घर को जा रहे थे. पापा स्कूटर चला रहे थे और मैं उनके पीछे बैठी थी बिलकुल पापा से चिपक कर. और मेरी दोनों छातियां पापा की पीठ में घुसी हुई थी. सड़क क्योंकि ज्यादा अच्छी नहीं थी तो स्कूटर के धक्कों से मेरी चूचियां पापा की पीठ में घिस रही थी. कुछ मैं जान बूझ कर भी अपनी छातियां पापा की पीठ में रगड़ रही थी. पापा को भी मजा आ रहा था. थोड़ी ही देर मैं हम मुख्य सड़क पर पहुँचने वाले थे तो तब तक तो मैं मुम्मे रगड़ने का मजा लेती रहना चाहती थी. पापा भी शायद इसी लिए जानबूझ कर स्कूटर धीरे चला रहे थे.
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मेरी चूत में अभी भी दर्द हो रहा था. पापा के मोटे लण्ड से पहली चुदाई थी, तो चूत का तो कबाड़ा ही कर दिया था पापा ने.
तभी पापा मुझे बोले
"सुमन! मेरी जांघों में खुजली हो रही है. मेरे हाथ स्कूटर पर हैं तो थोड़ा खुजला देगी क्या?"
मैं समज रही थी कि पापा मुझे लौड़े पर हाथ फेरने का इशारा दे रहे हैं. मैं भी मुख्य सड़क पर आने से पहले लौड़े का मजा लेना चाहती थी. असल में अब लौड़े को हाथ से छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था. मन तो कर रहा था कि बस पापा का लण्ड मेरी चूत में ही घुसा रहे, या कम से कम हाथ में तो रहे ही. ताकि मैं उसे मसलती रहूं.
मैंने पापा की टांग पर हाथ रखा और छेड़ते हुए बोली
"पापा! यहाँ खुजली हो रही है क्या?"
पापा:- नहीं बेटी थोड़ा ऊपर।
मैं हाथ को उनकी जांघों के जोड़ के पास ले जाकर फिर मजाक किया
मैं:- पापा यहाँ है क्या?
पापा से भी अब दूरी सहन नहीं हो रही थी. तो वो साफ़ साफ़ बोले
"सुमन! मेरे लण्ड पर खुजली हो रही है. अभी हम लोग थोड़े अँधेरे में हैं तो लुंगी के अंदर और अंडरवियर में हाथ डाल कर थोड़ा खुजली कर दो और सेहला दो. मुख्य सड़क पर लोग होंगे तो तुम खुजली नहीं कर पाओगी.
मैंने भी देर करना उचित न समझते हुए, झट से अपना हाथ पापा की लुंगी के अंदर डाल दिया और फिर उनके अंडरवियर के साइड से अंदर घुसाया. पापा का लौड़ा तो अपनी बेटी के हाथों के इन्तजार में कब से खड़ा था और मेरे हाथों की राह देख रहा था.
मेरे उँगलियाँ लगती ही लौड़े ने ख़ुशी से झटका मार कर स्वागत किया. मैंने भी तुरंत अपनी हथेली में लौड़े को कस लिया। और पापा के लौड़े को मुठ मारने के अंदाज में सहलाने लगी.
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पापा के मुंह से सिसकारियां निकलने लगी. मैं समझ रही थी कि पापा को बहुत अच्छा लग रहा है. और अच्छा तो मेरे को भी बहुत लग रहा था.
तो मैंने अपना दूसरा हाथ, जिस से मैंने पापा को पकड़ा हुआ था, को दूसरी साइड से लुंगी में डाल दिया और अपने हाथ में पापा के टट्टे (बॉल्स) पकड़ लिए और उन्हें सहलाने और उनके नीचे अपने नाखूनों से खुजली जैसे करने लगी.
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पापा और बेटी चलती स्कूटर पर मजे ले रहे थे. मैं प्यार से धीरे धीरे पापा का लौड़ा सेहला रही थी और टट्टे मसल रही थी.
एक बार तो मेरा मन हुआ कि पापा को बोलती हूँ कि स्कूटर तो कहीं साइड में खड़ा कर लें और मैं पापा का लौड़ा चूस कर मजा ले लेती हूँ पर फिर सोचा कि अभी पापा मुझे चोद के आ रहे हैं और अभी घर जा कर रात में मेरी गांड भी मारनी है, तो अभी लौड़ा चूसने को रहने देती हूँ ताकि पापा को भी थोड़ा आराम मिल सके. तो मैंने वो प्रोग्राम अभी स्थगित कर दिया और पापा के लण्ड को सिर्फ सहलाती ही रही.
इसी तरह चलते चलते थोड़ी देर में दवाइयों की दूकान आ गयी.
पापा ने स्कूटर रोक दिया, और मैंने पापा को कहा कि जा कर नींद की गोलियों का पूरा पत्ता ले आएं और कुछ दर्द कम करने की गोलियां भी ले लें.
पापा मुझे बोले
"बेटी! तू पैसे ले जा और जा कर खरीद ले. क्योंकि देख तो सही मेरा लण्ड कितना टाइट हो चूका है. मैं इस तरह लुंगी में तम्बू बनाये हुए कैसे जा सकता हूँ?"
मैं मुस्कुरा पड़ी और हँसके पूछा
"पापा यह आप का लौड़ा कभी बैठेगा भी या सदा ऐसे ही खड़ा रहेगा?"
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पापा भी हँसे
"सुमन! अब तो यह तेरी गांड मार कर ही ढीला होगा. अब जा जल्दी से दवा ले आ."
मैंने जा कर दवाई खरीदी और हम बाप बेटी घर को चल दिए.
घर जाने तक मैंने फिर पापा का लण्ड नहीं पकड़ा, एक तो हम उसे थोड़ा ढीला होने का समय देना चाहते थे क्योंकि घर में मम्मी और नानी थे और दुसरे अब मुख्य सड़क पर भीड़ भी काफी थी.
खैर हम घर आ गए और अपने अपने कमरे में चले गए. मैं पहले से ही छुपा कर ले जाई हुई किताब निकाल ली थी जिस से मम्मी को कोई शक भी नहीं हुआ. वैसे भी हम दोनों बाप बेटी थे तो मम्मी को शक करने का कोई कारण भी नहीं था. हालाँकि उन्हें क्या पता था की हम बाप बेटी किताब लाने के बहाने से क्या काण्ड करके आ रहे हैं.
रात का मुझे बहुत बेसब्री से इन्तजार था. आज राज को मेरी गांड की सील टूटने वाली थी. वो भी मेरे अपने पापा के लौड़े से. मैंने चूत तो फिर भी कई बार मरवाई थी पर गांड कभी नहीं. मैं बहुत खुश थी कि आज मेरी सील मेरे अपने बाप के हाथों (वैसे सही शब्द तो है के बाप के लौड़े से ) टूटने वाली थी.
मैं किचन में जा कर खाना बनाने लगी , गोली भी खा ली।
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मम्मी और नानी ड्राइंग रूम में बैठे बातें कर रहे थे. पापा भी उनके पास बैठे टीवी देख रहे थे. मै किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी ।
पापा से अब मेरे से दूर नहीं रहा जा रहा था तो वो पानी पीने के बहाने से उठ कर आ गए और किचन के दरवाजे पर हाथ रख के खड़ा हो गये और अपने कंधे दरवाजे पर टिका लिये ।
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और अपनी बेटी को खाना बनाती हुई को निहारने लगे । अपने पापा को अपनी ख़ूबसूरती निहारते देखकर मै मन ही मन ख़ुश हुई । फिर पापा की तरफ देखकर बो ली , "पापा , मैंने आज आपके लिये स्पेशल डिनर बनाया है । जितना ज्यादा खा सकते हो , खा लेना । आज रात आपको बहुत एनर्जी की जरुरत पड़ने वाली है ।"
मेरी कामुक बातें सुनकर पापा का लंड अपनी नींद से उठ गया । वो मेरे आकर पीछे गांड से चिपक के मुझे आलिंगन करते हुए मेरा चुम्बन लेने लगे ।
पापा प्यार से मेरे कान में बोले
"तुम्हारे लिये मेरे पास पहले से ही बहुत एनर्जी है बेटी । अगर तुमने मुझे एक्स्ट्रा एनर्जी दे दी तो फिर तुम मुझे झेल नहीं पाओगी और फिर एक हफ्ते तक बेड से उठ नहीं सकोगी , और अगर उठ भी गयी तो लंगड़ा लंगड़ा के चलोगी ।"
जोर से ठहाका लगाते हुए पापा बोले ।
उनकी इस गुस्ताखी पर, मेंने अपने निचले होंठ को दातों में दबाते हुए, शरारत से पापा के पेट में अपनी कोहनी मार दी ।
मेने कहा "पापा! मुझे यह मोटा लौड़ा अपनी गांड की पूरी गहराई में चाहिये… पूरा जड़ तक… फिर मैं आपको सिखाऊँगी कि एक्स्ट्रा एनर्जी क्या हे और मुझे कैसी चुदाई पसंद है… मुझे जोरदार और निर्मम चुदाई पसंद है… कोई दया नहीं …सिर्फ वहशी चुदाई…आज अपनी बेटी को खुश कर देना. बस अब माँ के पास जा कर बैठो, उन्हें शक न हो जाए. "
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पापा ने मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरा और अपनी एक ऊँगली मेरी गांड के सुराख पर रख कर उसे वहीँ रगड़ने लगे. मैं समझ रही थी कि पापा से रात होने तक का इन्तजार नहीं हो रहा है. मुझे ख़ुशी थी कि एक बार की ही चुदाई से मेरे पापा मुज पर कितने लट्टू हो गए हैं.
मुझे डर लगा कि वासना के जोर में पापा अभी मेरी गांड में ऊँगली ना घुसेड़ दें,
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उनकी ऊँगली सूखी थी और मेरी गांड बिलकुल टाइट. वैसे भी अभी पास में ही ड्राइंग रूम में मम्मी और नानी भी थे, तो कभी भी किसी के भी आ जाने का डर था. तो मैंने अपना हाथ पीछे ले जा कर अपनी गांड पर घूमती पापा की ऊँगली हटा कर पापा को जाने और रात का इन्तजार करने को कहा. पापा फिर से मुझे एक बार चूम कर और मेरे चूतड़ों पर प्यार से हाथ फेर कर चले गए.
फिर रात में हमने खाना खाया. थोड़ी देर टीवी देखा और बातें करते रहे.
हम दोनों बाप बेटी से तो रहा नहीं जा रहा था. तो पापा मुझे बोले
"सुमन! एक काम करो, तुम्हारी मम्मी और नानी भी दूर से आयी हैं और थक गयी होंगी, तुम जा कर दूध गर्म करके ले आओ. सब दूध पी लेंगे. इस से नींद भी अच्छी आती है."
मम्मी दूध पीना तो शायद नहीं चाहती थी, पर नानी के कारण चुप रही, मैं भी पापा की चाल समझ गयी और इससे पहले कि मम्मी कुछ और बोले तुरंत उठ कर किचन में गयी और दूध गर्म किया.
फिर मैंने दो गिलासों में नींद की दो दो गोलियां मिला दी, ताकि माँ और नानी को खूब नींद आये. एक गिलास मैंने पापा के लिए लिया. अपना गिलास मैंने जान बूझ कर नहीं रखा ताकि कहीं मम्मी या नानी उसे न उठा लें.
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मैं दूध ले कर सबसे पहले पापा के पास गयी और सही वाला गिलास उन्हें दे दिया, फिर मैंने नींद की दवा वाले दूध के गिलास मम्मी और नानी को दिए.
पापा ने पूछा "तुम्हारा दूध?'
तो मैंने दूध पीने से मना कर दिया, पर फिर पापा के जोर देने किचन में जा कर अपने लिए भी दूध ले आयी और पीने लगी.
(पापा जानते थे कि मुझे दूध की ताकत की आज रात ज्यादा जरूरत पड़ने वाली है. )
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थोड़ी देर में नानी बोली कि शायद वो रास्ते के सफर से थक गयी हैं और उन्हें नींद आ रही है. मम्मी ने भी नींद आने की बात कही।
तो हम सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए.
लगभग आधे घंटे के बाद पापा ने मम्मी को आवाज दी और हिला कर उठाने की कोशिश की पर मम्मी पर तो नींद की गोलियों का असर हो चूका था और वो बेहोश थी. फिर पापा ने नानी के कमरे में जा कर चेक किया, पर नानी भी सारे गधे घोड़े बेच कर सो रही थीं.
पापा खुश हो गए और मेरे कमरे में आ गए.
मैं तो जाने कब से पापा का इन्तजार कर ही रही थी.
तो आखिर मेरी गांड के उद्धघाटन का शुभ महूर्त भी आ ही गया था. वो भी मेरे अपने प्यारे पापा के हाथों (मतलब उनके लौड़े के द्वारा).