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Update 15
(डिबेट वाला दिन)
(डिबेट वाला दिन)

”काव्या, वीर की छाती पे बैठ उसे गीली–गीली पप्पियाँ कर रही थी”
हटो….अरे हटो ना, उसे अपने ऊपर से हटाने के लिए वीर हाथ–पैर चलने लगा…… तो उसकी नींद खुल गई..
देखा तो उसके मुंह पर गीला टॉवेल था जो उसके दोस्त ने गलती से उसके ऊपर फेक दिया था….
वीर : अबे ! देख के चीजे फेंका कर ना
फ्रेंड : अरे, उठ भी जा….. कब तक सोता रहेगा…


काव्या, उठते ही मेडिटेशन करने लगी…. आज के दिन उसे फोकस की सख्त आवश्यकता थी…. डिबेट में ध्यान से सुनना और अपने काउंटर पॉइंट्स तैयार रखना सबसे जरूरी बात थी…….

खैर, कुछ देर ध्यान लगाने मात्र से ही काव्या को काफी हल्का महसूस होने लगा…. नाश्ते का टाइम हो रहा था इसलिए वो किचेन में गई और
गुनगुनाते हुए नाश्ता बनाने लगी…

याद आने से, तेरे जाने से, जान जा रही है
तभी, रिया किचेन के अन्दर आते ही “क्या बात है, भाभी” आज तो गाना गुनगुनाया जा रहा है….
काव्या (

रिया : मतलब आपको भाई की याद नहीं आ रही??
काव्या : मैने ऐसा तो नहीं कहा….
रिया : मतलब आ रही है !!
काव्या :

रिया : अरे आप तो चुप ही हो गई,,,, ज्यादा याद आ रही हो तो फोन कर लो ना…. वैसे भी बेटू, कुछ दिन नहीं आने वाला
काव्या : हम्म… थोड़ी देर से कर लूंगी…
रिया : अरे, भाभी ! आप जाओ ना….. ये मै सब सम्हाल लूंगी…..
काव्या, कमरे में गई और वीर को फोन लगाते हुए

वीर : हेलो !!
काव्या : हम्म……. अपने कहा था, बाद में इंटरव्यू के बारे में बताओगे फिर कॉल क्यूं नहीं किया….
वीर : अरे वाह !! दूर जाते ही, “मेरी बिल्ली शिकायतें करना सीख गई”….
काव्या : हां तो करूंगी ही ना…. इंटरव्यू के बाद वहां रुकने वाले हो ये बात मुझे दी ! से पता चल रही है, आपने क्यों नहीं बताई…..
वीर : ठीक है, तो फिर मैं आ जाता हूं…
काव्या : ऐसी बात नहीं है, आप रुको जब तक आपका काम न हो जाए…..
वीर : ये हुई न अच्छी बीवी वाली बात…. अब एक गुड न्यूज सुनो….
“ इस बार का इंटरव्यू, मेरा आज तक का सबसे बेस्ट इंटरव्यू था “
काव्या : आप हो ही इतने इंप्रेसिव,

वीर (मन में) :


काव्या : मुझे पता है, आप मेरे डिपार्टमेंट के किसी ग्रुप से जुड़े हो ना….
वीर : हां–हां… वहीं से पता लगा..
काव्या : आपको मेरी इतनी चिंता करने की जरूरत नहीं !!
वीर : ठीक है, तो... किसकी करूं ये भी बता दो…
काव्या : आप भी न…. मै आपको डिबेट में जीतकर सरप्राइज़ करना चाहती थी..
वीर : चलो कोई बात नहीं…. अपना मूड फ्रेश रखना और बढ़िया से कॉलेज जाके डिबेट करना…….. रखता हूं, बाय !!
काव्या :


काव्या के माता–पिता को किरण की जानकारी मिली कि वो किसके साथ भागी है, परन्तु कहां गई…. इसका उन्हें अभी पता नहीं चला..
कुछ दिन पहले, वीर से हुई बातचीत से उन्हें ये तो समझ आ गया था…. “अब शायद ही कभी…. काव्या उनके पास आए”…..
|वीर ने काव्या से उनकी बात कराने लिए कहा था, पर आज तक उनके पास कोई रिटर्न कॉल नहीं गया|
काव्या के पिता : ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है, जब तक उसकी शादी नहीं हुई थी तब तक जो किया सो किया…… लेकिन अब उसे खुद का ठिकाना मिल गया है…… तेरी वजह से सोने के अंडे देने वाली मुर्गी मेरे हाथों से निकल गई….
काव्या की मां : हां–हां सब मेरी ही गलती है, ना…. राजकुमारी थी वो इस घर की, उल्टा मुझे तो उसकी सेवा करनी चाहिए थी…
काव्या के पिता : अरे भाग्यवान, हमेशा उल्टा क्यूँ सोचती हो, जरा दिमाग से काम लो, अगर तुम उससे बना के रखती तो हम उसके ससुराल वालों से कितना कुछ ऐंठ सकते थे….
काव्या की मां : देखिए जी मेरी सिर्फ एक ही बेटी है, “किरण”….. अब तक इसे पाल रहे थे, कि….. बुढ़ापे का सहारा बनेगी…… पर, जब ये हाथ से निकल ही गई है तो….. बना के रखने से भी क्या फायदा……
काव्या के पिता पैर पटकते हुए बाहर चले गए, "तुमसे तो बात ही करना बेकार है"…

यशस्वी आज काफी खुश थीं, क्योंकि “कल से उसके पापा वापिस से एज अ डॉक्टर ज्वाइन करने वाले हैं”
वो फटाफट तैयार हुई और काव्या के घर के लिए निकल गई…… (रिया ने गेट खोला)
रिया : आज इतनी जल्दी !
यशस्वी : हां, आपको पता है, “पापा वही अस्पताल ज्वाइन करने वाले है, जिसमें आपकी मां जाती है”….
रिया : ज्वाइन करने वाले हैं, मतलब…

यशस्वी : पहले मेरे पापा डॉक्टर ही थे, वो तो मेरी वजह से स्कूल में पढ़ाने लगे थे…
रिया : ओह ! तो ये बात है..
यशस्वी : हम्म…. काव्या दी कहा है ? आज उन्हीं के लिए ही तो जल्दी आई हूं..
रिया : भाभी तो अपने कमरे में ही होंगी…
यशस्वी जैसे ही काव्या के रूम पहुंची
काव्या : अरे, आज जल्दी आ गई ??
यशस्वी : हां, जल्दी से रेडी हो जाओ….. आपको एक अच्छी जगह ले चलती हूं..
काव्या : कहां ?
यशस्वी : अरे ! आप तैयार तो हो…
थोड़ी देर बाद, काव्या के तैयार होते ही, दोनो निकल पड़ी… कॉलेज की ओर
काव्या : अरे ! हम तो कॉलेज ही जा रहे है….
यशस्वी : नहीं, हम अभी कॉलेज नहीं जा रहे और उसने अगले टर्न से गाड़ी मोड़ दी…..
कुछ देर बाद दोनों, डैम किनारे बने, “फूलों के बगीचे” में थी….. “ये मेरे पापा के एक दोस्त का गार्डन है, मै कभी–कभी यहां आ जाती हूं”…… यहां पर, “फूलों की खुशबू और पानी के ऊपर से चलने वाली हवा” मूड को एकदम तरोताजा कर देती है….
दोनों घास पे बैठी, यहां–वहां की बातें करती रही…. और लगभग 20 मिनिट बाद……. कॉलेज के लिए निकल गई…

काव्या, क्लास में पहुंचते ही संकलित के पीछे वाली बेंच पे बैठते हुए...... तो आज के लिए रेडी हो ??
संकलित : हां भ…

उनसे थोड़ी ही दूर बैठी जानवी, लकी से बातें कर रही थी…..
लकी : साथ में डिबेट है तो क्या ??…..

जानवी ; पता नहीं, लेकिन वो आजकल उसी के पास ही बैठती है..
लकी : पता कर, कही इनके बीच कुछ चल तो नहीं रहा…
जानवी : पर काव्या, वैसी लड़की नहीं है…
लकी : अरे, इसको भी अब नए लंड का चस्का लग गया होगा क्या पता इसीलिए ही….. उसके आसपास मंडराती हो…
जानवी : पर…
लकी : पर वर कुछ नहीं….. अपना भूल गई कुतिया, एक बार चुदने के बाद से….. तेरा अब, एक से जी कहां भरता है….. “जितने मिल जाए तेरे लिए उनते कम है”
जानवी : ठीक है….. (मन)

जानवी जो काव्या के साथ लगभग सबसे पीछे बैठा करती थी….. मन मारके आगे से सेकंड बेंच जिसमें काव्या बैठी थी….. "बैठने चली आई”
जानवी, काव्या और संकलित दोनों को बोहोत ध्यान से देखती रही, कही कोई हिंट मिल जाए….
जानवी : और क्या बातें चल रही है ?
काव्या :

संकलित : कुछ नहीं, आज जो डिबेट है , बस उसी पर चर्चा हो रही थी !!
जानवी (काव्या के कान में) : वैसे संकलित भी अच्छा लड़का है…
काव्या : अंदर ही अंदर (


जानवी को, न उन दोनो की बातचीत से कुछ समझ आया…….न ही उसके द्वारा छोड़े गए तीर ने…. कुछ असर दिखाया, काव्या का रिएक्शन एकदम सामान्य था..
तभी क्लास में प्रोफेसर आ गए, और हमेशा की तरह 3 क्लासों के बाद ब्रेक हुआ…

यशस्वी : क्या हुआ दी, क्या आज भी “जानवी की बच्ची” आपको कहीं ले जाना चाहती थी..
काव्या : अरे नहीं, आज तो सब ठीक था…
और दोनो आज क्लासेस में क्या–क्या मज़ेदार हुआ इस पर चर्चा करने लगी, साथ ही “संकलित वाली बात” पे दोनों बोहोत हंसी….
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दूसरी तरफ जानवी, लकी और सोनू :
जानवी : मैने बोला था ना, उनके बीच ऐसा कुछ नहीं….
लकी : हां ठीक है…. ठीक है !!
सोनू : भाई, मुझे पहले भेज ही रहे हो तो क्यूँ ना….. मै इसे अपने साथ ही अड्डे पे ले जाऊं…
जानवी : नहीं..नहीं, मै नहीं जाऊंगी तुम्हारे किसी अड्डे–वड्डे पे..
लकी : ज्यादा नखरे मत दिखा, आज उस कुतिया को भी वही लाएंगे और साथ में वो छोटी फुलझड़ी……
जानवी : म..म….मतलब
सोनू : मतलब ये कि आज उन दोनो को उठाने वाले है…
“जानवी की सिट्टी–पिट्टी गुल”…
सोनू (उसके गले में हाथ डालते हुए) : टेंशन क्यों लेती है रानी, जब तक वो दोनों आएंगी “अपन एकाद राउंड खेल लेंगे”
लकी : हां, तू छुट्टी के बाद सोनू के साथ निकल…. “मै डिबेट के बाद दोनों को लेके आता हूं”
सोनू : भाई बोहोत मजा आएगा, “जब ये दोनों अपने आगे कुतिया बनी चुद रही होंगी”…
लकी (कामिनी मुस्कान के साथ) : अब ये दोनों अपनी परमानेंट रंडिया बनेंगी, जब चाहेंगे तब चोदेंगे, इनके घरवालों के सामने भी चोदेंगे और इनके घरों की सारी… हा हा हा..
ठीक है भाई ! तुम उन दोनो को लेके पहुँचो, तब तक में सारा इंतेज़ाम करता हूं…. “एक हफ्ते तक इन रंडियों को कहीं नहीं……जाने देंगे”
यहां इनका सॉलिड प्लान तैयार था…. ब्रेक खत्म हुआ और फिर से क्लासेस चलने लगी…

अब सारी क्लासेस खत्म हो चुकी थी, यशस्वी सबसे आगे बैठी काव्या का इंतेज़ार कर रही थी…. थोड़ी ही देर बाद काव्या आई और उसके साथ ही बैठ गई…
दूसरे कॉलेजों से भी बच्चे आ चुके थे…. और अलग अलग विषयों पर तर्क–वितर्क का कार्यक्रम चालू हुआ….
सभी की परफोर्मेंस देख, जहां यशस्वी को मजा आ रहा था, वहीं काव्या के ऊपर प्रेशर बढ़ रहा था… उसका नंबर बस आने वाला था…
और थोड़ी ही देर बाद काव्या और संकलित का नाम एनाउंस हुआ, “अब दोनो स्टेज पर किसी अन्य कॉलेज के बच्चों के सामने बैठे थे”…
काव्या स्टेज पर जाते ही एकदम ब्लैंक हो गई, पर संकलित ने शुरुआत से ही मोर्चा सम्हाल लिया और सामने वाली टीम को लीड नहीं लेने दी…
कुछ देर सुनते रहने के बाद काव्या ने वापिस से कम्बैक किया और लगातार जवाब देती रही….
समानता (इक्वलिटी) पर ये बहस खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी, दोनो ओर से बराबर की टक्कर थी… दोनों ही ग्रुप एक दूसरे के तर्कों को काट देने में सक्षम थे…
माहौल एक दम टेंस था…. संकलित और काव्या एग्रेसिवली काउंटर करने के साथ ही….अब एक नया प्वाइंट उन्हें दे देते ताकि उनका अगला प्वाइंट वही हो जो उन्होंने उन्हें दिया ताकि फिर वो उसका काउंटर आसानी से कर सके….
बहस का अंत काव्या की इस बात से हुआ :

इसका भी सामने से काउंटर किया गया लेकिन अब समय हो चुका था, “काव्या और संकलित की टीम” द्वारा दिए गए काउंटर्स को सबसे अधिक पॉइंट्स मिले और उन्हें विजेता घोषित कर दिया गया…

काव्या और संकलित को संयुक्त रूप से ट्रॉफी और एक–एक मेडल दिया गया, ट्रॉफी तो हिस्ट्री डिपार्टमेंट के हेड के पास चली गई, लेकिन दोनों के ही गले में….. जीत के मेडल सुशोभित थे..
अंत में सबके लिए लंच और जलपान की व्यवस्था की गई थी, तो….. सभी ने अपने–अपने पैकेट्स लिए और मील एंजॉय करने लगे….
काव्या मेडल को देख–देख खुश हो रही थी

यशस्वी : दी ! मुझे तो बहुत मजा आया
काव्या : हम्म मुझे भी…
यशस्वी : अगले साल, हमें भी इसी प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिलेगा
काव्या : जरूर….. (और दोनो लंच करने के साथ ही…… जल्दी से घर के लिए निकल गई )
हिस्ट्री डिपार्टमेंट को छोड़कर सभी की छुट्टी पहले ही हो चुकी थी इसलिए रास्ते में गाड़ियां काफी कम थी….
यशस्वी, बड़े आराम से गुनगुनाते हुए स्कूटी चलाये जा रही थी रास्ते के दोनों और काफी पेड़ थे…(लगभग 1 किमी तक, ऐसा था उसके बाद ही लोगों के घर थे, ज्यादातर कॉलेज सिटी के आउटर पार्ट्स में ही क्यूँ बनाए जाते है….

लड़का : दीदी–दीदी वहां मेरी मां है उनको चोट लग गई है, मदद कर दीजिए ना….
काव्या और यशस्वी दोनों ही, एक पल के लिए हिचकिचाई पर लड़के के पास कुल्हाड़ी देख उन्हें लगा, सच में….. ये लकड़हारा है, जिसकी मां को चोट लग गई है……. तो वो उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गई….
काव्या और यशस्वी उसके साथ ही साथ चल रहीं थी…… और बस इतना ही अंदर गई होंगी…… बाहर पेड़ो की वजह से न दिखे कि
अंदर कोई है….. तभी
अचानक पेड़ के पीछे से दो लड़के निकलके सामने आए और उन दोनो को पकड़ लिया…. “चुपचाप चलती रहो ज्यादा चालाकी दिखाने की कोशिश की तो यही काट देंगे”….
कुछ दूर तक तो दोनों चलती रहीं फिर यशस्वी ने थोड़ी हिम्मत दिखाते और एक के पैर पर बहुत जोर से मारा और दूसरे के मैन प्वाइंट पे एक लात जड़ दी….. पीछे आ रहे आदमी के पास कुल्हाड़ी थी तो वो काव्या का हाथ पकड़ आगे की ओर भागी…
जहां एक जगह टेम्पो खड़ी थी….. और उसका डाला खोले, लकी उनका ही इंतेज़ार कर रहा था….
अब काव्या और यशस्वी घिर चुकी थी, और जंगल के अंदर उन्हें कौन बचाने आयेगा सोचकर ही घबरा रही थी……
काव्या : लकी हमे जाने दो, नहीं तो इसका अंजाम बोहोत बुरा होगा…
लकी : तू साली कुतिया, मुझे डराएगी, प्यार से मान जाती तो ये सब ताम जाम नहीं करना पड़ता….... ये !!! डालो रे इनको अंदर…
यशस्वी ने फाइटिंग वाला स्टांस लिया….. पर दोनो लड़के एकसाथ आ गए, उसने एक को मुक्का मारा लेकिन वो साइड हो गया….
और दोनो लड़कों ने उसके हाथ पकड़ लिए, काव्या जो घरेलू हिंसा की वजह से मारधाड़ से दूर थी उसके हाथ पांव जम गए…
तीसरा बंदे ने यशस्वी के ऊपर कुल्हाड़ी रख, काव्या को टेम्पो के अंदर जाने के लिए कहा….. पर वो ज़रा भी नहीं हिली…..

तो उसने गुस्से से “जाती है कि” ..… इससे पहले वो कुछ कहता या करता… एक डैगर आके उसके हाथ में घुस गया…


और कुल्हाड़ी छूटकर उसके हाथ से नीचे गिर गई, साथ ही “एक भयानक चीख पेड़ो के बीच गूंजी” ……. जिससे आसपास के सारे पक्षी उड़ गए !!
दो लड़के जो यशस्वी को पकड़े खड़े थे, चारों और नजर दौड़ा के देखने लगे पर उन्हें पेड़ों के अलावा कुछ....दिखाई नहीं दिया…. उन दोनो के साथ अब लकी की भी फट रही थी
उनके लिए ये सब अनएक्सपेक्टेड था….. वो तो इन दो लड़कियों के लिए, तैयारी करके आए थे…
लकी : अरे तुम दोनों देख क्या रहे हो.... डालो इन्हें अंदर !!
अभी वो दोनो यशस्वी को पकड़े टेम्पो की ओर बढ़े ही थे, कि उनकी गर्दन पे आके एक–एक डार्ट घुस आया…… डार्ट हाइली प्वाइज़न्ड होने की वजह से वो दोनो तुरंत नीचे गिर गए….
लकी की फट रही थी फिर भी किसी तरह उसने वो डैगर उठाया जो उसके आदमी के हाथ में आ घुसा था और हिम्मत जुटा के……..
“कौन है, दम है तो सामने आ”…… एक बार सामने आ गया ना ऐसी मौत दूंगा…. क

सामने से नाइटफॉल आ रही थी…. उसका कॉन्फिडेंस, उसकी वॉक, उसका औरा और डेडली प्रेजेंस सबकुछ ही इतना भयावह था…. कि यशस्वी और काव्या भी डर रही थी……
लकी ने किसी तरह हिम्मत जुटाई और अटैक किया…..

"ब्लॉक"..... अगले 5 ही सेकंड में, वो जमीन पे पड़ा था…. उसके बाद नाइटफॉल ने सबसे पहले अपनी सबसे घातक तकनीक “कंटीन्यूअस कट” का प्रयोग कर उसके एक हाथ को कंधे से काट दिया सेम वही हाल एक पैर का भी किया…..
और फिर डैगर उठा जीभ काटने के बाद उसकी पीठ पर किलर नंबर 1 (वीर) का निशान बना दिया…. दोनो डैगर को अपने पैरों में रखते हुए…. चलो तुम लोग घर जाओ….
काव्या ने अपनी आंखों से अभी–अभी जो भी देखा था…. उसके हाथ पैर कांप रहे थे….यशस्वी किसी तरह उसे बाहर स्कूटी तक ले आई…
पर काव्या वहीं बैठ के रोने लगी…..



सोनू ने जानवी को चोद–चोदकर उसकी रेल बना दी थी….. आंखों से आंसुओं के साथ काजल बह रहा था, शरीर पर जगह जगह लाल रंग के निशान थे..… और वो किसी कुतिया की तरह गांड उठाए, गले में पट्टा डाले, औंधी पड़ी थी….
सोनू : अब ये लकी कहां रह गया, आया क्यों नहीं…. उसने कॉल किया ….. रिंग जा रही थी, पर कोई उठा नहीं रहा था…
||पॉइजनस डार्ट और डैगर की वजह से तीनों लड़के तो तुरंत ही मर गए ….लेकिन लकी पे जो घाव थे वो नाइटफॉल ने दूसरे डैगर से दिए थे…. अगर जल्दी उसे इलाज मिल गया तो बच भी सकता है, नहीं तो हैवी ब्लीडिंग से वही मर जाएगा||
सोनू अब बोहोत सारे कॉल्स कर चुका था पर एक भी पिक नहीं हुआ
(मन)


सोनू ने जो इतना तामझाम जमाया था…..उसे छोड़कर जाने का वैसे ही उसका ज़रा भी….. मन नहीं था….
सोनू, जानवी की गांड पे थप्पड़ जड़ते हुए….. “रानी !! अभी तो पूरी रात बाकी है”

रिया : ये भाभी अब तक, क्यों नहीं आई ?

यशस्वी, काव्या को किसी तरह घर ले आई थी….. "रिया को उन दोनो की हालत देख कुछ समझ नहीं आया”
रिया : क्या हुआ, तुम लोगो को ??….. पर यशस्वी ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, बस काव्या को उसके रूम तक छोड़ा और चली गई….
रिया ने बार–बार काव्या से भी पूंछा, पर वो तो जैसे किसी सदमे में ही चली गई थी…. कुछ बोल ही नहीं रही थी….
अंततः हारकर उसने वीर को कॉल लगाया, पर कॉल पिक ही नहीं हुआ, रिंग जाती रही…

काव्या, जब सोकर उठी तो उसने हाथ–मुंह धो लिए…... तभी रिया, रंभा के साथ… काव्या के रूम में खाना लेके पहुंची…
रिया : भाभी खाना खा लीजिए ना…. (काव्या ने एक नज़र उसकी ओर देखा और फिर सामने देखने लगी)
रिया ने अपनी मां को इशारा किया तो उन्होंने जाकर काव्या को गले लगा लिया….
रंभा : बेटा ! क्या हुआ, अपनी मां को नहीं बताएगी ??…… “देख ! अगर आज तूने खाना नहीं खाया, तो कोई खाना नहीं खाएगा”..
उसने रोटी में सब्जी लगा के, काव्या की तरफ बढ़ाई तो वो उनके गले लग के रोने लगी…… और रोते हुए धीरे–धीरे आज घटित सारी घटना, उन्हें बताने लगी….

रंभा ने भी ज्यादा सवाल जवाब नहीं किए बस उसको खाना खिलाकर बाहर आ गई….
रंभा : आज में बहु के साथ सोऊंगी, कही रात में डर ना जाए !!
रिया : ठीक है मां…

लकी के घर कोहराम मचा था….. “वह कहीं भी रहता कॉल जरूर उठाता”…..
नाना : हरामखोर ! इस दिन के लिए तुझे प्रमोशन दिलावाया था….. अगर मेरे नाती को कुछ भी हुआ…. तो तुझे कहीं का नहीं छोडूंगा….
काफी देर यहां–वहां ढूंढने और जगह–जगह फोन लगाने के बाद भी जब लकी का पता नहीं चला तो उन्होंने पुलिस को इनफॉर्म कर दिया और पुलिस को जल्द ही उसकी लोकेशन, मिल भी गई….

वीर ने जैसे ही फोन देखा….. काफी सारे मिस्ड कॉल पड़े हुए थे, तभी उसे नाइटफॉल का वॉयस मैसेज दिखाई दिया…… जिसे सुनने के बाद उसे सारा माजरा समझ आ गया….
खैर, वीर का काम इंदौर में खत्म हो चुका है, “एक ही दिन में फ्री हो जाएगा ये उसने भी नहीं सोचा था”…… लेकिन थके होने की वजह से……. सुबह भोपाल निकलना, उसने ज्यादा सही समझा….
पर रिया से रात में ही…… एक बार बात कर ली, वो तो पहले ही समझ गई थी….. ये वीर ने ही करवाया है….. उसने लकी के लिए पहले उसे सचेत भी किया था….
रिया से काव्या की हालत जानने के बाद वीर का मन कर रहा था वो अभी भाग के वहां पहुंच जाए, पर रिया ने उसे समझाया आराम से आना भाई मां ने यहां सब सम्हाल लिया है और भाभी के साथ ही सो रही है….
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एक तरफ सोनू, “जानवी की जान निकाल रहा था” तो दूसरी ओर पुलिस ने लकी को अस्पताल में भर्ती करा दिया…… वही इंदौर में वीर की नींद गायब थी… वो जल्द से जल्द काव्या से मिलना चाहता था, तो काव्या के लिए ये पहली बार था जब वह मां के आंचल से लगकर, सारी चिंताओं से मुक्त….. चैन की नींद सो रही थी !!
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