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Incest Mukkader ka sikander

urc4me

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Hasan aur Alina Sikandar ka jhant bhi nahi ukhad sakte. Woh to Mukaddar ka sikandar hai. Khuda aise hi nahi bachaya use. Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki
 

Luckyloda

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रात अब ढलने को थी। पूरब से हल्की सी लालिमा फूट रही थी, जैसे आसमान ने खुद भी खून से रंग लिया हो।
, सर से टपकता लहू, हाथ कांप रहे थे… पर उस ज़िद्दी जानवर ने फिर भी मोटरसाइकिल की हैंडल थाम रखी थी।

ज़ोया उसके पीछे थी, दोनों हाथों से उसे थामे… कांपती, डरी हुई, आँखों से बरसते आँसू उसके पीठ पर गिर रहे थे।

"रुको मत सिकंदर… बस थोड़ी दूर और… प्लीज़…"
वो बुदबूदाई।



सामने सड़क खाली थी। फिर एक छोटा बोर्ड झूमता दिखा—"शिफ़ा क्लिनिक"।
सिकंदर ने ब्रेक लगाया, मोटरसाइकिल रुकी।
ज़ोया ने एक पल को उसकी हालत देखी—चेहरा पीला पड़ चुका था, होंठ सूख चुके थे, और आँखों में अजीब सी थकान थी… लेकिन फिर भी वो गिरा नहीं।

उसी वक्त पीछे से अलीना की काली गाड़ी तेज़ ब्रेक से रुकी।
वो फौरन उतरी, दुपट्टा खींचती हुई सिकंदर की तरफ भागी।

"सिकंदर! तुने यहाँ क्यों रोकी बाइक? इस झोपड़ी जैसे क्लिनिक में क्यों?"
उसकी साँसें उखड़ रही थीं।



सिकंदर ने उसकी तरफ देखा भी नहीं।

"सामने अस्पताल है। यहीं इलाज हो जाएगा," वो थकान में भी शांत था।



"नहीं! मैं कह रही हूँ बड़े अस्पताल चलते हैं, तुझे समझ नहीं आता क्या?"
अलीना की आवाज़ काँप रही थी—लेकिन गुस्से से नहीं, बेबसी से। सारे गार्ड... उसके आगे पीछे करने वाले लोग.. सब हैरान थे.. की मिलाकये नवाब..... एक लड़के के सामने इतनी बेबस क्यों है....



सिकंदर ने उसके चेहरे की तरफ देखा। कुछ देर तक बस उसे घूरता रहा… फिर बोला..



"मेरे पास पैसे नहीं है, मैडम। बड़े अस्पताल afford नहीं कर सकता।"



ये सुनकर अलीना का दिल जैसे किसी ने निचोड़ दिया हो… आँखें खुली की खुली रह गईं।
उसने धीरे से कहा:

"तुझे पैसो की चिंता क्यों है...? मैं हूँ न… मैं सब करूँगी… बस चल ना मेरे साथ…"



सिकंदर एकदम से अपना सर झटका दिया।
उसने अलीना की ओर देखा — उसकी आँखें अब लाल हो चुकी थीं।

"सिकंदर किसी का एहसान नहीं लेता मेमसाहब l और किसी के सामने हाथ भी नहीं फैलता.... आपको आपकी दौलत मुबारक....मै अपनी गरीबी मे ख़ुश हूँ..।"

फिर धीरे से अपने जख्मो को साहलता हुवा बोलता है..

"आज अगर ज़िंदा भी रहूं… तो अपने दम पर। तेरे तेरे अहसानो तले दब कर नहीं।"



अलीना के सकपका जाती है...
उसके होंठ कांपे, पर कोई शब्द नहीं निकला। वो चीख कर कहना चाहती थी... ये सारी दौलत तुम्हारी है... तू मेरा बच्चा है.... मेरी हर चीज तेरी है... पर हिम्मत नहीं हुवी..

ज़ोया, जो अब तक चुप थी, आगे बढ़ी…
उसने सिकंदर का हाथ थामा और बोली:

"चलो अंदर… मैं हूँ ना तुम्हारे साथ।"



सिकंदर ने फिर एक नज़र अलीना पर डाली — जैसे कोई अजनबी देखता है एक दूरसे को...।

वो चुपचाप ज़ोया के साथ क्लिनिक के अंदर चला गया…
अलीना वहीं खड़ी रही — हवा में जमी हुई एक टूटी हुई औरत की तरह…फिर भाग कर उनके पीछे क्लिनिक मे घुस गयी


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क्लिनिक के दरवाज़े पर एक पुरानी घंटी की आवाज़ होती है — टन-टन — और फिर तीन परछाइयाँ भीतर दाख़िल होती हैं।
सिकंदर के खून से सने कपड़े, लड़खड़ाते क़दम, फिर भी आँखों में वही ज़िद—“मैं ठीक हूँ ” वाली ज़िद।

नर्स (घबराई हुई, स्टूल से उठती है):
“ओह माय गॉड! इतना खून… कैसे हुवा ये...

ज़ोया- गोली लगी है...


नर्स - ये तो पुलिस केस है... मै अभी पुलिस को कॉल करती हूँ..

सिकंदर ( उसे रोकते हुवे) - नहीं.. नहीं कोई फ़ायदा नहीं... जिसने ये किया है.. पुलिस उसकी मुट्ठी मै है.. पुलिस कुछ नहीं करेगी...

अलीना का चेहराह झुक जाता है... आँखों से फिर से बरसात सुरु होने लगती है.. कालेजा कापने लगता है.. पर वो कर भी क्या सकती थी... गलती तो हो गयी है उस से..


नर्स( चिंता और दया से सिकंदर के तरफ देखते हुवे) डॉक्टर अभी शहर से बाहर हैं… कम से कम दो घंटे लगेंगे उन्हें आने में…”





सिकंदर, अपनी पेशानी से लहू पोंछता है,
“हाहाहा तब तक तो मैं मर जाऊंगा ?”

ज़ोया, कांपते होंठों से उसके हाथ पकड़ती है —
“प्लीज़… प्लीज़ ऐसा मत बोलो… कुछ नहीं होगा तुम्हें… तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी…”
उसकी आँखों से आँसू उसकी हथेलियों पर गिरते हैं, पर सिकंदर के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कराहट उभर आती है… दर्द में भी ठहाका मारने की हिम्मत लिए हुए।

तभी अलिना दौड़ती है…
, एक टूटी हुई माँ.. जो अपने बच्चे के मुँह से निकले शब्द सुन नहीं पायी।
वो सिकंदर के पास आकर उसे अपने सीने से लगाना चाहती है — पर…

सिकंदर का हाथ एक झटके में उसे दूर कर देता है।
उसका चेहरा तमतमाया हुआ,
“हाथ मत लगा मुझे…”

अलिना वहीं थम जाती है… मानो किसी ने उसके सीने के आर-पार छुरा घोंप दिया हो।
वो बस वहीं खड़ी उसे अपनी बेबस आँखों देखती रहती है — बेबस, लाचार — जैसे वक्त का हर सितम उसी पर ढह गया हो।

अलिना काँपती आवाज़ में:
“मैं दूसरी डॉक्टर साहिबा को कॉल कर रही हूँ… अभी बुलाती हूँ यहां…”

सिकंदर, जो अब तक कुर्सी पर बैठ गया था, वो फिर उठकर चिल्ला पड़ता है —
“तुझे सुनाई नहीं देता क्या? क्यों मेरे पीछे पड़ी है तू?
जा यहां से! जितना तेरे बेटे को मारा, उससे हज़ार गुना तूने मुझे ज़ख़्मी कर दिया…
तेरा हिसाब बराबर हो गया अलिना …अब मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे... मुझे वो करने पर मजबूर मत कर जो मेरे बाप ने तेरे साथ किया था!”

अलिना एक पल को डर कर पीछे हट जाती है…आँसू आँखों में नहीं हैं, पर दर्द उसकी साँसों में लरज़ रहा है।
फिर भी, वो माँ है — ज़ुबान की तल्ख़ी पर बेटे की तकलीफ़ भारी है।

धीरे से पास आती है, जैसे कोई बेज़ुबान अपनी औलाद के दर्द को सहलाने की कोशिश करता है।
नज़रों से ही उसे सहलाने लगती है — वो नज़रों में अफसोस नहीं, दुआ है… इंतज़ार है… और टूट चुकी उम्मीदें भी।

ज़ोया चुप है, उसकी आँखें भी सिकंदर की धड़कनें गिन रही हैं।
वो कुछ नहीं कह रही, अब उसके आंसू भी सुख चूके है।
पर अब उसे यकीन हो गया था की सिकंदर का इस औरत से कुछ तो रिस्ता है...पर अब भी वो इस नतीजे पर नहीं पहुंची थी की ये औरत सिकंदर की माँ है..


सिकंदर नर्स की ओर देखता है:
“सर्जरी का सामान निकालो…
मैं खुद निकालूंगा गोली…

नर्स सन्न… अलिना सन्न… ज़ोया सन्न… पूरा क्लिनिक एक पल के लिए रुक जाता है।
जैसे वक़्त ने भी उसकी जिद को सलाम किया हो।







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छोटे से टेबल पर रखे औज़ारों से उठती स्टील की ठंडी चमक उस वक़्त के सन्नाटे को और भारी बना रही है।
सिकंदर, अब कमीज़ की आस्तीनें मोड़ चुका है, अपनी कमीज़ को फाड़कर अपनी जख़्मी छाती तक रास्ता बना चुका है।
उसकी आँखों में दर्द नहीं, बस जिद है… और लहू बह रहा है जैसे हर बूंद कोई पुराना लम्हा बहा रही हो।






क्लिनिक का कमरा दवाओं की गंध से भरा है।
नर्स धीरे-धीरे सर्जरी के सारे औज़ार टेबल पर रख रही है — कैंची, सुई, टांके का धागा, रूई, spirit — हर चीज़ की आवाज़ उस भयानक खामोशी को चीर रही है।

नर्स
"'प्लीज़… प्लीज़ मत करो ऐसा बेटा … infection हो सकता है, shock लग सकता है…”


सिकंदर - आप चिंता मत करो माँ जी... मुझे आता है ये करना...मुझे सिखाया गया है...





सिकंदर कुर्सी पर बैठा है,सीने का गहरा ज़ख्म साफ दिखाई दे रहा था …खून उसके मर्दानी जिस्म पर सुख कर चिपक गयी थी।
उसकी आँखें बिल्कुल शांत हैं — जैसे उस दर्द को महसूस ही नहीं कर रहा… या सायद दिखाना नहीं चाहता था।

दूर किसी घर से रेडियो की आवाज आ रही थी..गाना बज रहा है...

"उम्र भर जी न सके गे... किसी के हो ना सकेंगे"
"किसी बेगाने के खातिर तुमने अपनों को भुला दिया.."

ज़ोया, सिकंदर के पास बैठी है, उसकी आँखें लगातार बह रही हैं — पर वो ज़ोर से नहीं रो रही… बस उसकी साँसें सिकंदर के साथ डोल रही हैं।
वो हर पल उसे देख रही है — जैसे हर लम्हा उसकी ज़िंदगी का आख़िरी हो।


“प्लीज़… मेरी जान की कसम… मत करो ये खुद से… मै नहीं देख पायूँगी...मुझे कुछ हो जाएगा…”




नर्स (धीरे से):
“ये लो … सब कुछ तैयार है…”

सिकंदर बिना कुछ बोले, सुई उठाता है… spirit में cotton डुबोकर अपना घाव साफ करने लगता है…

ज़ोया (धीमे से, काँपती आवाज़ में):
“किसे साबित कर रहे हो, सिकंदर...?
तुम्हे किसी को साबित करने की जरुरत नहीं...मै जानती हूँ... खु*दा जनता है.. तुम कितने मज़बूत हो...

सिकंदर उसकी तरफ देखता है, मगर कुछ नहीं कहता… बस needle उठाता है…

सामने — बेंच पर थोड़ी दूरी पर — बैठी होती है अलीना।
उसकी आँखें सिकंदर पर ही जमी हैं…
हर बार जब वो सुई अपनी चमड़ी में चुभाता है, अलीना का दिल चीख उठता है …

वो अपने हाथ आपस में भींच लेती है… आँखें बंद करती है… फिर खोल देती है…
हर बार जब सिकंदर दर्द से सांस रोकता है, अलीना जैसे खुद को घुटते हुए पाती है।

साथ मे गाने की आवाज... माहौल को और रुवासी बना रहा था...

"मेरे यादो मै तुम हो... मेरे सासों मै तुम हो.."
"मगर तुम जाने कैसी... गलतफेमि मे गुम हो .."
तुम्हारे दिल को मं*दिर...दे*वता तुमको बना लिया..







अलीना (मन ही मन):
“खु*दा मुझे मेरी जान को लोटा दे....मर गयी हूँ इसके बिना.... अब बस कर... अब इसे मेरी आँचल मै डाल दे..

सिकंदर खुद अपनी छाती में सुई डालता है… और धीरे-धीरे टांका लगाने लगता है…

ज़ोया (फफककर):
“आआआ... आराम से करो ना... दर्द होगा ना..”

सिकंदर का हाथ कुछ पल के लिए रुकता है… वो गहरी साँस लेता है… और बोलता है —

सिकंदर (धीमे से, प्यार से):
“अच्छा मेरे बदले का दर्द मेरी जंगली बिल्ली को हो रही है क्या”?



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सुब्ह का वक़्त… सात बज चुके थे। आसमान में हल्की नीली रौशनी थी, पर रात की उदासी अब भी हवा में तैर रही थी।

क्लिनिक के भीतर सिला सिलाई पूरी हो चुकी थी।
नर्स ने धीमे स्वर में कहा,
“अब ज़्यादा दर्द नहीं होगा... बस थोड़ी देर में आराम आ जाएगा। लेकिन एक पेन किलर ज़रूर ले लेना।”

ज़ोया धीरे से उठी, उसकी आंखें साफ करती हुवी बोली।
“मैं लेकर आती हूँ… पास में ही मेडिकल है।”
और वो तेज़ क़दमों से बाहर चली गई।

सिकंदर ने गहरी सांस ली, और थोड़ा लड़खड़ाते हुए क्लिनिक के दरवाज़े तक पहुंचा। जैसे ही उसने बाहर कदम रखा…

अलीना ने तुरंत नज़रें उठा दीं।
वो वहीं पास के बेंच पर बैठी थी…

धीरे से उठी। फिर कुछ हिम्मत बटोरकर बोली —
“वो… मैं कह रही थी कि… अब चलो ना, मैं तुम्हें घर छोड़ देती हूँ। तुम्हारी मोटरसाइकिल बाद में मंगवा लेंगे…”

सिकंदर थमा, फिर बिना उसकी ओर देखे ठंडी आवाज़ में बोला —
“मैडम जी… आप बड़े अस्पताल जाइए। आपका बेटा वहां इंतज़ार कर रहा होगा।”

ये लफ्ज़ सुनते ही अलीना की फफक गई। उसकी आंखें फिर भीग गईं। वो कुछ पल देखती रही सिकंदर को… फिर अचानक पीछे से दौड़कर उसे पकड़ लिया।

वो अब उसकी पीठ से लगकर बिलख रही थी…

“ऐसी रुसवाई मत कर …
तेरे बिना मर जाऊंगी रे…
चल ना… मेरे साथ चल… घर चल…


सिकंदर जैसे जमी हुई बर्फ़ बन गया था। उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की,

“छोड़… छोड़ मुझे…
अब मैं तुझे और तेरी यादों को अपनी ज़िंदगी से निकाल चुका हूं…तुझे मै किसी बुरे सपने की तरह भुला चूका हूँ... अब मुझे चैन से जीने दे....मुझे अकेला रहने दे… अब मुझे तेरी जरुरत नहीं है...तू अपनी ज़िन्दगी मे ख़ुश रह मे अपनी मे ”

अलीना की चीख अब उसकी सांसों में घुल चुकी थी।

वो सिकंदर को और ज़ोर से पकड़ते हुए बोली —
“ऐसा मत बोल… सिकंदर… तुझे खु*दा का वास्ता है
चाहे मुझे मार डाल…
कहीं बांध कर रख…लाख सितम कर मुझपे..उह तक नहीं करुँगी...किसी कोने में पड़े रहूंगी…नमक रोटी भी देगा खाने को...खा लुंगी....बस… मुझे अपने पास रख ले…सब छोड़ कर तेरे पास आ जाउंगी....


और वहीं सड़क के किनारे, टूटती सुबह की रौशनी में एक माँ, अपनी औलाद के पैरों में गिरी थी…





---

… मगर सिकंदर के आँखों मे वो पानी नहीं था जो नर्मी लाए… वो ठंडी, बर्फ़ीली नमी थी… जो पत्थर को भी जमा दे।

वो अलीना को खुद से अलग करता है —
“कहा ना… दूर रह मुझसे!
तू मेरी माँ नहीं है… तूने माँ कहलाने का हक़ उसी दिन खो दिया था,
जिस दिन तूने मुझे छोड़ कर उस आदमी का हाथ थामा था।”

बड़ा ग़ुमान था ना तुझे... एक नवाब की बीवी होने पर... अब कहाँ गयी तेरी वो अकड़... तेरा वो गुरुर... क्या हुवा नये बेटे और शोहर से प्यार नहीं मिल रहा क्या....


अलीना फूट-फूट कर रो रही थी…

""सिकंदर तू बिगड़ गया है... सिकंदर तुझे सहबाज से सीखना चाहिए.. सिकंदर बाहर कोई पूछे तो बताना मै यहाँ काम करता हूँ....बहुत परवाह थी ना तुझे अपनी शोहर के इज़्ज़त की...शोहर के इज़्ज़त के लिए मुझे बेटा कहने से डरती थी ना तू... तो अब कहाँ गयी तेरी वो नवाबी ठाठ... अब तुझे परवा नहीं है इज़्ज़त की जो बिच सड़क पर तमाशा कर रही है..."""

( ये सब क्या माजरा है वो जब फ़्लैशबैक सुरु होगा तब पता चलेगा)


अलीना ( सिकंदर को जोर से थामे हुवे.. बिलकते हुवे)


"गलती हो गयी... मेरी मति मारी गयी थी... मेरे कलेज़े को लकवा मार गया था....तुझे समझ नहीं पायी.. जो तुझे मेने नज़र अंदाज किया.. मुझे मार.. गाली दे... पर अपने पास रख ले..."



सिकंदर ( भींगी आँखों से.....हाँ अब उसकी आँखे भींग गयी थी)
क्या बोली तू... मुझे समझ नहीं पायी... तुझे इतना भी नहीं पता.. की एक माँ और बेटे का रिश्ता पहले से ही समझा समझाया हुवा होता है...एक माँ को अपने बच्चे को समझने की जरूरत नहीं परती... तू सच क्यों नहीं बोलती तेरे ऊपर उन दोनों बाप बेटे की खुमारी चढ़ी थी... तू सुरु से ही बदचलन थी.. मेरा बाप भी तेरी काली करतूते जान गया होगा.. इस लिए तुझे किसी बाजारू औरत के तरह इस्तमाल कर के फेक दिया.. और अब तू उन दोनों बाप बेटे की रखेल... ( अलीना उसके होंठ पर हाथ रख कर उसे चुप करा देती है)


अलीना ( अब उसका चहेरा सख्त हो गया था.. ऐसा लग रहा था.. उसके जिस्म मे जान ही ना बची हो.. )
"बस कर... आगे मत बोल... मर जाउंगी मै...

इतना बोल बेजान सी अलीना अपने गाड़ी के तरफ बढ़ने लगती है....अभी जो उसने सुना.. उसने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था उसका सिकंदर उस से ऐसी बात करेगा...













तभी पास से ज़ोया लौटती है… उसके हाथ में दवाईयां थीं।
वो दोनों को उस हाल में देखती है…
पर कुछ नहीं कहती… बस सिकंदर की आंखों में देखती है…
और धीरे से आकर उसके कंधे पर हाथ रखती है।

सिकंदर अपनी नज़रें झुका लेता है।
वो बस एक शब्द कहता है —

“चलो ज़ोया…”

और वो दोनों वहां से निकल जाते हैं… पीछे अलीना बस उसे जाते हुवे देखती रहती है...



“मुस्ताक़.... हॉस्पिटल चलो सहबाज को होस आ गया होगा ” उसकी आवाज से लाग रहा था.. वो बहुत जख़्मी है.. ये जख्म रूहानी थी... इस पर मरहम भी नहीं लग सकता था...




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सुबह का वक़्त था … हॉस्पिटल के रास्ते पर एक काली SUV तेज़ रफ़्तार से चल रही थी… अंदर बैठी थी अलिना—खामोश, खोई हुई,।



अलीना की आँखें खिड़की से बाहर देख रही होती हैं… मगर उसके ज़हन में वो नज़ारा घूम रहा था जब सिकंदर उसकी तरफ देखा भी नहीं… जब वो खून से लथपथ था और फिर भी उसे अजनबी की तरह काट गया।

अलीना (मन ही मन सोचती है):
"क्या अब वो मुझे अपनी नफ़रत के भी क़ाबिल नहीं समझता…?" मुझे तो देखना भी नहीं चाहता...
पाता नहीं कैसे दिन देखे होंगे मेरे लाल ने जो इतना सख्त हो गया हैं..


अचानक उसकी सोच टूटती है जब वो सामने बैठे मुसताक की तरफ़ देखती है।

अलीना (धीरे, मगर बेसाख्ता):
"मुसताक… आजकल के लड़कों को कैसी गाड़ियाँ पसंद आती हैं?"

मुसताक थोड़ी देर सकपका जाता है… फिर संयम से जवाब देता है—

मुस्ताक़:
"जी मैडम… लड़कों को तो आजकल जीप ही पसंद आती हैं… बड़ी और भारी सी…"

अलीना (हल्की सी सिसकती मुस्कान के साथ):
"एक अच्छी, महंगी जीप बुक करवाओ… "

मुस्ताक़:
"जी मैडम…"

गाड़ी रुकती है… सामने अस्पताल का दरवाज़ा है… अलिना उतरती है, धूप की तेज़ रोशनी उसकी आंखों में चुभती है, लेकिन उसके चेहरे पर बस खालीपन है।


हॉस्पिटल रूम — सहबाज बेहोश पड़ा है… चुप, सांसें मशीनों के भरोसे चल रही हैं। अलिना जाकर उसके सिर पर हाथ रखती है… धीरे से उसके पास बैठती है… उसकी आंखें भीग चुकी हैं, मगर आंसू रोक रही है।

अलीना (धीरे से बुदबुदाते हुए):
"क्या जरुरत थी उस लड़की को हाथ लगाने की... सब मेरी गलती है ना मै तुझे वहां भेजती ना तू उस से लड़ता"

फिर वो सामने खड़ी एक नोकरानी को इशारे से बुलाती है। उसका नाम है – “सलीमा”

अलीना:
"सुन सलीमा… तू आज ही रहमत नगर जा… वहाँ कुएं वाली सोसाइटी में एक लड़का आया है नया…"

सलीमा (झुकते हुए):
"जी मैडम…"

अलीना (गंभीर, ठंडी आवाज़ में):
"आज से तू ही उसके लिए खाना बनाएगी, उसके कपड़े धोएगी, ज़रूरत की हर चीज़ देखेगी…
उसे अगर कुछ भी चाहिए, तू मुझे बताएगी…"

(फिर वो अपना बैग खोलती है और उसमें से नोटों की एक मोटी गड्डी निकालती है)

अलीना:
"ले ये… जा वहाँ एक अच्छा सा सोफा टीवी ख़रीद ले… कमरे के लिए जो चाहिए, सब ले आ…
पैसे कम पड़ें तो मुझसे और ले लेना…"

सलीमा (हैरान होकर):
"जी मैडम…"

अलीना ( आवाज़ ठोस):
"और सुन… कोई कामचोरी मत करना…
अगर मुझे पता चला कि तूने ज़रा भी लापरवाही की… तो तेरी खाल खिंचवा दूंगी… समझी?" और हाँ उसकी दवाईयों का खास ख्याल रखना... वक्त पर उसे दवाई देना..

सलीमा सहमकर सिर हिला देती है और जल्दी निकल जाती है। अलिना वापस जाकर सोफे पर बैठती है…
साहबाज की तरफ एक नज़र डालती है… और फिर अपनी हथेलियों को देखती है, जैसे वो सोच रही हो –




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अस्पताल का कमरा ठंडा, सफ़ेद दीवारों से घिरा हुआ… जहाँ साहबाज अब भी बेहोश पड़ा था। एक ओर कोने में कुर्सी पर अलिना बैठी थी… और सामने खड़ी थी उसकी भाभी — अमीना। तेज़ नज़रों वाली, और हर सच्चाई को बिना कहे पढ़ लेने वाली

अभी अभी सलीमा बाहर निकली थी, हाथ में नोटों की गड्डी लिए… और सारा माजरा भाभी के कानों तक पहुँच चुका था।

भाभी (धीरे से, मगर तीखे अंदाज़ में पूछती हैं):
"अलिना… ये जो तुम कुएं वाली सोसाइटी के लड़के की इतनी चिंता कर रही हो…
कहीं वो वही तो नहीं जो मै सोच रही हूँ..?"

अलिना की गर्दन झुक जाती है… आँखें बोल उठती हैं, होंठ खामोश हैं। कोई जवाब नहीं देती — मगर उसकी सांसें तेज़ हो जाती हैं, चेहरा ज़र्द पड़ने लगता है।

भाभी एक कदम और आगे बढ़ती हैं… चेहरे पर तंज और गले में तल्ख़ी भरकर कहती हैं—

भाभी:
"तो ये सब कर के तू उसके प्यार को खरीदना चाहती है…?"

अलिना की आँखों में एक पल को पानी भर आता है… मगर वो तिलमिलाकर खड़ी हो जाती है।
उसकी आँखें जल रही होती हैं, मगर आवाज़ में एक ग़मगीन सच्चाई और बेबसी होती है।

अलिना (आवाज़ भर्राई हुई, मगर साफ़):
"खुदा जानता है भाभी…
मैं ये सब बस अपनी खुशी के लिए कर रही हूं…"
"वैसे भी… मेरा सिकंदर अपने पैरों पर खड़ा है… किसी के सामने हाथ न फैलाने की जरूरत नहीं है उसे"
"खुद्दारी कूट-कूट के भरी है उसमें…!"

भाभी थोड़ी देर तक अलिना को देखती रहती हैं… उनकी आँखों में हैरत नहीं, वो अचानक मुड़ती हैं और सीधा कहती हैं

भाभी:
"अच्छा… मैं तो जाऊंगी उससे मिलने…
कितने साल हो गए अपने बच्चे को नहीं देखा मैंने…"
"देखना… क़ायदे से दौड़ कर आएगा… और मेरे सीने से लग जाएगा…"

इस जुमले ने अलिना के दिल को चीर कर रख दिया… उसकी सांसें अटकने लगती हैं… वो खड़ी रह जाती है — मगर उसकी आँखों से अब आंसू बहने लगते हैं।

वो जानती थी… भाभी सच कह रही थीं…
सिकंदर ज़रूर वो प्यार वो इज़्ज़त देगा अमीना को जिसके लिए अलीना कुछ देर पहले तरस गयी थी.


उसका क्या?
वो तो उस बेटे के लिए अब सिर्फ़ एक नाम है… एक ठंडा, कड़वा नाम…



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जगह थी – एक वीरान, जली हुई पगडंडी के किनारे टूटी-फूटी सड़क…
जहां पेड़ झुके हुए थे, और धूल उड़ा रही थी… चारों ओर सन्नाटा था, मगर उस सन्नाटे में एक तूफान आने की भनक थी।
किसी वक़्त यहाँ से ट्रक गुज़रा करता था… पर अब वहां जले हुए टायर, टूटी हुई बारिकेट, और सड़क पर जहाँ तहा बिखरे गोलियों के कारतूस..और दरख़्त पर गोलियों के निसान ।

हसन मिर्ज़ा की गाड़ी धूल उड़ाती हुई वहाँ रुकती है… उसके पीछे चार SUV और काले कपड़े पहने हथियारबंद आदमी।

हसन गाड़ी से उतरते हुए, अपनी आँखों को बचाते हुए इधर-उधर देखता है…
उसके चेहरे पर गुस्से की लोह जल रही थी।

हसन (धीरे, पर कांपती हुई आवाज़ में):
"उन हरामियों को पताल से भी ढूंढ निकलूंगा... कसम खु*दा की.. एक एक को कुत्ता बना दूंगा..."

(वो एक जले हुए टायर के पास झुकता है… राख उठाकर हाथ में मसल देता है)

हसन:
"अपने सारे खबरीयों को काम पे लगा दो रे... उन मादरचोदो को ढूंढो.... इस बार ई*द पर उन्ही की कुर्बानी देनी है.."

ड्राइवर और खलासी, जिनकी जान बच गई थी, एक SUV से नीचे उतारे जाते हैं – डरे हुए, काँपते हुए।
ड्राइवर की आँख पर पट्टी है, गाल पर गहरे निशान।

हसन ड्राइवर की गर्दन पकड़ता है, आंखों में झांकता है –
"तू ज़िंदा क्यों बच गया रे मादरचोद....और अपनी जेब से कलम निकाल कर उसकी दूसरी आँख मै घुसा देता है.."

ड्राइवर छटपटा हुवा जमीन पर गिर जाता है... हसना अपने रुमाल से अपने हाथ को साफ करता है.. फिर अपने चेहरे पर लगे खून के छीते पोछता है...

हसन की आंखें सिकुड़ती हैं… वो खलासी की तरफ़ मुड़ता है —

हसन:
". मादरचोद तुझे ही उनके सनाख्त करनी है...तू जिन्दा रहेगा कुछ दिन.?"

खलासी (घबराते हुए):
"साहब…"

हसन उसे रोकते हुवे...अपनी उँगलियों को अपने होठों पर ले जाकर..
'" सऊऊऊ.... ना मत बोल..."
हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर update....


समय से बड़ा बलवान कोई नहीं है.....

कभी किसी का नहीं होता
 

W@gle

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Bhai bahut hi behtreen story h or padhte samay aisa lagta h jaise movie chal Rahi ho.....
Bahut hi umda update h. Thanks aisi story likhne ke liye, ab bas ek request h ise continue rakhna bhai pending na chhodna....
 
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