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मीठा पानी 15
शाम हो चुकी थी जब शामु घर पहुचा। सीता पशुओ को चारा डाल रही थी जब उसने गाड़ी की आवाज सुनी। काम बाकी था तो उसने सोचा पहले पुरा कर लिया जाए। शामु ने गाड़ी से सामान निकाला और चारपाई पर पसर गया। थक चुका था तो उसने सोचा थोड़ी देर आराम कर लिया जाए। पर जेसे ही लेटा, उसकी आँख लग गयी। कुछ समय बाद जब सीता अंदर आई तो शामु को सोया देखकर मुस्कुरा दी। उसे पता था की थकान की वजह से सो गया है, तो उसने भी उसे नही उठाया। रात को खाना बन गया जब शामु की आँख खुली। हरीश भी आ गया था।
"उठ गया बेटा?"
"हां पापा, आप कब आये?"
"अभी थोड़ी देर पहले ही, गाड़ी का काम हो गया?"
"हां, अलाईनमेंट तो करवा दी और कुछ खास था नही। बाकी सर्विस के टाइम हो जाएगा"
"ह्म्म्म, चल ठीक है। तेरी माँ को बोल खाना लगा दे"
"बोलता हुँ" और शामु सीता की और चल दिया। जब पूरे परिवार ने खाना खा लिया तो हरीश हुक्का पीने चला गया और शामु भी टहलने चला गया। रास्ते मे राकेश मिला
"और शामु भाई, केसा है?" राकेश शामु को सप्रे करवाने के बाद आज ही मिल रहा है।
"ठीक हुँ यार तू बता" शामु ने पूछा।
"बस हो रहा है टाइम पास, खेत नही आया इन दिनों?"
"नही भाई, टाइम ही नही मिल रहा"
"यार तेरी फसल मे तो सप्रे हो गयी, अब मैं भी सोच रहा हुँ कि कर ही दु"
"हां तो कर दे, बता कब लगें?" शामु ने पूछा। दोनों खेत पड़ोसी है और अच्छे दोस्त भी। राकेश शामु की मदद कर देता है और शामु राकेश की।
"तू तेरे चौथिए को बोल दे, वो करवा देगा, तु पहले काम निपटा ले तेरे"
"हां ये ठीक रहेगा राकेश भाई, मैं कहता हू बुधराम को"
"ठीक है भाई, चाचा चाची को राम राम देना मेरी" कहते हुए राकेश चला गया।
दस बजे के करीब शामु घर आया। हरीश और सीता कमरे मे जा चुके थे। शामु का दुध का गीलाश मेज पर रखा हुआ था। वो बिस्तर पर लेट गया और आज के दिन के बारे मे सोचने लगा। उसे माया की याद आ रही थी। उसका बार बार गले लगना, बार बार गाल चुमना उसे सोने नही दे रहा था। मम्मो का तो कहना ही क्या। उसे आसचर्य हो रहा था अपनी बहन के स्तनो का। वो अपने मन मे अपनी माँ और बहन के मम्मो की तुलना करने लगा। उसने सोचा कि माया के लिए भी एक घाघरा चोली लानी चाहिए थी। तभी उसके मोबाइल पर सीता का मेसेज आया
"सो गया?"
"नही माँ, अभी नींद नही आ रही"
"केसा रहा आज का दिन?"
"अच्छा था माँ"
"तेरे मामा मामी भी गए थे आज गंगानगर"
"अच्छा, वो केसे?"
"रचना की शादी की खरीददारी करने"
"पहले बता देते तो मिल लेता"
"उन्होंने जाकर फोन किया था, लेन देन के सूट साड़ी के बारे मे राय ले रहे थे"
"अच्छा" अब सीता को कोन बताये की उसका लाडला सब जानता है।
"अच्छा माँ"
"हां बेटा"
"तेरा घाघरा चोली तेरे संदूक पर रखा है, कल वही पहनेगी तू" शामु ने उम्मीद से कहा।
"कल कुछ खास है क्या?" सीता ने शरारात से पूछा।
"खास ही समझ, बस मुझे देखना है तुझे"
"पर तुझे तेरे पापा के जाने का इंतजार करना पड़ेगा" दोनों एसे बात कर रहे थे जेसे कोई गुप्त योजना हो।
"कर लूंगा, बस तू पहन लेना"
"ठीक है, पहन लुंगी"
"और वो पायल कहा है?"
पायल का जिक्र हुआ तो सीता के जेहन मे तस्वीर आई जिसमे उसका बेटा उसे पायल पहना रहा है।
"वो भी जरूरी है?"
"हां, बहुत जरूरी, उसी के साथ तेरा रूप पुरा होगा माँ"
सीता की साँसे तेज हो गयी थी। वो अपनी टांगे आपस मे रगड़ रही थी।
"तू जब उठेगा तो तेरे मेज पर मिलेगी"
"एक कमी और है अभी"
" अब क्या रह गया?"
"तेरी तगड़ी" ( तगड़ी एक धागा या चैन होती है जिसे महिला अपनी कमर पर बाँधती है)
सीता शर्मा गयी। लगता है उसका बेटा उसे पूरी तरह सजाना चाहता है। पर वो अपने बेटे के मोह मे बंधी हुई है। मना नही किया जा सकता। कर भी केसे सकती है, शामु मे उसकी जान बसती है।
"ये कमी भी पूरी करले। मिल जाएगी वो भी पायल के पास"
"ये हुई ना बात"
"ह्म्म्म, अब सोजा, सुबह बहुत काम है"
"हां, काम तो बहुत है, ठीक है माँ, सोता हुँ"
हालांकि नींद दोनों की आँखो मे नही थी। फिर भी सोना जररी था वरना सुबह केसे होती।