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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Tiger 786

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भाग:–133


खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहा था। वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...

आर्यमणि:– भूल गयी मैं एक डॉक्टर भी हूं।शिवम सर कोई हॉस्पिटल जो आपके ध्यान में में हो। वहां हमे अंतर्ध्यान कीजिए...

संन्यासी शिवम दोनो को लेकर तुरंत ही अंतर्ध्यान हो गये। अंतर्ध्यान होकर सीधा किसी ऑपरेशन थिएटर में पहुंचे, जहां पहले से कुछ लोग मौजूद थे। हालांकि वहां कोई ऑपरेशन तो नही चल रहा था, लेकिन ऑपरेशन से पहले की तैयारी चल रही थी।

एक नर्स... “तुमलोग सीधा अंदर कैसे घुस गये।”

“सॉरी नर्स” कहते हुये आर्यमणि ने ओटी के सारे स्टाफ को जड़ों में पैक किया। तेजी से सारे प्रोसीजर को फॉलो करते यानी की दवाइया वगैरह देकर पेट को खोल दिया। पेट खोलने के बाद पेट के पूरे हिस्से को जांच किया। अंतरियाें के 3–4 हिस्सों से इंटरनल ब्लीडिंग हो रहा था। आर्यमणि उन सभी हिस्सों को ठीक भी कर रहा था और संन्यासी शिवम को वह हिस्सा दिखा भी रहा था।

संन्यासी शिवम:– गुरुदेव उस लड़के एकलाफ के सीने में घुसे चाकू के जख्म को अंदरूनी रूप से जब हील कर सकते हैं। तब पलक का तो ये पेट का मामला था।

आर्यमणि अपना काम जारी रखते.... “शिवम् सर पेट की अंतरियां और दिमाग के अंदरूनी हिस्से दो ऐसी जगह है जहां के इंटरनल ब्लीडिंग कभी–कभी हमारे हाथों से भी हील नही हो सकते। इसलिए तो बिना वक्त गवाए मेडिकल प्रोसीजर करना पड़ा। चलिए अपना काम भी खत्म हो गया।

जहा–जहां से इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी, उन जगहों को ठीक करने के बाद स्टीचेस करके दोनो वापस लौट आये। पलक को डायनिंग टेबल पर ही लिटाया गया। रूही उसे तुरंत ही हील करना शुरू की। कुछ ही समय में पलक पहले की तरह हील हो चुकी थी। थोड़ी कमजोर थी, लेकिन उठकर बैठ चुकी थी।

जितनी देर में ये सब हुआ उतनी ही देर में नेपाल से एक न्यूज वायरल हो रही थी। ओटी में फैले जड़ें और जड़ों में लिपटे लोगों को दिखाया जा रहा था। किसी के हाथ दिख रहे थे तो किसी के पाऊं... जड़ों को काटने की कोशिश की जा रही थी परंतु जितना काटते उतना ही उग आता.... इवान ने जैसे ही यह वायरल न्यूज देखा, डायनिंग टेबल के ऊपर बंधे बड़े से परदे को खोला और उसपर यह वायरल न्यूज चला दिया...

हर कोई उस न्यूज को देख और सुन रहा था.... “जान जल्दी–जल्दी में ये क्या कर आये?”

आर्यमणि:– पलक की हालत के कारण यह भूल हो गयी...

रूही:– ओह हो, पलक को घायल देख सब कुछ भूल गये। कहीं पुराना प्यार तो न जाग गया। इतनी हड़बड़ी...

आर्यमणि:– ताना देना बंद करो। अभी सब ठीक किये देता हूं।

रूही:– उनकी यादस्त मिटाना मत भूलना...

संन्यासी शिवम:– क्या हमें अंतर्ध्यान होकर वापस जाना होगा। मुझे नही लगता की इस वक्त ऐसा करना सही होगा।

आर्यमणि:– नही ये मेरी जड़ें है। यहीं से सब कर लूंगा...

आर्यमणि अपने काम में लग गया। इधर रूही, पलक को घूरती... “क्या मरकर सबक सिखाती”...

पलक रूही के गले लगती.... “तुम लोगों के बीच मैं मर सकती थी क्या, मेरी शौत”..

रूही:– पागल ही है सब... इतनी घायल थी फिर भी लड़े जा रही थी। कामिनी तू मर जाती तो मेरे एंटरटेनमेंट का क्या होता?

दूसरी ओर आर्यमणि अपनी जगह से बैठे–बैठे वो कारनामा भी कर चुका था, जिसे करने से पहले आर्यमणि भी दुविधा में था.... “क्या जड़ें नीचे जायेंगी? क्या उनकी यादस्त मिटा पाऊंगा?”... लेकिन कमाल के प्रशिक्षण और अपने संपूर्ण मनोबल से आर्यमणि यह कारनामा कर चुका था।

डायनिंग टेबल से खुसुर–फुसुर की आवाज आने लगी। माहोल पूरा सामान्य था और एक दूसरे से खींचा–तानी भी शुरू हो चुकी थी। इसी बीच इवान सबका ध्यान अपनी ओर खींचते... “बातें तो होती ही रहेगी, लेकिन काम पर ध्यान दे दे। डंपिंग ग्राउंड में अभी भी हजारों नायजो पड़े है।”

आर्यमणि:– हां उसी पर आ रहे हैं इवान। बस पलक से उसकी अनोखी और इतनी ताकतवर शक्ति का राज तो जान लूं...

पलक:– नही, बहुत बकवास कर लिये। पहले मेरे लोगों को दीवार से उतारो और मुझे कम से कम अनंत कीर्ति की किताब तो दे दो ताकि मैं अपना सर ऊंचा रख सकूं...

आर्यमणि घूरकर देखते.... “वो तुम्हे नही मिल सकती”...

पलक:– ओरिजनल कौन मांग रहा है, उसका डुप्लीकेट दे दो। और जरा वो किताब भी दिखाओ, जिसके खुलने के बाद महा ने ऐसा क्या पढ़ लिया जो मुझे गालियां देते आया। मतलब नायजो को...

महा:– क्यों तुम्हे गाली नही देनी चाहिए क्या?

पलक:– मैं क्या कहूं, ये 4 बेवकूफ जैसे कर्म में लिखा गये हो। मोबाइल नेटवर्क की तरह पीछे पड़ गये हैं। मेरी सुरक्षा के नाम पर मेरे पल्ले इन चार नमूनों को बांध दिया गया है। मैं मजबूर थी महा, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा था। प्लीज मुझे माफ कर दो महा। अब से हम दोनो दोस्त है ना..

महा:– एक शर्त पर माफ करूंगा, मुझे उस चुतिये एकलाफ को तमाचा मारना है।

पलक:– क्यों पहले तू आर्य से नही पूछेगा, उसने एकलाफ को क्यों मेरे साथ बुलाया...

महा:– हां भाव... ये मदरचोद है कौन जिसे पलक के साथ आने कहे, और मुझे न बुलाया..

आर्यमणि:– इसने मुझे भी फोन पर बहुत गंदी और भद्दी गालियां दी थी। खून खौल गया था इसलिए बुला लिया।

महा:– तो क्या अब मैं उसे मार लूं...

पलक:– रुक महा, रूही प्लास्टिक की कैद से रिहाई के साथ–साथ क्या तुम इस चुतिये एकलाफ का शरीर को नॉर्मल कर दोगी, ताकि मार का असर पड़े...

महा:– क्या मतलब नॉर्मल करना..

रूही:– वुल्फ शरीर से कहीं ज्यादा खतरनाक नायजो का एक्सपेरिमेंट शरीर है। इसके अंदर चाकू घुसा के छोड़ दो तो वो चाकू शरीर के अंदर ही गल जायेगा..

महा:– ओ तेरी कतई खतरनाक... साला तभी जोर से कह रहा था, हम मारने पर उतरे तो मर जाना चाहिए... अब बोल ना भोसडी के...

रूही:– जुबान काहे गंदा कर रहे महा... लो ये मार खाने को तैयार है....

महा, उस एकलाफ के ओर बढ़ते.... “और कुछ है जो हमे इनके शरीर के बारे में जानना चाहिए।”...

पलक:– यहां से हम साथ निकलेंगे। सब बता दूंगी। पहले मारकर भड़ास निकाल लो...

“कामिनी गद्दार”.... एकलाफ अपनी बात कहकर अपने हाथ से आग, बिजली का बवंडर उठा दिया जो हवा में आते ही फुस्स हो गया। महा के अंदर खून में आया उबाल। दे लाफा पर लाफा मार–मार कर गाल और मुंह सुजा दिया। आर्यमणि उसका चिल्लाना सुनकर मुंह को पूरा ही जड़ से पैक कर दिया। इधर ओजल, पलक के 30 लोगों को दीवार से उतार चुकी थी, जो वहीं डायनिंग टेबल से लगे कुर्सियों पर बैठे चुके थे।

आर्यमणि:– तुम्हारे लोगों को छोड़ दिया है। और किसी को छोड़ना है...

पलक:– हां वो कांटों की चिता पर 22 लोग और है, उन्हे भी छोड़ दो। वो हमारे ट्रेनी है।

आर्यमणि:– रूही क्या उनके पास समय बचा है।

रूही:– 5 घंटे हुये होंगे.... सब बच जायेंगे...

आर्यमणि, पलक के ओर लैपटॉप करते.... अपने 22 लोगों के चेहरे पहचानो... इवान और अलबेली तुम दोनो उन 22 को ले आओ। ये बताओ तुम्हारे इन चारो नमूनों का क्या करना है?”...

पलक:– चारो इंसानी मांस के बहुत प्रेमी है। विकृत नायजो के हर पाप में इन लोगों ने हिस्सा लिया है। सबको भट्टी में झोंक देना...

आर्यमणि और रूही दोनो पलक को हैरानी से देखते.... “तुम्हे कैसे पता?”...

पलक, अपना सर उठाकर एक बार दोनो को देखी और वापस से लैपटॉप में घुसती.... “तुमने तो गुरु निशि और उनके शिष्यों के मौत की भट्टी के बारे में सुना होगा, मैने तो देखा था। वो चिंखते लोग... रोते, बिलखते, जलन के दर्द से छटपटाते बच्चे... मैं उस भट्टी को कैसे भुल सकती हूं। मैं डंपिंग ग्राउंड गयी थी, देखकर ही समझ गयी की ये भी जिंदा जलेंगे”...

“वैसे तुमने गुरु निशि के दोषियों को जब उनके अंजाम तक पहुंचा ही रहे हो, तो एक नाम के बारे में तुम्हे बता दूं। हालांकि इस नाम की चर्चा तो मैं करती ही। किंतु बात जब चल ही रही है, तो यही उपयुक्त समय है कि तुम अपने एक अंजान दुश्मन के बारे में अच्छी तरह से जान लो।”

“गुरु निशि के आश्रम के कांड की मुखिया का नाम अजुर्मी है। योजना बनाने से लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाने का बीड़ा इसी अजुर्मी ने उठाया था। इस वक्त वह किसी अन्य ग्रह पर है, लेकिन तुम ध्यान से रहना। क्योंकि आज के कांड के बाद अब तुम्हारे पीछे कोई नही आयेगा... बस उसी के लोग आयेंगे। पृथ्वी पर जितने नायजो है, उसकी गॉडमदर। पृथ्वी के कई नरसंहार की दोषी। अब वो तुम्हारे पीछे होगी। विश्वास मानो यदि यमराज मौत के देवता है, तो अजुर्मी ऊसे भी मौत देने का कलेजा रखती है। शातिर उतनी ही। जरूरी नही की तुम्हे मारने वो नायजो को ही भेजे। वो किसी को भी भेज सकती है। तुम जरा होशियार रहना। ये लो मेरा काम भी हो गया, उन 22 लोगों को अब जल्दी से अच्छा करके मेरे सामने ले आओ”..

पलक के सभी 22 ट्रेनी भारती के तरह ही मृत्यु के कांटों पर लेटे थे। शरीर में भयानक पीड़ा को मेहसूस करते कई घंटों से पड़े थे। उन सभी 22 ट्रेनी को कांटों के अर्थी समेत ही हॉल में लाया गया। हॉल में जैसे ही वो पहुंचे, आर्यमणि ने अपनी आंखे मूंद ली। सभी 22 एक साथ जड़ की एक चेन में कनेक्ट हो गये। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने आर्यमणि का हाथ थाम लिया। वहां मौजूद हर कोई देख सकता था, जड़ों की ऊपरी सतह पर काला द्रव्य बह रहा था और वो बहते हुये धीरे–धीरे अल्फा पैक के नब्ज में उतरने लगा। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने पहले कैस्टर के जहर को झेला था, इसलिए अब ये टॉक्सिक उनके लिये आम टॉक्सिक जैसा ही था। उन्हे हील करने में लगभग एक घंटा का वक्त लग गया।

ये सभी 22 लोग केवल कैस्टर के जहर को नही झेल रहे थे। इन 22 नायजो में एक भी एक्सपेरिमेंट बॉडी नही था। ऊपर से उनके सामान्य शरीर में 100 मोटे काटो का घुसा होना। इन्हे लाया भी गया था तो कांटा के अर्थी सहित लाया गया था, क्योंकि अल्फा पैक को पता था कांटा हटा, और सबकी मौत हुई। काटो की चपेट मे जो भी अंग थे वो धीरे–धीरे हील होते और उस जगह से कांटा हील होने दौरान ही धीरे–धीरे बाहर आ जाता। और इन्ही सब प्रोसेस से उन्हे हील करने में काफी वक्त लगा, किंतु जान बच गयी।

अद्भुत नजारा था जिसे आज तक किसी संन्यासी तक ने नही देखा था। सभी एक साथ नतमस्तक हो गये। उन 22 लोगों को हील करने के बाद सबको फिर जड़ों में लपेटकर दूसरे मंजिल के कमरों में भेज दिया गया, जहां उनके शरीर तक जरूरी औषधि पहुंचाने के बाद जड़ें अपने आप गायब हो जाती।

महा:– अरे बाबा रेरे बाबा... भाव वोल्फ ये भी कर सकते है क्या?

आर्यमणि:– तुम्हे तो वुल्फ हंटर बनाया गया था न... फिर वुल्फ के कारनामों पर अचरज..

महा:– भाव जो दिखाया वही देखे, जो सिखाया वही सीखे लेकिन जब मैदान में आये तो जो सही था और न्यायपूर्ण वही किया। सोलापुर से लेकर कोल्हापुर तक एक भी वुल्फ का शिकर नही होने दिया मैं। अपनी दोनो ओर बराबर जिम्मेदारी है, वुल्फ हो या इंसान। इंसान में भी कपटी होते है, इसका ये मतलब तो नही की सभी इंसान को मार दो। वैसे ही वुल्फ है...

आर्यमणि:– भूमि का चेला...

पलक:– भूमि दीदी है ही ऐसी..

आर्यमणि अपने हाथ जोड़ते... “तुमने मेरे भांजे को बचाया, छोटे (अपस्यु) को बचाया, तुम खामोशी से कितने काम करती रही। तुम्हारा आभार रहेगा।”

पलक:– ओ गुरु भेड़िया, भूलो मत दुश्मनी अभी खत्म नहीं हुई। और मिस अलबेली, क्या अब आप मुझे मेरा सामान दे देंगी, जो आप लोगों से वास्ता नहीं रखता...

अलबेली:– तुम एक नंबर की चोरनी हो ना। कपड़ों के नीचे इतना सारा खजाना। ये बताओ एनर्जी फायर को कहां छिपा कर रखी थी।

पलक:– एनर्जी फायर क्या?

अलबेली:– वही जिसमे जादूगर महान की आत्मा कैद थी...

पलक:– ऐसा सीधा कहो ना। नया नाम रख दी तो मैं दुविधा में आ गयी की शूकेश अपने घर में और कितने राज छिपाए है। चोरी के समान में क्या सब था मुझे उसकी पूरी जानकारी नही। और न ही कोर प्रहरी के बहुत से राज पता है। मैने अपने शरीर पर एक्सपेरिमेंट नही करवाया ना, इसलिए ये लोग मुझे अलग तरह से ट्रीट करते है।

अलबेली:– अलग तरह से ट्रीट मतलब...

पलक:– मतलब उन्हे मुझ पर पूरा विश्वास नही..

अलबेली:– एक्सपेरिमेंट के पहले और बाद क्या अंतर होगा, उल्टा तुम्हे कोई नुकसान भी नही पहुंचा सकता। फिर क्यों न करवाई एक्सपेरिमेंट..

पलक:– कैसे समझाऊं क्यों न करवाई... ऐसे समझो की वो एक्सपेरिमेंट दरिंदा बनाने के लिये किया जाता है। शरीर के अंदर की आत्मा को मारकर बस एक उद्देश्य के लिये प्रेरित करता है।

अलबेली:– कौन सा उद्देश्य?

पलक:– जो है सो हम ही है, और हमारे जैसे लोग... बाकी सब आंडू–गांडू.. पैरों की जूती... जब चाहो रौंद डालो... अब बहुत सवाल कर ली, जा मेरा समान ला, मुझे पूरा खाली कर दी है...

अलबेली:– हां लेकिन पहले ये तो बताओ आधे फिट की वो पत्थर की माला छिपाई कहां थी...

पलक:– तू जब उसे हाथ में ली होगी तो पता चल गया होगा कहां था। अब मुंह मत खुलवाओ और समान लेकर आओ... और आर्य वो अनंत कीर्ति की खुली किताब तो दिखाओ, जिसके पीछे पूरे कोर प्रहरी व्याकुल है...

आर्यमणि, अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोलकर दिखाते... “लो देख लो”...

पलक:– क्या मजाक है, यहां तो कुछ न लिखा।

आर्यमणि:– ये किताब है, इसे पढ़ा जाता है। ये किताब उतना ही उत्तर देगा, जितना इसने देखा है।

पलक:– इसने राजदीप (पलक का वही भाई जो आईपीएस है) को देखा ही होगा ना। उसी के बारे में बताओ किताब?

महा:– आंख मूंदकर राजदीप के बारे में सोचो, फिर आंख खोलो...

पलक, स्मरण करके आंखे खोली। जो किताब पर आ रहा था, उसे पढ़कर तो वह हैरान हो गयी। उसने उज्जवल, यानी अपने पिता का स्मरण किया। आंखें खोली तो इंसानी उज्जवल और बहरूपिया उज्जवल, सबकी जानकारी थी। पलक इस बार फिर आंखे मूंदी। उसके आंखों में आंसू थे। नम आखें खोली और बड़े ध्यान से पढ़ने लगी। पढ़ने के दौरान ही उसने थोड़ा और फिल्टर किया। इस बार आंखे खोलकर जब पढ़ी तो आंखें नम थी और चेहरे पर सुकून। वह किताब पर हाथ फेरने लगी.... “आर्य क्या यहां जो भी लिखा है उसे अलग से दे सकते हो”

आर्यमणि:– अपनी मां के बारे में सोची क्या?

पलक हां में सर हिलाने लगी। आर्यमणि, भी मुस्कुराते हुये हां कहा। अनंत कीर्ति पुस्तक के सामने उसने एक पूरा बंडल कोड़ा पन्ना रख दिया। कुछ मंत्र पढ़े और कोड़े पन्नो पर एक बार हाथ फेरते हुये वह पूरा बंडल पलक के हाथ में थमा दिया। पलक के साथ कई और ऐसे नायजो थे, जिन्हे अपने माता या पिता के बचपन का स्पर्श तो याद था, पर उसके बाद उन्हें निपटा दिया गया। एक–एक करके सभी आते गये और अपने प्रियजन की जानकारी लेकर जाते रहे। हर कोई भावुक होकर बस इतना ही कहता.... “दुनिया की सबसे अनमोल और कीमती उपहार दिये हो भाई।”

पलक के सभी साथी अपने हाथों में अपने माता–पिता की जीवनी समेटे थे। काम खत्म होते ही रूही जैसे ही किताब बंद करने आगे बढ़ी, पलक जिद करती.... “प्लीज मुझे मेरे बचपन के दोस्तों को ढूंढने दो। सार्थक और प्रिया।”

रूही मुस्कुराते हुये हामी भर दी पलक ने स्मरण किया और आंखें खोली। लेकिन आखें खोलने के बाद जैसे ही नजर पन्नो पर गयी..... “आर्य ये क्या है। किताब की जानकारी सही तो है न।”...

आर्यमणि ने किताब देखा... “पलक इसकी जानकारी सही है। सार्थक और प्रिया, गुरु निशि के मृत्यु के वक्त कहां थे और किन लोगों से मिले, पहले इसे जान लेते है?”...

किताब की पूरी जानकारी को देखने के बाद आर्यमणि.... “इन दोनो को तुम जिंदा जलाओगी, या मुझे जाना होगा।”...

पलक:– अब तो दिल पर बोझ सा हो गया है आर्य। सही जगह सूचना देती तो शायद सबकी जान बच जाती। यही दोनो थे जिन्होंने मुझसे कहा था कि मैं गुरु निशि या किसी को कुछ न बताऊं। यही दोनो थे, जिन्होंने मुझसे पैरालिसिस वाली बूटी ली थी और कही थी.... “इलाज के दौरान गुरु निशि अपने विश्वसनीय लोगों के साथ होंगे तब उनसे मिलने के बहाने उन्हे खतरे से आगाह किया जाएगा। वरना अभी गये आगाह करने तो हो सकता है उनके आस पास कुछ ऐसे दुश्मन हो जो मेरी बात को मनगढ़ंत साबित कर दे।”.... उनकी एक–एक चालबाजी याद आ रही। साले कपटी लोग। आर्यमणि इन्हे तो मैं अपने हाथों से जलाऊंगी... लेकिन उस से पहले कैस्टर ऑयल के फूल का जहर का मजा दूंगी। मौत से पहले इन्हे अपने किये पर ऐसा पछतावा होगा की इनकी रूहे दोबारा फिर कभी जन्म ही न लेगी। बस मेरे कुछ लोगों के लिये फर्जी पासपोर्ट का बदोबस्त कर दो।

आर्यमणि:– हो जायेगा... बस तुम चूकना मत। तो सभा समाप्त किया जाये...

पलक, आर्यमणि के गले लगती.... “अपना ख्याल रखना। आने वाला वक्त तुम पर बहुत भारी होने वाला है।”...

आर्यमणि:– सभा समाप्त मतलब अभी अपनी बातचीत की सभा समाप्त करते है। इसके आगे तो बहुत से काम है। वैसे भी अभी तक तो तुमने बड़ी सफाई से अपने शक्तियों के राज से पर्दा उठाने के बदले डिस्कशन को कहीं और मोड़ चुकी हो। बैठकर पहले मेरे आज के मीटिंग के मकसद को देखो, उसके बाद विस्तृत चर्चा होगी।

पलक, आर्यमणि से अलग होती.... “करने क्या वाले हो?”...

इस बार अकेला आर्यमणि नही बल्कि पूरा अल्फा पैक एक साथ... पूरा अल्फा पैक मतलब निशांत और संन्यासी शिवम भी... सभी एक साथ एक सुर में बोले..... “आज सात्त्विक आश्रम का भय वहां तक स्थापित होगा, जहां तक ये विकृत नायजो फैले है। आज पूरे ब्रह्मांड में हम अपनी उपस्थिति का प्रमाण देंगे”
Ajab sa ishak 1 or 2 dono 2 bar phad Chuka hu
भाग:–133


खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहा था। वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...

आर्यमणि:– भूल गयी मैं एक डॉक्टर भी हूं।शिवम सर कोई हॉस्पिटल जो आपके ध्यान में में हो। वहां हमे अंतर्ध्यान कीजिए...

संन्यासी शिवम दोनो को लेकर तुरंत ही अंतर्ध्यान हो गये। अंतर्ध्यान होकर सीधा किसी ऑपरेशन थिएटर में पहुंचे, जहां पहले से कुछ लोग मौजूद थे। हालांकि वहां कोई ऑपरेशन तो नही चल रहा था, लेकिन ऑपरेशन से पहले की तैयारी चल रही थी।

एक नर्स... “तुमलोग सीधा अंदर कैसे घुस गये।”

“सॉरी नर्स” कहते हुये आर्यमणि ने ओटी के सारे स्टाफ को जड़ों में पैक किया। तेजी से सारे प्रोसीजर को फॉलो करते यानी की दवाइया वगैरह देकर पेट को खोल दिया। पेट खोलने के बाद पेट के पूरे हिस्से को जांच किया। अंतरियाें के 3–4 हिस्सों से इंटरनल ब्लीडिंग हो रहा था। आर्यमणि उन सभी हिस्सों को ठीक भी कर रहा था और संन्यासी शिवम को वह हिस्सा दिखा भी रहा था।

संन्यासी शिवम:– गुरुदेव उस लड़के एकलाफ के सीने में घुसे चाकू के जख्म को अंदरूनी रूप से जब हील कर सकते हैं। तब पलक का तो ये पेट का मामला था।

आर्यमणि अपना काम जारी रखते.... “शिवम् सर पेट की अंतरियां और दिमाग के अंदरूनी हिस्से दो ऐसी जगह है जहां के इंटरनल ब्लीडिंग कभी–कभी हमारे हाथों से भी हील नही हो सकते। इसलिए तो बिना वक्त गवाए मेडिकल प्रोसीजर करना पड़ा। चलिए अपना काम भी खत्म हो गया।

जहा–जहां से इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी, उन जगहों को ठीक करने के बाद स्टीचेस करके दोनो वापस लौट आये। पलक को डायनिंग टेबल पर ही लिटाया गया। रूही उसे तुरंत ही हील करना शुरू की। कुछ ही समय में पलक पहले की तरह हील हो चुकी थी। थोड़ी कमजोर थी, लेकिन उठकर बैठ चुकी थी।

जितनी देर में ये सब हुआ उतनी ही देर में नेपाल से एक न्यूज वायरल हो रही थी। ओटी में फैले जड़ें और जड़ों में लिपटे लोगों को दिखाया जा रहा था। किसी के हाथ दिख रहे थे तो किसी के पाऊं... जड़ों को काटने की कोशिश की जा रही थी परंतु जितना काटते उतना ही उग आता.... इवान ने जैसे ही यह वायरल न्यूज देखा, डायनिंग टेबल के ऊपर बंधे बड़े से परदे को खोला और उसपर यह वायरल न्यूज चला दिया...

हर कोई उस न्यूज को देख और सुन रहा था.... “जान जल्दी–जल्दी में ये क्या कर आये?”

आर्यमणि:– पलक की हालत के कारण यह भूल हो गयी...

रूही:– ओह हो, पलक को घायल देख सब कुछ भूल गये। कहीं पुराना प्यार तो न जाग गया। इतनी हड़बड़ी...

आर्यमणि:– ताना देना बंद करो। अभी सब ठीक किये देता हूं।

रूही:– उनकी यादस्त मिटाना मत भूलना...

संन्यासी शिवम:– क्या हमें अंतर्ध्यान होकर वापस जाना होगा। मुझे नही लगता की इस वक्त ऐसा करना सही होगा।

आर्यमणि:– नही ये मेरी जड़ें है। यहीं से सब कर लूंगा...

आर्यमणि अपने काम में लग गया। इधर रूही, पलक को घूरती... “क्या मरकर सबक सिखाती”...

पलक रूही के गले लगती.... “तुम लोगों के बीच मैं मर सकती थी क्या, मेरी शौत”..

रूही:– पागल ही है सब... इतनी घायल थी फिर भी लड़े जा रही थी। कामिनी तू मर जाती तो मेरे एंटरटेनमेंट का क्या होता?

दूसरी ओर आर्यमणि अपनी जगह से बैठे–बैठे वो कारनामा भी कर चुका था, जिसे करने से पहले आर्यमणि भी दुविधा में था.... “क्या जड़ें नीचे जायेंगी? क्या उनकी यादस्त मिटा पाऊंगा?”... लेकिन कमाल के प्रशिक्षण और अपने संपूर्ण मनोबल से आर्यमणि यह कारनामा कर चुका था।

डायनिंग टेबल से खुसुर–फुसुर की आवाज आने लगी। माहोल पूरा सामान्य था और एक दूसरे से खींचा–तानी भी शुरू हो चुकी थी। इसी बीच इवान सबका ध्यान अपनी ओर खींचते... “बातें तो होती ही रहेगी, लेकिन काम पर ध्यान दे दे। डंपिंग ग्राउंड में अभी भी हजारों नायजो पड़े है।”

आर्यमणि:– हां उसी पर आ रहे हैं इवान। बस पलक से उसकी अनोखी और इतनी ताकतवर शक्ति का राज तो जान लूं...

पलक:– नही, बहुत बकवास कर लिये। पहले मेरे लोगों को दीवार से उतारो और मुझे कम से कम अनंत कीर्ति की किताब तो दे दो ताकि मैं अपना सर ऊंचा रख सकूं...

आर्यमणि घूरकर देखते.... “वो तुम्हे नही मिल सकती”...

पलक:– ओरिजनल कौन मांग रहा है, उसका डुप्लीकेट दे दो। और जरा वो किताब भी दिखाओ, जिसके खुलने के बाद महा ने ऐसा क्या पढ़ लिया जो मुझे गालियां देते आया। मतलब नायजो को...

महा:– क्यों तुम्हे गाली नही देनी चाहिए क्या?

पलक:– मैं क्या कहूं, ये 4 बेवकूफ जैसे कर्म में लिखा गये हो। मोबाइल नेटवर्क की तरह पीछे पड़ गये हैं। मेरी सुरक्षा के नाम पर मेरे पल्ले इन चार नमूनों को बांध दिया गया है। मैं मजबूर थी महा, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा था। प्लीज मुझे माफ कर दो महा। अब से हम दोनो दोस्त है ना..

महा:– एक शर्त पर माफ करूंगा, मुझे उस चुतिये एकलाफ को तमाचा मारना है।

पलक:– क्यों पहले तू आर्य से नही पूछेगा, उसने एकलाफ को क्यों मेरे साथ बुलाया...

महा:– हां भाव... ये मदरचोद है कौन जिसे पलक के साथ आने कहे, और मुझे न बुलाया..

आर्यमणि:– इसने मुझे भी फोन पर बहुत गंदी और भद्दी गालियां दी थी। खून खौल गया था इसलिए बुला लिया।

महा:– तो क्या अब मैं उसे मार लूं...

पलक:– रुक महा, रूही प्लास्टिक की कैद से रिहाई के साथ–साथ क्या तुम इस चुतिये एकलाफ का शरीर को नॉर्मल कर दोगी, ताकि मार का असर पड़े...

महा:– क्या मतलब नॉर्मल करना..

रूही:– वुल्फ शरीर से कहीं ज्यादा खतरनाक नायजो का एक्सपेरिमेंट शरीर है। इसके अंदर चाकू घुसा के छोड़ दो तो वो चाकू शरीर के अंदर ही गल जायेगा..

महा:– ओ तेरी कतई खतरनाक... साला तभी जोर से कह रहा था, हम मारने पर उतरे तो मर जाना चाहिए... अब बोल ना भोसडी के...

रूही:– जुबान काहे गंदा कर रहे महा... लो ये मार खाने को तैयार है....

महा, उस एकलाफ के ओर बढ़ते.... “और कुछ है जो हमे इनके शरीर के बारे में जानना चाहिए।”...

पलक:– यहां से हम साथ निकलेंगे। सब बता दूंगी। पहले मारकर भड़ास निकाल लो...

“कामिनी गद्दार”.... एकलाफ अपनी बात कहकर अपने हाथ से आग, बिजली का बवंडर उठा दिया जो हवा में आते ही फुस्स हो गया। महा के अंदर खून में आया उबाल। दे लाफा पर लाफा मार–मार कर गाल और मुंह सुजा दिया। आर्यमणि उसका चिल्लाना सुनकर मुंह को पूरा ही जड़ से पैक कर दिया। इधर ओजल, पलक के 30 लोगों को दीवार से उतार चुकी थी, जो वहीं डायनिंग टेबल से लगे कुर्सियों पर बैठे चुके थे।

आर्यमणि:– तुम्हारे लोगों को छोड़ दिया है। और किसी को छोड़ना है...

पलक:– हां वो कांटों की चिता पर 22 लोग और है, उन्हे भी छोड़ दो। वो हमारे ट्रेनी है।

आर्यमणि:– रूही क्या उनके पास समय बचा है।

रूही:– 5 घंटे हुये होंगे.... सब बच जायेंगे...

आर्यमणि, पलक के ओर लैपटॉप करते.... अपने 22 लोगों के चेहरे पहचानो... इवान और अलबेली तुम दोनो उन 22 को ले आओ। ये बताओ तुम्हारे इन चारो नमूनों का क्या करना है?”...

पलक:– चारो इंसानी मांस के बहुत प्रेमी है। विकृत नायजो के हर पाप में इन लोगों ने हिस्सा लिया है। सबको भट्टी में झोंक देना...

आर्यमणि और रूही दोनो पलक को हैरानी से देखते.... “तुम्हे कैसे पता?”...

पलक, अपना सर उठाकर एक बार दोनो को देखी और वापस से लैपटॉप में घुसती.... “तुमने तो गुरु निशि और उनके शिष्यों के मौत की भट्टी के बारे में सुना होगा, मैने तो देखा था। वो चिंखते लोग... रोते, बिलखते, जलन के दर्द से छटपटाते बच्चे... मैं उस भट्टी को कैसे भुल सकती हूं। मैं डंपिंग ग्राउंड गयी थी, देखकर ही समझ गयी की ये भी जिंदा जलेंगे”...

“वैसे तुमने गुरु निशि के दोषियों को जब उनके अंजाम तक पहुंचा ही रहे हो, तो एक नाम के बारे में तुम्हे बता दूं। हालांकि इस नाम की चर्चा तो मैं करती ही। किंतु बात जब चल ही रही है, तो यही उपयुक्त समय है कि तुम अपने एक अंजान दुश्मन के बारे में अच्छी तरह से जान लो।”

“गुरु निशि के आश्रम के कांड की मुखिया का नाम अजुर्मी है। योजना बनाने से लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाने का बीड़ा इसी अजुर्मी ने उठाया था। इस वक्त वह किसी अन्य ग्रह पर है, लेकिन तुम ध्यान से रहना। क्योंकि आज के कांड के बाद अब तुम्हारे पीछे कोई नही आयेगा... बस उसी के लोग आयेंगे। पृथ्वी पर जितने नायजो है, उसकी गॉडमदर। पृथ्वी के कई नरसंहार की दोषी। अब वो तुम्हारे पीछे होगी। विश्वास मानो यदि यमराज मौत के देवता है, तो अजुर्मी ऊसे भी मौत देने का कलेजा रखती है। शातिर उतनी ही। जरूरी नही की तुम्हे मारने वो नायजो को ही भेजे। वो किसी को भी भेज सकती है। तुम जरा होशियार रहना। ये लो मेरा काम भी हो गया, उन 22 लोगों को अब जल्दी से अच्छा करके मेरे सामने ले आओ”..

पलक के सभी 22 ट्रेनी भारती के तरह ही मृत्यु के कांटों पर लेटे थे। शरीर में भयानक पीड़ा को मेहसूस करते कई घंटों से पड़े थे। उन सभी 22 ट्रेनी को कांटों के अर्थी समेत ही हॉल में लाया गया। हॉल में जैसे ही वो पहुंचे, आर्यमणि ने अपनी आंखे मूंद ली। सभी 22 एक साथ जड़ की एक चेन में कनेक्ट हो गये। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने आर्यमणि का हाथ थाम लिया। वहां मौजूद हर कोई देख सकता था, जड़ों की ऊपरी सतह पर काला द्रव्य बह रहा था और वो बहते हुये धीरे–धीरे अल्फा पैक के नब्ज में उतरने लगा। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने पहले कैस्टर के जहर को झेला था, इसलिए अब ये टॉक्सिक उनके लिये आम टॉक्सिक जैसा ही था। उन्हे हील करने में लगभग एक घंटा का वक्त लग गया।

ये सभी 22 लोग केवल कैस्टर के जहर को नही झेल रहे थे। इन 22 नायजो में एक भी एक्सपेरिमेंट बॉडी नही था। ऊपर से उनके सामान्य शरीर में 100 मोटे काटो का घुसा होना। इन्हे लाया भी गया था तो कांटा के अर्थी सहित लाया गया था, क्योंकि अल्फा पैक को पता था कांटा हटा, और सबकी मौत हुई। काटो की चपेट मे जो भी अंग थे वो धीरे–धीरे हील होते और उस जगह से कांटा हील होने दौरान ही धीरे–धीरे बाहर आ जाता। और इन्ही सब प्रोसेस से उन्हे हील करने में काफी वक्त लगा, किंतु जान बच गयी।

अद्भुत नजारा था जिसे आज तक किसी संन्यासी तक ने नही देखा था। सभी एक साथ नतमस्तक हो गये। उन 22 लोगों को हील करने के बाद सबको फिर जड़ों में लपेटकर दूसरे मंजिल के कमरों में भेज दिया गया, जहां उनके शरीर तक जरूरी औषधि पहुंचाने के बाद जड़ें अपने आप गायब हो जाती।

महा:– अरे बाबा रेरे बाबा... भाव वोल्फ ये भी कर सकते है क्या?

आर्यमणि:– तुम्हे तो वुल्फ हंटर बनाया गया था न... फिर वुल्फ के कारनामों पर अचरज..

महा:– भाव जो दिखाया वही देखे, जो सिखाया वही सीखे लेकिन जब मैदान में आये तो जो सही था और न्यायपूर्ण वही किया। सोलापुर से लेकर कोल्हापुर तक एक भी वुल्फ का शिकर नही होने दिया मैं। अपनी दोनो ओर बराबर जिम्मेदारी है, वुल्फ हो या इंसान। इंसान में भी कपटी होते है, इसका ये मतलब तो नही की सभी इंसान को मार दो। वैसे ही वुल्फ है...

आर्यमणि:– भूमि का चेला...

पलक:– भूमि दीदी है ही ऐसी..

आर्यमणि अपने हाथ जोड़ते... “तुमने मेरे भांजे को बचाया, छोटे (अपस्यु) को बचाया, तुम खामोशी से कितने काम करती रही। तुम्हारा आभार रहेगा।”

पलक:– ओ गुरु भेड़िया, भूलो मत दुश्मनी अभी खत्म नहीं हुई। और मिस अलबेली, क्या अब आप मुझे मेरा सामान दे देंगी, जो आप लोगों से वास्ता नहीं रखता...

अलबेली:– तुम एक नंबर की चोरनी हो ना। कपड़ों के नीचे इतना सारा खजाना। ये बताओ एनर्जी फायर को कहां छिपा कर रखी थी।

पलक:– एनर्जी फायर क्या?

अलबेली:– वही जिसमे जादूगर महान की आत्मा कैद थी...

पलक:– ऐसा सीधा कहो ना। नया नाम रख दी तो मैं दुविधा में आ गयी की शूकेश अपने घर में और कितने राज छिपाए है। चोरी के समान में क्या सब था मुझे उसकी पूरी जानकारी नही। और न ही कोर प्रहरी के बहुत से राज पता है। मैने अपने शरीर पर एक्सपेरिमेंट नही करवाया ना, इसलिए ये लोग मुझे अलग तरह से ट्रीट करते है।

अलबेली:– अलग तरह से ट्रीट मतलब...

पलक:– मतलब उन्हे मुझ पर पूरा विश्वास नही..

अलबेली:– एक्सपेरिमेंट के पहले और बाद क्या अंतर होगा, उल्टा तुम्हे कोई नुकसान भी नही पहुंचा सकता। फिर क्यों न करवाई एक्सपेरिमेंट..

पलक:– कैसे समझाऊं क्यों न करवाई... ऐसे समझो की वो एक्सपेरिमेंट दरिंदा बनाने के लिये किया जाता है। शरीर के अंदर की आत्मा को मारकर बस एक उद्देश्य के लिये प्रेरित करता है।

अलबेली:– कौन सा उद्देश्य?

पलक:– जो है सो हम ही है, और हमारे जैसे लोग... बाकी सब आंडू–गांडू.. पैरों की जूती... जब चाहो रौंद डालो... अब बहुत सवाल कर ली, जा मेरा समान ला, मुझे पूरा खाली कर दी है...

अलबेली:– हां लेकिन पहले ये तो बताओ आधे फिट की वो पत्थर की माला छिपाई कहां थी...

पलक:– तू जब उसे हाथ में ली होगी तो पता चल गया होगा कहां था। अब मुंह मत खुलवाओ और समान लेकर आओ... और आर्य वो अनंत कीर्ति की खुली किताब तो दिखाओ, जिसके पीछे पूरे कोर प्रहरी व्याकुल है...

आर्यमणि, अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोलकर दिखाते... “लो देख लो”...

पलक:– क्या मजाक है, यहां तो कुछ न लिखा।

आर्यमणि:– ये किताब है, इसे पढ़ा जाता है। ये किताब उतना ही उत्तर देगा, जितना इसने देखा है।

पलक:– इसने राजदीप (पलक का वही भाई जो आईपीएस है) को देखा ही होगा ना। उसी के बारे में बताओ किताब?

महा:– आंख मूंदकर राजदीप के बारे में सोचो, फिर आंख खोलो...

पलक, स्मरण करके आंखे खोली। जो किताब पर आ रहा था, उसे पढ़कर तो वह हैरान हो गयी। उसने उज्जवल, यानी अपने पिता का स्मरण किया। आंखें खोली तो इंसानी उज्जवल और बहरूपिया उज्जवल, सबकी जानकारी थी। पलक इस बार फिर आंखे मूंदी। उसके आंखों में आंसू थे। नम आखें खोली और बड़े ध्यान से पढ़ने लगी। पढ़ने के दौरान ही उसने थोड़ा और फिल्टर किया। इस बार आंखे खोलकर जब पढ़ी तो आंखें नम थी और चेहरे पर सुकून। वह किताब पर हाथ फेरने लगी.... “आर्य क्या यहां जो भी लिखा है उसे अलग से दे सकते हो”

आर्यमणि:– अपनी मां के बारे में सोची क्या?

पलक हां में सर हिलाने लगी। आर्यमणि, भी मुस्कुराते हुये हां कहा। अनंत कीर्ति पुस्तक के सामने उसने एक पूरा बंडल कोड़ा पन्ना रख दिया। कुछ मंत्र पढ़े और कोड़े पन्नो पर एक बार हाथ फेरते हुये वह पूरा बंडल पलक के हाथ में थमा दिया। पलक के साथ कई और ऐसे नायजो थे, जिन्हे अपने माता या पिता के बचपन का स्पर्श तो याद था, पर उसके बाद उन्हें निपटा दिया गया। एक–एक करके सभी आते गये और अपने प्रियजन की जानकारी लेकर जाते रहे। हर कोई भावुक होकर बस इतना ही कहता.... “दुनिया की सबसे अनमोल और कीमती उपहार दिये हो भाई।”

पलक के सभी साथी अपने हाथों में अपने माता–पिता की जीवनी समेटे थे। काम खत्म होते ही रूही जैसे ही किताब बंद करने आगे बढ़ी, पलक जिद करती.... “प्लीज मुझे मेरे बचपन के दोस्तों को ढूंढने दो। सार्थक और प्रिया।”

रूही मुस्कुराते हुये हामी भर दी पलक ने स्मरण किया और आंखें खोली। लेकिन आखें खोलने के बाद जैसे ही नजर पन्नो पर गयी..... “आर्य ये क्या है। किताब की जानकारी सही तो है न।”...

आर्यमणि ने किताब देखा... “पलक इसकी जानकारी सही है। सार्थक और प्रिया, गुरु निशि के मृत्यु के वक्त कहां थे और किन लोगों से मिले, पहले इसे जान लेते है?”...

किताब की पूरी जानकारी को देखने के बाद आर्यमणि.... “इन दोनो को तुम जिंदा जलाओगी, या मुझे जाना होगा।”...

पलक:– अब तो दिल पर बोझ सा हो गया है आर्य। सही जगह सूचना देती तो शायद सबकी जान बच जाती। यही दोनो थे जिन्होंने मुझसे कहा था कि मैं गुरु निशि या किसी को कुछ न बताऊं। यही दोनो थे, जिन्होंने मुझसे पैरालिसिस वाली बूटी ली थी और कही थी.... “इलाज के दौरान गुरु निशि अपने विश्वसनीय लोगों के साथ होंगे तब उनसे मिलने के बहाने उन्हे खतरे से आगाह किया जाएगा। वरना अभी गये आगाह करने तो हो सकता है उनके आस पास कुछ ऐसे दुश्मन हो जो मेरी बात को मनगढ़ंत साबित कर दे।”.... उनकी एक–एक चालबाजी याद आ रही। साले कपटी लोग। आर्यमणि इन्हे तो मैं अपने हाथों से जलाऊंगी... लेकिन उस से पहले कैस्टर ऑयल के फूल का जहर का मजा दूंगी। मौत से पहले इन्हे अपने किये पर ऐसा पछतावा होगा की इनकी रूहे दोबारा फिर कभी जन्म ही न लेगी। बस मेरे कुछ लोगों के लिये फर्जी पासपोर्ट का बदोबस्त कर दो।

आर्यमणि:– हो जायेगा... बस तुम चूकना मत। तो सभा समाप्त किया जाये...

पलक, आर्यमणि के गले लगती.... “अपना ख्याल रखना। आने वाला वक्त तुम पर बहुत भारी होने वाला है।”...

आर्यमणि:– सभा समाप्त मतलब अभी अपनी बातचीत की सभा समाप्त करते है। इसके आगे तो बहुत से काम है। वैसे भी अभी तक तो तुमने बड़ी सफाई से अपने शक्तियों के राज से पर्दा उठाने के बदले डिस्कशन को कहीं और मोड़ चुकी हो। बैठकर पहले मेरे आज के मीटिंग के मकसद को देखो, उसके बाद विस्तृत चर्चा होगी।

पलक, आर्यमणि से अलग होती.... “करने क्या वाले हो?”...

इस बार अकेला आर्यमणि नही बल्कि पूरा अल्फा पैक एक साथ... पूरा अल्फा पैक मतलब निशांत और संन्यासी शिवम भी... सभी एक साथ एक सुर में बोले..... “आज सात्त्विक आश्रम का भय वहां तक स्थापित होगा, जहां तक ये विकृत नायजो फैले है। आज पूरे ब्रह्मांड में हम अपनी उपस्थिति का प्रमाण देंगे”
Bhai apki story nishchal wali dono bhag pade hai maine or apki baat sahi hai nandani or nicschal ke reshte ko samjna aam admi ke liye bohot mushkil tha dosti ki prkashta adhbut tha bhai.apki utkrisht lekhni hai ab tak.palak or ruhi main lead mai ho.🙏🙏🙏🙏
 

Tiger 786

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अजुर्मी --- एक और खोजकर , चुनकर , खंगाल कर लाया हुआ नैन प्रभु का किरदार ।
शायद ब्रह्मांड मे मौजूद सबसे ताकतवर प्राणी । लेकिन एक विकृत प्राणी। नाम अजुर्मी और काम जुर्म का। :mad:
आर्य ने एक संकल्प लिया कि पुरे यूनिवर्स से इन विकृत प्राणियों का नामोनिशान मिटा देना है। अर्थात एक बार से रीडर्स को यूनिवर्स का सैर करने को मिलेगा। एक और एडवेंचर देखने को मिलेगा।

पलक इसलिए इन विकृत समुदाय से अलग रह गई कि उसके शरीर के साथ कोई एक्सपेरिमेंटल प्रयोग नही हुआ था। शायद इसीलिए वो जज्बात को महसूस कर रही थी। इसीलिए वो नर-भक्षी बनने से बच गई।
अनंत किर्ति ने उसे ही नही बल्कि उसके साथियों का भी अतीत दर्शन करवा दिया। जो लोग चले गए , वो कभी लौट कर नही आ सकते। लेकिन उनकी यादें , उनकी स्मृतियाँ ऐसी होती है जो हमे स्मरण कराते रहती है कि हम अपने पूर्वजों पर गर्व करें या उन्हे कभी याद ही न करे ।

किताब देखने के बाद पलक कभी सेन्टिमेंट से भर उठी तो कभी सुकून का एहसास हुआ।
रीडर्स जरूर जानने को उत्सुक होंगे उसके इस फीलिंग्स का कारण !

अलबेली की सवाल भी एक करोड़ रूपए की थी। आखिर 6 इंच की पत्थर वाली माला को कहां छुपा रखा था पलक ने ? :hinthint2:

बेहतरीन अपडेट नैन भाई। आउटस्टैंडिंग।
और जगमग जगमग भी।
Kya Sanju Bhai mala kaha chepegi aap ko bi pata hai.hai naaaa bolo bolo🤣🤣🤣
 

king cobra

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Hum chutti kiya aaj koi baat nai sabko aaraam chahiye hum bhi so jate hain :snore:
 

Surya_021

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भाग:–133


खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहा था। वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...

आर्यमणि:– भूल गयी मैं एक डॉक्टर भी हूं।शिवम सर कोई हॉस्पिटल जो आपके ध्यान में में हो। वहां हमे अंतर्ध्यान कीजिए...

संन्यासी शिवम दोनो को लेकर तुरंत ही अंतर्ध्यान हो गये। अंतर्ध्यान होकर सीधा किसी ऑपरेशन थिएटर में पहुंचे, जहां पहले से कुछ लोग मौजूद थे। हालांकि वहां कोई ऑपरेशन तो नही चल रहा था, लेकिन ऑपरेशन से पहले की तैयारी चल रही थी।

एक नर्स... “तुमलोग सीधा अंदर कैसे घुस गये।”

“सॉरी नर्स” कहते हुये आर्यमणि ने ओटी के सारे स्टाफ को जड़ों में पैक किया। तेजी से सारे प्रोसीजर को फॉलो करते यानी की दवाइया वगैरह देकर पेट को खोल दिया। पेट खोलने के बाद पेट के पूरे हिस्से को जांच किया। अंतरियाें के 3–4 हिस्सों से इंटरनल ब्लीडिंग हो रहा था। आर्यमणि उन सभी हिस्सों को ठीक भी कर रहा था और संन्यासी शिवम को वह हिस्सा दिखा भी रहा था।

संन्यासी शिवम:– गुरुदेव उस लड़के एकलाफ के सीने में घुसे चाकू के जख्म को अंदरूनी रूप से जब हील कर सकते हैं। तब पलक का तो ये पेट का मामला था।

आर्यमणि अपना काम जारी रखते.... “शिवम् सर पेट की अंतरियां और दिमाग के अंदरूनी हिस्से दो ऐसी जगह है जहां के इंटरनल ब्लीडिंग कभी–कभी हमारे हाथों से भी हील नही हो सकते। इसलिए तो बिना वक्त गवाए मेडिकल प्रोसीजर करना पड़ा। चलिए अपना काम भी खत्म हो गया।

जहा–जहां से इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी, उन जगहों को ठीक करने के बाद स्टीचेस करके दोनो वापस लौट आये। पलक को डायनिंग टेबल पर ही लिटाया गया। रूही उसे तुरंत ही हील करना शुरू की। कुछ ही समय में पलक पहले की तरह हील हो चुकी थी। थोड़ी कमजोर थी, लेकिन उठकर बैठ चुकी थी।

जितनी देर में ये सब हुआ उतनी ही देर में नेपाल से एक न्यूज वायरल हो रही थी। ओटी में फैले जड़ें और जड़ों में लिपटे लोगों को दिखाया जा रहा था। किसी के हाथ दिख रहे थे तो किसी के पाऊं... जड़ों को काटने की कोशिश की जा रही थी परंतु जितना काटते उतना ही उग आता.... इवान ने जैसे ही यह वायरल न्यूज देखा, डायनिंग टेबल के ऊपर बंधे बड़े से परदे को खोला और उसपर यह वायरल न्यूज चला दिया...

हर कोई उस न्यूज को देख और सुन रहा था.... “जान जल्दी–जल्दी में ये क्या कर आये?”

आर्यमणि:– पलक की हालत के कारण यह भूल हो गयी...

रूही:– ओह हो, पलक को घायल देख सब कुछ भूल गये। कहीं पुराना प्यार तो न जाग गया। इतनी हड़बड़ी...

आर्यमणि:– ताना देना बंद करो। अभी सब ठीक किये देता हूं।

रूही:– उनकी यादस्त मिटाना मत भूलना...

संन्यासी शिवम:– क्या हमें अंतर्ध्यान होकर वापस जाना होगा। मुझे नही लगता की इस वक्त ऐसा करना सही होगा।

आर्यमणि:– नही ये मेरी जड़ें है। यहीं से सब कर लूंगा...

आर्यमणि अपने काम में लग गया। इधर रूही, पलक को घूरती... “क्या मरकर सबक सिखाती”...

पलक रूही के गले लगती.... “तुम लोगों के बीच मैं मर सकती थी क्या, मेरी शौत”..

रूही:– पागल ही है सब... इतनी घायल थी फिर भी लड़े जा रही थी। कामिनी तू मर जाती तो मेरे एंटरटेनमेंट का क्या होता?

दूसरी ओर आर्यमणि अपनी जगह से बैठे–बैठे वो कारनामा भी कर चुका था, जिसे करने से पहले आर्यमणि भी दुविधा में था.... “क्या जड़ें नीचे जायेंगी? क्या उनकी यादस्त मिटा पाऊंगा?”... लेकिन कमाल के प्रशिक्षण और अपने संपूर्ण मनोबल से आर्यमणि यह कारनामा कर चुका था।

डायनिंग टेबल से खुसुर–फुसुर की आवाज आने लगी। माहोल पूरा सामान्य था और एक दूसरे से खींचा–तानी भी शुरू हो चुकी थी। इसी बीच इवान सबका ध्यान अपनी ओर खींचते... “बातें तो होती ही रहेगी, लेकिन काम पर ध्यान दे दे। डंपिंग ग्राउंड में अभी भी हजारों नायजो पड़े है।”

आर्यमणि:– हां उसी पर आ रहे हैं इवान। बस पलक से उसकी अनोखी और इतनी ताकतवर शक्ति का राज तो जान लूं...

पलक:– नही, बहुत बकवास कर लिये। पहले मेरे लोगों को दीवार से उतारो और मुझे कम से कम अनंत कीर्ति की किताब तो दे दो ताकि मैं अपना सर ऊंचा रख सकूं...

आर्यमणि घूरकर देखते.... “वो तुम्हे नही मिल सकती”...

पलक:– ओरिजनल कौन मांग रहा है, उसका डुप्लीकेट दे दो। और जरा वो किताब भी दिखाओ, जिसके खुलने के बाद महा ने ऐसा क्या पढ़ लिया जो मुझे गालियां देते आया। मतलब नायजो को...

महा:– क्यों तुम्हे गाली नही देनी चाहिए क्या?

पलक:– मैं क्या कहूं, ये 4 बेवकूफ जैसे कर्म में लिखा गये हो। मोबाइल नेटवर्क की तरह पीछे पड़ गये हैं। मेरी सुरक्षा के नाम पर मेरे पल्ले इन चार नमूनों को बांध दिया गया है। मैं मजबूर थी महा, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा था। प्लीज मुझे माफ कर दो महा। अब से हम दोनो दोस्त है ना..

महा:– एक शर्त पर माफ करूंगा, मुझे उस चुतिये एकलाफ को तमाचा मारना है।

पलक:– क्यों पहले तू आर्य से नही पूछेगा, उसने एकलाफ को क्यों मेरे साथ बुलाया...

महा:– हां भाव... ये मदरचोद है कौन जिसे पलक के साथ आने कहे, और मुझे न बुलाया..

आर्यमणि:– इसने मुझे भी फोन पर बहुत गंदी और भद्दी गालियां दी थी। खून खौल गया था इसलिए बुला लिया।

महा:– तो क्या अब मैं उसे मार लूं...

पलक:– रुक महा, रूही प्लास्टिक की कैद से रिहाई के साथ–साथ क्या तुम इस चुतिये एकलाफ का शरीर को नॉर्मल कर दोगी, ताकि मार का असर पड़े...

महा:– क्या मतलब नॉर्मल करना..

रूही:– वुल्फ शरीर से कहीं ज्यादा खतरनाक नायजो का एक्सपेरिमेंट शरीर है। इसके अंदर चाकू घुसा के छोड़ दो तो वो चाकू शरीर के अंदर ही गल जायेगा..

महा:– ओ तेरी कतई खतरनाक... साला तभी जोर से कह रहा था, हम मारने पर उतरे तो मर जाना चाहिए... अब बोल ना भोसडी के...

रूही:– जुबान काहे गंदा कर रहे महा... लो ये मार खाने को तैयार है....

महा, उस एकलाफ के ओर बढ़ते.... “और कुछ है जो हमे इनके शरीर के बारे में जानना चाहिए।”...

पलक:– यहां से हम साथ निकलेंगे। सब बता दूंगी। पहले मारकर भड़ास निकाल लो...

“कामिनी गद्दार”.... एकलाफ अपनी बात कहकर अपने हाथ से आग, बिजली का बवंडर उठा दिया जो हवा में आते ही फुस्स हो गया। महा के अंदर खून में आया उबाल। दे लाफा पर लाफा मार–मार कर गाल और मुंह सुजा दिया। आर्यमणि उसका चिल्लाना सुनकर मुंह को पूरा ही जड़ से पैक कर दिया। इधर ओजल, पलक के 30 लोगों को दीवार से उतार चुकी थी, जो वहीं डायनिंग टेबल से लगे कुर्सियों पर बैठे चुके थे।

आर्यमणि:– तुम्हारे लोगों को छोड़ दिया है। और किसी को छोड़ना है...

पलक:– हां वो कांटों की चिता पर 22 लोग और है, उन्हे भी छोड़ दो। वो हमारे ट्रेनी है।

आर्यमणि:– रूही क्या उनके पास समय बचा है।

रूही:– 5 घंटे हुये होंगे.... सब बच जायेंगे...

आर्यमणि, पलक के ओर लैपटॉप करते.... अपने 22 लोगों के चेहरे पहचानो... इवान और अलबेली तुम दोनो उन 22 को ले आओ। ये बताओ तुम्हारे इन चारो नमूनों का क्या करना है?”...

पलक:– चारो इंसानी मांस के बहुत प्रेमी है। विकृत नायजो के हर पाप में इन लोगों ने हिस्सा लिया है। सबको भट्टी में झोंक देना...

आर्यमणि और रूही दोनो पलक को हैरानी से देखते.... “तुम्हे कैसे पता?”...

पलक, अपना सर उठाकर एक बार दोनो को देखी और वापस से लैपटॉप में घुसती.... “तुमने तो गुरु निशि और उनके शिष्यों के मौत की भट्टी के बारे में सुना होगा, मैने तो देखा था। वो चिंखते लोग... रोते, बिलखते, जलन के दर्द से छटपटाते बच्चे... मैं उस भट्टी को कैसे भुल सकती हूं। मैं डंपिंग ग्राउंड गयी थी, देखकर ही समझ गयी की ये भी जिंदा जलेंगे”...

“वैसे तुमने गुरु निशि के दोषियों को जब उनके अंजाम तक पहुंचा ही रहे हो, तो एक नाम के बारे में तुम्हे बता दूं। हालांकि इस नाम की चर्चा तो मैं करती ही। किंतु बात जब चल ही रही है, तो यही उपयुक्त समय है कि तुम अपने एक अंजान दुश्मन के बारे में अच्छी तरह से जान लो।”

“गुरु निशि के आश्रम के कांड की मुखिया का नाम अजुर्मी है। योजना बनाने से लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाने का बीड़ा इसी अजुर्मी ने उठाया था। इस वक्त वह किसी अन्य ग्रह पर है, लेकिन तुम ध्यान से रहना। क्योंकि आज के कांड के बाद अब तुम्हारे पीछे कोई नही आयेगा... बस उसी के लोग आयेंगे। पृथ्वी पर जितने नायजो है, उसकी गॉडमदर। पृथ्वी के कई नरसंहार की दोषी। अब वो तुम्हारे पीछे होगी। विश्वास मानो यदि यमराज मौत के देवता है, तो अजुर्मी ऊसे भी मौत देने का कलेजा रखती है। शातिर उतनी ही। जरूरी नही की तुम्हे मारने वो नायजो को ही भेजे। वो किसी को भी भेज सकती है। तुम जरा होशियार रहना। ये लो मेरा काम भी हो गया, उन 22 लोगों को अब जल्दी से अच्छा करके मेरे सामने ले आओ”..

पलक के सभी 22 ट्रेनी भारती के तरह ही मृत्यु के कांटों पर लेटे थे। शरीर में भयानक पीड़ा को मेहसूस करते कई घंटों से पड़े थे। उन सभी 22 ट्रेनी को कांटों के अर्थी समेत ही हॉल में लाया गया। हॉल में जैसे ही वो पहुंचे, आर्यमणि ने अपनी आंखे मूंद ली। सभी 22 एक साथ जड़ की एक चेन में कनेक्ट हो गये। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने आर्यमणि का हाथ थाम लिया। वहां मौजूद हर कोई देख सकता था, जड़ों की ऊपरी सतह पर काला द्रव्य बह रहा था और वो बहते हुये धीरे–धीरे अल्फा पैक के नब्ज में उतरने लगा। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने पहले कैस्टर के जहर को झेला था, इसलिए अब ये टॉक्सिक उनके लिये आम टॉक्सिक जैसा ही था। उन्हे हील करने में लगभग एक घंटा का वक्त लग गया।

ये सभी 22 लोग केवल कैस्टर के जहर को नही झेल रहे थे। इन 22 नायजो में एक भी एक्सपेरिमेंट बॉडी नही था। ऊपर से उनके सामान्य शरीर में 100 मोटे काटो का घुसा होना। इन्हे लाया भी गया था तो कांटा के अर्थी सहित लाया गया था, क्योंकि अल्फा पैक को पता था कांटा हटा, और सबकी मौत हुई। काटो की चपेट मे जो भी अंग थे वो धीरे–धीरे हील होते और उस जगह से कांटा हील होने दौरान ही धीरे–धीरे बाहर आ जाता। और इन्ही सब प्रोसेस से उन्हे हील करने में काफी वक्त लगा, किंतु जान बच गयी।

अद्भुत नजारा था जिसे आज तक किसी संन्यासी तक ने नही देखा था। सभी एक साथ नतमस्तक हो गये। उन 22 लोगों को हील करने के बाद सबको फिर जड़ों में लपेटकर दूसरे मंजिल के कमरों में भेज दिया गया, जहां उनके शरीर तक जरूरी औषधि पहुंचाने के बाद जड़ें अपने आप गायब हो जाती।

महा:– अरे बाबा रेरे बाबा... भाव वोल्फ ये भी कर सकते है क्या?

आर्यमणि:– तुम्हे तो वुल्फ हंटर बनाया गया था न... फिर वुल्फ के कारनामों पर अचरज..

महा:– भाव जो दिखाया वही देखे, जो सिखाया वही सीखे लेकिन जब मैदान में आये तो जो सही था और न्यायपूर्ण वही किया। सोलापुर से लेकर कोल्हापुर तक एक भी वुल्फ का शिकर नही होने दिया मैं। अपनी दोनो ओर बराबर जिम्मेदारी है, वुल्फ हो या इंसान। इंसान में भी कपटी होते है, इसका ये मतलब तो नही की सभी इंसान को मार दो। वैसे ही वुल्फ है...

आर्यमणि:– भूमि का चेला...

पलक:– भूमि दीदी है ही ऐसी..

आर्यमणि अपने हाथ जोड़ते... “तुमने मेरे भांजे को बचाया, छोटे (अपस्यु) को बचाया, तुम खामोशी से कितने काम करती रही। तुम्हारा आभार रहेगा।”

पलक:– ओ गुरु भेड़िया, भूलो मत दुश्मनी अभी खत्म नहीं हुई। और मिस अलबेली, क्या अब आप मुझे मेरा सामान दे देंगी, जो आप लोगों से वास्ता नहीं रखता...

अलबेली:– तुम एक नंबर की चोरनी हो ना। कपड़ों के नीचे इतना सारा खजाना। ये बताओ एनर्जी फायर को कहां छिपा कर रखी थी।

पलक:– एनर्जी फायर क्या?

अलबेली:– वही जिसमे जादूगर महान की आत्मा कैद थी...

पलक:– ऐसा सीधा कहो ना। नया नाम रख दी तो मैं दुविधा में आ गयी की शूकेश अपने घर में और कितने राज छिपाए है। चोरी के समान में क्या सब था मुझे उसकी पूरी जानकारी नही। और न ही कोर प्रहरी के बहुत से राज पता है। मैने अपने शरीर पर एक्सपेरिमेंट नही करवाया ना, इसलिए ये लोग मुझे अलग तरह से ट्रीट करते है।

अलबेली:– अलग तरह से ट्रीट मतलब...

पलक:– मतलब उन्हे मुझ पर पूरा विश्वास नही..

अलबेली:– एक्सपेरिमेंट के पहले और बाद क्या अंतर होगा, उल्टा तुम्हे कोई नुकसान भी नही पहुंचा सकता। फिर क्यों न करवाई एक्सपेरिमेंट..

पलक:– कैसे समझाऊं क्यों न करवाई... ऐसे समझो की वो एक्सपेरिमेंट दरिंदा बनाने के लिये किया जाता है। शरीर के अंदर की आत्मा को मारकर बस एक उद्देश्य के लिये प्रेरित करता है।

अलबेली:– कौन सा उद्देश्य?

पलक:– जो है सो हम ही है, और हमारे जैसे लोग... बाकी सब आंडू–गांडू.. पैरों की जूती... जब चाहो रौंद डालो... अब बहुत सवाल कर ली, जा मेरा समान ला, मुझे पूरा खाली कर दी है...

अलबेली:– हां लेकिन पहले ये तो बताओ आधे फिट की वो पत्थर की माला छिपाई कहां थी...

पलक:– तू जब उसे हाथ में ली होगी तो पता चल गया होगा कहां था। अब मुंह मत खुलवाओ और समान लेकर आओ... और आर्य वो अनंत कीर्ति की खुली किताब तो दिखाओ, जिसके पीछे पूरे कोर प्रहरी व्याकुल है...

आर्यमणि, अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोलकर दिखाते... “लो देख लो”...

पलक:– क्या मजाक है, यहां तो कुछ न लिखा।

आर्यमणि:– ये किताब है, इसे पढ़ा जाता है। ये किताब उतना ही उत्तर देगा, जितना इसने देखा है।

पलक:– इसने राजदीप (पलक का वही भाई जो आईपीएस है) को देखा ही होगा ना। उसी के बारे में बताओ किताब?

महा:– आंख मूंदकर राजदीप के बारे में सोचो, फिर आंख खोलो...

पलक, स्मरण करके आंखे खोली। जो किताब पर आ रहा था, उसे पढ़कर तो वह हैरान हो गयी। उसने उज्जवल, यानी अपने पिता का स्मरण किया। आंखें खोली तो इंसानी उज्जवल और बहरूपिया उज्जवल, सबकी जानकारी थी। पलक इस बार फिर आंखे मूंदी। उसके आंखों में आंसू थे। नम आखें खोली और बड़े ध्यान से पढ़ने लगी। पढ़ने के दौरान ही उसने थोड़ा और फिल्टर किया। इस बार आंखे खोलकर जब पढ़ी तो आंखें नम थी और चेहरे पर सुकून। वह किताब पर हाथ फेरने लगी.... “आर्य क्या यहां जो भी लिखा है उसे अलग से दे सकते हो”

आर्यमणि:– अपनी मां के बारे में सोची क्या?

पलक हां में सर हिलाने लगी। आर्यमणि, भी मुस्कुराते हुये हां कहा। अनंत कीर्ति पुस्तक के सामने उसने एक पूरा बंडल कोड़ा पन्ना रख दिया। कुछ मंत्र पढ़े और कोड़े पन्नो पर एक बार हाथ फेरते हुये वह पूरा बंडल पलक के हाथ में थमा दिया। पलक के साथ कई और ऐसे नायजो थे, जिन्हे अपने माता या पिता के बचपन का स्पर्श तो याद था, पर उसके बाद उन्हें निपटा दिया गया। एक–एक करके सभी आते गये और अपने प्रियजन की जानकारी लेकर जाते रहे। हर कोई भावुक होकर बस इतना ही कहता.... “दुनिया की सबसे अनमोल और कीमती उपहार दिये हो भाई।”

पलक के सभी साथी अपने हाथों में अपने माता–पिता की जीवनी समेटे थे। काम खत्म होते ही रूही जैसे ही किताब बंद करने आगे बढ़ी, पलक जिद करती.... “प्लीज मुझे मेरे बचपन के दोस्तों को ढूंढने दो। सार्थक और प्रिया।”

रूही मुस्कुराते हुये हामी भर दी पलक ने स्मरण किया और आंखें खोली। लेकिन आखें खोलने के बाद जैसे ही नजर पन्नो पर गयी..... “आर्य ये क्या है। किताब की जानकारी सही तो है न।”...

आर्यमणि ने किताब देखा... “पलक इसकी जानकारी सही है। सार्थक और प्रिया, गुरु निशि के मृत्यु के वक्त कहां थे और किन लोगों से मिले, पहले इसे जान लेते है?”...

किताब की पूरी जानकारी को देखने के बाद आर्यमणि.... “इन दोनो को तुम जिंदा जलाओगी, या मुझे जाना होगा।”...

पलक:– अब तो दिल पर बोझ सा हो गया है आर्य। सही जगह सूचना देती तो शायद सबकी जान बच जाती। यही दोनो थे जिन्होंने मुझसे कहा था कि मैं गुरु निशि या किसी को कुछ न बताऊं। यही दोनो थे, जिन्होंने मुझसे पैरालिसिस वाली बूटी ली थी और कही थी.... “इलाज के दौरान गुरु निशि अपने विश्वसनीय लोगों के साथ होंगे तब उनसे मिलने के बहाने उन्हे खतरे से आगाह किया जाएगा। वरना अभी गये आगाह करने तो हो सकता है उनके आस पास कुछ ऐसे दुश्मन हो जो मेरी बात को मनगढ़ंत साबित कर दे।”.... उनकी एक–एक चालबाजी याद आ रही। साले कपटी लोग। आर्यमणि इन्हे तो मैं अपने हाथों से जलाऊंगी... लेकिन उस से पहले कैस्टर ऑयल के फूल का जहर का मजा दूंगी। मौत से पहले इन्हे अपने किये पर ऐसा पछतावा होगा की इनकी रूहे दोबारा फिर कभी जन्म ही न लेगी। बस मेरे कुछ लोगों के लिये फर्जी पासपोर्ट का बदोबस्त कर दो।

आर्यमणि:– हो जायेगा... बस तुम चूकना मत। तो सभा समाप्त किया जाये...

पलक, आर्यमणि के गले लगती.... “अपना ख्याल रखना। आने वाला वक्त तुम पर बहुत भारी होने वाला है।”...

आर्यमणि:– सभा समाप्त मतलब अभी अपनी बातचीत की सभा समाप्त करते है। इसके आगे तो बहुत से काम है। वैसे भी अभी तक तो तुमने बड़ी सफाई से अपने शक्तियों के राज से पर्दा उठाने के बदले डिस्कशन को कहीं और मोड़ चुकी हो। बैठकर पहले मेरे आज के मीटिंग के मकसद को देखो, उसके बाद विस्तृत चर्चा होगी।

पलक, आर्यमणि से अलग होती.... “करने क्या वाले हो?”...

इस बार अकेला आर्यमणि नही बल्कि पूरा अल्फा पैक एक साथ... पूरा अल्फा पैक मतलब निशांत और संन्यासी शिवम भी... सभी एक साथ एक सुर में बोले..... “आज सात्त्विक आश्रम का भय वहां तक स्थापित होगा, जहां तक ये विकृत नायजो फैले है। आज पूरे ब्रह्मांड में हम अपनी उपस्थिति का प्रमाण देंगे”

Superb update 😍
 

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I love Fantasy and Sci-fiction story.
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भाग:–133


खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहा था। वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...

आर्यमणि:– भूल गयी मैं एक डॉक्टर भी हूं।शिवम सर कोई हॉस्पिटल जो आपके ध्यान में में हो। वहां हमे अंतर्ध्यान कीजिए...

संन्यासी शिवम दोनो को लेकर तुरंत ही अंतर्ध्यान हो गये। अंतर्ध्यान होकर सीधा किसी ऑपरेशन थिएटर में पहुंचे, जहां पहले से कुछ लोग मौजूद थे। हालांकि वहां कोई ऑपरेशन तो नही चल रहा था, लेकिन ऑपरेशन से पहले की तैयारी चल रही थी।

एक नर्स... “तुमलोग सीधा अंदर कैसे घुस गये।”

“सॉरी नर्स” कहते हुये आर्यमणि ने ओटी के सारे स्टाफ को जड़ों में पैक किया। तेजी से सारे प्रोसीजर को फॉलो करते यानी की दवाइया वगैरह देकर पेट को खोल दिया। पेट खोलने के बाद पेट के पूरे हिस्से को जांच किया। अंतरियाें के 3–4 हिस्सों से इंटरनल ब्लीडिंग हो रहा था। आर्यमणि उन सभी हिस्सों को ठीक भी कर रहा था और संन्यासी शिवम को वह हिस्सा दिखा भी रहा था।

संन्यासी शिवम:– गुरुदेव उस लड़के एकलाफ के सीने में घुसे चाकू के जख्म को अंदरूनी रूप से जब हील कर सकते हैं। तब पलक का तो ये पेट का मामला था।

आर्यमणि अपना काम जारी रखते.... “शिवम् सर पेट की अंतरियां और दिमाग के अंदरूनी हिस्से दो ऐसी जगह है जहां के इंटरनल ब्लीडिंग कभी–कभी हमारे हाथों से भी हील नही हो सकते। इसलिए तो बिना वक्त गवाए मेडिकल प्रोसीजर करना पड़ा। चलिए अपना काम भी खत्म हो गया।

जहा–जहां से इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी, उन जगहों को ठीक करने के बाद स्टीचेस करके दोनो वापस लौट आये। पलक को डायनिंग टेबल पर ही लिटाया गया। रूही उसे तुरंत ही हील करना शुरू की। कुछ ही समय में पलक पहले की तरह हील हो चुकी थी। थोड़ी कमजोर थी, लेकिन उठकर बैठ चुकी थी।

जितनी देर में ये सब हुआ उतनी ही देर में नेपाल से एक न्यूज वायरल हो रही थी। ओटी में फैले जड़ें और जड़ों में लिपटे लोगों को दिखाया जा रहा था। किसी के हाथ दिख रहे थे तो किसी के पाऊं... जड़ों को काटने की कोशिश की जा रही थी परंतु जितना काटते उतना ही उग आता.... इवान ने जैसे ही यह वायरल न्यूज देखा, डायनिंग टेबल के ऊपर बंधे बड़े से परदे को खोला और उसपर यह वायरल न्यूज चला दिया...

हर कोई उस न्यूज को देख और सुन रहा था.... “जान जल्दी–जल्दी में ये क्या कर आये?”

आर्यमणि:– पलक की हालत के कारण यह भूल हो गयी...

रूही:– ओह हो, पलक को घायल देख सब कुछ भूल गये। कहीं पुराना प्यार तो न जाग गया। इतनी हड़बड़ी...

आर्यमणि:– ताना देना बंद करो। अभी सब ठीक किये देता हूं।

रूही:– उनकी यादस्त मिटाना मत भूलना...

संन्यासी शिवम:– क्या हमें अंतर्ध्यान होकर वापस जाना होगा। मुझे नही लगता की इस वक्त ऐसा करना सही होगा।

आर्यमणि:– नही ये मेरी जड़ें है। यहीं से सब कर लूंगा...

आर्यमणि अपने काम में लग गया। इधर रूही, पलक को घूरती... “क्या मरकर सबक सिखाती”...

पलक रूही के गले लगती.... “तुम लोगों के बीच मैं मर सकती थी क्या, मेरी शौत”..

रूही:– पागल ही है सब... इतनी घायल थी फिर भी लड़े जा रही थी। कामिनी तू मर जाती तो मेरे एंटरटेनमेंट का क्या होता?

दूसरी ओर आर्यमणि अपनी जगह से बैठे–बैठे वो कारनामा भी कर चुका था, जिसे करने से पहले आर्यमणि भी दुविधा में था.... “क्या जड़ें नीचे जायेंगी? क्या उनकी यादस्त मिटा पाऊंगा?”... लेकिन कमाल के प्रशिक्षण और अपने संपूर्ण मनोबल से आर्यमणि यह कारनामा कर चुका था।

डायनिंग टेबल से खुसुर–फुसुर की आवाज आने लगी। माहोल पूरा सामान्य था और एक दूसरे से खींचा–तानी भी शुरू हो चुकी थी। इसी बीच इवान सबका ध्यान अपनी ओर खींचते... “बातें तो होती ही रहेगी, लेकिन काम पर ध्यान दे दे। डंपिंग ग्राउंड में अभी भी हजारों नायजो पड़े है।”

आर्यमणि:– हां उसी पर आ रहे हैं इवान। बस पलक से उसकी अनोखी और इतनी ताकतवर शक्ति का राज तो जान लूं...

पलक:– नही, बहुत बकवास कर लिये। पहले मेरे लोगों को दीवार से उतारो और मुझे कम से कम अनंत कीर्ति की किताब तो दे दो ताकि मैं अपना सर ऊंचा रख सकूं...

आर्यमणि घूरकर देखते.... “वो तुम्हे नही मिल सकती”...

पलक:– ओरिजनल कौन मांग रहा है, उसका डुप्लीकेट दे दो। और जरा वो किताब भी दिखाओ, जिसके खुलने के बाद महा ने ऐसा क्या पढ़ लिया जो मुझे गालियां देते आया। मतलब नायजो को...

महा:– क्यों तुम्हे गाली नही देनी चाहिए क्या?

पलक:– मैं क्या कहूं, ये 4 बेवकूफ जैसे कर्म में लिखा गये हो। मोबाइल नेटवर्क की तरह पीछे पड़ गये हैं। मेरी सुरक्षा के नाम पर मेरे पल्ले इन चार नमूनों को बांध दिया गया है। मैं मजबूर थी महा, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा था। प्लीज मुझे माफ कर दो महा। अब से हम दोनो दोस्त है ना..

महा:– एक शर्त पर माफ करूंगा, मुझे उस चुतिये एकलाफ को तमाचा मारना है।

पलक:– क्यों पहले तू आर्य से नही पूछेगा, उसने एकलाफ को क्यों मेरे साथ बुलाया...

महा:– हां भाव... ये मदरचोद है कौन जिसे पलक के साथ आने कहे, और मुझे न बुलाया..

आर्यमणि:– इसने मुझे भी फोन पर बहुत गंदी और भद्दी गालियां दी थी। खून खौल गया था इसलिए बुला लिया।

महा:– तो क्या अब मैं उसे मार लूं...

पलक:– रुक महा, रूही प्लास्टिक की कैद से रिहाई के साथ–साथ क्या तुम इस चुतिये एकलाफ का शरीर को नॉर्मल कर दोगी, ताकि मार का असर पड़े...

महा:– क्या मतलब नॉर्मल करना..

रूही:– वुल्फ शरीर से कहीं ज्यादा खतरनाक नायजो का एक्सपेरिमेंट शरीर है। इसके अंदर चाकू घुसा के छोड़ दो तो वो चाकू शरीर के अंदर ही गल जायेगा..

महा:– ओ तेरी कतई खतरनाक... साला तभी जोर से कह रहा था, हम मारने पर उतरे तो मर जाना चाहिए... अब बोल ना भोसडी के...

रूही:– जुबान काहे गंदा कर रहे महा... लो ये मार खाने को तैयार है....

महा, उस एकलाफ के ओर बढ़ते.... “और कुछ है जो हमे इनके शरीर के बारे में जानना चाहिए।”...

पलक:– यहां से हम साथ निकलेंगे। सब बता दूंगी। पहले मारकर भड़ास निकाल लो...

“कामिनी गद्दार”.... एकलाफ अपनी बात कहकर अपने हाथ से आग, बिजली का बवंडर उठा दिया जो हवा में आते ही फुस्स हो गया। महा के अंदर खून में आया उबाल। दे लाफा पर लाफा मार–मार कर गाल और मुंह सुजा दिया। आर्यमणि उसका चिल्लाना सुनकर मुंह को पूरा ही जड़ से पैक कर दिया। इधर ओजल, पलक के 30 लोगों को दीवार से उतार चुकी थी, जो वहीं डायनिंग टेबल से लगे कुर्सियों पर बैठे चुके थे।

आर्यमणि:– तुम्हारे लोगों को छोड़ दिया है। और किसी को छोड़ना है...

पलक:– हां वो कांटों की चिता पर 22 लोग और है, उन्हे भी छोड़ दो। वो हमारे ट्रेनी है।

आर्यमणि:– रूही क्या उनके पास समय बचा है।

रूही:– 5 घंटे हुये होंगे.... सब बच जायेंगे...

आर्यमणि, पलक के ओर लैपटॉप करते.... अपने 22 लोगों के चेहरे पहचानो... इवान और अलबेली तुम दोनो उन 22 को ले आओ। ये बताओ तुम्हारे इन चारो नमूनों का क्या करना है?”...

पलक:– चारो इंसानी मांस के बहुत प्रेमी है। विकृत नायजो के हर पाप में इन लोगों ने हिस्सा लिया है। सबको भट्टी में झोंक देना...

आर्यमणि और रूही दोनो पलक को हैरानी से देखते.... “तुम्हे कैसे पता?”...

पलक, अपना सर उठाकर एक बार दोनो को देखी और वापस से लैपटॉप में घुसती.... “तुमने तो गुरु निशि और उनके शिष्यों के मौत की भट्टी के बारे में सुना होगा, मैने तो देखा था। वो चिंखते लोग... रोते, बिलखते, जलन के दर्द से छटपटाते बच्चे... मैं उस भट्टी को कैसे भुल सकती हूं। मैं डंपिंग ग्राउंड गयी थी, देखकर ही समझ गयी की ये भी जिंदा जलेंगे”...

“वैसे तुमने गुरु निशि के दोषियों को जब उनके अंजाम तक पहुंचा ही रहे हो, तो एक नाम के बारे में तुम्हे बता दूं। हालांकि इस नाम की चर्चा तो मैं करती ही। किंतु बात जब चल ही रही है, तो यही उपयुक्त समय है कि तुम अपने एक अंजान दुश्मन के बारे में अच्छी तरह से जान लो।”

“गुरु निशि के आश्रम के कांड की मुखिया का नाम अजुर्मी है। योजना बनाने से लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाने का बीड़ा इसी अजुर्मी ने उठाया था। इस वक्त वह किसी अन्य ग्रह पर है, लेकिन तुम ध्यान से रहना। क्योंकि आज के कांड के बाद अब तुम्हारे पीछे कोई नही आयेगा... बस उसी के लोग आयेंगे। पृथ्वी पर जितने नायजो है, उसकी गॉडमदर। पृथ्वी के कई नरसंहार की दोषी। अब वो तुम्हारे पीछे होगी। विश्वास मानो यदि यमराज मौत के देवता है, तो अजुर्मी ऊसे भी मौत देने का कलेजा रखती है। शातिर उतनी ही। जरूरी नही की तुम्हे मारने वो नायजो को ही भेजे। वो किसी को भी भेज सकती है। तुम जरा होशियार रहना। ये लो मेरा काम भी हो गया, उन 22 लोगों को अब जल्दी से अच्छा करके मेरे सामने ले आओ”..

पलक के सभी 22 ट्रेनी भारती के तरह ही मृत्यु के कांटों पर लेटे थे। शरीर में भयानक पीड़ा को मेहसूस करते कई घंटों से पड़े थे। उन सभी 22 ट्रेनी को कांटों के अर्थी समेत ही हॉल में लाया गया। हॉल में जैसे ही वो पहुंचे, आर्यमणि ने अपनी आंखे मूंद ली। सभी 22 एक साथ जड़ की एक चेन में कनेक्ट हो गये। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने आर्यमणि का हाथ थाम लिया। वहां मौजूद हर कोई देख सकता था, जड़ों की ऊपरी सतह पर काला द्रव्य बह रहा था और वो बहते हुये धीरे–धीरे अल्फा पैक के नब्ज में उतरने लगा। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने पहले कैस्टर के जहर को झेला था, इसलिए अब ये टॉक्सिक उनके लिये आम टॉक्सिक जैसा ही था। उन्हे हील करने में लगभग एक घंटा का वक्त लग गया।

ये सभी 22 लोग केवल कैस्टर के जहर को नही झेल रहे थे। इन 22 नायजो में एक भी एक्सपेरिमेंट बॉडी नही था। ऊपर से उनके सामान्य शरीर में 100 मोटे काटो का घुसा होना। इन्हे लाया भी गया था तो कांटा के अर्थी सहित लाया गया था, क्योंकि अल्फा पैक को पता था कांटा हटा, और सबकी मौत हुई। काटो की चपेट मे जो भी अंग थे वो धीरे–धीरे हील होते और उस जगह से कांटा हील होने दौरान ही धीरे–धीरे बाहर आ जाता। और इन्ही सब प्रोसेस से उन्हे हील करने में काफी वक्त लगा, किंतु जान बच गयी।

अद्भुत नजारा था जिसे आज तक किसी संन्यासी तक ने नही देखा था। सभी एक साथ नतमस्तक हो गये। उन 22 लोगों को हील करने के बाद सबको फिर जड़ों में लपेटकर दूसरे मंजिल के कमरों में भेज दिया गया, जहां उनके शरीर तक जरूरी औषधि पहुंचाने के बाद जड़ें अपने आप गायब हो जाती।

महा:– अरे बाबा रेरे बाबा... भाव वोल्फ ये भी कर सकते है क्या?

आर्यमणि:– तुम्हे तो वुल्फ हंटर बनाया गया था न... फिर वुल्फ के कारनामों पर अचरज..

महा:– भाव जो दिखाया वही देखे, जो सिखाया वही सीखे लेकिन जब मैदान में आये तो जो सही था और न्यायपूर्ण वही किया। सोलापुर से लेकर कोल्हापुर तक एक भी वुल्फ का शिकर नही होने दिया मैं। अपनी दोनो ओर बराबर जिम्मेदारी है, वुल्फ हो या इंसान। इंसान में भी कपटी होते है, इसका ये मतलब तो नही की सभी इंसान को मार दो। वैसे ही वुल्फ है...

आर्यमणि:– भूमि का चेला...

पलक:– भूमि दीदी है ही ऐसी..

आर्यमणि अपने हाथ जोड़ते... “तुमने मेरे भांजे को बचाया, छोटे (अपस्यु) को बचाया, तुम खामोशी से कितने काम करती रही। तुम्हारा आभार रहेगा।”

पलक:– ओ गुरु भेड़िया, भूलो मत दुश्मनी अभी खत्म नहीं हुई। और मिस अलबेली, क्या अब आप मुझे मेरा सामान दे देंगी, जो आप लोगों से वास्ता नहीं रखता...

अलबेली:– तुम एक नंबर की चोरनी हो ना। कपड़ों के नीचे इतना सारा खजाना। ये बताओ एनर्जी फायर को कहां छिपा कर रखी थी।

पलक:– एनर्जी फायर क्या?

अलबेली:– वही जिसमे जादूगर महान की आत्मा कैद थी...

पलक:– ऐसा सीधा कहो ना। नया नाम रख दी तो मैं दुविधा में आ गयी की शूकेश अपने घर में और कितने राज छिपाए है। चोरी के समान में क्या सब था मुझे उसकी पूरी जानकारी नही। और न ही कोर प्रहरी के बहुत से राज पता है। मैने अपने शरीर पर एक्सपेरिमेंट नही करवाया ना, इसलिए ये लोग मुझे अलग तरह से ट्रीट करते है।

अलबेली:– अलग तरह से ट्रीट मतलब...

पलक:– मतलब उन्हे मुझ पर पूरा विश्वास नही..

अलबेली:– एक्सपेरिमेंट के पहले और बाद क्या अंतर होगा, उल्टा तुम्हे कोई नुकसान भी नही पहुंचा सकता। फिर क्यों न करवाई एक्सपेरिमेंट..

पलक:– कैसे समझाऊं क्यों न करवाई... ऐसे समझो की वो एक्सपेरिमेंट दरिंदा बनाने के लिये किया जाता है। शरीर के अंदर की आत्मा को मारकर बस एक उद्देश्य के लिये प्रेरित करता है।

अलबेली:– कौन सा उद्देश्य?

पलक:– जो है सो हम ही है, और हमारे जैसे लोग... बाकी सब आंडू–गांडू.. पैरों की जूती... जब चाहो रौंद डालो... अब बहुत सवाल कर ली, जा मेरा समान ला, मुझे पूरा खाली कर दी है...

अलबेली:– हां लेकिन पहले ये तो बताओ आधे फिट की वो पत्थर की माला छिपाई कहां थी...

पलक:– तू जब उसे हाथ में ली होगी तो पता चल गया होगा कहां था। अब मुंह मत खुलवाओ और समान लेकर आओ... और आर्य वो अनंत कीर्ति की खुली किताब तो दिखाओ, जिसके पीछे पूरे कोर प्रहरी व्याकुल है...

आर्यमणि, अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोलकर दिखाते... “लो देख लो”...

पलक:– क्या मजाक है, यहां तो कुछ न लिखा।

आर्यमणि:– ये किताब है, इसे पढ़ा जाता है। ये किताब उतना ही उत्तर देगा, जितना इसने देखा है।

पलक:– इसने राजदीप (पलक का वही भाई जो आईपीएस है) को देखा ही होगा ना। उसी के बारे में बताओ किताब?

महा:– आंख मूंदकर राजदीप के बारे में सोचो, फिर आंख खोलो...

पलक, स्मरण करके आंखे खोली। जो किताब पर आ रहा था, उसे पढ़कर तो वह हैरान हो गयी। उसने उज्जवल, यानी अपने पिता का स्मरण किया। आंखें खोली तो इंसानी उज्जवल और बहरूपिया उज्जवल, सबकी जानकारी थी। पलक इस बार फिर आंखे मूंदी। उसके आंखों में आंसू थे। नम आखें खोली और बड़े ध्यान से पढ़ने लगी। पढ़ने के दौरान ही उसने थोड़ा और फिल्टर किया। इस बार आंखे खोलकर जब पढ़ी तो आंखें नम थी और चेहरे पर सुकून। वह किताब पर हाथ फेरने लगी.... “आर्य क्या यहां जो भी लिखा है उसे अलग से दे सकते हो”

आर्यमणि:– अपनी मां के बारे में सोची क्या?

पलक हां में सर हिलाने लगी। आर्यमणि, भी मुस्कुराते हुये हां कहा। अनंत कीर्ति पुस्तक के सामने उसने एक पूरा बंडल कोड़ा पन्ना रख दिया। कुछ मंत्र पढ़े और कोड़े पन्नो पर एक बार हाथ फेरते हुये वह पूरा बंडल पलक के हाथ में थमा दिया। पलक के साथ कई और ऐसे नायजो थे, जिन्हे अपने माता या पिता के बचपन का स्पर्श तो याद था, पर उसके बाद उन्हें निपटा दिया गया। एक–एक करके सभी आते गये और अपने प्रियजन की जानकारी लेकर जाते रहे। हर कोई भावुक होकर बस इतना ही कहता.... “दुनिया की सबसे अनमोल और कीमती उपहार दिये हो भाई।”

पलक के सभी साथी अपने हाथों में अपने माता–पिता की जीवनी समेटे थे। काम खत्म होते ही रूही जैसे ही किताब बंद करने आगे बढ़ी, पलक जिद करती.... “प्लीज मुझे मेरे बचपन के दोस्तों को ढूंढने दो। सार्थक और प्रिया।”

रूही मुस्कुराते हुये हामी भर दी पलक ने स्मरण किया और आंखें खोली। लेकिन आखें खोलने के बाद जैसे ही नजर पन्नो पर गयी..... “आर्य ये क्या है। किताब की जानकारी सही तो है न।”...

आर्यमणि ने किताब देखा... “पलक इसकी जानकारी सही है। सार्थक और प्रिया, गुरु निशि के मृत्यु के वक्त कहां थे और किन लोगों से मिले, पहले इसे जान लेते है?”...

किताब की पूरी जानकारी को देखने के बाद आर्यमणि.... “इन दोनो को तुम जिंदा जलाओगी, या मुझे जाना होगा।”...

पलक:– अब तो दिल पर बोझ सा हो गया है आर्य। सही जगह सूचना देती तो शायद सबकी जान बच जाती। यही दोनो थे जिन्होंने मुझसे कहा था कि मैं गुरु निशि या किसी को कुछ न बताऊं। यही दोनो थे, जिन्होंने मुझसे पैरालिसिस वाली बूटी ली थी और कही थी.... “इलाज के दौरान गुरु निशि अपने विश्वसनीय लोगों के साथ होंगे तब उनसे मिलने के बहाने उन्हे खतरे से आगाह किया जाएगा। वरना अभी गये आगाह करने तो हो सकता है उनके आस पास कुछ ऐसे दुश्मन हो जो मेरी बात को मनगढ़ंत साबित कर दे।”.... उनकी एक–एक चालबाजी याद आ रही। साले कपटी लोग। आर्यमणि इन्हे तो मैं अपने हाथों से जलाऊंगी... लेकिन उस से पहले कैस्टर ऑयल के फूल का जहर का मजा दूंगी। मौत से पहले इन्हे अपने किये पर ऐसा पछतावा होगा की इनकी रूहे दोबारा फिर कभी जन्म ही न लेगी। बस मेरे कुछ लोगों के लिये फर्जी पासपोर्ट का बदोबस्त कर दो।

आर्यमणि:– हो जायेगा... बस तुम चूकना मत। तो सभा समाप्त किया जाये...

पलक, आर्यमणि के गले लगती.... “अपना ख्याल रखना। आने वाला वक्त तुम पर बहुत भारी होने वाला है।”...

आर्यमणि:– सभा समाप्त मतलब अभी अपनी बातचीत की सभा समाप्त करते है। इसके आगे तो बहुत से काम है। वैसे भी अभी तक तो तुमने बड़ी सफाई से अपने शक्तियों के राज से पर्दा उठाने के बदले डिस्कशन को कहीं और मोड़ चुकी हो। बैठकर पहले मेरे आज के मीटिंग के मकसद को देखो, उसके बाद विस्तृत चर्चा होगी।

पलक, आर्यमणि से अलग होती.... “करने क्या वाले हो?”...

इस बार अकेला आर्यमणि नही बल्कि पूरा अल्फा पैक एक साथ... पूरा अल्फा पैक मतलब निशांत और संन्यासी शिवम भी... सभी एक साथ एक सुर में बोले..... “आज सात्त्विक आश्रम का भय वहां तक स्थापित होगा, जहां तक ये विकृत नायजो फैले है। आज पूरे ब्रह्मांड में हम अपनी उपस्थिति का प्रमाण देंगे”
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Anky@123

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Ye palak ko bhi aarya ke sath set ker do na
 

nain11ster

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Kya bat h palak ke sabhi sath walo ko unka pariwar ki info mil gai .. chalo maa baap na sahi yaaden hee sahi.. maha ne achi khatirdari ko chararmod🤣 ki .. do gaddaro ki mout aur hogi ab mm but lagta h nayjo ki devil ab prakat hone wali h.. lagta h ujjawal aur sukesh ki mout k liye bahut waiting krni pdegi 🤣🤣.. btw nice update
Dhamaal aage bhi hai... Haan kuch chijon ka intzar to karna padega lekin Update ke sath aage jab badhte rahenge to intzar ka rasta achhe se kat jayega
 
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