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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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CFL7897

Be lazy
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Kya hi Jabardast update diya hai bhai....
:rock1::rock1:
Baat Karen palak ki injury ke bare mein to yah sahi hai ki Kuchh chijon ko bahar se Ham theek nahin kar sakte unko Andar Se Hi Heal karna padta hai Jo Aryan ne kiya bhi Samay Rahte hue palak ki jaan bacha Li💖💖💖💖
Anant Kriti ke bare mein kya hi Kaha Jaaye yah Apne andar samander Samaye Hue Gyan ka ..
🤗🤗
Palak aur Baki nayajo jo us wakt the AANAT KRITI PUSTAK k dwara Apne Mata Pita Ke bare mein jaankar Bahuk hona to banta hai.🥺🥺🥺🥺


Anant Kriti ke dwara Palak ko yah bhi Pata Chala Hai Ki Uske do best friend Ne hi use Dhokha Diya Hai Nahin to Uske Guru Nishi Shayad Bach Sakte the. Unse Badla lena aur iska Karan Janna to jaruri hai palak ke liye.

AJURAMI....EK naya khalnayak👹👹 ka introduction hua hai palak ke dawara dekhate hai inka kya itihas aur karname rahe hoge.

Palak dwara Ruhi ko Sautan Kahana ek Tarah ka Hasya tha ya FIR future ka Kuchh alag ganit baithaye hai writer mahoday?????
🤩🤩🤩🤩

Aur last Mein Mera bhi Vahi Sawal hai jo Albeli ka tha ki 6 inch ka tukra Aakhir vah kahan Chhupa kar Rakhi thi...batao batao😁😁😁😁😁😁
 

teceo

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भाग:–133


खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहा था। वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...

आर्यमणि:– भूल गयी मैं एक डॉक्टर भी हूं।शिवम सर कोई हॉस्पिटल जो आपके ध्यान में में हो। वहां हमे अंतर्ध्यान कीजिए...

संन्यासी शिवम दोनो को लेकर तुरंत ही अंतर्ध्यान हो गये। अंतर्ध्यान होकर सीधा किसी ऑपरेशन थिएटर में पहुंचे, जहां पहले से कुछ लोग मौजूद थे। हालांकि वहां कोई ऑपरेशन तो नही चल रहा था, लेकिन ऑपरेशन से पहले की तैयारी चल रही थी।

एक नर्स... “तुमलोग सीधा अंदर कैसे घुस गये।”

“सॉरी नर्स” कहते हुये आर्यमणि ने ओटी के सारे स्टाफ को जड़ों में पैक किया। तेजी से सारे प्रोसीजर को फॉलो करते यानी की दवाइया वगैरह देकर पेट को खोल दिया। पेट खोलने के बाद पेट के पूरे हिस्से को जांच किया। अंतरियाें के 3–4 हिस्सों से इंटरनल ब्लीडिंग हो रहा था। आर्यमणि उन सभी हिस्सों को ठीक भी कर रहा था और संन्यासी शिवम को वह हिस्सा दिखा भी रहा था।

संन्यासी शिवम:– गुरुदेव उस लड़के एकलाफ के सीने में घुसे चाकू के जख्म को अंदरूनी रूप से जब हील कर सकते हैं। तब पलक का तो ये पेट का मामला था।

आर्यमणि अपना काम जारी रखते.... “शिवम् सर पेट की अंतरियां और दिमाग के अंदरूनी हिस्से दो ऐसी जगह है जहां के इंटरनल ब्लीडिंग कभी–कभी हमारे हाथों से भी हील नही हो सकते। इसलिए तो बिना वक्त गवाए मेडिकल प्रोसीजर करना पड़ा। चलिए अपना काम भी खत्म हो गया।

जहा–जहां से इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी, उन जगहों को ठीक करने के बाद स्टीचेस करके दोनो वापस लौट आये। पलक को डायनिंग टेबल पर ही लिटाया गया। रूही उसे तुरंत ही हील करना शुरू की। कुछ ही समय में पलक पहले की तरह हील हो चुकी थी। थोड़ी कमजोर थी, लेकिन उठकर बैठ चुकी थी।

जितनी देर में ये सब हुआ उतनी ही देर में नेपाल से एक न्यूज वायरल हो रही थी। ओटी में फैले जड़ें और जड़ों में लिपटे लोगों को दिखाया जा रहा था। किसी के हाथ दिख रहे थे तो किसी के पाऊं... जड़ों को काटने की कोशिश की जा रही थी परंतु जितना काटते उतना ही उग आता.... इवान ने जैसे ही यह वायरल न्यूज देखा, डायनिंग टेबल के ऊपर बंधे बड़े से परदे को खोला और उसपर यह वायरल न्यूज चला दिया...

हर कोई उस न्यूज को देख और सुन रहा था.... “जान जल्दी–जल्दी में ये क्या कर आये?”

आर्यमणि:– पलक की हालत के कारण यह भूल हो गयी...

रूही:– ओह हो, पलक को घायल देख सब कुछ भूल गये। कहीं पुराना प्यार तो न जाग गया। इतनी हड़बड़ी...

आर्यमणि:– ताना देना बंद करो। अभी सब ठीक किये देता हूं।

रूही:– उनकी यादस्त मिटाना मत भूलना...

संन्यासी शिवम:– क्या हमें अंतर्ध्यान होकर वापस जाना होगा। मुझे नही लगता की इस वक्त ऐसा करना सही होगा।

आर्यमणि:– नही ये मेरी जड़ें है। यहीं से सब कर लूंगा...

आर्यमणि अपने काम में लग गया। इधर रूही, पलक को घूरती... “क्या मरकर सबक सिखाती”...

पलक रूही के गले लगती.... “तुम लोगों के बीच मैं मर सकती थी क्या, मेरी शौत”..

रूही:– पागल ही है सब... इतनी घायल थी फिर भी लड़े जा रही थी। कामिनी तू मर जाती तो मेरे एंटरटेनमेंट का क्या होता?

दूसरी ओर आर्यमणि अपनी जगह से बैठे–बैठे वो कारनामा भी कर चुका था, जिसे करने से पहले आर्यमणि भी दुविधा में था.... “क्या जड़ें नीचे जायेंगी? क्या उनकी यादस्त मिटा पाऊंगा?”... लेकिन कमाल के प्रशिक्षण और अपने संपूर्ण मनोबल से आर्यमणि यह कारनामा कर चुका था।

डायनिंग टेबल से खुसुर–फुसुर की आवाज आने लगी। माहोल पूरा सामान्य था और एक दूसरे से खींचा–तानी भी शुरू हो चुकी थी। इसी बीच इवान सबका ध्यान अपनी ओर खींचते... “बातें तो होती ही रहेगी, लेकिन काम पर ध्यान दे दे। डंपिंग ग्राउंड में अभी भी हजारों नायजो पड़े है।”

आर्यमणि:– हां उसी पर आ रहे हैं इवान। बस पलक से उसकी अनोखी और इतनी ताकतवर शक्ति का राज तो जान लूं...

पलक:– नही, बहुत बकवास कर लिये। पहले मेरे लोगों को दीवार से उतारो और मुझे कम से कम अनंत कीर्ति की किताब तो दे दो ताकि मैं अपना सर ऊंचा रख सकूं...

आर्यमणि घूरकर देखते.... “वो तुम्हे नही मिल सकती”...

पलक:– ओरिजनल कौन मांग रहा है, उसका डुप्लीकेट दे दो। और जरा वो किताब भी दिखाओ, जिसके खुलने के बाद महा ने ऐसा क्या पढ़ लिया जो मुझे गालियां देते आया। मतलब नायजो को...

महा:– क्यों तुम्हे गाली नही देनी चाहिए क्या?

पलक:– मैं क्या कहूं, ये 4 बेवकूफ जैसे कर्म में लिखा गये हो। मोबाइल नेटवर्क की तरह पीछे पड़ गये हैं। मेरी सुरक्षा के नाम पर मेरे पल्ले इन चार नमूनों को बांध दिया गया है। मैं मजबूर थी महा, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा था। प्लीज मुझे माफ कर दो महा। अब से हम दोनो दोस्त है ना..

महा:– एक शर्त पर माफ करूंगा, मुझे उस चुतिये एकलाफ को तमाचा मारना है।

पलक:– क्यों पहले तू आर्य से नही पूछेगा, उसने एकलाफ को क्यों मेरे साथ बुलाया...

महा:– हां भाव... ये मदरचोद है कौन जिसे पलक के साथ आने कहे, और मुझे न बुलाया..

आर्यमणि:– इसने मुझे भी फोन पर बहुत गंदी और भद्दी गालियां दी थी। खून खौल गया था इसलिए बुला लिया।

महा:– तो क्या अब मैं उसे मार लूं...

पलक:– रुक महा, रूही प्लास्टिक की कैद से रिहाई के साथ–साथ क्या तुम इस चुतिये एकलाफ का शरीर को नॉर्मल कर दोगी, ताकि मार का असर पड़े...

महा:– क्या मतलब नॉर्मल करना..

रूही:– वुल्फ शरीर से कहीं ज्यादा खतरनाक नायजो का एक्सपेरिमेंट शरीर है। इसके अंदर चाकू घुसा के छोड़ दो तो वो चाकू शरीर के अंदर ही गल जायेगा..

महा:– ओ तेरी कतई खतरनाक... साला तभी जोर से कह रहा था, हम मारने पर उतरे तो मर जाना चाहिए... अब बोल ना भोसडी के...

रूही:– जुबान काहे गंदा कर रहे महा... लो ये मार खाने को तैयार है....

महा, उस एकलाफ के ओर बढ़ते.... “और कुछ है जो हमे इनके शरीर के बारे में जानना चाहिए।”...

पलक:– यहां से हम साथ निकलेंगे। सब बता दूंगी। पहले मारकर भड़ास निकाल लो...

“कामिनी गद्दार”.... एकलाफ अपनी बात कहकर अपने हाथ से आग, बिजली का बवंडर उठा दिया जो हवा में आते ही फुस्स हो गया। महा के अंदर खून में आया उबाल। दे लाफा पर लाफा मार–मार कर गाल और मुंह सुजा दिया। आर्यमणि उसका चिल्लाना सुनकर मुंह को पूरा ही जड़ से पैक कर दिया। इधर ओजल, पलक के 30 लोगों को दीवार से उतार चुकी थी, जो वहीं डायनिंग टेबल से लगे कुर्सियों पर बैठे चुके थे।

आर्यमणि:– तुम्हारे लोगों को छोड़ दिया है। और किसी को छोड़ना है...

पलक:– हां वो कांटों की चिता पर 22 लोग और है, उन्हे भी छोड़ दो। वो हमारे ट्रेनी है।

आर्यमणि:– रूही क्या उनके पास समय बचा है।

रूही:– 5 घंटे हुये होंगे.... सब बच जायेंगे...

आर्यमणि, पलक के ओर लैपटॉप करते.... अपने 22 लोगों के चेहरे पहचानो... इवान और अलबेली तुम दोनो उन 22 को ले आओ। ये बताओ तुम्हारे इन चारो नमूनों का क्या करना है?”...

पलक:– चारो इंसानी मांस के बहुत प्रेमी है। विकृत नायजो के हर पाप में इन लोगों ने हिस्सा लिया है। सबको भट्टी में झोंक देना...

आर्यमणि और रूही दोनो पलक को हैरानी से देखते.... “तुम्हे कैसे पता?”...

पलक, अपना सर उठाकर एक बार दोनो को देखी और वापस से लैपटॉप में घुसती.... “तुमने तो गुरु निशि और उनके शिष्यों के मौत की भट्टी के बारे में सुना होगा, मैने तो देखा था। वो चिंखते लोग... रोते, बिलखते, जलन के दर्द से छटपटाते बच्चे... मैं उस भट्टी को कैसे भुल सकती हूं। मैं डंपिंग ग्राउंड गयी थी, देखकर ही समझ गयी की ये भी जिंदा जलेंगे”...

“वैसे तुमने गुरु निशि के दोषियों को जब उनके अंजाम तक पहुंचा ही रहे हो, तो एक नाम के बारे में तुम्हे बता दूं। हालांकि इस नाम की चर्चा तो मैं करती ही। किंतु बात जब चल ही रही है, तो यही उपयुक्त समय है कि तुम अपने एक अंजान दुश्मन के बारे में अच्छी तरह से जान लो।”

“गुरु निशि के आश्रम के कांड की मुखिया का नाम अजुर्मी है। योजना बनाने से लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाने का बीड़ा इसी अजुर्मी ने उठाया था। इस वक्त वह किसी अन्य ग्रह पर है, लेकिन तुम ध्यान से रहना। क्योंकि आज के कांड के बाद अब तुम्हारे पीछे कोई नही आयेगा... बस उसी के लोग आयेंगे। पृथ्वी पर जितने नायजो है, उसकी गॉडमदर। पृथ्वी के कई नरसंहार की दोषी। अब वो तुम्हारे पीछे होगी। विश्वास मानो यदि यमराज मौत के देवता है, तो अजुर्मी ऊसे भी मौत देने का कलेजा रखती है। शातिर उतनी ही। जरूरी नही की तुम्हे मारने वो नायजो को ही भेजे। वो किसी को भी भेज सकती है। तुम जरा होशियार रहना। ये लो मेरा काम भी हो गया, उन 22 लोगों को अब जल्दी से अच्छा करके मेरे सामने ले आओ”..

पलक के सभी 22 ट्रेनी भारती के तरह ही मृत्यु के कांटों पर लेटे थे। शरीर में भयानक पीड़ा को मेहसूस करते कई घंटों से पड़े थे। उन सभी 22 ट्रेनी को कांटों के अर्थी समेत ही हॉल में लाया गया। हॉल में जैसे ही वो पहुंचे, आर्यमणि ने अपनी आंखे मूंद ली। सभी 22 एक साथ जड़ की एक चेन में कनेक्ट हो गये। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने आर्यमणि का हाथ थाम लिया। वहां मौजूद हर कोई देख सकता था, जड़ों की ऊपरी सतह पर काला द्रव्य बह रहा था और वो बहते हुये धीरे–धीरे अल्फा पैक के नब्ज में उतरने लगा। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने पहले कैस्टर के जहर को झेला था, इसलिए अब ये टॉक्सिक उनके लिये आम टॉक्सिक जैसा ही था। उन्हे हील करने में लगभग एक घंटा का वक्त लग गया।

ये सभी 22 लोग केवल कैस्टर के जहर को नही झेल रहे थे। इन 22 नायजो में एक भी एक्सपेरिमेंट बॉडी नही था। ऊपर से उनके सामान्य शरीर में 100 मोटे काटो का घुसा होना। इन्हे लाया भी गया था तो कांटा के अर्थी सहित लाया गया था, क्योंकि अल्फा पैक को पता था कांटा हटा, और सबकी मौत हुई। काटो की चपेट मे जो भी अंग थे वो धीरे–धीरे हील होते और उस जगह से कांटा हील होने दौरान ही धीरे–धीरे बाहर आ जाता। और इन्ही सब प्रोसेस से उन्हे हील करने में काफी वक्त लगा, किंतु जान बच गयी।

अद्भुत नजारा था जिसे आज तक किसी संन्यासी तक ने नही देखा था। सभी एक साथ नतमस्तक हो गये। उन 22 लोगों को हील करने के बाद सबको फिर जड़ों में लपेटकर दूसरे मंजिल के कमरों में भेज दिया गया, जहां उनके शरीर तक जरूरी औषधि पहुंचाने के बाद जड़ें अपने आप गायब हो जाती।

महा:– अरे बाबा रेरे बाबा... भाव वोल्फ ये भी कर सकते है क्या?

आर्यमणि:– तुम्हे तो वुल्फ हंटर बनाया गया था न... फिर वुल्फ के कारनामों पर अचरज..

महा:– भाव जो दिखाया वही देखे, जो सिखाया वही सीखे लेकिन जब मैदान में आये तो जो सही था और न्यायपूर्ण वही किया। सोलापुर से लेकर कोल्हापुर तक एक भी वुल्फ का शिकर नही होने दिया मैं। अपनी दोनो ओर बराबर जिम्मेदारी है, वुल्फ हो या इंसान। इंसान में भी कपटी होते है, इसका ये मतलब तो नही की सभी इंसान को मार दो। वैसे ही वुल्फ है...

आर्यमणि:– भूमि का चेला...

पलक:– भूमि दीदी है ही ऐसी..

आर्यमणि अपने हाथ जोड़ते... “तुमने मेरे भांजे को बचाया, छोटे (अपस्यु) को बचाया, तुम खामोशी से कितने काम करती रही। तुम्हारा आभार रहेगा।”

पलक:– ओ गुरु भेड़िया, भूलो मत दुश्मनी अभी खत्म नहीं हुई। और मिस अलबेली, क्या अब आप मुझे मेरा सामान दे देंगी, जो आप लोगों से वास्ता नहीं रखता...

अलबेली:– तुम एक नंबर की चोरनी हो ना। कपड़ों के नीचे इतना सारा खजाना। ये बताओ एनर्जी फायर को कहां छिपा कर रखी थी।

पलक:– एनर्जी फायर क्या?

अलबेली:– वही जिसमे जादूगर महान की आत्मा कैद थी...

पलक:– ऐसा सीधा कहो ना। नया नाम रख दी तो मैं दुविधा में आ गयी की शूकेश अपने घर में और कितने राज छिपाए है। चोरी के समान में क्या सब था मुझे उसकी पूरी जानकारी नही। और न ही कोर प्रहरी के बहुत से राज पता है। मैने अपने शरीर पर एक्सपेरिमेंट नही करवाया ना, इसलिए ये लोग मुझे अलग तरह से ट्रीट करते है।

अलबेली:– अलग तरह से ट्रीट मतलब...

पलक:– मतलब उन्हे मुझ पर पूरा विश्वास नही..

अलबेली:– एक्सपेरिमेंट के पहले और बाद क्या अंतर होगा, उल्टा तुम्हे कोई नुकसान भी नही पहुंचा सकता। फिर क्यों न करवाई एक्सपेरिमेंट..

पलक:– कैसे समझाऊं क्यों न करवाई... ऐसे समझो की वो एक्सपेरिमेंट दरिंदा बनाने के लिये किया जाता है। शरीर के अंदर की आत्मा को मारकर बस एक उद्देश्य के लिये प्रेरित करता है।

अलबेली:– कौन सा उद्देश्य?

पलक:– जो है सो हम ही है, और हमारे जैसे लोग... बाकी सब आंडू–गांडू.. पैरों की जूती... जब चाहो रौंद डालो... अब बहुत सवाल कर ली, जा मेरा समान ला, मुझे पूरा खाली कर दी है...

अलबेली:– हां लेकिन पहले ये तो बताओ आधे फिट की वो पत्थर की माला छिपाई कहां थी...

पलक:– तू जब उसे हाथ में ली होगी तो पता चल गया होगा कहां था। अब मुंह मत खुलवाओ और समान लेकर आओ... और आर्य वो अनंत कीर्ति की खुली किताब तो दिखाओ, जिसके पीछे पूरे कोर प्रहरी व्याकुल है...

आर्यमणि, अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोलकर दिखाते... “लो देख लो”...

पलक:– क्या मजाक है, यहां तो कुछ न लिखा।

आर्यमणि:– ये किताब है, इसे पढ़ा जाता है। ये किताब उतना ही उत्तर देगा, जितना इसने देखा है।

पलक:– इसने राजदीप (पलक का वही भाई जो आईपीएस है) को देखा ही होगा ना। उसी के बारे में बताओ किताब?

महा:– आंख मूंदकर राजदीप के बारे में सोचो, फिर आंख खोलो...

पलक, स्मरण करके आंखे खोली। जो किताब पर आ रहा था, उसे पढ़कर तो वह हैरान हो गयी। उसने उज्जवल, यानी अपने पिता का स्मरण किया। आंखें खोली तो इंसानी उज्जवल और बहरूपिया उज्जवल, सबकी जानकारी थी। पलक इस बार फिर आंखे मूंदी। उसके आंखों में आंसू थे। नम आखें खोली और बड़े ध्यान से पढ़ने लगी। पढ़ने के दौरान ही उसने थोड़ा और फिल्टर किया। इस बार आंखे खोलकर जब पढ़ी तो आंखें नम थी और चेहरे पर सुकून। वह किताब पर हाथ फेरने लगी.... “आर्य क्या यहां जो भी लिखा है उसे अलग से दे सकते हो”

आर्यमणि:– अपनी मां के बारे में सोची क्या?

पलक हां में सर हिलाने लगी। आर्यमणि, भी मुस्कुराते हुये हां कहा। अनंत कीर्ति पुस्तक के सामने उसने एक पूरा बंडल कोड़ा पन्ना रख दिया। कुछ मंत्र पढ़े और कोड़े पन्नो पर एक बार हाथ फेरते हुये वह पूरा बंडल पलक के हाथ में थमा दिया। पलक के साथ कई और ऐसे नायजो थे, जिन्हे अपने माता या पिता के बचपन का स्पर्श तो याद था, पर उसके बाद उन्हें निपटा दिया गया। एक–एक करके सभी आते गये और अपने प्रियजन की जानकारी लेकर जाते रहे। हर कोई भावुक होकर बस इतना ही कहता.... “दुनिया की सबसे अनमोल और कीमती उपहार दिये हो भाई।”

पलक के सभी साथी अपने हाथों में अपने माता–पिता की जीवनी समेटे थे। काम खत्म होते ही रूही जैसे ही किताब बंद करने आगे बढ़ी, पलक जिद करती.... “प्लीज मुझे मेरे बचपन के दोस्तों को ढूंढने दो। सार्थक और प्रिया।”

रूही मुस्कुराते हुये हामी भर दी पलक ने स्मरण किया और आंखें खोली। लेकिन आखें खोलने के बाद जैसे ही नजर पन्नो पर गयी..... “आर्य ये क्या है। किताब की जानकारी सही तो है न।”...

आर्यमणि ने किताब देखा... “पलक इसकी जानकारी सही है। सार्थक और प्रिया, गुरु निशि के मृत्यु के वक्त कहां थे और किन लोगों से मिले, पहले इसे जान लेते है?”...

किताब की पूरी जानकारी को देखने के बाद आर्यमणि.... “इन दोनो को तुम जिंदा जलाओगी, या मुझे जाना होगा।”...

पलक:– अब तो दिल पर बोझ सा हो गया है आर्य। सही जगह सूचना देती तो शायद सबकी जान बच जाती। यही दोनो थे जिन्होंने मुझसे कहा था कि मैं गुरु निशि या किसी को कुछ न बताऊं। यही दोनो थे, जिन्होंने मुझसे पैरालिसिस वाली बूटी ली थी और कही थी.... “इलाज के दौरान गुरु निशि अपने विश्वसनीय लोगों के साथ होंगे तब उनसे मिलने के बहाने उन्हे खतरे से आगाह किया जाएगा। वरना अभी गये आगाह करने तो हो सकता है उनके आस पास कुछ ऐसे दुश्मन हो जो मेरी बात को मनगढ़ंत साबित कर दे।”.... उनकी एक–एक चालबाजी याद आ रही। साले कपटी लोग। आर्यमणि इन्हे तो मैं अपने हाथों से जलाऊंगी... लेकिन उस से पहले कैस्टर ऑयल के फूल का जहर का मजा दूंगी। मौत से पहले इन्हे अपने किये पर ऐसा पछतावा होगा की इनकी रूहे दोबारा फिर कभी जन्म ही न लेगी। बस मेरे कुछ लोगों के लिये फर्जी पासपोर्ट का बदोबस्त कर दो।

आर्यमणि:– हो जायेगा... बस तुम चूकना मत। तो सभा समाप्त किया जाये...

पलक, आर्यमणि के गले लगती.... “अपना ख्याल रखना। आने वाला वक्त तुम पर बहुत भारी होने वाला है।”...

आर्यमणि:– सभा समाप्त मतलब अभी अपनी बातचीत की सभा समाप्त करते है। इसके आगे तो बहुत से काम है। वैसे भी अभी तक तो तुमने बड़ी सफाई से अपने शक्तियों के राज से पर्दा उठाने के बदले डिस्कशन को कहीं और मोड़ चुकी हो। बैठकर पहले मेरे आज के मीटिंग के मकसद को देखो, उसके बाद विस्तृत चर्चा होगी।

पलक, आर्यमणि से अलग होती.... “करने क्या वाले हो?”...

इस बार अकेला आर्यमणि नही बल्कि पूरा अल्फा पैक एक साथ... पूरा अल्फा पैक मतलब निशांत और संन्यासी शिवम भी... सभी एक साथ एक सुर में बोले..... “आज सात्त्विक आश्रम का भय वहां तक स्थापित होगा, जहां तक ये विकृत नायजो फैले है। आज पूरे ब्रह्मांड में हम अपनी उपस्थिति का प्रमाण देंगे”
वैसे पलक इंसान है या नायजो अगर पलक इंसान है तो उसमे इतनी शक्तिया कैसे, अगर पलक नायजो है तो उसे अपनी माँ के एहसास कैसे होता है थोड़ा कंफ्यूजन है
बाकि आप जो हिंदी फॉण्ट में लिखते हो मजा आ जाता है।


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Tiger 786

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भाग:–132


पलक का हांथ आगे और हाथ में हवा का तेज तूफान। आर्यमणि का कंधा उसी हवा की मजबूत दीवार से भिड़ा और जैसे विस्फोट सा हुआ हो। पलक हवा का शील्ड लगाने के बावजूद भी इतना तेज धक्का खाकर दीवार से टकराई की उसकी हड्डियां चटक गयी.... “क्या हुआ छुई मुई, कहीं कोई हड्डी तो न छिटक गयी”

पलक गुस्से में खड़ी होती झटके से अपने दोनो हाथ खोली। जैसे ही अपने दोनो हाथ खोले उसके दोनो हाथ में 2 फिट लंबी और 4 इंच चौड़ी मजबूत चमचमाती धारदार तलवार थी। अदभुत और अकल्पनीय। हर कोई बस उसके हाथ ही देख रहे थे, कैसे उसने ये तलवार निकाल लिया...

आर्यमणि, अलबेली को घूरते.... “ये हमारा पहनाया कपड़ा था न, फिर इसके नीचे हथियार कहां से आ गया”...

पलक चुटकी बजाकर आर्यमणि का ध्यान अपनी ओर खींचती.... “ओ हेल्लो भेड़ियों के राजा, ज्यादा दिमाग मत लगाओ। ये तलवार मेरे शरीर में इन बिल्ट है। जब बात मेरे तलवार की हो ही रही है तो बता दूं कि ये तलवार यूनिवर्स में भट्टी कहे जाने वाले ग्रह हुर्रीएंट प्लेनेट के सूरज की विकराल तप्ती आग में बनी है। इकलौती हाइबर धातु जो उस जगह के तापमान को झेल सकती है। और उसके एक खंजर का कमाल तो पहले ही देख चुके हो।”

अलबेली:– तो क्या तुम दूसरे ग्रह पर गयी हो?

रूही:– ये क्या लगा रखा है। ऐसे रुक–रुक कर फाइट क्यों कर रहे....

पलक:– मैं तो कबसे तैयार हूं। पूछ लो अपने जान से, वो डर तो न गया...

आर्यमणि अपने पंजे का क्ला दिखाते.... “शायद ये क्ला उस से भी कहीं ज्यादा तपते भट्टी में बना है”...

“ये तो वक्त ही बतायेगा”.... कहते हुये पलक ने दौड़ लगा दिया... आर्यमणि भी तैयार। जैसे ही पलक नजदीक पहुंची, आर्यमणि के बस हाथों के इशारे थे, और अगले ही पल तेज गति से दौड़ती पलक जड़ों के जाल में फंसकर ऐसे लड़खड़ाई की वो जबतक संभलती, आर्यमणि का मुक्का था और पलक की नाक। आर्यमणि ने कोई रहम नहीं किया। शायद कुछ ज्यादा ही जोड़ से उसने मार दिया था।

कुछ मिनट के लिये पलक उठी ही नही। सर झुकाकर बैठी रही और नीचे फर्श पर खून बह रहा था। तकरीबन 5 मिनट तक उसी अवस्था में रहने के बाद पलक अपनी नाक पकड़कर खड़ी हुई.... “दिमाग हिला दिया पंच ने”... और इतना कहकर एक बार फिर वह दौड़ लगा चुकी थी।

पलक को पता था कि यदि उसके पाऊं जमीन पर रहे तब इस बार भी वही होगा इसलिए कुछ कदम दौड़ने के बाद वह हवा के रथ पर पुनः सवार होकर, आर्यमणि के ऊपर ही छलांग लगा चुकी थी। बेचारी को पता न था की पलक झपकने से पहले जड़े कितनी दूर हवा में ऊपर उठती है। पलक आर्यमणि से कुछ फिट फासले पर रही होगी। उसके दोनो हाथ की तलवार आर्यमणि से इंच भर की दूरी पर थी। पलक लगभग हमला कर चुकी थी, लेकिन तभी क्षण भर में जड़ें जमीन से निकली। आर्यमणि जड़ों में कहीं गायब और पलक भी जड़ों के बीच ऐसी लपेटी गयी की उसमे उलझकर बस आर्यमणि के ऊपर लैंड हो रही थी।

झाड़ में फंसकर पलक, आर्यमणि के ठीक सामने आ रही थी और आर्यमणि झाड़ के बीच कहीं नजर नहीं आ रहा था। तभी झाड़ के बीच से एक लात जमकर पड़ी और हवा से आर्यमणि के ऊपर लैंड होती हुई पलक, सीधा दीवारों से जा टकराई। लात का प्रहार इतना तेज था कि रूही गुस्से से चिल्लाई “आर्य”.... वहीं आर्यमणि झाड़ के बीच से निकलकर एक बार रूही को देखा और तेज दौड़ लगा चुका था।

पलक अब तक संभली भी नही थी, लेकिन काफी तेज और जानलेवा आंधी को मेहसूस कर वह भी जान बचाने वाली तेजी दिखाती हुई अपने जगह से हटी। आर्यमणि सीधा दीवार पर टक्कर दे मारा। और दीवार के जिस हिस्से में टक्कर पड़ी, वह हिस्सा ढह गया।

पलक ने भी यह नजारा देखा। खुद की घायल अवस्था देखी। और देखते ही देखते वहां का माहोल ही बदल गया। पलक अपने दोनो हाथ हवा में की हुई थी। कड़कती बिजीली आसमान से जैसे छत फाड़कर उस घर में आ रही थी और पलक के दोनो हाथों से कनेक्ट होकर वह पलक के पूरे शरीर में घुस रही थी।

देखते ही देखते पलक के बदन के अंदर से बिजली चमकने लगी। पूरी की पूरी पलक चमकने लगी और बिजली की तेज रफ्तार से ही पलक दौड़ी। आर्यमणि खड़ा होकर यह अचंभित करने वाला नजारा देख रहा था। देखने में ऐसा गुम हुआ की उसे ध्यान न रहा की अभी–अभी उसने पलक को बहुत ही गंदे तरीके से घायल किया था। और आखरी वाले लात ने तो शायद पलक के पेट की अंतरियों को ही फाड़ दिया था।

पलक दौड़ी और जबतक आर्यमणि को ख्याल आया की उसपर हमला हो रहा है, बहुत देर हो चुकी थी। पलक दौड़ती हुई पहुंची और अपना जोरदार मुक्के से आर्यमणि के सीने पर प्रहार की। बचाव में आर्यमणि ने अपना पंजा आगे किया और उसका पंजा लटक कर झूलने लगा।

आर्यमणि हाथ के दर्द से बिलबिला गया। उसका थोड़ा सा ध्यान भटका और इसी बीच पलक मौके का फायदा उठाते हुये, आर्यमणि को अपने दोनो हाथों से हवा में उठा ली और खींचकर ऐसा फेंकी की उस बड़े से हॉल के एक दीवार से सीधा दूसरे दीवार पर धराम से टकराया। पलक उसे फेंकने के साथ ही अपने दोनो हाथ आगे कर ली। उसके दोनो हाथ से चंघारती हुई बिजली की दो चौड़ी पट्टियां निकल रही थी। उन दोनो पट्टियों ने आर्यमणि को पूरा जकड़ लिया। बिजली का इतने तेज झटका लगा था कि आर्यमणि उसे झेल न पाया और बेसुध होकर बिजली के उस जकड़न में झूलने लगा।

बिजली की चौड़ी पट्टियों में जकड़ने के बाद पलक कभी आर्यमणि को दाएं तो कभी बाएं पटक रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे पलक अपने हाथ से बिजली की रस्सी को पकड़ी हो। रस्सी जो तकरीबन 300 फिट दूर खड़े आर्यमणि को जकड़े हुई थी और उसे किसी बोरे के समान उठा–उठा कर पटक रही थी। ये ठीक वैसे ही था जैसे फर्ज कीजिए की छोटे ने रस्सी के निचले सिरे पर कुछ ठोस बांधकर तेजी से उसे उठा–उठा कर जमीन पर पटक रहा हो।

10–12 पटखनी खाने के बाद, आर्यमणि ने बस इवान से नजरे मिलाई और उसने पलक को प्लास्टिक में कैद कर दिया। पलक झपकते ही पलक कैद हो गयी और अगले ही पल वह प्लास्टिक बस धुवां बनकर हवा में उड़ गया और पलक के नजर डालने मात्र से इवान का लैपटॉप भी धुवां बनकर हवा में था और उसके बिखड़े पार्ट्स वहीं डायनिंग टेबल पर पड़े थे। पलक की आंखों से कुछ निकला हो ऐसा दिखा नही, तुलना यदि करे अन्य नायजो से जिनकी आंखों से लेजर नुमा रौशनी निकलते साफ देखी जा सकती थी।

पलक सहायकों को छोड़ एक बार फिर आर्यमणि पर ध्यान लगाई। गुस्से से बिलबिलाती.... “हारने पर चीटिंग हां। रुक भेड़िया तुझे मैं अभी बताती हूं।”.... पलक अपने गुस्से का इजहार करती आर्यमणि को झटके से खींची। बिजली की पट्टियों में बंधा आर्यमणि बिजली की तेजी खींचा आया और पलक का लात खाकर वापस दीवार से टकराया।

पलक के बिजली का संपर्क टूटा था। इसलिए पुनः वह अपने दोनो हाथ सामने की। बिजली की चौड़ी पट्टियां पुनः से आर्यमणि के ओर बढ़ी। किंतु इस बार आर्यमणि पकड़ में नहीं आया क्योंकि आर्यमणि के हाथ से भी जड़ों की विशाल पट्टियां निकल रही थी, जो सीधा बिजली से टकरा रही थी।

दोनो लगभग 300 फिट लंबी हॉल के दोनो किनारे से अपने–अपने हाथ से बिजली और जड़ निकाल रहे थे। ठीक मध्य में बिजली से जड़े टकराई। टक्कर जहां हुई वहां पर जड़ बिजली के ऊपर हावी होते हुये धीरे–धीरे बिजली को समेटकर पलक के हाथ तक वापसी का रास्ता दिखाने लगा।

पलक ने अपने दोनो हाथ का पूरा जोर लगाया। बिजली के कड़कड़ाने की आवाज तेज हो गयी। जिस पॉइंट पर जड़, बिजली से टकराया था, वहां जड़ों में आग लग गयी और वह जलकर धुवां होने लगा। पलक की बिजली आर्यमणि की जड़ों को जलाते हुये मध्य हॉल से आगे बढ़ गया। आर्यमणि ने भी अपने दोनो हाथ का जोड़ लगाया। जड़े अब जल तो रही थी लेकिन मजबूती से वह आगे बढ़ने लगी और बिजली को वापस धकेलने लगी।

पलक थोड़ा सा झुकी। अपने एक पाऊं आगे इस प्रकार की जैसे वो थोड़ा झुककर दौड़ने वाली हो। इसी मुद्रा में आने के बाद, अपने दोनो हाथ के कनेक्ट बिजली को अपने सीने तक लेकर आयी और ऐसा लगा जैसे उस बिजली को सीने से चिपका दी हो। जैसे ही बिजली सीने से चिपकी पलक खिसक कर एक कदम पीछे हुई। शायद इसलिए वह दौड़ने की मुद्रा में आयी थी ताकि संतुलन न बिगड़े।

जैसे बिजली सीने से चिपका पलक के पूरे शरीर पर ही बिजली रेंगने लगी। उसकी आंखे पूरी बिजली समान दिखने लगी। उसके बाद तो जैसे पलक के सीने से बिजली का बवंडर निकलने लगा हो। जड़ें जो जलने के बावजूद भी आगे बढ़ रही थी, इतने तेज बिजली के प्रभाव से तेजी से जली और देखते ही देखते बिजली ने जड़ों को ऐसा समेटा था की महज 10 फिट जड़ की लाइन दिख रही थी, और 290 फिट बिजली की लंबी लाइन, जो आर्यमणि से बचे फासले को भी मिटाने को तैयार थी।

बाहर खड़े दर्शक अपनी नजरें गड़ाए थे। हर किसी का दिल यह सोचकर धड़क रहा था कि इतनी तेज बिजली के एक सेकंड का झटका भी क्या आर्यमणि बर्दास्त कर पायेगा। आर्यमणि पहले से वायु विघ्न मंत्र पढ़ रहा था, लेकिन बिजली पलक के शरीर से कनेक्ट होने के कारण वायु विघ्न मंत्र काम करना बंद कर चुकी थी।

दूरी अब मात्र एक फिट रह गयी थी। सभी दर्शक दांतो तले उंगलियां चबाने लगे। तभी आर्यमणि ने अपने स्थिर पंजों की उंगलियां चलाना शुरू कर दिया। जड़े और बिजली जहां भिड़ी थी उसके ऊपर और नीचे से जड़ों ने फैलना शुरू कर दिया। बीच से जड़े धू–धू करके जल रही थी लेकिन ऊपर और नीचे से बढ़ी जड़ें तेजी से पलक के करीब पहुंच गये। पलक अपने दोनो हाथ इस्तमाल करती ऊपर और नीचे से फैल रही जड़ों पर हाथ से निकल रही बिजली का हमला की। आर्यमणि के उंगली के इशारे से निकलने वाली जड़े पलक तक पहुंचने से पहले ही रुक गयी किंतु पलक के हाथ में वो शक्ति नही थी कि जोड़ लगाकर इन जड़ों को पीछे धकेल सके क्योंकि उसकी ज्यादातर ऊर्जा तो सीने से निकल रही थी। कुछ भी न सूझ पाने की परिस्थिति में पलक भी अपने उंगली के इशारे करने लगी। उसके उंगली के इशारे पर छोटे छोटे ब्लेड निकल रहे थे, जो जड़ों को काफी तेजी से काटते हुये पीछे की ओर ले गये।

दोनो ही अपने शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। पलक एक बार फिर पुनः हावी हो चुकी थी। 10 फिट की दूरी वापस से बन गयी। पलक कुछ और ज्यादा हावी होकर इस बार तो जैसे बिजली के साथ–साथ छोटे–छोटे ब्लेड की बारिश भी करवा रही थी। और उस बारिश में जड़ें ऐसी कटी जैसे मुलायम घास। पल भर में बिजली आर्यमणि के ऊपर हावी। अल्फा पैक ने अपने आंखे मूंद ली। बिजली लगभग टकरा ही गयी थी, लेकिन आर्यमणि ने तेजी से अपने हाथ के पोजिशन को बदला। पहले जहां ट्रैफिक हवलदार की तरह दोनो हथेली को आगे किया था, वहीं तुरंत बदलाव करते दोनो हथेली को ऐसे जोड़ा जैसे किसी गेंद को कैच करने वाला हो।




दोनो हथेली के बीच की खाली जगह से तुरंत ही मोटी जड़े निकली जो आर्यमणि के हाथ से निकलकर पहले तो फर्श पर गिरी, उसके बाद क्षण भर में ही वह जमीनी सतह से ऊपर हवा में उठकर बिजली के लाइन को पीछे धकेलने लगी। जड़ें नीचे फ्लोर पर भी तेजी से फैलते हुये पलक के पाऊं तक पहुंच गयी।

कैच लेने की पोजिशन वाली हथेली के ऊपर की उंगलियां काफी तेजी से मुड़ रही थी। उन्ही मुड़ती हुई उंगलियों से जड़ों के लहराते रेशे भी निकल रहे थे। उंगलियों के मुड़ने के इशारे से जड़ों के रेशे भीमकाय बिजली की सीधी लाइन को चारो ओर से घेर रहे थे। ये आड़ा तिरछा जड़ों के रेशे जब मजबूत हो जाती, फिर वह बिजली की लाइन के कुछ हिस्से को ऐसे ढकते की वह गायब हो जाता। इसका नतीजा यह हुआ की जो बिजली आर्यमणि से इंच भर की दूर पर थी, एक पल में फिट की दूरी में बदली और देखते ही देखते जड़ों ने बिजली को एक बार फिर पीछे धकेलना शुरू कर दिया।

नीचे फर्श से बढ़ने वाली जड़ें पलक के पाऊं को कवर कर चुकी थी। लेकिन पलक के शरीर से उत्पन्न होने वाली बिजली के कारण वह विस्फोट के साथ छूट जाती। तभी पलक ने अपने पाऊं के जूते खोल लिये... घन घन जैसे आवाज हुई। ऐसा लगा जैसे बिजली के प्रवाह से पूरा फ्लोर ही भिनभिना गया हो। पलक जहां खड़ी थी उसके आसपास का कुछ इलाका बिजली के कोहरे से ढक गया।

देखते ही देखते इस बार पलक बिजली के कोहरे में कही छिपी थी और ऊसके आस–पास जमीन से लेकर तीसरे माले की छत तक फैले धुंधले बिलजी के कोहरे को देखा जा सकता था।.... “लो मजा तुम भी बिजली का आर्य”.... और जैसे ही पलक अपनी बात पूरी की, पूरा वुल्फ हाउस ही बिजली के कोहरे में जैसे डूब गया हो... चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग की आवाज चारो ओर से आ रही थी। बाढ़ के पानी में जैसे सैकड़ों फिट ऊंचा मकान डूब जाता है ठीक उसी प्रकार 80 फिट ऊंची इमारत पूरे बिजली में डूबी हुई थी।

उसी डूबे बिजली के बीच से रूही की आवाज आयी.... “ओ कम अक्ल बिजली की रानी, सबको बिजली में डुबाकर ही मारने वाली है क्या? बंद कर ये बिजली, कुछ दिख ना रहा है।”....

पलक:– तुम लोगों के वायु सुरक्षा मंत्र कबके काट चुकी हूं, इसका मजा ले पहले...

जैसे ही पलक चुप हुई, केवल रूही के चिल्लाने की आवाज निकली। बिजली के छोटे झटके लगने के कारण रूही के मुंह से चीख निकली चुकी थी। बिजली के झटके का मजा लेने के बाद रूही गुस्से में चिल्लाती.... “कामिनी शौत, मुझे मारकर मेरे पति को हथियाना चाहती है क्या? कोई दूसरा न मिला अब तक, जो बिस्तर में मेरे पति जैसा हाहाकारी हो।”

“हिहिहिहि... हहाकारी... मेरे पास एक है चल उसका ट्राय कर ले। उसके बाद अपने होने वाले पति के लिये कहेगी, अब तो ये लाचारी है।”...

“क्यों री अपनी लाचारी में हाहाकारी ढूंढने कहीं गधे के पास तो नही चली गयी?”

“तुम दोनो बीमारी हो। अपना अश्लील शीत युद्ध बंद करके चुपचाप ये जगह को दिखने लायक बनाओ।” अलबेली चिल्लाते हुये कहने लगी।

पलक:– संन्यासी सर माफ कीजिएगा आपका मंत्र इस वायुमंडल को नही बदल सकते। ये नायजो तिलिस्म है और किसी नायजो को ही मंत्र फूंकने होंगे। बहरहाल पूरी सभा हम दोनो (पलक और रूही) को माफ करे और बस एक सवाल के साथ युद्ध विराम कर दूंगी.... “क्या मेरी शक्तियों को परखने के लिये तुम दोनो (आर्य और रूही) ने महज नाटक किया था?”

रूही:– बड़ी जल्दी समझ गयी? पता कब चला तुम्हे...

पलक:– जब आर्य ने लात मारकर मेरी पेट की अंतरियां फाड़ दी और तुम उसपर चिल्ला दी। ऐसा लगा जैसे कह रही हो, आर्य इतनी जोड़ से क्यों मारे? और उसके बाद आर्य के वो इशारे, जैसे कह रहा हो थोड़ा गुस्सा दिलाने दो...

रूही:– हां तो जब इतनी समझदारी आ ही गयी थी, फिर रोक देना था लड़ाई...

पलक:– नाक से खून अब भी निकल रहा है।अंदर की अंतरियां अब भी फटी है और इंटरनल ब्लीडिंग से मैं पागल हुई जा रही। गुस्सा तो निकालना ही था न...

रूही:– पागल कहीं की, तो अब खड़े–खड़े बात क्या कर रही है। ये कोहरा हटाओ..

पलक:– मुझे वो आर्य कहीं मिल न रहा है। कोहरे के बीच खुद को गायब किये है। उसको जबतक जोरदार झटका न दे दूं, तब तक चैन न आयेगा।

“मैं जमीनी सतह पर आ गया पलक। लो अपना गुस्सा निकाल लो... पलक.. पलक”... आर्यमणि जड़ों के बीच खुद को छिपाकर फर्श के 10 फिट नीचे था। पलक को सुनने के बाद वो भी ऊपर आया।

सब लोग उस कोहरे में पलक–पलक चिल्लाने लगे। लेकिन पलक तो बेहोश कहीं पड़ी थी। आर्यमणि तेजी से दौड़ा। उस संभावित जगह पहुंचा जहां पलक थी। लेकिन फर्श पर कितना भी हाथ टटोला पलक नही मिली। पूरा वुल्फ पैक हॉल को छान मारने लगा। कोहरे के बीच 300 फिट लंबा और 60 फिट चौड़ा हॉल में पलक को ढूंढा जा रहा था।

देखते ही देखते धीरे–धीरे पूरा बिजली का कोहरा छंटने लगा। पलक डायनिंग टेबल के नीचे बेहोश थी, जिस वजह से किसी को नहीं मिली। तुरंत ही उसे बाहर निकाला गया। रूही उसके पेट पर हाथ रखकर तुरंत हील करना शुरू कर चुकी थी।

खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहे थे।वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...
Superb update
 

andyking302

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Maine nahi kaha... Daraya mat karo yaar... Farji naam ke baad bhi yadi I'd pata chal gaya to utna hi kafi hai... Comment padhna to dur ki baat hai... Biwi se sab darte hain aur main achhuta nahi :D
Mey nhi darta usase
 

andyking302

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भाग:–133


खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहा था। वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...

आर्यमणि:– भूल गयी मैं एक डॉक्टर भी हूं।शिवम सर कोई हॉस्पिटल जो आपके ध्यान में में हो। वहां हमे अंतर्ध्यान कीजिए...

संन्यासी शिवम दोनो को लेकर तुरंत ही अंतर्ध्यान हो गये। अंतर्ध्यान होकर सीधा किसी ऑपरेशन थिएटर में पहुंचे, जहां पहले से कुछ लोग मौजूद थे। हालांकि वहां कोई ऑपरेशन तो नही चल रहा था, लेकिन ऑपरेशन से पहले की तैयारी चल रही थी।

एक नर्स... “तुमलोग सीधा अंदर कैसे घुस गये।”

“सॉरी नर्स” कहते हुये आर्यमणि ने ओटी के सारे स्टाफ को जड़ों में पैक किया। तेजी से सारे प्रोसीजर को फॉलो करते यानी की दवाइया वगैरह देकर पेट को खोल दिया। पेट खोलने के बाद पेट के पूरे हिस्से को जांच किया। अंतरियाें के 3–4 हिस्सों से इंटरनल ब्लीडिंग हो रहा था। आर्यमणि उन सभी हिस्सों को ठीक भी कर रहा था और संन्यासी शिवम को वह हिस्सा दिखा भी रहा था।

संन्यासी शिवम:– गुरुदेव उस लड़के एकलाफ के सीने में घुसे चाकू के जख्म को अंदरूनी रूप से जब हील कर सकते हैं। तब पलक का तो ये पेट का मामला था।

आर्यमणि अपना काम जारी रखते.... “शिवम् सर पेट की अंतरियां और दिमाग के अंदरूनी हिस्से दो ऐसी जगह है जहां के इंटरनल ब्लीडिंग कभी–कभी हमारे हाथों से भी हील नही हो सकते। इसलिए तो बिना वक्त गवाए मेडिकल प्रोसीजर करना पड़ा। चलिए अपना काम भी खत्म हो गया।

जहा–जहां से इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी, उन जगहों को ठीक करने के बाद स्टीचेस करके दोनो वापस लौट आये। पलक को डायनिंग टेबल पर ही लिटाया गया। रूही उसे तुरंत ही हील करना शुरू की। कुछ ही समय में पलक पहले की तरह हील हो चुकी थी। थोड़ी कमजोर थी, लेकिन उठकर बैठ चुकी थी।

जितनी देर में ये सब हुआ उतनी ही देर में नेपाल से एक न्यूज वायरल हो रही थी। ओटी में फैले जड़ें और जड़ों में लिपटे लोगों को दिखाया जा रहा था। किसी के हाथ दिख रहे थे तो किसी के पाऊं... जड़ों को काटने की कोशिश की जा रही थी परंतु जितना काटते उतना ही उग आता.... इवान ने जैसे ही यह वायरल न्यूज देखा, डायनिंग टेबल के ऊपर बंधे बड़े से परदे को खोला और उसपर यह वायरल न्यूज चला दिया...

हर कोई उस न्यूज को देख और सुन रहा था.... “जान जल्दी–जल्दी में ये क्या कर आये?”

आर्यमणि:– पलक की हालत के कारण यह भूल हो गयी...

रूही:– ओह हो, पलक को घायल देख सब कुछ भूल गये। कहीं पुराना प्यार तो न जाग गया। इतनी हड़बड़ी...

आर्यमणि:– ताना देना बंद करो। अभी सब ठीक किये देता हूं।

रूही:– उनकी यादस्त मिटाना मत भूलना...

संन्यासी शिवम:– क्या हमें अंतर्ध्यान होकर वापस जाना होगा। मुझे नही लगता की इस वक्त ऐसा करना सही होगा।

आर्यमणि:– नही ये मेरी जड़ें है। यहीं से सब कर लूंगा...

आर्यमणि अपने काम में लग गया। इधर रूही, पलक को घूरती... “क्या मरकर सबक सिखाती”...

पलक रूही के गले लगती.... “तुम लोगों के बीच मैं मर सकती थी क्या, मेरी शौत”..

रूही:– पागल ही है सब... इतनी घायल थी फिर भी लड़े जा रही थी। कामिनी तू मर जाती तो मेरे एंटरटेनमेंट का क्या होता?

दूसरी ओर आर्यमणि अपनी जगह से बैठे–बैठे वो कारनामा भी कर चुका था, जिसे करने से पहले आर्यमणि भी दुविधा में था.... “क्या जड़ें नीचे जायेंगी? क्या उनकी यादस्त मिटा पाऊंगा?”... लेकिन कमाल के प्रशिक्षण और अपने संपूर्ण मनोबल से आर्यमणि यह कारनामा कर चुका था।

डायनिंग टेबल से खुसुर–फुसुर की आवाज आने लगी। माहोल पूरा सामान्य था और एक दूसरे से खींचा–तानी भी शुरू हो चुकी थी। इसी बीच इवान सबका ध्यान अपनी ओर खींचते... “बातें तो होती ही रहेगी, लेकिन काम पर ध्यान दे दे। डंपिंग ग्राउंड में अभी भी हजारों नायजो पड़े है।”

आर्यमणि:– हां उसी पर आ रहे हैं इवान। बस पलक से उसकी अनोखी और इतनी ताकतवर शक्ति का राज तो जान लूं...

पलक:– नही, बहुत बकवास कर लिये। पहले मेरे लोगों को दीवार से उतारो और मुझे कम से कम अनंत कीर्ति की किताब तो दे दो ताकि मैं अपना सर ऊंचा रख सकूं...

आर्यमणि घूरकर देखते.... “वो तुम्हे नही मिल सकती”...

पलक:– ओरिजनल कौन मांग रहा है, उसका डुप्लीकेट दे दो। और जरा वो किताब भी दिखाओ, जिसके खुलने के बाद महा ने ऐसा क्या पढ़ लिया जो मुझे गालियां देते आया। मतलब नायजो को...

महा:– क्यों तुम्हे गाली नही देनी चाहिए क्या?

पलक:– मैं क्या कहूं, ये 4 बेवकूफ जैसे कर्म में लिखा गये हो। मोबाइल नेटवर्क की तरह पीछे पड़ गये हैं। मेरी सुरक्षा के नाम पर मेरे पल्ले इन चार नमूनों को बांध दिया गया है। मैं मजबूर थी महा, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा था। प्लीज मुझे माफ कर दो महा। अब से हम दोनो दोस्त है ना..

महा:– एक शर्त पर माफ करूंगा, मुझे उस चुतिये एकलाफ को तमाचा मारना है।

पलक:– क्यों पहले तू आर्य से नही पूछेगा, उसने एकलाफ को क्यों मेरे साथ बुलाया...

महा:– हां भाव... ये मदरचोद है कौन जिसे पलक के साथ आने कहे, और मुझे न बुलाया..

आर्यमणि:– इसने मुझे भी फोन पर बहुत गंदी और भद्दी गालियां दी थी। खून खौल गया था इसलिए बुला लिया।

महा:– तो क्या अब मैं उसे मार लूं...

पलक:– रुक महा, रूही प्लास्टिक की कैद से रिहाई के साथ–साथ क्या तुम इस चुतिये एकलाफ का शरीर को नॉर्मल कर दोगी, ताकि मार का असर पड़े...

महा:– क्या मतलब नॉर्मल करना..

रूही:– वुल्फ शरीर से कहीं ज्यादा खतरनाक नायजो का एक्सपेरिमेंट शरीर है। इसके अंदर चाकू घुसा के छोड़ दो तो वो चाकू शरीर के अंदर ही गल जायेगा..

महा:– ओ तेरी कतई खतरनाक... साला तभी जोर से कह रहा था, हम मारने पर उतरे तो मर जाना चाहिए... अब बोल ना भोसडी के...

रूही:– जुबान काहे गंदा कर रहे महा... लो ये मार खाने को तैयार है....

महा, उस एकलाफ के ओर बढ़ते.... “और कुछ है जो हमे इनके शरीर के बारे में जानना चाहिए।”...

पलक:– यहां से हम साथ निकलेंगे। सब बता दूंगी। पहले मारकर भड़ास निकाल लो...

“कामिनी गद्दार”.... एकलाफ अपनी बात कहकर अपने हाथ से आग, बिजली का बवंडर उठा दिया जो हवा में आते ही फुस्स हो गया। महा के अंदर खून में आया उबाल। दे लाफा पर लाफा मार–मार कर गाल और मुंह सुजा दिया। आर्यमणि उसका चिल्लाना सुनकर मुंह को पूरा ही जड़ से पैक कर दिया। इधर ओजल, पलक के 30 लोगों को दीवार से उतार चुकी थी, जो वहीं डायनिंग टेबल से लगे कुर्सियों पर बैठे चुके थे।

आर्यमणि:– तुम्हारे लोगों को छोड़ दिया है। और किसी को छोड़ना है...

पलक:– हां वो कांटों की चिता पर 22 लोग और है, उन्हे भी छोड़ दो। वो हमारे ट्रेनी है।

आर्यमणि:– रूही क्या उनके पास समय बचा है।

रूही:– 5 घंटे हुये होंगे.... सब बच जायेंगे...

आर्यमणि, पलक के ओर लैपटॉप करते.... अपने 22 लोगों के चेहरे पहचानो... इवान और अलबेली तुम दोनो उन 22 को ले आओ। ये बताओ तुम्हारे इन चारो नमूनों का क्या करना है?”...

पलक:– चारो इंसानी मांस के बहुत प्रेमी है। विकृत नायजो के हर पाप में इन लोगों ने हिस्सा लिया है। सबको भट्टी में झोंक देना...

आर्यमणि और रूही दोनो पलक को हैरानी से देखते.... “तुम्हे कैसे पता?”...

पलक, अपना सर उठाकर एक बार दोनो को देखी और वापस से लैपटॉप में घुसती.... “तुमने तो गुरु निशि और उनके शिष्यों के मौत की भट्टी के बारे में सुना होगा, मैने तो देखा था। वो चिंखते लोग... रोते, बिलखते, जलन के दर्द से छटपटाते बच्चे... मैं उस भट्टी को कैसे भुल सकती हूं। मैं डंपिंग ग्राउंड गयी थी, देखकर ही समझ गयी की ये भी जिंदा जलेंगे”...

“वैसे तुमने गुरु निशि के दोषियों को जब उनके अंजाम तक पहुंचा ही रहे हो, तो एक नाम के बारे में तुम्हे बता दूं। हालांकि इस नाम की चर्चा तो मैं करती ही। किंतु बात जब चल ही रही है, तो यही उपयुक्त समय है कि तुम अपने एक अंजान दुश्मन के बारे में अच्छी तरह से जान लो।”

“गुरु निशि के आश्रम के कांड की मुखिया का नाम अजुर्मी है। योजना बनाने से लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाने का बीड़ा इसी अजुर्मी ने उठाया था। इस वक्त वह किसी अन्य ग्रह पर है, लेकिन तुम ध्यान से रहना। क्योंकि आज के कांड के बाद अब तुम्हारे पीछे कोई नही आयेगा... बस उसी के लोग आयेंगे। पृथ्वी पर जितने नायजो है, उसकी गॉडमदर। पृथ्वी के कई नरसंहार की दोषी। अब वो तुम्हारे पीछे होगी। विश्वास मानो यदि यमराज मौत के देवता है, तो अजुर्मी ऊसे भी मौत देने का कलेजा रखती है। शातिर उतनी ही। जरूरी नही की तुम्हे मारने वो नायजो को ही भेजे। वो किसी को भी भेज सकती है। तुम जरा होशियार रहना। ये लो मेरा काम भी हो गया, उन 22 लोगों को अब जल्दी से अच्छा करके मेरे सामने ले आओ”..

पलक के सभी 22 ट्रेनी भारती के तरह ही मृत्यु के कांटों पर लेटे थे। शरीर में भयानक पीड़ा को मेहसूस करते कई घंटों से पड़े थे। उन सभी 22 ट्रेनी को कांटों के अर्थी समेत ही हॉल में लाया गया। हॉल में जैसे ही वो पहुंचे, आर्यमणि ने अपनी आंखे मूंद ली। सभी 22 एक साथ जड़ की एक चेन में कनेक्ट हो गये। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने आर्यमणि का हाथ थाम लिया। वहां मौजूद हर कोई देख सकता था, जड़ों की ऊपरी सतह पर काला द्रव्य बह रहा था और वो बहते हुये धीरे–धीरे अल्फा पैक के नब्ज में उतरने लगा। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने पहले कैस्टर के जहर को झेला था, इसलिए अब ये टॉक्सिक उनके लिये आम टॉक्सिक जैसा ही था। उन्हे हील करने में लगभग एक घंटा का वक्त लग गया।

ये सभी 22 लोग केवल कैस्टर के जहर को नही झेल रहे थे। इन 22 नायजो में एक भी एक्सपेरिमेंट बॉडी नही था। ऊपर से उनके सामान्य शरीर में 100 मोटे काटो का घुसा होना। इन्हे लाया भी गया था तो कांटा के अर्थी सहित लाया गया था, क्योंकि अल्फा पैक को पता था कांटा हटा, और सबकी मौत हुई। काटो की चपेट मे जो भी अंग थे वो धीरे–धीरे हील होते और उस जगह से कांटा हील होने दौरान ही धीरे–धीरे बाहर आ जाता। और इन्ही सब प्रोसेस से उन्हे हील करने में काफी वक्त लगा, किंतु जान बच गयी।

अद्भुत नजारा था जिसे आज तक किसी संन्यासी तक ने नही देखा था। सभी एक साथ नतमस्तक हो गये। उन 22 लोगों को हील करने के बाद सबको फिर जड़ों में लपेटकर दूसरे मंजिल के कमरों में भेज दिया गया, जहां उनके शरीर तक जरूरी औषधि पहुंचाने के बाद जड़ें अपने आप गायब हो जाती।

महा:– अरे बाबा रेरे बाबा... भाव वोल्फ ये भी कर सकते है क्या?

आर्यमणि:– तुम्हे तो वुल्फ हंटर बनाया गया था न... फिर वुल्फ के कारनामों पर अचरज..

महा:– भाव जो दिखाया वही देखे, जो सिखाया वही सीखे लेकिन जब मैदान में आये तो जो सही था और न्यायपूर्ण वही किया। सोलापुर से लेकर कोल्हापुर तक एक भी वुल्फ का शिकर नही होने दिया मैं। अपनी दोनो ओर बराबर जिम्मेदारी है, वुल्फ हो या इंसान। इंसान में भी कपटी होते है, इसका ये मतलब तो नही की सभी इंसान को मार दो। वैसे ही वुल्फ है...

आर्यमणि:– भूमि का चेला...

पलक:– भूमि दीदी है ही ऐसी..

आर्यमणि अपने हाथ जोड़ते... “तुमने मेरे भांजे को बचाया, छोटे (अपस्यु) को बचाया, तुम खामोशी से कितने काम करती रही। तुम्हारा आभार रहेगा।”

पलक:– ओ गुरु भेड़िया, भूलो मत दुश्मनी अभी खत्म नहीं हुई। और मिस अलबेली, क्या अब आप मुझे मेरा सामान दे देंगी, जो आप लोगों से वास्ता नहीं रखता...

अलबेली:– तुम एक नंबर की चोरनी हो ना। कपड़ों के नीचे इतना सारा खजाना। ये बताओ एनर्जी फायर को कहां छिपा कर रखी थी।

पलक:– एनर्जी फायर क्या?

अलबेली:– वही जिसमे जादूगर महान की आत्मा कैद थी...

पलक:– ऐसा सीधा कहो ना। नया नाम रख दी तो मैं दुविधा में आ गयी की शूकेश अपने घर में और कितने राज छिपाए है। चोरी के समान में क्या सब था मुझे उसकी पूरी जानकारी नही। और न ही कोर प्रहरी के बहुत से राज पता है। मैने अपने शरीर पर एक्सपेरिमेंट नही करवाया ना, इसलिए ये लोग मुझे अलग तरह से ट्रीट करते है।

अलबेली:– अलग तरह से ट्रीट मतलब...

पलक:– मतलब उन्हे मुझ पर पूरा विश्वास नही..

अलबेली:– एक्सपेरिमेंट के पहले और बाद क्या अंतर होगा, उल्टा तुम्हे कोई नुकसान भी नही पहुंचा सकता। फिर क्यों न करवाई एक्सपेरिमेंट..

पलक:– कैसे समझाऊं क्यों न करवाई... ऐसे समझो की वो एक्सपेरिमेंट दरिंदा बनाने के लिये किया जाता है। शरीर के अंदर की आत्मा को मारकर बस एक उद्देश्य के लिये प्रेरित करता है।

अलबेली:– कौन सा उद्देश्य?

पलक:– जो है सो हम ही है, और हमारे जैसे लोग... बाकी सब आंडू–गांडू.. पैरों की जूती... जब चाहो रौंद डालो... अब बहुत सवाल कर ली, जा मेरा समान ला, मुझे पूरा खाली कर दी है...

अलबेली:– हां लेकिन पहले ये तो बताओ आधे फिट की वो पत्थर की माला छिपाई कहां थी...

पलक:– तू जब उसे हाथ में ली होगी तो पता चल गया होगा कहां था। अब मुंह मत खुलवाओ और समान लेकर आओ... और आर्य वो अनंत कीर्ति की खुली किताब तो दिखाओ, जिसके पीछे पूरे कोर प्रहरी व्याकुल है...

आर्यमणि, अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोलकर दिखाते... “लो देख लो”...

पलक:– क्या मजाक है, यहां तो कुछ न लिखा।

आर्यमणि:– ये किताब है, इसे पढ़ा जाता है। ये किताब उतना ही उत्तर देगा, जितना इसने देखा है।

पलक:– इसने राजदीप (पलक का वही भाई जो आईपीएस है) को देखा ही होगा ना। उसी के बारे में बताओ किताब?

महा:– आंख मूंदकर राजदीप के बारे में सोचो, फिर आंख खोलो...

पलक, स्मरण करके आंखे खोली। जो किताब पर आ रहा था, उसे पढ़कर तो वह हैरान हो गयी। उसने उज्जवल, यानी अपने पिता का स्मरण किया। आंखें खोली तो इंसानी उज्जवल और बहरूपिया उज्जवल, सबकी जानकारी थी। पलक इस बार फिर आंखे मूंदी। उसके आंखों में आंसू थे। नम आखें खोली और बड़े ध्यान से पढ़ने लगी। पढ़ने के दौरान ही उसने थोड़ा और फिल्टर किया। इस बार आंखे खोलकर जब पढ़ी तो आंखें नम थी और चेहरे पर सुकून। वह किताब पर हाथ फेरने लगी.... “आर्य क्या यहां जो भी लिखा है उसे अलग से दे सकते हो”

आर्यमणि:– अपनी मां के बारे में सोची क्या?

पलक हां में सर हिलाने लगी। आर्यमणि, भी मुस्कुराते हुये हां कहा। अनंत कीर्ति पुस्तक के सामने उसने एक पूरा बंडल कोड़ा पन्ना रख दिया। कुछ मंत्र पढ़े और कोड़े पन्नो पर एक बार हाथ फेरते हुये वह पूरा बंडल पलक के हाथ में थमा दिया। पलक के साथ कई और ऐसे नायजो थे, जिन्हे अपने माता या पिता के बचपन का स्पर्श तो याद था, पर उसके बाद उन्हें निपटा दिया गया। एक–एक करके सभी आते गये और अपने प्रियजन की जानकारी लेकर जाते रहे। हर कोई भावुक होकर बस इतना ही कहता.... “दुनिया की सबसे अनमोल और कीमती उपहार दिये हो भाई।”

पलक के सभी साथी अपने हाथों में अपने माता–पिता की जीवनी समेटे थे। काम खत्म होते ही रूही जैसे ही किताब बंद करने आगे बढ़ी, पलक जिद करती.... “प्लीज मुझे मेरे बचपन के दोस्तों को ढूंढने दो। सार्थक और प्रिया।”

रूही मुस्कुराते हुये हामी भर दी पलक ने स्मरण किया और आंखें खोली। लेकिन आखें खोलने के बाद जैसे ही नजर पन्नो पर गयी..... “आर्य ये क्या है। किताब की जानकारी सही तो है न।”...

आर्यमणि ने किताब देखा... “पलक इसकी जानकारी सही है। सार्थक और प्रिया, गुरु निशि के मृत्यु के वक्त कहां थे और किन लोगों से मिले, पहले इसे जान लेते है?”...

किताब की पूरी जानकारी को देखने के बाद आर्यमणि.... “इन दोनो को तुम जिंदा जलाओगी, या मुझे जाना होगा।”...

पलक:– अब तो दिल पर बोझ सा हो गया है आर्य। सही जगह सूचना देती तो शायद सबकी जान बच जाती। यही दोनो थे जिन्होंने मुझसे कहा था कि मैं गुरु निशि या किसी को कुछ न बताऊं। यही दोनो थे, जिन्होंने मुझसे पैरालिसिस वाली बूटी ली थी और कही थी.... “इलाज के दौरान गुरु निशि अपने विश्वसनीय लोगों के साथ होंगे तब उनसे मिलने के बहाने उन्हे खतरे से आगाह किया जाएगा। वरना अभी गये आगाह करने तो हो सकता है उनके आस पास कुछ ऐसे दुश्मन हो जो मेरी बात को मनगढ़ंत साबित कर दे।”.... उनकी एक–एक चालबाजी याद आ रही। साले कपटी लोग। आर्यमणि इन्हे तो मैं अपने हाथों से जलाऊंगी... लेकिन उस से पहले कैस्टर ऑयल के फूल का जहर का मजा दूंगी। मौत से पहले इन्हे अपने किये पर ऐसा पछतावा होगा की इनकी रूहे दोबारा फिर कभी जन्म ही न लेगी। बस मेरे कुछ लोगों के लिये फर्जी पासपोर्ट का बदोबस्त कर दो।

आर्यमणि:– हो जायेगा... बस तुम चूकना मत। तो सभा समाप्त किया जाये...

पलक, आर्यमणि के गले लगती.... “अपना ख्याल रखना। आने वाला वक्त तुम पर बहुत भारी होने वाला है।”...

आर्यमणि:– सभा समाप्त मतलब अभी अपनी बातचीत की सभा समाप्त करते है। इसके आगे तो बहुत से काम है। वैसे भी अभी तक तो तुमने बड़ी सफाई से अपने शक्तियों के राज से पर्दा उठाने के बदले डिस्कशन को कहीं और मोड़ चुकी हो। बैठकर पहले मेरे आज के मीटिंग के मकसद को देखो, उसके बाद विस्तृत चर्चा होगी।

पलक, आर्यमणि से अलग होती.... “करने क्या वाले हो?”...

इस बार अकेला आर्यमणि नही बल्कि पूरा अल्फा पैक एक साथ... पूरा अल्फा पैक मतलब निशांत और संन्यासी शिवम भी... सभी एक साथ एक सुर में बोले..... “आज सात्त्विक आश्रम का भय वहां तक स्थापित होगा, जहां तक ये विकृत नायजो फैले है। आज पूरे ब्रह्मांड में हम अपनी उपस्थिति का प्रमाण देंगे”
Excellent fabulous outstanding update भाऊ ❤️❤️❤️❤️😘😘😘😘

Ye isko direct nepal leke pohch gaye sala direct OT mey aur apna kam shuru kar dala..

Baki sab ko jado mey jakad ke rakh khe hi agya ye arya to sala ye to international news hogi thi..

Lekin apne babu ne to sab ek jagha baith ke sab sulta dala ek sath....

Aur ye आर्या ne sab ko apne priy logo ki jankari deke ek bohot hi nek काम kiya hey..

Aur iske ohh dost to sala ek no ke dhoke baj nikale bc inke uper isne itna bharosa tha sab chakana chur hogya...

Ye Aisi bat hey ki ye real life or Kahani mey bhi dekhi ja ti hey "भरोसा" hi sabse bhadkar hey.. Lekin usko todne vale bhi najdik ke hi होते hey 😔😔

Aur ye sabse bada dushmn ka pata chal gaya hey jo ki yaha nhi rahti hey dusre planet par hoti hey lekin is kand ke ho Jane bad aabhi sakti hey..

Fir iske bad ake to bohot hi bda vale kand hone hey...

Aur ye last mey in sabne kha ki sab ko pata chal jayega to aisa kya karne vale hey..

Lagta hey kuch Grand Entry karne wale hey sab ke bich mey...


❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️😘😘😘😘😘❤️❤️😘😘
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king cobra

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वैसे पलक इंसान है या नायजो अगर पलक इंसान है तो उसमे इतनी शक्तिया कैसे, अगर पलक नायजो है तो उसे अपनी माँ के एहसास कैसे होता है थोड़ा कंफ्यूजन है
बाकि आप जो हिंदी फॉण्ट में लिखते हो मजा आ जाता है।


:cool1:
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meko lagta wo bata deta hun palak abhi insaan hai kyunki uske andar abhi wo special wala jaher nai dala gaya hai wo insaan aur naizo ki bich ki kadi hai matlab mata ya pita me se koi ek nayzo tha ok saktiyan ishiliye hain kyunki wo nayzo hai lekin abhi usme insaniyat baki hai kyunki wo davai jo usko complete nayzo bana de abhi usne nai piya hai agar usne wo davai pi liya tab to insaan nai rah jayegi bilkul nayzo ban jayegi
 

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वैसे पलक इंसान है या नायजो अगर पलक इंसान है तो उसमे इतनी शक्तिया कैसे, अगर पलक नायजो है तो उसे अपनी माँ के एहसास कैसे होता है थोड़ा कंफ्यूजन है
बाकि आप जो हिंदी फॉण्ट में लिखते हो मजा आ जाता है।


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Simple hai Bhai har jiv ko apne mata ka ahasas janm lete samay hi ho jata hai..
To phir palak exception kaise hogi...
 

krish1152

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Nice update
 

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meko lagta wo bata deta hun palak abhi insaan hai kyunki uske andar abhi wo special wala jaher nai dala gaya hai wo insaan aur naizo ki bich ki kadi hai matlab mata ya pita me se koi ek nayzo tha ok saktiyan ishiliye hain kyunki wo nayzo hai lekin abhi usme insaniyat baki hai kyunki wo davai jo usko complete nayzo bana de abhi usne nai piya hai agar usne wo davai pi liya tab to insaan nai rah jayegi bilkul nayzo ban jayegi
Nope palak nayajo hi hai... experiment hone ke baad wo vikrit nayajo ban jayegi...
 
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