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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–62





लोग आर्यमणि को जमीन पर तलाश कर रहे थे और आर्यमणि.… वह तो गहरे नीले समुद्र के बीच अपने सर पर हाथ रखे उस दिन को झक रहा था जब वह नागपुर से सबको लेकर निकला.…


विशाखापत्तनम से कार्गो शिप रवाना हुआ। तकरीबन 16 दिन का पहला सफर जो विशाखापत्तनम से शुरू होकर तंजानिया देश के किसी पोर्ट पर रुकती। सफर शुरू हो गया और सभी अपने विदेश यात्रा पर निकल चुके थे। पहला सफर लगभग शोक में डूबा सफर ही रहा। सबने सरदार खान की याद देखी थी, और उस याद ने जैसे अंदर के गम को कुरेद दिया था। 3 भाई–बहन, ओजल, इवान और रूही, तीनों ने अपनी मां को देखा था। एक ट्रू अल्फा हिलर फेहरीन जिसे एक दिन में इतने दर्द दिये जाते की उसकी खुद की हीलिंग क्षमता जवाब दे जाती। मजबूर इस कदर रहती की अपने हाथों से खुद को हिल करना पड़ता था। और जो कहानी फेहरीन की थी, वही कहानी अलबेली की मां नवेली की भी थी। बस फर्क सिर्फ इतना था की नवेली खुद को हील नही कर सकती लेकिन दर्द कितना भी रोने को मजबूर क्यों न करे उसके चेहरे की मुस्कान कभी गयी नही।


चारो ही शोक में डूबे रहे। रह–रह कर आंसू छलक आते। प्रहरी के सम्पूर्ण समुदाय पर ही ऐसा आक्रोश था कि यदि अभी कोई प्रहरी से सामने आ जाता तो उसे चिड़कर एक ही सवाल पूछते.… "उस वक्त कहां थे जब एक वेयरवोल्फ को नरक में पटक दिया गया और उसके बाद कोई सुध लेने नही पहुंचे।"


आर्यमणि अपने पैक की भावना समझ रहा था लेकिन वह भी उन्हें कुछ दिन शोक में डूबा छोड़ दिया। आर्यमणि इस दौरान सुकेश के घर से लूटे उन 400 पुस्तक को देखने लगा। 350 तो ऐसे किताब थे जिस पर कोई नाम ही नही था और अंदर किसी महान सिद्ध पुरुष की जीवनी। एक सिद्ध पुरुष का जीवन कैसा था। उन्होंने किस प्रकार की सिद्धियां हासिल की थी। उनकी सिद्धियों से कैसे निपटा जाये। और सबसे आखरी में था चौकाने वाला रहस्य, कैसे उस सिद्ध पुरुष को बल और छल से मारा गया था।


एक किताब को तो उसने पूरा पढ़ लिया। फिर उसके बाद हर किताब के सीधा आखरी उस अध्याय को ही पलटता जहां सिद्ध पुरुष के मारने की कहानी लिखी गयी थी। आर्यमणि एक बार उन सभी पुस्तकों की झलकियों को देखने के बाद सभी पुस्तक को जलाना ही ठीक समझा। उसने 350 पुस्तक को जलाकर उसकी राख को समुद्र में बिखेर दिया। 350 पुस्तक के आखरी अध्याय को पढ़ने में आर्यमणि को भी 16 दिन लग गये। कार्गो शिप बंदरगाह पर लग रही थी और आर्यमणि अपने पैक को लेकर तंजानिया की जमीन पर कदम रखा।


5 वैन में उनका सामान लोड था और पांचों ओपन जीप में तंजानिया के प्राकृतिक वादियों को निहारते हुये चल दिये.… सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान को देखते हुये ये लोग तंजानिया की राजधानी डोडोमा पहुंचते। डोडोम से फिर सभी लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरते। जीप पर भी शोक का माहोल छाया हुआ था।….. "क्या तुम्हे पता है, ये जो अपेक्स सुपरनैचुरल का जो नाम सुना है, वह कौन है?"..


रूही:– हां जानती हूं ना, एक प्रहरी ही होगा। अब रैंक बड़ा हो या छोटा कहलाएंगे प्रहरी ही।


आर्यमणि:– हां लेकिन क्या तुम्हे पता है इन लोगों के पास सोध की ऐसी किताब थी, जिसमे किसी अलौकिक साधु के मारने का पूर्ण विवरण लिखा हुआ था।


आर्यमणि की बात सुनकर किसी ने कोई प्रतिक्रिया ही नही दिया, बल्कि इधर–उधर देखने लगे। आर्यमणि को कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि इनको शोक से उबारा जाये। चारो में से कोई भी आर्यमणि की किसी भी बात में कोई रुचि ही नही दिखा रहे थे। गुमसुम और खामोशी वाला सफर आगे बढ़ता रहा और 2 दिन के बाद पूरा अल्फा पैक सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान पहुंच चुके थे। 18 दिनो में पहली बार ये लोग थोड़े खुले थे। उधान और वहां के जानवर को देख अपने आखों से ये पूरा नजारा समेट रहे थे। बड़े से घास के मैदान में जहां तक नजर जा रहा था, कई प्रकार के जानवर अपने झुंड में चर रहे थे।


काफी रोमांचक दृश्य था। चारो दौड़कर नजदीक पहुंचे। और करीब से यह पूरा दृश्य अनुभव करना चाहते थे किंतु चारो जैसे–जैसे करीब जा रहे थे, जानवरों में भगदड़ मचने लगी थी। सभी जानवर डरे हुये थे और उन्हें किसी शिकारी के अपने ओर बढ़ने की बु आ रही थी। आर्यमणि दूर बैठा जानवरो की भावना को पढ़ सकता था। छोटा सा ध्वनि विछोभ उसने पैदा किया और देखते ही देखते सभी जानवर अपनी जगह खड़े हो गये। जानवरों को शांत देख चारो खुश हो गये और उनके करीब पहुंचकर उन्हें छूने की कोशिश करने लगे। लेकिन वन विभाग के लोगों ने जानवरों के पास जाने से मना कर दिया।



चारो का मन छोटा हो गया। अपने पैक को एक बार फिर मायूस देखकर आर्यमणि खुद आगे आया और सबके मना करने के बावजूद भी झुंड के एक जंगली बैल के पेट पर हाथ रख दिया। उसके पेट पर हाथ रखने के साथ ही वह बैल अपना सर उठाकर बड़ी व्याकुलता से अपना सर दाएं–बाएं हिलाया और फिर सुकून भरी श्वांस खींचते वह आर्यमणि को अपने सर से स्पर्श कर रहा था। झुंड का वह बैल काफी पीड़ा में था और पीड़ा दूर होते ही धन्यवाद स्वरूप वह बैल अपने सर को आर्यमणि के बदन पर घिसने लगा।


फिर तो अल्फा पैक भी कहां पीछे रहने वाले थे। वो सब भी खतरनाक बैल की झुंड में घुसकर कहीं गायब हो गये। वन विभाग वाले चिल्लाते रह गये लेकिन सुनता कौन है। चारो ने भी किसी बेजुबान के दर्द को हरने का सुख अनुभव किया। यूं तो किसी का दर्द लेना चारो के लिये आसान नहीं था, किंतु चारो अपनी मां के अंजाम को देखकर पिछले कुछ दिनों से इतने दर्द में थे कि उन्होंने बेजुबान के दर्द को पूरा अपने अंदर समाते उसके खुशी के भाव को अपने जहन में उतार रहे थे।


फिर तो यहां वहां फुदक कर जितना हो सकता था जानवरों का दर्द ले रहे थे। इसी क्रम में अलबेली पहुंच गयी जेब्रा के झुंड के पास। जेब्रा यूं तो दिखने में काफी खूबसूरत और लुभावना लगता है, लेकिन ये उतने ही आक्रमक भी होते है। अपने झुंड में किसी गैर को देखना पसंद नही करते। अलबेली, जेब्रा की खूबसूरती पर मोहित होकर उसके पास तो पहुंच गयी, लेकिन जैसे ही उसके बदन पर हाथ रखी, जेब्रा ने दुलत्ती मार उसका नाक ही तोड़ दिया। अलबेली के नाक से रसभरी चुने लगा, जिसे साफ करके वह हिल हुई।


हिल होने के बाद उसके मन में आयी शैतानी और जेब्रा को हील करने के बाद किस प्रकार की नई खुशी अलबेली ने अर्जित किया, उसका विस्तृत विवरण वह अपने बाकी के पैक के साथ साझा करने लगी। रूही, इवान और ओजल तीनों ही जेब्रा के झुंड में घुस गये और कुछ देर बाद अपना नाक पकड़े बाहर आये। झुंड के बाहर जब निकले तब अलबेली बाहर खड़ी हंस रही थी। फिर तो जो ही उन तीनो ने पहले अलबेली को दौड़ाया। आगे अलबेली, पीछे से तीनो और कुछ दूर भागे होंगे की तभी उनके पीछे बैल का बड़ा सा झुंड दौड़ने लगा। अब तो चारो बाप–बाप चिल्लाते बैल के आगे दौड़ रहे थे।


चारो अपने बीते वक्त के गमों से उबरकर उस पूरे जंगल में चहलकदमी करने लगे। उनकी हंसी आपस की नोक झोंक और गुस्से में एक दूसरे को मारकर फुटबॉल बना देना, आम सा हो गया। उनका ये खिला स्वभाव देखकर आर्यमणि भी काफी खुश था। यूं तो आर्यमणि बस एक रात रुकने के इरादे से आया था, लेकिन उसने तय किया की अगले एक हफ्ते तक सभी तंजानिया में ही रहने वाले हैं।


जंगल के मध्य में ही इन लोगों का कैंप लगा। एक बड़े से टेंट में चारो के सोने की व्यवस्था की गयी और दूसरे टेंट में आर्यमणि, बचे हुये 50 पुस्तक के साथ था। आर्यमणि ने एक पुस्तक अपने हाथ में लिया जिसके ऊपर नाम लिखा था। आर्यमणि खुद से कहते... "जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–1। कमाल है इसपर किताब का नाम लिखा है। देखे अंदर क्या है।"


आर्यमणि ने पहला भाग उठाया। सबसे पहले पन्ने पर ही लिखा था पृथ्वी। अंदर के पन्ने उसने पलटे और बड़े ध्यान से पढ़ने लगा। हालांकि कुछ भी ऐसा नया नही था जो आर्यमणि पढ़ रह हो, लेकिन जिस हिसाब से उसमे लिखा गया था, वह काफी रोचक था। पहली बार वह ऐसी पुस्तक देख रहा था जिसमे मानव शरीर को विज्ञान के आधार पर नही, बल्कि शरीर के मजबूत और कमजोर अंगों के हिसाब से लिखा गया था। थोड़ा सा मानव इतिहास, थोड़ा सा भागोलिक दृष्टिकोण और पृथ्वी के किस पारिस्थितिकी तंत्र में कैसी जलवायु है और वहां कौन से शक्तिशाली जीव रहते हैं, उनका संछिप्त उल्लेख था।


आर्यमणि जैसे–जैसे पन्ने पलट रहा था फिर वह संछिप्त उल्लेख, विस्तृत विवरण में लिखा हुआ मिला। मध्यरात्रि हो रही थी और आर्यमणि बड़े ही ध्यान से उस पुस्तक को पढ़ रहा था। मानव शरीर के संरचना को यहां जिस प्रकार से उल्लेखित किया गया था, वैसा वर्णन तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मेडिकल बुक में न मिले। आर्यमणि पढ़ने के क्रम में कहीं खो सा गया था। आर्यमणि किताब में खोया था तभी टेंट की पूरी छत आर्यमणि के ऊपर गिर गयी और उसके ऊपर से जैसे कोई आदमी भी आर्यमणि के ऊपर गिरा हो।


आर्यमणि अपने क्ला से टेंट को फाड़कर बाहर आया और इवान के शर्ट को अपने मुट्ठी में दबोचकर एक हाथ से ऊपर हवा में उठाते.… "मेरे टेंट के ऊपर कूदने की हिम्मत कैसे किये?"


इवान:– बॉस मुझे अलबेली हवा में ऊपर उछालकर फेंकी और मैं सीधा आपके टेंट के ऊपर लैंड हुआ। जरा नजर पास में घूमाकर देखो, हमारे टेंट का छत भी उड़ा हुआ है...


आर्यमणि, इवान को नीचे उतारते.… "अलबेली ये सब क्या है?"


अलबेली:– इस छछुंदर को इधर दो बॉस ऐसा मारूंगी की हिल न हो पायेगा।


आर्यमणि:– यहां तुम लोगों के बीच क्या चल रहा है?


अलबेली:– बॉस मैं सोई थी और इसने मेरी नींद का फायदा उठाकर चुम्मा ले लिया।


आर्यमणि आंखों में खून उतारते इवान का गला दबोचकर उसे हवा में उठाते.… "बाप वाला संस्कार तो अंदर जोर नही मारने लगा इवान"…


इवान:– बॉस गला छोड़ दो। ये पागल हो गयी है आप तो होश में आ जाओ...


आर्यमणि कुछ सोचकर उसे नीचे उतारते... "हां क्या कहना है तुम्हे?"


इवान:– बॉस मुझे भी अभी ही पता चला की मैने इसे चूमा। मैं तो ओजल के पास लेटा था। और जब मैं हवा में आया तब भी वहीं सोया हुआ था।


अलबेली चिल्लाती हुई इवान को मारने पर तूल गयी…."साले झूठे, बॉस के सामने झूठ बोलता है।"


इवान:– नही मैं सच कह रहा...


आर्यमणि:– दोनो चुप... रूही ये सब करस्तानी तुम्हारी है न...


रूही:– बिलकुल नहीं बॉस... मैं तो सोयी हुई थी।


आर्यमणि:– रात के इस प्रहर मुझे पागल बनाने की कोशिश न करो, वरना मैं पूछूंगा नही बल्कि गर्दन में क्ला घुसाकर पता लगा लूंगा। अब जल्दी बताओ ये किसकी साजिश है...


रूही:– ओजल की... उसी ने कहा था रात बहुत बोरिंग हो रही है...


आर्यमणि:– अब दोनो मिलकर रात को एक्साइटिंग बनाओ और जल्दी से दोनो टेंट को ठीक करो वरना दोनो को मैं उल्टा लटका दूंगा...


दोनो छोटा सा मुंह बनाते... "बॉस हम जैसे कोमल और कमसिन"…. इतना ही तो दोनो ने एक श्रृंक में बोला था और अगले ही पल आर्यमणि की घूरती नजरों से सामना हो गया।... "दोनो चुप चाप जाकर जितना कहा है करो"...


दोनो लग गयी काम पर। आधे घंटे में दोनो टेंट तैयार थे। इस बार तीन लड़कियां एक टेंट में और इवान के साथ आर्यमणि अपने टेंट में आ गया। आर्यमणि वापस से किताब को पलटा और इवान नींद की गहराइयों में था। कुछ देर तक तो सब कुछ सामान्य ही था लेकिन उसके बाद तो ऐसा लगा जैसे आर्यमणि के टेंट में कोई मोटर इंजन चल रहा हो, इतना तेज इवान के खर्राटों की आवाज थी। बेचारा आर्यमणि खून के घूंट पीकर रह गया।


अगले दिन फिर से ये लोग सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के आगे का सफर तय करने लगे। घास के मैदानी हिस्से से ये लोग जंगल के इलाके में पहुंच चुके थे। लगभग दिन ढलने को था, इसलिए इन लोगों ने अपना टेंट जंगल के कुछ अंदर घुसते ही लगा लिया। इस बार आर्यमणि ने ३ टेंट लगवाया। एक में खुद दूसरे में इवान और तीसरे में सभी लड़कियां। आज शाम से ही आर्यमणि पुस्तक को लेकर बैठा। पुस्तक की मोटाई के हिसाब से तो 1000 पन्नो से ज्यादा का पुस्तक नही होना चाहिए थी। पूरे पुस्तक की मोटाई लगभग 6 इंच की रही होगी लेकिन उसके अंदर १० हजार से ज्यादा पन्ने थे।


आम तौर पर पन्ने की मोटाई जितनी होती है, उतनी मोटाई में इस पुस्तक के १० पन्ने आ जाये। और इतने साफ और चमकदार पन्ने की देखने से लग रहा था कुछ अलग ही मैटेरियल से इन पन्नो को तैयार किया गया था। खैर आर्यमणि के पढ़ने की गति भी उतनी ही तेज थी। 6–7 घंटे में वह आधे किताब का पूर्ण अध्यन कर चुका था। बचा किताब भी खत्म हो ही जाता लेकिन मध्य रात्रि के पूर्व ही टीन वुल्फ कि आपस में झड़प हो गयी। अलबेली और इवान एक टीम में वहीं रूही और ओजल विपक्ष में। सभी एक दूसरे ना तो मारने में हिचक रहे थे और न ही फुटबॉल बनाकर हवा में उड़ाने से पीछे हट रहे थे।


आज की रात तो एक नही बल्कि 2 लोग आर्यमणि की छत पर लैंड कर रहे थे। बीच बचाव करते और सबका झगड़ा सुलझाने में आर्यमणि को २ घंटे लग गये। उसके बाद किताब पढ़ने की रुचि ही खत्म हो गयी। हां केवल एक वक्त था जब सुबह आर्यमणि, संन्यासी शिवम के किताब के एक अध्याय का अभ्यास कर रहा होता, तब उस 4 घंटे के समय अंतराल में कोई भी आर्यमणि को परेशान नही करता। यहां तक की चारो वहां ऐसे फैले होते की जंगली जानवर तक के आवाज को आर्यमणि के कानो तक नही पंहुचने देते।
Wow 😲
Amazing update Bhai, ❤️🎉
 

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भाग:–63






सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के घूमने का सफर अगले दिन भी जारी रहा। जैसे–जैसे ये सब अपने गमों से उबर रहे थे, एक दूसरे से उतना ही लड़ भी रहे थे। टीम हमेशा बदलते रहता। झगड़े किसी भी वक्त किसी भी बात के लिये शुरू हो जाता और उनके बीच–बचाव में आर्यमणि का सर दर्द करने लगता। आर्यमणि अब पुस्तकों को किनारे ही कर चुका था, केवल सुबह के पुस्तक को छोड़कर। अब उसका ध्यान उन 8–10 बक्सों के ऊपर था, जो सुकेश के घर से चोरी हुये थे। आर्यमणि को समझ में आ चुका था, जब तक इन्हे काम नही दोगे तब तक कोई शांत नहीं बैठने वाला। यही सोचकर आज की रात आर्यमणि ने उन बक्सों को खोलने का फैसला किया।


रात के १० बज रहे होंगे। हर कोई आर्यमणि के टेंट में ही था। सब लोग ध्यान लगाकर बक्से को देख रहे थे। इसी बीच एक छोटी सी ठुसकी अलबेली को लग गयी। अलबेली, इवान को जोर से धकेलती... "तुझे धक्का मारने का बड़ा शौक चढ़ा है।"


अलबेली ने जो धक्का मरा उस से इवान तो धक्का खाया ही लपेटे में ओजल भी आ गयी। ओजल, इवान को किनारे करती अलबेली के बिलकुल सामने खड़ी हो गयी और उसे भी एक जोरदार धक्का दे दी। लो अब धक्का मुक्की का खेल आर्यमणि के आंखों के सामने ही शुरू हो गया। नौबत यहां तक आ गयी की आर्यमणि जब बीच–बचाव करने इनके बीच पहुंचा, तभी चारो ने एक साथ ऐसे हाथ झटका की आज आर्यमणि अपना टेंट का छप्पर फाड़कर पड़ोस के टेंट की छत पर लैंड किया। फिर तो आर्यमणि भी आज रात इन चारो को आड़े हाथ लेते भीड़ गया। कभी चारो हवा में होते तो कभी आर्यमणि।


माहोल थोड़ा मस्ती मजाक भरा हो गया और चारो की हटखेली में आर्यमणि भी सामिल हो गया। इस प्रकार की हटखेलि से आर्यमणि को अंदर से अच्छा महसूस हो रहा था, लेकिन वो कहते है न... अति सर्वत्र वर्जायते... वही यहां हो गया। अपने बॉस को हटखेली में सामिल होते देखे चारो और भी ज्यादा उद्वंड हो गये। आर्यमणि के लिये तो जैसे सिर दर्द ही बढ़ गया हो। कितना भी गुस्सा कर लो अथवा चिल्ला लो... कुछ घंटे ये चारो शांत हो जाते लेकिन उसके बाद फिरसे इनकी झड़प शुरू। इतने ढीठ थे कि आर्यमणि को हर वक्त पानी पिलाये रहते थे।


7 दिन बाद सभी लोग तंजानिया के लोकल पासपोर्ट लिये, डोडोमा अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर थे, जहां से ये लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरे। कनेक्टिंग फ्लाइट के जरिये ये लोग सीधा नाइजीरिया के लागोस शहर में उतरे और अगले २ दिन तक इस शहर में पूरे अल्फा पैक की धमाचोकरी जारी थी। एक तो पहले से इन लोगों के पास सुकेश के घर का माल था, ऊपर से इन लोगों ने 6 बड़े ट्राली बैग का लगेज बढ़ा दिया। 2 दिन बाद सभी पोर्ट ऑफ लागोस (अपापा), नाइजीरिया से पोर्ट ऑफ वेराक्रूज, मैक्सिको के लिये अपने कार्गो शिप में थे।


लगभग 30 दिन बाद ये लोग मैक्सिको में होते। आर्यमणि आराम से अपने कमरे में बचे हुये 50 किताब के साथ बैठा था। पढ़ने बैठने से पहले आर्यमणि सबको ट्रेनिंग का टास्क समझकर बैठा था। कार्गो शिप का पहला दिन काफी शांत था। आर्यमणि को शक सा हो गया, कहीं फिर से चारो शोक में तो नही डूब गये। २ बार उठकर जांच करने भी गया लेकिन सभी वुल्फ ट्रेनिंग में मशगूल थे। अगले 4 दिन तक इतना शांत माहोल रहा की आर्यमणि ने जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) के 3 भाग का पूरा अध्यन कर चुका था। यह पुस्तक श्रृंखला अपने भाग के समाप्ति के बाद और भी रोचक होते जा रही थी। क्योंकि जहां पहले 2 भाग में पृथ्वी था, वहीं तीसरा भाग में प्रिटी जैसे किसी अन्य ग्रह के जीवन के विषय में लिखा था।


आर्यमणि आगे और जानने के लिये उत्साहित हो गया। अब तो वह पूरे दिन में मात्र ३ घंटे ही सोता और बाकी समय किताब में ही डूबा रहता। अगले 4 दिन में वह 3 और भाग खत्म करके चौथे पुस्तक को खोल चुका था। वह जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–7 को पढ़ना शुरू कर चुका था। नागपुर से निकले कुल 35 दिन हो चुके थे। भाग 7 के मध्य में आर्यमणि होगा, जब पहली बार टीन वुल्फ ने दरवाजा खटखटाया। आर्यमणि बाहर आया तब पता चला मामला गंभीर था। 2 घंटा लग गया आर्यमणि को इनका मामला सुलझाते हुये।


इनका मामला सुलझाकर आर्यमणि कुछ घंटे का अध्यन आगे बढ़ाया ही था कि फिर से दरवाजे पर दस्तक होने लगी। इस बार उत्साह में दस्तक हुई थी। इन लोगों ने अपने हाथ के पोषण से कमरे में ही एक फूल के पौधे को 7 फिट बड़ा कर दिया था। यह कारनामा देखने के बाद तो आर्यमणि भी हैरान था। वो भी इनकी खुशियों में सामिल हो गया और खुद भी हाथ लगाकर पेड़ को और बड़ा करने की कोशिश करने लगा। आर्यमणि के चेहरे पर तब चमक आ गयी जब उसके हाथ लगाने के कुछ देर बाद पूरे पेड़ में फूल खिल उठे। यह नजारा देख खुशी से पूरा वुल्फ पैक ही झूमने लगा।


खैर २ घंटे के बाद एक बार फिर आर्यमणि अपने अध्यन मे लिन हो गया। किंतु कुछ देर बाद ही वापस से दरवाजे पर दस्तक। आर्यमणि चिढ़ते हुये पहुंचा और सब पर जोर–जोर से चिल्लाने लगा। पूरा वुल्फ पैक सकते में आने के बदले उसकी चिढ़ पर हंस रहे थे। मामला क्या था और क्यों दरवाजा पीट रहे थे, यह जाने बिना ही वह वापस अपने कमरे में आ गया। 8 दिन पूर्ण शांति के बाद तो जैसे अशांति ने डेरा डाल दिया हो। हर आधे घंटे पर दरवाजा खटखटाने लगता। अगले 1 दिन में आर्यमणि इतना परेशान हो गया की अपने माथे पर हाथ रख कर उस पल को झकने लगा, जब वह इन चारो को लेकर नागपुर से निकला था।


आर्यमणि:– क्या चाहते हो, मैं शांति से न जीयूं?


रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या हुआ बॉस, किसने परेशान किया है आपको? आप खाली नाम बोलो, काम हम तमाम कर देंगे।


आर्यमणि अपने दोनो हाथ जोड़ते.… "परेशान करने वालों में से एक तुम भी हो रूही, जाओ अपना काम तमाम कर लो"…


रूही:– क्या बात कर रहे हो बॉस। मैं मर गयी तो फिर आप गहरे सदमे में चले जाओगे। मरने के बाद तो मुझे तृप्ति भी नही मिलेगी... अल्फा पैक के अलावा किसने परेशान किया?


आर्यमणि:– ये तुम लोग जान बूझ कर मुझे परेशान कर रहे हो ना..


अलबेली:– क्या बात है बॉस बहुत जल्दी समझ गये।


इवान:– सुबह 4 घंटे ध्यान और योग कम था जो अब प्रहरी के किताब में घुस गये।


ओजल:– हमे पसंद नही की आप पूरा दिन किताब से चिपके रहो। हम टीम मेंबर ने मिलकर फैसला लिया है...


आर्यमणि:– हां मैं सुन रहा हूं, आगे बोलो..


रूही:– आगे क्या... आज से किताब पढ़ने के लिये बस 4 घंटे ही मिलेंगे। 8 घंटे तुम 2 तरह के किताब को पढ़ो। 8 घंटे हमारे साथ और 8 घंटे सोना है। सोना मतलब अलग अपने कमरे में नही बल्कि हम सब साथ में बड़े से हॉल में सोयेंगे। और यही फाइनल है...


आर्यमणि:– कोई दूसरा विकल्प नहीं। 8 घंटे मैं यदि अपने कमरे में सो जाऊं तो...


अलबेली:– भैया बिलकुल नहीं। आप वहां जागते रहते हो और इधर हम सब को भी नींद नहीं आती। रोज 2–3 घंटे की नींद से आंखें सूज गयी है।


आर्यमणि:– मेरे जागने से तुम लोगों के नींद न आने का क्या संबंध है...


रूही:– हमारा मुखिया जाग रहा हो और हम सो जाये ऐसा हो नही सकता।


आर्यमणि के पास कोई विकल्प नहीं था सिवाय उनकी बात मानने के। आर्यमणि को अपने पैक की बात माननी ही पड़ी। एक वुल्फ पैक खुशहाली में चला। खट्टे मीठे नोक–झोंक और मस्ती–मजाक का साथ। हर किसी का अपना ही अंदाज था और सभी एक दूसरे से घुलते–मिलते चले।


नाइजीरिया से निकले 15 दिन हो चुके थे। मैक्सिको पहुंचने के लिये लगभग 15 दिन का सफर और बाकी था। पूरा अल्फा पैक अपने बड़े से हॉल में और हॉल के बीचों–बीच सुकेश के घर से चोरी किये हुये बक्से एक लाइन से लगे थे। हर बॉक्स पर उसकी संख्या लिखी थी और वुल्फ पैक चिट्ठी निकालकर पहला बॉक्स खुलने का इंतजार कर रहे थे। चिट्ठी ऊपर हवा में और आर्यमणि ने पहला चिट्ठी उठाया.… सभी एक साथ... "जल्दी से बताओ बॉस, किस बक्से का नंबर निकला"…. "तुम लोग तैयार हो जाओ छठे नंबर का पहला बक्सा खुलेगा"….


4 फिट चौड़ा, 10 फिट लंबा और 4 फिट ऊंचा 10 बक्से। छठे नंबर वाला बक्से को खोला गया। बक्सा जैसा ही खुला सबकी आंखें चमक गयी। अंदर 10ग्राम के सोने के सिक्के। आर्यमणि ने उस पूरे बक्से को ही पलट दिया.… "सब लोग जल्दी से इन सिक्कों की गिनती करो।"


आधे घंटे में पूरी गिनती समाप्त करते.… "बॉस 25 हजार सोने की सिक्के है।"


आर्यमणि:– हम्मम!!! यानी 2500 किलो सोना एक बॉक्स में। जल्दी से बाकी के 9 बॉक्स खोलो...


पूरे अल्फा पैक ने तुरंत सारे बक्से को खोल दिया। सब में उतना ही सोना भरा था। वहां बिखरे सोने के भंडार को देखकर सभी की आंखें फटी रह गयी... "इतना सोना। जब इसे क्रेन से उठाकर लोड किया जा रहा था, तब मुझे लगा बॉस क्या ये लोहा–टीना के भंगार का वजन ढो रहे। साला इसमें तो कुबेर का खजाना छिपा था।"


आर्यमणि:– कुछ तो गड़बड़ है। ये ज्यादा से ज्यादा १००० करोड़ का सोना होगा। लेकिन १००० करोड़ को कोई अपने संग्रहालय में क्यों रखेगा। वो भी वहां, जहां अनंत कीर्ति और जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र जैसी किताबे रखी हो। किसी जादूगर का दंश रखा हो। फिर ये लोग इतना वजनी और जगह घेरने वाले बक्से को क्यों उस जगह रखवाएंगे?


रूही:– हमे क्या करना हैं बॉस... १००० करोड़ .. इतना ज्यादा रूपया... मैं तो देखकर पागल हो जाऊंगी...


आर्यमणि बक्से को बड़े ध्यान से देख रहा था। आर्यमणि ने एक बक्से को पलट दिया और उल्टे बक्से को बड़े ध्यान से देखने लगा। कुछ भी संदिग्ध न मिल पाने की परिस्थिति में आर्यमणि ने एक हथौड़ा मंगवाया और पूरे बक्से के पार्ट–पार्ट को खोल दिया। हल्के और मजबूत धातु के 2 परत को जोड़कर हर शीट को तैयार किया गया था जिसकी मोटाई लगभग 4 इंच थी। शायद वजन सहने के हिसाब से शीट को बनाया गया था।


आर्यमणि हर शीट को बड़े ध्यान से देख रहा था। तभी उसे पता नही क्या सूझा और अपने क्ला से हर शीट को कुरेदने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे मेटल के ऊपर कोई नुकीली चीज से घिस रहा हो। हर शीट से मेटल के घिसने की आवाज आ रही थी जो काफी अप्रिय आवाज थी। लेकिन जिस शीट का इस्तमाल नीचे बेस के लिये किया गया था, उस शीट को जब आर्यमणि घिस रहा था, तब बीच का 3X3 फिट का भाग से खरोंच की आवाज निकालना बंद हो गया। उतने बड़े भाग पर जैसे बक्से में इस्तमाल हुये मेटल का रंग चढ़ाया गया था। बीच का हिस्सा जैसे ही आर्यमणि ने खरोचा, तब पता चला की वहां फोम इस्तमाल हुआ है। 2 सेंटीमीटर के फोम को जैसे ही निकला गया उसके नीचे 2.5 फिट लंबा, 2 फिट चौड़ा और 2.5 इंच की मोटाई वाला एक छोटा सा बॉक्स निकला।


जो मेटल पूरे बक्से को बनाने में इस्तमाल हुआ था, उस से कहीं ज्यादा मजबूत मेटल इस छोटे से बॉक्स में इस्तमाल किया गया था। 1mm की थिकनेस वाला यह मेटल हथौड़े के मार से भी नही टूटा। आर्यमणि ने सबसे पहले बाकी के 9 बक्से से वह छोटे बॉक्स को निकाल लिया। आर्यमणि के दिमाग में कहीं न कहीं यह भी घूम रहा था कि जिस छोटे से बॉक्स को बचाने के लिये इतना बड़ा जाल रचा गया है, हो सकता है बक्से के खुलते ही सुकेश एंड कंपनी को कोई सिग्नल मिल जाये।


जिस बक्से में 2500 किलो सोना रखा गया हो ताकि चुराने वाले को लगे की सुकेश भारद्वाज ने अपने संग्रहालय में खजाना रखा था। फिर ऐसा तो हो नही सकता की सुकेश ने उस बक्से को ढूंढने का कोई उपाय का इंतजाम न कर रखा हो। जरूर इस बक्से के खुलते ही सुकेश को जरूर चला होगा। आर्यमणि अपनी इस सोच पर इसलिए भी भरोसा कर रहा था, क्योंकि ऐसा पहले भी हुआ था। जबतक आर्यमणि ने सुकेश का संग्रहालय नही खोला था, तब तक तो सब ठीक था लेकिन जैसे ही संग्रहालय का दरवाजा खुला, सुकेश के साथ–साथ हर किसी तक सूचना पहुंच चुकी थी।


दूसरा समांतर सोच यह भी था कि जिस छोटे से बक्से से ध्यान भटकाने के लिये सुकेश 2500 किलो सोना डाल सकता है, उस छिपे बॉक्स में आखिर ऐसा क्या होगा? इन दो सोच के साथ 2 समस्या भी दिमाग में चल रही थी। छोटा सा बॉक्स जो निकला था वह मात्र आयताकार ढांचा था, जिसे खोलने के लिये उसके ऊपर कुछ भी ऐसा हुक या बटन नही लगा था। एक छोटे बॉक्स के ऊपर तो हथौड़ा मारकर भी देख लिया लेकिन वह पिचका तक नही, टूटना तो दूर की बात थी। पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?
Maja hi aa gaya,
Kasam se es kahani ko padhte padhte alag hi duniya me khojata hu bhai,
Awesome update ❤️ bhai 🎉🎉🎉
 
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भाग:–63






सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के घूमने का सफर अगले दिन भी जारी रहा। जैसे–जैसे ये सब अपने गमों से उबर रहे थे, एक दूसरे से उतना ही लड़ भी रहे थे। टीम हमेशा बदलते रहता। झगड़े किसी भी वक्त किसी भी बात के लिये शुरू हो जाता और उनके बीच–बचाव में आर्यमणि का सर दर्द करने लगता। आर्यमणि अब पुस्तकों को किनारे ही कर चुका था, केवल सुबह के पुस्तक को छोड़कर। अब उसका ध्यान उन 8–10 बक्सों के ऊपर था, जो सुकेश के घर से चोरी हुये थे। आर्यमणि को समझ में आ चुका था, जब तक इन्हे काम नही दोगे तब तक कोई शांत नहीं बैठने वाला। यही सोचकर आज की रात आर्यमणि ने उन बक्सों को खोलने का फैसला किया।


रात के १० बज रहे होंगे। हर कोई आर्यमणि के टेंट में ही था। सब लोग ध्यान लगाकर बक्से को देख रहे थे। इसी बीच एक छोटी सी ठुसकी अलबेली को लग गयी। अलबेली, इवान को जोर से धकेलती... "तुझे धक्का मारने का बड़ा शौक चढ़ा है।"


अलबेली ने जो धक्का मरा उस से इवान तो धक्का खाया ही लपेटे में ओजल भी आ गयी। ओजल, इवान को किनारे करती अलबेली के बिलकुल सामने खड़ी हो गयी और उसे भी एक जोरदार धक्का दे दी। लो अब धक्का मुक्की का खेल आर्यमणि के आंखों के सामने ही शुरू हो गया। नौबत यहां तक आ गयी की आर्यमणि जब बीच–बचाव करने इनके बीच पहुंचा, तभी चारो ने एक साथ ऐसे हाथ झटका की आज आर्यमणि अपना टेंट का छप्पर फाड़कर पड़ोस के टेंट की छत पर लैंड किया। फिर तो आर्यमणि भी आज रात इन चारो को आड़े हाथ लेते भीड़ गया। कभी चारो हवा में होते तो कभी आर्यमणि।


माहोल थोड़ा मस्ती मजाक भरा हो गया और चारो की हटखेली में आर्यमणि भी सामिल हो गया। इस प्रकार की हटखेलि से आर्यमणि को अंदर से अच्छा महसूस हो रहा था, लेकिन वो कहते है न... अति सर्वत्र वर्जायते... वही यहां हो गया। अपने बॉस को हटखेली में सामिल होते देखे चारो और भी ज्यादा उद्वंड हो गये। आर्यमणि के लिये तो जैसे सिर दर्द ही बढ़ गया हो। कितना भी गुस्सा कर लो अथवा चिल्ला लो... कुछ घंटे ये चारो शांत हो जाते लेकिन उसके बाद फिरसे इनकी झड़प शुरू। इतने ढीठ थे कि आर्यमणि को हर वक्त पानी पिलाये रहते थे।


7 दिन बाद सभी लोग तंजानिया के लोकल पासपोर्ट लिये, डोडोमा अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर थे, जहां से ये लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरे। कनेक्टिंग फ्लाइट के जरिये ये लोग सीधा नाइजीरिया के लागोस शहर में उतरे और अगले २ दिन तक इस शहर में पूरे अल्फा पैक की धमाचोकरी जारी थी। एक तो पहले से इन लोगों के पास सुकेश के घर का माल था, ऊपर से इन लोगों ने 6 बड़े ट्राली बैग का लगेज बढ़ा दिया। 2 दिन बाद सभी पोर्ट ऑफ लागोस (अपापा), नाइजीरिया से पोर्ट ऑफ वेराक्रूज, मैक्सिको के लिये अपने कार्गो शिप में थे।


लगभग 30 दिन बाद ये लोग मैक्सिको में होते। आर्यमणि आराम से अपने कमरे में बचे हुये 50 किताब के साथ बैठा था। पढ़ने बैठने से पहले आर्यमणि सबको ट्रेनिंग का टास्क समझकर बैठा था। कार्गो शिप का पहला दिन काफी शांत था। आर्यमणि को शक सा हो गया, कहीं फिर से चारो शोक में तो नही डूब गये। २ बार उठकर जांच करने भी गया लेकिन सभी वुल्फ ट्रेनिंग में मशगूल थे। अगले 4 दिन तक इतना शांत माहोल रहा की आर्यमणि ने जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) के 3 भाग का पूरा अध्यन कर चुका था। यह पुस्तक श्रृंखला अपने भाग के समाप्ति के बाद और भी रोचक होते जा रही थी। क्योंकि जहां पहले 2 भाग में पृथ्वी था, वहीं तीसरा भाग में प्रिटी जैसे किसी अन्य ग्रह के जीवन के विषय में लिखा था।


आर्यमणि आगे और जानने के लिये उत्साहित हो गया। अब तो वह पूरे दिन में मात्र ३ घंटे ही सोता और बाकी समय किताब में ही डूबा रहता। अगले 4 दिन में वह 3 और भाग खत्म करके चौथे पुस्तक को खोल चुका था। वह जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–7 को पढ़ना शुरू कर चुका था। नागपुर से निकले कुल 35 दिन हो चुके थे। भाग 7 के मध्य में आर्यमणि होगा, जब पहली बार टीन वुल्फ ने दरवाजा खटखटाया। आर्यमणि बाहर आया तब पता चला मामला गंभीर था। 2 घंटा लग गया आर्यमणि को इनका मामला सुलझाते हुये।


इनका मामला सुलझाकर आर्यमणि कुछ घंटे का अध्यन आगे बढ़ाया ही था कि फिर से दरवाजे पर दस्तक होने लगी। इस बार उत्साह में दस्तक हुई थी। इन लोगों ने अपने हाथ के पोषण से कमरे में ही एक फूल के पौधे को 7 फिट बड़ा कर दिया था। यह कारनामा देखने के बाद तो आर्यमणि भी हैरान था। वो भी इनकी खुशियों में सामिल हो गया और खुद भी हाथ लगाकर पेड़ को और बड़ा करने की कोशिश करने लगा। आर्यमणि के चेहरे पर तब चमक आ गयी जब उसके हाथ लगाने के कुछ देर बाद पूरे पेड़ में फूल खिल उठे। यह नजारा देख खुशी से पूरा वुल्फ पैक ही झूमने लगा।


खैर २ घंटे के बाद एक बार फिर आर्यमणि अपने अध्यन मे लिन हो गया। किंतु कुछ देर बाद ही वापस से दरवाजे पर दस्तक। आर्यमणि चिढ़ते हुये पहुंचा और सब पर जोर–जोर से चिल्लाने लगा। पूरा वुल्फ पैक सकते में आने के बदले उसकी चिढ़ पर हंस रहे थे। मामला क्या था और क्यों दरवाजा पीट रहे थे, यह जाने बिना ही वह वापस अपने कमरे में आ गया। 8 दिन पूर्ण शांति के बाद तो जैसे अशांति ने डेरा डाल दिया हो। हर आधे घंटे पर दरवाजा खटखटाने लगता। अगले 1 दिन में आर्यमणि इतना परेशान हो गया की अपने माथे पर हाथ रख कर उस पल को झकने लगा, जब वह इन चारो को लेकर नागपुर से निकला था।


आर्यमणि:– क्या चाहते हो, मैं शांति से न जीयूं?


रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या हुआ बॉस, किसने परेशान किया है आपको? आप खाली नाम बोलो, काम हम तमाम कर देंगे।


आर्यमणि अपने दोनो हाथ जोड़ते.… "परेशान करने वालों में से एक तुम भी हो रूही, जाओ अपना काम तमाम कर लो"…


रूही:– क्या बात कर रहे हो बॉस। मैं मर गयी तो फिर आप गहरे सदमे में चले जाओगे। मरने के बाद तो मुझे तृप्ति भी नही मिलेगी... अल्फा पैक के अलावा किसने परेशान किया?


आर्यमणि:– ये तुम लोग जान बूझ कर मुझे परेशान कर रहे हो ना..


अलबेली:– क्या बात है बॉस बहुत जल्दी समझ गये।


इवान:– सुबह 4 घंटे ध्यान और योग कम था जो अब प्रहरी के किताब में घुस गये।


ओजल:– हमे पसंद नही की आप पूरा दिन किताब से चिपके रहो। हम टीम मेंबर ने मिलकर फैसला लिया है...


आर्यमणि:– हां मैं सुन रहा हूं, आगे बोलो..


रूही:– आगे क्या... आज से किताब पढ़ने के लिये बस 4 घंटे ही मिलेंगे। 8 घंटे तुम 2 तरह के किताब को पढ़ो। 8 घंटे हमारे साथ और 8 घंटे सोना है। सोना मतलब अलग अपने कमरे में नही बल्कि हम सब साथ में बड़े से हॉल में सोयेंगे। और यही फाइनल है...


आर्यमणि:– कोई दूसरा विकल्प नहीं। 8 घंटे मैं यदि अपने कमरे में सो जाऊं तो...


अलबेली:– भैया बिलकुल नहीं। आप वहां जागते रहते हो और इधर हम सब को भी नींद नहीं आती। रोज 2–3 घंटे की नींद से आंखें सूज गयी है।


आर्यमणि:– मेरे जागने से तुम लोगों के नींद न आने का क्या संबंध है...


रूही:– हमारा मुखिया जाग रहा हो और हम सो जाये ऐसा हो नही सकता।


आर्यमणि के पास कोई विकल्प नहीं था सिवाय उनकी बात मानने के। आर्यमणि को अपने पैक की बात माननी ही पड़ी। एक वुल्फ पैक खुशहाली में चला। खट्टे मीठे नोक–झोंक और मस्ती–मजाक का साथ। हर किसी का अपना ही अंदाज था और सभी एक दूसरे से घुलते–मिलते चले।


नाइजीरिया से निकले 15 दिन हो चुके थे। मैक्सिको पहुंचने के लिये लगभग 15 दिन का सफर और बाकी था। पूरा अल्फा पैक अपने बड़े से हॉल में और हॉल के बीचों–बीच सुकेश के घर से चोरी किये हुये बक्से एक लाइन से लगे थे। हर बॉक्स पर उसकी संख्या लिखी थी और वुल्फ पैक चिट्ठी निकालकर पहला बॉक्स खुलने का इंतजार कर रहे थे। चिट्ठी ऊपर हवा में और आर्यमणि ने पहला चिट्ठी उठाया.… सभी एक साथ... "जल्दी से बताओ बॉस, किस बक्से का नंबर निकला"…. "तुम लोग तैयार हो जाओ छठे नंबर का पहला बक्सा खुलेगा"….


4 फिट चौड़ा, 10 फिट लंबा और 4 फिट ऊंचा 10 बक्से। छठे नंबर वाला बक्से को खोला गया। बक्सा जैसा ही खुला सबकी आंखें चमक गयी। अंदर 10ग्राम के सोने के सिक्के। आर्यमणि ने उस पूरे बक्से को ही पलट दिया.… "सब लोग जल्दी से इन सिक्कों की गिनती करो।"


आधे घंटे में पूरी गिनती समाप्त करते.… "बॉस 25 हजार सोने की सिक्के है।"


आर्यमणि:– हम्मम!!! यानी 2500 किलो सोना एक बॉक्स में। जल्दी से बाकी के 9 बॉक्स खोलो...


पूरे अल्फा पैक ने तुरंत सारे बक्से को खोल दिया। सब में उतना ही सोना भरा था। वहां बिखरे सोने के भंडार को देखकर सभी की आंखें फटी रह गयी... "इतना सोना। जब इसे क्रेन से उठाकर लोड किया जा रहा था, तब मुझे लगा बॉस क्या ये लोहा–टीना के भंगार का वजन ढो रहे। साला इसमें तो कुबेर का खजाना छिपा था।"


आर्यमणि:– कुछ तो गड़बड़ है। ये ज्यादा से ज्यादा १००० करोड़ का सोना होगा। लेकिन १००० करोड़ को कोई अपने संग्रहालय में क्यों रखेगा। वो भी वहां, जहां अनंत कीर्ति और जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र जैसी किताबे रखी हो। किसी जादूगर का दंश रखा हो। फिर ये लोग इतना वजनी और जगह घेरने वाले बक्से को क्यों उस जगह रखवाएंगे?


रूही:– हमे क्या करना हैं बॉस... १००० करोड़ .. इतना ज्यादा रूपया... मैं तो देखकर पागल हो जाऊंगी...


आर्यमणि बक्से को बड़े ध्यान से देख रहा था। आर्यमणि ने एक बक्से को पलट दिया और उल्टे बक्से को बड़े ध्यान से देखने लगा। कुछ भी संदिग्ध न मिल पाने की परिस्थिति में आर्यमणि ने एक हथौड़ा मंगवाया और पूरे बक्से के पार्ट–पार्ट को खोल दिया। हल्के और मजबूत धातु के 2 परत को जोड़कर हर शीट को तैयार किया गया था जिसकी मोटाई लगभग 4 इंच थी। शायद वजन सहने के हिसाब से शीट को बनाया गया था।


आर्यमणि हर शीट को बड़े ध्यान से देख रहा था। तभी उसे पता नही क्या सूझा और अपने क्ला से हर शीट को कुरेदने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे मेटल के ऊपर कोई नुकीली चीज से घिस रहा हो। हर शीट से मेटल के घिसने की आवाज आ रही थी जो काफी अप्रिय आवाज थी। लेकिन जिस शीट का इस्तमाल नीचे बेस के लिये किया गया था, उस शीट को जब आर्यमणि घिस रहा था, तब बीच का 3X3 फिट का भाग से खरोंच की आवाज निकालना बंद हो गया। उतने बड़े भाग पर जैसे बक्से में इस्तमाल हुये मेटल का रंग चढ़ाया गया था। बीच का हिस्सा जैसे ही आर्यमणि ने खरोचा, तब पता चला की वहां फोम इस्तमाल हुआ है। 2 सेंटीमीटर के फोम को जैसे ही निकला गया उसके नीचे 2.5 फिट लंबा, 2 फिट चौड़ा और 2.5 इंच की मोटाई वाला एक छोटा सा बॉक्स निकला।


जो मेटल पूरे बक्से को बनाने में इस्तमाल हुआ था, उस से कहीं ज्यादा मजबूत मेटल इस छोटे से बॉक्स में इस्तमाल किया गया था। 1mm की थिकनेस वाला यह मेटल हथौड़े के मार से भी नही टूटा। आर्यमणि ने सबसे पहले बाकी के 9 बक्से से वह छोटे बॉक्स को निकाल लिया। आर्यमणि के दिमाग में कहीं न कहीं यह भी घूम रहा था कि जिस छोटे से बॉक्स को बचाने के लिये इतना बड़ा जाल रचा गया है, हो सकता है बक्से के खुलते ही सुकेश एंड कंपनी को कोई सिग्नल मिल जाये।


जिस बक्से में 2500 किलो सोना रखा गया हो ताकि चुराने वाले को लगे की सुकेश भारद्वाज ने अपने संग्रहालय में खजाना रखा था। फिर ऐसा तो हो नही सकता की सुकेश ने उस बक्से को ढूंढने का कोई उपाय का इंतजाम न कर रखा हो। जरूर इस बक्से के खुलते ही सुकेश को जरूर चला होगा। आर्यमणि अपनी इस सोच पर इसलिए भी भरोसा कर रहा था, क्योंकि ऐसा पहले भी हुआ था। जबतक आर्यमणि ने सुकेश का संग्रहालय नही खोला था, तब तक तो सब ठीक था लेकिन जैसे ही संग्रहालय का दरवाजा खुला, सुकेश के साथ–साथ हर किसी तक सूचना पहुंच चुकी थी।


दूसरा समांतर सोच यह भी था कि जिस छोटे से बक्से से ध्यान भटकाने के लिये सुकेश 2500 किलो सोना डाल सकता है, उस छिपे बॉक्स में आखिर ऐसा क्या होगा? इन दो सोच के साथ 2 समस्या भी दिमाग में चल रही थी। छोटा सा बॉक्स जो निकला था वह मात्र आयताकार ढांचा था, जिसे खोलने के लिये उसके ऊपर कुछ भी ऐसा हुक या बटन नही लगा था। एक छोटे बॉक्स के ऊपर तो हथौड़ा मारकर भी देख लिया लेकिन वह पिचका तक नही, टूटना तो दूर की बात थी। पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?
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"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–63






सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के घूमने का सफर अगले दिन भी जारी रहा। जैसे–जैसे ये सब अपने गमों से उबर रहे थे, एक दूसरे से उतना ही लड़ भी रहे थे। टीम हमेशा बदलते रहता। झगड़े किसी भी वक्त किसी भी बात के लिये शुरू हो जाता और उनके बीच–बचाव में आर्यमणि का सर दर्द करने लगता। आर्यमणि अब पुस्तकों को किनारे ही कर चुका था, केवल सुबह के पुस्तक को छोड़कर। अब उसका ध्यान उन 8–10 बक्सों के ऊपर था, जो सुकेश के घर से चोरी हुये थे। आर्यमणि को समझ में आ चुका था, जब तक इन्हे काम नही दोगे तब तक कोई शांत नहीं बैठने वाला। यही सोचकर आज की रात आर्यमणि ने उन बक्सों को खोलने का फैसला किया।


रात के १० बज रहे होंगे। हर कोई आर्यमणि के टेंट में ही था। सब लोग ध्यान लगाकर बक्से को देख रहे थे। इसी बीच एक छोटी सी ठुसकी अलबेली को लग गयी। अलबेली, इवान को जोर से धकेलती... "तुझे धक्का मारने का बड़ा शौक चढ़ा है।"


अलबेली ने जो धक्का मरा उस से इवान तो धक्का खाया ही लपेटे में ओजल भी आ गयी। ओजल, इवान को किनारे करती अलबेली के बिलकुल सामने खड़ी हो गयी और उसे भी एक जोरदार धक्का दे दी। लो अब धक्का मुक्की का खेल आर्यमणि के आंखों के सामने ही शुरू हो गया। नौबत यहां तक आ गयी की आर्यमणि जब बीच–बचाव करने इनके बीच पहुंचा, तभी चारो ने एक साथ ऐसे हाथ झटका की आज आर्यमणि अपना टेंट का छप्पर फाड़कर पड़ोस के टेंट की छत पर लैंड किया। फिर तो आर्यमणि भी आज रात इन चारो को आड़े हाथ लेते भीड़ गया। कभी चारो हवा में होते तो कभी आर्यमणि।


माहोल थोड़ा मस्ती मजाक भरा हो गया और चारो की हटखेली में आर्यमणि भी सामिल हो गया। इस प्रकार की हटखेलि से आर्यमणि को अंदर से अच्छा महसूस हो रहा था, लेकिन वो कहते है न... अति सर्वत्र वर्जायते... वही यहां हो गया। अपने बॉस को हटखेली में सामिल होते देखे चारो और भी ज्यादा उद्वंड हो गये। आर्यमणि के लिये तो जैसे सिर दर्द ही बढ़ गया हो। कितना भी गुस्सा कर लो अथवा चिल्ला लो... कुछ घंटे ये चारो शांत हो जाते लेकिन उसके बाद फिरसे इनकी झड़प शुरू। इतने ढीठ थे कि आर्यमणि को हर वक्त पानी पिलाये रहते थे।


7 दिन बाद सभी लोग तंजानिया के लोकल पासपोर्ट लिये, डोडोमा अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर थे, जहां से ये लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरे। कनेक्टिंग फ्लाइट के जरिये ये लोग सीधा नाइजीरिया के लागोस शहर में उतरे और अगले २ दिन तक इस शहर में पूरे अल्फा पैक की धमाचोकरी जारी थी। एक तो पहले से इन लोगों के पास सुकेश के घर का माल था, ऊपर से इन लोगों ने 6 बड़े ट्राली बैग का लगेज बढ़ा दिया। 2 दिन बाद सभी पोर्ट ऑफ लागोस (अपापा), नाइजीरिया से पोर्ट ऑफ वेराक्रूज, मैक्सिको के लिये अपने कार्गो शिप में थे।


लगभग 30 दिन बाद ये लोग मैक्सिको में होते। आर्यमणि आराम से अपने कमरे में बचे हुये 50 किताब के साथ बैठा था। पढ़ने बैठने से पहले आर्यमणि सबको ट्रेनिंग का टास्क समझकर बैठा था। कार्गो शिप का पहला दिन काफी शांत था। आर्यमणि को शक सा हो गया, कहीं फिर से चारो शोक में तो नही डूब गये। २ बार उठकर जांच करने भी गया लेकिन सभी वुल्फ ट्रेनिंग में मशगूल थे। अगले 4 दिन तक इतना शांत माहोल रहा की आर्यमणि ने जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) के 3 भाग का पूरा अध्यन कर चुका था। यह पुस्तक श्रृंखला अपने भाग के समाप्ति के बाद और भी रोचक होते जा रही थी। क्योंकि जहां पहले 2 भाग में पृथ्वी था, वहीं तीसरा भाग में प्रिटी जैसे किसी अन्य ग्रह के जीवन के विषय में लिखा था।


आर्यमणि आगे और जानने के लिये उत्साहित हो गया। अब तो वह पूरे दिन में मात्र ३ घंटे ही सोता और बाकी समय किताब में ही डूबा रहता। अगले 4 दिन में वह 3 और भाग खत्म करके चौथे पुस्तक को खोल चुका था। वह जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–7 को पढ़ना शुरू कर चुका था। नागपुर से निकले कुल 35 दिन हो चुके थे। भाग 7 के मध्य में आर्यमणि होगा, जब पहली बार टीन वुल्फ ने दरवाजा खटखटाया। आर्यमणि बाहर आया तब पता चला मामला गंभीर था। 2 घंटा लग गया आर्यमणि को इनका मामला सुलझाते हुये।


इनका मामला सुलझाकर आर्यमणि कुछ घंटे का अध्यन आगे बढ़ाया ही था कि फिर से दरवाजे पर दस्तक होने लगी। इस बार उत्साह में दस्तक हुई थी। इन लोगों ने अपने हाथ के पोषण से कमरे में ही एक फूल के पौधे को 7 फिट बड़ा कर दिया था। यह कारनामा देखने के बाद तो आर्यमणि भी हैरान था। वो भी इनकी खुशियों में सामिल हो गया और खुद भी हाथ लगाकर पेड़ को और बड़ा करने की कोशिश करने लगा। आर्यमणि के चेहरे पर तब चमक आ गयी जब उसके हाथ लगाने के कुछ देर बाद पूरे पेड़ में फूल खिल उठे। यह नजारा देख खुशी से पूरा वुल्फ पैक ही झूमने लगा।


खैर २ घंटे के बाद एक बार फिर आर्यमणि अपने अध्यन मे लिन हो गया। किंतु कुछ देर बाद ही वापस से दरवाजे पर दस्तक। आर्यमणि चिढ़ते हुये पहुंचा और सब पर जोर–जोर से चिल्लाने लगा। पूरा वुल्फ पैक सकते में आने के बदले उसकी चिढ़ पर हंस रहे थे। मामला क्या था और क्यों दरवाजा पीट रहे थे, यह जाने बिना ही वह वापस अपने कमरे में आ गया। 8 दिन पूर्ण शांति के बाद तो जैसे अशांति ने डेरा डाल दिया हो। हर आधे घंटे पर दरवाजा खटखटाने लगता। अगले 1 दिन में आर्यमणि इतना परेशान हो गया की अपने माथे पर हाथ रख कर उस पल को झकने लगा, जब वह इन चारो को लेकर नागपुर से निकला था।


आर्यमणि:– क्या चाहते हो, मैं शांति से न जीयूं?


रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या हुआ बॉस, किसने परेशान किया है आपको? आप खाली नाम बोलो, काम हम तमाम कर देंगे।


आर्यमणि अपने दोनो हाथ जोड़ते.… "परेशान करने वालों में से एक तुम भी हो रूही, जाओ अपना काम तमाम कर लो"…


रूही:– क्या बात कर रहे हो बॉस। मैं मर गयी तो फिर आप गहरे सदमे में चले जाओगे। मरने के बाद तो मुझे तृप्ति भी नही मिलेगी... अल्फा पैक के अलावा किसने परेशान किया?


आर्यमणि:– ये तुम लोग जान बूझ कर मुझे परेशान कर रहे हो ना..


अलबेली:– क्या बात है बॉस बहुत जल्दी समझ गये।


इवान:– सुबह 4 घंटे ध्यान और योग कम था जो अब प्रहरी के किताब में घुस गये।


ओजल:– हमे पसंद नही की आप पूरा दिन किताब से चिपके रहो। हम टीम मेंबर ने मिलकर फैसला लिया है...


आर्यमणि:– हां मैं सुन रहा हूं, आगे बोलो..


रूही:– आगे क्या... आज से किताब पढ़ने के लिये बस 4 घंटे ही मिलेंगे। 8 घंटे तुम 2 तरह के किताब को पढ़ो। 8 घंटे हमारे साथ और 8 घंटे सोना है। सोना मतलब अलग अपने कमरे में नही बल्कि हम सब साथ में बड़े से हॉल में सोयेंगे। और यही फाइनल है...


आर्यमणि:– कोई दूसरा विकल्प नहीं। 8 घंटे मैं यदि अपने कमरे में सो जाऊं तो...


अलबेली:– भैया बिलकुल नहीं। आप वहां जागते रहते हो और इधर हम सब को भी नींद नहीं आती। रोज 2–3 घंटे की नींद से आंखें सूज गयी है।


आर्यमणि:– मेरे जागने से तुम लोगों के नींद न आने का क्या संबंध है...


रूही:– हमारा मुखिया जाग रहा हो और हम सो जाये ऐसा हो नही सकता।


आर्यमणि के पास कोई विकल्प नहीं था सिवाय उनकी बात मानने के। आर्यमणि को अपने पैक की बात माननी ही पड़ी। एक वुल्फ पैक खुशहाली में चला। खट्टे मीठे नोक–झोंक और मस्ती–मजाक का साथ। हर किसी का अपना ही अंदाज था और सभी एक दूसरे से घुलते–मिलते चले।


नाइजीरिया से निकले 15 दिन हो चुके थे। मैक्सिको पहुंचने के लिये लगभग 15 दिन का सफर और बाकी था। पूरा अल्फा पैक अपने बड़े से हॉल में और हॉल के बीचों–बीच सुकेश के घर से चोरी किये हुये बक्से एक लाइन से लगे थे। हर बॉक्स पर उसकी संख्या लिखी थी और वुल्फ पैक चिट्ठी निकालकर पहला बॉक्स खुलने का इंतजार कर रहे थे। चिट्ठी ऊपर हवा में और आर्यमणि ने पहला चिट्ठी उठाया.… सभी एक साथ... "जल्दी से बताओ बॉस, किस बक्से का नंबर निकला"…. "तुम लोग तैयार हो जाओ छठे नंबर का पहला बक्सा खुलेगा"….


4 फिट चौड़ा, 10 फिट लंबा और 4 फिट ऊंचा 10 बक्से। छठे नंबर वाला बक्से को खोला गया। बक्सा जैसा ही खुला सबकी आंखें चमक गयी। अंदर 10ग्राम के सोने के सिक्के। आर्यमणि ने उस पूरे बक्से को ही पलट दिया.… "सब लोग जल्दी से इन सिक्कों की गिनती करो।"


आधे घंटे में पूरी गिनती समाप्त करते.… "बॉस 25 हजार सोने की सिक्के है।"


आर्यमणि:– हम्मम!!! यानी 2500 किलो सोना एक बॉक्स में। जल्दी से बाकी के 9 बॉक्स खोलो...


पूरे अल्फा पैक ने तुरंत सारे बक्से को खोल दिया। सब में उतना ही सोना भरा था। वहां बिखरे सोने के भंडार को देखकर सभी की आंखें फटी रह गयी... "इतना सोना। जब इसे क्रेन से उठाकर लोड किया जा रहा था, तब मुझे लगा बॉस क्या ये लोहा–टीना के भंगार का वजन ढो रहे। साला इसमें तो कुबेर का खजाना छिपा था।"


आर्यमणि:– कुछ तो गड़बड़ है। ये ज्यादा से ज्यादा १००० करोड़ का सोना होगा। लेकिन १००० करोड़ को कोई अपने संग्रहालय में क्यों रखेगा। वो भी वहां, जहां अनंत कीर्ति और जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र जैसी किताबे रखी हो। किसी जादूगर का दंश रखा हो। फिर ये लोग इतना वजनी और जगह घेरने वाले बक्से को क्यों उस जगह रखवाएंगे?


रूही:– हमे क्या करना हैं बॉस... १००० करोड़ .. इतना ज्यादा रूपया... मैं तो देखकर पागल हो जाऊंगी...


आर्यमणि बक्से को बड़े ध्यान से देख रहा था। आर्यमणि ने एक बक्से को पलट दिया और उल्टे बक्से को बड़े ध्यान से देखने लगा। कुछ भी संदिग्ध न मिल पाने की परिस्थिति में आर्यमणि ने एक हथौड़ा मंगवाया और पूरे बक्से के पार्ट–पार्ट को खोल दिया। हल्के और मजबूत धातु के 2 परत को जोड़कर हर शीट को तैयार किया गया था जिसकी मोटाई लगभग 4 इंच थी। शायद वजन सहने के हिसाब से शीट को बनाया गया था।


आर्यमणि हर शीट को बड़े ध्यान से देख रहा था। तभी उसे पता नही क्या सूझा और अपने क्ला से हर शीट को कुरेदने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे मेटल के ऊपर कोई नुकीली चीज से घिस रहा हो। हर शीट से मेटल के घिसने की आवाज आ रही थी जो काफी अप्रिय आवाज थी। लेकिन जिस शीट का इस्तमाल नीचे बेस के लिये किया गया था, उस शीट को जब आर्यमणि घिस रहा था, तब बीच का 3X3 फिट का भाग से खरोंच की आवाज निकालना बंद हो गया। उतने बड़े भाग पर जैसे बक्से में इस्तमाल हुये मेटल का रंग चढ़ाया गया था। बीच का हिस्सा जैसे ही आर्यमणि ने खरोचा, तब पता चला की वहां फोम इस्तमाल हुआ है। 2 सेंटीमीटर के फोम को जैसे ही निकला गया उसके नीचे 2.5 फिट लंबा, 2 फिट चौड़ा और 2.5 इंच की मोटाई वाला एक छोटा सा बॉक्स निकला।


जो मेटल पूरे बक्से को बनाने में इस्तमाल हुआ था, उस से कहीं ज्यादा मजबूत मेटल इस छोटे से बॉक्स में इस्तमाल किया गया था। 1mm की थिकनेस वाला यह मेटल हथौड़े के मार से भी नही टूटा। आर्यमणि ने सबसे पहले बाकी के 9 बक्से से वह छोटे बॉक्स को निकाल लिया। आर्यमणि के दिमाग में कहीं न कहीं यह भी घूम रहा था कि जिस छोटे से बॉक्स को बचाने के लिये इतना बड़ा जाल रचा गया है, हो सकता है बक्से के खुलते ही सुकेश एंड कंपनी को कोई सिग्नल मिल जाये।


जिस बक्से में 2500 किलो सोना रखा गया हो ताकि चुराने वाले को लगे की सुकेश भारद्वाज ने अपने संग्रहालय में खजाना रखा था। फिर ऐसा तो हो नही सकता की सुकेश ने उस बक्से को ढूंढने का कोई उपाय का इंतजाम न कर रखा हो। जरूर इस बक्से के खुलते ही सुकेश को जरूर चला होगा। आर्यमणि अपनी इस सोच पर इसलिए भी भरोसा कर रहा था, क्योंकि ऐसा पहले भी हुआ था। जबतक आर्यमणि ने सुकेश का संग्रहालय नही खोला था, तब तक तो सब ठीक था लेकिन जैसे ही संग्रहालय का दरवाजा खुला, सुकेश के साथ–साथ हर किसी तक सूचना पहुंच चुकी थी।


दूसरा समांतर सोच यह भी था कि जिस छोटे से बक्से से ध्यान भटकाने के लिये सुकेश 2500 किलो सोना डाल सकता है, उस छिपे बॉक्स में आखिर ऐसा क्या होगा? इन दो सोच के साथ 2 समस्या भी दिमाग में चल रही थी। छोटा सा बॉक्स जो निकला था वह मात्र आयताकार ढांचा था, जिसे खोलने के लिये उसके ऊपर कुछ भी ऐसा हुक या बटन नही लगा था। एक छोटे बॉक्स के ऊपर तो हथौड़ा मारकर भी देख लिया लेकिन वह पिचका तक नही, टूटना तो दूर की बात थी। पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?
भाग:–62





लोग आर्यमणि को जमीन पर तलाश कर रहे थे और आर्यमणि.… वह तो गहरे नीले समुद्र के बीच अपने सर पर हाथ रखे उस दिन को झक रहा था जब वह नागपुर से सबको लेकर निकला.…


विशाखापत्तनम से कार्गो शिप रवाना हुआ। तकरीबन 16 दिन का पहला सफर जो विशाखापत्तनम से शुरू होकर तंजानिया देश के किसी पोर्ट पर रुकती। सफर शुरू हो गया और सभी अपने विदेश यात्रा पर निकल चुके थे। पहला सफर लगभग शोक में डूबा सफर ही रहा। सबने सरदार खान की याद देखी थी, और उस याद ने जैसे अंदर के गम को कुरेद दिया था। 3 भाई–बहन, ओजल, इवान और रूही, तीनों ने अपनी मां को देखा था। एक ट्रू अल्फा हिलर फेहरीन जिसे एक दिन में इतने दर्द दिये जाते की उसकी खुद की हीलिंग क्षमता जवाब दे जाती। मजबूर इस कदर रहती की अपने हाथों से खुद को हिल करना पड़ता था। और जो कहानी फेहरीन की थी, वही कहानी अलबेली की मां नवेली की भी थी। बस फर्क सिर्फ इतना था की नवेली खुद को हील नही कर सकती लेकिन दर्द कितना भी रोने को मजबूर क्यों न करे उसके चेहरे की मुस्कान कभी गयी नही।


चारो ही शोक में डूबे रहे। रह–रह कर आंसू छलक आते। प्रहरी के सम्पूर्ण समुदाय पर ही ऐसा आक्रोश था कि यदि अभी कोई प्रहरी से सामने आ जाता तो उसे चिड़कर एक ही सवाल पूछते.… "उस वक्त कहां थे जब एक वेयरवोल्फ को नरक में पटक दिया गया और उसके बाद कोई सुध लेने नही पहुंचे।"


आर्यमणि अपने पैक की भावना समझ रहा था लेकिन वह भी उन्हें कुछ दिन शोक में डूबा छोड़ दिया। आर्यमणि इस दौरान सुकेश के घर से लूटे उन 400 पुस्तक को देखने लगा। 350 तो ऐसे किताब थे जिस पर कोई नाम ही नही था और अंदर किसी महान सिद्ध पुरुष की जीवनी। एक सिद्ध पुरुष का जीवन कैसा था। उन्होंने किस प्रकार की सिद्धियां हासिल की थी। उनकी सिद्धियों से कैसे निपटा जाये। और सबसे आखरी में था चौकाने वाला रहस्य, कैसे उस सिद्ध पुरुष को बल और छल से मारा गया था।


एक किताब को तो उसने पूरा पढ़ लिया। फिर उसके बाद हर किताब के सीधा आखरी उस अध्याय को ही पलटता जहां सिद्ध पुरुष के मारने की कहानी लिखी गयी थी। आर्यमणि एक बार उन सभी पुस्तकों की झलकियों को देखने के बाद सभी पुस्तक को जलाना ही ठीक समझा। उसने 350 पुस्तक को जलाकर उसकी राख को समुद्र में बिखेर दिया। 350 पुस्तक के आखरी अध्याय को पढ़ने में आर्यमणि को भी 16 दिन लग गये। कार्गो शिप बंदरगाह पर लग रही थी और आर्यमणि अपने पैक को लेकर तंजानिया की जमीन पर कदम रखा।


5 वैन में उनका सामान लोड था और पांचों ओपन जीप में तंजानिया के प्राकृतिक वादियों को निहारते हुये चल दिये.… सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान को देखते हुये ये लोग तंजानिया की राजधानी डोडोमा पहुंचते। डोडोम से फिर सभी लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरते। जीप पर भी शोक का माहोल छाया हुआ था।….. "क्या तुम्हे पता है, ये जो अपेक्स सुपरनैचुरल का जो नाम सुना है, वह कौन है?"..


रूही:– हां जानती हूं ना, एक प्रहरी ही होगा। अब रैंक बड़ा हो या छोटा कहलाएंगे प्रहरी ही।


आर्यमणि:– हां लेकिन क्या तुम्हे पता है इन लोगों के पास सोध की ऐसी किताब थी, जिसमे किसी अलौकिक साधु के मारने का पूर्ण विवरण लिखा हुआ था।


आर्यमणि की बात सुनकर किसी ने कोई प्रतिक्रिया ही नही दिया, बल्कि इधर–उधर देखने लगे। आर्यमणि को कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि इनको शोक से उबारा जाये। चारो में से कोई भी आर्यमणि की किसी भी बात में कोई रुचि ही नही दिखा रहे थे। गुमसुम और खामोशी वाला सफर आगे बढ़ता रहा और 2 दिन के बाद पूरा अल्फा पैक सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान पहुंच चुके थे। 18 दिनो में पहली बार ये लोग थोड़े खुले थे। उधान और वहां के जानवर को देख अपने आखों से ये पूरा नजारा समेट रहे थे। बड़े से घास के मैदान में जहां तक नजर जा रहा था, कई प्रकार के जानवर अपने झुंड में चर रहे थे।


काफी रोमांचक दृश्य था। चारो दौड़कर नजदीक पहुंचे। और करीब से यह पूरा दृश्य अनुभव करना चाहते थे किंतु चारो जैसे–जैसे करीब जा रहे थे, जानवरों में भगदड़ मचने लगी थी। सभी जानवर डरे हुये थे और उन्हें किसी शिकारी के अपने ओर बढ़ने की बु आ रही थी। आर्यमणि दूर बैठा जानवरो की भावना को पढ़ सकता था। छोटा सा ध्वनि विछोभ उसने पैदा किया और देखते ही देखते सभी जानवर अपनी जगह खड़े हो गये। जानवरों को शांत देख चारो खुश हो गये और उनके करीब पहुंचकर उन्हें छूने की कोशिश करने लगे। लेकिन वन विभाग के लोगों ने जानवरों के पास जाने से मना कर दिया।



चारो का मन छोटा हो गया। अपने पैक को एक बार फिर मायूस देखकर आर्यमणि खुद आगे आया और सबके मना करने के बावजूद भी झुंड के एक जंगली बैल के पेट पर हाथ रख दिया। उसके पेट पर हाथ रखने के साथ ही वह बैल अपना सर उठाकर बड़ी व्याकुलता से अपना सर दाएं–बाएं हिलाया और फिर सुकून भरी श्वांस खींचते वह आर्यमणि को अपने सर से स्पर्श कर रहा था। झुंड का वह बैल काफी पीड़ा में था और पीड़ा दूर होते ही धन्यवाद स्वरूप वह बैल अपने सर को आर्यमणि के बदन पर घिसने लगा।


फिर तो अल्फा पैक भी कहां पीछे रहने वाले थे। वो सब भी खतरनाक बैल की झुंड में घुसकर कहीं गायब हो गये। वन विभाग वाले चिल्लाते रह गये लेकिन सुनता कौन है। चारो ने भी किसी बेजुबान के दर्द को हरने का सुख अनुभव किया। यूं तो किसी का दर्द लेना चारो के लिये आसान नहीं था, किंतु चारो अपनी मां के अंजाम को देखकर पिछले कुछ दिनों से इतने दर्द में थे कि उन्होंने बेजुबान के दर्द को पूरा अपने अंदर समाते उसके खुशी के भाव को अपने जहन में उतार रहे थे।


फिर तो यहां वहां फुदक कर जितना हो सकता था जानवरों का दर्द ले रहे थे। इसी क्रम में अलबेली पहुंच गयी जेब्रा के झुंड के पास। जेब्रा यूं तो दिखने में काफी खूबसूरत और लुभावना लगता है, लेकिन ये उतने ही आक्रमक भी होते है। अपने झुंड में किसी गैर को देखना पसंद नही करते। अलबेली, जेब्रा की खूबसूरती पर मोहित होकर उसके पास तो पहुंच गयी, लेकिन जैसे ही उसके बदन पर हाथ रखी, जेब्रा ने दुलत्ती मार उसका नाक ही तोड़ दिया। अलबेली के नाक से रसभरी चुने लगा, जिसे साफ करके वह हिल हुई।


हिल होने के बाद उसके मन में आयी शैतानी और जेब्रा को हील करने के बाद किस प्रकार की नई खुशी अलबेली ने अर्जित किया, उसका विस्तृत विवरण वह अपने बाकी के पैक के साथ साझा करने लगी। रूही, इवान और ओजल तीनों ही जेब्रा के झुंड में घुस गये और कुछ देर बाद अपना नाक पकड़े बाहर आये। झुंड के बाहर जब निकले तब अलबेली बाहर खड़ी हंस रही थी। फिर तो जो ही उन तीनो ने पहले अलबेली को दौड़ाया। आगे अलबेली, पीछे से तीनो और कुछ दूर भागे होंगे की तभी उनके पीछे बैल का बड़ा सा झुंड दौड़ने लगा। अब तो चारो बाप–बाप चिल्लाते बैल के आगे दौड़ रहे थे।


चारो अपने बीते वक्त के गमों से उबरकर उस पूरे जंगल में चहलकदमी करने लगे। उनकी हंसी आपस की नोक झोंक और गुस्से में एक दूसरे को मारकर फुटबॉल बना देना, आम सा हो गया। उनका ये खिला स्वभाव देखकर आर्यमणि भी काफी खुश था। यूं तो आर्यमणि बस एक रात रुकने के इरादे से आया था, लेकिन उसने तय किया की अगले एक हफ्ते तक सभी तंजानिया में ही रहने वाले हैं।


जंगल के मध्य में ही इन लोगों का कैंप लगा। एक बड़े से टेंट में चारो के सोने की व्यवस्था की गयी और दूसरे टेंट में आर्यमणि, बचे हुये 50 पुस्तक के साथ था। आर्यमणि ने एक पुस्तक अपने हाथ में लिया जिसके ऊपर नाम लिखा था। आर्यमणि खुद से कहते... "जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–1। कमाल है इसपर किताब का नाम लिखा है। देखे अंदर क्या है।"


आर्यमणि ने पहला भाग उठाया। सबसे पहले पन्ने पर ही लिखा था पृथ्वी। अंदर के पन्ने उसने पलटे और बड़े ध्यान से पढ़ने लगा। हालांकि कुछ भी ऐसा नया नही था जो आर्यमणि पढ़ रह हो, लेकिन जिस हिसाब से उसमे लिखा गया था, वह काफी रोचक था। पहली बार वह ऐसी पुस्तक देख रहा था जिसमे मानव शरीर को विज्ञान के आधार पर नही, बल्कि शरीर के मजबूत और कमजोर अंगों के हिसाब से लिखा गया था। थोड़ा सा मानव इतिहास, थोड़ा सा भागोलिक दृष्टिकोण और पृथ्वी के किस पारिस्थितिकी तंत्र में कैसी जलवायु है और वहां कौन से शक्तिशाली जीव रहते हैं, उनका संछिप्त उल्लेख था।


आर्यमणि जैसे–जैसे पन्ने पलट रहा था फिर वह संछिप्त उल्लेख, विस्तृत विवरण में लिखा हुआ मिला। मध्यरात्रि हो रही थी और आर्यमणि बड़े ही ध्यान से उस पुस्तक को पढ़ रहा था। मानव शरीर के संरचना को यहां जिस प्रकार से उल्लेखित किया गया था, वैसा वर्णन तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मेडिकल बुक में न मिले। आर्यमणि पढ़ने के क्रम में कहीं खो सा गया था। आर्यमणि किताब में खोया था तभी टेंट की पूरी छत आर्यमणि के ऊपर गिर गयी और उसके ऊपर से जैसे कोई आदमी भी आर्यमणि के ऊपर गिरा हो।


आर्यमणि अपने क्ला से टेंट को फाड़कर बाहर आया और इवान के शर्ट को अपने मुट्ठी में दबोचकर एक हाथ से ऊपर हवा में उठाते.… "मेरे टेंट के ऊपर कूदने की हिम्मत कैसे किये?"


इवान:– बॉस मुझे अलबेली हवा में ऊपर उछालकर फेंकी और मैं सीधा आपके टेंट के ऊपर लैंड हुआ। जरा नजर पास में घूमाकर देखो, हमारे टेंट का छत भी उड़ा हुआ है...


आर्यमणि, इवान को नीचे उतारते.… "अलबेली ये सब क्या है?"


अलबेली:– इस छछुंदर को इधर दो बॉस ऐसा मारूंगी की हिल न हो पायेगा।


आर्यमणि:– यहां तुम लोगों के बीच क्या चल रहा है?


अलबेली:– बॉस मैं सोई थी और इसने मेरी नींद का फायदा उठाकर चुम्मा ले लिया।


आर्यमणि आंखों में खून उतारते इवान का गला दबोचकर उसे हवा में उठाते.… "बाप वाला संस्कार तो अंदर जोर नही मारने लगा इवान"…


इवान:– बॉस गला छोड़ दो। ये पागल हो गयी है आप तो होश में आ जाओ...


आर्यमणि कुछ सोचकर उसे नीचे उतारते... "हां क्या कहना है तुम्हे?"


इवान:– बॉस मुझे भी अभी ही पता चला की मैने इसे चूमा। मैं तो ओजल के पास लेटा था। और जब मैं हवा में आया तब भी वहीं सोया हुआ था।


अलबेली चिल्लाती हुई इवान को मारने पर तूल गयी…."साले झूठे, बॉस के सामने झूठ बोलता है।"


इवान:– नही मैं सच कह रहा...


आर्यमणि:– दोनो चुप... रूही ये सब करस्तानी तुम्हारी है न...


रूही:– बिलकुल नहीं बॉस... मैं तो सोयी हुई थी।


आर्यमणि:– रात के इस प्रहर मुझे पागल बनाने की कोशिश न करो, वरना मैं पूछूंगा नही बल्कि गर्दन में क्ला घुसाकर पता लगा लूंगा। अब जल्दी बताओ ये किसकी साजिश है...


रूही:– ओजल की... उसी ने कहा था रात बहुत बोरिंग हो रही है...


आर्यमणि:– अब दोनो मिलकर रात को एक्साइटिंग बनाओ और जल्दी से दोनो टेंट को ठीक करो वरना दोनो को मैं उल्टा लटका दूंगा...


दोनो छोटा सा मुंह बनाते... "बॉस हम जैसे कोमल और कमसिन"…. इतना ही तो दोनो ने एक श्रृंक में बोला था और अगले ही पल आर्यमणि की घूरती नजरों से सामना हो गया।... "दोनो चुप चाप जाकर जितना कहा है करो"...


दोनो लग गयी काम पर। आधे घंटे में दोनो टेंट तैयार थे। इस बार तीन लड़कियां एक टेंट में और इवान के साथ आर्यमणि अपने टेंट में आ गया। आर्यमणि वापस से किताब को पलटा और इवान नींद की गहराइयों में था। कुछ देर तक तो सब कुछ सामान्य ही था लेकिन उसके बाद तो ऐसा लगा जैसे आर्यमणि के टेंट में कोई मोटर इंजन चल रहा हो, इतना तेज इवान के खर्राटों की आवाज थी। बेचारा आर्यमणि खून के घूंट पीकर रह गया।


अगले दिन फिर से ये लोग सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के आगे का सफर तय करने लगे। घास के मैदानी हिस्से से ये लोग जंगल के इलाके में पहुंच चुके थे। लगभग दिन ढलने को था, इसलिए इन लोगों ने अपना टेंट जंगल के कुछ अंदर घुसते ही लगा लिया। इस बार आर्यमणि ने ३ टेंट लगवाया। एक में खुद दूसरे में इवान और तीसरे में सभी लड़कियां। आज शाम से ही आर्यमणि पुस्तक को लेकर बैठा। पुस्तक की मोटाई के हिसाब से तो 1000 पन्नो से ज्यादा का पुस्तक नही होना चाहिए थी। पूरे पुस्तक की मोटाई लगभग 6 इंच की रही होगी लेकिन उसके अंदर १० हजार से ज्यादा पन्ने थे।


आम तौर पर पन्ने की मोटाई जितनी होती है, उतनी मोटाई में इस पुस्तक के १० पन्ने आ जाये। और इतने साफ और चमकदार पन्ने की देखने से लग रहा था कुछ अलग ही मैटेरियल से इन पन्नो को तैयार किया गया था। खैर आर्यमणि के पढ़ने की गति भी उतनी ही तेज थी। 6–7 घंटे में वह आधे किताब का पूर्ण अध्यन कर चुका था। बचा किताब भी खत्म हो ही जाता लेकिन मध्य रात्रि के पूर्व ही टीन वुल्फ कि आपस में झड़प हो गयी। अलबेली और इवान एक टीम में वहीं रूही और ओजल विपक्ष में। सभी एक दूसरे ना तो मारने में हिचक रहे थे और न ही फुटबॉल बनाकर हवा में उड़ाने से पीछे हट रहे थे।


आज की रात तो एक नही बल्कि 2 लोग आर्यमणि की छत पर लैंड कर रहे थे। बीच बचाव करते और सबका झगड़ा सुलझाने में आर्यमणि को २ घंटे लग गये। उसके बाद किताब पढ़ने की रुचि ही खत्म हो गयी। हां केवल एक वक्त था जब सुबह आर्यमणि, संन्यासी शिवम के किताब के एक अध्याय का अभ्यास कर रहा होता, तब उस 4 घंटे के समय अंतराल में कोई भी आर्यमणि को परेशान नही करता। यहां तक की चारो वहां ऐसे फैले होते की जंगली जानवर तक के आवाज को आर्यमणि के कानो तक नही पंहुचने देते।
2500 kg sone ke sikke 10 bakso me isliye rakhe gye the Taki vo is raaj ko Raj rakh sake ki bakse me maujud Yah spacial Chhote bakso ka raaj koi na jaan sake pr aaj arya ne unhe dhundh hi liya or ab arya ne apna dimag lgaya hai, Dekhte hai Vo Kaise Inhe chupata hai prahariyo ki najro se...

Is pure Alfa pack me 3 kya 4ro hi bacche hai bs arya ne itna saha hai ki Vo bakiyo se jyada mature Ho gya hai, Inki masti dekh jaha ek pal hontho pr mushkan aa jati vahi dusre hi pal hasi ke thahako ki gunj sunai deti, vo arya ko pareshan karna vo tant ki chhat pe land Karna Vo paudhe ko posit karke Uspr fool Khilana, sab bada hi manmohak lga nainu bhaya...

Khan ki yaado se apne Ma ki jindgi ko dekhna, mahsus Karna kafi pida dayak lga pr uske baad ki masti me to lot pot hone ka man kiya hmara...

Arya roj subah 4 ghante me dhyan yog or kitab ka adhyan karta rha fir baki Samay me ecosystem pr likhi un kitabo ko padhne me vyatit kiya jo prathvi se lekr kisi anya planet ke bare me bhi thi or uske Kai bhang (part) bhi the, 50 kitabo me...

350 kitabo me alag alag siddh purush ko kaise mara or unki kya kya siddhiya thi yah sab likha hua tha, arya ne un sabhi ke us part ko padh kr jala diya Taki koi or un kitabo tk na pahuch sake...

Arya ko ek tarah se un sipahiyo ki info or unse bachne ke tariko ka gyan mil gya hai pr unhe jala ke un siddh purusho pr bhi ek sridhanjali di hai Usne samudra me kitabo ki rakh pravahit karke...

Mind blowing jabarjast superb update bhai amazing fantastic sandar lajvab with awesome writing skills Nainu bhaya :hug:
 

nain11ster

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क्या छक्के चोक्को की बारिश की है भाई!!!
मज़ा आ गया...

स्टोरी की स्पीड किसी हॉलीवुड मूवी के माफ़िक़ है !!

क्या षड्यंत्रों का लच्छा पराठा बनाया है👌🏽
Layers की भी layers हैं...

भूमि के लिए बुरा लगता है...
उसका पति भी हरामी निकल गया!
जयदेव उसका पति ही है ना?
भूल हो सकती है...
पात्र ही इतने हैं🤷‍♂️

पलक अब जब आर्य से दुबारा मिलेगी तो एक formidable enemy की तरह मिलेगी!!

आपकी कहानी जितनी deserving है उतने comment तो नहीं दे पाता उसका मुझे मलाल रहता है...

आपकी कहानी इस forum की सबसे fast paced और action से भरपूर कहानी है...

जय हो...
Story me simultaneously ek ke baad ek naye ghatna ka aagman ho jata hai sirf yahi vajah hai ki story kafi fast pace me lagti hai... Jahan pichhe ke kuch raaj bane rahte hain to aage ke current situation ya to ek raaj ki tarah ubharate hain fir naye curiousity ki tarah...

Baki malal kis baat ka paraoh11 ji ... Aap bhi 11 aur hum bhi 11 chhap mariye har update par comment...

Baki bane bane rahe aur apne vichar dete rahe...

Dhanywad
 

Chutiyadr

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dictionary hai aap. Chutiyadr bhai bhi aap ka loha man chuke hai. :D
नैनु भाई को तो हम गुरु मानते हैं अपना ,
उनसे सीखा की एक्शन कैसे लिखे, कहानी में पेस कैसे डाला जाए ,और भी बहुत कुछ ...
बस उनके लिए इतना कहूंगा

दिया है जिसने ,उनको सर हम झुकते है,
राह में उनके कुछ हम भी चलते जाते है ..
खुदा करे कि वो आबाद रहे बरसो तक,
कि उनकी नेमतो में हम भी पलते जाते है...
बहारे हमसे उनका रास्ता पूछे ,
की वो कहे हमारे फूल वो खिलाते है..
 

Scorpionking

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भाग:–62





लोग आर्यमणि को जमीन पर तलाश कर रहे थे और आर्यमणि.… वह तो गहरे नीले समुद्र के बीच अपने सर पर हाथ रखे उस दिन को झक रहा था जब वह नागपुर से सबको लेकर निकला.…


विशाखापत्तनम से कार्गो शिप रवाना हुआ। तकरीबन 16 दिन का पहला सफर जो विशाखापत्तनम से शुरू होकर तंजानिया देश के किसी पोर्ट पर रुकती। सफर शुरू हो गया और सभी अपने विदेश यात्रा पर निकल चुके थे। पहला सफर लगभग शोक में डूबा सफर ही रहा। सबने सरदार खान की याद देखी थी, और उस याद ने जैसे अंदर के गम को कुरेद दिया था। 3 भाई–बहन, ओजल, इवान और रूही, तीनों ने अपनी मां को देखा था। एक ट्रू अल्फा हिलर फेहरीन जिसे एक दिन में इतने दर्द दिये जाते की उसकी खुद की हीलिंग क्षमता जवाब दे जाती। मजबूर इस कदर रहती की अपने हाथों से खुद को हिल करना पड़ता था। और जो कहानी फेहरीन की थी, वही कहानी अलबेली की मां नवेली की भी थी। बस फर्क सिर्फ इतना था की नवेली खुद को हील नही कर सकती लेकिन दर्द कितना भी रोने को मजबूर क्यों न करे उसके चेहरे की मुस्कान कभी गयी नही।


चारो ही शोक में डूबे रहे। रह–रह कर आंसू छलक आते। प्रहरी के सम्पूर्ण समुदाय पर ही ऐसा आक्रोश था कि यदि अभी कोई प्रहरी से सामने आ जाता तो उसे चिड़कर एक ही सवाल पूछते.… "उस वक्त कहां थे जब एक वेयरवोल्फ को नरक में पटक दिया गया और उसके बाद कोई सुध लेने नही पहुंचे।"


आर्यमणि अपने पैक की भावना समझ रहा था लेकिन वह भी उन्हें कुछ दिन शोक में डूबा छोड़ दिया। आर्यमणि इस दौरान सुकेश के घर से लूटे उन 400 पुस्तक को देखने लगा। 350 तो ऐसे किताब थे जिस पर कोई नाम ही नही था और अंदर किसी महान सिद्ध पुरुष की जीवनी। एक सिद्ध पुरुष का जीवन कैसा था। उन्होंने किस प्रकार की सिद्धियां हासिल की थी। उनकी सिद्धियों से कैसे निपटा जाये। और सबसे आखरी में था चौकाने वाला रहस्य, कैसे उस सिद्ध पुरुष को बल और छल से मारा गया था।


एक किताब को तो उसने पूरा पढ़ लिया। फिर उसके बाद हर किताब के सीधा आखरी उस अध्याय को ही पलटता जहां सिद्ध पुरुष के मारने की कहानी लिखी गयी थी। आर्यमणि एक बार उन सभी पुस्तकों की झलकियों को देखने के बाद सभी पुस्तक को जलाना ही ठीक समझा। उसने 350 पुस्तक को जलाकर उसकी राख को समुद्र में बिखेर दिया। 350 पुस्तक के आखरी अध्याय को पढ़ने में आर्यमणि को भी 16 दिन लग गये। कार्गो शिप बंदरगाह पर लग रही थी और आर्यमणि अपने पैक को लेकर तंजानिया की जमीन पर कदम रखा।


5 वैन में उनका सामान लोड था और पांचों ओपन जीप में तंजानिया के प्राकृतिक वादियों को निहारते हुये चल दिये.… सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान को देखते हुये ये लोग तंजानिया की राजधानी डोडोमा पहुंचते। डोडोम से फिर सभी लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरते। जीप पर भी शोक का माहोल छाया हुआ था।….. "क्या तुम्हे पता है, ये जो अपेक्स सुपरनैचुरल का जो नाम सुना है, वह कौन है?"..


रूही:– हां जानती हूं ना, एक प्रहरी ही होगा। अब रैंक बड़ा हो या छोटा कहलाएंगे प्रहरी ही।


आर्यमणि:– हां लेकिन क्या तुम्हे पता है इन लोगों के पास सोध की ऐसी किताब थी, जिसमे किसी अलौकिक साधु के मारने का पूर्ण विवरण लिखा हुआ था।


आर्यमणि की बात सुनकर किसी ने कोई प्रतिक्रिया ही नही दिया, बल्कि इधर–उधर देखने लगे। आर्यमणि को कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि इनको शोक से उबारा जाये। चारो में से कोई भी आर्यमणि की किसी भी बात में कोई रुचि ही नही दिखा रहे थे। गुमसुम और खामोशी वाला सफर आगे बढ़ता रहा और 2 दिन के बाद पूरा अल्फा पैक सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान पहुंच चुके थे। 18 दिनो में पहली बार ये लोग थोड़े खुले थे। उधान और वहां के जानवर को देख अपने आखों से ये पूरा नजारा समेट रहे थे। बड़े से घास के मैदान में जहां तक नजर जा रहा था, कई प्रकार के जानवर अपने झुंड में चर रहे थे।


काफी रोमांचक दृश्य था। चारो दौड़कर नजदीक पहुंचे। और करीब से यह पूरा दृश्य अनुभव करना चाहते थे किंतु चारो जैसे–जैसे करीब जा रहे थे, जानवरों में भगदड़ मचने लगी थी। सभी जानवर डरे हुये थे और उन्हें किसी शिकारी के अपने ओर बढ़ने की बु आ रही थी। आर्यमणि दूर बैठा जानवरो की भावना को पढ़ सकता था। छोटा सा ध्वनि विछोभ उसने पैदा किया और देखते ही देखते सभी जानवर अपनी जगह खड़े हो गये। जानवरों को शांत देख चारो खुश हो गये और उनके करीब पहुंचकर उन्हें छूने की कोशिश करने लगे। लेकिन वन विभाग के लोगों ने जानवरों के पास जाने से मना कर दिया।


चारो का मन छोटा हो गया। अपने पैक को एक बार फिर मायूस देखकर आर्यमणि खुद आगे आया और सबके मना करने के बावजूद भी झुंड के एक जंगली बैल के पेट पर हाथ रख दिया। उसके पेट पर हाथ रखने के साथ ही वह बैल अपना सर उठाकर बड़ी व्याकुलता से अपना सर दाएं–बाएं हिलाया और फिर सुकून भरी श्वांस खींचते वह आर्यमणि को अपने सर से स्पर्श कर रहा था। झुंड का वह बैल काफी पीड़ा में था और पीड़ा दूर होते ही धन्यवाद स्वरूप वह बैल अपने सर को आर्यमणि के बदन पर घिसने लगा।


फिर तो अल्फा पैक भी कहां पीछे रहने वाले थे। वो सब भी खतरनाक बैल की झुंड में घुसकर कहीं गायब हो गये। वन विभाग वाले चिल्लाते रह गये लेकिन सुनता कौन है। चारो ने भी किसी बेजुबान के दर्द को हरने का सुख अनुभव किया। यूं तो किसी का दर्द लेना चारो के लिये आसान नहीं था, किंतु चारो अपनी मां के अंजाम को देखकर पिछले कुछ दिनों से इतने दर्द में थे कि उन्होंने बेजुबान के दर्द को पूरा अपने अंदर समाते उसके खुशी के भाव को अपने जहन में उतार रहे थे।


फिर तो यहां वहां फुदक कर जितना हो सकता था जानवरों का दर्द ले रहे थे। इसी क्रम में अलबेली पहुंच गयी जेब्रा के झुंड के पास। जेब्रा यूं तो दिखने में काफी खूबसूरत और लुभावना लगता है, लेकिन ये उतने ही आक्रमक भी होते है। अपने झुंड में किसी गैर को देखना पसंद नही करते। अलबेली, जेब्रा की खूबसूरती पर मोहित होकर उसके पास तो पहुंच गयी, लेकिन जैसे ही उसके बदन पर हाथ रखी, जेब्रा ने दुलत्ती मार उसका नाक ही तोड़ दिया। अलबेली के नाक से रसभरी चुने लगा, जिसे साफ करके वह हिल हुई।


हिल होने के बाद उसके मन में आयी शैतानी और जेब्रा को हील करने के बाद किस प्रकार की नई खुशी अलबेली ने अर्जित किया, उसका विस्तृत विवरण वह अपने बाकी के पैक के साथ साझा करने लगी। रूही, इवान और ओजल तीनों ही जेब्रा के झुंड में घुस गये और कुछ देर बाद अपना नाक पकड़े बाहर आये। झुंड के बाहर जब निकले तब अलबेली बाहर खड़ी हंस रही थी। फिर तो जो ही उन तीनो ने पहले अलबेली को दौड़ाया। आगे अलबेली, पीछे से तीनो और कुछ दूर भागे होंगे की तभी उनके पीछे बैल का बड़ा सा झुंड दौड़ने लगा। अब तो चारो बाप–बाप चिल्लाते बैल के आगे दौड़ रहे थे।


चारो अपने बीते वक्त के गमों से उबरकर उस पूरे जंगल में चहलकदमी करने लगे। उनकी हंसी आपस की नोक झोंक और गुस्से में एक दूसरे को मारकर फुटबॉल बना देना, आम सा हो गया। उनका ये खिला स्वभाव देखकर आर्यमणि भी काफी खुश था। यूं तो आर्यमणि बस एक रात रुकने के इरादे से आया था, लेकिन उसने तय किया की अगले एक हफ्ते तक सभी तंजानिया में ही रहने वाले हैं।


जंगल के मध्य में ही इन लोगों का कैंप लगा। एक बड़े से टेंट में चारो के सोने की व्यवस्था की गयी और दूसरे टेंट में आर्यमणि, बचे हुये 50 पुस्तक के साथ था। आर्यमणि ने एक पुस्तक अपने हाथ में लिया जिसके ऊपर नाम लिखा था। आर्यमणि खुद से कहते... "जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–1। कमाल है इसपर किताब का नाम लिखा है। देखे अंदर क्या है।"


आर्यमणि ने पहला भाग उठाया। सबसे पहले पन्ने पर ही लिखा था पृथ्वी। अंदर के पन्ने उसने पलटे और बड़े ध्यान से पढ़ने लगा। हालांकि कुछ भी ऐसा नया नही था जो आर्यमणि पढ़ रह हो, लेकिन जिस हिसाब से उसमे लिखा गया था, वह काफी रोचक था। पहली बार वह ऐसी पुस्तक देख रहा था जिसमे मानव शरीर को विज्ञान के आधार पर नही, बल्कि शरीर के मजबूत और कमजोर अंगों के हिसाब से लिखा गया था। थोड़ा सा मानव इतिहास, थोड़ा सा भागोलिक दृष्टिकोण और पृथ्वी के किस पारिस्थितिकी तंत्र में कैसी जलवायु है और वहां कौन से शक्तिशाली जीव रहते हैं, उनका संछिप्त उल्लेख था।


आर्यमणि जैसे–जैसे पन्ने पलट रहा था फिर वह संछिप्त उल्लेख, विस्तृत विवरण में लिखा हुआ मिला। मध्यरात्रि हो रही थी और आर्यमणि बड़े ही ध्यान से उस पुस्तक को पढ़ रहा था। मानव शरीर के संरचना को यहां जिस प्रकार से उल्लेखित किया गया था, वैसा वर्णन तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मेडिकल बुक में न मिले। आर्यमणि पढ़ने के क्रम में कहीं खो सा गया था। आर्यमणि किताब में खोया था तभी टेंट की पूरी छत आर्यमणि के ऊपर गिर गयी और उसके ऊपर से जैसे कोई आदमी भी आर्यमणि के ऊपर गिरा हो।


आर्यमणि अपने क्ला से टेंट को फाड़कर बाहर आया और इवान के शर्ट को अपने मुट्ठी में दबोचकर एक हाथ से ऊपर हवा में उठाते.… "मेरे टेंट के ऊपर कूदने की हिम्मत कैसे किये?"


इवान:– बॉस मुझे अलबेली हवा में ऊपर उछालकर फेंकी और मैं सीधा आपके टेंट के ऊपर लैंड हुआ। जरा नजर पास में घूमाकर देखो, हमारे टेंट का छत भी उड़ा हुआ है...


आर्यमणि, इवान को नीचे उतारते.… "अलबेली ये सब क्या है?"


अलबेली:– इस छछुंदर को इधर दो बॉस ऐसा मारूंगी की हिल न हो पायेगा।


आर्यमणि:– यहां तुम लोगों के बीच क्या चल रहा है?


अलबेली:– बॉस मैं सोई थी और इसने मेरी नींद का फायदा उठाकर चुम्मा ले लिया।


आर्यमणि आंखों में खून उतारते इवान का गला दबोचकर उसे हवा में उठाते.… "बाप वाला संस्कार तो अंदर जोर नही मारने लगा इवान"…


इवान:– बॉस गला छोड़ दो। ये पागल हो गयी है आप तो होश में आ जाओ...


आर्यमणि कुछ सोचकर उसे नीचे उतारते... "हां क्या कहना है तुम्हे?"


इवान:– बॉस मुझे भी अभी ही पता चला की मैने इसे चूमा। मैं तो ओजल के पास लेटा था। और जब मैं हवा में आया तब भी वहीं सोया हुआ था।


अलबेली चिल्लाती हुई इवान को मारने पर तूल गयी…."साले झूठे, बॉस के सामने झूठ बोलता है।"


इवान:– नही मैं सच कह रहा...


आर्यमणि:– दोनो चुप... रूही ये सब करस्तानी तुम्हारी है न...


रूही:– बिलकुल नहीं बॉस... मैं तो सोयी हुई थी।


आर्यमणि:– रात के इस प्रहर मुझे पागल बनाने की कोशिश न करो, वरना मैं पूछूंगा नही बल्कि गर्दन में क्ला घुसाकर पता लगा लूंगा। अब जल्दी बताओ ये किसकी साजिश है...


रूही:– ओजल की... उसी ने कहा था रात बहुत बोरिंग हो रही है...


आर्यमणि:– अब दोनो मिलकर रात को एक्साइटिंग बनाओ और जल्दी से दोनो टेंट को ठीक करो वरना दोनो को मैं उल्टा लटका दूंगा...


दोनो छोटा सा मुंह बनाते... "बॉस हम जैसे कोमल और कमसिन"…. इतना ही तो दोनो ने एक श्रृंक में बोला था और अगले ही पल आर्यमणि की घूरती नजरों से सामना हो गया।... "दोनो चुप चाप जाकर जितना कहा है करो"...


दोनो लग गयी काम पर। आधे घंटे में दोनो टेंट तैयार थे। इस बार तीन लड़कियां एक टेंट में और इवान के साथ आर्यमणि अपने टेंट में आ गया। आर्यमणि वापस से किताब को पलटा और इवान नींद की गहराइयों में था। कुछ देर तक तो सब कुछ सामान्य ही था लेकिन उसके बाद तो ऐसा लगा जैसे आर्यमणि के टेंट में कोई मोटर इंजन चल रहा हो, इतना तेज इवान के खर्राटों की आवाज थी। बेचारा आर्यमणि खून के घूंट पीकर रह गया।


अगले दिन फिर से ये लोग सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के आगे का सफर तय करने लगे। घास के मैदानी हिस्से से ये लोग जंगल के इलाके में पहुंच चुके थे। लगभग दिन ढलने को था, इसलिए इन लोगों ने अपना टेंट जंगल के कुछ अंदर घुसते ही लगा लिया। इस बार आर्यमणि ने ३ टेंट लगवाया। एक में खुद दूसरे में इवान और तीसरे में सभी लड़कियां। आज शाम से ही आर्यमणि पुस्तक को लेकर बैठा। पुस्तक की मोटाई के हिसाब से तो 1000 पन्नो से ज्यादा का पुस्तक नही होना चाहिए थी। पूरे पुस्तक की मोटाई लगभग 6 इंच की रही होगी लेकिन उसके अंदर १० हजार से ज्यादा पन्ने थे।


आम तौर पर पन्ने की मोटाई जितनी होती है, उतनी मोटाई में इस पुस्तक के १० पन्ने आ जाये। और इतने साफ और चमकदार पन्ने की देखने से लग रहा था कुछ अलग ही मैटेरियल से इन पन्नो को तैयार किया गया था। खैर आर्यमणि के पढ़ने की गति भी उतनी ही तेज थी। 6–7 घंटे में वह आधे किताब का पूर्ण अध्यन कर चुका था। बचा किताब भी खत्म हो ही जाता लेकिन मध्य रात्रि के पूर्व ही टीन वुल्फ कि आपस में झड़प हो गयी। अलबेली और इवान एक टीम में वहीं रूही और ओजल विपक्ष में। सभी एक दूसरे ना तो मारने में हिचक रहे थे और न ही फुटबॉल बनाकर हवा में उड़ाने से पीछे हट रहे थे।


आज की रात तो एक नही बल्कि 2 लोग आर्यमणि की छत पर लैंड कर रहे थे। बीच बचाव करते और सबका झगड़ा सुलझाने में आर्यमणि को २ घंटे लग गये। उसके बाद किताब पढ़ने की रुचि ही खत्म हो गयी। हां केवल एक वक्त था जब सुबह आर्यमणि, संन्यासी शिवम के किताब के एक अध्याय का अभ्यास कर रहा होता, तब उस 4 घंटे के समय अंतराल में कोई भी आर्यमणि को परेशान नही करता। यहां तक की चारो वहां ऐसे फैले होते की जंगली जानवर तक के आवाज को आर्यमणि के कानो तक नही पंहुचने देते।
Jabardast update bhai maza aa gaya charo wolf ki dhamachokdi ne dhamml macha diya or ab dekhte hai un sub chote box m kya rakha hai jo hatode se bhi nahi Tut Raha.
भाग:–63






सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के घूमने का सफर अगले दिन भी जारी रहा। जैसे–जैसे ये सब अपने गमों से उबर रहे थे, एक दूसरे से उतना ही लड़ भी रहे थे। टीम हमेशा बदलते रहता। झगड़े किसी भी वक्त किसी भी बात के लिये शुरू हो जाता और उनके बीच–बचाव में आर्यमणि का सर दर्द करने लगता। आर्यमणि अब पुस्तकों को किनारे ही कर चुका था, केवल सुबह के पुस्तक को छोड़कर। अब उसका ध्यान उन 8–10 बक्सों के ऊपर था, जो सुकेश के घर से चोरी हुये थे। आर्यमणि को समझ में आ चुका था, जब तक इन्हे काम नही दोगे तब तक कोई शांत नहीं बैठने वाला। यही सोचकर आज की रात आर्यमणि ने उन बक्सों को खोलने का फैसला किया।


रात के १० बज रहे होंगे। हर कोई आर्यमणि के टेंट में ही था। सब लोग ध्यान लगाकर बक्से को देख रहे थे। इसी बीच एक छोटी सी ठुसकी अलबेली को लग गयी। अलबेली, इवान को जोर से धकेलती... "तुझे धक्का मारने का बड़ा शौक चढ़ा है।"


अलबेली ने जो धक्का मरा उस से इवान तो धक्का खाया ही लपेटे में ओजल भी आ गयी। ओजल, इवान को किनारे करती अलबेली के बिलकुल सामने खड़ी हो गयी और उसे भी एक जोरदार धक्का दे दी। लो अब धक्का मुक्की का खेल आर्यमणि के आंखों के सामने ही शुरू हो गया। नौबत यहां तक आ गयी की आर्यमणि जब बीच–बचाव करने इनके बीच पहुंचा, तभी चारो ने एक साथ ऐसे हाथ झटका की आज आर्यमणि अपना टेंट का छप्पर फाड़कर पड़ोस के टेंट की छत पर लैंड किया। फिर तो आर्यमणि भी आज रात इन चारो को आड़े हाथ लेते भीड़ गया। कभी चारो हवा में होते तो कभी आर्यमणि।


माहोल थोड़ा मस्ती मजाक भरा हो गया और चारो की हटखेली में आर्यमणि भी सामिल हो गया। इस प्रकार की हटखेलि से आर्यमणि को अंदर से अच्छा महसूस हो रहा था, लेकिन वो कहते है न... अति सर्वत्र वर्जायते... वही यहां हो गया। अपने बॉस को हटखेली में सामिल होते देखे चारो और भी ज्यादा उद्वंड हो गये। आर्यमणि के लिये तो जैसे सिर दर्द ही बढ़ गया हो। कितना भी गुस्सा कर लो अथवा चिल्ला लो... कुछ घंटे ये चारो शांत हो जाते लेकिन उसके बाद फिरसे इनकी झड़प शुरू। इतने ढीठ थे कि आर्यमणि को हर वक्त पानी पिलाये रहते थे।


7 दिन बाद सभी लोग तंजानिया के लोकल पासपोर्ट लिये, डोडोमा अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर थे, जहां से ये लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरे। कनेक्टिंग फ्लाइट के जरिये ये लोग सीधा नाइजीरिया के लागोस शहर में उतरे और अगले २ दिन तक इस शहर में पूरे अल्फा पैक की धमाचोकरी जारी थी। एक तो पहले से इन लोगों के पास सुकेश के घर का माल था, ऊपर से इन लोगों ने 6 बड़े ट्राली बैग का लगेज बढ़ा दिया। 2 दिन बाद सभी पोर्ट ऑफ लागोस (अपापा), नाइजीरिया से पोर्ट ऑफ वेराक्रूज, मैक्सिको के लिये अपने कार्गो शिप में थे।


लगभग 30 दिन बाद ये लोग मैक्सिको में होते। आर्यमणि आराम से अपने कमरे में बचे हुये 50 किताब के साथ बैठा था। पढ़ने बैठने से पहले आर्यमणि सबको ट्रेनिंग का टास्क समझकर बैठा था। कार्गो शिप का पहला दिन काफी शांत था। आर्यमणि को शक सा हो गया, कहीं फिर से चारो शोक में तो नही डूब गये। २ बार उठकर जांच करने भी गया लेकिन सभी वुल्फ ट्रेनिंग में मशगूल थे। अगले 4 दिन तक इतना शांत माहोल रहा की आर्यमणि ने जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) के 3 भाग का पूरा अध्यन कर चुका था। यह पुस्तक श्रृंखला अपने भाग के समाप्ति के बाद और भी रोचक होते जा रही थी। क्योंकि जहां पहले 2 भाग में पृथ्वी था, वहीं तीसरा भाग में प्रिटी जैसे किसी अन्य ग्रह के जीवन के विषय में लिखा था।


आर्यमणि आगे और जानने के लिये उत्साहित हो गया। अब तो वह पूरे दिन में मात्र ३ घंटे ही सोता और बाकी समय किताब में ही डूबा रहता। अगले 4 दिन में वह 3 और भाग खत्म करके चौथे पुस्तक को खोल चुका था। वह जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–7 को पढ़ना शुरू कर चुका था। नागपुर से निकले कुल 35 दिन हो चुके थे। भाग 7 के मध्य में आर्यमणि होगा, जब पहली बार टीन वुल्फ ने दरवाजा खटखटाया। आर्यमणि बाहर आया तब पता चला मामला गंभीर था। 2 घंटा लग गया आर्यमणि को इनका मामला सुलझाते हुये।


इनका मामला सुलझाकर आर्यमणि कुछ घंटे का अध्यन आगे बढ़ाया ही था कि फिर से दरवाजे पर दस्तक होने लगी। इस बार उत्साह में दस्तक हुई थी। इन लोगों ने अपने हाथ के पोषण से कमरे में ही एक फूल के पौधे को 7 फिट बड़ा कर दिया था। यह कारनामा देखने के बाद तो आर्यमणि भी हैरान था। वो भी इनकी खुशियों में सामिल हो गया और खुद भी हाथ लगाकर पेड़ को और बड़ा करने की कोशिश करने लगा। आर्यमणि के चेहरे पर तब चमक आ गयी जब उसके हाथ लगाने के कुछ देर बाद पूरे पेड़ में फूल खिल उठे। यह नजारा देख खुशी से पूरा वुल्फ पैक ही झूमने लगा।


खैर २ घंटे के बाद एक बार फिर आर्यमणि अपने अध्यन मे लिन हो गया। किंतु कुछ देर बाद ही वापस से दरवाजे पर दस्तक। आर्यमणि चिढ़ते हुये पहुंचा और सब पर जोर–जोर से चिल्लाने लगा। पूरा वुल्फ पैक सकते में आने के बदले उसकी चिढ़ पर हंस रहे थे। मामला क्या था और क्यों दरवाजा पीट रहे थे, यह जाने बिना ही वह वापस अपने कमरे में आ गया। 8 दिन पूर्ण शांति के बाद तो जैसे अशांति ने डेरा डाल दिया हो। हर आधे घंटे पर दरवाजा खटखटाने लगता। अगले 1 दिन में आर्यमणि इतना परेशान हो गया की अपने माथे पर हाथ रख कर उस पल को झकने लगा, जब वह इन चारो को लेकर नागपुर से निकला था।


आर्यमणि:– क्या चाहते हो, मैं शांति से न जीयूं?


रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या हुआ बॉस, किसने परेशान किया है आपको? आप खाली नाम बोलो, काम हम तमाम कर देंगे।


आर्यमणि अपने दोनो हाथ जोड़ते.… "परेशान करने वालों में से एक तुम भी हो रूही, जाओ अपना काम तमाम कर लो"…


रूही:– क्या बात कर रहे हो बॉस। मैं मर गयी तो फिर आप गहरे सदमे में चले जाओगे। मरने के बाद तो मुझे तृप्ति भी नही मिलेगी... अल्फा पैक के अलावा किसने परेशान किया?


आर्यमणि:– ये तुम लोग जान बूझ कर मुझे परेशान कर रहे हो ना..


अलबेली:– क्या बात है बॉस बहुत जल्दी समझ गये।


इवान:– सुबह 4 घंटे ध्यान और योग कम था जो अब प्रहरी के किताब में घुस गये।


ओजल:– हमे पसंद नही की आप पूरा दिन किताब से चिपके रहो। हम टीम मेंबर ने मिलकर फैसला लिया है...


आर्यमणि:– हां मैं सुन रहा हूं, आगे बोलो..


रूही:– आगे क्या... आज से किताब पढ़ने के लिये बस 4 घंटे ही मिलेंगे। 8 घंटे तुम 2 तरह के किताब को पढ़ो। 8 घंटे हमारे साथ और 8 घंटे सोना है। सोना मतलब अलग अपने कमरे में नही बल्कि हम सब साथ में बड़े से हॉल में सोयेंगे। और यही फाइनल है...


आर्यमणि:– कोई दूसरा विकल्प नहीं। 8 घंटे मैं यदि अपने कमरे में सो जाऊं तो...


अलबेली:– भैया बिलकुल नहीं। आप वहां जागते रहते हो और इधर हम सब को भी नींद नहीं आती। रोज 2–3 घंटे की नींद से आंखें सूज गयी है।


आर्यमणि:– मेरे जागने से तुम लोगों के नींद न आने का क्या संबंध है...


रूही:– हमारा मुखिया जाग रहा हो और हम सो जाये ऐसा हो नही सकता।


आर्यमणि के पास कोई विकल्प नहीं था सिवाय उनकी बात मानने के। आर्यमणि को अपने पैक की बात माननी ही पड़ी। एक वुल्फ पैक खुशहाली में चला। खट्टे मीठे नोक–झोंक और मस्ती–मजाक का साथ। हर किसी का अपना ही अंदाज था और सभी एक दूसरे से घुलते–मिलते चले।


नाइजीरिया से निकले 15 दिन हो चुके थे। मैक्सिको पहुंचने के लिये लगभग 15 दिन का सफर और बाकी था। पूरा अल्फा पैक अपने बड़े से हॉल में और हॉल के बीचों–बीच सुकेश के घर से चोरी किये हुये बक्से एक लाइन से लगे थे। हर बॉक्स पर उसकी संख्या लिखी थी और वुल्फ पैक चिट्ठी निकालकर पहला बॉक्स खुलने का इंतजार कर रहे थे। चिट्ठी ऊपर हवा में और आर्यमणि ने पहला चिट्ठी उठाया.… सभी एक साथ... "जल्दी से बताओ बॉस, किस बक्से का नंबर निकला"…. "तुम लोग तैयार हो जाओ छठे नंबर का पहला बक्सा खुलेगा"….


4 फिट चौड़ा, 10 फिट लंबा और 4 फिट ऊंचा 10 बक्से। छठे नंबर वाला बक्से को खोला गया। बक्सा जैसा ही खुला सबकी आंखें चमक गयी। अंदर 10ग्राम के सोने के सिक्के। आर्यमणि ने उस पूरे बक्से को ही पलट दिया.… "सब लोग जल्दी से इन सिक्कों की गिनती करो।"


आधे घंटे में पूरी गिनती समाप्त करते.… "बॉस 50 हजार सोने की सिक्के है।"


आर्यमणि:– हम्मम!!! यानी 500 किलो सोना एक बॉक्स में। जल्दी से बाकी के 9 बॉक्स खोलो...


पूरे अल्फा पैक ने तुरंत सारे बक्से को खोल दिया। सब में उतना ही सोना भरा था। वहां बिखरे सोने के भंडार को देखकर सभी की आंखें फटी रह गयी... "इतना सोना। जब इसे क्रेन से उठाकर लोड किया जा रहा था, तब मुझे लगा बॉस क्या ये लोहा–टीना के भंगार का वजन ढो रहे। साला इसमें तो कुबेर का खजाना छिपा था।"


आर्यमणि:– कुछ तो गड़बड़ है। ये ज्यादा से ज्यादा १००० करोड़ का सोना होगा। लेकिन १००० करोड़ को कोई अपने संग्रहालय में क्यों रखेगा। वो भी वहां, जहां अनंत कीर्ति और जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र जैसी किताबे रखी हो। किसी जादूगर का दंश रखा हो। फिर ये लोग इतना वजनी और जगह घेरने वाले बक्से को क्यों उस जगह रखवाएंगे?


रूही:– हमे क्या करना हैं बॉस... १००० करोड़ .. इतना ज्यादा रूपया... मैं तो देखकर पागल हो जाऊंगी...


आर्यमणि बक्से को बड़े ध्यान से देख रहा था। आर्यमणि ने एक बक्से को पलट दिया और उल्टे बक्से को बड़े ध्यान से देखने लगा। कुछ भी संदिग्ध न मिल पाने की परिस्थिति में आर्यमणि ने एक हथौड़ा मंगवाया और पूरे बक्से के पार्ट–पार्ट को खोल दिया। हल्के और मजबूत धातु के 2 परत को जोड़कर हर शीट को तैयार किया गया था जिसकी मोटाई लगभग 4 इंच थी। शायद वजन सहने के हिसाब से शीट को बनाया गया था।


आर्यमणि हर शीट को बड़े ध्यान से देख रहा था। तभी उसे पता नही क्या सूझा और अपने क्ला से हर शीट को कुरेदने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे मेटल के ऊपर कोई नुकीली चीज से घिस रहा हो। हर शीट से मेटल के घिसने की आवाज आ रही थी जो काफी अप्रिय आवाज थी। लेकिन जिस शीट का इस्तमाल नीचे बेस के लिये किया गया था, उस शीट को जब आर्यमणि घिस रहा था, तब बीच का 3X3 फिट का भाग से खरोंच की आवाज निकालना बंद हो गया। उतने बड़े भाग पर जैसे बक्से में इस्तमाल हुये मेटल का रंग चढ़ाया गया था। बीच का हिस्सा जैसे ही आर्यमणि ने खरोचा, तब पता चला की वहां फोम इस्तमाल हुआ है। 2 सेंटीमीटर के फोम को जैसे ही निकला गया उसके नीचे 2.5 फिट लंबा, 2 फिट चौड़ा और 2.5 इंच की मोटाई वाला एक छोटा सा बॉक्स निकला।


जो मेटल पूरे बक्से को बनाने में इस्तमाल हुआ था, उस से कहीं ज्यादा मजबूत मेटल इस छोटे से बॉक्स में इस्तमाल किया गया था। 1mm की थिकनेस वाला यह मेटल हथौड़े के मार से भी नही टूटा। आर्यमणि ने सबसे पहले बाकी के 9 बक्से से वह छोटे बॉक्स को निकाल लिया। आर्यमणि के दिमाग में कहीं न कहीं यह भी घूम रहा था कि जिस छोटे से बॉक्स को बचाने के लिये इतना बड़ा जाल रचा गया है, हो सकता है बक्से के खुलते ही सुकेश एंड कंपनी को कोई सिग्नल मिल जाये।


जिस बक्से में 2500 किलो सोना रखा गया हो ताकि चुराने वाले को लगे की सुकेश भारद्वाज ने अपने संग्रहालय में खजाना रखा था। फिर ऐसा तो हो नही सकता की सुकेश ने उस बक्से को ढूंढने का कोई उपाय का इंतजाम न कर रखा हो। जरूर इस बक्से के खुलते ही सुकेश को जरूर चला होगा। आर्यमणि अपनी इस सोच पर इसलिए भी भरोसा कर रहा था, क्योंकि ऐसा पहले भी हुआ था। जबतक आर्यमणि ने सुकेश का संग्रहालय नही खोला था, तब तक तो सब ठीक था लेकिन जैसे ही संग्रहालय का दरवाजा खुला, सुकेश के साथ–साथ हर किसी तक सूचना पहुंच चुकी थी।


दूसरा समांतर सोच यह भी था कि जिस छोटे से बक्से से ध्यान भटकाने के लिये सुकेश 2500 किलो सोना डाल सकता है, उस छिपे बॉक्स में आखिर ऐसा क्या होगा? इन दो सोच के साथ 2 समस्या भी दिमाग में चल रही थी। छोटा सा बॉक्स जो निकला था वह मात्र आयताकार ढांचा था, जिसे खोलने के लिये उसके ऊपर कुछ भी ऐसा हुक या बटन नही लगा था। एक छोटे बॉक्स के ऊपर तो हथौड़ा मारकर भी देख लिया लेकिन वह पिचका तक नही, टूटना तो दूर की बात थी। पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?
 
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