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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Destiny

Will Change With Time
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भाग:–6



"कॉलेज में नाबालिक लड़की के साथ छेड़छाड़, बीच बचाव करने पुलिस पहुंची तो उसपर भी हमले। 4 कांस्टेबल और एक एस.आई घायल।"..

"नेशनल कॉलेज में एक और रैगिंग का मामला। पीड़ित ने अपनी प्राथमिकता दर्ज करवाई।"

"दिन दहाड़े 2 बाइक सवार ने एक महिला के गले से उसके मंगलसूत्र उड़ा कर फरार हो गए। पुलिस अभियुक्तों कि तलाश में जुटी।"

"दो गुटों में झड़प, मुख्य मार्ग 6 घंटे तक रहा जाम। डीएम मौके पर पहुंचकर मामले का संज्ञान लिए और दोनो पक्षों को शांत करवाकर वहां से हटाया।"

___________________________________________



कमिश्नर कार्यालय, नागपुर… महाराष्ट्र होम मिनिस्टर और नागपुर के नए पुलिस कमिश्नर राकेश नाईक की बैठक।


तकरीबन 3 घंटे की बैठक और बढ़ते क्राइम को देखते हुए लिया गया अहम फैसला। मंत्री जी के जाने के बाद कमिश्नर राकेश नाईक की प्रेस मीटिंग। प्रेस कॉन्फ्रेंस के मुखातिर होते हुए, कमिश्नर साहब रिपोर्टर्स के सभी सवालों पर विराम लगाते… "हम लोग जिला एसपी का कार्यभार बदल रहे है, आने वाले एक महीने में इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल जाएंगे।"


तकरीबन 3 दिन बाद, नागपुर पुलिस एसपी ऑफस का मीटिंग हाल। सामने 28 साल के बिल्कुल यंग आईपीएस, राजदीप भारद्वाज। जिले के सभी थाना अधिकारी सामने कुर्सी पर बैठे हुए। छोटी सी जान पहचान कि फॉर्मल मीटिंग।


राजदीप, छोटी सी फॉर्मल मीटिंग करने के बाद…. "यहां पहले क्या होता था वो मै नहीं जानता। लेकिन अब से मेरे कानो में केवल एक ही बात आनी चाहिए, नागपुर पुलिस बहुत सक्रिय है। और ये बात आपमें से किसी को बताने की जरूरत नहीं है, लोगों के दिल से निकलनी चाहिए ये बात। जो भी इस सोच के साथ काम करना चाहते है उनका स्वागत है। और जो खुद को बदल नहीं सकते, उनके लिए केवल इतना ही, जल्द से जल्द नई नौकरी ढूंढ़ना शुरू कर दो।"


एसपी ऑफिस से बाहर निकलते वक़्त लगभग सभी थाना अधिकारी ऐसे हंस रहे थे, मानो एसपी ऑफिस से कोई कॉमेडी शो देखकर निकले हैं। हां शायद यही सोच रहे हो, अकेला एसपी कर भी क्या सकता है। लेकिन वो भुल गए की उस 28 साल के लड़के के पास आईपीएस का दिमाग है। उसी शाम चैन स्नैचिंग के लगभग 800 मामले को राजदीप ने अपने हाथ में लिया। अपनी अगुवाई में टीम बनाई जिसमें 20 एस आई और 200 सिपाही थे। सभी के सभी फ्रस्ट्रेट पुलिस वाले जिनका सर्विस बुक में इन डिसिप्लिन होने का दाग लगा हुआ था।


4 दिन की कार्यवाही, और जो ही चोर उचक्कों को पुलिस ने दौरा-दौरा कर मारा। यहां तो केवल राजदीप ने 800 मामले को अपने हाथ में लिया था और जब पुलिस की ठुकाई हुई तो 1800 मामलों में इनका नाम आया। पूरे नागपुर में 12 चैन स्नेचर की गैंग और 108 लोगो की गिरफ्तारी हुई थी। इसके अलावा 17 दुकानों को चोरी का माल खरीदने के लिए सील कर दिया गया था और उनके मालिकों को भी हिरासत में ले लिया गया था।


आते ही हर सुर्खियों में केवल राजदीप ही राजदीप छाए रहे। जिस डिपार्टमेंट को काम ना करने की आदत सी पड़ चुकी थी। जिनकी लापरवाही और मिली भगत का यह नतीजा था कि क्रिमिनल थाने के सामने से चोरी करने से नहीं कतराते थे, उन सब पुलिस वालों पर गाज गिरना शुरू हो गया था। नौकरी तो बचानी ही थी अपनी, इसलिए जो भी क्रिमिनल अरेस्ट होते थे सब के सब पुखते सबूतों के साथ।


एक महीने के पूरी ड्यूटी के बाद तो जैसे नागपुर शहर का क्राइम ग्राफ ही लुढ़क गया हो। जितने भी टपोरी थे या तो उन्होंने धंधा बदल लिया या शहर। जो समय कमिश्नर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया था, उसके खत्म होते ही उन्होंने फिर एक कॉन्फ्रेंस किया, लेकिन इस बार सवाल कम और तारीफ ज्यादा बटोर रही थी नागपुर पुलिस।


सुप्रीटेंडेंट साहब जितने मशहूर नागपुर में हुए, उतने ही अपने परिवार के भी चहेते थे। पिताजी हाई स्कूल में प्रिंसिपल के पोस्ट से रिटायर किए थे और माताजी भी उसी स्कूल में शिक्षिका थी। राजदीप का एक बड़ा भाई कमल भारद्वाज जो यूएस में सॉफ्टवेर इंजिनियर है अपने बीवी बच्चों के साथ वहीं रहता था।


दूसरा राजदीप जो सुप्रीटेंडेंट ऑफ पोलिस है। राजदीप से छोटी उसकी एक बहन नम्रता, जो पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद पीएचडी करना चाह रही थी, लेकिन राजदीप के नागपुर पोस्टिंग के बाद अपने दोस्तों को छोड़कर यहां के यूनिवर्सिटी में अप्लाई करना पड़ा। और सबसे आखरी में पलक भारद्वाज, 1 साल की तैयारी के बाद अपने इंजीनियरिंग एंट्रेंस टेस्ट देकर उसके परिणाम का इंतजार कर रही थी।


शुरू से ही घर का माहौल पठन-पाठन वाला रहा, इसलिए राजदीप को पढ़ने का अनुकूल माहौल मिला और वो 24 साल की उम्र में अपना आईपीएस क्लियर करके ट्रेनिंग के लिए चला गया। ट्रेनिंग के बाद उसे 26 साल में पहली फील्ड पोस्टिंग मिली थी, और 2 साल बाद ही महाराष्ट्र के प्रमुख शहर नागपुर की जिम्मेदारी।


रविवार की सुबह थी। राजदीप बाहर लॉन में बैठकर पेपर पढ़ रहा था, उसकी पहली छोटी बहन नम्रता चाय लेकर उसके पास पहुंची… "क्या पढ़ रहे हो दादा, अखबार में तो केवल आपके ही चर्चे हैं। अब एक काम करो शादी कर लो।"..


राजदीप:- कितने पैसे चाहिए।


नम्रता:- क्या दादा, आपको क्यों ऐसा लग रहा है कि मै आपसे पैसे मांगने आयी हूं।


राजदीप:- फिर क्या बात है।


नम्रता:- दादा पलक ने नेशनल कॉलेज में एडमिशन ले लिया है, वो तो पता ही होगा ना।


राजदीप:- हां पता है, उसने इंट्रेस में टॉप मार्क्स मिले थे, मैंने अपने साथियों में मिठाई भी बंटवाई थी।


नम्रता:- दादा वो कॉलेज रैगिंग के लिए मशहूर है और मुझे बहुत डर लग रहा है। आप तो पलक को जानते ही हो, इसलिए क्या आप पुरा हफ्ता उसे कॉलेज ड्रॉप कर सकते हैं?


राजदीप:- नम्रता वो कॉलेज है, वहां पुलिस का क्या काम। देखो मै पलक को केवल वहां एक हफ्ते छोड़ने जाऊंगा, लेकिन वो अगले 4 साल उस कॉलेज में जाने वाली है। थोड़ा बहुत रैगिंग से जूनियर्स, सीनियर्स के पास आते हैं, वो जायज है। हां उसके ऊपर जब जाए तब मैं हूं, चिंता मत करो। कल पहला दिन है तो मै ही चला जाऊंगा। वैसे ये रहती कहां है आजकल।


नम्रता:- घर में ही होगी जाएगी कहां, रुको बुला देता हूं।


राजदीप:- नहीं रहने दे, उसका यहां बैठना और ना बैठना दोनो एक जैसा होगा। मुझे तो कभी-कभी लगता है आई–बाबा का एक बच्चा हॉस्पिटल में बदल गया था।


नम्रता:- क्या दादा, सुनेगी तो बुरा लगेगा।


राजदीप:- हां लेकिन गुस्सा तो हो, झगड़ा तो करे। वो बस इतना ही कहेगी हर किसी का स्वभाव एक जैसा नहीं होता और बात खत्म।


अगले दिन सुबह-सुबह राजदीप पलक के साथ नेशनल कॉलेज के लिए निकला।..


राजदीप:- सो क्या ख्याल चल रहे है पहले दिन को लेकर।


पलक:- कुछ नहीं दादा, थैंक्स आप साथ आए।


राजदीप:- हद है, अब भाई को भी थैंक्स कहेगी। अच्छा सुन कोई रैगिंग करे तो मुझे बताना।


पलक:- हां बिल्कुल।


राजदीप कुछ दूर आगे चला होगा तभी उसे लंबा जाम दिखा।… "पलक 2 मिनिट गाड़ी में बैठ मै अभी आया।".. लगभग 200 मीटर जाम को पार करने के बाद राजदीप जैसे ही चौराहे पर पहुंचा, वहां का माहौल देखकर वो दंग रह गया। ऊपर से जब वो आगे बढ़ने लगा, तभी एक आदमी उसके सीने पर हाथ रखते… "साले तेरेको दिख नहीं रहा, भाई इधर धरना दे रयले है।"


राजदीप ने ऐसा तमाचा दिया कि उसके गाल पर पंजे का निशान छप गया। कुछ देर तक तो उसका सर नाचने लगा और तमाचा इतना जोरदार था कि वहां तमाचा की आवाज गूंज गई। सभी गुंडे उठकर खड़े हो गए। इसी बीच थाने और कंट्रोल रूम से पुलिस का भारी जत्था पहुंच गया। राजदीप एक कार के बोनट पर अपनी तशरीफ़ को टिकाते हुए, अपने आखों पर चस्मा डाला…. "जबतक रुकने के लिए ना कहूं, ठोकते रहो इनको।"


चारो ओर से घिरे होने के कारण भाग पाना काफी मुश्किल हो रहा था। इसी बीच पुलिस की टीम ने आदेश मिलते ही जो ही डंडे बरसाने शुरू किए, तबतक नहीं रुके जबतक राजदीप ने रुकने का इशारा नहीं किया।… "इसके गैंग लीडर को सामने लेकर आओ"…


सामने लोकल एरिया का मशहूर गुंडा और यहां के लोकल एमएलए का खास आदमी, इमरान कुरैशी को लाकर खड़ा कर दिया… "साले ज्यादा फिल्मी हो रहा है। अगली बार कहीं सड़क जाम करता हुआ दिखा ना तो किसी काम का नहीं छोडूंगा। इंस्पेक्टर यहां का ट्रैफिक क्लियर करो और इन सबको हॉस्पिटल लेकर जाओ।"


राजदीप जाम क्लियर करवाकर वापस अपने गाड़ी में आया और पलक के साथ उसे कॉलेज छोड़ने के लिए चल दिया। कॉलेज का कैंपस देखकर राजदीप कहने पर मजबूर हो गया… "ये लोग कॉलेज चला रहे है या 5 स्टार होटल। तभी आजकल इंजिनियरिंग इतनी मेंहगी हो गई है।"..


पलक:- दादा आप जाओ, मै अपना क्लास ढूंढ लूंगी।


राजदीप:- क्या है पलक, मै यहां तेरे लिए आया हूं और तू है कि मुझे ही भगा रही है। चल आज मै तुम्हारी हेल्प कर देता हूं।


पलक:- ठीक है दादा।


राजदीप वहां से ऑफिस गया और ऑफिस से पलक के सारे क्लास का पता लगाकर उसे दोबारा रैगिंग के विषय में समझाकर, वहां से वापस अपने ऑफिस पहुंचा। राजदीप जैसे ही अपने केबिन में पहुंचा ठीक उसके पीछे संदेशा भी पहुंचा… "एमएलए साहब मिलना चाह रहे थे।"..


राजदीप कुछ फाइल पर साइन करने के बाद एमएलए आवास पर पहुंचा। सामने से उसे सैल्यूट करते हुए… "सर आपने मुझे यहां बुलाया।"..


एमएलए:- सुना है सड़क पर तुमने आज खूब एक्शन दिखाया।


राजदीप:- गलत सुना है सर। आज अपनी बहन को कॉलेज ड्रॉप करने गया था तो थोड़ा जल्दी में था इसलिए केवल वार्निग देकर छोड़ा दिया, कहीं वर्दी में होता तो उसे काल के दर्शन करवाता।


एमएलए:- जवान खून हो और तन पर सुप्रीटेंडेंट की वर्दी। नतीजा तो ऐसा ही होना है। तुम्हे पता है महाराष्ट्र के असेम्बली में मेरा क्या योगदान है। मेरे 72 एमएलए सपोर्ट के साथ ये असेम्बली चल रही है, इधर मैंने अपना हाथ खींचा और उधर इलेक्शन शुरू। तू जानता नहीं मै क्या करवा सकता हूं?


राजदीप:- आराम से बैठकर बातें करें या अपनी कुर्सी का सॉलिड अकड़ है?


एमएलए:- पॉलिटिक्स में अकड़ नहीं बल्कि अक्ल काम आती है, आओ मेरे साथ।


दोनो एमएलए के प्राइवेट चैंबर में बैठते हुए… "हां अभी कहो।"..


राजदीप:- सुनो कृपा शंकर गोडबोले, मुझे शहर कि सड़कें साफ चाहिए। आम जनता परेशान होते नजर नहीं आने चाहिए। मर्डर मतलब उस क्राइम को रिवर्स नहीं किया जा सकता, किसी की जिंदगी नहीं लौटाया जा सकती, इसलिए किसी का मर्डर नहीं चाहिए। ड्रग्स जैसे कारोबार नहीं चाहिए। इसके अलावा कुछ भी करो मै कुछ नहीं कहने आऊंगा। बात समझ में आ गई हो तो 10 करोड़ के एनुअल बजट के साथ डील फाइनल करो वरना बौधायन भारद्वाज के वंशज के बारे में एक बार पता कर लेना।


एमएलए, ने जैसे ही बौधायन भारद्वाज का नाम सुना, राजदीप को आंखे फाड़कर देखते, "उज्ज्वल भारद्वाज के बेटे हो क्या?"… राजदीप ने जैसे ही हां मे सर हिलाया, एमएलए... "मुझे माफ़ कर दो, मै तुम्हे पहचान नहीं पाया। मुझे तुम्हारी हर शर्त मंज़ूर है। लेकिन 10 करोड़ थोड़ा ज्यादा नहीं लग रहा, अब थोड़े बहुत काम से मै कितना पैसा बना पाऊंगा। इसे 5 करोड़ कर दो प्लीज।"


राजदीप:- कृपा शंकर सर, ये चिंदी काम से आपका पेट थोड़े ना भरता है। मुझे मजबूर ना करे अपने रिस्ट्रिक्शन के दायरे बढ़ाने में वरना फिर मै पहले मिलावटी चीजों पर ध्यान दूंगा। फिर शिकंजा बढ़ेगा बैटिंग पर। फिर दायरा बढ़ेगा ब्रांडेड प्रोडक्ट्स के पायरेसी के धंधे पर। और वो जो नेशनल कॉलेज को चकाचक करवाकर जो इतना डोनेशन कमा रहे, उस जैसे फिर ना जाने कितने सरकारी कॉलेज है, जहां तुमने एडवांस फीचर्स के नाम पर बैक डोर से मोटी रकम वसूली है, और वसूलते रहोगे...


एमएलए:- आप तो ज्ञानी है प्रभु। ठीक है डील तय कर दिया, आज से पुरा नागपुर आपका। जो आप कहेंगे वहीं होगा।


राजदीप:- मै तो पूरे भारत में जो कहूंगा वो होगा, लेकिन वो क्या है ना कृपाशंकर, हम यदि अपनी मांगे नाजायज रखेंगे तो अपना वैल्यू ही खत्म हो जाएगा। बाकी पुलिस और पॉलिटिक्स में तो पॉलिटीशियन को इतनी सेवा पुलिस की करनी ही पड़ती है।


एमएलए:- हव साहेब.. आप जैसा बोलो।


राजदीप:- ठीक है सर अब मै चलता हूं, आपके वाहट्स ऐप पर मैंने अपनी बहन की तस्वीर भेज दी है, आपकी छत्र छाया वाले कॉलेज में है, देखिएगा कोई हरासशमेंट का केस ना आए, बाकी छोटी मोटी रैगिंग के लिए मै पढ़ने वालों को परेशान नहीं करता।


एमएलए:- आप जाइए राजदीप सर, कॉलेज में इन्हे कोई परेशानी नहीं होगी।


शाम को ऑफिस से लौटते वक़्त राजदीप अपनी बहनों के लिए कुछ खरीदारी करता हुआ चला। वो जब रास्ते में था तभी कमिश्नर राकेश का फोन आ गया… "जी सर कहिए।"


राकेश:- क्यों रे मैंने सुना है आज एमएलए से मिलकर आया। ये तो कमाल ही हो गया। मतलब हम कमिश्नर ऑफिस में और तू पॉलिटीशियन की गोद में। वो भी पॉलिटीशियन कौन तो कृपाशंकर।


राजदीप:- मै आता हूं ना सर आपके घर।


राकेश:- छोड़ मै ही आता हूं तेरे घर। वैसे भी आजकल डीसी ऑफिस से ज्यादा तो एसपी ऑफिस छाया हुआ है नागपुर में।


राकेश:- जैसा आप सही समझो साहेब। मै भी ऑफिस से निकल गया।


राजदीप अपना सारा प्लान कैंसल करते हुए, नागपुर के सबसे मशहूर रेस्त्रां से मटन, नान और नाना प्रकार के व्यंजन पैक करवाकर सीधा घर पहुंचा। रात के ठीक 8 बजे नए प्रमोटेड कमिश्नर साहब अपने पूरे परिवार के साथ राजदीप के घर पहुंचे।
सादा लिवास, खाकी पोशाक और गुंडे मवालियां इन तीनों का चोली दमन का साथ है जैसे दमन किसका और चोली में कैद खूबसूरती का नजारा मिल जताता हैं। वैसे ही किसी एक से अनबन हुआ और सारा कच्चा चिट्ठा उजागर हों जाता है।

राजदीप, वाह रे पुलिसिया बाबू गिरगिट की माफिक रंग बदलू निकला रे नागपुर आते ही 800 केस हाथ में लिए और निपटाते निपटाते 800 के 1800 हों गया और जब एमएलए साहब का बुला आया तो एक मोटी रकम की पेशगी करके सेटलमेंट कर आया खैर पुलिस वाले इतनी मेहनत और रकम खर्च करके अधिकारी बनते है तो कही न कही से बसूलना ही था।

पूर्व के अपडेटो की तरह यह अपडेट भी रोचक रहा देखते है आगे ओर क्या क्या होता है।
 

Destiny

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भाग:–7


जैसे ही वो घर पहुंचे राजदीप समेत उसकी दोनो बहने जाकर उनके पाऊं छू ली। इधर राकेश और उसकी पत्नी निलांजना भी जाकर राजदीप के माता पिता से मिलने लगे। राजदीप की मां और राकेश की पत्नी दोनो सगी बहने थी और कमिश्नर साहब राजदीप के मौसा जी। पुलिस का काम ऐसा था कि पूरे परिवार का मिल पाना नहीं हो पता था, हां लेकिन फोन पर अक्सर ही बातें हुआ करती थी। राजदीप अपने मौसा से ही इंस्पायर्ड होकर आईपीएस को तैयारी करने गया था। बड़े से डाइनिंग टेबल पर दोनो परिवार बैठा हुए था। चित्रा और निशांत भी वहीं बैठे हुए थे और खामोशी से सबकी बातें सुन रहे थे।…


नम्रता, खाने का प्लेट लगाती…. "दादा फोन पर तो ये निशांत और चित्रा आधा घंटा कान खा जाते थे, आज दोनो मूर्ति बनकर बैठे है। चित्रा, निशांत सब ठीक तो है ना।"…


राकेश:- इन दोनों को कुलकर्णी कीड़े ने काटा है, इसलिए कुछ नहीं बोल रहे।


राजदीप:- कौन वो डीएम केशव कुलकर्णी।


राकेश:- हां उसी का नकारा बेटे के सोक में दोनो सालों से पागल हुए जा रहे है।


राजदीप की मां अक्षरा भारद्वाज…. "छी छी, उस घटिया परिवार से तुमलोग रिश्ता भी कैसे रख सकते हो।"


"पापा हमे ये सब सुनाने के लिए लाए थे। तुझे मटन का स्वाद लेना है तो लेते रह निशांत, मै जा रही।"… चित्रा गुस्से में अपनी बात कहकर खाने के टेबल से उठ गई। उसी के साथ निशांत भी खड़ा होते.… "रुक चित्रा मै भी चलता हूं।"..


पलक:- "बैठ जाओ दोनो आराम से। जिस बात की वजह नहीं जानते उस बात को पहले पूछ लो। पीछे की कहानी जान लो, ताकि तुम्हे उसमे अपना कुछ विचार देना हो तो विचार दे दो और फिर ये कहकर उठो की आप बड़े है, मै उल्टे शब्दों में आपको जवाब नहीं दे सकता इसलिए मजबूरी में उठकर जाना पड़ रहा है।"

"देखा जाए तो तुमने आई की बात का जवाब इसलिए नहीं दिया, क्योंकि तुम्हे रिश्ते ने खटास नहीं चाहिए, लेकिन ऐसे उठकर चले गए तो तुम्हारे पापा को बेज्जती झेलनी होगी। उनसे सवाल किए जाएंगे कि कैसे संस्कार दिए अपने बच्चो को। तुमने इज्जत के कारण उठकर जाने का निर्णय लिया, किन्तु यहां बात कुछ और हो जाएगी। इसलिए आराम से बैठ जाओ और सवाल करो, जवाब दो, फिर विनम्रता से उठकर चले जाना।"


पलक की बात सुनकर दोनो भाई बहन बैठ गए। और निशांत अपनी मासी को सॉरी कहते हुए कहते पूछने लगा… "मासी आप उस परिवार के बारे में क्या जानते है।"..


अक्षरा भारद्वाज:- "बेटा उस केशव कुलकर्णी की पत्नी जो है ना जया, उसकी एक बड़ी बहन है यहीं नागपुर में रहते है, मीनाक्षी भारद्वाज और उसके पति का नाम है सुकेश भारद्वाज। सुकेश भारद्वाज जो है वो और राजदीप के बाबा उज्जवल दोनो खास चचेरे भाई है।"

"तेरे 3 मामा है। जिसमें से तेरे जो सबसे छोटे वाले मामा थे, उनकी मौत का कारण वही उसकी बहन जया है। तेरे छोटे मामा और जया का लगन तय हो गया था, लेकिन शादी के एक दिन पहले उसकी बड़ी बहन मीनाक्षी ने अपनी बहन जया को भगा दिया। तेरे छोटे मामा बेज्जती का ये घूंट पी नहीं पाए और उन्होंने आत्महत्या कर ली। नफरत है हमे उस परिवार से। उसका नाम सुनती हूं तो तेरे छोटे मामा याद आ जाते है।"


चित्रा:- पलक तुम्हारा धन्यवाद, तुमने सही वक़्त पर बिल्कुल सही बातें बताई। मासी आपको जो मानना है वो आप मानती रहे, और यहां बैठे जितने भी लोग है। मै इसपर कुछ नही कहूंगी, नहीं तो आप सबकी भावनाओ को ठेस पहुंचेगा। आर्यमणि हमारा दोस्त है और जिंदगी भर हमारा दोस्त रहेगा।


राजदीप:- सिर्फ दोस्त ही है ना..


चित्रा:- हमे साथ देखकर शायद आपको कन्फ्यूजन हो सकता है लेकिन हम दोनों के बीच कोई कन्फ्यूजन नहीं है भईया। वैसे हमने एक बार सोचा था रिलेशनशिप स्टेटस बदलने का। लेकिन फिर समझ में आया, हम पहले ही अच्छे थे।


राजदीप:- अच्छा हम से तो वजह जान लिए तुम बताओ कि तुम दोनो उसके लिए इतने मायूस क्यों हो?


निशांत:- मेरे पापा गंगटोक के अस्सिटेंट कमिश्नर रह चुके है, उनसे पूछ लीजिएगा डिटेल कहानी आपको पता चल जाएगा। हमारा दोस्त आर्यमणि बोलने में विश्वास नहीं रखता, केवल करने में विश्वास रखता है।


खाने के टेबल पर फिर बातों का दौड़ चलता रहा। काफी लंबे अरसे के बाद दोनो परिवार मिल रहे थे। सब एक दूसरे से घुलने मिलने लगे। चित्रा और निशांत के मन का विकार भी लगभग निकल चुका था, वो भी अपने मौसेरे भाई बहन से मिलकर काफी खुश हुए।


बातों के दौरान यह भी पता चला की पलक, निशांत और चित्रा तीनों एक ही कॉलेज में एडमिशन लिए है। जहां पलक और निशांत दोनो मैकेनिकल इंजिनियरिंग कर रहे है वहीं चित्रा कंप्यूटर साइंस पढ़ रही थी।


रात के लगभग 12 बज रहे थे। चित्रा, निशांत के कमरे में आकर उसके बिस्तर पर बैठ गई… "सालों बित गए, आर्यमणि ने एक बार भी फोन नहीं किया।"


निशांत:- कल अंकल (आर्यमणि के पापा) ने फोन किया था, रो रहे थे। आर्यमणि जबसे गया, किसी से एक बार भी संपर्क नहीं किया।


चित्रा:- कमाल की बात है ना निशांत, आर्य नहीं है तो हम सालों से झगड़े भी नहीं।


निशांत:- मन ही नहीं होता तुझे परेशान करने का चित्रा। अंकल बता रहे थे मैत्री के मरने का गहरा सदमा लगा था उसे।


चित्रा:- कहीं वो सारे रिश्ते नाते तोड़कर विदेश में सैटल तो नहीं हो गया। निशांत एफबी प्रोफाइल चेक कर तो आर्य की। कहीं कोई तस्वीर पोस्ट तो नहीं किया वो?


निशांत:- कर चुका हूं, नहीं है कोई पिक शेयर। वैसे एक बात बता, केमिकल इंजीनियरिंग के लिए तुमने आर्य का माइंड डायवर्ट किया था ना?


चित्रा:- नहीं मै तो केमिकल इंजिनियरिंग लेने वाली थी, उसी ने मुझसे कहा कि कंप्यूटर साइंस करते है। तकरीबन 5 महीने तक मुझे समझता रहा मै फिर भी नहीं मानी।


निशांत:- फिर क्यों ले ली..


चित्रा:- एक छोटा सा सरप्राइज। बस इसी खातिर ले ली।


निशांत:- तू भी ना पूरे पागल है।


चित्रा:- हां लेकिन तुम दोनो से कम… वो अजगर वाला वीडियो लगा ना.. उसका एक्शन देखते है।


दोनो भाई बहन फिर एक के बाद एक ड्रोन कि रेकॉर्डेड वीडियो देखने लगे। वीडियो देखते देखते दोनो को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। दोनो भाई बहन सुबह-सुबह उठे और आराम से नेशनल कॉलेज के ओर चल दिए। कैंपस के अंदर कदम रखते ही चारो ओर का नजारा देखकर… "हाय इतनी सारी तितलियां.. सुन ना चित्रा एक हॉट आइटम को अपनी दोस्त बना लेना और उससे मेरा इंट्रो करवा देना।"


चित्रा:- मै भी उस आइटम से पहले इंक्वायरी कर लूंगी उसका कोई भाई है कि नहीं जिसने उससे भी ऐसा ही कुछ कहा हो। थू, कमीना…


निशांत:- जा जा, मत कर हेल्प, वैसे भी यहां का माहौल देखकर लगता नहीं कि तेरे हेल्प की जरूरत भी होगी।


चित्रा:- अब किसी को हर जगह जूते खाने के शौक है तो मै क्या कर सकती हूं। बेस्ट ऑफ लक।


दोनो भाई–बहन बात करने में इतने मशगूल थे कि सामने चल रहे रैगिंग पर ध्यान ही नहीं गया, और जब ध्यान गया तो वहां का नजारा देखकर… "ये उड़ते गिरते लोग क्या कर रहे है यहां।"..


निशांत:- इसे रैगिंग कहते है।


चित्रा, निशांत का कांधा जोर से पकड़ती… "भाई मुझे ये सब नहीं करना है, प्लीज मुझे बचा ले ना।"..


निशांत:- अब तू आज इतने प्यार से कह रही है तो तेरी हेल्प तो बनती है। चल..


चित्रा:- नहीं तू आगे जाकर रास्ता क्लियर कर मै पीछे से आती हूं।


निशांत:- चल ठीक है मै आगे जाता हूं तू पीछे से आ।


निशांत आगे गया, वहां खड़े लड़के लड़कियों से थोड़ी सी बात हुई और उंगली के इशारे से चित्रा को दिखाने लगा। चित्रा को देखकर तो कुछ सीनियर्स ध्यान मुद्रा में ही आ गए। निशांत, चित्रा को प्वाइंट करके फिर आगे निकल गया। जैसे ही चित्रा, निशांत को वहां से निकलते देखी… "कितना भी झगड़ा कर ले, लेकिन निशांत मेरे से प्यार भी उतना ही करता है।"… चित्रा खुद से बातें करती हुई आगे बढ़ी। तभी वहां खड़े लड़के लड़कियां उसका रास्ता रोकते… "फर्स्ट ईयर ना"..


चित्रा:- येस सर


एक लड़का:- चलो बेबी अब जारा बेली डांस करके दिखाओ..


"हांय.. बेली डांस, लेकिन निशांत ने तो सब क्लियर कर दिया था यहां"… चित्रा अपने मन में सोचती हुई, सामने खड़े लड़के से कहने लगी… "सर जरूर कोई कन्फ्यूजन है, अभी-अभी जो मेरा भाई गया है यहां से, उसने आपसे कुछ नहीं कहा क्या?"


एक सीनियर:- कौन वो चिरकुट। हम तो उससे भी रैगिंग करवा लेते लेकिन बोला मै यहां थोड़े ना पढ़ता हूं, अपनी बहन को छोड़ने आया हूं। वो तुम्हारे क्लास वाइग्रह देखने गया है अभी। चल अब बेली डांस करके दिखा।


चित्रा अपनी आखें बड़ी करती… "कुत्ता कहीं का, इसे तो घर पर देखूंगी।"..


सीनियर:- क्या सोच रही है, चल बेली डांस कर।


चित्रा, नीचे से अपनी जीन्स 4 इंच ऊपर करती…. "सर नकली पाऊं से बेली डांस करूंगी तो मै गिर जाऊंगी, फिर लोग क्या कहेंगे। देखो पहले ही दिन कॉलेज में गिर गई।"..


एक लड़की:- तो क्या दूसरे दिन गिरेगी।


चित्रा:- मिस क्या पहला, क्या दूसरा, अब जब पाऊं ही नहीं है तो कभी भी गिरा दो क्या फर्क पड़ता है। जिस बाप को अपना सरनेम देना था उसने अनाथालय की सीढ़ियां दे दी, सिर्फ इस वजह से कि मेरा एक पाऊं है ही नहीं। जब अपना खुद का बाप एक अपाहिज का दर्द नहीं समझा तो तुम लोग क्या समझोगे। अकेला छोड़ दिया ऐसे दुनिया में जहां किसी अनाथ और खुस्बसूरत लड़की को हर नजर नोचना चाहता हो। बेली डांस के बदला ब्रेक डांस ही करवा लो, जब मेरे नकली पाऊं बाहर निकल आएंगे तो तुम सब जोड़-जोड़ से हंसना।


सामने से एक लड़का फुट फुट कर रोते हुए… "सिस्टर, दबाकी मेरा नाम है, यहां मै सबको दबा कर रखता हूं। तुम बिंदास अपने क्लास जाओ, तुम्हे पूरे कॉलेज में कोई आंख उठाकर भी नहीं देखेगा।"


इधर निशांत उन लड़कों को झांसा देकर जैसे ही आगे बढ़ा, उसे पलक मिल गईं… "कैसी हो पलक"


पलक:- अच्छी हूं।


निशांत:- तुम्हारी रैगिंग नहीं हुई क्या?


पलक:- शायद दादा ने यहां सबको पहले से वार्निग दे दिया हो। कॉलेज के गेट से लेकर यहां तक सब सलाम ठोकते ही आए है।


निशांत:- हा हा हा हा.. सुप्रीटेंडेंट साहब की बहन आयी है। वो भी कोई ऐसा वैसा पुलिस वाला नहीं बल्कि सिंघम के अवतार है राजदीप भारद्वाज।


पलक:- हेय वो तुम्हारी बहन के साथ रैगिंग कर रहे है।


निशांत:- कास रैगिंग कर पाए, मै तो विनायक को पूरे 101 रुपए की लड्डू चढ़ाऊंगा।


पलक:- ऐसा क्यों कह रहे हो, वो तुम्हारी बहन है।


निशांत:- मेरी तो बहन है लेकिन इन सबकी मां निकलेगी। इसकी रैगिंग कोई लेकर तो दिखाए।


पलक, निशांत की बातें सुनकर जिज्ञासावश सबकुछ देखने लगी। जैसे-जैसे चित्रा का एक्ट आगे बढ़ रहा था, उसकी हसी ही नहीं रुक रही थी। निशांत पीछे से पलक के दोनो कंधे पर हाथ देकर अपना चेहरा आगे लाते हुए… "देखी मैंने क्या कहा था।"..


पलक ने जैसे ही देखा की निशांत उसके कंधे पर हाथ रखे हुए है वो हंसते हंसते ख़ामोश हो गई और अपनी नजरे टेढ़ी करके निशांत की बातें सुनने लगी। निशांत को ख्याल आया कि उसने पलक के कंधे पर हाथ दिया है… "सॉरी मैंने कैजुअली कंधे पर हाथ रख दिया।"..


पलक:- कोई बात नहीं, बस मुझे दादा का ख्याल आ गया।


तभी इनके पास चित्रा भी पहुंच गई… "कमिने खुद तो मुझे छोड़ने का बहाना बनाकर बच गया, और मुझे फसा दिया। तू देख लेना यहां किसी भी लड़की से तूने बात तक की ना तो तेरी ठरकी देवदास की डीवीडी ना रिलीज कर दी तो तू देख लेना।"


पलक:- क्यों दोनो झगड रहे हो, चलो क्लास अटेंड करने। अभी तो शायद हम सब की क्लास साथ ही होगी ना।


चित्रा:- क्लास साथ हो या अलग पलक, लेकिन इसके साथ मत रहना। भाई के नाम पर कलंक है ये।


निशांत:- वो तो पलक ने भी सुना क्या-क्या साजिशें तुम कर रही। जलकुकड़ी कहीं की। तुझे इस बात से दिक्कत नहीं थी कि तेरा रैगिंग के लिए इन लोगो ने रोका। इनसे निपटने की तैयारी तो तू घर से करके आयी थी। तुझे तो इस बात का गुस्सा ज्यादा आया की मुझे क्यों नहीं रोका, मेरी रैगिंग क्यों नहीं ली?


पलक:- क्लास चले, बाकी बातें क्लास के बाद पूरी कर लेना।


तीनों ही क्लास में चले गए। पलक इन दोनों से मिलकर काफी खुश नजर आ रही थी। अंदर से मेहसूस हो रहा था चलो फॉर्मल लोग नहीं है। हालांकि एक खयाल पलक के मन में बार-बार आता रहा की आखिर मेरा भाई तो केवल एसपी है फिर किसी ने नहीं रोका, और इसके पापा तो कमिश्नर है, फिर क्यों इनकी रैगिंग हो रही है।"..

मस्ती मजाक, भावनात्मक जुड़ाव और पारिवारिक अनबंध का मिला जुला समागम इस अपडेट में देखने को मिला।

राजदीप ने पारिवारिक भोज का आयोजन किया मगर घर की रसोई में बना कुछ नहीं सभी स्वादिष्ट व्यंजन बाहरी वाबर्चियो से लाया गया। भोज के दौरान बड़ो के आदर निरादर का एक भारी भरकम डोज, चित्र और निशांत को भोजन के साथ साथ दिया गया और कॉलेज के रैगिंग से बचने का बड़ा ही मस्त तरकीब दोनो भाई बहन ने निकला एक लांगड़ी घोड़ी बनाकर वैली डंस करने से बच गई और दूसरे ने सारा भोज बहन पर लादकर अपनी जान छुड़ा लिया।

पूर्व की तरह यह अपडेट भी शानदार रहा
 

The king

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भाग:–61








मीनाक्षी:- परिवार की बात ना करो मनीषा, क्योंकि पारिवारिक दृष्टिकोण से तो मै भी उन सबके साथ सामिल हुयि। आर्यमणि को तो मै भी बहुत चाहती हूं। हमे अफ़सोस होता है, जब नेक्स्ट जेनरेशन आता है। क्योंकि कुछ अच्छे दिल के लोगो को हम सामिल नहीं कर सकते। थोड़ा दर्द भी होता है जब वो मरते है या अपना राज बचाने के लिये उन्हें मारना पड़ता है।(बिलकुल किसी दैत्य वाली हंसी के साथ)… लेकिन क्या करे हमारे जीने का जायका भी वही है।


उज्जवल:- हां सही कह रही है मीनाक्षी, लेकिन मनीषा की बात सच भी तो हो सकती है। आर्यमणि ने अपने 3 दोस्तों को पूरा आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट का हिस्सेदार बनाया। चित्रा और माधव 2 ऐसे नाम थे जिन्होंने काबुल किया की उन्हे आर्यमणि ने हिस्सेदार बनाया था, यदि ये संपत्ति प्रहरी की है तो हम वापस कर देंगे। जबकि वहीं आर्यमणि के जिगरी दोस्त का कहना था कि "फैक्ट्री का वो कानूनन मालिक है और किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नही। आप जो अपना काम कर रहे है उसे कीजिये और मुझे अपना काम करने दीजिये।"


जयदेव:– हम्मम!!! ठीक है आग लगा दो उसके प्रोजेक्ट में। जहां–जहां से अप्रूवल मिलना है, हर जगह रोड़ा डाल दो और साथ में अपने लीगल डिपार्टमेंट को एक फर्जीवाड़ा का केस भी कहो करने। अक्षरा निशांत रिश्ते तुम्हारा भांजा लगता है, जैसा की आर्यमणि मीनाक्षी का था। इसलिए निशांत तुम्हारी जिम्मेदारी। यदि जरा भी भनक लगे की निशांत को प्रहरी में दिखने वाले आम करप्शन से ऊपर का कोई शक है, इस बार कोई रहम नहीं। आर्यमणि और उस माल गायब करने वालों को ढूंढने गयी टीम ने क्या इनफार्मेशन दी, वो बताओ कोई?


तेजस:- "हॉलीवुड फिल्में कुछ ज्यादा देखते है दोनो पक्ष। नागपुर–जबलपुर हाईवे पर 2 स्पोर्ट्स कार में 3 लोग निकले थे। लेकिन जंगल में पाये पाऊं के निशान और भागने के मिले सबूत से वो 5 लोग थे, जिनमें से 2 को कोई नहीं जानता। जबलपुर से एक चार्टर प्लेन 5 लोगो को लेकर दिल्ली निकली, एक चार्टर प्लेन बंगलौर, और एक चार्टर प्लेन मुंबई। ऐसे करके 7 जगहों के लिये चार्टर प्लेन उड़ान भरी थी। इन सभी जगहों के एयरपोर्ट से डायरेक्ट इंटरनेशनल फ्लाइट जाती है। हमने वहां के बुकिंग चेक करवाई। यहां से कन्फ्यूजन शुरू हो गया। सभी एयरपोर्ट पर कल से लेकर आज तक 5 लोगों के 4 ग्रुप सीसी टीवी से अपनी पहचान छिपाकर, 4 अलग-अलग देश गये। किसी भी जगह से आर्य, रूही या अलबेली के नाम का पासपोर्ट इस्तमाल नही हुआ।"

"वहीं जिसने अपना सामान चोरी किया उसकी सूचना तो पहले से ही थी। और जैसा तुमने आशंका जताया था जयदेव वही हुआ। सिवनी से जितने भी वैन निकले थे सब में फर्जी बुकिंग थी, लेकिन एक बड़ा सा लोड ट्रक के टायर के निशान वोल्वो के आस–पास से मिले थे, जो बालाघाट के रास्ते गोंदिया पहुंची। यहां तो और भी कमाल हो गया था। ट्रक चोरी की थी और उसका ड्राइवर.. ये सबसे ज्यादा इंट्रेस्टिंग पार्ट है। उस ड्राइवर को ट्रक पहुंचाने के 10 हजार रूपये मिले थे। ट्रक में एक भी समान नही। कोई चास्मादित गवाह नही और ना ही वहां पर कोई सीसी टीवी फुटेज थी, जिस से यह पता चले की उस ट्रक से कुछ अनलोड भी किया गया था।"


जयदेव:– इसी ट्रक पर अपना सारा माल था। सब लोग इस ट्रक के पीछे पड़ जाओ। पूरी तहकीकात करो अपना खोया माल मिल जायेगा। तेजस तुम नित्या और उसकी टीम को आर्यमणि के पीछे लगाओ। हमें अपने समान के साथ उनकी जान भी चाहिए जो हमारा कीमती सामान ले जाने की जुर्रत कर बैठे।


तेजस:- हम्मम ! ठीक है।


उज्जवल:– सेकंड लाइन सुपीरियर टीम का 1 शिकारी आर्यमणि के पैक पर भारी पड़ेगा यहां तो पूरी टीम के साथ नित्या को पीछे भेज दिया है, तो अब चिंता की बात ही नहीं। यदि नित्या आर्यमणि को नहीं भी मार पाती है तो भी किताब तो ले ही आयेगी। सरदार खान मारा गया सो अब नागपुर में रहने का भी कोई मतलब नहीं निकलता। भूमि और उसके उत्तराधिकारी को बधाई संदेश देते चलो।"


जयदेव:- पूर्णिमा की रात के एक्शन के कारण आम प्रहरी तो आर्यमणि के फैन हो गये है। प्रहरी की आम मीटिंग में आर्यमणि को क्लीन चिट के साथ धन्यवाद संदेश भी देते जाओ। अब से हाई टेबल सीक्रेट प्रहरी मुख्यालय मुंबई होगा। मीनाक्षी और अक्षरा की जिमेमदरी है यहां से सारी काम कि चीजों को मुंबई पहुंचाना।


मीनाक्षी:- हम्मम ! हो जायेगा। सभा समाप्त करते है। …


3 दिन बाद सतपुड़ा के घने जंगलों में तेजस ने जमीन पर एक कतरा अपने खून का गिराया और "हिश्श्श्ष्ष्ष्ष्शश" की गहरी आवाज़ अपने मुंह से निकाला। अचानक ही वहां के हवा का मिजाज बदलना शुरू हो गया और जबतक तेजस कुछ भांप पता उसके गले पर चाकू लग चुका था।


तेजस के कान के पास लहराती सी आवाज गूंजी…. "हमारी याद कैसे तुम्हे यहां तक खींच लायी।"..


तेजस उसका हाथ पकड़कर प्यार से किनारे करते, सामने खड़ी औरत को ऊपर से लेकर नीचे तक देखते हुए…. "आज भी उतनी ही मादक अदाएं है।"..


बाल रूखे, चेहरा झुलसा हुआ, और बदन के कपड़े मैले। शरीर के ऊपर की हड्डियां तक गिनती की जा सकती थी… "लगता है मेरी सजा माफ़ कर दी गयी है।"


तेजस:- हां तुम्हारी सजा माफ हो चुकी है । एक लड़का है आर्यमणि वो अनंत कीर्ति के पुस्तक को लेकर भाग गया है। उसके पीछे जाना है।


नित्या एक मज़ेदार अंगड़ाई लेती… "आह जंगल से बाहर निकलने का वक़्त आ गया है, चले"…


तेजस:- हां बिल्कुल…


प्रहरी की आम मीटिंग से ठीक पहले सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी टीम के 5 शिकारी के साथ नित्या अपने खोज पर जा चुकी थी। नित्या भी सुकेश, उज्जवल और देवगिरी की तरह ही एक सीक्रेट प्रहरी थी जो अपने पिछली गलती की सजा भुगत रही थी। एक लंबा अरसा हो गया था उसे सतपुड़ा के घने जंगलों में विचरते हुए। जितना दूर जंगल का इलाका, वही उसकी सीमा। मन ही मन वो आर्यमणि को धन्यवाद कह रही थी, जिसके किये ने उसे जंगल के जेल से बाहर निकालकर आज़ाद कर दिया था।


प्रहरी की आम मीटिंग में इस बार भी आर्यमणि का नाम गूंजता रहा। शहर को बड़े संकट से निकालने के लिये उसे धन्यवाद कहा गया साथ में उससे हुई छोटी सी नादानी, अंनत कीर्ति की पुस्तक को साथ ले जाना, उसका कहीं ना कहीं दोषी पलक को बताया गया।


पलक की मनसा साफ तो थी लेकिन उससे गलती हुई जिसकी सजा ये थी कि वो नाशिक प्रहरी इकाई में अस्थाई सदस्य की भूमिका निभाएगी और वहीं से प्रहरी के आगे का अपना सफर शुरू करेगी। इसी के साथ पलक के इल्ज़ाम सही थे जो हसने उच्च सभा में लगाए थे। 22 में से 20 उच्च प्रहरी दोषी पाये गये और सरदार खान जैसे बीस्ट अल्फा को खत्म किया जा चुका था।


नागपुर इकाई मजबूत थी और हमेशा ये अच्छे प्रहरी को सामने लेकर आयी है। इसलिए नागपुर की स्थायी सदस्य नम्रता को नागपुर इकाई का मुखिया घोषित किया जाता है। मीटिंग समाप्त होने तक राजदीप ने कई बड़े अनाउंसेंट कर दिये, उसी के साथ सबको ये भी बताते चला कि उसका ट्रांसफर अब नागपुर से मुंबई हो चुका है, इसलिए उसे नागपुर छोड़ना होगा।…


नागपुर में बीस्ट अल्फा ना होने से क्या-क्या बदलाव आ रहे थे, भूमि इसी बात की समीक्षा में लगी हुई थी। हाई टेबल प्रहरी जिनका मुख्यालय पहले नागपुर था और उन्हें कहीं और जाने की ज़रूरत नही थी, उनके लिये महीने में अब 2–3 बार बाहर जाना आम बात हो गयी थी। भूमि अपने ससुराल में बैठकर आराम से सभी गतिविधियों पर नजर बनायी हुई थी। हालांकि सुकेश, मीनाक्षी और जयदेव बातों के दौरान भूमि अथवा जया से आर्यमणि के विषय में जानने के लिये इच्छुक दिखते लेकिन इन्हें भी आर्यमणि के विषय में पता हो तब ना कुछ बताये।


इधर अचानक ही अपनी मासी का प्यारा निशांत के लिये काफी बढ़ गया था। वह निशांत को बिठाकर एक ही बात पूछा करती थी, "उसे आर्म्स एंड एम्यूनेशन" प्रोजेक्ट से क्या लालच है? क्यों वह प्रहरी से दुश्मनी लेने के लिये तैयार है? क्या इसके पीछे की वजह आर्यमणि है, जो जाने से पहले कुछ बताकर गया था?"


निशांत को अक्षरा की बातें जैसे समझ में ही नही आती थी। हर बार वह अक्षरा को एक ही जवाब देता... "उन्हे बिजनेस और प्रोजेक्ट की कोई समझ ही नही। और जिन मामलों को वो समझती नही, उसके लिये क्यों इतनी खोज–पूछ कर रही।"


पलक के लिये विरहा के दिन आ गये थे। जिस कमरे में उसने अपना पहला संभोग किया। जिस कॉलेज में वो आर्यमणि से मिलती थी। जिस शॉपिंग मॉल में वो आर्यमणि के साथ शॉपिंग के लिये जाया करती थी। जिस कार के अंदर उसने आर्यमणि के साथ काम–लीला में लिप्त हुई। पलक को हर उस जगह से नफरत सी हो गयी थी, जहां भी आर्यमणि की याद बसी थी। आर्यमणि के जाने के 10 दिन के अंदर ही पलक भी नागपुर शहर छोड़ चुकी थी और नाशिक पहुंच गयी, जहां उसकी ट्रेनिंग शुरू होती। नाशिक में प्रहरी के सीक्रेट बॉडी का अपना एक बड़ा सा ट्रेनिंग सेंटर था जो किसी के जानकारी में नही था।


चित्रा एक आम सी लड़की जो रोज ही अपने कॉलेज के कैंटीन में अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ बैठती और खाली टेबल को देखकर मायूस सी हो जाती। माधव यूं तो चित्रा को उसके गुमसुम पलों से उबारने की कोशिश करता लेकिन फिर भी चित्रा के नजरों के सामने खाली कुर्सी खटक जाती जो कभी दोस्तों से भरी होती थी।


एक–एक दिन करके वक्त काफी तेजी से गुजर रहा था। नित्या को काम पर लगा तो दिया गया था, लेकिन इस गरीब दुख्यारी का क्या दोष जिसे कोई यह नहीं बता पा रहा था कि आर्यमणि को ढूंढना कहां से शुरू करे। पूरा सीक्रेट बॉडी ही उसके ऊपर राशन पानी लेकर चढ़ा रहता और एक ही बात कहते.… "तुम्हे आजाद ही इसलिए किया गया है ताकि तुम पता लगा सको। यदि अब पता लगाने वाले गुण तुमसे दूर हो चुके है, फिर तो तुम्हे हम वापस जंगल भेज देते है।"… बेचारी नित्या के लिये काटो तो खून न निकले वाली परिस्थिति थी। हां एक तेजस ही था, जो नित्या पर किसी और चीज से चढ़ा रहता था। बस यही इकलौता सुकून और सुख वह जंगल से निकलने के बाद भोग रही थी।


एक ओर आर्यमणि तो दूसरी ओर वो समान चोर, दोनो मिल न रहे थे, ऊपर से सीक्रेट बॉडी प्रहरी की मुसीबत समाप्त नही हो रही थी। आर्म्स & एम्यूनेशन प्रोजेक्ट में ऐड़ी चोटी का जोड़ लगा दिये। निशांत की कंपनी "अस्त्र लिमिटेड" को कोर्ट का नोटिस मिला, जहां बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच में सुनवाई होनी थी। "अस्त्र लिमिटेड" पर पैसे की धोकेधरी पर इल्ज़ाम लगा था। "अस्त्र लिमिटेड" के ओर से निशांत अपने वकील के साथ कोर्ट में हाजिर हुआ और जो ही उसने सामने वाले वकील की धज्जियां उड़ाया।


पैसों के जिस धोकाधरी का आरोप "अस्त्र लिमिटेड" पर लगा था, उसके बचाव में निशांत के वकील ने वह एग्रीमेंट कोर्ट को पेश कर दिया, जिसमे साफ लिखा था कि.…. "आर्यमणि के आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट देश के सशक्तिकरण वाला प्रोजेक्ट है। बिना किसी भी आर्थिक लाभ के अपना सारा पैसा "अस्त्र लिमिटेड" के प्रोजेक्ट में लगाते है। "अस्त्र लिमिटेड" कंपनी जब कर्ज लिये पैसे के 10 गुणी बड़ी हो जाये तो फिर वो 10 चरण में पैसे की वापसी प्रक्रिया पूरी कर सकते है। और यदि प्रोजेक्ट कहीं असफल रहता है, तब उस परिस्थिति में सारा नुकसान हमारा होगा।"


विपक्ष के वकील ने उस पूरे एग्रीमेंट को ही फर्जी घोषित कर दिया। निशांत के वकील ने जिस एग्रीमेंट को पेश किया था, उस एग्रीमेंट को महाराष्ट्र के सरकारी विभाग द्वारा पूरा लेखा–जोखा ही बदल दिया गया था। विपक्ष के वकील सुनिश्चित थे, इसलिए निशांत से उसके डॉक्यूमेंट की विश्वसनीयता साबित करने के लिये कहा गया। देवगिरी पाठक, महाराष्ट्र का डेप्युटी सीएम... पूरा सरकारी विभाग ही पूर्ण रूप से मैनेज किया था, सिवाय एक छोटी सी भूल के, जिसके ओर शायद ध्यान न गया।


पैसों के लेखा जोखा में देवगिरी की कंपनी ने जो हिसाब दिखाया था उसमे "अस्त्र लिमिटेड" को दिये पैसे का जिक्र था। इसके अलावा देवगिरी की कंपनी के 40% के मेजर हिस्सेदार आर्यमणि द्वारा दिया गया ऑफिशियल लेटर जिसमे "अस्त्र लिमिटेड" को कब और कितने पैसे किस उद्देश्य से दिये उसकी पूरी डिटेल थी। लेन–देन का यह रिकॉर्ड बैंक से लेकर आईटी डिपार्मेंट तक में जमा करवायि गयी थी।


प्रहरी के ओर से केस लड़ने गया नामी वकील खुद को हारते देख, तबियत खराब का बहाना करके दूसरा डेट लेने की सोच रहा था। नागपुर की बेंच शायद राजी भी हो गयी होती लेकिन तभी निशांत के वकील ने सुप्रीम कोर्ट का एक दस्तावेज पेश किया.… "अस्त्र लिमिटेड के प्रोजेक्ट को बंद करवाने के लिये महाराष्ट्र के कई सरकारी और गैर–सरकारी विभाग ने सेंट्रल को कई सारे दस्तावेज भेजे और तुरंत प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों को हिरासत में लेने की मांग कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के फाइनल वर्डिक्ट में यह साफ लिखा था कि एक अच्छे प्रोजेक्ट को सभी अप्रूवल के बाद बंद करवाने की पूरी साजिश रची गयी थी। कोर्ट सभी अर्जी को गलत मानते हुये सभी याचिकाकर्ता की निष्पक्ष जांच करे।"


उस दस्तावेज को पेश करने के बाद निशांत के वकील ने जज से साफ कह दिया की पहले भी कंपनी के ऊपर महाराष्ट्र सरकार के कुछ विभागो की साजिश साफ उजागर हुई है। आज भी जब मामला हमारे पक्ष में है तब अचानक से विपक्ष के वकील की तबीयत खराब हो गयी है। मुझे डर है कि अगली तारीख के आने से पहले सबूतों के साथ छेड़–छाड़ होने की पूरी आशंका है, इसलिए अब यह केस नागपुर ज्यूरिडिक्शन के बाहर बहस किया जाना चाहिए। यदि हमारी अर्जी आपको मंजूर नहीं फिर हम फैसले का बिना इंतजार किये सुप्रीम कोर्ट जायेंगे।


निशांत के वकील को सुनने के बाद तो नागपुर बेंच ने जैसे विपक्ष के वकील को झटका दे दिया है और उसके तबियत खराब होने की परिस्थिति में किसी दूसरे वकील को तुरंत प्रतिनिधित्व के लिये भेजने बोल दिया। प्रहरी को काटो तो खून न निकले। देश के जितने बड़े वकील को उन लोगों ने केस के लिये बुलाया था, निशांत का वकील तो उसका भी गुरु निकला। दिल्ली के इस नामी वकील को निशांत ने नही बल्कि संन्यासी शिवम द्वारा नियुक्त किया गया था।


निशांत ने महज महीने दिन में ही आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट से पार पा लिया था। निशांत अपनी इस जीत के बाद प्रोजेक्ट का सारा काम चित्रा और माधव को सौंपकर कुछ महीनों के लिये वर्ल्ड टूर पर निकल गया। हालांकि वह हिमालय जा रहा था लेकिन दिखाने के लिये उसका पासपोर्ट यूरोप के विभिन्न देशों में भ्रमण कर रहा था। वहीं चित्रा और माधव प्रोजेक्ट के काम के कारण और भी ज्यादा करीब आ गये। हां इस बीच प्रोजेक्ट का काम करते हुये पहली बार चित्रा को माधव का पूरा नाम पता चला था, "अनके माधव सिंह"।


चित्रा, माधव को चिढाती हुयि उसके पहले नाम को लेकर छेड़ती रही। हालांकि माधव कहता रह गया "अनके" का अर्थ "कृपा" होता है। अर्थ तो अच्छा ही था लेकिन चित्रा इसे छिपाने के पीछे का कारण जानना चाहती थी। अंत में चित्रा जब नही मानी तब माधव को बताना ही पड़ा की "अनके" उसकी मां का नाम है और उसके बाबूजी ने उसके नाम के पहले उसकी मां का नाम जोड़ दिया, ताकि कभी वो अपनी मां से अलग ना मेहसूस करे।


इस बात को जानने के बाद तो जैसे चित्रा का गुस्सा अपने चरम पर। आखिर जब इतने प्यार से उसके बाबूजी ने उसका नाम रखा, फिर अभी से अपनी मां का नाम अलग कर दिया। जबकि अनके सुनने में ऐसा भी नही लगता की किसी स्त्री का नाम हो। बहस का दौर चला जहां माधव भी सही था। क्या बताता वो लोगों को, उसका नाम "अनके माधव सिंह" है और उसकी मां का नाम "अनके सिंह"। चित्रा भी अड़ी थी…. "मां का नाम कौन पूछता है? परिचय में भी कोई मां का नाम पूछने पर ही बताता है? ऐसे में जब लोग जानते की मां का नाम पहले आया है तो कितना इंस्पायरिंग होता।"


बहस का दौड़ चलता रहा और कुछ दिन के झगड़े के बाद दोनो ही मध्यस्ता पर पहुंचे जहां माधव अपने पिताजी की भावना का सम्मान रखते खुद का परिचय सबसे एंकी के रूप में करेगा और पूरा नाम "अनके माधव" बतायेगा, न की केवल माधव। खैर दोनो के विचार और आपस का प्यार भी अनूठा ही था। जैसे हर प्रेमी अपने प्रियसी की बात मानकर "कुत्ता और कमिना" नाम तक को प्यार से स्वीकार कर लेते है। ठीक वैसे ही अपना नया नाम माधव ने भी स्वीकार किया था और अब बड़े गर्व से खुद का परिचय एंकी के रूप में करवाता था।


सीक्रेट बॉडी प्रहरी में आग लगाने के बाद सबकी जिंदगी जैसे चुस्त, दुरुस्त और तंदुरुस्त हो गयी थी। जया और भूमि दुनियादारी को छोड़कर दिन भर आने वाले बच्चे में ही लगी रहती। नम्रता के पास नागपुर प्रहरी की कमान आते ही ठीक वैसा हो रहा था जैसा भूमि चाहती थी। बिलकुल साफ और सच्चे प्रहरी। फिर तो पूरे नागपुर में नम्रता ने ऐसा दबदबा बनाया की प्रहरी के दूसरे इकाई के शिकारी नागपुर आने से पहले १०० बार सोचते... "नागपुर गया तो कहीं बिजली मेरे ऊपर न गिर जाये। हर बईमान प्रहरी नागपुर से साफ कतराने लगा हो जैसे।


नागपुर की घटना को पूरा 45 दिन हो चुके थे। प्रहरी आर्यमणि और संग्रहालय चोर को ढूंढने में ऐड़ी चोटी का जोड़ लगा दिये लेकिन नतीजा कुछ नही निकला। एशिया, यूरोप, से लेकर अमेरिका तक सभी जगह आर्यमणि और संग्रहालय के सामानों की तलाश जारी थी। लोकल पुलिस से लेकर गुंडे तक तलाश रहे थे। हर किसी के पास आर्यमणि, रूही और अलबेली की तस्वीर थी। इसके अलावा संग्रहालय से निकले कुछ अजीब सामानों की तस्वीर भी वितरित की जा चुकी थी। और इन्हे ढूंढकर पकड़ने वालों की इनामी राशि 1 मिलियन यूएसडी थी। सभी पागलों की तरह तलाश कर रहे थे।


लोग इन्हें जमीन पर तलाश कर रहे थे और आर्यमणि.… वह तो गहरे नीले समुद्र के बीच अपने सर पर हाथ रखे उस दिन को झक रहा था जब वह नागपुर से सबको लेकर निकला.…
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धरती के बोझ बारह सीक्रेट प्रहरियों मे कुछ नामो का खुलासा हुआ और कुछ का होना अभी बाकी है। इन्ही लोगो ने पुरे तालाब को गंदा कर रखा है।
सुकेस, मिनाक्षी, तेजस, जयदेव, उज्जवल, राजदीप, अक्षरा, मुक्ता की मम्मी और देवगिरी पाठक नौ लोगों के चेहरे से नकाब हट चुका है। लेकिन अभी भी तीन बाकी है।

इनमे अधिकतर सगे सम्बन्धी ही है और शर्म - हया , लाज - लिहाज , मान - सम्मान सब चीजो को ताक पर रखकर राक्षसी प्रवृति को ही अपना धर्म मान लिया है। कलयुगी राक्षस।
" जब जब होई धर्म की हानि
बाढ़हि असुर अधम अभिमानी "
आर्य का जन्म ही इन दैत्यों के संहार के लिए हुआ है। बारह दैत्य राज के साथ साथ उनके दानवी सेनाओं को भी यमलोक पहुंचाने के लिए हुआ है।

प्रहरी के यह ग्रूप फिलहाल अपनी पहली हार पचा नही पा रहे है और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की बौछार करने पर उतारू हो गए है। पत्नि अपने पति को खुलेआम जान से मार देने की मनसा जता रही है तो दामाद अपने ससुर को उनके नाम से ही सम्बोधित करते हुए अपमान पर अपमान किए जा रहा है।
क्या ही राक्षसी संस्कार है इन प्रथम श्रेणी के प्रहरियों की !

आर्य ने अपने प्लानिंग से लाजवाब कर दिया हमे। लेकिन पलक के लिए थोड़ी संवेदना अभी भी है मेरे दिल मे। उसे एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया गया। उसके अपने रिश्तेदार ने उसे भ्रमित करने का काम किया। आर्य के साथ वो जो कुछ भी की उसके पीछे उसके खुद का दिमाग नही था। और जहां तक मुझे लगता है आर्य ने भी अपने प्लान को सक्सेस करने के लिए पलक का इस्तेमाल किया था।
इस पुरे खेल मे सबसे ज्यादा कोई आहत हुआ है तो वो पलक ही है।

नित्या एक बार फिर मैदान मे आ खड़ी हुई है और वो भी आठ सेकेंड क्लास के दक्ष प्रहरी सैनिकों के साथ। इस युद्ध का तो बेसब्री से इंतजार रहेगा।

खुबसूरत अपडेट और खुबसूरत प्रस्तुतीकरण नैन भाई।
Outstanding & Amazing & brilliant.
 

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भाग:–60





नाशिक रात के लगभग 12 से 12.10 बजे के बीच जब पलक के भाई राजदीप के सुहागरात स्वीट की घटना प्रकाश में आयी, पलक का दिमाग शन्न हो गया और उसे धोके की बू आने लगी। पलक समझ चुकी थी, जिस सुहागरात कि सेज को आर्यमणि ने अपना बताया था, दरअसल वो जान बुझकर उसे यहां लेकर आया था। पलक के दिमाग में एक के बाद एक तस्वीर बनती जा रही थी। जिसमें आर्यमणि के साजिश और झूठ का एहसास पलक को होता जा रहा था।


आर्यमणि के ऊपर शक की सुई तो इस बात से ही अटक गयी की वो जान बूझकर मुझे फर्स्ट नाईट में शॉक्ड देने वाला था और पलक को रह-रह कर ये ख्याल आता रहा.. "भाई की सुहागरात कि सेज पर मुझे ही इस्तमाल कर लिया।".. गुस्सा अपने सातवे आसमान पर था लेकिन पलक किसी से अपना गुस्सा कह भी नहीं सकती थी।


धोखा हो चुका था और पलक को समझ में आ चुका था कि आर्यमणि अब नागपुर में नहीं रुकने वाला, कहीं गायब हो रहा होगा। पलक कुछ कर नहीं सकती थी, क्योंकि उसे शक किस बात पर हुआ यह कैसे बताती। 10 मिनट के बाद पलक को बताने की एक कड़ी मिली जब सिग्नल जैमर का किस्सा सामने आया। और एक बार सिग्नल जैमर का किस्सा सामने आया, तब तो पलक का दिमाग और भी ज्यादा घूम गया। क्योंकि बहुत सी योजना के लिये जरूरी दिशा निर्देश तो आर्यमणि के नागपुर पहुंचने और अनंत कीर्ति के पुस्तक खुलने के बाद की थी।


रात के तकरीबन साढ़े 12 बजे पलक के गाल पर तमाचा पड़ा, जिसे देखकर जया, केशव और भूमि अपने भाव जाहिर करते, उसके लिए मुस्कुराकर अफ़सोस कर रहे थे। थप्पड़ पड़ने के कुछ देर बाद पलक ने आर्यमणि को कॉल लगाया और दोनो के बीच एक लंबे बात चित के बाद….


सुकेश:- पलक को कुछ कहने से पहले हमे खुद में भी समीक्षा करनी चाहिए... आर्यमणि अपनी इमेज साफ करके नागपुर से गया है। हम जैसों से धोका हो गया फिर तो पलक की ट्रेनिंग पीरियड है। इस से पहले की वो हमारी पकड़ से बाहर निकले, चारो ओर लोग लगा दो।


उज्जवल:- प्लेन रनवे पर खड़ी हो गयी है, हमे नागपुर चलना चाहिए।


दूल्हा और दुल्हन के साथ कुछ लोगों को छोड़कर सब लोग देर रात नागपुर पहुंचे। रात के 1 बजे तक चारो ओर लोग फैल चुके थे। आर्यमणि को उसके पैक के साथ जबलपुर हाईवे पर देखा गया था, इसलिए रात के २ बजे तक जबलपुर के चप्पे–चप्पे पर पुलिस को ही, तीनो आर्यमणि, रूही और अलबेली को ढूंढने के काम पर लगा दिया गया था। सीक्रेट प्रहरी को ओजल और इवान के विषय में भनक भी नही थी। और शायद इसी दिन के लिये ओजल और इवान की पहचान छिपाकर रखी गयी थी।


२ बिगड़ैल टीनेजर स्पोर्ट कार को उड़ाते हुये जबलपुर में दाखिल हुये। जबलपुर सीमा के पास आर्यमणि, रूही और अलबेली उतर गये। तीनों ही दौड़ लगाते जबलपुर के एक छोटे से प्राइवेट रनवे पर खड़े थे। पीछे से ओजल और इवान भी उसके पास पहुंच गये। उस प्राइवेट रनवे से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलौर, हैदराबाद, चेन्नई और केरल के लिये 7 प्राइवेट प्लेन ने उड़ान भरा। कुछ ही घंटो में पूरा अल्फा पैक कोचीन के डॉकयार्ड पर था। एक मालवाहक बड़ी सी शिप खड़ी थी जिसके अंदर तीनो अपना डेरा जमा चुके थे। लगभग 45 घंटे बाद सुकेश के घर से लूटे समान के साथ पूरा वुल्फ पैक विदेश यात्रा पर रवाना हो चुके थे।


जबलपुर पुलिस उस रात आर्यमणि, रूही और अलबेली को ढूंढते रहे, लेकिन जिन ३ लोगों के ढूंढने का फरमान जारी हुआ था, पुलिस को उनके निशान तक नही मिले। नाशिक से रात के तकरीबन 2.30 बजे सभी लोग नागपुर एयरपोर्ट पर लैंड कर चुके थे। भूमि, जया और केशव को मीनाक्षी ने भूमि के ससुराल ही भेज दिया। राकेश नाईक, जो न जाने कबसे आर्यमणि और उसके परिवार की जासूसी करते आया था, उसे जब सुकेश ने किनारा करते उसके घर भेज दिया, तब बेचारे का दिल ही टूट गया। उसे लगा "इतने साल तक इन लोगों के करीब रहा लेकिन आज मुझे किनारे कर दिया"…


खैर पारिवारिक कहानी को इस वक्त बहुत ज्यादा तावोज्जो देने की हालत में सीक्रेट बॉडी नही थे। वो लोग तो रास्ते से ही अपने हर आदमी से संपर्क कर रहे थे। हर पूछ–ताछ में एक खबर सुनने को आतुर... "आर्यमणि मिला क्या?" जिसका जवाब किसी के पास नही था। सिर पकड़कर बैठने की नौबत तब आ गयी, जब सुकेश अपने घर पहुंचा। पूरा संग्रहालय को ही खाली कर दिया गया था। सुकेश ही अकेला नहीं, बल्कि पूरा सीक्रेट प्रहरी ही बिलबिला गया। अनंत कीर्ति की किताब जितनी जरूरी थी, उस से कहीं ज्यादा जरूरी और बेशकीमती खजाना लूट चुका था।


इनके सैकड़ों वर्षों की मेहनत जैसे लूटकर ले गये थे। तकरीबन 12 सीक्रेट बॉडी प्रहरी सुकेश के घर पर थे और सभी सुकेश का गला दबाकर उसे हवा में लटकाये थे। सबका एक ही बात कहना था, "सुकेश और उज्जवल भारद्वाज ने जो भी सुरक्षा इंतजामात किये वो फिसड्डी साबित हुये।" आर्यमणि उसकी सोच से एक कदम आगे निकला जिसने न सिर्फ अनंत कीर्ति की किताब बल्कि घर से उन कीमती सामानों की लूट ले गया, जिनके जाने से कलेजे में इतनी आग लगी थी कि सुकेश को जान से मारने पर ही तुले थे। सबसे आगे तो अक्षरा ही थी।


जयदेव, बीच बचाव करते.… "आपस में लड़ने का वक्त नहीं है। किनारे हटो।"


सुकेश की पत्नी मीनाक्षी भारद्वाज... "चुतिये को मार ही डालो। मैं कहती रह गयी की ये लड़का आर्यमणि रहश्यमयी है। थर्ड लाइन या सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी ही क्यों... अपनी एक टीम के साथ रुकते है। लेकिन इस चुतिये से बड़ी–बड़ी बातें बनवा लो।"


अक्षरा:– सही कहा मीनाक्षी ने। क्या कहा था इसने... एक तरफ अनंत कीर्ति की किताब खुलेगी, दूसरे ओर इसे सरदार खान के इलाके में मरने भेज देंगे। वहां से बच गया तो थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी इनका इंतजार कर रहे होगे। हरामि ने एक बार भी नही सोचा की कहीं ये लड़का हमारे सारे इंतजाम भेद देगा तब।


तेजस:– ये कैसा इंतजाम किये थे। अनंत कीर्ति की पुस्तक कब गायब हुयि, संताराम जैसे सेकंड लाइन शिकारी की टुकड़ी को पता न चला। इसका मतलब समझते हो। तुम तभी आर्यमणि से हार गये जब उसने किताब को यहां से हटाकर अपनी जगह पर रखा। उसकी जगह पर उसके इंतजाम थे। नाक के नीचे से वो किताब ले गया। अपनी जगह से किताब को तो हटाये ही, साथ में सांताराम और उसकी पूरी टीम को भी हटा दिये। आर्यमणि अपनी जगह के साथ–साथ तुम्हारे जगह में भी सेंध लगा गया।


जयदेव:– पूरी रिपोर्ट आ गयी है। इस घर में चोरी आर्यमणि ने नही बल्कि स्वामी और उसके लोगों ने किया था। यहां सीसी टीवी कॉम्प्रोमाइज्ड हुआ था, लेकिन वो गधा भूल गया की रास्ते में कयि सीसी टीवी लगे थे। आर्यमणि कभी नही भाग पता। अनजाने में स्वामी ने उसकी मदद की है।


सभी 11 सीक्रेट बॉडी के सदस्य टुकटुकी लगाये एक साथ.… "कैसे"


जयदेव:– क्योंकि वो स्वामी था, जो थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी से लड़ा और सभी 8 को गायब कर दिया।


सुकेश:– क्या स्वामी???


जयदेव:– हां स्वामी... उसकी यादों को खंगाला गया। वह जादूगर महान की दंश के सहारे अपने सभी थर्ड लाइन शिकारी को हराया। और जब यह लड़ाई चल रही थी तब उसका एक आदमी वोल्वो चुराकर भाग गया। वोल्वो हमारे कब्जे में है, लेकिन उसके अंदर का समान कहीं गायब है।


सुकेश:– चमरी खींच लो और उनसे समान का पता उगलवाओ...


जयदेव:– पता... हां ये सबसे ज्यादा रोचक है। जो आदमी वोल्वो और समान लेकर भागा उसने 40 लाख रूपये में वोल्वो और उसके अंदर के समान का सौदा कर लिया। वो 40 लाख रूपये लेकर गायब। जिससे उसने सौदा किया उसने वोल्वो को 20 लाख रूपये में बेच दिया और अंदर का समान लेकर गायब।


सुकेश:– हां तो जो समान लेकर गायब हुआ, उस आदमी को पकड़ा या नही।


जयदेव:– शायद उसे पता था कि माल चोरी का था। उसने कयि वैन छोटी सी जगह सिवनी से बुक किये। हर वैन में समान लोड किया गया। नागपुर, जबलपुर, तुमसर, बरघाट, छिंदवाड़ा, बालाघाट, पेंच नेशनल पार्क और ऐसे छोटे–बड़े हर जगह मिलाकर 30 पार्सल वैन भिजवाया। अब तक 10 वैन मिले जिनमे रद्दी के अलावा कोई चीज नहीं मिली। बाकी के 20 वैन भी ट्रेस हो जायेंगे, लेकिन मुझे नही लगता की उनमें भी कुछ मिलने वाला है।


उज्जवल अपने माथे पर हाथ पीटते.… "साला ये किस मकड़जाल में फसे है। उस वर्धराज के पोते को ढूंढे या फिर अपने समान को, जो उस स्वामी की वजह से लापता हो गया। मेरे खून की प्यास बढ़ती जा रही है। सबसे पहले इस कम अक्ल सुकेश को मेरे नजरों के सामने से हटाओ, जिसे हर समय लगता है कि हर योजना इसके हिसाब से चल रहा। और वो चुतीया देवगिरी कहां है, जिसने स्वामी को नागपुर भेजा। क्या हमारी लंका लगाने ही भेजे थे। एक वो हरामजदा वर्धराज का पोता कम था जिसने रीछ स्त्री वाला काम खराब कर दिया जो ये दूसरा पहुंच गया।"


सुकेश:– मैं अपनी गलती की जिम्मेदारी लेता हूं। आज से तुम लोगों जिसे मुखिया चुन लो वो मेरा भी मुखिया होगा।


सभी सदस्य एक साथ.… "जयदेव ही हमारा मुखिया होगा। जयदेव तुम ही कहो"…


जयदेव:– "8 सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी गायब हो गये। हमारे पास 40 अभी लाइन अप लोग है। पुणे में सबके ट्रेनिंग की वयवस्था पहले होगी। 80 थर्ड लाइन को सेकंड लाइन की ट्रेनिंग के लिये भेजना होगा। और बाकियों को मुख्य धारा में लेकर आना होगा, ताकि वो हमारे तौर तरीके और सभ्यता को पूर्ण रूप से समझ सके।"

"आर्यमणि के पीछे नित्या के साथ उसकी पूरी टुकड़ी को लगाओ। आज के बाद नित्या की सजा माफ की जा रही है। तेजस, नित्या से बात करने तुम ही जाओगे। बाकी एक और दिमाग वाला ये कौन था, जो हमारा माल लूटकर ले गया। उसकी तलाश यहां हम सब करेंगे। वैसे यदि कुछ सामान का वो लोग इस्तमाल करे तब तो उसे पकड़ने में काफी आसानी हो जायेगी, वर्ना ढूढना कभी बंद नही करेंगे।"

2 दिन बाद प्रहरी के सिक्रेट बॉडी की मीटिंग जिसमे 13 लोगों ने हिस्सा लिया… 12 कोर सीक्रेट मेंबर और 1 पलक, जिसे भविष्य के खिलाड़ी के रूप में तैयार किया जा रहा था। पलक के जैसे और भी कई मेंबर थे, लेकिन किसी को भी एक दूसरे के बारे में ना तो पता था और ना ही वो किसी से जाहिर कर सकते थे।


उज्जवल:- अपनी समीक्षा दो पलक…


पलक:- मैं कुछ भी समीक्षा देने की हालत में नहीं। आप लोग अपना फैसला सुना दीजिये।


सुकेश:- किसी को और कुछ कहना है..



तेजस:- "पलक हमने तुम्हे उसके पीछे लगाया, इसलिए तुम अकेली दोषी नहीं हो। पुस्तक के विषय में उसने जितनी बातें बतायि, उससे तुम्हे क्या हमे भी यकीन हो गया कि वो पुस्तक खोल लेगा। तुम्हे तो पुस्तक के अंदर के ज्ञान का इतना लालच भी नहीं था, जितना हमे था। पुस्तक को लेकर तुम जितना धोका खयि हो, हम भी उतना ही। बस एक बात बता दो, क्या तुम्हे आर्यमणि से सच में प्यार था या उसमे कोई अलौकिक शक्ति की वजह से तुम उसे अपने साथ रखकर भविष्य में आर्यमणि का इस्तमाल करती?


"प्यार में ना होती तो अपना कौमार्य एक ऐसे लड़के के हाथो भंग करती जिसे सीक्रेट प्रहरी खतरा मानते है। साले ने 2 हफ्ते का पूरा मज़ा लिया ये बात मै किसे बताऊं। उसकी तो.. इतना बड़ा छल कर गया। जान बूझकर उस सेज पर मेरे साथ सेक्स किया ताकि मैं कितनी बड़ी बेवकूफ हूं वो मुझे एहसास करवा सके। साला पुरा मज़ा लेकर भागा है।"… पलक अपने ख्यालों में थी, तभी फिर से तेजस ने पूछा…


पलक:- दोनो ही बातें थी। उसकी शक्ति का इस्तमाल करना दिमाग में तो था ही लेकिन यह भी सत्य है कि दिल से उसे चाहा था मैंने। पर क्या ये बात अब मायने रखती है?



जयदेव:- किसी के दिल टूटने का दर्द हम बांट नहीं सकते लेकिन तुम प्यार में रहकर भी हमारे लिये वफादार थी यही बहुत बड़ी बात है। पलक तुम राम शुक्ल के साथ अभी नाशिक रवाना होगी। वहां के आम प्रहरी में अपनी साख बनाओ। साथ ही साथ कल से तुम्हे वो सब मिलना शुरू हो जाएगा जिसकी तुम हकदार हो। तुम्हारी थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी की ट्रेनिंग।

पलक:– क्या मैं पूछ सकती हूं, बुरी तरह से असफल होने के बाद भी मुझे तरक्की क्यों मिल रही।

जयदेव:– क्योंकि तुम हम में से एक हो। तुम्हारी समीक्षा काफी उपयोगी है। जिंदगी का तुम्हे करीब से अनुभव भी हो चुका है। इसलिए मुझे विश्वास है कि तुम जल्द ही हमारे सभा में सामिल होगी और एक भावी लीडर बनकर उभरोगी।


पलक, जयदेव को आभार प्रकट करती वहां से बाहर निकल गयी। उसके बाहर निकलते ही… सभी लोग एक–एक करके एक ही बात कह रहे थे… "क्या पलक अब भी हमारे तौर तरीके के लायक हुई है? उसे इतनी जल्दी थर्ड लाइन की ट्रेनिंग में भेजना एक गलत फैसला हो सकता है।"


जयदेव:- शांत होकर मीटिंग आगे बढ़ाओ। मै अंत में अपनी बात रखूंगा, फिर कहना।


उज्जवल:- देव पहले ये बताओ कि किस बेवकूफ ने तुमसे कहा था 40% शेयर आर्यमणि के नाम करने।


देवगिरी:- दादा वो ताकत का भूखा स्वामी मेरे पास आया था। मुझे लगा कि वो आर्यमणि से उसकी ताकत का राज पता करने की लिये अपने साथ मिला रहा है। उसके आर्म्स एंड एम्यूनेशन फैक्ट्री को उसने इतनी तेजी से स्वीकृति दिलवाया की मैंने भी आर्य को छलावे वाला एक झुनझुना थमा बैठा। मुझे क्या पता था वो अकाउंट एसेस करेगा, वो भी शादी की रात और साला शातिर इतना है कि सिग्नल जैमर लगा रखा था। मुझे भनक तक नहीं लगने दिया और ना ही बैंक का कोई संदेश आने दिया।


मनीषा शुक्ल (मुक्ता की मां और राजदीप की सास)…. "उसके योजना में परिवार के लोग भी सामिल है। जिस तरह से उसके दोस्त ने वहां के महफिल का ध्यान खींचा, जिस तरह से वो अपने परिवार के गले लग रहा था, मुझे तो शक है वो लोग भी मिले हुये है। यदि ऐसा है तो कहीं ना कहीं परिवार के लोग भी शक के दायरे में है।


मीनाक्षी:- परिवार की बात ना करो मनीषा, क्योंकि पारिवारिक दृष्टिकोण से तो मै भी उन सबके साथ सामिल हुयि। आर्यमणि को तो मै भी बहुत चाहती हूं। हमे अफ़सोस होता है, जब नेक्स्ट जेनरेशन आता है। क्योंकि कुछ अच्छे दिल के लोगो को हम सामिल नहीं कर सकते। थोड़ा दर्द भी होता है जब वो मरते है या अपना राज बचाने के लिये उन्हें मारना पड़ता है।(बिलकुल किसी दैत्य वाली हंसी के साथ)… लेकिन क्या करे हमारे जीने का जायका भी वही है।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई नैन भाई
अच्छी गदम पटाई चल रही हैं सीक्रेट बाॅडी में
ये लोग अपने परिवार के भी सगे नहीं हैं पत्नी पति को हीं मार देते के लिए कह रहीं हैं फिर दूसरे रिश्ते नाते की तों बिसात हीं क्या
जो हूआ उसके लिए सब आर्य को दोषी मान रहे हैं
पलक को लग रहा हैं आर्य ने धोखा किया हैं
वहीं जयदेव की सुचना के मुताबिक या आर्य की चाल के मुताबिक शिकारीयों को स्वामी ने मारा और खजाना स्वामी का साथी लें उड़ा और बेच दिया अब ढ़ूढते रहों प्रहरी

वहीं अब जयदेव मुखिया हैं और पलक को दूसरी जगह भेजा जा रहा हैं थर्ड लाइन सुपिरियर शिकारी की ट्रेनिंग के लिए


आर्यमणी ने सबको अच्छा मजा चखाया
मजा आ गया नैन भाई
 
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Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Sahi hai yha nok jhok me hi sahi aapne arya ke madhyam se yah darsane ki Kosis ki hai ki Jo jis kaam me sahi hai uski vha prasansha karni chahiye, ruhi ke sence karne ki ability ko abhi Bahut practice karne ki jarurt hai vahi Albeli jiske sence Bahut hi umdha tarike se kaam karte hai, yha arya ne planning ka test bhi liya Jisme twins ne baaji Mari...

Ye dhiren swami to sukesh ka pura Ghar khali kr diya, sala sab kuchh uda laya or idhar arya ki jholi me gira, arya ne jitna bhi swami ke dimag me tha Sara hi apne dimag me utar liya or apni yade mita kr bhumi Di ke liye bhi kuchh kiya hai, ab dekhte hai aage akhir vo kyA hai jiske chalte bhumi Di ka badla bhi pura ho jayega or sath me swami ko saja bhi mil jayegi, sukesh ko or bhi nukshan pahuchane ke liye swami dwara churaya saman Sara apne sath le gya arya, akhir vo Kon hai Jiski yaddast nhi mitai arya ne...

Bahut se raaj bhi jaan liye honge arya ne swami ke dimag me se or apni team ke savalo ke jvab dene ke baad Ab bari hai Sardar khan ke sath baat chit karne ki Dekhte hai vo kya btata hai...

Superb update bhai sandar jabarjast lajvab amazing
भाग:–58






दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।


रात साढ़े ११ (11.30pm) बजे तक जहां 2 बंदरों की लड़ाई चल रही थी, उसी बीच एक बिल्ली भी अपनी बाजी मारने की कोशिश में था, जिसका अंदाजा दोनो में से किसी पक्ष को सपने में भी नही आया होगा। शाम के 7.30 बजे धीरेन स्वामी सुकेश भारद्वाज के घर में घुसकर उसके सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुका था। स्वामी भी प्रहरी के उन शिकारियों में से था, जो सुकेश के निजी संग्रालय को घूम चुका था। कुछ वर्ष पूर्व भूमि के साथ वह भी 25 तरह के हथियार से लड़ा था किंतु अनंत कीर्ति की किताब नही खोल पाया था।


धीरेन स्वामी, सुकेश के सभी सुरक्षा इंतजाम को तोड़ने का पहले से इंतजाम कर चुका था, इसलिए उसे संग्रहालय में घुसने में कोई भी परेशानी नही हुई। हां लेकिन उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेशर) तब हो गया, जब उस संग्रहालय में कहीं भी अनंत कीर्ति की पुस्तक नही थी। स्वामी पागलों की तरह नही–नही करते कुछ देर तक वहीं बैठ गया। किस्मत ही कहा जा सकता है, क्योंकि आर्यमणि ने एक जैमर नाशिक रिजॉर्ट के आस–पास के इलाके में लगाया था, तो दूसरा जैमर सरदार खान के बस्ती के आस पास। और धीरेन स्वामी ने अपने लोगों को नाशिक एयरपोर्ट पर लगाया था, ताकि यदि कोई नाशिक से लौटे तो तुरंत उस तक सूचना पहुंच जाय। सवा 8 बजे धीरेन स्वामी को नाशिक एयरपोर्ट से खबर मिली कि आर्यमणि प्राइवेट जेट से नागपुर निकला है।


धीरेन स्वामी ने कुछ सोचते हुये, अपने कुछ लोगों को नागपुर एयरपोर्ट भेजा और इधर बड़ी सी वोल्वो बस मंगवाया। संग्रहालय के पूरे समान को समेटने और तेजी से भागने के लिये धीरेन स्वामी ने एक बड़ा सा वोल्वो बस को ही पूरी तरह से खाली करके उसमे समान लोड करने की पूरी व्यवस्था कर चुका था। वह अपने विचार में पूरा सुनिश्चित था, कि यदि आर्यमणि लौटकर अपने मौसा के घर आता है तो उसे मार दिया जायेगा। लेकिन उसे आश्चर्य तब हो गया जब पता चला की आर्यमणि एयरपोर्ट से सीधा सरदार खान के बस्ती के ओर निकला है।


धीरेन स्वामी ने अपने ३ लोगों को उसके पीछे लगा दिया और पहले इत्मीनान से सुकेश का संग्रहालय साफ करने लगा। उस बड़ी सी वोल्वो बस में उसने सुकेश भारद्वाज के पूरे संग्रहालय को ही समेट लिया। तकरीबन 400 किताब, जगदूगर की दंश, कई सारे आर्टिफैक्ट, 8–10 बंद बक्से और जितने भी हथियार थे, सबको अच्छे से पैक करके वोल्वो में लोड कर लिया। उसका काम लगभग 10.30 बजे तक समाप्त हो चुका था। काम खत्म करने के बाद धीरेन स्वामी अपने लोगों के साथ सीधा सरदार खान के बस्ती के ओर निकला।


नागपुर एयरपोर्ट से वैन लेकर आर्यमणि सरदार खान के बस्ती के ओर निकला यहां तक तो स्वामी को सूचना मिली थी, लेकिन उसके बाद उसके किसी आदमी की कोई खबर नहीं आयि। आयेगी भी कैसे, सरदार खान की बस्ती में जैमर जो लगा हुआ था। धीरेन स्वामी जैसे–जैसे सरदार खान के बस्ती के करीब जा रहा था, वैसे–वैसे डीजे की आवाज तेज सुनाई दे रही थी। धीरेन स्वामी अपने काफिले के साथ कुछ दूर आगे बढ़ा ही था कि रास्ते में उसके एक आदमी ने हाथ दिखाकर रोका.…


स्वामी अपने आदमी राजू से... "राजू क्या खबर है।"


राजू:– यहां अलग ही ड्रामा चल रहा है सर। आर्यमणि, पूर्णिमा की रात सरदार खान से लड़ा। और अभी–अभी अपनी टीम के साथ सरदार खान को लेकर अपने एक्जिट पॉइंट पर निकला है।


राजू और अपने २ साथियों के साथ आर्यमणि के पीछे आया था। यहां जब पहुंचा तभी उन तीनो को सिग्नल जैमर का भी पता चला। राजू जिस जगह खड़ा था, वहीं शुरू से खड़ा रहा। बाकी उसके २ आदमी पूरी जगह की पूरी जांच करने के बाद उसके पास आकर सूचना पहुंचाया। उन्ही में से एक आदमी ने सरदार खान और आर्यमणि की टीम के बीच खूनी जंग की बात बताई, तो दूसरा जंगल के दूसरे हिस्से में जांच करते हुये, हाईवे से कुछ दूर अंदर एक खड़ी वैन का पता लगाया था, जो आर्यमणि का एक्जिट पॉइंट था।


राजू पूरी सूचना स्वामी के साथ साझा कर दिया। स्वामी अपने सभी आदमी को गाड़ी में बिठाया और पूरा काफिला सरदार खान की बस्ती को छोड़ नागपुर–जबलपुर हाईवे पर चल दिया। काफिला जब आर्यमणि के एक्जिट पॉइंट के पास से गुजर रहा था तभी राजू ने स्वामी को बताया की.… "यहीं के सड़क से आधा किलोमीटर अंदर एक वैन खड़ी है। जिसका दूसरा संकरा रास्ता तकरीबन 400 मीटर आगे हाईवे के मोड़ से मिलता है। अपना एक आदमी वहीं खड़ा है।" स्वामी अपने काफिले को बिना रोके 400 मीटर आगे ले गया और रास्ते के दोनो ओर गाड़ी लगाकर पहले तो अपने आदमी से आर्यमणि के बारे में जानकारी लिया। पाता चला की आर्यमणि अब तक इस रास्ते को क्रॉस नही किया है। स्वामी राहत की श्वांस लिया और आर्यमणि को ब्लॉक करने का आदेश दे डाला।


आर्यमणि को ब्लॉक करने के आदेश देने के बाद अपने 8 आदमियों के साथ वह जंगल के अंदर मुआयना करने निकला। स्वामी जंगल के अंदर चलते हुये आर्यमणि के मीटिंग पॉइंट के ओर चल दिया। कुछ दूर आगे गया ही था कि ऊंचाई से टॉर्च की रौशनी का इशारा हुआ। यह इशारा स्वामी के तीसरे आदमी का था। स्वामी उसके पास पहुंचकर... "क्या खबर है।"…


उसका आदमी नाइट विजन वाला दूरबीन देते... "अभी–अभी आर्यमणि अपने वैन के पास पहुंचा था। लेकिन उसके बाद पता नही कहां से इतनी आंधी चलने लगी"…


स्वामी बड़े ध्यान से उस ओर देखने लगा। आर्यमणि की फाइट जैसे–जैसे बढ़ रही थी, स्वामी की आंखें वैसे–वैसे बड़ी हो रही थी। फिर तो सबका कलेजा तब दहल गया जब सबने आर्यमणि की दहाड़ सुनी, और उस दहाड़ को सुनने के बाद केवल स्वामी ही था, जो वहां से भाग नही लेकिन कलेजा तो उसका भी कांप ही गया था। बाकी उसके साथ आये 8 लोग ऐसे पागलों की तरह भागे की जंगल में पेड़ और पत्थरों से टकराकर घायल होकर वहीं बेहोश हो गये।


स्वामी फिर भी डटा रहा। अब तक जो भी उसने प्रहरी समुदाय में देखा और जितनी भी शक्तियां उसे चाहिए थी, यहां की लड़ाई देखने के बाद उसे एहसास हो गया की वह प्रहरी के मात्र दिखावे की दुनिया की शक्तियों के लिये पागल था, जबकि आंतरिक शक्तियां तो सोच से भी पड़े है। एक ही वक्त में उसके जहन में कई सारे सवाल खड़े हो गये। जैसे की वोल्फबेन से टेस्ट के बाद भी आर्यमणि मरा नही, जबकि वह एक वुल्फ है? उस से भी हैरानी तो तब हुई जब स्वामी ने क्ला और जड़ वाला कारनामा देखा। आर्यमणि से दूसरा पक्ष कौन लड़ रहा जो हवा को आंधी कैसे बना रहा था? ये किस तरह का शिकारी है जिसके पास अलौकिक शक्ति है? यह तब की बात थी जब आर्यमणि के ऊपर भाला चला था और वह लगभग मरा हुआ सा गिरा था। उसके बाद तो जैसे स्वामी ने अपना माथा ही पकड़ लिया, जब निशांत और संन्यासी शिवम वहां पोर्टल के जरिये पहुंचे। स्वामी पूरी घटना बड़े ध्यान से देख रहा था और शक्तियों के इतने बड़े भंडार को समझने की कोशिश कर रहा था।


इधर आर्यमणि सारा काम खत्म करने के बाद, नागपुर–जबलपुर हाईवे के रास्ते पर तो गया, लेकिन संकरा रास्ता जो आगे मोड़ पर हाईवे से मिलता था और जिस जगह पर स्वामी ने अपने लोग खड़े किये थे, उस रास्ते से न जाकर बल्कि पीछे का रास्ता लिया। आर्यमणि वैन को हाईवे के किनारे खड़ा करता.… "तुम लोगों को किसी और के होने की गंध नही मिली क्या"…


पूरा पैक एक साथ... "नही..."


आर्यमणि:– हम्मम... नागपुर एयरपोर्ट से ही मेरा पीछा हो रहा था और लड़ाई के दौरान मैंने धीरेन स्वामी को देखा था।


रूही:– फिर तो उसने सब देखा होगा...


आर्यमणि:– मुझे जंगल में धीरेन स्वामी के अलावा 8 और लोगों की गंध मिली थी। वो लोग अब भी जंगल में है, केवल धीरेन स्वामी को छोड़कर। वह संकरे रास्ते के दूसरे छोड़ से लगे हाईवे पर खड़ा है। तुम लोग अपने सेंस इस्तमाल करो और उन्हे सुनने की कोशिश करो।


रूही:– कानो में सांप, कीड़े, बुच्छू, पूरे बस में बैठे पैसेंजर, कुछ और लोग, तरह–तरह की आवाज एक साथ आ रही है... बॉस दिमाग फट जायेगा। बहुत सी आवाज एक साथ आ रही है...


आर्यमणि:– कोई और ध्यान लगा रहा है...


अलबेली:– एक बॉस उसके साथ कुछ चमचे हमारा बेसब्री से हाईवे के किनारे इंतजार कर रहे है। भारी हथियार, वोल्फबेन, हाई साउंड वेव रॉड... वेयरवॉल्फ को मारने के तरह–तरह के इंतजाम किये है।


रूही:– ये झूठ बोल रही है...


आर्यमणि:– तुम अब भी क्यों नही मान लेती की अलबेली सुनने में काफी फोकस है। सतपुरा के जंगल में जबकि उसने प्रूफ भी दे दिया, फिर भी तुम नही मानती..


रूही:– बॉस आप जूनियर के सामने मुझे नीचा दिखा रहे।


आर्यमणि:– रूही शांत जाओ और अभी यहां का एक्शन प्लान क्या होना चाहिए उसपर फोकस करो।


रूही:– आप जंगल जाकर वहां घात लगाये लोगों से निपटिये और उनकी याद मिटाकर हाईवे के दूसरे हिस्से पहुंचिये। जब तक हम चारो सीधा जाते हैं और हाईवे पर घात लगाये लोगों को बेहोश करके रखते हैं।


आर्यमणि अपना माथा पीटते... "कोई इस से बेहतर कुछ बतायेगा?"


रूही:– इसमें क्या बुराई है बॉस...


आर्यमणि, घूरती नजरों से देखा और रूही शांत।… "भैया जो जंगल में है, उनकी कुछ डिटेल"… नया पैक मेंबर इवान ने पूछा..


आर्यमणि:– कोई हथियार नही... बस अपने पोजिशन पर है।


इवान:– मैं और ओजल वैन को वापस संकरे रास्ते पर ले जाते है। रूही और अलबेली जंगल में फैल जायेगी। उनके जितने भी लोग जंगल में होंगे उनका ध्यान वैन पर होगा और इधर रूही और अलबेली को काफी आसानी होगी। आप आराम से सीधे जाओ, और वहां का मामला खत्म करके हमे सिग्नल देना। हम उन 8 लोगों को वैन में लोड करके ले आयेंगे।


आर्यमणि:– बेहतर योजना... हम इसी पर काम करेंगे। और जिस–जिस के चेहरे की भावना पर सवाल आये हैं वो चुपचाप अपना मुंह बंद कर ले, क्योंकि 12 बजने वाले है और हमने अब तक नागपुर नही छोड़ा है।


सब काम पर लग गये। रूही और अलबेली का काम बिलकुल ही आसान था, क्योंकि जिन्हे घात लगाये समझ रहे थे वो सब तो बेहोश थे। जबतक वैन में बेहोश लोगों को लोड किया गया, तबतक आर्यमणि भी अपना काम कर चुका था। हाईवे से नीचे उतरकर वह दौड़ लगाया और घात लगाये शिकारियों के ठीक पीछे पहुंच गया। हर किसी की नजर रास्ते पर ही थी, क्योंकि वैन के आने का सब इंतजार कर रहे थे और आर्यमणि बड़ी ही सफाई से सबको बेहोश करता चला गया।

कुल २२ लोग थे वहां। 16 को तो उसने आसानी से बेहोश कर दिया क्योंकि वह फैले हुये थे। बचे 6 लोग साथ में बैठे थे, जिसमे से एक स्वामी भी था। आर्यमणि की वैन के आने का इंतजार स्वामी भी कर रहा था, लेकिन वैन को न आते देख स्वामी को कुछ–कुछ शंका होने लगी। किंतु स्वामी अब शंका करके भी क्या ही कर लेता। आर्यमणि उनके वोल्वो में ही पहुंच चुका था। फिर तो केवल वोल्वो की दीवार से लोगों के टकराने की आवाज ही आ रही थी।


आर्यमणि अपना काम खत्म करके, अपने पैक को सिग्नल देने के बाद स्वामी के सभी लोगों को एक जगह इकट्ठा किया और सबकी यादों से आखरी के कुछ वक्त की उन तस्वीरों को मिटाने लगा, जिनमे आर्यमणि की कोई चर्चा अथवा उसके या उसके पैक की कोई याद हो।स्वामी को छोड़कर सबके मेमोरी से छेड़ –छाड़ हो चुका था। जबतक रूही भी अपनी पूरी टीम को लेकर पहुंच चुकी थी। उन 8 लोगों की यादों से भी छेड़–छाड़ करने के बाद आर्यमणि स्वामी के पास पहुंचा।


स्वामी का गुजरा वक्त जैसे आर्यमणि को धोका सा लगा हो। भले ही उसने भूमि के साथ धोका किया था, लेकिन उसे आर्यमणि भी मेहसूस कर रहा था। स्वामी के लिये तो आर्यमणि ने कुछ और ही सोच रखा था। स्वामी की यादों से पूरी तरह से खेलने के बाद आर्यमणि सुकेश को एक और चोट देने की ठान चुका था। उसने वोल्वो से सभी तरह के हथियार को अपने वैन में लोड कर दिया और अपने वैन से सरदार खान को निकालकर वोल्वो में..... "चलो यहां का काम खत्म हुआ"…


स्वामी का गुजरा वक्त जैसे आर्यमणि को धोका सा लगा हो। भले ही उसने भूमि के साथ धोका किया था, लेकिन उसे आर्यमणि भी मेहसूस कर रहा था। स्वामी के लिये तो आर्यमणि ने कुछ और ही सोच रखा था। स्वामी की यादों से पूरी तरह से खेलने के बाद आर्यमणि सुकेश को एक और चोट देने की ठान चुका था। उसने वोल्वो से सभी तरह के हथियार को अपने वैन में लोड कर दिया और अपने वैन से सरदार खान को निकालकर वोल्वो में..... "चलो यहां का काम खत्म हुआ"…


रूही:– सब ठीक तो है न बॉस... तुम स्वामी की यादों में पिछले 10 मिनट में थे।


आर्यमणि:– कुछ नही बस आराम से स्वामी की याद देख रहा था। भूमि दीदी को इसने बहुत धोका दिया। चलो चलते हैं, हम शेड्यूल से काफी देर से चल रहे हैं।


रूही:– वोल्वो में स्वामी का एक आदमी बेहोश है, उसका क्या?


आर्यमणि:– उसे रहने दो, बड़े काम का वो आदमी है।


स्वामी नामक छोटे से बाधा को साफ करने के बाद पूरा अल्फा पैक हाईवे पर धूल उड़ाते जबलपुर के ओर बढ़ गया। वोल्वो अपने पूरी रफ्तार में थी। सभी कुछ किलोमीटर आगे चले होंगे, की सबसे पहले तो पूरा पैक ने उन्हे जड़ों की रेशों में जकड़ने की लिये लड़ने लगा। आर्यमणि सबको शांत करवाकर कुछ देर के लिये खामोश हुआ ही था कि सबके सवालों के बौछार फिर शुरू हो गये। "निशांत के साथ संन्यासी कौन था? ये क्ला को जमीन में घुसा कर कौन सा जादू किये? ये किस तरह का दरवाजा हवा में खुला जिसके जरिये निशांत और उसके साथ वाला आदमी गायब हो गया?"

बातचीत का लंबा माहोल चला जहां आर्यमणि ने एक–एक सवाल का जवाब पूरे विस्तार से साझा किया। हवा को नियंत्रण करने वाले शिकारियों के हमला करने के तरीकों को विस्तार में सुनकर अल्फा पैक काफी अचंभित था। सभी सवालों के जवाब के बाद आर्यमणि शांति से आंख मूंद लिया और अल्फा पैक अभी हुये हमले पर बात करते जा रहे थे। कुछ देर तक सबकी इधर–उधर की बातें सुनने के बाद, आर्यमणि सबको चुप करवाते.… "हमारे साथ में एक मेहमान को भी है। मैं जरा उस से भी कुछ सवाल जवाब कर लेता हूं, तुमलोग जरा शांत रहो। आर्यमणि सरदार का मुंह खोलकर… "हां सरदार कुछ सवाल जवाब हो जाये।"
 

Xabhi

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Ghar ka gussa update me kaise dikha sakte hain... Can u explain :?:
Jaise aap Sunday ko funday bnane ka vada karke gayab ho gye the... Thik Vaise...
 

Xabhi

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भाग:–61








मीनाक्षी:- परिवार की बात ना करो मनीषा, क्योंकि पारिवारिक दृष्टिकोण से तो मै भी उन सबके साथ सामिल हुयि। आर्यमणि को तो मै भी बहुत चाहती हूं। हमे अफ़सोस होता है, जब नेक्स्ट जेनरेशन आता है। क्योंकि कुछ अच्छे दिल के लोगो को हम सामिल नहीं कर सकते। थोड़ा दर्द भी होता है जब वो मरते है या अपना राज बचाने के लिये उन्हें मारना पड़ता है।(बिलकुल किसी दैत्य वाली हंसी के साथ)… लेकिन क्या करे हमारे जीने का जायका भी वही है।


उज्जवल:- हां सही कह रही है मीनाक्षी, लेकिन मनीषा की बात सच भी तो हो सकती है। आर्यमणि ने अपने 3 दोस्तों को पूरा आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट का हिस्सेदार बनाया। चित्रा और माधव 2 ऐसे नाम थे जिन्होंने काबुल किया की उन्हे आर्यमणि ने हिस्सेदार बनाया था, यदि ये संपत्ति प्रहरी की है तो हम वापस कर देंगे। जबकि वहीं आर्यमणि के जिगरी दोस्त का कहना था कि "फैक्ट्री का वो कानूनन मालिक है और किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नही। आप जो अपना काम कर रहे है उसे कीजिये और मुझे अपना काम करने दीजिये।"


जयदेव:– हम्मम!!! ठीक है आग लगा दो उसके प्रोजेक्ट में। जहां–जहां से अप्रूवल मिलना है, हर जगह रोड़ा डाल दो और साथ में अपने लीगल डिपार्टमेंट को एक फर्जीवाड़ा का केस भी कहो करने। अक्षरा निशांत रिश्ते तुम्हारा भांजा लगता है, जैसा की आर्यमणि मीनाक्षी का था। इसलिए निशांत तुम्हारी जिम्मेदारी। यदि जरा भी भनक लगे की निशांत को प्रहरी में दिखने वाले आम करप्शन से ऊपर का कोई शक है, इस बार कोई रहम नहीं। आर्यमणि और उस माल गायब करने वालों को ढूंढने गयी टीम ने क्या इनफार्मेशन दी, वो बताओ कोई?


तेजस:- "हॉलीवुड फिल्में कुछ ज्यादा देखते है दोनो पक्ष। नागपुर–जबलपुर हाईवे पर 2 स्पोर्ट्स कार में 3 लोग निकले थे। लेकिन जंगल में पाये पाऊं के निशान और भागने के मिले सबूत से वो 5 लोग थे, जिनमें से 2 को कोई नहीं जानता। जबलपुर से एक चार्टर प्लेन 5 लोगो को लेकर दिल्ली निकली, एक चार्टर प्लेन बंगलौर, और एक चार्टर प्लेन मुंबई। ऐसे करके 7 जगहों के लिये चार्टर प्लेन उड़ान भरी थी। इन सभी जगहों के एयरपोर्ट से डायरेक्ट इंटरनेशनल फ्लाइट जाती है। हमने वहां के बुकिंग चेक करवाई। यहां से कन्फ्यूजन शुरू हो गया। सभी एयरपोर्ट पर कल से लेकर आज तक 5 लोगों के 4 ग्रुप सीसी टीवी से अपनी पहचान छिपाकर, 4 अलग-अलग देश गये। किसी भी जगह से आर्य, रूही या अलबेली के नाम का पासपोर्ट इस्तमाल नही हुआ।"

"वहीं जिसने अपना सामान चोरी किया उसकी सूचना तो पहले से ही थी। और जैसा तुमने आशंका जताया था जयदेव वही हुआ। सिवनी से जितने भी वैन निकले थे सब में फर्जी बुकिंग थी, लेकिन एक बड़ा सा लोड ट्रक के टायर के निशान वोल्वो के आस–पास से मिले थे, जो बालाघाट के रास्ते गोंदिया पहुंची। यहां तो और भी कमाल हो गया था। ट्रक चोरी की थी और उसका ड्राइवर.. ये सबसे ज्यादा इंट्रेस्टिंग पार्ट है। उस ड्राइवर को ट्रक पहुंचाने के 10 हजार रूपये मिले थे। ट्रक में एक भी समान नही। कोई चास्मादित गवाह नही और ना ही वहां पर कोई सीसी टीवी फुटेज थी, जिस से यह पता चले की उस ट्रक से कुछ अनलोड भी किया गया था।"


जयदेव:– इसी ट्रक पर अपना सारा माल था। सब लोग इस ट्रक के पीछे पड़ जाओ। पूरी तहकीकात करो अपना खोया माल मिल जायेगा। तेजस तुम नित्या और उसकी टीम को आर्यमणि के पीछे लगाओ। हमें अपने समान के साथ उनकी जान भी चाहिए जो हमारा कीमती सामान ले जाने की जुर्रत कर बैठे।


तेजस:- हम्मम ! ठीक है।


उज्जवल:– सेकंड लाइन सुपीरियर टीम का 1 शिकारी आर्यमणि के पैक पर भारी पड़ेगा यहां तो पूरी टीम के साथ नित्या को पीछे भेज दिया है, तो अब चिंता की बात ही नहीं। यदि नित्या आर्यमणि को नहीं भी मार पाती है तो भी किताब तो ले ही आयेगी। सरदार खान मारा गया सो अब नागपुर में रहने का भी कोई मतलब नहीं निकलता। भूमि और उसके उत्तराधिकारी को बधाई संदेश देते चलो।"


जयदेव:- पूर्णिमा की रात के एक्शन के कारण आम प्रहरी तो आर्यमणि के फैन हो गये है। प्रहरी की आम मीटिंग में आर्यमणि को क्लीन चिट के साथ धन्यवाद संदेश भी देते जाओ। अब से हाई टेबल सीक्रेट प्रहरी मुख्यालय मुंबई होगा। मीनाक्षी और अक्षरा की जिमेमदरी है यहां से सारी काम कि चीजों को मुंबई पहुंचाना।


मीनाक्षी:- हम्मम ! हो जायेगा। सभा समाप्त करते है। …


3 दिन बाद सतपुड़ा के घने जंगलों में तेजस ने जमीन पर एक कतरा अपने खून का गिराया और "हिश्श्श्ष्ष्ष्ष्शश" की गहरी आवाज़ अपने मुंह से निकाला। अचानक ही वहां के हवा का मिजाज बदलना शुरू हो गया और जबतक तेजस कुछ भांप पता उसके गले पर चाकू लग चुका था।


तेजस के कान के पास लहराती सी आवाज गूंजी…. "हमारी याद कैसे तुम्हे यहां तक खींच लायी।"..


तेजस उसका हाथ पकड़कर प्यार से किनारे करते, सामने खड़ी औरत को ऊपर से लेकर नीचे तक देखते हुए…. "आज भी उतनी ही मादक अदाएं है।"..


बाल रूखे, चेहरा झुलसा हुआ, और बदन के कपड़े मैले। शरीर के ऊपर की हड्डियां तक गिनती की जा सकती थी… "लगता है मेरी सजा माफ़ कर दी गयी है।"


तेजस:- हां तुम्हारी सजा माफ हो चुकी है । एक लड़का है आर्यमणि वो अनंत कीर्ति के पुस्तक को लेकर भाग गया है। उसके पीछे जाना है।


नित्या एक मज़ेदार अंगड़ाई लेती… "आह जंगल से बाहर निकलने का वक़्त आ गया है, चले"…


तेजस:- हां बिल्कुल…


प्रहरी की आम मीटिंग से ठीक पहले सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी टीम के 5 शिकारी के साथ नित्या अपने खोज पर जा चुकी थी। नित्या भी सुकेश, उज्जवल और देवगिरी की तरह ही एक सीक्रेट प्रहरी थी जो अपने पिछली गलती की सजा भुगत रही थी। एक लंबा अरसा हो गया था उसे सतपुड़ा के घने जंगलों में विचरते हुए। जितना दूर जंगल का इलाका, वही उसकी सीमा। मन ही मन वो आर्यमणि को धन्यवाद कह रही थी, जिसके किये ने उसे जंगल के जेल से बाहर निकालकर आज़ाद कर दिया था।


प्रहरी की आम मीटिंग में इस बार भी आर्यमणि का नाम गूंजता रहा। शहर को बड़े संकट से निकालने के लिये उसे धन्यवाद कहा गया साथ में उससे हुई छोटी सी नादानी, अंनत कीर्ति की पुस्तक को साथ ले जाना, उसका कहीं ना कहीं दोषी पलक को बताया गया।


पलक की मनसा साफ तो थी लेकिन उससे गलती हुई जिसकी सजा ये थी कि वो नाशिक प्रहरी इकाई में अस्थाई सदस्य की भूमिका निभाएगी और वहीं से प्रहरी के आगे का अपना सफर शुरू करेगी। इसी के साथ पलक के इल्ज़ाम सही थे जो हसने उच्च सभा में लगाए थे। 22 में से 20 उच्च प्रहरी दोषी पाये गये और सरदार खान जैसे बीस्ट अल्फा को खत्म किया जा चुका था।


नागपुर इकाई मजबूत थी और हमेशा ये अच्छे प्रहरी को सामने लेकर आयी है। इसलिए नागपुर की स्थायी सदस्य नम्रता को नागपुर इकाई का मुखिया घोषित किया जाता है। मीटिंग समाप्त होने तक राजदीप ने कई बड़े अनाउंसेंट कर दिये, उसी के साथ सबको ये भी बताते चला कि उसका ट्रांसफर अब नागपुर से मुंबई हो चुका है, इसलिए उसे नागपुर छोड़ना होगा।…


नागपुर में बीस्ट अल्फा ना होने से क्या-क्या बदलाव आ रहे थे, भूमि इसी बात की समीक्षा में लगी हुई थी। हाई टेबल प्रहरी जिनका मुख्यालय पहले नागपुर था और उन्हें कहीं और जाने की ज़रूरत नही थी, उनके लिये महीने में अब 2–3 बार बाहर जाना आम बात हो गयी थी। भूमि अपने ससुराल में बैठकर आराम से सभी गतिविधियों पर नजर बनायी हुई थी। हालांकि सुकेश, मीनाक्षी और जयदेव बातों के दौरान भूमि अथवा जया से आर्यमणि के विषय में जानने के लिये इच्छुक दिखते लेकिन इन्हें भी आर्यमणि के विषय में पता हो तब ना कुछ बताये।


इधर अचानक ही अपनी मासी का प्यारा निशांत के लिये काफी बढ़ गया था। वह निशांत को बिठाकर एक ही बात पूछा करती थी, "उसे आर्म्स एंड एम्यूनेशन" प्रोजेक्ट से क्या लालच है? क्यों वह प्रहरी से दुश्मनी लेने के लिये तैयार है? क्या इसके पीछे की वजह आर्यमणि है, जो जाने से पहले कुछ बताकर गया था?"


निशांत को अक्षरा की बातें जैसे समझ में ही नही आती थी। हर बार वह अक्षरा को एक ही जवाब देता... "उन्हे बिजनेस और प्रोजेक्ट की कोई समझ ही नही। और जिन मामलों को वो समझती नही, उसके लिये क्यों इतनी खोज–पूछ कर रही।"


पलक के लिये विरहा के दिन आ गये थे। जिस कमरे में उसने अपना पहला संभोग किया। जिस कॉलेज में वो आर्यमणि से मिलती थी। जिस शॉपिंग मॉल में वो आर्यमणि के साथ शॉपिंग के लिये जाया करती थी। जिस कार के अंदर उसने आर्यमणि के साथ काम–लीला में लिप्त हुई। पलक को हर उस जगह से नफरत सी हो गयी थी, जहां भी आर्यमणि की याद बसी थी। आर्यमणि के जाने के 10 दिन के अंदर ही पलक भी नागपुर शहर छोड़ चुकी थी और नाशिक पहुंच गयी, जहां उसकी ट्रेनिंग शुरू होती। नाशिक में प्रहरी के सीक्रेट बॉडी का अपना एक बड़ा सा ट्रेनिंग सेंटर था जो किसी के जानकारी में नही था।


चित्रा एक आम सी लड़की जो रोज ही अपने कॉलेज के कैंटीन में अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ बैठती और खाली टेबल को देखकर मायूस सी हो जाती। माधव यूं तो चित्रा को उसके गुमसुम पलों से उबारने की कोशिश करता लेकिन फिर भी चित्रा के नजरों के सामने खाली कुर्सी खटक जाती जो कभी दोस्तों से भरी होती थी।


एक–एक दिन करके वक्त काफी तेजी से गुजर रहा था। नित्या को काम पर लगा तो दिया गया था, लेकिन इस गरीब दुख्यारी का क्या दोष जिसे कोई यह नहीं बता पा रहा था कि आर्यमणि को ढूंढना कहां से शुरू करे। पूरा सीक्रेट बॉडी ही उसके ऊपर राशन पानी लेकर चढ़ा रहता और एक ही बात कहते.… "तुम्हे आजाद ही इसलिए किया गया है ताकि तुम पता लगा सको। यदि अब पता लगाने वाले गुण तुमसे दूर हो चुके है, फिर तो तुम्हे हम वापस जंगल भेज देते है।"… बेचारी नित्या के लिये काटो तो खून न निकले वाली परिस्थिति थी। हां एक तेजस ही था, जो नित्या पर किसी और चीज से चढ़ा रहता था। बस यही इकलौता सुकून और सुख वह जंगल से निकलने के बाद भोग रही थी।


एक ओर आर्यमणि तो दूसरी ओर वो समान चोर, दोनो मिल न रहे थे, ऊपर से सीक्रेट बॉडी प्रहरी की मुसीबत समाप्त नही हो रही थी। आर्म्स & एम्यूनेशन प्रोजेक्ट में ऐड़ी चोटी का जोड़ लगा दिये। निशांत की कंपनी "अस्त्र लिमिटेड" को कोर्ट का नोटिस मिला, जहां बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच में सुनवाई होनी थी। "अस्त्र लिमिटेड" पर पैसे की धोकेधरी पर इल्ज़ाम लगा था। "अस्त्र लिमिटेड" के ओर से निशांत अपने वकील के साथ कोर्ट में हाजिर हुआ और जो ही उसने सामने वाले वकील की धज्जियां उड़ाया।


पैसों के जिस धोकाधरी का आरोप "अस्त्र लिमिटेड" पर लगा था, उसके बचाव में निशांत के वकील ने वह एग्रीमेंट कोर्ट को पेश कर दिया, जिसमे साफ लिखा था कि.…. "आर्यमणि के आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट देश के सशक्तिकरण वाला प्रोजेक्ट है। बिना किसी भी आर्थिक लाभ के अपना सारा पैसा "अस्त्र लिमिटेड" के प्रोजेक्ट में लगाते है। "अस्त्र लिमिटेड" कंपनी जब कर्ज लिये पैसे के 10 गुणी बड़ी हो जाये तो फिर वो 10 चरण में पैसे की वापसी प्रक्रिया पूरी कर सकते है। और यदि प्रोजेक्ट कहीं असफल रहता है, तब उस परिस्थिति में सारा नुकसान हमारा होगा।"


विपक्ष के वकील ने उस पूरे एग्रीमेंट को ही फर्जी घोषित कर दिया। निशांत के वकील ने जिस एग्रीमेंट को पेश किया था, उस एग्रीमेंट को महाराष्ट्र के सरकारी विभाग द्वारा पूरा लेखा–जोखा ही बदल दिया गया था। विपक्ष के वकील सुनिश्चित थे, इसलिए निशांत से उसके डॉक्यूमेंट की विश्वसनीयता साबित करने के लिये कहा गया। देवगिरी पाठक, महाराष्ट्र का डेप्युटी सीएम... पूरा सरकारी विभाग ही पूर्ण रूप से मैनेज किया था, सिवाय एक छोटी सी भूल के, जिसके ओर शायद ध्यान न गया।


पैसों के लेखा जोखा में देवगिरी की कंपनी ने जो हिसाब दिखाया था उसमे "अस्त्र लिमिटेड" को दिये पैसे का जिक्र था। इसके अलावा देवगिरी की कंपनी के 40% के मेजर हिस्सेदार आर्यमणि द्वारा दिया गया ऑफिशियल लेटर जिसमे "अस्त्र लिमिटेड" को कब और कितने पैसे किस उद्देश्य से दिये उसकी पूरी डिटेल थी। लेन–देन का यह रिकॉर्ड बैंक से लेकर आईटी डिपार्मेंट तक में जमा करवायि गयी थी।


प्रहरी के ओर से केस लड़ने गया नामी वकील खुद को हारते देख, तबियत खराब का बहाना करके दूसरा डेट लेने की सोच रहा था। नागपुर की बेंच शायद राजी भी हो गयी होती लेकिन तभी निशांत के वकील ने सुप्रीम कोर्ट का एक दस्तावेज पेश किया.… "अस्त्र लिमिटेड के प्रोजेक्ट को बंद करवाने के लिये महाराष्ट्र के कई सरकारी और गैर–सरकारी विभाग ने सेंट्रल को कई सारे दस्तावेज भेजे और तुरंत प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों को हिरासत में लेने की मांग कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के फाइनल वर्डिक्ट में यह साफ लिखा था कि एक अच्छे प्रोजेक्ट को सभी अप्रूवल के बाद बंद करवाने की पूरी साजिश रची गयी थी। कोर्ट सभी अर्जी को गलत मानते हुये सभी याचिकाकर्ता की निष्पक्ष जांच करे।"


उस दस्तावेज को पेश करने के बाद निशांत के वकील ने जज से साफ कह दिया की पहले भी कंपनी के ऊपर महाराष्ट्र सरकार के कुछ विभागो की साजिश साफ उजागर हुई है। आज भी जब मामला हमारे पक्ष में है तब अचानक से विपक्ष के वकील की तबीयत खराब हो गयी है। मुझे डर है कि अगली तारीख के आने से पहले सबूतों के साथ छेड़–छाड़ होने की पूरी आशंका है, इसलिए अब यह केस नागपुर ज्यूरिडिक्शन के बाहर बहस किया जाना चाहिए। यदि हमारी अर्जी आपको मंजूर नहीं फिर हम फैसले का बिना इंतजार किये सुप्रीम कोर्ट जायेंगे।


निशांत के वकील को सुनने के बाद तो नागपुर बेंच ने जैसे विपक्ष के वकील को झटका दे दिया है और उसके तबियत खराब होने की परिस्थिति में किसी दूसरे वकील को तुरंत प्रतिनिधित्व के लिये भेजने बोल दिया। प्रहरी को काटो तो खून न निकले। देश के जितने बड़े वकील को उन लोगों ने केस के लिये बुलाया था, निशांत का वकील तो उसका भी गुरु निकला। दिल्ली के इस नामी वकील को निशांत ने नही बल्कि संन्यासी शिवम द्वारा नियुक्त किया गया था।


निशांत ने महज महीने दिन में ही आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट से पार पा लिया था। निशांत अपनी इस जीत के बाद प्रोजेक्ट का सारा काम चित्रा और माधव को सौंपकर कुछ महीनों के लिये वर्ल्ड टूर पर निकल गया। हालांकि वह हिमालय जा रहा था लेकिन दिखाने के लिये उसका पासपोर्ट यूरोप के विभिन्न देशों में भ्रमण कर रहा था। वहीं चित्रा और माधव प्रोजेक्ट के काम के कारण और भी ज्यादा करीब आ गये। हां इस बीच प्रोजेक्ट का काम करते हुये पहली बार चित्रा को माधव का पूरा नाम पता चला था, "अनके माधव सिंह"।


चित्रा, माधव को चिढाती हुयि उसके पहले नाम को लेकर छेड़ती रही। हालांकि माधव कहता रह गया "अनके" का अर्थ "कृपा" होता है। अर्थ तो अच्छा ही था लेकिन चित्रा इसे छिपाने के पीछे का कारण जानना चाहती थी। अंत में चित्रा जब नही मानी तब माधव को बताना ही पड़ा की "अनके" उसकी मां का नाम है और उसके बाबूजी ने उसके नाम के पहले उसकी मां का नाम जोड़ दिया, ताकि कभी वो अपनी मां से अलग ना मेहसूस करे।


इस बात को जानने के बाद तो जैसे चित्रा का गुस्सा अपने चरम पर। आखिर जब इतने प्यार से उसके बाबूजी ने उसका नाम रखा, फिर अभी से अपनी मां का नाम अलग कर दिया। जबकि अनके सुनने में ऐसा भी नही लगता की किसी स्त्री का नाम हो। बहस का दौर चला जहां माधव भी सही था। क्या बताता वो लोगों को, उसका नाम "अनके माधव सिंह" है और उसकी मां का नाम "अनके सिंह"। चित्रा भी अड़ी थी…. "मां का नाम कौन पूछता है? परिचय में भी कोई मां का नाम पूछने पर ही बताता है? ऐसे में जब लोग जानते की मां का नाम पहले आया है तो कितना इंस्पायरिंग होता।"


बहस का दौड़ चलता रहा और कुछ दिन के झगड़े के बाद दोनो ही मध्यस्ता पर पहुंचे जहां माधव अपने पिताजी की भावना का सम्मान रखते खुद का परिचय सबसे एंकी के रूप में करेगा और पूरा नाम "अनके माधव" बतायेगा, न की केवल माधव। खैर दोनो के विचार और आपस का प्यार भी अनूठा ही था। जैसे हर प्रेमी अपने प्रियसी की बात मानकर "कुत्ता और कमिना" नाम तक को प्यार से स्वीकार कर लेते है। ठीक वैसे ही अपना नया नाम माधव ने भी स्वीकार किया था और अब बड़े गर्व से खुद का परिचय एंकी के रूप में करवाता था।


सीक्रेट बॉडी प्रहरी में आग लगाने के बाद सबकी जिंदगी जैसे चुस्त, दुरुस्त और तंदुरुस्त हो गयी थी। जया और भूमि दुनियादारी को छोड़कर दिन भर आने वाले बच्चे में ही लगी रहती। नम्रता के पास नागपुर प्रहरी की कमान आते ही ठीक वैसा हो रहा था जैसा भूमि चाहती थी। बिलकुल साफ और सच्चे प्रहरी। फिर तो पूरे नागपुर में नम्रता ने ऐसा दबदबा बनाया की प्रहरी के दूसरे इकाई के शिकारी नागपुर आने से पहले १०० बार सोचते... "नागपुर गया तो कहीं बिजली मेरे ऊपर न गिर जाये। हर बईमान प्रहरी नागपुर से साफ कतराने लगा हो जैसे।


नागपुर की घटना को पूरा 45 दिन हो चुके थे। प्रहरी आर्यमणि और संग्रहालय चोर को ढूंढने में ऐड़ी चोटी का जोड़ लगा दिये लेकिन नतीजा कुछ नही निकला। एशिया, यूरोप, से लेकर अमेरिका तक सभी जगह आर्यमणि और संग्रहालय के सामानों की तलाश जारी थी। लोकल पुलिस से लेकर गुंडे तक तलाश रहे थे। हर किसी के पास आर्यमणि, रूही और अलबेली की तस्वीर थी। इसके अलावा संग्रहालय से निकले कुछ अजीब सामानों की तस्वीर भी वितरित की जा चुकी थी। और इन्हे ढूंढकर पकड़ने वालों की इनामी राशि 1 मिलियन यूएसडी थी। सभी पागलों की तरह तलाश कर रहे थे।


लोग इन्हें जमीन पर तलाश कर रहे थे और आर्यमणि.… वह तो गहरे नीले समुद्र के बीच अपने सर पर हाथ रखे उस दिन को झक रहा था जब वह नागपुर से सबको लेकर निकला.…
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट नैन भाई
आर्य ने अच्छी बजाई सिक्रेट बोड़ी की मजा आ गया
अब दर दर भटक रहे हैं आर्य और चोर को ढूंढने के लिए
नागपुर में वहीं हों रहा हैं जैसा भुमि ने आर्य से कहा
सबकुछ उसके कंट्रोल में आ गया और हरामी प्रहरी नागपुर के नाम से हीं डरने लगे हैं

ये सिक्रेट बोड़ी वाले सिर्फ उनकों हीं मारतें हैं जों अच्छे और सच्चे हैं फिर वो रिश्ते में कोई भी हों

हाई टेबल प्रहरी का मुख्यालय भी मुंबई चला गया
पलक भी आर्य की यादों को भुलाने के लिए नाशिक चलीं

वहीं आर्य का हाल भी बहुत बुरा हैं समंदर के बीच छुपा बैठा हैं लेकिन क्यूं समझ में नहीं आया

कमाल का अपडेट नैन भाई
 

Xabhi

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Sardar khan ki maut ka kya hi tarika nikala hai bhaya Ye to kuchh kuchh vaisa hi hai Jaisa the boys series me us tranlusent ki gand me bomb 💣 ghusa dete hai or detonator dba kr uda dete hai kyoki uski skin Itni Kathor thi jaise heera or vo sala dikhai dena band ho jata tha... Maza aa gya tha dekh kr mujhe or isme to petrol kanch pighla hua or wolfben daal kr jo udaya hai oye hoye hoye hoye maza aa gya padh kr 😘 Nainu bhaya

Palak ka phone karke aise bifarna or us pr arya ka apne dukhado ko sunana ruhi ka is situation me vo gana bjana mind blowing :perfect: superb jabarjast sandar lajvab bhaya

Vo police vale ne apni puri bhadas nikali hai Sardar khan ke sarir ko chir faad ke upar se is kaam ke liye paise bhi diye arya ne, pareshan logo ki madad ke liye bhi...

:applause: :applause: jag mag jag mag update bhai

भाग:–59







आर्यमणि सबको चुप करवाते.… "हमारे साथ में एक मेहमान को भी है। मैं जरा उस से भी कुछ सवाल जवाब कर लेता हूं, तुमलोग जरा शांत रहो। आर्यमणि सरदार का मुंह खोलकर… "हां सरदार कुछ सवाल जवाब हो जाये।"


सरदार:- मेरा थोड़ा दर्द ले लो।


आर्यमणि:- हम्मम ! दर्द नहीं तुम्हारी याद ही ले लेते है सरदार।


आर्यमणि ने अपना क्ला सरदार के गर्दन में पिछले हिस्से में डाला और उसकी यादों में झांकने लगा। ऐसी काली यादें सिर्फ इसी की हो सकती थी। अपने जीवन काल में इसने केवल जिस्म भोगना ही किया था, फिर चाहे कामुक संतुष्टि हो या नोचकर भूख मिटान। आर्यमणि के अंदर कुछ अजीब सा होने लगा। उसने अपना दूसरा हाथ हवा में उठा दिया। रूही बस को किनारे खड़ी करते… "बॉस के हाथ में सभी अपने क्ला घुसाओ, जल्दी।"..


हर किसी ने तुरंत ही अपना क्ला आर्यमणि के हाथ में घुसा दिया। चूंकि उन सब के हाथ आर्यमणि के प्योर ब्लड में थे, इसलिए उन्हें काले अंधेरे नहीं दिखे केवल सरदार खान की यादें दिख रही थी। काफी लंबी याद जिसमे केवल वॉयलेंस ही था। लेकिन उसमें कहीं भी ये नहीं था कि सरदार नागपुर कैसे पहुंचा। आर्यमणि पूरी याद देखने के बाद अपना क्ला निकला। कुछ देर तक खुद को शांत करता रहा…. "इसकी यादें बहुत ही विचलित करने वाली हैं।"..


रूही:- और मेरी मां फेहरिन के साथ इसने बहुत घिनौना काम किया था। सिर्फ मेरी वजह से वो आत्महत्या तक नहीं कर पायि।


ओजल:- इसे मार डालो, जिंदा रहने के लायक नहीं। आई (भूमि) ने मुझे मेरा इतिहास बताया था, सुनने में मार्मिक लगा था। लेकिन अभी जब अपने जन्म देने वाली मां की हालत देखी, रूह कांप गया मेरा।


अलबेली ने तो कुछ कहा ही नहीं बल्कि बैग से उसने एक चाकू निकाला और सीधा सरदार के सीने में उतारने की कोशिश करने लगी। लेकिन वो चाकू सरदार के सीने में घुसा नहीं।


आर्यमणि तेज दहाड़ा… सभी सहम कर शांत हो गये… "इसकी मौत तो आज तय है। रूही तुम गाड़ी आगे बढ़ाओ। सरदार हमने सब देखा। मै बहुत ज्यादा सवाल पूछ कर अब अपना वक़्त बर्बाद नहीं करूंगा और ना ही तुम्हे साथ रखकर अपने पैक का खून जलाऊंगा.... कुछ कहना है तुम्हे अपने आखरी के पलों में.."


सरदार खान:- "मुझे मेरे बेटे ने कमजोर कर दिया और मेरे शरीर में पता नहीं कौन सा जहर उतार दिया। इतना सब कुछ देखने के बाद मैं समझ गया की चौपाल पर तुमने सही कहा था। मेरे अंदर जहर उन्हीं लोगों का दिया है जिसने मुझे बनाया और वो मेरी ताकत मेरे बेटे के अंदर डालकर अपनी इमेज साफ रखना चाहते थे। जैसा कि तुम जानते हो मेरी याद से छेड़छाड़ किया गया है, और वो सिर्फ इसी दिन के लिये किया गया था। तुम उनकी ताकत का अंदाजा भी नहीं लगा सकते। हम जैसे प्रेडेटर का वो लोग मालिक है और मेरे मालिको का तुम एक बाल भी बांका नहीं कर सकते। उसके सामने कीड़े मकोड़े के बराबर हो तुम लोग। वो अपेक्स सुपरनैचुरल है, मै एक बीस्ट और तुम लोग की तो कोई श्रेणी ही नहीं।"

"अभी जिनसे तुम्हारा सामना हुआ था, वो थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी थे, जिसे तुमने बड़ी मुश्किल से झेला। तब क्या होगा जब सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी का सामना करोगे। इसके आगे तो तुम्हारे बाप ही है, जिन्हे पूजनीय सिवा छोड़कर कुछ और कह ही नही सकते। वो आयेंगे तुम्हे, तुम्हारे पैक सहित समाप्त करेंगे और चलते बनेंगे। सिवाय मुंह देखने के और कुछ न कर पाओगे"


रूही:- सुन बे घिनौने से जीव, तूने ये जिस भी पूजनीय तोप का नाम लिया है... वो हमे मारे या हम उसे, ये तो भविष्य की बातें है, जिसे देखने के लिये तू नही जिंदा रहेगा। बॉस क्या टाइम पास कर रहे हो, वैसे भी ये कुछ बताने वाला है नहीं, मार डालो।


आर्यमणि:- इसे खुद भी कुछ पता नहीं है रूही, जितना जानता था बता चुका। अपने मालिको का गुणगान कर चुका। खैर जिसके बारे में जानते नही उसकी चिंता काहे... बस को साइड में लगाओ, इसे मुक्ति दे दिया जाय…


सरदार खान को हाईवे से दूर अंदर सुनसान में ले जाया गया। उसके हाथ और पाऊं को सिल्वर हथकड़ी से बांधकर उसके मुंह को सिल्वर कैप से भर दिया गया, जिसमें पाइप मात्र का छेद था। उसके जरिये एक पाइप उसके मुंह के अंदर आंतरियों तक डाल दिया गया। नाक के जरिये भी 2 पाइप उतार दिए गये। हाथ और पाऊं को सिल्वर की चेन में जकड़कर पेड़ से टाईट बांध दिया गया।…. "चलो ये तैयार है।"


तीन ट्यूब उसके शरीर के अंदर तक थे। एक ट्यूब से पहले धीरे–धीरे उसके शरीर में लिक्वड वुल्फबेन उतारा जाने लगा। दूसरे पाइप से लिक्वड मर्करी और तीसरे पाइप से पेट्रोल। 8 लीटर लिक्वड वुल्फबेन पहले गया। लगभग उसके 15 मिनट बाद 6 लीटर पेट्रोल और सबसे आखरी में 4 लीटर लिक्वड मर्करी।


रूही:- सब डाल दिया इसके अंदर।


आर्यमणि:- पेट्रोल डालते रहो और, इसके चिथरे उड़ाने है।


रूही:- बॉस, 12.30 बज गया है, लोग हमारी तलाश में निकल रहे होंगे।


आर्यमणि:- एक का कॉल नहीं आया है अभी तक, मतलब अभी सब मामला समझने कि कोशिश ही कर रहे होंगे।


"मुझसे और इंतजार नहीं होता, आप तो हमे पकाये जा रहे हो। ये हुआ रावण दहन को तैयार। सब ताली बजाकर हैप्पी दशहरा कहो"… रूही जल्दी मे अपनी बात कही और सभी ने पेट्रोल पाइप में आग लगा दिया। अंदर ऐसा विस्फोट हुआ कि आर्यमणि के पूरे शरीर पर मांस के छींटे थे। उसका शरीर विस्फोट के संपर्क में आ चुका था और हालत कुछ फिल्मी सी हो गई थी। चेहरे की चमरी जल गई। कपड़ों में आग लगना और फिर बुझाया गया। आर्यमणि की हालत कुछ ऐसी थी.… आधा चेहरा जला। आधे जले कपड़े और पूरे शरीर पर मांस के छींटे के साथ शरीर पर विस्फोट के काले मैल लगे थे।


आर्यमणि बदहाली से हालात में चारो को घूरने लगा। आर्यमणि को देखकर चारो हसने लगे। रात के तकरीबन पौने १ (12.45am) बज रहे थे, आर्यमणि के मोबाइल पर रिंग बजा… "शांत हो जाओ, और तुम सब भी सुनो।"… कहते हुए आर्यमणि ने फोन स्पीकर पर डाला..


पलक:– हेलो...

आर्यमणि:– हां पलक...

पलक:– उम्म्मआह्ह्ह्ह... लव यू मेरे किंग। नागपुर पहुंचकर अब तक गुड न्यूज नही दिये।

आर्यमणि:– मुझे लगा गुड न्यूज तुम्हे देना है। हमने एक साथ इतने शानदार कारनामे किये की मुझे लगा तुम उम्मीद से होगी।

पलक, खून का घूंट अपने अंदर पीती.… "मजाक नही मेरे किंग। प्लीज बताओ ना...


आर्यमणि:– अनंत कीर्ति की पुस्तक खोलने की कोशिश तो की लेकिन जब वह नही खुला तब घूमने निकल आया। अब किस मुंह से कह देता की मैं असफल हो गया।


"कहां हो अभी तुम मेरे किंग।"… पलक की गंभीर आवाज़..

आर्यमणि जोड़ से हंसते हुये.… "राजा–रानी.. हाहाहा.. तुम्हे ये बचकाना नही लग रहा है क्या?"

पलक चिढ़ती हुई... "कहां हो तुम इस वक्त आर्य"…

आर्यमणि:– सरदार खान के चीथड़े उड़ा रहा था। तुम इतनी सीरियस क्यों हो?

पलक, लगभग चिल्लाती हुई…. "सरदार खान तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं थी, तुम्हारे वॉयलेंस के कारण संतुलन बिगड़ चुका है। तुमने यह अच्छा नहीं किया।"


आर्यमणि:- अच्छा नही किया। पलक एक दरिंदे को मैंने मारा है, जिसने मेरे पैक के साथ बहुत ही अत्याचार किया था। रेपिस्ट और मडरर के लिये इतना भी क्या गुस्सा। मैने तुमसे प्यार किया लेकिन शायद तुमने मुझे कभी समझा ही नहीं। मेरे साथ रहकर तुमने इतना नहीं जाना की मेरे डिक्शनरी में अच्छा या बुरा जैसा कोई शब्द नहीं होता। अब जो कर दिया सो कर दिया। रत्ती भर भी उसका अफसोस नहीं...


पलक:- अनंत कीर्ति की किताब कहां है।


आर्यमणि:- वो मुझसे खुलते-खुलते रह गई। जब मै खोल लूंगा तो किताब का सारांश पीडीएफ बनाकर मेल कर दूंगा।


पलक:- दुनिया में किसी के लिए इतनी चाहत नही हुयि, जितना मैने तुम्हे चाहा था आर्य। लेकिन तुमने अपना मकसद पाने के लिए मुझसे झूट बोला। तुमने मेरे साथ धोका किया है आर्य, तुम्हे इसकी कीमत चुकानी होगी।


आर्यमणि:- प्यार तो मैने भी किया था पलक। यदि ऐसा न होता तो आर्यमणि का इतिहास पलट लो, वो किसी को इतनी सफाई नही दे रहा होता। शायद अपनी किस्मत में किसी प्रियसी का प्रेम ही नही। और क्या कही तुम अपने मकसद के लिये मैंने तुम्हारा इस्तमाल किया। ओ बावड़ी लड़की, सरदार खान को मारना मेरा मकसद कहां से हो गया। उसके सपने क्या मुझे बचपन से आते थे? यहां आया और मुझे एक दरिंदे के बारे में पता चला, नरक का टिकिट काट दिया। ठीक वैसे ही एक दिन मै मौसा के हॉल का टीवी इधर से उधर कर रहा था, पता नहीं क्या हो गया उस घर में। मौसा ने मुझे एक फैंटेसी बुक दिखा दी।"

"अब जिस पुस्तक का इतना शानदार इतिहास हो उसे पढ़ने के लिये दिल में बेईमानी आ गयी बस। यहां धूम पार्ट 1, पार्ट 2, और पार्ट 3 की तरह कोई एक्शन सीरीज प्लान नहीं कर रहा था। लगता है तुम लोग किसी मकसद को साधने के लिए इतनी प्लांनिंग करते हो। जैसा की शायद सतपुरा के जंगल में हुआ था। अपने से इतना नहीं होता। अब तो बात ईगो की है। मै ये बुक अपने पास रखूंगा। इस किताब की क्या कीमत चुकानी है, वो बता दो।"


पलक:- तुम्हारे छाती चिड़कर दिल बाहर निकालना ही इसकी कीमत होगी। तुमने मुझे धोका दिया है। कीमत तो चुकानी होगी, वो भी तुम्हे अपनी मौत से।


आर्यमणि:- "तुम्हे बुक जाने का गम है, या सरदार के मरने का या इन दोनों के चक्कर में तुम्हारे परिवार ने मुझसे नाता तोड़ने कह दिया उसका गम है, मुझे नहीं पता। अब मैं ये बुक लेकर चला। वरना पहले मुझे लगा था, सरदार को मारकर जब मैं वापस आऊंगा तो तुम मुझे प्रहरी का गलेंटरी अवॉर्ड दिलवा दोगी। तुमने तो किताब चोर बाना दिया। खैर, तुमने जो मुझे इस किताब तक पहुंचाने रिस्क लिया और मुझ पर भरोसा जताया उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया। मैं तुम्हारे भरोसे को टूटने नहीं दूंगा। एक दिन यह किताब खोलकर रहूंगा।"

"मैंने और मेरे पैक ने सरदार को खत्म किया। तुम्हारे 10 प्रहरी को बचाया। शहर पर एक बड़ा हमला होने वाला था, जिसे ये लोग जंगली कुत्तों का अटेक दिखाते, उस से शहर को बचाया। बिना कोई सच्चाई जाने तुमने दुश्मनी की बात कह दी। मै चला, अब किसी को अपनी शक्ल ना दिखाऊंगा। तबतक, जबतक मेरा दिल ना जुड़ जाये। और हां देवगिरी भाऊ को थैंक्स कह देना। उन्होंने जो मुझे 40% का मालिक बनाया था, वो मै अपने हिस्से के 40% ले लिया हूं। जहां भी रहूंगा उनके पैसे से लोक कल्याण करूंगा। रूही मेरे दिल की फीलिंग जारा गाने बजाकर सुना दो।"


पलक उधर से कुछ–कुछ कह रही थी लेकिन आर्यमणि ने सुना ही नहीं। उपर से रूही ने… "ये दुनिया, ये महफिल, मेरे काम की नहीं"….. वाला गाना बजाकर फोन को स्पीकर के पास रख दिया।


आर्यमणि:- सरदार की बची लाश को क्रॉस चेक कर लिया ना? ऐसा ना हो हम यहां लौटकर आये और ये जिंदा मिले। इसकी हीलिंग पॉवर कमाल की है।


रूही:- हम सबने चेक कर लिया है बॉस, तुम भी सुनिश्चित कर लो।


ओजल:- ओ ओ.. पुलिस आ रही है।


आर्यमणि:- अच्छा है, वो आरी निकलो। पुलिस वालों से ही लाश कटवाकर इसकी मौत सुनिश्चित करेंगे।


1 एसआई, 1 हेड कांस्टेबल और 4 कांस्टेबल के साथ एक पुलिस जीप उनके पास रुकी। इससे पहले कि वो कुछ कहते… "जेल ले जाओगे या पैसे चाहिए।"..


एस आई… "कितने पैसे है।"..


आर्यमणि:- मेरे हिसाब से किये तो 20 लाख। और यहां से आंख मूंदकर केवल जाना है तो 2 लाख। जल्दी बताओ कि क्या करना है।


एस आई:- ये अच्छा आदमी था, या बुरा आदमी।


आर्यमणि:- कोई फर्क पड़ता है क्या?


एस आई:- अच्छा आदमी हुआ तो 1 करोड़ की मांग होगी, वो क्या है ना जमीर गवाही नहीं देगा। बुरा आदमी है तो 20 लाख बहुत है, पार्टी भी कर लेंगे।


रूही:- ये मेरा बाप था। नागपुर बॉर्डर पर इसकी अपनी बस्ती है, सरदार खान नाम है इसका।


एस आई:- 50% डिस्काउंट है फिर तो। साले ने बहुत परेशान कर रखा था... यहां के कई गांव वालों को गायब किया था।


आर्यमणि:- इसकी लाश को काटो। रूही 50 लाख दो इन्हे। सुनिये सर इसकी वजह से जिन घरों की माली हालात खराब हुई है उन्हें मदद कर दीजिएगा।


एस.आई, लाश को बीच से कई टुकड़े करते…. "इतनी ज्यादा दुश्मनी थी, की मरने के बाद चिड़वा रहे। खैर तुमलोग अच्छे लगे। लो एक काम तुम्हारा कर दिया, अब तुम सब निकलो, मै केवल विस्फोट का केस बनाता हूं, और इसकी लाश को गायब करता हूं।


आर्यमणि, एस.आई कि बात मानकर वहां से निकल गया। उसके जाते ही एस.आई, सरदार खान के ऊपर थूकते हुए…. "मैं तो यहीं था जब तू लाया गया। आह दिल को कितना सुकून सा मिला। चलो ठिकाने लगाओ इसको और इस जगह की रिपोर्ट तैयार करके दो।"..


इधर ये सब जैसे ही निकले…. "इन लोगो के पास हमारे यहां आने की पूर्व सूचना थी ना। लगा ही नहीं की ये किसी के फोन करने के कारण आये हैं।".. रूही ने अपनी आशंका जाहिर की


आर्यमणि:- सरदार अपनी दावत के लिये यहीं से लोगो को उठाया करता था। ये थानेदार यहीं आस-पास का लोकल है, जिसको पहले से काफी खुन्नस थी। इसकी गंध मैंने 20 किलोमीटर पहले ही सूंघ ली थी, जब हम एमपी में इन किये। ये बॉर्डर पर ही गस्त लगा रहा था। खैर समय नहीं है, चलो पहले निकला जाय।


इन लोगो ने वोल्वो को एमपी के एक छोटे से टाउन सिवनी तक लेकर आये, जो नागपुर और जबलपुर के हाईवे पर पड़ने वाला पहला टाउन था। वोल्वो एक वीराने में लगा जहां उसके समान को ट्रक में लोड किया गया और वाया बालाघाट (एमपी), गोंदिया (महाराष्ट्र) के रास्ते उसे कोचीन के सबसे व्यस्त पोर्ट तक पहुंचाने की वयवस्थ करवा दी गयि थी। वोल्वो खाली करवाने के तुरंत बाद जबलपुर, प्रयागराज के रास्ते दिल्ली के लिये रवाना हो गयि। वोल्वो पर लाये स्वामी के बेहोश आदमी के दिमाग के साथ आर्यमणि ने थोड़ी सी छेड़–छाड़ किया और उसे 40 लाख के बैग के साथ वहीं वीराने में छोड़ दिया। वोल्वो एक अतरिक्त काम था, जिसे करवाने के लिये थोड़ी मेहनत करनी पड़ी थी। बाकी चकमा देने का जो भी काम था, वह वोल्वो के खाली होने के साथ ही चल रहा था।


वोल्वो का काम समाप्त करने के उपरांत वुल्फ पैक सिवनी टाउन से जबलपुर के रास्ते पर तकरीबन 20 किलोमीटर आगे तक दौड़ लगाते पहुंचे, जहां इनके लिये 2 स्पोर्ट कार पहले से खड़ी थी। एक कार में रूही और दूसरे में आर्यमणि, और दोनो स्पोर्ट कार हवा से बातें करती हुयि जबलपुर निकली। सभी के मोबाइल सड़क पर थे। लगभग रात के 2 बजे तक इनका लोकेशन सबको मिलता रहा, उसके बाद अदृश्य हो गये।
Khan ki yaado ko badla gya hai ye bhi arya ko pta hai dekhte hai palak ab kya karti hai vahi bhumi Di bhi...
 
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