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Romance "Ankush & Anya - Dil Ke Daayire Mein"

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Chapter 1: पहली नज़र का एहसास

बिहार के सीमांचल क्षेत्र में बसा एक छोटा-सा गांव था—राजदेहरी। ना तो बहुत आधुनिक, ना ही बहुत पिछड़ा, पर अपनी सादगी में स्वाभिमान और संस्कृति समेटे हुए। यहाँ की गलियों में अब भी बच्चे मिट्टी में खेलते थे, और बुज़ुर्ग पीपल के नीचे बैठकर किस्से सुनाते थे। सुबह मंदिर की घंटियाँ, चाय की दुकानों की गहमागहमी, और खेतों से आती ताज़ी हवा—ये सब मिलकर राजदेहरी को एक जीवंत आत्मा देते थे।

इसी गांव की एक पुरानी मगर भरोसेमंद दुकान थी—"Sharma Electronics"। इस दुकान के मालिक थे हर्षवर्धन शर्मा, जो गांव में वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक सामान का थोक व्यापार करते आ रहे थे। साथ में उनकी पत्नी कविता देवी, एक धार्मिक और परंपरावादी महिला, और इन दोनों की इकलौती संतान—अन्या शर्मा।

अन्या साधारण सी दिखने वाली, पर उसकी आंखों में एक खास चमक थी। उसकी मुस्कान में अपनापन था और व्यवहार में शालीनता। उसने कॉलेज की पढ़ाई पास के कस्बे से की थी लेकिन अब पूरा समय अपने माता-पिता के साथ दुकान में लगाती थी। गांव की परंपरा से जुड़ी हुई, फिर भी मन ही मन अपने जीवन के लिए कुछ अलग ख्वाब पाले हुए।

उधर, देश के सबसे युवा और सफल बिजनेस टाइकून में गिने जाने वाले अंकुश चौधरी के जीवन में बाहरी चमक थी, लेकिन अंदर एक खालीपन।

दिल्ली, मुंबई, दुबई से लेकर यूरोप तक फैला हुआ उसका व्यापार उसे धन और शोहरत तो दे चुका था, लेकिन सच्चा अपनापन नहीं। हर रिश्ता किसी ना किसी स्वार्थ से जुड़ा हुआ था। उसका दिल अब भी किसी असली एहसास की तलाश में था। और यही तलाश उसे राजदेहरी तक ले आई।

राजदेहरी में उसकी कंपनी की ओर से CSR प्रोजेक्ट के तहत एक स्कूल और हेल्थ सेंटर खोलने का प्रस्ताव था। लेकिन अंकुश हमेशा हर चीज़ को खुद देखना पसंद करता था।

अपने पहचान को छुपाकर, सामान्य कपड़ों में, वो अकेले ही गाड़ी चलाकर गांव पहुंचा। बिना बॉडीगार्ड, बिना किसी तामझाम के। सिर्फ एक पहचान—एक आम इंसान की।

गांव में कदम रखते ही उसे कुछ अलग सा सुकून महसूस हुआ। कच्ची सड़कें, मिट्टी की खुशबू, और लोगों की सादगी ने उसके थके हुए मन को राहत दी। गाड़ी के पहिए चौक के पास एक पुरानी दुकान के सामने रुके—यही थी "Sharma Electronics"।

गाड़ी से उतरकर जैसे ही उसने दुकान के अंदर कदम रखा, उसका सामना हुआ अन्या से।

वो झुकी हुई थी, कुछ डिब्बे नीचे से निकाल रही थी। तभी संतुलन बिगड़ा और एक बड़ा बॉक्स गिरने को था, तभी अंकुश ने फुर्ती से हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया।

"सावधान, ये भारी है," अंकुश ने कहा।

अन्या चौंकी, फिर मुस्कुरा दी। "धन्यवाद... आप ग्राहक हैं?"

"हां, कुछ छोटा-मोटा सामान लेना था।"

उसकी आवाज़ में गहराई थी और व्यवहार में नम्रता। अन्या ने उसे कोई खास तवज्जो नहीं दी, लेकिन उसके मन में हलचल जरूर हुई।

अंकुश ने एक छोटा स्पीकर खरीदा और मुस्कुराकर बाहर चला गया। लेकिन जाते-जाते नज़रों में एक सवाल छोड़ गया। अगले दिन फिर आया, इस बार बहाने से।

"एक ट्रैवल आयरन चाहिए," उसने कहा।

अन्या ने चुटकी ली, "आप रोज कुछ ना कुछ लेने आ जाते हैं..."

"आपकी दुकान पसंद आ गई है।"

वो मुस्कुरा दी, लेकिन उसकी नज़रें झुक गईं। अब अंकुश का आना रोज का सिलसिला बन गया। कभी बल्ब, कभी चार्जर, कभी कोई तार। और हर बार उनके बीच थोड़ी और बातें होतीं। मौसम, गांव, त्योहार, बचपन की बातें, सपनों की चर्चा।

एक दिन दुकान बंद हो रही थी। अन्या शटर गिरा रही थी, तभी अंकुश आ गया।

"देर हो गई क्या?"

"थोड़ी। लेकिन बताइए, क्या चाहिए आज?"

"आपकी पसंद का कुछ... जो हमेशा साथ रह सके।"

अन्या मुस्कुरा दी, "ये तो दुकान में नहीं मिलेगा।"

अंकुश ने गहरी नजरों से देखा, "मिल सकता है, अगर इजाज़त हो।"

अब दोनों के बीच एक अजीब-सी खामोशी थी। ये खामोशी बोली बहुत कुछ।

अगले दिन गांव में खबर फैली कि एक बड़ा व्यापारी गांव में हेल्थ सेंटर खोलने वाला है। अन्या के पिता भी उसी सभा में पहुंचे। मंच पर जब गांव के प्रधान ने घोषणा की—"हमारे बीच मौजूद हैं Choudhary Global Group के मालिक अंकुश चौधरी।"

सबकी निगाहें उस व्यक्ति पर पड़ीं जो साधारण कपड़ों में सबसे पीछे बैठा था। अन्या के माता-पिता चौंक गए। अन्या की आंखों में हैरानी थी... और दिल में एक खटका।

सभा के बाद, अंकुश ने अन्या को अकेले में बुलाया।

"मुझे माफ करना... मैंने झूठ नहीं बोला, लेकिन सब सच भी नहीं बताया। मैं चाहता था कोई मुझे मेरे नाम से नहीं, मेरे दिल से पहचाने।"

अन्या ने उसकी आंखों में देखा। वहां कोई घमंड नहीं था, बस सच्चाई थी।

"क्या तुम अब भी मुझसे वैसे ही बात कर पाओगी जैसे पहले करती थी?"

अन्या ने मुस्कुरा कर कहा, "अगर आप अब भी वही इंसान हैं जो रोज़ छोटी-छोटी चीजें लेने आता था, तो हां..."

धीरे-धीरे अंकुश ने अन्या के परिवार से मेल-जोल बढ़ाया। शुरुआत में विरोध था। हर्षवर्धन शर्मा जैसे सरल व्यापारी के लिए ये रिश्ता किसी सपने जैसा था। पर वक्त ने सबको समझा दिया कि इंसान का मूल्य उसकी सच्चाई में है, न कि दौलत में।

कुछ महीनों बाद, पूरे गांव के सामने अंकुश और अन्या की सगाई हुई। बिना किसी दिखावे के, सिर्फ प्यार और अपनत्व से भरा एक सादा समारोह।

अंकुश ने उस दिन कहा—

"मैंने दुनिया देखी है, पर जो सच्चा जीवन है, वो मुझे इस गांव में, और तुममें मिला है अन्या।"

अन्या ने उसका हाथ थामा और कहा, "और मुझे वो मिला जो हर लड़की चाहती है—एक ऐसा साथी जो सिर्फ अमीर नहीं, बल्कि सच्चा हो।"
 
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Chapter 2: प्यार की पहली बारिश

राजदेहरी की सुबह अब पहले जैसी नहीं रही थी। हवा में एक नई महक थी, जैसे फूल खिले हों किसी छुपे बग़ीचे में। गांववालों की निगाहें अब शर्मा इलेक्ट्रॉनिक्स की ओर ज्यादा उठने लगी थीं। वजह सिर्फ वो पुरानी दुकान नहीं थी, बल्कि वो नई कहानी थी जो अंकुश और अन्या के बीच लिखी जा रही थी—धीरे-धीरे, शब्द दर शब्द।

अंकुश अब रोज़ आता था—but अब वह ‘ग्राहक’ नहीं था, अब वह ‘रिश्ता’ था।

बिना किसी दिखावे के, वह अन्या के पिता के साथ दुकान में बैठने लगा था। उन्हें सामान जमाने में मदद करता, दाम की बातचीत में शरीक होता और कभी-कभी गांव के बच्चों को मुफ्त में पुराने स्पीकर दे देता—ये कहकर कि “शोर मचाओ ज़िंदगी में, चुप रहकर कुछ नहीं मिलता।”

अन्या के दिल में हलचल थी।

वो जो कभी सिर्फ दुकान पर ध्यान देती थी, अब आईने के सामने खड़ी होकर अपने बालों को सवारने लगी थी। उसके कपड़ों में सजगता आ गई थी, और आंखों में चुपचाप इंतज़ार। वो जानती थी कि अंकुश अब सिर्फ ग्राहक नहीं है—वो उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बनने की दहलीज़ पर खड़ा है।

एक दिन दोपहर को अचानक बादल घिर आए। गर्मी से झुलसते गांव में सबने राहत की सांस ली। बिजली चमकी और बूंदें टपकने लगीं।

अंकुश दुकान के सामने खड़ा था। जैसे ही बारिश की पहली बूंदें ज़मीन से टकराईं, वो वहीं रुक गया। आंखें बंद कर लीं।

अन्या ने देखा। उसके हाथ में चाय की प्याली थी, जो उसने अंकुश के लिए बनाई थी। वो बाहर आई, मुस्कुरा कर बोली, “आपके शहरों में भी ऐसी बारिश होती है क्या?”

अंकुश ने आंखें खोलीं। उसकी पलकें भीग चुकी थीं, पर उनमें चमक थी।

“नहीं। वहां बारिश सिर्फ आसमान से गिरती है, यहां दिल पर उतरती है।”

वो चाय का प्याला थामते हुए उसकी तरफ देखता रहा।

कुछ देर दोनों चुपचाप वहीं खड़े रहे, जैसे वक़्त थम गया हो। फिर अचानक, गांव के बच्चे आते हैं, बारिश में कागज़ की नावें तैराते हुए।

“चलिए, नाव चलाते हैं,” अंकुश ने कहा।

“क्या?” अन्या चौंकी।

“अरे बचपन तो यहां छोड़ आए हैं क्या?”

दोनों ने पुराने रजिस्टर के पन्ने फाड़े, नावें बनाई और उन्हें पानी के धार में बहाने लगे। अंकुश हँस रहा था, अन्या भी। और ये हँसी नकली नहीं थी, उसमें वही सच्चाई थी जो पहली बारिश में भीगी मिट्टी की खुशबू में होती है।

उसी शाम, बारिश थमी, लेकिन दो दिलों की बेचैनी बढ़ गई।

दुकान बंद हो चुकी थी। हर्षवर्धन जी और कविता देवी घर जा चुके थे। अंकुश और अन्या अकेले थे।

“आप गांव कब तक रहेंगे?” अन्या ने पूछा।

“जब तक तुम मुझे यहां रहने दोगी।”

वो चौंकी, पर उसकी आंखें अब झुक नहीं रही थीं।

“आप जानते हैं ना, मेरे मम्मी-पापा अब भी सोच में हैं… आपके और हमारे बीच बहुत फासला है।”

“फासला सिर्फ दूरी में होता है, दिल में नहीं। मैं ये दूरी मिटाने आया हूं। और मैं तब तक नहीं जाऊंगा जब तक मैं तुम्हारे पापा से एक बेटी की नहीं, एक ज़िम्मेदारी की इजाज़त ना मांग लूं।”

अन्या की आंखें भर आईं, पर उसने आंसुओं को पलकों पर ही थाम लिया।

“अगर वो मना कर दें तो?”

“तो मैं हर दिन नया बहाना बनाकर यहां आता रहूंगा... कभी बल्ब टूट जाएगा, कभी वायर ढीला हो जाएगा। लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा।”

अन्या ने पहली बार उसका हाथ थामा। “आप हारेंगे नहीं, लेकिन मैं आपको जीतने दूंगी भी नहीं इतनी जल्दी।”

वो दोनों हँस पड़े।

उस रात पहली बार अन्या ने अपने कमरे की खिड़की खोली, और दूर आसमान के तारे देखे। उनमें से एक तारा उसे बहुत अपना लग रहा था—जैसे वो उसे देख रहा हो, मुस्कुरा रहा हो।
अगले दिन सुबह दुकान जल्दी ही खुल गई थी, लेकिन आज माहौल कुछ बदला-बदला था। गांव में किसी ने देख लिया था अंकुश और अन्या को पिछली शाम बारिश में नाव तैराते हुए। अब वही बात चाय की दुकानों से लेकर मंदिर के आंगन तक पहुंच गई थी।

“शर्मा जी की बेटी तो बहुत सीधी-सादी थी, अब देखो ज़माना कैसे बदल रहा है…”
“वो लड़का कौन है वैसे?”
“पता नहीं, पर बड़ा तीसमार खां लगता है। बोलचाल में नवाबी है और कपड़ों से भी अमीर लगता है।”

हर कान में फुसफुसाहट थी, और हर जुबान पर वही नाम – अंकुश।

जब अन्या अपने पिता के साथ दुकान में बैठी, तो माहौल कुछ ठंडा सा लगने लगा।

हर्षवर्धन जी आज कुछ चुप थे।

कविता देवी रसोई में बर्तन धोते-धोते बाहर झांक रही थीं, जैसे किसी जवाब की तलाश कर रही हों।

अंकुश दुकान पर आया, पर आज की चाय वैसी गर्म नहीं थी।

हर्षवर्धन जी ने एक नजर उठाकर उसे देखा, फिर आंखें झुका लीं।

“अंकुश बेटा,” उन्होंने अचानक कहा, “तुम्हारा गांव में कोई रिश्तेदार है?”

“नहीं चाचा जी, कोई नहीं। मैं बस यहां... अकेला ही आया हूं।”

“और ये बिज़नेस?”

“फिलहाल कुछ खास नहीं कर रहा। अपने लिए कुछ तलाश रहा हूं।”

“हूं…” उन्होंने गहरी सांस ली, और फिर दुकान के अंदर चले गए।

अंकुश समझ गया था—कहानी अब गांव की गलियों से उसके दिल तक पहुंच चुकी थी।

वो अन्या की तरफ मुड़ा, “क्या मैंने कुछ गलत किया?”

“नहीं,” अन्या धीमे स्वर में बोली, “पर लोग बातें बना रहे हैं। पापा परेशान हैं, मम्मी बेचैन। वो आपको अब शक की नजर से देख रहे हैं।”

“पर मैं तो सिर्फ...” वो कहते-कहते रुक गया।

“सिर्फ मुझसे मिलने आ रहे थे?” अन्या ने आंखों में झांकते हुए पूछा।

“हां। और आज से... मैं अपने बारे में सच बताने जा रहा हूं। सब कुछ।”

उसी रात अंकुश ने फैसला कर लिया था—अब वो छुपकर नहीं, खुलकर प्यार करेगा। सच्चाई के साथ, इज़्ज़त के साथ।

अगली सुबह वह फिर दुकान पर आया। इस बार उसने वही शर्ट पहनी थी जो अन्या को पसंद थी—सफेद लाइट लिनन की, जिसमें उसकी आंखें और ज्यादा गहरी लगती थीं।

उसने हाथ में एक लेटर पकड़ा था। हर्षवर्धन जी दुकान में अकेले बैठे थे।

“चाचा जी,” उसने धीरे से कहा, “मुझे दो मिनट चाहिए।”

हर्षवर्धन जी ने सिर हिलाया।

अंकुश ने लेटर उनके सामने रख दिया।

“ये मेरे बारे में है—सच। मेरा नाम अंकुश चाैधरी है। दिल्ली में हमारी एक टेक-इंफ्रा कंपनी है, जिसका सालाना टर्नओवर 750 करोड़ से ज़्यादा है। मैं वहां का फाउंडर हूं। लेकिन मैं यहां किसी बड़े नाम या पैसे के लिए नहीं आया। मैं यहां सिर्फ आपकी बेटी की मुस्कान के लिए आया हूं।”

हर्षवर्धन जी ने लेटर पढ़ा, चश्मा उतारा और थोड़ी देर खामोश रहे।

“अगर तुम इतने बड़े आदमी हो, तो झूठ क्यों बोला?”

“क्योंकि सच कहता तो आपके घर की चाय कभी नसीब नहीं होती... और आपकी बेटी की सादगी से मैं कभी मिल नहीं पाता।”

तभी कविता देवी अंदर से निकल आईं। उन्होंने भी सब सुन लिया था।

“हम अमीर दामाद नहीं चाहते,” उन्होंने सीधा कहा। “हम अपनी बेटी की इज़्ज़त चाहते हैं। और तुम्हारा अमीरी का सच, अब हमारे लिए डर बन चुका है।”

अंकुश चुप खड़ा रहा।

उसने सिर झुकाया और कहा, “मैं वापस नहीं जाऊंगा, लेकिन जब तक आप माफ न करें, मैं अन्या से बात भी नहीं करूंगा। आप मेरा इम्तिहान लीजिए, मुझे वक्त दीजिए।”

और वो दुकान से बाहर निकल गया।


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गांव के चौपाल में अब नए किस्से थे।

कुछ कहते – “देखा, असली अमीर तो वही होता है जो ज़मीन से जुड़ा हो।”
कुछ कहते – “अब देखो, शर्मा जी क्या करते हैं।”

लेकिन अन्या के दिल में एक तूफान था।

वो पहली बार रात को सो नहीं पाई।

उसने कमरे की दीवारों से सवाल किए। आईने से बात की। चुपके से मंदिर जाकर घंटी भी बजाई।

“अगर ये प्यार है, तो भगवान, पापा को यकीन दिला दो।”

और फिर, दो दिन बाद... गांव में एक और बारिश आई।

पर इस बार नांव नहीं तैरी, इस बार एक रिश्ता भीगा।

अंकुश गांव के स्कूल में बच्चों के लिए नया कंप्यूटर रूम सेट करवा रहा था।

हर्षवर्धन जी ने ये देखा। देखा कि वो अब भी रोज आता है, सबकी मदद करता है, किसी से कुछ नहीं कहता।

फिर उन्होंने एक रात कविता देवी से कहा, “शायद हम गलत थे। आदमी की हैसियत से नहीं, उसके इरादे से पहचान होनी चाहिए।”

और अगले दिन... उन्होंने दुकान के सामने खड़े अंकुश से कहा, “बेटा, आज खाना हमारे साथ खाओ।”

अंकुश की आंखें भर आईं।

अन्या ने खिड़की से देखा, और उसके होंठों पर वो मुस्कान लौट आई, जो सिर्फ पहली बार प्यार में पड़ने पर आती है।
 
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Chapter 3: परख की अग्नि

गांव की गलियों में हवा अब अलग बह रही थी। गांववाले अब धीरे-धीरे अंकुश को अपना मानने लगे थे। बच्चे उसके आसपास मंडराने लगे थे, और बड़े बुजुर्ग उसे "बाबू साहब" कहकर बुलाने लगे थे, हालाँकि वह बार-बार मना करता, “मैं सिर्फ अंकुश हूं।”

हर्षवर्धन जी अब उससे खुलकर बातें करने लगे थे। कविता देवी ने भी उसे दोपहर की दाल-चावल की थाली में घी ज़्यादा डालना शुरू कर दिया था—यह गांव की औरतों का प्यार जताने का तरीका था।

लेकिन सबसे बड़ी बात, जो अनकही थी—अन्या अब खुलकर मुस्कराने लगी थी।

अंकुश जब दुकान आता, और चुपचाप किसी कोने में बैठकर ग्राहकों की आवाजें सुनता, तो अन्या उसकी ओर एक नजर ज़रूर डालती। फिर वही नजरें झुका लेती, जैसे कुछ कहना चाहती हो, पर शब्दों में हिम्मत ना हो।

इन्हीं दिनों की नर्म सुबह में, एक दिन गांव में दिल्ली से एक बड़ी गाड़ी आकर रुकी—काले शीशे, भारी रौब, और उसमें से उतरा एक आदमी—रेहान मलिक।

रेहान अंकुश का पुराना बिज़नेस पार्टनर था। उसे गांव आने की सूचना अंकुश ने नहीं दी थी, लेकिन शायद कोई और दे चुका था।

रेहान ने आते ही सीधा सवाल दागा—
“क्या कर रहा है तू यहां, अंकुश? तुझे होश भी है? बोर्ड मीटिंग तुझे नहीं चाहिए क्या?”

अंकुश मुस्कराया—“मुझे जिंदगी चाहिए, रिहान। और वो मैंने यहां पाई है।”

“तू पागल हो गया है। इश्क़ के चक्कर में तू अपने पूरे साम्राज्य को दांव पर लगा रहा है। तुझे पता भी है तेरा चेयरमैन बोर्ड अब तुझसे सवाल कर रहा है।”

अंकुश ने उसकी बात अनसुनी करते हुए कहा—“मैंने अपने बिज़नेस को वक्त दिया है। अब अपने दिल को भी देने का वक्त है।”

लेकिन गांव में किसी ने ये बात सुन ली—और जो सुना, वो पूरी सच्चाई नहीं थी।

गलतफहमी की शुरुआत

उस शाम गांव में चर्चा फैल गई—
"वो लड़का भागा हुआ है शहर से। उसका बिज़नेस डूब गया है। यहां किसी से छुपने आया है।"
"कहते हैं उसके ऊपर केस भी चल रहा है।"

जब ये बातें शर्मा जी के कानों तक पहुंचीं, तो उनके माथे पर एक बार फिर चिंता की लकीरें उभर आईं।

उन्होंने कविता देवी से कहा—"हमने जल्दीबाज़ी की शायद। कुछ बात छुपाई गई हमसे।"

अन्या तक भी बातें पहुंचीं। पहले तो उसने भरोसा नहीं किया। लेकिन जब अगले दिन अंकुश दुकान पर नहीं आया, और दो दिन तक उसका कोई पता नहीं चला, तो उसके मन में भी हलचल होने लगी।

दिल और दिमाग की जंग

तीसरे दिन अन्या खुद स्कूल के बाहर खड़ी रही—जहां अंकुश बच्चों को कम्प्यूटर सिखाया करता था। लेकिन वहां कोई नहीं था। कंप्यूटर रूम बंद था। कुंडी पर धूल जम चुकी थी।

उस रात अन्या ने पहली बार मंदिर में जाकर फूट-फूट कर रोया।

“अगर वो झूठा था तो ये आंसू क्यों सच लगते हैं?”
“अगर उसका प्यार दिखावा था, तो मेरी धड़कनें क्यों उसे पुकार रही हैं?”

वहीं, दिल्ली में—रेहान ने अंकुश को मजबूरी में घसीट लिया था।
“कम से कम एक बार बोर्ड के सामने जाकर सफाई तो दे, वरना तुझे CEO पद से हटा देंगे।”

अंकुश की आंखों में गांव की गलियां तैर रही थीं, और अन्या की मुस्कान।
“मैं वहाँ नहीं जाऊँगा जब तक मेरे दिल को गलत साबित किया जा रहा है।”

और वो वापस चल पड़ा—उस जगह जहां दिल था।

टकराव की घड़ी

अगले दिन सुबह, दुकान के सामने बड़ी भीड़ जमा थी। अंकुश वापस आया था।

वहीं शर्मा जी खड़े थे, और उनके हाथ में दिल्ली के एक न्यूज़पेपर की कटिंग थी, जिसमें लिखा था:
"Young Billionaire Ankush Chaudhary Resigns From His Company, Chooses Rural Life Over Empire."

“तो ये सच है?” उन्होंने गुस्से से पूछा।

“हां,” अंकुश ने कहा, “मैंने सब कुछ छोड़ दिया। लेकिन झूठ नहीं बोला।”

“और जो बिज़नेस पार्टनर यहां आया था? जो कह रहा था कि तुम मुसीबत में हो?”

“वो मेरी पुरानी जिंदगी का हिस्सा था। जो अब मैं पीछे छोड़ चुका हूं।”

शर्मा जी कुछ पल चुप रहे। फिर बोले—“अगर हमारी बेटी को कल भूखा रहना पड़ा, तब भी तुम उसका हाथ थामे रहोगे?”

“अगर आपकी बेटी को एक वक्त की रोटी भी नसीब न हो, तो मैं खुद खेतों में काम करूंगा। लेकिन उसका सपना, उसकी हँसी कभी कम न होने दूँगा।”

तभी पीछे से अन्या आई। उसकी आंखें नम थीं।

“पापा... मैं जानती हूं आपने जो किया वो मेरी भलाई के लिए था। लेकिन एक बार... सिर्फ एक बार मेरे दिल की बात सुन लीजिए।”

शर्मा जी ने बेटी की आंखों में झांका—और पहली बार डर की जगह विश्वास देखा।

कविता देवी पीछे से आकर बोलीं, “कभी-कभी प्यार ही परख की आग होता है। और इस लड़के ने उस अग्नि को बिना जले पार किया है।”

शर्मा जी ने गहरी सांस ली और हाथ बढ़ाया—

“अंकुश बेटा... हमारा घर अब तेरा है।”


अंत नहीं... ये तो शुरुआत है

उस रात गांव में जैसे कोई त्यौहार था। बच्चे पटाखे फोड़ रहे थे। मंदिर में घंटियां लगातार बज रही थीं। और शर्मा जी की दुकान पहली बार बिना सौदा लिए बंद हुई थी।

अंकुश और अन्या एक ही छत के नीचे खड़े थे। गांव की वही पुरानी सीढ़ियों वाली छत, और ऊपर आकाशगंगा फैली हुई।

“अब क्या?” अन्या ने पूछा।

“अब?” अंकुश मुस्कराया। “अब तू पूछ, सपने क्या हैं। मैं उन्हें हकीकत बनाऊंगा।”

अन्या ने उसकी तरफ देखा। अब वह केवल एक अमीर लड़का नहीं था। अब वह उसका अपना था—उसका विश्वास, उसका जुनून, उसका साथी।
 
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Chapter 4: शादी की चौखट पर

गांव में अब शादी की तैयारियां अंतिम चरण में थीं। हर घर में हल्दी, मेंहदी और गीतों की गूंज थी। शर्मा जी के घर में बिजली की झालरें जगमगा रही थीं और चौक पर मंडप का ढांचा बन चुका था। एक तरफ गांव के कारीगर मंडप सजाने में लगे थे, वहीं दूसरी ओर अन्या अपनी सहेलियों के साथ रसोई में लगी हुई थी। उसकी आंखों में झिझक थी, लेकिन होंठों पर मुस्कान। वो जान चुकी थी कि उसकी दुनिया अब सिर्फ गांव की सीमाओं तक सीमित नहीं रहने वाली।

अंकुश अब गांव का ही नहीं, पूरे क्षेत्र का प्रिय बन चुका था। उसकी सादगी, सम्मान और व्यवहार ने सभी को प्रभावित किया था। वो हर आयोजन में खुद मदद करता, बुजुर्गों से आशीर्वाद लेता और बच्चों को मिठाई बांटता। शर्मा जी के मन की सारी शंकाएं अब खत्म हो चुकी थीं। कविता देवी की आंखों में अब वो दामाद नहीं, बेटा बन चुका था।

एक रात शादी से तीन दिन पहले, चांदनी में डूबे आंगन में अन्या बैठी थी। अंकुश चुपचाप उसके पास आया।

“थक गई हो?” उसने पूछा।

“थोड़ा,” अन्या ने मुस्कुराकर कहा, “लेकिन ये थकान मीठी है। जैसे तुमसे मिलने की प्रतीक्षा थी।”

अंकुश उसकी आंखों में झांकते हुए बोला, “तुम्हारे बिना मेरी सारी दौलत अधूरी थी, अन्या। अब जब तुम साथ हो, मुझे लगता है जैसे जीवन पूरा हो गया है।”

उसने जेब से एक छोटा सा डब्बा निकाला। उसमें एक चांदी की पायल थी, जिसमें छोटे-छोटे अक्षरों में लिखा था — Anya ki Ankush.

“ये तुम्हारे लिए है,” उसने पायल उसके पैरों के पास रखते हुए कहा।

अन्या की आंखें नम हो गईं। “तुम्हारा प्यार हर दिन एक नई तरह से सामने आता है... और हर बार मैं थोड़ी और तुम हो जाती हूं।”

अगले दिन हल्दी की रस्म थी। गांव की महिलाएं पीली साड़ियों में सजकर आई थीं। ढोलक की थाप पर गीत गाए जा रहे थे। अंकुश को हल्दी लगाते हुए कविता देवी बोलीं, “बेटा, अब इस घर के रिवाज़ भी तुम्हारे हो गए हैं।”

इधर अन्या के घर में भी रौनक थी। उसकी सहेलियों ने उसके गालों पर हल्दी लगाते हुए छेड़ना शुरू कर दिया। “कितनी सुंदर लग रही हो दुल्हन रानी!”

शादी से एक दिन पहले शहर से एक और मेहमान आया — अंकुश का बड़ा भाई, आरव चौधरी। वो विदेश में रहता था और बिज़नेस देखता था। आते ही उसने कहा, “भाई, अब मैं सब कुछ संभाल लूंगा। तुम बस शादी पर ध्यान दो।”

अंकुश ने उसका गले लगाकर स्वागत किया। “बस एक वादा करो आरव — अन्या को अपनी बहन समझना, किसी मेहमान की तरह नहीं।”

“ये भी कोई कहने की बात है?” आरव ने हंसकर कहा।

शादी के दिन, गांव के मंदिर को फूलों से सजाया गया था। दूल्हा घोड़ी पर बैठा था, लेकिन कोई तामझाम नहीं था। सिर्फ संगीत, रिश्ते और खुशबू थी। अन्या लाल जोड़े में सामने आई तो सबकी नजरें ठहर गईं।

विवाह के मंत्रों के बीच अंकुश ने उसका हाथ थामा और धीरे से कहा, “अब हम दो नहीं रहे, एक हो गए हैं।”

पंडित ने जैसे ही ‘सप्तपदी’ की शुरुआत की, हर फेरा उनके बीच एक वादा बनता गया — साथ चलने का, हर दुख में सहारा बनने का, और हर सुख में हंसी बांटने का।

शादी पूरी होने के बाद गांव वालों ने दुल्हन को विदा करते हुए आशीर्वाद दिया। शर्मा जी की आंखें भीग गई थीं, लेकिन उनमें संतोष था। कविता देवी ने अन्या को गले लगाते हुए कहा, “अब तू मेरी नहीं, मेरी बेटी बन गई है।”

अन्या अंकुश के साथ चल रही थी, लेकिन हर कदम पर एक विश्वास था — कि उसका प्यार सच्चा था, उसका साथी हमेशा उसके साथ रहेगा, और उसका गांव हमेशा उसकी जड़ों में रहेगा।

कार में बैठते समय अंकुश ने उसका हाथ थामते हुए कहा, “चलो, अब तुम्हें उस दुनिया में ले चलूं, जहां तुम मेरी रानी बनकर राज करोगी।”

और उस पल, गांव के आसमान में जो आतिशबाज़ी छूटी, वो सिर्फ रो
शनी नहीं थी — वो एक नई शुरुआत की चमक थी।
 
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Chapter 5: नई सुबह, नई दुनिया

सुबह की हल्की धूप जैसे ही कार की खिड़कियों से झांकने लगी, अन्या ने आंखें खोलीं। उसकी गोदी में अब भी उसका हाथ अंकुश के हाथ में था। सड़क के दोनों ओर हरियाली फैली हुई थी और दूर-दूर तक खेतों में गेंहू की बालियां हिल रही थीं। पर अब गांव पीछे छूट चुका था और उनके सामने एक नई दुनिया इंतजार कर रही थी — अंकुश की असली दुनिया।

“कितनी प्यारी सुबह है ना?” अंकुश ने मुस्कुरा कर कहा।

“हां,” अन्या ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, “लेकिन थोड़ा डर भी लग रहा है… तुम्हारी दुनिया बहुत अलग है।”

“तुम मेरी दुनिया हो, अन्या। तुम्हारे बिना सब अधूरा है। कोई भी महल खाली लगता है जब उसमें तुम नहीं हो,” अंकुश ने उसकी उंगलियों को दबाते हुए कहा।

कुछ ही घंटों में कार एक भव्य, शाही बंगले के गेट के सामने रुकी। इतना बड़ा घर अन्या ने सिर्फ फिल्मों में देखा था। ऊँची दीवारें, चमचमाती संगमरमर की सड़कें और एक बड़ा सा बगीचा जिसमें विदेशी फूल खिले थे।

जैसे ही कार अंदर पहुंची, दर्जनों नौकर-चाकर दरवाजे पर पंक्तिबद्ध खड़े हो गए। अंकुश ने कार का दरवाज़ा खोलते हुए अन्या की ओर हाथ बढ़ाया, “स्वागत है महारानी जी, अपने महल में।”

अन्या थोड़ी सकुचाई, लेकिन उसने हाथ थाम लिया।

अंदर आते ही एक भव्य हॉल में उसकी भाभी, अंकुश की भाभी और मां की तरह की बड़ी मामी, रेखा चौधरी खड़ी थीं। उन्होंने बड़े प्यार से आरती उतारी और मुस्कराकर कहा, “बहू घर में आई है, अब तो रौनक लौट आई।”

दिनभर घर में मेहमान आते रहे, मिठाइयां बांटी जाती रहीं और हर कोई अन्या से मिलकर प्रभावित होता गया। उसकी सादगी, उसकी आंखों की मासूमियत और बात करने का तरीका, सब पर छा गया था।

शाम को अंकुश उसे घर के एक हिस्से में ले गया, जहां से दिल्ली शहर की रोशनी दूर तक नजर आती थी।

“तुम्हें पता है अन्या, जब भी मैं इस व्यस्त शहर को देखता था, मुझे लगता था कि मेरी दुनिया में सब कुछ है — लेकिन अब समझ आता है, तुम्हारे बिना ये सब बेकार था।”

अन्या ने उसकी तरफ देखा, “तुम्हारा घर बहुत बड़ा है, तुम्हारी दुनिया बहुत आलीशान है… लेकिन मैं चाहती हूं कि हम इसमें अपनी छोटी सी दुनिया बसाएं… जिसमें सिर्फ हम दो हों, हमारे रिश्ते हों, और सच्चा प्यार हो।”

अंकुश ने उसके माथे पर एक हल्की सी चुम्बन दी, “वही दुनिया तो मैं हर दिन तुम्हारे साथ बनाना चाहता हूं।”

अगले दिन अंकुश ने अन्या को अपने ऑफिस ले जाने का फैसला किया। वो चाहता था कि अन्या उसकी प्रोफेशनल दुनिया को भी समझे। वो उसका परिचय अपने स्टाफ से कराना चाहता था, खासकर अपनी सेक्रेटरी रिया से, जो सालों से उसके साथ काम कर रही थी।

ऑफिस पहुंचते ही सभी ने अन्या का स्वागत किया। लेकिन अन्या को वहां थोड़ी असहजता महसूस हुई — सजी-धजी आधुनिक महिलाएं, बिज़नेस सूट्स में तेज़ बोलने वाले लोग और हर कोने में ग्लास वॉल्स। यह उसकी दुनिया नहीं थी।

रिया ने अन्या से मिलते हुए कहा, “मैम, आप बहुत लकी हैं कि सर जैसा व्यक्ति आपको मिला। वो दिल से काम करते हैं, सिर्फ दिमाग से नहीं।”

अन्या मुस्कुराई, लेकिन उसके अंदर एक हल्की सी बेचैनी थी। वो जानती थी कि उसे खुद को इस नई दुनिया में ढालना होगा, लेकिन अपने मूल्यों के साथ।

शाम को जब वे वापस लौटे, अंकुश ने उसकी परेशानी समझ ली। “अगर तुम्हें ये सब भारी लग रहा है, तो मत सोचो। मैं चाहता हूं तुम जैसी हो, वैसी ही रहो। तुम्हें किसी भी नकाब की जरूरत नहीं।”

“मैं कोशिश करूंगी तुम्हारे साथ चलने की, लेकिन खुद को खोए बिना,” अन्या ने दृढ़ता से कहा।

रात को दोनों ने छत पर डिनर किया। नंगी रोशनी की झालरों में सजी मेज पर गांव की वही सादी दाल, चावल और भिंडी की सब्जी परोसी गई थी। अंकुश ने खुद खाना परोसा।

“तुम्हारे हाथ का खाना तो अभी नहीं बना, लेकिन ये सादगी मुझे तुम्हारे पास ले आती है,” उसने कहा।

“मैं चाहती हूं कि ये रौनक और ये सादगी साथ चले,” अन्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

उस रात, जब दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थामा और कमरे की लाइट धीमी की, तो बाहर आसमान में एक तारा टूटा। शायद कोई दुआ पूरी हुई थी — या कोई नई यात्रा शुरू हुई थी, जो अब सिर्फ रईसी की नहीं, सच्चे रिश्तों की थी।


अगली सुबह एक नई कहानी का पन्ना खुलने वाला था।
 
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Chapter 6: दूरी और दरारें

दिल्ली की तेज़ रफ्तार जिंदगी अब अन्या के लिए कुछ-कुछ समझ में आने लगी थी, लेकिन उसमें अपनापन अब भी थोड़ा कम लगता था। गांव की शांत सुबहें, पीपल के नीचे बैठकर मां से बातें करना, बगल वाली आंटी के गले की पुकार — ये सब अब सिर्फ यादें थीं। अब दिनभर का समय एक बड़े बंगले की दीवारों में बंद था, और रातें एक राजसी कमरे की खामोशी में।

अंकुश बिजनेस में व्यस्त होता जा रहा था। उसकी मीटिंग्स, डील्स, इंटरनेशनल कॉल्स और शहर भर में घूमते प्रोजेक्ट्स के बीच, अन्या खुद को अकेला महसूस करने लगी थी।

एक शाम जब अंकुश ने घर लौटते हुए कहा, “आज की डिनर मीटिंग बहुत ज़रूरी है, तुम्हारे साथ नहीं बैठ पाऊंगा,” अन्या ने बस हल्के से सिर हिलाया।

उसने मुस्कुरा कर कहा, “ठीक है, काम ज़रूरी है। मैं इंतज़ार करूंगी।”

लेकिन हर दिन इंतज़ार अब थकावट में बदलने लगा था।

रीना, जो कि घर की एक पुरानी सेविका थी, अन्या के पास बैठती, उसके साथ बातें करती और धीरे-धीरे उसे दिलासा देने लगी।

“बिटिया, बड़ा घर है तो बड़ी जिम्मेदारियाँ भी आती हैं। पर बाबू साहेब का दिल आपके लिए धड़कता है, इसमें कोई शक नहीं।”

“रीना दी, प्यार में जब ज़रूरत की बात हो, तो रिश्ते सिर्फ दिखावे लगते हैं,” अन्या ने हल्के से कहा।

एक दिन, जब अंकुश अचानक जल्दी घर आ गया, तो अन्या ने उसे ड्राइंग रूम में बैठे देखा — लेकिन इस बार अकेले नहीं। उसके साथ एक महिला थी, तेज़ मेकअप, महंगे कपड़े, और गले में एक फॉर्मल स्माइल लिए बैठी।

“ये मिस शेफाली हैं,” अंकुश ने कहा, “हमारी इंटरनेशनल ब्रांच की हेड बनने वाली हैं।”

अन्या ने विनम्रता से मुस्कराकर हाथ जोड़कर नमस्ते कहा, लेकिन उसके दिल में कुछ कसक सी हुई। बातचीत के दौरान, शेफाली बार-बार अंकुश को ‘Ankush darling’ कहकर बुला रही थी, जो उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं आया।

शेफाली के जाते ही, अन्या ने सीधे और शालीन स्वर में कहा, “तुम्हें उसका अंदाज़ ज़रा भी अजीब नहीं लगा?”

अंकुश ने हल्के से मुस्कराकर कहा, “बिजनेस वर्ल्ड में ये सब नॉर्मल है। तुम्हें इसकी आदत डालनी होगी।”

“आदत? क्या तुम्हें मेरी परवाह है?” अन्या की आंखें भर आईं।

“अन्या… मैं तुम्हें हर खुशी देना चाहता हूं, लेकिन हर बात का इतना मतलब निकालना—”

“मतलब नहीं, एहसास निकाल रही हूं… जो अब कम हो गए हैं।”

उस रात, दोनों अपने-अपने ओर तकिए की तरफ मुंह कर के सो गए — पहली बार ऐसा हुआ था।

अगले दिन अन्या ने फैसला लिया कि वो खुद को नहीं खोएगी। वो एक NGO से जुड़ गई जहां वह महिलाओं को स्वरोजगार सिखाने लगी। उसकी सादगी और बात करने के ढंग ने वहां भी सबका दिल जीत लिया। वह फिर से अपनी पहचान बना रही थी — इस बार अंकुश के नाम के साथ नहीं, बल्कि खुद के दम पर।

अंकुश को इसका अहसास तब हुआ, जब एक दिन एक बिजनेस अवॉर्ड फंक्शन में उसकी मुलाकात शहर के मेयर से हुई, जिन्होंने गर्व से कहा, “आपकी पत्नी का काम देख रहे हैं हम… वो शहर की महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।”

अंकुश मुस्कुराया, लेकिन भीतर से हिला हुआ था।

वो उसी शाम जब घर आया, तो देखा अन्या अपनी NGO की रिपोर्ट्स तैयार कर रही थी। उसने उसकी ओर देखा और कहा, “तुम मुझसे दूर जा रही हो…”

अन्या ने सिर उठाकर कहा, “मैं बस खुद के पास लौट रही हूं।”

अंकुश ने उसका हाथ थामा, “मैंने तुम्हें खोने की शुरुआत कर दी है शायद… लेकिन अब भी समय है।”

अन्या ने उसकी आंखों में देखा — वो वही अंकुश था, जो गांव के मेले में उसके लिए कुल्फी लेकर आया था, जो मंदिर के बाहर बैठकर उससे चूड़ी खरीदने की जिद करता था। उसे अहसास हुआ कि कुछ भी पूरी तरह नहीं बदला… बस उनकी दुनिया बदल गई थी।

“अगर तुम दोबारा मेरा साथ चलना चाहो, तो मैं हर कदम पर साथ हूं,” अन्या ने कहा।

अंकुश ने मुस्कराकर उसका माथा चूमा, “चलो फिर… दोबारा शुरुआत करते हैं।”

और यहीं से फिर रिश्तों की दरारें भरने लगीं — धीरे-धीरे, लेकिन मजबूती से। अगले दिन की सुबह पहले से अलग थी — अब न सिर्फ सूरज उग रहा था, बल्कि दो दिलों की रोशनी भी साथ लौट रही थी।
 
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Chapter 7: सच्चाई की परतें

नई सुबह थी, लेकिन हवा में एक पुरानी खुशबू लौट आई थी — भरोसे की, अपनापन की। अंकुश और अन्या अब फिर से साथ थे, लेकिन इस बार कुछ ज्यादा समझदार, ज्यादा सुलझे हुए। वो दिन जो पहले खाली-खाली लगते थे, अब फिर से रंगों से भरने लगे थे। अन्या के चेहरे की मुस्कान अब फिर से आंखों में चमक बनकर उतरने लगी थी।

एक दिन जब दोनों अपने फार्महाउस पर गए, जहां कभी पहली बार अन्या ने अंकुश की दुनिया को देखा था, वो जगह अब और भी ज्यादा खूबसूरत और सजी हुई लग रही थी। फूलों के बीच, पंछियों की आवाजों के बीच, अंकुश ने अन्या का हाथ थाम कर कहा, “अब तुम्हें एक और सच्चाई बतानी है, जो मैंने पहले कभी नहीं बताई…”

अन्या ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा, “सच बोलना कभी गलत नहीं होता, बस देर नहीं होनी चाहिए।”

अंकुश ने लंबी सांस ली, “जब मैं पहली बार तुम्हारे गांव आया था, वो सिर्फ व्यापार के लिए नहीं था… मैं एक साल से तुम्हें सोशल मीडिया पर देखता आ रहा था। तुम्हारी आंखों में कुछ था, जो मुझे हमेशा रोक देता था… तुमसे मिलने की ख्वाहिश ने मुझे तुम्हारे गांव तक खींच लिया।”

अन्या आश्चर्यचकित रह गई, “तुमने मुझसे मिलने की प्लानिंग की थी?”

“हाँ, लेकिन मैं ये भी देखना चाहता था कि क्या तुम्हारे आसपास की सच्चाई वैसी ही है जैसी तुम दिखाती हो। और जब तुम्हारे पिता की दुकान पर पहली बार तुम्हें देखा… मुझे यकीन हो गया कि तुम सिर्फ दिखावे की नहीं, बल्कि सच्चे दिल की इंसान हो।”

अन्या की आंखें भर आईं, लेकिन वो मुस्कुरा दी, “तुमने मेरे लिए इतना कुछ किया, और मैंने तुम्हें कितना गलत समझा…”

“प्यार में गलतफहमियां आती हैं, लेकिन उन्हें दूर करने की हिम्मत होनी चाहिए। और हमने वो कर लिया, है ना?”

कुछ ही दिनों बाद, अंकुश ने अपने परिवार को बुलाया। उसके माता-पिता अब विदेश में रहते थे, एक अलग ही दुनिया में व्यस्त। लेकिन उन्होंने अन्या को अपनाया, शायद इसलिए क्योंकि उन्होंने भी अपनी बहू में एक सच्ची और आत्मनिर्भर औरत देखी।

अंकुश के पिता ने कहा, “बेटा, तुमने जो चुना है, वो केवल जीवनसाथी नहीं, बल्कि जीवन की राह दिखाने वाली साथी है।”

अन्या की आंखों से एक आंसू टपका, लेकिन इस बार वो दुख का नहीं, गर्व का था।

इस सबके बीच, गांव से भी एक खबर आई। अन्या के पिता की तबीयत खराब हो गई थी। वो दोनों फौरन गांव पहुंचे।

दुकान अब अन्या के छोटे भाई के हवाले थी, लेकिन वो अभी इस जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं था। तब अंकुश ने एक फैसला लिया — उन्होंने गांव में एक टेक्निकल ट्रेनिंग सेंटर खोलने का प्रस्ताव रखा, जिससे गांव के युवा व्यापार और इलेक्ट्रॉनिक्स में ट्रेनिंग ले सकें।

“मैं तुम्हारे पिताजी का कर्ज नहीं चुका सकता, लेकिन कुछ लौटाने की कोशिश कर सकता हूं,” अंकुश ने कहा।

अन्या के पिता ने कांपते हाथों से उसका हाथ थामकर कहा, “तुमने मेरी बेटी को रानी बना दिया बेटा… अब मुझे कोई ग़म नहीं।”

ट्रेनिंग सेंटर की शुरुआत एक बड़े कार्यक्रम के साथ हुई, जिसमें गांव के हर चेहरे पर उम्मीद की रौशनी थी। अंकुश और अन्या अब सिर्फ पति-पत्नी नहीं, बल्कि प्रेरणा का स्रोत बन चुके थे।

उस रात, छत पर तारों के नीचे, जब दोनों लेटे थे, अन्या ने कहा, “कभी सोचा था कि हमारी कहानी यहां तक पहुंचेगी?”

अंकुश ने हँसते हुए कहा, “नहीं, लेकिन मैं चाहता हूं कि ये कहानी कभी खत्म न हो।”

और उन्होंने साथ में आसमान की ओर देखा — जहां चांदनी उनकी आंखों में उतरती रही, और दो दिलों की कहानी, हर बीते दिन के साथ और भी गहराती गई।
 
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Chapter 8: वादों की नींव पर खड़ा सपना

गांव की मिट्टी अब कुछ और ही महसूस हो रही थी—जैसे हर कण में अब एक पहचान घुल चुकी हो। अन्या जब सुबह-सुबह अपने आंगन में तुलसी को जल देने निकली, तो हवा में शांति के साथ एक नया एहसास भी तैर रहा था। अब वो अकेली नहीं थी; उसका जीवन साथी, उसका विश्वास, उसके साथ था—अंकुश।

अंकुश अब अक्सर गांव में रहने लगा था। शहर की चमक, बिज़नेस की भागदौड़ अब भी थी, लेकिन उसका दिल अब अन्या और उसके परिवार के साथ जुड़ गया था। हर सुबह की शुरुआत वो दुकान पर जाकर करता, जहां अन्या के पिता की कुर्सी अब खाली थी लेकिन उसकी जगह अंकुश ने नहीं, बल्कि इज़्ज़त ने ली थी।

एक दिन जब अन्या अपने पुराने कमरे की अलमारी साफ कर रही थी, उसे एक पुरानी डायरी मिली। पन्नों पर अनगिनत सपने, डर, उम्मीदें और अधूरी बातें लिखी थीं। वो मुस्कुरा दी। एक पन्ना खुला — "काश कोई ऐसा मिले जो मेरे सपनों की कद्र करे, न कि सिर्फ मेरे चेहरों की।"

वो डायरी लेकर अंकुश के पास आई और बोली, "ये मेरी दुनिया थी, जब मैं तुम्हें नहीं जानती थी। अब सोचती हूं, तुम तो मेरी कल्पना से भी ज्यादा निकले।"

अंकुश ने डायरी के पन्ने पलटे, और एक कोने पर लिखा देखा — “शादी सिर्फ साथ जीने का नाम नहीं, बल्कि एक-दूसरे के सपनों को साथ चलने देने का वादा है।”

अंकुश बोला, "तो अब हम वो वादा निभाएंगे।"

इसी विचार से उन्होंने गांव में एक नया प्रोजेक्ट शुरू किया — "Anya Foundation"। इस संस्था के जरिए गांव की लड़कियों को मुफ्त स्कॉलरशिप, कंप्यूटर शिक्षा और आत्मनिर्भरता की ट्रेनिंग देने का काम शुरू हुआ।

अन्या खुद क्लास लेती, बच्चियों से बातें करती और उन्हें सिखाती कि सपने सिर्फ किताबों के पन्नों पर नहीं, ज़िन्दगी में भी पूरे किए जा सकते हैं।

एक शाम दोनों आंगन में बैठकर चाय पी रहे थे। चूल्हे पर पक रही खिचड़ी की खुशबू हवा में घुली थी। अंकुश बोला, “क्या तुम अब भी सोचती हो कि मैं तुमसे अलग हूं?”

अन्या ने मुस्कराकर उसका हाथ थामा, “तुम्हारी रगों में जो खून है, वही मेरी मिट्टी से जुड़ा है अब। तुम अलग नहीं, मेरे जैसे हो।”

अगले दिन अंकुश ने अन्या को शहर चलने को कहा। “तुम्हें एक जगह दिखानी है, जो अब सिर्फ मेरी नहीं, हमारी होगी।”

वो दोनों दिल्ली पहुंचे। एक ऊंची बिल्डिंग के 32वें माले पर, जहां से पूरा शहर छोटा सा दिखता था, एक खूबसूरत फ्लैट था।

“ये घर तुम्हारे लिए है। जब भी गांव से ऊब जाओ, या सपनों को और बड़ा करना चाहो, ये तुम्हारा ठिकाना रहेगा,” अंकुश ने कहा।

अन्या कुछ पल चुप रही, फिर बोली, “घर ईंट और सीमेंट से नहीं, प्यार से बनता है। ये ठिकाना तो रहेगा, लेकिन मेरा घर तो वही है जहां तुम्हारा दिल है।”

अगले कुछ महीनों में दोनों ने शादी की तैयारियां शुरू की। कोई शाही महल नहीं, न कोई 5 स्टार होटल — शादी हुई गांव के उसी आंगन में जहां अन्या ने पहली बार अंकुश को गुस्से में देखा था।

पूरा गांव एक साथ था, ढोलक की थाप, फूलों की सजावट और लोगों की आंखों में आंसुओं के साथ मुस्कान।

फेरे लेते वक्त, जब पंडित ने कहा, “अब वचन दो कि जीवन भर साथ निभाओगे,” अंकुश ने उसकी आंखों में देखकर कहा, “मैं वचन नहीं, आत्मा से जुड़ रहा हूं तुमसे।”

अन्या ने सिर झुकाया, और एक आंसू उसकी पलकों से फिसलकर सिंदूर में मिल गया।

शादी के बाद दोनों ने अन्या फाउंडेशन का विस्तार किया। शहर के कई CSR ग्रुप अब इससे जुड़ने लगे। एक बिज़नेस मैगज़ीन ने उन्हें “The Power Couple of Rural Transformation” का खिताब दिया।

लेकिन असली इनाम उन्हें तब मिला जब एक छोटी लड़की — पूजा — जो पहले दुकान पर झाड़ू लगाती थी, अब खुद कंप्यूटर इंस्ट्रक्टर बन गई।

एक दिन पूजा मंच पर बोली, “मैं सिर्फ इसलिए यहां खड़ी हूं क्योंकि अन्या दीदी और अंकुश भइया ने मुझपर यकीन किया, जब पूरी दुनिया मुझे अनपढ़ और बेकार कहती थी।”

अंकुश ने अन्या की ओर देखा, और धीमे से कहा, “हमने जो साथ देखा था, वो सपना अब पूरा हो रहा है।”

अन्या मुस्कुराई, “और असली कहानी तो अब शुरू हुई है…”
 
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Chapter 9: एक नई उड़ान की शुरुआत

सर्दियों की शुरुआत थी। गांव की सुबहें अब कुहासे से ढकी होतीं, और हल्की धूप जब आंगन में गिरती, तो मानो धरती भी मुस्कुराती। शादी को तीन महीने हो चुके थे, लेकिन हर दिन एक नई कहानी लेकर आता। अंकुश और अन्या के जीवन में अब एक नई लय बस चुकी थी — सादगी भरी लेकिन सपनों से भरपूर।

अन्या अब गांव के बच्चों के लिए एक छोटी लाइब्रेरी की योजना बना रही थी, जहां किताबें, कहानियाँ, और ज्ञान मिल सके। एक दिन जब वो मिट्टी की दीवार पर पोस्टर चिपका रही थी, अंकुश पीछे से आया और बोला, “तुम्हारा हर सपना अब मेरा मिशन है। चलो इसे मिलकर बनाते हैं।”

एक पुराना स्कूल जो अब बंद पड़ा था, उसे उन्होंने नया रूप देना शुरू किया। कारीगरों की मदद से दीवारों पर कहानियाँ उकेरी गईं, पुस्तकें दिल्ली से मंगवाई गईं, और एक स्मार्ट बोर्ड भी लगाया गया।

जब लाइब्रेरी का उद्घाटन हुआ, तो गांव के बुज़ुर्ग भी हैरान थे — “कभी सोचा नहीं था कि अपने गांव में भी ऐसे बदलाव देख पाएंगे।”

उसी शाम जब अंकुश छत पर खड़ा होकर सूरज डूबता देख रहा था, अन्या चुपचाप आई और उसके पास खड़ी हो गई।

“इतने सालों में सबकुछ पाया, लेकिन तुम्हारे साथ ये सब कुछ और ही है। मैं एक businessman से नहीं, एक इंसान से प्यार करती हूं,” उसने धीमे से कहा।

अंकुश ने उसकी आंखों में देखा, “और मैं उस लड़की से प्यार करता हूं जिसने मेरी जिंदगी को सादा, लेकिन संपूर्ण बना दिया।”

अब वक्त था दिल्ली वापस लौटने का। फाउंडेशन का काम अब राज्य स्तर तक पहुंच गया था और उन्हें सरकार की एक बड़ी मीटिंग में बुलाया गया था।

दिल्ली के सफर के दौरान अन्या पहली बार अंकुश की कॉर्पोरेट दुनिया से रूबरू हुई। लंबी गाड़ियाँ, मीटिंग्स, कैमरे, और बिज़नेस पॉलिटिक्स। लेकिन उसने खुद को बदला नहीं। साड़ी पहनकर, बिंदी लगाकर, उसी सादगी में वो कॉन्फ्रेंस हॉल में पहुंची और अपनी बात कही।

कमरे में सन्नाटा था, लेकिन हर शब्द गूंजता रहा — “अगर आप सच्चे बदलाव चाहते हैं, तो सिर्फ फंडिंग नहीं, विश्वास दीजिए। औरतें आत्मनिर्भर तभी होंगी जब आप उन्हें सिर्फ एक संख्या नहीं, एक व्यक्ति समझेंगे।”

तालियों की गूंज में अंकुश को अपनी सबसे बड़ी सफलता यही लगी — उसने सिर्फ एक जीवन साथी नहीं, एक विचारधारा पाई थी।

मीटिंग के बाद एक बड़े मीडिया हाउस ने उनका इंटरव्यू लिया। जब रिपोर्टर ने पूछा, “आपकी प्रेरणा कौन है?”

अंकुश ने अन्या की ओर देखा और मुस्कुराकर बोला, “वो लड़की जिसने अपने पिताजी की दुकान से मेरे दिल तक का सफर तय किया — वही मेरी प्रेरणा है।”

उस रात होटल की बालकनी में, जब शहर की लाइट्स जगमगा रही थीं, अन्या ने कहा, “अब लगता है कि हम सिर्फ जी नहीं रहे, कुछ रच भी रहे हैं।”

अंकुश ने उसका हाथ थामा, “और अब अगला अध्याय है — तुम्हारा सपना पूरा करना। वो किताब जो तुम बचपन से लिखना चाहती थी, अब वक्त है उसे दुनिया तक पहुंचाने का।”

घर लौटते ही अन्या ने अपनी लिखी अधूरी कहानियाँ इकट्ठा कीं और अंकुश की मदद से उसे एक किताब में ढाल दिया। नाम रखा — “तुम जैसी लड़की”।

किताब जब लॉन्च हुई, तो उसमें अंकुश ने एक खास संदेश लिखा था:

“अगर कभी लगे कि तुम कमजोर हो, तो ये किताब पढ़ना, क्योंकि इसमें तुम्हारी ही ताकत है।”

Chapter 9 यहीं समाप्त होता है, लेकिन उनकी यात्रा अब भी जारी है — हर दिन एक नई उड़ान, हर शाम एक नई मिठास लेकर आती।
 
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Chapter 10: विरासत का बीज

साल बीतते जा रहे थे, लेकिन गांव की धड़कनों में अब भी अंकुश और अन्या के प्रयासों की गूंज थी। एक दिन की शुरुआत भी पहले जैसी नहीं होती थी, हर दिन अब बदलाव के बीज बोता था। छोटे-छोटे प्रयास अब विरासत का आकार ले रहे थे।

अंकुश ने अपनी कुछ प्रमुख कंपनियों को मर्ज करके एक नई कंपनी बनाई — “VastraVed”. नाम था देसी, पर नजरें थीं वैश्विक ब्रांडिंग पर। यह कंपनी गांव की महिलाओं द्वारा बनाए गए कपड़ों और हस्तशिल्प को अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाने का जरिया बन गई। दिल्ली से पेरिस तक, अब ‘माटी की बात’ सिर्फ एक ऑनलाइन स्टोर नहीं, एक सांस्कृतिक आंदोलन बन चुका था।

इस दौरान अन्या ने अपनी दूसरी किताब पूरी कर ली — “मुझमें तू है”, जिसमें उसने सिर्फ अपने और अंकुश के रिश्ते को ही नहीं, बल्कि उनके सफर को एक आइने की तरह दुनिया के सामने रखा। किताब का विमोचन जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में हुआ। जब अन्या मंच पर आई तो वहां बैठे हजारों लोग खड़े होकर तालियां बजाने लगे।

किसी ने पूछा, “आपकी प्रेरणा कौन है?”

अन्या मुस्कुराई, मंच की भीड़ में बैठकर देख रहे अंकुश की ओर देखा और कहा, “वो जो मुझे सुनते नहीं, समझते हैं। जो मेरे पीछे नहीं, मेरे साथ चलते हैं। वो जो मेरे हर सपने की जड़ में हैं — वही मेरी प्रेरणा हैं।”

इस जवाब पर तालियों की गूंज देर तक चलती रही।

एक शाम जब दोनों गांव लौटे, तो देखा कि पुराना बगीचा जो बचपन में अन्या का पसंदीदा कोना था, अब उजड़ चुका था।

“काश, इसे बचाया जा सकता,” अन्या उदास होकर बोली।

“बचाया नहीं... वापस उगाया जा सकता है,” अंकुश ने मुस्कराते हुए कहा।

अगले दिन दोनों ने मिलकर गांव के बच्चों के साथ वहां फिर से पेड़ लगाने शुरू किए। हर पौधे पर एक स्लेट लगी थी — जिस पर किसी बच्चे का सपना लिखा होता। कोई डॉक्टर बनना चाहता था, कोई पायलट, तो कोई कलाकार।

इस पहल को नाम मिला — “सपनों की छांव।”

इसी दौरान, अन्या को राज्य सरकार से ‘महिला सम्मान रत्न’ अवार्ड के लिए चुना गया। जबकि अंकुश को यूनाइटेड नेशंस की तरफ से “Rural Impact Icon” के रूप में आमंत्रित किया गया।

लेकिन इस बार उन्होंने फैसला किया कि वो वहां अकेले नहीं जाएंगे। उन्होंने अपनी टीम में गांव की चार लड़कियों को साथ भेजा — जो अब अंग्रेजी बोल सकती थीं, प्रेजेंटेशन बना सकती थीं और अपने उत्पाद बेच सकती थीं।

न्यूयॉर्क की उस कॉन्फ्रेंस में जब एक लड़की ने मंच पर खड़े होकर कहा, “हम भारत के उस गांव से हैं जिसे आपने कभी नक्शे में नहीं देखा होगा, लेकिन आज हम यहां हैं क्योंकि अंकुश सर और अन्या मैम ने हमें यकीन करना सिखाया है,” तो पूरा सभागार खड़ा हो गया।

घर लौटते समय फ्लाइट में अन्या ने अंकुश का हाथ थामा, “हमने जितना सोचा था, उससे कहीं आगे निकल आए हैं।”

“और फिर भी, सफर अब भी बाकी है,” अंकुश ने कहा।

गांव लौटते ही अंकुश ने अपने पिता के पुराने इलेक्ट्रॉनिक्स गोदाम को एक इनोवेशन सेंटर में बदलने की घोषणा की। अब वहां बच्चे सोलर पैनल, स्मार्ट सेंसर और IoT डिवाइसेज़ बनाना सीखते थे।

इस सबके बीच, अन्या और अंकुश ने एक और कदम उठाया — एक बच्ची को गोद लिया। नाम रखा — “वीरा”।

वीरा उनके जीवन में नई रौशनी बन कर आई।

अंत में, एक रात आंगन में झूले पर बैठी अन्या बोली, “क्या तुम्हें लगता है कि हमने अपनी कहानी पूरी कर दी?”

अंकुश ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “नहीं। हमने तो बस बीज बोए हैं। असली कहानी तो अब वीरा के साथ लिखी जाएगी — एक नई विरासत की।”

Chapter 10 यहीं समाप्त होता है — एक ऐसी सुबह के इंतजार में, जहां पुरानी जड़ें नई शाखाएं बनाएं और हर सपना मिट्टी से जन्म ले कर आकाश तक पहुंचे।
 
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