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Chapter 1: पहली नज़र का एहसास
बिहार के सीमांचल क्षेत्र में बसा एक छोटा-सा गांव था—राजदेहरी। ना तो बहुत आधुनिक, ना ही बहुत पिछड़ा, पर अपनी सादगी में स्वाभिमान और संस्कृति समेटे हुए। यहाँ की गलियों में अब भी बच्चे मिट्टी में खेलते थे, और बुज़ुर्ग पीपल के नीचे बैठकर किस्से सुनाते थे। सुबह मंदिर की घंटियाँ, चाय की दुकानों की गहमागहमी, और खेतों से आती ताज़ी हवा—ये सब मिलकर राजदेहरी को एक जीवंत आत्मा देते थे।
इसी गांव की एक पुरानी मगर भरोसेमंद दुकान थी—"Sharma Electronics"। इस दुकान के मालिक थे हर्षवर्धन शर्मा, जो गांव में वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक सामान का थोक व्यापार करते आ रहे थे। साथ में उनकी पत्नी कविता देवी, एक धार्मिक और परंपरावादी महिला, और इन दोनों की इकलौती संतान—अन्या शर्मा।
अन्या साधारण सी दिखने वाली, पर उसकी आंखों में एक खास चमक थी। उसकी मुस्कान में अपनापन था और व्यवहार में शालीनता। उसने कॉलेज की पढ़ाई पास के कस्बे से की थी लेकिन अब पूरा समय अपने माता-पिता के साथ दुकान में लगाती थी। गांव की परंपरा से जुड़ी हुई, फिर भी मन ही मन अपने जीवन के लिए कुछ अलग ख्वाब पाले हुए।
उधर, देश के सबसे युवा और सफल बिजनेस टाइकून में गिने जाने वाले अंकुश चौधरी के जीवन में बाहरी चमक थी, लेकिन अंदर एक खालीपन।
दिल्ली, मुंबई, दुबई से लेकर यूरोप तक फैला हुआ उसका व्यापार उसे धन और शोहरत तो दे चुका था, लेकिन सच्चा अपनापन नहीं। हर रिश्ता किसी ना किसी स्वार्थ से जुड़ा हुआ था। उसका दिल अब भी किसी असली एहसास की तलाश में था। और यही तलाश उसे राजदेहरी तक ले आई।
राजदेहरी में उसकी कंपनी की ओर से CSR प्रोजेक्ट के तहत एक स्कूल और हेल्थ सेंटर खोलने का प्रस्ताव था। लेकिन अंकुश हमेशा हर चीज़ को खुद देखना पसंद करता था।
अपने पहचान को छुपाकर, सामान्य कपड़ों में, वो अकेले ही गाड़ी चलाकर गांव पहुंचा। बिना बॉडीगार्ड, बिना किसी तामझाम के। सिर्फ एक पहचान—एक आम इंसान की।
गांव में कदम रखते ही उसे कुछ अलग सा सुकून महसूस हुआ। कच्ची सड़कें, मिट्टी की खुशबू, और लोगों की सादगी ने उसके थके हुए मन को राहत दी। गाड़ी के पहिए चौक के पास एक पुरानी दुकान के सामने रुके—यही थी "Sharma Electronics"।
गाड़ी से उतरकर जैसे ही उसने दुकान के अंदर कदम रखा, उसका सामना हुआ अन्या से।
वो झुकी हुई थी, कुछ डिब्बे नीचे से निकाल रही थी। तभी संतुलन बिगड़ा और एक बड़ा बॉक्स गिरने को था, तभी अंकुश ने फुर्ती से हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया।
"सावधान, ये भारी है," अंकुश ने कहा।
अन्या चौंकी, फिर मुस्कुरा दी। "धन्यवाद... आप ग्राहक हैं?"
"हां, कुछ छोटा-मोटा सामान लेना था।"
उसकी आवाज़ में गहराई थी और व्यवहार में नम्रता। अन्या ने उसे कोई खास तवज्जो नहीं दी, लेकिन उसके मन में हलचल जरूर हुई।
अंकुश ने एक छोटा स्पीकर खरीदा और मुस्कुराकर बाहर चला गया। लेकिन जाते-जाते नज़रों में एक सवाल छोड़ गया। अगले दिन फिर आया, इस बार बहाने से।
"एक ट्रैवल आयरन चाहिए," उसने कहा।
अन्या ने चुटकी ली, "आप रोज कुछ ना कुछ लेने आ जाते हैं..."
"आपकी दुकान पसंद आ गई है।"
वो मुस्कुरा दी, लेकिन उसकी नज़रें झुक गईं। अब अंकुश का आना रोज का सिलसिला बन गया। कभी बल्ब, कभी चार्जर, कभी कोई तार। और हर बार उनके बीच थोड़ी और बातें होतीं। मौसम, गांव, त्योहार, बचपन की बातें, सपनों की चर्चा।
एक दिन दुकान बंद हो रही थी। अन्या शटर गिरा रही थी, तभी अंकुश आ गया।
"देर हो गई क्या?"
"थोड़ी। लेकिन बताइए, क्या चाहिए आज?"
"आपकी पसंद का कुछ... जो हमेशा साथ रह सके।"
अन्या मुस्कुरा दी, "ये तो दुकान में नहीं मिलेगा।"
अंकुश ने गहरी नजरों से देखा, "मिल सकता है, अगर इजाज़त हो।"
अब दोनों के बीच एक अजीब-सी खामोशी थी। ये खामोशी बोली बहुत कुछ।
अगले दिन गांव में खबर फैली कि एक बड़ा व्यापारी गांव में हेल्थ सेंटर खोलने वाला है। अन्या के पिता भी उसी सभा में पहुंचे। मंच पर जब गांव के प्रधान ने घोषणा की—"हमारे बीच मौजूद हैं Choudhary Global Group के मालिक अंकुश चौधरी।"
सबकी निगाहें उस व्यक्ति पर पड़ीं जो साधारण कपड़ों में सबसे पीछे बैठा था। अन्या के माता-पिता चौंक गए। अन्या की आंखों में हैरानी थी... और दिल में एक खटका।
सभा के बाद, अंकुश ने अन्या को अकेले में बुलाया।
"मुझे माफ करना... मैंने झूठ नहीं बोला, लेकिन सब सच भी नहीं बताया। मैं चाहता था कोई मुझे मेरे नाम से नहीं, मेरे दिल से पहचाने।"
अन्या ने उसकी आंखों में देखा। वहां कोई घमंड नहीं था, बस सच्चाई थी।
"क्या तुम अब भी मुझसे वैसे ही बात कर पाओगी जैसे पहले करती थी?"
अन्या ने मुस्कुरा कर कहा, "अगर आप अब भी वही इंसान हैं जो रोज़ छोटी-छोटी चीजें लेने आता था, तो हां..."
धीरे-धीरे अंकुश ने अन्या के परिवार से मेल-जोल बढ़ाया। शुरुआत में विरोध था। हर्षवर्धन शर्मा जैसे सरल व्यापारी के लिए ये रिश्ता किसी सपने जैसा था। पर वक्त ने सबको समझा दिया कि इंसान का मूल्य उसकी सच्चाई में है, न कि दौलत में।
कुछ महीनों बाद, पूरे गांव के सामने अंकुश और अन्या की सगाई हुई। बिना किसी दिखावे के, सिर्फ प्यार और अपनत्व से भरा एक सादा समारोह।
अंकुश ने उस दिन कहा—
"मैंने दुनिया देखी है, पर जो सच्चा जीवन है, वो मुझे इस गांव में, और तुममें मिला है अन्या।"
अन्या ने उसका हाथ थामा और कहा, "और मुझे वो मिला जो हर लड़की चाहती है—एक ऐसा साथी जो सिर्फ अमीर नहीं, बल्कि सच्चा हो।"
बिहार के सीमांचल क्षेत्र में बसा एक छोटा-सा गांव था—राजदेहरी। ना तो बहुत आधुनिक, ना ही बहुत पिछड़ा, पर अपनी सादगी में स्वाभिमान और संस्कृति समेटे हुए। यहाँ की गलियों में अब भी बच्चे मिट्टी में खेलते थे, और बुज़ुर्ग पीपल के नीचे बैठकर किस्से सुनाते थे। सुबह मंदिर की घंटियाँ, चाय की दुकानों की गहमागहमी, और खेतों से आती ताज़ी हवा—ये सब मिलकर राजदेहरी को एक जीवंत आत्मा देते थे।
इसी गांव की एक पुरानी मगर भरोसेमंद दुकान थी—"Sharma Electronics"। इस दुकान के मालिक थे हर्षवर्धन शर्मा, जो गांव में वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक सामान का थोक व्यापार करते आ रहे थे। साथ में उनकी पत्नी कविता देवी, एक धार्मिक और परंपरावादी महिला, और इन दोनों की इकलौती संतान—अन्या शर्मा।
अन्या साधारण सी दिखने वाली, पर उसकी आंखों में एक खास चमक थी। उसकी मुस्कान में अपनापन था और व्यवहार में शालीनता। उसने कॉलेज की पढ़ाई पास के कस्बे से की थी लेकिन अब पूरा समय अपने माता-पिता के साथ दुकान में लगाती थी। गांव की परंपरा से जुड़ी हुई, फिर भी मन ही मन अपने जीवन के लिए कुछ अलग ख्वाब पाले हुए।
उधर, देश के सबसे युवा और सफल बिजनेस टाइकून में गिने जाने वाले अंकुश चौधरी के जीवन में बाहरी चमक थी, लेकिन अंदर एक खालीपन।
दिल्ली, मुंबई, दुबई से लेकर यूरोप तक फैला हुआ उसका व्यापार उसे धन और शोहरत तो दे चुका था, लेकिन सच्चा अपनापन नहीं। हर रिश्ता किसी ना किसी स्वार्थ से जुड़ा हुआ था। उसका दिल अब भी किसी असली एहसास की तलाश में था। और यही तलाश उसे राजदेहरी तक ले आई।
राजदेहरी में उसकी कंपनी की ओर से CSR प्रोजेक्ट के तहत एक स्कूल और हेल्थ सेंटर खोलने का प्रस्ताव था। लेकिन अंकुश हमेशा हर चीज़ को खुद देखना पसंद करता था।
अपने पहचान को छुपाकर, सामान्य कपड़ों में, वो अकेले ही गाड़ी चलाकर गांव पहुंचा। बिना बॉडीगार्ड, बिना किसी तामझाम के। सिर्फ एक पहचान—एक आम इंसान की।
गांव में कदम रखते ही उसे कुछ अलग सा सुकून महसूस हुआ। कच्ची सड़कें, मिट्टी की खुशबू, और लोगों की सादगी ने उसके थके हुए मन को राहत दी। गाड़ी के पहिए चौक के पास एक पुरानी दुकान के सामने रुके—यही थी "Sharma Electronics"।
गाड़ी से उतरकर जैसे ही उसने दुकान के अंदर कदम रखा, उसका सामना हुआ अन्या से।
वो झुकी हुई थी, कुछ डिब्बे नीचे से निकाल रही थी। तभी संतुलन बिगड़ा और एक बड़ा बॉक्स गिरने को था, तभी अंकुश ने फुर्ती से हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया।
"सावधान, ये भारी है," अंकुश ने कहा।
अन्या चौंकी, फिर मुस्कुरा दी। "धन्यवाद... आप ग्राहक हैं?"
"हां, कुछ छोटा-मोटा सामान लेना था।"
उसकी आवाज़ में गहराई थी और व्यवहार में नम्रता। अन्या ने उसे कोई खास तवज्जो नहीं दी, लेकिन उसके मन में हलचल जरूर हुई।
अंकुश ने एक छोटा स्पीकर खरीदा और मुस्कुराकर बाहर चला गया। लेकिन जाते-जाते नज़रों में एक सवाल छोड़ गया। अगले दिन फिर आया, इस बार बहाने से।
"एक ट्रैवल आयरन चाहिए," उसने कहा।
अन्या ने चुटकी ली, "आप रोज कुछ ना कुछ लेने आ जाते हैं..."
"आपकी दुकान पसंद आ गई है।"
वो मुस्कुरा दी, लेकिन उसकी नज़रें झुक गईं। अब अंकुश का आना रोज का सिलसिला बन गया। कभी बल्ब, कभी चार्जर, कभी कोई तार। और हर बार उनके बीच थोड़ी और बातें होतीं। मौसम, गांव, त्योहार, बचपन की बातें, सपनों की चर्चा।
एक दिन दुकान बंद हो रही थी। अन्या शटर गिरा रही थी, तभी अंकुश आ गया।
"देर हो गई क्या?"
"थोड़ी। लेकिन बताइए, क्या चाहिए आज?"
"आपकी पसंद का कुछ... जो हमेशा साथ रह सके।"
अन्या मुस्कुरा दी, "ये तो दुकान में नहीं मिलेगा।"
अंकुश ने गहरी नजरों से देखा, "मिल सकता है, अगर इजाज़त हो।"
अब दोनों के बीच एक अजीब-सी खामोशी थी। ये खामोशी बोली बहुत कुछ।
अगले दिन गांव में खबर फैली कि एक बड़ा व्यापारी गांव में हेल्थ सेंटर खोलने वाला है। अन्या के पिता भी उसी सभा में पहुंचे। मंच पर जब गांव के प्रधान ने घोषणा की—"हमारे बीच मौजूद हैं Choudhary Global Group के मालिक अंकुश चौधरी।"
सबकी निगाहें उस व्यक्ति पर पड़ीं जो साधारण कपड़ों में सबसे पीछे बैठा था। अन्या के माता-पिता चौंक गए। अन्या की आंखों में हैरानी थी... और दिल में एक खटका।
सभा के बाद, अंकुश ने अन्या को अकेले में बुलाया।
"मुझे माफ करना... मैंने झूठ नहीं बोला, लेकिन सब सच भी नहीं बताया। मैं चाहता था कोई मुझे मेरे नाम से नहीं, मेरे दिल से पहचाने।"
अन्या ने उसकी आंखों में देखा। वहां कोई घमंड नहीं था, बस सच्चाई थी।
"क्या तुम अब भी मुझसे वैसे ही बात कर पाओगी जैसे पहले करती थी?"
अन्या ने मुस्कुरा कर कहा, "अगर आप अब भी वही इंसान हैं जो रोज़ छोटी-छोटी चीजें लेने आता था, तो हां..."
धीरे-धीरे अंकुश ने अन्या के परिवार से मेल-जोल बढ़ाया। शुरुआत में विरोध था। हर्षवर्धन शर्मा जैसे सरल व्यापारी के लिए ये रिश्ता किसी सपने जैसा था। पर वक्त ने सबको समझा दिया कि इंसान का मूल्य उसकी सच्चाई में है, न कि दौलत में।
कुछ महीनों बाद, पूरे गांव के सामने अंकुश और अन्या की सगाई हुई। बिना किसी दिखावे के, सिर्फ प्यार और अपनत्व से भरा एक सादा समारोह।
अंकुश ने उस दिन कहा—
"मैंने दुनिया देखी है, पर जो सच्चा जीवन है, वो मुझे इस गांव में, और तुममें मिला है अन्या।"
अन्या ने उसका हाथ थामा और कहा, "और मुझे वो मिला जो हर लड़की चाहती है—एक ऐसा साथी जो सिर्फ अमीर नहीं, बल्कि सच्चा हो।"