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Thriller ✧ Double Game ✧(Completed)

TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
Supreme
79,984
118,003
354
Chapter - 01
[ Plan & Murder ]
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Update - 02
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इंसान जब किसी चीज़ से आज़िज़ आ जाता है तो वो अक्सर ऐसे रास्ते पर चल पड़ता है जो यकीनन ग़लत होता है किन्तु अगर किसी इंसान को वक़्त रहते सही ग़लत या गुनाह जैसे कर्म की गंभीरता का एहसास हो जाए तो फिर शायद वो ऐसा करने का अपना विचार ही त्याग दे।

अपनी समझ में मैंने हर पहलू के बारे में बहुत सोचा और आख़िर में इसी नतीजे पर पहुंचा कि एक अच्छी शुरुआत के लिए उस चीज़ को ख़त्म कर देना बेहतर होता है जिसकी वजह से आप ये समझ रहे हैं कि वो आपकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पनौती है। माता पिता के गुज़र जाने के बाद मैं चाहता तो रूपा को तलाक़ दे देता या उसे उसके माँ बाप के पास वापस भेज देता लेकिन ऐसा न करने के भी कुछ कारण थे। मैं उसे तलाक नहीं देना चाहता था, क्योंकि अब तक तो सारा गांव जान चुका था कि मेरी बीवी से मेरे कैसे सम्बन्ध हैं इस लिए अगर मैं उसे तलाक़ देता तो लोग तरह तरह की बातें करते या फिर ऐसा भी हो सकता था कि उसके माँ बाप व भाई मुझ पर उल्टा केस कर देते। ऐसे में मेरी ज़िन्दगी और भी बदतर हो जाती। रूपा को उसके माँ बाप के घर वापस नहीं भेज सकता था क्योंकि इससे सारी ज़िन्दगी उसके माँ बाप मुझ पर इस बात का दबाव बनाते रहते कि मैं उसे अपने पास ही रखूं जो कि मैं किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था। मेरी नज़र में इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने का बस एक ही सही तरीका था कि कुछ ऐसा करो जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

मैंने अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने की शुरुआत कर दी थी। मैंने साढ़े चार सालों में पहली बार रूपा से इस बात के लिए माफ़ी मांगी कि मैंने अब तक उसके साथ जो कुछ किया है उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं और उसे पूरा हक़ है कि वो मुझे इसके लिए जो चाहे सज़ा दे दे। असल में ऐसा करना भी मेरे प्लान का एक हिस्सा था। मैं चाहता था कि मेरे और रूपा के बीच वैसे ही सम्बन्ध बन जाएं जैसे एक खुशहाल पति पत्नी के बीच होते हैं। ख़ैर जब मैंने रूपा से बहुत ही गंभीर हो कर ये कहा तो उसके चेहरे पर आश्चर्य का सागर स्वाभाविक रूप से तांडव करता नज़र आने लगा। आँखों में यकीन नाम का कहीं कोई नामो निशान नहीं था। उसकी ये हालत देख कर मुझे लगा कि कहीं मेरा मंसूबा बेकार न चला जाए। इस लिए अपनी गरज़ में मैंने फिर से उससे अपनी बात दोहराई और उसके जवाब की उम्मीद में मैं उसकी तरफ ख़ामोशी से देखने लगा था।

जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि हर चीज़ का एक दिन अंत भी होता है इस लिए इसका भी अंत हुआ। कहने का मतलब ये कि देर से ही सही किन्तु रूपा को ये एहसास और ये यकीन हो ही गया कि मैं सच में अपने किए पर शर्मिंदा हूं और अब चाहता हूं कि हम दोनों ख़ुशी ख़ुशी पति पत्नी के रूप में अपनी ज़िन्दगी की न‌ई शुरुआत करें। मैंने अपने चेहरे पर ऐसे भाव भी एकत्रित कर लिए थे ताकि रूपा को मेरी बातों का यकीन होने में ज़रा भी देर न लगे और ना ही उसे किसी बात का शक हो। हालांकि मेरा ख़याल था कि इन साढ़े चार सालों में वो भी तो इस सबके बारे में कुछ न कुछ सोचती ही रही होगी और यकीनन उसके मन के किसी कोने में ये उम्मीद भी बनी रही होगी कि एक दिन ऐसा वक़्त ज़रूर आएगा जब उसका पति उसे अपनी बीवी का दर्ज़ा दे कर उसे अपना लेगा। अब जब कि ऐसा वक़्त आ गया था तो भला वो कैसे इसके लिए इंकार कर सकती थी? वैसे इंकार करने की भी कोई वजह नहीं थी।

मेरे दिलो दिमाग़ में उसके प्रति भले ही ज़हर भरा हुआ था या मैं भले ही उसे ज़रा भी पसंद नहीं करता था लेकिन अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने के लिए मैंने ऐसा दर्शाया जैसे अब मेरे दिल में उसके लिए बेपनाह प्रेम है और मैं उस प्रेम के वशीभूत हो कर उसको दुनियां की हर ख़ुशी देना चाहता हूं।

हमारे बीच जब सब कुछ सही और सहज हो गया तो सबसे पहले मैं उसे हर उस जगह लेकर जाने लगा जिस जगह जाने के बारे में नया नया शादी शुदा जोड़ा सोचता है। उसे शहर घुमाता, सिनेमा में ले जा कर फिल्में दिखाता, और मॉल में ले जा कर उसकी पसंद के अनुसार ही उसे शॉपिंग करवाता। हप्ते दस दिन में ही हमारे बीच ऐसा प्यार दिखने लगा जैसे ऐसा प्यार हमारे बीच हमेशा से ही रहा हो। रूपा अपने प्रति मेरा ये प्यार देख कर बेहद खुश थी, ऐसा लगता था जैसे उसे संसार भर की खुशियां मिल गईं थी। जबकि उसे इस तरह खुश देख कर मैं अंदर ही अंदर ये सोच कर जल उठता कि बनाने वाले ने इसे आख़िर किस तरह बनाया है कि इतना खुश होने के बाद भी ये मुझे सुन्दर नज़र नहीं आती?

ये एक नेचुरल बात है कि जब दो लोगों के बीच प्यार इस तरह से बढ़ता है तो एक दिन उस प्यार को एक दूसरे से इज़हार करने का भी वक़्त आ जाता है। हालांकि हमारे लिए तो वैसे भी इज़हार करना अब बहुत ज़रूरी हो गया था क्योंकि शादी को साढ़े चार साल गुज़र गए थे और हमने अब तक अपनी सुहागरात नहीं मनाई थी। मेरा ख़याल है कि सुहागरात एक ऐसी चीज़ है जिसके प्रति एक मर्द से ज़्यादा लड़की के मन में क्रेज होता है। ऊपर से लड़की अगर रूपा जैसी हो तो क्रेज की पराकाष्ठा ही हो जाती है।

मैंने इसके लिए उसे वक़्त दिया। वैसे भी मेरे पास वक़्त की कोई कमी नहीं थी। जब मैंने महसूस कर लिया कि इन सारी ख़ुशियों के बाद अब रूपा के दिल में बस एक उसी ख़ुशी की हसरत रह गई है जिसे सुहागरात कहते हैं तो मैंने भी उसकी ख़ुशी का ख़याल रखते हुए उसकी सुहागरात को उसके लिए एक यादगार सुहागरात बना देने का सोचा।

सबसे पहले एक दिन हम दोनों मंदिर में जा कर पंडित जी से मिले और उस पंडित जी से कोई अच्छा सा शुभ मुहूर्त निकलवाया। ऐसा करने के पीछे मेरी बस यही सोच थी कि इन मामलों में ऐसा करने से बीवी पर ख़ास प्रभाव पड़ता है। ख़ास कर तब तो और भी ज़्यादा प्रभाव पड़ता है जब हमारे बीच पिछले साढ़े चार सालों से ऐसा आलम रहा हो। ख़ैर पंडित जी ने शुभ मुहूर्त निकाला तो मैंने अपने ऑफिस से एक हप्ते की छुट्टी ले ली और ये एक हप्ते मैंने रूपा के नाम कर दिए।

मैंने सब कुछ रूपा की इच्छानुसार ही करने का सोचा था और उसे भी कह दिया था कि उसका जिस तरह से दिल करे उस तरह से वो हर चीज़ करे। सुहागरात वाले दिन रूपा न‌ई नवेली दुल्हन की तरह सजी हुई थी। अपनी समझ में उसने सोलह नहीं बल्कि बत्तीस श्रृंगार किए थे लेकिन अब इसका क्या किया जाए कि इसके बावजूद वो मुझे सुन्दर नहीं लग रही थी। ख़ैर अपने को तो वैसे भी इस सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था। मैं तो बस वही कर रहा था जो मेरे प्लान और मेरे मंसूबों के लिए बेहद ज़रूरी था।

सुहागरात को मैंने हर काम रूपा की मर्ज़ी से ही किया। उसकी उम्मीद से ज़्यादा मैंने उसे प्यार दे कर खुश किया, बल्कि ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि उसे खुशियां दे कर तृप्त कर दिया। एक ही कमरे में और एक ही बेड पर सुहागरात मनाने के बाद हम दोनों दुनियां जहान से बेख़बर सो गए थे। रूपा मेरे सीने से छुपकी वैसी ही सो गई थी जैसे अब उसने मुकम्मल जहां पा लिया हो।

एक हप्ते की छुट्टी में मैंने रूपा को हद से ज़्यादा तृप्त कर दिया, लेकिन इस बात का ख़ास ख़याल रखा था कि उसके गर्भ में मेरा बीज न ठहर जाए जिसकी वजह से मेरे लिए एक नई समस्या पैदा हो जाए जोकि मैं सपने में भी नहीं चाहता था। एक हप्ते बाद मैं फिर से अपने ऑफिस जाने लगा। मैंने उसके साथ ऐसा ताल मेल बना के रखना शुरू कर दिया था कि उसे ज़रा भी ये न लगे कि हमारे बीच जो कुछ भी अब तक हुआ है या अभी हो रहा है वो महज एक सपना है या दिखावा है।

रूपा को मैंने पहले ही एक टच स्क्रीन वाला मोबाइल ख़रीद कर दे दिया था। मैं चाहता था कि वो अपनी बदली हुई ज़िन्दगी और किस्मत के बारे में अपने माँ बाप को भी खुश हो कर बताए ताकि उनके दिलो दिमाग़ में भी ये बात बैठ जाए कि उनकी बेटी की तपस्या पूरी हो चुकी है और अब उनकी बेटी और दामाद के बीच सब कुछ अच्छा हो गया है। वो तो ये सोच भी नहीं सकते थे कि इतना कुछ हुआ ही इस लिए था कि इसके बाद अब अगर कुछ और हो जाए तो वो उस बारे में ना तो सोच सकें और ना ही किसी बात का शक कर सकें।

मैंने अपने प्लान के पहले चरण को बिलकुल वैसे ही पार कर लिया था जैसा मैं चाहता था। अब मुझे अपने प्लान के दूसरे चरण को शुरू करना था। हालांकि इसकी शुरुआत भी मैंने तभी कर दी थी जब मेरे प्लान का पहला चरण शुरू हुआ था। मेरे लिए एक समस्या ये थी कि बनाने वाले ने मुझे बीवी ही ऐसी दी थी जिसकी शक्लो सूरत बहुत ही भद्दी थी। हालांकि सोचने वाली बात तो ये भी थी कि अगर बीवी सुन्दर मिली होती तो इतना कुछ होता ही क्यों?

मैं जिस कंपनी में काम करता हूं वहां पर निशांत सोलंकी नाम का मेरा एक सीनियर है। मैं आज तक समझ नहीं पाया कि उसे मुझसे ऐसी कौन सी तक़लीफ है जिसके लिए वो अक्सर मेरे काम पर कोई न कोई नुक्श निकालता ही रहता है और अपनी सीनियरिटी का रौब झाड़ते हुए मुझे सबके सामने बातें सुना देता है। जबकि सब यही कहते हैं कि मेरे काम में कहीं कोई नुक्श जैसी बात नहीं होती थी।

पिछले महीने जब रूपा से पीछा छुड़ाने का मैंने मन बनाया था तो सहसा एक दिन मेरे ज़हन में अपने उस सीनियर के बारे में भी ख़याल आया था। कभी कभी हमारे ज़हन में अचानक से ऐसे ख़याल प्रकट हो जाते हैं जो खुद हमें ही चकित कर देते हैं। मैंने जब इस बारे में गहराई से सोचा तो मेरे होठों पर बड़ी ही जानदार मुस्कान उभर आई थी।

मैं अपने सीनियर निशांत सोलंकी के बारे में एक ख़ास बात जानता था कि वो पक्का लड़कीबाज़ और औरतबाज़ हैं। यहाँ तक कि उसके सम्बन्ध अपने ही कुछ जूनियर्स की बीवियों से थे जिनके बारे में अक्सर मेरा एक साथी बताया करता था। हालांकि उसका कहना तो ये भी था कि वो जूनियर्स अपने फ़ायदे के लिए अपनी बीवियों को उसके नीचे सुलाते थे। उसकी ये बात सुन कर मैं अक्सर सोचता था कि दुनियां में कैसे कैसे लोग हैं जो अपने फ़ायदे अथवा नुक्सान के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। हालांकि इस बात के सोचते ही सहसा मेरे ज़हन में खुद अपना ही ख़याल उभर आया कि मैं भी तो ऐसा ही करने जा रहा हूं।

मैंने अपने उस सीनियर से दोस्ती बनाने के लिए वही सब करना शुरू कर दिया जो उसे पसंद था या जो वो चाहता था। मैं अच्छी तरह जानता था कि अपने फ़ायदे के लिए मैं अपनी बीवी को उसके नीचे नहीं सुला सकता था, क्योंकि मेरी बीवी की मोहिनी सूरत देखते ही उसके मूड का सत्यानाश हो जाना था। इस लिए मैंने इसके लिए एक अलग ही रास्ता चुना। उस रास्ते में भी मेरा मकसद वही था जो उसके बाकी जूनियर्स करते थे लेकिन इसके लिए मैंने एक ख़ास तरीका चुना।

मैंने अपने पर्श पर एक ऐसी शादी शुदा औरत की तस्वीर रखी जो दिखने में ऐसी तो हो ही कि उसे देख कर कोई भी मर्द उस पर लट्टू हो जाए। ख़ैर कुछ ही समय में मेरे सीनियर से मेरी अच्छी बनने लगी। यहाँ तक कि अक्सर लंच टाइम में वो मुझे अपने पास ही लंच करने के लिए बुला लेता था। मेरे कुछ साथी इस बात से थोड़ा हैरान हुए कि मेरा उससे इतना अच्छा ताल मेल कैसे हो गया? एक दिन तो मेरे एक साथी ने मुझे समझाया भी कि भाई इस आदमी से ज़्यादा दोस्ती मत बढ़ाओ क्योंकि ये आदमी सीधा अपने जुनियर्स के घर ही पहुंच जाता है और फिर उनकी बीवियों को फ़साने लगता है। अपने उस साथी की बात सुन कर मैं ये सोच कर मन ही मन मुस्कुराया कि बेटा यही तो मैं चाहता हूं। अब उसे क्या पता कि मैं अपने उस सीनियर को ले कर कौन सा खेल खेलने वाला था।

एक दिन लंच करने के बाद हम दोनों ही अगल बगल कुर्सियों पर बैठे थे। मैं अपने प्लान के अनुसार अपने पर्श में उस औरत की तस्वीर देख रहा था जिसे मैंने अपनी नकली बीवी बना कर रखा था। उस तस्वीर को देखने का मेरा सिर्फ यही मकसद था कि मेरे सीनियर की नज़र उस पर पड़ जाए। मैं क्योंकि जान बूझ कर अपने सीनियर के बगल से ही बैठा था इस लिए वो बड़ी आसानी से मेरे पर्श में मौजूद उस तस्वीर को देख सकता था और ऐसा हुआ भी। निशांत सोलंकी की नज़र उस तस्वीर पर पड़ी तो उसकी नज़रें जैसे उस तस्वीर पर जम सी ग‌ईं। मैंने कनखियों से निशांत की तरफ देखा तो उसे तस्वीर पर अपनी नज़रें गड़ाए हुए पाया। ये देख कर मैं मन ही मन मुस्करा उठा।

"काफी ख़ूबसूरत है।" सहसा निशांत ने मुस्कुराते हुए पूछा____"तुम्हारी बीवी है क्या?"
"और क्या मैं किसी और की बीवी की तस्वीर अपने पर्श में रखूंगा?" मैंने मुस्कुराते हुए जब ये कहा तो निशांत हंसते हुए बोला____"हां,‌ ये भी सही कहा तुमने। वैसे किस्मत वाले हो यार। क्या ख़ूबसूरत बीवी मिली है तुम्हें। कभी हमें भी मिलवाओ भाभी जी से।"

"बिल्कुल नहीं।" उसकी उम्मीद के विपरीत मैंने इंकार में सिर हिला कर कहा____"मैं अपनी बीवी को आपसे हर्गिज़ नहीं मिला सकता सर।"
"अरे! पर क्यों भाई?" निशांत ने चकित भाव से पूछा था___"आख़िर तुम मुझे भाभी जी से क्यों नहीं मिला सकते?"

"वो इस लिए कि मुझे आपके करैक्टर के बारे में सब पता है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा था____"अगर मैंने आपको अपनी बीवी से मिलवा दिया तो संभव है कि आप मेरी बीवी को अपना बनाने का सोच लें। देखिए ऐसा है सर कि किस्मत से मुझे इतनी ख़ूबसूरत बीवी मिली है जिसे मैं बहुत प्यार करता हूं, तो मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि कोई उसे मुझसे छीन ले।"

"हाहाहाहा...तुम भी हद करते हो विशेष।" निशांत ने हंसते हुए कहा____"यार तुम भी लोगों की फैलाई हुई बातों को सच मानते हो, जबकि सच तो ये है कि मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं हूं।"

"सारी सर।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा था____"लेकिन मैं ये अच्छी तरह समझता हूं कि अपने बारे में सब यही कहते हैं कि मैं बुरा इंसान नहीं हूं। आपके बारे में मैंने यहाँ बहुत सुन रखा है। अब हर कोई तो झूठ नहीं बोल सकता न और फिर भला किसी को आपसे ऐसी क्या दुश्मनी होगी जिससे लोग आपके बारे में ऐसी अफवाह उड़ाएं?"

उस दिन निशान्त को मैंने अपनी बीवी से मिलाने के लिए साफ़ मना कर दिया था। हालांकि मेरा प्लान तो अपनी बीवी से उसे मिलाने का ही था लेकिन मैं उस पर ये ज़ाहिर नहीं होने देना चाहता था कि असल में मेरे अंदर चल क्या रहा है। मैं अच्छी तरह जानता था कि निशांत सोलंकी अब मेरी बीवी की एक झलक पाने के लिए मुझसे बार बार कहेगा। यहाँ तक कि वो इसके लिए मुझे कई तरह के प्रलोभन देने पर भी उतारू हो जाएगा। उसके करैक्टर की यही तो विशेषता थी।

मुझे उसी दिन का इंतज़ार था जब निशांत मुझे किसी तरह का प्रलोभन दे। उस दिन उसने जिस नज़र से मेरी बीवी को देखा था उससे मैं समझ गया था कि उसे वो तस्वीर वाली औरत बेहद ही पसंद आ गई है और अब वो उसको हासिल करने के लिए हर कोशिश करेगा। ख़ैर उस दिन के बाद से निशांत कुछ ज़्यादा ही मुझे भाव देने लगा था और ऐसा भी होने लगा था कि अगर मेरी वजह से कोई काम बिगड़ जाता था तो वो उसके लिए पहले की तरह मुझ पर गुस्सा नहीं होता था। कहने का मतलब ये कि वो मुझे खुश करने के लिए हर तरह से कोशिश कर रहा था। हर रोज़ लंच टाइम में वो मुझसे एक बार ज़रूर मेरी बीवी के बारे में पूछता था और फिर ये कहता कि यार अब तो हम अच्छे दोस्त बन गए हैं, तो अब तो किसी दिन भाभी जी से मिलवा दो लेकिन मैं अपनी बात पर कायम रहा।

एक तरफ निशांत अपने जुगाड़ में लगा हुआ था और दूसरी तरफ मैं अपने मंसूबों को परवान चढ़ा रहा था। मैंने रूपा से अपने सम्बन्ध बहुत ही अच्छे बना लिए थे। रूपा का चेहरा आज कल चाँद की तरह खिला खिला रहने लगा था। हालांकि वो मुझे किसी भी तरह से सुन्दर नहीं लगती थी और इसका मुझे कोई अफ़सोस भी नहीं था। ख़ैर मेरे प्लान का पहला चरण पूरा हो चुका था और अब प्लान के दूसरे चरण की तरफ मुझे रुख करना था। निशांत अपनी कोशिश में लगा हुआ था लेकिन मुझे इंतज़ार उस दिन का था जब वो मेरी बीवी से मिलने के लिए मुझे किसी तरह का प्रलोभन दे। आज कल किस्मत कुछ ज़्यादा ही मेहरबान थी मुझ पर। निशांत को जब समझ आ गया कि उसकी ऐसी कोशिशों से कुछ नहीं होने वाला तो उसने अपना असली हथकंडा अपनाया और उसके इसी हथकंडे का तो मुझे शिद्दत से इंतज़ार था।


 
Last edited:

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
50,580
66,986
354
पहला भाग
बहुत ही बेहतरीन शुरुआत हुई है कहानी की।।
ये बात तो 100 फीसदी सत्य है कि जिसके पास जो होता है उसको उस चीज़ की कदर नहीं होती, बल्कि वो ऐसी चीज़ के पीछे भागता है जो उसकी किस्मत में शायद लिखी ही नहीं होती।। इसीलिए एक बात कही जाती है कि।
जो पसंद हो उसे पाना सीख लो या
जो मिला है उसे पसंद करना सीख लो।।
इस कहानी में सबसे बड़ी दुविधा नायक की यही है कि उसके सपने बहुत बड़े है उसे अपने पास जो भी चीजें चाहिए होती है वो एकदम खास हों। लेकिन उसकी बदकिस्मती कहें या भाग्य का लेखा कि उसके माता पिता ने उसकी शादी एक ऐसी लड़की से करवा दी जो उसकी नजर में कुरूप है, लेकिन नाम उसका रूपा है। दो लाख रुपये और मोटरसाइकिल, और कुछ सामान की लालच में नायक के माता पिता नायक के पल्ले रूपा को बांध दिया, लेकिन दोनों के माता पिता को जब अपनी गलती का एहसास हुआ कि उनके फैसले ने उनके बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद कर दी तो उन्हें बहुत पछतावा हुआ।।
लेकिन कहते हैं न कि साँप के निकल जाने के बाद लकीर पीटने से कुछ भी हासिल होने वाला तो है नहीं। इसलिए सभी माता पिता को चाहिए कि दहेज का लालच न करते हुए अपने बच्चों की पसंद का ख्याल करते हुए उनकी शादी करवानी चाहिए, लेकिन एक बात यह पर गौर करने वाली ये है कि रूपा में बस एक कमी थी कि वो रूपवान नहीं थी, बाकी सर्वगुण सम्पन्न थी, ऐसी लड़की शायद नायक की पसन्द की अगर होती तब भी उसके अंदर ये सब गुण न मिलते।।
ऐसी बहुत सी लड़कियों के ऊपरी रंग रूप देखकर शादी के लिए इनकार कर दिया जाता है जो गुणवान होते हुए भी सुंदर नहीं दिखती, नायक ने रूपा को कभी पत्नी का दर्जा नहीं दिया, अपितु उससे बात भी नहीं करी कभी, लेकिन रूपा ने कभी शिकायत नहीं की । अपनी की गई गलतियों और बेटे का अपनी बहू के प्रति व्यवहार देखकर नायक के माता पिता समय से पहले ही परलोक सिधार गए, नायक रूपा को अपने साथ शहर ले तो आया, लेकिन उसका रुपा के लिए बर्ताव वैसा ही था जैसे पहले रहा था। उसने रूपा को अपनी जिंदगी से निकालने का निर्णय लिया है। देखना ये है कि वो ऐसा क्या करता है जिससे रूपा उसकी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर हो जाएगी
 

TheBlackBlood

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Supreme
79,984
118,003
354
पहला भाग

बहुत ही बेहतरीन शुरुआत हुई है कहानी की।।

ये बात तो 100 फीसदी सत्य है कि जिसके पास जो होता है उसको उस चीज़ की कदर नहीं होती, बल्कि वो ऐसी चीज़ के पीछे भागता है जो उसकी किस्मत में शायद लिखी ही नहीं होती।। इसीलिए एक बात कही जाती है कि।

जो पसंद हो उसे पाना सीख लो या
जो मिला है उसे पसंद करना सीख लो।।

इस कहानी में सबसे बड़ी दुविधा नायक की यही है कि उसके सपने बहुत बड़े है उसे अपने पास जो भी चीजें चाहिए होती है वो एकदम खास हों। लेकिन उसकी बदकिस्मती कहें या भाग्य का लेखा कि उसके माता पिता ने उसकी शादी एक ऐसी लड़की से करवा दी जो उसकी नजर में कुरूप है, लेकिन नाम उसका रूपा है। दो लाख रुपये और मोटरसाइकिल, और कुछ सामान की लालच में नायक के माता पिता नायक के पल्ले रूपा को बांध दिया, लेकिन दोनों के माता पिता को जब अपनी गलती का एहसास हुआ कि उनके फैसले ने उनके बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद कर दी तो उन्हें बहुत पछतावा हुआ।।

लेकिन कहते हैं न कि साँप के निकल जाने के बाद लकीर पीटने से कुछ भी हासिल होने वाला तो है नहीं। इसलिए सभी माता पिता को चाहिए कि दहेज का लालच न करते हुए अपने बच्चों की पसंद का ख्याल करते हुए उनकी शादी करवानी चाहिए, लेकिन एक बात यह पर गौर करने वाली ये है कि रूपा में बस एक कमी थी कि वो रूपवान नहीं थी, बाकी सर्वगुण सम्पन्न थी, ऐसी लड़की शायद नायक की पसन्द की अगर होती तब भी उसके अंदर ये सब गुण न मिलते।।

ऐसी बहुत सी लड़कियों के ऊपरी रंग रूप देखकर शादी के लिए इनकार कर दिया जाता है जो गुणवान होते हुए भी सुंदर नहीं दिखती, नायक ने रूपा को कभी पत्नी का दर्जा नहीं दिया, अपितु उससे बात भी नहीं करी कभी, लेकिन रूपा ने कभी शिकायत नहीं की । अपनी की गई गलतियों और बेटे का अपनी बहू के प्रति व्यवहार देखकर नायक के माता पिता समय से पहले ही परलोक सिधार गए, नायक रूपा को अपने साथ शहर ले तो आया, लेकिन उसका रुपा के लिए बर्ताव वैसा ही था जैसे पहले रहा था। उसने रूपा को अपनी जिंदगी से निकालने का निर्णय लिया है। देखना ये है कि वो ऐसा क्या करता है जिससे रूपा उसकी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर हो जाएगी

Shukriya mahi madam is khubsurat sameeksha aur pratikriya ke liye,,,:hug:
 

TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
Supreme
79,984
118,003
354
Chapter - 01
[ Plan & Murder ]
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Update - 03
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एक दिन ऑफिस की छुट्टी थी तो मैं रूपा को सिनेमा में फिल्म दिखाने ले गया। थिएटर में सलमान खान की फिल्म प्रेम रतन धन पायो लगी थी। मुझे रूपा ने बताया था कि उसे हीरो में सलमान खान बहुत पसंद है। ख़ैर तीन बजे से शाम के छह बजे तक हम दोनों ने सिनेमा हॉल में साथ बैठ कर फिल्म देखी। फिल्म वाकई में बहुत अच्छी थी और रूपा को तो कुछ ज़्यादा ही पसंद आई थी। शाम को बाहर ही हम दोनों ने खाना पीना खाया और फिर हम वापस अपने फ्लैट पर आ ग‌ए। वैसे मेरे लिए रूपा को अपने साथ फ्लैट से बाहर ले जाना ही बहुत बड़ी बात होती थी। वो कुरूप औरत मुझे ज़रा भी पसंद नहीं थी लेकिन क्योंकि मुझे अपने मंसूबों को परवान चढ़ाना था इस लिए इतना कुछ करना जैसे मेरी मज़बूरी थी।

हम दोनों वापस फ्लैट में आए ही थे कि मेरा मोबाइल फोन बजा। मैंने देखा निशांत सोलंकी का कॉल था। मैंने सोचा इस वक़्त उसने मुझे किस बात के लिए कॉल किया होगा? ख़ैर मैंने कॉल उठाया तो उधर से निशांत ने कहा कि मेरे फ्लैट पर आ जाओ, कुछ ज़रूरी काम है। उसकी ये बात सुन कर मैं मन ही मन मुस्कुराया। मैं जानता था कि उसके ज़हन में मेरी वो नकली बीवी बसी हुई है जिसे उसने मेरे पर्श में देखा था। ख़ैर वक़्त ज़्यादा नहीं हुआ था इस लिए मैंने उससे कहा कि ठीक है आ रहा हूं।

रूपा को बता कर मैं उसके घर चल पड़ा। निशांत भी मेरी तरह एक फ्लैट में ही रहता था। कुछ साल पहले क्योंकि उसका तलाक़ हो गया था इस लिए फिलहाल वो अपने फ्लैट पर अकेला ही रहता था। औरतबाज़ वो शुरू से ही था इस लिए जब उसकी बीवी को उसकी इस सच्चाई का पता चला था तो दोनों के बीच रिश्ते ख़राब हो गए थे और फिर बात जब हद से ज़्यादा बढ़ गई तो एक दिन उसकी बीवी ने उससे तलाक़ ले लिया। निशांत ने भी उसे रोकने की ज़्यादा कोशिश नहीं की थी। ख़ैर अभी तो वो अकेला ही रहता था और दूसरी शादी करने के बारे में फिलहाल अभी उसका कोई इरादा भी नहीं था।

जब मैं निशांत के फ्लैट पर पहुंचा तो दरवाज़ा उसी ने खोला। उसके मुँह से शराब की स्मेल आई तो मैं समझ गया कि वो पहले से ही अपना मूड बनाए हुए है। जब से उससे मेरा दोस्ताना सम्बन्ध बना था तब से मैं उसके बुलाने पर उसके फ्लैट में जाने लगा था। ये अलग बात थी कि मैंने अब तक उसे अपने घर आने का निमंत्रण नहीं दिया था। हालांकि निमंत्रण देने का तो सवाल ही नहीं था क्योंकि ऐसा करने का मतलब था अपने ही प्लान को नेस्तनाबूत कर लेना।

मैंने देखा कि उसने टेबल पर शराब की बोतलें सजा रखीं थी और उसके साथ ही कुछ चखना वग़ैरा भी। उसने पहले से ही पी रखी थी और अभी आगे भी उसका पीने का इरादा जान पड़ता था। मुझे पता चला था कि वो पक्का पियक्कड़ भी था। ख़ैर उसने मुझे अपने सामने वाले सोफे पर बैठाया। मैं शराब नहीं पीता था और ये बात वो भी जानता था। जब मैं पहली बार उसके फ्लैट पर आया था तो उसने मुझे शराब ऑफर की थी लेकिन मैंने पीने से साफ़ इंकार कर दिया था।

"आपने मुझे किसी काम से बुलाया है क्या सर?" मैंने उससे पूछा। हालांकि मुझे काफी हद तक पता था कि उसने मुझे क्यों बुलाया था।
"यार कम से कम यहाँ पर तो तुम मुझे सर मत कहो।" उसने अपनी हल्की सुर्ख आँखों से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"वैसे भी हम दोनों दोस्त हैं तो तुम्हें मुझे सर वर कहने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम मेरा नाम लिया करो, इससे मुझे भी अच्छा लगेगा।"

"ये आप क्या कह रहे हैं सर?" मैंने हैरान होने की एक्टिंग की____"आप तो मेरे सर ही हैं इस लिए सर ही कहना पड़ेगा आपको और वैसे भी ऑफिस में अगर मैं आपको सर की जगह आपका नाम लूंगा तो लोग तरह तरह की बातें सोचने लगेंगे। वो समझ जाएंगे कि मेरे और आपके बीच कुछ ऐसा वैसा रिलेशन हो गया है।"

"भाड़ में जाएं लोग।" निशांत ने नशे में झूमते हुए बुरा सा मुँह बनाया____"जिसे जो सोचना है सोचे, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। तुम मेरे दोस्त हो और दोस्त को सर नहीं बोला जाता। अब से तुम मुझे सर नहीं बल्कि मेरा नाम ले कर ही बुलाओगे, समझ गए न?"

"ठीक है जैसा आप कहें।" मैंने इस वक़्त उसके मन की ही करने का सोचते हुए कहा____"अब बताइए आपने मुझे किस लिए बुलाया है यहाँ?"

"यार विशेष मैंने तुम्हें एक बात बताने के लिए बुलाया है यहां।" निशांत ने कांच के गिलास में भरी शराब का एक घूँट हलक के नीचे उतारने के बाद कहा____"कंपनी में कुछ लोगों को प्रमोशन देने की बात चली थी इस लिए मैंने प्रमोशन के लिए उनमें से तुम्हारा नाम भी लिस्ट में जोड़ने का सोचा है। मेरा ख़याल है कि तुम्हें इससे बेहद ख़ुशी होगी।"

प्रमोशन की बात का ये हथकंडा उसका पुराना था। हालांकि प्रमोशन दिलवा देना उसके बस में भी था क्योंकि वो पहुंचा हुआ फ़कीर था। पता नहीं उसके पास ऐसे कौन से सोर्स थे जिसके चलते वो जिसे चाहता था प्रमोशन दिलवा देता था, लेकिन बदले में उसे वही चाहिए होता था जिसका वो रसिया था। ख़ैर मैंने तो उसे इसके लिए कहा ही नहीं था लेकिन मैं जानता था कि एक दिन वो प्रमोशन का हथकंडा अपनाते हुए मुझे इसका लालच ज़रूर देगा। उसे भी पता था कि पिछले साढ़े चार साल से मैं कंपनी में काम कर रहा हूं लेकिन अभी तक मेरा प्रमोशन नहीं हुआ है। अगर मेरे ज़हन में मेरे मंसूबों वाली बात न होती तो मैं उसके इस लालच की तरफ ध्यान भी नहीं देता लेकिन क्योंकि मुझे अपने मंसूबों को परवान चढ़ाना था इस लिए मैंने उसकी बात पर वैसा ही रिऐक्ट किया जैसा कि प्रमोशन पाने के लिए मरे जा रहे किसी एम्प्लोई को करना चाहिए था।

"आपने बिल्कुल सही कहा निशांत।" मैंने इस बार उसका नाम लिया____"प्रमोशन की बात से मैं बहुत खुश हो गया हूं। साढ़े चार साल हो गए मुझे इस कंपनी में काम करते हुए लेकिन अभी तक मेरा प्रमोशन नहीं हुआ। अब अगर आपकी वजह से मुझे प्रमोशन मिल जाएगा तो ये मेरे लिए ख़ुशी की बात तो होगी ही।"

"प्रमोशन के साथ साथ सैलरी भी बढ़ जाएगी।" निशांत ने अपनी समझ में मेरे अंदर और भी ज़्यादा लालच को भरते हुए कहा____"इतना ही नहीं बल्कि कंपनी की तरफ से रहने के लिए तुम्हें एक अच्छा सा फ्लैट और आने जाने के लिए एक कार भी मिल जाएगी।"

"क्या सच में?" मैंने आँखें फाड़ कर इस तरह कहा जैसे उसकी इस बात से मैं बहुत ही ज़्यादा चकित और खुश हो गया होऊं।
"अरे! भाई मैं भला तुमसे झूठ क्यों बोलूंगा?" निशांत ने गिलास उठा कर उसमें से फिर से शराब का घूँट लिया____"ख़ैर मैंने तो दोस्त के नाते तुम्हारे लिए इतना कुछ सोच लिया है पर अब तुम्हारी बारी है विशेष।"

"जी...मैं कुछ समझा नहीं?" मैंने न समझने की एक्टिंग करते हुए कहा तो उसने कहा____"अरे! भाई, सीधी सी बात है कि अब तुम्हें भी अपने इस दोस्त के बारे में कुछ सोचना चाहिए।"

"ओह! हां।" मुझे जैसे उसकी बात समझ में आ गई____"आप ही बताइए निशांत कि मैं अपने दोस्त के लिए क्या कर सकता हूं? आपने मुझे जो ख़ुशी दी है उसके लिए आप जो कहेंगे मैं वही करुंगा।"

"अच्छी तरह सोच कर बोलो विशेष।" निशांत ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा____"क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि मैं तुमसे जो करने को कहूं वो तुम करने से इंकार कर दो।"

"नहीं करुंगा सर।" उतावलापन और जल्दबाज़ी का प्रदर्शन करते हुए मैंने जल्दी से कहा___"अगर मेरे बस में होगा तो मैं ज़रूर आपके लिए करुंगा। आप एक बार बताइए तो सही।"

"नहीं विशेष मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं है।" निशांत ने मानो गहरी सांस ली____"लेकिन हाँ अगर तुम भाभी जी की कसम खा कर कहो तो मैं मान लूंगा।"

"इसमें भला आपके भाभी की कसम खाने की क्या ज़रूरत है निशांत।" मैंने इस तरह कहा जैसे मुझे उसके इरादों का ज़रा भी अंदाज़ा न हो____"फिर भी अगर आप यही चाहते हैं तो ठीक है। मैं अपनी ख़ूबसूरत बीवी की कसम खा कर कहता हूं कि मैं अपने दोस्त के लिए वही करुंगा जो मेरा दोस्त कहेगा। अब ठीक है न?"

मेरी बात सुन कर निशांत के चेहरे पर हज़ार वाल्ट के बल्ब जैसी चमक आ गई थी। शायद वो ये समझता था कि मैं अपनी बीवी से सच मुच बहुत प्यार करता हूं और उसकी कसम खाने के बाद अब मैं सच में वही करने पर मजबूर हो जाऊंगा जो वो कहेगा। अब भला उसे क्या पता था कि वो मुझे नहीं बल्कि मैं उसे अपने जाल में फंसा रहा था।

"हां अब मुझे यकीन है कि तुम सच में वही करोगे जो मैं कहूंगा।" निशांत ने इस बार मुस्कुराते हुए कहा था।
"तो बताइए सर।" मैंने अपने उसी उतावलेपन को ज़ाहिर करते हुए कहा____"मुझे अपने दोस्त के लिए क्या करना होगा?"

"ज़्यादा कुछ नहीं विशेष।" निशांत ने मेरी तरफ अपनी नशे से भारी हो गई आँखों से देखते हुए कहा____"तुम्हें अपने इस दोस्त के लिए सिर्फ इतना ही करना है कि अपनी ख़ूबसूरत बीवी को मेरे पास एक रात के लिए भेज देना है।"

"क्...क्या???" मैंने बुरी तरह उछल पड़ने की एक्टिंग की और साथ ही फिर गुस्सा होने की____"ये क्या कह रहे हैं आप? आप होश में तो हैं न? आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे ऐसा कहने की?"

"तुम अपनी बीवी की कसम खा चुके हो विशेष।" निशांत ने सपाट लहजे में कहते हुए जैसे मुझे मेरी कसम याद दिलाई____"इस लिए अब तुम्हें वही करना पड़ेगा जो मैंने कहा है। वैसे भी एक ही रात की तो बात है यार। एक रात में मैं तुम्हारी ख़ूबसूरत बीवी को बस थोड़ा सा प्यार ही तो करुंगा। उसके बदले तुम्हें प्रमोशन के साथ साथ इतना सब कुछ भी तो मिल जाएगा। उसके बाद तुम्हारी लाइफ़ इससे कहीं ज़्यादा बेहतर हो जाएगी।"

"इसका मतलब सच ही कहते थे ऑफिस के वो सब लोग।" मैंने नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"ये कि आप अपने जूनियर्स को फंसा कर उनकी बीवियों के साथ ग़लत करते हैं।"

"तुम ग़लत समझ रहे हो विषेश।" निशांत ने खाली गिलास में शराब डालते हुए कहा____"ग़लत तब होता है जब किसी काम में किसी के साथ ज़बरदस्ती की जाए, जबकि मैं जो करता हूं उसमें ज़बरदस्ती नहीं बल्कि दूसरे ब्यक्ति की सहमति होती है। सिर्फ एक रात की ही बात होती है उसके बाद मैं दुबारा कभी उनके साथ संबंध बनाने के लिए नहीं कहता। मेरे समझदार जूनियर भी ये समझ लेते हैं कि एक रात में भला उनकी बीवियों की और कितना फट जाएगी? अरे! भाई वो ऐसी चीज़ थोड़ी है जो किसी के द्वारा एक बार के घिसने से घिस जाएगी।"

मैं क्योंकि अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने के मिशन पर था इस लिए कुछ देर में मैंने अपनी नाराज़गी ये कहते हुए दूर कर ली कि अपनी बीवी की कसम की वजह से मैं अब वही करने को मजबूर हो गया हूं जो उसने कहा है। मैंने ये भी मान लिया कि एक बार के घिसने से सच में मेरी बीवी की घिस नहीं जाएगी। कहने का मतलब ये कि निशांत के अनुसार मैं एक ऐसा बकरा बन गया था जिसे उसने अपनी समझ के अनुसार बड़ी ही खूबसूरती से और ठीक उसी तरह फंसा लिया था जैसे उसने अब तक बाकियों को फंसाया था।

"तो कब भेज रहे हो अपनी बीवी को मेरे पास?" निशांत ने मुस्कुराते हुए पूछा____"भाई अब मुझसे इंतज़ार नहीं होगा। वैसे भी जितना देर तुम करोगे उतनी ही देर लगेगी तुम्हारा प्रमोशन होने में। अब ये तुम पर है कि तुम कितना जल्दी अपना काम करते हो।"

"मुझे थोड़ा समय चाहिए सर।" मैंने गंभीर भाव दिखाते हुए कहा था____"आप भी ये बात समझते हैं कि ये काम इतना आसान नहीं है। इसके लिए तो पहले मुझे अपनी बीवी से बात करनी होगी और उसे इसके लिए राज़ी भी करना होगा।"

"हां ये तो मैं अच्छी तरह समझता हूं भाई।" निशांत ने कहा____"चलो ठीक है। तुम अपनी बीवी से बात करो और उसे इसके लिए राज़ी करो, लेकिन यार ज़्यादा वक़्त जाया मत करना। मैं बता ही चुका हूं कि अब मुझसे इंतज़ार नहीं होगा।"

निशांत सोलंकी से बातें करने के बाद मैं वापस अपने घर आ गया था। मैं खुश था कि मेरे प्लान का दूसरा चरण ठीक वैसा ही कामयाबी की तरफ बढ़ रहा था जैसा कि मैं चाहता था। अगले दो तीन दिन ऐसे ही गुज़र गए। ऑफिस में निशांत मुझे मिलता तो वो ये ज़रूर पूछता कि मैंने अपनी बीवी से इस बारे में बात की या नहीं। जवाब में मैं मायूस होने का नाटक करते हुए यही कहता कि मैंने अपनी बीवी से बड़ी हिम्मत करके बात तो की है लेकिन वो इसके लिए तैयार नहीं हो रही है। बल्कि वो तो मुझसे इस बात से बेहद ही ख़फा हो गई है। निशांत मेरी बात सुन कर यही कहता कि यार किसी तरह अपनी बीवी को इसके लिए राज़ी करो। अगर ज़्यादा देर हुई तो मेरे प्रमोशन का मामला रुक जाएगा। यानि मजबूरन उसे मेरी जगह किसी और का नाम लिस्ट में डलवाना पड़ेगा।

निशांत को भला क्या पता था कि मैं क्या गेम खेल रहा था? वो तो यही समझता था कि मैंने सच में अपनी बीवी से इसके लिए बात की है और वो मेरी ऐसी बातों से मुझसे ख़फा हो गई है। एक दो दिन और ऐसे ही मैंने गुज़ार दिए। असल में मैं हर चीज़ को स्वाभाविक रूप से ही कर रहा था ताकि शक जैसी कोई बात न हो। जब इस बात को एक हप्ता गुज़र गया तो मैंने सोचा कि अब प्लान के अनुसार आगे का काम शुरू करना चाहिए। ये सोच कर मैंने एक दिन निशांत से साफ़ साफ़ कह दिया कि मेरी बीवी इसके लिए बिल्कुल भी राज़ी नहीं हो रही है इस लिए इसके लिए मुझे कोई दूसरा रास्ता चुनना होगा। निशांत ने जब मुझसे दूसरे रास्ते के बारे में पूछा तो मैंने उसे बताया कि इसके लिए मैंने क्या सोचा है किन्तु इस दूसरे रास्ते के लिए मुझे उसकी मदद की ज़रूरत पड़ेगी। निशांत भला मेरी मदद करने से कैसे इंकार कर सकता था? उसके अनुसार फ़ायदा तो उसी का होना था। इस लिए वो मेरी हर तरह से मदद करने के लिए राज़ी हो गया।

कंपनी का हर आदमी मेरे बारे में यही समझता था कि मैं एक बहुत ही शरीफ़ और बहुत ही ईमानदार ब्यक्ति हूं। मैं दुनियादारी से ज़्यादा मतलब नहीं रखता हूं और ना ही मैं ऐसा हूं जो किसी के साथ धोखाधड़ी करने वाले काम करे। कंपनी के लोगों के ज़हन में मेरी छवि बहुत ही साफ़ और शांत स्वभाव वाली थी। निशांत सोलंकी सोच भी नहीं सकता था कि जिसे उसने अपनी समझ में बड़ी आसानी से फंसा लिया था वो असल में अपने अंदर कितना ख़तरनाक मंसूबा पाले बैठा था और ख़ुद उसी को फांस कर उसके साथ क्या करने वाला था।

 
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