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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
और ये आई भाभी गरम तेल की कटोरी लिए।

अरमानों पर तेल डालने 😉
Good to see you back writer ji...



Lagta hai Tel Lagane bhabhi ji hi Aaegi😜😜😜
Bahut hi behtareen update he TheBlackBlood Shubham Bhai,

Maalish karne kahi Bhabhi hi na aa jaye vaibhav ke room me................lekin meri ek dili ichcha he ki Bhabhi aur Vaibhav ki shadi ho jaye............dekhte he ye ichcha puri hogi ya nahi

Keep posting Bhai
तेल गरम है। मार दो हथौड़ा भौजी 🤣🤣
लेकिन मेरा मन तो यही है कि भाभी और वैभव की ही शादी हो।
रूपा बेचारी तो बेचारी ही बनेगी 😔
Itni nakal to exam me bhi student nahi karte bhai.... :doh:

In comments me naya kya hai likha hai sabne :roll:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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आपने मन बना ही लिया है बेचारे वैभव का KLPD करवाने का लेकिन ये तो गलत है थोड़ा थोड़ा तो मिलना चाहिए:winknudge::winknudge:
Aapke liye karte hain kuch prabandh :five: :D
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Sochne wali baat he ke kahani ki koi bhi nayika niyati ke chakkar me he pisi ja rahi he aur nayak tel malish kara rahe he.
Rupchand ki sochbudhhi ko bhi sahi samay par sahi sansadhan milte to vah shayad kahi pe baji mar leta par yahan ke niyantrak Shubham bhai he !
Dekhte he ...
Gahraai se socho to vaibhav bhi pisa hi ja raha hai bhai, matlab ki jo banda hamesha bhog vilas me dooba rahta tha uski haalat aisi ho gai hai jaise bail ka shuddhi kar dene se ho jati hai. Agar yahi haal raha to launde ka khada bhi nahi hoga, tab aur musibat ho jayegi :D
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 86
━━━━━━༻♥༺━━━━━━




इधर मेरी धडकनें अनायास ही बढ़ गईं थी। मां ने खेतों में काम के बारे में कुछ सवाल किए जिन्हें मैंने बताया और फिर मैं चाय ख़त्म कर के अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। मैं ये सोच कर भी हैरान था कि जब मां को भी मेरे बारे में सब पता है तो फिर उन्होंने मेरी मालिश के लिए किसी नौकरानी को मेरे कमरे में भेजने की बात क्यों कही? उधर भाभी जो पहले इस बात से मुझे घूर रहीं थी वो भी अब मेरी अजीब सी दशा पर मुस्कुराने लगीं थी। ऊपर से मेरी मालिश के लिए खुद भी मां से बात की और तो और तेल भी गरम करने चली गईं। मेरा दिमाग़ एकदम से ही अंतरिक्ष में परवाज़ करने लगा था।


अब आगे....


मैं अपने कमरे में पलंग पर बैठा सोचो में गुम ही था कि तभी कमरे में भाभी ने प्रवेश किया। उन्हें अपने कमरे में आया देख मैं चौंका। असल में मैं ये सोच के चौंका था कि क्या वो खुद मेरी मालिश करने आई हैं? उनके हाथ में तेल की कटोरी देख मुझे मेरी सोच सच होती प्रतीत हुई। उधर वो कटोरी लिए पलंग के पास आईं और फिर उस कटोरी को लकड़ी के एक स्टूल पर रख दिया।

"भ...भाभी आप यहां?" मैं परेशान सा हो कर पूछ ही बैठा____"वो भी कटोरी में तेल ले कर? क्या मां ने मेरी मालिश करने के लिए आपको भेजा है? नहीं नहीं, ऐसा वो कैसे कर सकती हैं? उन्होंने तो कहा था कि वो किसी नौकरानी को भेजेंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" भाभी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"तुम्हारी मालिश नौकरानी ही करेगी। वो आती ही होगी, मैं तो बस ये तेल गरम कर के लाई हूं। वैसे अगर मैं खुद तुम्हारी मालिश कर दूंगी तो क्या हो जाएगा? मैं भाभी हूं तुम्हारी, इतना तो अपने देवर के लिए कर ही सकती हूं।"

"नहीं नहीं।" मैं झट से बोल पड़ा____"मैं आपसे अपनी मालिश करवाऊं ऐसा तो सपने में भी नहीं सोच सकता मैं।"

"अरे! तो इसमें बुरा ही क्या है?" भाभी ने आंखें फैला कर मेरी तरफ देखा____"क्या एक भाभी अपने देवर की मालिश नहीं कर सकती?"

"दुनिया में कोई भाभी करती होगी पर मैं आपसे अपनी मालिश नहीं करवा सकता।" मैंने स्पष्ट रूप से कहा____"आप मेरी भाभी हैं, मेरी पूज्यनीय हैं। आपके प्रति मेरे मन में बेहद सम्मान की भावना है। आपका स्थान मेरी नज़रों में बहुत ऊंचा है। मैं सपने में भी ये नहीं सोच सकता कि में आपसे मालिश करवाऊं। आप दुबारा ऐसी बात कभी मत कीजिएगा।"

"मेरे प्रति तुम ऐसा सोचते हो ये बहुत अच्छी बात है वैभव।" भाभी ने बड़े स्नेह से कहा____"और सच कहूं तो तुम्हारे मुख से अपने लिए ये सब सुन कर बहुत अच्छा भी लगा है। किंतु मेरे द्वारा मालिश किए जाने से तुम्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। मां जी और चाची जी भी तो तुम्हारी मालिश किया करती थीं। वो भी तो तुम्हारी पूज्यनीय थीं? तुम मेरे देवर हो लेकिन उससे भी ज़्यादा तुम मेरे छोटे भाई की तरह हो और एक बहन अपने भाई की मालिश कर सकती है।"

"मैं आपकी बात मानता हूं भाभी।" मैंने बेचैनी से कहा____"लेकिन फिर भी मैं आपसे मालिश नहीं करवा सकता। बात सिर्फ मान सम्मान की ही बस नहीं है बल्कि हालातों की भी है। पहले आप एक सुहागन थीं किंतु अब आप एक विधवा के रूप में हैं। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि किसी को ये पता चले कि हवेली की बहू से नौकरों वाला काम करवाया जाने लगा है। लोग तरह तरह की बातें करने लगेंगे भाभी और मैं तो सपने में भी ये नहीं सोच सकता कि कोई मेरी भाभी के बारे में कुछ भी उल्टा सीधा सोचे। मैं अपने ऊपर हर तरह का दाग़ लगवा सकता हूं मगर आपके दामन पर अपनी वजह से कोई दाग़ नहीं लगने दे सकता। अगर ऐसा हुआ तो समझ लीजिए मैं अपने हाथों से अपनी हस्ती मिटा दूंगा।"

"ख़बरदार वैभव।" भाभी ने एकाएक गुस्से में आ कर कहा____"आइंदा कभी अपनी हस्ती मिटाने की बता मत कहना। अपने पति को खो चुकी हूं मगर अपने उस देवर को नहीं खोना चाहती जो मुझे इतना मान सम्मान देता है और मेरी इज्ज़त की परवाह करता है।"

मैंने देखा भाभी की आंखें छलक पड़ीं थी। मैं फ़ौरन ही पलंग से नीचे उतरा और उनके पास जा कर अपने हाथों से उनके आंसू पोंछे फिर कहा____"आप इस हवेली की सिर्फ इज्ज़त ही नहीं हैं भाभी बल्कि आन बान और शान भी हैं। हम सब बड़े ही खुशनसीब हैं जिन्हें आपके जैसी सभ्य सुशील और संस्कारी बहू मिली है। ईश्वर ने आपके साथ ऐसा कर के बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया है। आपको इस हाल में देख कर मेरा कलेजा फटने लगता है भाभी। मेरे बस में ही नहीं है वरना यमराज के पास जा कर भैया को वापस ले आता।"

"तुम खुद को हलकान मत करो वैभव।" भाभी ने जैसे खुद को सम्हाला____"ऊपर वाले ने मुझे दुख ज़रूर दिया है लेकिन उसने मुझे इतना अच्छा परिवार भी तो दिया है। इस परिवार के लोग मुझे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते हैं। जिसे इतना प्यार और स्नेह मिलेगा वो भला कैसे दुखी रह सकेगा?"

भाभी की बात पर मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी दरवाज़े पर हवेली की एक नौकरानी आ कर खड़ी हुई। भाभी ने उसे अंदर बुलाया तो वो अंदर आ गई। वो एक सांवली सी औरत थी जिसकी उम्र यही कोई तीस या पैंतीस के आस पास की थी।

"करुणा, मेरे देवर की अच्छे से मालिश करना तुम।" भाभी ने नौकरानी से कहा____"ताकि इनकी थकान पूरी तरह से दूर हो जाए।"

"आप चिंता मत कीजिए बहू रानी।" करुणा ने कहा____"मैं छोटे कुंवर की बहुत अच्छे से मालिश करूंगी। शिकायत का कोई भी मौका नहीं दूंगी।"

"ठीक है।" भाभी ने एक नज़र मेरी तरफ डालने के बाद उससे कहा____"मैंने तेल को गुनगुना कर के स्टूल में रख दिया है। अब तुम मालिश करना शुरू करो।"

भाभी के कहने पर करुणा ने मेरी तरफ देखा। मैं अभी भी अपने कपड़े पहने खड़ा था। भाभी ने मुझे कपड़े उतारने को कहा तो मैं उनके सामने कपड़े उतारने पर झिझकने लगा। ये देख भाभी हल्के से मुस्कुराई और फिर बोली____"क्या हुआ? कपड़े उतारो ताकि करुणा तुम्हारी मालिश कर सके। जल्दी करो, उसे फिर अपने घर भी वापस जाना है।"

"पर भाभी मैं आपके सामने कैसे अपने कपड़े उतारूं?" मैंने झिझकते हुए कहा____"आप जाइए, मैं करुणा से मालिश करवा लूंगा।"

मेरी बात सुन कर भाभी कुछ पलों तक मुझे देखती रहीं फिर बोली____"ठीक है, मैं जा रही हूं।"

कहने के साथ ही भाभी दरवाज़े की तरफ बढ़ चलीं। जब वो बाहर निकल गईं तो मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। दूसरी तरफ करुणा भी अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे अपनी कमर में बांधने लगी। पल्लू के हटते ही ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरी आंखों के सामने उजागर हो गईं। ये देख मेरे जिस्म में हलचल सी होने लगी। मैंने फ़ौरन ही उस पर से नज़रें हटाई और कपड़े उतार कर पलंग पर पेट के बल लेट गया। मेरे जिस्म में अब सिर्फ कच्छा ही रह गया था।

कुछ ही देर में करुणा कटोरी ले कर पलंग के किनारे पर आ गई। गुनगुना तेल मेरी पीठ में डाल कर उसने दोनों हाथों से मेरी मालिश करनी शुरू कर दी। इसके पहले मेनका चाची ने आख़िरी बार मेरी मालिश की थी। मेरी आंखों के सामने वो दृश्य उजागर हो उठा जब वो मेरी मालिश कर रहीं थी और उनके जिस्म के गुप्तांग को देख कर मेरी हालत ख़राब हो गई थी। ख़ैर तब की बात अलग थी और अब की अलग क्योंकि अब मैंने भाभी से वादा किया था कि अब से कोई ग़लत काम नहीं करूंगा।

मैं ख़ामोशी से लेटा हुआ था और करुणा पूरी ईमानदारी से ज़ोर लगा कर मालिश करने में लगी हुई थी। पीठ के बाद कंधे और फिर पैरों में मालिश की उसने। उसके बाद उसने मुझे सीधा लेटने को कहा तो मैं सीधा हो के लेट गया। इसके पहले मैं पेट के बल लेटा हुआ था इस लिए कोई समस्या नहीं हुई थी किंतु अब सीधा लेटने से मैं असहज महसूस करने लगा। कारण, अब मैं स्पष्ट रूप से करुणा को देख सकता था और मैं जानता था कि जैसे ही मेरी नज़र ब्लाउज से झांकती उसकी चूचियों पर पड़ेगी तो मेरा लिंग सिर उठाने लगेगा। अगर ऐसा हुआ तो करुणा को भी पता चल जाएगा। हालाकि उसका मुझे कोई डर नहीं था किंतु मैं ये भी समझता था कि संभव है कि उसे मां ने अथवा भाभी ने पहले ही ऐसी चीज़ों से सचेत कर दिया हो और ये भी कह दिया हो कि अगर मैं कुछ उल्टा सीधा करने का सोचूं तो वो फ़ौरन ही शोर मचा कर उन्हें ख़बर कर दे। बस यही नहीं चाहता था मैं और इसी बात का डर था मुझे।

अचानक ही मेरे ज़हन में विचार आया कि मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं। इससे होगा ये कि मैं करुणा की तरफ देखूंगा ही नहीं और जब देखूंगा ही नहीं तो कोई समस्या वाली बात होगी ही नहीं। इस विचार के आते ही मैंने अपनी आंखें बंद कर ली और अपने मन को कहीं और लगाने की कोशिश करने लगा।

आख़िर मैं अपनी कोशिश में कामयाब रहा और करुणा मेरी मालिश कर के मेरे कमरे से चली गई। मैंने राहत की लंबी सांस ली और फिर बेफ़िक्र हो कर उसी अवस्था में लेटा रहा। कुछ ही देर में मेरी आंख लग गई और मैं गहरी नींद में चला गया।

रात में जब खाना खाने का समय हुआ तो भाभी के जगाने पर ही मेरी आंख खुली। मैं हड़बड़ा कर उठा। कमरे में लालटेन जल रही थी जिसके पीले प्रकाश से कमरे में उजाला था। मैंने देखा भाभी पलंग के पास ही खड़ीं थी। अचानक ही मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ तो मैंने जल्दी से चादर को अपने ऊपर ओढ़ कर अपनी नग्नता को उनसे छुपाया। मालिश के दौरान मैं सिर्फ कच्छे में था और करुणा के जाने के बाद मैं वैसे ही सो गया था।

"अब कैसा महसूस हो रहा है तुम्हें?" भाभी ने पूछा____"करुणा की मालिश से आराम मिला कि नहीं?"

"हां भाभी, काफी आराम मिला है।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"उसके जाने के बाद पता ही नहीं चला कब मेरी आंख लग गई और मैं सो गया।"

"चलो ये तो अच्छी बात है।" भाभी ने कहा____"कल फिर से उससे मालिश करवा लेना। इससे तुम्हें और भी आराम मिलेगा।"

"नहीं भाभी।" मैंने कहा____"अब इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।"
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" भाभी ने कहा____"ख़ैर अब जाओ गुसलखाने में नहा लो। खाना बन गया है। पिता जी जल्दी ही खाना खाने के लिए आने वाले हैं।"

भाभी के जाने के बाद मैं पलंग से उतरा और गमछे को लपेट कर नीचे गुशलखाने में चला गया। नहा धो कर और कपड़े पहन कर मैं जल्दी ही नीचे खाना खाने के लिए पहुंच गया। पिता जी अपनी कुर्सी पर पहले से ही बैठे थे, इस लिए मैं भी जा कर एक कुर्सी पर बैठ गया। भाभी ने खाना परोसा तो हम दोनों खाने लगे। खाने के बीच पिता जी ने काम के बारे में थोड़ी बहुत पूछताछ की जिसका जवाब मैंने दिया। मुझे याद आया कि पिता जी कुल गुरु जी से मिलने गए थे। मैं सोचने लगा कि आख़िर वो किस लिए उनसे मिलने गए रहे होंगे? पहले लगा कि उनसे इस बारे में पूछूं फिर अपना इरादा बदल दिया। जल्दी ही हम दोनों खा पी कर फुरसत हो गए और फिर मैं अपने कमरे में चला गया।

✮✮✮✮

अगली सुबह नाश्ता कर के मैं अपनी मोटर साईकिल से खेतों की तरफ जाने के लिए निकल पड़ा। रात में फिर से बारिश हुई थी और अब खेतों में पर्याप्त पानी हो गया था जिससे धान बोने में कोई समस्या नहीं थी। मैं अपनी मोटर साइकिल से जल्दी ही उस जगह पर पहुंचा जहां पिछले दिन मुझे रूपा मिल गई थी। मैंने देखा आज भी वो किसी के साथ चली आ रही थी। उसके साथ में एक औरत थी जिसने सिर पर घूंघट किया हुआ था। मैं समझ गया कि शायद उसकी कोई भाभी होगी। सफ़ेद रंग की साड़ी में यकीनन वो उसकी भाभी ही थी। जैसे ही मैं तिराहे पर पहुंचा तो उसने आवाज़ दे कर मुझे रुकने को कहा तो मुझे मजबूरन रुकना ही पड़ा। उसके आवाज़ देने पर उसके साथ आ रही औरत ने झट से उसकी तरफ गर्दन घुमा कर देखा था। इधर मेरी भी धड़कनें बढ़ गईं थी।

"प्रणाम भाभी।" वो दोनों जैसे ही मेरे पास पहुंचीं तो मैंने रूपा के साथ आई उसकी भाभी को देख कर कहा।

मेरे प्रणाम करने पर उसने मुझसे कुछ न कहा। मैं समझ सकता था कि इस वक्त मेरे प्रति उसके मन में कैसे विचार होंगे। वो रूपा की सगी भाभी थी। यानी रूपचंद्र के बड़े भाई मानिकचंद्र की बीवी नीलम। मानिकचंद्र का अभी डेढ़ साल पहले ही ब्याह हुआ था। कोई औलाद नहीं हुई थी और इतने कम समय में ही वो विधवा हो गई थी। उसे देख मुझे अपनी भाभी का ख़याल आ गया। मेरी भाभी का ब्याह हुए तो कुछ साल हो भी गए थे किंतु नीलम का ब्याह हुए अभी डेढ़ साल ही हुआ था। मानिकचंद्र यूं तो इतना भी बुरा नहीं था किंतु जिन बच्चों को उनके मां बाप ने बचपन से ही ये सिखाया पढ़ाया हो कि हम उनके दुश्मन हैं उनकी फितरत भला अच्छी कैसे हो सकती थी? बहरहाल मर्दों की वजह से घर की औरतों का जीवन बर्बाद हो चुका था।

"रूपा चलो यहां से।" नीलम ने अपनी ननद रूपा से बड़ी कठोरता से कहा____"मां जी ने मना किया था न तुम्हें कि तुम इस लड़के से अब कोई ताल्लुक़ नहीं रखोगी?"

"भाभी जी ठीक कह रहीं हैं रूपा।" मैंने कहा____"तुम्हें मुझ जैसे लड़के से कोई ताल्लुक़ नहीं रखना चाहिए। अपने घर वालों का कहना मानो और उनकी मान मर्यादा का ख़याल रखो।"

"और मेरा क्या?" रूपा एकाएक दुखी भाव से बोल पड़ी____"मेरा क्या वैभव? तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैंने तुम्हें बहुत पहले ही अपना सब कुछ मान लिया था फिर क्यों मुझे ग़ैर समझ कर ठुकरा देना चाहते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी मेरे प्रेम का एहसास नहीं है? क्या तुम्हें ज़रा सा भी नहीं लगता कि जिस लड़की ने अपना सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है उसका भी अपना कोई हक़ है?"

"रूपा ये तुम क्या बकवास कर रही हो?" नीलम ने गुस्से से रूपा को देखा____"चुपचाप चलो यहां से वरना ठीक नहीं होगा।"

"मुझे किसी की परवाह नहीं है भाभी।" रूपा की आंखें छलक पड़ीं____"अगर घर वाले मुझे जान से ही मार देना चाहते हैं तो मार दें। मैं तो वैसे भी वैभव के बिना जीने की कल्पना नहीं कर सकती।"

रूपा की बातें सुन कर मैं एक बार फिर से चिंता और परेशानी में घिर गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैं क्या करूं उसके लिए? मैं अच्छी तरह जानता था कि जो वो चाहती है वो उसके घर वाले कभी मंज़ूर नहीं करेंगे और मैं ऐसा कोई काम करना ही नहीं चाहता था जिससे कि कोई नया तमाशा खड़ा हो जाए।

"ऐसा क्या है उस लड़की में जो मुझ में तुम्हें नहीं मिला वैभव?" रूपा की इस बात से मैं चौंका____"तुम एक बार बता दो कि मुझमें वो चीज़ नहीं है जो उस लड़की में है तो यकीन मानो इसी वक्त तुमसे अपने प्रेम की दुहाई देना बंद कर दूंगी।"

"क...किस लड़की की बात कर रही हो तुम?" मैंने धड़कते दिल से उसकी तरफ देखा।

"अंजान बनने का दिखावा मत करो वैभव।" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम्हारे दिल में किस लड़की के लिए प्रेम है। वो दूसरे गांव के किसी मुरारी नाम के आदमी की लड़की है ना? तुम उसी से प्रेम करते हो न?"

रूपा की बातें सुन कर मैं कुछ न बोल सका। आश्चर्य से आंखें फाड़े देखता रह गया उसे। पलक झपकते ही दिलो दिमाग़ में विस्फोट से होने लगे थे। मैं ये सोच कर चकित हो गया था कि उसे अनुराधा के बारे में कैसे पता है?

"तुम्हारी ख़ामोशी बता रही है कि तुम सच में उसी लड़की से प्रेम करते हो।" मुझे कुछ न बोलता देख रूपा ने दुखी भाव से कहा____"ज़रूर उस लड़की में कोई ऐसी बात होगी जो मुझमें नहीं है। तभी तो तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रहे। तभी तो तुम मुझे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं बनाना चाहते।"

"ए..ऐसी कोई बात नहीं है।" मैंने कमज़ोर सी आवाज़ में कहते हुए उससे नज़रें चुराई।

"कोई बात नहीं वैभव।" रूपा ने कहा____"मैं ही पागल थी जो ये नहीं समझ पाई थी कि प्रेम कभी मांगने से नहीं मिलता बल्कि वो तो किस्मत से मिला करता है। अब जा के समझी हूं कि प्रेम भी कमबख्त उसी से होता है जो किस्मत में नहीं होते मगर तुम चिंता मत करो। तुम्हें तुम्हारा प्रेम ज़रूर मिलेगा वैभव। तुम्हारे लिए देवी मां से दुआ मागूंगी कि वो तुम्हें तुम्हारे प्रेम से मिला दे। मेरी तरह अपने प्रेम में तड़पने वाला तुम्हारा मुकद्दर न बनाए। जाओ वैभव, हमेशा खुश रहो। ईश्वर करे कि तुम्हारा नाम आसमान से भी ऊंचा हो जाए। बस एक ही विनती है कि जीवन के किसी मोड़ पर अगर मेरा कभी ख़याल आए तो अपने मन में मेरे लिए नफ़रत अथवा घृणा के भाव मत लाना बल्कि थोड़ा सा ही सही लेकिन सम्मान का भाव रख लेना।"

रूपा के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। उसकी भाभी नीलम उसे हैरत से देखे जा रही थी। इधर मैं खुद को बहुत ही छोटा और असहाय सा महसूस करने लगा था। उसका एक एक शब्द जैसे मेरे दिल के पार हुआ जा रहा था। इससे पहले कि मैं कुछ कहता रूपा अपने आंसू पोंछते हुए मेरे बगल से निकल गई। उसके साथ नीलम भी चली गई। मैं ठगा सा दोनों को देखता रह गया। फिर जैसे मुझे होश आया तो मैंने मोटर साइकिल स्टार्ट की और भारी मन से आगे बढ़ चला।

रूपा में कोई ख़राबी नहीं थी। वो जितनी सुंदर थी उतनी ही गुणवान भी थी। साहूकारों के घर की लड़कियां एक से बढ़ कर एक थीं। मैंने आज तक उनमें से किसी के भी बारे में ग़लत अफवाह तक नहीं सुनी थी। ज़ाहिर है ये या तो अच्छे संस्कारों का नतीजा था या फिर वो सब अपने घर के मर्दों से कुछ ज़्यादा ही डरती थीं। रूपा की बात अलग थी। इसे उसकी बदकिस्मती कहें या नियति की कोई साज़िश कि वो मेरे जाल में फंस गई थी। शुरू शुरू में तो ऐसा ही था किंतु बाद में मुझे भी एहसास हुआ कि रूपा उन लड़कियों में से हर्गिज़ नहीं है जिन्हें मैं एक बार स्तेमाल करने के बाद भुला देता था। उसने जब शुरू में मुझे बताया था कि वो मुझसे प्रेम करने लगी है तो मुझे बड़ी हंसी आई थी। उस समय प्रेम जैसी भावनाओं को मैं वाहियात ही समझता था और यही वजह थी कि मुझे उसकी इस बात पर हंसी आई थी। मैंने उसको समझाया था कि वो प्रेम जैसे लफड़े में न पड़े। बहरहाल कुछ समय तक ठीक रहा मगर फिर उसने बार बार इस बात का ज़िक्र करना शुरू कर दिया। मुझे इस बात से गुस्सा आने लगा था। मैंने एक दिन उससे पूछ लिया कि अगर वो सच में मुझसे प्रेम करती है तो मेरे लिए वो क्या कर सकती है? मैंने तो बस मज़ाक में अथवा चिढ़ कर ही ये पूछ लिया था। ख़ैर मेरा ऐसा कहना था कि उसने झट से चाकू द्वारा अपनी कलाई काट कर कहा था____"तुम्हारे लिए बिना सोचे समझे अपनी जान दे सकती हूं।"

उस दिन के बाद से उसके प्रति मेरे जज़्बात बदल गए थे। मुझे उससे प्रेम भले ही नहीं हुआ था लेकिन ये सोच कर उसके लिए एक सम्मान की भावना ज़रूर आ गई थी कि वो मेरे प्रति कितनी संवेदनशील और समर्पित है। उसी समय मैंने उसे यही सब समझाया था कि प्रेम तक तो ठीक है लेकिन अगर वो इससे आगे बढ़ने का सोचेगी तो ये संभव नहीं है क्योंकि ऐसा उसके घर वाले कभी नहीं होने देंगे। वक्त गुज़रा और फिर उसने वो किया जो मेरी कल्पना से भी परे था। वो मेरी जान बचाने के लिए अपने ही परिवार के खिलाफ़ चली गई और भरी पंचायत में मेरी बातों का समर्थन किया। कोई बच्चा भी होगा तो समझ जाएगा कि ये सब उसने अपने प्रेम की वजह से ही किया था।

सच कहूं तो मुझे रूपा के लिए अब काफी सहानुभूति होने लगी थी और दुख भी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसे अनुराधा के बारे में कैसे पता चला होगा लेकिन इस संबंध में उसने जो कुछ कहा था वो मेरे लिए हैरतअगेज था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि क्या सच में प्रेम ऐसा होता है कि प्रेम करने वाला सिर्फ अपने प्रेमी की ही खुशी के बारे में सोचता है? यहां तक कि अपनी सबसे बड़ी चाहत का भी बलिदान दे देता है?

यही सब सोचते विचारते मैं खेतों पर पहुंच गया। वहां पर भुवन मेरा ही इंतज़ार कर रहा था। उसने बताया कि सारे मजदूर आ चुके हैं और मेरे निर्देशों का इंतज़ार कर रहे हैं। मुझे खेती किसानी का कोई तजुर्बा नहीं था इस लिए मैंने यही कहा कि जैसे अब तक करते आए हो वैसे ही करो। हमारे पास बहुत सी ज़मीनें थीं जिनमें ट्रैक्टर से तो जुताई हो ही रही थी किंतु बैलों को नाथ कर हल से भी जुताई हो रही थी। बहरहाल, मेरे आदेश पर सभी मज़दूर धान की बोआई में लग गए और कुछ रोपा लगाने लगे। खेतों को बढ़िया तरीके से तैयार कर दिया था मजदूरों ने। दोपहर तक मैं उनके साथ ही रहा और उनका हर काम बारीकी से देखता रहा। मैं खुद को बहलाने की कोशिश कर रहा था लेकिन सच तो यही था कि मेरे ज़हन से ना तो रूपा जा रही थी और ना ही अनुराधा।

मेरे अंदर से बार बार आवाज़ आ रही थी कि जिस लड़की ने मेरे लिए इतना कुछ किया है और खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया है उसको मुझे यूं ठुकराना नहीं चाहिए। दोपहर में खाना खाने मैं हवेली आ गया। नहा धो कर मैंने खाना खाया और अपने कमरे में आ कर आराम करने लगा। बार बार आंखों के सामने रूपा का रोता हुआ चेहरा दिखने लगता और कानों में उसकी बातें गूंजने लगतीं। तभी किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी मैं सोचो के भंवर से बाहर आया और फिर जा कर दरवाज़ा खोला।



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Ahsan khan786

New Member
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अध्याय - 86
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इधर मेरी धडकनें अनायास ही बढ़ गईं थी। मां ने खेतों में काम के बारे में कुछ सवाल किए जिन्हें मैंने बताया और फिर मैं चाय ख़त्म कर के अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। मैं ये सोच कर भी हैरान था कि जब मां को भी मेरे बारे में सब पता है तो फिर उन्होंने मेरी मालिश के लिए किसी नौकरानी को मेरे कमरे में भेजने की बात क्यों कही? उधर भाभी जो पहले इस बात से मुझे घूर रहीं थी वो भी अब मेरी अजीब सी दशा पर मुस्कुराने लगीं थी। ऊपर से मेरी मालिश के लिए खुद भी मां से बात की और तो और तेल भी गरम करने चली गईं। मेरा दिमाग़ एकदम से ही अंतरिक्ष में परवाज़ करने लगा था।


अब आगे....


मैं अपने कमरे में पलंग पर बैठा सोचो में गुम ही था कि तभी कमरे में भाभी ने प्रवेश किया। उन्हें अपने कमरे में आया देख मैं चौंका। असल में मैं ये सोच के चौंका था कि क्या वो खुद मेरी मालिश करने आई हैं? उनके हाथ में तेल की कटोरी देख मुझे मेरी सोच सच होती प्रतीत हुई। उधर वो कटोरी लिए पलंग के पास आईं और फिर उस कटोरी को लकड़ी के एक स्टूल पर रख दिया।

"भ...भाभी आप यहां?" मैं परेशान सा हो कर पूछ ही बैठा____"वो भी कटोरी में तेल ले कर? क्या मां ने मेरी मालिश करने के लिए आपको भेजा है? नहीं नहीं, ऐसा वो कैसे कर सकती हैं? उन्होंने तो कहा था कि वो किसी नौकरानी को भेजेंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" भाभी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"तुम्हारी मालिश नौकरानी ही करेगी। वो आती ही होगी, मैं तो बस ये तेल गरम कर के लाई हूं। वैसे अगर मैं खुद तुम्हारी मालिश कर दूंगी तो क्या हो जाएगा? मैं भाभी हूं तुम्हारी, इतना तो अपने देवर के लिए कर ही सकती हूं।"

"नहीं नहीं।" मैं झट से बोल पड़ा____"मैं आपसे अपनी मालिश करवाऊं ऐसा तो सपने में भी नहीं सोच सकता मैं।"

"अरे! तो इसमें बुरा ही क्या है?" भाभी ने आंखें फैला कर मेरी तरफ देखा____"क्या एक भाभी अपने देवर की मालिश नहीं कर सकती?"

"दुनिया में कोई भाभी करती होगी पर मैं आपसे अपनी मालिश नहीं करवा सकता।" मैंने स्पष्ट रूप से कहा____"आप मेरी भाभी हैं, मेरी पूज्यनीय हैं। आपके प्रति मेरे मन में बेहद सम्मान की भावना है। आपका स्थान मेरी नज़रों में बहुत ऊंचा है। मैं सपने में भी ये नहीं सोच सकता कि में आपसे मालिश करवाऊं। आप दुबारा ऐसी बात कभी मत कीजिएगा।"

"मेरे प्रति तुम ऐसा सोचते हो ये बहुत अच्छी बात है वैभव।" भाभी ने बड़े स्नेह से कहा____"और सच कहूं तो तुम्हारे मुख से अपने लिए ये सब सुन कर बहुत अच्छा भी लगा है। किंतु मेरे द्वारा मालिश किए जाने से तुम्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। मां जी और चाची जी भी तो तुम्हारी मालिश किया करती थीं। वो भी तो तुम्हारी पूज्यनीय थीं? तुम मेरे देवर हो लेकिन उससे भी ज़्यादा तुम मेरे छोटे भाई की तरह हो और एक बहन अपने भाई की मालिश कर सकती है।"

"मैं आपकी बात मानता हूं भाभी।" मैंने बेचैनी से कहा____"लेकिन फिर भी मैं आपसे मालिश नहीं करवा सकता। बात सिर्फ मान सम्मान की ही बस नहीं है बल्कि हालातों की भी है। पहले आप एक सुहागन थीं किंतु अब आप एक विधवा के रूप में हैं। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि किसी को ये पता चले कि हवेली की बहू से नौकरों वाला काम करवाया जाने लगा है। लोग तरह तरह की बातें करने लगेंगे भाभी और मैं तो सपने में भी ये नहीं सोच सकता कि कोई मेरी भाभी के बारे में कुछ भी उल्टा सीधा सोचे। मैं अपने ऊपर हर तरह का दाग़ लगवा सकता हूं मगर आपके दामन पर अपनी वजह से कोई दाग़ नहीं लगने दे सकता। अगर ऐसा हुआ तो समझ लीजिए मैं अपने हाथों से अपनी हस्ती मिटा दूंगा।"

"ख़बरदार वैभव।" भाभी ने एकाएक गुस्से में आ कर कहा____"आइंदा कभी अपनी हस्ती मिटाने की बता मत कहना। अपने पति को खो चुकी हूं मगर अपने उस देवर को नहीं खोना चाहती जो मुझे इतना मान सम्मान देता है और मेरी इज्ज़त की परवाह करता है।"

मैंने देखा भाभी की आंखें छलक पड़ीं थी। मैं फ़ौरन ही पलंग से नीचे उतरा और उनके पास जा कर अपने हाथों से उनके आंसू पोंछे फिर कहा____"आप इस हवेली की सिर्फ इज्ज़त ही नहीं हैं भाभी बल्कि आन बान और शान भी हैं। हम सब बड़े ही खुशनसीब हैं जिन्हें आपके जैसी सभ्य सुशील और संस्कारी बहू मिली है। ईश्वर ने आपके साथ ऐसा कर के बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया है। आपको इस हाल में देख कर मेरा कलेजा फटने लगता है भाभी। मेरे बस में ही नहीं है वरना यमराज के पास जा कर भैया को वापस ले आता।"

"तुम खुद को हलकान मत करो वैभव।" भाभी ने जैसे खुद को सम्हाला____"ऊपर वाले ने मुझे दुख ज़रूर दिया है लेकिन उसने मुझे इतना अच्छा परिवार भी तो दिया है। इस परिवार के लोग मुझे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते हैं। जिसे इतना प्यार और स्नेह मिलेगा वो भला कैसे दुखी रह सकेगा?"

भाभी की बात पर मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी दरवाज़े पर हवेली की एक नौकरानी आ कर खड़ी हुई। भाभी ने उसे अंदर बुलाया तो वो अंदर आ गई। वो एक सांवली सी औरत थी जिसकी उम्र यही कोई तीस या पैंतीस के आस पास की थी।

"करुणा, मेरे देवर की अच्छे से मालिश करना तुम।" भाभी ने नौकरानी से कहा____"ताकि इनकी थकान पूरी तरह से दूर हो जाए।"

"आप चिंता मत कीजिए बहू रानी।" करुणा ने कहा____"मैं छोटे कुंवर की बहुत अच्छे से मालिश करूंगी। शिकायत का कोई भी मौका नहीं दूंगी।"

"ठीक है।" भाभी ने एक नज़र मेरी तरफ डालने के बाद उससे कहा____"मैंने तेल को गुनगुना कर के स्टूल में रख दिया है। अब तुम मालिश करना शुरू करो।"

भाभी के कहने पर करुणा ने मेरी तरफ देखा। मैं अभी भी अपने कपड़े पहने खड़ा था। भाभी ने मुझे कपड़े उतारने को कहा तो मैं उनके सामने कपड़े उतारने पर झिझकने लगा। ये देख भाभी हल्के से मुस्कुराई और फिर बोली____"क्या हुआ? कपड़े उतारो ताकि करुणा तुम्हारी मालिश कर सके। जल्दी करो, उसे फिर अपने घर भी वापस जाना है।"

"पर भाभी मैं आपके सामने कैसे अपने कपड़े उतारूं?" मैंने झिझकते हुए कहा____"आप जाइए, मैं करुणा से मालिश करवा लूंगा।"

मेरी बात सुन कर भाभी कुछ पलों तक मुझे देखती रहीं फिर बोली____"ठीक है, मैं जा रही हूं।"

कहने के साथ ही भाभी दरवाज़े की तरफ बढ़ चलीं। जब वो बाहर निकल गईं तो मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। दूसरी तरफ करुणा भी अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे अपनी कमर में बांधने लगी। पल्लू के हटते ही ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरी आंखों के सामने उजागर हो गईं। ये देख मेरे जिस्म में हलचल सी होने लगी। मैंने फ़ौरन ही उस पर से नज़रें हटाई और कपड़े उतार कर पलंग पर पेट के बल लेट गया। मेरे जिस्म में अब सिर्फ कच्छा ही रह गया था।

कुछ ही देर में करुणा कटोरी ले कर पलंग के किनारे पर आ गई। गुनगुना तेल मेरी पीठ में डाल कर उसने दोनों हाथों से मेरी मालिश करनी शुरू कर दी। इसके पहले मेनका चाची ने आख़िरी बार मेरी मालिश की थी। मेरी आंखों के सामने वो दृश्य उजागर हो उठा जब वो मेरी मालिश कर रहीं थी और उनके जिस्म के गुप्तांग को देख कर मेरी हालत ख़राब हो गई थी। ख़ैर तब की बात अलग थी और अब की अलग क्योंकि अब मैंने भाभी से वादा किया था कि अब से कोई ग़लत काम नहीं करूंगा।

मैं ख़ामोशी से लेटा हुआ था और करुणा पूरी ईमानदारी से ज़ोर लगा कर मालिश करने में लगी हुई थी। पीठ के बाद कंधे और फिर पैरों में मालिश की उसने। उसके बाद उसने मुझे सीधा लेटने को कहा तो मैं सीधा हो के लेट गया। इसके पहले मैं पेट के बल लेटा हुआ था इस लिए कोई समस्या नहीं हुई थी किंतु अब सीधा लेटने से मैं असहज महसूस करने लगा। कारण, अब मैं स्पष्ट रूप से करुणा को देख सकता था और मैं जानता था कि जैसे ही मेरी नज़र ब्लाउज से झांकती उसकी चूचियों पर पड़ेगी तो मेरा लिंग सिर उठाने लगेगा। अगर ऐसा हुआ तो करुणा को भी पता चल जाएगा। हालाकि उसका मुझे कोई डर नहीं था किंतु मैं ये भी समझता था कि संभव है कि उसे मां ने अथवा भाभी ने पहले ही ऐसी चीज़ों से सचेत कर दिया हो और ये भी कह दिया हो कि अगर मैं कुछ उल्टा सीधा करने का सोचूं तो वो फ़ौरन ही शोर मचा कर उन्हें ख़बर कर दे। बस यही नहीं चाहता था मैं और इसी बात का डर था मुझे।

अचानक ही मेरे ज़हन में विचार आया कि मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं। इससे होगा ये कि मैं करुणा की तरफ देखूंगा ही नहीं और जब देखूंगा ही नहीं तो कोई समस्या वाली बात होगी ही नहीं। इस विचार के आते ही मैंने अपनी आंखें बंद कर ली और अपने मन को कहीं और लगाने की कोशिश करने लगा।

आख़िर मैं अपनी कोशिश में कामयाब रहा और करुणा मेरी मालिश कर के मेरे कमरे से चली गई। मैंने राहत की लंबी सांस ली और फिर बेफ़िक्र हो कर उसी अवस्था में लेटा रहा। कुछ ही देर में मेरी आंख लग गई और मैं गहरी नींद में चला गया।

रात में जब खाना खाने का समय हुआ तो भाभी के जगाने पर ही मेरी आंख खुली। मैं हड़बड़ा कर उठा। कमरे में लालटेन जल रही थी जिसके पीले प्रकाश से कमरे में उजाला था। मैंने देखा भाभी पलंग के पास ही खड़ीं थी। अचानक ही मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ तो मैंने जल्दी से चादर को अपने ऊपर ओढ़ कर अपनी नग्नता को उनसे छुपाया। मालिश के दौरान मैं सिर्फ कच्छे में था और करुणा के जाने के बाद मैं वैसे ही सो गया था।

"अब कैसा महसूस हो रहा है तुम्हें?" भाभी ने पूछा____"करुणा की मालिश से आराम मिला कि नहीं?"

"हां भाभी, काफी आराम मिला है।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"उसके जाने के बाद पता ही नहीं चला कब मेरी आंख लग गई और मैं सो गया।"

"चलो ये तो अच्छी बात है।" भाभी ने कहा____"कल फिर से उससे मालिश करवा लेना। इससे तुम्हें और भी आराम मिलेगा।"

"नहीं भाभी।" मैंने कहा____"अब इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।"
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" भाभी ने कहा____"ख़ैर अब जाओ गुसलखाने में नहा लो। खाना बन गया है। पिता जी जल्दी ही खाना खाने के लिए आने वाले हैं।"

भाभी के जाने के बाद मैं पलंग से उतरा और गमछे को लपेट कर नीचे गुशलखाने में चला गया। नहा धो कर और कपड़े पहन कर मैं जल्दी ही नीचे खाना खाने के लिए पहुंच गया। पिता जी अपनी कुर्सी पर पहले से ही बैठे थे, इस लिए मैं भी जा कर एक कुर्सी पर बैठ गया। भाभी ने खाना परोसा तो हम दोनों खाने लगे। खाने के बीच पिता जी ने काम के बारे में थोड़ी बहुत पूछताछ की जिसका जवाब मैंने दिया। मुझे याद आया कि पिता जी कुल गुरु जी से मिलने गए थे। मैं सोचने लगा कि आख़िर वो किस लिए उनसे मिलने गए रहे होंगे? पहले लगा कि उनसे इस बारे में पूछूं फिर अपना इरादा बदल दिया। जल्दी ही हम दोनों खा पी कर फुरसत हो गए और फिर मैं अपने कमरे में चला गया।

✮✮✮✮

अगली सुबह नाश्ता कर के मैं अपनी मोटर साईकिल से खेतों की तरफ जाने के लिए निकल पड़ा। रात में फिर से बारिश हुई थी और अब खेतों में पर्याप्त पानी हो गया था जिससे धान बोने में कोई समस्या नहीं थी। मैं अपनी मोटर साइकिल से जल्दी ही उस जगह पर पहुंचा जहां पिछले दिन मुझे रूपा मिल गई थी। मैंने देखा आज भी वो किसी के साथ चली आ रही थी। उसके साथ में एक औरत थी जिसने सिर पर घूंघट किया हुआ था। मैं समझ गया कि शायद उसकी कोई भाभी होगी। सफ़ेद रंग की साड़ी में यकीनन वो उसकी भाभी ही थी। जैसे ही मैं तिराहे पर पहुंचा तो उसने आवाज़ दे कर मुझे रुकने को कहा तो मुझे मजबूरन रुकना ही पड़ा। उसके आवाज़ देने पर उसके साथ आ रही औरत ने झट से उसकी तरफ गर्दन घुमा कर देखा था। इधर मेरी भी धड़कनें बढ़ गईं थी।

"प्रणाम भाभी।" वो दोनों जैसे ही मेरे पास पहुंचीं तो मैंने रूपा के साथ आई उसकी भाभी को देख कर कहा।

मेरे प्रणाम करने पर उसने मुझसे कुछ न कहा। मैं समझ सकता था कि इस वक्त मेरे प्रति उसके मन में कैसे विचार होंगे। वो रूपा की सगी भाभी थी। यानी रूपचंद्र के बड़े भाई मानिकचंद्र की बीवी नीलम। मानिकचंद्र का अभी डेढ़ साल पहले ही ब्याह हुआ था। कोई औलाद नहीं हुई थी और इतने कम समय में ही वो विधवा हो गई थी। उसे देख मुझे अपनी भाभी का ख़याल आ गया। मेरी भाभी का ब्याह हुए तो कुछ साल हो भी गए थे किंतु नीलम का ब्याह हुए अभी डेढ़ साल ही हुआ था। मानिकचंद्र यूं तो इतना भी बुरा नहीं था किंतु जिन बच्चों को उनके मां बाप ने बचपन से ही ये सिखाया पढ़ाया हो कि हम उनके दुश्मन हैं उनकी फितरत भला अच्छी कैसे हो सकती थी? बहरहाल मर्दों की वजह से घर की औरतों का जीवन बर्बाद हो चुका था।

"रूपा चलो यहां से।" नीलम ने अपनी ननद रूपा से बड़ी कठोरता से कहा____"मां जी ने मना किया था न तुम्हें कि तुम इस लड़के से अब कोई ताल्लुक़ नहीं रखोगी?"

"भाभी जी ठीक कह रहीं हैं रूपा।" मैंने कहा____"तुम्हें मुझ जैसे लड़के से कोई ताल्लुक़ नहीं रखना चाहिए। अपने घर वालों का कहना मानो और उनकी मान मर्यादा का ख़याल रखो।"

"और मेरा क्या?" रूपा एकाएक दुखी भाव से बोल पड़ी____"मेरा क्या वैभव? तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैंने तुम्हें बहुत पहले ही अपना सब कुछ मान लिया था फिर क्यों मुझे ग़ैर समझ कर ठुकरा देना चाहते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी मेरे प्रेम का एहसास नहीं है? क्या तुम्हें ज़रा सा भी नहीं लगता कि जिस लड़की ने अपना सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है उसका भी अपना कोई हक़ है?"

"रूपा ये तुम क्या बकवास कर रही हो?" नीलम ने गुस्से से रूपा को देखा____"चुपचाप चलो यहां से वरना ठीक नहीं होगा।"

"मुझे किसी की परवाह नहीं है भाभी।" रूपा की आंखें छलक पड़ीं____"अगर घर वाले मुझे जान से ही मार देना चाहते हैं तो मार दें। मैं तो वैसे भी वैभव के बिना जीने की कल्पना नहीं कर सकती।"

रूपा की बातें सुन कर मैं एक बार फिर से चिंता और परेशानी में घिर गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैं क्या करूं उसके लिए? मैं अच्छी तरह जानता था कि जो वो चाहती है वो उसके घर वाले कभी मंज़ूर नहीं करेंगे और मैं ऐसा कोई काम करना ही नहीं चाहता था जिससे कि कोई नया तमाशा खड़ा हो जाए।

"ऐसा क्या है उस लड़की में जो मुझ में तुम्हें नहीं मिला वैभव?" रूपा की इस बात से मैं चौंका____"तुम एक बार बता दो कि मुझमें वो चीज़ नहीं है जो उस लड़की में है तो यकीन मानो इसी वक्त तुमसे अपने प्रेम की दुहाई देना बंद कर दूंगी।"

"क...किस लड़की की बात कर रही हो तुम?" मैंने धड़कते दिल से उसकी तरफ देखा।

"अंजान बनने का दिखावा मत करो वैभव।" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम्हारे दिल में किस लड़की के लिए प्रेम है। वो दूसरे गांव के किसी मुरारी नाम के आदमी की लड़की है ना? तुम उसी से प्रेम करते हो न?"

रूपा की बातें सुन कर मैं कुछ न बोल सका। आश्चर्य से आंखें फाड़े देखता रह गया उसे। पलक झपकते ही दिलो दिमाग़ में विस्फोट से होने लगे थे। मैं ये सोच कर चकित हो गया था कि उसे अनुराधा के बारे में कैसे पता है?

"तुम्हारी ख़ामोशी बता रही है कि तुम सच में उसी लड़की से प्रेम करते हो।" मुझे कुछ न बोलता देख रूपा ने दुखी भाव से कहा____"ज़रूर उस लड़की में कोई ऐसी बात होगी जो मुझमें नहीं है। तभी तो तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रहे। तभी तो तुम मुझे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं बनाना चाहते।"

"ए..ऐसी कोई बात नहीं है।" मैंने कमज़ोर सी आवाज़ में कहते हुए उससे नज़रें चुराई।

"कोई बात नहीं वैभव।" रूपा ने कहा____"मैं ही पागल थी जो ये नहीं समझ पाई थी कि प्रेम कभी मांगने से नहीं मिलता बल्कि वो तो किस्मत से मिला करता है। अब जा के समझी हूं कि प्रेम भी कमबख्त उसी से होता है जो किस्मत में नहीं होते मगर तुम चिंता मत करो। तुम्हें तुम्हारा प्रेम ज़रूर मिलेगा वैभव। तुम्हारे लिए देवी मां से दुआ मागूंगी कि वो तुम्हें तुम्हारे प्रेम से मिला दे। मेरी तरह अपने प्रेम में तड़पने वाला तुम्हारा मुकद्दर न बनाए। जाओ वैभव, हमेशा खुश रहो। ईश्वर करे कि तुम्हारा नाम आसमान से भी ऊंचा हो जाए। बस एक ही विनती है कि जीवन के किसी मोड़ पर अगर मेरा कभी ख़याल आए तो अपने मन में मेरे लिए नफ़रत अथवा घृणा के भाव मत लाना बल्कि थोड़ा सा ही सही लेकिन सम्मान का भाव रख लेना।"

रूपा के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। उसकी भाभी नीलम उसे हैरत से देखे जा रही थी। इधर मैं खुद को बहुत ही छोटा और असहाय सा महसूस करने लगा था। उसका एक एक शब्द जैसे मेरे दिल के पार हुआ जा रहा था। इससे पहले कि मैं कुछ कहता रूपा अपने आंसू पोंछते हुए मेरे बगल से निकल गई। उसके साथ नीलम भी चली गई। मैं ठगा सा दोनों को देखता रह गया। फिर जैसे मुझे होश आया तो मैंने मोटर साइकिल स्टार्ट की और भारी मन से आगे बढ़ चला।

रूपा में कोई ख़राबी नहीं थी। वो जितनी सुंदर थी उतनी ही गुणवान भी थी। साहूकारों के घर की लड़कियां एक से बढ़ कर एक थीं। मैंने आज तक उनमें से किसी के भी बारे में ग़लत अफवाह तक नहीं सुनी थी। ज़ाहिर है ये या तो अच्छे संस्कारों का नतीजा था या फिर वो सब अपने घर के मर्दों से कुछ ज़्यादा ही डरती थीं। रूपा की बात अलग थी। इसे उसकी बदकिस्मती कहें या नियति की कोई साज़िश कि वो मेरे जाल में फंस गई थी। शुरू शुरू में तो ऐसा ही था किंतु बाद में मुझे भी एहसास हुआ कि रूपा उन लड़कियों में से हर्गिज़ नहीं है जिन्हें मैं एक बार स्तेमाल करने के बाद भुला देता था। उसने जब शुरू में मुझे बताया था कि वो मुझसे प्रेम करने लगी है तो मुझे बड़ी हंसी आई थी। उस समय प्रेम जैसी भावनाओं को मैं वाहियात ही समझता था और यही वजह थी कि मुझे उसकी इस बात पर हंसी आई थी। मैंने उसको समझाया था कि वो प्रेम जैसे लफड़े में न पड़े। बहरहाल कुछ समय तक ठीक रहा मगर फिर उसने बार बार इस बात का ज़िक्र करना शुरू कर दिया। मुझे इस बात से गुस्सा आने लगा था। मैंने एक दिन उससे पूछ लिया कि अगर वो सच में मुझसे प्रेम करती है तो मेरे लिए वो क्या कर सकती है? मैंने तो बस मज़ाक में अथवा चिढ़ कर ही ये पूछ लिया था। ख़ैर मेरा ऐसा कहना था कि उसने झट से चाकू द्वारा अपनी कलाई काट कर कहा था____"तुम्हारे लिए बिना सोचे समझे अपनी जान दे सकती हूं।"

उस दिन के बाद से उसके प्रति मेरे जज़्बात बदल गए थे। मुझे उससे प्रेम भले ही नहीं हुआ था लेकिन ये सोच कर उसके लिए एक सम्मान की भावना ज़रूर आ गई थी कि वो मेरे प्रति कितनी संवेदनशील और समर्पित है। उसी समय मैंने उसे यही सब समझाया था कि प्रेम तक तो ठीक है लेकिन अगर वो इससे आगे बढ़ने का सोचेगी तो ये संभव नहीं है क्योंकि ऐसा उसके घर वाले कभी नहीं होने देंगे। वक्त गुज़रा और फिर उसने वो किया जो मेरी कल्पना से भी परे था। वो मेरी जान बचाने के लिए अपने ही परिवार के खिलाफ़ चली गई और भरी पंचायत में मेरी बातों का समर्थन किया। कोई बच्चा भी होगा तो समझ जाएगा कि ये सब उसने अपने प्रेम की वजह से ही किया था।

सच कहूं तो मुझे रूपा के लिए अब काफी सहानुभूति होने लगी थी और दुख भी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसे अनुराधा के बारे में कैसे पता चला होगा लेकिन इस संबंध में उसने जो कुछ कहा था वो मेरे लिए हैरतअगेज था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि क्या सच में प्रेम ऐसा होता है कि प्रेम करने वाला सिर्फ अपने प्रेमी की ही खुशी के बारे में सोचता है? यहां तक कि अपनी सबसे बड़ी चाहत का भी बलिदान दे देता है?

यही सब सोचते विचारते मैं खेतों पर पहुंच गया। वहां पर भुवन मेरा ही इंतज़ार कर रहा था। उसने बताया कि सारे मजदूर आ चुके हैं और मेरे निर्देशों का इंतज़ार कर रहे हैं। मुझे खेती किसानी का कोई तजुर्बा नहीं था इस लिए मैंने यही कहा कि जैसे अब तक करते आए हो वैसे ही करो। हमारे पास बहुत सी ज़मीनें थीं जिनमें ट्रैक्टर से तो जुताई हो ही रही थी किंतु बैलों को नाथ कर हल से भी जुताई हो रही थी। बहरहाल, मेरे आदेश पर सभी मज़दूर धान की बोआई में लग गए और कुछ रोपा लगाने लगे। खेतों को बढ़िया तरीके से तैयार कर दिया था मजदूरों ने। दोपहर तक मैं उनके साथ ही रहा और उनका हर काम बारीकी से देखता रहा। मैं खुद को बहलाने की कोशिश कर रहा था लेकिन सच तो यही था कि मेरे ज़हन से ना तो रूपा जा रही थी और ना ही अनुराधा।

मेरे अंदर से बार बार आवाज़ आ रही थी कि जिस लड़की ने मेरे लिए इतना कुछ किया है और खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया है उसको मुझे यूं ठुकराना नहीं चाहिए। दोपहर में खाना खाने मैं हवेली आ गया। नहा धो कर मैंने खाना खाया और अपने कमरे में आ कर आराम करने लगा। बार बार आंखों के सामने रूपा का रोता हुआ चेहरा दिखने लगता और कानों में उसकी बातें गूंजने लगतीं। तभी किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी मैं सोचो के भंवर से बाहर आया और फिर जा कर दरवाज़ा खोला।




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Bhabhiji wala chance miss ho gaya 😜😜😜



Rupa saccha wala love karti hai bhai.... Uske sath bura mat karo bhai....
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अध्याय - 86
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इधर मेरी धडकनें अनायास ही बढ़ गईं थी। मां ने खेतों में काम के बारे में कुछ सवाल किए जिन्हें मैंने बताया और फिर मैं चाय ख़त्म कर के अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। मैं ये सोच कर भी हैरान था कि जब मां को भी मेरे बारे में सब पता है तो फिर उन्होंने मेरी मालिश के लिए किसी नौकरानी को मेरे कमरे में भेजने की बात क्यों कही? उधर भाभी जो पहले इस बात से मुझे घूर रहीं थी वो भी अब मेरी अजीब सी दशा पर मुस्कुराने लगीं थी। ऊपर से मेरी मालिश के लिए खुद भी मां से बात की और तो और तेल भी गरम करने चली गईं। मेरा दिमाग़ एकदम से ही अंतरिक्ष में परवाज़ करने लगा था।


अब आगे....


मैं अपने कमरे में पलंग पर बैठा सोचो में गुम ही था कि तभी कमरे में भाभी ने प्रवेश किया। उन्हें अपने कमरे में आया देख मैं चौंका। असल में मैं ये सोच के चौंका था कि क्या वो खुद मेरी मालिश करने आई हैं? उनके हाथ में तेल की कटोरी देख मुझे मेरी सोच सच होती प्रतीत हुई। उधर वो कटोरी लिए पलंग के पास आईं और फिर उस कटोरी को लकड़ी के एक स्टूल पर रख दिया।

"भ...भाभी आप यहां?" मैं परेशान सा हो कर पूछ ही बैठा____"वो भी कटोरी में तेल ले कर? क्या मां ने मेरी मालिश करने के लिए आपको भेजा है? नहीं नहीं, ऐसा वो कैसे कर सकती हैं? उन्होंने तो कहा था कि वो किसी नौकरानी को भेजेंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" भाभी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"तुम्हारी मालिश नौकरानी ही करेगी। वो आती ही होगी, मैं तो बस ये तेल गरम कर के लाई हूं। वैसे अगर मैं खुद तुम्हारी मालिश कर दूंगी तो क्या हो जाएगा? मैं भाभी हूं तुम्हारी, इतना तो अपने देवर के लिए कर ही सकती हूं।"

"नहीं नहीं।" मैं झट से बोल पड़ा____"मैं आपसे अपनी मालिश करवाऊं ऐसा तो सपने में भी नहीं सोच सकता मैं।"

"अरे! तो इसमें बुरा ही क्या है?" भाभी ने आंखें फैला कर मेरी तरफ देखा____"क्या एक भाभी अपने देवर की मालिश नहीं कर सकती?"

"दुनिया में कोई भाभी करती होगी पर मैं आपसे अपनी मालिश नहीं करवा सकता।" मैंने स्पष्ट रूप से कहा____"आप मेरी भाभी हैं, मेरी पूज्यनीय हैं। आपके प्रति मेरे मन में बेहद सम्मान की भावना है। आपका स्थान मेरी नज़रों में बहुत ऊंचा है। मैं सपने में भी ये नहीं सोच सकता कि में आपसे मालिश करवाऊं। आप दुबारा ऐसी बात कभी मत कीजिएगा।"

"मेरे प्रति तुम ऐसा सोचते हो ये बहुत अच्छी बात है वैभव।" भाभी ने बड़े स्नेह से कहा____"और सच कहूं तो तुम्हारे मुख से अपने लिए ये सब सुन कर बहुत अच्छा भी लगा है। किंतु मेरे द्वारा मालिश किए जाने से तुम्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। मां जी और चाची जी भी तो तुम्हारी मालिश किया करती थीं। वो भी तो तुम्हारी पूज्यनीय थीं? तुम मेरे देवर हो लेकिन उससे भी ज़्यादा तुम मेरे छोटे भाई की तरह हो और एक बहन अपने भाई की मालिश कर सकती है।"

"मैं आपकी बात मानता हूं भाभी।" मैंने बेचैनी से कहा____"लेकिन फिर भी मैं आपसे मालिश नहीं करवा सकता। बात सिर्फ मान सम्मान की ही बस नहीं है बल्कि हालातों की भी है। पहले आप एक सुहागन थीं किंतु अब आप एक विधवा के रूप में हैं। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि किसी को ये पता चले कि हवेली की बहू से नौकरों वाला काम करवाया जाने लगा है। लोग तरह तरह की बातें करने लगेंगे भाभी और मैं तो सपने में भी ये नहीं सोच सकता कि कोई मेरी भाभी के बारे में कुछ भी उल्टा सीधा सोचे। मैं अपने ऊपर हर तरह का दाग़ लगवा सकता हूं मगर आपके दामन पर अपनी वजह से कोई दाग़ नहीं लगने दे सकता। अगर ऐसा हुआ तो समझ लीजिए मैं अपने हाथों से अपनी हस्ती मिटा दूंगा।"

"ख़बरदार वैभव।" भाभी ने एकाएक गुस्से में आ कर कहा____"आइंदा कभी अपनी हस्ती मिटाने की बता मत कहना। अपने पति को खो चुकी हूं मगर अपने उस देवर को नहीं खोना चाहती जो मुझे इतना मान सम्मान देता है और मेरी इज्ज़त की परवाह करता है।"

मैंने देखा भाभी की आंखें छलक पड़ीं थी। मैं फ़ौरन ही पलंग से नीचे उतरा और उनके पास जा कर अपने हाथों से उनके आंसू पोंछे फिर कहा____"आप इस हवेली की सिर्फ इज्ज़त ही नहीं हैं भाभी बल्कि आन बान और शान भी हैं। हम सब बड़े ही खुशनसीब हैं जिन्हें आपके जैसी सभ्य सुशील और संस्कारी बहू मिली है। ईश्वर ने आपके साथ ऐसा कर के बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया है। आपको इस हाल में देख कर मेरा कलेजा फटने लगता है भाभी। मेरे बस में ही नहीं है वरना यमराज के पास जा कर भैया को वापस ले आता।"

"तुम खुद को हलकान मत करो वैभव।" भाभी ने जैसे खुद को सम्हाला____"ऊपर वाले ने मुझे दुख ज़रूर दिया है लेकिन उसने मुझे इतना अच्छा परिवार भी तो दिया है। इस परिवार के लोग मुझे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते हैं। जिसे इतना प्यार और स्नेह मिलेगा वो भला कैसे दुखी रह सकेगा?"

भाभी की बात पर मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी दरवाज़े पर हवेली की एक नौकरानी आ कर खड़ी हुई। भाभी ने उसे अंदर बुलाया तो वो अंदर आ गई। वो एक सांवली सी औरत थी जिसकी उम्र यही कोई तीस या पैंतीस के आस पास की थी।

"करुणा, मेरे देवर की अच्छे से मालिश करना तुम।" भाभी ने नौकरानी से कहा____"ताकि इनकी थकान पूरी तरह से दूर हो जाए।"

"आप चिंता मत कीजिए बहू रानी।" करुणा ने कहा____"मैं छोटे कुंवर की बहुत अच्छे से मालिश करूंगी। शिकायत का कोई भी मौका नहीं दूंगी।"

"ठीक है।" भाभी ने एक नज़र मेरी तरफ डालने के बाद उससे कहा____"मैंने तेल को गुनगुना कर के स्टूल में रख दिया है। अब तुम मालिश करना शुरू करो।"

भाभी के कहने पर करुणा ने मेरी तरफ देखा। मैं अभी भी अपने कपड़े पहने खड़ा था। भाभी ने मुझे कपड़े उतारने को कहा तो मैं उनके सामने कपड़े उतारने पर झिझकने लगा। ये देख भाभी हल्के से मुस्कुराई और फिर बोली____"क्या हुआ? कपड़े उतारो ताकि करुणा तुम्हारी मालिश कर सके। जल्दी करो, उसे फिर अपने घर भी वापस जाना है।"

"पर भाभी मैं आपके सामने कैसे अपने कपड़े उतारूं?" मैंने झिझकते हुए कहा____"आप जाइए, मैं करुणा से मालिश करवा लूंगा।"

मेरी बात सुन कर भाभी कुछ पलों तक मुझे देखती रहीं फिर बोली____"ठीक है, मैं जा रही हूं।"

कहने के साथ ही भाभी दरवाज़े की तरफ बढ़ चलीं। जब वो बाहर निकल गईं तो मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। दूसरी तरफ करुणा भी अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे अपनी कमर में बांधने लगी। पल्लू के हटते ही ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरी आंखों के सामने उजागर हो गईं। ये देख मेरे जिस्म में हलचल सी होने लगी। मैंने फ़ौरन ही उस पर से नज़रें हटाई और कपड़े उतार कर पलंग पर पेट के बल लेट गया। मेरे जिस्म में अब सिर्फ कच्छा ही रह गया था।

कुछ ही देर में करुणा कटोरी ले कर पलंग के किनारे पर आ गई। गुनगुना तेल मेरी पीठ में डाल कर उसने दोनों हाथों से मेरी मालिश करनी शुरू कर दी। इसके पहले मेनका चाची ने आख़िरी बार मेरी मालिश की थी। मेरी आंखों के सामने वो दृश्य उजागर हो उठा जब वो मेरी मालिश कर रहीं थी और उनके जिस्म के गुप्तांग को देख कर मेरी हालत ख़राब हो गई थी। ख़ैर तब की बात अलग थी और अब की अलग क्योंकि अब मैंने भाभी से वादा किया था कि अब से कोई ग़लत काम नहीं करूंगा।

मैं ख़ामोशी से लेटा हुआ था और करुणा पूरी ईमानदारी से ज़ोर लगा कर मालिश करने में लगी हुई थी। पीठ के बाद कंधे और फिर पैरों में मालिश की उसने। उसके बाद उसने मुझे सीधा लेटने को कहा तो मैं सीधा हो के लेट गया। इसके पहले मैं पेट के बल लेटा हुआ था इस लिए कोई समस्या नहीं हुई थी किंतु अब सीधा लेटने से मैं असहज महसूस करने लगा। कारण, अब मैं स्पष्ट रूप से करुणा को देख सकता था और मैं जानता था कि जैसे ही मेरी नज़र ब्लाउज से झांकती उसकी चूचियों पर पड़ेगी तो मेरा लिंग सिर उठाने लगेगा। अगर ऐसा हुआ तो करुणा को भी पता चल जाएगा। हालाकि उसका मुझे कोई डर नहीं था किंतु मैं ये भी समझता था कि संभव है कि उसे मां ने अथवा भाभी ने पहले ही ऐसी चीज़ों से सचेत कर दिया हो और ये भी कह दिया हो कि अगर मैं कुछ उल्टा सीधा करने का सोचूं तो वो फ़ौरन ही शोर मचा कर उन्हें ख़बर कर दे। बस यही नहीं चाहता था मैं और इसी बात का डर था मुझे।

अचानक ही मेरे ज़हन में विचार आया कि मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं। इससे होगा ये कि मैं करुणा की तरफ देखूंगा ही नहीं और जब देखूंगा ही नहीं तो कोई समस्या वाली बात होगी ही नहीं। इस विचार के आते ही मैंने अपनी आंखें बंद कर ली और अपने मन को कहीं और लगाने की कोशिश करने लगा।

आख़िर मैं अपनी कोशिश में कामयाब रहा और करुणा मेरी मालिश कर के मेरे कमरे से चली गई। मैंने राहत की लंबी सांस ली और फिर बेफ़िक्र हो कर उसी अवस्था में लेटा रहा। कुछ ही देर में मेरी आंख लग गई और मैं गहरी नींद में चला गया।

रात में जब खाना खाने का समय हुआ तो भाभी के जगाने पर ही मेरी आंख खुली। मैं हड़बड़ा कर उठा। कमरे में लालटेन जल रही थी जिसके पीले प्रकाश से कमरे में उजाला था। मैंने देखा भाभी पलंग के पास ही खड़ीं थी। अचानक ही मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ तो मैंने जल्दी से चादर को अपने ऊपर ओढ़ कर अपनी नग्नता को उनसे छुपाया। मालिश के दौरान मैं सिर्फ कच्छे में था और करुणा के जाने के बाद मैं वैसे ही सो गया था।

"अब कैसा महसूस हो रहा है तुम्हें?" भाभी ने पूछा____"करुणा की मालिश से आराम मिला कि नहीं?"

"हां भाभी, काफी आराम मिला है।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"उसके जाने के बाद पता ही नहीं चला कब मेरी आंख लग गई और मैं सो गया।"

"चलो ये तो अच्छी बात है।" भाभी ने कहा____"कल फिर से उससे मालिश करवा लेना। इससे तुम्हें और भी आराम मिलेगा।"

"नहीं भाभी।" मैंने कहा____"अब इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।"
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" भाभी ने कहा____"ख़ैर अब जाओ गुसलखाने में नहा लो। खाना बन गया है। पिता जी जल्दी ही खाना खाने के लिए आने वाले हैं।"

भाभी के जाने के बाद मैं पलंग से उतरा और गमछे को लपेट कर नीचे गुशलखाने में चला गया। नहा धो कर और कपड़े पहन कर मैं जल्दी ही नीचे खाना खाने के लिए पहुंच गया। पिता जी अपनी कुर्सी पर पहले से ही बैठे थे, इस लिए मैं भी जा कर एक कुर्सी पर बैठ गया। भाभी ने खाना परोसा तो हम दोनों खाने लगे। खाने के बीच पिता जी ने काम के बारे में थोड़ी बहुत पूछताछ की जिसका जवाब मैंने दिया। मुझे याद आया कि पिता जी कुल गुरु जी से मिलने गए थे। मैं सोचने लगा कि आख़िर वो किस लिए उनसे मिलने गए रहे होंगे? पहले लगा कि उनसे इस बारे में पूछूं फिर अपना इरादा बदल दिया। जल्दी ही हम दोनों खा पी कर फुरसत हो गए और फिर मैं अपने कमरे में चला गया।

✮✮✮✮

अगली सुबह नाश्ता कर के मैं अपनी मोटर साईकिल से खेतों की तरफ जाने के लिए निकल पड़ा। रात में फिर से बारिश हुई थी और अब खेतों में पर्याप्त पानी हो गया था जिससे धान बोने में कोई समस्या नहीं थी। मैं अपनी मोटर साइकिल से जल्दी ही उस जगह पर पहुंचा जहां पिछले दिन मुझे रूपा मिल गई थी। मैंने देखा आज भी वो किसी के साथ चली आ रही थी। उसके साथ में एक औरत थी जिसने सिर पर घूंघट किया हुआ था। मैं समझ गया कि शायद उसकी कोई भाभी होगी। सफ़ेद रंग की साड़ी में यकीनन वो उसकी भाभी ही थी। जैसे ही मैं तिराहे पर पहुंचा तो उसने आवाज़ दे कर मुझे रुकने को कहा तो मुझे मजबूरन रुकना ही पड़ा। उसके आवाज़ देने पर उसके साथ आ रही औरत ने झट से उसकी तरफ गर्दन घुमा कर देखा था। इधर मेरी भी धड़कनें बढ़ गईं थी।

"प्रणाम भाभी।" वो दोनों जैसे ही मेरे पास पहुंचीं तो मैंने रूपा के साथ आई उसकी भाभी को देख कर कहा।

मेरे प्रणाम करने पर उसने मुझसे कुछ न कहा। मैं समझ सकता था कि इस वक्त मेरे प्रति उसके मन में कैसे विचार होंगे। वो रूपा की सगी भाभी थी। यानी रूपचंद्र के बड़े भाई मानिकचंद्र की बीवी नीलम। मानिकचंद्र का अभी डेढ़ साल पहले ही ब्याह हुआ था। कोई औलाद नहीं हुई थी और इतने कम समय में ही वो विधवा हो गई थी। उसे देख मुझे अपनी भाभी का ख़याल आ गया। मेरी भाभी का ब्याह हुए तो कुछ साल हो भी गए थे किंतु नीलम का ब्याह हुए अभी डेढ़ साल ही हुआ था। मानिकचंद्र यूं तो इतना भी बुरा नहीं था किंतु जिन बच्चों को उनके मां बाप ने बचपन से ही ये सिखाया पढ़ाया हो कि हम उनके दुश्मन हैं उनकी फितरत भला अच्छी कैसे हो सकती थी? बहरहाल मर्दों की वजह से घर की औरतों का जीवन बर्बाद हो चुका था।

"रूपा चलो यहां से।" नीलम ने अपनी ननद रूपा से बड़ी कठोरता से कहा____"मां जी ने मना किया था न तुम्हें कि तुम इस लड़के से अब कोई ताल्लुक़ नहीं रखोगी?"

"भाभी जी ठीक कह रहीं हैं रूपा।" मैंने कहा____"तुम्हें मुझ जैसे लड़के से कोई ताल्लुक़ नहीं रखना चाहिए। अपने घर वालों का कहना मानो और उनकी मान मर्यादा का ख़याल रखो।"

"और मेरा क्या?" रूपा एकाएक दुखी भाव से बोल पड़ी____"मेरा क्या वैभव? तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैंने तुम्हें बहुत पहले ही अपना सब कुछ मान लिया था फिर क्यों मुझे ग़ैर समझ कर ठुकरा देना चाहते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी मेरे प्रेम का एहसास नहीं है? क्या तुम्हें ज़रा सा भी नहीं लगता कि जिस लड़की ने अपना सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है उसका भी अपना कोई हक़ है?"

"रूपा ये तुम क्या बकवास कर रही हो?" नीलम ने गुस्से से रूपा को देखा____"चुपचाप चलो यहां से वरना ठीक नहीं होगा।"

"मुझे किसी की परवाह नहीं है भाभी।" रूपा की आंखें छलक पड़ीं____"अगर घर वाले मुझे जान से ही मार देना चाहते हैं तो मार दें। मैं तो वैसे भी वैभव के बिना जीने की कल्पना नहीं कर सकती।"

रूपा की बातें सुन कर मैं एक बार फिर से चिंता और परेशानी में घिर गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैं क्या करूं उसके लिए? मैं अच्छी तरह जानता था कि जो वो चाहती है वो उसके घर वाले कभी मंज़ूर नहीं करेंगे और मैं ऐसा कोई काम करना ही नहीं चाहता था जिससे कि कोई नया तमाशा खड़ा हो जाए।

"ऐसा क्या है उस लड़की में जो मुझ में तुम्हें नहीं मिला वैभव?" रूपा की इस बात से मैं चौंका____"तुम एक बार बता दो कि मुझमें वो चीज़ नहीं है जो उस लड़की में है तो यकीन मानो इसी वक्त तुमसे अपने प्रेम की दुहाई देना बंद कर दूंगी।"

"क...किस लड़की की बात कर रही हो तुम?" मैंने धड़कते दिल से उसकी तरफ देखा।

"अंजान बनने का दिखावा मत करो वैभव।" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम्हारे दिल में किस लड़की के लिए प्रेम है। वो दूसरे गांव के किसी मुरारी नाम के आदमी की लड़की है ना? तुम उसी से प्रेम करते हो न?"

रूपा की बातें सुन कर मैं कुछ न बोल सका। आश्चर्य से आंखें फाड़े देखता रह गया उसे। पलक झपकते ही दिलो दिमाग़ में विस्फोट से होने लगे थे। मैं ये सोच कर चकित हो गया था कि उसे अनुराधा के बारे में कैसे पता है?

"तुम्हारी ख़ामोशी बता रही है कि तुम सच में उसी लड़की से प्रेम करते हो।" मुझे कुछ न बोलता देख रूपा ने दुखी भाव से कहा____"ज़रूर उस लड़की में कोई ऐसी बात होगी जो मुझमें नहीं है। तभी तो तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रहे। तभी तो तुम मुझे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं बनाना चाहते।"

"ए..ऐसी कोई बात नहीं है।" मैंने कमज़ोर सी आवाज़ में कहते हुए उससे नज़रें चुराई।

"कोई बात नहीं वैभव।" रूपा ने कहा____"मैं ही पागल थी जो ये नहीं समझ पाई थी कि प्रेम कभी मांगने से नहीं मिलता बल्कि वो तो किस्मत से मिला करता है। अब जा के समझी हूं कि प्रेम भी कमबख्त उसी से होता है जो किस्मत में नहीं होते मगर तुम चिंता मत करो। तुम्हें तुम्हारा प्रेम ज़रूर मिलेगा वैभव। तुम्हारे लिए देवी मां से दुआ मागूंगी कि वो तुम्हें तुम्हारे प्रेम से मिला दे। मेरी तरह अपने प्रेम में तड़पने वाला तुम्हारा मुकद्दर न बनाए। जाओ वैभव, हमेशा खुश रहो। ईश्वर करे कि तुम्हारा नाम आसमान से भी ऊंचा हो जाए। बस एक ही विनती है कि जीवन के किसी मोड़ पर अगर मेरा कभी ख़याल आए तो अपने मन में मेरे लिए नफ़रत अथवा घृणा के भाव मत लाना बल्कि थोड़ा सा ही सही लेकिन सम्मान का भाव रख लेना।"

रूपा के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। उसकी भाभी नीलम उसे हैरत से देखे जा रही थी। इधर मैं खुद को बहुत ही छोटा और असहाय सा महसूस करने लगा था। उसका एक एक शब्द जैसे मेरे दिल के पार हुआ जा रहा था। इससे पहले कि मैं कुछ कहता रूपा अपने आंसू पोंछते हुए मेरे बगल से निकल गई। उसके साथ नीलम भी चली गई। मैं ठगा सा दोनों को देखता रह गया। फिर जैसे मुझे होश आया तो मैंने मोटर साइकिल स्टार्ट की और भारी मन से आगे बढ़ चला।

रूपा में कोई ख़राबी नहीं थी। वो जितनी सुंदर थी उतनी ही गुणवान भी थी। साहूकारों के घर की लड़कियां एक से बढ़ कर एक थीं। मैंने आज तक उनमें से किसी के भी बारे में ग़लत अफवाह तक नहीं सुनी थी। ज़ाहिर है ये या तो अच्छे संस्कारों का नतीजा था या फिर वो सब अपने घर के मर्दों से कुछ ज़्यादा ही डरती थीं। रूपा की बात अलग थी। इसे उसकी बदकिस्मती कहें या नियति की कोई साज़िश कि वो मेरे जाल में फंस गई थी। शुरू शुरू में तो ऐसा ही था किंतु बाद में मुझे भी एहसास हुआ कि रूपा उन लड़कियों में से हर्गिज़ नहीं है जिन्हें मैं एक बार स्तेमाल करने के बाद भुला देता था। उसने जब शुरू में मुझे बताया था कि वो मुझसे प्रेम करने लगी है तो मुझे बड़ी हंसी आई थी। उस समय प्रेम जैसी भावनाओं को मैं वाहियात ही समझता था और यही वजह थी कि मुझे उसकी इस बात पर हंसी आई थी। मैंने उसको समझाया था कि वो प्रेम जैसे लफड़े में न पड़े। बहरहाल कुछ समय तक ठीक रहा मगर फिर उसने बार बार इस बात का ज़िक्र करना शुरू कर दिया। मुझे इस बात से गुस्सा आने लगा था। मैंने एक दिन उससे पूछ लिया कि अगर वो सच में मुझसे प्रेम करती है तो मेरे लिए वो क्या कर सकती है? मैंने तो बस मज़ाक में अथवा चिढ़ कर ही ये पूछ लिया था। ख़ैर मेरा ऐसा कहना था कि उसने झट से चाकू द्वारा अपनी कलाई काट कर कहा था____"तुम्हारे लिए बिना सोचे समझे अपनी जान दे सकती हूं।"

उस दिन के बाद से उसके प्रति मेरे जज़्बात बदल गए थे। मुझे उससे प्रेम भले ही नहीं हुआ था लेकिन ये सोच कर उसके लिए एक सम्मान की भावना ज़रूर आ गई थी कि वो मेरे प्रति कितनी संवेदनशील और समर्पित है। उसी समय मैंने उसे यही सब समझाया था कि प्रेम तक तो ठीक है लेकिन अगर वो इससे आगे बढ़ने का सोचेगी तो ये संभव नहीं है क्योंकि ऐसा उसके घर वाले कभी नहीं होने देंगे। वक्त गुज़रा और फिर उसने वो किया जो मेरी कल्पना से भी परे था। वो मेरी जान बचाने के लिए अपने ही परिवार के खिलाफ़ चली गई और भरी पंचायत में मेरी बातों का समर्थन किया। कोई बच्चा भी होगा तो समझ जाएगा कि ये सब उसने अपने प्रेम की वजह से ही किया था।

सच कहूं तो मुझे रूपा के लिए अब काफी सहानुभूति होने लगी थी और दुख भी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसे अनुराधा के बारे में कैसे पता चला होगा लेकिन इस संबंध में उसने जो कुछ कहा था वो मेरे लिए हैरतअगेज था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि क्या सच में प्रेम ऐसा होता है कि प्रेम करने वाला सिर्फ अपने प्रेमी की ही खुशी के बारे में सोचता है? यहां तक कि अपनी सबसे बड़ी चाहत का भी बलिदान दे देता है?

यही सब सोचते विचारते मैं खेतों पर पहुंच गया। वहां पर भुवन मेरा ही इंतज़ार कर रहा था। उसने बताया कि सारे मजदूर आ चुके हैं और मेरे निर्देशों का इंतज़ार कर रहे हैं। मुझे खेती किसानी का कोई तजुर्बा नहीं था इस लिए मैंने यही कहा कि जैसे अब तक करते आए हो वैसे ही करो। हमारे पास बहुत सी ज़मीनें थीं जिनमें ट्रैक्टर से तो जुताई हो ही रही थी किंतु बैलों को नाथ कर हल से भी जुताई हो रही थी। बहरहाल, मेरे आदेश पर सभी मज़दूर धान की बोआई में लग गए और कुछ रोपा लगाने लगे। खेतों को बढ़िया तरीके से तैयार कर दिया था मजदूरों ने। दोपहर तक मैं उनके साथ ही रहा और उनका हर काम बारीकी से देखता रहा। मैं खुद को बहलाने की कोशिश कर रहा था लेकिन सच तो यही था कि मेरे ज़हन से ना तो रूपा जा रही थी और ना ही अनुराधा।

मेरे अंदर से बार बार आवाज़ आ रही थी कि जिस लड़की ने मेरे लिए इतना कुछ किया है और खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया है उसको मुझे यूं ठुकराना नहीं चाहिए। दोपहर में खाना खाने मैं हवेली आ गया। नहा धो कर मैंने खाना खाया और अपने कमरे में आ कर आराम करने लगा। बार बार आंखों के सामने रूपा का रोता हुआ चेहरा दिखने लगता और कानों में उसकी बातें गूंजने लगतीं। तभी किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी मैं सोचो के भंवर से बाहर आया और फिर जा कर दरवाज़ा खोला।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
मुझे लगता है ठाकुर को रूपा और वैभव की शादी की बात कर लेनी चाहिए, रिश्ते सुधारने के लिए।

बढ़िया अपडेट, वैभव अपनी ठरक को छिपाने का रास्ता ढूंढ ही लिया आखिर।
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
44,146
116,575
304
अध्याय - 86
━━━━━━༻♥༺━━━━━━




इधर मेरी धडकनें अनायास ही बढ़ गईं थी। मां ने खेतों में काम के बारे में कुछ सवाल किए जिन्हें मैंने बताया और फिर मैं चाय ख़त्म कर के अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। मैं ये सोच कर भी हैरान था कि जब मां को भी मेरे बारे में सब पता है तो फिर उन्होंने मेरी मालिश के लिए किसी नौकरानी को मेरे कमरे में भेजने की बात क्यों कही? उधर भाभी जो पहले इस बात से मुझे घूर रहीं थी वो भी अब मेरी अजीब सी दशा पर मुस्कुराने लगीं थी। ऊपर से मेरी मालिश के लिए खुद भी मां से बात की और तो और तेल भी गरम करने चली गईं। मेरा दिमाग़ एकदम से ही अंतरिक्ष में परवाज़ करने लगा था।


अब आगे....


मैं अपने कमरे में पलंग पर बैठा सोचो में गुम ही था कि तभी कमरे में भाभी ने प्रवेश किया। उन्हें अपने कमरे में आया देख मैं चौंका। असल में मैं ये सोच के चौंका था कि क्या वो खुद मेरी मालिश करने आई हैं? उनके हाथ में तेल की कटोरी देख मुझे मेरी सोच सच होती प्रतीत हुई। उधर वो कटोरी लिए पलंग के पास आईं और फिर उस कटोरी को लकड़ी के एक स्टूल पर रख दिया।

"भ...भाभी आप यहां?" मैं परेशान सा हो कर पूछ ही बैठा____"वो भी कटोरी में तेल ले कर? क्या मां ने मेरी मालिश करने के लिए आपको भेजा है? नहीं नहीं, ऐसा वो कैसे कर सकती हैं? उन्होंने तो कहा था कि वो किसी नौकरानी को भेजेंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" भाभी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"तुम्हारी मालिश नौकरानी ही करेगी। वो आती ही होगी, मैं तो बस ये तेल गरम कर के लाई हूं। वैसे अगर मैं खुद तुम्हारी मालिश कर दूंगी तो क्या हो जाएगा? मैं भाभी हूं तुम्हारी, इतना तो अपने देवर के लिए कर ही सकती हूं।"

"नहीं नहीं।" मैं झट से बोल पड़ा____"मैं आपसे अपनी मालिश करवाऊं ऐसा तो सपने में भी नहीं सोच सकता मैं।"

"अरे! तो इसमें बुरा ही क्या है?" भाभी ने आंखें फैला कर मेरी तरफ देखा____"क्या एक भाभी अपने देवर की मालिश नहीं कर सकती?"

"दुनिया में कोई भाभी करती होगी पर मैं आपसे अपनी मालिश नहीं करवा सकता।" मैंने स्पष्ट रूप से कहा____"आप मेरी भाभी हैं, मेरी पूज्यनीय हैं। आपके प्रति मेरे मन में बेहद सम्मान की भावना है। आपका स्थान मेरी नज़रों में बहुत ऊंचा है। मैं सपने में भी ये नहीं सोच सकता कि में आपसे मालिश करवाऊं। आप दुबारा ऐसी बात कभी मत कीजिएगा।"

"मेरे प्रति तुम ऐसा सोचते हो ये बहुत अच्छी बात है वैभव।" भाभी ने बड़े स्नेह से कहा____"और सच कहूं तो तुम्हारे मुख से अपने लिए ये सब सुन कर बहुत अच्छा भी लगा है। किंतु मेरे द्वारा मालिश किए जाने से तुम्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। मां जी और चाची जी भी तो तुम्हारी मालिश किया करती थीं। वो भी तो तुम्हारी पूज्यनीय थीं? तुम मेरे देवर हो लेकिन उससे भी ज़्यादा तुम मेरे छोटे भाई की तरह हो और एक बहन अपने भाई की मालिश कर सकती है।"

"मैं आपकी बात मानता हूं भाभी।" मैंने बेचैनी से कहा____"लेकिन फिर भी मैं आपसे मालिश नहीं करवा सकता। बात सिर्फ मान सम्मान की ही बस नहीं है बल्कि हालातों की भी है। पहले आप एक सुहागन थीं किंतु अब आप एक विधवा के रूप में हैं। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि किसी को ये पता चले कि हवेली की बहू से नौकरों वाला काम करवाया जाने लगा है। लोग तरह तरह की बातें करने लगेंगे भाभी और मैं तो सपने में भी ये नहीं सोच सकता कि कोई मेरी भाभी के बारे में कुछ भी उल्टा सीधा सोचे। मैं अपने ऊपर हर तरह का दाग़ लगवा सकता हूं मगर आपके दामन पर अपनी वजह से कोई दाग़ नहीं लगने दे सकता। अगर ऐसा हुआ तो समझ लीजिए मैं अपने हाथों से अपनी हस्ती मिटा दूंगा।"

"ख़बरदार वैभव।" भाभी ने एकाएक गुस्से में आ कर कहा____"आइंदा कभी अपनी हस्ती मिटाने की बता मत कहना। अपने पति को खो चुकी हूं मगर अपने उस देवर को नहीं खोना चाहती जो मुझे इतना मान सम्मान देता है और मेरी इज्ज़त की परवाह करता है।"

मैंने देखा भाभी की आंखें छलक पड़ीं थी। मैं फ़ौरन ही पलंग से नीचे उतरा और उनके पास जा कर अपने हाथों से उनके आंसू पोंछे फिर कहा____"आप इस हवेली की सिर्फ इज्ज़त ही नहीं हैं भाभी बल्कि आन बान और शान भी हैं। हम सब बड़े ही खुशनसीब हैं जिन्हें आपके जैसी सभ्य सुशील और संस्कारी बहू मिली है। ईश्वर ने आपके साथ ऐसा कर के बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया है। आपको इस हाल में देख कर मेरा कलेजा फटने लगता है भाभी। मेरे बस में ही नहीं है वरना यमराज के पास जा कर भैया को वापस ले आता।"

"तुम खुद को हलकान मत करो वैभव।" भाभी ने जैसे खुद को सम्हाला____"ऊपर वाले ने मुझे दुख ज़रूर दिया है लेकिन उसने मुझे इतना अच्छा परिवार भी तो दिया है। इस परिवार के लोग मुझे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते हैं। जिसे इतना प्यार और स्नेह मिलेगा वो भला कैसे दुखी रह सकेगा?"

भाभी की बात पर मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी दरवाज़े पर हवेली की एक नौकरानी आ कर खड़ी हुई। भाभी ने उसे अंदर बुलाया तो वो अंदर आ गई। वो एक सांवली सी औरत थी जिसकी उम्र यही कोई तीस या पैंतीस के आस पास की थी।

"करुणा, मेरे देवर की अच्छे से मालिश करना तुम।" भाभी ने नौकरानी से कहा____"ताकि इनकी थकान पूरी तरह से दूर हो जाए।"

"आप चिंता मत कीजिए बहू रानी।" करुणा ने कहा____"मैं छोटे कुंवर की बहुत अच्छे से मालिश करूंगी। शिकायत का कोई भी मौका नहीं दूंगी।"

"ठीक है।" भाभी ने एक नज़र मेरी तरफ डालने के बाद उससे कहा____"मैंने तेल को गुनगुना कर के स्टूल में रख दिया है। अब तुम मालिश करना शुरू करो।"

भाभी के कहने पर करुणा ने मेरी तरफ देखा। मैं अभी भी अपने कपड़े पहने खड़ा था। भाभी ने मुझे कपड़े उतारने को कहा तो मैं उनके सामने कपड़े उतारने पर झिझकने लगा। ये देख भाभी हल्के से मुस्कुराई और फिर बोली____"क्या हुआ? कपड़े उतारो ताकि करुणा तुम्हारी मालिश कर सके। जल्दी करो, उसे फिर अपने घर भी वापस जाना है।"

"पर भाभी मैं आपके सामने कैसे अपने कपड़े उतारूं?" मैंने झिझकते हुए कहा____"आप जाइए, मैं करुणा से मालिश करवा लूंगा।"

मेरी बात सुन कर भाभी कुछ पलों तक मुझे देखती रहीं फिर बोली____"ठीक है, मैं जा रही हूं।"

कहने के साथ ही भाभी दरवाज़े की तरफ बढ़ चलीं। जब वो बाहर निकल गईं तो मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। दूसरी तरफ करुणा भी अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे अपनी कमर में बांधने लगी। पल्लू के हटते ही ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरी आंखों के सामने उजागर हो गईं। ये देख मेरे जिस्म में हलचल सी होने लगी। मैंने फ़ौरन ही उस पर से नज़रें हटाई और कपड़े उतार कर पलंग पर पेट के बल लेट गया। मेरे जिस्म में अब सिर्फ कच्छा ही रह गया था।

कुछ ही देर में करुणा कटोरी ले कर पलंग के किनारे पर आ गई। गुनगुना तेल मेरी पीठ में डाल कर उसने दोनों हाथों से मेरी मालिश करनी शुरू कर दी। इसके पहले मेनका चाची ने आख़िरी बार मेरी मालिश की थी। मेरी आंखों के सामने वो दृश्य उजागर हो उठा जब वो मेरी मालिश कर रहीं थी और उनके जिस्म के गुप्तांग को देख कर मेरी हालत ख़राब हो गई थी। ख़ैर तब की बात अलग थी और अब की अलग क्योंकि अब मैंने भाभी से वादा किया था कि अब से कोई ग़लत काम नहीं करूंगा।

मैं ख़ामोशी से लेटा हुआ था और करुणा पूरी ईमानदारी से ज़ोर लगा कर मालिश करने में लगी हुई थी। पीठ के बाद कंधे और फिर पैरों में मालिश की उसने। उसके बाद उसने मुझे सीधा लेटने को कहा तो मैं सीधा हो के लेट गया। इसके पहले मैं पेट के बल लेटा हुआ था इस लिए कोई समस्या नहीं हुई थी किंतु अब सीधा लेटने से मैं असहज महसूस करने लगा। कारण, अब मैं स्पष्ट रूप से करुणा को देख सकता था और मैं जानता था कि जैसे ही मेरी नज़र ब्लाउज से झांकती उसकी चूचियों पर पड़ेगी तो मेरा लिंग सिर उठाने लगेगा। अगर ऐसा हुआ तो करुणा को भी पता चल जाएगा। हालाकि उसका मुझे कोई डर नहीं था किंतु मैं ये भी समझता था कि संभव है कि उसे मां ने अथवा भाभी ने पहले ही ऐसी चीज़ों से सचेत कर दिया हो और ये भी कह दिया हो कि अगर मैं कुछ उल्टा सीधा करने का सोचूं तो वो फ़ौरन ही शोर मचा कर उन्हें ख़बर कर दे। बस यही नहीं चाहता था मैं और इसी बात का डर था मुझे।

अचानक ही मेरे ज़हन में विचार आया कि मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं। इससे होगा ये कि मैं करुणा की तरफ देखूंगा ही नहीं और जब देखूंगा ही नहीं तो कोई समस्या वाली बात होगी ही नहीं। इस विचार के आते ही मैंने अपनी आंखें बंद कर ली और अपने मन को कहीं और लगाने की कोशिश करने लगा।

आख़िर मैं अपनी कोशिश में कामयाब रहा और करुणा मेरी मालिश कर के मेरे कमरे से चली गई। मैंने राहत की लंबी सांस ली और फिर बेफ़िक्र हो कर उसी अवस्था में लेटा रहा। कुछ ही देर में मेरी आंख लग गई और मैं गहरी नींद में चला गया।

रात में जब खाना खाने का समय हुआ तो भाभी के जगाने पर ही मेरी आंख खुली। मैं हड़बड़ा कर उठा। कमरे में लालटेन जल रही थी जिसके पीले प्रकाश से कमरे में उजाला था। मैंने देखा भाभी पलंग के पास ही खड़ीं थी। अचानक ही मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ तो मैंने जल्दी से चादर को अपने ऊपर ओढ़ कर अपनी नग्नता को उनसे छुपाया। मालिश के दौरान मैं सिर्फ कच्छे में था और करुणा के जाने के बाद मैं वैसे ही सो गया था।

"अब कैसा महसूस हो रहा है तुम्हें?" भाभी ने पूछा____"करुणा की मालिश से आराम मिला कि नहीं?"

"हां भाभी, काफी आराम मिला है।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"उसके जाने के बाद पता ही नहीं चला कब मेरी आंख लग गई और मैं सो गया।"

"चलो ये तो अच्छी बात है।" भाभी ने कहा____"कल फिर से उससे मालिश करवा लेना। इससे तुम्हें और भी आराम मिलेगा।"

"नहीं भाभी।" मैंने कहा____"अब इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।"
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" भाभी ने कहा____"ख़ैर अब जाओ गुसलखाने में नहा लो। खाना बन गया है। पिता जी जल्दी ही खाना खाने के लिए आने वाले हैं।"

भाभी के जाने के बाद मैं पलंग से उतरा और गमछे को लपेट कर नीचे गुशलखाने में चला गया। नहा धो कर और कपड़े पहन कर मैं जल्दी ही नीचे खाना खाने के लिए पहुंच गया। पिता जी अपनी कुर्सी पर पहले से ही बैठे थे, इस लिए मैं भी जा कर एक कुर्सी पर बैठ गया। भाभी ने खाना परोसा तो हम दोनों खाने लगे। खाने के बीच पिता जी ने काम के बारे में थोड़ी बहुत पूछताछ की जिसका जवाब मैंने दिया। मुझे याद आया कि पिता जी कुल गुरु जी से मिलने गए थे। मैं सोचने लगा कि आख़िर वो किस लिए उनसे मिलने गए रहे होंगे? पहले लगा कि उनसे इस बारे में पूछूं फिर अपना इरादा बदल दिया। जल्दी ही हम दोनों खा पी कर फुरसत हो गए और फिर मैं अपने कमरे में चला गया।

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अगली सुबह नाश्ता कर के मैं अपनी मोटर साईकिल से खेतों की तरफ जाने के लिए निकल पड़ा। रात में फिर से बारिश हुई थी और अब खेतों में पर्याप्त पानी हो गया था जिससे धान बोने में कोई समस्या नहीं थी। मैं अपनी मोटर साइकिल से जल्दी ही उस जगह पर पहुंचा जहां पिछले दिन मुझे रूपा मिल गई थी। मैंने देखा आज भी वो किसी के साथ चली आ रही थी। उसके साथ में एक औरत थी जिसने सिर पर घूंघट किया हुआ था। मैं समझ गया कि शायद उसकी कोई भाभी होगी। सफ़ेद रंग की साड़ी में यकीनन वो उसकी भाभी ही थी। जैसे ही मैं तिराहे पर पहुंचा तो उसने आवाज़ दे कर मुझे रुकने को कहा तो मुझे मजबूरन रुकना ही पड़ा। उसके आवाज़ देने पर उसके साथ आ रही औरत ने झट से उसकी तरफ गर्दन घुमा कर देखा था। इधर मेरी भी धड़कनें बढ़ गईं थी।

"प्रणाम भाभी।" वो दोनों जैसे ही मेरे पास पहुंचीं तो मैंने रूपा के साथ आई उसकी भाभी को देख कर कहा।

मेरे प्रणाम करने पर उसने मुझसे कुछ न कहा। मैं समझ सकता था कि इस वक्त मेरे प्रति उसके मन में कैसे विचार होंगे। वो रूपा की सगी भाभी थी। यानी रूपचंद्र के बड़े भाई मानिकचंद्र की बीवी नीलम। मानिकचंद्र का अभी डेढ़ साल पहले ही ब्याह हुआ था। कोई औलाद नहीं हुई थी और इतने कम समय में ही वो विधवा हो गई थी। उसे देख मुझे अपनी भाभी का ख़याल आ गया। मेरी भाभी का ब्याह हुए तो कुछ साल हो भी गए थे किंतु नीलम का ब्याह हुए अभी डेढ़ साल ही हुआ था। मानिकचंद्र यूं तो इतना भी बुरा नहीं था किंतु जिन बच्चों को उनके मां बाप ने बचपन से ही ये सिखाया पढ़ाया हो कि हम उनके दुश्मन हैं उनकी फितरत भला अच्छी कैसे हो सकती थी? बहरहाल मर्दों की वजह से घर की औरतों का जीवन बर्बाद हो चुका था।

"रूपा चलो यहां से।" नीलम ने अपनी ननद रूपा से बड़ी कठोरता से कहा____"मां जी ने मना किया था न तुम्हें कि तुम इस लड़के से अब कोई ताल्लुक़ नहीं रखोगी?"

"भाभी जी ठीक कह रहीं हैं रूपा।" मैंने कहा____"तुम्हें मुझ जैसे लड़के से कोई ताल्लुक़ नहीं रखना चाहिए। अपने घर वालों का कहना मानो और उनकी मान मर्यादा का ख़याल रखो।"

"और मेरा क्या?" रूपा एकाएक दुखी भाव से बोल पड़ी____"मेरा क्या वैभव? तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैंने तुम्हें बहुत पहले ही अपना सब कुछ मान लिया था फिर क्यों मुझे ग़ैर समझ कर ठुकरा देना चाहते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी मेरे प्रेम का एहसास नहीं है? क्या तुम्हें ज़रा सा भी नहीं लगता कि जिस लड़की ने अपना सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है उसका भी अपना कोई हक़ है?"

"रूपा ये तुम क्या बकवास कर रही हो?" नीलम ने गुस्से से रूपा को देखा____"चुपचाप चलो यहां से वरना ठीक नहीं होगा।"

"मुझे किसी की परवाह नहीं है भाभी।" रूपा की आंखें छलक पड़ीं____"अगर घर वाले मुझे जान से ही मार देना चाहते हैं तो मार दें। मैं तो वैसे भी वैभव के बिना जीने की कल्पना नहीं कर सकती।"

रूपा की बातें सुन कर मैं एक बार फिर से चिंता और परेशानी में घिर गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैं क्या करूं उसके लिए? मैं अच्छी तरह जानता था कि जो वो चाहती है वो उसके घर वाले कभी मंज़ूर नहीं करेंगे और मैं ऐसा कोई काम करना ही नहीं चाहता था जिससे कि कोई नया तमाशा खड़ा हो जाए।

"ऐसा क्या है उस लड़की में जो मुझ में तुम्हें नहीं मिला वैभव?" रूपा की इस बात से मैं चौंका____"तुम एक बार बता दो कि मुझमें वो चीज़ नहीं है जो उस लड़की में है तो यकीन मानो इसी वक्त तुमसे अपने प्रेम की दुहाई देना बंद कर दूंगी।"

"क...किस लड़की की बात कर रही हो तुम?" मैंने धड़कते दिल से उसकी तरफ देखा।

"अंजान बनने का दिखावा मत करो वैभव।" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम्हारे दिल में किस लड़की के लिए प्रेम है। वो दूसरे गांव के किसी मुरारी नाम के आदमी की लड़की है ना? तुम उसी से प्रेम करते हो न?"

रूपा की बातें सुन कर मैं कुछ न बोल सका। आश्चर्य से आंखें फाड़े देखता रह गया उसे। पलक झपकते ही दिलो दिमाग़ में विस्फोट से होने लगे थे। मैं ये सोच कर चकित हो गया था कि उसे अनुराधा के बारे में कैसे पता है?

"तुम्हारी ख़ामोशी बता रही है कि तुम सच में उसी लड़की से प्रेम करते हो।" मुझे कुछ न बोलता देख रूपा ने दुखी भाव से कहा____"ज़रूर उस लड़की में कोई ऐसी बात होगी जो मुझमें नहीं है। तभी तो तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रहे। तभी तो तुम मुझे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं बनाना चाहते।"

"ए..ऐसी कोई बात नहीं है।" मैंने कमज़ोर सी आवाज़ में कहते हुए उससे नज़रें चुराई।

"कोई बात नहीं वैभव।" रूपा ने कहा____"मैं ही पागल थी जो ये नहीं समझ पाई थी कि प्रेम कभी मांगने से नहीं मिलता बल्कि वो तो किस्मत से मिला करता है। अब जा के समझी हूं कि प्रेम भी कमबख्त उसी से होता है जो किस्मत में नहीं होते मगर तुम चिंता मत करो। तुम्हें तुम्हारा प्रेम ज़रूर मिलेगा वैभव। तुम्हारे लिए देवी मां से दुआ मागूंगी कि वो तुम्हें तुम्हारे प्रेम से मिला दे। मेरी तरह अपने प्रेम में तड़पने वाला तुम्हारा मुकद्दर न बनाए। जाओ वैभव, हमेशा खुश रहो। ईश्वर करे कि तुम्हारा नाम आसमान से भी ऊंचा हो जाए। बस एक ही विनती है कि जीवन के किसी मोड़ पर अगर मेरा कभी ख़याल आए तो अपने मन में मेरे लिए नफ़रत अथवा घृणा के भाव मत लाना बल्कि थोड़ा सा ही सही लेकिन सम्मान का भाव रख लेना।"

रूपा के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। उसकी भाभी नीलम उसे हैरत से देखे जा रही थी। इधर मैं खुद को बहुत ही छोटा और असहाय सा महसूस करने लगा था। उसका एक एक शब्द जैसे मेरे दिल के पार हुआ जा रहा था। इससे पहले कि मैं कुछ कहता रूपा अपने आंसू पोंछते हुए मेरे बगल से निकल गई। उसके साथ नीलम भी चली गई। मैं ठगा सा दोनों को देखता रह गया। फिर जैसे मुझे होश आया तो मैंने मोटर साइकिल स्टार्ट की और भारी मन से आगे बढ़ चला।

रूपा में कोई ख़राबी नहीं थी। वो जितनी सुंदर थी उतनी ही गुणवान भी थी। साहूकारों के घर की लड़कियां एक से बढ़ कर एक थीं। मैंने आज तक उनमें से किसी के भी बारे में ग़लत अफवाह तक नहीं सुनी थी। ज़ाहिर है ये या तो अच्छे संस्कारों का नतीजा था या फिर वो सब अपने घर के मर्दों से कुछ ज़्यादा ही डरती थीं। रूपा की बात अलग थी। इसे उसकी बदकिस्मती कहें या नियति की कोई साज़िश कि वो मेरे जाल में फंस गई थी। शुरू शुरू में तो ऐसा ही था किंतु बाद में मुझे भी एहसास हुआ कि रूपा उन लड़कियों में से हर्गिज़ नहीं है जिन्हें मैं एक बार स्तेमाल करने के बाद भुला देता था। उसने जब शुरू में मुझे बताया था कि वो मुझसे प्रेम करने लगी है तो मुझे बड़ी हंसी आई थी। उस समय प्रेम जैसी भावनाओं को मैं वाहियात ही समझता था और यही वजह थी कि मुझे उसकी इस बात पर हंसी आई थी। मैंने उसको समझाया था कि वो प्रेम जैसे लफड़े में न पड़े। बहरहाल कुछ समय तक ठीक रहा मगर फिर उसने बार बार इस बात का ज़िक्र करना शुरू कर दिया। मुझे इस बात से गुस्सा आने लगा था। मैंने एक दिन उससे पूछ लिया कि अगर वो सच में मुझसे प्रेम करती है तो मेरे लिए वो क्या कर सकती है? मैंने तो बस मज़ाक में अथवा चिढ़ कर ही ये पूछ लिया था। ख़ैर मेरा ऐसा कहना था कि उसने झट से चाकू द्वारा अपनी कलाई काट कर कहा था____"तुम्हारे लिए बिना सोचे समझे अपनी जान दे सकती हूं।"

उस दिन के बाद से उसके प्रति मेरे जज़्बात बदल गए थे। मुझे उससे प्रेम भले ही नहीं हुआ था लेकिन ये सोच कर उसके लिए एक सम्मान की भावना ज़रूर आ गई थी कि वो मेरे प्रति कितनी संवेदनशील और समर्पित है। उसी समय मैंने उसे यही सब समझाया था कि प्रेम तक तो ठीक है लेकिन अगर वो इससे आगे बढ़ने का सोचेगी तो ये संभव नहीं है क्योंकि ऐसा उसके घर वाले कभी नहीं होने देंगे। वक्त गुज़रा और फिर उसने वो किया जो मेरी कल्पना से भी परे था। वो मेरी जान बचाने के लिए अपने ही परिवार के खिलाफ़ चली गई और भरी पंचायत में मेरी बातों का समर्थन किया। कोई बच्चा भी होगा तो समझ जाएगा कि ये सब उसने अपने प्रेम की वजह से ही किया था।

सच कहूं तो मुझे रूपा के लिए अब काफी सहानुभूति होने लगी थी और दुख भी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसे अनुराधा के बारे में कैसे पता चला होगा लेकिन इस संबंध में उसने जो कुछ कहा था वो मेरे लिए हैरतअगेज था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि क्या सच में प्रेम ऐसा होता है कि प्रेम करने वाला सिर्फ अपने प्रेमी की ही खुशी के बारे में सोचता है? यहां तक कि अपनी सबसे बड़ी चाहत का भी बलिदान दे देता है?

यही सब सोचते विचारते मैं खेतों पर पहुंच गया। वहां पर भुवन मेरा ही इंतज़ार कर रहा था। उसने बताया कि सारे मजदूर आ चुके हैं और मेरे निर्देशों का इंतज़ार कर रहे हैं। मुझे खेती किसानी का कोई तजुर्बा नहीं था इस लिए मैंने यही कहा कि जैसे अब तक करते आए हो वैसे ही करो। हमारे पास बहुत सी ज़मीनें थीं जिनमें ट्रैक्टर से तो जुताई हो ही रही थी किंतु बैलों को नाथ कर हल से भी जुताई हो रही थी। बहरहाल, मेरे आदेश पर सभी मज़दूर धान की बोआई में लग गए और कुछ रोपा लगाने लगे। खेतों को बढ़िया तरीके से तैयार कर दिया था मजदूरों ने। दोपहर तक मैं उनके साथ ही रहा और उनका हर काम बारीकी से देखता रहा। मैं खुद को बहलाने की कोशिश कर रहा था लेकिन सच तो यही था कि मेरे ज़हन से ना तो रूपा जा रही थी और ना ही अनुराधा।

मेरे अंदर से बार बार आवाज़ आ रही थी कि जिस लड़की ने मेरे लिए इतना कुछ किया है और खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया है उसको मुझे यूं ठुकराना नहीं चाहिए। दोपहर में खाना खाने मैं हवेली आ गया। नहा धो कर मैंने खाना खाया और अपने कमरे में आ कर आराम करने लगा। बार बार आंखों के सामने रूपा का रोता हुआ चेहरा दिखने लगता और कानों में उसकी बातें गूंजने लगतीं। तभी किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी मैं सोचो के भंवर से बाहर आया और फिर जा कर दरवाज़ा खोला।



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Shandar update
Itna bhi na sudharo ki sharifi se nafrat ho jaye .😁😁😁
 
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