vikas##$$4343
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Nice updateअध्याय - 85"मैं तो उसे तड़पा तड़पा कर मारूंगा बापू।" रघुवीर ने एकाएक आवेश में आ कर कहा____"उसे ऐसी बद्तर मौत दूंगा कि वर्षों तक लोग याद रखेंगे।"
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"वो तो ठीक है बेटे।" चंद्रकांत ने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन इसके अलावा मैंने एक और फ़ैसला कर लिया है जिसके बारे में मैं तुम्हें सही वक्त आने पर बताऊंगा।"
अब आगे....
साहूकारों के घर में सन्नाटा सा छाया हुआ था। जब से रघुवीर ने रूपा के संबंध में ये बताया था कि वो दादा ठाकुर के बेटे वैभव से खुले आम रास्ते में बातें कर रही थी तब से घर की औरतें गुस्से में थीं। राधा और रूपा के आने पर पहले तो ललिता देवी ने रूपा को खूब खरी खोटी सुनाई थी उसके बाद सबने जैसे अपनी अपनी भड़ास निकाली थी। रूपा को इस सबसे बड़ा दुख हुआ था। वो बस ख़ामोशी से सबकी बातें सुनते हुए आंसू बहाए जा रही थी। वो ख़ामोश इस लिए थी क्योंकि वैभव की तरफ से उसे वैसा जवाब नहीं मिला था जैसा कि वो चाहती थी। अगर वैभव उससे ब्याह करने के लिए हां कह देता तो कदाचित वो अपने घर वालों को खुल कर जवाब भी दे पाती।
गौरी शंकर और रूपचंद्र जैसे ही दोपहर को घर पहुंचे तो खाना खाते समय ही फूलवती ने उन दोनों को सब कुछ बता दिया। रूपचंद्र को तो पहले से ही अपनी बहन के बारे में ये सब पता था किंतु गौरी शंकर इस बात से हैरान रह गया था। इसके पहले उसे किसी ने इस बारे में बताया भी नहीं था कि रूपा को अपने ताऊ चाचा और पिता की सच्चाई पहले से ही पता थी और उसी ने कुमुद के साथ हवेली जा कर दादा ठाकुर को ये बता दिया था कि वो लोग वैभव के साथ क्या करने वाले हैं? असल में सब कुछ इतना जल्दी हो गया था कि दुख और संताप के चलते किसी को ये बात गौरी शंकर से बताने का ख़याल ही नहीं आया था। आज जब रघुवीर ने आ कर रूपा के संबंध में ये सब बताया तो सहसा एक झटके में उन्हें ये याद भी आ गया था और सारे ज़ख्म भी ताज़ा हो गए थे।
"बड़े आश्चर्य की बात है कि हमारे घर की बेटी ने उस लड़के से बात करने का दुस्साहस किया।" गौरी शंकर ने गंभीरता से कहा____"यकीन नहीं हो रहा कि ऐसा मेरे घर की लड़की ने किया। क्या उसे पता नहीं था कि दादा ठाकुर का वो लड़का किस तरह के चरित्र का है?"
"इस बारे में मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं काका।" रूपचंद्र ने कहा____"और वो ये कि मुझे वैभव के साथ रूपा के इस संबंध का बहुत पहले से पता था।"
"क...क्या????" गौरी शंकर तो चौंका ही किंतु उसके साथ साथ घर की बाकी सब औरतें और बहू बेटियां भी चौंक पड़ी थीं। आश्चर्य से आंखें फाड़े वो रूपचंद्र को देखने लगीं थी।
"हां काका।" रूपचंद्र ने सहसा कठोरता से कहा____"और इतना ही नहीं बल्कि मुझे ये भी पता है कि इन दोनों के बीच ये सब बहुत पहले से चल रहा है।"
"हे भगवान!" ललिता देवी ने अपना माथा पीटते हुए कहा____"इस लड़की ने तो हमें कहीं मुंह दिखाने के लायक ही नहीं रखा। काश! पैदा होते ही ये मर जाती तो आज ये सब न सुनने को मिलता।"
"अगर तुम्हें पहले से इस बारे में सब पता था तो तुमने हमें बताया क्यों नहीं?" गौरी शंकर ने सख़्त भाव से रूपचंद्र को देखते हुए कहा।
"सिर्फ इसी लिए कि इससे बात बढ़ जाती और हमारी बदनामी होती।" रूपचंद्र ने कहा____"मुझे शुरू से पता था कि आप लोग दादा ठाकुर को बर्बाद करने के लिए क्या क्या कर रहे हैं। अगर मैं इस बारे में आप लोगों को कुछ बताता तो संभव था कि आप लोग गुस्से में कुछ उल्टा सीधा कर बैठते जिसके चलते आप फ़ौरन ही दादा ठाकुर द्वारा धर लिए जाते।"
"मुझे तुमसे ये उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी बेटा।" गौरी शंकर ने मानों हताश हो कर कहा____"इतनी बड़ी बात तुमने हम सबसे छुपा के रखी। अगर हमें पता होता तो उस दिन मैं इस मामले को पंचायत में सबके सामने रखता और वैभव को इसके लिए सज़ा देने की मांग करता।"
"नहीं काका, आपके ऐसा करने से भी उस वैभव का कोई कुछ नहीं कर पाता।" रूपचंद्र ने कठोरता से कहा____"बल्कि इससे सिर्फ हमारा ही नुकसान होता और हमारी ही बदनामी होती। आपको पता नहीं है काका, सच तो ये है कि इसी वजह से मैं वैभव को ख़ाक में मिला देना चाहता था और इसके लिए मैंने अपने तरीके से कोशिश भी की थी लेकिन इसे मेरा दुर्भाग्य ही कहिए कि हर बार वो कमीना बच निकला।"
"ऐसा क्या किया था तुमने?" गौरी शंकर ने हैरानी से उसे देखा।
"जिस समय वो दादा ठाकुर द्वारा निष्कासित किए जाने पर गांव से बाहर रह रहा था।" रूपचंद्र ने कहा____"उसी समय से मैं उसके पीछे लगा था। मैं उसके हर क्रिया कलाप पर नज़र रख रहा था। मेरे लिए ये सुनहरा अवसर था उसे ख़त्म करने का क्योंकि निष्कासित किए जाने पर वो अकेला ही उस बंज़र ज़मीन पर एक झोपड़ा बना कर रह रहा था। उसे यूं अकेला देख मैंने सोच लिया था कि किसी रोज़ रात में सोते समय ही उसे मार डालूंगा। अपनी इस सोच को असल में बदलने के लिए जब मैंने काम करना शुरू किया तो मुझे जल्द ही पता चल गया कि उस हरामजादे को ख़त्म करना आसान नहीं है। वो भले ही उस जगह पर अकेला रह रहा था मगर इसके बावजूद कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था।"
"ऐसा क्यों?" गौरी शंकर पूछे बगैर न रह सका।
"क्योंकि उसकी गुप्त रूप से सुरक्षा की जा रही थी।" रूपचंद्र ने बताया____"और इसके बारे में खुद वैभव को भी नहीं पता था। मैं ये देख कर बड़ा हैरान हुआ था कि ऐसा कैसे हो सकता है? जब मैंने इस बारे में सोचा तो मुझे यही समझ आया कि ये सब यकीनन दादा ठाकुर ने ही किया होगा। उन्होंने उसे भले ही कुछ समय के लिए निष्कासित कर दिया था किंतु था तो वो उनका बेटा ही। सुनसान जगह पर उसे अकेला भगवान के भरोसे कैसे छोड़ सकते थे वो? इस लिए उन्होंने उसकी सुरक्षा का इस तरीके से इंतजाम कर दिया था कि वैभव को इस बात की भनक तक ना लग सके।"
"पर मुझे तो कुछ और ही लग रहा है।" गौरी शंकर ने कुछ सोचते हुए कहा____"अगर तुम्हारी ये बात सच है तो इसका यही मतलब हो सकता है कि दादा ठाकुर ने अपने बेटे की इस तरह से सुरक्षा का इंतजाम सिर्फ इसी वजह से नहीं किया था कि वो उस जगह पर अकेला रहेगा बल्कि इस लिए भी किया हो सकता था कि उसे पहले से ही इस बात का अंदेशा था कि कोई उनके परिवार पर ख़तरा बना हुआ है। मुझे अब समझ आ रहा है कि ये सब दादा ठाकुर की एक चाल थी।"
"ये आप क्या कह रहे हैं काका?" रूपचंद्र ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर देखा। बाकी सब भी हैरान रह गए थे।
"सोचने वाली बात है बेटा कि वैभव ने इतना भी बड़ा अपराध नहीं किया था कि उसे घर से ही नहीं बल्कि गांव से ही निष्कासित कर दिया जाता।" गौरी शंकर ने जैसे समझाते हुए कहा____"लेकिन दादा ठाकुर ने ऐसा किया। उनके इस फ़ैसले से उस समय हर कोई चकित रह गया था, यहां तक कि हम लोग भी। ये अलग बात है कि इससे हमें यही सोच कर खुशी हुई थी कि अब हम भी वैभव को आसानी से ठिकाने लगा सकते हैं। ख़ैर, उस समय हम ये सोच ही नहीं सकते थे कि दादा ठाकुर ने अपने बेटे को निष्कासित कर के एक गहरी चाल चली है।"
"आखिर किस चाल की बात कर रहे हैं आप काका?" रूपचंद्र ने भारी उत्सुकता से पूछा।
"दादा ठाकुर को शायद पहले ही इस बात का शक अथवा अंदेशा हो गया था कि कोई उनके परिवार के लिए ख़तरा बन कर खड़ा हो गया है।" गौरी शंकर ने स्पष्ट रूप से कहा____"ज़ाहिर है ऐसे में उनका ये कर्तव्य था कि वो इस तरह के ख़तरे से अपने परिवार की रक्षा भी करें और उस ख़तरे का नामो निशान भी मिटा दें। परिवार की रक्षा करना तो उनके बस में था किंतु ख़तरे को नष्ट करना नहीं क्योंकि उन्हें उस समय स्पष्ट रूप से ये पता ही नहीं था कि ऐसा वो कौन है जो उनके परिवार के लिए ख़तरा बन गया है? हमारा उनसे हमेशा से ही बैर भाव रहा था और कोई ताल्लुक़ नहीं था। ऐसे में इस तरह के ख़तरे के बारे में उनके ज़हन में सबसे पहले हमारा ही ख़याल आया रहा होगा किंतु ख़याल आने से अथवा शक होने से वो कुछ नहीं कर सकते थे। उन्हें ख़तरा पैदा करने वाले के बारे में जानने के लिए प्रमाण चाहिए था। इधर हम लोग कोई प्रमाण देने वाले ही नहीं थे क्योंकि हम अपना हर काम योजना के अनुसार ही कर रहे थे जिसके चलते हम अपना भेद किसी भी कीमत पर ज़ाहिर नहीं कर सकते थे। बहरहाल जब दादा ठाकुर ने देखा कि हवेली में बैठे रहने से कोई प्रमाण नहीं मिलेगा तो उन्होंने एक चाल चली। उन्होंने अपने ही बेटे को चारा बनाने का सोचा और फिर वैभव के उस मामूली से अपराध पर उसे गांव से निष्कासित कर दिया। कदाचित उनकी सोच यही थी कि उनका दुश्मन जब वैभव को इस तरह अकेला देखेगा तो यकीनन वो वैभव को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से उसके पास जाएगा और तब वो उस व्यक्ति को पकड़ लेंगे जो उनके परिवार के लिए ख़तरा बन गया था। जैसे तुम्हें नहीं पता था कि वैभव की सुरक्षा गुप्त रूप से की जा रही है वैसे ही हमें भी नहीं पता था। हमने कई बार अपने आदमियों को भेजा था किंतु हर बार वो वापस आ कर यही बताते थे कि वैभव की सुरक्षा गुप्त रूप से की जा रही है। ऐसे में वो उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते। ये तो हमारी सूझ बूझ का ही नतीजा था कि हमने सुरक्षा घेरे को तोड़ कर अंदर जाने का कभी प्रयास ही नहीं किया था वरना यकीनन पकड़े जाते।"
"आश्चर्य की बात है कि इस बारे में दादा ठाकुर ने हमारी सोच से भी आगे का सोच कर ऐसा कर दिया था।" रूपचंद्र ने हैरत से कहा।
"वो दादा ठाकुर हैं बेटे।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ले कर कहा____"उन्हें कम आंकने की भूल कभी मत करना। ख़ैर तो तुमने जब देखा कि वैभव की गुप्त रूप से सुरक्षा की जा रही है तो फिर तुमने क्या किया?"
"सच कहूं तो मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब क्या करूं?" रूपचंद्र ने कहा____"इस लिए सिर्फ उसकी निगरानी ही करता रहा। एक दिन मुझे पता चला कि मुरारी नाम का जो आदमी वैभव की हर तरह से मदद कर रहा था उसकी बीवी को वैभव ने अपनी हवस का शिकार बना लिया है।"
"हाय राम।" फूलवती का मुंह भाड़ की तरह खुल गया। उसके साथ साथ बाकियों का भी। इधर गौरी शंकर को रूपचंद्र की इस बात से कोई हैरानी नहीं हुई क्योंकि उसे पहले से ये बात पता थी।
"फिर एक दिन मैंने सुना कि उसी मुरारी की हत्या हो गई है।" रूपचंद्र ने आगे कहा____"और उसकी हत्या के लिए मुरारी का भाई जगन वैभव को हत्यारा कह रहा है। पहले तो मैं इस सबसे बड़ा हैरान हुआ किंतु फिर जल्दी ही मैं ये सोच कर खुश हो गया कि हत्या जैसे मामले में अगर वैभव को तरीके से फंसाया जाए तो शायद काम बन सकता है। मुझे ये भी पता चला कि वैभव मुरारी की बेटी को भी फंसाने में लगा हुआ है इस लिए एक दिन मैंने मुरारी की बीवी को धर लिया और उसे बता दिया कि मुझे उसके और वैभव के बीच बने नाजायज़ संबंधों के बारे में सब पता है इस लिए अब वो वही करे जो मैं कहूं। मुरारी की बीवी सरोज अपनी बदनामी के डर से मेरा कहा मान गई। मैं चाहता था कि वैभव हर तरफ से फंस जाए और उसकी खूब बदनामी हो।"
"फिर?" रूपचंद्र सांस लेने के लिए रुका तो गौरी शंकर पूछ बैठा।
"इसी बीच मुझसे एक ग़लती हो गई।" रूपचंद्र ने सहसा गहरी सांस ली।
"ग़लती??" गौरी शंकर के माथे पर शिकन उभर आई____"कैसी ग़लती हो गई तुमसे?"
"मैं क्योंकि वैभव से कुछ ज़्यादा ही खार खाया हुआ था।" रूपचंद्र ने कहा____"इस लिए मैंने उसकी उस फ़सल में आग लगा दी जिसे उसने बड़ी मेहनत कर के उगाई थी। उस समय मुझे लगा कि जब वो चार महीने की अपनी मेहनत को आग में जलता देखेगा तो पागल ही हो जाएगा। ख़ैर, पागल तो वो हुआ लेकिन उसके साथ उसे ये सोचने का भी मौका मिल गया कि कोई उसे फंसा रहा है। यही वो ग़लती थी मेरी, जिसके आधार पर उसने जगन और उसके गांव वालों को भी ये समझाया कि उसने ना तो मुरारी की हत्या की है और ना ही उसका किसी मामले में कोई हाथ है। यानि कोई दूसरा ही इस मामले में शामिल है जो उसे हत्या जैसे मामले में फंसाने की जी तोड़ कोशिश कर रहा है। उसका कहना था कि अगर उसी ने ये सब किया होता तो उसे अपनी ही फ़सल को जलाने की क्या ज़रूरत थी? ज़ाहिर है कि कोई और ही है जो उसे हर तरह से फंसा देना चाहता है और उसे आहत करना चाहता है। ख़ैर उसके बाद तो वो वापस हवेली ही आ गया था। हवेली आने के बाद भला कोई उसका क्या ही कर लेता?"
"ये सब तो ठीक है।" गौरी शंकर ने कहा____"लेकिन क्या फिर बाद में वैभव को ये पता चला कि उसकी फ़सल को किसने आग लगाई थी और उसे कौन फंसा रहा है?"
"हां, उसे पता चल गया था।" रूपचंद्र ने सहसा सिर झुका कर धीमें स्वर में कहा____"असल में इसमें भी मेरी ही ग़लती थी।"
"क्या मतलब?" गौरी शंकर चौंका।
"बात ये है कि मुरारी की लड़की मुझे भी भा गई थी।" रूपचंद्र ने सभी औरतों की तरफ एक एक नज़र डालने के बाद दबी आवाज़ में कहा____"जब मुझे पता चला कि वैभव मुरारी की लड़की को कुछ ज़्यादा ही भाव दे रहा है तो मुझे एकाएक ही उससे ईर्ष्या हो गई थी। मुरारी की बीवी क्योंकि मेरी धमकियों की वजह से कोई विरोध नहीं कर सकती थी इस लिए एक दिन मैंने उसके घर जा कर उसकी लड़की को दबोच लिया था। उसे पता नहीं था कि उसकी मां के नाजायज़ संबंध वैभव से हैं अतः मैंने उसे ये बात ये सोच कर बता दी कि इससे वो वैभव से नफ़रत करने लगेगी। उसके बाद मैं उस लड़की के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती करने ही लगा था कि तभी वहां वैभव आ गया। मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वो अचानक से इस तरह आ जाएगा। उसके आने से मैं बहुत ज़्यादा डर गया था। उधर जब उसने देखा कि मैंने मुरारी की लड़की को दबोच रखा है तो वो बेहद गुस्से में आ गया और फिर उसने मुझे बहुत मारा। उसके पूछने पर ही मैंने उसे सब कुछ बता दिया था।"
"ठीक किया था उसने।" रूपचंद्र की मां ललिता देवी गुस्से से बोल पड़ी____"किसी की बहन बेटी को बर्बाद करना तो दादा ठाकुर के लड़के का काम था किंतु मुझे नहीं पता था कि मेरा भी खून उसी के जैसा कुकर्मी होगा। कितनी शर्म की बात है कि तूने ऐसा घटिया काम किया। अच्छा किया वैभव ने जो तुझे मारा था।"
"फिर उसके बाद क्या हुआ?" गौरी शंकर ने उत्सुकतावश पूछा।
"मेरे माफ़ी मांगने पर वैभव ने मुझे ये कह कर छोड़ दिया था कि अब दुबारा कभी मुरारी के घर वालों को इस तरह से परेशान किया तो वो मुझे जान से मार देगा।" रूपचंद्र ने कहा____"उसके बाद मैंने फिर दुबारा ऐसा नहीं किया लेकिन वैभव पर निगरानी रखना नहीं छोड़ा। मुझे लगता है कि वैभव मुरारी की लड़की को पसंद करता है।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" गौरी शंकर हैरत से बोल पड़ा____"एक मामूली से किसान की लड़की को वैभव पसंद करता है? नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। ज़रूर तुम्हें कोई ग़लतफहमी हुई है।"
"नहीं काका, मुझे कोई ग़लतफहमी नहीं हुई है।" रूपचंद्र ने ज़ोर दे कर कहा____"मुझे पूरा यकीन है कि मुरारी की लड़की के प्रति वैभव के मन में वैसा बिल्कुल भी नहीं है जैसा कि बाकी लड़कियों के प्रति हमेशा से उसके मन में रहा है।"
"तुम ये बात इतने यकीन से कैसे कह सकते हो?" गौरी शंकर को जैसे ये बात हजम ही नहीं हो रही थी____"जबकि मैं ये अच्छी तरह जानता हूं कि दादा ठाकुर का वो सपूत कभी किसी के लिए अपने मन में इस तरह के भाव नहीं रख सकता।"
"मैं भी यही समझता था काका।" रूपचंद्र ने दृढ़ता से कहा____"लेकिन फिर जो कुछ मैंने देखा और सुना उससे उसके बारे में मेरी सोच बदल गई। इतना तो आप भी जानते हैं न कि वैभव ने हमेशा ही दूसरों की बहन बेटियों को अपनी हवस का शिकार बनाया है। ये उसी का नतीजा था कि उसने मुरारी की बीवी को भी नहीं बक्शा लेकिन उसकी लड़की को छोड़ दिया। आप खुद सोचिए काका कि ऐसा क्यों किया होगा उसने? जो व्यक्ति मुरारी की औरत को फांस सकता था वो क्या मुरारी की भोली भाली लड़की को नहीं फांस लेता? यकीनन फांस लेता काका लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया उसने।"
"हो सकता है कि मुरारी की हत्या हो जाने से उसने ऐसा करना उचित न समझा हो।" गौरी शंकर ने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"उसमें इतनी तो समझ है कि वो ऐसे हालात पर मुरारी की लड़की को अपनी हवस का शिकार बनाना हद दर्जे का गिरा हुआ काम समझे।"
"ये आप कैसी बातें कर रहे हैं काका?" रूपचंद्र ने कहा____"जिस व्यक्ति को किसी चीज़ से फ़र्क ही नहीं पड़ता वो भला इतना कुछ कैसे सोच लेगा? मुरारी तो ज़िंदा रहा नहीं था और उसकी बीवी से उसके जिस्मानी संबंध ही बन चुके थे। ऐसे में अगर वो मुरारी की लड़की को भी फांस लेता तो उसका विरोध भला कौंन करता? सरोज भी कोई विरोध नहीं करती क्योंकि विरोध करने के लिए उसके पास मुंह ही नहीं बचा था।"
"तो तुम ये सब सोच कर ही ये मान रहे हो कि वैभव मुरारी की लड़की को पसंद करता है?" गौरी शंकर ने कहा____"बर्खुरदार पसंद करने का मतलब जानते हो क्या होता है? इंसान जब किसी को पसंद करने लगता है तो वो उसके साथ सम्पूर्ण जीवन जीने के सपने देखने लगता है और फिर उस सपने को पूरा भी करने की कोशिश करता है। कहने का मतलब ये हुआ कि अगर सच में वैभव उस लड़की को पसंद करता है तो फिर उसी के साथ जीवन जीने के सपने भी देखता होगा। ये ऐसी बात है जो कहीं से भी हजम करने वाली नहीं है। क्योंकि वैभव से उस लड़की का कोई मेल ही नहीं है, दूसरे अगर वैभव उस लड़की के साथ ब्याह करने का सोचेगा भी तो दादा ठाकुर ऐसा कभी नहीं करेंगे। वो एक मामूली किसान की लड़की से अपने बेटे का ब्याह हर्गिज़ नहीं करेंगे। वो अपनी आन बान और शान पर किसी भी तरह की आंच नहीं आने देंगे।"
"मानता हूं।" रूपचंद्र ने सिर हिलाया____"लेकिन आप भी जानते हैं कि वैभव भी कम नहीं है। उसने अब तक के अपने जीवन में वही किया है जो उसने चाहा है। दादा ठाकुर ने उस पर बहुत सी पाबंदियां लगाई थी मगर उसका कुछ नहीं कर पाए। इसी से ज़ाहिर होता है कि अगर वैभव ने सोच लिया होगा कि वो मुरारी की लड़की से ही ब्याह करेगा तो समझिए वो कर के ही रहेगा। दादा ठाकुर उसका विरोध नहीं कर पाएंगे।"
"चलो ये तो अब आने वाला समय ही बताएगा कि क्या होता है?" गौरी शंकर ने कहा____"वैसे वैभव में बदलाव तो हम सबने देखा था। अगर तुम्हारी बातें सच हैं तो यकीनन उसमें आए इस बदलाव की वजह यकीनन वो लड़की ही होगी। इंसान के अंदर जब किसी के लिए कोमल भावनाएं पैदा हो जाती हैं तो यकीनन उसमें आश्चर्यजनक रूप से बदलाव आ जाता है। ख़ैर छोड़ो इस बात को, थोड़ा आराम कर लो उसके बाद हमें खेतों में भी जाना है।"
उसके बाद सब अपने अपने काम में लग गए। गौरी शंकर और रूपचंद्र अपने अपने कमरे में आराम करने के लिए चले गए। वहीं दूसरी तरफ ये सब बातें सुन कर रूपा के दिल पर मानों बिजली ही गिर गई थी। आंखों में आसूं लिए वो अपने कमरे की तरफ भागते हुए गई थी।
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शाम को जब मैं हवेली आया तो देखा पिता जी वापस आ गए थे। बैठक में उनके साथ दूसरे गांव के कुछ ठाकुर लोग बैठे हुए थे जिन्हें मैंने नमस्कार किया और फिर पिता जी के पूछने पर मैंने बताया कि खेतों की जुताई का काम शुरू है। उसके बाद मैं अंदर की तरफ आ गया।
मां और भाभी अंदर बरामदे में ही बैठी हुईं थी। मैं दिन भर का थका हुआ था इस लिए बदन टूट सा रहा था। सबसे पहले मैं गुशलखाने में गया और ठंडे पानी से रगड़ रगड़ कर नहाया तो थोड़ा सुकून मिला। नहा धो कर और कपड़े पहन कर मैं वापस नीचे मां के पास आ कर एक कुर्सी में बैठ गया। भाभी ने मुझे चाय ला कर दी।
"तुझे इस तरह से अपना काम करते देख मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।" मां ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"पिछले कुछ दिनों से कुछ ज़्यादा ही मेहनत कर रहा है मेरा बेटा। थक जाता होगा न?"
"ऐसे काम कभी किए नहीं थे मां।" मैंने चाय का एक घूंट पीने के बाद कहा____"इस लिए थोड़ी मुश्किल तो होगी ही। जब हर काम समझ में आ जाएगा तो फिर सब ठीक हो जाएगा। वैसे भी शुरू शुरू में तो हर काम मुश्किल ही लगता है।"
"हां ये तो है।" मां ने कहा____"अच्छा तू चाय पी के अपने कमरे में जा। मैं तेरी मालिश करने के लिए किसी नौकरानी को भेजती हूं। शरीर की बढ़िया से मालिश हो जाएगी तो तेरी थकावट भी दूर हो जाएगी और तुझे आराम भी मिलेगा।"
मां के द्वारा मालिश की बात सुन मैं मन ही मन चौंका। ऐसा इस लिए क्योंकि मेरे कमरे में किसी भी नौकरानी का जाना वर्जित था। इसका कारण यही था कि शुरू शुरू में मैं हवेली की कई नौकरानियों को अपनी हवस का शिकार बना चुका था। ख़ैर मां की इस बात से सहसा मैंने भाभी की तरफ देखा तो उन्हें अपनी तरफ घूरते पाया। ये देख मैं एकदम से असहज हो गया और साथ ही समझ भी गया कि वो मुझे क्यों घूरे जा रहीं थी।
"नहीं मां।" फिर मैंने जल्दी से कहा____"मैं इतना भी थका हुआ नहीं हूं कि मुझे मालिश करवानी पड़े। आप बेफ़िक्र रहें मैं एकदम ठीक हूं।"
कहने के साथ ही मैंने भाभी की तरफ देखा तो वो मेरी बात सुन कर हल्के से मुस्कुरा उठीं। मैंने उनसे नज़र हटा कर मां की तरफ देखा।
"मैं मां हूं तेरी।" मां ने दृढ़ता से कहा____"तुझसे ज़्यादा तुझे जानती हूं मैं। मुझे पता है कि काम कर कर के मेरे बेटे का बदन टूट रहा होगा। इस लिए तुझे मालिश करवानी ही होगी।"
अजीब दुविधा में फंस गया था मैं। मां की बात सुन कर मैंने एक बार फिर से भाभी की तरफ देखा तो इस बार उनकी मुस्कान गहरी हो गई। मुझे समझ न आया कि वो मुस्कुरा क्यों रहीं थी?
"आप सही कह रही हैं मां जी।" फिर भाभी ने मां से कहा____"इतने दिनों से वैभव लगातार मेहनत कर रहे हैं इस लिए ज़रूर थक गए होंगे। अगर मालिश हो जाएगी तो शरीर को भी आराम मिलेगा और मन को भी।"
भाभी की ये बात सुन कर मैंने उन्हें हैरानी से देखा तो वो फिर से मुस्कुरा उठीं। मेरी हालत अजीब सी हो गई। तभी मां ने कहा____"देखा, तुझसे ज़्यादा तो मेरी बेटी को एहसास है तेरी हालत का। अब कोई बहाना नहीं बनाएगा तू। चाय पी कर सीधा अपने कमरे में जा। मैं किसी नौकरानी को भेजती हूं मालिश के लिए। सरसो के तेल में लहसुन डाल कर वो उस तेल को गरम कर लेगी उसके बाद जब वो उस कुनकुने तेल से तेरी मालिश करेगी तो झट से आराम मिल जाएगा तुझे।"
"अ...आप बेकार में ही परेशान हो रहीं हैं मां।" मैंने ये सोच कर मना करने की कोशिश की कि अगर मैंने ऐसा न किया तो कहीं भाभी ये न सोच बैठें कि मैं तो चाहता ही यही हूं। उधर मेरी बात सुन कर मां ने मुझे आंखें दिखाई तो भाभी फिर से मुस्कुरा उठीं।
"मैं तेल गरम कर देती हूं मां जी।" भाभी ने कुर्सी से उठते हुए कहा और फिर वो रसोई की तरफ चली गईं।
इधर मेरी धडकनें अनायास ही बढ़ गईं थी। मां ने खेतों में काम के बारे में कुछ सवाल किए जिन्हें मैंने बताया और फिर मैं चाय ख़त्म कर के अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। मैं ये सोच कर भी हैरान था कि जब मां को भी मेरे बारे में सब पता है तो फिर उन्होंने मेरी मालिश के लिए किसी नौकरानी को मेरे कमरे में भेजने की बात क्यों कही? उधर भाभी जो पहले इस बात से मुझे घूर रहीं थी वो भी अब मेरी अजीब सी दशा पर मुस्कुराने लगीं थी। ऊपर से मेरी मालिश के लिए खुद भी मां से बात की और तो और तेल भी गरम करने चली गईं। मेरा दिमाग़ एकदम से ही अंतरिक्ष में परवाज़ करने लगा था।
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Aur ham armano par paani daalneऔर ये आई भाभी गरम तेल की कटोरी लिए।
अरमानों पर तेल डालने![]()
Thanksबहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
तेल गरम है। मार दो हथौड़ा भौजी
लेकिन मेरा मन तो यही है कि भाभी और वैभव की ही शादी हो।
रूपा बेचारी तो बेचारी ही बनेगी![]()
Kya yaar sab log ek hi comment chemp rahe idharBahut hi behtareen update he TheBlackBlood Shubham Bhai,
Maalish karne kahi Bhabhi hi na aa jaye vaibhav ke room me................lekin meri ek dili ichcha he ki Bhabhi aur Vaibhav ki shadi ho jaye............dekhte he ye ichcha puri hogi ya nahi
Keep posting Bhai
ThanksGood to see you back writer ji...
Lagta hai Tel Lagane bhabhi ji hi Aaegi![]()