बहुत ही सुपर डुपर अपडेट हैं भाई मजा आ गयाअध्याय - 71"ऐसा मत कहिए भाभी।" रागिनी की बातें सुन कर कुसुम के समूचे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई, बोली____"आपकी ज़ुबान पर इतनी कठोर बातें ज़रा भी अच्छी नहीं लगती। यकीन कीजिए वैभव भैया के साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा। अब चलिए आराम कीजिए आप।"
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कुसुम ने ज़ोर दे कर रागिनी को बिस्तर पर लिटा दिया और खुद किनारे पर बैठी जाने किन ख़यालों में खो गई। पूरी हवेली में सन्नाटा छाया हुआ था लेकिन कमरे के अंदर मौजूद दो इंसानों के अंदर जैसे कोई आंधी सी चल रही थी।
अब आगे....
जगन हल्के अंधेरे में बढ़ता ही चला जा रहा था। आसमान में काले बादल न होते तो कदाचित इतना अंधेरा न होता क्योंकि थोड़ा सा ही सही मगर आसमान में चांद ज़रूर था जिसकी रोशनी अंधेरे को दूर कर देती थी। कुछ देर पहले उसने गोली चलने की आवाज़ सुनी थी। गोली चलने की आवाज़ से वो डर तो गया था लेकिन सफ़ेदपोश के हुकुम का पालन करना उसके लिए हर कीमत पर अनिवार्य था। जिस तरफ उसने गोली चलने की आवाज़ सुनी थी उसी तरफ वो बढ़ चला था। अभी कुछ ही देर पहले उसे ऐसा लगा था जैसे कुछ दूरी पर दो लोग बातें कर रहे हैं। रात के सन्नाटे में उसे आवाज़ें साफ सुनाई दी थीं इस लिए वो तेज़ी से उस तरफ बढ़ता चला गया था मगर फिर अचानक से आवाज़ें आनी बंद हो गईं।
आसमान में मौजूद चांद के वजूद से थोड़ी देर के लिए बादल हटे तो रोशनी में उसने दो सायों को देखा। इसके पहले वो क़दम दर क़दम चल रहा था किंतु अब उसने दौड़ लगा दी थी। उसके हाथ में पिस्तौल थी इस लिए उसे किसी का डर नहीं लग रहा था। जल्दी ही वो उन सायों के क़रीब पहुंच गया और अगले ही पल वो ये देख कर चौंका कि वो असल में एक ही साया था। जगन ने स्पष्ट देखा कि साया अपनी पीठ पर कोई भारी चीज़ को ले रखा था और बड़े तेज़ क़दमों से आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। ये देख जगन और भी तेज़ी से उसकी तरफ दौड़ने लगा। अचानक ही अंधेरा हो गया, जाहिर है काले बादलों ने फिर से थोड़े से चमकते चांद को ढंक लिया था।
जगन दौड़ते दौड़ते बुरी तरह हांफने लगा था। जैसे ही अंधेरा हुआ तो उसे वो साया दिखना बंद हो गया। इसके बावजूद वो आगे बढ़ता रहा। कुछ ही देर में उसे आस पास कई सारे पेड़ नज़र आने लगे। उसने एक जगह रुक कर इधर उधर निगाह दौड़ाई मगर वो साया उसे कहीं नज़र न आया। जगन एकदम से बेचैन और परेशान हो गया। हाथ में पिस्तौल लिए अभी वो परेशानी की हालत में इधर उधर देख ही रहा था कि अचानक वो एक तरफ हुई आहट से बुरी तरह चौंका। मारे घबराहट के उसने एकदम से उस तरफ हाथ कर के गोली चला दी। गोली चलने की तेज़ आवाज़ से फिज़ा गूंज उठी और खुद जगन भी बुरी तरह खौफ़जदा हो गया। उधर गोली चलने पर आवाज़ तो हुई मगर उसके अलावा कोई प्रतिक्रिया ना हुई। ये देख वो और भी परेशान हो गया।
जगन अपनी समझ में बेहद चौकन्ना था जबकि असल में वो घबराहट की वजह से घूम घूम कर इधर उधर नज़रें दौड़ा रहा था। इतना तो वो समझ गया था कि वो साया यहीं कहीं है। उसे डर भी था कि कहीं वो उसे कोई नुकसान न पहुंचा दे किंतु फिर वो ये सोच कर खुद को तसल्ली दे लेता था कि उसके पास पिस्तौल है। अभी वो ये सोच ही रहा था कि तभी एक तरफ से गोली चलने की तेज़ आवाज़ गूंजी और इसके साथ ही उसके हलक से दर्द भरी चीख वातावरण में गूंज उठी। गोली उसकी कलाई में लगी थी जिससे उसके हाथ से पिस्तौल छूट कर कच्ची ज़मीन पर ही कहीं छिटक कर गिर गई थी। वो दर्द से बुरी तरह चिल्लाने लगा था।
"मादरचोद कौन है जिसने मुझे गोली मार दी?" वो दर्द में गुस्सा हो कर चिल्लाया___"सामने आ हरामजादे।"
"ये तो कमाल ही हो गया जगन काका।" जगन की आवाज़ सुन कर मैं बड़ा हैरान हुआ था। मेरी समझ में तो वो हवेली के बाहर वाले एक कमरे में क़ैद था। बहरहाल मैं एक पेड़ से बाहर निकल कर उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला____"बल्कि कमाल ही नहीं, ये तो चमत्कार ही हो गया। तुम तो हवेली के एक कमरे में क़ैद थे न, फिर यहां कैसे टपक पड़े?"
मुझे एकदम से अपने सामने आ गया देख जगन की नानी ही नहीं बल्कि उसका पूरा का पूरा खानदान ही मर गया। वो अपनी कलाई को थामें दर्द से कराह रहा था। मैं एकदम से किसी जिन्न की तरह उसके सामने आ कर खड़ा हो गया।
"तुमने जवाब नहीं दिया काका?" मैंने क़रीब से उसकी आंखों में देखते हुए पूछा____"हवेली से बाहर कैसे निकले और यहां कैसे टपक पड़े?"
"व...व....वो मैं।" जगन बुरी तरह हकलाया, उससे आगे कुछ बोला ना गया।
"अभी तो बड़ा गला फाड़ कर गाली दे रहे थे तुम।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"अब क्या हुआ?"
मेरी बात सुन कर जगन मुझसे नज़रें चुराने लगा। उसका जिस्म जूड़ी के मरीज़ की तरह कांपने लगा था। उधर उसकी कलाई में जहां पर गोली लगी थी वहां से खून बहते हुए नीचे ज़मीन पर गिरता जा रहा था।
"मादरचोद बोल वरना इस बार तेरी गांड़ में गोली मारूंगा।" उसे कुछ न बोलता देख मैं गुस्से से दहाड़ उठा____"हवेली के कमरे से बाहर कैसे निकला तू और यहां कैसे पहुंचा?"
"म...म...माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" जगन एकदम से मेरे पैरों में गिर पड़ा, फिर गिड़गिड़ाते हुए बोला___"बहुत बड़ी ग़लती हो गई मुझसे।"
"मैंने जो पूछा उसका जवाब दे बेटीचोद।" मैंने गुस्से में उसको एक लात मारी तो वो पीछे उलट गया। फिर किसी तरह वो सम्हल कर उठा और बोला____"मुझको सफ़ेदपोश ने हवेली के कमरे से बाहर निकाला है छोटे ठाकुर और यहां भी मैं उसके ही कहने पर आया हूं।"
"स..सफ़ेदपोश???" मैं जगन के मुख से ये सुन कर बुरी तरह चकरा गया, फिर बोला____"वो वहां कैसे पहुंचा? सब कुछ बता मुझे।"
"म..मुझे कुछ नहीं पता छोटे ठाकुर।" जगन ने कहा____"मैं तो उस कमरे में ही क़ैद था। अचानक ही दरवाज़ा खुला तो मैं ये देख कर घबरा गया कि हाथ में मशाल लिए सफ़ेदपोश कैसे आ गया? उसने अपनी अजीब सी आवाज़ में मुझे कमरे से बाहर निकल कर अपने साथ चलने को कहा तो मैं चल पड़ा। आख़िर अपनी जान मुझे भी तो प्यारी थी छोटे ठाकुर। सुबह दादा ठाकुर मुझे मौत की सज़ा देने वाले थे। जब सफ़ेदपोश ने मुझे अपने साथ चलने को कहा तो मैं समझ गया कि वो मुझे बचाने आया है। बस, यही सोच कर मैं उसके साथ वहां से निकल आया।"
"तो यहां उसी ने भेजा है तुझे?" मैं अभी भी ये सोच कर हैरान था कि सफ़ेदपोश हवेली में इतने दरबानों की मौजूदगी में जगन को निकाल ले गया था, बोला____"तुझे कैसे पता कि मैं यहां मिलूंगा तुझे?"
"मुझे नहीं पता छोटे ठाकुर।" जगन ने कहा____"वो तो सफ़ेदपोश ने मुझसे कहा कि आप मुझे यहीं कहीं मिल सकते हैं।"
कहने के साथ ही जगन ने सारी बात मुझे बता दी। मैं ये जान कर चौंका कि सफ़ेदपोश ने जगन को मुझे जान से मारने के लिए भेजा था। मेरे लिए ये बड़े ही हैरत की बात थी कि सफ़ेदपोश को इतना कुछ कैसे पता रहता है? आख़िर है कौन ये सफ़ेदपोश? क्या दुश्मनी है इसकी हमसे?
"उस दिन तो तुझे बड़ा अपने किए पर पछतावा हो रह था।" मैंने गुस्से से बोला____"और अब फिर से वही कर्म करने चल पड़ा है जिसके लिए तू दादा ठाकुर से रहम की भीख मांग रहा था। पर शायद तेरा कसूर नहीं है जगन काका। असल में तेरी किस्मत में मेरे हाथों मरना ही लिखा था। तभी तो घूम फिर कर तू इस तरीके से मेरे सामने आ गया। तुझ जैसे इंसान को अब जीने का कोई हक़ नहीं है।"
"मुझे माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" जगन ने रोते हुए मेरे पैर पकड़ लिए, बोला____"सफ़ेदपोश ने मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया था। तुम कहो तो मैं उसे ही जान से मार दूं?"
"तेरे जैसे लतखोर जो बात बात पर नामर्दों की तरह पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगते हैं।" मैंने रिवॉल्वर को उसके माथे पर लगाते हुए कहा____"वो सफ़ेदपोश जैसे शातिर इंसान का क्या ही उखाड़ लेंगे। तूने निर्दोष मुरारी काका की हत्या कर के उसके परिवार को अनाथ कर दिया है इस लिए अब तू भी उन्हीं के पास जा। शायद वो ही तुझे माफ़ कर दें.....अलविदा।"
कहने के साथ ही मैंने ट्रिगर दबा दिया। फिज़ा में गोली चलने की आवाज़ गूंजी और साथ ही जगन की जीवन लीला समाप्त हो गई। उसकी लाश को वहीं छोड़ मैं पलटा और उस तरफ चल पड़ा जिधर मैंने रघुवीर को रखा था। कुछ ही पलों में मैं उस पेड़ के पीछे पहुंच गया मगर अगले ही पल मैं ये देख कर चौंका कि वहां से रघुवीर गायब है। मैंने तो उसे बेहोश कर दिया था, फिर वो होश में कैसे आया? मेरे ज़हन में बड़ी तेज़ी से ये सवाल तांडव सा करने लगा।
अंधेरे में मैं उसे खोजने लगा। रघुवीर का मिलना मेरे लिए बहुत ज़रूरी था। अगर वो हाथ से निकल गया तो बहुत बड़ी मुसीबत का सबब बन सकता था वो। इधर उधर खोजते हुए मैं सोचने लगा कि आख़िर कहां गया होगा वो? क्या सच में उसे होश आ गया रहा होगा या कोई और ही ले गया उसे? किसी और का सोचते ही मैं एकदम से परेशान हो गया। तभी बादलों ने चांद को आज़ाद किया तो थोड़ी रोशनी फैली जिससे दूर मुझे एक साया नज़र आया। उसे देख मैं तेज़ी से उस तरफ दौड़ पड़ा। कुछ ही देर में मैं उसके क़रीब पहुंच गया।
रघुवीर को मैंने उसकी जांघ पर गोली मारी थी इस लिए वो लंगड़ा कर चल रहा था। दर्द की वजह से वो ज़्यादा तेज़ नहीं चल पा रहा था। पीछे से किसी के आने की आहट सुन वो बुरी तरह उछल पड़ा और लड़खड़ा कर वहीं गिर गया।
"आज तो चमत्कार ही चमत्कार देखने को मिल रहे हैं भाई।" उसके सामने पहुंचते ही मैं बोला____"पहले जगन का हवेली के कमरे से बाहर आना ही नहीं बल्कि यहां मुझ तक पहुंच भी जाना और दूसरा तेरा होश में आ जाना। कमाल ही हो गया न? बहरहाल ये तो बता, तू इतना जल्दी होश में कैसे आया?"
"गोली चलने की आवाज़ से होश आया मुझे।" रघुवीर बोला____"जब मैंने देखा कि तुम जगन से बातें करने में व्यस्त हो तो मैं चुपके से खिसक गया।"
"बड़ा बेवफ़ा है यार तू।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"अपने दुश्मन को अकेला ही छोड़ कर चला जा रहा था?"
रघुवीर मेरी बात सुन कर कुछ न बोला। बस कसमसा कर रह गया था। उसकी कसमसाहट पर मेरी मुस्कान और भी गहरी हो गई मगर फिर अचानक ही मुझे उसके किए गए कर्म याद आ गए जिसके चलते मेरे अंदर उसके प्रति गुस्सा उभर आया।
"आगे की कहानी सुनने के लिए ना तो अभी वक्त है और ना ही ये कोई माकूल जगह है।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"इस लिए तुझे एक बार फिर से बेहोशी की गहरी नींद में जाना होगा।"
इससे पहले कि रघुवीर मेरी बात सुन कर कुछ कर पाता मैंने बिजली की सी तेज़ी से रिवॉल्वर के दस्ते का वार उसकी कनपटी पर कर दिया। वातावरण में उसकी घुटी घुटी सी चीख गूंजी और इसके साथ ही वो बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया।
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"छ...छोटे कुंवर आप यहां??" भुवन ने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो बाहर अंधेरे में मुझे देख कर चौंकते हुए बोल पड़ा था____"ऐसे हालात में आपको इस तरह कहीं नहीं घूमना चाहिए।"
"हां मुझे पता है।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"अच्छा ये बताओ कि तुम अपने घर क्यों नहीं गए? बाकी लोग तो थे ही यहां पर।"
"आपने ही तो कहा था कि मैं मुरारी के घर वालों की सुरक्षा व्यवस्था का ख़याल रखूं।" भुवन ने कहा____"आज कल जिस तरह के हालात हैं उससे मैं नावाकिफ नहीं हूं। यही सोच कर मैं पिछले कुछ दिनों से रात में भी यहीं रुकता हूं और एक दो बार मुरारी के घर का चक्कर भी लगा आता हूं।"
"ये सब तो ठीक है भुवन।" मैं भुवन के इस काम से और उसकी ईमानदारी से मन ही मन बेहद प्रभावित हुआ, बोला____"लेकिन तुम्हें ख़ुद का भी तो ख़याल रखना चाहिए। आख़िर हालात तो तुम्हारे लिए भी ठीक नहीं हैं। मेरे दुश्मनों को भी पता ही होगा कि तुम मेरे आदमी हो और मेरे कहने पर कुछ भी कर सकते हो। ऐसे में वो तुम्हारी जान के भी दुश्मन बन जाएंगे।"
"मैं किसी बात से नहीं डरता छोटे कुंवर।" भुवन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"ख़ास कर किसी होनी या अनहोनी से तो बिल्कुल भी नहीं। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि जीवन में जिसके साथ जो भी होना लिखा है उसे कोई चाह कर भी मिटा नहीं सकता। ख़ैर आप बताइए इस वक्त मेरे लिए क्या हुकुम है?"
"कोई ख़ास बात नहीं है।" मैंने कहा____"बस एक दुश्मन मेरे हाथ लगा है तो मैं चाहता हूं कि आज रात भर के लिए उसे यहां पर रख दूं। कल दिन में मैं उसे ले जाऊंगा यहां से।"
"जैसी आपकी इच्छा।" भुवन ने कहा____"वैसे कौन है वो?"
"रघुवीर सिंह।" मैंने कहा____"मुंशी चंद्रकांत का बेटा।"
"क...क्या???" भुवन उछल ही पड़ा, बोला____"तो क्या वो भी इस सब में शामिल है? हे भगवान! ये सब क्या हो रहा है?"
"ज़्यादा मत सोचो।" मैंने कहा____"उसको यहां पर बाकी लोगों की नज़रों से छुपा कर ही रखना है। मैं नहीं चाहता कि बेवजह कोई तमाशा हो जाए और बाकी लोग घबरा जाएं।"
मेरी बात सुन कर भुवन ने सिर हिलाया और फिर मेरे कहने पर उसने रघुवीर को उठा कर मेरे नए बन रहे मकान के उस हिस्से में ले जा कर बंद कर दिया जिसे बाकी लोगों से छुपा कर बनवाया था मैंने। उसके बाद मैं और भुवन बाहर आ गए।
"क्या अब आप हवेली जा रहे हैं?" भुवन ने हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए पूछा तो मैंने कहा____"हां, हवेली जाना ज़रूरी है। वैसे भी पिता जी और बाकी लोग बाहर गए हुए हैं तो ऐसे में मेरा हवेली में रहना ज़रूरी है।"
"पर मैं रात के इस वक्त आपको अकेले नहीं जाने दूंगा।" भुवन ने चिंतित भाव से कहा____"मैं भी आपके साथ चलूंगा।"
"अरे! तुम मेरी फ़िक्र मत करो यार।" मैंने कहा____"मुझे किसी से कोई ख़तरा नहीं है और अगर है भी तो कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"
"अगर बात दिन की होती तो कोई बात नहीं थी छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"मगर ये रात का वक्त है। आसमान में बादल छाए हुए हैं जिसकी वजह से अंधेरा भी है। ऐसे में दुश्मन कहीं भी घात लगाए बैठा हो सकता है। इस लिए मेरी बात मानिए इस वक्त अकेले मत जाइए।"
"यहां भी तुम्हारे लिए रहना ज़रूरी है।" मैंने कहा____"दुश्मन कहीं भी घात लगाए बैठा हो सकता है। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि रघुवीर के साथ कोई अनहोनी हो जाए। उससे अभी बहुत कुछ जानना बाकी है।"
"उसकी आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए छोटे कुंवर।" भुवन ने पूरे आत्म विश्वास के साथ कहा____"उस तक कोई नहीं पहुंच पाएगा। मैं जानता हूं कि आपका हवेली में जाना ज़रूरी है इस लिए मैं आपको रोकूंगा नहीं किंतु अकेले जाने भी नहीं दूंगा। भगवान के लिए मेरी बात मान जाइए।"
"अच्छा ठीक है।" भुवन के ज़ोर देने पर आख़िर मुझे मानना ही पड़ा____"तुम भी चलो मेरे साथ किंतु किसी और को भी साथ ले लो वरना वापसी में तुम अकेले हो जाओगे। मैं भी तो नहीं चाहता कि तुम्हें कुछ हो जाए।"
भुवन मेरी बात मान गया। वो अंदर गया और एक आदमी को जगा कर ले आया। भुवन के कहने पर उस आदमी ने पानी से अपना चेहरा धोया ताकि उसका आलस और नींद दूर हो जाए। उसके बाद भुवन मोटर साईकिल ले कर चल पड़ा। उसने मोटर साइकिल को स्टार्ट नहीं किया था बल्कि उसे पैदल ही ठेलते हुए ले चला। मेरे पूछने पर उसने बताया कि ऐसा वो सावधानी के तौर पर कर रहा है। मुझे उसकी समझदारी पर बड़ा फक्र हुआ। क़रीब आधा किलो मीटर पैदल आने के बाद उसने मुझे मोटर साइकिल पर बैठाया और फिर मेरे पीछे एक दूसरा आदमी बैठा। उसके बाद भुवन ने मोटर साइकिल को स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया।
भुवन मेरा सबसे वफ़ादार आदमी था। वो मेरे लिए खुशी से अपनी जान दे सकता था। एक साल पहले मैंने उस पर एक उपकार किया था। उसकी बीवी बहुत ज़्यादा बीमार थी और वो उस वक्त शहर में उसका इलाज़ करवा रहा था। डॉक्टर के अनुसार उसकी बीवी को कोई ऐसी बीमारी थी जिसके लिए ज़्यादा रूपये लगने थे। भुवन के पास जो भी पैसा था वो पहले ही उसकी बीवी के इलाज़ में ख़र्च हो गया था। ये एक इत्तेफ़ाक ही था कि उसी समय मैं अपने दोस्त सुनील के साथ उस अस्पताल में गया हुआ था। भुवन की नज़र जब मुझ पर पड़ी तो वो दौड़ते हुए मेरे पास आया और मुझसे अपनी बीवी के इलाज़ के लिए पैसे मांगने लगा। मैं भुवन को जानता था क्योंकि वो हमारी ही ज़मीनों पर काम किया करता था। वो जिस तरह से रो रो कर पैसे के लिए मुझसे मिन्नतें कर रहा था उसे देख मैंने फ़ौरन ही उसे नोटों की एक गड्डी थमा दी थी और कहा था कि अगर और पैसों की ज़रूरत पड़े तो वो बेझिझक मुझसे मांग ले। बस, इतना ही उपकार किया था मैंने उसके ऊपर और कमबख़्त उसी उपकार के लिए उसने ख़ुद को मेरा कर्ज़दार मान लिया था। बाद में मैंने उसको बोला भी था कि उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए पर वो नहीं माना और बोला कि अब से वो मेरे लिए कुछ भी करेगा।
कुछ ही देर में भुवन की मोटर साईकिल हवेली पहुंच गई। रास्ते में कहीं कोई परेशानी जैसी बात नहीं हुई थी। मैं जब नीचे उतर कर हवेली के मुख्य दरवाज़े की तरफ जाने लगा तो भुवन जल्दी से मेरे पीछे आया और मुझे रुकने को बोला।
"एक बात कहना चाहता हूं आपसे।" भुवन ने भारी झिझक के साथ कहा____"मैं जानता हूं कि उसके लिए ये समय सही नहीं है फिर भी कहना चाहता हूं।"
"कोई बात नहीं भुवन।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा___"तुम बेझिझक कहो, क्या कहना चाहते हो?"
"मुझे लगता है कि मुरारी की बेटी अनुराधा के मन में आपके लिए प्रेम जैसी भावना है।" भुवन ने झिझकते हुए कहा___"मैं जानता हूं कि वो अभी नादान और नासमझ है और आपसे उसका कोई मेल भी नहीं है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप उसे किसी भ्रम में मत रखिएगा। उस मासूम को मैंने दिल से अपनी छोटी बहन मान लिया है। अगर उसे किसी तरह की दुख तकलीफ़ हुई तो मुझे भी होगी। इस लिए....।"
"फ़िक्र मत करो भुवन।" मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा____"तुमसे कहीं ज़्यादा मुझे उसके दुख तकलीफ़ की फ़िक्र है। अगर नहीं होती तो तुम्हें उसकी और उसके परिवार की सुरक्षा व्यवस्था की ज़िम्मेदारी न देता।"
"आपका बहुत बहुत धन्यवाद छोटे कुंवर।" भुवन ने खुश हो कर कहा____"अच्छा अब मैं चलता हूं, नमस्कार।"
उसके जाने के बाद मैं भी आगे बढ़ चला। ज़हन में भुवन की ही बातें गूंज रहीं थी। ख़ैर, मुख्य द्वार पर मौजूद दरबानों ने मुझे देखते ही दरवाज़ा खोल दिया। मैं अंदर दाखिल हो कर जैसे ही बैठक के पास पहुंचा तो नाना जी और भैया के चाचा ससुर मुझे देखते ही खड़े हो गए।
"आ गया मेरा बच्चा।" नाना जी ने नम आंखों से देखते हुए मुझसे कहा____"बिना किसी को बताए कहां चले गए थे तुम? तुम्हें पता है हम सब यहां कितना घबरा गए थे?"
"चिंता मत कीजिए नाना जी।" मैंने कहा____"मैं ठीक हूं और जहां भी गया था कुछ न कुछ कर के ही आया हूं।"
"क...क्या मतलब??" नाना जी के साथ साथ बाकी लोग भी चौंके____"ऐसा क्या कर के आए हो तुम और तुम्हारे पिता जी लोग मिले क्या तुम्हें?"
उनके पूछने पर मैंने उन्हें आराम करने को कहा और इस बारे में कल बात करने का बोल कर अंदर चला गया। असल में मैं किसी को इस वक्त परेशान नहीं करना चाहता था। ये अलग बात है कि वो फिर भी परेशान ही नज़र आए थे। इधर मैं दो बातें सोचते हुए अंदर की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। एक ये कि कल का दिन नरसिंहपुर के लिए कैसा होगा और दूसरी ये कि भुवन ने अनुराधा के संबंध में जो कुछ कहा था क्या वो सच था?
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