दादा ठाकुर ने साहूकारों के पुरे मर्दों का लगभग सफाया करवा दिया । शायद दो ही सदस्य बचे हैं लेकिन देर-सवेर उनका हश्र भी वही हो जाएगा।
पता नही कि उनका यह कदम कितना सही है या कितना गलत लेकिन जो भी हुआ वो इस तरह से नही होना चाहिए था। दादा ठाकुर को पुरा विश्वास है कि उनके बड़े लड़के और उनके भाई की हत्या साहूकारों ने ही थी और इसका कारण वो अपने मरहूम पिता जी को मानते है।
जब तक ठाकुर साहब के पिता जी की हिस्ट्री का हमे पता नही होगा तब तक हम सही जजमेंट कर भी नही सकते है।
पर जो कुछ इन चंद दिनों से हो रहा है वो दोनो पक्षों के लिहाज से सही नही हुआ है। जहां ठाकुर साहब ने अपने परिवार के दो सदस्यों को खोया है वहीं साहूकारों के परिवार मे मात्र दो सदस्य ही बचे हुए है। यह दोनो परिवार के लिए एक बड़ी त्रासदी है।
मुंशी जी पर हमे पहले से ही शक था कि वो ठाकुर साहब के पीठ पर छूरा घोंप सकते है और इसका कारण भी था। औरत बहुत बड़ी कारण होती है किसी भी झगड़े और वाद विवाद की।
यहां शायद मुंशी वो शख्स हो सकता है जिसने साहूकारों के पीठ पर बंदूक रखकर गोली चलाई हो। देखते है आगे क्या निकल कर आता है !
बहुत ही खूबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।