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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
अध्याय - 129
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



मैं अपने खेतों पर पहुंचा तो भुवन वहीं था। मैंने उसे जीप में बैठाया और वहां से चल पड़ा। रास्ते में मैंने उसे बताया कि हमें कहां और किस काम के लिए जाना है। भुवन ने साथ में भीमा और बलवीर को भी ले चलने की सलाह दी जो मुझे भी उचित लगी। असल में मुझे अंदेशा था कि ये मामला आसानी से निपट जाने वाला नहीं है। ख़ैर जल्दी ही हम दोनों भीमा और बलवीर के घर पहुंचे। वहां से दोनों को जीप में बैठा कर मैं निकल पड़ा।


अब आगे....


सबसे पहले हम मुरारी काका के गांव पहुंचे। मुझे इतने समय बाद आया देख गांव वाले थोड़ा हैरान हुए। मैंने एक बरगद के पेड़ के पास जीप को रोका। पेड़ के चारो तरफ चबूतरा बना हुआ था जिसमें कुछ लोग बैठे हुए थे। हमें देखते ही वो सब चबूतरे से उतर कर ज़मीन में खड़े हो गए और फिर सलाम करने लगे। मैंने भुवन को समझा दिया था कि क्या करना है इस लिए उसने भीमा और बलवीर को इशारा किया। वो दोनों अलग अलग दिशा में चले गए जबकि भुवन उन लोगों से बात करने लगा।

बात करने का तात्पर्य ये पता करना था कि मालती का पति जगन कैसा था और किन लोगों के साथ जुवां खेलता था? जुएं खेलने के लिए उसके पास पैसा किस तरीके से आता था और साथ ही जिन लोगों से उसने कर्ज़ा लिया था वो उससे अपना रुपिया वसूलने के लिए क्या करते थे?

क़रीब बीस मिनट बाद भीमा और बलवीर वापस आए। उन लोगों का काम भी यही था कि वो गांव के अलग अलग लोगों से इस बारे में पूछताछ करें। उन दोनों ने आ कर मुझे वही सब बताया जो भुवन के द्वारा इन लोगों से पता चला था। ये अलग बात है कि अलग अलग लोगों के बताने का तरीका थोड़ा अलग था किंतु मतलब एक ही था।

सारी बातों को समझने के बाद मैंने सबको जीप में बैठने को कहा और फिर चल पड़े हम। मुरारी के गांव से क़रीब डेढ़ दो किलो मीटर पर ही एक दूसरा गांव हिम्मतपुर था। जल्दी ही मेरी जीप हिम्मतपुर में दाख़िल हो गई और उस मकान के सामने रुकी जहां से जगन ने कर्ज़ा लिया था।

हिम्मतपुर गांव ज़्यादा बड़ा नहीं था। आबादी भी ज़्यादा नहीं थी। क़रीब पचास साठ घर थे गांव में। गांव का सबसे संपन्न आदमी था शंकर लाल श्रीवास्तव। गांव में सबसे ज़्यादा उसी के पास ज़मीनें थीं जिनसे उसे खूब पैदावार होती थी। गांव के लोगों को वो उधारी में अनाज देता था और फिर उसके नियम के अनुसार ग़रीब आदमी अपनी ज़मीन से अनाज उगा कर उसका उधार तो चुकाता ही था किंतु ब्याज के साथ। इसके अलावा उसका मुख्य पेशा लोगों को ब्याज में पैसा देना भी था। लोग मज़बूरी में कर्ज़ लेते थे लेकिन कर्ज़ा चुकाना उनके बस से बाहर हो जाता था। ऐसा इस लिए भी कि ग़रीब आदमी अपनी खुद की ज़रूरतें ही ढंग से पूरी नहीं कर पाता था तो कर्ज़ा कैसे चुकाता? इस चक्कर में ब्याज बढ़ता जाता। ब्याज को चुकाते चुकाते इंसान का कचूमर निकल जाता था। जब समय थोड़ा लम्बा हो जाता था तो शंकर लाल नया नियम लागू कर देता। नए नियम में कर्ज़ चुकाने का समय नियुक्त कर देता था और जब ग़रीब आदमी तय समय पर कर्ज़ा न दे पाता तो वो उनकी पहले से ही गिरवी रखी ज़मीन को अपने कब्जे में कर लेता था। ग़रीब आदमी रोने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था। शंकर लाल ने लोगों को डराने धमकाने के लिए बकायदा मुस्टंडे पाल रखे थे।

शंकर लाल के दो बेटे और दो बेटियां थी। दोनों बेटों की शादी हो चुकी थी और दो बेटियों में से एक अभी अविवाहित थी। उसके दोनों बेटे यानि हीरा लाल और मणि लाल अपने बाप के नक्शे क़दम पर ही चल रहे थे।

मकान के सामने एक लंबा चौड़ा मैदान था। उसके बाद पुराने समय का बड़ा सा मकान बना हुआ था जिसकी सामने वाली दीवार पर सिर्फ लकड़ी के मोटे मोटे खम्भे थे जिनमें नक्काशी की हुई थी। उन खंभों के एक तरफ बड़ी सी चौपार थी जिनमें क़रीब पांच मजबूत पलंग बिछे हुए थे जबकि दूसरी तरफ उसका बैठका था। उस बैठके में उसका आसन बना हुआ था जहां पर बैठ कर वो उन लोगों से मिलता था जो लोग उसके पास कर्ज़ लेने आते थे। बैठके से सटी ही एक दीवार थी जिसमें लोहे की मजबूत अलमारी लगभग आधी धंसी हुई थी। उसी अलमारी में उसके बही खातों की जाने कितनी ही मोटी मोटी किताबें रखी हुई थी। उस अलमारी से क़रीब तीन फिट की दूरी पर एक दरवाज़ा था जो एक ऐसे कमरे का था जिसमें उसकी पूंजी रखी हुई होती थी। दरवाज़ा हमेशा एक मजबूत ताले के साथ बंद रहता था जिसकी चाभी सिर्फ उसके पास ही होती थी।

जीप जब मकान के सामने मैदान में पहुंच कर रुकी तो वहां मौजूद उसके मुस्टंडे एकदम से तन कर खड़े हो गए। बैठके में शंकर लाल बैठा हुआ था और उसके पास दो तीन लोग भी थे जो शकल से ही उससे कर्ज़ लेने आए लोग लग रहे थे। शंकर लाल के बगल से उसका बड़ा बेटा हीरा लाल बैठा हुआ था। जीप को देख सबकी नज़रें हमारी तरफ ही केंद्रित हो गईं थी।

शंकर लाल और उसका बेटा उस वक्त चौंके जब उन्होंने जीप से मुझे उतरते देखा। दोनों बाप बेटे एकदम से हड़बड़ा से गए। शंकर लाल ने अपने बेटे को कोई इशारा किया और फिर उठ कर मेरी तरफ लपका। उसका बेटा भी उठ कर मेरी तरफ आने लगा था।

"अरे! छोटे कुंवर आप यहां?" शंकर लाल चेहरे पर खुशी के भाव लाते हुए और ज़ुबान को मीठा बनाते हुए बोला____"धन्य भाग हमारे जो आप खुद चल कर मेरी छोटी सी कुटिया में पधारे। आइए आइए, अंदर आइए।"

"मेरे पास अंदर बैठने का वक्त नहीं है शंकर काका।" मैंने सपाट और स्पष्ट भाव से कहा____"मैं यहां एक ज़रूरी काम से आया हूं और उम्मीद करता हूं कि आप मुझे ज़रा भी निराश नहीं करेंगे।"

"अरे! हुकुम कीजिए छोटे कुंवर।" शंकर लाल फ़ौरन ही अपने दांत निपोरते हुए बोल पड़ा____"मुझे बताइए कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?" कहने के साथ ही वो अपने मुस्टंडों से मुखातिब हुआ____"अरे! बेवकूफों खड़े क्या हो। जाओ चारपाई ले कर आओ छोटे कुंवर के बैठने के लिए और हीरा बेटा तू ज़रा इनके जल पान की फ़ौरन व्यवस्था कर। बड़े लोग हैं ये....बार बार हमारे घर को पवित्र करने नहीं आएंगे।"

शंकर लाल की बात सुनते ही उसका एक मुस्टंडा फ़ौरन ही चारपाई ले आया और चौगान में रख कर उस पर एक गद्दा बिछा दिया। उधर उसका बेटा हीरा भी अंदर की तरफ दौड़ गया था। शंकर लाल ने हाथ जोड़ कर मुझे चारपाई पर बैठने को कहा तो मैं बैठ गया। जबकि भुवन, भीमा और बलवीर मेरे समीप ही बगल से खड़े हो गए।

"और बताइए छोटे कुंवर दादा ठाकुर कैसे हैं?" शंकर लाल ने अपने स्वर को मधुर बनाते हुए पूछा____"काफी समय हो गया उनके दर्शन नहीं हुए। वैसे कुछ समय पहले ख़बर मिली थी आपके साथ हुई दुखद घटना के बारे में।"

"सब किस्मत की बातें हैं काका।" मैंने कहा____"जिसकी किस्मत में जो होना लिखा होता है वो तो होता ही है। आख़िर किसी का अपनी किस्मत पर और ऊपर वाले पर कहां कोई ज़ोर चलता है।"

"हां ये तो सही कहा आपने।" शंकर लाल ने सहसा बेचैन हो कर कहा____"अब क्या कह सकते हैं किंतु जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ। अच्छा अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं आपसे ये पूछने की गुस्ताख़ी कर सकता हूं कि आप यहां मुझ जैसे अदने से व्यक्ति के घर किस उद्देश्य से पधारे हैं?"

शंकर लाल ने ये कहा ही था कि उसका बेटा हीरा आ गया। उसके पीछे एक औरत भी थी। मैंने अंदाज़ा लगाया शायद वो औरत उसकी मां थी। उसने आते ही मुझे सलाम किया। मेरी उम्र से बड़े लोग जब मुझे यूं सलाम करते थे तो मुझे बड़ा अजीब लगता था किंतु क्या कर सकता था। रुद्रपुर के ठाकुरों का इतिहास ही ऐसा रहा है कि लोग झुक कर सलाम किए बिना नहीं रहते थे। ख़ैर हीरा ने बड़े आदर भाव से मुझे जल पान कराया और फिर मेरे साथ आए मेरे लोगों को भी।

मैंने देखा शंकर लाल के चेहरे पर बेचैनी के साथ साथ अब थोड़े चिंता के भाव भी उभर आए थे। शायद वो ये सोच कर चिंता में पड़ गया रहा होगा कि मेरे जैसे चरित्र का लड़का उसके गांव में उसके ही घर आख़िर किस मकसद से आया है? कहीं मेरी नज़र उसकी छोटी बेटी सुषमा पर तो नहीं पड़ गई है? अगर वो वाकई में यही सोच के चिंतित हो उठा रहा होगा तो इसमें उसका कोई दोष नहीं था। मेरे बारे में सब जानते थे इस लिए उनका ऐसा सोच लेना कोई बड़ी बात नहीं थी।

"कहिए छोटे कुंवर और क्या सेवा करें आपकी?" शंकर लाल खुल कर पूछने में शायद झिझक रहा था इस लिए उसने मेरे यहां आने का मकसद जानने के लिए ये तरीका अपनाया।

"सेवा करने की कोई ज़रूरत नहीं है काका।" मैंने उसकी बेचैनी और चिंता को दूर करने के इरादे से कहा____"जैसा कि मैंने आपको बताया था कि मैं यहां एक ज़रूरी काम से आया हूं। असल में मैं आपसे ये जानने आया हूं कि मुरारी के भाई जगन ने कितना कर्ज़ लिया था आपसे? ख़याल रहे, मुझे बिल्कुल सच सच ही बताना क्योंकि झूठ और दोगलापन मुझे ज़रा भी पसंद नहीं है।"

"ज...जगन???" शंकर लाल के साथ साथ उसका बेटा भी ये नाम सुन कर चौका। उधर कुछ पलों तक सोचने के बाद शंकर लाल ने कहा____"अच्छा अच्छा आप उस जगन की बात कर रहे हैं लेकिन....आप उसके कर्ज़ लेने के संबंध में क्यों पूछ रहे हैं कुंवर?"

"क्योंकि आपकी मेहरबानियों के चलते जगन की पत्नी और उसके बच्चे बेघर हो चुके हैं।" मैंने इस बार सख़्त भाव से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"अपना कर्ज़ा वसूलने के चक्कर में आपने ज़रा भी ये सोचना गवारा नहीं किया कि एक असहाय औरत बेघर होने के बाद अपने बच्चों को कहां रखेगी और उन्हें क्या खिला कर ज़िंदा रखेगी? क्या आपको लगता है कि ऐसा कर के आपने कोई महान काम किया है? अगर ये महान काम है तो फिर आपको ये भी समझ लेना चाहिए कि जो मैं करता हूं वो इससे भी ज़्यादा महान काम है। क्या आप चाहते हैं कि मैं अपनी महानता आपके ही घर पर दिखाऊं?"

मेरी बातें सुनते ही शंकर लाल सन्नाटे में आ गया। उधर उसका बेटा और पत्नी भी सन्न रह गई थी। फिर जैसे एकदम से उन्हें होश आया। कुछ दूरी पर खड़े उसके मुस्टंडे भी मेरी बातें सुन चुके थे जिसके चलते उन्हें किसी अनिष्ट की आशंका हो गई थी। अतः वो पूरी तरह मुस्तैद नज़र आने लगे थे।

"य...ये आप कैसी बातें कर रहे हैं छोटे कुंवर?" शंकर लाल ने बौखलाए हुए लहजे से कहा____"आपको ज़रूर कोई ग़लतफहमी हुई है। हमने ऐसा कुछ भी नहीं किया है।"

"ख़ामोश।" मैं एक झटके में चारपाई से उठ कर गुस्से में गुर्रा उठा____"मैंने पहले ही आपको बता दिया है कि मुझे झूठ और दोगलापन ज़रा भी पसंद नहीं है। इस लिए झूठ बोलने की कोशिश मत करना वरना अच्छा नहीं होगा।"

"ये आप ठीक नहीं कर रहे हैं कुंवर।" हीरा लाल नागवारी भरे लहजे से बोला_____"आप मेरे पिता जी से ऐसे लहजे में बात नहीं कर सकते।"

"अभी तुमने मेरा लहजा ठीक से देखा ही नहीं है हीरा लाल।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"मैं अगर अपने लहजे में आ गया तो तुम सोच भी नहीं सकते कि किस तरह का जलजला आ जाएगा तुम सबके जीवन में।"

"च...छोटे कुंवर भगवान के लिए ऐसा न कहें।" मेरी बातों से घबरा कर सहसा उसकी मां बोल पड़ी____"अगर कोई संगीन बात है तो उसे शांति से सुलझा लीजिए।"

"मैं यहां शांति से सुलझाने ही आया था काकी।" मैंने कहा____"लेकिन आपके पति महाशय को शायद शांति से बात करना पसंद नहीं है बल्कि झूठ बोलना पसंद है। इन्हें लगता है कि मुझे कुछ पता ही नहीं है।"

"मु...मुझे माफ़ कर दीजिए छोटे कुंवर।" शंकर लाल सहसा हाथ जोड़ कर बोल पड़ा____"पता नहीं कैसे मेरे मुंह से झूठ निकल गया? हां, ये सच है कि मुरारी के भाई जगन ने मुझसे कर्ज़ा लिया था और एक बार नहीं बल्कि चार चार बार लिया था। मैंने भी उसकी ज़मीनों को हड़पने की नीयत से कर्ज़ा दे दिया था। दोनों भाईयों की ज़मीनें नहर के पास हैं जिसके चलते उनमें फसल अच्छी होती है। अगर ऐसा न होता तो मैं बार बार उसे कर्ज़ा नहीं देता। मैं जानता था कि जुवां खेलने वाला जगन कभी कर्ज़ा नहीं चुका सकेगा और अंत में वही होगा जो मैं चाहता था। तय समय पर जब उसने कर्ज़ा नहीं लौटाया तो मैंने जबरन उसके खेतों पर कब्ज़ा कर लिया और फिर कागज़ातों पर उसका अंगूठा लगवा लिया।"

"और जब इतने पर भी तुम्हें तसल्ली नहीं हुई तो तुमने उसके बीवी बच्चों को उनके ही घर से निकाल दिया?" मैंने सख़्त नज़रों से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"उसके बीवी बच्चों को मरने के लिए छोड़ दिया तुमने। एक बार भी तुम्हें तरस न आया कि बेसहारा हो जाने के बाद उनका क्या होगा?"

शंकर लाल ने सिर झुका लिया। उसके बेटे हीरा लाल से भी मानों कुछ कहते ना बन पड़ा था। उधर शंकर लाल की पत्नी कभी अपने पति को देखती तो कभी अपने बेटे को। उसके चेहरे पर पीड़ा के भाव थे।

"ऐसी ज़मीन जायदाद और धन संपत्ति का क्या करोगे काका जिसे मरने के बाद अपने साथ ले कर ही नहीं जा सकोगे?" मैंने कहा____"लोगों की मज़बूरी का फ़ायदा उठा कर जो तुम पाप कर रहे हो ना असल में यही तुम्हारी कमाई है। इसी कमाई हुई दौलत को ले कर तुम ऊपर वाले के पास जाओगे और इतना तो तुम्हें भी पता है कि पाप की गठरी लिए जब इंसान ऊपर वाले के पास जाता है तो ऊपर वाला उसके साथ कैसा सुलूक करता है। ख़ैर तुम्हें तो ईश्वर ने पहले से ही इतना संपन्न बना रखा है तो फिर क्यों ऐसे कर्म करते हो? ईश्वर ने दिया है तो उससे ग़रीब इंसानों का भला करो। भला करने से ग़रीबों की दुआएं मिलेंगी, पुण्य होगा। वही दौलत ऊपर वाले के पास पहुंचने पर तुम्हारे काम आएगी।"

"आप बिल्कुल सही कह रहे हैं छोटे कुंवर।" शंकर लाल की बीवी ने अधीरता से कहा____"लेकिन इन बाप बेटों को कभी समझ नहीं आएगा। मैं तो इन्हें समझा समझा कर थक गई हूं। ये तो मुझे डरा धमका कर चुप ही करा देते हैं। अच्छा हुआ जो आज आप यहां आ गए और इनकी अकल ठिकाने लगा दी।"

"मैं ये नहीं कहता काकी कि जगन से इन्हें अपना कर्ज़ा नहीं उसूलना चाहिए था।" मैंने कहा____"वो तो इनका हक़ था क्योंकि उन्होंने उसे दिया था लेकिन जगन के गुज़र जाने के बाद उसके बीवी बच्चों को बेघर नहीं करना चाहिए था। ऐसा करना तो हद दर्जे का गुनाह होता है। हम भी ग़रीबों को कर्ज़ा देते हैं लेकिन हमने आज तक कभी किसी को नहीं सताया बल्कि हमेशा ऐसा होता है कि हम कर्ज़ा ही माफ़ कर देते हैं। मेरे पिता जी कभी किसी ग़रीब को तड़पते हुए नहीं देख सकते।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए छोटे कुंवर।" शंकर लाल ने कहा____"अब से ऐसा नहीं होगा। मुझे समझ आ गया है कि मैंने ऐसा कर के अब तक कितना अपराध किया है। मैं आज और अभी जगन का कर्ज़ा माफ़ करता हूं और उसका जो घर मैंने अपने क़ब्जे में लिया है उसे भी मुक्त करता हूं।"

"नहीं काका।" मैंने कहा____"सिर्फ घर ही नहीं बल्कि उसकी ज़मीनें भी। मुझे बताओ कितना कर्ज़ा होता है उसका?"

"अब आपसे झूठ नहीं बोलूंगा।" शंकर लाल थोड़ा झिझकते हुए बोला____"यही कोई इक्कीस हज़ार के क़रीब उसका ब्याज समेत कर्ज़ा होगा।"

"ठीक है।" मैंने अपनी जेब से रुपयों की एक गड्डी निकाली और उसमें से इक्कीस हज़ार निकाल कर शंकर लाल की तरफ बढ़ाते हुए कहा____"ये लो इक्कीस हज़ार और इसी वक्त अपने बही खाते से जगन के नाम का खाता खारिज़ करो।"

शंकर लाल ने कांपते हाथों से रुपए लिए और फिर पलट कर बैठके की तरफ चला गया। कुछ ही देर में वो बही खाते की मोटी सी किताब ले कर मेरे पास आ गया। मेरे सामने ही उसने वो किताब खोली। पन्ने पलटते हुए वो जल्द ही जगन के खाते पर पहुंचा और फिर क़लम से उस खाते पर कई आड़ी तिरछी लकीरें खींच दी। यानि अब जगन का खाता खारिज़ हो चुका था। उसके बाद वो फिर से वापस गया और इस बार कोठरी से कागज़ात ले कर आया।

"ये लीजिए कुंवर।" फिर उसने उन कागज़ातों को मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"ये जगन की ज़मीनों के वो कागज़ात हैं जिनमें मैंने उसका अंगूठा लगवाया था।"

कुछ देर इधर उधर की बातों के बाद मैं अपनी जीप में आ कर बैठ गया। मेरे बैठते ही भुवन, भीमा और बलवीर भी बैठ गए। अगले ही पल जीप लंबी चौड़ी चौगान में घूमने के बाद सड़क की तरफ बढ़ती चली गई।

"मुझे आपसे ये उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी पिता जी कि आप उससे इतना घबरा जाएंगे।" हीरा लाल ने अपने पिता से कहा____"और इतनी आसानी से उसके सामने हथियार डाल कर वही करने लग जाएंगे जो वो चाहता था। आपने ऐसा क्यों किया पिता जी?"

"अगर मैं ऐसा न करता तो बहुत बड़ी मुसीबत हो जाती बेटे।" शंकर लाल ने कहा____"वो दादा ठाकुर का बेटा ज़रूर है लेकिन अपने पिता की तरह वो नर्म मिज़ाज का हर्गिज़ नहीं है। मैंने अक्सर सुना है कि उसके आचरण बिल्कुल बड़े दादा ठाकुर जैसे हैं। जिस लड़के पर उसके अपने पिता का कोई ज़ोर नहीं चलता उस पर किसी और का ज़ोर कैसे चल सकता है? इस लिए ऐसे ख़तरनाक लड़के से दुश्मनी मोल लेना बुद्धिमानी नहीं थी बेटा। क्या हुआ अगर जगन की ज़मीनें हमारे हाथ से निकल गईं, कर्ज़ का रुपिया तो हमें मिल ही गया है उससे। अभी जीवन बहुत शेष है मेरे बेटे और गांव में बहुत से ग़रीब अभी बाकी हैं जिनके पास ज़मीनें हैं और इतना ही नहीं जो किसी न किसी मज़बूरी के चलते हमसे कर्ज़ा लेने आएंगे ही।"

"शायद आप सही कह रहे हैं पिता जी।" हीरा लाल अपने पिता की बातों को समझ कर हौले से मुस्कुराते हुए बोला____"सच में हमें ऐसे ख़तरनाक लड़के से दुश्मनी नहीं मोल लेना चाहिए था।"

✮✮✮✮

भुवन, भीमा और बलवीर को वापस उनके यथा स्थान पर छोड़ने के बाद मैं सीधा मुरारी काका के घर पहुंचा। घर के बाहर जीप रोक कर मैं उतरा और दरवाज़े के पास आ कर अभी खड़ा ही हुआ था कि तभी दरवाज़ा खुल गया। सामने रूपा नज़र आई जो मुझे देखते ही खुश हो गई।

घर के अंदर दाख़िल हो कर मैं आंगन में आ गया। सब लोग आंगन में ही बैठे हुए थे किंतु मुझे आया देख सब खड़े हो गए। सरोज और मालती के चेहरों पर उत्सुकता के भाव थे। दोनों को बारी बारी से देखने के बाद मैं सीधा मालती के क़रीब पहुंचा।

"काकी, ये रहे तुम्हारी ज़मीनों के वो कागज़ात जिनमें साहूकार शंकर लाल ने तुम्हारे पति जगन से अंगूठा लगवाया था।" मैंने कागज़ातों को मालती की तरफ बढ़ाते हुए कहा____"चाहो तो इन्हें रखे रहना या फिर जला देना और हां, अब तुम अपने बच्चों के साथ अपने घर में भी रह सकती हो। अब वो लोग तुम्हें कभी परेशान नहीं करेंगे।"

मालती ने ये सुना तो उसकी आंखें छलक पड़ीं। एकाएक वो मेरे पैरों में गिर पड़ी और फिर रोते हुए बोली____"तुम धन्य हो छोटे कुंवर। तुमने इतना कुछ हो जाने के बाद भी मेरा और मेरे बच्चों का भला किया। मैं जीवन भर तुम्हारे पांव धो कर भी पीती रहूं तब भी तुम्हारा ये एहसान नहीं चुका सकूंगी।"

"अरे! ये क्या कर रही हो काकी?" मैं उससे दूर हटते हुए बोला____"तुम्हें ये सब करने और कहने की ज़रूरत नहीं है। अपने घर में अपने बच्चों के साथ बेफ़िक्र हो कर रहो। अब तुम्हारे ऊपर किसी का कोई कर्ज़ा नहीं है इस लिए अपने खेतों पर आराम से फसल उगा कर जीवन यापन करो।"

कहने के साथ ही मैंने अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले और उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"ये कुछ पैसे भी रख लो। इससे अपनी थोड़ी बहुत ज़रूरतें पूरी कर लेना।"

मालती ने कांपते हाथों से पैसे ले लिए। उसकी आंखों में आंसू थे लेकिन खुशी के। वो मुझे इस तरह देखे जा रही थी जैसे मैं कोई फ़रिश्ता था जिसने एक ही पल में उसकी सारी समस्याओं का अंत कर दिया था। ख़ैर मैंने रूपा को चलने का इशारा किया और पलट कर दरवाज़े की तरफ बढ़ा ही था पीछे से सरोज काकी की आवाज़ सुन कर ठिठक गया।

"मुझे माफ़ कर दो वैभव।" फिर वो मेरे सामने आ कर बोली____"पिछले कुछ समय से तुम्हारे प्रति मेरा बर्ताव अच्छा नहीं था। मैंने तुम्हारे बारे में जाने क्या क्या सोच लिया था और बोल भी दिया था। मेरे मन में जाने कैसे ये बात बैठ गई थी कि तुम मनहूस हो और इसी लिए मेरी बेटी आज इस दुनिया में नहीं है। मैं भूल गई थी कि इंसान का जीना मरना तो ऊपर वाले की मर्ज़ी से होता है। मुझ अभागन को माफ़ कर दो बेटा।"

"तुम्हें माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है काकी।" मैंने कहा____"तुमने मेरे बारे में अगर ऐसा सोच लिया था तो ग़लत नहीं सोच लिया था। तुम्हारी जगह कोई भी होता तो शायद ऐसा ही सोचता। ख़ैर, ये मत समझना कि अनुराधा के ना रहने से तुमसे या तुम्हारे घर से मेरा कोई रिश्ता नहीं रहा, बल्कि ये रिश्ता तो हमेशा बना रहेगा। जब तक तुम्हारा बेटा बड़ा हो कर तुम्हारी ज़िम्मेदारी उठाने के लायक नहीं हो जाता तब तक तुम दोनों की ज़िम्मेदारी मेरी ही रहेगी। चलता हूं अब।"

कहने के साथ ही मैं दरवाज़े के बाहर निकल गया। मेरे पीछे पीछे रूपा भी आ गई थी। थोड़ी ही देर में हम दोनों जीप में बैठे अपने मकान की तरफ बढ़े चले जा रहे थे।

"मालती काकी के इस काम में तुम्हें कोई समस्या तो नहीं हुई ना?" रास्ते में रूपा ने मुझसे पूछा____"सब कुछ बिना किसी वाद विवाद के ही हो गया था न?"

"हां।" मैंने कहा____"उनकी इतनी औकात नहीं थी कि वो मुझे खाली हाथ वापस लौटा देते।"

"मुझे तो बड़ी घबराहट हो रही थी कि जाने वहां क्या होगा?" रूपा ने गंभीर हो कर कहा____"जल्बाज़ी में मैं ये भी भूल गई थी कि मुझे इस तरह तुम्हें ख़तरे में नहीं डालना चाहिए था। आख़िर किसी सफ़ेदपोश का ख़तरा तो है ही तुम्हें जो न जाने कब से तुम्हारी जान का दुश्मन बना बैठा है।"

"फ़िक्र मत करो।" मैंने कहा____"सफ़ेदपोश ऐसी चीज़ नहीं है जो सच्चे मर्द की तरह दिन के उजाले में सामने से आ कर मेरा सामना करे।"

"जो भी हो लेकिन हमें बिना सोचे समझे ऐसा क़दम नहीं उठाना चाहिए था।" रूपा ने सहसा भारी गले से कहा____"अगर आज तुम्हारे साथ कुछ उल्टा सीधा हो जाता तो मैं जीते जी मर जाती।"

"अरे! ऐसा कुछ नहीं होता?" मैंने कहा____"तुम बेकार में ये सब मत सोचो।"

"नहीं, आज के बाद मैं कभी तुम्हें इस तरह के कामों को करने को नहीं कहूंगी।" रूपा ने नम आंखों से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"सारी दुनिया का दुख दूर करने का ठेका नहीं लिया है तुमने। जिसके साथ जो होना है होता रहे, सबको अपने भाग्य के अनुसार ही सुख दुख मिलता है। उसके लिए तुम्हें अपनी जान को मुसीबत में डालने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

मैंने इस बार कुछ न कहा। थोड़ी ही देर में जीप मकान के बाहर पहुंच गई। हम दोनों अपनी अपनी तरफ से नीचे उतरे। एकाएक ही मेरी घूमती हुई नज़र एक जगह जा कर ठहर गई।

मकान की चौकीदारी करने वाले दोनों मज़दूर मकान के बाहर खाली मैदान में लकड़ी की चार मोटी मोटी बल्लियां गाड़ रहे थे। मैंने आवाज़ लगा कर पूछा कि वो क्या कर रहे हैं तो दोनों ने जवाब दिया कि वो घोंपा बना रहे हैं ताकि उसमें बैठ कर आस पास नज़र रख सकें। इसी तरह का एक घोंपा मकान के पिछले भाग में भी बना दिया था दोनों ने। मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया कि मेरी और मकान की सुरक्षा के लिए वो दोनों क्या क्या सोचते रहते हैं। दोनों की ईमानदारी पर मुझे बड़ा ही फक्र हुआ।



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TheBlackBlood

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रूपा जैसा भी कोई होता है क्या, इतना प्यारा भी कोई हो सकता है क्या,
मासूम है भोली हे गंगा सी पवित्र है रूपा।
Ye kahani jis time ki hai us time shayad paye jate the aise log..
Shandar update
Thanks
मेरे भाई, आज कल अधिक व्यस्त हूं। इसलिए कहानियां लिखने पढ़ने और प्रतिक्रिया करने का अवसर नहीं मिल रहा है। शीघ्र ही मिलते हैं।
Koi baat nahi...
Superb awesome update luvd it
Thanks
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 130
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दो हफ़्ते ऐसे ही गुज़र गए।
इन दो हफ़्तों में काफी कुछ बदलाव आ गया था। रूपा ने जिस तरह से मेरा ख़याल रखा था और जिस तरह से मेरा मनोबल बढ़ाया था उसके चलते मैं अब काफी बेहतर महसूस करने लगा था। अनुराधा की यादें मेरे दिल में थीं और जब भी उसकी याद आती थी तो मैं उदास सा हो जाता था लेकिन रूपा हर बार मुझे सम्हाल लेती थी। पिछले कुछ दिनों से हमारे बीच अच्छा ताल मेल हो गया था। अब मैं उससे किसी बात के लिए संकोच नहीं करता था। वो जब भी शरारतें करती तो मैं भी उसे छेड़ देता था। कहने का मतलब ये कि हम दोनों एक दूसरे से काफी सहज हो गए थे।

सरोज काकी भी अब पहले से काफी बेहतर थी। रूपा हर रोज़ उसके घर जाती थी और उसकी बेटी बन कर उसका ख़याल रखती थी। सरोज भी उसे अब खुल कर स्नेह करने लगी थी। उसका बेटा अनूप रूपा से काफी घुल मिल गया था। रूपा उसे अक्सर पढ़ाती थी और कहती थी कि अगले साल से वो विद्यालय में पढ़ेगा।

उधर मालती भी अपने बच्चों के साथ अपने घर में रहने लगी थी और अपने खेतों पर मेहनत करने लगी थी। इस काम में उसकी बड़ी और मझली बेटी भी उसकी मदद करतीं थी।

कहते हैं वक्त अगर किसी तरह का दुख देता है तो उस दुख को दूर करने का कोई न कोई इंतज़ाम भी करता है। देर से ही सही लेकिन इंसान अपने दुख और अपनी तकलीफ़ों से उबर कर जीवन में आगे बढ़ ही जाता है। सबकी तकलीफ़ें पूरी तरह भले ही दूर नहीं हुईं थी लेकिन काफी हद तक सामान्य हालत हो गई थी।

इधर मैं हर रोज़ अपने वचन को निभाते हुए हवेली में मां से मिलने जाता था जिससे मां भी खुश रहतीं थीं। भाभी को अपने मायके गए हुए पंद्रह दिन हो गए थे। मैं हर रोज़ मां से उनके बारे पूछता था कि वो कब आएंगी? जवाब में मां यही कहतीं कि उन्हें अपने माता पिता के पास कुछ समय रहने दो।

इधर पिता जी आज कल बहुत भाग दौड़ कर रहे थे। हर रोज़ मुंशी किशोरी लाल के साथ किसी न किसी काम से निकल जाते थे। सुरक्षा के लिए शेरा उनके साथ ही साए की तरह रहता था।

रूपचंद्र हर दिन अपनी बहन से मिलने दूध देने के बहाने आता था। अपनी बहन को मेरे साथ खुश देख वो भी खुश था। ज़ाहिर है वो सारी बातें अपने घर वालों को भी बताता था जिसके चलते उसके घर वाले भी खुश और बेफ़िक्र थे। उन्हें बस इसी बात की चिंता थी कि क्या होगा उस दिन जब मुझे, भाभी को और रूपा को कुल गुरु की भविष्यवाणी के बारे में पता चलेगा? रूपा के बारे में तो उन्हें यकीन था कि उसे कोई समस्या नहीं होगी किंतु इस बारे में मेरी और भाभी की क्या प्रतिक्रिया होगी यही सबसे बड़ी चिंता की बात थी सबके लिए।

अपने संबंधों को लोगों की नज़र में बेहतर दिखाने के लिए अक्सर दादा ठाकुर और गौरी शंकर एक साथ कहीं न कहीं जाते हुए लोगों को नज़र आते जिसके चलते लोग आपस में दबी ज़ुबान में कुछ न कुछ बोलते थे। हालाकि जैसे जैसे दिन गुज़र रहे थे लोगों की सोच और राय बदलती जा रही थी। इसी बीच पिता जी एक दिन गौरी शंकर के साथ उसकी परेशानी को दूर करने के लिए उस गांव में गए जहां पर गौरी शंकर के बड़े भाईयों की बेटियों का रिश्ता हुआ था। पिता जी के साथ रहने का ही ऐसा असर हुआ था कि उन लोगों ने फ़ौरन ही रिश्ते को फिर से बनाने के लिए हां कह दिया था। ये देख गौरी शंकर बड़ा खुश हुआ था। उसे पहले से ही इस बात का यकीन था कि दादा ठाकुर का अगर दखल हो गया तो उसकी ये सबसे बड़ी समस्या चुटकियों में दूर हो जाएगी और वही हुआ भी था। गौरी शंकर ने जब ये खुश ख़बरी अपने घर की औरतों को सुनाई तो पूरे घर में दर्द मिश्रित ख़ुशी का माहौल छा गया था।

ऐसे ही एक दिन जब मैं रूपा को सरोज के घर से वापस मकान की तरफ ला रहा था तो रूपा को थोड़ा उदास देखा। आम तौर पर वो जब भी मेरे साथ होती थी तो खुश ही रहती थी लेकिन आज उसके चेहरे पर उदासी थी। मैं जानता था कि पिछले बीस दिनों से वो मेरे साथ यहां रह रही थी और अपने घर नहीं गई थी। यूं तो हर रोज़ ही वो अपने भाई से मिलती थी लेकिन बाकी घर वालों से वो नहीं मिली थी। मैं समझ सकता था कि उसकी उदासी का कारण शायद यही था।

"क्या हुआ?" मैंने अंजान बनते हुए उससे पूछा____"तुम उदास नज़र आ रही हो आज? क्या कुछ हुआ है अथवा कोई ऐसी बात है जिसके चलते तुम उदास हो गई हो?"

"ऐसी कोई बता नहीं है।" उसने अनमने भाव से जवाब दिया____"अपने प्रियतम के साथ हूं तो भला मैं क्यों उदास होऊंगी?"

"झूठ मत बोलो।" मैंने कहा____"मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम किसी बात से उदास हो। तुम्हारे चेहरे पर आज वैसा नूर नहीं दिख रहा जैसे हर रोज़ दिखता है। बताओ ना क्या बात है? क्या घर वालों की बहुत याद आती है?"

"हां थोड़ी सी आती है।" रूपा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"ख़ैर जाने दो, देखो हम पहुंच गए अपने घर।"

जीप जैसे ही रुकी तो रूपा अपनी तरफ से उतर गई और फिर बोली____"मैं चाय बनाती हूं, तब तक तुम हाथ मुंह धो लो।"

इतना कह कर वो चली गई किंतु मैं अब सोच में पड़ गया था। आज उसके चेहरे की उदासी देख कर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। अचानक ही ये सोच कर बुरा लगने लगा था कि मेरी वजह से वो कितना कुछ सह रही थी। पिछले बीस दिनों से वो मेरा एक बीवी की तरह ख़याल रख रही थी। अपने और मेरे कपड़े धोना, मेरी छोटी से छोटी बात का ख़याल रखना। मेरे हिस्से के काम भी वो ख़ुद ही कर रही थी। एक साथ रहने पर भी हमने अपनी मर्यादा भंग नहीं की थी और ना ही उसने कभी इसकी तरफ मेरा ध्यान आकर्षित किया था। हम दोनों ही नहीं चाहते थे कि हम अपने घर वालों के भरोसे को तोड़ कोई नाजायज़ क़दम उठाएं।

ख़ैर, एकदम से मुझे एहसास हुआ कि अंजाने में ही मेरे ऊपर उसके कितने एहसास हो गए हैं जिन्हें चुका पाना शायद ही कभी मुमकिन हो सकेगा।

जीप से उतर कर मैं गुसलखाने की तरफ चला गया। वहां से हाथ मुंह धो कर आया और अंदर ही चला गया। अंदर रूपा चूल्हे के पास बैठी चाय बना रही थी। मुझे आया देख उसके सूखे लबों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई। मैं कुर्सी को खिसका कर उसके पास ही बैठ गया। उसने चाय छान कर कप में डाली और मेरी तरफ बढ़ा दिया।

"कल सुबह अपना सामान समेट कर थैले में डाल लेना।" मैंने उसके हाथ से चाय का कप लेने के बाद कहा____"कल सुबह तुम्हें वापस अपने घर जाना है।"

"य...ये क्या कह रहे हो तुम?" रूपा मेरी बात सुन कर चौंकी____"क्या मुझसे कोई भूल हो गई है? क्या मेरे यहां रहने से तुम्हें तकलीफ़ होती है?

"ऐसी कोई बात नहीं है रूपा।" मैंने कहा____"बल्कि सच ये है कि अब मैं और ज़्यादा तुम्हें तकलीफ़ नहीं दे सकता। मेरी बेहतरी के लिए तुम पिछले बीस दिनों से अपना घर परिवार छोड़े मेरे साथ हो और मेरा हर तरह से ख़याल रख रही हो। इस लिए अब बहुत हुआ, मैं अब बिल्कुल ठीक हूं। मेरा ख़याल रखने के लिए तुमने इतने दिनों से इतना कुछ सहा है और मैंने एक बार भी तुम्हारी तकलीफ़ों के बारे में नहीं सोचा। मुझे अब जा कर एहसास हो रहा है कि कितना स्वार्थी हूं मैं।"

"तुम ये कैसी बातें कर रहे हो वैभव?" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मैंने जो कुछ किया है वो मेरा फर्ज़ था, मेरा कर्तव्य था। तुम कोई ग़ैर नहीं हो, मेरे अपने हो। मेरे दिल के सरताज हो, मेरे सब कुछ हो। अपने महबूब के लिए मैंने जो भी किया है उससे मुझे अत्यंत खुशी मिली है और मैं चाहती हूं कि सारी ज़िंदगी मैं इसी तरह अपने दिलबर की सेवा करूं।"

"ठीक है, लेकिन मेरा भी तो कोई फर्ज़ होता है।" मैंने कहा____"तुम मुझसे प्रेम करती हो तो मेरे दिल में भी तो तुम्हारे प्रति वैसी ही भावनाएं हैं। मैं भी चाहता हूं कि जो लड़की मुझे इतना प्रेम करती है और मेरा इतना ख़याल रखती है उसकी ख़ुशी के लिए मैं भी कुछ करूं। उसे बहुत सारा प्यार करूं और उसे अपनी धड़कन बना लूं।"

"हां तो बना लो ना।" रूपा के चेहरे पर एकाएक ख़ुशी की चमक उभर आई____"मैंने कब मना किया है कि मुझे प्यार ना करो अथवा मुझे अपनी धड़कन न बनाओ? अरे! मैं तो कब से तरस रही हूं अपने दिलबर की आगोश में समा जाने के लिए।"

"आगोश में समाने का अभी वक्त नहीं आया है जानेमन।" मैंने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"जिस दिन आएगा उस दिन देखूंगा कि कितनी तड़प है तुम्हारे अंदर। फिलहाल तो मैं ये चाहता हूं कि तुम अपने घर जाओ और अपने परिवार के लोगों से मिलो।"

"हाय! मेरा महबूब कितना ज़ालिम है क्या करूं?" रूपा ने ठंडी आह सी भरी____"ख़ैर कोई बात नहीं सरकार। जब इतना इंतज़ार किया है तो थोड़ा समय और सही।"

"आज यहां पर तुम्हारी आख़िरी रात है।" मैंने कहा____"कल सुबह मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगा।"

"तो क्या तुम यहीं रहोगे?" रूपा ने हैरानी से देखा मुझे____"क्या हवेली नहीं जाओगे तुम? देखो, अगर तुम ऐसा करने का सोच रखे हो तो फिर मैं भी अपने घर नहीं जाऊंगी। यहीं रहूंगी, तुम्हारे साथ।"

"अब ये क्या बात हुई?" मैंने कहा____"देखो, अब तुम्हें मेरे साथ यहां रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हारे प्रयासों से और तुम्हारे सच्चे स्नेह के चलते मैं अब बिल्कुल ठीक हूं। इस लिए तुम्हें अब मेरे साथ रहने की ज़रूरत नहीं है। अब तुम्हारा अपने घर में ही रहना उचित होगा। वैसे भी मेरे खातिर तुमने और तुम्हारे घर वालों ने बहुत बड़ा क़दम उठाया था। ऐसा हर कोई नहीं कर सकता। मुझे ख़ुशी है कि तुमने और तुम्हारे घर वालों ने सच्चे दिल से मेरी बेहतरी के बारे में सोचा। अब मुझे भी ये सोचना चाहिए कि इस सबके चलते गांव समाज के लोग तुम्हारे और तुम्हारे घर वालों के बारे में कोई ग़लत बात न सोचें।"

"मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है।" रूपा ने दृढ़ता से कहा____"और ना ही मेरे घर वालों को है। वैसे भी तुमने तो सुना ही होगा कि जब मियां बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी? जिस दिन हम दोनों शादी के बंधन में बंध जाएंगे और दोनों परिवारों के बीच एक अटूट रिश्ता जुड़ जाएगा तो गांव समाज के लोगों के मुंह अपने आप ही बंद हो जाएंगे।"

"बहुत खूब।" मैंने कहा____"मेरी होने वाली बीवी शादी से पहले ही अपने होने वाले पति से ज़ुबान लड़ाते हुए बहस किए जा रही है। धन्य हो आज की नारी।"

"चिंता मत करो पति देव।" रूपा ने मुस्कुराते हुए कहा____"शादी के बाद आपकी ये बीवी आपको शिकायत का कोई मौका नहीं देगी।"

"क्या पता।" मैंने गहरी सांस ली____"जब शादी के पहले ये हाल है तो बाद में ऊपर वाला ही जाने क्या होगा। तुम्हें पता है मेरी चाची तो एक दिन मुझे चिढ़ा भी रहीं थी कि मैं अभी से जोरु का गुलाम बनने की कोशिश करने लगा हूं।"

"चाची जी से कहना कि उनकी होने वाली बहू उनके बेटे को अपना गुलाम नहीं बनाएगी।" रूपा ने कहा____"बल्कि वो अपने पति की दासी बन कर ही रहेगी।"

"ग़लत बात।" मैंने कहा____"पत्नी को दासी बना के रखना गिरे हुए लोगों की निम्न दर्जे की मानसिकता है। कम से कम ठाकुर वैभव सिंह की मानसिकता ऐसी गिरी हुई हर्गिज़ नहीं हो सकती। सच्चे दिल से प्रेम करने वाली को तो बस अपने हृदय में ही बसा के रखूंगा मैं।"

"फिर तो मैं यही समझूंगी कि जीवन सफल हो गया मेरा।" रूपा ने गदगद भाव से मुझे देखते हुए कहा____"मेरे दिलबर ने इतनी बड़ी बात कह दी। जी करता है अपने महबूब के होठों को चूम लूं।"

"घूम फिर कर तुम्हारी सुई वहीं आ कर अटक जाती है।" मैंने उसे घूर कर देखा____"बहुत बिगड़ गई हो तुम।"

"क्या करें जनाब?" रूपा ने शरारत से कहा____"तुम सुधरने की राह पर चल पड़े और हम बिगड़ने की राह पर। है ना कमाल की बात?"

"कमाल की बच्ची रुक अभी बताता हूं तुझे।" कहने के साथ ही मैं उसकी तरफ झपटा तो वो चाय का कप छोड़ अंदर कमरे की तरफ भाग चली। मैं भी उसके पीछे लपका।

रूपा मेरे कमरे में दाख़िल हो कर अभी दरवाज़े को बंद ही करने जा रही थी कि मैंने दरवाज़े पर अपने दोनों हाथ जमा दिए जिससे रूपा दरवाज़े को पूरी ताक़त लगाने के बावजूद भी बंद न कर सकी। उसकी हंसी और चीखें पूरे मकान में गूंजने लगीं थी। मैंने थोड़ी सी ताक़त लगा कर उसे पीछे धकेला और कमरे के अंदर दाख़िल हो गया। उधर रूपा ने जब देखा कि मैं अंदर आ गया हूं तो वो पलट कर पीछे की तरफ भागी किंतु ज़्यादा देर तक वो मुझसे भाग न सकी। जल्दी ही मैंने उसे पकड़ लिया। रूपा थोड़ी सी ही भाग दौड़ में बुरी तरह हांफने लगी थी। जैसे ही मैंने उसे पकड़ा तो एकाएक उसने खुद को मेरे हवाले कर दिया।

"अब दिखाऊं मैं अपना कमाल?" मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ कर ऊपर दीवार में सटाते हुए कहा तो दीवार में पीठ के बल चिपकी रूपा ने मेरी आंखों में देखते हुए बड़ी मोहब्बत से कहा____"हां दिखाओ ना।"

रूपा अपलक मुझे ही देखने लगी थी। उसकी सांसें भारी हो चलीं थी जिसके चलते उसके सीने के उभार ऊपर नीचे हो रहे थे। उसके खूबसूरत चेहरे पर पसीने की बूंदें किसी शबनम की तरह झिलमिला रहीं थी। आज उसे इतने क़रीब से देख मैं खोने सा लगा लेकिन फिर जल्दी ही मैंने खुद को सम्हाला और उसको छोड़ कर उससे थोड़ा दूर हो गया।

"क्या हुआ?" उसने मुस्कुराते हुए कहा____"डर गए क्या मुझसे?"

"डर नहीं गया हूं।" मैंने थोड़ा संजीदा हो कर कहा____"लेकिन ये सही नहीं है। हम दोनों को अपनी सीमाओं का भी ख़याल रहना चाहिए। हम दोनों के घर वालों ने यही विश्वास कर रखा होगा कि हम ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिसके चलते मर्यादा का उल्लंघन हो और समाज के लोग तरह तरह की बातें करने लगें।"

"हां मैं समझती हूं।" रूपा ने भी खुद को सम्हालते हुए गंभीर हो कर कहा____"और सच कहूं तो मेरा भी ऐसा कोई इरादा नहीं था। मैं तो बस तुम्हें छेड़ रही थी। अगर तुम्हें इस सबसे बुरा लगा हो तो माफ़ कर दो मुझे।"

"अरे! माफ़ी मत मांगो तुम।" मैंने कहा____"मुझे पता है कि तुम बस नोक झोंक ही कर रही थी। ख़ैर छोड़ो, आओ अब चलें। हम दोनों की चाय ठंडी हो गई होगी।"

"चलो मैं फिर से गर्म कर देती हूं।" कहने के साथ ही रूपा दरवाज़े की तरफ बढ़ चली। मैं भी उसके पीछे पीछे बाहर आ गया।

रात को खाना खाने के बाद हम दोनों कमरे में आ गए। रूपा अपना सामान इकट्ठा करने लगी और फिर उन्हें एक थैले में रखने लगी। उसके ज़ोर देने पर मैं भी हवेली जाने के लिए तैयार हो गया था। अपना सामान थैले में डालने के बाद वो मेरे कपड़े भी समेटने लगी। थोड़ी ही देर में सामान को एक जगह रखने के बाद वो नीचे ज़मीन में बिछे बिस्तर पर लेट गई। कुछ देर इधर उधर की बातें हुईं उसके बाद हम दोनों सोने की कोशिश करने लगे। रात देर से निदिया रानी ने आ कर हमें अपनी आगोश में लिया।

✮✮✮✮

सुबह क़रीब आठ बजे हम दोनों मकान से निकलने ही वाले थे कि रूपचंद्र डल्लू में दूध लिए आ गया। मुझे जीप में सामान रखते देख वो एकदम से चौंक पड़ा। उसके पूछने पर मैंने बताया कि मैं आज से हवेली में ही रहूंगा इस लिए वो भी अपनी बहन को ले कर घर जाए। पहले तो रूपचंद्र को लगा कि उसकी बहन और मेरे बीच कोई झगड़ा हो गया है जिसके चलते मैं ऐसा कह रहा हूं किंतु फिर उसे यकीन हो गया कि ऐसी कोई बात नहीं है। वो सबसे ज़्यादा ये जान कर खुश हुआ कि उसकी बहन की कोशिशें रंग लाईं जिसके चलते अब मैं बेहतर हो गया हूं और इतना ही नहीं ख़ुशी ख़ुशी हवेली भी लौट रहा हूं।

बहरहाल, कुछ ही देर में ज़रूरी सामान रख गया। रूपचंद्र मोटर साईकिल से आया था इस लिए सामान के साथ रूपा को मोटर साईकिल में बैठा कर ले जाना उसके लिए संभव नहीं था। अतः तय ये हुआ कि रूपा अपने सामान को ले कर मेरे साथ जीप में ही चलेगी।

मकान की चौकीदारी कर रहे मज़दूरों को मैंने कुछ ज़रूरी निर्देश दिए और फिर चल पड़ा वहां से। रूपचंद्र अपनी मोटर साईकिल से आगे आगे चला जा रहा था जबकि मैं और रूपा जीप में बैठे उसके पीछे थे। रूपा के चेहरे पर उदासी के भाव थे और वो जाने किन ख़यालों में खो गई थी?

"क्या हुआ?" मैंने उसकी तरफ एक नज़र डालने के बाद कहा____"अब क्यों उदास नज़र आ रही हो?"

"उदास न होऊं तो क्या करूं?" रूपा ने मेरी तरफ देखा____"इतने दिनों से तुम्हारे साथ रह रही थी तो बड़ा खुश थी लेकिन अब फिर से तुम मुझसे दूर हो जाओगे। इसके पहले तो किसी तरह तुम्हारे बिना रह ही लेती थी लेकिन अब अकेले नहीं रहा जाएगा मुझसे।"

"अच्छा तो ये सोच कर उदास हो?" मैंने हौले से मुस्कुरा कर कहा____"अरे! जिसके पास रूपचंद्र जैसा प्यार करने वाला भाई हो उसे किसी बात से उदास होने की क्या ज़रूरत है?"

"हां ये तो है।" रूपा ने उसी उदासी से कहा____"लेकिन इसमें मेरे भैया भी क्या कर सकेंगे?"

"अरे! कमाल करती हो तुम।" मैंने कहा____"क्या तुम इतना जल्दी ये भूल गई कि तुम्हारा भाई तुम्हारी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर सकता है? याद करो कि उसी ने तुम्हें मुझसे मिलाने का इंतज़ाम किया था। मुझे यकीन है कि आगे भी वो तुम्हारी ख़ुशी के लिए ऐसा ही करेगा।"

"हां लेकिन मैं अपने भैया से ये नहीं कह सकूंगी कि मुझे तुम्हारी याद आती है और मैं तुमसे मिलना चाहती हूं।।" रूपा ने कहा____"और लाज शर्म के चलते जब मैं ऐसा कह ही न सकूंगी तो वो भला कैसे कोई इंतज़ाम करेंगे?"

"तो क्या इसके पहले उसने तुम्हारे कहने पर मुझसे मिलवाने का इंतज़ाम किया था?" मैंने पूछा।

"न...नहीं तो।" रूपा ने झट से कहा____"मैंने तो उनसे ऐसा कुछ भी नहीं कहा था।"

"फिर भी उसने तुम्हें मुझसे मिलवाया था ना।" मैंने कहा____"इसका मतलब यही हुआ कि उसे अपनी बहन की चाहत का और उसकी ख़ुशी का बखूबी ख़याल था इसी लिए उसने बिना तुम्हारे कुछ कहे ही ऐसा किया था। यकीन मानो वो आगे भी ऐसा ही करेगा और तुम्हें उससे कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।"

"हां शायद तुम सही कह रहे हो।" रूपा के चेहरे पर एकाएक ख़ुशी की चमक उभर आई____"मेरे भैया ज़रूर मेरी ख़ुशी के लिए फिर से तुमसे मिलाने का कोई इंतज़ाम कर देंगे। कितने अच्छे हैं ना मेरे भैया?"

"हां।" मैं उसकी आख़िरी बात पर मुस्कुराए बिना न रह सका____"काश! दुनिया की हर बहन के पास तुम्हारे भाई जैसा भाई हो जो अपनी बहन के लिए इतने महान काम करे।"

"अब तुम मेरे भैया पर व्यंग्य कर रहे हो।" रूपा ने मुझे घूरते हुए कहा____"ऐसा कैसे कर सकते हो तुम? तुम्हें अभी पता नहीं है कि मेरे भैया कितने अच्छे हैं।"

"अरे! मैं कहां कुछ कह रहा हूं तुम्हारे भाई को?" मैं उसकी बात से एकदम से चौंक पड़ा____"मैं भी तो वही कह रहा हूं कि तुम्हारा भाई बहुत अच्छा है।"

"अच्छा ये बताओ अब कब मिलोगे?" रूपा ने एकाएक बड़ी उत्सुकता से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"पहले की तरह मुझे तड़पाओगे तो नहीं ना?"

"एक काम करना तुम।" मैंने कहा____"अगर मैं तुमसे ना मिलूं अथवा अगर तुम्हें तड़पाऊं तो तुम सीधा हवेली आ जाना। वहां तो तुम मुझसे मिल ही लोगी।"

"हाय राम! ये क्या कह रहे हो?" रूपा एकदम से आंखें फैला कर बोली____"न बाबा न, हवेली नहीं आऊंगी मैं। वहां सब लोग होंगे और मुझे इस तरह हवेली में आते देखेंगे तो सब क्या सोचेंगे मेरे बारे में? मैं तो शर्म से ही मर जाऊंगी।"

"अरे! क्या सोचेंगे वो...यही ना कि उनकी होने वाली बहू बिना ब्याह किए ही अपने ससुराल में पधार गई है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"और ऐसा शायद इस लिए कि उनकी होने वाली बहू को अपने होने वाले पति से दूरी सहन नहीं हुई। इस लिए ब्याह होने से पहले ही ससुराल आ गई है।"

"हाय राम! कितने ख़राब हो तुम।" रूपा ने बुरी तरह लजाते हुए और झेंपते हुए कहा____"क्या तुम मुझे ऐसी वैसी समझते हो जो ऐसा कह रहे हो?"

"लो कर लो बात।" मैं उसकी दशा पर मन ही मन हंसते हुए बोला____"मैंने कब तुम्हें ऐसा वैसा समझा?"

"अब बातें न बनाओ तुम।" रूपा ने मुंह बनाते हुए कहा____"अच्छा मज़ाक मत करो और बताओ ना कब मिलोगे? मैं सच कह रही हूं घर में मुझसे अकेले न रहा जाएगा अब।"

"पर रहना तो पड़ेगा ना।" मैंने उसे ज़्यादा परेशान करना ठीक नहीं समझा इस लिए कहा____"हम दोनों को ही समाज के नियमों का पालन करना होगा वरना हम दोनों के ही खानदान पर समाज के लोग कीचड़ उछालने लगेंगे। क्या तुम्हें ये अच्छा लगेगा?"

"हां ये तो तुम सही कह रहे हो।" रूपा ने एकाएक गहरी सांस ली____"लेकिन पिछले बीस दिनों से तो हम दोनों साथ ही रहे हैं। अभी तक तो किसी ने कीचड़ नहीं उछाला हमारे खानदान पर?"

"हो सकता है कि लोगों को इस बारे में पता ही न चला हो।" मैंने कहा____"लेकिन ज़रूरी नहीं कि ऐसी बातें आगे भी लोगों को पता नहीं चलेंगी। तुमने भी सुना ही होगा कि इश्क़ मुश्क ज़्यादा दिनों तक दुनिया वालों से छुपे नहीं रहते।"

"हाय राम! अब क्या होगा?" रूपा मानों हताश हो उठी____"अगर ऐसा है तो फिर कैसे हमारी मुलाक़ात हो पाएगी? मैं सच कह रही हूं, मैं अब अपने कमरे में अकेले नहीं रह पाऊंगी। मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी। आख़िर हमारे मिलने का कोई तो उपाय होगा।"

"फ़िक्र मत करो।" मैंने उसकी हताशा को देखते हुए कहा____"कोई न कोई उपाय सोचूंगा मैं और हां, तुम भी बेकार में खुद को दुखी मत रखना। तुम तो वैसे भी एक महान और बहादुर लड़की हो यार। जब इतने समय तक इतना कुछ सहा है तो थोड़ा समय और सह लेना। हालाकि अब तो दुखी होने जैसी बात भी नहीं है क्योंकि हमारा मिलना ब्याह के रूप में तय ही हो चुका है। इस लिए ख़ुशी मन से उस तय वक्त का इंतज़ार करो। बाकी उसके पहले एक दूसरे से मिलने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लिया जाएगा।"

"ठीक है।" रूपा की हताशा दूर होती नज़र आई____"मैं सम्हाल लूंगी खुद को लेकिन तुम जल्दी ही मिलने का कोई रास्ता निकाल लेना।"

मैंने पलकें झपका कर हां कहा और सामने देखने लगा। जीप गांव में दाख़िल हो चुकी थी। चंद्रकांत का घर आ गया था और उसके बाद रूपा का ही घर था। अचानक रूपा को जैसे कुछ याद आया तो उसने चौंक कर मेरी तरफ देखा।

"अरे! हां मैं तो भूल ही गई।" फिर उसने जल्दी से कहा____"आते समय मां (सरोज) से नहीं मिल पाई मैं। आज जब मैं उनके घर नहीं पहुंचूंगी तो वो ज़रूर परेशान हो जाएंगी मेरे लिए। मुझे ध्यान ही नहीं रहा था उनसे मिलने का और ये बताने का कि मैं घर जा रही हूं तो अब से उनसे नहीं मिल पाऊंगी।"

"चिंता मत करो।" मैंने कहा____"मैं दोपहर के बाद एक चक्कर लगा लूंगा उसके घर का और उसे बता दूंगा तुम्हारे बारे में। ख़ैर देखो तुम्हारा घर भी आ गया। तुम्हारा भाई घर के बाहर ही सड़क पर खड़ा तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है।"

कुछ ही पलों में जीप रूपचंद्र के सामने पहुंच कर रुकी। जीप के रुकते ही रूपा चुपचाप उतर गई। उधर रूपचंद्र जीप से रूपा का जो थोड़ा बहुत सामान था उसे निकालने लगा। रूपा ने एक नज़र अपने भाई की तरफ डाली और फिर जल्दी से मेरी तरफ देखा। चेहरे पर जबरन ख़ुशी के भाव लाने का प्रयास कर रही थी वो। उसकी आंखों में झिलमिलाते आंसू नज़र आए मुझे। ये देख मुझे भी अच्छा नहीं लगा। अगर रूपचंद्र न होता तो यकीनन अभी वो मुझसे कुछ कहती। फिर उसने आंखों के इशारों से मुझे समझाने का प्रयास किया कि मैं जल्दी ही उससे मिलने का कोई रास्ता निकाल लूंगा।

थोड़ी ही देर में जब रूपचंद्र जीप से उसका सामान निकाल चुका तो वो थैला लिए मेरे क़रीब आया। मैंने देखा उसके चेहरे पर खुशी तो थी किंतु झिझक के भाव भी थे, बोला____"मेरी बहन से अगर कोई भूल हुई हो तो उसे नादान और नासमझ समझ कर माफ़ कर देना वैभव।"

"ऐसी कोई बात नहीं है भाई।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"सच तो ये है कि भूल तो हमेशा मुझसे हुई है उसकी सच्ची भावनाओं को समझने में। ख़ैर मुझे खुशी है कि उसके जैसी नेकदिल लड़की को ऊपर वाले ने मेरी किस्मत में लिखा है।"

मेरी बात सुन कर रूपचंद्र के चेहरे पर मौजूद ख़ुशी में इज़ाफा होता नज़र आया। फिर उसने अलविदा कहा और अपनी बहन को ले कर घर के अंदर की तरफ बढ़ता चला गया। उसके जाने के बाद मैंने भी जीप को हवेली की तरफ बढ़ा दिया।

रास्ते में मैं सोच रहा था कि जिस तरह मुझमें बदलाव आया था उसी तरह रूपचंद्र में भी बदलाव आया था। किसी जादू की तरह बदल गया था वो और अब अपनी बहन की ख़ुशी के लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार था। ख़ैर यही सब सोचते हुए मैं हवेली पहुंच गया।




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रूपा ने चाय के प्याले को झट से एक तरफ रखा और फिर झपट कर मुझे खुद से छुपका लिया। मुझे इस तरह दुखी होते देख उसकी आंखें भर आईं थी। उसका हृदय तड़प उठा था। ये सोच कर उसकी आंखें छलक पड़ीं कि जिसे वो इतना प्रेम करती है उसकी तकलीफ़ों को वो इतनी कोशिश के बाद भी दूर नहीं कर पा रही है। मन ही मन उसने अपनी देवी मां को याद किया और उनसे मेरी तकलीफ़ों को दूर करने की मिन्नतें करने लगी।


अब आगे....


शाम का अंधेरा घिर चुका था।
गौरी शंकर अपने घर की बैठक में बैठा चाय पी रहा था। बैठक में उसके अलावा रूपचंद्र और घर की बुजुर्ग औरतें यानि फूलवती, ललिता देवी, सुनैना देवी और विमला देवी थीं। घर की दोनों बहुएं और सभी लड़कियां अंदर थीं। एक घंटे पहले गौरी शंकर अपने घर आया था। उसने सबको बताया था कि दादा ठाकुर उसे अपने कुल गुरु के पास ले गए थे। उसके बाद वहां पर जो भी बातें हुईं थी वो सब गौरी शंकर सभी को बता चुका था जिसे सुनने के बाद चारो औरतें चकित रह गईं थी। रूपचंद्र का भी यही हाल था।

"बड़े आश्चर्य की बात है कि दादा ठाकुर अपने कुल गुरु द्वारा की गई भविष्यवाणी पर इतना विश्वास करते हैं।" फूलवती ने कहा____"और इतना ही नहीं उस भविष्यवाणी के अनुसार वो ऐसा करने को भी तैयार हैं।"

"कुल गुरु द्वारा की गई भविष्यवाणियां अब तक सच हुईं हैं भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"यही वजह है कि दादा ठाकुर कुल गुरु की बातों पर इतना भरोसा करते हैं। वैसे भी उनके गुरु जी कोई मामूली व्यक्ति नहीं हैं बल्कि सिद्ध पुरुष हैं। इस लिए उनकी बातों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।"

"तो क्या अब हमें भी इस भविष्यवाणी के अनुसार ही चलना होगा?" फूलवती ने कहा____"क्या तुम इस सबके लिए सहमत हो गए हो?"

"सहमत होने के अलावा मेरे पास कोई चारा ही नहीं था भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"आप भी जानती हैं कि इस समय हमारी जो स्थिति है उसके चलते हम दादा ठाकुर के किसी भी फ़ैसले पर ना तो सवाल उठा सकते हैं और ना ही कोई विरोध कर सकते हैं।"

"तो क्या मैं ये समझूं कि दादा ठाकुर हमारी मज़बूरी का फ़ायदा उठा रहे हैं?" फूलवती ने सहसा नाराज़गी अख़्तियार करते हुए कहा____"और चाहते हैं कि हम चुपचाप वही करें जो वो करने को कहें?"

"ऐसी बात नहीं है भौजी।" गौरी शंकर ने दृढ़ता से कहा____"दादा ठाकुर ऐसे इंसान नहीं हैं जो किसी की मज़बूरी का फ़ायदा उठाने का ख़याल भी अपने ज़हन में लाएं।"

"तो फिर कैसी बात है गौरी?" फूलवती उसी नाराज़गी से बोलीं____"उन्हें अपने कुल गुरु के द्वारा पहले ही पता चल गया था इस सबके बारे में तो उन्होंने इस बारे में तुम्हें क्यों नहीं बताया?"

"वो सब कुछ बताना चाहते थे भौजी।" गौरी शंकर ने जैसे समझाते हुए कहा____"किंतु उन्होंने ये सोच कर नहीं बताया था कि मैं और आप सब उनके बारे में वही सब सोच बैठेंगे जो इस वक्त आप सोच रही हैं। इस लिए उन्होंने बहुत सोच समझ कर इसका एक हल निकाला और वो हल यही था कि वो मुझे अपने कुल गुरु के पास ले जाएं और उनके द्वारा ही इस सबके बारे में मुझे अवगत कराएं।"

"वाह! बहुत खूब।" फूलवती ने कहा___"हमें बुद्धू बनाने का क्या शानदार तरीका अपनाया है दादा ठाकुर ने।"

"ऐसी बात नहीं है भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"हम ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर ऐसे इंसान नहीं हैं। कभी कभी वक्त और हालात ऐसे बन जाते हैं कि हम सही को ग़लत और अच्छे को बुरा समझ लेते हैं। आप हम सबसे बड़ी हैं और इतने सालों से आपने भी दादा ठाकुर के बारे में बहुत कुछ सुना ही होगा। सच सच बताइए, क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि दादा ठाकुर ने किसी के साथ कुछ ग़लत किया है अथवा कभी किसी की मज़बूरी का फ़ायदा उठाया है?"

गौरी शंकर के इस सवाल पर फूलवती ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी ख़ामोशी बता रही थी कि दादा ठाकुर के बारे में उसने कभी भी ऐसा कुछ नहीं सुना था।

"उन्हें तो पता भी नहीं था कि वैभव किसी लड़की से प्रेम करता है।" गौरी शंकर ने आगे कहा____"उनके मन में सिर्फ इतना ही था कि हमारी बेटी ही उनकी बहू बनेगी लेकिन जब वो अपने कुल गुरु से मिले और गुरु जी ने उन्हें ये बताया कि वैभव के जीवन में उसकी दो पत्नियां होंगी तो वो बड़ा हैरान हुए। उस वक्त उन्हें समझ ही नहीं आया था कि ऐसा कैसे हो सकता है? हमारी बेटी रूपा को तो उन्होंने बहू मान लिया था किंतु वैभव की दूसरी पत्नी कौन बनेगी ये सवाल जैसे उनके लिए रहस्य सा बन गया था। उधर दूसरी तरफ वो अपनी बहू रागिनी के लिए भी बहुत चिंतित थे। इतनी कम उमर में उनकी बहू विधवा हो गई थी जिसका उन्हें बेहद दुख था। वो चाहते थे कि उनकी बहू दुखी न रहे इस लिए वो उसे खुश रखने के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे। लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा वो क्या करें जिससे उनकी बहू का दुख दूर हो जाए। रागिनी का ब्याह वैभव से करने का ख़याल उनके मन में दूर दूर तक नहीं था। कुछ दिनों बाद जब मेरे द्वारा उन्हें ये पता चला कि वैभव किसी और लड़की से प्रेम करता है तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हुआ कि उनका बेटा किसी लड़की से प्रेम भी कर सकता है। उनकी नज़र में तो वैभव एक ऐसे चरित्र का लड़का था जो हद से ज़्यादा बिगड़ा हुआ था और सिर्फ अय्यासिया ही करता था। बहरहाल, देर से ही सही लेकिन उन्हें इस बात का यकीन हो ही गया कि सच में उनका बेटा मुरारी नाम के एक किसान की बेटी से प्रेम करता है। उसी समय उन्हें अपने कुल गुरु की भविष्यवाणी वाली बात याद आई और उन्हें समझ आ गया कि उनके बेटे की दूसरी पत्नी शायद वो लड़की ही बनेगी। अब क्योंकि गुरु जी ने स्पष्ट कहा था कि अगर इस मामले में उन्होंने कोई कठोर क़दम उठाया तो अंजाम अच्छा नहीं होगा इस लिए उन्हें इस बात के लिए राज़ी होना ही पड़ा कि उनके बेटे की दूसरी पत्नी वो लड़की ही होगी। वो भी नहीं चाहते थे कि इतना कुछ हो जाने के बाद उनके परिवार में फिर से कोई मुसीबत आ जाए।"

"और रागिनी का ब्याह वैभव के साथ कर देने की बात उनके मन में कैसे आई?" फूलवती ने पूछा____"क्या गुरु जी ने इस बारे में भी भविष्यवाणी की थी?"

"उन्होंने इसकी भविष्यवाणी नहीं की थी।" गौरी शंकर ने कहा____"किंतु दादा ठाकुर को सुझाव ज़रूर दिया था कि वो अपने छोटे बेटे वैभव के साथ उसका ब्याह कर दें। उनके ऐसा कहने की वजह ये थी कि दादा ठाकुर अपनी बहू को बहुत मानते हैं। उसे अपनी बेटी ही समझते हैं और यही चाहते हैं कि उनकी बहू हमेशा खुश रहे और बहू के रूप में हवेली में ही रहे। अपनी बहू के दुख को दूर कर के उसके जीवन में खुशियों के रंग तो तभी भर सकेंगे वो जब उनकी बहू फिर से किसी की सुहागन बन जाए और ऐसा तभी संभव हो सकता है जब वो वैभव के साथ उसका ब्याह कर दें।"

"बात तो सही है तुम्हारी।" फूलवती ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"लेकिन क्या उनकी बहू अपने देवर से ब्याह करने को तैयार होगी? जितना मैंने उसके बारे में सुना है उससे तो यही लगता है कि वो इसके लिए कभी तैयार नहीं होगी।"

"भविष्य में क्या होगा इस बारे में कोई नहीं जानता भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"वैसे भी इस संसार में अक्सर कुछ ऐसा भी हो जाता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं किए होते। ख़ैर ये तो बाद की बात है। उससे पहले इस बात पर भी ग़ौर कीजिए कि जिस लड़की को दादा ठाकुर अपने बेटे की होने वाली दूसरी पत्नी समझ बैठे थे दुर्भाग्यवश उसकी हत्या हो गई। जबकि कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार वैभव की दो पत्नियां ही होंगी। अनुराधा तो अब रही नहीं तो साफ ज़ाहिर है कि वैभव की होने वाली दूसरी पत्नी कोई और नहीं बल्कि दादा ठाकुर की विधवा बहू रागिनी ही है। अनुराधा की हत्या हो जाने के बाद यही बात दादा ठाकुर के मन में भी उभरी थी।"

"बड़ी अजीब बात है।" फूलवती ने कहा____"मुझे तो अब भी इन बातों पर यकीन नहीं हो रहा। ख़ैर, ऊपर वाला पता नहीं क्या चाहता है? अच्छा ये बताओ कि क्या वैभव को भी ये सब पता है?"

"नहीं।" गौरी शंकर ने कहा____"उसे अभी इस बारे में कुछ पता नहीं है। दादा ठाकुर ने मुझसे कहा है कि हम में से कोई भी फिलहाल इस बारे में वैभव को कुछ नहीं बताएगा और ना ही रूपा को।"

"ये आप क्या कह रहे हैं काका?" काफी देर से चुप बैठा रूपचंद्र बोल पड़ा____"इतनी बड़ी बात मेरी मासूम बहन को क्यों नहीं बताई जाएगी? दादा ठाकुर का तो समझ में आता है लेकिन आप अपनी बेटी के साथ ऐसा छल कैसे कर सकते हैं?"

"ऐसा नहीं है बेटा।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं उसके साथ कोई छल नहीं कर रहा हूं। उचित समय आने पर उसे भी इस बारे में बता दिया जाएगा। अभी उसे वैभव के साथ खुशी खुशी जीने दो। अगर हमने अभी ये बात उसको बता दी तो शायद वो दुखी हो जाएगी। अनुराधा को तो उसने किसी तरह क़बूल कर लिया था लेकिन शायद रागिनी को इतना जल्दी क़बूल न कर पाए। इंसान जिस पर सिर्फ अपना अधिकार समझ लेता है उस पर अगर बंटवारा जैसी बात आ जाए तो बर्दास्त करना मुश्किल हो जाता है। मैं नहीं चाहता कि वो अभी से दुख और तकलीफ़ में आ जाए। इसी लिए कह रहा हूं कि अभी उसे इस बारे में बताना उचित नहीं है।"

"मैं आपका मतलब समझ गया काका।" रूपचंद्र सहसा फीकी मुस्कान होठों पर सजा कर बोला____"लेकिन मैं आपसे यही कहूंगा कि आप अभी अपनी भतीजी को पूरी तरह समझे नहीं हैं। आप नहीं जानते हैं कि मेरी बहन का हृदय कितना विशाल है। जिसने कई साल वैभव के प्रेम के चलते उसकी जुदाई का असहनीय दर्द सहा हो उसे दुनिया का दूसरा कोई भी दुख दर्द प्रभावित नहीं कर सकता। मैंने पिछले एक महीने में उसे बहुत क़रीब से देखा और समझा है काका और मुझे एहसास हो गया है कि मेरी बहन कितनी महान है। ख़ैर आप भले ही उसे कुछ न बताएं लेकिन मैं अपनी बहन को किसी धोखे में नहीं रखूंगा। उसे बता दूंगा कि वैभव पर अब भी सिर्फ उसका नहीं बल्कि किसी और का भी अधिकार है और वो कोई और नहीं बल्कि वैभव की अपनी ही भाभी है।"

"मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूं बेटा।" गौरी शंकर ने कहा____"और मुझे खुशी है कि तुम्हें अपनी बहन का इतना ज़्यादा ख़याल है लेकिन तुम्हें ये भी समझना चाहिए कि हर जगह भावनाओं से काम नहीं लिया जाता। सामने वाले की भलाई के लिए कभी कभी हमें झूठ और छल का भी सहारा लेना पड़ता है। दूसरी बात ये भी है कि इस बारे में अभी दादा ठाकुर की बहू रागिनी को भी पता नहीं है। मुझे भी लगता है कि रागिनी अपने देवर से ब्याह करने को तैयार नहीं होगी। ख़ुद ही सोचो कि ऐसे में ये बात रूपा को बता कर बेवजह उसे दुख और तकलीफ़ देना क्या उचित होगा? पहले इस बारे में दादा ठाकुर की बहू को तो पता चलने दो। इस बारे में वो क्या फ़ैसला करती है ये तो पता चलने दो। उसके बाद ही हम अपना अगला क़दम उठाएंगे।"

"ठीक है काका।" रूपचंद्र ने कहा____"शायद आप सही कह रहे हैं। जब तक इस बारे में वैभव की भाभी अपना फ़ैसला नहीं सुनाती तब तक हमें इसका ज़िक्र रूपा से नहीं करना चाहिए।"

कुछ देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद चारो औरतें घर के अंदर चली गईं। इधर गौरी शंकर और रूपचंद्र भी दिशा मैदान जाने के लिए उठ गए।

✮✮✮✮

"मालती काकी के साथ बहुत बुरा हुआ है।" चूल्हे में रोटी सेंक रही रूपा ने कहा____"कंजरों ने उस बेचारी को बेघर कर दिया। अपने पांच पांच बच्चों को अब कैसे सम्हालेंगी वो?"

"ये सब उसके पति की वजह से हुआ है।" मैंने कहीं खोए हुए से कहा____"जुएं में सब कुछ लुटा दिया। शुक्र था कि उसने अपने बीवी बच्चों को भी जुएं में नहीं लुटा दिया था।"

"हमें उनकी सहायता करनी चाहिए।" रूपा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"नहीं तो मां (सरोज) अकेले उन सबका भार कैसे सम्हाल पाएंगी?"

"हां ये तो है।" मैंने सिर हिलाया____"लेकिन हम कैसे उनकी सहायता कर सकते हैं?"

"अगर उन्हें उनका घर वापस मिल जाए तो अच्छा होगा उनके लिए।" रूपा ने जैसे सुझाव दिया।

"सिर्फ घर वापस मिल जाने से क्या होगा?" मैंने कहा____"घर से ज़्यादा ज़रूरी होता है दो वक्त का भोजन मिलना। अगर भूख मिटाने के लिए भोजन ही न मिलेगा तो कोई जिएगा कैसे?"

"सही कहा।" रूपा ने कहा____"दो वक्त की रोटी मिलना तो ज़रूरी ही है उनके लिए मगर कुछ तो करना ही पड़ेगा ना हमें। ऐसे कब तक वो मां के लिए बोझ बने रहेंगे?"

"दो वक्त की रोटी बिना मेहनत किए नहीं मिलेगी।" मैंने कहा____"इस लिए मेहनत मज़दूरी कर के ही मालती काकी को अपना और अपने बच्चों का पेट भरना होगा। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं है।"

"हां पर सवाल ये है कि एक अकेली औरत अपने पांच पांच बच्चों का पेट भरने के लिए क्या मेहनत मज़दूरी कर पाएगी?" रूपा ने कहा____"दूसरी बात ये भी है कि गांव के आवारा और बुरी नीयत वाले लोग क्या उन्हें चैन से जीने देंगे?"

"इस बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"जिस घर का मुखिया गुज़र जाता है तो लोग उस घर की औरतों अथवा लड़कियों पर बुरी नज़र डालते ही हैं। दुनिया की यही सच्चाई है।"

"हां ये भी सही कहा तुमने।" रूपा ने सिर हिलाते हुए कहा____"इंसान के जीवन में किसी न किसी की समस्या बनी ही रहती है। ख़ैर, हमें इतना तो करना ही चाहिए कि उनका घर उन्हें वापस मिल जाए।"

"कल जब तुम वहां जाना तो उससे पूछना कि ऐसे वो कौन लोग थे जिनसे जगन ने कर्ज़ा लिया था अथवा घर और खेतों को गिरवी किया था?" मैंने कहा____"उसके बाद ही सोचेंगे कि इस मामले में क्या किया जा सकता है?"

"ठीक है, मैं कल ही इस बारे में मालती काकी से बात करूंगी।" रूपा ने कहा____"अच्छा अब जा कर हाथ धो लो, खाना बन गया है। मैं तब तक थाली लगाती हूं।"

रूपा की बात सुन कर मैं उठा और लोटे में पानी ले कर बाहर निकल गया। जल्दी ही मैं वापस आया और दरवाज़ा अंदर से बंद कर के वहीं रसोई से थोड़ा दूर बैठ गया। रूपा ने आ कर मेरे सामने थाली रख दी। उसके बाद वो भी अपने लिए थाली ले कर पास ही बैठ गई। मैं चुपचाप खाने लगा जबकि रूपा बार बार मेरी तरफ देखने लगती थी।

रूपा के साथ आज ये दूसरी रात थी। उसने अब तक जो कुछ जिस तरीके से किया था उस सबको ना चाहते हुए भी मैं सोचने पर मजबूर हो जाता था। मैंने महसूस किया था कि पहले की अपेक्षा मुझमें थोड़ा परिवर्तन आया था। सबसे बड़ा परिवर्तन तो यही था कि मैं उसकी किसी बात से नाराज़ अथवा नाखुश नहीं हो रहा था और ना ही ऐसा हो रहा था कि मैं उसकी किसी बात से अथवा बर्ताव से परेशान होता। मैं समझने लगा था कि रूपा मुझे मेरी ऐसी मानसिक अवस्था से बाहर निकालने का बड़े ही प्रेम से और कुशल तरीके से प्रयास कर रही थी।

बहरहाल, खाना खाने के बाद मैं जा कर लकड़ी की कुर्सी पर बैठ गया था जबकि रूपा जूठे बर्तनों को धोने में लग गई थी। हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था किंतु मेरे मन में विचारों का बवंडर सा चल रहा था। कुछ समय बाद जब रूपा ने बर्तन धो कर रख दिए तो मैं उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गया।

रूपा आज अपने कमरे में नहीं गई बल्कि सीधा मेरे कमरे में ही आ कर ज़मीन पर अपना बिस्तर लगाने लगी थी। उधर मैं चुपचाप चारपाई पर लेट गया था। मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था लेकिन इस सबको खुद से दूर कर देना जैसे मेरे बस में नहीं था।

"सो गए क्या?" कुछ देर बाद सन्नाटे में रूपा की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।

"नहीं।" मैंने उदास भाव से जवाब दिया____"आज कल रातों को इतना जल्दी नींद नहीं आती।"

"क्या मैं कोशिश करूं?" रूपा ने मेरी तरफ करवट ले कर कहा।

"मतलब?" मुझे जैसे समझ न आया।

"मतलब ये कि तुम्हें नींद आ जाए इसके लिए मैं कोई तरीका अपनाऊं।" रूपा ने कहा____"जैसे कि तुम्हारे पास आ कर तुम्हें प्यार से झप्पी डाल लूं और फिर हौले हौले थपकी दे के सुलाऊं।"

"नहीं, ऐसा करने की ज़रूरत नहीं।" मैं उसकी बात समझते ही बोल पड़ा____"तुम आराम से सो जाओ। मुझे जब नींद आनी होगी तो आ जाएगी।"

"कहीं तुम ये सोच कर तो नहीं मना कर रहे कि मैं तुम्हारे साथ कोई ग़लत हरकत करूंगी?" रूपा सहसा उठ कर बैठ गई थी और मुझे अपलक देखने लगी थी।

"मैं ऐसा कुछ नहीं सोच रहा।" मेरी धड़कनें एकाएक बढ़ गईं____"मैं बस तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता। वैसे भी तुम दिन भर के कामों से थकी हुई होगी।"

"तुम्हारी तकलीफ़ों को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं वैभव।" रूपा ने सहसा अधीर हो कर कहा____"मेरे रहते मेरा महबूब अगर ज़रा भी तकलीफ़ में होगा तो ये मेरे लिए शर्म की बात होगी।"

"मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है।" मैं झट से बोल पड़ा____"तुम बेकार में ही ऐसा सोच रही हो। मैं बिल्कुल ठीक हूं, तुम आराम से सो जाओ।"

मेरी बात सुन कर रूपा इस बार कुछ न बोली। बस एकटक देखती रही मेरी तरफ। कमरे में लालटेन का मध्यम प्रकाश था जिसके चलते हम दोनों एक दूसरे को बड़े आराम से देख सकते थे। रूपा को इस तरह एकटक अपनी तरफ देखता देख मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो गईं। मैंने खुद को सम्हालते हुए दूसरी तरफ करवट ले ली ताकि मुझे उसकी तरफ देखना ना पड़े।

मैं जानता था कि मेरे इस बर्ताव से रूपा को बुरा लगा होगा और वो दुखी भी हो गई होगी किंतु मैं इस वक्त उसे अपने क़रीब नहीं आने देना चाहता था। इस लिए नहीं कि उसके क़रीब आने से मैं कुछ ग़लत कर बैठूंगा बल्कि इस लिए कि मैं फिलहाल ऐसी मानसिक स्थिति में ही नहीं था। अनुराधा के अलावा मेरे दिल में अभी भी रूपा के लिए वो स्थान नहीं स्थापित हो सका था जिसके चलते मैं अनुराधा की तरह उसे सच्चे दिल से प्रेम कर सकूं।

जाने कितनी ही देर तक मेरे दिलो दिमाग़ में ख़यालों और जज़्बातों का तूफ़ान चलता रहा। उसके बाद कब मैं नींद के आगोश में चला गया पता ही नहीं चला।




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एक बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
गौरीशंकर दादा ठाकुर के साथ कुलगुरू से मिलके आने के बाद अपने घर के लोगों को वहा की बातचीत सभी को बतायी तरह तरह के तर्क वितर्क के बाद रुपा को कुछ ना बताने का फैसला लिया
इधर रुपा जगन की पत्नी के बारे में सोच कर वैभव से कुछ करने को कहती हैं और वो मान भी जाता हैं
वैभव को रुपा के प्रयास का अनुभव होने लगा
रात में सोते वक्त हुयी बातचीत का प्रसंग अद्भुत हैं
खैर देखते हैं आगे
 

Sanjuhsr

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Awesome update, ab kuchh kuchh vaibhav ki halat me sudhar hai aur use rupa ke payar ki samjh ho rahi hai ab wo apne ko badal kar rupa ko uska hak dene ki sochne lage hai , .
Rupa ki salah par malti ki madad karne ko nikal gya hai udhar bhabhi vaibhav ki bina jankari ke apne ghar chali gayi hai ye vaibhav aur hum pathak ke liye acharychanjak bat rahi is update ki,
 

R@ndom_guy

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रूपा ने चाय के प्याले को झट से एक तरफ रखा और फिर झपट कर मुझे खुद से छुपका लिया। मुझे इस तरह दुखी होते देख उसकी आंखें भर आईं थी। उसका हृदय तड़प उठा था। ये सोच कर उसकी आंखें छलक पड़ीं कि जिसे वो इतना प्रेम करती है उसकी तकलीफ़ों को वो इतनी कोशिश के बाद भी दूर नहीं कर पा रही है। मन ही मन उसने अपनी देवी मां को याद किया और उनसे मेरी तकलीफ़ों को दूर करने की मिन्नतें करने लगी।


अब आगे....


शाम का अंधेरा घिर चुका था।
गौरी शंकर अपने घर की बैठक में बैठा चाय पी रहा था। बैठक में उसके अलावा रूपचंद्र और घर की बुजुर्ग औरतें यानि फूलवती, ललिता देवी, सुनैना देवी और विमला देवी थीं। घर की दोनों बहुएं और सभी लड़कियां अंदर थीं। एक घंटे पहले गौरी शंकर अपने घर आया था। उसने सबको बताया था कि दादा ठाकुर उसे अपने कुल गुरु के पास ले गए थे। उसके बाद वहां पर जो भी बातें हुईं थी वो सब गौरी शंकर सभी को बता चुका था जिसे सुनने के बाद चारो औरतें चकित रह गईं थी। रूपचंद्र का भी यही हाल था।

"बड़े आश्चर्य की बात है कि दादा ठाकुर अपने कुल गुरु द्वारा की गई भविष्यवाणी पर इतना विश्वास करते हैं।" फूलवती ने कहा____"और इतना ही नहीं उस भविष्यवाणी के अनुसार वो ऐसा करने को भी तैयार हैं।"

"कुल गुरु द्वारा की गई भविष्यवाणियां अब तक सच हुईं हैं भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"यही वजह है कि दादा ठाकुर कुल गुरु की बातों पर इतना भरोसा करते हैं। वैसे भी उनके गुरु जी कोई मामूली व्यक्ति नहीं हैं बल्कि सिद्ध पुरुष हैं। इस लिए उनकी बातों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।"

"तो क्या अब हमें भी इस भविष्यवाणी के अनुसार ही चलना होगा?" फूलवती ने कहा____"क्या तुम इस सबके लिए सहमत हो गए हो?"

"सहमत होने के अलावा मेरे पास कोई चारा ही नहीं था भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"आप भी जानती हैं कि इस समय हमारी जो स्थिति है उसके चलते हम दादा ठाकुर के किसी भी फ़ैसले पर ना तो सवाल उठा सकते हैं और ना ही कोई विरोध कर सकते हैं।"

"तो क्या मैं ये समझूं कि दादा ठाकुर हमारी मज़बूरी का फ़ायदा उठा रहे हैं?" फूलवती ने सहसा नाराज़गी अख़्तियार करते हुए कहा____"और चाहते हैं कि हम चुपचाप वही करें जो वो करने को कहें?"

"ऐसी बात नहीं है भौजी।" गौरी शंकर ने दृढ़ता से कहा____"दादा ठाकुर ऐसे इंसान नहीं हैं जो किसी की मज़बूरी का फ़ायदा उठाने का ख़याल भी अपने ज़हन में लाएं।"

"तो फिर कैसी बात है गौरी?" फूलवती उसी नाराज़गी से बोलीं____"उन्हें अपने कुल गुरु के द्वारा पहले ही पता चल गया था इस सबके बारे में तो उन्होंने इस बारे में तुम्हें क्यों नहीं बताया?"

"वो सब कुछ बताना चाहते थे भौजी।" गौरी शंकर ने जैसे समझाते हुए कहा____"किंतु उन्होंने ये सोच कर नहीं बताया था कि मैं और आप सब उनके बारे में वही सब सोच बैठेंगे जो इस वक्त आप सोच रही हैं। इस लिए उन्होंने बहुत सोच समझ कर इसका एक हल निकाला और वो हल यही था कि वो मुझे अपने कुल गुरु के पास ले जाएं और उनके द्वारा ही इस सबके बारे में मुझे अवगत कराएं।"

"वाह! बहुत खूब।" फूलवती ने कहा___"हमें बुद्धू बनाने का क्या शानदार तरीका अपनाया है दादा ठाकुर ने।"

"ऐसी बात नहीं है भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"हम ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर ऐसे इंसान नहीं हैं। कभी कभी वक्त और हालात ऐसे बन जाते हैं कि हम सही को ग़लत और अच्छे को बुरा समझ लेते हैं। आप हम सबसे बड़ी हैं और इतने सालों से आपने भी दादा ठाकुर के बारे में बहुत कुछ सुना ही होगा। सच सच बताइए, क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि दादा ठाकुर ने किसी के साथ कुछ ग़लत किया है अथवा कभी किसी की मज़बूरी का फ़ायदा उठाया है?"

गौरी शंकर के इस सवाल पर फूलवती ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी ख़ामोशी बता रही थी कि दादा ठाकुर के बारे में उसने कभी भी ऐसा कुछ नहीं सुना था।

"उन्हें तो पता भी नहीं था कि वैभव किसी लड़की से प्रेम करता है।" गौरी शंकर ने आगे कहा____"उनके मन में सिर्फ इतना ही था कि हमारी बेटी ही उनकी बहू बनेगी लेकिन जब वो अपने कुल गुरु से मिले और गुरु जी ने उन्हें ये बताया कि वैभव के जीवन में उसकी दो पत्नियां होंगी तो वो बड़ा हैरान हुए। उस वक्त उन्हें समझ ही नहीं आया था कि ऐसा कैसे हो सकता है? हमारी बेटी रूपा को तो उन्होंने बहू मान लिया था किंतु वैभव की दूसरी पत्नी कौन बनेगी ये सवाल जैसे उनके लिए रहस्य सा बन गया था। उधर दूसरी तरफ वो अपनी बहू रागिनी के लिए भी बहुत चिंतित थे। इतनी कम उमर में उनकी बहू विधवा हो गई थी जिसका उन्हें बेहद दुख था। वो चाहते थे कि उनकी बहू दुखी न रहे इस लिए वो उसे खुश रखने के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे। लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा वो क्या करें जिससे उनकी बहू का दुख दूर हो जाए। रागिनी का ब्याह वैभव से करने का ख़याल उनके मन में दूर दूर तक नहीं था। कुछ दिनों बाद जब मेरे द्वारा उन्हें ये पता चला कि वैभव किसी और लड़की से प्रेम करता है तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हुआ कि उनका बेटा किसी लड़की से प्रेम भी कर सकता है। उनकी नज़र में तो वैभव एक ऐसे चरित्र का लड़का था जो हद से ज़्यादा बिगड़ा हुआ था और सिर्फ अय्यासिया ही करता था। बहरहाल, देर से ही सही लेकिन उन्हें इस बात का यकीन हो ही गया कि सच में उनका बेटा मुरारी नाम के एक किसान की बेटी से प्रेम करता है। उसी समय उन्हें अपने कुल गुरु की भविष्यवाणी वाली बात याद आई और उन्हें समझ आ गया कि उनके बेटे की दूसरी पत्नी शायद वो लड़की ही बनेगी। अब क्योंकि गुरु जी ने स्पष्ट कहा था कि अगर इस मामले में उन्होंने कोई कठोर क़दम उठाया तो अंजाम अच्छा नहीं होगा इस लिए उन्हें इस बात के लिए राज़ी होना ही पड़ा कि उनके बेटे की दूसरी पत्नी वो लड़की ही होगी। वो भी नहीं चाहते थे कि इतना कुछ हो जाने के बाद उनके परिवार में फिर से कोई मुसीबत आ जाए।"

"और रागिनी का ब्याह वैभव के साथ कर देने की बात उनके मन में कैसे आई?" फूलवती ने पूछा____"क्या गुरु जी ने इस बारे में भी भविष्यवाणी की थी?"

"उन्होंने इसकी भविष्यवाणी नहीं की थी।" गौरी शंकर ने कहा____"किंतु दादा ठाकुर को सुझाव ज़रूर दिया था कि वो अपने छोटे बेटे वैभव के साथ उसका ब्याह कर दें। उनके ऐसा कहने की वजह ये थी कि दादा ठाकुर अपनी बहू को बहुत मानते हैं। उसे अपनी बेटी ही समझते हैं और यही चाहते हैं कि उनकी बहू हमेशा खुश रहे और बहू के रूप में हवेली में ही रहे। अपनी बहू के दुख को दूर कर के उसके जीवन में खुशियों के रंग तो तभी भर सकेंगे वो जब उनकी बहू फिर से किसी की सुहागन बन जाए और ऐसा तभी संभव हो सकता है जब वो वैभव के साथ उसका ब्याह कर दें।"

"बात तो सही है तुम्हारी।" फूलवती ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"लेकिन क्या उनकी बहू अपने देवर से ब्याह करने को तैयार होगी? जितना मैंने उसके बारे में सुना है उससे तो यही लगता है कि वो इसके लिए कभी तैयार नहीं होगी।"

"भविष्य में क्या होगा इस बारे में कोई नहीं जानता भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"वैसे भी इस संसार में अक्सर कुछ ऐसा भी हो जाता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं किए होते। ख़ैर ये तो बाद की बात है। उससे पहले इस बात पर भी ग़ौर कीजिए कि जिस लड़की को दादा ठाकुर अपने बेटे की होने वाली दूसरी पत्नी समझ बैठे थे दुर्भाग्यवश उसकी हत्या हो गई। जबकि कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार वैभव की दो पत्नियां ही होंगी। अनुराधा तो अब रही नहीं तो साफ ज़ाहिर है कि वैभव की होने वाली दूसरी पत्नी कोई और नहीं बल्कि दादा ठाकुर की विधवा बहू रागिनी ही है। अनुराधा की हत्या हो जाने के बाद यही बात दादा ठाकुर के मन में भी उभरी थी।"

"बड़ी अजीब बात है।" फूलवती ने कहा____"मुझे तो अब भी इन बातों पर यकीन नहीं हो रहा। ख़ैर, ऊपर वाला पता नहीं क्या चाहता है? अच्छा ये बताओ कि क्या वैभव को भी ये सब पता है?"

"नहीं।" गौरी शंकर ने कहा____"उसे अभी इस बारे में कुछ पता नहीं है। दादा ठाकुर ने मुझसे कहा है कि हम में से कोई भी फिलहाल इस बारे में वैभव को कुछ नहीं बताएगा और ना ही रूपा को।"

"ये आप क्या कह रहे हैं काका?" काफी देर से चुप बैठा रूपचंद्र बोल पड़ा____"इतनी बड़ी बात मेरी मासूम बहन को क्यों नहीं बताई जाएगी? दादा ठाकुर का तो समझ में आता है लेकिन आप अपनी बेटी के साथ ऐसा छल कैसे कर सकते हैं?"

"ऐसा नहीं है बेटा।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं उसके साथ कोई छल नहीं कर रहा हूं। उचित समय आने पर उसे भी इस बारे में बता दिया जाएगा। अभी उसे वैभव के साथ खुशी खुशी जीने दो। अगर हमने अभी ये बात उसको बता दी तो शायद वो दुखी हो जाएगी। अनुराधा को तो उसने किसी तरह क़बूल कर लिया था लेकिन शायद रागिनी को इतना जल्दी क़बूल न कर पाए। इंसान जिस पर सिर्फ अपना अधिकार समझ लेता है उस पर अगर बंटवारा जैसी बात आ जाए तो बर्दास्त करना मुश्किल हो जाता है। मैं नहीं चाहता कि वो अभी से दुख और तकलीफ़ में आ जाए। इसी लिए कह रहा हूं कि अभी उसे इस बारे में बताना उचित नहीं है।"

"मैं आपका मतलब समझ गया काका।" रूपचंद्र सहसा फीकी मुस्कान होठों पर सजा कर बोला____"लेकिन मैं आपसे यही कहूंगा कि आप अभी अपनी भतीजी को पूरी तरह समझे नहीं हैं। आप नहीं जानते हैं कि मेरी बहन का हृदय कितना विशाल है। जिसने कई साल वैभव के प्रेम के चलते उसकी जुदाई का असहनीय दर्द सहा हो उसे दुनिया का दूसरा कोई भी दुख दर्द प्रभावित नहीं कर सकता। मैंने पिछले एक महीने में उसे बहुत क़रीब से देखा और समझा है काका और मुझे एहसास हो गया है कि मेरी बहन कितनी महान है। ख़ैर आप भले ही उसे कुछ न बताएं लेकिन मैं अपनी बहन को किसी धोखे में नहीं रखूंगा। उसे बता दूंगा कि वैभव पर अब भी सिर्फ उसका नहीं बल्कि किसी और का भी अधिकार है और वो कोई और नहीं बल्कि वैभव की अपनी ही भाभी है।"

"मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूं बेटा।" गौरी शंकर ने कहा____"और मुझे खुशी है कि तुम्हें अपनी बहन का इतना ज़्यादा ख़याल है लेकिन तुम्हें ये भी समझना चाहिए कि हर जगह भावनाओं से काम नहीं लिया जाता। सामने वाले की भलाई के लिए कभी कभी हमें झूठ और छल का भी सहारा लेना पड़ता है। दूसरी बात ये भी है कि इस बारे में अभी दादा ठाकुर की बहू रागिनी को भी पता नहीं है। मुझे भी लगता है कि रागिनी अपने देवर से ब्याह करने को तैयार नहीं होगी। ख़ुद ही सोचो कि ऐसे में ये बात रूपा को बता कर बेवजह उसे दुख और तकलीफ़ देना क्या उचित होगा? पहले इस बारे में दादा ठाकुर की बहू को तो पता चलने दो। इस बारे में वो क्या फ़ैसला करती है ये तो पता चलने दो। उसके बाद ही हम अपना अगला क़दम उठाएंगे।"

"ठीक है काका।" रूपचंद्र ने कहा____"शायद आप सही कह रहे हैं। जब तक इस बारे में वैभव की भाभी अपना फ़ैसला नहीं सुनाती तब तक हमें इसका ज़िक्र रूपा से नहीं करना चाहिए।"

कुछ देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद चारो औरतें घर के अंदर चली गईं। इधर गौरी शंकर और रूपचंद्र भी दिशा मैदान जाने के लिए उठ गए।

✮✮✮✮

"मालती काकी के साथ बहुत बुरा हुआ है।" चूल्हे में रोटी सेंक रही रूपा ने कहा____"कंजरों ने उस बेचारी को बेघर कर दिया। अपने पांच पांच बच्चों को अब कैसे सम्हालेंगी वो?"

"ये सब उसके पति की वजह से हुआ है।" मैंने कहीं खोए हुए से कहा____"जुएं में सब कुछ लुटा दिया। शुक्र था कि उसने अपने बीवी बच्चों को भी जुएं में नहीं लुटा दिया था।"

"हमें उनकी सहायता करनी चाहिए।" रूपा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"नहीं तो मां (सरोज) अकेले उन सबका भार कैसे सम्हाल पाएंगी?"

"हां ये तो है।" मैंने सिर हिलाया____"लेकिन हम कैसे उनकी सहायता कर सकते हैं?"

"अगर उन्हें उनका घर वापस मिल जाए तो अच्छा होगा उनके लिए।" रूपा ने जैसे सुझाव दिया।

"सिर्फ घर वापस मिल जाने से क्या होगा?" मैंने कहा____"घर से ज़्यादा ज़रूरी होता है दो वक्त का भोजन मिलना। अगर भूख मिटाने के लिए भोजन ही न मिलेगा तो कोई जिएगा कैसे?"

"सही कहा।" रूपा ने कहा____"दो वक्त की रोटी मिलना तो ज़रूरी ही है उनके लिए मगर कुछ तो करना ही पड़ेगा ना हमें। ऐसे कब तक वो मां के लिए बोझ बने रहेंगे?"

"दो वक्त की रोटी बिना मेहनत किए नहीं मिलेगी।" मैंने कहा____"इस लिए मेहनत मज़दूरी कर के ही मालती काकी को अपना और अपने बच्चों का पेट भरना होगा। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं है।"

"हां पर सवाल ये है कि एक अकेली औरत अपने पांच पांच बच्चों का पेट भरने के लिए क्या मेहनत मज़दूरी कर पाएगी?" रूपा ने कहा____"दूसरी बात ये भी है कि गांव के आवारा और बुरी नीयत वाले लोग क्या उन्हें चैन से जीने देंगे?"

"इस बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"जिस घर का मुखिया गुज़र जाता है तो लोग उस घर की औरतों अथवा लड़कियों पर बुरी नज़र डालते ही हैं। दुनिया की यही सच्चाई है।"

"हां ये भी सही कहा तुमने।" रूपा ने सिर हिलाते हुए कहा____"इंसान के जीवन में किसी न किसी की समस्या बनी ही रहती है। ख़ैर, हमें इतना तो करना ही चाहिए कि उनका घर उन्हें वापस मिल जाए।"

"कल जब तुम वहां जाना तो उससे पूछना कि ऐसे वो कौन लोग थे जिनसे जगन ने कर्ज़ा लिया था अथवा घर और खेतों को गिरवी किया था?" मैंने कहा____"उसके बाद ही सोचेंगे कि इस मामले में क्या किया जा सकता है?"

"ठीक है, मैं कल ही इस बारे में मालती काकी से बात करूंगी।" रूपा ने कहा____"अच्छा अब जा कर हाथ धो लो, खाना बन गया है। मैं तब तक थाली लगाती हूं।"

रूपा की बात सुन कर मैं उठा और लोटे में पानी ले कर बाहर निकल गया। जल्दी ही मैं वापस आया और दरवाज़ा अंदर से बंद कर के वहीं रसोई से थोड़ा दूर बैठ गया। रूपा ने आ कर मेरे सामने थाली रख दी। उसके बाद वो भी अपने लिए थाली ले कर पास ही बैठ गई। मैं चुपचाप खाने लगा जबकि रूपा बार बार मेरी तरफ देखने लगती थी।

रूपा के साथ आज ये दूसरी रात थी। उसने अब तक जो कुछ जिस तरीके से किया था उस सबको ना चाहते हुए भी मैं सोचने पर मजबूर हो जाता था। मैंने महसूस किया था कि पहले की अपेक्षा मुझमें थोड़ा परिवर्तन आया था। सबसे बड़ा परिवर्तन तो यही था कि मैं उसकी किसी बात से नाराज़ अथवा नाखुश नहीं हो रहा था और ना ही ऐसा हो रहा था कि मैं उसकी किसी बात से अथवा बर्ताव से परेशान होता। मैं समझने लगा था कि रूपा मुझे मेरी ऐसी मानसिक अवस्था से बाहर निकालने का बड़े ही प्रेम से और कुशल तरीके से प्रयास कर रही थी।

बहरहाल, खाना खाने के बाद मैं जा कर लकड़ी की कुर्सी पर बैठ गया था जबकि रूपा जूठे बर्तनों को धोने में लग गई थी। हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था किंतु मेरे मन में विचारों का बवंडर सा चल रहा था। कुछ समय बाद जब रूपा ने बर्तन धो कर रख दिए तो मैं उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गया।

रूपा आज अपने कमरे में नहीं गई बल्कि सीधा मेरे कमरे में ही आ कर ज़मीन पर अपना बिस्तर लगाने लगी थी। उधर मैं चुपचाप चारपाई पर लेट गया था। मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था लेकिन इस सबको खुद से दूर कर देना जैसे मेरे बस में नहीं था।

"सो गए क्या?" कुछ देर बाद सन्नाटे में रूपा की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।

"नहीं।" मैंने उदास भाव से जवाब दिया____"आज कल रातों को इतना जल्दी नींद नहीं आती।"

"क्या मैं कोशिश करूं?" रूपा ने मेरी तरफ करवट ले कर कहा।

"मतलब?" मुझे जैसे समझ न आया।

"मतलब ये कि तुम्हें नींद आ जाए इसके लिए मैं कोई तरीका अपनाऊं।" रूपा ने कहा____"जैसे कि तुम्हारे पास आ कर तुम्हें प्यार से झप्पी डाल लूं और फिर हौले हौले थपकी दे के सुलाऊं।"

"नहीं, ऐसा करने की ज़रूरत नहीं।" मैं उसकी बात समझते ही बोल पड़ा____"तुम आराम से सो जाओ। मुझे जब नींद आनी होगी तो आ जाएगी।"

"कहीं तुम ये सोच कर तो नहीं मना कर रहे कि मैं तुम्हारे साथ कोई ग़लत हरकत करूंगी?" रूपा सहसा उठ कर बैठ गई थी और मुझे अपलक देखने लगी थी।

"मैं ऐसा कुछ नहीं सोच रहा।" मेरी धड़कनें एकाएक बढ़ गईं____"मैं बस तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता। वैसे भी तुम दिन भर के कामों से थकी हुई होगी।"

"तुम्हारी तकलीफ़ों को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं वैभव।" रूपा ने सहसा अधीर हो कर कहा____"मेरे रहते मेरा महबूब अगर ज़रा भी तकलीफ़ में होगा तो ये मेरे लिए शर्म की बात होगी।"

"मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है।" मैं झट से बोल पड़ा____"तुम बेकार में ही ऐसा सोच रही हो। मैं बिल्कुल ठीक हूं, तुम आराम से सो जाओ।"

मेरी बात सुन कर रूपा इस बार कुछ न बोली। बस एकटक देखती रही मेरी तरफ। कमरे में लालटेन का मध्यम प्रकाश था जिसके चलते हम दोनों एक दूसरे को बड़े आराम से देख सकते थे। रूपा को इस तरह एकटक अपनी तरफ देखता देख मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो गईं। मैंने खुद को सम्हालते हुए दूसरी तरफ करवट ले ली ताकि मुझे उसकी तरफ देखना ना पड़े।

मैं जानता था कि मेरे इस बर्ताव से रूपा को बुरा लगा होगा और वो दुखी भी हो गई होगी किंतु मैं इस वक्त उसे अपने क़रीब नहीं आने देना चाहता था। इस लिए नहीं कि उसके क़रीब आने से मैं कुछ ग़लत कर बैठूंगा बल्कि इस लिए कि मैं फिलहाल ऐसी मानसिक स्थिति में ही नहीं था। अनुराधा के अलावा मेरे दिल में अभी भी रूपा के लिए वो स्थान नहीं स्थापित हो सका था जिसके चलते मैं अनुराधा की तरह उसे सच्चे दिल से प्रेम कर सकूं।

जाने कितनी ही देर तक मेरे दिलो दिमाग़ में ख़यालों और जज़्बातों का तूफ़ान चलता रहा। उसके बाद कब मैं नींद के आगोश में चला गया पता ही नहीं चला।




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Dada thakur ne syd nishchay kr liya h ki ragini bhabhi ka vivah vaibhav se ho
Isi vajah se gauri shankar se yah baat sajha aur iska dusra karan ye bhi ho skta h ki ye baat rupa ke parivar ko maloom rhe ki vaibhav ki do shadi hogi
 

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दूसरे दिन रूपा जब सरोज काकी के घर गई तो उसने वहां मालती से बात की। उसने उससे पूछा कि उसके पति ने किन लोगों से कर्ज़ा लिया था? मालती ने उसके पूछने पर उतना ही बताया जितना उसे पता चला था।

सरोज के घर में मालती और उसकी बेटियां थी इस लिए सरोज ने रूपा को खाना बनाने से मना कर दिया था। असल में वो नहीं चाहती थी कि इतने लोगों का खाना बनाने में रूपा को कोई परेशानी हो। वैसे भी अब उसे रूपा से लगाव सा हो गया था जिसके चलते वो इतने लोगों का भार उसके सिर पर नहीं डालना चाहती थी। मालती ने भी यही कहा था कि वो और उसके बच्चे कोई मेहमान नहीं हैं जो बैठ कर सिर्फ खाएंगे। बहरहाल, रूपा मालती से जानकारी ले कर जल्द ही वापस आ गई थी।

जब वो वापस आई तो उसने देखा वैभव कुएं पर नहा रहा था। धूप खिली हुई थी और इस वक्त वो सिर्फ कच्छे में था। पानी से भींगता उसका गोरा और हष्ट पुष्ट बदन बड़ा ही आकर्षक नज़र आ रहा था। रूपा ये देख मुस्कुराई और फिर कुएं की तरफ ही बढ़ चली।

इधर मैं दुनिया जहान से बेख़बर नहाने में व्यस्त था। कुएं का ठंडा ठंडा पानी जब बदन पर पड़ता था तो अलग ही आनंद आता था। कुएं से बाल्टी द्वारा पानी खींचने के बाद मैं पूरी बाल्टी का पानी एक ही बार में कुएं की जगत पर खड़े खड़े अपने सिर पर उड़ेल लेता था जिसके चलते मुझे बड़ा ही सुखद एहसास होता था।

"मैं भी आ जाऊं क्या?" अचानक रूपा की इस आवाज़ से मैं चौंका और पलट कर उसकी तरफ देखा।

वो कुएं की जगत के पास आ कर खड़ी हो गई थी और मुस्कुराते हुए मुझे ही देखे जा रही थी। इस वक्त मेरे और उसके अलावा दूर दूर तक कोई नहीं था। दयाल और भोला नाम के दोनों मज़दूर चूल्हे में जलाने के लिए लड़की लेने जंगल गए हुए थे। रूपा जिस तरह से मेरे बदन को घूरते हुए मुस्कुराए जा रही थी उससे मैं एकदम से असहज हो गया। ऐसा नहीं था कि उसने मुझे इस हालत में पहले कभी देखा नहीं था, बल्कि उसने तो मुझे पूरी तरह नंगा भी देखा था लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह की मेरी मानसिकता थी उसके चलते मुझे उसका यूं देखना असहज कर रहा था।

"क्या हुआ जनाब?" मुझे कुछ न बोलता देख उसने अपनी भौंहों को ऊपर नीचे करते हुए कहा____"मुझे इस तरह क्यों देखे जा रहे हो? डरो मत, मैं तुम्हें इस हालत में देख कर खा नहीं जाऊंगी। मेरे कहने का मतलब तो बस ये है कि आ कर मैं तुम्हें अपने हाथों से नहला देती हूं। अब इतना तो कर ही सकती हूं अपनी जान के लिए।"

"कोई ज़रूरत नहीं है।" मैं एकदम से बोल पड़ा____"असमर्थ नहीं हूं मैं जो ख़ुद नहा नहीं सकता। तुम जाओ यहां से।"

"इतने कठोर न बनो मेरे बलम।" रूपा ने बड़ी अदा से कहा____"मेरे खातिर कुछ देर के लिए असमर्थ ही बन जाओ ना।"

"मैंने कहा न जाओ यहां से।" मैंने थोड़ा सख़्त भाव से देखा उसे।

"इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो?" रूपा ने बड़ी मासूमियत से कहा____"सिर्फ नहलाने को ही तो कह रही हूं। क्या तुम मेरी खुशी के लिए मेरी इतनी सी बात नहीं मान सकते?"

"हां नहीं मान सकता।" मैंने दो टूक भाव से कहा____"अब जाओ यहां से।"

पता नहीं क्यों मैं एकदम से उखड़ सा गया था? मेरा ऐसा बर्ताव देख रूपा कुछ न बोली किंतु अगले ही पल उसकी आंखों में मानों आंसुओं का सैलाब उमड़ता नज़र आया। कुछ पलों तक वो डबडबाई आंखों से मुझे देखती रही और फिर चुपचाप पलट कर मकान की तरफ चली गई। उसके जाने के बाद मैंने खाली बाल्टी को कुएं में डाला और फिर पानी खींचने लगा।

कुछ ही देर में मैं नहा धो कर मकान में आया और अपने कमरे में जा कर कपड़े पहनने लगा। रूपा रसोई में खाना बना रही थी। कपड़े पहन कर मैं बाहर आया और वहीं पास ही रखी कुर्सी पर बैठ गया। कुछ ही दूर रसोई में रूपा चूल्हे के पास बैठी खाना बनाने में लगी हुई थी।

मुझे कुर्सी में बैठे क़रीब पांच सात मिनट गुज़र गए थे किंतु रूपा ने एक बार भी मेरी तरफ नहीं देखा था और ना ही कोई बात की थी। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया किंतु जब काफी देर तक ख़ामोशी ही छाई रही तो सहसा मैंने उसकी तरफ ध्यान से देखा।

चूल्हे में लकड़ियां जल रहीं थी जिनका प्रकाश सीधा उसके चेहरे पर पड़ रहा था। मैंने देखा कि उसके चेहरे पर वेदना के भाव थे। ये देख मैं चौंका और फिर एकदम से मुझे कुछ देर पहले कुएं में उसको कही गई अपनी बातें याद आईं। जल्दी ही मुझे समझ आ गया कि मेरी बातों ने उसे अंदर से आहत कर दिया है।

मुझे याद आया कि मैंने कितनी सख़्ती से और कितनी बेरुखी से उससे बातें की थी। मुझे एकदम से एहसास होने लगा कि मुझे उससे इतनी बेरुखी से बातें नहीं करनी चाहिए थीं। उसने कोई ग़लत बात तो नहीं की थी मुझसे। मुझे बेहद प्रेम करती है जिसके चलते उस समय वो मुझसे थोड़ी नोक झोंक ही तो कर रही थी और फिर अगर वो मुझे नहला भी देती तो भला क्या बिगड़ जाना था मेरा?

"क्या नाराज़ हो मुझसे?" फिर मैंने उसकी तरफ देखते हुए धीमें स्वर में कहा____"देखो, मेरा इरादा तुम्हारा दिल दिखाने का बिल्कुल भी नहीं था। मुझे नहीं पता उस समय मेरे मुख से वैसी बातें क्यों निकल गईं थी? अगर मेरी बातों से सच में तुम्हें तकलीफ़ हुई है तो उसके लिए मैं तुमसे माफ़ी मांगता हूं।"

"तुम मुझसे माफ़ी मांगोगे तब भी तो मुझे तकलीफ़ होगी।" रूपा की आवाज़ सहसा भारी हो गई। मेरी तरफ देखते हुए बोली____"ख़ुशी तो बस एक ही सूरज में होगी जब मेरा प्रियतम ख़ुश होगा।"

"ऐसी बातें मत किया करो।" मेरे समूचे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गई____"तुम्हारी ऐसी बातों से मुझे डर सा लगने लगता है।"

"फिर तो ज़रूर मेरे प्रेम में कमी है वैभव।" रूपा ने रुंधे गले से कहा____"और ये मेरी बदकिस्मती ही है कि मेरे प्रेम से मेरे महबूब को डर लगता है। क्या करूं अब? कुछ समझ में नहीं आ रहा मुझे। आख़िर ये कैसी बेबसी है कि अपने महबूब का डर दूर करने के लिए मैं उससे प्रेम करना भी नहीं छोड़ सकती। काश! मेरे बस में होता तो अपने दिल के ज़र्रे ज़र्रे से प्रेम का हर एहसास खुरच खुरच कर निकाल देती। हे विधाता! मुझे भले ही चाहे दुनिया भर के दुख दे दे लेकिन मेरे दिल के सरताज का हर डर और हर दुख तकलीफ़ दूर कर दे।"

रूपा कहने के बाद बुरी तरह सिसक उठी। इधर उसकी बातों ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। दिल के किसी कोने से जैसे कोई हलक फाड़ कर चीख पड़ा और बोला____'जो लड़की हर हाल में सिर्फ और सिर्फ तेरी ख़ुशी और तेरा भला चाहती है उसको तू कैसे दुखी कर सकता है? जो लड़की तुझे पागलपन की हद तक प्रेम करती है और विधाता से तेरे हर दुख को मांग रही है उसे असहनीय पीड़ा दे कर उसकी आंखों में आंसू लाने का गुनाह कैसे कर सकता है तू? जो लड़की अपने प्रेम के खातिर अपना घर परिवार छोड़ कर तथा सारी लोक लाज को ताक में रख कर सिर्फ तुझे सम्हालने के लिए तेरे पास आई है उस महान लड़की का प्रेम और उसकी पीड़ा क्यों नज़र नहीं आती तुझे?'

मैं भारी मन से कुर्सी से उठा और रूपा की तरफ बढ़ चला। वो चूल्हे के पास बैठी बड़ी मुश्किल से अपनी रुलाई को फूट पड़ने से रोकने का प्रयास कर रही थी। उसका चेहरा चूल्हे में लपलपाती आग ही तरफ था। आग की रोशनी में उसके चेहरे की पीड़ा साफ दिख रही थी मुझे।

मैं कुछ ही पलों में उसके पास पहुंच गया। धड़कते दिल से मैं हौले से झुका और फिर उसके दोनों कन्धों को पकड़ा तो वो एकदम से हड़बड़ा गई। बिजली की तरह पलट कर उसने मेरी तरफ देखा। उफ्फ! उसकी आंखों में तैरते आंसुओं को देख अंदर तक हिल गया मैं। आंसू भरी आंखों से वो मुझे ही देखे जा रही थी। मैंने एक ही झटके में खींच कर उसे अपने सीने से लगा लिया। मेरा ऐसा करना था कि जैसे उसके सब्र का बांध टूट गया और वो मुझे पूरी सख़्ती से जकड़ कर फफक कर रो पड़ी।

"माफ़ कर दो मुझे।" फिर मैंने उसकी पीठ पर हौले से हाथ फेरते हुए कहा____"ये मेरी बदकिस्मती है कि मैं कभी किसी की भावनाओं को नहीं समझ पाया, खास कर तुम्हारी भावनाओं को।"

रूपा अनवरत रोती रही। वो मुझे इस तरह जकड़े हुए थी जैसे उसे डर हो कि मैं उसे अपने सीने से अलग कर दूंगा। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में भयंकर तूफ़ान उठ गया था।

"समझ में नहीं आता कि मुझ जैसे इंसान को कोई इतना प्रेम कैसे कर सकता है?" मैंने गहन संजीदगी से कहा____"जबकि सच तो ये है कि मैं किसी के प्रेम के लायक ही नहीं हूं। मैं तो वो बुरी बला हूं जिसका बुरा साया प्रेम करने वालों की ज़िंदगी छीन लेता है।"

"नहीं नहीं नहीं।" रूपा मुझसे लिपटी रोते हुए चीख पड़ी____"मेरे वैभव के बारे में ऐसा मत कहो। मेरे वैभव से अच्छा कोई नहीं है इस दुनिया में।"

रूपा की इन बातों ने एक बार फिर से मुझे अंदर तक झकझोर दिया। मेरे अंदर जज़्बात इतनी बुरी तरह से मचल उठे कि मेरे लाख रोकने पर भी मेरी आंखें छलक पड़ीं। मुझे इस ख़याल ने रुला दिया कि जहां सारी दुनिया मुझे गुनहगार, पापी और कुकर्मी कहती हैं वहीं ये रूपा मेरे बारे में ऐसा कह रही है। यकीनन ये उसका प्रेम ही था जो ख़्वाब में भी मेरे बारे में बुरा नहीं सोच सकता था। इस एहसास ने मुझे तड़पा कर रख दिया। मैंने रूपा को और ज़ोर से छुपका लिया। उसका रोना तो अब बंद हो गया था लेकिन सिसकियां अभी भी चालू थीं।

"बस बहुत हुआ।" मैंने जैसे फ़ैसला कर लिया था। उसे खुद से अलग कर के और फिर उसके आंसुओं से तर चेहरे को अपनी हथेलियों में ले कर कहा____"तुमने बहुत दे लिया अपने प्रेम का इम्तिहान, अब और नहीं। अगर इतने पर भी मैं तुम्हें और तुम्हारे प्रेम को न समझ पाया और तुम्हें क़बूल नहीं किया तो शायद ये मेरे द्वारा किया गया सबसे बड़ा गुनाह होगा।"

"ऐसा मत कहो।" वो भारी गले से बोली।

"मुझे कहने दो रूपा।" मैंने बड़े स्नेह से कहा____"मुझे एहसास हो रहा है कि मैंने तुम्हारे और तुम्हारे प्रेम के साथ बहुत अन्याय किया है। जबकि तुमने एक ऐसे इंसान के लिए ख़ुद को हमेशा प्रेम की कसौटी पर पीसा जो इसके लायक ही नहीं था। ख़ैर बहुत हुआ ये सब। अब मैं ना तो तुम्हें कोई इम्तिहान देने दूंगा और ना ही किसी तरह का दुख दूंगा। मुझे अनुराधा के जाने का दुख ज़रूर है लेकिन अब मैं उसकी वजह से तुम्हें और तुम्हारे प्रेम को कोई तकलीफ़ नहीं दूंगा।"

मेरी बातों ने रूपा के मुरझाए चेहरे पर खुशी की चमक बिखेरनी शुरू कर दी। मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर रखा था। इतने क़रीब से आज काफी समय बाद मैं उसे देख रहा था। उसके हल्के सुर्ख होठ हौले हौले कांप रहे थे। मुझे उस पर बेहद प्यार आया तो मैंने आगे बढ़ कर उसके माथे को प्यार से चूम लिया।

"क्या मैं भी चूम लूं तुम्हें?" उसने बड़ी मासूमियत से पूछा तो मैं पलकें झपका कर उसे इजाज़त दे दी।

जैसे ही मेरी इजाज़त मिली तो वो खुश हो गई और फिर लपक कर उसने मेरे सूखे लबों को अपने रसीले होठों से मानों सराबोर कर दिया। मैं उसकी इस क्रिया से पहले तो हड़बड़ाया किंतु फिर शान्त पड़ गया। मैंने कोई विरोध नहीं किया।

रूपा दीवानावार सी हो कर मेरे होठों को चूमे जा रही थी। मैं उसका विरोध तो नहीं कर रहा था किंतु अपनी तरफ से कोई पहल भी नहीं कर रहा था। क़रीब दो मिनट बाद जब उसकी सांसें उखड़ने लगीं तो उसने मेरे होठों को आज़ाद कर के अपना चेहरा थोड़ा दूर कर लिया। उसकी आंखें बंद थीं और सांसें धौकनी की मानिंद चल रहीं थी। थोड़ी देर के बाद उसने धीरे धीरे अपनी आंखें खोली। जैसे ही उसकी नज़रें मेरी नज़रों से मिलीं तो वो बुरी तरह लजा गई। शर्म से उसका गोरा चेहरा सिंदूरी हो उठा। पूरी तरह गीले हो चुके होठों पर मुस्कान बिखर गई।

"मुझे नहीं पता था कि इजाज़त मिलने पर एक ही बार में इतने समय की वसूली हो जाएगी।" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए उसे देखा तो वो मेरी इस बात से और भी बुरी तरह शर्मा गई।

रूपा के चेहरे पर अभी भी आंसुओं के निशान थे किंतु दो ही मिनट में उसका चेहरा खुशी की वजह से खिल उठा था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि इतना कुछ सहने के बाद भी जब किसी इंसान को थोड़ी सी खुशी मिल जाती है तो कैसे उसका चेहरा खिल जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसे कभी कोई दुख ही न रहा हो। एक अदनी सी खुशी वर्षों से मिले दुख को मानों पल भर में मिटा देती है। वाह रे! प्रेम, अजब फितरत है तेरी।

"तुम ग़लत समझ रहे हो।" फिर उसने हौले से पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा____"ये वसूली नहीं है बल्कि प्रेम रूपी थाली में रखे हुए प्रसाद से थोड़ा सा प्रसाद लिया है मैंने। पूरी थाली का प्रसाद लेना तो बाकी है अभी।"

"अच्छा ऐसा है क्या?" मैंने हैरानी ज़ाहिर करते हुए कहा____"मुझे तो पता भी नहीं था कि ऐसा भी कुछ होता है।"

"हां और मैंने यकीन भी कर लिया कि तुम्हें कुछ पता ही नहीं है।" रूपा ने मुस्कुराते हुए सहसा व्यंग्य सा किया____"ख़ैर तुम्हें ख़ुद को अगर नादान और नासमझ बनाए रखना है तो यही सही।"

"बात नादानी अथवा नासमझ बनने की नहीं है।" मैंने कहा____"मैं तो बस अपना पिछला सब कुछ भुला कर तुम्हारे साथ नए सिरे से एक नया अध्याय शुरू करना चाहता हूं। तुम्हें मुझसे ज़्यादा प्रेम के बारे में पता है और तजुर्बा भी है इस लिए मैं चाहता हूं कि अब तुम ही सब कुछ सिखाओ मुझे।"

"प्रेम की विशेषता ही यही है कि इसमें किसी को कुछ सिखाया नहीं जाता है।" रूपा ने अपलक मेरी आंखों में देखते हुए कहा____"बल्कि इसमें तो इंसान दिल के हाथों मजबूर होता है। जो दिल कहता है अथवा चाहता है इंसान बिना सोचे समझे वही करता रहता है।"

"हम्म्म्म।" मैंने कहा। अचानक ही मुझे कुछ महसूस हुआ तो मैंने रूपा से कहा____"क्या तुम्हें भी ऐसा महसूस हो रहा है जैसे किसी चीज़ की गंध आ रही है?"

मेरी इस बात से रूपा चौंकी। फिर उसने कुछ सूंघने का प्रयास किया। अगले ही पल जैसे उसे कुछ समझ आ गया तो वो हड़बड़ा कर पलटी। नज़र चूल्हे पर टंगे तवे पर गई। तवे पर पड़ी रोटी सुलग कर ख़ाक हो चुकी थी और अब उसमें से निकलने वाला धुवां भी कम हो चला था।

"हाय राम! रूपा लपक कर चूल्हे के पास पहुंची____"तुम्हारे चक्कर में रोटी भी जल कर राख हो गई।"

"हां, ये मेरे ही चक्कर से हुआ है।" मैंने कहा____"मैंने अगर होठों से होठ न मिलाए होते तो शायद रोटी का वजूद न मिटता।"

"चुप करो तुम।" रूपा मेरी बात से शर्मा कर झेंप गई____"बातें न बनाओ और जा कर बाहर बैठो। तवे को मुझे फिर से मांजना होगा, उसके बाद ही रोटी बनेगी अब।"

मैं मन ही मन मुस्कुराया और चुपचाप बाहर आ कर तखत पर बैठ गया। जबकि रूपा तवे को चूल्हे से निकाल कर बाहर ले आई और उसे ठंडा करने के बाद मांजने लगी। मैं तखत पर बैठा उसे ही देखे जा रहा था। अभी थोड़ी देर पहले जो कुछ हमारे बीच हुआ था मैं उसी के बारे में सोच रहा था। मैंने महसूस किया कि अब मुझे बहुत हल्का महसूस हो रहा है।

✮✮✮✮

खाने पीने के बाद मैंने रूपा को सरोज काकी के घर भेज दिया था और ख़ुद हवेली निकल गया था। रूपा से मुझे पता चल चुका था कि मालती के पति ने किन लोगों से कर्ज़ा लिया था। उन लोगों से मिलने से पहले मैं रुपयों का इंतज़ाम करना चाहता था, क्योंकि मेरे पास मौजूदा समय में ज़्यादा पैसे ही नहीं थे। इस लिए मैं हवेली निकल गया था।

हवेली पहुंच कर मैं सबसे पहले मां और चाची लोगों से मिला। मां ने बताया कि सुबह चंदनपुर से भाभी के बड़े भाई साहब यानि वीरेंद्र सिंह आए थे। अभी एक घंटे पहले ही रागिनी भाभी अपने भाई के साथ चंदनपुर चली गईं हैं। मां से जब मुझे भाभी के जाने का पता चला तो मुझे ये सोच कर बुरा लगा कि किसी ने मुझे इस बारे में पहले बताया नहीं। मां ने बताया कि भाभी की मां अपनी बेटी को बहुत याद कर रहीं थी इस लिए वीरेंद्र सिंह लेने आए थे। ख़ैर खाना मैं खा चुका था इस लिए मैं आराम करने अपने कमरे में चला गया। पिता जी दोपहर के समय अपने कमरे में आराम करते थे इस लिए इस वक्त उनसे बात करना उचित नहीं था।

क़रीब साढ़े तीन बजे मैं अपने कमरे से निकला और नीचे आया। कमरे से रिवॉल्वर ले आना नहीं भूला था मैं। कुसुम से पता चला कि पिता जी अभी थोड़ी देर पहले ही गुसलखाने से निकल कर कमरे में गए हैं। शायद कहीं जाना है उन्हें। मैंने कुसुम को चाय बनाने को कहा और बैठक की तरफ बढ़ गया।

थोड़ी देर में पिता जी तैयार हो कर बैठक में आए। किशोरी लाल पहले से ही तैयार हो कर बैठक में बैठे थे। मेरी थोड़ी बहुत उनसे बातें हुईं। पिता जी अपनी ऊंची कुर्सी पर बैठ गए और मेरी तरफ ध्यान से देखने लगे।

"क्या बात है?" फिर उन्होंने मुझसे पूछा____"सब ठीक तो है?"

"जी, सब तो ठीक है।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"लेकिन मुझे कुछ रुपयों की ज़रूरत है।"

"हमें एक ज़रूरी काम से कहीं जाना है।" पिता जी ने कहा____"तुम अपनी मां से ले लो रुपये। वैसे किस चीज़ के लिए चाहिए तुम्हें रुपये?"

"किसी ज़रूरतमंद की सहायता करने के लिए।" मैंने इतना ही कहा।

"हम्म्म्म।" पिता जी ने कहा____"इसका मतलब कुछ ज़्यादा ही रुपयों की ज़रूरत है तुम्हें।" कहने के साथ ही पिता जी मुंशी किशोरी लाल से मुखातिब हुए____"किशोरी लाल जी, जाइए इसे जितने पैसों की आवश्यकता हो आप दे दीजिए।"

"जी ठीक है ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने कहा और उठ कर बैठक से बाहर की तरफ चल पड़ा। मैं भी उनके पीछे चल पड़ा।

जल्दी ही मैं किशोरी लाल के साथ अंदर एक ऐसे कमरे में पहुंचा जिसमें वर्षों से रुपए पैसे और कागज़ात वगैरह रखे जाते थे। उस कमरे में कई संदूखें और अलमारियां थीं। किशोरी लाल ने दीवार में धंसी एक पुरानी किंतु बेहद मजबूत अलमारी को खोला और मेरे बताए जाने पर उसमें से पच्चीस हज़ार रुपए निकाल कर मुझे दिए।

रुपए ले कर मैंने उसे अपने एक बैग में डाला और हवेली से बाहर निकल गया। कुछ ही देर में मैं जीप में बैठा उड़ा चला जा रहा था।

मैं अपने खेतों पर पहुंचा तो भुवन वहीं था। मैंने उसे जीप में बैठाया और वहां से चल पड़ा। रास्ते में मैंने उसे बताया कि हमें कहां और किस काम के लिए जाना है। भुवन ने साथ में भीमा और बलवीर को भी ले चलने की सलाह दी जो मुझे भी उचित लगी। असल में मुझे अंदेशा था कि ये मामला आसानी से निपट जाने वाला नहीं है। ख़ैर जल्दी ही हम दोनों भीमा और बलवीर के घर पहुंचे। वहां से दोनों को जीप में बैठा कर मैं निकल पड़ा।




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Chaliye kch dard ki tapan kam hogi
Unke labon ne chhu liya, aur wo sharma bhi gye
syd yhi ishq ki ksm hogi
 
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