Ye kahani jis time ki hai us time shayad paye jate the aise log..रूपा जैसा भी कोई होता है क्या, इतना प्यारा भी कोई हो सकता है क्या,
मासूम है भोली हे गंगा सी पवित्र है रूपा।
ThanksShandar update
Koi baat nahi...मेरे भाई, आज कल अधिक व्यस्त हूं। इसलिए कहानियां लिखने पढ़ने और प्रतिक्रिया करने का अवसर नहीं मिल रहा है। शीघ्र ही मिलते हैं।
ThanksSuperb awesome update luvd it
एक बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गयाअध्याय - 127
━━━━━━༻♥༺━━━━━━
रूपा ने चाय के प्याले को झट से एक तरफ रखा और फिर झपट कर मुझे खुद से छुपका लिया। मुझे इस तरह दुखी होते देख उसकी आंखें भर आईं थी। उसका हृदय तड़प उठा था। ये सोच कर उसकी आंखें छलक पड़ीं कि जिसे वो इतना प्रेम करती है उसकी तकलीफ़ों को वो इतनी कोशिश के बाद भी दूर नहीं कर पा रही है। मन ही मन उसने अपनी देवी मां को याद किया और उनसे मेरी तकलीफ़ों को दूर करने की मिन्नतें करने लगी।
अब आगे....
शाम का अंधेरा घिर चुका था।
गौरी शंकर अपने घर की बैठक में बैठा चाय पी रहा था। बैठक में उसके अलावा रूपचंद्र और घर की बुजुर्ग औरतें यानि फूलवती, ललिता देवी, सुनैना देवी और विमला देवी थीं। घर की दोनों बहुएं और सभी लड़कियां अंदर थीं। एक घंटे पहले गौरी शंकर अपने घर आया था। उसने सबको बताया था कि दादा ठाकुर उसे अपने कुल गुरु के पास ले गए थे। उसके बाद वहां पर जो भी बातें हुईं थी वो सब गौरी शंकर सभी को बता चुका था जिसे सुनने के बाद चारो औरतें चकित रह गईं थी। रूपचंद्र का भी यही हाल था।
"बड़े आश्चर्य की बात है कि दादा ठाकुर अपने कुल गुरु द्वारा की गई भविष्यवाणी पर इतना विश्वास करते हैं।" फूलवती ने कहा____"और इतना ही नहीं उस भविष्यवाणी के अनुसार वो ऐसा करने को भी तैयार हैं।"
"कुल गुरु द्वारा की गई भविष्यवाणियां अब तक सच हुईं हैं भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"यही वजह है कि दादा ठाकुर कुल गुरु की बातों पर इतना भरोसा करते हैं। वैसे भी उनके गुरु जी कोई मामूली व्यक्ति नहीं हैं बल्कि सिद्ध पुरुष हैं। इस लिए उनकी बातों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।"
"तो क्या अब हमें भी इस भविष्यवाणी के अनुसार ही चलना होगा?" फूलवती ने कहा____"क्या तुम इस सबके लिए सहमत हो गए हो?"
"सहमत होने के अलावा मेरे पास कोई चारा ही नहीं था भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"आप भी जानती हैं कि इस समय हमारी जो स्थिति है उसके चलते हम दादा ठाकुर के किसी भी फ़ैसले पर ना तो सवाल उठा सकते हैं और ना ही कोई विरोध कर सकते हैं।"
"तो क्या मैं ये समझूं कि दादा ठाकुर हमारी मज़बूरी का फ़ायदा उठा रहे हैं?" फूलवती ने सहसा नाराज़गी अख़्तियार करते हुए कहा____"और चाहते हैं कि हम चुपचाप वही करें जो वो करने को कहें?"
"ऐसी बात नहीं है भौजी।" गौरी शंकर ने दृढ़ता से कहा____"दादा ठाकुर ऐसे इंसान नहीं हैं जो किसी की मज़बूरी का फ़ायदा उठाने का ख़याल भी अपने ज़हन में लाएं।"
"तो फिर कैसी बात है गौरी?" फूलवती उसी नाराज़गी से बोलीं____"उन्हें अपने कुल गुरु के द्वारा पहले ही पता चल गया था इस सबके बारे में तो उन्होंने इस बारे में तुम्हें क्यों नहीं बताया?"
"वो सब कुछ बताना चाहते थे भौजी।" गौरी शंकर ने जैसे समझाते हुए कहा____"किंतु उन्होंने ये सोच कर नहीं बताया था कि मैं और आप सब उनके बारे में वही सब सोच बैठेंगे जो इस वक्त आप सोच रही हैं। इस लिए उन्होंने बहुत सोच समझ कर इसका एक हल निकाला और वो हल यही था कि वो मुझे अपने कुल गुरु के पास ले जाएं और उनके द्वारा ही इस सबके बारे में मुझे अवगत कराएं।"
"वाह! बहुत खूब।" फूलवती ने कहा___"हमें बुद्धू बनाने का क्या शानदार तरीका अपनाया है दादा ठाकुर ने।"
"ऐसी बात नहीं है भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"हम ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर ऐसे इंसान नहीं हैं। कभी कभी वक्त और हालात ऐसे बन जाते हैं कि हम सही को ग़लत और अच्छे को बुरा समझ लेते हैं। आप हम सबसे बड़ी हैं और इतने सालों से आपने भी दादा ठाकुर के बारे में बहुत कुछ सुना ही होगा। सच सच बताइए, क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि दादा ठाकुर ने किसी के साथ कुछ ग़लत किया है अथवा कभी किसी की मज़बूरी का फ़ायदा उठाया है?"
गौरी शंकर के इस सवाल पर फूलवती ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी ख़ामोशी बता रही थी कि दादा ठाकुर के बारे में उसने कभी भी ऐसा कुछ नहीं सुना था।
"उन्हें तो पता भी नहीं था कि वैभव किसी लड़की से प्रेम करता है।" गौरी शंकर ने आगे कहा____"उनके मन में सिर्फ इतना ही था कि हमारी बेटी ही उनकी बहू बनेगी लेकिन जब वो अपने कुल गुरु से मिले और गुरु जी ने उन्हें ये बताया कि वैभव के जीवन में उसकी दो पत्नियां होंगी तो वो बड़ा हैरान हुए। उस वक्त उन्हें समझ ही नहीं आया था कि ऐसा कैसे हो सकता है? हमारी बेटी रूपा को तो उन्होंने बहू मान लिया था किंतु वैभव की दूसरी पत्नी कौन बनेगी ये सवाल जैसे उनके लिए रहस्य सा बन गया था। उधर दूसरी तरफ वो अपनी बहू रागिनी के लिए भी बहुत चिंतित थे। इतनी कम उमर में उनकी बहू विधवा हो गई थी जिसका उन्हें बेहद दुख था। वो चाहते थे कि उनकी बहू दुखी न रहे इस लिए वो उसे खुश रखने के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे। लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा वो क्या करें जिससे उनकी बहू का दुख दूर हो जाए। रागिनी का ब्याह वैभव से करने का ख़याल उनके मन में दूर दूर तक नहीं था। कुछ दिनों बाद जब मेरे द्वारा उन्हें ये पता चला कि वैभव किसी और लड़की से प्रेम करता है तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हुआ कि उनका बेटा किसी लड़की से प्रेम भी कर सकता है। उनकी नज़र में तो वैभव एक ऐसे चरित्र का लड़का था जो हद से ज़्यादा बिगड़ा हुआ था और सिर्फ अय्यासिया ही करता था। बहरहाल, देर से ही सही लेकिन उन्हें इस बात का यकीन हो ही गया कि सच में उनका बेटा मुरारी नाम के एक किसान की बेटी से प्रेम करता है। उसी समय उन्हें अपने कुल गुरु की भविष्यवाणी वाली बात याद आई और उन्हें समझ आ गया कि उनके बेटे की दूसरी पत्नी शायद वो लड़की ही बनेगी। अब क्योंकि गुरु जी ने स्पष्ट कहा था कि अगर इस मामले में उन्होंने कोई कठोर क़दम उठाया तो अंजाम अच्छा नहीं होगा इस लिए उन्हें इस बात के लिए राज़ी होना ही पड़ा कि उनके बेटे की दूसरी पत्नी वो लड़की ही होगी। वो भी नहीं चाहते थे कि इतना कुछ हो जाने के बाद उनके परिवार में फिर से कोई मुसीबत आ जाए।"
"और रागिनी का ब्याह वैभव के साथ कर देने की बात उनके मन में कैसे आई?" फूलवती ने पूछा____"क्या गुरु जी ने इस बारे में भी भविष्यवाणी की थी?"
"उन्होंने इसकी भविष्यवाणी नहीं की थी।" गौरी शंकर ने कहा____"किंतु दादा ठाकुर को सुझाव ज़रूर दिया था कि वो अपने छोटे बेटे वैभव के साथ उसका ब्याह कर दें। उनके ऐसा कहने की वजह ये थी कि दादा ठाकुर अपनी बहू को बहुत मानते हैं। उसे अपनी बेटी ही समझते हैं और यही चाहते हैं कि उनकी बहू हमेशा खुश रहे और बहू के रूप में हवेली में ही रहे। अपनी बहू के दुख को दूर कर के उसके जीवन में खुशियों के रंग तो तभी भर सकेंगे वो जब उनकी बहू फिर से किसी की सुहागन बन जाए और ऐसा तभी संभव हो सकता है जब वो वैभव के साथ उसका ब्याह कर दें।"
"बात तो सही है तुम्हारी।" फूलवती ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"लेकिन क्या उनकी बहू अपने देवर से ब्याह करने को तैयार होगी? जितना मैंने उसके बारे में सुना है उससे तो यही लगता है कि वो इसके लिए कभी तैयार नहीं होगी।"
"भविष्य में क्या होगा इस बारे में कोई नहीं जानता भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"वैसे भी इस संसार में अक्सर कुछ ऐसा भी हो जाता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं किए होते। ख़ैर ये तो बाद की बात है। उससे पहले इस बात पर भी ग़ौर कीजिए कि जिस लड़की को दादा ठाकुर अपने बेटे की होने वाली दूसरी पत्नी समझ बैठे थे दुर्भाग्यवश उसकी हत्या हो गई। जबकि कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार वैभव की दो पत्नियां ही होंगी। अनुराधा तो अब रही नहीं तो साफ ज़ाहिर है कि वैभव की होने वाली दूसरी पत्नी कोई और नहीं बल्कि दादा ठाकुर की विधवा बहू रागिनी ही है। अनुराधा की हत्या हो जाने के बाद यही बात दादा ठाकुर के मन में भी उभरी थी।"
"बड़ी अजीब बात है।" फूलवती ने कहा____"मुझे तो अब भी इन बातों पर यकीन नहीं हो रहा। ख़ैर, ऊपर वाला पता नहीं क्या चाहता है? अच्छा ये बताओ कि क्या वैभव को भी ये सब पता है?"
"नहीं।" गौरी शंकर ने कहा____"उसे अभी इस बारे में कुछ पता नहीं है। दादा ठाकुर ने मुझसे कहा है कि हम में से कोई भी फिलहाल इस बारे में वैभव को कुछ नहीं बताएगा और ना ही रूपा को।"
"ये आप क्या कह रहे हैं काका?" काफी देर से चुप बैठा रूपचंद्र बोल पड़ा____"इतनी बड़ी बात मेरी मासूम बहन को क्यों नहीं बताई जाएगी? दादा ठाकुर का तो समझ में आता है लेकिन आप अपनी बेटी के साथ ऐसा छल कैसे कर सकते हैं?"
"ऐसा नहीं है बेटा।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं उसके साथ कोई छल नहीं कर रहा हूं। उचित समय आने पर उसे भी इस बारे में बता दिया जाएगा। अभी उसे वैभव के साथ खुशी खुशी जीने दो। अगर हमने अभी ये बात उसको बता दी तो शायद वो दुखी हो जाएगी। अनुराधा को तो उसने किसी तरह क़बूल कर लिया था लेकिन शायद रागिनी को इतना जल्दी क़बूल न कर पाए। इंसान जिस पर सिर्फ अपना अधिकार समझ लेता है उस पर अगर बंटवारा जैसी बात आ जाए तो बर्दास्त करना मुश्किल हो जाता है। मैं नहीं चाहता कि वो अभी से दुख और तकलीफ़ में आ जाए। इसी लिए कह रहा हूं कि अभी उसे इस बारे में बताना उचित नहीं है।"
"मैं आपका मतलब समझ गया काका।" रूपचंद्र सहसा फीकी मुस्कान होठों पर सजा कर बोला____"लेकिन मैं आपसे यही कहूंगा कि आप अभी अपनी भतीजी को पूरी तरह समझे नहीं हैं। आप नहीं जानते हैं कि मेरी बहन का हृदय कितना विशाल है। जिसने कई साल वैभव के प्रेम के चलते उसकी जुदाई का असहनीय दर्द सहा हो उसे दुनिया का दूसरा कोई भी दुख दर्द प्रभावित नहीं कर सकता। मैंने पिछले एक महीने में उसे बहुत क़रीब से देखा और समझा है काका और मुझे एहसास हो गया है कि मेरी बहन कितनी महान है। ख़ैर आप भले ही उसे कुछ न बताएं लेकिन मैं अपनी बहन को किसी धोखे में नहीं रखूंगा। उसे बता दूंगा कि वैभव पर अब भी सिर्फ उसका नहीं बल्कि किसी और का भी अधिकार है और वो कोई और नहीं बल्कि वैभव की अपनी ही भाभी है।"
"मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूं बेटा।" गौरी शंकर ने कहा____"और मुझे खुशी है कि तुम्हें अपनी बहन का इतना ज़्यादा ख़याल है लेकिन तुम्हें ये भी समझना चाहिए कि हर जगह भावनाओं से काम नहीं लिया जाता। सामने वाले की भलाई के लिए कभी कभी हमें झूठ और छल का भी सहारा लेना पड़ता है। दूसरी बात ये भी है कि इस बारे में अभी दादा ठाकुर की बहू रागिनी को भी पता नहीं है। मुझे भी लगता है कि रागिनी अपने देवर से ब्याह करने को तैयार नहीं होगी। ख़ुद ही सोचो कि ऐसे में ये बात रूपा को बता कर बेवजह उसे दुख और तकलीफ़ देना क्या उचित होगा? पहले इस बारे में दादा ठाकुर की बहू को तो पता चलने दो। इस बारे में वो क्या फ़ैसला करती है ये तो पता चलने दो। उसके बाद ही हम अपना अगला क़दम उठाएंगे।"
"ठीक है काका।" रूपचंद्र ने कहा____"शायद आप सही कह रहे हैं। जब तक इस बारे में वैभव की भाभी अपना फ़ैसला नहीं सुनाती तब तक हमें इसका ज़िक्र रूपा से नहीं करना चाहिए।"
कुछ देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद चारो औरतें घर के अंदर चली गईं। इधर गौरी शंकर और रूपचंद्र भी दिशा मैदान जाने के लिए उठ गए।
✮✮✮✮
"मालती काकी के साथ बहुत बुरा हुआ है।" चूल्हे में रोटी सेंक रही रूपा ने कहा____"कंजरों ने उस बेचारी को बेघर कर दिया। अपने पांच पांच बच्चों को अब कैसे सम्हालेंगी वो?"
"ये सब उसके पति की वजह से हुआ है।" मैंने कहीं खोए हुए से कहा____"जुएं में सब कुछ लुटा दिया। शुक्र था कि उसने अपने बीवी बच्चों को भी जुएं में नहीं लुटा दिया था।"
"हमें उनकी सहायता करनी चाहिए।" रूपा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"नहीं तो मां (सरोज) अकेले उन सबका भार कैसे सम्हाल पाएंगी?"
"हां ये तो है।" मैंने सिर हिलाया____"लेकिन हम कैसे उनकी सहायता कर सकते हैं?"
"अगर उन्हें उनका घर वापस मिल जाए तो अच्छा होगा उनके लिए।" रूपा ने जैसे सुझाव दिया।
"सिर्फ घर वापस मिल जाने से क्या होगा?" मैंने कहा____"घर से ज़्यादा ज़रूरी होता है दो वक्त का भोजन मिलना। अगर भूख मिटाने के लिए भोजन ही न मिलेगा तो कोई जिएगा कैसे?"
"सही कहा।" रूपा ने कहा____"दो वक्त की रोटी मिलना तो ज़रूरी ही है उनके लिए मगर कुछ तो करना ही पड़ेगा ना हमें। ऐसे कब तक वो मां के लिए बोझ बने रहेंगे?"
"दो वक्त की रोटी बिना मेहनत किए नहीं मिलेगी।" मैंने कहा____"इस लिए मेहनत मज़दूरी कर के ही मालती काकी को अपना और अपने बच्चों का पेट भरना होगा। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं है।"
"हां पर सवाल ये है कि एक अकेली औरत अपने पांच पांच बच्चों का पेट भरने के लिए क्या मेहनत मज़दूरी कर पाएगी?" रूपा ने कहा____"दूसरी बात ये भी है कि गांव के आवारा और बुरी नीयत वाले लोग क्या उन्हें चैन से जीने देंगे?"
"इस बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"जिस घर का मुखिया गुज़र जाता है तो लोग उस घर की औरतों अथवा लड़कियों पर बुरी नज़र डालते ही हैं। दुनिया की यही सच्चाई है।"
"हां ये भी सही कहा तुमने।" रूपा ने सिर हिलाते हुए कहा____"इंसान के जीवन में किसी न किसी की समस्या बनी ही रहती है। ख़ैर, हमें इतना तो करना ही चाहिए कि उनका घर उन्हें वापस मिल जाए।"
"कल जब तुम वहां जाना तो उससे पूछना कि ऐसे वो कौन लोग थे जिनसे जगन ने कर्ज़ा लिया था अथवा घर और खेतों को गिरवी किया था?" मैंने कहा____"उसके बाद ही सोचेंगे कि इस मामले में क्या किया जा सकता है?"
"ठीक है, मैं कल ही इस बारे में मालती काकी से बात करूंगी।" रूपा ने कहा____"अच्छा अब जा कर हाथ धो लो, खाना बन गया है। मैं तब तक थाली लगाती हूं।"
रूपा की बात सुन कर मैं उठा और लोटे में पानी ले कर बाहर निकल गया। जल्दी ही मैं वापस आया और दरवाज़ा अंदर से बंद कर के वहीं रसोई से थोड़ा दूर बैठ गया। रूपा ने आ कर मेरे सामने थाली रख दी। उसके बाद वो भी अपने लिए थाली ले कर पास ही बैठ गई। मैं चुपचाप खाने लगा जबकि रूपा बार बार मेरी तरफ देखने लगती थी।
रूपा के साथ आज ये दूसरी रात थी। उसने अब तक जो कुछ जिस तरीके से किया था उस सबको ना चाहते हुए भी मैं सोचने पर मजबूर हो जाता था। मैंने महसूस किया था कि पहले की अपेक्षा मुझमें थोड़ा परिवर्तन आया था। सबसे बड़ा परिवर्तन तो यही था कि मैं उसकी किसी बात से नाराज़ अथवा नाखुश नहीं हो रहा था और ना ही ऐसा हो रहा था कि मैं उसकी किसी बात से अथवा बर्ताव से परेशान होता। मैं समझने लगा था कि रूपा मुझे मेरी ऐसी मानसिक अवस्था से बाहर निकालने का बड़े ही प्रेम से और कुशल तरीके से प्रयास कर रही थी।
बहरहाल, खाना खाने के बाद मैं जा कर लकड़ी की कुर्सी पर बैठ गया था जबकि रूपा जूठे बर्तनों को धोने में लग गई थी। हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था किंतु मेरे मन में विचारों का बवंडर सा चल रहा था। कुछ समय बाद जब रूपा ने बर्तन धो कर रख दिए तो मैं उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गया।
रूपा आज अपने कमरे में नहीं गई बल्कि सीधा मेरे कमरे में ही आ कर ज़मीन पर अपना बिस्तर लगाने लगी थी। उधर मैं चुपचाप चारपाई पर लेट गया था। मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था लेकिन इस सबको खुद से दूर कर देना जैसे मेरे बस में नहीं था।
"सो गए क्या?" कुछ देर बाद सन्नाटे में रूपा की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।
"नहीं।" मैंने उदास भाव से जवाब दिया____"आज कल रातों को इतना जल्दी नींद नहीं आती।"
"क्या मैं कोशिश करूं?" रूपा ने मेरी तरफ करवट ले कर कहा।
"मतलब?" मुझे जैसे समझ न आया।
"मतलब ये कि तुम्हें नींद आ जाए इसके लिए मैं कोई तरीका अपनाऊं।" रूपा ने कहा____"जैसे कि तुम्हारे पास आ कर तुम्हें प्यार से झप्पी डाल लूं और फिर हौले हौले थपकी दे के सुलाऊं।"
"नहीं, ऐसा करने की ज़रूरत नहीं।" मैं उसकी बात समझते ही बोल पड़ा____"तुम आराम से सो जाओ। मुझे जब नींद आनी होगी तो आ जाएगी।"
"कहीं तुम ये सोच कर तो नहीं मना कर रहे कि मैं तुम्हारे साथ कोई ग़लत हरकत करूंगी?" रूपा सहसा उठ कर बैठ गई थी और मुझे अपलक देखने लगी थी।
"मैं ऐसा कुछ नहीं सोच रहा।" मेरी धड़कनें एकाएक बढ़ गईं____"मैं बस तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता। वैसे भी तुम दिन भर के कामों से थकी हुई होगी।"
"तुम्हारी तकलीफ़ों को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं वैभव।" रूपा ने सहसा अधीर हो कर कहा____"मेरे रहते मेरा महबूब अगर ज़रा भी तकलीफ़ में होगा तो ये मेरे लिए शर्म की बात होगी।"
"मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है।" मैं झट से बोल पड़ा____"तुम बेकार में ही ऐसा सोच रही हो। मैं बिल्कुल ठीक हूं, तुम आराम से सो जाओ।"
मेरी बात सुन कर रूपा इस बार कुछ न बोली। बस एकटक देखती रही मेरी तरफ। कमरे में लालटेन का मध्यम प्रकाश था जिसके चलते हम दोनों एक दूसरे को बड़े आराम से देख सकते थे। रूपा को इस तरह एकटक अपनी तरफ देखता देख मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो गईं। मैंने खुद को सम्हालते हुए दूसरी तरफ करवट ले ली ताकि मुझे उसकी तरफ देखना ना पड़े।
मैं जानता था कि मेरे इस बर्ताव से रूपा को बुरा लगा होगा और वो दुखी भी हो गई होगी किंतु मैं इस वक्त उसे अपने क़रीब नहीं आने देना चाहता था। इस लिए नहीं कि उसके क़रीब आने से मैं कुछ ग़लत कर बैठूंगा बल्कि इस लिए कि मैं फिलहाल ऐसी मानसिक स्थिति में ही नहीं था। अनुराधा के अलावा मेरे दिल में अभी भी रूपा के लिए वो स्थान नहीं स्थापित हो सका था जिसके चलते मैं अनुराधा की तरह उसे सच्चे दिल से प्रेम कर सकूं।
जाने कितनी ही देर तक मेरे दिलो दिमाग़ में ख़यालों और जज़्बातों का तूफ़ान चलता रहा। उसके बाद कब मैं नींद के आगोश में चला गया पता ही नहीं चला।
━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Koi baat nahi.Thanks all...
Sorry dosto...kuch zyada hi busy ho gaya tha is liye update nahi de paya...Abhi bhi busy hi hu is liye sabko reply bhi thik se nahi de sakunga..
Dada thakur ne syd nishchay kr liya h ki ragini bhabhi ka vivah vaibhav se hoअध्याय - 127
━━━━━━༻♥༺━━━━━━
रूपा ने चाय के प्याले को झट से एक तरफ रखा और फिर झपट कर मुझे खुद से छुपका लिया। मुझे इस तरह दुखी होते देख उसकी आंखें भर आईं थी। उसका हृदय तड़प उठा था। ये सोच कर उसकी आंखें छलक पड़ीं कि जिसे वो इतना प्रेम करती है उसकी तकलीफ़ों को वो इतनी कोशिश के बाद भी दूर नहीं कर पा रही है। मन ही मन उसने अपनी देवी मां को याद किया और उनसे मेरी तकलीफ़ों को दूर करने की मिन्नतें करने लगी।
अब आगे....
शाम का अंधेरा घिर चुका था।
गौरी शंकर अपने घर की बैठक में बैठा चाय पी रहा था। बैठक में उसके अलावा रूपचंद्र और घर की बुजुर्ग औरतें यानि फूलवती, ललिता देवी, सुनैना देवी और विमला देवी थीं। घर की दोनों बहुएं और सभी लड़कियां अंदर थीं। एक घंटे पहले गौरी शंकर अपने घर आया था। उसने सबको बताया था कि दादा ठाकुर उसे अपने कुल गुरु के पास ले गए थे। उसके बाद वहां पर जो भी बातें हुईं थी वो सब गौरी शंकर सभी को बता चुका था जिसे सुनने के बाद चारो औरतें चकित रह गईं थी। रूपचंद्र का भी यही हाल था।
"बड़े आश्चर्य की बात है कि दादा ठाकुर अपने कुल गुरु द्वारा की गई भविष्यवाणी पर इतना विश्वास करते हैं।" फूलवती ने कहा____"और इतना ही नहीं उस भविष्यवाणी के अनुसार वो ऐसा करने को भी तैयार हैं।"
"कुल गुरु द्वारा की गई भविष्यवाणियां अब तक सच हुईं हैं भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"यही वजह है कि दादा ठाकुर कुल गुरु की बातों पर इतना भरोसा करते हैं। वैसे भी उनके गुरु जी कोई मामूली व्यक्ति नहीं हैं बल्कि सिद्ध पुरुष हैं। इस लिए उनकी बातों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।"
"तो क्या अब हमें भी इस भविष्यवाणी के अनुसार ही चलना होगा?" फूलवती ने कहा____"क्या तुम इस सबके लिए सहमत हो गए हो?"
"सहमत होने के अलावा मेरे पास कोई चारा ही नहीं था भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"आप भी जानती हैं कि इस समय हमारी जो स्थिति है उसके चलते हम दादा ठाकुर के किसी भी फ़ैसले पर ना तो सवाल उठा सकते हैं और ना ही कोई विरोध कर सकते हैं।"
"तो क्या मैं ये समझूं कि दादा ठाकुर हमारी मज़बूरी का फ़ायदा उठा रहे हैं?" फूलवती ने सहसा नाराज़गी अख़्तियार करते हुए कहा____"और चाहते हैं कि हम चुपचाप वही करें जो वो करने को कहें?"
"ऐसी बात नहीं है भौजी।" गौरी शंकर ने दृढ़ता से कहा____"दादा ठाकुर ऐसे इंसान नहीं हैं जो किसी की मज़बूरी का फ़ायदा उठाने का ख़याल भी अपने ज़हन में लाएं।"
"तो फिर कैसी बात है गौरी?" फूलवती उसी नाराज़गी से बोलीं____"उन्हें अपने कुल गुरु के द्वारा पहले ही पता चल गया था इस सबके बारे में तो उन्होंने इस बारे में तुम्हें क्यों नहीं बताया?"
"वो सब कुछ बताना चाहते थे भौजी।" गौरी शंकर ने जैसे समझाते हुए कहा____"किंतु उन्होंने ये सोच कर नहीं बताया था कि मैं और आप सब उनके बारे में वही सब सोच बैठेंगे जो इस वक्त आप सोच रही हैं। इस लिए उन्होंने बहुत सोच समझ कर इसका एक हल निकाला और वो हल यही था कि वो मुझे अपने कुल गुरु के पास ले जाएं और उनके द्वारा ही इस सबके बारे में मुझे अवगत कराएं।"
"वाह! बहुत खूब।" फूलवती ने कहा___"हमें बुद्धू बनाने का क्या शानदार तरीका अपनाया है दादा ठाकुर ने।"
"ऐसी बात नहीं है भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"हम ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर ऐसे इंसान नहीं हैं। कभी कभी वक्त और हालात ऐसे बन जाते हैं कि हम सही को ग़लत और अच्छे को बुरा समझ लेते हैं। आप हम सबसे बड़ी हैं और इतने सालों से आपने भी दादा ठाकुर के बारे में बहुत कुछ सुना ही होगा। सच सच बताइए, क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि दादा ठाकुर ने किसी के साथ कुछ ग़लत किया है अथवा कभी किसी की मज़बूरी का फ़ायदा उठाया है?"
गौरी शंकर के इस सवाल पर फूलवती ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी ख़ामोशी बता रही थी कि दादा ठाकुर के बारे में उसने कभी भी ऐसा कुछ नहीं सुना था।
"उन्हें तो पता भी नहीं था कि वैभव किसी लड़की से प्रेम करता है।" गौरी शंकर ने आगे कहा____"उनके मन में सिर्फ इतना ही था कि हमारी बेटी ही उनकी बहू बनेगी लेकिन जब वो अपने कुल गुरु से मिले और गुरु जी ने उन्हें ये बताया कि वैभव के जीवन में उसकी दो पत्नियां होंगी तो वो बड़ा हैरान हुए। उस वक्त उन्हें समझ ही नहीं आया था कि ऐसा कैसे हो सकता है? हमारी बेटी रूपा को तो उन्होंने बहू मान लिया था किंतु वैभव की दूसरी पत्नी कौन बनेगी ये सवाल जैसे उनके लिए रहस्य सा बन गया था। उधर दूसरी तरफ वो अपनी बहू रागिनी के लिए भी बहुत चिंतित थे। इतनी कम उमर में उनकी बहू विधवा हो गई थी जिसका उन्हें बेहद दुख था। वो चाहते थे कि उनकी बहू दुखी न रहे इस लिए वो उसे खुश रखने के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे। लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा वो क्या करें जिससे उनकी बहू का दुख दूर हो जाए। रागिनी का ब्याह वैभव से करने का ख़याल उनके मन में दूर दूर तक नहीं था। कुछ दिनों बाद जब मेरे द्वारा उन्हें ये पता चला कि वैभव किसी और लड़की से प्रेम करता है तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हुआ कि उनका बेटा किसी लड़की से प्रेम भी कर सकता है। उनकी नज़र में तो वैभव एक ऐसे चरित्र का लड़का था जो हद से ज़्यादा बिगड़ा हुआ था और सिर्फ अय्यासिया ही करता था। बहरहाल, देर से ही सही लेकिन उन्हें इस बात का यकीन हो ही गया कि सच में उनका बेटा मुरारी नाम के एक किसान की बेटी से प्रेम करता है। उसी समय उन्हें अपने कुल गुरु की भविष्यवाणी वाली बात याद आई और उन्हें समझ आ गया कि उनके बेटे की दूसरी पत्नी शायद वो लड़की ही बनेगी। अब क्योंकि गुरु जी ने स्पष्ट कहा था कि अगर इस मामले में उन्होंने कोई कठोर क़दम उठाया तो अंजाम अच्छा नहीं होगा इस लिए उन्हें इस बात के लिए राज़ी होना ही पड़ा कि उनके बेटे की दूसरी पत्नी वो लड़की ही होगी। वो भी नहीं चाहते थे कि इतना कुछ हो जाने के बाद उनके परिवार में फिर से कोई मुसीबत आ जाए।"
"और रागिनी का ब्याह वैभव के साथ कर देने की बात उनके मन में कैसे आई?" फूलवती ने पूछा____"क्या गुरु जी ने इस बारे में भी भविष्यवाणी की थी?"
"उन्होंने इसकी भविष्यवाणी नहीं की थी।" गौरी शंकर ने कहा____"किंतु दादा ठाकुर को सुझाव ज़रूर दिया था कि वो अपने छोटे बेटे वैभव के साथ उसका ब्याह कर दें। उनके ऐसा कहने की वजह ये थी कि दादा ठाकुर अपनी बहू को बहुत मानते हैं। उसे अपनी बेटी ही समझते हैं और यही चाहते हैं कि उनकी बहू हमेशा खुश रहे और बहू के रूप में हवेली में ही रहे। अपनी बहू के दुख को दूर कर के उसके जीवन में खुशियों के रंग तो तभी भर सकेंगे वो जब उनकी बहू फिर से किसी की सुहागन बन जाए और ऐसा तभी संभव हो सकता है जब वो वैभव के साथ उसका ब्याह कर दें।"
"बात तो सही है तुम्हारी।" फूलवती ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"लेकिन क्या उनकी बहू अपने देवर से ब्याह करने को तैयार होगी? जितना मैंने उसके बारे में सुना है उससे तो यही लगता है कि वो इसके लिए कभी तैयार नहीं होगी।"
"भविष्य में क्या होगा इस बारे में कोई नहीं जानता भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"वैसे भी इस संसार में अक्सर कुछ ऐसा भी हो जाता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं किए होते। ख़ैर ये तो बाद की बात है। उससे पहले इस बात पर भी ग़ौर कीजिए कि जिस लड़की को दादा ठाकुर अपने बेटे की होने वाली दूसरी पत्नी समझ बैठे थे दुर्भाग्यवश उसकी हत्या हो गई। जबकि कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार वैभव की दो पत्नियां ही होंगी। अनुराधा तो अब रही नहीं तो साफ ज़ाहिर है कि वैभव की होने वाली दूसरी पत्नी कोई और नहीं बल्कि दादा ठाकुर की विधवा बहू रागिनी ही है। अनुराधा की हत्या हो जाने के बाद यही बात दादा ठाकुर के मन में भी उभरी थी।"
"बड़ी अजीब बात है।" फूलवती ने कहा____"मुझे तो अब भी इन बातों पर यकीन नहीं हो रहा। ख़ैर, ऊपर वाला पता नहीं क्या चाहता है? अच्छा ये बताओ कि क्या वैभव को भी ये सब पता है?"
"नहीं।" गौरी शंकर ने कहा____"उसे अभी इस बारे में कुछ पता नहीं है। दादा ठाकुर ने मुझसे कहा है कि हम में से कोई भी फिलहाल इस बारे में वैभव को कुछ नहीं बताएगा और ना ही रूपा को।"
"ये आप क्या कह रहे हैं काका?" काफी देर से चुप बैठा रूपचंद्र बोल पड़ा____"इतनी बड़ी बात मेरी मासूम बहन को क्यों नहीं बताई जाएगी? दादा ठाकुर का तो समझ में आता है लेकिन आप अपनी बेटी के साथ ऐसा छल कैसे कर सकते हैं?"
"ऐसा नहीं है बेटा।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं उसके साथ कोई छल नहीं कर रहा हूं। उचित समय आने पर उसे भी इस बारे में बता दिया जाएगा। अभी उसे वैभव के साथ खुशी खुशी जीने दो। अगर हमने अभी ये बात उसको बता दी तो शायद वो दुखी हो जाएगी। अनुराधा को तो उसने किसी तरह क़बूल कर लिया था लेकिन शायद रागिनी को इतना जल्दी क़बूल न कर पाए। इंसान जिस पर सिर्फ अपना अधिकार समझ लेता है उस पर अगर बंटवारा जैसी बात आ जाए तो बर्दास्त करना मुश्किल हो जाता है। मैं नहीं चाहता कि वो अभी से दुख और तकलीफ़ में आ जाए। इसी लिए कह रहा हूं कि अभी उसे इस बारे में बताना उचित नहीं है।"
"मैं आपका मतलब समझ गया काका।" रूपचंद्र सहसा फीकी मुस्कान होठों पर सजा कर बोला____"लेकिन मैं आपसे यही कहूंगा कि आप अभी अपनी भतीजी को पूरी तरह समझे नहीं हैं। आप नहीं जानते हैं कि मेरी बहन का हृदय कितना विशाल है। जिसने कई साल वैभव के प्रेम के चलते उसकी जुदाई का असहनीय दर्द सहा हो उसे दुनिया का दूसरा कोई भी दुख दर्द प्रभावित नहीं कर सकता। मैंने पिछले एक महीने में उसे बहुत क़रीब से देखा और समझा है काका और मुझे एहसास हो गया है कि मेरी बहन कितनी महान है। ख़ैर आप भले ही उसे कुछ न बताएं लेकिन मैं अपनी बहन को किसी धोखे में नहीं रखूंगा। उसे बता दूंगा कि वैभव पर अब भी सिर्फ उसका नहीं बल्कि किसी और का भी अधिकार है और वो कोई और नहीं बल्कि वैभव की अपनी ही भाभी है।"
"मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूं बेटा।" गौरी शंकर ने कहा____"और मुझे खुशी है कि तुम्हें अपनी बहन का इतना ज़्यादा ख़याल है लेकिन तुम्हें ये भी समझना चाहिए कि हर जगह भावनाओं से काम नहीं लिया जाता। सामने वाले की भलाई के लिए कभी कभी हमें झूठ और छल का भी सहारा लेना पड़ता है। दूसरी बात ये भी है कि इस बारे में अभी दादा ठाकुर की बहू रागिनी को भी पता नहीं है। मुझे भी लगता है कि रागिनी अपने देवर से ब्याह करने को तैयार नहीं होगी। ख़ुद ही सोचो कि ऐसे में ये बात रूपा को बता कर बेवजह उसे दुख और तकलीफ़ देना क्या उचित होगा? पहले इस बारे में दादा ठाकुर की बहू को तो पता चलने दो। इस बारे में वो क्या फ़ैसला करती है ये तो पता चलने दो। उसके बाद ही हम अपना अगला क़दम उठाएंगे।"
"ठीक है काका।" रूपचंद्र ने कहा____"शायद आप सही कह रहे हैं। जब तक इस बारे में वैभव की भाभी अपना फ़ैसला नहीं सुनाती तब तक हमें इसका ज़िक्र रूपा से नहीं करना चाहिए।"
कुछ देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद चारो औरतें घर के अंदर चली गईं। इधर गौरी शंकर और रूपचंद्र भी दिशा मैदान जाने के लिए उठ गए।
✮✮✮✮
"मालती काकी के साथ बहुत बुरा हुआ है।" चूल्हे में रोटी सेंक रही रूपा ने कहा____"कंजरों ने उस बेचारी को बेघर कर दिया। अपने पांच पांच बच्चों को अब कैसे सम्हालेंगी वो?"
"ये सब उसके पति की वजह से हुआ है।" मैंने कहीं खोए हुए से कहा____"जुएं में सब कुछ लुटा दिया। शुक्र था कि उसने अपने बीवी बच्चों को भी जुएं में नहीं लुटा दिया था।"
"हमें उनकी सहायता करनी चाहिए।" रूपा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"नहीं तो मां (सरोज) अकेले उन सबका भार कैसे सम्हाल पाएंगी?"
"हां ये तो है।" मैंने सिर हिलाया____"लेकिन हम कैसे उनकी सहायता कर सकते हैं?"
"अगर उन्हें उनका घर वापस मिल जाए तो अच्छा होगा उनके लिए।" रूपा ने जैसे सुझाव दिया।
"सिर्फ घर वापस मिल जाने से क्या होगा?" मैंने कहा____"घर से ज़्यादा ज़रूरी होता है दो वक्त का भोजन मिलना। अगर भूख मिटाने के लिए भोजन ही न मिलेगा तो कोई जिएगा कैसे?"
"सही कहा।" रूपा ने कहा____"दो वक्त की रोटी मिलना तो ज़रूरी ही है उनके लिए मगर कुछ तो करना ही पड़ेगा ना हमें। ऐसे कब तक वो मां के लिए बोझ बने रहेंगे?"
"दो वक्त की रोटी बिना मेहनत किए नहीं मिलेगी।" मैंने कहा____"इस लिए मेहनत मज़दूरी कर के ही मालती काकी को अपना और अपने बच्चों का पेट भरना होगा। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं है।"
"हां पर सवाल ये है कि एक अकेली औरत अपने पांच पांच बच्चों का पेट भरने के लिए क्या मेहनत मज़दूरी कर पाएगी?" रूपा ने कहा____"दूसरी बात ये भी है कि गांव के आवारा और बुरी नीयत वाले लोग क्या उन्हें चैन से जीने देंगे?"
"इस बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"जिस घर का मुखिया गुज़र जाता है तो लोग उस घर की औरतों अथवा लड़कियों पर बुरी नज़र डालते ही हैं। दुनिया की यही सच्चाई है।"
"हां ये भी सही कहा तुमने।" रूपा ने सिर हिलाते हुए कहा____"इंसान के जीवन में किसी न किसी की समस्या बनी ही रहती है। ख़ैर, हमें इतना तो करना ही चाहिए कि उनका घर उन्हें वापस मिल जाए।"
"कल जब तुम वहां जाना तो उससे पूछना कि ऐसे वो कौन लोग थे जिनसे जगन ने कर्ज़ा लिया था अथवा घर और खेतों को गिरवी किया था?" मैंने कहा____"उसके बाद ही सोचेंगे कि इस मामले में क्या किया जा सकता है?"
"ठीक है, मैं कल ही इस बारे में मालती काकी से बात करूंगी।" रूपा ने कहा____"अच्छा अब जा कर हाथ धो लो, खाना बन गया है। मैं तब तक थाली लगाती हूं।"
रूपा की बात सुन कर मैं उठा और लोटे में पानी ले कर बाहर निकल गया। जल्दी ही मैं वापस आया और दरवाज़ा अंदर से बंद कर के वहीं रसोई से थोड़ा दूर बैठ गया। रूपा ने आ कर मेरे सामने थाली रख दी। उसके बाद वो भी अपने लिए थाली ले कर पास ही बैठ गई। मैं चुपचाप खाने लगा जबकि रूपा बार बार मेरी तरफ देखने लगती थी।
रूपा के साथ आज ये दूसरी रात थी। उसने अब तक जो कुछ जिस तरीके से किया था उस सबको ना चाहते हुए भी मैं सोचने पर मजबूर हो जाता था। मैंने महसूस किया था कि पहले की अपेक्षा मुझमें थोड़ा परिवर्तन आया था। सबसे बड़ा परिवर्तन तो यही था कि मैं उसकी किसी बात से नाराज़ अथवा नाखुश नहीं हो रहा था और ना ही ऐसा हो रहा था कि मैं उसकी किसी बात से अथवा बर्ताव से परेशान होता। मैं समझने लगा था कि रूपा मुझे मेरी ऐसी मानसिक अवस्था से बाहर निकालने का बड़े ही प्रेम से और कुशल तरीके से प्रयास कर रही थी।
बहरहाल, खाना खाने के बाद मैं जा कर लकड़ी की कुर्सी पर बैठ गया था जबकि रूपा जूठे बर्तनों को धोने में लग गई थी। हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था किंतु मेरे मन में विचारों का बवंडर सा चल रहा था। कुछ समय बाद जब रूपा ने बर्तन धो कर रख दिए तो मैं उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गया।
रूपा आज अपने कमरे में नहीं गई बल्कि सीधा मेरे कमरे में ही आ कर ज़मीन पर अपना बिस्तर लगाने लगी थी। उधर मैं चुपचाप चारपाई पर लेट गया था। मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था लेकिन इस सबको खुद से दूर कर देना जैसे मेरे बस में नहीं था।
"सो गए क्या?" कुछ देर बाद सन्नाटे में रूपा की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।
"नहीं।" मैंने उदास भाव से जवाब दिया____"आज कल रातों को इतना जल्दी नींद नहीं आती।"
"क्या मैं कोशिश करूं?" रूपा ने मेरी तरफ करवट ले कर कहा।
"मतलब?" मुझे जैसे समझ न आया।
"मतलब ये कि तुम्हें नींद आ जाए इसके लिए मैं कोई तरीका अपनाऊं।" रूपा ने कहा____"जैसे कि तुम्हारे पास आ कर तुम्हें प्यार से झप्पी डाल लूं और फिर हौले हौले थपकी दे के सुलाऊं।"
"नहीं, ऐसा करने की ज़रूरत नहीं।" मैं उसकी बात समझते ही बोल पड़ा____"तुम आराम से सो जाओ। मुझे जब नींद आनी होगी तो आ जाएगी।"
"कहीं तुम ये सोच कर तो नहीं मना कर रहे कि मैं तुम्हारे साथ कोई ग़लत हरकत करूंगी?" रूपा सहसा उठ कर बैठ गई थी और मुझे अपलक देखने लगी थी।
"मैं ऐसा कुछ नहीं सोच रहा।" मेरी धड़कनें एकाएक बढ़ गईं____"मैं बस तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता। वैसे भी तुम दिन भर के कामों से थकी हुई होगी।"
"तुम्हारी तकलीफ़ों को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं वैभव।" रूपा ने सहसा अधीर हो कर कहा____"मेरे रहते मेरा महबूब अगर ज़रा भी तकलीफ़ में होगा तो ये मेरे लिए शर्म की बात होगी।"
"मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है।" मैं झट से बोल पड़ा____"तुम बेकार में ही ऐसा सोच रही हो। मैं बिल्कुल ठीक हूं, तुम आराम से सो जाओ।"
मेरी बात सुन कर रूपा इस बार कुछ न बोली। बस एकटक देखती रही मेरी तरफ। कमरे में लालटेन का मध्यम प्रकाश था जिसके चलते हम दोनों एक दूसरे को बड़े आराम से देख सकते थे। रूपा को इस तरह एकटक अपनी तरफ देखता देख मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो गईं। मैंने खुद को सम्हालते हुए दूसरी तरफ करवट ले ली ताकि मुझे उसकी तरफ देखना ना पड़े।
मैं जानता था कि मेरे इस बर्ताव से रूपा को बुरा लगा होगा और वो दुखी भी हो गई होगी किंतु मैं इस वक्त उसे अपने क़रीब नहीं आने देना चाहता था। इस लिए नहीं कि उसके क़रीब आने से मैं कुछ ग़लत कर बैठूंगा बल्कि इस लिए कि मैं फिलहाल ऐसी मानसिक स्थिति में ही नहीं था। अनुराधा के अलावा मेरे दिल में अभी भी रूपा के लिए वो स्थान नहीं स्थापित हो सका था जिसके चलते मैं अनुराधा की तरह उसे सच्चे दिल से प्रेम कर सकूं।
जाने कितनी ही देर तक मेरे दिलो दिमाग़ में ख़यालों और जज़्बातों का तूफ़ान चलता रहा। उसके बाद कब मैं नींद के आगोश में चला गया पता ही नहीं चला।
━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Chaliye kch dard ki tapan kam hogiअध्याय - 128
━━━━━━༻♥༺━━━━━━
दूसरे दिन रूपा जब सरोज काकी के घर गई तो उसने वहां मालती से बात की। उसने उससे पूछा कि उसके पति ने किन लोगों से कर्ज़ा लिया था? मालती ने उसके पूछने पर उतना ही बताया जितना उसे पता चला था।
सरोज के घर में मालती और उसकी बेटियां थी इस लिए सरोज ने रूपा को खाना बनाने से मना कर दिया था। असल में वो नहीं चाहती थी कि इतने लोगों का खाना बनाने में रूपा को कोई परेशानी हो। वैसे भी अब उसे रूपा से लगाव सा हो गया था जिसके चलते वो इतने लोगों का भार उसके सिर पर नहीं डालना चाहती थी। मालती ने भी यही कहा था कि वो और उसके बच्चे कोई मेहमान नहीं हैं जो बैठ कर सिर्फ खाएंगे। बहरहाल, रूपा मालती से जानकारी ले कर जल्द ही वापस आ गई थी।
जब वो वापस आई तो उसने देखा वैभव कुएं पर नहा रहा था। धूप खिली हुई थी और इस वक्त वो सिर्फ कच्छे में था। पानी से भींगता उसका गोरा और हष्ट पुष्ट बदन बड़ा ही आकर्षक नज़र आ रहा था। रूपा ये देख मुस्कुराई और फिर कुएं की तरफ ही बढ़ चली।
इधर मैं दुनिया जहान से बेख़बर नहाने में व्यस्त था। कुएं का ठंडा ठंडा पानी जब बदन पर पड़ता था तो अलग ही आनंद आता था। कुएं से बाल्टी द्वारा पानी खींचने के बाद मैं पूरी बाल्टी का पानी एक ही बार में कुएं की जगत पर खड़े खड़े अपने सिर पर उड़ेल लेता था जिसके चलते मुझे बड़ा ही सुखद एहसास होता था।
"मैं भी आ जाऊं क्या?" अचानक रूपा की इस आवाज़ से मैं चौंका और पलट कर उसकी तरफ देखा।
वो कुएं की जगत के पास आ कर खड़ी हो गई थी और मुस्कुराते हुए मुझे ही देखे जा रही थी। इस वक्त मेरे और उसके अलावा दूर दूर तक कोई नहीं था। दयाल और भोला नाम के दोनों मज़दूर चूल्हे में जलाने के लिए लड़की लेने जंगल गए हुए थे। रूपा जिस तरह से मेरे बदन को घूरते हुए मुस्कुराए जा रही थी उससे मैं एकदम से असहज हो गया। ऐसा नहीं था कि उसने मुझे इस हालत में पहले कभी देखा नहीं था, बल्कि उसने तो मुझे पूरी तरह नंगा भी देखा था लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह की मेरी मानसिकता थी उसके चलते मुझे उसका यूं देखना असहज कर रहा था।
"क्या हुआ जनाब?" मुझे कुछ न बोलता देख उसने अपनी भौंहों को ऊपर नीचे करते हुए कहा____"मुझे इस तरह क्यों देखे जा रहे हो? डरो मत, मैं तुम्हें इस हालत में देख कर खा नहीं जाऊंगी। मेरे कहने का मतलब तो बस ये है कि आ कर मैं तुम्हें अपने हाथों से नहला देती हूं। अब इतना तो कर ही सकती हूं अपनी जान के लिए।"
"कोई ज़रूरत नहीं है।" मैं एकदम से बोल पड़ा____"असमर्थ नहीं हूं मैं जो ख़ुद नहा नहीं सकता। तुम जाओ यहां से।"
"इतने कठोर न बनो मेरे बलम।" रूपा ने बड़ी अदा से कहा____"मेरे खातिर कुछ देर के लिए असमर्थ ही बन जाओ ना।"
"मैंने कहा न जाओ यहां से।" मैंने थोड़ा सख़्त भाव से देखा उसे।
"इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो?" रूपा ने बड़ी मासूमियत से कहा____"सिर्फ नहलाने को ही तो कह रही हूं। क्या तुम मेरी खुशी के लिए मेरी इतनी सी बात नहीं मान सकते?"
"हां नहीं मान सकता।" मैंने दो टूक भाव से कहा____"अब जाओ यहां से।"
पता नहीं क्यों मैं एकदम से उखड़ सा गया था? मेरा ऐसा बर्ताव देख रूपा कुछ न बोली किंतु अगले ही पल उसकी आंखों में मानों आंसुओं का सैलाब उमड़ता नज़र आया। कुछ पलों तक वो डबडबाई आंखों से मुझे देखती रही और फिर चुपचाप पलट कर मकान की तरफ चली गई। उसके जाने के बाद मैंने खाली बाल्टी को कुएं में डाला और फिर पानी खींचने लगा।
कुछ ही देर में मैं नहा धो कर मकान में आया और अपने कमरे में जा कर कपड़े पहनने लगा। रूपा रसोई में खाना बना रही थी। कपड़े पहन कर मैं बाहर आया और वहीं पास ही रखी कुर्सी पर बैठ गया। कुछ ही दूर रसोई में रूपा चूल्हे के पास बैठी खाना बनाने में लगी हुई थी।
मुझे कुर्सी में बैठे क़रीब पांच सात मिनट गुज़र गए थे किंतु रूपा ने एक बार भी मेरी तरफ नहीं देखा था और ना ही कोई बात की थी। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया किंतु जब काफी देर तक ख़ामोशी ही छाई रही तो सहसा मैंने उसकी तरफ ध्यान से देखा।
चूल्हे में लकड़ियां जल रहीं थी जिनका प्रकाश सीधा उसके चेहरे पर पड़ रहा था। मैंने देखा कि उसके चेहरे पर वेदना के भाव थे। ये देख मैं चौंका और फिर एकदम से मुझे कुछ देर पहले कुएं में उसको कही गई अपनी बातें याद आईं। जल्दी ही मुझे समझ आ गया कि मेरी बातों ने उसे अंदर से आहत कर दिया है।
मुझे याद आया कि मैंने कितनी सख़्ती से और कितनी बेरुखी से उससे बातें की थी। मुझे एकदम से एहसास होने लगा कि मुझे उससे इतनी बेरुखी से बातें नहीं करनी चाहिए थीं। उसने कोई ग़लत बात तो नहीं की थी मुझसे। मुझे बेहद प्रेम करती है जिसके चलते उस समय वो मुझसे थोड़ी नोक झोंक ही तो कर रही थी और फिर अगर वो मुझे नहला भी देती तो भला क्या बिगड़ जाना था मेरा?
"क्या नाराज़ हो मुझसे?" फिर मैंने उसकी तरफ देखते हुए धीमें स्वर में कहा____"देखो, मेरा इरादा तुम्हारा दिल दिखाने का बिल्कुल भी नहीं था। मुझे नहीं पता उस समय मेरे मुख से वैसी बातें क्यों निकल गईं थी? अगर मेरी बातों से सच में तुम्हें तकलीफ़ हुई है तो उसके लिए मैं तुमसे माफ़ी मांगता हूं।"
"तुम मुझसे माफ़ी मांगोगे तब भी तो मुझे तकलीफ़ होगी।" रूपा की आवाज़ सहसा भारी हो गई। मेरी तरफ देखते हुए बोली____"ख़ुशी तो बस एक ही सूरज में होगी जब मेरा प्रियतम ख़ुश होगा।"
"ऐसी बातें मत किया करो।" मेरे समूचे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गई____"तुम्हारी ऐसी बातों से मुझे डर सा लगने लगता है।"
"फिर तो ज़रूर मेरे प्रेम में कमी है वैभव।" रूपा ने रुंधे गले से कहा____"और ये मेरी बदकिस्मती ही है कि मेरे प्रेम से मेरे महबूब को डर लगता है। क्या करूं अब? कुछ समझ में नहीं आ रहा मुझे। आख़िर ये कैसी बेबसी है कि अपने महबूब का डर दूर करने के लिए मैं उससे प्रेम करना भी नहीं छोड़ सकती। काश! मेरे बस में होता तो अपने दिल के ज़र्रे ज़र्रे से प्रेम का हर एहसास खुरच खुरच कर निकाल देती। हे विधाता! मुझे भले ही चाहे दुनिया भर के दुख दे दे लेकिन मेरे दिल के सरताज का हर डर और हर दुख तकलीफ़ दूर कर दे।"
रूपा कहने के बाद बुरी तरह सिसक उठी। इधर उसकी बातों ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। दिल के किसी कोने से जैसे कोई हलक फाड़ कर चीख पड़ा और बोला____'जो लड़की हर हाल में सिर्फ और सिर्फ तेरी ख़ुशी और तेरा भला चाहती है उसको तू कैसे दुखी कर सकता है? जो लड़की तुझे पागलपन की हद तक प्रेम करती है और विधाता से तेरे हर दुख को मांग रही है उसे असहनीय पीड़ा दे कर उसकी आंखों में आंसू लाने का गुनाह कैसे कर सकता है तू? जो लड़की अपने प्रेम के खातिर अपना घर परिवार छोड़ कर तथा सारी लोक लाज को ताक में रख कर सिर्फ तुझे सम्हालने के लिए तेरे पास आई है उस महान लड़की का प्रेम और उसकी पीड़ा क्यों नज़र नहीं आती तुझे?'
मैं भारी मन से कुर्सी से उठा और रूपा की तरफ बढ़ चला। वो चूल्हे के पास बैठी बड़ी मुश्किल से अपनी रुलाई को फूट पड़ने से रोकने का प्रयास कर रही थी। उसका चेहरा चूल्हे में लपलपाती आग ही तरफ था। आग की रोशनी में उसके चेहरे की पीड़ा साफ दिख रही थी मुझे।
मैं कुछ ही पलों में उसके पास पहुंच गया। धड़कते दिल से मैं हौले से झुका और फिर उसके दोनों कन्धों को पकड़ा तो वो एकदम से हड़बड़ा गई। बिजली की तरह पलट कर उसने मेरी तरफ देखा। उफ्फ! उसकी आंखों में तैरते आंसुओं को देख अंदर तक हिल गया मैं। आंसू भरी आंखों से वो मुझे ही देखे जा रही थी। मैंने एक ही झटके में खींच कर उसे अपने सीने से लगा लिया। मेरा ऐसा करना था कि जैसे उसके सब्र का बांध टूट गया और वो मुझे पूरी सख़्ती से जकड़ कर फफक कर रो पड़ी।
"माफ़ कर दो मुझे।" फिर मैंने उसकी पीठ पर हौले से हाथ फेरते हुए कहा____"ये मेरी बदकिस्मती है कि मैं कभी किसी की भावनाओं को नहीं समझ पाया, खास कर तुम्हारी भावनाओं को।"
रूपा अनवरत रोती रही। वो मुझे इस तरह जकड़े हुए थी जैसे उसे डर हो कि मैं उसे अपने सीने से अलग कर दूंगा। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में भयंकर तूफ़ान उठ गया था।
"समझ में नहीं आता कि मुझ जैसे इंसान को कोई इतना प्रेम कैसे कर सकता है?" मैंने गहन संजीदगी से कहा____"जबकि सच तो ये है कि मैं किसी के प्रेम के लायक ही नहीं हूं। मैं तो वो बुरी बला हूं जिसका बुरा साया प्रेम करने वालों की ज़िंदगी छीन लेता है।"
"नहीं नहीं नहीं।" रूपा मुझसे लिपटी रोते हुए चीख पड़ी____"मेरे वैभव के बारे में ऐसा मत कहो। मेरे वैभव से अच्छा कोई नहीं है इस दुनिया में।"
रूपा की इन बातों ने एक बार फिर से मुझे अंदर तक झकझोर दिया। मेरे अंदर जज़्बात इतनी बुरी तरह से मचल उठे कि मेरे लाख रोकने पर भी मेरी आंखें छलक पड़ीं। मुझे इस ख़याल ने रुला दिया कि जहां सारी दुनिया मुझे गुनहगार, पापी और कुकर्मी कहती हैं वहीं ये रूपा मेरे बारे में ऐसा कह रही है। यकीनन ये उसका प्रेम ही था जो ख़्वाब में भी मेरे बारे में बुरा नहीं सोच सकता था। इस एहसास ने मुझे तड़पा कर रख दिया। मैंने रूपा को और ज़ोर से छुपका लिया। उसका रोना तो अब बंद हो गया था लेकिन सिसकियां अभी भी चालू थीं।
"बस बहुत हुआ।" मैंने जैसे फ़ैसला कर लिया था। उसे खुद से अलग कर के और फिर उसके आंसुओं से तर चेहरे को अपनी हथेलियों में ले कर कहा____"तुमने बहुत दे लिया अपने प्रेम का इम्तिहान, अब और नहीं। अगर इतने पर भी मैं तुम्हें और तुम्हारे प्रेम को न समझ पाया और तुम्हें क़बूल नहीं किया तो शायद ये मेरे द्वारा किया गया सबसे बड़ा गुनाह होगा।"
"ऐसा मत कहो।" वो भारी गले से बोली।
"मुझे कहने दो रूपा।" मैंने बड़े स्नेह से कहा____"मुझे एहसास हो रहा है कि मैंने तुम्हारे और तुम्हारे प्रेम के साथ बहुत अन्याय किया है। जबकि तुमने एक ऐसे इंसान के लिए ख़ुद को हमेशा प्रेम की कसौटी पर पीसा जो इसके लायक ही नहीं था। ख़ैर बहुत हुआ ये सब। अब मैं ना तो तुम्हें कोई इम्तिहान देने दूंगा और ना ही किसी तरह का दुख दूंगा। मुझे अनुराधा के जाने का दुख ज़रूर है लेकिन अब मैं उसकी वजह से तुम्हें और तुम्हारे प्रेम को कोई तकलीफ़ नहीं दूंगा।"
मेरी बातों ने रूपा के मुरझाए चेहरे पर खुशी की चमक बिखेरनी शुरू कर दी। मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर रखा था। इतने क़रीब से आज काफी समय बाद मैं उसे देख रहा था। उसके हल्के सुर्ख होठ हौले हौले कांप रहे थे। मुझे उस पर बेहद प्यार आया तो मैंने आगे बढ़ कर उसके माथे को प्यार से चूम लिया।
"क्या मैं भी चूम लूं तुम्हें?" उसने बड़ी मासूमियत से पूछा तो मैं पलकें झपका कर उसे इजाज़त दे दी।
जैसे ही मेरी इजाज़त मिली तो वो खुश हो गई और फिर लपक कर उसने मेरे सूखे लबों को अपने रसीले होठों से मानों सराबोर कर दिया। मैं उसकी इस क्रिया से पहले तो हड़बड़ाया किंतु फिर शान्त पड़ गया। मैंने कोई विरोध नहीं किया।
रूपा दीवानावार सी हो कर मेरे होठों को चूमे जा रही थी। मैं उसका विरोध तो नहीं कर रहा था किंतु अपनी तरफ से कोई पहल भी नहीं कर रहा था। क़रीब दो मिनट बाद जब उसकी सांसें उखड़ने लगीं तो उसने मेरे होठों को आज़ाद कर के अपना चेहरा थोड़ा दूर कर लिया। उसकी आंखें बंद थीं और सांसें धौकनी की मानिंद चल रहीं थी। थोड़ी देर के बाद उसने धीरे धीरे अपनी आंखें खोली। जैसे ही उसकी नज़रें मेरी नज़रों से मिलीं तो वो बुरी तरह लजा गई। शर्म से उसका गोरा चेहरा सिंदूरी हो उठा। पूरी तरह गीले हो चुके होठों पर मुस्कान बिखर गई।
"मुझे नहीं पता था कि इजाज़त मिलने पर एक ही बार में इतने समय की वसूली हो जाएगी।" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए उसे देखा तो वो मेरी इस बात से और भी बुरी तरह शर्मा गई।
रूपा के चेहरे पर अभी भी आंसुओं के निशान थे किंतु दो ही मिनट में उसका चेहरा खुशी की वजह से खिल उठा था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि इतना कुछ सहने के बाद भी जब किसी इंसान को थोड़ी सी खुशी मिल जाती है तो कैसे उसका चेहरा खिल जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसे कभी कोई दुख ही न रहा हो। एक अदनी सी खुशी वर्षों से मिले दुख को मानों पल भर में मिटा देती है। वाह रे! प्रेम, अजब फितरत है तेरी।
"तुम ग़लत समझ रहे हो।" फिर उसने हौले से पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा____"ये वसूली नहीं है बल्कि प्रेम रूपी थाली में रखे हुए प्रसाद से थोड़ा सा प्रसाद लिया है मैंने। पूरी थाली का प्रसाद लेना तो बाकी है अभी।"
"अच्छा ऐसा है क्या?" मैंने हैरानी ज़ाहिर करते हुए कहा____"मुझे तो पता भी नहीं था कि ऐसा भी कुछ होता है।"
"हां और मैंने यकीन भी कर लिया कि तुम्हें कुछ पता ही नहीं है।" रूपा ने मुस्कुराते हुए सहसा व्यंग्य सा किया____"ख़ैर तुम्हें ख़ुद को अगर नादान और नासमझ बनाए रखना है तो यही सही।"
"बात नादानी अथवा नासमझ बनने की नहीं है।" मैंने कहा____"मैं तो बस अपना पिछला सब कुछ भुला कर तुम्हारे साथ नए सिरे से एक नया अध्याय शुरू करना चाहता हूं। तुम्हें मुझसे ज़्यादा प्रेम के बारे में पता है और तजुर्बा भी है इस लिए मैं चाहता हूं कि अब तुम ही सब कुछ सिखाओ मुझे।"
"प्रेम की विशेषता ही यही है कि इसमें किसी को कुछ सिखाया नहीं जाता है।" रूपा ने अपलक मेरी आंखों में देखते हुए कहा____"बल्कि इसमें तो इंसान दिल के हाथों मजबूर होता है। जो दिल कहता है अथवा चाहता है इंसान बिना सोचे समझे वही करता रहता है।"
"हम्म्म्म।" मैंने कहा। अचानक ही मुझे कुछ महसूस हुआ तो मैंने रूपा से कहा____"क्या तुम्हें भी ऐसा महसूस हो रहा है जैसे किसी चीज़ की गंध आ रही है?"
मेरी इस बात से रूपा चौंकी। फिर उसने कुछ सूंघने का प्रयास किया। अगले ही पल जैसे उसे कुछ समझ आ गया तो वो हड़बड़ा कर पलटी। नज़र चूल्हे पर टंगे तवे पर गई। तवे पर पड़ी रोटी सुलग कर ख़ाक हो चुकी थी और अब उसमें से निकलने वाला धुवां भी कम हो चला था।
"हाय राम! रूपा लपक कर चूल्हे के पास पहुंची____"तुम्हारे चक्कर में रोटी भी जल कर राख हो गई।"
"हां, ये मेरे ही चक्कर से हुआ है।" मैंने कहा____"मैंने अगर होठों से होठ न मिलाए होते तो शायद रोटी का वजूद न मिटता।"
"चुप करो तुम।" रूपा मेरी बात से शर्मा कर झेंप गई____"बातें न बनाओ और जा कर बाहर बैठो। तवे को मुझे फिर से मांजना होगा, उसके बाद ही रोटी बनेगी अब।"
मैं मन ही मन मुस्कुराया और चुपचाप बाहर आ कर तखत पर बैठ गया। जबकि रूपा तवे को चूल्हे से निकाल कर बाहर ले आई और उसे ठंडा करने के बाद मांजने लगी। मैं तखत पर बैठा उसे ही देखे जा रहा था। अभी थोड़ी देर पहले जो कुछ हमारे बीच हुआ था मैं उसी के बारे में सोच रहा था। मैंने महसूस किया कि अब मुझे बहुत हल्का महसूस हो रहा है।
✮✮✮✮
खाने पीने के बाद मैंने रूपा को सरोज काकी के घर भेज दिया था और ख़ुद हवेली निकल गया था। रूपा से मुझे पता चल चुका था कि मालती के पति ने किन लोगों से कर्ज़ा लिया था। उन लोगों से मिलने से पहले मैं रुपयों का इंतज़ाम करना चाहता था, क्योंकि मेरे पास मौजूदा समय में ज़्यादा पैसे ही नहीं थे। इस लिए मैं हवेली निकल गया था।
हवेली पहुंच कर मैं सबसे पहले मां और चाची लोगों से मिला। मां ने बताया कि सुबह चंदनपुर से भाभी के बड़े भाई साहब यानि वीरेंद्र सिंह आए थे। अभी एक घंटे पहले ही रागिनी भाभी अपने भाई के साथ चंदनपुर चली गईं हैं। मां से जब मुझे भाभी के जाने का पता चला तो मुझे ये सोच कर बुरा लगा कि किसी ने मुझे इस बारे में पहले बताया नहीं। मां ने बताया कि भाभी की मां अपनी बेटी को बहुत याद कर रहीं थी इस लिए वीरेंद्र सिंह लेने आए थे। ख़ैर खाना मैं खा चुका था इस लिए मैं आराम करने अपने कमरे में चला गया। पिता जी दोपहर के समय अपने कमरे में आराम करते थे इस लिए इस वक्त उनसे बात करना उचित नहीं था।
क़रीब साढ़े तीन बजे मैं अपने कमरे से निकला और नीचे आया। कमरे से रिवॉल्वर ले आना नहीं भूला था मैं। कुसुम से पता चला कि पिता जी अभी थोड़ी देर पहले ही गुसलखाने से निकल कर कमरे में गए हैं। शायद कहीं जाना है उन्हें। मैंने कुसुम को चाय बनाने को कहा और बैठक की तरफ बढ़ गया।
थोड़ी देर में पिता जी तैयार हो कर बैठक में आए। किशोरी लाल पहले से ही तैयार हो कर बैठक में बैठे थे। मेरी थोड़ी बहुत उनसे बातें हुईं। पिता जी अपनी ऊंची कुर्सी पर बैठ गए और मेरी तरफ ध्यान से देखने लगे।
"क्या बात है?" फिर उन्होंने मुझसे पूछा____"सब ठीक तो है?"
"जी, सब तो ठीक है।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"लेकिन मुझे कुछ रुपयों की ज़रूरत है।"
"हमें एक ज़रूरी काम से कहीं जाना है।" पिता जी ने कहा____"तुम अपनी मां से ले लो रुपये। वैसे किस चीज़ के लिए चाहिए तुम्हें रुपये?"
"किसी ज़रूरतमंद की सहायता करने के लिए।" मैंने इतना ही कहा।
"हम्म्म्म।" पिता जी ने कहा____"इसका मतलब कुछ ज़्यादा ही रुपयों की ज़रूरत है तुम्हें।" कहने के साथ ही पिता जी मुंशी किशोरी लाल से मुखातिब हुए____"किशोरी लाल जी, जाइए इसे जितने पैसों की आवश्यकता हो आप दे दीजिए।"
"जी ठीक है ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने कहा और उठ कर बैठक से बाहर की तरफ चल पड़ा। मैं भी उनके पीछे चल पड़ा।
जल्दी ही मैं किशोरी लाल के साथ अंदर एक ऐसे कमरे में पहुंचा जिसमें वर्षों से रुपए पैसे और कागज़ात वगैरह रखे जाते थे। उस कमरे में कई संदूखें और अलमारियां थीं। किशोरी लाल ने दीवार में धंसी एक पुरानी किंतु बेहद मजबूत अलमारी को खोला और मेरे बताए जाने पर उसमें से पच्चीस हज़ार रुपए निकाल कर मुझे दिए।
रुपए ले कर मैंने उसे अपने एक बैग में डाला और हवेली से बाहर निकल गया। कुछ ही देर में मैं जीप में बैठा उड़ा चला जा रहा था।
मैं अपने खेतों पर पहुंचा तो भुवन वहीं था। मैंने उसे जीप में बैठाया और वहां से चल पड़ा। रास्ते में मैंने उसे बताया कि हमें कहां और किस काम के लिए जाना है। भुवन ने साथ में भीमा और बलवीर को भी ले चलने की सलाह दी जो मुझे भी उचित लगी। असल में मुझे अंदेशा था कि ये मामला आसानी से निपट जाने वाला नहीं है। ख़ैर जल्दी ही हम दोनों भीमा और बलवीर के घर पहुंचे। वहां से दोनों को जीप में बैठा कर मैं निकल पड़ा।
━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━