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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
गौरीशंकर भाग कर थक गया और उसे एहसास हुआ कि उसकी घर की औरतों का क्या होगा देर सवेर पकड़ा जाएगा इसलिए उसने खुद को और रूपचंद को ठाकुर के सामने समर्पण करने का सोचा और दुश्मनी की वजह बताई।गायत्री के साथ जो हुआ वह बहुत ही बड़ा गुनाह था जो बड़े ठाकुर ने किया इस गुनाह के लिए उन्हें माफी नहीं सजा मिलनी चाहिए और भगवान ने उसे अपने कर्मो की सजा भी दे दी इस कांड को हुए 30 साल हो गए उसके बाद अभिनव और जगताप को मारना गलत था क्युकी दादा ठाकुर ने साहूकारो के पैर पकड़कर माफी मांग ली थी उसके साथ ही उन्होंने ऐसा कोई काम नही किया जिससे साहूकारो को कोई तकलीफ हो फिर भी साहूकार इतने सालो तक अपने अंदर रंजिश को पाले रहे खेर सफेद नकाबपोश के बारे में मुंशी और साहूकारो को पता नहीं है इसका मतलब कोई हवेली का ही आदमी है
Thanks
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
15,845
32,658
259
romanchak update ..gaurishankar ne sahi kaha ki wo ab jyada bachke bhag nahi sakte ,kabhi na kabhi dada thakur ke aadmi unko dhund hi lenge .jab insan kamjor ho jaaye tab usko apne pariwar ki chinta satane lagti hai aur yahi gaurishankar ke saath hua ,ab sirf 2 log hi bache hai jo mukabla nahi kar sakte aur rupchand ko sahukaro ka vansh aage badhane ke liye jinda bhi rehna hai ,ghar ki aurto ka bhi khayal rakhna hai yahi sab sochkar surrender kar diya shera ke saamne .

waise gauri shankar ke mooh se sach sunkar sahukaro ki aurto ka haal kharab hona hi tha .
eklauti behan ke saath huye atyachar ka badla lene ke liye itne saal intejar kiya jabki dada thakur apne baap ke bure karmo ki maafi bhi maang chuke the sahukaro se .

gauri shankar ka kehna hai ki dada thakur ne narsanhar karke galat kiya par mujhe lagta hai wo apne bete aur bhai ke maut ka badla le rahe the ..
aawesh ,dard me insan sab bhul jata hai .
par sahukaro ne to sab planning karne ke baad kiya jo unki galti jyada badi hai .

ab ye ek aur dhamaka ki safed posh ko koi nahi jaanta 🤔. ab ye kaun hai aur kya dushmani hai thakuro se pata nahi par munshi jyada hi khush ho gaya ye jaankar ki koi teesra bhi hai jo abhi bhi thakuro ko khatm karna chahta hai .
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 75
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"हाहाहाहा।" पिता जी के पूछने पर मुंशी पहले तो ज़ोर से हंसा फिर बोला____"वैसे तो मैं ऐसे किसी सफ़ेदपोश के बारे में नहीं जानता और ना ही मेरा उससे कोई संबंध है लेकिन इस बात से मैं खुश ज़रूर हूं कि हमारे बाद भी अभी कोई है जो हवेली में रहने वालों से इस क़दर नफ़रत करता है कि उनकी जान तक लेने का इरादा रखता है। ख़ास कर इस वैभव सिंह की। ये तो कमाल ही हो गया, हाहाहा।"

मुंशी चंद्रकांत जिस तरीके से हंस रहा था उसे देख मेरा खून खौल उठा। गुस्से से मेरी मुट्ठियां भिंच गईं। जी किया कि अभी जा के उसकी गर्दन मरोड़ दूं मगर फिर किसी तरह अपने गुस्से को पी कर रह गया।



अब आगे....


मुंशी चंद्रकांत और गौरी शंकर ने जिस तरह से सफ़ेदपोश के बारे में अपनी अनभिज्ञता जताई थी उससे दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि मैं खुद भी सोच में पड़ गया था। ये तो स्पष्ट था कि सफ़ेदपोश के बारे में वो दोनों झूठ नहीं बोल रहे थे क्योंकि अब झूठ बोलने का ना तो कोई समय था और ना ही इससे उन्हें कोई फ़ायदा था। तो अब सवाल ये था कि अगर सच में उन दोनों का संबंध अथवा कोई ताल्लुक सफ़ेदपोश से नहीं है तो फिर कौन है सफ़ेदपोश? आख़िर वो कौन हो सकता है जो खुद को सफ़ेदपोश के रूप में हमारे सामने स्थापित कर चुका है और हमसे दुश्मनी रखता है?

सफ़ेदपोश एक ऐसा रहस्यमय किरदार है जो हमारे लिए गर्दन में लटकी तलवार की तरह साबित हो चुका है। अगर ये पता चल जाए कि वो कौन है तो ज़ाहिर है कि ये भी समझ में आ ही जाएगा कि वो हमें अपना दुश्मन क्यों समझता है? इतना कुछ होने के बाद लगा था कि अब सारी मुसीबतों से छुटकारा मिल गया है किंतु नहीं, ऐसा लगता है जैसे सबसे बड़ी मुसीबत और ख़तरा तो वो सफ़ेदपोश ही है। समझ में नहीं आ रहा कि वो अचानक कहां से आ टपकता है और फिर कैसे गायब हो जाता है?

"यहां किसी और को भी अगर कुछ कहना है तो कह सकता है।" मंच पर बैठे महेंद्र सिंह ने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"अगर किसी को लगता है कि उसके साथ ठाकुर साहब ने अन्याय किया है अथवा उसके साथ किसी तरह का इंसाफ़ नहीं हुआ है तो बेझिझक वो अपनी बात इस पंचायत के सामने रख सकता है।"

ठाकुर महेंद्र सिंह की ये बात सुन कर भीड़ में खड़े लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे। कुछ देर बाद दो आदमी भीड़ से निकल कर बाहर आए। ये वही थे जिनकी बीवियां हवेली में काम करती थीं और कुछ दिन पहले जिनकी हत्या हो गई थी।

"प्रणाम ठाकुर साहब।" उनमें से एक ने कहा____"हम दोनों ये कहना चाहते हैं कि दादा ठाकुर की हवेली में हम दोनों की बीवियां काम करती थीं और कुछ दिनों पहले उनकी हत्या हो गई। हमारे छोटे छोटे बच्चे बिना मां के हो गए। क्या हमें ये जानने का हक़ नहीं है कि किसने उनकी हत्या की और क्यों की?"

"ठाकुर साहब आपका क्या कहना है इस बारे में?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने पिता जी से पूछा।

"ये सच है कि इन दोनों की बीवियां हमारी हवेली में काम करती थीं।" पिता जी ने कहा____"कुछ समय पहले उन दोनों की आश्चर्यजनक रूप से हत्या कर दी गई थी। हमने उनकी हत्या की तहक़ीकात की तो जल्द ही हमें पता चल गया कि उनके साथ ऐसा क्यों हुआ? असल में वो दोनों औरतें किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा मजबूर किए जाने पर हवेली में ग़लत काम को अंजाम दे रहीं थी। हमें तो इसका पता भी न चलता किंतु कहते हैं ना कि ग़लत करने वाले के साथ ही बुरा होता है फिर चाहे वो जैसे भी हो। उन दोनों को जिसने मजबूर किया हुआ था उसने उन्हें साफ तौर पर ये समझाया हुआ था कि अगर पकड़े जाने का ज़रा सा भी अंदेशा हो तो वो अपनी जान ले लें। एक ने तो हवेली में ही ज़हर खा कर अपनी जान ले ली थी जबकि दूसरी हवेली से भाग गई थी। शायद उस वक्त उसके पास ज़हर नहीं था इस लिए पकड़े जाने के डर से वो हवेली से भाग गई। हमारे बेटे ने उसका पीछा किया किंतु लाख कोशिश के बावजूद ये उसे बचा नहीं सका। ऐसा इस लिए क्योंकि दोनों औरतों को मजबूर करने वाला वहां पहले से ही मौजूद था और उसने इसकी बीवी की हत्या कर दी। ये सब बातें हमारे छोटे भाई जगताप ने इन दोनों को बताया भी थी। कहने का मतलब ये है ठाकुर साहब कि इन दोनों की बीवियों की हत्या से हमारा कोई संबंध नहीं है बल्कि सच ये है कि उन्हें खुद ही उनके ग़लत कर्म करने की सज़ा मिल गई। हमारे लिए ये जानना ज़रूरी था कि आख़िर उन दोनों को मजबूर करने वाला वो व्यक्ति कौन हो सकता है किंतु अब हम समझ चुके हैं कि वो कौन है?"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने चौंकते हुए पूछा। इधर पिता जी की बात सुन कर भीड़ में खड़े लोग भी हैरानी से देखने लगे थे। जबकि महेंद्र सिंह जी के पूछने पर पिता जी ने गौरी शंकर की तरफ देखा। गौरी शंकर ने झट से सिर झुका लिया।

"उन दोनों औरतों की जब हत्या हो गई थी तो हमारे गांव के साहूकार मणि शंकर जी हमारी हवेली पर हमसे मिलने आए थे।" पिता जी ने कहा____"उस समय जिस तरह से उन्होंने अपना पक्ष रख कर हमसे बातें की थी उससे हमें भी यही लगा था कि यकीनन किसी और ने ही उन औरतों की कुछ इस तरह से हत्या की है कि हमारे ज़हन में उनके हत्यारे के रूप में गांव के साहूकारों का ही ख़याल आए। हमने सोचा कि हो सकता है कि वो हम दोनों परिवारों के संबंध सुधर जाने से नाराज़ हो गया होगा और हर्गिज़ नहीं चाहता होगा कि हमारा आपस में ऐसा प्रेम संबंध हो। बहरहाल दिमाग़ भले ही नहीं मान रहा था लेकिन हमने दिमाग़ की जगह दिल की सुनना ज़्यादा बेहतर समझा। आख़िर हम भी तो नहीं चाहते थे कि दोनों परिवारों के बीच एक दिन में ही बैर भाव अथवा किसी तरह का संदेह भाव पैदा हो जाए। सच तो ये है कि हमें उस दिन दिल की नहीं बल्कि दिमाग़ की ही सुननी चाहिए थी और समझ जाना चाहिए था कि साहूकारों का हमसे अपने रिश्ते सुधार लेना सिर्फ और सिर्फ एक दिखावा था। बल्कि ये कहना ज़्यादा उचित होगा कि रिश्तों को सुधार लेना उनकी योजना का एक हिस्सा था। क्यों गौरी शंकर हमने सच कह न?"

"हां।" गौरी शंकर ने हताश भाव से कहा____"मगर अब समझे तो क्या समझे ठाकुर साहब? पर शायद सच यही है कि उस समय अगर आपने दिल की सुनी तो ये आपकी नेक नीयती और उदारता की ही बात थी। यानि आप सच में यही चाहते थे कि हमारे रिश्ते ऐसे ही बेहतर बने रहें मगर हम इतने नेक और उदार नहीं थे। हमारे अंदर तो वर्षों से बदले की भावना धधक रही थी जिसके चलते हमने कभी ये सोचना गवारा ही नही किया कि बदला लेने की जगह अगर हम दोनों परिवार मिल कर एक नई शुरुआत करें तो कदाचित दोनों ही परिवारों का भविष्य बेहद सुखद हो सकता है। ख़ैर ये सच है कि हमने ही इन लोगों की औरतों को मजबूर कर के हवेली में नौकरानी के रूप में स्थापित किया था। एक का काम था वैभव को चाय में थोड़ा थोड़ा मिला कर ऐसा ज़हर देना जिसकी वजह से वैभव की मर्दानगी हर रोज़ कम होती जाए और फिर एक दिन वो पूरी तरह से नामर्द ही बन जाए। दूसरी का काम था हवेली में गुप्त रूप से आपकी ज़मीनों के कागज़ात खोज कर उन्हें हासिल करना। उन दोनों को सख़्त आदेश था कि अगर उन्हें ज़रा सा भी लगे कि उनका भेद खुल गया है अथवा उनका पकड़े जाना निश्चित है तो वो हमारे द्वारा दिए गए ज़हर को खा कर अपनी जान ले लें।"

"बस कीजिए।" सुनैना देवी रोते हुए चीख ही पड़ी____"और कितने गुनाहों का बखान करेंगे आप? यकीन नहीं होता कि इतना सब कुछ मेरे घर के मर्दों ने किया है। काश! मुझे थोड़ा सा भी इल्म हो जाता तो मैं ये सब आपको करने ही नहीं देती। हे ईश्वर! किसी इंसान की बुद्धि इतनी भ्रष्ट कैसे हो सकती है? कोई खुशी खुशी इतने बड़े बड़े पाप कैसे कर सकता है?"

"चुप हो जाइए मां।" गौरी शंकर की बेटी राधा ने दुखी भाव से अपनी मां से कहा____"ये सब सोच कर इस तरह आंसू बहाने से अब क्या होगा? कितना गर्व करते थे हम कि हमारे अपने कितने अच्छे हैं लेकिन क्या पता था कि अच्छी सूरतों के पीछे कितने बड़े शैतान छुपे हुए हैं।"

कहने के साथ ही राधा अपने पिता गौरी शंकर से मुखातिब हुई और फिर बोली____"मैंने कभी भी आप में से किसी के भी सामने कुछ बोलने की हिमाकत नहीं की पिता जी। ऐसा सिर्फ इस लिए क्योंकि ये सब आप लोगों द्वारा दिए गए अच्छे संस्कार थे। मैं आपसे सिर्फ इतना जानना चाहती हूं कि आख़िर क्या हासिल कर लिया आपने बदला ले कर? क्या इस बदले से आप अपने उस परिवार को अपार खुशियां दे पाए जो अब तक सबके साथ हंसी खुशी जी रहे थे?"

"म...मुझे माफ़ कर दे बेटी।" गौरी शंकर अपनी बेटी से नज़रें नहीं मिला पा रहा था, बोला____"ऊपर बैठा विधाता हमसे यही करवाना चाहता था। कहते हैं कि वक्त से बड़ा कोई मरहम नहीं होता। वो बड़े से बड़े नासूर बन गए ज़ख्मों को भी भर देता है मगर कदाचित वो हमारे ज़ख्म नहीं भर सका। अगर भर दिया होता तो क्या आज हम सब ऐसी हालत में होते?"

"मैं ज़्यादा तो कुछ नहीं जानती पिता जी।" राधा ने कहा____"किंतु आप लोगों से ही सुना है कि इंसान के हाथ में सिर्फ कर्म करना ही होता है। तो अब आप ही बताइए अगर इंसान के बस में सिर्फ कर्म करना था तो आपने ऐसे कर्म क्यों किए जिसकी वजह से हमारा पूरा परिवार मिट्टी में मिल गया? अपने कर्म को विधाता अथवा किस्मत का लिखा मत बताइए। विधाता आपसे ये कहने नहीं आया कि आप बदले की आग में जलिए और किसी की हत्या कर दीजिए।"

गौरी शंकर अवाक सा देखता रह गया अपनी बेटी को। कुछ कहना तो चाहा उसने लेकिन जुबान ने साथ नहीं दिया। उसके बगल से रूपचंद्र किसी पुतले की तरह खड़ा था।

"अब हम सबका क्या होगा पिता जी?" राधा की आंखें छलक पड़ीं____"आप लोगों ने तो बदला लेने के चक्कर में खुद को ही मिटा दिया मगर हमारा क्या? आपके घर की ये औरतें और आपकी बहू बेटियां किसके सहारे जियेंगी अब?"

राधा की बातें सुन कर और उसका रोना देख भीड़ में खड़े जाने कितने ही लोगों की आंखें नम हो गईं। मुझे खुद भी बड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था। तभी मैंने देखा रूपा आगे आई और उसने राधा को अपने से छुपका लिया। राधा उससे छुपक कर और भी ज़्यादा रोने लगी। गौरी शंकर अपनी बेटी और अपने घर की बाकी औरतों को नम आंखों से देखता रहा।

✮✮✮✮

"पंच के रूप में हमने आप सबकी बातें और साथ ही दुख तकलीफ़ों को बड़े ध्यान से सुना है।" मंच पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने मैदान में खड़े समस्त जन समूह को देखते हुए ऊंचे स्वर में कहा____"ये एक ऐसा मामला है जिसका फ़ैसला करना बिल्कुल भी आसान नहीं हैं। अगर गहराई से सोचा जाए तो इस मामले का फ़ैसला किसी के लिए भी बेहतर नहीं हो सकता। माना कि कुछ लोगों को इसके फ़ैसले से आत्मिक शांति मिल सकती है लेकिन ये भी सच है कि महज आत्मिक शांति से किसी के भी परिवार के सदस्यों का जीवन बेहतर तरीके से नहीं चल सकता।"

"यहां ऐसे भी हैं जो हमारे फ़ैसले पर पक्षपात करने का आरोप भी लगा सकते हैं।" कुछ पल की ख़ामोशी के बाद महेंद्र सिंह ने पुनः कहा____"ऐसे व्यक्तियों से हमारा यही कहना है कि अगर वो चाहें तो इस मामले को हमारे देश के कानून के समक्ष रख सकते हैं और उसी कानून के द्वारा इंसाफ़ हासिल कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करने से पहले ये भी अच्छी तरह सोच लें कि देश का कानून जो फ़ैसला सुनाएगा उससे किसी का भी भला नहीं हो सकेगा जबकि हमने इस मामले में ऐसा फ़ैसला करने का सोचा है जिससे सबका भला भी हो सके। क्या आप सब हमारी इस बात से सहमत हैं?"

ठाकुर महेंद्र सिंह की इन बातों को सुन कर पूरे जन समूह में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। सब एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे उनमें से किसी को भी महेंद्र सिंह जी की बातें समझ नहीं आईं थी।

"इसमें इतना सोच विचार करने की ज़रूरत नहीं है किसी को।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने किसी को कुछ न बोलता देख कहा____"बहुत ही सरल और साधारण सी बात है जिसे आप सबको समझने की ज़रूरत है। आप सब जानते हैं कि इस मामले से जुड़ा हर व्यक्ति गुनहगार है। इस मामले से जुड़े हर व्यक्ति ने एक दूसरे के अपनों की हत्याएं की हैं और हत्याएं करना सबसे बड़ा अपराध है जिसकी कोई माफ़ी नहीं हो सकती। अगर ये सोच कर हम फ़ैसला करें कि हर हत्यारे को मौत की सज़ा दी जाए तो क्या ये उचित होगा? एक तरफ इस गांव के साहूकार हैं जिन्होंने अपनी वर्षों पुरानी दुश्मनी के चलते ठाकुर साहब के छोटे भाई और बड़े बेटे की हत्या की और इतना ही नहीं उनके छोटे बेटे का भी जीवन बर्बदाद कर देना चाहा। बदले में ठाकुर साहब ने भी बदले के रूप में साहूकारों का संघार कर दिया। दोनों परिवारों में गुनहगार के रूप में एक तरफ गौरी शंकर और रूपचंद्र हैं तो दूसरी तरफ ठाकुर साहब। अब अगर इनके अपराधों के लिए इन्हें मौत की सज़ा सुना दी जाए तो क्या ये उचित होगा? सवाल है कि गौरी शंकर और रूपचंद्र की मौत हो जाने के बाद इनके घर परिवार की औरतों और बहू बेटियों का क्या होगा? वो सब किसके सहारे अपना जीवन बसर करेंगी? यही सवाल ठाकुर साहब के बारे में भी है कि अगर इन्हें मौत की सज़ा दी जाएगी तो हवेली में रहने वाले किसके सहारे जिएंगे? दूसरी तरफ मुंशी चंद्रकांत हैं जिन्होंने अपनी दुश्मनी ठाकुर साहब से निकाली और इन्होंने साहूकारों के साथ मिल कर मझले ठाकुर जगताप और बड़े कुंवर अभिनव की हत्या की। हालाकि बदले में ठाकुर साहब ने इनकी अथवा इनके बेटे की हत्या नहीं की। इस हिसाब से देखा जाए तो वास्तव में ये दोनो पिता पुत्र ठाकुर साहब के अपराधी हैं और इन्होंने जो किया है उसके लिए इन्हें यकीनन मौत की सज़ा ही मिलनी चाहिए लेकिन सवाल वही है कि क्या इन्हें भी ऐसी सज़ा देना उचित होगा? आखिर इनके बाद इनके घर की औरतों का क्या होगा?"

ठाकुर महेंद्र सिंह इतना सब कहने के बाद भीड़ में खड़े लोगों की तरफ देखने लगे। इतने बड़े जन समूह में आश्चर्यजनक रूप से सन्नाटा फैला हुआ था। किसी को भी महेंद्र सिंह से ऐसी बातों की उम्मीद नहीं थी।

"पंच के रूप में बिना कोई पक्षपात किए न्याय करना हमारा फर्ज़ है।" उन्होंने फिर से कहना शुरू किया____"किंतु हमारा ये देखना भी फ़र्ज़ है कि इस सबके बाद भी किसी के लिए क्या उचित है? देखिए, जो बीत गया अथवा जो कर दिया गया वो सिर्फ दुश्मनी या बदले की भावना से किया गया। हम अच्छी तरह जानते हैं कि इतना कुछ करने के बाद भी किसी को भी सुख चैन नहीं मिला होगा बल्कि सिर्फ दुख और ज़माने भर की निंदा ही मिली है। इस लिए हम व्यक्तिगत रूप से ये चाहते हैं कि सब कुछ भुला कर आप सब एक नए सिरे से शुरुआत कीजिए। किसी से बैर रख कर किसी की हत्या करने से कभी कोई खुशी हासिल नहीं हो सकती। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते कि आप लोगों की वजह से आपके घर परिवार के बाकी सदस्यों का जीवन नर्क के समान हो जाए। इस लिए अगर आप सबको हमारी ये बातें समझ आ रही हैं तो बेझिझक हो कर हमें बता दें। बाकी पंच के रूप में तो हमें फ़ैसला करना ही है लेकिन ये भी सच है कि उस फ़ैसले से यही होगा कि जो कुछ बचा है वो भी बर्बाद हो जाएगा।"

इस बार जन समूह में खुसुर फुसुर की आवाज़ें आनी शुरू हो गईं। साहूकार गौरी शंकर और रूपचंद्र के चेहरों पर अजीब तरह के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। यही हाल मुंशी चंद्रकांत और उसके बेटे रघुवीर का भी था।

"ठाकुर साहब।" सहसा गौरी शंकर ने कहा____"अगर ऐसा सच में हो सकता है तो ये हमारे लिए खुशी की ही बात होगी लेकिन इसका यकीन भला हम कैसे करें कि इसके बाद हम पर या हमारे परिवार के किसी सदस्य पर ठाकुर साहब का क़हर नहीं बरपेगा?"

"मेरा भी यही कहना है ठाकुर साहब।" मुंशी चंद्रकांत ने महेंद्र सिंह से कहा____"हम कैसे भरोसा करें कि हमारे द्वारा इतना कुछ किए जाने के बाद ठाकुर साहब द्वारा हम पर कभी कोई आंच नहीं आएगी? ठाकुर साहब का तो हम एक घड़ी के लिए यकीन भी कर सकते हैं किंतु हमें छोटे कुंवर पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।"

"बेशक आप लोगों का ऐसा सोचना जायज़ है चंद्रकांत।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने कहा____"किंतु यही बात आप लोगों पर भी तो लागू होती है। ये तो सभी जानते हैं कि जब से दादा ठाकुर की कुर्सी पर ठाकुर प्रताप सिंह बैठे हैं तब से इनके द्वारा कभी भी किसी का अनिष्ट नहीं हुआ। इन्होंने हमेशा सबकी भलाई का ही काम किया है और हर ज़रूरतमंद की हर तरह से मदद की है। ज़ाहिर है इतना कुछ होने के बाद भी आम जनता को इन पर भरोसा होगा कि इसके बाद भी इनके द्वारा आप लोगों के साथ ही नहीं बल्कि किसी के साथ भी अनिष्ट नहीं होगा। हां, आम जनता को आप लोगों पर ही भरोसा नहीं हो सकेगा क्योंकि हत्या जैसे अपराध तो आप लोगों ने ही करने शुरू किए थे। इस बारे में क्या कहेंगे आप लोग?"

ठाकुर महेंद्र सिंह की ये बातें सुन कर गौरी शंकर और चंद्रकांत कुछ न बोले। कदाचित उन दोनों को ही इस बात का एहसास हो गया था कि उनके बारे में जो कुछ महेंद्र सिंह ने कहा है वो एक कड़वा सच है। तभी सहसा जन समूह में से कुछ लोग चिल्लाने लगे। एक साथ कई लोगों के स्वर वातावरण में गूंज उठे। सबका यही कहना था कि उन्हें साहूकार गौरी शंकर और मुंशी चंद्रकांत पर भरोसा नहीं है।

"कमाल है।" मंच पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह मुस्कुराते हुए बोल उठे____"हमने तो बस अपना अंदेशा ज़ाहिर किया था लेकिन हमारे अंदेशे की पुष्टि तो यहां मौजूद लोगों ने ही कर दी। क्या अब भी आप लोगों को लगता है कि इस तरह का सवाल आप लोगों को करना चाहिए था?"

गौरी शंकर और मुंशी चंद्रकांत ने सिर झुका लिया। इधर महेंद्र सिंह ने पिता जी से कहा____"आपका क्या कहना है ठाकुर साहब? हमारा मतलब है कि क्या आप हमारी व्यक्तिगत राय से सहमत हैं? क्या आप भी ये समझते हैं कि सब कुछ भुला कर एक नए सिरे से शुरुआत की जाए ताकि जो कुछ बचा है वो बर्बाद होने से बच जाए? अगर आप सहमत हैं और आपकी इजाज़त हो तो इस मामले का यही फ़ैसला हम सुना देते हैं।"

"हम आपकी बातों से सहमत हैं।" पिता जी ने कहा____"हम खुद भी नहीं चाहते कि किसी कठोर फ़ैसले की वजह से गौरी शंकर के परिवार की औरतें और उनकी बहू बेटियां अनाथ और बेसहारा हो जाएं। हम तो पहले भी यही चाहते थे कि दोनों परिवार प्रेम पूर्वक रहें और ऐसा हमेशा ही चाहेंगे। हां ये सच है कि हमने गुस्से में आ कर इनके भाइयों और बच्चों को मार डाला जिसका अब हमें बेहद अफ़सोस ही नहीं बल्कि बेहद दुख भी हो रहा है। हम चाहते हैं कि किसी और को उनके अपराधों की सज़ा मिले या न मिले लेकिन हमें ज़रूर मिलनी चाहिए। इतना बड़ा नर संघार करने के बाद हम कभी चैन से जी नहीं पाएंगे। अच्छा होगा कि हमें मौत की सज़ा सुना दी जाए।"

पिता जी की बात सुन कर मैं तो हैरान हुआ ही था किंतु गौरी शंकर और मुंशी चंद्रकांत भी आश्चर्य से देखने लगे थे उन्हें। कदाचित उन्हें मेरे पिता जी से ऐसा सुनने की सपने में भी उम्मीद नहीं थी।

"ऐसा नहीं हो सकता ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"अगर सज़ा मिलेगी तो फिर हर अपराधी को सज़ा मिलेगी अन्यथा किसी को भी नहीं। वैसे आपके लिए ये सज़ा जैसा ही होगा कि आप अपने गुनाहों का जीवन भर पश्चाताप करते रहें। एक और बात, आज के बाद अब आप कभी भी पंच अथवा मुखिया नहीं बन सकते।"

"हत्या जैसा अपराध करने के बाद तो हम खुद भी पंच अथवा मुखिया बने रहना पसंद नहीं करेंगे ठाकुर साहब।" पिता जी ने गंभीर भाव से कहा____"पंच अथवा मुखिया तो परमेश्वर का रूप होता है, हमारे जैसा हत्यारा नहीं हो सकता।"

उसके बाद जब सभी पक्ष राज़ी हो गए तो यही फ़ैसला किया गया कि सब कुछ भुला कर एक नए सिरे से शुरआत की जाए। ज़ाहिर है ये फ़ैसला इसी बिना पर किया गया कि इससे सभी के परिवारों का भला हो सके। पंच के रूप में ठाकुर महेन्द्र सिंह ने सभी पक्षों को ये सख़्त हिदायत दी कि अब से कोई भी एक दूसरे का बुरा नहीं करेगा अन्यथा कठोर दण्ड दिया जाएगा।

गौरी शंकर इस फ़ैसले से खुश तो हुआ लेकिन अपने भाइयों तथा बच्चों की मौत से बेहद दुखी भी था। दूसरी तरफ मुंशी चंद्रकांत सामान्य ही नज़र आया। सफ़ेदपोश के बारे में यही कहा गया कि उसे जल्द से जल्द तलाश कर के पंच के सामने हाज़िर किया जाए। हालाकि ये अब हमारा मामला था जिसे देखना हमारा ही काम था। ख़ैर इस फ़ैसले से मुझे भी खुशी हुई कि चलो एक बड़ी मुसीबत टल गई वरना इतना कुछ होने के बाद कुछ भी हो सकता था। सहसा मेरे मन में ख़याल उभरा कि _____'इस तरह का फ़ैसला शायद ही किसी काल में किसी के द्वारा किया गया होगा।'

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Froog

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बहुत ही शानदार स्टोरी है
उम्मीद है कि आप कुछ चूतीया अथवा कम कमेन्ट की बजह से स्टोरी बंद नहीं करेंगे
 

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बहुत ही शानदार, लाजवाब और अद्भुत अद्वितीय अपडेट है भाई मजा आ गया
पंचायत में साहुकारोंका एक और हत्या का कारनामा उजागर हो गया.उनके कारनामों वजह से उनके बहु बेटीया निराश हो कर बोलने लगी और गौरीशंकर अवाक होकर सुनता रहा
ठाकूर महेंद्रसिगं ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद अपने फैसले का पक्ष जनता जनार्दन के सामने रख उनसे मत मांगा,जब सहमती हुई तो सबके परिवार का हित रखकर सब कुछ भुलाकर सब दुश्मनी भुलाकर साथ में रहें और सबकी भलाई का सोचे
हा अब से दादा ठाकूर ना तो मुखिया रहेगे और कोई भी फैसला नहीं सुना सकेगे
ये साला मुंशी और उसका बेटा कुछ ना कुछ जरुर करेगा खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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