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दोस्तों कहानी का अगला अध्याय - 67 पोस्ट कर दिया है।

अध्याय - 67
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अब तक....
"और फिर जब सुबह हुई।" जगन के चुप होते ही मैंने कहा____"तो तुम अपने गांव के लोगों को ले कर मेरे झोपड़े में आ गए। मकसद था सबके सामने मुझे अपने भाई का हत्यारा साबित करना। मेरे चरित्र के बारे में सभी जानते थे इस लिए हर कोई इस बात को मान ही लेता कि अपने आपको बचाने के लिए मैंने ही मुरारी काका की हत्या की है।"
जगन ने मेरी बात सुन कर सिर झुका लिया। बैठक में एक बार फिर से ख़ामोशी छा गई थी। सभी के चेहरों पर कई तरह के भावों का आवा गमन चालू था।
अब आगे....
"उसके बाद तुमने क्या किया?" पिता जी ने ख़ामोशी को चीरते हुए जगन से पूछा____"हमारा मतलब है कि अपने भाई की हत्या करने के बाद उस सफ़ेदपोश के कहने पर और क्या क्या किया तुमने?"
"मैं तो यही समझता था कि अपने भाई की हत्या कर के और छोटे ठाकुर को उसकी हत्या में फंसा कर मैं इस सबसे मुक्त हो गया हूं।" जगन ने गहरी सांस लेने के बाद कहा____"और ये भी कि कुछ समय बाद अपने भाई की ज़मीनों को ज़बरदस्ती हथिया कर अपने परिवार के साथ आराम से जीवन गुज़ारने लगूंगा लेकिन ये मेरी ग़लतफहमी थी क्योंकि ऐसा हुआ ही नहीं।"
"क्या मतलब?" अर्जुन सिंह के माथे पर सिलवटें उभर आईं।
"मतलब ये कि ये सब होने के बाद एक दिन शाम को काले कपड़ों में लिपटा एक दूसरा रहस्यमय व्यक्ति मेरे पास आया।" जगन ने कहा____"उसने मुझसे कहा कि उसका मालिक यानि कि वो सफ़ेदपोश मुझसे मिलना चाहता है। काले कपड़े वाले उस आदमी की ये बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया था लेकिन ये भी समझता था कि मुझे उससे मिलना ही पड़ेगा, अन्यथा वो कुछ भी मेरे या मेरे परिवार के साथ कर सकता है। ख़ैर दूसरे दिन शाम को मैं आपके आमों वाले बाग़ में उस सफ़ेदपोश व्यक्ति से मिला तो उसने मुझसे कहा कि मुझे उसके कहने पर कुछ और भी काम करने होंगे जिसके लिए वो मुझे मोटी रकम भी देगा। मैं अपने भाई की हत्या भले ही कर चुका था लेकिन अब किसी और की हत्या नहीं करना चाहता था। मैंने जब उससे ये कहा तो उसने पहली बार मुझसे सख़्त लहजे में बात की और कहा कि अगर मैंने उसका कहना नहीं माना तो इसके लिए मुझे मेरी सोच से कहीं ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है। एक बार फिर से मेरे हालत मरता क्या न करता वाले हो गए थे। इस लिए मैंने उसका कहना मान लिया। उसने मुझे काम दिया कि मैं गुप्त रूप से हवेली की गतिविधियों पर नज़र रखूं। मतलब ये कि आप, मझले ठाकुर, बड़े कुंवर और छोटे कुंवर आदि लोग कहां जाते हैं, किससे मिलते हैं और क्या क्या करते हैं ये सब देखूं और फिर उस सफ़ेदपोश आदमी को बताऊं। इतना तो मैं शुरू में ही समझ गया था कि वो सफ़ेदपोश हवेली वालों से बैर रखता है। ख़ैर ये क्योंकि ऐसा काम नहीं था जिसमें मुझे किसी की हत्या करनी पड़ती इस लिए मैंने मन ही मन राहत की सांस ली और उसके काम पर लग गया। कुछ समय ऐसे ही गुज़रा और फिर एक दिन उसने मुझे फिर से किसी की हत्या करने को कहा तो मेरे होश ही उड़ गए।"
"उसने तुम्हें तांत्रिक की हत्या करने को कहा था ना?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा।
"हां।" जगन ने बेबसी से सिर झुका कर कहा____"मुझे भी पता चल गया था कि बड़े कुंवर पर किसी तंत्र मंत्र का प्रभाव डाला गया था जिससे उनके प्राण संकट में थे। उस सफ़ेदपोश को जब मैंने ये बताया कि आप लोग उस तांत्रिक के पास गए थे तो उसने मुझे फ़ौरन ही उस तांत्रिक को मार डालने का आदेश दे दिया। मेरे पास ऐसा करने के अलावा कोई चारा नहीं था। मुझे इस बात का भी ख़ौफ था कि मैं तांत्रिक की हत्या कर भी पाऊंगा या नहीं? आख़िर मुझे ये काम करना ही पड़ा। ये तो मेरी किस्मत ही अच्छी थी कि मैं तांत्रिक को मार डालने में सफल हो गया था अन्यथा मेरे अपने प्राण ही संकट में पड़ सकते थे।"
"अच्छा एक बात बताओ।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए कहा____"जैसा कि उस सफ़ेदपोश का मक़सद तुम्हारे द्वारा की गई मुरारी की हत्या में वैभव को फंसाना था तो जब ऐसा नहीं हुआ तो क्या इस बारे में तुम्हारे या उस सफ़ेदपोश के ज़हन में कोई सवाल अथवा विचार नहीं पैदा हुआ? हमारा मतलब है कि जब सफ़ेदपोश के द्वारा इतना कुछ करने के बाद भी वैभव मुरारी का हत्यारा साबित नहीं हो पाया तो क्या उसने तुमसे दुबारा इसे फंसाने को नहीं कहा?"
"नहीं, बिल्कुल नहीं।" जगन ने कहा___"हलाकि मैं ज़रूर ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि जिस मकसद से उसने मेरे द्वारा मेरे भाई की हत्या करवा कर छोटे ठाकुर को हत्या के इल्ज़ाम में फंसाना चाहा था वैसा कुछ तो हुआ नहीं तो फिर उसने फिर से छोटे ठाकुर को किसी दूसरे तरीके से फंसाने को मुझसे क्यों नहीं कहा? वैसे ये तो सिर्फ़ मेरा सोचना था, संभव है उसने खुद ही ऐसा कुछ किया रहा हो लेकिन ये सच है कि उसने मुझसे दुबारा ऐसा कुछ करने के लिए नहीं कहा था।"
"सुनील और चेतन से क्या करवाता था वो सफ़ेदपोश?" मैंने जगन की तरफ देखते हुए पूछा तो उसने कुछ पल सोचने के बाद कहा____"मुझे ज़्यादा तो नहीं पता लेकिन एक बार मैंने ये ज़रूर सुना था कि वो उन दोनों को आपकी गतिविधियों पर नज़र रखने को कह रहा था और साथ ही ये भी कि इस गांव में आपके किस किस से ऐसे संबंध हैं जो आपके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाएं?"
"क्या तुमने कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि वो सफ़ेदपोश कौन है?" पिता जी ने जगन से पूछा____"कभी न कभी तो तुमने भी सोचा ही होगा कि तुम्हें एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति के बारे में जानना ही चाहिए जिसके कहने पर तुम कुछ भी करने के लिए मजबूर हो जाते हो?"
"सच कहूं तो ऐसा मेरे मन में बहुतों बार ख़याल आया था।" जगन ने कहा____"और फिर एक बार मैंने अपने मन का किया भी लेकिन जल्दी ही पकड़ा गया। मुझे नहीं पता कि उसको ये कैसे पता चल गया था कि मैं उसके बारे में जानने के लिए चोरी छुपे उसका पीछा कर रहा हूं? जब मैं पकड़ा गया तो उसने मुझे सख़्त लहजे में यही कहा कि अब अगर फिर कभी मैंने उसका पीछा किया तो मुझे अपने जीवन से हाथ धो लेना पड़ेगा। उसकी इस बात से मैं बहुत ज़्यादा डर गया था। उसके बाद फिर मैंने कभी उसके बारे में जानने की कोशिश नहीं की।"
"माना कि तुम कई तरह की परेशानियों से घिरे हुए थे और साथ ही उस सफ़ेदपोश के द्वारा मजबूर कर दिए गए थे।" पिता जी ने कठोरता से कहा____"लेकिन इसके बावजूद अगर तुम ईमानदारी और नेक नीयती से काम लेते तो आज तुम इतने बड़े अपराधी नहीं बन गए होते। तुमने अपने हित के लिए अपने भाई की हत्या की। उसकी ज़मीन जायदाद हड़पने की कोशिश की और साथ ही उस हत्या में हमारे बेटे को भी फंसाया। अगर तुम ये सब हमें बताते तो आज तुम्हारे हालात कुछ और ही होते और साथ ही मुरारी भी ज़िंदा होता। तुमने बहुत बड़ा अपराध किया है जगन और इसके लिए तुम्हें कतई माफ़ नहीं किया जा सकता। हम कल ही गांव में पंचायत बैठाएंगे और उसमें तुम्हें मौत की सज़ा सुनाएंगे।"
"रहम दादा ठाकुर रहम।" पिता जी के मुख से ये सुनते ही जगन बुरी तरह रोते हुए उनके पैरों में गिर पड़ा____"मुझ पर रहम कीजिए दादा ठाकुर। मुझ पर न सही तो कम से कम मेरे बीवी बच्चों पर रहम कीजिए। वो सब अनाथ और असहाय हो जाएंगे, बेसहारा हो जाएंगे।"
"अगर सच में तुम्हें अपने बीवी बच्चों की फ़िक्र होती तो इतना बड़ा गुनाह नहीं करते।" पिता जी ने गुस्से से कहा____"तुम्हें कम से कम एक बार तो सोचना ही चाहिए था कि बुरे कर्म का फल बुरा ही मिलता है। अब अगर तुम्हें सज़ा न दी गई तो मुरारी की आत्मा को और उसके बीवी बच्चों के साथ इंसाफ़ कैसे हो सकेगा?"
"मैं मानता हूं दादा ठाकुर कि मेरा अपराध माफ़ी के लायक नहीं है।" जगन ने कहा____"लेकिन ज़रा सोचिए कि अगर मैं भी मर गया तो मेरे बीवी बच्चों के साथ साथ मेरे भाई के बीवी बच्चे भी बेसहारा हो जाएंगे।"
"उनकी फ़िक्र करने की तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं है।" पिता जी ने सख़्त भाव से कहा____"मुरारी के परिवार की ज़िम्मेदारी अब हमारे कंधों पर है। रही तुम्हारे बीवी बच्चों की बात तो उन्हें भी हवेली से यथोचित सहायता मिलती रहेगी। तुम्हारे बुरे कर्मों की वजह से अब उन्हें भी जीवन भर दुख सहना ही पड़ेगा।" कहने के साथ ही पिता जी ने मेरी तरफ देखा और फिर कहा____"संपत से कहो कि इसे यहां से ले जाए और हवेली के बाहर वाले हिस्से में बने किसी कमरे में बंद कर दे। कल पंचायत में ही इसका फ़ैसला करेंगे हम।"
जगन रोता बिलखता और रहम की भीख ही मांगता रह गया जबकि मेरे बुलाने पर संपत उसे घसीटते हुए बैठक से ले गया। मैंने देखा पिता जी के चेहरे पर बेहद ही सख़्त भाव थे। शायद उन्होंने फ़ैसला कर लिया था कि अब किसी भी अपराधी पर कोई भी रहम नहीं करेंगे।
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रूपा अपने कमरे में पलंग पर लेटी हुई थी। हवेली में जो कुछ हुआ था उससे उसे बहुत बड़ा झटका लगा था। उसे अच्छी तरह इस बात का एहसास था कि इस सबके बाद हवेली में रहने वालों पर क्या गुज़र रही होगी। हवेली से रिश्ते सुधरने के बाद वो जाने कैसे कैसे सपने सजाने में लग गई थी किंतु जब उस शाम उसने अपने बाग़ में उन लोगों की बातें सुनी थी तो उसके सभी अरमानों पर मानों गाज सी गिर गई थी। अगर बात सिर्फ़ इतनी ही होती तो शायद किसी तरह से कोई संभावना बन भी जाती लेकिन हवेली में इतना बड़ा हादसा होने के बाद तो जैसे उसे यकीन हो गया था कि अब कुछ नहीं हो सकता। वैभव के साथ जीवन जीने के उसने जो भी सपने सजाए थे वो शायद अब पूरी तरह से ख़ाक में मिल चुके थे। ये सब सोचते हुए उसकी आंखें जाने कितनी ही बार आंसू बहा चुकीं थी। उसका जी कर रहा था कि वो सारी लोक लाज को ताक में रख कर अपने घर से भाग जाए और वैभव के सामने जा कर उससे इस सबके लिए माफ़ी मांगे। हालाकि इसमें उसका कोई दोष नहीं था लेकिन वो ये भी जानती थी कि ये सब उसी के ताऊ की वजह से हुआ है।
"कब तक ऐसे पड़ी रहोगी रूपा?" उसके कमरे में आते ही उसकी भाभी कुमुद ने गंभीर भाव से कहा____"सुबह से तुमने कुछ भी नहीं खाया है। ऐसे में तो तुम बीमार हो जाओगी।"
"सब कुछ ख़त्म हो गया भाभी।" रूपा ने कहीं खोए हुए कहा_____"मेरे अपनों ने वैभव के चाचा और उसके बड़े भाई को मार डाला। उसे तो पहले से ही इन लोगों की नीयत पर शक था और देख लो उसका शक यकीन में बदल गया। अब तो उसके अंदर हम सबके लिए सिर्फ़ नफ़रत ही होगी। मुझे पूरा यकीन है कि वो बदला लेने ज़रूर आएगा और हर उस व्यक्ति की जान ले लेगा जिनका थोड़ा सा भी हाथ उसके अपनों की जान लेने में रहा होगा।" कहने के साथ ही सहसा रूपा एक झटके से उठ बैठी और फिर कुमुद की तरफ देखते हुए बोली_____"अब तो वो मुझसे भी नफ़रत करने लगा होगा न भाभी? उसे मुझसे वफ़ा की पूरी उम्मीद थी लेकिन मैंने क्या किया? मैं तो ज़रा भी उसकी उम्मीदों पर खरी न उतर सकी। इसका तो यही मतलब हुआ ना भाभी कि उसके प्रति मेरा प्रेम सिर्फ़ और सिर्फ़ एक दिखावा मात्र ही था। अगर मेरा प्रेम ज़रा भी सच्चा होता तो शायद आज ऐसे हालात न होते।"
"तुम पागल हो गई हो रूपा।" कुमुद ने झपट कर उसे अपने सीने से लगा लिया। उसे रूपा की ऐसी हालत देख कर बहुत दुख हो रहा था, बोली____"जाने क्या क्या सोचे जा रही हो तुम, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। तुम्हारा प्रेम हमेशा से सच्चा रहा है। वो सच्चा प्रेम ही तो था जिसके चलते तुम अपने वैभव की जान बचाने के लिए मुझे ले कर उस रात हवेली चली गई थी। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि तुमसे जो हो सकता था वो तुमने किया है और यही तुम्हारा सच्चा प्रेम है। मुझे पूरा यकीन है कि वैभव के दिल में तुम्हारे लिए ज़रा सी भी नफ़रत नहीं होगी।"
"मुझे छोटी बच्ची समझ कर मत बहलाओ भाभी।" रूपा की आंखें फिर से छलक पड़ीं____"सच तो ये है कि अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है। मेरे अपनों ने जो किया है उससे हर रास्ता और हर उम्मीद ख़त्म हो चुकी है। कोई इतना ज़ालिम कैसे हो सकता है भाभी? जब से होश सम्हाला है तब से देखती आई हूं कि दादा ठाकुर ने या हवेली के किसी भी व्यक्ति ने हमारे साथ कभी कुछ ग़लत नहीं किया है फिर क्यों मेरे अपने उनके साथ इतना बड़ा छल और इतना बड़ा घात कर गए?"
"मैं क्या बताऊं रूपा? मुझे तो ख़ुद इस बारे में कुछ पता नहीं है।" कुमुद ने मानों अपनी बेबसी ज़ाहिर करते हुए कहा____"काश! मुझे पता होता कि आख़िर ऐसी कौन सी बात है जिसके चलते हमारे बड़े बुजुर्ग हवेली में रहने वालों से इस हद तक नफ़रत करते हैं कि उनकी जान लेने से भी नहीं चूके। वैसे कहीं न कहीं मैं भी इस बात को मानती हूं कि कोई तो बात ज़रूर है रूपा, और शायद बहुत ही बड़ी बात है वरना ये लोग इतना बड़ा क़दम न उठाते।"
कुमुद की बात सुन कर रूपा कुछ न बोली। उसकी तो ऐसी हालत थी जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो और अब वो खुद को सबसे ज़्यादा बेबस, लाचार और असहाय समझती हो। वैभव के साथ अपने जीवन के जाने कितने ही हसीन सपने सजा लिए थे उसने, पर किस्मत को तो जैसे उसके हर सपने को चकनाचूर कर देना ही मंज़ूर था।
"मुझे तो अब भी यकीन नहीं हो रहा कि इन लोगों ने वैभव के चाचा और भाई की हत्या की होगी।" रूपा को चुप देख कुमुद ने ही जाने क्या सोचते हुए कहा____"इतना तो ये लोग भी समझते ही रहे होंगे कि दादा ठाकुर से हमारे रिश्ते भले ही सुधर गए थे लेकिन उनके अंदर हमारे प्रति पूरी तरह विश्वास नहीं रहा होगा। यानि अंदर से वो तब भी यही यकीन किए रहे होंगे कि हम लोगों ने भले ही उनसे संबंध सुधार लिए हैं लेकिन इसके बावजूद हम उनके प्रति नफ़रत के भाव ही रखे होंगे। तो सवाल ये है कि अगर हमारे अपने ये समझते रहे होंगे तो क्या इसके बावजूद वो दादा ठाकुर के परिवार में से किसी की हत्या करने का सोच सकते हैं? क्या उन्हें इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं रहा होगा कि ऐसे में दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि गांव के लोग भी हमें ही हत्यारा समझेंगे और फिर बदले में वो हमारे साथ भी वैसा ही सुलूक कर सकते हैं?"
"उस रात बाग़ में मैंने स्पष्ट रूप से ताऊ जी की आवाज़ सुनी थी भाभी।" रूपा ने कहा____"और मैंने अच्छी तरह सुना था कि वो बाकी लोगों से वैभव को चंदनपुर जा कर जान से मारने को कह रहे थे। अगर ऐसा होता कि मैंने सिर्फ़ एक ही बार उनकी आवाज़ सुनी थी तो मैं भी ये सोचती कि शायद मुझे सुनने में धोखा हुआ होगा लेकिन मैंने तो एक बार नहीं बल्कि कई बार उनके मुख से कई सारी बातें सुनी थी। अब आप ही बताइए क्या ये सब झूठ हो सकता है? क्या मैंने जो सुना वो सब मेरा भ्रम हो सकता है? नहीं भाभी, ना तो ये सब झूठ है और ना ही ये मेरा कोई भ्रम है बल्कि ये तो एक ऐसी सच्चाई है जिसे दिल भले ही नहीं मान रहा मगर दिमाग़ उसे झुठलाने से साफ़ इंकार कर रह है। इन लोगों ने ही साज़िश रची और पूरी तैयारी के साथ वैभव के चाचा तथा उसके बड़े भाई की हत्या की या फिर करवाई।"
"मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा रूपा।" कुमुद ने गहरी सांस ले कर कहा___"पर इतना जानती हूं कि ये जो कुछ हुआ है बहुत ही बुरा हुआ है और इसके परिणाम बहुत ही भयानक होंगे। शायद परिणामों की कल्पना कर के ही हमारे घर के सारे मर्द लोग कहीं चले गए हैं और अब इस घर में सिर्फ हम औरतें और लड़कियां ही हैं। हैरत की बात है कि ऐसे हाल में वो लोग हमें यहां अकेला और बेसहारा छोड़ कर कैसे कहीं जा सके हैं?"
"शायद वो ये सोच कर हमें यहां अकेला छोड़ गए हैं कि उनके किए की सज़ा दादा ठाकुर हम औरतों को नहीं दे सकते।" रूपा ने कहा____"अगर सच यही है भाभी तो मैं यही कहूंगी कि बहुत ही गिरी हुई सोच है इन लोगों की। अपनी जान बचाने के चक्कर में उन्होंने अपने घर की बहू बेटियों को यहां बेसहारा छोड़ दिया है।"
"तुम सही कह रही हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"पर हम कर ही क्या सकते हैं? अगर सच में बदले के रूप में दादा ठाकुर का क़हर हम पर टूटा तो क्या कर लेंगे हम? वो सब तो कायरों की तरह अपनी जान बचा कर चले ही गए हैं। ख़ैर छोड़ो ये सब, जो होगा देखा जाएगा। तुम बैठो, मैं तुम्हारे लिए यहीं पर खाना ले आती हूं। भूखे रहने से सब कुछ ठीक थोड़ी ना हो जाएगा।"
कहने के साथ ही कुमुद उठी और कमरे से बाहर निकल गई। इधर रूपा एक बार फिर से जाने किन सोचो में खो गई। कुछ ही देर में कुमुद खाने की थाली ले कर आई और पलंग पर रूपा के सामने रख दिया। कुमुद के ज़ोर देने पर आख़िर रूपा को खाना ही पड़ा।
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हवेली में एक बार फिर से उस वक्त रोना धोना शुरू हो गया जब शाम के क़रीब साढ़े आठ बजे मेरी ननिहाल वाले तथा मेनका चाची के मायके वाले आ गए। जहां एक तरफ मेरी मां अपने पिता से लिपटी रो रहीं थी वहीं मेनका चाची भी अपने पिता और भाईयों से लिपटी रो रहीं थी। कुसुम और भाभी का भी बुरा हाल था। आख़िर बहुत समझाने बुझाने के बाद कुछ देर में रोना धोना बंद हुआ। उसके बाद औरतें अंदर ही रहीं जबकि मेरे दोनों ननिहाल वाले लोग बाहर बैठक में आ गए जहां पहले से ही पिता जी के साथ भैया के चाचा ससुर और अर्जुन सिंह बैठे हुए थे।
वैसे तो कहानी में ना तो मेरे ननिहाल वालों का कोई रोल है और ना ही मेनका चाची के मायके वालों का फिर भी दोनों जगह के किरदारों की जानकारी देना बेहतर समझता हूं इस लिए प्रस्तुत है।
मेरे ननिहाल वालों का संक्षिप्त पात्र परिचय:-
✮ बलवीर सिंह राणा (नाना जी)
वैदेही सिंह राणा (नानी जी)
मेरे नाना नानी को कुल चार संतानें हैं जो इस प्रकार हैं।
(01) संगवीर सिंह राणा (बड़े मामा जी)
सुलोचना सिंह राणा (बड़ी मामी)
मेरे मामा मामी को तीन संतानें हैं, जिनमें से दो बेटियां हैं और एक बेटा। तीनों का ब्याह हो चुका है।
(02) सुगंधा देवी (ठकुराईन यानि मेरी मां)
(03) अवधेश सिंह राणा (मझले मामा जी)
शालिनी सिंह राणा (मझली मामी)
मझले मामा मामी को दो संतानें हैं जिनमें से एक बेटा है और दूसरी बेटी। इन दोनों का भी ब्याह हो चुका है।
(04) अमर सिंह राणा (छोटे मामा जी)
रोहिणी सिंह राणा ( छोटी मामी)
छोटे मामा मामी को तीन संतानें हैं जिनमें से दो बेटियां हैं और एक बेटा। ये तीनों अभी अविवाहित हैं।
माधवगढ़ नाम के गांव में मेरा ननिहाल है जहां के जमींदार मेरे नाना जी के पिता जी और उनके पूर्वज हुआ करते थे। अब जमींदारी जैसी बात रही नहीं फिर भी उनका रुतबा और मान सम्मान वैसा का वैसा ही बना हुआ है। ज़ाहिर है ये सब मेरे नाना जी और उनके बच्चों के अच्छे आचरण और ब्यौहार की वजह से ही है। ख़ैर बलवीर सिंह राणा यानि मेरे नाना जी की इकलौती बेटी सुगंधा काफी सुंदर और सुशील थीं। बड़े दादा ठाकुर किसी काम से माधवगढ़ गए हुए थे जहां पर वो मेरे नाना जी के आग्रह पर उनके यहां ठहरे थे। वहीं उन्होंने मेरी मां सुगंधा देवी को देखा था। बड़े दादा ठाकुर को वो बेहद पसंद आईं तो उन्होंने फ़ौरन ही नाना जी से रिश्ते की बात कह दी। नाना जी बड़े दादा ठाकुर को भला कैसे इंकार कर सकते थे? इतने बड़े घर से और इतने बड़े व्यक्ति ने खुद ही उनकी बेटी का हाथ मांगा था। इसे वो अपना सौभाग्य ही समझे थे। बस फिर क्या था, जल्दी ही मेरी मां हवेली में बड़ी बहू बन कर आ गईं।
मेनका चाची के मायके वालों का संक्षिप्त परिचय:-
✮ धर्मराज सिंह चौहान (चाची के पिता जी)
सुमित्रा सिंह चौहान (चाची की मां)
चाची के माता पिता को कुल तीन संतानें हैं।
(01) हेमराज सिंह चौहान (चाची के बड़े भाई)
सुजाता सिंह चौहान (चाची की बड़ी भाभी)
इनको दो संतानें हैं जिनमें से एक बेटा है और दूसरी बेटी। दोनों का ही ब्याह हो चुका है।
(02) अवधराज सिंह चौहान ( चाची के छोटे भाई)
अल्का सिंह चौहान (चाची की छोटी भाभी)
इनको तीन संतानें हैं, जिनमें से दो बेटे और एक बेटी है। दोनों बेटों का ब्याह हो चुका है जबकि बेटी पद्मिनी अभी अविवाहित है।
(03) मेनका सिंह (छोटी ठकुराईन यानि मेरी चाची)
कुंदनपुर नाम के गांव में चाची के पिता धर्मराज सिंह चौहान के पूर्वज भी ज़मींदार हुआ करते थे। आज के समय में जमींदारी तो नहीं है किंतु उनके विशाल भू भाग पर आज भी गांव के लोग मजदूरी कर के अपना जीवन यापन करते हैं। कुंदनपुर में एक प्राचीन देवी मंदिर है जहां पर हर साल नवरात्र के महीने में विशाल मेला लगता है। आस पास के गावों में जितने भी संपन्न ज़मींदार थे वो सब बड़े बड़े अवसरों पर बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित करते थे। ऐसे ही एक अवसर पर धर्मराज सिंह चौहान ने बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित किया था। बड़े दादा ठाकुर ने वहीं पर मेनका चाची को देखा था। मेनका चाची अपने नाम की तरह ही बेहद सुंदर थीं। बड़े दादा ठाकुर ने देर न करते हुए फ़ौरन ही धर्मराज से उनकी बेटी का हाथ अपने छोटे बेटे जगताप के लिए मांग लिया था। अब क्योंकि ऊपर वाला भी यही चाहता था इस लिए जल्दी ही मेनका चाची हवेली में छोटी बहू बन कर आ गईं।
तो दोस्तो ये था मेरे दोनों ननिहाल वालों का संक्षिप्त परिचय।
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भाभी/अनुराधा/रुपागज़ब...
अब वैभव पुराने रुप में...
पर अब भाभी या अनुराधा?
Bhabhi ..agar bhabhi ko kuch nhi hota hai toभाभी/अनुराधा/रुपा
Thoda wait karke dekho shayad behtar response mil jaaye. Ek to kam hi readers review post karte hain aur jo post karte hain unmen bhi jyadatar incest readers hai Aur isse bhi bada masla ye hai ki bahut se readers ko Hindi devnagri nahi aati hai.. Aur ju bhi shayad lambe gap ke baad update kar rahe ho toh shayad yahi wajah hai theek se response na aane ki. Khair ho sake to daily na sahi but alternate days par update diya karo, Baaki readers ki marzi hai wo kya padhna chahte hain kya nahi, hum thodi na unhen force kar sakte hain.Itna ghatiya response...
Story Collector bhai lock lagaao is thread ko, kisi ko mehnat ki kadar nahi hai![]()