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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Mujhe koi shok nahi hai bhai aise udhas rehne kaa mujhe bhi khush rehna hai dusre logo ki tarah par meri kismat me koi khushiya nahi likhi hai meri zindagi me sirf dukh dard peeda bas yahi sab likha hai
Pooja path karo man, itna dukh hai to koi kaaran bhi avasya hoga, usko door karo, fir sab theek hoga :approve: Baaki apne aap ko kabhi akela mat samajhna, hum sab idhar ju ke dost hi hain:declare:
 
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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Kyo nhi bad rhi bat
Main ek kadam aage badhata, wo do kadam peeche :verysad:
 

RED Ashoka

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सीता फिर अग्नि में
SFAM

ये कहानी एक कोशिश है — रामायण जैसी पुरानी महागाथा को आज की दुनिया से जोड़कर देखने की। इसमें न सिर्फ सीता के बलिदान की गूंज है, बल्कि उस हर आधुनिक स्त्री की आवाज़ भी है जो आज के रावणों से अकेले लड़ रही है — अपने आत्मसम्मान के लिए, सच्चाई के लिए।

इस कहानी का ढांचा थोड़ा अलग है — यहाँ हर दृश्य, हर संवाद खुलकर नहीं लिखा गया, बल्कि इशारों और प्रतीकों में रचा गया है। ये एक ऐसी कथा है जिसमें मैंने आप सब को भी लेखन का हिस्सा बना दिया है। जो बातें नहीं कही गईं, उन्हें समझना और महसूस करना अब आपके हिस्से का काम है।

ये कहानी सीधी नहीं है, लेकिन गहरी है। यहाँ सीता सिर्फ त्रेता युग की देवी नहीं, बल्कि आज की वो औरत है जो बार-बार अग्निपरीक्षा से गुजरती है — लेकिन इस बार वो चुप नहीं है।


उम्मीद है कि इस कहानी को पढ़ते वक्त आप इसके हर शब्द के पीछे छुपे दर्द, सवाल और ताक़त को महसूस करेंगे — और अपनी कल्पना से उन ख़ामोश हिस्सों को आवाज़ देंगे, जो सिर्फ आपकी समझदारी और संवेदना से पूरा हो सकते हैं।
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त्रेतायुग


शाम ढल रही थी। सूर्य की आख़िरी किरणें अयोध्या के महलों की सुनहरी छतों पर पड़कर ऐसा प्रतीत कर रही थीं मानो स्वर्ग स्वयं उतर आया हो। प्रजा के चेहरे पर उल्लास था, नगर की गलियों में पुष्प वर्षा हो रही थी, और महलों में शंखनाद के साथ-साथ वीणा की मधुर स्वर लहरियाँ बह रही थीं।



राजकुमार राम का राज्याभिषेक होना था — अयोध्या का सबसे न्यायप्रिय, धर्मनिष्ठ और पराक्रमी पुत्र अब राजा बनने जा रहा था।



परंतु उसी समय, महल के एक कोने में एक और दृश्य चल रहा था। वहाँ न तो वीणा थी, न ही शंख। वहाँ थी बस मंथरा की ज़हर बुझी वाणी और कैकेयी की भ्रमित आँखें।



"राज्य तुम्हारे पुत्र भरत का होना चाहिए, रानी। राम अगर राजा बन गया, तो भरत की छाया भी नहीं रहेगी।"



"लेकिन राम मुझे प्रिय है…"



"प्रियता सत्ता नहीं लाती, रानी — राजनीति लाती है।"



मंथरा ने कैकेयी के दिल के किसी कोने में बैठी माँ की असुरक्षा को उभारा, और फिर... वो क्षण आया जब कैकेयी ने दशरथ से वो दो वचन माँग लिए।



दशरथ का चेहरा सफेद पड़ गया। काँपते हाथों से उन्होंने राम को बुलाया।



राम आए, मुस्कराते हुए — जैसे कुछ भी अनहोनी नहीं हुई।

दशरथ की आँखों में आँसू थे।



“राम… तुम्हें वन जाना होगा… १४ वर्षों के लिए…”



“और भरत?”



“वो राजा बनेगा…”



राम चुप रहे। केवल अपनी तलवार उतारी। राजवस्त्र उतारे। और पिता के चरणों में सिर रख दिया।



“आपकी आज्ञा, वहीं मेरा धर्म। मैं जा रहा हूँ पिताश्री… पर आप रोइए नहीं। मैं लौटूँगा।”



सीता काँपती हुई पास आईं।



“मैं भी चलूंगी, प्रभु। केवल अयोध्या की रानी नहीं, वन की पथ-संगीनी भी बनूंगी।”




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कलियुग - भारत, नई दिल्ली



आरव सिंह, 38 वर्ष का ईमानदार IAS अधिकारी, अपने दफ़्तर में फाइलों के ढेर से घिरे बैठे थे। चेहरा थका हुआ था, लेकिन आंखों में वही दृढ़ता थी जो केवल सच के रास्ते पर चलने वालों में होती है।



उस दिन उनके पास एक फ़ाइल आई — एक बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की — जहाँ सरकारी धन का अरबों रुपये का गबन हो चुका था। दस्तखतों में बड़े नाम थे — सांसद, मंत्री, और एक रावण-सा उद्योगपति: रणवीर मलिक।



“अगर ये सामने आया, तो तूफ़ान मच जाएगा,” उनके जूनियर ने कहा।



“तूफ़ान से डरता तो मैं साइकिल से दफ़्तर नहीं आता,” आरव ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।



रात 8 बजे, जब घर लौटे तो पत्नी सिया ने चाय दी। वो एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता थीं, खुद समाज की अंधेरी गलियों में उजाला फैलाने वाली।



“आज फिर लेट?”



“तूफ़ान जगाने की तैयारी कर रहा हूँ,” आरव ने हल्की हँसी में कहा।



अगली सुबह — स्थानांतरण आदेश हाथ में था।



“आपका तत्काल ट्रांसफर बस्तर ज़िले में किया जाता है। कार्यभार अगले 72 घंटे में सँभालना है।”



सिया वह लेटर पढ़ते-पढ़ते चुप हो गईं।



“ये… तुम्हें वहाँ भेज रहे हैं ताकि तुम इस केस से हट जाओ।”



आरव ने अख़बार एक ओर रखा और धीरे से बोला —



“अगर राम अयोध्या छोड़ सकता है, तो मैं दिल्ली क्यों नहीं छोड़ सकता?”



“पर आरव, वहां जंगल है, नक्सल क्षेत्र है… बड़ी खतरनाक जगह है”



“तो क्या हुआ? सच को कभी आंच आई है क्या..!!”



सिया ने उनका हाथ थाम लिया।



“तुम अकेले नहीं जाओगे। मैं चलूँगी।”



“ये वनवास नहीं है, सिया। ये यात्रा है — सच की। मैं वहाँ अपना काम करूंगा और तुम यहाँ अपना करो"



त्रेता युग में राम अपने पिता के वचन पर वन को निकले, कलियुग में आरव अपने ‘कर्तव्य’ के धर्म पर ट्रांसफर को स्वीकार कर रहा था।



राम के साथ सीता चली थीं, पथगामिनी बनकर, और आरव के साथ सिया थी — केवल पत्नी नहीं, युद्ध की सिपाही बनकर.. बस दोनों अपने अपने युद्ध.. अपनी अपनी जागर पर रहकर लड़ रहे थे..!!



अयोध्या छोड़ने की पीड़ा और दिल्ली के सरकारी फ्लैट से विदाई — दोनों में फर्क था… पर वेदना समान थी।



"एक युग में सत्ता ने धर्म को रोका, दूसरे युग में राजनीति ने ईमानदारी को। पर इस युग में भी.. राम को वन तो जाना ही पड़ा..."




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त्रेता युग - पंचवटी का एक शांत अपराह्न



जंगल की दोपहरें अक्सर उदास होती हैं, पर पंचवटी में कोई उदासी नहीं थी। वहाँ राम, लक्ष्मण और सीता का स्नेह और समर्पण, उस तपस्वी वन को भी मंदिर सा पवित्र बनाता था। सीता कुटिया के बाहर तुलसी को जल देतीं, पास में मोर नाचते, और राम दूर से यह दृश्य देखकर मुस्कराते।



“देखो भैया,” लक्ष्मण ने कहा, “कुटिया नहीं, स्वर्ग जान पड़ती है।”



राम मंद मुस्कान के साथ बोले,



“जहाँ स्नेह हो, वहाँ स्वर्ग अपने आप बसता है।”



पर नियति को यही सुख नहीं सुहाता।



एक स्वर्ण-मृग आया — मारीच का मायावी रूप। उसकी चमकती त्वचा, वन में बिजली की तरह दौड़ती… सीता की आँखें चकित थीं।



“राम, क्या आप इस मृग को पकड़ सकते हैं? मैं चाहती हूँ इसे देखभाल कर पालूं… बहुत सुंदर है…”



राम सहमत हुए।



“मैं इसे पकड़ लाता हूँ। लक्ष्मण, सीता का ध्यान रखना।”



और फिर… जैसे किसी रचना का एक पात्र कागज़ से मिट गया हो — राम वन में खो गए।



कुछ ही समय बाद राम की आवाज़ जंगल में गूंजी —



“लक्ष्मण! लक्ष्मण!!”



सीता घबरा गईं।



“जाओ लक्ष्मण! प्रभु संकट में हैं!”



लक्ष्मण ने हाथ जोड़े,



“भाभी, यह किसी मायावी की चाल है। राम के रहते किसी संकट की कल्पना भी नहीं की जा सकती।”



“तो क्या तुम अपने भाई की पुकार को अनसुना करोगे? क्या एक पत्नी की करुणा से ऊपर तुम्हारा तर्क है?”



लक्ष्मण टूट गए। उन्होंने भूमि पर एक रेखा खींची —



“इस रेखा को पार मत करना भाभी। यह आपकी रक्षा की अंतिम सीमा है।”



सीता मौन रहीं। और फिर…



एक भिक्षुक आया।



कमज़ोर, झुका हुआ, कांपता स्वर —



“देवी… कुछ दान दीजिए…”



सीता ने रेखा को देखा… और फिर सहानुभूति के स्वर में एक निर्णय लिया।



सीमा पार हो गई।



अगले ही क्षण — रावण का असली रूप सामने था।



दस सिर, गर्जता हुआ रथ, और एक भयावह हँसी।



सीता चिल्लाईं —



“राम!!”



लेकिन राम बहुत दूर थे… और रावण, बहुत पास।


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कलियुग



सिया, एक तेजस्वी और निर्भीक सामाजिक कार्यकर्ता, दिल्ली की उन गलियों में काम करती थी जहाँ न्याय अक्सर एक सपना होता है। उसने दर्जनों अनाथ बच्चों को बचाया था — पर अब, वो एक बड़े राक्षस की काली साजिश के सामने खड़ी थी — रणवीर मलिक, एक धनकुबेर, समाजसेवी का मुखौटा लगाए, भ्रष्टाचार का असली रावण।



एक पॉडकास्ट के माध्यम से जब सिया ने रणवीर मलिक का इंटरव्यू लिया तब उसने पूछा..



“आपका ट्रस्ट हर साल करोड़ों रुपये खाता है, और अनाथ बच्चों का कोई रिकॉर्ड नहीं — यह क्या है?” सिया ने सीधा सवाल किया।



रणवीर ने कुर्सी से पीछे झुकते हुए मुस्कराहट फेंकी,



“आप सवाल बहुत अच्छा करती हैं, मिसेज आरव सिंह। लेकिन आप भूल गईं — यह दिल्ली है। यहाँ जवाब नहीं, चुप्पी बिकती है।”



सिया ने उसकी आँखों में देखा — वहाँ पिघलन नहीं थी, केवल पत्थर की सत्ता थी।



वो मुड़ी, बाहर निकली। पर रणवीर ने अपने आदमी को इशारा कर दिया।



अगले दिन…आरव को फोन आया।



“सिया मिसिंग है। आखिरी बार वो रणवीर मलिक के एन.जी.ओ. दफ्तर में देखी गई थीं। उसके बाद सीसीटीवी में बस एक काली गाड़ी दिखी… नंबर प्लेट झूठी थी।"



आरव की साँसें रुक गईं। आवाज़ भीतर ही रह गई।



उसी शाम, उसने सिया की एक पुरानी वॉइस नोट को दोबारा सुना —



“अगर कुछ हो जाए, तो जान लेना… मैं डरती नहीं। लेकिन अगर मैं हार गई… तो मेरी आवाज़ बन जाना और मेरे काम को अंजाम देना।”



पंचवटी की सीता वन में थी, अकेली, भयभीत…

दिल्ली की सिया भी अंधेरे में खो गई थी — पर डर कर नहीं, सवाल पूछ कर।



त्रेता में रावण सीता को अपने रथ पर ले गया,

कलियुग में रणवीर ने एक काली गाड़ी को ही अपनी लंका बना लिया।



एक को मृग ने बहकाया, दूसरी को ‘पब्लिक इमेज’ ने। पर दोनों के पास एक ही शस्त्र था — 'करुणा' — जिसे राक्षस ने कमज़ोरी समझ लिया।



आरव अब दिल्ली की ओर रवाना हो चुका था। आँखों में नींद नहीं, दिल में आग। उसने सिया की तस्वीर देखकर कहा —



“सिया, तुमने कहा था कि मैं तुम्हारी आवाज़ बनूं… नहीं… अब मैं तुम्हारा प्रतिशोध बनूंगा।”



"एक रावण ने सीता को अपहृत किया था… पर इस बार सीता का अपहरण नहीं हुआ — उसका अपराध है कि उसने सवाल पूछे। और यही इस युग की सबसे बड़ी क्रांति बनने जा रही है…"




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त्रेता युग – किष्किंधा का वन


वन सूख रहा था। राम की आँखों में सिया के बिना नींद नहीं थी, और लक्ष्मण की तलवार बेचैन थी। सीता की खोज अब केवल एक दांपत्य की पुकार नहीं थी — यह धर्म की अग्नि परीक्षा बन चुकी थी।



उसी समय उन्हें मिले.. हनुमान..!!!



एक वानर, लेकिन वाणी में वेदों का बल, हृदय में सेवा की अग्नि-ज्वाला।



“प्रभु, मैं वचन देता हूँ — जहाँ तक सूरज की किरण जाती है, वहाँ तक जाकर मैं जानकी माता को खोज लाऊँगा।”



हनुमान ने राम की मुद्रिका ली और कूद पड़े — समुद्र लांघने, लंका जाने, और सीता को विश्वास दिलाने कि



"राम आएंगे… और यह रावणराज खत्म होगा।"




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कलियुग



मारुत मेहता — एक आईटी एक्सपर्ट, साइबर जासूस, और आरव सिंह का सबसे करीबी दोस्त।



छोटा कद, लहराते बाल, और आँखों में शरारत — लेकिन जब किसी मिशन पर होता, तो उसकी उँगलियों की स्पीड किसी धनुष की प्रत्यंचा जैसी होती।



जब आरव ने सिया के लापता होने की बात कही, तो मारुत का चेहरा गंभीर हो गया।



“मुझे दो दिन दो, आरव। मैं सिया को नहीं, उसकी परछाईं तक को खोज लाऊँगा।”



मारुत ने अपना लैपटॉप खोला। उसने दिल्ली के हर सीसीटीवी, हर कॉल रिकॉर्ड, हर एन.जी.ओ. नेटवर्क के डेटा को खंगालना शुरू किया।



रातें गुजरती रहीं, आँखें सूज गईं, पर हार नहीं मानी।



वो रणवीर मलिक की वेबसाइट के बैकएंड में घुसा। एन.जी.ओ. के नाम पर जो ट्रैकिंग ऐप बनाए गए थे, उनमें लोकेशन स्पूफिंग का कोड मिला।



“यह देखो आरव — रणवीर की टीम बच्चियों को जीपीएस टैग देती है, और फिर उन्हें ब्लाइंड एरिया में ट्रांसफर करती है जहाँ कोई ट्रेस न कर सके…”



आरव सिहर गया।



“सिया उन्हीं के खिलाफ तो जा रही थी…”



फिर एक फोल्डर मिला — “S-1” उसमें सीसीटीवी फुटेज थे… सिया के कदमों की आखिरी निशानियाँ।



मारुत ने एक पुराना ट्रैप फोन ट्रैक किया, जो सिया के एन.जी.ओ. द्वारा प्रयोग में लाया गया था। वो लोकेशन पकड़ चुका था — गुड़गांव के बाहर, एक फार्महाउस जैसा स्थान।



अब जरूरत थी राम की मुद्रिका की।



“आरव, यह लो… एक वॉइस मैसेज रिकॉर्ड करो — जो मैं सिया को भेज सकूं।”



आरव ने कांपती आवाज़ में कहा —



“सिया, मैं आ रहा हूँ। चाहे रावण कितना भी ताकतवर हो, पर राम अभी ज़िंदा है…”



मारुत ने मैसेज उस फार्महाउस के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से जोड़ दिया। अब जब भी कोई वहां वाई-फ़ाई कनेक्ट करता, वह संदेश सुनाई देता।



त्रेता में हनुमान समुद्र लांघकर लंका पहुँचे,

कलियुग में मारुत ने डेटा के समुद्र को पार किया — बगैर तलवार, केवल सत्य की ताकत से।



वहाँ राम की अंगूठी सीता तक गई थी,

यहाँ एक आवाज़ — जो हर सिस्टम को चीरती हुई, सिया के दिल तक पहुँची।



मारुत ने कहा —



“अब अगला कदम युद्ध है, आरव। हम जानते हैं कि वो कहाँ है, अब उसे बचाना नहीं… आज़ाद करना है।”



आरव की आँखों में पहली बार जलते आँसू थे —



“मारुत… तुम मेरे लिए सिर्फ दोस्त नहीं हो, तुम मेरी हनुमान गाथा हो।”



"जब युग बदलता है, तो भगवान भी अपना रूप बदलते हैं…



अब हनुमान वानर नहीं, हैकर होता है —



पर उसका धर्म वही रहता है — सीता को संदेश देना, और रावण के दरबार में जला देना हर झूठ की लंका




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त्रेता युग



रात का अंधकार लंका पर था। स्वर्ण-महल चमकते थे, पर उसमें एक कैदी थी — सीता। अशोक वाटिका में बैठी, आँसू नहीं बहा रही थीं, बल्कि राम की स्मृति से स्वयं को मजबूत कर रही थीं।



तभी वायुपुत्र हनुमान वहाँ पहुँचे। राम की मुद्रिका उनके हाथ में थी।



“माता, मैं राम का दूत हूँ। प्रभु ने कहा है — धैर्य रखिए, युद्ध आरंभ हो चुका है।”



सीता की आँखों में पहली बार एक नमी चमकी — आँसू नहीं, आशा।



हनुमान ने लंका की गलियों में भ्रमण किया। वहाँ का हर द्वार सोने से जड़ा था, पर भीतर की आत्मा — झूठ, पाप और दंभ से सड़ी हुई थी।



और फिर… हनुमान ने लंका को जला दिया।



न केवल भवन — हर वह भ्रम जो रावण ने अपने देवत्व का फैलाया था।


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कलियुग



मारुत और आरव अब तैयार थे। उनके पास था:



सिया का लोकेशन ट्रेस



रणवीर मलिक की संस्था की डिजिटल फाइलें



एन.जी.ओ. घोटाले के सबूत



बाल संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन की क्लिप्स



और सबसे जरूरी — जनता की नींद तोड़ने का हौसला



“अब युद्ध आरंभ होगा” आरव ने कहा।



मारुत ने पहले एक अनाम ट्वीट डाला:



“क्या आपको पता है, आपके शहर में एक देवदूतों का रावण बसता है? क्या अनाथ बच्चों की सुरक्षा राम भरोसे छोड़ दी गई है?”



उसके बाद...



एक के बाद एक दस्तावेज़, सीसीटीवी फुटेज, एन.जी.ओ. के अंदर की रिकॉर्डिंग, बच्चियों के नाम — सब वायरल होने लगे।



#RavankapardaFaash हैशटेग ट्रेंड करने लगा।

#WhereIsSia का आंदोलन शुरू हुआ।



रणवीर मलिक की लंका में खलबली मच गई थी



एक कमरे में रणवीर अपने मैनेजरों पर चिल्ला रहा था।



“शट डाउन दैट पेज! ब्लॉक दैट चैनल! यह लोग जानते नहीं है मुझे..!”



पर इस बार इंटरनेट के हनुमान ने उसकी ‘सोशल इमेज’ को घास समझकर जलाया था।



ई.डी., सीबीआई, और चाइल्ड वेलफेर कमिटी — सभी जगह फाइलें भेज दी गईं।



“यह सब एक ट्रैप था… मेरे खिलाफ?” रणवीर चिल्लाया।



उसके सबसे भरोसेमंद व्यक्ति ने कहा —



“नहीं सर… पर शायद सच आपके खिलाफ था।”



गुड़गांव के बाहर स्थित फार्महाउस में पुलिस रेड हुई। आमने सामने जबरदस्त फायरिंग हुई..!! क्रॉसफायर में रणवीर के अधिकतर साथी मारे गए और पुलिस को अंत में एक लाश भी मिली.. जिसका हुलिया बिल्कुल रणवीर मलिक से मेल खाता था..



सिया को एक कमरे में बेहोश पाया गया, पर जीवित। उसके शरीर पर ज़ख्म नहीं, पर आत्मा पर खरोंचें थीं।



जब आरव ने सिया का हाथ थामा, उसने आँखें खोलीं और मुस्कराई।



“तुम… आ ही गए…”



आरव ने उसका माथा चूमा।



“अब कोई तुम्हें छू भी नहीं सकता सिया…”



त्रेता में लंका सोने की थी, पर पाप की चमक से चिपकी हुई।

कलियुग की लंका चमकते सी.एस.आर. रिपोर्ट्स और अवॉर्ड्स की दीवारों से बनी थी — अंदर केवल अंधकार था।



वहाँ हनुमान ने आग से जलाया,

यहाँ मारुत ने डेटा से हर झूठ को राख किया।



रणवीर अब मर चुका था। लोगों ने उसके ट्रस्ट के बाहर पोस्टर फाड़ दिए। हर जगह सिया के संघर्ष की कहानी छाई थी।



मारुत ने चुपचाप अपने लैपटॉप को बंद किया।



“लंका जल चुकी है। अब राम और सीता को अपना भविष्य फिर से बनाना है…”



"रावण हर युग में जन्म लेता है — कभी सत्ता में, कभी सेवा में।

लेकिन जब राम और हनुमान एक साथ होते हैं —

तो हर लंका की एक ही किस्मत होती है: भस्म।"




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त्रेता युग – राम और सीता का पुनर्मिलन



लंका जल चुकी थी। युद्ध समाप्त हो चुका था। रावण मारा गया।



राम-सीता का मिलन हुआ.. वनवास पूर्ण होते ही अयोध्या वापिस लौटे



सीता — थकी, शांत, लेकिन आत्मविश्वास से भरी — एक अग्नि से तपकर लौटी थी। राम के सामने आकर झुकीं नहीं — खड़ी रहीं, आँखों में न कोई गिला, न कोई आस।



राम बोले —



“सीते, तुम्हें पाने के लिए मुझे न जाने क्या क्या करना पड़ा.. पर अब मैं तुम्हें पुनः प्राप्त कर अति प्रसन्न हूँ।”



सीता ने ठहरकर देखा,



“प्रभु, आपने मेरे सम्मान की रक्षा की, पर मेरा विश्वास कहाँ था उस क्षण… जब आपने मुझे अग्नि परीक्षा देनी चाही?”



राम मौन हो गए।



और फिर… सीता स्वयं अग्नि में प्रविष्ट हुईं — और अग्नि से अक्षत निकलीं।



पर उनके और राम के बीच जो कुछ टूटा था — वह अनकहा रह गया।


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कलियुग



सिया अस्पताल के उस सफ़ेद बिस्तर पर लेटी थी… बदन पर खरोंच नहीं के बराबर थी, पर आत्मा मानो किसी ने खरोंच-खरोंच कर नोच ली हो। आँखें खुली थीं, लेकिन उनमें गहराई थी — एक ऐसी गहराई जो पूछती नहीं, बस थक कर देखती है।



आरव पास बैठा था, उसके हाथों को अपने हाथों में लिए हुए। उसके चेहरे पर ग्लानि थी… पर उससे ज़्यादा एक असहज बेचैनी — जैसे किसी अनकही आशंका ने उसे भीतर से जकड़ रखा हो।



"सिया..." उसकी आवाज़ में कंपकंपी थी,

"तुमने जो सहा, मैं समझ सकता हूँ। मुझे बस ये डर सता रहा है कि उस राक्षस ने... बेहोशी में… तुम्हारे साथ... पता नहीं क्या क्या कर दिया होगा…!!”



यह सुनकर सिया की साँस थम सी गई। उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। जिस आदमी की बाँहों में उसने अपने सपनों को सुरक्षित महसूस किया था, वही आज उसकी 'पवित्रता' के प्रमाण पर खड़ा था।



कुछ पल की चुप्पी…



फिर उसके होंठों पर एक मुस्कान आई — ऐसी मुस्कान जो कड़वाहट से नहीं, बल्कि घुटी हुई चीखों से जन्मी थी।



“तुम आए, यही बहुत है, आरव।”



वह धीरे से बोली, “पर क्या तुम जानते हो कि मेरी लड़ाई सिर्फ रणवीर से नहीं थी? मेरी असली लड़ाई उस सोच से थी — जो एक औरत की आत्मरक्षा को भी उसकी लज्जा से जोड़ देती है।”



आरव की आंखें झुक गईं। उसके होंठ हिले, पर आवाज़ नहीं निकली।



सिया ने उसकी हथेली पर अपनी उंगलियाँ फेरते हुए कहा —

“मैं एक बार फिर से उठी हूँ, पर इस बार ज़मीन से नहीं, खुद की नज़रों से। और यह बहुत कठिन था, आरव… बहुत। पर तुम जानते हो क्या ज़्यादा कठिन था?”



उसने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा,

“तुम्हारा ये कहना — ‘डॉक्टर से एक बार जाँच करवा लेते हैं…’ तुम मेरा हाल समझ नहीं पाए, बस मेरा शरीर देखना चाहते हो…?”



आरव चौंका। “नहीं सिया, तुम गलत समझ रही हो…”

उसने हड़बड़ाते हुए कहा, “मुझे बस तसल्ली चाहिए थी कि कहीं… कुछ अनहोनी न हुई हो। डॉक्टर बस… एहतियात के लिए…”



सिया का चेहरा शांत था, पर आंखें बोल रही थीं —



“एहतियात तुम्हारे लिए है, मेरी नहीं। तुम्हें मेरी मानसिक हालत पर नहीं, मेरे शरीर पर संदेह है। और यही कलियुग है, आरव..!!”



आराव ने सिया का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा "तुम मुझे गलत समझ रही हो सिया.. ठीक है.. कोई बात नहीं.. तुम जांच न करवाना चाहो तो.. चलो फिर घर चलते है"



उसने धीरे से अपना हाथ खींच लिया।



“घर?” उसने दोहराया।



“कौन सा घर? वो जिसमें औरत का देह उसकी आत्मा से ज्यादा महत्व रखता है? जहाँ उसका संघर्ष, उसकी बहादुरी — सब एक जाँच रिपोर्ट में बदलकर रह जाते हैं?”



वो उठी। कमज़ोर शरीर, लेकिन आँखों में तूफ़ान।



“मैं तुम्हारे साथ रहूँगी, लेकिन तुम्हारे ‘नाम’ के साथ नहीं। मैं अब 'सिया आरव सिंह' नहीं — सिर्फ 'सिया' हूँ। मैं तुम्हारे साथ तो रहूँगी, पर अपनी शर्तों पर। इस बार मैं सिया बनकर लौटूंगी नहीं, बल्कि वो स्त्री बनकर जिऊँगी जो अग्नि से निकल कर लौ बन चुकी है।”



कमरे में गहरी ख़ामोशी थी।



आरव ने कुछ कहना चाहा, लेकिन उसके शब्द अब भी हकलाहट में उलझे हुए थे।



दोनों एक ही कमरे में थे — लेकिन उनके बीच एक पारदर्शी दीवार खड़ी हो चुकी थी।



एक ऐसी दीवार जो न प्यार गिरा सकता है, न पश्चाताप — सिर्फ समझ और समानता ही उसे मिटा सकते हैं।




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कुछ महीने बाद…



सिया ने अपनी किताब लॉन्च की:



📘 "लंका के बाद"

✍ लेखिका: सिया आरव नहीं — सिर्फ सिया..!!



पुस्तक विमोचन के बाद एक पत्रकार ने पूछा:



“आपका अगला कदम क्या होगा?”



सिया मुस्कराई —



“मैं राजनीति में प्रवेश करने जा रही हूँ।” भीड़ तालियों से गूंज उठी।



लेकिन जब वो मंच से उतरी, एक अनजान युवती ने आकर उसे एक लिफाफा थमाया।



सिया ने लिफाफा खोला — अंदर एक पेपर-क्लिप थी, उस रात की तस्वीरों की कॉपी… उन तस्वीरों ने सिया को झकझोर कर रख दिया..!!!



उसके चेहरे का रंग उड़ गया।



शायद रावण हारा… पर क्या उसकी परछाई अब भी पीछा कर रही है???



।। समाप्त ।।


Sorry to say

Par kya yaha dharmik granthon arthat ramayan aur mahabharat pr likh skte hai?
Adirshi
Kyoki isse kai vivad utpann ho sakte hai
Meri baat ko samjhne kj Koshih kijiyega[/spoiler]
 
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Shetan

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Pooja path karo man, itna dukh hai to koi kaaran bhi avasya hoga, usko door karo, fir sab theek hoga :approve: Baaki apne aap ko kabhi akela mat samajhna, hum sab idhar ju ke dost hi hain:declare:
एक उम्र कुछ ऐसा लगता है की यह ना मिला तो मै जी नहीं पाऊँगी या पाउँगा.

जब वो नहीं मिलता. ऊपर वाले से मिन्नतें होती है. फिर भी ना मिले तो ऊपर वाला बुरा लगने लगता है.

आगे चलकर ऐसा लगता है. उसके बिना दुनिया ख़तम.

थोड़े वक्त के बाद एहसास होता है. बस जिन्दा हूँ.

थोड़े वक्त बाद सब नार्मल होते. कश वो मिल जाती या मिल जाता. ऐसा एहसास होता है.

और वक्त बाद एहसास होता है कोई बात नहीं. पर वो होने से जिंदगी कुछ और होती.

और वक्त बाद एहसास होता है. यार इतना भी कोई फर्क नहीं पड़ा.

और आगे चलते एहसास होता है. यार अच्छा ही हुआ वो नहीं मिली या मिला.
 
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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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एक उम्र कुछ ऐसा लगता है की यह ना मिला तो मै जी नहीं पाऊँगी या पाउँगा.

जब वो नहीं मिलता. ऊपर वाले से मिन्नतें होती है. फिर भी ना मिले तो ऊपर वाला बुरा लगने लगता है.

आगे चलकर ऐसा लगता है. उसके बिना दुनिया ख़तम.

थोड़े वक्त के बाद एहसास होता है. बस जिन्दा हूँ.

थोड़े वक्त बाद सब नार्मल होते. कश वो मिल जाती या मिल जाता. ऐसा एहसास होता है.

और वक्त बाद एहसास होता है कोई बात नहीं. पर वो होने से जिंदगी कुछ और होती.

और वक्त बाद एहसास होता है. यार इतना भी कोई फर्क नहीं पड़ा.

और आगे चलते एहसास होता है. यार अच्छा ही हुआ वो नहीं मिली या मिला.
Wah setu ji, isi liye to ju khaas dost ho meri:dost:
 

BLACK

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Main ek kadam aage badhata, wo do kadam peeche :verysad:
My pm chief
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