Ajju Landwalia
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#140.
अनोखा जीव: (15 जनवरी 2002, मंगलवार, 09:30, नक्षत्रलोक, कैस्पर क्लाउड)
कैस्पर, विक्रम ओर वारुणि के साथ नक्षत्रलोक आ गया था। नक्षत्रलोक में रहते हुए आज उसे 10 दिन बीत गये थे।
वह रोज सुबह उठता और फिर फ्रेश होकर बच्चों के स्कूल पहुंच जाता।
बच्चों को नयी चीजें सिखाना और उनके साथ समय व्यतीत करना, पूरा दिन कैसे बीत जाता थी, कैस्पर को पता ही नहीं चलता था।
लेकिन जो भी हो, कैस्पर को अपनी यह नयी जिंदगी बहुत अच्छी लग रही थी।
पिछले हजारों वर्षों से उसकी जिंदगी सिर्फ कंम्प्यूटर पर बैठकर नये निर्माण करने में ही गयी थी। कभी-कभी तो ऐसा हो जाता था, कि सैकड़ों वर्षों तक उसकी किसी से बात ही नहीं हो पाती थी।
नक्षत्रलोक पर बिताये गये पल मैग्ना के जाने के बाद उसकी जिंदगी के सबसे अच्छे पल थे।
आज भी कैस्पर नहा-धोकर स्कूल जाने के लिये तैयार हो रहा था।
आज उसे बच्चों को आकाशगंगा में मौजूद नेबुला के बारे में बताना था।
तभी उसके कमरे के दरवाजे पर वारुणि ने दस्तक दी। कैस्पर ने सिर उठाकर देखा, तब तक वारुणि कमरे के अंदर आ गयी। वारुणि को देख कैस्पर काफी खुश हो गया।
“क्या बात है! आज सुबह-सुबह तुमने दर्शन दे दिये।” कैस्पर ने वारुणि को देख मुस्कुराते हुए कहा- “वैसे आज तुम 2 दिन बाद मुझसे मिलने आयी हो। लगता है तुम ये भूल गई कि तुम्हारे घर एक मेहमान भी आया है।"
वारुणि ने अपने चेहरे पर फीकी मुस्कान बिखेरते हुए कहा- “नहीं भूली नहीं...पर हां, पिछले 2 दिनों से कुछ ज्यादा ही व्यस्त थी।..आज तुमसे कुछ जरुरी काम है, इसलिये मैं सुबह-सुबह ही यहां आ गई।”
कैस्पर, वारुणि के चेहरे को देख समझ गया कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है।
“ये हमेशा खिली रहने वाली पंखुड़ी आज उदास क्यों है? कुछ परेशानी है क्या दोस्त?” कैस्पर ने वारुणि की आँखों में झांकते हुए कहा।
“पिछले 2 दिन से हम एक परेशानी को समझने की कोशिश कर रहे हैं, पर वो समझ ही नहीं आ रही।” वारुणि ने कहा- “मुझे लगता है पृथ्वी पर कोई भयानक खतरा मंडरा रहा है?”
“क्या मैं जान सकता हूं कि वह खतरा किस प्रकार का है?” कैस्पर ने वारुणि का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा- “हो सकता है कि मैं उसे समझ जाऊं। क्यों कि मुझे मेरा दोस्त उदास बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा?”
“कैस्पर, मुझे लगता है कि तुम हमारी मदद कर सकते हो, पर मैं तुम्हें इतना खुश देखकर कुछ बताना नहीं चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि तुम बच्चों को छोड़कर हमारी परेशानियों में उलझ जाओ।” वारुणि ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा।
“अरे कोई बात नहीं...बच्चों को एक नये विषय के बारे में बताना था, पर मैं यह उन्हें कल बता दूंगा। अब आज का दिन मैं अपने दोस्त के साथ बिताना चाहता हूं।” कैस्पर ने वारुणि को हंसाने की कोशिश करते
हुए कहा- “तो चलो मोटू, मुझे कहां ले चलना चाहती हो?”
“मोटू...मैं तुम्हें मोटू दिखाई देती हूं क्या? पूरे दिन में 6 घंटे एक्सरसाइज करती हूं, तब जाकर इतनी खूबसूरत फिगर पायी है।” वारुणि ने नाक सिकोड़ते हुए कहा।
“6 घंटेऽऽऽऽ!” कैस्पर ने आश्चर्य से कहा- “तभी मैं कहूं कि तुम मुझे समय क्यों नहीं दे पा रही?.....चलों अब जरा तुम्हारी परेशानियों से भी मुलाकात कर लें। हमारी शिकायतों का दौर तो चलता ही रहेगा।”
कैस्पर ने चाहे कुछ देर के लिये ही सही पर, वारुणि का मूड सही तो कर ही दिया।
वारुणि कैस्पर को लेकर नक्षत्रलोक की वेधशाला की ओर चल दी, जिसे नक्षत्रशाला कहा जाता था।
कुछ देर के बाद वारुणि और कैस्पर दोनों नक्षत्रशाला में खड़े थे।
नक्षत्रशाला एक विशाल ‘इनडोर स्टेडियम’ की भांति थी, जहां पर सैकड़ों लोग काम करते दिखाई दे रहे थे।
हर ओर बड़ी-बड़ी स्क्रीन और आधुनिक कंम्प्यूटर का जाल बिछा हुआ था। कुछ स्क्रीन पर पृथ्वी के अलग-अलग हिस्से दिख रहे थे, तो किसी पर ब्रह्मांड के अनोखे ग्रह और जीव।
कुछ जगहों पर हवा में ‘होलोग्राम इफेक्ट’ के द्वारा कुछ जीवों और निहारिकाओं पर शोध चल रहा था।
कैस्पर यह सब देखकर खुश हो गया।
“अरे वाह! अच्छा सेटअप बनाया है तुम लोगों ने...और काफी सारे लोग काम कर रहे हैं।” कैस्पर ने कहा।
वारुणि कैस्पर को लेकर एक बड़ी सी स्क्रीन के पास पहुंच गई, जिस पर पृथ्वी की ‘आउटर कोर’ दिख रही थी।
वारुणि को आते देख वहां का आपरेटर खड़ा होने लगा, पर वारुणि ने उसे इशारे से बैठने को कहा। वारुणि का इशारा पाकर वह आपरेटर बैठ गया।
“हमारी सबसे बड़ी समस्या ये है।” वारुणि ने कैस्पर को स्क्रीन की ओर दिखाते हुए कहा- “ये पृथ्वी की आउटर कोर है, जहां पर ओजोन लेयर पायी जाती है। ओजोन लेयर हमारी पृथ्वी की सूर्य की हानिकारक
विकिरणों और कॉस्मिक किरणों से रक्षा करती है। पर पिछले 2 दिन से इस स्थान की ओजोन लेयर में लगभग 1 लाख स्क्वायर किलोमीटर के क्षेत्रफल का एक छेद हो गया है, जिसकी वजह से सूर्य की हानिकारक किरणें अंटार्कटिका की बर्फ को तेजी से पिघला रही है।
"अगर अंटार्कटिका की पूरी बर्फ पिघल गयी, तो पृथ्वी का जलस्तर कम से कम 1500 मीटर तक ऊपर आ जायेगा और ऐसी स्थिति में पृथ्वी कुछ बड़े भूभाग को छोड़कर पूरी पृथ्वी जलमग्न हो जायेगी। यह स्थिति अटलांटिस पर हुए विनाश से भी ज्यादा भयानक होगी। मनुष्य पृथ्वी के उस बचे भूभाग के लिये आपस में युद्ध छेड़ देंगे, जिससे पूरी मानव जाति के खत्म हो जाने के आसार भी बन सकतें हैं।.....जब हमने कल से इस ओजोन लेयर के टूटने के कारण पर रिसर्च करना शुरु किया, तो हमें ये पता चला कि ये ओजोन लेयर स्वयं नहीं टूटी है, बल्कि अंतरिक्ष से आये एक उल्का पिंड की हानिकारक विकिरणों की वजह से टूटी है, तो हम और घबरा गये।
"हमने अब उस उल्का पिंड की जानकारी इकठ्ठी करनी शुरु कर दी, तो हमें एक और खतरनाक जानकारी मिली कि वह उल्कापिंड अटलांटिक महासागर में वाशिंगटन शहर से कुछ दूरी पर समुद्र में गिरा है और उस उल्का पिंड से कुछ तेज ऊर्जा निकल रही है। यह एक अलग तरह की ऊर्जा है, जिसके बारे में हमें कुछ नहीं पता। यह ऊर्जा समुद्र के आसपास के क्षेत्रों को विषैला बना रही है।....अब आते हैं अगली मुसीबत पर। और वह मुसीबत ये है....।”
इतना कहकर वारुणि ने सामने की स्क्रीन का दृश्य बदल दिया।
अब स्क्रीन पर एक विचित्र सा जीव दिखाई देने लगा, जो कि एक मशीन पर बेहोश पड़ था।
वह विचित्र जीव लगभग 8 फुट लंबा था, उसकी 3 आँखें थीं और 4 हाथ थे। उसकी पीठ पर कछुए के समान एक कवच लगा हुआ था। उसके पैर और हाथ के पंजे किसी स्पाइना सोरस की तरह बड़े थे।
उसकी बलिष्ठ भुजाओ को देखकर साफ पता चल रहा था, कि उसमें असीम ताकत होगी।
“यह क्या है?” कैस्पर ने ध्यान से उस जीव को देखते हुए पूछा।
“हमें भी नहीं पता। कल जब हम ओजोन लेयर को चेक करने के लिये पृथ्वी की आउटर कोर में गये, तो यह विचित्र जीव हमें वहां दिखाई दिया। यह विचित्र जीव बिना पंख और मास्क के वहां उड़ रहा था, इसके हाथ में एक शक्तिशाली ‘सिग्नल माडुलेटर’ मशीन थी। (सिग्नल माडुलेटर मशीन एक ऐसी मशीन होती है, जिसके द्वारा हम अंतरिक्ष में दूसरी आकाशगंगाओं में सिग्नल भेजते हैं।)
"हम इस जीव को पकड़कर अपनी लैब में ले आये, पर इससे हमें यह नहीं पता चल पाया कि यह कौन है?
किस ग्रह का है? और यह अंतरिक्ष में किसे सिग्नल भेज रहा था? हमने इसकी जैविक संरचना का अध्ययन किया तो पता चला कि यह कई जीवों से मिलाकर बनाया गया कोई म्यूटेंट जीव है, पर इसे किसने बनाया? और क्यों बनाया? यह नहीं पता चल पाया। मैं चाहती हूं कि तुम एक बार इस जीव को देखो, हो सकता है तुम्हें इससे इसके बारे में कुछ पता चल जाये? और हमारी मदद हो जाये।”
“बाप रे! पिछले 2 दिन में तुम इतनी सारी मुसीबतें अपने सिर पर लेकर घूम रही थी, मुझे तो पता ही नहीं था।” कैस्पर ने कहा- “चलो दोस्त, अब जरा उस विचित्र जीव से भी मिल लें।”
कैस्पर के ये कहने पर वारुणि मुस्कुराई और कैस्पर को लेकर एक दिशा की ओर चल दी।
कुछ देर में वारुणि कैस्पर को लेकर एक दूसरी लैब में पहुंच गई। जहां पर कुछ नौजवान वैज्ञानिक, जीवों की संरचना पर अध्ययन कर रहे थे।
वारुणि कैस्पर को लेकर एक ऐसे केबिन में पहुंच गई, जिसका तापमान बहुत ही कम था। वहीं पर वह जीव स्टील की बेड़ियों में जकड़ा एक मशीन के सामने लेटा हुआ था।
कैस्पर थोड़ी देर तक उस जीव को देखता रहा, फिर आगे बढ़कर कैस्पर ने अपना दाहिना हाथ उस जीव के माथे पर रख दिया और अपनी आँखें बंद कर लीं।
कैस्पर के हाथ से लाल रंग की कुछ रोशनी निकलकर उस जीव के माथे में समा गई।
अब कैस्पर उस जीव के मस्तिष्क से जुड़ गया था।
कैस्पर अपने हाथों को धीरे-धीरे, उस जीव के दिमाग पर फेर रहा था। वारुणि ध्यान से कैस्पर की उस गतिविधि को देख रही थी।
अचानक कैस्पर के चेहरे के भाव तेजी से परिवर्तित होने लगे, शायद कैस्पर कुछ ऐसा देख रहा था, जो कि उसके लिये असहनीय था।
कैस्पर के चेहरे पर अब पसीनें की बूंदें नजर आने लगीं थीं।
अचानक कैस्पर ने अपनी आँखें खोलकर, अपना हाथ उस जीव के सिर से हटा लिया।
कैस्पर के चेहरे पर हवाइयां उड़ रहीं थी। ऐसा लग रहा था कि वह बहुत ही उलझन में है।
“क्या हुआ कैस्पर? तुमने क्या देखा? तुम इतना परेशान क्यों हो?” वारुणि ने एक साथ बहुत सारे सवाल कैस्पर से कर दिये।
“इस जीव की जैविक संरचना बता रही है कि यह जीव...यह जीव मेरी शक्तियों के द्वारा ही बनाया गया है।” कैस्पर के शब्द किसी बम की तरह वारुणि के कानों में फटे।
“यह तुम क्या कह रहे हो कैस्पर? अगर इस जीव को तुमने ही बनाया, तो तुम इसे देखते ही क्यों नहीं पहचान पाये? और तुमने ऐसे खतरनाक जीव की रचना क्यों की?” वारुणि के शब्दों में दुनिया भर का आश्चर्य समाया था।
“तुमने ध्यान से नहीं सुना वारुणि ....मैंने कहा कि यह जीव मेरी ही शक्तियों के द्वारा बनाया गया है, मैंने यह नहीं कहा कि इस जीव को मैंने ही बनाया है। अब मुझे यह पता करना है कि किसने बिना मेरी जानकारी के मेरी शक्तियों का प्रयोग किया है?...लेकिन एक बात को समझो वारुणि, पृथ्वी एक बहुत बड़े संकट से गुजरने वाली है। अगर हमने उस संकट से पहले उसकी तैयारी नहीं की, तो हममें से कोई नहीं बचेगा और पृथ्वी का अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा।” कैस्पर के शब्द डरावने थे।
“तुम क्या कह रहे हो कैस्पर? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा? क्या...क्या पृथ्वी पर एलियन हमला करने वाले हैं? और कौन है जो तुम्हारी बिना जानकारी के तुम्हारी ही शक्तियों का इस्तेमाल कर रहा है? मुझे कुछ तो बताओ कैस्पर?” वारुणि का दिमाग अब पूरी तरह से उलझ गया था।
“सबकुछ बताता हूं वारुणि...मेरे साथ मेरे कमरे में चलो...मैं तुम्हें सबकुछ बताता हूं...और इतना परेशान मत हो क्यों कि तुम्हें इस युद्ध में निर्णायक भूमिका निभानी है।”
यह कहकर कैस्पर वारुणि को लेकर अपने कमरे की ओर चल दिया।
पर रास्ते में भी वारुणि कैस्पर का ही चेहरा देख रही थी और सोच रही थी अपनी निर्णायक भूमिका और उस युद्ध के बारे में, जिसे महसूस कर कैस्पर जैसा महायोद्धा भी विचलित हो गया था।
जारी रहेगा_______![]()
Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,
Casper ki hi powers ka use karke kisi ne is anokhe jiv ka nirman kiya he..........
Jaisa ki ki varuni ne bataya iske hath me ek powerful signal modulator machine bhi thi........
Iska matlab yah he ki ye kisi na kisi ko to apni kaali kartuto ki jankari de raha tha...........
Ab dekhna yah he ki varuni aur casper kaise is nayi musibat se paar pate he...........
Keep rocking Bro