राज भाई, यह समुद्र मंथन वाला एपिसोड मेरे ख़्याल से अनावश्यक है/था। एक्चुअली यह #106 पूरा ही अनावश्यक लग रहा है - सच कहूँ तो।
माया सभ्यता और भारतीय सभ्यता के बीच में जो समानताएँ दिखती हैं, उनको महज़ एक संयोग ही माना जाना चाहिए। अनेकों बार ऐसा हुआ है कि इंडेपेंडेंटली दो लोगों को एक ही विचार आ जाएँ - विज्ञान में यह अनेकों बार हो चुका है। प्रकृति पूजन कोई ऐसी अनोखी परंपरा नहीं है कि केवल भारतीय परंपरा की बपौती रहे उस पर। सभी प्राचीन परम्पराएँ प्रकृति पूजन करती रही हैं और उनको देवताओं का रूप देती रही हैं। यह कि दिन/ऋतुएँ/वर्ष चक्रीय पैटर्न पर चलते हैं, कोई भी बुद्धिमान मानव देख और समझ सकता है और हमेशा से समझा भी है। हर प्राचीन सभ्यता में इस बात का उल्लेख है। हाँ - गणना की सटीकता में अंतर हो सकता है। तो उपर्युक्त संयोग प्रत्येक सभ्यता में मिलते हैं, लेकिन एक दो चिन्हों के कारण यह कह देना कि दोनों समान हैं (जैसा आपने ‘लगभग’ कर दिया है) - अतिशयोक्ति, कपोल-कल्पना, और jingoism ही है। इससे बचना चाहिए था। आवश्यकता ही नहीं थी इस बात की इस कहानी में - इतना तो तय है!
ऐसे तो कई मूर्खों के हिसाब से ऑस्ट्रेलिआ भी भगवान रा…म का अस्त्रालय है और Russia (रूस) ‘राक्षसों’ का गढ़ - ऐसी मूर्खतापूर्ण और हास्यास्पद बातों का कोई अंत ही नहीं! कल्पनाओं में रची गढ़ी दुनिया हमेशा ही सत्य नहीं होती। ऐसी बातें वैचारिक रूप से न केवल शर्मनाक हैं, बल्कि जिन सभ्यताओं पर हम अपनी सभ्यता का जबरदस्ती मुलम्मा चढ़ा देते हैं, उन सभ्यताओं के लिए भी हमारा यह अशिष्ट व्यवहार है।
अंत में : नीलाभ के उत्पत्ति की कहानी किसी भी तरह से सुनाई जा सकती थी। लेकिन अभी आपने लिख लिया है, तो उसको बदलें नहीं। और मानता हूँ कि आपको मेरी बातें बुरी लगेंगी, लेकिन मैं भी अपनी खुजली को रोक न सका। बहुत चाहा कि यह सब न लिखूँ, लेकिन नियंत्रण न कर सका। वैसे, बहुसंख्य पाठक आपकी लिखी बातों को सही भी मानेंगे। लेकिन मेरा इन बातों से कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं है।