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रात का अंधेरा सज्जनपुर को अपने आगोश में ले चुका था, और हवेली में खाने के बाद का माहौल अब एक अलग ही रंग में रंग गया था। नदी की ठंडी हवा बाहर की सादगी को छू रही थी, मगर हवेली की दीवारों के भीतर कामुकता और हवस का तूफान उमड़ रहा था।
सरोज अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रही थी। उसने अपनी साड़ी उतारी और एक ओर रख दी। उसका भरा हुआ, कामुक बदन अब सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में था, जो उसकी मोटी चूचियों और गहरी नाभि को उभार रहा था। तभी उसे अपनी कमर पर दो हाथ महसूस हुए, जो उसके पेट को मसलने लगे।“अजी, छोड़ो न, क्या कर रहे हो?” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।“अपनी पत्नी से प्यार, और क्या?” नीलेश ने हँसते हुए जवाब दिया, उसकी आँखों में चमक थी।
“अच्छा, बड़ा प्यार आ रहा है? क्यों, अपने नए खिलौने से मन भर गया क्या? सुबह तक आवाज़ें आ रही थीं, बिमला ने भी देखा था,” सरोज ने तंज कसते हुए कहा।
नीलेश ने सरोज के ब्लाउज़ की डोरी खोलते हुए कहा, “वो खिलौना है, और तुम हमारी रानी हो। वैसे, बड़ा स्वाद है उसमें। अपनी सेवा का अवसर दो उसे और कुछ कामुकता के पाठ पढ़ाओ।”“अच्छा, फिर तुम्हें मेरी जगह वो पसंद आ गई तो?” सरोज ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए पूछा।
“ऐसा कभी हो सकता है?” नीलेश ने सरोज की मोटी, नंगी चूचियों को मसलते हुए कहा।“आह, आराम से जी,” सरोज की साँसें गर्म हो गईं।“अब आराम का नहीं, काम का समय है,” नीलेश ने हँसते हुए सरोज के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।
कुछ देर बाद सरोज नीलेश के मोटे लंड पर कूद रही थी। उसकी चूचियाँ हवा में झूल रही थीं, और उसकी आहें कमरे में गूँज रही थीं।
नीलेश: आह मेरी रानी तेरी चूत जैसी गर्मी किसी औरत में नहीं, आह ऐसे ही।
सरोज: तुम्हारा लंड भी तो ऐसा है कि जिसे पाकर ही मेरी चूत की प्यास बुझती है, आह चोदो अपनी रानी की प्यासी चूत को,
नीलेश: आह साली तुझ जैसी गरम औरत को पत्नी बना कर तो मेरे भाग ही खुल गए,
सरोज: ओह जी तुम्हारे मोटे लंड वाले पति को पाकर तो मेरी चूत की भी किस्मत जाग गई है, आह चोदो इसे ऐसे ही।
पूरा कमरा दोनों की थापो की आवाज से गूंज रहा था और दोनों ही जल्दी इसी तरह एक दूसरे को उकसाते हुए चुदाई कर रहे थे,
हवेली के पिछले कमरे में भी कुछ ऐसा ही माहौल था। नीलेश और सरोज के दोनों बेटे, कर्मा और अनुज, बिमला के भरे बदन को भोग रहे थे। बिमला बिस्तर पर पीठ के बल पूरी नंगी लेटी थी। उसकी टाँगों के बीच कर्मा था, जिसका लंड उसकी अनुभवी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। बिस्तर के नीचे अनुज खड़ा था, और उसका लंड बिमला के मुँह में था, जिसे वो चूस रही थी।
कर्मा: आह चाची क्या गरम चूत है तुम्हारी ओह मेरी रांड चाची।
कर्मा ने बिमला की चूत में धक्के लगाते हुए कहा,
अनुज: चूसती भी उतना ही बढ़िया है चाची, भैया।
अनुज उसके मुंह में लंड को और घुसाते हुए बोला।
दोनों बिमला के कामुक बदन को एक साथ भोग रहे थे, बिमला भी दो जवान लड़कों का साथ पाकर आनंद से उनके बीच लेट कर अपना बदन मसलवा रही थी। उसके मुंह से घुटी हुई आहें निकल रहीं थीं।
हवेली की रात ऐसे ही कामुक थापों और आहों के बीच बीत गई।अगली सुबह रजनी और सोनू फिर से हवेली की ओर निकले। दोनों के मन में एक तूफान था, मगर मुँह पर ताला। सोनू बार-बार अपनी माँ को देख रहा था। कल सुबह का दृश्य—रजनी का नंगा बदन नीलेश के नंगे बदन से चिपका हुआ—उसकी आँखों के सामने बार-बार कौंध रहा था। हवेली पहुँचते ही सोनू को हमेशा की तरह बगीचे में माली के साथ काम में लगना पड़ा, मगर उसका मन अपनी माँ के साथ अंदर जाने का था। उसके मन में सवालों का भँवर चल रहा था—आज न जाने माँ के साथ क्या होगा?
रजनी सीधे रसोई में काम में जुट गई। जल्दी ही उसका बदन पसीने से भीगकर चमकने लगा, जिससे वह और कामुक लगने लगी।
तभी कर्मा रसोई में आया। रजनी को इस हाल में देखकर उसके मन में हलचल होने लगी। वह धीरे से रजनी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और साड़ी के ऊपर से उसके पेट पर हाथ रखते हुए बोला, “क्या बना रही हो, चाची?
रजनी चौंक गई, मगर संभलते हुए बोली, “नाश्ता बना रही हूँ, लल्ला। तुझे भूख लगी होगी न?” उसने कर्मा के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा।
कर्मा को रजनी का ये बदला हुआ अंदाज़ देखकर हैरानी हुई। रजनी में अब एक नया आत्मविश्वास था। कल की घटना के बाद वह बदल चुकी थी। उसका गदराया बदन, जो उसे अब तक कमज़ोर बनाता था, अब उसे अपनी ताकत लग रहा था। कर्मा ने उसे खुलता देख मन ही मन खुश हुआ और पीछे से उससे चिपक गया। उसने रजनी के पल्लू को थोड़ा ऊपर खिसकाया और उसके नंगे पेट को सहलाने लगा।
अरे लल्ला, नाश्ता बना लेने दो, देर हो जाएगी,” रजनी ने प्यार भरे लहजे में कहा। उसे अपने चूतड़ों के बीच कर्मा के कड़क लंड की चुभन महसूस हुई, और एक सिहरन उसके बदन में दौड़ गई। कर्मा उसके बेटे विक्रम से भी छोटा था, मगर एक जवान लड़के को अपने बदन के लिए इतना आकर्षित देखकर रजनी को मन ही मन गुदगुदी हो रही थी।
चाची, नाश्ता तो बनता रहेगा, अपनी सुंदर चाची से प्यार तो कर लेने दो,” कर्मा ने शरारती अंदाज़ में कहा।“अरे नहीं, लल्ला, ये बुढ़िया चाची कहाँ से सुंदर लग रही है तुझे?” रजनी ने मजाक में जवाब दिया।
अरे चाची, तुम और बुढ़िया? तुम तो अभी जवानों से भी जवान हो,” कर्मा ने रजनी के पेट को मसलते हुए कहा।
कर्मा की हरकतों और उसके लंड की चुभन का असर रजनी पर पड़ रहा था। उसका बदन गरम हो रहा था, और उसकी टाँगों के बीच हल्की नमी महसूस हो रही थी।
तभी सरोज तैयार होकर रसोई में आई और कर्मा को रजनी से चिपके देख बोली, “अरे रजनी, आ गई तू? और ये क्यों लाड़ लगा रहा है तुझसे?
रजनी थोड़ा झेंप गई और बोली, “अरे जीजी, देखो न लल्ला को, नाश्ता नहीं बनाने दे रहे।
अरे कर्मा, क्यों परेशान कर रहा है चाची को? जा, उन्हें काम करने दे,” सरोज ने डाँटते हुए कहा।
अरे माँ, मैं तो बस चाची को बता रहा था कि वो कितनी सुंदर हैं,” कर्मा ने रजनी से हटते हुए कहा और रसोई से बाहर निकल गया।
जाते हुए सरोज की नज़र अपने बेटे के पैंट में बने तंबू पर पड़ी, और उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।“क्या बात है, रजनी? सब खुश हैं तुझसे?” सरोज ने शरारती लहजे में पूछा।
मतलब, जीजी?” रजनी ने हिचकते हुए कहा।“मतलब, सब की अच्छे से सेवा कर रही है तू। सब तेरे काम से खुश हैं—बच्चे, बड़े, सब,” सरोज ने आँख मारते हुए कहा।
जीजी, सेवा करने ही तो आई हूँ मैं यहाँ। क्या तुम खुश नहीं हो मुझसे?” रजनी ने मासूमियत से पूछा।
मेरी सेवा तूने करी ही कहाँ है अभी?” सरोज ने मजाकिया लहजे में कहा।
चलो जीजी, अभी कर दूँगी। बताओ, क्या करना है?” रजनी ने उत्साह से कहा।
बताऊँगी। चल, अभी खाना बना ले, फिर करवाती हूँ तुमसे सेवा,” सरोज ने एक कामुक मुस्कान के साथ कहा, जिसे रजनी समझ नहीं पाई।
बाहर सोनू का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके मन में कई खयाल चल रहे थे। वह जानना चाहता था कि उसकी माँ के साथ हवेली में कुछ गलत तो नहीं हो रहा। बार-बार उसकी माँ का नंगा बदन नीलेश के साथ चिपका हुआ उसके सामने कौंध रहा था। वह हवेली के दरवाजे को झाँक रहा था, शायद माँ की एक झलक मिल जाए।
तभी कर्मा हवेली से बाहर निकला और उसकी आँखें सोनू पर पड़ीं। सोनू ने चेहरा घुमा लिया, मगर कर्मा उसकी ओर चलकर आया और बोला, “चल सोनू, थोड़ा घूमकर आते हैं।
नहीं कर्मा भैया, अभी मुझे फुलवाड़ी में काम है,” सोनू ने हिचकते हुए कहा।कर्मा ने पास खड़े माली पर नज़र डाली। माली खुद ही बोल पड़ा, “अरे नहीं, सोनू बेटा, तुम जाओ छोटे मालिक के साथ। यहाँ इतना कोई काम नहीं है।
कर्मा मुस्कुराने लगा, और सोनू को मजबूरी में उसके साथ जाना पड़ा। कर्मा ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाया। सोनू पकड़कर बैठ गया। उसके लिए मोटरसाइकिल एक सपने से कम नहीं थी। उनके घर में साइकिल भी नहीं थी, और वह मोटरसाइकिल पर बैठ रहा था। एक अलग अहसास उसके मन में जाग रहा था, जो उसकी उम्र के हिसाब से स्वाभाविक था। इस उम्र में ऐसी गाड़ियाँ मन को अपनी ओर खींचती हैं।
कर्मा सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठाकर निकल पड़ा। सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठकर बड़ा मज़ा आ रहा था। कितनी तेज चल रही थी! साइकिल में तो पैडल मारना पड़ता है, मगर इसमें ऐसी कोई चिंता नहीं। बस बैठो और फुर्र से चल पड़ती है। गाँव से जब मोटरसाइकिल निकली, तो सोनू को लग रहा था कि सबकी नजरें उन पर ही थीं। वह सोच रहा था, “देखो, कैसे सब जल रहे हैं मुझे मोटरसाइकिल पर बैठे देख!” मोटरसाइकिल के साथ-साथ सोनू के खयाल भी भाग रहे थे।
कर्मा उसे गाँव से थोड़ी दूर बाज़ार में ले गया, जहाँ एक दुकान के आगे उसने मोटरसाइकिल रोकी। दुकानवाले ने कर्मा को देखते ही पहचान लिया और बोला, “आओ आओ, छोटे मालिक, अंदर चलकर बैठो।”दुकानवाला दोनों को अंदर ले गया और एक मेज़ के साथ दो कुर्सियों पर बैठा दिया। उसने पहले से साफ मेज़ को और साफ करते हुए कहा, “कहिए मालिक, क्या सेवा करूँ? क्या लगाऊँ?
कर्मा ने कहा, “दो ठंडी कोका कोला और दो दोना समोसे लगा।” दुकानदार बोला, “जी, बहुत अच्छा, अभी लाया।
सोनू के मुँह में पानी आ रहा था। बहुत दिन हो गए थे उसे समोसा चखे, और कोका कोला का तो उसने बस नाम सुना था। उसका मन इस ओर भी जा रहा था कि कर्मा उस पर इतनी मेहरबानी क्यों कर रहा है।
इससे पहले कि वह और सोचता, एक भरे बदन की औरत अपनी चूचियाँ हिलाती हुई आई और समोसे मेज़ पर उनके सामने रख दिए। उसने अपने पल्लू से पसीना पोंछा, तो उसका पेट और गहरी नाभि दिखाई दी, जिसे देखकर सोनू की नज़र पल भर को ठहर गई।
बाबू, चटनी दूँ का?” औरत ने पूछा। सोनू हड़बड़ाते हुए बोला, “नहीं, नहीं।” वह औरत चली गई और तुरंत दो बोतल कोका कोला लेकर आई, जो दूर से ही ठंडी लग रही थीं, मुँह से ठंडा धुआँ निकल रहा था। देखते ही सोनू के मुँह में पानी आ गया। औरत ने बोतलें रख दीं, और कर्मा ने एक बोतल उठाकर मुँह से लगा ली। सोनू इन सब में खोया हुआ था।
उसे देखकर औरत मुस्कुराते हुए बोली, “अरे बाबू, तुम भी खाओ न, कहाँ खोए हुए हो?”
कर्मा ने भी कहा, “हाँ सोनू, खा न, क्या सोच रहा है?” सोनू ने सिर हिलाकर खाना शुरू किया। उसे कर्मा के साथ होने पर जो आवभगत और सम्मान मिल रहा था, वो अच्छा लग रहा था। नहीं तो दुकानवाला उसे दुकान के आसपास भी नहीं भटकने देता। समोसे को चखने पर सोनू को मज़ा आ गया। फिर उसने ठंडी बोतल उठाकर मुँह से लगाई, तो जैसे-जैसे उसका गीला रस गले में उतरा, उसे शीतल करता चला गया।
औरत रखकर मुड़कर गई, तो कर्मा की नज़र उसके थिरकते चूतड़ों पर जमी थी। “आह, क्या मस्त चूतड़ हैं यार,” कर्मा ने धीरे से कहा, जो सोनू को सुनाई दिया। सुनकर सोनू ने भी उस औरत के थिरकते चूतड़ों को निहारा और उसे भी अपने अंदर एक गर्मी का एहसास हुआ,
कर्मा: साली के चूतड़ हैं या मटके, कैसे ऊपर नीचे हो रहे हैं।
सोनू के चेहरे पर भी ये सुनकर मुस्कान आ गई। सोनू ने कर्मा को देखा, और दोनों हँसने लगे। दोनों के बीच एक नए तरह का रिश्ता पनप रहा था।
इधर, हवेली में खाना बन चुका था, और रजनी सरोज के कमरे में खड़ी थी। सरोज ने पूछा, “सारा काम हो गया न?”
रजनी ने जवाब दिया, “हाँ जीजी, अब बताओ तुम्हारी क्या सेवा करनी है।
सरोज बोली, “कल से ही बदन टूट रहा है, थोड़ी मालिश कर दे।” रजनी ने उत्साह से कहा, “हाँ जीजी, बिल्कुल, तुम लेट जाओ, अभी कर देती हूँ।
सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले, पीछे आरे से तेल की शीशी उठा ले।”जब तक रजनी शीशी उठाकर लाती, सरोज लेट चुकी थी। रजनी ने सबसे पहले सरोज के हाथों की मालिश शुरू की।
सरोज बोली, “अच्छा लग रहा है, तेरे हाथ अच्छा चलते हैं।
रजनी ने हँसते हुए कहा, “अरे बस जीजी, ये तो कोई भी कर लेगा।
रजनी ने दोनों हाथों की मालिश की, फिर थोड़ा तेल लिया और सरोज की साड़ी को उसके पेट से हटाकर पेट को मसलने लगी,
जिससे सरोज की हल्की आह निकल गई। क्या जीजी, इतने से झटके में आह निकल गई तुम्हारी तो,” रजनी ने मज़ाक करते हुए कहा।
सरोज ने पलटवार किया, “हाँ, मेरी तो निकल जाती है, तू तो तगड़े-तगड़े झटके यूं ही झेल जाती है।
सरोज की बात से रजनी झेंप गई और शर्मा गई। “धत्त जीजी, तुम भी न,” रजनी ने कहा।
देखो तो, कैसे शर्मा रही है, नई दुल्हन की तरह,” सरोज ने हँसते हुए कहा।
रजनी बोली, “अरे जीजी, अब मेरा शर्माना छोड़ो और अपना ब्लाउज़ हटाओ, नहीं तो तेल से खराब हो जाएगा।
सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले,” और उठकर बैठ गई। उसने साड़ी का पल्लू कमर से नीचे इकट्ठा कर दिया और ब्लाउज़ उतार दिया। अब सरोज का बदन सिर्फ ब्रा और साड़ी में था। रजनी उसकी मालिश करने लगी।
जीजी, तुम्हारा बदन बहुत चिकना है, एकदम मलाई जैसा,” रजनी ने तारीफ की।
अरे, मलाई है तो तू चखकर देख ले,” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।
रजनी हँसी, “अरे जीजी, तुम भी न, बड़ी वो हो। चलो, अब घूमो, कमर की भी कर दूँ।” सरोज बोली, “अरे, इसमें वो की क्या बात है,” और घूम गई। रजनी उसकी कमर और पीठ की मालिश करने लगी।
आराम मिल रहा है, जीजी?” रजनी ने पूछा। “हाँ रजनी, बहुत अच्छा लग रहा है। तेरे हाथों में सच में आराम मिल रहा है,” सरोज ने जवाब दिया।
रजनी कुछ देर चुप रही, फिर बोली, “जीजी, अब कमर भी हो गई, टाँगें भी करनी हैं क्या?
सरोज ने कहा, “हाँ, कर देगी तो अच्छा लगेगा।
रजनी बोली, “फिर साड़ी? ये खराब होगी।
सरोज ने तुरंत कहा, “अरे, क्यों होगी? ले, अभी उतार देती हूँ।” सरोज उठी और अपनी साड़ी के साथ पेटीकोट भी उतार दिया। उसका गोरा, भरा, और चिकना बदन सिर्फ कच्छी और बनियान में था। रजनी की आँखें उस पर टिक गईं।
सरोज वापस लेट गई और बोली, “वैसे, साड़ी तो तेरी भी खराब हो सकती है, तू भी उतार दे।” रजनी थोड़ा चौंकी, “अरे नहीं जीजी, ऐसे ही ठीक है।
सरोज ने हँसते हुए कहा, “अरे, शर्मा क्या रही है? मुझे देख, तेरे सामने अधनंगी पड़ी हूँ, तू बेकार में शर्मा रही है।” रजनी सरोज को मना नहीं कर पाई और अपनी साड़ी उतार दी।
अब वह पेटीकोट और ब्लाउज़ में थी। वह सरोज के पैरों की मालिश करने लगी। पैरों से ऊपर बढ़ते हुए जब वह जाँघों तक पहुँची, सरोज की आह निकल गई। रजनी को सरोज के नंगे बदन को छूना अच्छा लग रहा था, और सरोज को भी रजनी का स्पर्श भा रहा था। सरोज की गर्म साँसें रजनी को उत्तेजित कर रही थीं।
रजनी, एक काम करेगी?” सरोज ने गर्म आवाज़ में कहा। रजनी बोली, “हाँ जीजी, कहो न, क्या करना है?
सरोज ने कहा, “बिमला को आवाज़ लगा दे, अब आगे वो करेगी।”
रजनी ने हैरानी से कहा, “क्यों जीजी, मैं कर तो रही हूँ।
सरोज ने जवाब दिया, “जैसा मुझे चाहिए, वैसे तू नहीं कर पाएगी अभी। तुझे सीखना पड़ेगा।
रजनी को कुछ समझ नहीं आया, मगर सरोज की बात मानते हुए वह बोली, “ठीक है जीजी, बुलाती हूँ।” रजनी दरवाजे तक गई और बिमला को आवाज़ दी।
कुछ ही देर में बिमला आई और अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया। उसने रजनी को मुस्कुराकर देखा। सरोज बोली, “आ गई बिमला, चल अब अपनी खास वाली सेवा कर दे। और रजनी, अगर सीखना चाहे तो उसे भी सिखा दे।
बिमला ने कहा, “हाँ मालकिन, बिल्कुल,” और अपनी साड़ी उतारने लगी।
रात का अंधेरा सज्जनपुर को अपने आगोश में ले चुका था, और हवेली में खाने के बाद का माहौल अब एक अलग ही रंग में रंग गया था। नदी की ठंडी हवा बाहर की सादगी को छू रही थी, मगर हवेली की दीवारों के भीतर कामुकता और हवस का तूफान उमड़ रहा था।
सरोज अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रही थी। उसने अपनी साड़ी उतारी और एक ओर रख दी। उसका भरा हुआ, कामुक बदन अब सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में था, जो उसकी मोटी चूचियों और गहरी नाभि को उभार रहा था। तभी उसे अपनी कमर पर दो हाथ महसूस हुए, जो उसके पेट को मसलने लगे।“अजी, छोड़ो न, क्या कर रहे हो?” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।“अपनी पत्नी से प्यार, और क्या?” नीलेश ने हँसते हुए जवाब दिया, उसकी आँखों में चमक थी।
“अच्छा, बड़ा प्यार आ रहा है? क्यों, अपने नए खिलौने से मन भर गया क्या? सुबह तक आवाज़ें आ रही थीं, बिमला ने भी देखा था,” सरोज ने तंज कसते हुए कहा।
नीलेश ने सरोज के ब्लाउज़ की डोरी खोलते हुए कहा, “वो खिलौना है, और तुम हमारी रानी हो। वैसे, बड़ा स्वाद है उसमें। अपनी सेवा का अवसर दो उसे और कुछ कामुकता के पाठ पढ़ाओ।”“अच्छा, फिर तुम्हें मेरी जगह वो पसंद आ गई तो?” सरोज ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए पूछा।
“ऐसा कभी हो सकता है?” नीलेश ने सरोज की मोटी, नंगी चूचियों को मसलते हुए कहा।“आह, आराम से जी,” सरोज की साँसें गर्म हो गईं।“अब आराम का नहीं, काम का समय है,” नीलेश ने हँसते हुए सरोज के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।
कुछ देर बाद सरोज नीलेश के मोटे लंड पर कूद रही थी। उसकी चूचियाँ हवा में झूल रही थीं, और उसकी आहें कमरे में गूँज रही थीं।
नीलेश: आह मेरी रानी तेरी चूत जैसी गर्मी किसी औरत में नहीं, आह ऐसे ही।
सरोज: तुम्हारा लंड भी तो ऐसा है कि जिसे पाकर ही मेरी चूत की प्यास बुझती है, आह चोदो अपनी रानी की प्यासी चूत को,
नीलेश: आह साली तुझ जैसी गरम औरत को पत्नी बना कर तो मेरे भाग ही खुल गए,
सरोज: ओह जी तुम्हारे मोटे लंड वाले पति को पाकर तो मेरी चूत की भी किस्मत जाग गई है, आह चोदो इसे ऐसे ही।
पूरा कमरा दोनों की थापो की आवाज से गूंज रहा था और दोनों ही जल्दी इसी तरह एक दूसरे को उकसाते हुए चुदाई कर रहे थे,
हवेली के पिछले कमरे में भी कुछ ऐसा ही माहौल था। नीलेश और सरोज के दोनों बेटे, कर्मा और अनुज, बिमला के भरे बदन को भोग रहे थे। बिमला बिस्तर पर पीठ के बल पूरी नंगी लेटी थी। उसकी टाँगों के बीच कर्मा था, जिसका लंड उसकी अनुभवी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। बिस्तर के नीचे अनुज खड़ा था, और उसका लंड बिमला के मुँह में था, जिसे वो चूस रही थी।
कर्मा: आह चाची क्या गरम चूत है तुम्हारी ओह मेरी रांड चाची।
कर्मा ने बिमला की चूत में धक्के लगाते हुए कहा,
अनुज: चूसती भी उतना ही बढ़िया है चाची, भैया।
अनुज उसके मुंह में लंड को और घुसाते हुए बोला।
दोनों बिमला के कामुक बदन को एक साथ भोग रहे थे, बिमला भी दो जवान लड़कों का साथ पाकर आनंद से उनके बीच लेट कर अपना बदन मसलवा रही थी। उसके मुंह से घुटी हुई आहें निकल रहीं थीं।
हवेली की रात ऐसे ही कामुक थापों और आहों के बीच बीत गई।अगली सुबह रजनी और सोनू फिर से हवेली की ओर निकले। दोनों के मन में एक तूफान था, मगर मुँह पर ताला। सोनू बार-बार अपनी माँ को देख रहा था। कल सुबह का दृश्य—रजनी का नंगा बदन नीलेश के नंगे बदन से चिपका हुआ—उसकी आँखों के सामने बार-बार कौंध रहा था। हवेली पहुँचते ही सोनू को हमेशा की तरह बगीचे में माली के साथ काम में लगना पड़ा, मगर उसका मन अपनी माँ के साथ अंदर जाने का था। उसके मन में सवालों का भँवर चल रहा था—आज न जाने माँ के साथ क्या होगा?
रजनी सीधे रसोई में काम में जुट गई। जल्दी ही उसका बदन पसीने से भीगकर चमकने लगा, जिससे वह और कामुक लगने लगी।
तभी कर्मा रसोई में आया। रजनी को इस हाल में देखकर उसके मन में हलचल होने लगी। वह धीरे से रजनी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और साड़ी के ऊपर से उसके पेट पर हाथ रखते हुए बोला, “क्या बना रही हो, चाची?
रजनी चौंक गई, मगर संभलते हुए बोली, “नाश्ता बना रही हूँ, लल्ला। तुझे भूख लगी होगी न?” उसने कर्मा के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा।
कर्मा को रजनी का ये बदला हुआ अंदाज़ देखकर हैरानी हुई। रजनी में अब एक नया आत्मविश्वास था। कल की घटना के बाद वह बदल चुकी थी। उसका गदराया बदन, जो उसे अब तक कमज़ोर बनाता था, अब उसे अपनी ताकत लग रहा था। कर्मा ने उसे खुलता देख मन ही मन खुश हुआ और पीछे से उससे चिपक गया। उसने रजनी के पल्लू को थोड़ा ऊपर खिसकाया और उसके नंगे पेट को सहलाने लगा।
अरे लल्ला, नाश्ता बना लेने दो, देर हो जाएगी,” रजनी ने प्यार भरे लहजे में कहा। उसे अपने चूतड़ों के बीच कर्मा के कड़क लंड की चुभन महसूस हुई, और एक सिहरन उसके बदन में दौड़ गई। कर्मा उसके बेटे विक्रम से भी छोटा था, मगर एक जवान लड़के को अपने बदन के लिए इतना आकर्षित देखकर रजनी को मन ही मन गुदगुदी हो रही थी।
चाची, नाश्ता तो बनता रहेगा, अपनी सुंदर चाची से प्यार तो कर लेने दो,” कर्मा ने शरारती अंदाज़ में कहा।“अरे नहीं, लल्ला, ये बुढ़िया चाची कहाँ से सुंदर लग रही है तुझे?” रजनी ने मजाक में जवाब दिया।
अरे चाची, तुम और बुढ़िया? तुम तो अभी जवानों से भी जवान हो,” कर्मा ने रजनी के पेट को मसलते हुए कहा।
कर्मा की हरकतों और उसके लंड की चुभन का असर रजनी पर पड़ रहा था। उसका बदन गरम हो रहा था, और उसकी टाँगों के बीच हल्की नमी महसूस हो रही थी।
तभी सरोज तैयार होकर रसोई में आई और कर्मा को रजनी से चिपके देख बोली, “अरे रजनी, आ गई तू? और ये क्यों लाड़ लगा रहा है तुझसे?
रजनी थोड़ा झेंप गई और बोली, “अरे जीजी, देखो न लल्ला को, नाश्ता नहीं बनाने दे रहे।
अरे कर्मा, क्यों परेशान कर रहा है चाची को? जा, उन्हें काम करने दे,” सरोज ने डाँटते हुए कहा।
अरे माँ, मैं तो बस चाची को बता रहा था कि वो कितनी सुंदर हैं,” कर्मा ने रजनी से हटते हुए कहा और रसोई से बाहर निकल गया।
जाते हुए सरोज की नज़र अपने बेटे के पैंट में बने तंबू पर पड़ी, और उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।“क्या बात है, रजनी? सब खुश हैं तुझसे?” सरोज ने शरारती लहजे में पूछा।
मतलब, जीजी?” रजनी ने हिचकते हुए कहा।“मतलब, सब की अच्छे से सेवा कर रही है तू। सब तेरे काम से खुश हैं—बच्चे, बड़े, सब,” सरोज ने आँख मारते हुए कहा।
जीजी, सेवा करने ही तो आई हूँ मैं यहाँ। क्या तुम खुश नहीं हो मुझसे?” रजनी ने मासूमियत से पूछा।
मेरी सेवा तूने करी ही कहाँ है अभी?” सरोज ने मजाकिया लहजे में कहा।
चलो जीजी, अभी कर दूँगी। बताओ, क्या करना है?” रजनी ने उत्साह से कहा।
बताऊँगी। चल, अभी खाना बना ले, फिर करवाती हूँ तुमसे सेवा,” सरोज ने एक कामुक मुस्कान के साथ कहा, जिसे रजनी समझ नहीं पाई।
बाहर सोनू का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके मन में कई खयाल चल रहे थे। वह जानना चाहता था कि उसकी माँ के साथ हवेली में कुछ गलत तो नहीं हो रहा। बार-बार उसकी माँ का नंगा बदन नीलेश के साथ चिपका हुआ उसके सामने कौंध रहा था। वह हवेली के दरवाजे को झाँक रहा था, शायद माँ की एक झलक मिल जाए।
तभी कर्मा हवेली से बाहर निकला और उसकी आँखें सोनू पर पड़ीं। सोनू ने चेहरा घुमा लिया, मगर कर्मा उसकी ओर चलकर आया और बोला, “चल सोनू, थोड़ा घूमकर आते हैं।
नहीं कर्मा भैया, अभी मुझे फुलवाड़ी में काम है,” सोनू ने हिचकते हुए कहा।कर्मा ने पास खड़े माली पर नज़र डाली। माली खुद ही बोल पड़ा, “अरे नहीं, सोनू बेटा, तुम जाओ छोटे मालिक के साथ। यहाँ इतना कोई काम नहीं है।
कर्मा मुस्कुराने लगा, और सोनू को मजबूरी में उसके साथ जाना पड़ा। कर्मा ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाया। सोनू पकड़कर बैठ गया। उसके लिए मोटरसाइकिल एक सपने से कम नहीं थी। उनके घर में साइकिल भी नहीं थी, और वह मोटरसाइकिल पर बैठ रहा था। एक अलग अहसास उसके मन में जाग रहा था, जो उसकी उम्र के हिसाब से स्वाभाविक था। इस उम्र में ऐसी गाड़ियाँ मन को अपनी ओर खींचती हैं।
कर्मा सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठाकर निकल पड़ा। सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठकर बड़ा मज़ा आ रहा था। कितनी तेज चल रही थी! साइकिल में तो पैडल मारना पड़ता है, मगर इसमें ऐसी कोई चिंता नहीं। बस बैठो और फुर्र से चल पड़ती है। गाँव से जब मोटरसाइकिल निकली, तो सोनू को लग रहा था कि सबकी नजरें उन पर ही थीं। वह सोच रहा था, “देखो, कैसे सब जल रहे हैं मुझे मोटरसाइकिल पर बैठे देख!” मोटरसाइकिल के साथ-साथ सोनू के खयाल भी भाग रहे थे।
कर्मा उसे गाँव से थोड़ी दूर बाज़ार में ले गया, जहाँ एक दुकान के आगे उसने मोटरसाइकिल रोकी। दुकानवाले ने कर्मा को देखते ही पहचान लिया और बोला, “आओ आओ, छोटे मालिक, अंदर चलकर बैठो।”दुकानवाला दोनों को अंदर ले गया और एक मेज़ के साथ दो कुर्सियों पर बैठा दिया। उसने पहले से साफ मेज़ को और साफ करते हुए कहा, “कहिए मालिक, क्या सेवा करूँ? क्या लगाऊँ?
कर्मा ने कहा, “दो ठंडी कोका कोला और दो दोना समोसे लगा।” दुकानदार बोला, “जी, बहुत अच्छा, अभी लाया।
सोनू के मुँह में पानी आ रहा था। बहुत दिन हो गए थे उसे समोसा चखे, और कोका कोला का तो उसने बस नाम सुना था। उसका मन इस ओर भी जा रहा था कि कर्मा उस पर इतनी मेहरबानी क्यों कर रहा है।
इससे पहले कि वह और सोचता, एक भरे बदन की औरत अपनी चूचियाँ हिलाती हुई आई और समोसे मेज़ पर उनके सामने रख दिए। उसने अपने पल्लू से पसीना पोंछा, तो उसका पेट और गहरी नाभि दिखाई दी, जिसे देखकर सोनू की नज़र पल भर को ठहर गई।
बाबू, चटनी दूँ का?” औरत ने पूछा। सोनू हड़बड़ाते हुए बोला, “नहीं, नहीं।” वह औरत चली गई और तुरंत दो बोतल कोका कोला लेकर आई, जो दूर से ही ठंडी लग रही थीं, मुँह से ठंडा धुआँ निकल रहा था। देखते ही सोनू के मुँह में पानी आ गया। औरत ने बोतलें रख दीं, और कर्मा ने एक बोतल उठाकर मुँह से लगा ली। सोनू इन सब में खोया हुआ था।
उसे देखकर औरत मुस्कुराते हुए बोली, “अरे बाबू, तुम भी खाओ न, कहाँ खोए हुए हो?”
कर्मा ने भी कहा, “हाँ सोनू, खा न, क्या सोच रहा है?” सोनू ने सिर हिलाकर खाना शुरू किया। उसे कर्मा के साथ होने पर जो आवभगत और सम्मान मिल रहा था, वो अच्छा लग रहा था। नहीं तो दुकानवाला उसे दुकान के आसपास भी नहीं भटकने देता। समोसे को चखने पर सोनू को मज़ा आ गया। फिर उसने ठंडी बोतल उठाकर मुँह से लगाई, तो जैसे-जैसे उसका गीला रस गले में उतरा, उसे शीतल करता चला गया।
औरत रखकर मुड़कर गई, तो कर्मा की नज़र उसके थिरकते चूतड़ों पर जमी थी। “आह, क्या मस्त चूतड़ हैं यार,” कर्मा ने धीरे से कहा, जो सोनू को सुनाई दिया। सुनकर सोनू ने भी उस औरत के थिरकते चूतड़ों को निहारा और उसे भी अपने अंदर एक गर्मी का एहसास हुआ,
कर्मा: साली के चूतड़ हैं या मटके, कैसे ऊपर नीचे हो रहे हैं।
सोनू के चेहरे पर भी ये सुनकर मुस्कान आ गई। सोनू ने कर्मा को देखा, और दोनों हँसने लगे। दोनों के बीच एक नए तरह का रिश्ता पनप रहा था।
इधर, हवेली में खाना बन चुका था, और रजनी सरोज के कमरे में खड़ी थी। सरोज ने पूछा, “सारा काम हो गया न?”
रजनी ने जवाब दिया, “हाँ जीजी, अब बताओ तुम्हारी क्या सेवा करनी है।
सरोज बोली, “कल से ही बदन टूट रहा है, थोड़ी मालिश कर दे।” रजनी ने उत्साह से कहा, “हाँ जीजी, बिल्कुल, तुम लेट जाओ, अभी कर देती हूँ।
सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले, पीछे आरे से तेल की शीशी उठा ले।”जब तक रजनी शीशी उठाकर लाती, सरोज लेट चुकी थी। रजनी ने सबसे पहले सरोज के हाथों की मालिश शुरू की।
सरोज बोली, “अच्छा लग रहा है, तेरे हाथ अच्छा चलते हैं।
रजनी ने हँसते हुए कहा, “अरे बस जीजी, ये तो कोई भी कर लेगा।
रजनी ने दोनों हाथों की मालिश की, फिर थोड़ा तेल लिया और सरोज की साड़ी को उसके पेट से हटाकर पेट को मसलने लगी,
जिससे सरोज की हल्की आह निकल गई। क्या जीजी, इतने से झटके में आह निकल गई तुम्हारी तो,” रजनी ने मज़ाक करते हुए कहा।
सरोज ने पलटवार किया, “हाँ, मेरी तो निकल जाती है, तू तो तगड़े-तगड़े झटके यूं ही झेल जाती है।
सरोज की बात से रजनी झेंप गई और शर्मा गई। “धत्त जीजी, तुम भी न,” रजनी ने कहा।
देखो तो, कैसे शर्मा रही है, नई दुल्हन की तरह,” सरोज ने हँसते हुए कहा।
रजनी बोली, “अरे जीजी, अब मेरा शर्माना छोड़ो और अपना ब्लाउज़ हटाओ, नहीं तो तेल से खराब हो जाएगा।
सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले,” और उठकर बैठ गई। उसने साड़ी का पल्लू कमर से नीचे इकट्ठा कर दिया और ब्लाउज़ उतार दिया। अब सरोज का बदन सिर्फ ब्रा और साड़ी में था। रजनी उसकी मालिश करने लगी।
जीजी, तुम्हारा बदन बहुत चिकना है, एकदम मलाई जैसा,” रजनी ने तारीफ की।
अरे, मलाई है तो तू चखकर देख ले,” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।
रजनी हँसी, “अरे जीजी, तुम भी न, बड़ी वो हो। चलो, अब घूमो, कमर की भी कर दूँ।” सरोज बोली, “अरे, इसमें वो की क्या बात है,” और घूम गई। रजनी उसकी कमर और पीठ की मालिश करने लगी।
आराम मिल रहा है, जीजी?” रजनी ने पूछा। “हाँ रजनी, बहुत अच्छा लग रहा है। तेरे हाथों में सच में आराम मिल रहा है,” सरोज ने जवाब दिया।
रजनी कुछ देर चुप रही, फिर बोली, “जीजी, अब कमर भी हो गई, टाँगें भी करनी हैं क्या?
सरोज ने कहा, “हाँ, कर देगी तो अच्छा लगेगा।
रजनी बोली, “फिर साड़ी? ये खराब होगी।
सरोज ने तुरंत कहा, “अरे, क्यों होगी? ले, अभी उतार देती हूँ।” सरोज उठी और अपनी साड़ी के साथ पेटीकोट भी उतार दिया। उसका गोरा, भरा, और चिकना बदन सिर्फ कच्छी और बनियान में था। रजनी की आँखें उस पर टिक गईं।
सरोज वापस लेट गई और बोली, “वैसे, साड़ी तो तेरी भी खराब हो सकती है, तू भी उतार दे।” रजनी थोड़ा चौंकी, “अरे नहीं जीजी, ऐसे ही ठीक है।
सरोज ने हँसते हुए कहा, “अरे, शर्मा क्या रही है? मुझे देख, तेरे सामने अधनंगी पड़ी हूँ, तू बेकार में शर्मा रही है।” रजनी सरोज को मना नहीं कर पाई और अपनी साड़ी उतार दी।
अब वह पेटीकोट और ब्लाउज़ में थी। वह सरोज के पैरों की मालिश करने लगी। पैरों से ऊपर बढ़ते हुए जब वह जाँघों तक पहुँची, सरोज की आह निकल गई। रजनी को सरोज के नंगे बदन को छूना अच्छा लग रहा था, और सरोज को भी रजनी का स्पर्श भा रहा था। सरोज की गर्म साँसें रजनी को उत्तेजित कर रही थीं।
रजनी, एक काम करेगी?” सरोज ने गर्म आवाज़ में कहा। रजनी बोली, “हाँ जीजी, कहो न, क्या करना है?
सरोज ने कहा, “बिमला को आवाज़ लगा दे, अब आगे वो करेगी।”
रजनी ने हैरानी से कहा, “क्यों जीजी, मैं कर तो रही हूँ।
सरोज ने जवाब दिया, “जैसा मुझे चाहिए, वैसे तू नहीं कर पाएगी अभी। तुझे सीखना पड़ेगा।
रजनी को कुछ समझ नहीं आया, मगर सरोज की बात मानते हुए वह बोली, “ठीक है जीजी, बुलाती हूँ।” रजनी दरवाजे तक गई और बिमला को आवाज़ दी।
कुछ ही देर में बिमला आई और अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया। उसने रजनी को मुस्कुराकर देखा। सरोज बोली, “आ गई बिमला, चल अब अपनी खास वाली सेवा कर दे। और रजनी, अगर सीखना चाहे तो उसे भी सिखा दे।
बिमला ने कहा, “हाँ मालकिन, बिल्कुल,” और अपनी साड़ी उतारने लगी।
रात का अंधेरा सज्जनपुर को अपने आगोश में ले चुका था, और हवेली में खाने के बाद का माहौल अब एक अलग ही रंग में रंग गया था। नदी की ठंडी हवा बाहर की सादगी को छू रही थी, मगर हवेली की दीवारों के भीतर कामुकता और हवस का तूफान उमड़ रहा था।
सरोज अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रही थी। उसने अपनी साड़ी उतारी और एक ओर रख दी। उसका भरा हुआ, कामुक बदन अब सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में था, जो उसकी मोटी चूचियों और गहरी नाभि को उभार रहा था। तभी उसे अपनी कमर पर दो हाथ महसूस हुए, जो उसके पेट को मसलने लगे।“अजी, छोड़ो न, क्या कर रहे हो?” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।“अपनी पत्नी से प्यार, और क्या?” नीलेश ने हँसते हुए जवाब दिया, उसकी आँखों में चमक थी।
“अच्छा, बड़ा प्यार आ रहा है? क्यों, अपने नए खिलौने से मन भर गया क्या? सुबह तक आवाज़ें आ रही थीं, बिमला ने भी देखा था,” सरोज ने तंज कसते हुए कहा।
नीलेश ने सरोज के ब्लाउज़ की डोरी खोलते हुए कहा, “वो खिलौना है, और तुम हमारी रानी हो। वैसे, बड़ा स्वाद है उसमें। अपनी सेवा का अवसर दो उसे और कुछ कामुकता के पाठ पढ़ाओ।”“अच्छा, फिर तुम्हें मेरी जगह वो पसंद आ गई तो?” सरोज ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए पूछा।
“ऐसा कभी हो सकता है?” नीलेश ने सरोज की मोटी, नंगी चूचियों को मसलते हुए कहा।“आह, आराम से जी,” सरोज की साँसें गर्म हो गईं।“अब आराम का नहीं, काम का समय है,” नीलेश ने हँसते हुए सरोज के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।
कुछ देर बाद सरोज नीलेश के मोटे लंड पर कूद रही थी। उसकी चूचियाँ हवा में झूल रही थीं, और उसकी आहें कमरे में गूँज रही थीं।
नीलेश: आह मेरी रानी तेरी चूत जैसी गर्मी किसी औरत में नहीं, आह ऐसे ही।
सरोज: तुम्हारा लंड भी तो ऐसा है कि जिसे पाकर ही मेरी चूत की प्यास बुझती है, आह चोदो अपनी रानी की प्यासी चूत को,
नीलेश: आह साली तुझ जैसी गरम औरत को पत्नी बना कर तो मेरे भाग ही खुल गए,
सरोज: ओह जी तुम्हारे मोटे लंड वाले पति को पाकर तो मेरी चूत की भी किस्मत जाग गई है, आह चोदो इसे ऐसे ही।
पूरा कमरा दोनों की थापो की आवाज से गूंज रहा था और दोनों ही जल्दी इसी तरह एक दूसरे को उकसाते हुए चुदाई कर रहे थे,
हवेली के पिछले कमरे में भी कुछ ऐसा ही माहौल था। नीलेश और सरोज के दोनों बेटे, कर्मा और अनुज, बिमला के भरे बदन को भोग रहे थे। बिमला बिस्तर पर पीठ के बल पूरी नंगी लेटी थी। उसकी टाँगों के बीच कर्मा था, जिसका लंड उसकी अनुभवी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। बिस्तर के नीचे अनुज खड़ा था, और उसका लंड बिमला के मुँह में था, जिसे वो चूस रही थी।
कर्मा: आह चाची क्या गरम चूत है तुम्हारी ओह मेरी रांड चाची।
कर्मा ने बिमला की चूत में धक्के लगाते हुए कहा,
अनुज: चूसती भी उतना ही बढ़िया है चाची, भैया।
अनुज उसके मुंह में लंड को और घुसाते हुए बोला।
दोनों बिमला के कामुक बदन को एक साथ भोग रहे थे, बिमला भी दो जवान लड़कों का साथ पाकर आनंद से उनके बीच लेट कर अपना बदन मसलवा रही थी। उसके मुंह से घुटी हुई आहें निकल रहीं थीं।
हवेली की रात ऐसे ही कामुक थापों और आहों के बीच बीत गई।अगली सुबह रजनी और सोनू फिर से हवेली की ओर निकले। दोनों के मन में एक तूफान था, मगर मुँह पर ताला। सोनू बार-बार अपनी माँ को देख रहा था। कल सुबह का दृश्य—रजनी का नंगा बदन नीलेश के नंगे बदन से चिपका हुआ—उसकी आँखों के सामने बार-बार कौंध रहा था। हवेली पहुँचते ही सोनू को हमेशा की तरह बगीचे में माली के साथ काम में लगना पड़ा, मगर उसका मन अपनी माँ के साथ अंदर जाने का था। उसके मन में सवालों का भँवर चल रहा था—आज न जाने माँ के साथ क्या होगा?
रजनी सीधे रसोई में काम में जुट गई। जल्दी ही उसका बदन पसीने से भीगकर चमकने लगा, जिससे वह और कामुक लगने लगी।
तभी कर्मा रसोई में आया। रजनी को इस हाल में देखकर उसके मन में हलचल होने लगी। वह धीरे से रजनी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और साड़ी के ऊपर से उसके पेट पर हाथ रखते हुए बोला, “क्या बना रही हो, चाची?
रजनी चौंक गई, मगर संभलते हुए बोली, “नाश्ता बना रही हूँ, लल्ला। तुझे भूख लगी होगी न?” उसने कर्मा के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा।
कर्मा को रजनी का ये बदला हुआ अंदाज़ देखकर हैरानी हुई। रजनी में अब एक नया आत्मविश्वास था। कल की घटना के बाद वह बदल चुकी थी। उसका गदराया बदन, जो उसे अब तक कमज़ोर बनाता था, अब उसे अपनी ताकत लग रहा था। कर्मा ने उसे खुलता देख मन ही मन खुश हुआ और पीछे से उससे चिपक गया। उसने रजनी के पल्लू को थोड़ा ऊपर खिसकाया और उसके नंगे पेट को सहलाने लगा।
अरे लल्ला, नाश्ता बना लेने दो, देर हो जाएगी,” रजनी ने प्यार भरे लहजे में कहा। उसे अपने चूतड़ों के बीच कर्मा के कड़क लंड की चुभन महसूस हुई, और एक सिहरन उसके बदन में दौड़ गई। कर्मा उसके बेटे विक्रम से भी छोटा था, मगर एक जवान लड़के को अपने बदन के लिए इतना आकर्षित देखकर रजनी को मन ही मन गुदगुदी हो रही थी।
चाची, नाश्ता तो बनता रहेगा, अपनी सुंदर चाची से प्यार तो कर लेने दो,” कर्मा ने शरारती अंदाज़ में कहा।“अरे नहीं, लल्ला, ये बुढ़िया चाची कहाँ से सुंदर लग रही है तुझे?” रजनी ने मजाक में जवाब दिया।
अरे चाची, तुम और बुढ़िया? तुम तो अभी जवानों से भी जवान हो,” कर्मा ने रजनी के पेट को मसलते हुए कहा।
कर्मा की हरकतों और उसके लंड की चुभन का असर रजनी पर पड़ रहा था। उसका बदन गरम हो रहा था, और उसकी टाँगों के बीच हल्की नमी महसूस हो रही थी।
तभी सरोज तैयार होकर रसोई में आई और कर्मा को रजनी से चिपके देख बोली, “अरे रजनी, आ गई तू? और ये क्यों लाड़ लगा रहा है तुझसे?
रजनी थोड़ा झेंप गई और बोली, “अरे जीजी, देखो न लल्ला को, नाश्ता नहीं बनाने दे रहे।
अरे कर्मा, क्यों परेशान कर रहा है चाची को? जा, उन्हें काम करने दे,” सरोज ने डाँटते हुए कहा।
अरे माँ, मैं तो बस चाची को बता रहा था कि वो कितनी सुंदर हैं,” कर्मा ने रजनी से हटते हुए कहा और रसोई से बाहर निकल गया।
जाते हुए सरोज की नज़र अपने बेटे के पैंट में बने तंबू पर पड़ी, और उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।“क्या बात है, रजनी? सब खुश हैं तुझसे?” सरोज ने शरारती लहजे में पूछा।
मतलब, जीजी?” रजनी ने हिचकते हुए कहा।“मतलब, सब की अच्छे से सेवा कर रही है तू। सब तेरे काम से खुश हैं—बच्चे, बड़े, सब,” सरोज ने आँख मारते हुए कहा।
जीजी, सेवा करने ही तो आई हूँ मैं यहाँ। क्या तुम खुश नहीं हो मुझसे?” रजनी ने मासूमियत से पूछा।
मेरी सेवा तूने करी ही कहाँ है अभी?” सरोज ने मजाकिया लहजे में कहा।
चलो जीजी, अभी कर दूँगी। बताओ, क्या करना है?” रजनी ने उत्साह से कहा।
बताऊँगी। चल, अभी खाना बना ले, फिर करवाती हूँ तुमसे सेवा,” सरोज ने एक कामुक मुस्कान के साथ कहा, जिसे रजनी समझ नहीं पाई।
बाहर सोनू का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके मन में कई खयाल चल रहे थे। वह जानना चाहता था कि उसकी माँ के साथ हवेली में कुछ गलत तो नहीं हो रहा। बार-बार उसकी माँ का नंगा बदन नीलेश के साथ चिपका हुआ उसके सामने कौंध रहा था। वह हवेली के दरवाजे को झाँक रहा था, शायद माँ की एक झलक मिल जाए।
तभी कर्मा हवेली से बाहर निकला और उसकी आँखें सोनू पर पड़ीं। सोनू ने चेहरा घुमा लिया, मगर कर्मा उसकी ओर चलकर आया और बोला, “चल सोनू, थोड़ा घूमकर आते हैं।
नहीं कर्मा भैया, अभी मुझे फुलवाड़ी में काम है,” सोनू ने हिचकते हुए कहा।कर्मा ने पास खड़े माली पर नज़र डाली। माली खुद ही बोल पड़ा, “अरे नहीं, सोनू बेटा, तुम जाओ छोटे मालिक के साथ। यहाँ इतना कोई काम नहीं है।
कर्मा मुस्कुराने लगा, और सोनू को मजबूरी में उसके साथ जाना पड़ा। कर्मा ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाया। सोनू पकड़कर बैठ गया। उसके लिए मोटरसाइकिल एक सपने से कम नहीं थी। उनके घर में साइकिल भी नहीं थी, और वह मोटरसाइकिल पर बैठ रहा था। एक अलग अहसास उसके मन में जाग रहा था, जो उसकी उम्र के हिसाब से स्वाभाविक था। इस उम्र में ऐसी गाड़ियाँ मन को अपनी ओर खींचती हैं।
कर्मा सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठाकर निकल पड़ा। सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठकर बड़ा मज़ा आ रहा था। कितनी तेज चल रही थी! साइकिल में तो पैडल मारना पड़ता है, मगर इसमें ऐसी कोई चिंता नहीं। बस बैठो और फुर्र से चल पड़ती है। गाँव से जब मोटरसाइकिल निकली, तो सोनू को लग रहा था कि सबकी नजरें उन पर ही थीं। वह सोच रहा था, “देखो, कैसे सब जल रहे हैं मुझे मोटरसाइकिल पर बैठे देख!” मोटरसाइकिल के साथ-साथ सोनू के खयाल भी भाग रहे थे।
कर्मा उसे गाँव से थोड़ी दूर बाज़ार में ले गया, जहाँ एक दुकान के आगे उसने मोटरसाइकिल रोकी। दुकानवाले ने कर्मा को देखते ही पहचान लिया और बोला, “आओ आओ, छोटे मालिक, अंदर चलकर बैठो।”दुकानवाला दोनों को अंदर ले गया और एक मेज़ के साथ दो कुर्सियों पर बैठा दिया। उसने पहले से साफ मेज़ को और साफ करते हुए कहा, “कहिए मालिक, क्या सेवा करूँ? क्या लगाऊँ?
कर्मा ने कहा, “दो ठंडी कोका कोला और दो दोना समोसे लगा।” दुकानदार बोला, “जी, बहुत अच्छा, अभी लाया।
सोनू के मुँह में पानी आ रहा था। बहुत दिन हो गए थे उसे समोसा चखे, और कोका कोला का तो उसने बस नाम सुना था। उसका मन इस ओर भी जा रहा था कि कर्मा उस पर इतनी मेहरबानी क्यों कर रहा है।
इससे पहले कि वह और सोचता, एक भरे बदन की औरत अपनी चूचियाँ हिलाती हुई आई और समोसे मेज़ पर उनके सामने रख दिए। उसने अपने पल्लू से पसीना पोंछा, तो उसका पेट और गहरी नाभि दिखाई दी, जिसे देखकर सोनू की नज़र पल भर को ठहर गई।
बाबू, चटनी दूँ का?” औरत ने पूछा। सोनू हड़बड़ाते हुए बोला, “नहीं, नहीं।” वह औरत चली गई और तुरंत दो बोतल कोका कोला लेकर आई, जो दूर से ही ठंडी लग रही थीं, मुँह से ठंडा धुआँ निकल रहा था। देखते ही सोनू के मुँह में पानी आ गया। औरत ने बोतलें रख दीं, और कर्मा ने एक बोतल उठाकर मुँह से लगा ली। सोनू इन सब में खोया हुआ था।
उसे देखकर औरत मुस्कुराते हुए बोली, “अरे बाबू, तुम भी खाओ न, कहाँ खोए हुए हो?”
कर्मा ने भी कहा, “हाँ सोनू, खा न, क्या सोच रहा है?” सोनू ने सिर हिलाकर खाना शुरू किया। उसे कर्मा के साथ होने पर जो आवभगत और सम्मान मिल रहा था, वो अच्छा लग रहा था। नहीं तो दुकानवाला उसे दुकान के आसपास भी नहीं भटकने देता। समोसे को चखने पर सोनू को मज़ा आ गया। फिर उसने ठंडी बोतल उठाकर मुँह से लगाई, तो जैसे-जैसे उसका गीला रस गले में उतरा, उसे शीतल करता चला गया।
औरत रखकर मुड़कर गई, तो कर्मा की नज़र उसके थिरकते चूतड़ों पर जमी थी। “आह, क्या मस्त चूतड़ हैं यार,” कर्मा ने धीरे से कहा, जो सोनू को सुनाई दिया। सुनकर सोनू ने भी उस औरत के थिरकते चूतड़ों को निहारा और उसे भी अपने अंदर एक गर्मी का एहसास हुआ,
कर्मा: साली के चूतड़ हैं या मटके, कैसे ऊपर नीचे हो रहे हैं।
सोनू के चेहरे पर भी ये सुनकर मुस्कान आ गई। सोनू ने कर्मा को देखा, और दोनों हँसने लगे। दोनों के बीच एक नए तरह का रिश्ता पनप रहा था।
इधर, हवेली में खाना बन चुका था, और रजनी सरोज के कमरे में खड़ी थी। सरोज ने पूछा, “सारा काम हो गया न?”
रजनी ने जवाब दिया, “हाँ जीजी, अब बताओ तुम्हारी क्या सेवा करनी है।
सरोज बोली, “कल से ही बदन टूट रहा है, थोड़ी मालिश कर दे।” रजनी ने उत्साह से कहा, “हाँ जीजी, बिल्कुल, तुम लेट जाओ, अभी कर देती हूँ।
सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले, पीछे आरे से तेल की शीशी उठा ले।”जब तक रजनी शीशी उठाकर लाती, सरोज लेट चुकी थी। रजनी ने सबसे पहले सरोज के हाथों की मालिश शुरू की।
सरोज बोली, “अच्छा लग रहा है, तेरे हाथ अच्छा चलते हैं।
रजनी ने हँसते हुए कहा, “अरे बस जीजी, ये तो कोई भी कर लेगा।
रजनी ने दोनों हाथों की मालिश की, फिर थोड़ा तेल लिया और सरोज की साड़ी को उसके पेट से हटाकर पेट को मसलने लगी,
जिससे सरोज की हल्की आह निकल गई। क्या जीजी, इतने से झटके में आह निकल गई तुम्हारी तो,” रजनी ने मज़ाक करते हुए कहा।
सरोज ने पलटवार किया, “हाँ, मेरी तो निकल जाती है, तू तो तगड़े-तगड़े झटके यूं ही झेल जाती है।
सरोज की बात से रजनी झेंप गई और शर्मा गई। “धत्त जीजी, तुम भी न,” रजनी ने कहा।
देखो तो, कैसे शर्मा रही है, नई दुल्हन की तरह,” सरोज ने हँसते हुए कहा।
रजनी बोली, “अरे जीजी, अब मेरा शर्माना छोड़ो और अपना ब्लाउज़ हटाओ, नहीं तो तेल से खराब हो जाएगा।
सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले,” और उठकर बैठ गई। उसने साड़ी का पल्लू कमर से नीचे इकट्ठा कर दिया और ब्लाउज़ उतार दिया। अब सरोज का बदन सिर्फ ब्रा और साड़ी में था। रजनी उसकी मालिश करने लगी।
जीजी, तुम्हारा बदन बहुत चिकना है, एकदम मलाई जैसा,” रजनी ने तारीफ की।
अरे, मलाई है तो तू चखकर देख ले,” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।
रजनी हँसी, “अरे जीजी, तुम भी न, बड़ी वो हो। चलो, अब घूमो, कमर की भी कर दूँ।” सरोज बोली, “अरे, इसमें वो की क्या बात है,” और घूम गई। रजनी उसकी कमर और पीठ की मालिश करने लगी।
आराम मिल रहा है, जीजी?” रजनी ने पूछा। “हाँ रजनी, बहुत अच्छा लग रहा है। तेरे हाथों में सच में आराम मिल रहा है,” सरोज ने जवाब दिया।
रजनी कुछ देर चुप रही, फिर बोली, “जीजी, अब कमर भी हो गई, टाँगें भी करनी हैं क्या?
सरोज ने कहा, “हाँ, कर देगी तो अच्छा लगेगा।
रजनी बोली, “फिर साड़ी? ये खराब होगी।
सरोज ने तुरंत कहा, “अरे, क्यों होगी? ले, अभी उतार देती हूँ।” सरोज उठी और अपनी साड़ी के साथ पेटीकोट भी उतार दिया। उसका गोरा, भरा, और चिकना बदन सिर्फ कच्छी और बनियान में था। रजनी की आँखें उस पर टिक गईं।
सरोज वापस लेट गई और बोली, “वैसे, साड़ी तो तेरी भी खराब हो सकती है, तू भी उतार दे।” रजनी थोड़ा चौंकी, “अरे नहीं जीजी, ऐसे ही ठीक है।
सरोज ने हँसते हुए कहा, “अरे, शर्मा क्या रही है? मुझे देख, तेरे सामने अधनंगी पड़ी हूँ, तू बेकार में शर्मा रही है।” रजनी सरोज को मना नहीं कर पाई और अपनी साड़ी उतार दी।
अब वह पेटीकोट और ब्लाउज़ में थी। वह सरोज के पैरों की मालिश करने लगी। पैरों से ऊपर बढ़ते हुए जब वह जाँघों तक पहुँची, सरोज की आह निकल गई। रजनी को सरोज के नंगे बदन को छूना अच्छा लग रहा था, और सरोज को भी रजनी का स्पर्श भा रहा था। सरोज की गर्म साँसें रजनी को उत्तेजित कर रही थीं।
रजनी, एक काम करेगी?” सरोज ने गर्म आवाज़ में कहा। रजनी बोली, “हाँ जीजी, कहो न, क्या करना है?
सरोज ने कहा, “बिमला को आवाज़ लगा दे, अब आगे वो करेगी।”
रजनी ने हैरानी से कहा, “क्यों जीजी, मैं कर तो रही हूँ।
सरोज ने जवाब दिया, “जैसा मुझे चाहिए, वैसे तू नहीं कर पाएगी अभी। तुझे सीखना पड़ेगा।
रजनी को कुछ समझ नहीं आया, मगर सरोज की बात मानते हुए वह बोली, “ठीक है जीजी, बुलाती हूँ।” रजनी दरवाजे तक गई और बिमला को आवाज़ दी।
कुछ ही देर में बिमला आई और अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया। उसने रजनी को मुस्कुराकर देखा। सरोज बोली, “आ गई बिमला, चल अब अपनी खास वाली सेवा कर दे। और रजनी, अगर सीखना चाहे तो उसे भी सिखा दे।
बिमला ने कहा, “हाँ मालकिन, बिल्कुल,” और अपनी साड़ी उतारने लगी।
रात का अंधेरा सज्जनपुर को अपने आगोश में ले चुका था, और हवेली में खाने के बाद का माहौल अब एक अलग ही रंग में रंग गया था। नदी की ठंडी हवा बाहर की सादगी को छू रही थी, मगर हवेली की दीवारों के भीतर कामुकता और हवस का तूफान उमड़ रहा था।
सरोज अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रही थी। उसने अपनी साड़ी उतारी और एक ओर रख दी। उसका भरा हुआ, कामुक बदन अब सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में था, जो उसकी मोटी चूचियों और गहरी नाभि को उभार रहा था। तभी उसे अपनी कमर पर दो हाथ महसूस हुए, जो उसके पेट को मसलने लगे।“अजी, छोड़ो न, क्या कर रहे हो?” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।“अपनी पत्नी से प्यार, और क्या?” नीलेश ने हँसते हुए जवाब दिया, उसकी आँखों में चमक थी।
“अच्छा, बड़ा प्यार आ रहा है? क्यों, अपने नए खिलौने से मन भर गया क्या? सुबह तक आवाज़ें आ रही थीं, बिमला ने भी देखा था,” सरोज ने तंज कसते हुए कहा।
नीलेश ने सरोज के ब्लाउज़ की डोरी खोलते हुए कहा, “वो खिलौना है, और तुम हमारी रानी हो। वैसे, बड़ा स्वाद है उसमें। अपनी सेवा का अवसर दो उसे और कुछ कामुकता के पाठ पढ़ाओ।”“अच्छा, फिर तुम्हें मेरी जगह वो पसंद आ गई तो?” सरोज ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए पूछा।
“ऐसा कभी हो सकता है?” नीलेश ने सरोज की मोटी, नंगी चूचियों को मसलते हुए कहा।“आह, आराम से जी,” सरोज की साँसें गर्म हो गईं।“अब आराम का नहीं, काम का समय है,” नीलेश ने हँसते हुए सरोज के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।
कुछ देर बाद सरोज नीलेश के मोटे लंड पर कूद रही थी। उसकी चूचियाँ हवा में झूल रही थीं, और उसकी आहें कमरे में गूँज रही थीं।
नीलेश: आह मेरी रानी तेरी चूत जैसी गर्मी किसी औरत में नहीं, आह ऐसे ही।
सरोज: तुम्हारा लंड भी तो ऐसा है कि जिसे पाकर ही मेरी चूत की प्यास बुझती है, आह चोदो अपनी रानी की प्यासी चूत को,
नीलेश: आह साली तुझ जैसी गरम औरत को पत्नी बना कर तो मेरे भाग ही खुल गए,
सरोज: ओह जी तुम्हारे मोटे लंड वाले पति को पाकर तो मेरी चूत की भी किस्मत जाग गई है, आह चोदो इसे ऐसे ही।
पूरा कमरा दोनों की थापो की आवाज से गूंज रहा था और दोनों ही जल्दी इसी तरह एक दूसरे को उकसाते हुए चुदाई कर रहे थे,
हवेली के पिछले कमरे में भी कुछ ऐसा ही माहौल था। नीलेश और सरोज के दोनों बेटे, कर्मा और अनुज, बिमला के भरे बदन को भोग रहे थे। बिमला बिस्तर पर पीठ के बल पूरी नंगी लेटी थी। उसकी टाँगों के बीच कर्मा था, जिसका लंड उसकी अनुभवी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। बिस्तर के नीचे अनुज खड़ा था, और उसका लंड बिमला के मुँह में था, जिसे वो चूस रही थी।
कर्मा: आह चाची क्या गरम चूत है तुम्हारी ओह मेरी रांड चाची।
कर्मा ने बिमला की चूत में धक्के लगाते हुए कहा,
अनुज: चूसती भी उतना ही बढ़िया है चाची, भैया।
अनुज उसके मुंह में लंड को और घुसाते हुए बोला।
दोनों बिमला के कामुक बदन को एक साथ भोग रहे थे, बिमला भी दो जवान लड़कों का साथ पाकर आनंद से उनके बीच लेट कर अपना बदन मसलवा रही थी। उसके मुंह से घुटी हुई आहें निकल रहीं थीं।
हवेली की रात ऐसे ही कामुक थापों और आहों के बीच बीत गई।अगली सुबह रजनी और सोनू फिर से हवेली की ओर निकले। दोनों के मन में एक तूफान था, मगर मुँह पर ताला। सोनू बार-बार अपनी माँ को देख रहा था। कल सुबह का दृश्य—रजनी का नंगा बदन नीलेश के नंगे बदन से चिपका हुआ—उसकी आँखों के सामने बार-बार कौंध रहा था। हवेली पहुँचते ही सोनू को हमेशा की तरह बगीचे में माली के साथ काम में लगना पड़ा, मगर उसका मन अपनी माँ के साथ अंदर जाने का था। उसके मन में सवालों का भँवर चल रहा था—आज न जाने माँ के साथ क्या होगा?
रजनी सीधे रसोई में काम में जुट गई। जल्दी ही उसका बदन पसीने से भीगकर चमकने लगा, जिससे वह और कामुक लगने लगी।
तभी कर्मा रसोई में आया। रजनी को इस हाल में देखकर उसके मन में हलचल होने लगी। वह धीरे से रजनी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और साड़ी के ऊपर से उसके पेट पर हाथ रखते हुए बोला, “क्या बना रही हो, चाची?
रजनी चौंक गई, मगर संभलते हुए बोली, “नाश्ता बना रही हूँ, लल्ला। तुझे भूख लगी होगी न?” उसने कर्मा के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा।
कर्मा को रजनी का ये बदला हुआ अंदाज़ देखकर हैरानी हुई। रजनी में अब एक नया आत्मविश्वास था। कल की घटना के बाद वह बदल चुकी थी। उसका गदराया बदन, जो उसे अब तक कमज़ोर बनाता था, अब उसे अपनी ताकत लग रहा था। कर्मा ने उसे खुलता देख मन ही मन खुश हुआ और पीछे से उससे चिपक गया। उसने रजनी के पल्लू को थोड़ा ऊपर खिसकाया और उसके नंगे पेट को सहलाने लगा।
अरे लल्ला, नाश्ता बना लेने दो, देर हो जाएगी,” रजनी ने प्यार भरे लहजे में कहा। उसे अपने चूतड़ों के बीच कर्मा के कड़क लंड की चुभन महसूस हुई, और एक सिहरन उसके बदन में दौड़ गई। कर्मा उसके बेटे विक्रम से भी छोटा था, मगर एक जवान लड़के को अपने बदन के लिए इतना आकर्षित देखकर रजनी को मन ही मन गुदगुदी हो रही थी।
चाची, नाश्ता तो बनता रहेगा, अपनी सुंदर चाची से प्यार तो कर लेने दो,” कर्मा ने शरारती अंदाज़ में कहा।“अरे नहीं, लल्ला, ये बुढ़िया चाची कहाँ से सुंदर लग रही है तुझे?” रजनी ने मजाक में जवाब दिया।
अरे चाची, तुम और बुढ़िया? तुम तो अभी जवानों से भी जवान हो,” कर्मा ने रजनी के पेट को मसलते हुए कहा।
कर्मा की हरकतों और उसके लंड की चुभन का असर रजनी पर पड़ रहा था। उसका बदन गरम हो रहा था, और उसकी टाँगों के बीच हल्की नमी महसूस हो रही थी।
तभी सरोज तैयार होकर रसोई में आई और कर्मा को रजनी से चिपके देख बोली, “अरे रजनी, आ गई तू? और ये क्यों लाड़ लगा रहा है तुझसे?
रजनी थोड़ा झेंप गई और बोली, “अरे जीजी, देखो न लल्ला को, नाश्ता नहीं बनाने दे रहे।
अरे कर्मा, क्यों परेशान कर रहा है चाची को? जा, उन्हें काम करने दे,” सरोज ने डाँटते हुए कहा।
अरे माँ, मैं तो बस चाची को बता रहा था कि वो कितनी सुंदर हैं,” कर्मा ने रजनी से हटते हुए कहा और रसोई से बाहर निकल गया।
जाते हुए सरोज की नज़र अपने बेटे के पैंट में बने तंबू पर पड़ी, और उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।“क्या बात है, रजनी? सब खुश हैं तुझसे?” सरोज ने शरारती लहजे में पूछा।
मतलब, जीजी?” रजनी ने हिचकते हुए कहा।“मतलब, सब की अच्छे से सेवा कर रही है तू। सब तेरे काम से खुश हैं—बच्चे, बड़े, सब,” सरोज ने आँख मारते हुए कहा।
जीजी, सेवा करने ही तो आई हूँ मैं यहाँ। क्या तुम खुश नहीं हो मुझसे?” रजनी ने मासूमियत से पूछा।
मेरी सेवा तूने करी ही कहाँ है अभी?” सरोज ने मजाकिया लहजे में कहा।
चलो जीजी, अभी कर दूँगी। बताओ, क्या करना है?” रजनी ने उत्साह से कहा।
बताऊँगी। चल, अभी खाना बना ले, फिर करवाती हूँ तुमसे सेवा,” सरोज ने एक कामुक मुस्कान के साथ कहा, जिसे रजनी समझ नहीं पाई।
बाहर सोनू का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके मन में कई खयाल चल रहे थे। वह जानना चाहता था कि उसकी माँ के साथ हवेली में कुछ गलत तो नहीं हो रहा। बार-बार उसकी माँ का नंगा बदन नीलेश के साथ चिपका हुआ उसके सामने कौंध रहा था। वह हवेली के दरवाजे को झाँक रहा था, शायद माँ की एक झलक मिल जाए।
तभी कर्मा हवेली से बाहर निकला और उसकी आँखें सोनू पर पड़ीं। सोनू ने चेहरा घुमा लिया, मगर कर्मा उसकी ओर चलकर आया और बोला, “चल सोनू, थोड़ा घूमकर आते हैं।
नहीं कर्मा भैया, अभी मुझे फुलवाड़ी में काम है,” सोनू ने हिचकते हुए कहा।कर्मा ने पास खड़े माली पर नज़र डाली। माली खुद ही बोल पड़ा, “अरे नहीं, सोनू बेटा, तुम जाओ छोटे मालिक के साथ। यहाँ इतना कोई काम नहीं है।
कर्मा मुस्कुराने लगा, और सोनू को मजबूरी में उसके साथ जाना पड़ा। कर्मा ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाया। सोनू पकड़कर बैठ गया। उसके लिए मोटरसाइकिल एक सपने से कम नहीं थी। उनके घर में साइकिल भी नहीं थी, और वह मोटरसाइकिल पर बैठ रहा था। एक अलग अहसास उसके मन में जाग रहा था, जो उसकी उम्र के हिसाब से स्वाभाविक था। इस उम्र में ऐसी गाड़ियाँ मन को अपनी ओर खींचती हैं।
कर्मा सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठाकर निकल पड़ा। सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठकर बड़ा मज़ा आ रहा था। कितनी तेज चल रही थी! साइकिल में तो पैडल मारना पड़ता है, मगर इसमें ऐसी कोई चिंता नहीं। बस बैठो और फुर्र से चल पड़ती है। गाँव से जब मोटरसाइकिल निकली, तो सोनू को लग रहा था कि सबकी नजरें उन पर ही थीं। वह सोच रहा था, “देखो, कैसे सब जल रहे हैं मुझे मोटरसाइकिल पर बैठे देख!” मोटरसाइकिल के साथ-साथ सोनू के खयाल भी भाग रहे थे।
कर्मा उसे गाँव से थोड़ी दूर बाज़ार में ले गया, जहाँ एक दुकान के आगे उसने मोटरसाइकिल रोकी। दुकानवाले ने कर्मा को देखते ही पहचान लिया और बोला, “आओ आओ, छोटे मालिक, अंदर चलकर बैठो।”दुकानवाला दोनों को अंदर ले गया और एक मेज़ के साथ दो कुर्सियों पर बैठा दिया। उसने पहले से साफ मेज़ को और साफ करते हुए कहा, “कहिए मालिक, क्या सेवा करूँ? क्या लगाऊँ?
कर्मा ने कहा, “दो ठंडी कोका कोला और दो दोना समोसे लगा।” दुकानदार बोला, “जी, बहुत अच्छा, अभी लाया।
सोनू के मुँह में पानी आ रहा था। बहुत दिन हो गए थे उसे समोसा चखे, और कोका कोला का तो उसने बस नाम सुना था। उसका मन इस ओर भी जा रहा था कि कर्मा उस पर इतनी मेहरबानी क्यों कर रहा है।
इससे पहले कि वह और सोचता, एक भरे बदन की औरत अपनी चूचियाँ हिलाती हुई आई और समोसे मेज़ पर उनके सामने रख दिए। उसने अपने पल्लू से पसीना पोंछा, तो उसका पेट और गहरी नाभि दिखाई दी, जिसे देखकर सोनू की नज़र पल भर को ठहर गई।
बाबू, चटनी दूँ का?” औरत ने पूछा। सोनू हड़बड़ाते हुए बोला, “नहीं, नहीं।” वह औरत चली गई और तुरंत दो बोतल कोका कोला लेकर आई, जो दूर से ही ठंडी लग रही थीं, मुँह से ठंडा धुआँ निकल रहा था। देखते ही सोनू के मुँह में पानी आ गया। औरत ने बोतलें रख दीं, और कर्मा ने एक बोतल उठाकर मुँह से लगा ली। सोनू इन सब में खोया हुआ था।
उसे देखकर औरत मुस्कुराते हुए बोली, “अरे बाबू, तुम भी खाओ न, कहाँ खोए हुए हो?”
कर्मा ने भी कहा, “हाँ सोनू, खा न, क्या सोच रहा है?” सोनू ने सिर हिलाकर खाना शुरू किया। उसे कर्मा के साथ होने पर जो आवभगत और सम्मान मिल रहा था, वो अच्छा लग रहा था। नहीं तो दुकानवाला उसे दुकान के आसपास भी नहीं भटकने देता। समोसे को चखने पर सोनू को मज़ा आ गया। फिर उसने ठंडी बोतल उठाकर मुँह से लगाई, तो जैसे-जैसे उसका गीला रस गले में उतरा, उसे शीतल करता चला गया।
औरत रखकर मुड़कर गई, तो कर्मा की नज़र उसके थिरकते चूतड़ों पर जमी थी। “आह, क्या मस्त चूतड़ हैं यार,” कर्मा ने धीरे से कहा, जो सोनू को सुनाई दिया। सुनकर सोनू ने भी उस औरत के थिरकते चूतड़ों को निहारा और उसे भी अपने अंदर एक गर्मी का एहसास हुआ,
कर्मा: साली के चूतड़ हैं या मटके, कैसे ऊपर नीचे हो रहे हैं।
सोनू के चेहरे पर भी ये सुनकर मुस्कान आ गई। सोनू ने कर्मा को देखा, और दोनों हँसने लगे। दोनों के बीच एक नए तरह का रिश्ता पनप रहा था।
इधर, हवेली में खाना बन चुका था, और रजनी सरोज के कमरे में खड़ी थी। सरोज ने पूछा, “सारा काम हो गया न?”
रजनी ने जवाब दिया, “हाँ जीजी, अब बताओ तुम्हारी क्या सेवा करनी है।
सरोज बोली, “कल से ही बदन टूट रहा है, थोड़ी मालिश कर दे।” रजनी ने उत्साह से कहा, “हाँ जीजी, बिल्कुल, तुम लेट जाओ, अभी कर देती हूँ।
सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले, पीछे आरे से तेल की शीशी उठा ले।”जब तक रजनी शीशी उठाकर लाती, सरोज लेट चुकी थी। रजनी ने सबसे पहले सरोज के हाथों की मालिश शुरू की।
सरोज बोली, “अच्छा लग रहा है, तेरे हाथ अच्छा चलते हैं।
रजनी ने हँसते हुए कहा, “अरे बस जीजी, ये तो कोई भी कर लेगा।
रजनी ने दोनों हाथों की मालिश की, फिर थोड़ा तेल लिया और सरोज की साड़ी को उसके पेट से हटाकर पेट को मसलने लगी,
जिससे सरोज की हल्की आह निकल गई। क्या जीजी, इतने से झटके में आह निकल गई तुम्हारी तो,” रजनी ने मज़ाक करते हुए कहा।
सरोज ने पलटवार किया, “हाँ, मेरी तो निकल जाती है, तू तो तगड़े-तगड़े झटके यूं ही झेल जाती है।
सरोज की बात से रजनी झेंप गई और शर्मा गई। “धत्त जीजी, तुम भी न,” रजनी ने कहा।
देखो तो, कैसे शर्मा रही है, नई दुल्हन की तरह,” सरोज ने हँसते हुए कहा।
रजनी बोली, “अरे जीजी, अब मेरा शर्माना छोड़ो और अपना ब्लाउज़ हटाओ, नहीं तो तेल से खराब हो जाएगा।
सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले,” और उठकर बैठ गई। उसने साड़ी का पल्लू कमर से नीचे इकट्ठा कर दिया और ब्लाउज़ उतार दिया। अब सरोज का बदन सिर्फ ब्रा और साड़ी में था। रजनी उसकी मालिश करने लगी।
जीजी, तुम्हारा बदन बहुत चिकना है, एकदम मलाई जैसा,” रजनी ने तारीफ की।
अरे, मलाई है तो तू चखकर देख ले,” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।
रजनी हँसी, “अरे जीजी, तुम भी न, बड़ी वो हो। चलो, अब घूमो, कमर की भी कर दूँ।” सरोज बोली, “अरे, इसमें वो की क्या बात है,” और घूम गई। रजनी उसकी कमर और पीठ की मालिश करने लगी।
आराम मिल रहा है, जीजी?” रजनी ने पूछा। “हाँ रजनी, बहुत अच्छा लग रहा है। तेरे हाथों में सच में आराम मिल रहा है,” सरोज ने जवाब दिया।
रजनी कुछ देर चुप रही, फिर बोली, “जीजी, अब कमर भी हो गई, टाँगें भी करनी हैं क्या?
सरोज ने कहा, “हाँ, कर देगी तो अच्छा लगेगा।
रजनी बोली, “फिर साड़ी? ये खराब होगी।
सरोज ने तुरंत कहा, “अरे, क्यों होगी? ले, अभी उतार देती हूँ।” सरोज उठी और अपनी साड़ी के साथ पेटीकोट भी उतार दिया। उसका गोरा, भरा, और चिकना बदन सिर्फ कच्छी और बनियान में था। रजनी की आँखें उस पर टिक गईं।
सरोज वापस लेट गई और बोली, “वैसे, साड़ी तो तेरी भी खराब हो सकती है, तू भी उतार दे।” रजनी थोड़ा चौंकी, “अरे नहीं जीजी, ऐसे ही ठीक है।
सरोज ने हँसते हुए कहा, “अरे, शर्मा क्या रही है? मुझे देख, तेरे सामने अधनंगी पड़ी हूँ, तू बेकार में शर्मा रही है।” रजनी सरोज को मना नहीं कर पाई और अपनी साड़ी उतार दी।
अब वह पेटीकोट और ब्लाउज़ में थी। वह सरोज के पैरों की मालिश करने लगी। पैरों से ऊपर बढ़ते हुए जब वह जाँघों तक पहुँची, सरोज की आह निकल गई। रजनी को सरोज के नंगे बदन को छूना अच्छा लग रहा था, और सरोज को भी रजनी का स्पर्श भा रहा था। सरोज की गर्म साँसें रजनी को उत्तेजित कर रही थीं।
रजनी, एक काम करेगी?” सरोज ने गर्म आवाज़ में कहा। रजनी बोली, “हाँ जीजी, कहो न, क्या करना है?
सरोज ने कहा, “बिमला को आवाज़ लगा दे, अब आगे वो करेगी।”
रजनी ने हैरानी से कहा, “क्यों जीजी, मैं कर तो रही हूँ।
सरोज ने जवाब दिया, “जैसा मुझे चाहिए, वैसे तू नहीं कर पाएगी अभी। तुझे सीखना पड़ेगा।
रजनी को कुछ समझ नहीं आया, मगर सरोज की बात मानते हुए वह बोली, “ठीक है जीजी, बुलाती हूँ।” रजनी दरवाजे तक गई और बिमला को आवाज़ दी।
कुछ ही देर में बिमला आई और अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया। उसने रजनी को मुस्कुराकर देखा। सरोज बोली, “आ गई बिमला, चल अब अपनी खास वाली सेवा कर दे। और रजनी, अगर सीखना चाहे तो उसे भी सिखा दे।
बिमला ने कहा, “हाँ मालकिन, बिल्कुल,” और अपनी साड़ी उतारने लगी।