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Adultery सज्जनपुर की कहानी

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अध्याय पांच
रात का अंधेरा सज्जनपुर गांव को ढक चुका था, और हवेली के अंदर का माहौल अब पूरी तरह रंगीन और उन्मुक्त हो चुका था। गंगा की ठंडी हवा बाहर बह रही थी, लेकिन हवेली के भीतर शराब, संगीत, और हवस की गर्मी हावी थी।
रजनी, जो इस अनजान दुनिया में कदम रख चुकी थी, अब एक ऐसे मोड़ पर थी जहां उसकी मर्यादा और मजबूरी के बीच एक पतली रेखा बची थी।
कर्मा ने रजनी को अपने हाथों से पकड़ रखा था, और उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे रजनी की नाभि के चारों ओर मंडरा रही थीं। रजनी का शरीर काँप रहा था, और नशे की हालत में उसका विरोध कमजोर पड़ चुका था।

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वह डरी हुई आवाज़ में बोली, "बेटा, छोड़ दो मुझे, ये ठीक नहीं है।" उसकी आवाज़ में लाचारी और डर साफ झलक रहा था, लेकिन कर्मा ने हल्का सा हँसते हुए कहा, "अरे चाची, डर क्यों रही हो? मैं तो बस तुम्हें सहारा दे रहा हूँ—तुम तो लड़खड़ा रही हो।"
उसकी बातों में एक चालाकी थी, जो रजनी को और असहज कर रही थी।रजनी ने अपने पल्लू को फिर से सिर पर खींचने की कोशिश की, लेकिन कर्मा का हाथ उसके मखमली पेट पर और कस गया। तभी सरोज की आवाज़ गूंजी, "रजनी, कहाँ हो? मेहमान बुला रहे हैं!" कर्मा ने तुरंत हाथ हटा लिया और पीछे हट गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। रजनी ने राहत की सांस ली और जल्दी से सरोज की ओर बढ़ गई।
सरोज ने उसे देखा और बोली, "अरे, तुम्हारा पल्लू तो नीचे है—सुधार लो, वरना मेहमानों की नजरें और चढ़ जाएँगी!" रजनी ने शर्माते हुए पल्लू ठीक किया और सरोज के पीछे चल पड़ी, मन में एक अजीब सा डर लिए।

अब सब औरतें भी नीचे मर्दों के पास पहुँच गईं। सब नशे में डूबे थे—औरत हो या मर्द। तभी एक मेहमान ने जोर से कहा, "यार नीलेश, कुछ नाच-गाने का प्रोग्राम नहीं है क्या?"
नीलेश, जो शराब के नशे में अपनी नशीली आँखों से सबको देख रहा था, हँसते हुए बोला, "अरे ऐसे कैसे नहीं है, अभी करवाता हूँ!" उसने नौकरों को इशारा किया, और तुरंत ही आंगन को साफ कर दिया गया। मेज-पट्टियाँ हटाई गईं, और एक स्पीकर पर मधुर लेकिन उत्तेजक संगीत बजने लगा।

संगीत की पहली धुन के साथ ही एक मेहमान ने सरोज की ओर हाथ बढ़ाया। सरोज मुस्कुराते हुए उठ गई और उस आदमी के साथ नाचने लगी। दोनों चिपककर नाच रहे थे—उस आदमी का हाथ सरोज की कमर पर था, और वे एक-दूसरे के करीब थे। रजनी को यह अजीब लगा, क्योंकि पराए मर्द के साथ ऐसे चिपककर नाचना उसकी मर्यादा से बाहर था। लेकिन उसके बदन में एक अनजानी सिहरन भी दौड़ रही थी, और बार-बार उसकी आँखों के सामने सोमपाल और बिमला का अंतरंग दृश्य कौंध रहा था।धीरे-धीरे और लोग भी उठने लगे और नाचने लगे। सभी औरतें अपने-अपने जोड़ों के साथ झूम रही थीं, लेकिन रजनी बस खड़ी होकर सब देख रही थी। तभी उसने एक ओर देखा—कोई उसे घूर रहा था। उसकी नजर कुर्सी पर बैठे नीलेश से टकराई, जो हाथ में गिलास लिए नशीली नजरों और कामुक मुस्कान के साथ उसे देख रहा था। रजनी की साँसें तेज हो गईं। नीलेश ने अपना गिलास एक ओर रखा और उसकी ओर बढ़ने लगा।

रजनी का दिल धड़कने लगा, लेकिन वह हिल भी नहीं सकी। नीलेश धीरे-धीरे उसके पास आया और वैसे ही हाथ बढ़ाया जैसे बाकी मर्द औरतों को नाचने के लिए बुला रहे थे। न जाने यह माहौल का असर था या नशे का, लेकिन रजनी कुछ सोच ही नहीं पाई। उसका हाथ अपने आप उठकर नीलेश के हाथ में पहुँच गया। नीलेश ने उसे पकड़कर सबके बीच में ले गया और फिर उसे अपनी ओर घुमाया। उसका हाथ रजनी की कमर पर रखा, और उस छुअन से रजनी के बदन में सिहरन दौड़ गई।

रजनी को सब कुछ होता हुआ महसूस हो रहा था—यह गलत था, लेकिन वह खुद को रोक नहीं पा रही थी। नीलेश उसे लेकर धीरे-धीरे हिलने लगा, और उसके हाथ रजनी की कमर और पीठ पर फिराने लगे। सरोज का ब्लाउज़, जो पीछे से खुला था, नीलेश के हाथों को रजनी की नंगी पीठ पर घूमने का मौका दे रहा था। रजनी के मन में उत्तेजना, नशा, और मर्यादा के बीच जंग छिड़ गई थी।

नीलेश रजनी के गदराए बदन को अपने हाथों से नाप रहा था। उसने रजनी की कमर को मसला, और रजनी ने ऊपर उसकी आँखों में देखा। नीलेश ने उसकी आँखों में देखते हुए अपना चेहरा रजनी के चेहरे की ओर बढ़ाया। रजनी का दिल और तेज धड़कने लगा।

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नीलेश के होंठ उसके होंठों के पास आए, और रजनी ने तुरंत अपना चेहरा एक ओर कर लिया। उसकी नजर दूसरों पर पड़ी—कई जोड़े एक-दूसरे को चूम रहे थे, किसी की कमर मसली जा रही थी।

फिर उसकी नजर सरोज पर गई, जो अपने जोड़ीदार के साथ नाच रही थी। वह आदमी सरोज की कमर को मसलते हुए उसके होंठों को चूस रहा था। रजनी हैरान थी—क्या सरोज को डर नहीं कि उसका पति यहीं है? क्या नीलेश को यह दिखाई नहीं दे रहा?रजनी ने यह सवाल मन में सोचा और नीलेश की ओर देखा, जो उसे ही देख रहा था। इस बार जैसे ही उनकी आँखें मिलीं, नीलेश ने अपने होंठों को उसके होंठों से मिला दिया। रजनी का पूरा बदन सिहर उठा, मानो बिजली दौड़ गई हो। नीलेश ने उसे संभलने का मौका नहीं दिया और उसके होंठों का रस चूसने लगा। रजनी उत्तेजना, नशा, और इस खुले माहौल से जूझ रही थी। उसके पति दिलीप ने कभी ऐसा प्यार नहीं किया था—उसने कब रजनी को कभी प्यार से चूमा भी था उसे याद भी नहीं। यहाँ नीलेश उसे प्यार से चूम रहा था, और ये सब कारणों से उसका विरोध टूटने लगा। उसके होंठों ने भी नीलेश का साथ देना शुरू कर दिया, और वह एक गहरे चुम्बन में डूब गई। उसकी आँखें बंद हो गईं।

रजनी को अपने बदन पर नीलेश के हाथों का फिरना और मसला जाना महसूस हो रहा था—कभी कमर पर, तो कभी नंगी पीठ पर।

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उसे महसूस भी नहीं हुआ कि नीलेश ने उसके ब्लाउज़ की डोरी पीछे से कब खोल दी। सब कुछ धुंधला सा होने लगा। उसे आभास हुआ कि नीलेश उसे कहीं ले जा रहा है, लेकिन वह इतनी मग्न थी कि आँखें तक नहीं खोली। कुछ पल बाद बदन में उठती तरंगों की वजह से उसने आँखें खोली, तो खुद को एक सोफे पर लेटा पाया। उसका ब्लाउज़ पूरा खुला था, और उसकी दोनों मोटी चूचियाँ बाहर थीं। नीलेश उन्हें मसल रहा था। यह देखकर रजनी की आह निकल गई।

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नीलेश ने फिर अपना सिर झुकाया और उसकी एक चूची को मुंह में भर लिया, रजनी आहें भरने लगी उसकी आँखें फिर से आनंद में बंद हो गईं। रजनी के हाथ अपने आप नीलेश के सिर पर कस गए।
नीलेश ने बदल-बदलकर उसकी चूचियों को चूसा और मसला, फिर नीचे सरकते हुए उसके पेट और नाभि को चाटने-चूमने लगा। रजनी उसकी हरकतों से मचलने लगी। नीलेश की जीभ उसकी नाभि को चूसने लगी, और रजनी का पूरा बदन ऐंठने लगा। उत्तेजना का फायदा उठाकर नीलेश ने उसकी साड़ी और पेटीकोट खोल दिए। रजनी का कामुक बदन अब पूरी तरह नंगा था। नाभि चाटने के बाद नीलेश और नीचे सरका और अपना मुंह उसकी चूत पर लगा दिया। यह रजनी के लिए असहनीय था—उसे पता भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है। पेशाब की जगह पर किसी का मुंह? लेकिन नीलेश की जीभ ने उसकी चूत पर ऐसा जादू चलाया कि रजनी को ऐसा आनंद मिला वो सिसकने लगी

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उसकी हाथ नीलेश के सिर को चूत पर झुकाने लगे, जो उसने कभी महसूस नहीं किया था।

वह लेटी हुई मचल रही थी, उसकी कमर नीलेश की जीभ के साथ झटके खा रही थी। फिर उसका पूरा बदन अकड़ गया, उसकी कमर धनुष की तरह तन गई, और वह झड़ने लगी। उसे लगा मानो उसके बदन से सारी जान चूत के रास्ते से नीलेश चूस रहा हो। झड़कर वह वापस सोफे पर गिर गई, आँखें बंद हो गईं, और वह हाँफने लगी।कुछ पल बाद उसकी नींद खुली, जब चूत में उसे फिर से एक सनसनी हुई। उसने आँखें खोली और देखा कि नीलेश का काला, मोटा, और लंबा लंड उसकी चूत में थोड़ा सा घुसा हुआ था। रजनी का दिल जोरों से धड़कने लगा। नीलेश ने उसकी टांगें फैलाईं और धीरे-धीरे अपने लंड को अंदर धकेलने लगा। रजनी की साँसें तेज हो गईं, और वह एक नए आनंद और डर के बीच झूलने लगी।


जैसे-जैसे नीलेश का मोटा और लंबा लंड रजनी की चूत में घुस रहा था, उसकी चूत को फैलाता हुआ, रजनी के बदन में एक अनजाना आनंद दौड़ रहा था। दिलीप की तुलना में नीलेश का लंड कहीं ज्यादा मोटा और लंबा था, जो रजनी की चूत को चीरते हुए अंदर तक पहुँच रहा था। नीलेश ने एक-दो जोरदार धक्के मारे और अपना पूरा लंड उसकी चूत में धकेल दिया। रजनी को पहली बार अपनी चूत में इतनी गहराई तक लंड का एहसास हुआ। वह नशीली आँखों से नीलेश को देख रही थी, मानो उसका शरीर अब उसके काबू से बाहर हो चुका हो।



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नीलेश ने रजनी की कमर को थामते हुए धक्के लगाना शुरू किया और गंदी हंसी के साथ बोला, "आह साली, क्या गरम चूत है तेरी!" रजनी अब पूरी तरह उसके हाथों की गुड़िया बन चुकी थी। हर धक्के के साथ उसकी मोटी चूचियाँ नाच रही थीं जिन्हें नीलेश अपने रूखे हाथों में मसल रहा था, रजनी मजे से आहें भर रही थी नीलेश का लंड उसे वह सुख दे रहा था, जिसकी कल्पना उसने कभी नहीं की थी। उसका बदन आनंद के सागर में गोते लगा रहा था, और वह अपनी सुध-बुध खो बैठी। धीरे-धीरे सब कुछ धुंधला पड़ने लगा; उसे बस इतना आभास था कि एक मोटा-लंबा लंड उसकी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। नीलेश की चुदाई से रजनी एक बार फिर झड़ने लगी, और फिर तो मानो वह बेहोश हो गई। उसका बदन थरथराता हुआ सोफे पर ढह गया, और नीलेश ने भी अपनी संतुष्टि पा ली।

सुबह की पहली किरणें सज्जनपुर के घरों में दस्तक दे रही थीं, लेकिन रजनी के घर में चिंता का माहौल था। बच्चे परेशान थे कि उनकी माँ अब तक क्यों नहीं लौटी। विक्रम ने सोनू से पूछा, "सोनू, माँ ने कब तक आने को कहा था?"
सोनू ने चिंतित स्वर में कहा, "कहा तो सुबह ही था भैया, लेकिन अब तक आई ही नहीं।"
नेहा ने घबराते हुए कहा, "मुझे तो चिंता हो रही है। वैसे भी मुझे ये हवेली वाले लोग पहले ही नहीं पसंद थे।"
सोनू ने हिम्मत जुटाते हुए कहा, "दीदी, चिंता मत करो। मैं हवेली जाता हूँ अभी।"
विक्रम ने सहमति में सिर हिलाया, "हाँ जा, और देख कर आ—कोई परेशानी तो नहीं।"सोनू घर से निकल पड़ा और कुछ ही देर में हवेली के फाटक पर पहुँच गया। वह अब तक हवेली के अंदर कभी नहीं गया था; उसका काम हमेशा बाहर के बगीचे में रहता था। आज भी वह दरवाजे पर पहुँचा और वहाँ बैठे दरबान से बोला, "चाचा, अंदर आवाज़ लगा दो, मेरी माँ अंदर ही हैं।"
दरबान कुछ बोलने से पहले ही कर्मा अंदर से बाहर निकला और बोला, "अरे सोनू, क्या हुआ?"
सोनू ने घबराते हुए कहा, "वो कर्मा भैया, माँ रात में यहाँ रुकी थीं, और अभी तक घर नहीं पहुँची।"
कर्मा ने बनावटी चिंता दिखाते हुए कहा, "अरे, वो रात का प्रोग्राम देर तक चला, तो शायद सो रही होंगी। एक काम कर, अंदर जा और उठा ले।"
सोनू ने हिचकते हुए कहा, "पर मैं कैसे ढूंढूँगा उन्हें भैया, इतनी बड़ी हवेली में?"
कर्मा ने हँसते हुए कहा, "अरे, मैं चलता हूँ, आजा।"कर्मा उसे हवेली के अंदर ले गया। अंदर की शान—चमकते संगमरमर के फर्श, ऊँची दीवारें, और सजे हुए कमरे—देखकर सोनू चकित रह गया। कर्मा उसे आंगन में ले जाकर बोला, "देख, वो जो सीढ़ियाँ हैं, उनसे ऊपर जा। सीधे हाथ पर जो कमरा है, न, वहाँ चाची होंगी।"
सोनू ने कहा, "ठीक है भैया," और आगे बढ़ गया। सीढ़ियों से ऊपर पहुँचकर वह कर्मा के बताए कमरे के पास गया। उसने धीरे से दरवाजा खोला और अंदर झाँका। सामने का नजारा देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं, और उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।

बिस्तर पर उसकी माँ रजनी बिल्कुल नंगी लेटी हुई थी। सिर्फ इतना ही नहीं, उसके बगल में नीलेश भी पूरी तरह नंगा था। रजनी का सिर नीलेश की छाती पर था, और उसका हाथ उसके पेट पर रखा था। सोनू के सामने उसकी माँ का पूरा बदन नंगा था—उसकी मोटी-मोटी चूचियाँ, बड़े-बड़े गोल-मटोल चूतड़, और जांघों के बीच से उसकी चूत की दरार साफ दिख रही थी। सोनू स्तब्ध सा वहीं रुक गया। उसके दिमाग ने मानो काम करना बंद कर दिया था। कुछ पल बाद नीलेश ने हल्की सी हरकत की, और सोनू के बदन में भी हरकत हुई। वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया, दिल धड़कते हुए और आँखों में आंसुओं के साथ।

सोनू सीढ़ियों से नीचे उतरा, और उसका चेहरा पीला पड़ गया था। कर्मा ने उसे देखते ही पूछा, "क्या हुआ सोनू, चाची मिलीं?"
सोनू ने सिर झुकाए रखा और बोला, "हाँ भैया, मिल गईं... मैं अब घर चलता हूँ।"
कर्मा ने मुस्कुराते हुए उसे देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। सोनू हवेली से बाहर निकला और तेज कदमों से घर की ओर चल पड़ा। उसके मन में सवालों का तूफान था।
सोनू के कदम भारी होकर आगे बढ़ रहे थे, उसकी आँखें भर कर छलक रही थीं, उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, उसकी मां इस हालत में नीलेश के साथ, क्या उसने मां के साथ कोई जबरदस्ती की, पर मां तो कितने आराम से उसके सीने पर सिर रख कर सो रही थी, तो क्या मां ने ये सब जान कर किया, नहीं नहीं मां ऐसा नहीं कर सकती जरूर इसमें नीलेश की कोई साजिश है पर कैसे पता चलेगा, क्या मां से पूछूं इस बारे में, पर मैं उनसे ये सब कैसे पूछ सकता हूं, ये सब सोचते हुए वो हवेली से बाहर निकला उसे समझ नहीं आ रहा था घर कैसे जाए और क्या बोले।
तभी पीछे से किसी ने उसे आवाज़ दी।


सोनू के जाते ही रजनी की नींद खुली और उसे कुछ पल लगे ये समझने में कि वो कहां है क्या है, उसने अपने आप को नंगा पाया तो उसका दिल धक धक करने लगा, फिर बगल में नीलेश को भी नंगा सोते देख उसको एक झटका सा लगा वो तुरंत उठ कर खड़ी हो गई, और बिस्तर के नीचे पड़ी अपनी साड़ी से खुद को ढकने लगी, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, उसे खुद पर और नीलेश पर बहुत गुस्सा आ रहा था,
इतने में नीलेश भी उठा और उसे देख मुस्कुराते हुए बोला: उठ गई रजनी?
रजनी तो कुछ बोलने लायक नहीं थी बस वहीं बैठ कर रोने लगी, नीलेश नंगा ही उठा और उसके पास आ कर उसकी पीठ पर हाथ रखा तो रजनी ने उसे झटक दिया।
नीलेश: अरे दुखी क्यों होती हो, इतना तो मज़ा आया, तुम्हारे जैसी औरत बहुत कम होती हैं।
रजनी कुछ नहीं बोली,
नीलेश: तुम्हारे जैसा बदन भोग कर तो मैं खुद को भाग्य वाला मान रहा हूं, और तुम हो कि रो रही हो, किस के लिए? दिलीप के लिए, जिसने तुम्हें सिवाय दुख के कुछ नहीं दिया, सिवाय पीड़ा और बरबादी के कुछ नहीं मिला तुम्हें अब तक।
नीलेश ने उसके आंसू पोंछते हुए कहा,
रजनी ने एक बार नज़र उठाकर देखा और फिर नीचे कर ली,
नीलेश ने उसे इस बार कंधे से पकड़ कर उठाया और बिस्तर पर बिठा दिया, रजनी भी बिना विरोध के बैठ गई, नीलेश उसके बगल में बैठ गया,
नीलेश: देखो मैं जानता हूं तुम्हें मैं गलत लग रहा होऊंगा, मेरी बातें गलत लग रही होंगी, पर एक बार इमानदारी से अपने मन से पूछ कर देखो, क्या तुम्हें अच्छा नहीं लगा जो रात को हुआ हमारे बीच,क्या तुम्हें आनंद नहीं आया?
रजनी कुछ देर चुप रही फिर दबी हुई आवाज़ में बोली: मुझे अच्छा लगा या नहीं इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, जो हुआ बहुत गलत हुआ।
नीलेश: अच्छा अगर हम दोनों को अच्छा लगा तो ये गलत कैसे हुआ?
रजनी: हमारे समाज के लिए गलत है, मेरी मर्यादा, मेरे संस्कारो के अनुसार गलत है, महापाप है।
नीलेश: बहुत अच्छी हो तुम, हमेशा मर्यादा में रहने वाली, संस्कारों को मानने वाली, पर एक बात बताओ इन संस्कारों ने आज तक तुम्हें दिया क्या? क्या मर्यादा ने तुम्हारे दुख को कम किया? या ये समाज तुम्हारी मुसीबत में काम आया? ऊपर से बढ़ाई ही हैं।
रजनी ये सब सुन कर चुप हो गई और सोचने लगी, कुछ देर की चुप्पी के बाद नीलेश बोला: देखो मैंने अपने मन की बात तुम्हारे सामने रख दी, अब फैसला तुम्हारे सामने है, तुम्हें अपने और अपने परिवार के लिए जीना है या मर्यादा, संस्कार और समाज के लिए। जो तुम्हारा फैसला होगा मुझे मंजूर होगा, बिना तुम्हारी मर्ज़ी के मैं तुम्हें स्पर्श भी नहीं करूंगा।
रजनी मुंह झुकाए चुप बैठी रही, नीलेश उठा और उठ कर कमरे से सटे हुए बाथरूम में नंगा ही घुस गया, शौच आदि करके जब बाहर निकला और बिस्तर पर देखा तो हैरान हो गया और उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई, रजनी ने अपनी साड़ी को फिर से अपने बदन से अलग कर दिया था और नंगी बिस्तर पर लेटी हुई थी, हालांकि उसके चेहरे पर अब भी झिझक और शर्म दिखाई दे रही थी,
नीलेश अपने अकड़ते हुए लंड को लेकर आगे बढ़ा, नीलेश ने फिर अगले एक दो घंटों तक रजनी को कामसुख के कई नए पाठ पढ़ाए, रजनी ने पहली बार लंड चूसा और हैरानी की बात ये थी कि उसे लंड को चूसना अच्छा भी लगा, शुरुआत में झिझक हुई और थोड़ी घिन भी आई पर जब चूसने लगी तो उसेदेख नीलेश भी हैरान रह गया, वो तो ऐसे चूस रही थी मानो इसमें निपुण हो।

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नीलेश: आह रजनी क्या कमाल की औरत हो तुम, लग ही नहीं रहा पहली बार लंड चूस रही हो।
रजनी को न जाने क्या हो गया था उसे लग रहा था जितना मज़ा वो नीलेश को दे उतना अच्छा है, उसके लंड चूसते हुए नीलेश की सिसकियों को सुनते हुए रजनी को एक ताकत और नियंत्रण का अहसास हो रहा था,
कुछ देर बाद नीलेश ने उसे एक नया आसन सिखाया जिसमें रजनी नीलेश के लंड को अपनी चूत में लेकर उछल रही थी,

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नीलेश: आह साली ऐसे ही उछाल अपने चूतड़ों को मेरे लौड़े पर, आह क्या मस्त गरम चूत है तेरी,
नीलेश नीचे से धक्का लगाते हुए बोला,
रजनी भी आह आह मां, करके सिसकियां ले रही थी,
रजनी के लिए जैसे अब एक ही लक्ष्य था, अपने बदन से नीलेश को खुश करना और अभी वो वही कर रही थी,
नीलेश: आह तेरे जैसी कामूक औरत बहुत कम होती हैं मेरी रानी,
रजनी: आह ओह तुम्हारा ये भी बहुत मोटा है साहब।
इसी बीच कमरे का दरवाज़ा खुला और बिमला जिसे रात को सोमपाल के साथ चुदाई करते हुए रजनी ने देखा था वो चाय के दो कप लेकर अन्दर घुसी, बिमला ने बिस्तर पर देखा और रजनी की नज़र भी बिमला से मिली, बिमला उसे देख मुस्कुराई तो रजनी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई,
बिमला ने चाय रखी और बापिस चली गई। इस बीच रजनी ने एक पल भी खुद को नहीं रोका था और लगातार अपने चूतड़ों को लंड पर पटक रही थी।
रजनी को खुलता देख नीलेश को भी खुशी हो रही थी, कुछ देर यूं ही चुदाई चली नीलेश ने फिर से आसन बदला और उसके पीछे से उसे चोदने लगे और इस बार तो नीलेश ने रजनी के पीछे जगह ली और फिर उसे सीधा कर उसकी चूचियों को थाम कर चोदने लगा,
रजनी की चूत में उसका लंड अंदर तक वार कर रहा था और रजनी के मुंह से कामुक आहें निकल रही थी

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कुछ पल बाद ही कामुक आहें उत्तेजना की चीखों में बदल गईं और रजनी झड़ने लगी, पर इस बार नीलेश भी उसके साथ झड़ा और उसकी चूत को अपने रस से भर दिया।

दोनों शांत होकर एक दूसरे के बगल में लेट गए, रजनी लेटकर छत की ओर देखकर सोच में पड़ गई, वो जानती थी उसकी जिंदगी अब पूरी तरह बदलने वाली थी।

जारी रहेगी।
बहुत ही गरमागरम कामुक और जबरदस्त अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 

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रात का अंधेरा सज्जनपुर गांव को ढक चुका था, और हवेली के अंदर का माहौल अब पूरी तरह रंगीन और उन्मुक्त हो चुका था। गंगा की ठंडी हवा बाहर बह रही थी, लेकिन हवेली के भीतर शराब, संगीत, और हवस की गर्मी हावी थी।
रजनी, जो इस अनजान दुनिया में कदम रख चुकी थी, अब एक ऐसे मोड़ पर थी जहां उसकी मर्यादा और मजबूरी के बीच एक पतली रेखा बची थी।
कर्मा ने रजनी को अपने हाथों से पकड़ रखा था, और उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे रजनी की नाभि के चारों ओर मंडरा रही थीं। रजनी का शरीर काँप रहा था, और नशे की हालत में उसका विरोध कमजोर पड़ चुका था।

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वह डरी हुई आवाज़ में बोली, "बेटा, छोड़ दो मुझे, ये ठीक नहीं है।" उसकी आवाज़ में लाचारी और डर साफ झलक रहा था, लेकिन कर्मा ने हल्का सा हँसते हुए कहा, "अरे चाची, डर क्यों रही हो? मैं तो बस तुम्हें सहारा दे रहा हूँ—तुम तो लड़खड़ा रही हो।"
उसकी बातों में एक चालाकी थी, जो रजनी को और असहज कर रही थी।रजनी ने अपने पल्लू को फिर से सिर पर खींचने की कोशिश की, लेकिन कर्मा का हाथ उसके मखमली पेट पर और कस गया। तभी सरोज की आवाज़ गूंजी, "रजनी, कहाँ हो? मेहमान बुला रहे हैं!" कर्मा ने तुरंत हाथ हटा लिया और पीछे हट गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। रजनी ने राहत की सांस ली और जल्दी से सरोज की ओर बढ़ गई।
सरोज ने उसे देखा और बोली, "अरे, तुम्हारा पल्लू तो नीचे है—सुधार लो, वरना मेहमानों की नजरें और चढ़ जाएँगी!" रजनी ने शर्माते हुए पल्लू ठीक किया और सरोज के पीछे चल पड़ी, मन में एक अजीब सा डर लिए।

अब सब औरतें भी नीचे मर्दों के पास पहुँच गईं। सब नशे में डूबे थे—औरत हो या मर्द। तभी एक मेहमान ने जोर से कहा, "यार नीलेश, कुछ नाच-गाने का प्रोग्राम नहीं है क्या?"
नीलेश, जो शराब के नशे में अपनी नशीली आँखों से सबको देख रहा था, हँसते हुए बोला, "अरे ऐसे कैसे नहीं है, अभी करवाता हूँ!" उसने नौकरों को इशारा किया, और तुरंत ही आंगन को साफ कर दिया गया। मेज-पट्टियाँ हटाई गईं, और एक स्पीकर पर मधुर लेकिन उत्तेजक संगीत बजने लगा।

संगीत की पहली धुन के साथ ही एक मेहमान ने सरोज की ओर हाथ बढ़ाया। सरोज मुस्कुराते हुए उठ गई और उस आदमी के साथ नाचने लगी। दोनों चिपककर नाच रहे थे—उस आदमी का हाथ सरोज की कमर पर था, और वे एक-दूसरे के करीब थे। रजनी को यह अजीब लगा, क्योंकि पराए मर्द के साथ ऐसे चिपककर नाचना उसकी मर्यादा से बाहर था। लेकिन उसके बदन में एक अनजानी सिहरन भी दौड़ रही थी, और बार-बार उसकी आँखों के सामने सोमपाल और बिमला का अंतरंग दृश्य कौंध रहा था।धीरे-धीरे और लोग भी उठने लगे और नाचने लगे। सभी औरतें अपने-अपने जोड़ों के साथ झूम रही थीं, लेकिन रजनी बस खड़ी होकर सब देख रही थी। तभी उसने एक ओर देखा—कोई उसे घूर रहा था। उसकी नजर कुर्सी पर बैठे नीलेश से टकराई, जो हाथ में गिलास लिए नशीली नजरों और कामुक मुस्कान के साथ उसे देख रहा था। रजनी की साँसें तेज हो गईं। नीलेश ने अपना गिलास एक ओर रखा और उसकी ओर बढ़ने लगा।

रजनी का दिल धड़कने लगा, लेकिन वह हिल भी नहीं सकी। नीलेश धीरे-धीरे उसके पास आया और वैसे ही हाथ बढ़ाया जैसे बाकी मर्द औरतों को नाचने के लिए बुला रहे थे। न जाने यह माहौल का असर था या नशे का, लेकिन रजनी कुछ सोच ही नहीं पाई। उसका हाथ अपने आप उठकर नीलेश के हाथ में पहुँच गया। नीलेश ने उसे पकड़कर सबके बीच में ले गया और फिर उसे अपनी ओर घुमाया। उसका हाथ रजनी की कमर पर रखा, और उस छुअन से रजनी के बदन में सिहरन दौड़ गई।

रजनी को सब कुछ होता हुआ महसूस हो रहा था—यह गलत था, लेकिन वह खुद को रोक नहीं पा रही थी। नीलेश उसे लेकर धीरे-धीरे हिलने लगा, और उसके हाथ रजनी की कमर और पीठ पर फिराने लगे। सरोज का ब्लाउज़, जो पीछे से खुला था, नीलेश के हाथों को रजनी की नंगी पीठ पर घूमने का मौका दे रहा था। रजनी के मन में उत्तेजना, नशा, और मर्यादा के बीच जंग छिड़ गई थी।

नीलेश रजनी के गदराए बदन को अपने हाथों से नाप रहा था। उसने रजनी की कमर को मसला, और रजनी ने ऊपर उसकी आँखों में देखा। नीलेश ने उसकी आँखों में देखते हुए अपना चेहरा रजनी के चेहरे की ओर बढ़ाया। रजनी का दिल और तेज धड़कने लगा।

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नीलेश के होंठ उसके होंठों के पास आए, और रजनी ने तुरंत अपना चेहरा एक ओर कर लिया। उसकी नजर दूसरों पर पड़ी—कई जोड़े एक-दूसरे को चूम रहे थे, किसी की कमर मसली जा रही थी।

फिर उसकी नजर सरोज पर गई, जो अपने जोड़ीदार के साथ नाच रही थी। वह आदमी सरोज की कमर को मसलते हुए उसके होंठों को चूस रहा था। रजनी हैरान थी—क्या सरोज को डर नहीं कि उसका पति यहीं है? क्या नीलेश को यह दिखाई नहीं दे रहा?रजनी ने यह सवाल मन में सोचा और नीलेश की ओर देखा, जो उसे ही देख रहा था। इस बार जैसे ही उनकी आँखें मिलीं, नीलेश ने अपने होंठों को उसके होंठों से मिला दिया। रजनी का पूरा बदन सिहर उठा, मानो बिजली दौड़ गई हो। नीलेश ने उसे संभलने का मौका नहीं दिया और उसके होंठों का रस चूसने लगा। रजनी उत्तेजना, नशा, और इस खुले माहौल से जूझ रही थी। उसके पति दिलीप ने कभी ऐसा प्यार नहीं किया था—उसने कब रजनी को कभी प्यार से चूमा भी था उसे याद भी नहीं। यहाँ नीलेश उसे प्यार से चूम रहा था, और ये सब कारणों से उसका विरोध टूटने लगा। उसके होंठों ने भी नीलेश का साथ देना शुरू कर दिया, और वह एक गहरे चुम्बन में डूब गई। उसकी आँखें बंद हो गईं।

रजनी को अपने बदन पर नीलेश के हाथों का फिरना और मसला जाना महसूस हो रहा था—कभी कमर पर, तो कभी नंगी पीठ पर।

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उसे महसूस भी नहीं हुआ कि नीलेश ने उसके ब्लाउज़ की डोरी पीछे से कब खोल दी। सब कुछ धुंधला सा होने लगा। उसे आभास हुआ कि नीलेश उसे कहीं ले जा रहा है, लेकिन वह इतनी मग्न थी कि आँखें तक नहीं खोली। कुछ पल बाद बदन में उठती तरंगों की वजह से उसने आँखें खोली, तो खुद को एक सोफे पर लेटा पाया। उसका ब्लाउज़ पूरा खुला था, और उसकी दोनों मोटी चूचियाँ बाहर थीं। नीलेश उन्हें मसल रहा था। यह देखकर रजनी की आह निकल गई।

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नीलेश ने फिर अपना सिर झुकाया और उसकी एक चूची को मुंह में भर लिया, रजनी आहें भरने लगी उसकी आँखें फिर से आनंद में बंद हो गईं। रजनी के हाथ अपने आप नीलेश के सिर पर कस गए।
नीलेश ने बदल-बदलकर उसकी चूचियों को चूसा और मसला, फिर नीचे सरकते हुए उसके पेट और नाभि को चाटने-चूमने लगा। रजनी उसकी हरकतों से मचलने लगी। नीलेश की जीभ उसकी नाभि को चूसने लगी, और रजनी का पूरा बदन ऐंठने लगा। उत्तेजना का फायदा उठाकर नीलेश ने उसकी साड़ी और पेटीकोट खोल दिए। रजनी का कामुक बदन अब पूरी तरह नंगा था। नाभि चाटने के बाद नीलेश और नीचे सरका और अपना मुंह उसकी चूत पर लगा दिया। यह रजनी के लिए असहनीय था—उसे पता भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है। पेशाब की जगह पर किसी का मुंह? लेकिन नीलेश की जीभ ने उसकी चूत पर ऐसा जादू चलाया कि रजनी को ऐसा आनंद मिला वो सिसकने लगी

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उसकी हाथ नीलेश के सिर को चूत पर झुकाने लगे, जो उसने कभी महसूस नहीं किया था।

वह लेटी हुई मचल रही थी, उसकी कमर नीलेश की जीभ के साथ झटके खा रही थी। फिर उसका पूरा बदन अकड़ गया, उसकी कमर धनुष की तरह तन गई, और वह झड़ने लगी। उसे लगा मानो उसके बदन से सारी जान चूत के रास्ते से नीलेश चूस रहा हो। झड़कर वह वापस सोफे पर गिर गई, आँखें बंद हो गईं, और वह हाँफने लगी।कुछ पल बाद उसकी नींद खुली, जब चूत में उसे फिर से एक सनसनी हुई। उसने आँखें खोली और देखा कि नीलेश का काला, मोटा, और लंबा लंड उसकी चूत में थोड़ा सा घुसा हुआ था। रजनी का दिल जोरों से धड़कने लगा। नीलेश ने उसकी टांगें फैलाईं और धीरे-धीरे अपने लंड को अंदर धकेलने लगा। रजनी की साँसें तेज हो गईं, और वह एक नए आनंद और डर के बीच झूलने लगी।


जैसे-जैसे नीलेश का मोटा और लंबा लंड रजनी की चूत में घुस रहा था, उसकी चूत को फैलाता हुआ, रजनी के बदन में एक अनजाना आनंद दौड़ रहा था। दिलीप की तुलना में नीलेश का लंड कहीं ज्यादा मोटा और लंबा था, जो रजनी की चूत को चीरते हुए अंदर तक पहुँच रहा था। नीलेश ने एक-दो जोरदार धक्के मारे और अपना पूरा लंड उसकी चूत में धकेल दिया। रजनी को पहली बार अपनी चूत में इतनी गहराई तक लंड का एहसास हुआ। वह नशीली आँखों से नीलेश को देख रही थी, मानो उसका शरीर अब उसके काबू से बाहर हो चुका हो।



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नीलेश ने रजनी की कमर को थामते हुए धक्के लगाना शुरू किया और गंदी हंसी के साथ बोला, "आह साली, क्या गरम चूत है तेरी!" रजनी अब पूरी तरह उसके हाथों की गुड़िया बन चुकी थी। हर धक्के के साथ उसकी मोटी चूचियाँ नाच रही थीं जिन्हें नीलेश अपने रूखे हाथों में मसल रहा था, रजनी मजे से आहें भर रही थी नीलेश का लंड उसे वह सुख दे रहा था, जिसकी कल्पना उसने कभी नहीं की थी। उसका बदन आनंद के सागर में गोते लगा रहा था, और वह अपनी सुध-बुध खो बैठी। धीरे-धीरे सब कुछ धुंधला पड़ने लगा; उसे बस इतना आभास था कि एक मोटा-लंबा लंड उसकी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। नीलेश की चुदाई से रजनी एक बार फिर झड़ने लगी, और फिर तो मानो वह बेहोश हो गई। उसका बदन थरथराता हुआ सोफे पर ढह गया, और नीलेश ने भी अपनी संतुष्टि पा ली।

सुबह की पहली किरणें सज्जनपुर के घरों में दस्तक दे रही थीं, लेकिन रजनी के घर में चिंता का माहौल था। बच्चे परेशान थे कि उनकी माँ अब तक क्यों नहीं लौटी। विक्रम ने सोनू से पूछा, "सोनू, माँ ने कब तक आने को कहा था?"
सोनू ने चिंतित स्वर में कहा, "कहा तो सुबह ही था भैया, लेकिन अब तक आई ही नहीं।"
नेहा ने घबराते हुए कहा, "मुझे तो चिंता हो रही है। वैसे भी मुझे ये हवेली वाले लोग पहले ही नहीं पसंद थे।"
सोनू ने हिम्मत जुटाते हुए कहा, "दीदी, चिंता मत करो। मैं हवेली जाता हूँ अभी।"
विक्रम ने सहमति में सिर हिलाया, "हाँ जा, और देख कर आ—कोई परेशानी तो नहीं।"सोनू घर से निकल पड़ा और कुछ ही देर में हवेली के फाटक पर पहुँच गया। वह अब तक हवेली के अंदर कभी नहीं गया था; उसका काम हमेशा बाहर के बगीचे में रहता था। आज भी वह दरवाजे पर पहुँचा और वहाँ बैठे दरबान से बोला, "चाचा, अंदर आवाज़ लगा दो, मेरी माँ अंदर ही हैं।"
दरबान कुछ बोलने से पहले ही कर्मा अंदर से बाहर निकला और बोला, "अरे सोनू, क्या हुआ?"
सोनू ने घबराते हुए कहा, "वो कर्मा भैया, माँ रात में यहाँ रुकी थीं, और अभी तक घर नहीं पहुँची।"
कर्मा ने बनावटी चिंता दिखाते हुए कहा, "अरे, वो रात का प्रोग्राम देर तक चला, तो शायद सो रही होंगी। एक काम कर, अंदर जा और उठा ले।"
सोनू ने हिचकते हुए कहा, "पर मैं कैसे ढूंढूँगा उन्हें भैया, इतनी बड़ी हवेली में?"
कर्मा ने हँसते हुए कहा, "अरे, मैं चलता हूँ, आजा।"कर्मा उसे हवेली के अंदर ले गया। अंदर की शान—चमकते संगमरमर के फर्श, ऊँची दीवारें, और सजे हुए कमरे—देखकर सोनू चकित रह गया। कर्मा उसे आंगन में ले जाकर बोला, "देख, वो जो सीढ़ियाँ हैं, उनसे ऊपर जा। सीधे हाथ पर जो कमरा है, न, वहाँ चाची होंगी।"
सोनू ने कहा, "ठीक है भैया," और आगे बढ़ गया। सीढ़ियों से ऊपर पहुँचकर वह कर्मा के बताए कमरे के पास गया। उसने धीरे से दरवाजा खोला और अंदर झाँका। सामने का नजारा देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं, और उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।

बिस्तर पर उसकी माँ रजनी बिल्कुल नंगी लेटी हुई थी। सिर्फ इतना ही नहीं, उसके बगल में नीलेश भी पूरी तरह नंगा था। रजनी का सिर नीलेश की छाती पर था, और उसका हाथ उसके पेट पर रखा था। सोनू के सामने उसकी माँ का पूरा बदन नंगा था—उसकी मोटी-मोटी चूचियाँ, बड़े-बड़े गोल-मटोल चूतड़, और जांघों के बीच से उसकी चूत की दरार साफ दिख रही थी। सोनू स्तब्ध सा वहीं रुक गया। उसके दिमाग ने मानो काम करना बंद कर दिया था। कुछ पल बाद नीलेश ने हल्की सी हरकत की, और सोनू के बदन में भी हरकत हुई। वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया, दिल धड़कते हुए और आँखों में आंसुओं के साथ।

सोनू सीढ़ियों से नीचे उतरा, और उसका चेहरा पीला पड़ गया था। कर्मा ने उसे देखते ही पूछा, "क्या हुआ सोनू, चाची मिलीं?"
सोनू ने सिर झुकाए रखा और बोला, "हाँ भैया, मिल गईं... मैं अब घर चलता हूँ।"
कर्मा ने मुस्कुराते हुए उसे देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। सोनू हवेली से बाहर निकला और तेज कदमों से घर की ओर चल पड़ा। उसके मन में सवालों का तूफान था।
सोनू के कदम भारी होकर आगे बढ़ रहे थे, उसकी आँखें भर कर छलक रही थीं, उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, उसकी मां इस हालत में नीलेश के साथ, क्या उसने मां के साथ कोई जबरदस्ती की, पर मां तो कितने आराम से उसके सीने पर सिर रख कर सो रही थी, तो क्या मां ने ये सब जान कर किया, नहीं नहीं मां ऐसा नहीं कर सकती जरूर इसमें नीलेश की कोई साजिश है पर कैसे पता चलेगा, क्या मां से पूछूं इस बारे में, पर मैं उनसे ये सब कैसे पूछ सकता हूं, ये सब सोचते हुए वो हवेली से बाहर निकला उसे समझ नहीं आ रहा था घर कैसे जाए और क्या बोले।
तभी पीछे से किसी ने उसे आवाज़ दी।


सोनू के जाते ही रजनी की नींद खुली और उसे कुछ पल लगे ये समझने में कि वो कहां है क्या है, उसने अपने आप को नंगा पाया तो उसका दिल धक धक करने लगा, फिर बगल में नीलेश को भी नंगा सोते देख उसको एक झटका सा लगा वो तुरंत उठ कर खड़ी हो गई, और बिस्तर के नीचे पड़ी अपनी साड़ी से खुद को ढकने लगी, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, उसे खुद पर और नीलेश पर बहुत गुस्सा आ रहा था,
इतने में नीलेश भी उठा और उसे देख मुस्कुराते हुए बोला: उठ गई रजनी?
रजनी तो कुछ बोलने लायक नहीं थी बस वहीं बैठ कर रोने लगी, नीलेश नंगा ही उठा और उसके पास आ कर उसकी पीठ पर हाथ रखा तो रजनी ने उसे झटक दिया।
नीलेश: अरे दुखी क्यों होती हो, इतना तो मज़ा आया, तुम्हारे जैसी औरत बहुत कम होती हैं।
रजनी कुछ नहीं बोली,
नीलेश: तुम्हारे जैसा बदन भोग कर तो मैं खुद को भाग्य वाला मान रहा हूं, और तुम हो कि रो रही हो, किस के लिए? दिलीप के लिए, जिसने तुम्हें सिवाय दुख के कुछ नहीं दिया, सिवाय पीड़ा और बरबादी के कुछ नहीं मिला तुम्हें अब तक।
नीलेश ने उसके आंसू पोंछते हुए कहा,
रजनी ने एक बार नज़र उठाकर देखा और फिर नीचे कर ली,
नीलेश ने उसे इस बार कंधे से पकड़ कर उठाया और बिस्तर पर बिठा दिया, रजनी भी बिना विरोध के बैठ गई, नीलेश उसके बगल में बैठ गया,
नीलेश: देखो मैं जानता हूं तुम्हें मैं गलत लग रहा होऊंगा, मेरी बातें गलत लग रही होंगी, पर एक बार इमानदारी से अपने मन से पूछ कर देखो, क्या तुम्हें अच्छा नहीं लगा जो रात को हुआ हमारे बीच,क्या तुम्हें आनंद नहीं आया?
रजनी कुछ देर चुप रही फिर दबी हुई आवाज़ में बोली: मुझे अच्छा लगा या नहीं इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, जो हुआ बहुत गलत हुआ।
नीलेश: अच्छा अगर हम दोनों को अच्छा लगा तो ये गलत कैसे हुआ?
रजनी: हमारे समाज के लिए गलत है, मेरी मर्यादा, मेरे संस्कारो के अनुसार गलत है, महापाप है।
नीलेश: बहुत अच्छी हो तुम, हमेशा मर्यादा में रहने वाली, संस्कारों को मानने वाली, पर एक बात बताओ इन संस्कारों ने आज तक तुम्हें दिया क्या? क्या मर्यादा ने तुम्हारे दुख को कम किया? या ये समाज तुम्हारी मुसीबत में काम आया? ऊपर से बढ़ाई ही हैं।
रजनी ये सब सुन कर चुप हो गई और सोचने लगी, कुछ देर की चुप्पी के बाद नीलेश बोला: देखो मैंने अपने मन की बात तुम्हारे सामने रख दी, अब फैसला तुम्हारे सामने है, तुम्हें अपने और अपने परिवार के लिए जीना है या मर्यादा, संस्कार और समाज के लिए। जो तुम्हारा फैसला होगा मुझे मंजूर होगा, बिना तुम्हारी मर्ज़ी के मैं तुम्हें स्पर्श भी नहीं करूंगा।
रजनी मुंह झुकाए चुप बैठी रही, नीलेश उठा और उठ कर कमरे से सटे हुए बाथरूम में नंगा ही घुस गया, शौच आदि करके जब बाहर निकला और बिस्तर पर देखा तो हैरान हो गया और उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई, रजनी ने अपनी साड़ी को फिर से अपने बदन से अलग कर दिया था और नंगी बिस्तर पर लेटी हुई थी, हालांकि उसके चेहरे पर अब भी झिझक और शर्म दिखाई दे रही थी,
नीलेश अपने अकड़ते हुए लंड को लेकर आगे बढ़ा, नीलेश ने फिर अगले एक दो घंटों तक रजनी को कामसुख के कई नए पाठ पढ़ाए, रजनी ने पहली बार लंड चूसा और हैरानी की बात ये थी कि उसे लंड को चूसना अच्छा भी लगा, शुरुआत में झिझक हुई और थोड़ी घिन भी आई पर जब चूसने लगी तो उसेदेख नीलेश भी हैरान रह गया, वो तो ऐसे चूस रही थी मानो इसमें निपुण हो।

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नीलेश: आह रजनी क्या कमाल की औरत हो तुम, लग ही नहीं रहा पहली बार लंड चूस रही हो।
रजनी को न जाने क्या हो गया था उसे लग रहा था जितना मज़ा वो नीलेश को दे उतना अच्छा है, उसके लंड चूसते हुए नीलेश की सिसकियों को सुनते हुए रजनी को एक ताकत और नियंत्रण का अहसास हो रहा था,
कुछ देर बाद नीलेश ने उसे एक नया आसन सिखाया जिसमें रजनी नीलेश के लंड को अपनी चूत में लेकर उछल रही थी,

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नीलेश: आह साली ऐसे ही उछाल अपने चूतड़ों को मेरे लौड़े पर, आह क्या मस्त गरम चूत है तेरी,
नीलेश नीचे से धक्का लगाते हुए बोला,
रजनी भी आह आह मां, करके सिसकियां ले रही थी,
रजनी के लिए जैसे अब एक ही लक्ष्य था, अपने बदन से नीलेश को खुश करना और अभी वो वही कर रही थी,
नीलेश: आह तेरे जैसी कामूक औरत बहुत कम होती हैं मेरी रानी,
रजनी: आह ओह तुम्हारा ये भी बहुत मोटा है साहब।
इसी बीच कमरे का दरवाज़ा खुला और बिमला जिसे रात को सोमपाल के साथ चुदाई करते हुए रजनी ने देखा था वो चाय के दो कप लेकर अन्दर घुसी, बिमला ने बिस्तर पर देखा और रजनी की नज़र भी बिमला से मिली, बिमला उसे देख मुस्कुराई तो रजनी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई,
बिमला ने चाय रखी और बापिस चली गई। इस बीच रजनी ने एक पल भी खुद को नहीं रोका था और लगातार अपने चूतड़ों को लंड पर पटक रही थी।
रजनी को खुलता देख नीलेश को भी खुशी हो रही थी, कुछ देर यूं ही चुदाई चली नीलेश ने फिर से आसन बदला और उसके पीछे से उसे चोदने लगे और इस बार तो नीलेश ने रजनी के पीछे जगह ली और फिर उसे सीधा कर उसकी चूचियों को थाम कर चोदने लगा,
रजनी की चूत में उसका लंड अंदर तक वार कर रहा था और रजनी के मुंह से कामुक आहें निकल रही थी

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कुछ पल बाद ही कामुक आहें उत्तेजना की चीखों में बदल गईं और रजनी झड़ने लगी, पर इस बार नीलेश भी उसके साथ झड़ा और उसकी चूत को अपने रस से भर दिया।

दोनों शांत होकर एक दूसरे के बगल में लेट गए, रजनी लेटकर छत की ओर देखकर सोच में पड़ गई, वो जानती थी उसकी जिंदगी अब पूरी तरह बदलने वाली थी।

जारी रहेगी।
बहुत ही गरमागरम कामुक और जबरदस्त अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 
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सातवाँ अध्याय

रात का अंधेरा सज्जनपुर को अपने आगोश में ले चुका था, और हवेली में खाने के बाद का माहौल अब एक अलग ही रंग में रंग गया था। नदी की ठंडी हवा बाहर की सादगी को छू रही थी, मगर हवेली की दीवारों के भीतर कामुकता और हवस का तूफान उमड़ रहा था।
सरोज अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रही थी। उसने अपनी साड़ी उतारी और एक ओर रख दी। उसका भरा हुआ, कामुक बदन अब सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में था, जो उसकी मोटी चूचियों और गहरी नाभि को उभार रहा था। तभी उसे अपनी कमर पर दो हाथ महसूस हुए, जो उसके पेट को मसलने लगे।“अजी, छोड़ो न, क्या कर रहे हो?” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।“अपनी पत्नी से प्यार, और क्या?” नीलेश ने हँसते हुए जवाब दिया, उसकी आँखों में चमक थी।

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“अच्छा, बड़ा प्यार आ रहा है? क्यों, अपने नए खिलौने से मन भर गया क्या? सुबह तक आवाज़ें आ रही थीं, बिमला ने भी देखा था,” सरोज ने तंज कसते हुए कहा।
नीलेश ने सरोज के ब्लाउज़ की डोरी खोलते हुए कहा, “वो खिलौना है, और तुम हमारी रानी हो। वैसे, बड़ा स्वाद है उसमें। अपनी सेवा का अवसर दो उसे और कुछ कामुकता के पाठ पढ़ाओ।”“अच्छा, फिर तुम्हें मेरी जगह वो पसंद आ गई तो?” सरोज ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए पूछा।

“ऐसा कभी हो सकता है?” नीलेश ने सरोज की मोटी, नंगी चूचियों को मसलते हुए कहा।“आह, आराम से जी,” सरोज की साँसें गर्म हो गईं।“अब आराम का नहीं, काम का समय है,” नीलेश ने हँसते हुए सरोज के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।

कुछ देर बाद सरोज नीलेश के मोटे लंड पर कूद रही थी। उसकी चूचियाँ हवा में झूल रही थीं, और उसकी आहें कमरे में गूँज रही थीं।

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नीलेश: आह मेरी रानी तेरी चूत जैसी गर्मी किसी औरत में नहीं, आह ऐसे ही।
सरोज: तुम्हारा लंड भी तो ऐसा है कि जिसे पाकर ही मेरी चूत की प्यास बुझती है, आह चोदो अपनी रानी की प्यासी चूत को,
नीलेश: आह साली तुझ जैसी गरम औरत को पत्नी बना कर तो मेरे भाग ही खुल गए,
सरोज: ओह जी तुम्हारे मोटे लंड वाले पति को पाकर तो मेरी चूत की भी किस्मत जाग गई है, आह चोदो इसे ऐसे ही।
पूरा कमरा दोनों की थापो की आवाज से गूंज रहा था और दोनों ही जल्दी इसी तरह एक दूसरे को उकसाते हुए चुदाई कर रहे थे,


हवेली के पिछले कमरे में भी कुछ ऐसा ही माहौल था। नीलेश और सरोज के दोनों बेटे, कर्मा और अनुज, बिमला के भरे बदन को भोग रहे थे। बिमला बिस्तर पर पीठ के बल पूरी नंगी लेटी थी। उसकी टाँगों के बीच कर्मा था, जिसका लंड उसकी अनुभवी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। बिस्तर के नीचे अनुज खड़ा था, और उसका लंड बिमला के मुँह में था, जिसे वो चूस रही थी।

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कर्मा: आह चाची क्या गरम चूत है तुम्हारी ओह मेरी रांड चाची।
कर्मा ने बिमला की चूत में धक्के लगाते हुए कहा,
अनुज: चूसती भी उतना ही बढ़िया है चाची, भैया।
अनुज उसके मुंह में लंड को और घुसाते हुए बोला।
दोनों बिमला के कामुक बदन को एक साथ भोग रहे थे, बिमला भी दो जवान लड़कों का साथ पाकर आनंद से उनके बीच लेट कर अपना बदन मसलवा रही थी। उसके मुंह से घुटी हुई आहें निकल रहीं थीं।

हवेली की रात ऐसे ही कामुक थापों और आहों के बीच बीत गई।अगली सुबह रजनी और सोनू फिर से हवेली की ओर निकले। दोनों के मन में एक तूफान था, मगर मुँह पर ताला। सोनू बार-बार अपनी माँ को देख रहा था। कल सुबह का दृश्य—रजनी का नंगा बदन नीलेश के नंगे बदन से चिपका हुआ—उसकी आँखों के सामने बार-बार कौंध रहा था। हवेली पहुँचते ही सोनू को हमेशा की तरह बगीचे में माली के साथ काम में लगना पड़ा, मगर उसका मन अपनी माँ के साथ अंदर जाने का था। उसके मन में सवालों का भँवर चल रहा था—आज न जाने माँ के साथ क्या होगा?

रजनी सीधे रसोई में काम में जुट गई। जल्दी ही उसका बदन पसीने से भीगकर चमकने लगा, जिससे वह और कामुक लगने लगी।

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तभी कर्मा रसोई में आया। रजनी को इस हाल में देखकर उसके मन में हलचल होने लगी। वह धीरे से रजनी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और साड़ी के ऊपर से उसके पेट पर हाथ रखते हुए बोला, “क्या बना रही हो, चाची?

रजनी चौंक गई, मगर संभलते हुए बोली, “नाश्ता बना रही हूँ, लल्ला। तुझे भूख लगी होगी न?” उसने कर्मा के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा।

कर्मा को रजनी का ये बदला हुआ अंदाज़ देखकर हैरानी हुई। रजनी में अब एक नया आत्मविश्वास था। कल की घटना के बाद वह बदल चुकी थी। उसका गदराया बदन, जो उसे अब तक कमज़ोर बनाता था, अब उसे अपनी ताकत लग रहा था। कर्मा ने उसे खुलता देख मन ही मन खुश हुआ और पीछे से उससे चिपक गया। उसने रजनी के पल्लू को थोड़ा ऊपर खिसकाया और उसके नंगे पेट को सहलाने लगा।

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अरे लल्ला, नाश्ता बना लेने दो, देर हो जाएगी,” रजनी ने प्यार भरे लहजे में कहा। उसे अपने चूतड़ों के बीच कर्मा के कड़क लंड की चुभन महसूस हुई, और एक सिहरन उसके बदन में दौड़ गई। कर्मा उसके बेटे विक्रम से भी छोटा था, मगर एक जवान लड़के को अपने बदन के लिए इतना आकर्षित देखकर रजनी को मन ही मन गुदगुदी हो रही थी।

चाची, नाश्ता तो बनता रहेगा, अपनी सुंदर चाची से प्यार तो कर लेने दो,” कर्मा ने शरारती अंदाज़ में कहा।“अरे नहीं, लल्ला, ये बुढ़िया चाची कहाँ से सुंदर लग रही है तुझे?” रजनी ने मजाक में जवाब दिया।

अरे चाची, तुम और बुढ़िया? तुम तो अभी जवानों से भी जवान हो,” कर्मा ने रजनी के पेट को मसलते हुए कहा।
कर्मा की हरकतों और उसके लंड की चुभन का असर रजनी पर पड़ रहा था। उसका बदन गरम हो रहा था, और उसकी टाँगों के बीच हल्की नमी महसूस हो रही थी।

तभी सरोज तैयार होकर रसोई में आई और कर्मा को रजनी से चिपके देख बोली, “अरे रजनी, आ गई तू? और ये क्यों लाड़ लगा रहा है तुझसे?

रजनी थोड़ा झेंप गई और बोली, “अरे जीजी, देखो न लल्ला को, नाश्ता नहीं बनाने दे रहे।

अरे कर्मा, क्यों परेशान कर रहा है चाची को? जा, उन्हें काम करने दे,” सरोज ने डाँटते हुए कहा।

अरे माँ, मैं तो बस चाची को बता रहा था कि वो कितनी सुंदर हैं,” कर्मा ने रजनी से हटते हुए कहा और रसोई से बाहर निकल गया।

जाते हुए सरोज की नज़र अपने बेटे के पैंट में बने तंबू पर पड़ी, और उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।“क्या बात है, रजनी? सब खुश हैं तुझसे?” सरोज ने शरारती लहजे में पूछा।

मतलब, जीजी?” रजनी ने हिचकते हुए कहा।“मतलब, सब की अच्छे से सेवा कर रही है तू। सब तेरे काम से खुश हैं—बच्चे, बड़े, सब,” सरोज ने आँख मारते हुए कहा।

जीजी, सेवा करने ही तो आई हूँ मैं यहाँ। क्या तुम खुश नहीं हो मुझसे?” रजनी ने मासूमियत से पूछा।

मेरी सेवा तूने करी ही कहाँ है अभी?” सरोज ने मजाकिया लहजे में कहा।
चलो जीजी, अभी कर दूँगी। बताओ, क्या करना है?” रजनी ने उत्साह से कहा।
बताऊँगी। चल, अभी खाना बना ले, फिर करवाती हूँ तुमसे सेवा,” सरोज ने एक कामुक मुस्कान के साथ कहा, जिसे रजनी समझ नहीं पाई।

बाहर सोनू का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके मन में कई खयाल चल रहे थे। वह जानना चाहता था कि उसकी माँ के साथ हवेली में कुछ गलत तो नहीं हो रहा। बार-बार उसकी माँ का नंगा बदन नीलेश के साथ चिपका हुआ उसके सामने कौंध रहा था। वह हवेली के दरवाजे को झाँक रहा था, शायद माँ की एक झलक मिल जाए।
तभी कर्मा हवेली से बाहर निकला और उसकी आँखें सोनू पर पड़ीं। सोनू ने चेहरा घुमा लिया, मगर कर्मा उसकी ओर चलकर आया और बोला, “चल सोनू, थोड़ा घूमकर आते हैं।
नहीं कर्मा भैया, अभी मुझे फुलवाड़ी में काम है,” सोनू ने हिचकते हुए कहा।कर्मा ने पास खड़े माली पर नज़र डाली। माली खुद ही बोल पड़ा, “अरे नहीं, सोनू बेटा, तुम जाओ छोटे मालिक के साथ। यहाँ इतना कोई काम नहीं है।

कर्मा मुस्कुराने लगा, और सोनू को मजबूरी में उसके साथ जाना पड़ा। कर्मा ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाया। सोनू पकड़कर बैठ गया। उसके लिए मोटरसाइकिल एक सपने से कम नहीं थी। उनके घर में साइकिल भी नहीं थी, और वह मोटरसाइकिल पर बैठ रहा था। एक अलग अहसास उसके मन में जाग रहा था, जो उसकी उम्र के हिसाब से स्वाभाविक था। इस उम्र में ऐसी गाड़ियाँ मन को अपनी ओर खींचती हैं।

कर्मा सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठाकर निकल पड़ा। सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठकर बड़ा मज़ा आ रहा था। कितनी तेज चल रही थी! साइकिल में तो पैडल मारना पड़ता है, मगर इसमें ऐसी कोई चिंता नहीं। बस बैठो और फुर्र से चल पड़ती है। गाँव से जब मोटरसाइकिल निकली, तो सोनू को लग रहा था कि सबकी नजरें उन पर ही थीं। वह सोच रहा था, “देखो, कैसे सब जल रहे हैं मुझे मोटरसाइकिल पर बैठे देख!” मोटरसाइकिल के साथ-साथ सोनू के खयाल भी भाग रहे थे।

कर्मा उसे गाँव से थोड़ी दूर बाज़ार में ले गया, जहाँ एक दुकान के आगे उसने मोटरसाइकिल रोकी। दुकानवाले ने कर्मा को देखते ही पहचान लिया और बोला, “आओ आओ, छोटे मालिक, अंदर चलकर बैठो।”दुकानवाला दोनों को अंदर ले गया और एक मेज़ के साथ दो कुर्सियों पर बैठा दिया। उसने पहले से साफ मेज़ को और साफ करते हुए कहा, “कहिए मालिक, क्या सेवा करूँ? क्या लगाऊँ?

कर्मा ने कहा, “दो ठंडी कोका कोला और दो दोना समोसे लगा।” दुकानदार बोला, “जी, बहुत अच्छा, अभी लाया।
सोनू के मुँह में पानी आ रहा था। बहुत दिन हो गए थे उसे समोसा चखे, और कोका कोला का तो उसने बस नाम सुना था। उसका मन इस ओर भी जा रहा था कि कर्मा उस पर इतनी मेहरबानी क्यों कर रहा है।
इससे पहले कि वह और सोचता, एक भरे बदन की औरत अपनी चूचियाँ हिलाती हुई आई और समोसे मेज़ पर उनके सामने रख दिए। उसने अपने पल्लू से पसीना पोंछा, तो उसका पेट और गहरी नाभि दिखाई दी, जिसे देखकर सोनू की नज़र पल भर को ठहर गई।

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बाबू, चटनी दूँ का?” औरत ने पूछा। सोनू हड़बड़ाते हुए बोला, “नहीं, नहीं।” वह औरत चली गई और तुरंत दो बोतल कोका कोला लेकर आई, जो दूर से ही ठंडी लग रही थीं, मुँह से ठंडा धुआँ निकल रहा था। देखते ही सोनू के मुँह में पानी आ गया। औरत ने बोतलें रख दीं, और कर्मा ने एक बोतल उठाकर मुँह से लगा ली। सोनू इन सब में खोया हुआ था।
उसे देखकर औरत मुस्कुराते हुए बोली, “अरे बाबू, तुम भी खाओ न, कहाँ खोए हुए हो?”
कर्मा ने भी कहा, “हाँ सोनू, खा न, क्या सोच रहा है?” सोनू ने सिर हिलाकर खाना शुरू किया। उसे कर्मा के साथ होने पर जो आवभगत और सम्मान मिल रहा था, वो अच्छा लग रहा था। नहीं तो दुकानवाला उसे दुकान के आसपास भी नहीं भटकने देता। समोसे को चखने पर सोनू को मज़ा आ गया। फिर उसने ठंडी बोतल उठाकर मुँह से लगाई, तो जैसे-जैसे उसका गीला रस गले में उतरा, उसे शीतल करता चला गया।

औरत रखकर मुड़कर गई, तो कर्मा की नज़र उसके थिरकते चूतड़ों पर जमी थी। “आह, क्या मस्त चूतड़ हैं यार,” कर्मा ने धीरे से कहा, जो सोनू को सुनाई दिया। सुनकर सोनू ने भी उस औरत के थिरकते चूतड़ों को निहारा और उसे भी अपने अंदर एक गर्मी का एहसास हुआ,

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कर्मा: साली के चूतड़ हैं या मटके, कैसे ऊपर नीचे हो रहे हैं।
सोनू के चेहरे पर भी ये सुनकर मुस्कान आ गई। सोनू ने कर्मा को देखा, और दोनों हँसने लगे। दोनों के बीच एक नए तरह का रिश्ता पनप रहा था।


इधर, हवेली में खाना बन चुका था, और रजनी सरोज के कमरे में खड़ी थी। सरोज ने पूछा, “सारा काम हो गया न?”

रजनी ने जवाब दिया, “हाँ जीजी, अब बताओ तुम्हारी क्या सेवा करनी है।
सरोज बोली, “कल से ही बदन टूट रहा है, थोड़ी मालिश कर दे।” रजनी ने उत्साह से कहा, “हाँ जीजी, बिल्कुल, तुम लेट जाओ, अभी कर देती हूँ।

सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले, पीछे आरे से तेल की शीशी उठा ले।”जब तक रजनी शीशी उठाकर लाती, सरोज लेट चुकी थी। रजनी ने सबसे पहले सरोज के हाथों की मालिश शुरू की।

सरोज बोली, “अच्छा लग रहा है, तेरे हाथ अच्छा चलते हैं।
रजनी ने हँसते हुए कहा, “अरे बस जीजी, ये तो कोई भी कर लेगा।

रजनी ने दोनों हाथों की मालिश की, फिर थोड़ा तेल लिया और सरोज की साड़ी को उसके पेट से हटाकर पेट को मसलने लगी,

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जिससे सरोज की हल्की आह निकल गई। क्या जीजी, इतने से झटके में आह निकल गई तुम्हारी तो,” रजनी ने मज़ाक करते हुए कहा।

सरोज ने पलटवार किया, “हाँ, मेरी तो निकल जाती है, तू तो तगड़े-तगड़े झटके यूं ही झेल जाती है।

सरोज की बात से रजनी झेंप गई और शर्मा गई। “धत्त जीजी, तुम भी न,” रजनी ने कहा।

देखो तो, कैसे शर्मा रही है, नई दुल्हन की तरह,” सरोज ने हँसते हुए कहा।
रजनी बोली, “अरे जीजी, अब मेरा शर्माना छोड़ो और अपना ब्लाउज़ हटाओ, नहीं तो तेल से खराब हो जाएगा।

सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले,” और उठकर बैठ गई। उसने साड़ी का पल्लू कमर से नीचे इकट्ठा कर दिया और ब्लाउज़ उतार दिया। अब सरोज का बदन सिर्फ ब्रा और साड़ी में था। रजनी उसकी मालिश करने लगी।

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जीजी, तुम्हारा बदन बहुत चिकना है, एकदम मलाई जैसा,” रजनी ने तारीफ की।

अरे, मलाई है तो तू चखकर देख ले,” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।

रजनी हँसी, “अरे जीजी, तुम भी न, बड़ी वो हो। चलो, अब घूमो, कमर की भी कर दूँ।” सरोज बोली, “अरे, इसमें वो की क्या बात है,” और घूम गई। रजनी उसकी कमर और पीठ की मालिश करने लगी।

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आराम मिल रहा है, जीजी?” रजनी ने पूछा। “हाँ रजनी, बहुत अच्छा लग रहा है। तेरे हाथों में सच में आराम मिल रहा है,” सरोज ने जवाब दिया।
रजनी कुछ देर चुप रही, फिर बोली, “जीजी, अब कमर भी हो गई, टाँगें भी करनी हैं क्या?

सरोज ने कहा, “हाँ, कर देगी तो अच्छा लगेगा।
रजनी बोली, “फिर साड़ी? ये खराब होगी।

सरोज ने तुरंत कहा, “अरे, क्यों होगी? ले, अभी उतार देती हूँ।” सरोज उठी और अपनी साड़ी के साथ पेटीकोट भी उतार दिया। उसका गोरा, भरा, और चिकना बदन सिर्फ कच्छी और बनियान में था। रजनी की आँखें उस पर टिक गईं।

सरोज वापस लेट गई और बोली, “वैसे, साड़ी तो तेरी भी खराब हो सकती है, तू भी उतार दे।” रजनी थोड़ा चौंकी, “अरे नहीं जीजी, ऐसे ही ठीक है।
सरोज ने हँसते हुए कहा, “अरे, शर्मा क्या रही है? मुझे देख, तेरे सामने अधनंगी पड़ी हूँ, तू बेकार में शर्मा रही है।” रजनी सरोज को मना नहीं कर पाई और अपनी साड़ी उतार दी।
अब वह पेटीकोट और ब्लाउज़ में थी। वह सरोज के पैरों की मालिश करने लगी। पैरों से ऊपर बढ़ते हुए जब वह जाँघों तक पहुँची, सरोज की आह निकल गई। रजनी को सरोज के नंगे बदन को छूना अच्छा लग रहा था, और सरोज को भी रजनी का स्पर्श भा रहा था। सरोज की गर्म साँसें रजनी को उत्तेजित कर रही थीं।

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रजनी, एक काम करेगी?” सरोज ने गर्म आवाज़ में कहा। रजनी बोली, “हाँ जीजी, कहो न, क्या करना है?

सरोज ने कहा, “बिमला को आवाज़ लगा दे, अब आगे वो करेगी।”
रजनी ने हैरानी से कहा, “क्यों जीजी, मैं कर तो रही हूँ।

सरोज ने जवाब दिया, “जैसा मुझे चाहिए, वैसे तू नहीं कर पाएगी अभी। तुझे सीखना पड़ेगा।

रजनी को कुछ समझ नहीं आया, मगर सरोज की बात मानते हुए वह बोली, “ठीक है जीजी, बुलाती हूँ।” रजनी दरवाजे तक गई और बिमला को आवाज़ दी।
कुछ ही देर में बिमला आई और अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया। उसने रजनी को मुस्कुराकर देखा। सरोज बोली, “आ गई बिमला, चल अब अपनी खास वाली सेवा कर दे। और रजनी, अगर सीखना चाहे तो उसे भी सिखा दे।

बिमला ने कहा, “हाँ मालकिन, बिल्कुल,” और अपनी साड़ी उतारने लगी।


जारी रहेगी।

Bahut hi umda update he Arthur Morgan Bro,

Kahani ab aur bhi intersting hoti ja rahi he...........

Keep rocking Bro
 
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छठा अध्याय

सज्जनपुर की सुबह धीरे-धीरे अपने रंग में ढल रही थी। नदी की लहरें खेतों को छू रही थीं, और गाँव की गलियों में मिट्टी की सौंधी खुशबू बिखर रही थी। मगर रजनी के घर में एक अजीब सा सन्नाटा था, जो सोनू के मन के तूफान को और गहरा कर रहा था। हवेली से लौटते वक्त सोनू के कदम भारी थे, और उसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं। उसने जो देखा था—अपनी माँ को नीलेश के साथ नंगे बिस्तर पर—वह नजारा उसके मासूम मन को तोड़ चुका था। वह तेजी से घर की ओर बढ़ रहा था, सवालों और दुख के बोझ तले दबा हुआ।

पर तभी पीछे से एक आवाज़ गूँजी, “सोनू, रुक जा!”सोनू ने पलटकर देखा। कर्मा अपनी मोटरसाइकिल पर सवार, मुस्कुराता हुआ उसकी ओर बढ़ रहा था। सोनू का चेहरा और सख्त हो गया। उसे कर्मा की बनावटी चिंता और चालाक मुस्कान पर गुस्सा आ रहा था। कर्मा ने बाइक रोकी और बोला, “क्या हुआ, भाई? इतना परेशान क्यों है? चल, मेरे साथ थोड़ा घूम आ।” सोनू ने कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन उसका गला रुँध गया। कर्मा ने उसका कंधा थपथपाया और बोला, “आजा, बैठ। दो मिनट की बात है।” सोनू हिचकिचाया, लेकिन कर्मा की बातों में कुछ ऐसा था कि वह बाइक पर बैठ गया। कर्मा ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और गाँव के बाहर नदी किनारे की ओर चल पड़ा।

नदी का किनारा शांत था, सिर्फ पानी की हल्की छलछल और दूर कहीं चिड़ियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। कर्मा ने बाइक रोकी और सोनू को उतरने का इशारा किया। दोनों एक पेड़ की छाँव में बैठ गए। सोनू का चेहरा अब भी गुस्से और दुख से भरा था। कर्मा ने उसकी ओर देखा और शांत लहजे में बोला, “मैं जानता हूँ, तूने क्या देखा, सोनू।” सोनू की आँखें चौड़ी हो गईं, और उसका चेहरा लाल पड़ गया। वह चिल्लाया, “सब तेरी वजह से हुआ है, तुम हवेली वाले हो ही सब ऐसे, तूने मुझे जान-बूझकर वहाँ भेजा, ना?”

कर्मा ने हाथ उठाकर उसे शांत किया और बोला, “गुस्सा मत कर, भाई। सुन पहले। मैं तुझसे साफ-साफ बात करना चाहता हूँ।

”कर्मा ने एक गहरी साँस ली और बोला, “देख, सोनू, मैं समझता हूँ तुझे कितना दुख हुआ होगा। लेकिन जरा अलग ढंग से सोच। सही-गलत के चक्कर में तेरा परिवार आज तक क्या पाया?
तेरे पापा की हरकतों ने तुम सबको बरबाद कर दिया। और तेरी माँ? वो भी तो इंसान है, सोनू। क्या उसे सुख का हक नहीं? जैसे पेट की भूख होती है, वैसे ही बदन की भी होती है। अगर उनकी वो भूख हवेली में मिट रही है, तो बुराई क्या है?” सोनू की आँखें कर्मा की बातों पर ठहर गईं, लेकिन उसका मन अब भी उलझा था।

कर्मा ने आगे कहा, “मेरे पापा उनकी मदद कर रहे हैं। तेरा परिवार मुसीबत से निकलेगा, सोनू। बस तू ये बात अपने सीने में दबा ले। अपनी माँ की खुशी के लिए इतना तो कर सकता है न?”सोनू चुपचाप कर्मा की बातें सुनता रहा। उसका मन भारी था, लेकिन कर्मा की बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं। कर्मा ने उसका कंधा थपथपाया और बोला, “सोच ले, भाई। मैं चलता हूँ।” कर्मा मोटरसाइकिल पर सवार होकर चला गया, और सोनू नदी किनारे अकेला रह गया। वह पानी की लहरों को देखता रहा, कर्मा की बातें उसके मन में गूँज रही थीं। कुछ देर बाद वह उठा और धीरे-धीरे घर की ओर चल पड़ा, रास्ते भर सोचता हुआ।

उधर, रजनी दोपहर के वक्त घर लौटी। उसका हाव-भाव बदला हुआ था। चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी, जो सोनू ने तुरंत भाँप ली। रजनी की साड़ी सजी हुई थी, और उसके कदमों में एक नई रौनक थी। सोनू उसे देखता रहा, उसका मन भारी था, लेकिन वह चुप रहा। वह जानता था कि माँ ने क्या किया, मगर कर्मा की बातें उसके मन में गूँज रही थीं। रजनी ने आँगन में कदम रखते ही बच्चों को बुलाया। विक्रम, नेहा, और मनीषा इकट्ठा हो गए। रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “सुनो, सब। नीलेश साहब ने हमारा ब्याज माफ कर दिया है। अब बस हमें कर्जा ही चुकाना है। और विक्रम, उन्होंने अपने एक दोस्त से बात की है। तुझे उनके यहाँ नौकरी पर रखवा देंगे।

बच्चों के चेहरों पर राहत की लहर दौड़ी। नेहा ने उत्साह में कहा, “सच, अम्मा? ये तो बहुत अच्छी खबर है!” विक्रम ने सिर हिलाया और बोला, “अम्मा, ये सब कैसे हुआ? साहब ने इतनी मेहरबानी क्यों की?” रजनी की मुस्कान एक पल के लिए ठिठकी, लेकिन उसने तुरंत खुद को संभाला और बोला, “बस, उनकी मेहरबानी है।

हमारी हालत देखी तो दया आ गई होगी।” सोनू चुपचाप एक कोने में खड़ा सब सुन रहा था। उसकी नजरें माँ के चेहरे पर थीं, जहाँ खुशी के साथ-साथ एक अजीब सी बेचैनी भी झलक रही थी। वह कुछ नहीं बोला और आँगन से बाहर निकल गया।

इधर, कर्मा अपनी साजिश की शुरुआत कर चुका था। दोपहर की तपती गर्मी में वह तेजपाल के घर के बाहर खड़ा था, अपनी मोटरसाइकिल पर टिका हुआ। बिंदिया आँगन में बर्तन धो रही थी, उसकी सूट के दुपट्टे को एक ओर रखा हुआ था, और पसीने से तर बदन धूप में चमक रहा था।




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कर्मा ने उसे देखा और हल्का सा मुस्कुराया। बिंदिया ने उसकी नजरें महसूस कीं और पलटकर देखा। कर्मा ने अपनी आँखों में एक शरारती चमक लाते हुए उसे देखा और धीरे से सिर हिलाया। बिंदिया का चेहरा शर्म से लाल हो गया, और वह जल्दी से पल्लू ठीक करके अंदर चली गई। कर्मा की मुस्कान और गहरी हो गई। वह मोटरसाइकिल स्टार्ट करके वहाँ से निकल गया, मन ही मन अपनी योजना को और पक्का करते हुए।

कम्मू के घर में धीरज की शादी की तैयारियाँ जोरों पर थीं। आँगन में सुमन और कुसुम मेहंदी के डिज़ाइन की किताबें लिए बैठी थीं, और चारों ओर चूड़ियों की खनक गूँज रही थी। फूल सिंह और अजीत खटिया पर बैठे खेतों की फसल और शादी के खर्चों की बात कर रहे थे। फूल सिंह ने पगड़ी ठीक करते हुए कहा, “अजीत, इस बार धान की फसल अच्छी है। कटाई हो जाए तो ब्याह की सारी तैयारियाँ पक्की हो जाएँगी।” अजीत ने हँसते हुए कहा, “हाँ भैया, और कुसुम भाभी तो पहले ही दुल्हन को सजाने की सारी योजनाएँ बना चुकी हैं।” कुसुम ने दूर से सुनकर चिल्लाया, “देवर जी, तुम बस अपनी दुल्हन को संभालो, बाकी मैं देख लूँगी!” आँगन में हँसी गूँज उठी।
कम्मू, जो पास में क्रिकेट का बल्ला लिए खड़ा था, बोला, “मम्मी, बस ये ब्याह जल्दी निपट जाए, फिर मैं अपनी क्रिकेट टीम को और पक्का करूँगा!” सुमन ने उसे डाँटते हुए कहा, “बस गेंद-बल्ले की पड़ी है तुझे, जरा घर के काम में भी हाथ बँटाया कर!” मगर उसकी डाँट में प्यार साफ झलक रहा था।

तेजपाल के घर में भी रौनक थी। झुमरी आँगन में चूल्हे पर रोटियाँ सेंक रही थी, और तेजपाल खटिया पर बैठे मन्नू को समझा रहे थे। “बेटा, लड़के वाले दो दिन बाद आ रहे हैं। बिंदिया का रिश्ता पक्का करने की पूरी कोशिश करेंगे। तू भी जरा घर में मदद कर, और हाँ, क्रिकेट के चक्कर में ज्यादा मत पड़।” मन्नू ने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, बाबूजी। पर दीदी का रिश्ता पक्का हो जाए, फिर तो जो भी चीज आएगी खाने की मैं ही खाया करूंगा!

” झुमरी ने हँसते हुए कहा, “हाँ, और फिर मेरे मन्नू की भी बारी आएगी!” बिंदिया, जो पास में खड़ी थी, शर्म से लाल हो गई और बोली, “मम्मी, बस करो ना!” आँगन में हल्की हँसी गूँज उठी, लेकिन किसी को कर्मा की साजिश का अंदाज़ा नहीं था, जो धीरे-धीरे बिंदिया की जिंदगी को उलझाने की ओर बढ़ रही थी।
जारी रहेगी
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 
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सातवाँ अध्याय

रात का अंधेरा सज्जनपुर को अपने आगोश में ले चुका था, और हवेली में खाने के बाद का माहौल अब एक अलग ही रंग में रंग गया था। नदी की ठंडी हवा बाहर की सादगी को छू रही थी, मगर हवेली की दीवारों के भीतर कामुकता और हवस का तूफान उमड़ रहा था।
सरोज अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रही थी। उसने अपनी साड़ी उतारी और एक ओर रख दी। उसका भरा हुआ, कामुक बदन अब सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में था, जो उसकी मोटी चूचियों और गहरी नाभि को उभार रहा था। तभी उसे अपनी कमर पर दो हाथ महसूस हुए, जो उसके पेट को मसलने लगे।“अजी, छोड़ो न, क्या कर रहे हो?” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।“अपनी पत्नी से प्यार, और क्या?” नीलेश ने हँसते हुए जवाब दिया, उसकी आँखों में चमक थी।

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“अच्छा, बड़ा प्यार आ रहा है? क्यों, अपने नए खिलौने से मन भर गया क्या? सुबह तक आवाज़ें आ रही थीं, बिमला ने भी देखा था,” सरोज ने तंज कसते हुए कहा।
नीलेश ने सरोज के ब्लाउज़ की डोरी खोलते हुए कहा, “वो खिलौना है, और तुम हमारी रानी हो। वैसे, बड़ा स्वाद है उसमें। अपनी सेवा का अवसर दो उसे और कुछ कामुकता के पाठ पढ़ाओ।”“अच्छा, फिर तुम्हें मेरी जगह वो पसंद आ गई तो?” सरोज ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए पूछा।

“ऐसा कभी हो सकता है?” नीलेश ने सरोज की मोटी, नंगी चूचियों को मसलते हुए कहा।“आह, आराम से जी,” सरोज की साँसें गर्म हो गईं।“अब आराम का नहीं, काम का समय है,” नीलेश ने हँसते हुए सरोज के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।

कुछ देर बाद सरोज नीलेश के मोटे लंड पर कूद रही थी। उसकी चूचियाँ हवा में झूल रही थीं, और उसकी आहें कमरे में गूँज रही थीं।

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नीलेश: आह मेरी रानी तेरी चूत जैसी गर्मी किसी औरत में नहीं, आह ऐसे ही।
सरोज: तुम्हारा लंड भी तो ऐसा है कि जिसे पाकर ही मेरी चूत की प्यास बुझती है, आह चोदो अपनी रानी की प्यासी चूत को,
नीलेश: आह साली तुझ जैसी गरम औरत को पत्नी बना कर तो मेरे भाग ही खुल गए,
सरोज: ओह जी तुम्हारे मोटे लंड वाले पति को पाकर तो मेरी चूत की भी किस्मत जाग गई है, आह चोदो इसे ऐसे ही।
पूरा कमरा दोनों की थापो की आवाज से गूंज रहा था और दोनों ही जल्दी इसी तरह एक दूसरे को उकसाते हुए चुदाई कर रहे थे,


हवेली के पिछले कमरे में भी कुछ ऐसा ही माहौल था। नीलेश और सरोज के दोनों बेटे, कर्मा और अनुज, बिमला के भरे बदन को भोग रहे थे। बिमला बिस्तर पर पीठ के बल पूरी नंगी लेटी थी। उसकी टाँगों के बीच कर्मा था, जिसका लंड उसकी अनुभवी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। बिस्तर के नीचे अनुज खड़ा था, और उसका लंड बिमला के मुँह में था, जिसे वो चूस रही थी।

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कर्मा: आह चाची क्या गरम चूत है तुम्हारी ओह मेरी रांड चाची।
कर्मा ने बिमला की चूत में धक्के लगाते हुए कहा,
अनुज: चूसती भी उतना ही बढ़िया है चाची, भैया।
अनुज उसके मुंह में लंड को और घुसाते हुए बोला।
दोनों बिमला के कामुक बदन को एक साथ भोग रहे थे, बिमला भी दो जवान लड़कों का साथ पाकर आनंद से उनके बीच लेट कर अपना बदन मसलवा रही थी। उसके मुंह से घुटी हुई आहें निकल रहीं थीं।

हवेली की रात ऐसे ही कामुक थापों और आहों के बीच बीत गई।अगली सुबह रजनी और सोनू फिर से हवेली की ओर निकले। दोनों के मन में एक तूफान था, मगर मुँह पर ताला। सोनू बार-बार अपनी माँ को देख रहा था। कल सुबह का दृश्य—रजनी का नंगा बदन नीलेश के नंगे बदन से चिपका हुआ—उसकी आँखों के सामने बार-बार कौंध रहा था। हवेली पहुँचते ही सोनू को हमेशा की तरह बगीचे में माली के साथ काम में लगना पड़ा, मगर उसका मन अपनी माँ के साथ अंदर जाने का था। उसके मन में सवालों का भँवर चल रहा था—आज न जाने माँ के साथ क्या होगा?

रजनी सीधे रसोई में काम में जुट गई। जल्दी ही उसका बदन पसीने से भीगकर चमकने लगा, जिससे वह और कामुक लगने लगी।

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तभी कर्मा रसोई में आया। रजनी को इस हाल में देखकर उसके मन में हलचल होने लगी। वह धीरे से रजनी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और साड़ी के ऊपर से उसके पेट पर हाथ रखते हुए बोला, “क्या बना रही हो, चाची?

रजनी चौंक गई, मगर संभलते हुए बोली, “नाश्ता बना रही हूँ, लल्ला। तुझे भूख लगी होगी न?” उसने कर्मा के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा।

कर्मा को रजनी का ये बदला हुआ अंदाज़ देखकर हैरानी हुई। रजनी में अब एक नया आत्मविश्वास था। कल की घटना के बाद वह बदल चुकी थी। उसका गदराया बदन, जो उसे अब तक कमज़ोर बनाता था, अब उसे अपनी ताकत लग रहा था। कर्मा ने उसे खुलता देख मन ही मन खुश हुआ और पीछे से उससे चिपक गया। उसने रजनी के पल्लू को थोड़ा ऊपर खिसकाया और उसके नंगे पेट को सहलाने लगा।

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अरे लल्ला, नाश्ता बना लेने दो, देर हो जाएगी,” रजनी ने प्यार भरे लहजे में कहा। उसे अपने चूतड़ों के बीच कर्मा के कड़क लंड की चुभन महसूस हुई, और एक सिहरन उसके बदन में दौड़ गई। कर्मा उसके बेटे विक्रम से भी छोटा था, मगर एक जवान लड़के को अपने बदन के लिए इतना आकर्षित देखकर रजनी को मन ही मन गुदगुदी हो रही थी।

चाची, नाश्ता तो बनता रहेगा, अपनी सुंदर चाची से प्यार तो कर लेने दो,” कर्मा ने शरारती अंदाज़ में कहा।“अरे नहीं, लल्ला, ये बुढ़िया चाची कहाँ से सुंदर लग रही है तुझे?” रजनी ने मजाक में जवाब दिया।

अरे चाची, तुम और बुढ़िया? तुम तो अभी जवानों से भी जवान हो,” कर्मा ने रजनी के पेट को मसलते हुए कहा।
कर्मा की हरकतों और उसके लंड की चुभन का असर रजनी पर पड़ रहा था। उसका बदन गरम हो रहा था, और उसकी टाँगों के बीच हल्की नमी महसूस हो रही थी।

तभी सरोज तैयार होकर रसोई में आई और कर्मा को रजनी से चिपके देख बोली, “अरे रजनी, आ गई तू? और ये क्यों लाड़ लगा रहा है तुझसे?

रजनी थोड़ा झेंप गई और बोली, “अरे जीजी, देखो न लल्ला को, नाश्ता नहीं बनाने दे रहे।

अरे कर्मा, क्यों परेशान कर रहा है चाची को? जा, उन्हें काम करने दे,” सरोज ने डाँटते हुए कहा।

अरे माँ, मैं तो बस चाची को बता रहा था कि वो कितनी सुंदर हैं,” कर्मा ने रजनी से हटते हुए कहा और रसोई से बाहर निकल गया।

जाते हुए सरोज की नज़र अपने बेटे के पैंट में बने तंबू पर पड़ी, और उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।“क्या बात है, रजनी? सब खुश हैं तुझसे?” सरोज ने शरारती लहजे में पूछा।

मतलब, जीजी?” रजनी ने हिचकते हुए कहा।“मतलब, सब की अच्छे से सेवा कर रही है तू। सब तेरे काम से खुश हैं—बच्चे, बड़े, सब,” सरोज ने आँख मारते हुए कहा।

जीजी, सेवा करने ही तो आई हूँ मैं यहाँ। क्या तुम खुश नहीं हो मुझसे?” रजनी ने मासूमियत से पूछा।

मेरी सेवा तूने करी ही कहाँ है अभी?” सरोज ने मजाकिया लहजे में कहा।
चलो जीजी, अभी कर दूँगी। बताओ, क्या करना है?” रजनी ने उत्साह से कहा।
बताऊँगी। चल, अभी खाना बना ले, फिर करवाती हूँ तुमसे सेवा,” सरोज ने एक कामुक मुस्कान के साथ कहा, जिसे रजनी समझ नहीं पाई।

बाहर सोनू का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके मन में कई खयाल चल रहे थे। वह जानना चाहता था कि उसकी माँ के साथ हवेली में कुछ गलत तो नहीं हो रहा। बार-बार उसकी माँ का नंगा बदन नीलेश के साथ चिपका हुआ उसके सामने कौंध रहा था। वह हवेली के दरवाजे को झाँक रहा था, शायद माँ की एक झलक मिल जाए।
तभी कर्मा हवेली से बाहर निकला और उसकी आँखें सोनू पर पड़ीं। सोनू ने चेहरा घुमा लिया, मगर कर्मा उसकी ओर चलकर आया और बोला, “चल सोनू, थोड़ा घूमकर आते हैं।
नहीं कर्मा भैया, अभी मुझे फुलवाड़ी में काम है,” सोनू ने हिचकते हुए कहा।कर्मा ने पास खड़े माली पर नज़र डाली। माली खुद ही बोल पड़ा, “अरे नहीं, सोनू बेटा, तुम जाओ छोटे मालिक के साथ। यहाँ इतना कोई काम नहीं है।

कर्मा मुस्कुराने लगा, और सोनू को मजबूरी में उसके साथ जाना पड़ा। कर्मा ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाया। सोनू पकड़कर बैठ गया। उसके लिए मोटरसाइकिल एक सपने से कम नहीं थी। उनके घर में साइकिल भी नहीं थी, और वह मोटरसाइकिल पर बैठ रहा था। एक अलग अहसास उसके मन में जाग रहा था, जो उसकी उम्र के हिसाब से स्वाभाविक था। इस उम्र में ऐसी गाड़ियाँ मन को अपनी ओर खींचती हैं।

कर्मा सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठाकर निकल पड़ा। सोनू को मोटरसाइकिल पर बैठकर बड़ा मज़ा आ रहा था। कितनी तेज चल रही थी! साइकिल में तो पैडल मारना पड़ता है, मगर इसमें ऐसी कोई चिंता नहीं। बस बैठो और फुर्र से चल पड़ती है। गाँव से जब मोटरसाइकिल निकली, तो सोनू को लग रहा था कि सबकी नजरें उन पर ही थीं। वह सोच रहा था, “देखो, कैसे सब जल रहे हैं मुझे मोटरसाइकिल पर बैठे देख!” मोटरसाइकिल के साथ-साथ सोनू के खयाल भी भाग रहे थे।

कर्मा उसे गाँव से थोड़ी दूर बाज़ार में ले गया, जहाँ एक दुकान के आगे उसने मोटरसाइकिल रोकी। दुकानवाले ने कर्मा को देखते ही पहचान लिया और बोला, “आओ आओ, छोटे मालिक, अंदर चलकर बैठो।”दुकानवाला दोनों को अंदर ले गया और एक मेज़ के साथ दो कुर्सियों पर बैठा दिया। उसने पहले से साफ मेज़ को और साफ करते हुए कहा, “कहिए मालिक, क्या सेवा करूँ? क्या लगाऊँ?

कर्मा ने कहा, “दो ठंडी कोका कोला और दो दोना समोसे लगा।” दुकानदार बोला, “जी, बहुत अच्छा, अभी लाया।
सोनू के मुँह में पानी आ रहा था। बहुत दिन हो गए थे उसे समोसा चखे, और कोका कोला का तो उसने बस नाम सुना था। उसका मन इस ओर भी जा रहा था कि कर्मा उस पर इतनी मेहरबानी क्यों कर रहा है।
इससे पहले कि वह और सोचता, एक भरे बदन की औरत अपनी चूचियाँ हिलाती हुई आई और समोसे मेज़ पर उनके सामने रख दिए। उसने अपने पल्लू से पसीना पोंछा, तो उसका पेट और गहरी नाभि दिखाई दी, जिसे देखकर सोनू की नज़र पल भर को ठहर गई।

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बाबू, चटनी दूँ का?” औरत ने पूछा। सोनू हड़बड़ाते हुए बोला, “नहीं, नहीं।” वह औरत चली गई और तुरंत दो बोतल कोका कोला लेकर आई, जो दूर से ही ठंडी लग रही थीं, मुँह से ठंडा धुआँ निकल रहा था। देखते ही सोनू के मुँह में पानी आ गया। औरत ने बोतलें रख दीं, और कर्मा ने एक बोतल उठाकर मुँह से लगा ली। सोनू इन सब में खोया हुआ था।
उसे देखकर औरत मुस्कुराते हुए बोली, “अरे बाबू, तुम भी खाओ न, कहाँ खोए हुए हो?”
कर्मा ने भी कहा, “हाँ सोनू, खा न, क्या सोच रहा है?” सोनू ने सिर हिलाकर खाना शुरू किया। उसे कर्मा के साथ होने पर जो आवभगत और सम्मान मिल रहा था, वो अच्छा लग रहा था। नहीं तो दुकानवाला उसे दुकान के आसपास भी नहीं भटकने देता। समोसे को चखने पर सोनू को मज़ा आ गया। फिर उसने ठंडी बोतल उठाकर मुँह से लगाई, तो जैसे-जैसे उसका गीला रस गले में उतरा, उसे शीतल करता चला गया।

औरत रखकर मुड़कर गई, तो कर्मा की नज़र उसके थिरकते चूतड़ों पर जमी थी। “आह, क्या मस्त चूतड़ हैं यार,” कर्मा ने धीरे से कहा, जो सोनू को सुनाई दिया। सुनकर सोनू ने भी उस औरत के थिरकते चूतड़ों को निहारा और उसे भी अपने अंदर एक गर्मी का एहसास हुआ,

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कर्मा: साली के चूतड़ हैं या मटके, कैसे ऊपर नीचे हो रहे हैं।
सोनू के चेहरे पर भी ये सुनकर मुस्कान आ गई। सोनू ने कर्मा को देखा, और दोनों हँसने लगे। दोनों के बीच एक नए तरह का रिश्ता पनप रहा था।


इधर, हवेली में खाना बन चुका था, और रजनी सरोज के कमरे में खड़ी थी। सरोज ने पूछा, “सारा काम हो गया न?”

रजनी ने जवाब दिया, “हाँ जीजी, अब बताओ तुम्हारी क्या सेवा करनी है।
सरोज बोली, “कल से ही बदन टूट रहा है, थोड़ी मालिश कर दे।” रजनी ने उत्साह से कहा, “हाँ जीजी, बिल्कुल, तुम लेट जाओ, अभी कर देती हूँ।

सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले, पीछे आरे से तेल की शीशी उठा ले।”जब तक रजनी शीशी उठाकर लाती, सरोज लेट चुकी थी। रजनी ने सबसे पहले सरोज के हाथों की मालिश शुरू की।

सरोज बोली, “अच्छा लग रहा है, तेरे हाथ अच्छा चलते हैं।
रजनी ने हँसते हुए कहा, “अरे बस जीजी, ये तो कोई भी कर लेगा।

रजनी ने दोनों हाथों की मालिश की, फिर थोड़ा तेल लिया और सरोज की साड़ी को उसके पेट से हटाकर पेट को मसलने लगी,

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जिससे सरोज की हल्की आह निकल गई। क्या जीजी, इतने से झटके में आह निकल गई तुम्हारी तो,” रजनी ने मज़ाक करते हुए कहा।

सरोज ने पलटवार किया, “हाँ, मेरी तो निकल जाती है, तू तो तगड़े-तगड़े झटके यूं ही झेल जाती है।

सरोज की बात से रजनी झेंप गई और शर्मा गई। “धत्त जीजी, तुम भी न,” रजनी ने कहा।

देखो तो, कैसे शर्मा रही है, नई दुल्हन की तरह,” सरोज ने हँसते हुए कहा।
रजनी बोली, “अरे जीजी, अब मेरा शर्माना छोड़ो और अपना ब्लाउज़ हटाओ, नहीं तो तेल से खराब हो जाएगा।

सरोज ने कहा, “हाँ, अभी ले,” और उठकर बैठ गई। उसने साड़ी का पल्लू कमर से नीचे इकट्ठा कर दिया और ब्लाउज़ उतार दिया। अब सरोज का बदन सिर्फ ब्रा और साड़ी में था। रजनी उसकी मालिश करने लगी।

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जीजी, तुम्हारा बदन बहुत चिकना है, एकदम मलाई जैसा,” रजनी ने तारीफ की।

अरे, मलाई है तो तू चखकर देख ले,” सरोज ने शरारती लहजे में कहा।

रजनी हँसी, “अरे जीजी, तुम भी न, बड़ी वो हो। चलो, अब घूमो, कमर की भी कर दूँ।” सरोज बोली, “अरे, इसमें वो की क्या बात है,” और घूम गई। रजनी उसकी कमर और पीठ की मालिश करने लगी।

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आराम मिल रहा है, जीजी?” रजनी ने पूछा। “हाँ रजनी, बहुत अच्छा लग रहा है। तेरे हाथों में सच में आराम मिल रहा है,” सरोज ने जवाब दिया।
रजनी कुछ देर चुप रही, फिर बोली, “जीजी, अब कमर भी हो गई, टाँगें भी करनी हैं क्या?

सरोज ने कहा, “हाँ, कर देगी तो अच्छा लगेगा।
रजनी बोली, “फिर साड़ी? ये खराब होगी।

सरोज ने तुरंत कहा, “अरे, क्यों होगी? ले, अभी उतार देती हूँ।” सरोज उठी और अपनी साड़ी के साथ पेटीकोट भी उतार दिया। उसका गोरा, भरा, और चिकना बदन सिर्फ कच्छी और बनियान में था। रजनी की आँखें उस पर टिक गईं।

सरोज वापस लेट गई और बोली, “वैसे, साड़ी तो तेरी भी खराब हो सकती है, तू भी उतार दे।” रजनी थोड़ा चौंकी, “अरे नहीं जीजी, ऐसे ही ठीक है।
सरोज ने हँसते हुए कहा, “अरे, शर्मा क्या रही है? मुझे देख, तेरे सामने अधनंगी पड़ी हूँ, तू बेकार में शर्मा रही है।” रजनी सरोज को मना नहीं कर पाई और अपनी साड़ी उतार दी।
अब वह पेटीकोट और ब्लाउज़ में थी। वह सरोज के पैरों की मालिश करने लगी। पैरों से ऊपर बढ़ते हुए जब वह जाँघों तक पहुँची, सरोज की आह निकल गई। रजनी को सरोज के नंगे बदन को छूना अच्छा लग रहा था, और सरोज को भी रजनी का स्पर्श भा रहा था। सरोज की गर्म साँसें रजनी को उत्तेजित कर रही थीं।

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रजनी, एक काम करेगी?” सरोज ने गर्म आवाज़ में कहा। रजनी बोली, “हाँ जीजी, कहो न, क्या करना है?

सरोज ने कहा, “बिमला को आवाज़ लगा दे, अब आगे वो करेगी।”
रजनी ने हैरानी से कहा, “क्यों जीजी, मैं कर तो रही हूँ।

सरोज ने जवाब दिया, “जैसा मुझे चाहिए, वैसे तू नहीं कर पाएगी अभी। तुझे सीखना पड़ेगा।

रजनी को कुछ समझ नहीं आया, मगर सरोज की बात मानते हुए वह बोली, “ठीक है जीजी, बुलाती हूँ।” रजनी दरवाजे तक गई और बिमला को आवाज़ दी।
कुछ ही देर में बिमला आई और अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया। उसने रजनी को मुस्कुराकर देखा। सरोज बोली, “आ गई बिमला, चल अब अपनी खास वाली सेवा कर दे। और रजनी, अगर सीखना चाहे तो उसे भी सिखा दे।

बिमला ने कहा, “हाँ मालकिन, बिल्कुल,” और अपनी साड़ी उतारने लगी।


जारी रहेगी।
बहुत ही शानदार लाजवाब और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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