पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की...
एक जबरदस्त संभोग-सभर रात्री के बाद की सुबह, राजेश, मदन, शीला और फाल्गुनी के बीच चुदाई का दौर एक बार फिर से शुरू हो गया.. इस सत्र में विराम तब हुआ जब फाल्गुनी घर जाने के लिए निकली..
इस तरफ, अपनी माँ के घर आई हुई मौसम जब सुबह उठी तब अपने बेडरूम का दरवाजा बंद पाकर ताज्जुब में पड़ गई.. काफी खटखटाने के बाद जब नौकर ने दरवाजा खोला तब वह उसपर भड़क गई.. पोंछा लगाने का बहाना देकर नौकर वहाँ से निकल लिया.. मौसम के ऑफिस निकलने के बाद मौसम की माँ रमिलाबहन ने नौकर से पूछकर तसल्ली की.. कहीं मौसम को कुछ भनक तो नहीं लगी.. उनके अंतरंग संबंधों के बारे में..
इस तरफ, पूरे दिन के काम से निपटकर, वैशाली अपने घर के बाथरूम में शावर लेते हुए कामुक विचारधारा में लिप्त थी.. उसका बदन वासना से तप रहा था.. बिस्तर पर पिंटू के आते ही, दोनों एक दूसरे से लिपट कर संभोग की शुरुआत कर ही रहे थे की तभी.. पिंटू के लंड ने पिछली बार की तरह जवाब दे दिया और अपना कडापन छोड़ दिया.. वैशाली फिर प्यासी रह गई.. वह पिंटू पर भड़क गई.. और पिंटू निराश बैठा रहा
अब आगे...
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फाल्गुनी अब शीला-मदन के पड़ोस में शिफ्ट हो चुकी थी.. और अब उसने राजेश की कंपनी भी जॉइन कर ली थी.. पर जैसा मदन और शीला का अनुमान था.. वैसा समूह चुदाई का मौका अब तक नसीब नहीं हुआ था.. चूंकि पिंटू अब राजेश की ऑफिस छोड़ चुका था.. और वह राजेश का आधे से ज्यादा कार्यभार संभाले हुए था.. राजेश काम के बोझ के तले ऐसा दबा हुआ था की फाल्गुनी का इस्तेमाल चुदाई के बजाय.. काम सिखाने के लिए करने में ही गनीमत समझी..
पूरे दिन काम के बाद.. राजेश फाल्गुनी के साथ देर तक ऑफिस बैठा रहता रहता था.. पर उसकी प्राथमिकता काम सिखाने की ही रहती थी.. हाँ, उस दौरान थोड़ी बहोत चुम्मा-चाटी और हल्का सा फॉरप्ले जरूर कर लेते थे.. पर उससे अधिक कुछ भी नहीं..!! राजेश एक मँझा हुआ बिजनेसमेन था.. चुदाई के चक्कर में अपने बिजनेस की बलि चढ़ाने वालों में से नहीं..!! यहाँ तक की रविवार के दिन भी फाल्गुनी राजेश के साथ रात तक ऑफिस में रहती थी
शीला और मदन इंतज़ार करते रहते पर फाल्गुनी बहोत देर से आती.. कुछ दिनों शीला ने उसे नाश्ते के लिए घर पर भी बुलाया.. तब फाल्गुनी ने उन्हें बताया की काम की चक्कर में कैसी लगी पड़ी थी.. और राजेश के साथ भी उसका खास कुछ हो नहीं पा रहा था.. पर फाल्गुनी भी नया काम सीखने के लिए उत्साहित थी और उसने आश्वासन दिया की जल्द ही वो चारों साथ मजे कर पाएंगे
कुछ दिनों बाद... मदन ने राजेश को फोन किया
मदन: "भाई.. तूने तो मुझे कुएं में उतारकर रस्सी ही काट ली"
राजेश ने हँसकर बोला "क्यों.. क्या हुआ भाई?"
मदन ने परेशान स्वर में कहा "शाणा मत बन यार.. फाल्गुनी को यहाँ लेकर तो आया.. पर पूरा दिन तू उसे ऑफिस में ही दबोचे रखता है..!! हमारे बीच वो जो तय हुआ था, उसका क्या हुआ??"
एक लंबी सांस लेकर राजेश ने कहा "यार मदन.. तू तो जानता है... पिंटू को जाने के बाद मेरी ऑफिस का हाल खराब है.. पूरा काम वही देखता था तभी तो मैं वहाँ आराम से फाल्गुनी के साथ पड़ा रहता था..!! पिंटू के भले के लिए मैंने उसे जाने दिया.. पर यहाँ मेरा हाल बेहाल हो गया.. अब फाल्गुनी यहाँ आई है तो उसे काम तो सिखाना पड़ेगा ना..!!"
मदन: "वो बात तो ठीक है यार पर... कुछ तो जुगाड़ कर..!! तू वहाँ फाल्गुनी को देर तक ऑफिस में रोके रखता है.. तो तेरा तो बंदोबस्त हो जाता होगा.. पर मेरा क्या..!!"
राजेश: "मेरा यकीन कर मदन.. यहाँ ऑफिस में भी हम कुछ नहीं कर पाते..!! इतने समय से मैं तेरे घर भी कहाँ आ पाया हूँ..!!"
मदन: "यार पता नहीं.. कुछ मज़ा नहीं आ रहा"
राजेश: "धीरज धर.. कुछ ही दिनों की बात है.. फाल्गुनी अब लगभग सारा काम सीख चुकी है.. हम लोग जल्द ही मिलेंगे"
मदन: "ठीक है"
कहकर उसने फोन काट दिया.. मदन ने एक गहरी सांस ली और सोच में पड़ गया..
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कुछ दिनों बाद जब मदन और शीला मॉर्निंग वॉक के लिए नजदीक के बगीचे में गए तब वहाँ उन्हें जॉगिंग करते हुए फाल्गुनी दिख गई.. आज उसकी जवानी कसे हुए टॉप और शॉर्ट्स में गजब ढा रही थी.. उसके टॉप का गला कुछ ज्यादा ही खुला था, जिससे उसके भरपूर वक्ष लुभा रहे थे.. शायद वो अपनी टांगों की वैक्सिंग भी करके आयी थी, इसलिए उसकी त्वचा भी चमक रही थी.. पसीने से तर होकर उसकी टीशर्ट छाती से चिपक गई और अंदर स्पोर्ट्स ब्रा पहनी होने के बावजूद उसकी निप्पल का आकार स्पष्ट नजर आ रहा था.. परिश्रम के कारण वह हांफ रही थी और उसकी ऊपर नीचे हो रही छाती को मदन लालच भरी नज़रों से देख रहा था..
फाल्गुनी उन दोनों को देखकर मुस्कुराई और उनके करीब आई..
शीला: "क्या बात है फाल्गुनी.. फिट्नेस का बड़ा ही ध्यान रखा जा रहा है..!!" उसने एक नजर इस अप्सरा सी सुंदर फाल्गुनी के कमसिन बदन को देखा..
रुमाल से अपना पसीना पोंछते हुए फाल्गुनी ने जवाब दिया "हाँ शीला भाभी.. खयाल तो रखना ही पड़ता है.. वरना पेट के इर्दगिर्द चर्बी जमने में कहाँ देर लगती है..!!" शीला की गदराई कमर की ओर देखते हुए उसने कहा.. फाल्गुनी मदन को अंकल कहती थी और शीला को भाभी.. यह शीला को भी पसंद था
शीला मुस्कुराई और बोली "एक बार तेरी शादी और दो-तीन बच्चे हो जाने दे.. फिर हम बात करेंगे"
फाल्गुनी ने हँसकर कहा "इसीलिए तो मुझे वो सब जमेले में पड़ना नहीं है.. मैं जैसी हूँ वैसी ही खुश हूँ"
कब से फाल्गुन के सुंदर स्तनों को टकटकी लगाकर देख रहे मदन को ऐसा महसूस होने लगा जैसे वह इस संवाद का हिस्सा था ही नहीं..!! फार्महाउस पर जिस कदर उसने फाल्गुनी के साथ भरपूर संभोग किया था.. उस रात से लेकर आज तक वह हर रात उसके जिस्म को फिर से भोगने के सपने देखता रहा था.. अब राजेश की ऑफिस के चक्कर में फाल्गुनी पड़ोस में होने के बावजूद मिल नहीं पा रही थी और इस बात से काफी परेशान था वो.. फाल्गुनी के यहाँ शिफ्ट होने के बाद उसने आज फाल्गुनी को पहली ही बार देखा था
मदन: "काफी दिनों बाद दिखी फाल्गुनी..!!"
फाल्गुनी ने कहा "हाँ अंकल.. इतने दिन तो बस काम सीखने में ही चले गए.. काम नया है और यह मेरी पहली जॉब है इसलिए.. थोड़ा ज्यादा ही टाइम हो गया.. अब देखिए ना.. पिछले एक महीने में यह पहला संडे है जो मुझे छुट्टी मिली है.. तो आज जॉगिंग करने आ गई" खुले हुए टॉप के बीच से नजर आ रही दो स्तनों के बीच की दरार पर मदन की टिकी हुई नजर से थोड़ी अस्वस्थ हो गई फाल्गुनी.. वैसे तो वह बिना कपड़ों के पूरी रात चुद चुकी थी मदन से.. पर शायद तब वह शराब के नशे में थी इसलिए ज्यादा हिचक नहीं हुई थी..
मदन ने फाल्गुनी की कमर पर हाथ रखते हुए कहा "आज क्या कर रही हो फिर?? फ्री हो तो आ जाओ घर पर" शैतानी मुस्कान के साथ मदन ने आँख मारते हुए कहा.. फाल्गुनी ने शरमाकर नजरें झुका ली
शीला: "हाँ फाल्गुनी.. अच्छा आइडिया है.. यार तू घर जाकर फ्रेश होकर आजा.. आज पूरा दिन साथ रहेंगे.. मज़ा आएगा.. राजेश को भी बुला लेते है.. क्या खयाल है..!!"
फाल्गुनी: "उनके घर मेहमान आए हुए है.. वो तो आज बीजी होंगे"
मदन: "कोई बात नहीं.. हम दोनों तो है ही.. मज़ा आएगा"
फाल्गुनी ने कुछ देर सोचा.. शायद वो अब भी हिचक रही थी "दरअसल आज बहोत दिनों के बाद जॉगिंग की तो पूरा शरीर दर्द कर रहा है.. तो सोचा है की थोड़ा आराम कर लेती हूँ आज के दिन"
मदन: "मैं तुझे ऐसा मसाज दूंगा की सारा दर्द गायब हो जाएगा..!!"
शीला: "हाँ फाल्गुनी.. और वैसे भी एकाद मस्त राउंड हो जाएँ तो सारी थकान उतर ही जाती है.. और उससे पहले मदन तुझे मसाज भी कर देगा.. एक-दो ड्रिंक्स भी लेंगे.. फिर मूड होगा तो घर पर कुछ बनाएंगे या बाहर से ऑर्डर कर लेंगे"
अब फाल्गुनी के पास बचने के और कोई रास्ता नहीं था
फाल्गुनी: "ठीक है.. मैं घर जाकर थोड़ा फ्रेश होकर आती हूँ.. पूरे कपड़े पसीने से भीग चुके है"
शीला: "ओके.. हम भी लौट ही रहे थे.. चलो साथ चलते है"
साथ चलते वक्त एक दो बार मदन का हाथ फाल्गुनी की गदराई हुई गांड पर और तंग वक्षों को लग गया था.. इन सब बातों के कारण मदन की शॉर्ट्स में उसका कड़क हथियार तम्बू बनकर खड़ा हो गया था..
घर पहुंचते ही मदन ने अपनी अन्डरवेर को छोड़कर बाकी सारे कपड़े उतार दिए.. शीला ने भी अपने सारे कपड़े उतारकर गाउन पहन लिया..
कुछ ही देर में दरवाजे पर दस्तक हुई और मदन ने फट से दरवाजा खोला.. सामने फाल्गुनी खड़ी थी.. उसे अंदर लेकर मदन ने दरवाजा बंद किया और उससे लिपट पड़ा.. थोड़ी देर एक असहजता के बाद फाल्गुनी ने भी रिस्पॉन्स देना शुरू कर दिया..
किचन से बाहर आई शीला ने कहा "तुम दोनों तो अभी से शुरू हो गए.. तुम्हें मसाज नहीं करवाना क्या फाल्गुनी"
यह सुनते ही मदन ने फाल्गुनी को आलिंगन से मुक्त किया..
मदन: "मैंने कब मना किया..!! यह तो मसाज से पहले उसको थोड़ा वॉर्म-अप कर रहा था"
शीला ने शरारती अंदाज में कहा "सब समझती हूँ तेरा वॉर्म-अप.. अभी मैं नहीं आई होती तो तू शुरू हो जाता... चल फाल्गुनी अंदर बेडरूम मे..!!"
फाल्गुनी मुस्कुराते हुए शीला के पीछे बेडरूम में गई और उनके साथ साथ मदन भी अंदर गया..
शीला ने डबल बेड पर पहले ही चद्दर बिछा रखी थी ताकि मसाज के कारण बेड गंदा न हो.. फाल्गुनी को पता नहीं चल रहा था की आगे क्या करे इसलिए वह बिना कुछ बोलें शीला की ओर देखने लगी
शीला: "क्या सोच रही है..!!! मसाज नहीं करवाना क्या..!! चल.. कपड़े उतार दे..!!"
जाँघिया पहने खड़ा मदन अपने लंड को मसलते हुए फाल्गुनी की निर्वस्त्र काया को देखने के लिए उतावला हो रहा था.. फाल्गुनी एक पल के लिए रुकी और फिर उसने अपनी टी-शर्ट उतारना शुरू किया.. दुकान का शटर खुलते ही जैसे अंदर रखा माल नजर आता है वैसे ही टी-शर्ट उठते ही फाल्गुनी के ब्रा में कैद सूडोल स्तन नजर आने लगे.. एक ही पल में उसने शॉर्ट्स भी उतार दी..
इसके बाद फाल्गुनी अपने संगमरमर से बदन पर सिर्फ गुलाबी रंग की ब्रा और पेन्टी पहन कर बेड पर पेट के बल लेट गई.. उसका गदराया हुआ मस्त बदन देखकर शीला भी झूम उठी.. इतनी हॉट और सेक्सी लड़की के साथ फिर से मस्ती के ख्याल से शीला भी उत्तेजित हो गई.. उसकी चूत मे भी गीलापन महसूस होने लगा..
शीला ने फाल्गुनी की ब्रा का हुक खोल दिया और दोनों पट्टे बाजू में हटा दिए.. अब उसके पूरे बदन पर केवल छोटी सी पेन्टी ही थी.. शीला ने मदन के हाथो में तेल लगाकर उसके हाथ फाल्गुनी की नंगी पीठ पर रख दिए.. वो अब फाल्गुनी की पीठ को मालिश करने लग गया.. जैसे ही मदन के हाथों ने उसके तन को छुआ, फाल्गुनी कसमसाने लगी.. उसकी मुलायम काया को मसलने से उसका औजार और भी सख्त हो गया.. अब किसी भी बात की परवाह किये बगैर मदन ने अपनी अन्डरवेर उतार दी और अपने तने हुए लौड़े को आज़ाद किया.. पूर्ण रूप से नंगे मदन को सिर्फ पेन्टी पहनकर लेटी हुई कामसुन्दरी फाल्गुनी की मालिश करते हुए देखना किसी पोर्न फिल्म से कम नहीं था..
दूसरी और से शीला भी उसकी मुलायम पीठ को सहलाने लगी.. मालिश करते करते मदन का हाथ अक्सर नीचे फाल्गुनी की गांड पर चला जाता था.. मालिश करते करते कई बार उसके हाथ फाल्गुनी की पेन्टी में घुस गए.. शीला को पता था की मदन को फाल्गुनी की गांड भी मसलना था.. जब जब मदन का हाथ फाल्गुनी की पेन्टी में घुसता, वो एक मादक सिसकारी भर लेती थी.. एक बार भी उसने मदन को रोकने के लिए भी नहीं कहा.. कई बार जब मदन मालिश के लिए खड़े रहने की जगह बदलता, तब उसके कड़क लंड का स्पर्श फाल्गुनी के शरीर को हो जाता.. हर बार वो रोमांच से काँप उठती थी..
"क्या फाल्गुनी मालिश अच्छी लग रही हैं न?" शीला ने मुस्कुराते हुए पूंछा..
"हाँ भाभी, बदन एकदम हल्का सा लग रहा हैं, और बहुत मजा आ रहा हैं.."
"हाँ, मज़ा तो मालिश करने वाले को भी बड़ा आ रहा हैं," शीला ने व्यंग कसते हुए कहा..
मदन ने अपने हाथ फाल्गुनी की भरी हुई, मांसल और पुष्ट जाँघों पर रखा और वो शीला के साथ मिलकर जाँघों की मालिश करने लगे.. मदन का हाथ पेन्टी के नीचे के हिस्से से अंदर घुसने लगा.. फिर वही सिसकारियां और फिर वही मदन का फाल्गुनी के सेक्सी शरीर को सलामी देता हुआ लंड.. इस सारे माहौल से उत्तेजित होने से शीला की चूत भी पूरी तरह गीली हो गई..
मदन को फाल्गुनी की पिण्डलियों की मालिश में लगाकर शीला ने अपने दोनों हाथ फाल्गुनी की पेन्टी में घुसा दिए.. शीला उसके गोल मटोल चूतडों को मसलने लगी.. फाल्गुनी की उत्तेजना अपनी चरम सीमा पर थी..
अब बिना संकोच किये वह बोल उठी, "आह, भाभी कितना मज़ा आ रहा हैं.. आप कितनी प्यारी हो और कितना अच्छा मसाज कर रही हो.. आह, आह, फक.."
शीला ने उसकी पेन्टी निकाल कर उसके घुट्नों तक नीचे कर दी और पूरी ताकत से उसकी गांड को मसलने लगी.. जैसे ही शीला उस पर झुकती, उसके बड़े बड़े बबले उस पर दब जाते.. फिर शीला को भी मस्ती चढ़ने लगी और शीला ने मदन के दोनों हाथ फाल्गुनी की गांड पर रख दिए और शीला खुद थोड़ा पीछे हट गई.. मदन पूरी लगन से उन भरे हुए नितम्बोँ को मसलता गया.. बीच बीच में मदन की उंगलिया फाल्गुनी के योनि को भी स्पर्श कर रही थी.. फाल्गुनी को भी समझ में आ गया की ये मर्द के मजबूत हाथ उसकी गांड को मसल रहे थे और वह शीला के हाथों का स्पर्श नहीं था..
"फाल्गुनी, अब मदन के बलिष्ठ हाथ की सुपर हॉट मालिश का मज़ा लो.. हाय , कितना सेक्सी हैं यह नज़ारा," शीला ने कहा और फाल्गुनी के सर को प्यार से सहलाने लगी..
"ओह अंकल, कितना अच्छा मसल रहे हो आप, ओह माय गॉड, यस, ओह फक, आह, आह," फाल्गुनी को खुद को पता नहीं चल रहा था की वो क्या बोल रही थी..
शीला को यकीन था की उसकी चुत भी योनिरस से पूरी तरह गीली हो गई होगी.. आखिर मदन ने उन मस्त चूतड़ों पर से अपने हाथ हटा दिए.. मालिश पूरी हो गई थी..या यूं कहिए के मदन से अब रहा नहीं जा रहा था..
फाल्गुनी ने उठ कर अपनी पेन्टी पहन ली और ब्रा को अच्छे से बाँध लिया फिर शीला के गले लग गई.. दोनों पसीने से और गीली चूत से लबालब थी.. बिना संकोच शीला ने उसके होठों पर अपने होठ रख दिए.. उसने भी शीला के चुम्बन का स्वीकार किया और दो मिनट तक दोनों एक दूजे के होठों को चूसती रही.. अब वह शीला की बाहों से निकल कर मदन की तरफ मुड़ गई..
शीला को कुछ समझ में आये इसके पहले उसने मदन को बाहों में भर लिया.. उसकी कठोर अमरूद जैसी चूचिया मदन की छाती पर दबने लगी.. मदन ने फाल्गुनी को जबरदस्त किस किया और वो भी अपनी जीभ से उसका मुँह-तोड़ जवाब देने लगी.. मदन के हाथ फाल्गुनी की पीठ और गांड को सहलाते हुए उसकी चूचियों पर चले गए.. शीला ने मदन को पीछे से आलिंगन दिया.. अब उसकी छाती को फाल्गुनी के स्तनों का और पीठ को शीला के विशाल पुष्ट स्तनों का स्पर्श मिल रहा था..
फाल्गुनी के इस अंदाज से मदन और भी पागल हो गया.. उसने झट से उसकी ब्रा का हुक खोला और ब्रा को उसके शरीर निकल कर जमीन पर फेंका.. फाल्गुनी के नीचे लिटाकर मदन उसकी चूचिया बारी बारी चूसने लगा.. शीला ने भी अपने कपडे उतारे और मदन का तगड़ा लौड़ा मुँह में लेकर चूसने लगी.. मदन ने फाल्गुनी की पेन्टी निकाल दी और उसकी गीली चूत चाटने लगा.. शीला ने फाल्गुनी के भरे हुए स्तनों को चाटना और उसके निप्पल्स को चूसना शुरू किया..

"ओह भाभी, आप दोनों कितने सेक्सी हो.. ऐसी मालिश कर दी की मैं एकदम हॉट हो गई हूँ.... अब तो हम तीनो एक साथ सेक्स करेंगे.. अंकल, ऐसे ही चाटते रहिए.. आह आह, फक, आय ऍम सो फकिंग हॉर्नी.."
"फाल्गुनी डार्लिंग, क्या मीठी मीठी चूत हैं तेरी, और कितना ज्यूस निकलते जा रहा हैं," फाल्गुनी की चूत चाटते हुए और दो उंगलियों से चोदते हुए मदन ने कहा..
मदन ने फाल्गुनी की जाँघे और फैलाकर अब तीन उंगलिया घुसेड़ने लगा.. योनि रस से भरी उंगलिया चाट कर और भी जोर लगाकर चाटने और चोदने लगा..
"क्या मस्त माल हैं तू फाल्गुनी, चल अब तू मेरी चूत चाट," कहकर शीला उसके मुँह पर अपनी गीली चूत लगाकर बैठ गई.. मालिश के बाद वह तीनो इतने गर्म हो गए थे की हर कोई कुछ भी करने को तैयार था.. फाल्गुनी शीला की चूत को चाटते हुए योनि से निकलता पानी निगलती गई.. फिर उसने शीला का क्लिटोरिस का दाना मुँह में लिया और उसे चूसती गई.. शीला को जल्द ही एक ज़बरदस्त ऑर्गजम आया.. शीला की चूत के रस से फाल्गुनी का पूरा मुंह भर गया..
मदन से अब सब्र नहीं हो रहा था, उसने फाल्गुनी की टाँगे खोली.. अपने लंड का सुपाड़ा उसकी कसी हुई बुर के छेद पर रखा और एक मस्त धक्का लगाते हुए उसे चोदने लगा.. शीला फाल्गुनी के स्तनों को चूसती और उसके निप्पल्स को हलके से काटते गई..
मदन फाल्गुनी को मिशनरी स्टाइल में पूरी ताकत लगाकर चोद रहा था.. फाल्गुनी के मुँह से सिसकारियां और आंखों से ख़ुशी के आंसू छलक रहे थे.. मदन का एक नयी लड़की के साथ भरपूर सम्भोग का सपना साकार हो रहा था..
"चल फाल्गुनी, अब कुतिया बन जा, तुझे डॉगी स्टाइल में पीछे से चोदता हूँ," कहकर मदन उसके बदन पर से उठा.. शीला ने मदन को बाहों में लेकर किस किया और पूंछा, "अब तो खुश हो न तुम मदन?"
"हां शीला, इसको चोदने के बाद तुम को चोदना है.. मज़ा आ रहा है आज तो.. जब मैं तुम्हे चोदना शुरू करूंगा तब ये सेक्सी फाल्गुनी तुम्हारी चूचियों को चूसेगी.."
फाल्गुनी अब डॉगी पोज में आ गई और एक ही झटके में मदन का लम्बा चौड़ा लंड उसकी चूत में धक्के मारने लगा.. शीला फाल्गुनी की गांड, स्तनों और जांघों को सहलाती रही.. फिर शीला ने मदन और फाल्गुनी दोनों को बिस्तर के नीचले हिस्से में जाने को कहा.. शीला ऊपर के हिस्से में पीठ के बल लेट गई और फाल्गुनी का मुँह अपने भोसड़े से सटा दिया..
अब फाल्गुनी शीला की चूत चाटकर बहता हुआ पानी पी रही थी और शीला आँखें मूंदकर आनंद लेने लगी.. करीब पंद्रह मिनट तक मदन डॉगी स्टाइल में चोद कर फाल्गुनी को स्वर्ग का सुख धरती पर ही दे रहा था.. जैसे ही मदन झड़ने को हुआ, उसने चूत से लौड़ा निकाल दिया.. फिर सारा वीर्य फाल्गुनी के मुँह में गिरा दिया.. इतना सारा और इतना गाढ़ा वीर्य निकला की काफी सारा उसके होठों से बाहर उसके गालों, बूब्स पर और जाँघों पर गिरा.. शीला ने फाल्गुनी को नीचे लिटाया और उसके शरीर पे से सारा वीर्य चाट चाट कर पी गई..
दस मिनट के विश्राम के बाद मदन ने शीला की पलंगतोड़ चुदाइ की.. उस दौरान फाल्गुनी अपनी चूत शीला से चटवाती रही..
करीब दो घंटों तक मदन ने उन दोनों को एक और बार भरपूर सुख का अहसास दिया..
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पीयूष मुंबई गया हुआ था इसलिए आज ऑफिस में आरामदेह और मस्ती भरा माहोल था.. जब बॉस बाहर हो तब अमूमन ऐसा ही होता है.. हालांकि मौसम जरूर मौजूद थी पर वह ज्यादातर बेंगलोर वाली ऑफिस का काम संभालती थी इसलिए यहाँ के कर्मचारियों पर उसका उतना प्रभाव नहीं था.. और मौसम आज ज्यादा काम करने के मूड में थी भी नहीं..
पीयूष की केबिन के बगल में बने ऑफिस में वो आराम से कुर्सी से पीठ सटाकर झूल रही थी.. ढीला सा टॉप और टाइट ब्लू जीन्स पहने हुए गोरी चीट्टी मौसम, अब पहले के मुकाबले अधिक तंदूरस्त नजर आ रही थी.. उसके दिमाग में कुछ विचार आया और तुरंत इंटरकॉम फोन उठाकर उसने वैशाली का एक्सटेंशन डायल किया..
वैशाली ने फोन उठाते ही बड़ी ही अदब के साथ जवाब दिया "यस मेडम..!!"
सुनकर ही मौसम की हंसी छूट गई "क्या यार..!! मैडम मैडम लगा रखा है..!! क्या कर रही है?"
मुस्कुराकर वैशाली ने जवाब दिया "बस वही.. पिछले कंसाइनमेंट का क्वालिटी चेक हुआ की नहीं, वही फेक्टरी वालों से बात कर रही थी.. सर के वापिस आने से पहले मुझे वह काम खत्म करना है.."
मौसम: "वो सब छोड़.. काम तो होता रहेगा.. तू अंदर आजा, बैठकर गप्पे लड़ाते है.. आज कुछ काम करने का मन नहीं है.."
वैशाली: "बस एक दो फोन कर लू फिर आती हूँ"
मौसम: "ओके.." कहकर उसने फोन का रिसीवर रख दिया
करीब पाँच मिनट बाद.. वैशाली ने ऑफिस के दरवाजे पर दस्तक दी और अंदर चली आई.. आरामदायक कुर्सी पर झूल रही मौसम की सामने वाली कुर्सी पर जा बैठी
मौसम ने दोस्ताना अंदाज में पूछा "क्या चल रहा है यार..!!"
वैशाली: "सब ठीक.. तू बता.. बेंगलोर कैसा है? और क्या चल रहा है विशाल के साथ? मजे कर रही होगी तू तो..!!"
विशाल का नाम सुनकर एक पल के लिए मौसम का चेहरा मुरझा गया पर उसने तुरंत अपने आप को संभाल लिया..
मौसम: "बस यार.. चल रही है ज़िंदगी.. बेंगलोर वैसे सीटी तो अच्छा है.. पर वहाँ का ट्राफिक, बाप रे बाप!! इंसान पैदल जल्दी पहुँच जाए.. मैं तो ऑफिस के अलावा कहीं जाना हो तो मेट्रो ही इस्तेमाल करती हूँ.. हाँ क्लाइमेट काफी अच्छा है.. यहाँ के मुकाबले गर्मी भी कम है..!!"
वैशाली ने मस्ती भरी मुस्कान के साथ कहा "बाहर गर्मी कम होगी पर बेडरूम में तो गर्मी जबरदस्त हो जाती होगी.. हैं ना..!!"
मौसम की नजरें एक पल के लिए झुक गई.. बात बदलने के इरादे से उसने पूछा "तेरा कैसा चल रहा है पिंटू के साथ?"
वैशाली एक पल के लिए रुकी और फिर बोली "सब ठीक ही चल रहा है.. अभी तो महीने के आधे दिन वो यहाँ और बेंगलोर के बीच अप-डाउन करता रहता है"
मौसम: "यार.. तेरी साइज़ तो पहले के मुकाबले बड़ी हो गई.. पिंटू दोनों हाथों से भी नहीं रौंद पाता होगा इन्हें" वैशाली के बड़े बड़े स्तनों की ओर इशारा करते हुए उसने कहा
वैशाली: "बड़े तो तेरे भी हो गए है.. आटे की तरह गूँदता है क्या विशाल तेरे?? ही ही ही" ठहाका मारते हुए उसने कहा
मौसम ने नजरें फेर ली.. और कुर्सी पर सिर टीकाकर छत की ओर देखती रही.. करीब एक दो मिनट तक उसने कुछ जवाब नहीं दिया.. वैशाली भी चुपचाप उसे तांकती रही..!! एक अजीब सा तनाव था दोनों के मन में.. अपनी अपनी ज़िंदगियों को लेकर.. पर दोनों बताने से कतरा रही थी.. पता तो दोनों ही को था पर जाहीर नहीं कर पा रही थी
केबिन का माहोल थोड़ा गमगीन और भारी भारी सा महसूस होने लगा था..
एक लंबी सांस लेकर मौसम ने कहा "चल वैशाली.. कहीं बाहर चलकर बात करते है.. यहाँ मुझे घुटन सी हो रही है..!!"
"अभी?? ऑफिस के टाइम कहाँ बाहर जाएंगे?" वैशाली ने चोंककर कहा..
"तू ऑफिस की चिंता छोड़.. और कोई अच्छी सी जगह बता.. कोई रेस्टोरेंट या कैफै.. जहां इत्मीनान से बातें कर सकें" मौसम ने कुर्सी से उठते हुए कहा
"एक नया कैफै खुला तो है.. मैंने अभी अभी इंस्टाग्राम की रील्स में देखा था.. देखने मे तो जगह बहुत ही जबरदस्त है.. मैं कब से कह रही थी पिंटू को.. की एक बार चलते है.. पर उसे टाइम ही कहाँ मिलता है..!!" वैशाली ने जवाब दिया
वैशाली का हाथ पकड़कर उसे खड़ा करते हुए मौसम ने कहा "बस तो तय रहा.. वहीं चलते है.. मैं कार निकालती हूँ.. तू अपना सामान समेट कर आजा.. फिर वहाँ से मैं तुझे सीधे तेरे घर ही ड्रॉप कर दूँगी"
अगली पाँच मिनट में मौसम अपनी मर्सिडीज गाड़ी ड्राइव कर रही थी और साथ में वैशाली थी
करीब १० मिनट की ड्राइव के बाद दोनों एक पॉश एरिया में बने आलीशान कैफै में जा पहुंचे.. दिन का समय था और व्यस्त दिन था इसलिए कैफै में उन दोनों के अलावा और कोई ग्राहक नहीं था
कोने के एक टेबल पर दोनों जा बैठे.. मौसम ने दो कॉफी और एक मँगो चीज़केक का ऑर्डर दिया..
मौसम: "हम्म.. अब खुलकर बातें हो सकती है.. बता, क्या प्रॉब्लेम है??" उसने बेझिझक पूछ लिया
इस सवाल से एकदम ही चोंक गई वैशाली.. जैसे मौसम ने उसे अनजाने में पकड़ लिया हो..!!
वैशाली: "क.. कौनसा प्रॉब्लेम? कैसा प्रॉब्लेम? तू क्या कह रही है मौसम??"
मौसम: "देखो वैशाली.. हम काफी समय से दोस्त है.. तेरे चेहरे को में अच्छे से पढ़ पाती हूँ.. शादी के बाद इतना तो मैं सीख ही गई हूँ.. जब से आई हूँ तब से देख रही हूँ.. तू अब वो पुरानी वाली वैशाली नहीं रही"
वैशाली ने झूठमुट हँसते हुए कहा "अभी तूने ही कहा ना.. शादी के बाद बदलाव आते ही है..!! वैसे मुझ में भी थोड़ा ठहराव नजर आ रहा होगा"
मौसम: "पिंटू से शादी होने से पहले भी तू शादी-शुदा ही थी.. मैं तो तब से जानती हूँ तुझे...!! और पिंटू से शादी के बाद भी मैंने तुझे कई दफा देखा है.. तू खुश ही थी.. बस इन दो-तीन महीनों में ही कुछ हुआ है.. बता न यार.. क्या गड़बड़ चल रही है?"
नजरें चुराते हुए वैशाली ने कहा "कुछ नहीं यार.. ऐसे ही थोड़ी तबीयत उन्नीस-बीस रहती है आजकल"
मौसम: "बहाने मत बना यार.. इतना करीब से जानते है हम एक दूसरे को.. ऐसा समय साथ बिताया है साथ जो कभी कभी करीबी सहेलियों के बीच भी नहीं होता.. मैंने हमेशा तुझे अपनी बड़ी बहन की तरह ही माना है.. कुछ भी छुपाया नहीं है.. फिर वो मेरे और फाल्गुनी के बीच की बात हो या जीजू के साथ.. मैंने तुझे सब बताया है.. यहाँ तक की मैंने अपनी नज़रों के सामने मेरे पापा के साथ तुझे सब कुछ करते हुए भी देखा है.. इतना सब होने के बावजूद अगर तू मुझे अपना प्रॉब्लेम बताने लायक नहीं समझती तो कोई बात नहीं" कहते हुए मौसम का चेहरा मुरझा गया
वैशाली: "यार, तू कहाँ की बात कहाँ ले जा रही है..!! तुम लोगों से जितना प्यार मिला है मुझे, उसे मैं कभी नहीं भूल सकती.. संजय के साथ जो हुआ उसके बाद से तुम सब ने मेरी बहोत मदद की थी..!!"
मौसम: "तो फिर बता.. क्या बात है?? पिंटू के साथ कोई प्रॉब्लेम.. या फिर सास तंग कर रही है?"
वैशाली: "नहीं यार.. सास-ससुर तो ठीक ही है.. ज्यादा कोई परेशानी नहीं है"
मौसम: "हम्म.. मतलब पिंटू के साथ कुछ हुआ है.. तुम दोनों वापिस झगड़ पड़े क्या?"
वैशाली ने मुंह फेरते हुए कहा "ऐसा भी नहीं है.. कुछ खास नहीं है.. थोड़ा बहोत तो चलता रहता है"
मौसम: "पर बता तो सही.. क्या चल रहा है??"
वैशाली एक पल के लिए रुकी.. लंबी सांस ली और फिर बोलना शुरू किया
"यार, शुरू में तो सब ठीक ही था.. पर पिछले एकाद महीने से पिंटू को..." कहते हुए वह रुक गई
मौसम: "क्या हुआ है पिंटू को?"
वैशाली: "यार.. कैसे बताऊँ..!! कुछ नहीं.. पर वो.. स्टार्टिंग प्रॉब्लेम हो गई है"
मौसम: "मतलब? मैं समझी नहीं..!!"
वैशाली: "यार.. इतना भी नहीं समझती.. मर्दों में स्टार्टिंग प्रॉब्लेम कौन सी होती है??"
अब मौसम के समझ में आया..!!
मौसम: "ओह्ह.. अब समझी..!! कब से हो रहा है ये??"
वैशाली: "काफी टाइम से.. एक महीने के ऊपर हो गया.."
मौसम: "तो किसी डॉक्टर को दिखा दो.. आजकल तो ये बहोत आम सी बात है"
वैशाली: "पिंटू नहीं मान रहा.. उसे कुछ कहूँ तो उसे ऐसा लगता है जैसे मैं उसकी मर्दानगी पर सवाल उठा रही हूँ"
मौसम: "कैसी बचकानी बात है..!! इस जमाने में स्ट्रेस के चलते कई मर्दों को ऐसा होता है.. मैंने इसके बारे में पढ़ा भी है.. इरेक्टाइल डिसफ़ंक्शन कहते है इसे.. दवाइयों से और कसरत से आसानी से इलाज भी हो जाता है इसका"
वैशाली: "यार, मैंने बहोत समझाने की कोशिश की पर वो मान ही नहीं रहा.. अब तो बिस्तर पर मुझसे करीब आने से भी कतराता है.. मुझे तो लगता है की इसीलिए वो ज्यादातर बेंगलोर ही चला जाता है.. पहले एक दो बार तो मुझे लगा की काम के बोझ के कारण हो रहा होगा.. पर फिर ये सिलसिला चलता ही गया.. अब तू ही बता, मैं क्या करूँ!!" निराश वैशाली की आँखें नम हो गई
मौसम ने एक गहरी सांस ली और कहा "यार, मैं तेरा प्रॉब्लेम समझ सकती हूँ.. पर ये कोई ऐसी बात नहीं है की कोई पिंटू को इस बारे में समझा सकें.. कोई उससे बात भी करेगा तो वो तुझ पर ही भड़केगा..!! कुछ नहीं यार.. थोड़ा वक्त बीतने दे, सब ठीक हो जाएगा"
वैशाली: "यार, बिना कुछ किए कैसे ठीक होगा..!! और तुझे तो पता है मेरी फितरत.!! बिना कुछ किए इतने लंबे समय तक रहना मेरे लिए बहोत मुश्किल है..पूरा दिन गंदे गंदे खयाल आते रहते है मन में..!!" वैशाली की आँखों से आँसू की एक बूंद सरककर उसके गालों पर बिखर गई
मौसम ने उसका हाथ थामते हुए कहा "चिंता मत कर यार.. सब ठीक हो जाएगा"
अपना हाथ झटकते हुए वैशाली ने थोड़े गुस्से से कहा "कैसे ठीक हो जाएगा..!! डॉक्टर के पास जाने से वो मना कर रहा है.. मेरे साथ ठीक से बात भी नहीं करता.. बेडरूम में तो ऐसे पेश आता है जैसे हम दोनों अनजान हो.. मैं ही जानती हूँ कैसे काट रही हूँ एक एक पल..!! पूरा दिन बदन तपता रहता है.. बिना सेक्स के छटपटाती रहती हूँ यार" वैशाली अब फूटफूटकर रोने लगी
मौसम उसके सिर को सहलाते हुए दिलासा देती रही.. पर उसने वैशाली को रोने दिया.. आंसुओं का बहना कोई कमजोरी नहीं, बल्कि एक मानवीय आवश्यकता है.. इससे मन हल्का हो जाता है और हमें फिर से आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है.. अक्सर लोग किसी को रोते हुए देखकर उन्हें चुप कराने की कोशिश करते हैं, लेकिन कभी-कभी किसी को रो लेने देना ही सबसे बड़ा सहारा होता है.. इससे व्यक्ति अपने मन की बात कह पाता है और उसका बोझ कम हो जाता है..
थोड़ी देर बाद जब वैशाली शांत हुई तब मौसम ने उसे पानी का गिलास दिया जिसे पी लेने के बाद वह थोड़ी सामान्य हो गई
वैशाली: "मेरी छोड़.. अपनी सुना.. तेरी तो लाइफ सेट है यार..!! विशाल तुझे मिल गया.. बेंगलोर पहुँच गई.. खुद का बिजनेस.. और अकेले रहते हो तो मजे ही मजे..!! जिम्मेदारियों का कोई बोझ भी नहीं..!!"
मौसम वैशाली की आँखों में एकटक देखती रही.. उन शून्यमनस्क आँखों में वैशाली को छिपा हुआ दर्द महसूस हुआ.. जैसे वह भी कुछ कहना चाहती हो पर कह नहीं पा रही..
वैशाली: "तुम्हारे बीच तो सब सही चल रहा है ना..!! बेडरूम में कोई दिक्कत तो नहीं??"
मौसम मुस्कुराई "अरे नहीं नहीं.. विशाल को तो बस इशारा मिलने की देर होती है.. झपट ही पड़ता है"
वैशाली ने हँसते हुए कहा "चलो बढ़िया है.. कम से कम तेरी सेक्स लाइफ तो ठीक चल रही है"
मौसम ने जवाब नहीं दिया.. और अपने मोबाइल से खेलती रही.. जैसे कुछ बोलने से झिझक रही हो
वैशाली ने उसके हाथों से मोबाइल छीन लिया.. और बोली "अभी कुछ मिनटों पहले तो बड़ा ज्ञान दे रही थी.. दोस्ती का और करीबी होने का.. अब तेरा मुंह क्यों बंद है?? बता, क्या चल रहा है तेरी लाइफ में? भले ही तू बता नहीं रही पर पक्का कुछ बेडरूम प्रॉब्लेम ही लग रहा है मुझे"
मौसम: "ऐसा कुछ नहीं है यार.. विशाल को तो जब देखो झपटने के लिए तैयार ही रहता है.. बस मैं ही उसे करीब आने नहीं देती"
आश्चर्यचकित होकर वैशाली ने कहा "क्या?? तू ऐसा कर क्यों रही है आखिर? तू तो पहले से ही विशाल को चाहती थी.. और तेरी पसंद से ही तो शादी हुई थी.. फिर क्या हो गया? सेक्स करने का मन नहीं करता क्या अब या विशाल से मन भर गया?"
मौसम: "बात वो नहीं है यार..!! वो अब भी उस कमीनी फोरम के कॉन्टेक्ट में है"
वैशाली ने चोंककर पूछा "कौन फोरम? तेरी ऑफिस में काम करती थी वो लड़की?"
मौसम: "हाँ वही.. जिससे विशाल का चक्कर चल रहा था और आखिर विशाल ने मुझे चुना था"
स्तब्ध होकर वैशाली ने पूछा "विशाल से अब उसका क्या लेना देना? हो सकता है दोनों के बीच नॉर्मल बातचीत ही हो रही हो.. आखिर पुरानी दोस्त है उसकी.. तुझे दिल बड़ा रखना चाहिए यार"
यह सुनते ही भड़क उठी मौसम "क्या दिल बड़ा रखूँ?? और पुराने दोस्त के साथ कोई रात के तीन बजे चेट करता है?? और अगर की भी हो तो मेरे सामने विशाल ने कभी उस बात का जिक्र क्यों नहीं किया?? अगर मन में पाप न हो तो फिर बताने में क्या दिक्कत थी उसे?? वो तो मैंने जब उसे रंगेहाथों पकड़ा तब जाकर उसने एकरार किया किया..!! साला.. पूरी रात मेरी टांगों के बीच धक्के लगाता है और मेरे सो जाने के बाद उस फोरम के साथ गुटरगु करता है..!! मैंने तो साफ साफ कह दिया.. अगर वो फोरम से बात करना बंद नहीं करेगा तो मैं उसे छूने भी नहीं दूँगी"
वैशाली: "तो क्या जवाब दिया उसने?"
मौसम: "वहीं मर्दों वाली सफाई.. की दोनों के बीच कुछ नहीं है.. बस पुराने दोस्त है.. नॉर्मल बातें होती है वगैराह.. मुझे अपनी चेट दिखा रहा था.. पर व्हाट्सप्प से चेट डिलीट करना कोई मुश्किल काम नहीं है.. वो मुझे वही दिखाएगा ना जिससे मुझे कोई एतराज न हो. सब समझती हूँ"
वैशाली: "देख यार.. ऐसी छोटी छोटी बातों का पहाड़ मत बना.. यह सब तो चलता रहता है"
मौसम: "नहीं वैशाली.. मेरे लिए यह नॉर्मल नहीं है.. चाहे वो किसी के साथ सो जाए, मुझे कोई दिक्कत नहीं है.. लेकिन दिल से अगर वो किसी और का हुआ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.. तू ही बता.. कल को पिंटू ऐसा कुछ करे तो तुझे कैसा लगेगा?"
इस बात का वैशाली के पास कोई जवाब नहीं था.. वैसे उसे पूरा यकीन था की पिंटू ऐसा नहीं है पर अगर ऐसा कुछ होता तो पक्का बड़ी समस्या होती.. धीरे धीरे उसे मौसम का नजरिया समझ में आ रहा था
वैशाली: "बात तो तेरी ठीक है यार.. पर विशाल को ऐसा करने की आखिर क्या जरूरत पड़ गई!! इतनी सुंदर बीवी है उसकी.. तेरे चलते ही उसे इतना बड़ा बिजनेस मिल गया.. खुद का ऑफिस भी.. पागल है वोह अगर अब भी वो फोरम से कॉन्टेक्ट रख रहा है तो"
मौसम: "अब तक तो मैं शांति से सब सह रही हूँ.. पर अगर वो बाज नहीं आया तो उसकी अक्ल ठिकाने लगाना मुझे आता है"
वैशाली: "हाँ वो तो तू कर ही देगी"
मौसम: "छोड़ ये सब बातें.. और बता की सेक्स के मामले में अभी भी नीचे वीराना ही है या कोई जुगाड़ लगाया??"
वैशाली की आँखें झुक गई "नहीं यार.. मैं पिंटू को धोखा देना नहीं चाहती.. ये सही नहीं होगा"
मौसम: "और पिंटू जो कर रहा है वो क्या सही है??"
चोंककर वैशाली ने पूछा "क्या कर रहा है पिंटू? कहीं किसी के साथ कोई चक्कर...!!"
मौसम: "अरे वैसे नहीं यार.. पर डॉक्टर के पास जाने से मना करना भी तो सही नहीं है.. उसे भी तेरी जरूरतें समझनी चाहिए.. वो नहीं समझेगा तो कौन समझेगा?? पीयूष जीजू?"
वैशाली: "क्या कुछ भी बोल रही है.. मेरे और पीयूष के बीच अब ऐसा कुछ भी नहीं है"
मौसम: "नहीं है तो शुरू कर दे" शरारती हंसी के साथ उसने कहा
वैशाली: " ऐसा कुछ भी किया तो पिंटू को पता चलने में कितनी देर लगेगी? मैं ऐसा कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती"
मौसम: "देख वैशाली, मैं जानती हूँ तुझे.. जिस्म की भूख तू कब तक बर्दाश्त करती रहेगी..!! कोई न कोई हल तो निकालना ही पड़ेगा.. अगर यहाँ ऑफिस में किसी के साथ करने में तुझे डर लग रहा हो तो बाहर कुछ ढूंढ ले"
वैशाली का दिमाग तेजी से चलने लगा.. शादी के बाद कभी भी उसने किसी और के बारे में सोचा तक नहीं था.. उससे पहले भी अगर किसी के साथ हुआ था वो था राजेश सर के साथ और रसिक के साथ..!! राजेश सर तो अब खुद उससे फाँसला बनाए हुए थे.. और रसिक के पास अकेले इतने दूर जाने की उसकी हिम्मत नहीं थी
वैशाली: "सच कहूँ मौसम..!! मन तो मेरा बहोत कर रहा है.. पर अब कुछ आसान नहीं है.. पहले की बात और थी.. मुझे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था और संजय के प्रति मेरे मन में कोई वफादारी भी नहीं थी.. लेकिन अब सब कुछ बदल गया है.. कुछ करना भी चाहूँ तो १०० बार फूँक फूंककर कदम रखना होगा.. और कोई जरिया भी तो होना चाहिए"
मौसम: "देख यार.. ढूँढने पर सब मिल जाता है.. तू कोशिश करेगी तो कोई न कोई सेटिंग जरूर हो ही जाएगा"
एक पल सोचने के बाद, वैशाली ने धीरे से कहा "सच कहूँ.. मन तो बहोत कर रहा है.. पर क्या करूँ? किसके पास जाऊँ??"
कप से कॉफी का आखिरी घूंट खतम करते हुए मौसम अचानक से टेबल से उठी और वैशाली का हाथ पकड़कर उसे भी खड़ा कर दिया
वैशाली ने थोड़ा सा चोंकते हुए कहा "कहाँ जा रही है? एकदम से क्या हुआ तुझे?"
मौसम: "अब यहाँ बैठे रहने से कुछ होने तो नहीं वाला.. दीदी के घर चलते है.. जीजू घर पर है नहीं.. वहीं घर पर बैठकर तीनों बातें करते है"
वैशाली ने थोड़ी सी झिझक के साथ कहा "लेकिन ऑफिस का काम... "
मौसम: "उसकी चिंता छोड़.. और चल मेरे साथ" मौसम ने बिना बिल का इंतज़ार किए, पाँच सौ के दो नोट टेबल पर रखे और वैशाली को लेकर चल दी
दोनों मौसम की गाड़ी में बैठकर कविता के घर पहुंचे
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कविता के विशाल और शानदार बंगले का मुख्य दरवाजा खुला और मौसम और वैशाली अंदर घुसीं कविता ने उनका स्वागत खुश मुस्कान के साथ किया
"अरे वाह! यह कैसा सुरप्राइज है?" कविता बोली, "मौसम तू तो ऑफिस गई थी ना.. सुबह मम्मी से मेरी बाती हुई थी, लेकिन वैशाली तुम..!! कहीं बाहर गई थी क्या तुम दोनों?"
"दीदी, ऑफिस ही गई थी मैं.. ज्यादा कुछ काम था नहीं.. और काम करने का मूड भी नहीं था.. तो मैं वैशाली को लेकर एक कैफै गई थी.. वहीं बैठकर बातें की" मौसम ने कहा, "फिर सोचा वहीं बैठे रहने से अच्छा है, की यहाँ घर पर ही बैठा जाएँ.."
"अच्छा किया जो यहीं आ गए.. मैं भी बैठे बैठे बोर हो रही थी.. अंदर आओ" कविता ने उन्हें अंदर बुलाया
बैठक कक्ष की शानदार सोफे पर बैठकर तीनों ने कुछ देर सामान्य बातचीत की परिवार, बिज़नेस, बैंगलोर की यादें बातें करते करते विशाल का जिक्र हुआ और फिर से मौसम का चेहरा उतर गया..
"अब तू मुंह लटकाना बंद कर" कविता ने कहा, "मैंने विशाल से भी बात की है और फोरम से भी मिलकर आई.. दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है.. बस नॉर्मल दोस्तों वाली बातें ही होती है.. मैंने तो फोरम को हल्का सा धमकाया भी.. चिंता करने जैसा कुछ भी नहीं है, तू भी खामखा टेंशन ले रही है मौसम"
मौसम ने एक गहरी सांस ली "दीदी, आप बात समझ नहीं रही.. हो सकता है की उन दोनों के बीच कुछ न हो, पर विशाल ने यह बात मुझसे छुपाई क्यों? और दोनों आधी रात को ही क्यों बातें करते है?? और मुझसे शादी करने से पहले विशाल उससे प्यार करता था यह बात मैं कैसे भूल सकती हूँ..!!"
कविता: "इतनी छोटी छोटी बातों को मन में लेकर चलेगी तो कैसे चलेगा..!! विशाल ने शायद यह सोचकर तुम्हें न बताया हो की तुम गलत समझोगी..!!"
मौसम: "पता नहीं दीदी.. पर मेरा तो सोचकर ही दिमाग खराब रहता है"
वैशाली ने बीच में कहा "कविता की बात सही है मौसम, तू बेकार में बात का बतंगड़ बना रही है.."
मौसम: "कहना आसान है वैशाली.. कुछ भी कहो, विशाल तेरे पिंटू जितना सीधा नहीं है"
वैशाली: "क्या फायदा सीधा होने का.. जब उसका सीधा खड़ा ही न होता हो" माहोल को थोड़ा सा हल्का बनाने के इरादे से वैशाली ने कहा
सुनकर मौसम मुस्कुराई पर उन दोनों की बातें कविता की समझ में नहीं आई
कविता: "क्या बक रही है वैशाली? मज़ाक की भी हद होती है..!!" आखिर उसका पुराना प्रेमी था पिंटू.. दिल पर पत्थर रखकर उसको वैशाली से ब्याहते देखा था.. उसके बारे में वो कुछ भी उल्टा सीधा सुन नहीं सकती थी
वैशाली गंभीर हो गई "मज़ाक नहीं कर रही कविता, अब तुमसे क्या छुपाना..!! वाकई में पिंटू को पिछले दो महीनों से यह प्रॉब्लेम आ रही है"
कविता को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था.. उसने मौसम की ओर देखा और मौसम ने भी गर्दन हिलाकर हामी भरी
उन दोनों के सामने खड़ी कविता आश्चर्य के मारे सोफ़े पर बैठ गई
कविता को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था, उसने पूछा "क्या वाकई में पिंटू को ऐसा प्रॉब्लेम है??"
वैशाली: "यार, अपने पति के बारे में ऐसी बात को लेकर झूठ क्यों बोलूँगी मैं भला..??"
एक पल के लिए सुन्न सी हो गई कविता.. उसका पहला प्यार पिंटू.. उसे भला ऐसा क्यों हुआ होगा..!! फिर अचानक से उसे एहसास हुआ.. जिसके सामने वो बैठी थी.. वो पिंटू की पत्नी थी.. जरूरत से ज्यादा चिंता जताने पर गलतफहमी होने की पूरी संभावना थी.. वह तुरंत पूर्ववत हो गई
कविता ने संभलते हुए कहा "आजकल ऐसा सब होना आम बात है वैशाली.. चिंता करने की कोई जरूरत नहीं.. और अब तो बहोत सारी दवाइयाँ भी मिलती है जो इस समस्या में काम आ सकें" वैशाली को ढाढ़स बँधाने के इरादे से कविता ने कहा.. वैसे उसे अब भी इस बात पर यकीन नहीं आ रहा था
वैशाली: "हल तो कई सारे है कविता.. पर वो तो तब न जब वो मानने को तैयार हो की यह एक मेडिकल समस्या है.. मैंने डॉक्टर के पासे जाने की राय क्या दी वो तो मुझ पर ही भड़क गया"
कविता: "भड़क क्यों गया भला??"
वैशाली: "ये मर्द और उनके अहंकार..!! मैंने सलाह क्या दी उसे लगा मैंने उसके मर्द होने पर ही शक कर दिया..!!"
कविता: "कैसी बेतुकी बात करता है वो.. यार, ऐसा कब से चल रहा है?"
वैशाली: "दो महीनों से ऊपर हो गया"
कविता: "मतलब दो महीनों से तू....!!!" आगे के शब्द कविता बोलती उससे पहले ही "हाँ" कहते हुए वैशाली ने सिर हिला दिया..
कविता की आँखों में एक सहानुभूतिपूर्ण चमक आई "समझ सकती हूँ तुम दोनों की दशा.. पर मेरा भी हाल कुछ खास अलग नहीं है.. पियूष भी तो बिज़नेस के चक्कर में इतना बिजी रहता है कि उसे अपनी बीवी की याद ही नहीं आती.. कभी कभी तो लगता है, वो पुराने दिन ही ठीक थे.. पैसे कम थे पर कितना सुकून था.. और शाम होते ही वो घर आ जाता था.. रात भर बिस्तर में ऐसे कट जाती थी की सुबह होने का पता तब चलता जब मम्मी जी दरवाजे पर दस्तक देती... अब तो ऐसा लगता है जैसे हम सब की ज़िंदगी में से सेक्स गायब ही हो गया हो"
तीनों के बीच एक असहज सी खामोशी छा गई.. हर एक अपनी अपनी अधूरी इच्छाओं और यौन तृप्ति की कमी के बारे में सोच रही थी
"सुनो," कविता ने हवा बदलते हुए कहा, "माहोल कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गया.. क्यों न हम तीनों एक दो पेग ड्रिंक कर लें? पियूष के कलेक्शन में ढेर सारी बढ़िया वाली विस्की पड़ी है.. शायद पीने से ही दिल का बोझ हल्का हो जाए"
"बहुत अच्छा आइडिया है," मौसम ने फौरन हामी भर दी
कविता ने तीन गिलास और एक बोतल निकाली.. पहला पेग सबने जल्दी से खत्म कर दिया.. दूसरा पेग आराम से पीते हुए, बातचीत फिर से जीवंत हो उठी, लेकिन इस बार शराब के असर ने बातों को और गहरा, और अंतरंग बना दिया.. कविता धीरे धीरे चौथे पेग तक पहुँच गई.. वो आज कुछ ज्यादा ही जल्दी जल्दी पी रही थी..
वैशाली, जिसकी इच्छाएं महीनों से दबी हुई थीं, मौसम की ओर देख रही थी शराब का नशा उसकी हिचकिचाहट को पिघला रहा था.. मौसम के टॉप से उसके वक्षों की गोलाई नजर आ रही थी.. जिसे वशाली अब लालचभरी निगाहों से ताड़ रही थी
"बेंगलोर जाकर तेरे आम तो बड़े बड़े हो गए है, मौसम," वैशाली ने मौसम के स्तनों की गोलाई पर अपनी उंगली सहलाते हुए कहा
मौसम ने एक झटका सा महसूस किया, लेकिन विरोध नहीं किया उल्टा, उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान तैर गई "शुक्रिया, वैशाली तुम भी तो... मेरे आम तो अब जाकर पके है.. पर तुम्हारे खरबूजे तो पहले भी बड़े थे और अब भी.. तुम भी काफी सेक्सी लग रही हो.. कसम से यार.. इतना गदराया हुआ जिस्म है.. अगर में मर्द होती तो तुम्हें देखकर मेरा तो पूरा दिन खड़ा ही रहता" ठहाका लगाते हुए मौसम ने कहा
कविता यह सब चुपचाप देख रही थी, एक अजीब सी उत्तेजना उसके भीतर भी जाग रही थी वह बोली, "हम तीनों... हमेशा से एक दूसरे के इतने करीब रहे हैं शायद... शायद इस वक्त हमें एक दूसरे के सहारे की ज़रूरत है.."
वैशाली का हाथ अब मौसम की जांघ पर था, हल्का सा दबाव डालते हुए "कितनी सॉफ्ट है..." वह फुसफुसाई
मौसम ने आँखें बंद कर लीं "वैशाली... यार ऐसे मत करो... मेरा कंट्रोल चला गया तो फिर पता नहीं क्या होगा..."
"क्या होगा?" कविता ने दबी आवाज़ में कहा, "हम तीनों जानती हैं कि हम क्या चाहती हैं कोई दिखावा करने की ज़रूरत नहीं"
यह कहते हुए कविता ने वैशाली के पास बैठकर उसके कंधे पर हाथ रख दिया वैशाली अब मौसम को छोड़ कविता की तरफ मुड़ी.. और फिर अचानक उसके होंठों को अपने होंठों से दबा दिया.. उसके यह चुंबन में.. भूख थी.. जरूरत थी..
अपनी दीदी और वैशाली के बीच इस नज़ारे को देखकर मौसम हांफ उठी.. उसकी सांसें तेज हो गईं.. पास पड़े तीसरे पेग को वो एक ही घूंट में पी गई.. वैशाली ने चुंबन तोड़ा और अपना ध्यान वापस मौसम की ओर किया.. अब उसने मौसम का चेहरा पकड़ा और धीरे से उसके होंठ चूमे.. इस बार मौसम ने जवाब दिया, उसकी जीभ वैशाली के होंठों से टकराई
"हाँ... ऐसे ही... क्या मस्त लग रही हो तुम दोनों किस करते हुए" कविता ने कहा, अपना हाथ मौसम के स्तन पर रखते हुए उसने उसे अंदर से महसूस किया, दबाया मौसम की एक कराह निकल गई
वैशाली अब मौसम की गर्दन और कंधों को चूम रही थी, जबकि कविता ने मौसम के टॉप के बटन खोलने शुरू कर दिए.. टॉप खुलते ही कविता ने उसकी ब्रा ऊपर कर दी और दो गोल.. भरे हुए स्तन बाहर निकल आए
"कितने खूबसूरत हैं..." वैशाली ने कहा और अपना मुंह उनकी ओर बढ़ाया उसने मौसम की एक निप्पल को अपने मुंह में ले लिया, चूसा, काटा
"अह्ह्ह... वैशाली..." मौसम कराह उठी, अपनी उंगलियों से वैशाली के बालों को दबोचते हुए
उन दोनों को एक दूसरे से लिप्त हुए देख, कविता ने अपना पाँचवा पेग बनाया... अमूमन उसे इतनी मात्रा में शराब पीने की आदत नहीं थी.. कभी कभार ही पीती थी और वो भी एक-दो पेग से ज्यादा नहीं.. पर आज की बात अलग थी.. नशा अलग था.. सुरूर अलग था..
टीशर्ट और शॉर्ट्स पहने हुई कविता सामने वाले सोफ़े पर बैठ गई.. और खुद ही एक हाथ से अपने स्तनों को मसलने लगी जब की उसका दूसरा हाथ चड्डी के अंदर चला गया.. भारी मात्रा में शराब अपना असर दिखा रही थी.. उसकी रगों में खून तेजी से दौड़ रहा था.. नशे की हालत में वह उंगलियों से अपनी क्लिटोरिस को कुरेदने लगी
तभी कविता ने देखा की वैशाली अपनी सलवार कमीज उतार रही थी.. साथ ही उसने अपनी ब्रा भी उतार दी.. दो बड़े बड़े खरबूजों जैसे उसके उन्नत स्तन मुक्त होकर झूलने लगे.. उसने अपनी पेन्टी अब भी पहन रखी थी और चूत वाले हिस्से पर लगा गीलापन स्पष्ट भाव से वैशाली की हवस की इंतहाँ दर्शा रहा था..
कविता की भीतर की आग भड़क उठी.. वह उठकर लड़खड़ाते कदमों से उन दोनों के करीब आई और वैशाली के स्तनों को अपने हाथों में ले लिया, उन्हें दबाया, मसला फिर वह नीचे झुकी और वैशाली की दूसरी भरकम चूची को चूसने लगी
अब तीनों का जुनून अपने चरम पर था वे सोफे से उतरकर फर्श पर बिछे कार्पेट पर आ गईं, एक दूसरे के शरीर से चिपकी हुईं
मौसम ने वैशाली की चूत को छुआ, उसके गीलेपन को महसूस किया "तुम तो बहुत गीली हो गई हो..."
"हाँ... यार, कितने दिनों बाद थोड़ा मज़ा मिला है आज..." वैशाली हांफती हुई बोली
कविता ने मौसम की जीन्स पेन की चैन खोलकर ढीला किया और उसे उसके पैरों से उतार दिया अब मौसम भी पूरी तरह नंगी थी कविता ने अपनी बहन के जिस्म को निहारा, फिर उसकी चूत पर हाथ फेरा
"ओहहह... दीदी..." मौसम की आँखें रोमांच से चौंधिया गईं
वैशाली ने कविता के कपड़े भी उतारने में मदद की और जल्द ही तीनों सुंदर, परिपक्व औरतें एक दूसरे के सामने पूरी तरह नग्न थीं, केवल उनकी हांफती सांसें और कराहने की आवाजें हवा में गूंज रही थीं
वैशाली ने मौसम को नीचे लिटाया और उसकी जांघों के बीच अपना सिर घुसा दिया उसने मौसम की चूत को जीभ से चाटना शुरू कर दिया
"हाँ! अह्ह्ह! वैशाली... ऐसे ही!" मौसम चीख उठी, अपनी उंगलियों से वैशाली के बाल पकड़ते हुए
"तेरी चूत तो बहुत रस निकाल रही है" चाटते हुए वैशाली ने एक उंगली मौसम की चूत के अंदर डाल दी और अपने पूरे हाथ को दाएं-बाएं घुमाते हुए उसकी योनि को धीरे से रगड़ा.. वैशाली का स्पर्श अद्भुत था.. मौसम ने आँखें बंद कर लीं और अपनी योनि में गर्माहट का आनंद लिया.. वह उत्तेजना से काँप उठी.. वैशाली ने उसकी चूत चाट-चाट कर उसे उन्मत्त और पागल कर दिया था.. मौसम तब खिलखिलाई जब वैशाली ने अपनी दोनों हथेलियों से उसके कूल्हों को दबोचा और चुटकी काटी। "मस्त सेक्सी चूतड़ है तेरे," वैशाली ने कहा.. मौसम ने वैशाली के चौड़े कूल्हे पर थप्पड़ मारा। "पर तेरे जीतने बड़े बड़े नहीं है.."
इन दोनों को हवस भरी नज़रों से देख रही कविता के सिर पर नशा इतना चढ़ चुका था की वह चाहकर इन दोनों की हरकतों में शामिल नहीं हो पा रही थी.. बस दीवार पर अपनी पीठ टेककर, उन दोनों को देखते हुए अपनी चूत रगड़ती रही.. उँगलियाँ पेलती रही..!!!!
मौसम कार्पेट वाले फर्श पर पीठ के बल लेट गई और वैशाली उसके ऊपर मंडराने लगी.. वैशाली ने मौसम के मुँह और गर्दन को चूमा और फिर मौसम के स्तनों को चूसना शुरू कर दिया.. मौसम को यह बहोत पसंद आया.. वैशाली को बिल्कुल पता था कि उसके स्तनों को कैसे चूसना और काटना है.. मौसम के निपल्स सख्त होकर सूज गए.. मौसम ने आँखें बंद कर लीं और प्रत्याशा में काँप उठी..
वैशाली का मुँह मौसम के स्तनों से हट गया और मौसम के पेट पर नीचे की ओर चुंबनों की एक लकीर बनाने लगा.. वैशाली ने मौसम की चूत में अपना मुँह फिर से घुसा दिया.. मौसम आनंद से कराह उठी.. उसने उसकी क्लिटोरिस से दूर रहकर उसे छेड़ा.. मौसम की क्लिट सख्त और लाल हो रही थी और चूत की फांक में से एक छोटी उंगली की तरह बाहर निकली हुई थी.. वैशाली को लंड चूसना पसंद था, लेकिन लंड के बाद उसे सबसे ज्यादा जो पसंद था, वह था एक सख्त क्लिट को चूसना और सामने वाली महिला को मचलने, छटपटाने, चिल्लाने और उसकी चूत से गर्म मलाई की बाढ़ बह निकलने पर मजबूर करना..वो तो पहले भी फाल्गुनी और मौसम के साथ यह खेल खेल चुकी थी.. शुरुआत तब हुई थी जब वो सब साथ में माउंट आबू गए थे
मौसम बस इसी के लिए तरस रही थी.. वह चाहती थी कि वैशाली का गर्म मुँह उसकी उसकी चूत को यूं ही चाटता रहे लेकिन जिस तरह से वैशाली उसके आसपास के सारे योनि मांस को छेड़ और चूस रही थी, मौसम उसे रोकना नहीं चाहती थी..
"आह्ह मैं पागल हो जाऊँगी.." मौसम ने कराहते हुए कहा
और अब वैशाली ने अचानक अपना मुँह खींच लिया और एक पल बाद मौसम ने अपनी चूत की फांक में ऊपर-नीचे रगड़ती हुई कुछ नरम और अद्भुत चीज महसूस की.. मौसम ने नीचे देखा और उत्तेजना से तब कराह उठी जब उसने वैशाली को अपने विशाल स्तन को अपने हाथ में लिए.. उसकी लंबी गुलाबी निप्पल को उसकी चूत पर रगड़ते हुए पाया.. वैशाली के निप्पल ने मौसम की सख्त क्लिट को छुआ और मौसम की सांस रुक गई.. मौसम ने अपने शरीर को झटकों से ग्रस्त महसूस किया.. उसने अपनी जांघें चौड़ी कर दीं और वैशाली को अपनी पानी से लसलसित चूत पर सम्पूर्ण अधिकार दे दिया..
फिर वैशाली ने मौसम की जलती हुई जांघों के मलाईदार मांस को चाटा और मौसम के पैरों की ओर बढ़ी और उसके पैर की उँगलियों को चूसना शुरू कर दिया..
कविता वैशाली के पीछे बैठी हुई थी... उसके सामने वैशाली के भारी दो चूतड़ों को गोलाइयाँ थी.. नशे की हालत में वो और कुछ न कर पाई.. बस उसके कूल्हों को सहलाती रही.. सहलाते सहलाते पता नहीं उसे ऐसा क्या हो गया की उसने अपनी एक उंगली वैशाली की गांड के छेद के अंदर हल्के से घुसाई...
अपनी गांड पर उंगली का स्पर्श होते ही, मौसम के पैरों को चाट रही वैशाली एकदम सहम से गई.. उसने मूडकर पीछे देखा.. नशे से भारी हो चुकी आँखों वाली कविता की आँखों में देखा.. दोनों एक दूसरे के सामने देख मुस्कुराई.. और वैशाली ने फिर से अपना ध्यान मौसम के शरीर पर केंद्रित कर दिया
वैशाली अब मौसम के ऊपर चढ़ गई और अपने स्तनों को मौसम के चेहरे पर लहराने लगी.. अपनी आँखों को सामने झूल रहे उन विशाल मांसपिंडों को देखकर मौसम से भी रहा न गया.. उसने अपना मुँह खोला और वैशाली ने तुरंत अपना एक स्तन मौसम के होंठों के बीच गिरा दिया.. मौसम ने वैशाली के लंबे निप्पल को चूसा और काटा.. इतने बड़े स्तन की निप्पल चूसने में मौसम को बड़ा मज़ा आ रहा था
मौसम के हाथ वैशाली की कमर को पकड़े हुए थे, और अब उसने एक हाथ वैशाली के पेट पर और नीचे उसकी योनि तक फेरा.. मौसम ने वैशाली की चिकनी और बिना बालों वाली चूत को अपनी उँगलियों के नीचे महसूस किया.. वैशाली की चूत पूरी तरह से भीगी हुई थी.. मौसम ने उसको दुलारा और तब तक सहलाया जब तक कि वैशाली आनंद से कराह न उठी..
वैशाली ने अपने शरीर को घुमाया और मौसम के ऊपर बैठ गई.. सिक्स्टी-नाइन की पोजीशन में.. जब मौसम ने ऊपर देखा, तो उसने वैशाली की गुलाबी बिना बालों वाली योनि को अपने मुँह के ऊपर लटकते हुए देखा.. वह उसकी गंध महसूस कर सकती थी.. उसने वैशाली का मुँह अपनी योनि पर महसूस किया और वह जानती थी कि वैशाली उससे भी ऐसा ही करने की उम्मीद कर रही है.. वैशाली की बिना बालों वाली चूत रसीली और स्वादिष्ट लग रही थी..
वैशाली के कूल्हों पर अपने हाथ रखते हुए, मौसम ने वैशाली की चूत को अपने मुँह की ओर नीचे खींच लिया.. उसने अपनी जीभ पर टपकते रस को चूसा और सरपट लिया.. वैशाली की योनि स्वादिष्ट थी.. मौसम की उँगलियों ने वैशाली की योनि को चौड़ा खोल दिया और वह फिर से जुनून से आह भरी.. फिर उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और वैशाली की गूँदाज बुर के ऊपर तक, उसकी स्पंदनशील योनि से लेकर उसकी धड़कती, उभरी हुई क्लिट तक सरपट लिया..
"ऊऊऊऊऊह!" वैशाली हांफ उठी, सेक्सी बिजली की एक धारा उसके गर्म शरीर में से होकर बह निकली.. "अबी मैं तुझे दिखाती हूँ कि चूत कैसे चाटी जाती है, तुझे दिन में तारे दिखने लगेंगे!" वैशाली ने कहा.. वैशाली ने अपनी बाहें मौसम की कमर के चारों ओर लपेट लीं और अपना सिर नीचे झुकाया.. उसका मुँह चौड़ा खुल गया.. उसने अपनी जीभ लंबी और चपटी कर ली और मौसम की योनि मार्ग के पूरे विस्तार को गीला करते हुए चाटा.. उसकी जीभ ने मौसम के कांपते, स्पंदनशील मांस को सरपट लिया और चाटा और वह मौसम की चूत में एक अजीब सी झनझनाहट शुरू होते हुए महसूस कर रही थी.. मौसम को चरमोत्कर्ष तक पहुँचने में बिल्कुल भी देर नहीं लगने वाली थी..
"म्म्म्म्म्म!" मौसम ने चीखने की कोशिश की.. "म्म्म्म्म्म्म!" वह चीखना चाहती थी पर वैशाली के मांसल भोंसड़े ने उसका मुंह दबा रखा था.. उसने वैशाली की चूत में अपनी जीभ को और तेजी से चलाना शुरू कर दिया.. जो मज़ा वैशाली उसे दे रही थी वह भी उसका माकूल जवाब देने का प्रयत्न कर रही थी.. उसने अपनी जीभ को सख्ती से वैशाली की चूत में घुसाया.. चटखारों और चूसने की आवाजों के साथ उसे अंदर-बाहर किया.. वैशाली की जीभ को मौसम की क्लिट की कली मिल गई जिसे वो अपने दोनों होंठों के बीच दबाने लगी.. जिस तरह के एहसासों से मौसम गुजर रही थी.. उसे यकीन नहीं हो रहा था की ऐसे एहसास भी हो सकते है..!! वैशाली ने मौसम को रोमांच के एक ऐसे चरम बिंदु तक पहुंचा दिया जहां तक वह पहले कभी नहीं पहुँची थी..
"म्म्म्म्म्म्म!" मौसम ने आनंद की एक अधूरी दबी हुई चीख निकाली.. उसने अपना मुँह वैशाली की चूत में घुसा दिया और उसकी हर हरकत की नकल करने लगी.. उसने वह सब कुछ किया जो वैशाली कर रही थी.. उसकी जीभ ने वैशाली की जीभ के साथ एकदम तालमेल बनाए रखा, जब भी वैशाली की जीभ तेज या धीमी होती, वह भी वैसा ही करती.. उसने वैशाली के नेतृत्व का पालन किया और पाया कि उसकी अपनी चूत आनंद से फड़क रही थी, मस्ती में झूम रही थी.. वैशाली उसे पूरी तरह से लीड कर रही थी, उसे उसके जीवन के सबसे अद्भुत ऑर्गेज़्म की ओर ले जा रही थी! मौसम का मुँह चौड़ा खुल गया.. उसके निप्पल वैशाली की जांघों में घिस गए और कामुकता के शिखर पर सख्त भी हो गए.. इतने सख्त होकर चुभ रहे थे जैसे वैशाली के नरम मांस में छेद करने के लिए तैयार हो; वे इतने सख्त और रबड़ जैसे थे.. उसने उन्हें वैशाली के पेट की नरम त्वचा में घुमाया और महसूस किया कि चरमोत्कर्ष उसके पूरे शरीर में से होकर गुजर रहा है..
"म्म्म्म्म्म्म्म!" वह चीखी, उसके जुनून की आवाज़ वैशाली के ऐंठती हुई चूत के मांस से दब गई.. "म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म!" वैशाली ने कामुकता से अपने कूल्हे हिलाए.. उसने मौसम की कमसिन बुर में अपना चेहरा घुसाया ताकि उसके ऑर्गेज़्म को महसूस कर सके.. उसकी चूत मौसम की गर्म जीभ के चारों ओर कसकर सिकुड़ गई, उसे सीधे उसकी जलती हुई योनि मार्ग में खेने लगी..
मौसम ने एक और दबी हुई चीख निकाली जो वैशाली की चीख से मेल खाती थी.. वैशाली ने अपना चेहरा मौसम की चूत में और भी जोर से घुसाया और अपनी जीभ को उसकी कांपती हुई क्लिट के आर-पार फिराया.. उसने इसे अपने नरम होंठों से चूसा और तेजी से अपने दांतों से चबाया.. उसने अपनी जीभ को उसकी सतह पर फेरा और अपनी भोसड़े को जोर से फटते हुए महसूस किया.. वे दोनों एक साथ, बिल्कुल एक साथ चरम पर पहुँच रही थीं!
मौसम को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह कितना अद्भुत महसूस कर रही है.. दोनों की अब भी चूसने की आवाज सुनाई दे रही थी.. उन आवाजों ने उसे और भी उत्तेजित कर दिया.. वह लगातार चरमोत्कर्ष का अनुभव करती रही, बार-बार, ठीक वैशाली के साथ.. उसका दिल तो कर रहा था की काश यह शरीर में गुजरते हुए अद्भुत चरमोत्कर्षों को एहसास कभी बंद ही न हो..!!!
एक दूसरे के जिस्मों से जुदा होकर, दोनों फर्श पर अगल-बगल लेटे हुए हांफने लगी... तब जाकर उनका ध्यान कविता पर गया.. जो नशे में धूत होकर, दीवार के सहारे बैठे बैठे ही सो गई थी
लेटे लेटे ही वैशाली ने अपने एक हाथ से मौसम को धीरे से पीछे की ओर धकेला और अपना दूसरा हाथ लापरवाही से मौसम की जांघों के बीच फिसला दिया.. उसकी उंगलियों ने मौसम की चूत को अलग किया और उसकी चूत की नरम, नम त्वचा को धीरे से सहलाने लगी.. "ओह, वैशाली ... ओह ... तुम तो फिर से शुरू हो गई," मौसम ने आह भरी, उस जुनून पर नियंत्रण नहीं कर पा रही थी जो वैशाली की कुशल उंगलियाँ उसकी चूत में जगा रही थीं.. वह अपने रस के बहने और वैशाली के अद्भुत सहलाने से अपनी क्लिट के सूजने का एहसास कर सकती थी..
एकाध घंटे तक यूं ही पड़े रहने के बाद आखिर वैशाली और मौसम जाग गए.. उन्हों ने देखा की कविता तो अब भी दीवार के सहारे बैठी बैठी सो रही थी..
मौसम ने हल्के से कविता के कंधे को झकझोरते हुए उसे जगाने की कोशिश की "दीदी...!!!"
दो तीन बार ऐसे प्रयास करने के बाद कविता की नींद खुली.. उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आँखों की पलकों पर किसी ने ढेर सारा वज़न रख दिया हो... मौसम और वैशाली ने उसे कंधों से उठाकर सोफ़े पर बैठाया और उसके चेहरे पर पानी छिड़क तब जाकी कविता की आँखें खुली
तीनों अब भी नंग-धड़ंग ही थी..