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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
पीयूष से बात करके शीला ने जान लिया की वो तीनों ११ बजे से पहले आने वाले नहीं थे.. वो जानती थी की जब तक वैशाली यहाँ थी, तब तक रसिक, जीवा या रघु के साथ कुछ नहीं हो पाएगा.. अब क्या करें? इतने सारे दिन बिना चुदे कैसे रहेगी वो? कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा..
शीला ने रसिक को फोन लगाया..
रसिक: "हाँ भाभी बोलिए"
शीला: "मेरे घर पर मेहमान आए हुए है.. और दूध फट गया है.. अभी दो लीटर दूध चाहिए.. मिलेगा ये फिर मैं बाजार जाकर ले आउ?"
रसिक: "ये भी कोई पूछने की बात है.. अभी दूध लेकर आता हूँ.. वैसे भी मुझे अनुमौसी से दूध के पैसे लेने थे.. अभी आता हूँ"
शीला: "सुन रसिक.. मेरी बेटी वैशाली घर पर आई हुई है.. अभी वो बाहर है और दो घंटों तक आने नहीं वाली.. दूध का तो सिर्फ बहाना है.. तू जल्दी घर आजा मेरे"
रसिक: "मैं अभी निकला और आया.. आप तैयार रहो.. मैं पहुँच रहा हूँ"
शीला ने फोन कट कर दिया
पंद्रह मिनट के बाद रसिक दूध का केन लेकर आ पहुंचा.. शीला उसकी राह देख रही थी.. रसिक को घर के अंदर बुलाकर शीला ने कविता के मोबाइल पर फोन किया.. तब कविता खाना खा रही थी..
शीला ने फोन पर कहा : "तू कुछ भी मत बोलना.. सिर्फ मेरी बात सुन... कोई पूछे किसका फोन था तो बोलना की क्रेडिट कार्ड वालों का फोन था.. देख कविता.. जितनी देर तक हो सके सब को रोक कर रखना.. हो सके उतनी देर से वापीस आना. मैंने रसिक को मेरे घर बुलाया है.. तेरी बात करने के लिए.. और सुन.. घर के लिए निकलो तब मुझे मिसकॉल कर देना ताकि मैं उसे यहाँ से रवाना कर सकु" कविता हैलो बोल पाती उससे पहले ही भाभी ने अपनी बात सुना दी.. और फोन काट दिया.. कितने सेटिंग करने पड़ते है चुत की आग बुझाने के लिए.. !!
दरवाजा बंद करते हुए शीला ने रसिक को अपनी बाहों में भरकर चूम लिया.. शीला के गोरे गदराए जिस्म का स्पर्श होते ही रसिक के लंड को ४४० वॉल्ट का झटका लगा.. शीला के दोनों स्तनों को उसने अपनी मजबूत हथेलियों में दबोचकर मसल दिया
रसिक: "इतनी भी क्या जल्दी है भाभी? "
शीला: "बहोत दिन हो गए रसिक.. ये वैशाली के आने के बाद, मैं तो जैसे पिंजरे में कैद हो गई हूँ.. तंग आ गई हूँ.. अब बकवास बंद कर और जल्दी अपना हथियार निकाल.. और ठोक मुझे.. " कहते हुए शीला ने अपने ब्लाउस के अंदर से अपना एक स्तन निकाला..
रसिक ने बड़े आराम से उनके खरबूजे जैसे बड़े स्तन को सहलाते हुए उनके घाघरे का नाड़ा खींचने की कोशिश की.. तब शीला ने उसका हाथ पकड़ लिया..
शीला: "रसिक, अगर वो लोग जल्दी आ गए तो कपड़े पहनने का समय नहीं मिलेगा.. तू घाघरा ऊपर कर और घुसा दे अंदर.. " रसिक ने अपनी खुरदरी हथेलियों से शीला की भोस को सहलाना शुरू कर दिया..
शीला: "कितना भारी और खुरदरा है तेरा हाथ.. !! ऐसा सहला रहा है जैसे लकड़ी छील रहा हो.. ओह्ह आह्ह रसिक.. चार दिन हो गई.. तेरा लंड देखे हुए.. जल्दी जल्दी बाहर निकाल.. " रसिक के पाजामे से उसका गधे जैसा लंड बाहर खींच निकाल शीला ने.. हाथ में लेते ही सिहर उठी शीला.. "हाय.. क्या मस्त मोटा है रे तेरा.. आई लव ईट.. !!" शीला ने मुठ्ठी में दबाकर हिलाना शुरू किया
रसिक ने अपनी दो उँगलियाँ शीला की गरम मेंदूवडे जैसी भोस के अंदर घुसेड़ दी और झुककर ब्लाउस के बाहर लटक रहे स्तन की निप्पल को मुंह में लेकर चूसने लगा..
चार दिन की भूखी शीला बेहद उत्तेजित होकर रसिक के फुँकारते हुए लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी.. देखते ही देखते रसिक के आधे से ज्यादा लंड को अंदर ले लिया.. रसिक से और रहा नहीं गया.. उसने शीला के मुंह से अपना लंड निकाला.. और उसे उठाकर बिस्तर पर पटक दिया.. फिर खुद ऊपर सवार हो गया..
शीला: "आह्ह रसिक.. जल्दी घुसा.. वो लोग आते ही होंगे अभी.. आज अगर मेरी चुत को प्यासी छोड़ेगा तो माँ चोद दूँगी तेरी" अपनी उंगली पर थूक लगाकर खुद ही चुत का दाना रगड़ने लगी शीला.. रसिक तुरंत झुककर शीला के भोसड़े पर पहुँच गया.. दो उंगलियों से चुत की फांक चौड़ी करके उसने अपनी जीभ अंदर घुसा दी.. रसिक की भोस चटाई देखकर शीला को मदन की याद आ गई.. माय गॉड.. मदन कभी कभी एक घंटे तक मेरी चुत चाटता था.. कितना शौकीन था वो.. मेरा प्यार मदन..
रसिक चटखारे लगाते हुए शीला की चुत के अंदरूनी हिस्सों को अपनी जीभ से कुरेद रहा था.. शीला दोनों हाथों से अपने सख्त बबलों को दबा रही थी और मुख मैथुन का मज़ा ले रही थी.. शीला की कामुकता ने रसिक को ओर उत्तेजित कर दिया.. वो अपने रफ हाथों से शीला के कोमल चरबीदार शरीर को सहला रहा था..
काफी देर तक जब रसिक शीला की चुत का रस ही चाटता रहा तब शीला से रहा नहीं गया.. "मैं मर जाऊँगी रसिक.. प्लीज.. अब डाल भी दे अंदर.. बहोत तेज खुजली हो रही है मुझे.. भांप निकल रही है मेरे छेद में से.. " रसिक ने शीला की दोनों जांघों को चौड़ा किया और बीच में बैठ गया.. अपना तगड़ा.. गरम अंगारे जैसा लंड उसने शीला के छेद पर रखा.. लंड का स्वागत करने के लिए शीला का भोसड़ा अविरत रस छोड़ रहा था.. रसिक अपना सुपाड़ा शीला की चुत के होंठों पर रगड़ रहा था.. वासना से तपकर शीला का चेहरा सुर्ख लाल हो गया था.. दोनों स्तन ब्लाउस के बाहर लटक रहे थे.. रसिक अपने सुपाड़े से शीला की चुत को छेड़ता ही रहा... शीला की क्लिटोरिस जामुन जैसी बड़ी हो गई थी.. लंड के रगड़ने से उत्तेजित होकर शीला अपने चूतड़ ऊपर नीचे कर रही थी
शीला से अब रसिक की ये छेड़छाड़ और बर्दाश्त नहीं हुई
शीला: "भेनचोद रसिक.. इतना क्यों तड़पा रहा है मुझे? अगर तू ऊपर ऊपर से रगड़ने में ही झड गया तो तेरी गांड में झाड़ू घुसेड़कर मोर बना दूँगी.. जल्दी डाल अंदर.. मस्त सख्त हो गया है "
शीला की बातों को अनसुनी कर रसिक उसके स्तनों को मसल रहा था
शीला: "अबे चूतिये.. डाल अंदर" रसिक ने एक जोर का धक्का लगाया और उसकी चुत को चीरते हुए पूरा लंड अंदर चला गया
शीला: "मर गई मादरचोद.. ऐसे एकदम से कोई डालता है क्या?? पेट में दर्द होने लगा मुझे.. नाभि तक घुस गया तेरा मूसल"
रसिक: "अरे भाभी.. ऐसे ही चोदने में मजा आता है.. लंड जब अचानक अंदर डालो तब इतना मज़ा आता है मुझे.. " पहाड़ जैसे रसिक की काया शीला के शरीर के ऊपर मंडराने लगी.. उसके मजबूत शरीर से दबकर अजीब सी तृप्ति मिली शीला को..
रसिक के भारी भरकम शरीर के नीचे दबकर मजबूत धक्कों का मज़ा लेती हुई शीला मन ही मन कविता का शुक्रियादा कर रही थी.. उसके कारण ही आज उसकी चुत की भूख मिट रही थी..
शीला: "जोर से धक्के लगा रसिक.. " रसिक शीला के चूतड़ों को अपने नाखूनों से कुरेद रहा था.. उसका काला शरीर, शीला के गोरे बदन पर पटखनिया खा रहा था..
"आह्ह भाभी.. इस उम्र में भी काफी चुस्त है आपके बॉल.. " रसिक जबरदस्त ताकत के साथ शीला की भोस में धक्के लगा रहा था..
"और जोर से रसिक.. जोर लगा.. नाश्ता नहीं किया था क्या.. लगा दम.. आह्ह बहोत मज़ा आ रहा है.. "
रसिक शीला के उरोजों को ब्लाउस के ऊपर से मसलते हुए उसके कोमल सुर्ख होंठों को मस्ती से चूसते हुए धमाधम पेल रहा था.. दोनों ने धक्के लगाने और खाने में अपनी लय हासिल कर ली थी और उत्तेजनावश एक दूसरे के जिस्मों को नोच रहे थे.. रसिक की ऊर्जा देखकर शीला आफ़रीन हो गई.. वाह.. लगा दम.. फाड़ दे मेरी.. रसिक.. वाह क्या लंड है तेरा.. उन लोगों के लौटने से पहले खल्लास कर दे मुझे.. रसिक्ककककक.. !!!
शीला बेहद कामुक आवाज में उत्तेजक बातें बोल बोल कर उसे संभोग की पराकाष्ठा तक ले गई.. रसिक अप्रतिम तेजी से शीला को चोदे जा रहा था.. उसके आखिरी दस पन्द्रह धक्के तो ऐसे जोर के लगे के शीला की आँखों में पानी आ गया.. शीला का पूरा शरीर अकड़ गया और वो झटके मारते हुए झड़ने लगी.. रसिक के विकराल लंड का अपनी चुत के पानी से अभिषेक करते हुए शीला की सांसें ऐसे फूल चूकी थी जैसी माउंट एवरेस्ट चढ़कर आई हो.. शीला ने अपनी मंजिल प्राप्त कर ली थी लेकिन रसिक का सफर अभी बाकी था
भोस के झड़ जाने के बाद रसिक के धक्कों से शीला को अब दर्द हो रहा था.. अपने शरीर के ऊपर से रसिक को हटाने के लिए वह धक्के मारने लगी.. "बस कर रसिक... बहुत हुआ.. मेरा हो चुका है.. उतर नीचे.. मेरा दम घुट रहा है.. कितना वज़न है तेरा साले.. मर जाऊँगी मैं.. ऊहह आहह बस कर कमीने.. प्लीज छोड़ दे.. हाथ जोड़ती हूँ मैं तेरे" पर रसिक पर शीला की बातों का कोई असर नहीं हुआ.. उसने अविरत स्पीड से शीला की भोस में अपना मूसल घुसाना जारी रखा.. आखिर शीला की भोस की गहरी खाई में.. रसिक की मर्दानगी सिर पटक पटक कर हार गई.. उसके लंड से छूटी वीर्य की पिचकारी के साथ शीला की आँखें फट गई.. डोरे ऊपर चढ़ गए.. रसिक एक पल के लिए डर गए.. कहीं शीला भाभी सिधार तो नहीं गई.. पर उसकी सांसें चलती देख रसिक की जान में जान आई
शीला ने रसिक को तब तक जकड़े रखा जब तक उसके वीर्य की आखिरी बूंद चुत में चूस न ली.. रसिक ने अपना लंड शीला के भोसड़े से बाहर निकाला.. उसके लंड की दशा ऐसी थी जैसे रस निकल जाने के बाद कोल्हू से गन्ना निकला हो.. अपने ही लंड पर रसिक को दया आ गई..
"मज़ा आ गया भाभी.. जबरदस्त हो आप तो"
"रसिक.. तेरा ये जुल्म तो मैं और रूखी ही बर्दाश्त कर सकते है.. आज कल की जीरो फिगर वाली लड़कियों के ऊपर अगर तू चढ़ें तो एक ही मिनट में उनकी जान निकल जाएँ.. तूने किया है कभी पतली जवान लड़की के साथ?"
"नहीं भाभी.. ऐसी मेरी किस्मत कहाँ !!"
"करना भी मत.. कहीं कोई मरमरा गई तो जैल जाना पड़ेगा"
"भाभी, दिल तो बहोत करता है.. एक बार किसी शहरी फेशनेबल पतली लड़की को जमकर चोदने की.. आप के ध्यान में है कोई? मुझे तो ये पतली कमर वाली.. गॉगल्स पहन कर एक्टिवा चलाती हुई नाजुक परियों को देखकर ही पटककर चोद देने का मन करता है.. उनकी पूत्तियाँ कैसी होगी भाभी.. !! संकरी सी.. छोटी छोटी.. " रसिक अपने मुरझाए लंड को हिलाने लगा
"बहोत हुई बकवास तेरी.. अब निकल यहाँ से इससे पहले की वो लोग आ जाएँ" रसिक के लंड को फिर से उठता देख शीला की गांड फट गई
"भाभी.. मैंने जो कहा वो याद रखना.. आप के ध्यान में अगर ऐसी कोई लड़की आए तो.. " पजामा पहनते हुए रसिक ने कहा
"अगर कोई ध्यान में आए तो बताऊँगी"
"जरूर बताना भाभी.. आधी रात को दौडा चला आऊँगा.. "
"ठीक है.. रूखी को मेरी याद देना.. "
"हाँ भाभी.. वो भी आपको बहोत याद करती है.. आइए कभी मेरे घर !!"
रसिक चला गया.. चुत ठंडी हो जाने पर शीला मस्त होकर बिस्तर पर लेट गई..
बहुत ही मस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गयाइस तरफ कविता, वैशाली और पीयूष वापीस आने के लिए निकले.. कविता को चिंता हो रही थी की कहीं शीला भाभी और रसिक का प्रोग्राम अब भी चल रहा होगा तो??"मैंने मिसकॉल तो किया था पर शायद उन्हों ने न सुना हो !! क्या करू? फिर से मिसकॉल करू? नहीं नहीं.. पीयूष और वैशाली को शक हो जाएगा.. कविता ने पीयूष की ओर देखा.. वैशाई के पीले टीशर्ट से उभरकर दिख रहे सूडोल उरोजों को ताड़ रहे पीयूष को देखकर कविता सोचने लगी..
ये पीयूष को सभी लड़कियों के स्तनों में ही क्यों इतनी दिलचस्पी है!! ये वैशाली भी पक्की चुड़ैल है.. एक तरफ बोलती है की मैं हिम्मत से प्यार करती हूँ.. और दूसरी तरफ मेरे पति के साथ फ्लर्ट कर रही है.. कहीं ये पीयूष से चुदवाने की फिराक में तो नहीं है!! नहीं नहीं.. वैशाली ऐसा नहीं कर सकती..पर कुछ कह नहीं सकते.. वैसे मैं भी कहाँ दूध की धुली हूँ !!
शीला भाभी ने जब रसिक के साथ सेटिंग करने की बात कहीं तब मैं भी कैसे तैयार हो गई थी!! इशशश रसिक की याद आते ही कविता को याद आया की शीला भाभी ने वादा किया था की आज रसिक से उसकी बात करेगी.. तब तो आज भाभी ने बात कर भी ली होगी अब तक.. बाप रे.. कविता.. एक दूधवाले के साथ करेगी?? शर्म भी नहीं आती तुझे? हम्म कोई बात नहीं.. आँखों पर पट्टी बांधकर करवा लूँगी.. पर एक बार मोटे लंड में कैसा मज़ा आता है वो तो अनुभव करना ही है.. बीपी में सब फिरंगी राँडें काले हबसीओ के गधे जैसे लंड से कितनी आराम से चुदती है.. !! शीला भाभी के घर पर ही तो देखा था टीवी पर.. जो होगा देखा जाएगा.. शर्म तो बड़ी आएगी पर मोटे लंड का स्वाद लेने के लिए इतनी शर्म तो निगलनी ही पड़ेगी.. एक बार करवा लेने पर सारी शर्म हवा हो जाएगी
"अब उतरेगी भी या ऑटो वाले के साथ ही जाएगी?? " खयालों में खोई कविता को पीयूष ने टोका.. कविता तंद्रा से बाहर निकली.. "ओह... इतनी देर में घर आ भी गया?"
पीयूष "मैं भी वही सोच रहा था.. इतनी देर में घर आ भी गया?" ऑटो में बैठे तब से पीयूष अपनी कुहनी से वैशाली के स्तनों को छु रहा था... उसने वैशाली की ओर देखा.. उसने शरमाकर नजरें झुका ली.. कविता अपने खयालों में खोई हुई थी इस बात का पीयूष ने पूरा फायदा उठाया था आज
वैशाली अपने घर के दरवाजे पर पहुंची.. पीयूष उसे अंत तक जाते हुए देखता रहा.. उसे आशा थी की वैशाली पलट कर देखेगी जरूर.. उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा..
"तय होती है मोहब्बत पलट कर देखने से ही.. सिर्फ मिलना ही इश्क का सबूत नहीं होता"
पीयूष के मन का मोर तब नाच उठा जब वैशाली ने अंदर जाने से पहले उसे पलट कर देखा और हाथ हिलाकर गुड नाइट भी कहा.. कितनी माहिर होती है ये लड़कियां.. लड़कों को लट्टू बनाने में!!
शीला ने वैशाली से होटल के बारे में पूछा.. वैशाली ने पीयूष की हरकतों को छोड़.. बाकी सारी बातें बताई..
"मम्मी.. तूने खाना खाया की नहीं?"
शीला ने मन में कहा "बेटा मैं कभी भूखी नहीं रहूँगी.. मेरे पास बहोत रास्ते है अपनी भूख मिटाने के.. "
"हाँ बेटा.. खा लिया" मुस्कुरा कर शीला ने कहा.. वैशाली सोचने लगी.. मम्मी आज बेवजह मुस्कुरा क्यों रही है !!
वैशाली को खुश देखकर शीला के दिल को तसल्ली मिली.. अपने वैवाहिक जीवन से त्रस्त वैशाली को कुछ तो खुशी मिली.. ये संजय भी नजर नहीं आया अब तक.. चार दिन हो गए एक बार भी घर पर नहीं आया और वैशाली को फोन भी नहीं किया उसने.. वैशाली ने भी सामने से फोन नहीं किया.. दोनों के बीच की अनबन काफी गंभीर मालूम होती है..
माँ बेटी ने साथ बैठकर टीवी पर "अनुपमा" की ज़िंदगी की तकलीफें देखी और फिर सो गई।
बिस्तर पर लेटे लेटे वैशाली को हिम्मत के संग की चुदाई याद आ गई.. साथ ही साथ पीयूष की हरकतें भी.. शीला रसिक के मूसल को याद करते हुए गीली होने लगी.. पता नहीं क्यों.. बिस्तर पर लेटते ही शीला के दिमाग की सेक्स फैक्ट्री चालू हो जाती थी.. कमरे में अंधेरा था.. शीला ने चादर ओढ़कर अपने गाउन के अंदर हाथ डाल दिया.. वैशाली की चुत में भी खुजली उठी थी.. उसे पीयूष की कही बात याद आ रही थी "क्यों न हम फिर से पहले की तरह नादान और नासमझ बन जाएँ!!"
पीयूष अब भी उस पर फिदा है ये वैशाली जान छुकी थी.. वैशाली ने मुड़कर शीला की विशाल छातियों को देखा.. मम्मी ने इस उम्र में भी खुद को कैसे मैन्टैन कर रखा है !!
वैशाली की नज़रों से बेखबर शीला अपनी चार उँगलियाँ भोसड़े में डालकर अंदर बाहर कर रही थी.. उस तरह की वैशाली को भनक भी न लगे.. पर उसकी सांसें फूल गई थी और वो तेजी से सांस ले रही थी.. आखिर वैशाली भी एक स्त्री थी.. शीला की चुत जिस तरह रस रिस रही थी.. उसकी गंध भी वैशाली के नथुनों तक पहुँच गई थी... माय गॉड.. मम्मी मास्टरबेट कर रही है!! वैशाली शरमा गई.. हाँ.. वही कर रही है मम्मी.. ध्यान से देखने पर उसे शीला के हाथ की हलचल भी नजर आने लगी.. ये देखकर वैशाली से भी रहा न गया.. उसने अपनी चुत पर हाथ फेरा.. गीली हो गई थी उसकी मुनिया..
अचानक शीला ने एक लंबी सांस छोड़ी और पलट कर सो गई.. वैशाली भी पीयूष और हिम्मत को याद करते हुए अपनी भड़कती चुत को सहलाने लगी.. उसका दूसरा हाथ स्तनों को मरोड़ रहा था.. उंगलियों से रगड़ते हुए वो भी झड़ गई.. माँ और बेटी एक ही बिस्तर पर मूठ लगाकर सो गई। करवट लेकर सो रही शीला ने भी वैशाली की आहें सुनी और अंदाजा लगा लिया की उसकी पीठ पीछे वो क्या कर रही थी
रात के तीन बजे शीला पानी पीने के लिए उठी.. किचन में जाकर पानी पीने के बाद जब वह लौटी तब उसने देखा की कमरे की खुली खिड़की से चाँद की किरणे वैशाली पर पड़ रही थी। उसने चादर नहीं ओढ़ राखी थी.. गाउन के ऊपर के तीन बटन भी खुले थे.. रात को सोते समय वो ब्रा निकाल देती थी ये शीला जानती थी.. शीला करीब आकर उसके गाउन के बटन बंद करने लगी.. बटन बंद करते हुए बेटी के उभारों को नरम भाग पर उंगली का स्पर्श होते ही शीला सहम गई.. मन में उठ रहे हलकट विचारों को धकेल कर उसने वैशाली का गाउन ठीक किया और उसके बगल में सो गई।
"ये मुझे आज क्या हो रहा है? जिसे भी देखूँ बस सेक्स के विचार ही आते है.. अच्छा हुआ की वैशाली नींद में थी वरना मेरे बारे में क्या सोचती?" शीला को अपने ही विचारों से भय लगने लगा
सुबह पाँच बजे रसिक दूध देने आया.. वैशाली अंदर के कमरे में सो रही थी फिर भी शीला ने रसिक को अपने स्तन चूसने दिए.. उसका लंड हिलाया.. और उसके गाल और होंठ पर एक जबरदस्त किस भी दी.. उसके बाद ही उसे जाने दिया.. ज्यादा कुछ कर पाना मुमकीन नहीं था.. शीला अपने रोज के कामों में व्यस्त हो गई.. वैशाली को उसने देर तक सोने दिया..
थोड़ी देर बाद वैशाली जाग गई.. अंगड़ाई लेते हुए वो बाहर झूले पर बैठे हुए ब्रश पर टूथपेस्ट लगाने लगी.. शीला किचन में मशरूफ़ थी.. वैशाली ने पीयूष के घर की तरफ देखा.. पर वो नजर नहीं आया.. कल भी वो इसी तरह झूले पर बैठी थी पर तब उसे पीयूष के घर की ओर देखना का खयाल नहीं आया था तो अब क्यों आ रहा था !!! ताज्जुब हुआ वैशाली को.. तभी अनुमौसी बाहर आई
अनुमौसी: "कैसी हो बेटा? लगता है अभी अभी जागी हो"
वैशाली: "हाँ मौसी.. बहोत अच्छी नींद आई तो देर तक सोती रही"
अनुमौसी: "यही तो है मायके का सुख.. ना कोई बंधन ना कोई जिम्मेदारी.. जैसे ही ससुरत लौटो की फिर से जैल में कैद.. ये मेरी कविता को ही देख लो.. पीयूष को जल्दी ऑफिस जाना होता है इसलिए वो बेचारी पाँच बजे उठकर खाना बनाती है.. इससे पहले जो नौकरी थी वो अच्छी थी.. ये वाली ऑफिस जरा दूर है इसलिए पीयूष को जल्दी निकलना पड़ता है.. बेचारा मेरा बेटा रात को वापीस लौटते लौटते थक जाता है..बहुत महेनती है मेरा बेटा"
वैशाली: "हाँ मौसी.. पीयूष बहोत ही अच्छा लड़का है" बोलने के बाद खुद को चाटा मारने का मन किया वैशाली को.. क्या बोलने की जरूरत थी मौसी के आगे !!!
मौसी और कुछ पूछती उससे पहले वैशाली ही वहाँ से उठी और सीधी बाथरूम चली गई.. नहा कर और फ्रेश होकर वो अप-टू-डेट फेशनेबल कपड़े पहनकर तैयार हो गई और शीला के पास आई। उसके छोटे तंग वस्त्रों से आधे से ज्यादा जिस्म बाहर झलक रहा था
शीला: "बेटा, तू छोटी नहीं रही.. ऐसे कपड़े पहनना शोभा नहीं देता.. कुंवारी थी तब तक सब ठीक था.. देख तो सही कितने टाइट कपड़े है!! शादी के बाद ऐसे अधनंगे कपड़े पहनकर मैं तुझे बाहर नहीं जाने दूँगी.. शर्म भी नहीं आती तुझे "
जवाब में वैशाली ने शीला के गालों पर हल्के से किस की और हँसते हँसते बेडरूम में चली गई
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मौसी की बातों से वैशाली को पता चल गया की पीयूष सुबह ७ बजे ऑफिस के लिए निकल जाता है.. पूरा दिन नौकरी पर रहता था तो उसे देख पाना मुमकीन नहीं था.. रात को भी वो देर से घर आता और फिर कविता और वैशाली जब वॉक लेने निकलते तभी उसकी झलक वैशाली देख पाती। दूसरी तरफ पीयूष का भी यही हाल था.. वैशाली के दीदार के लिए वो भी तड़पता रहता था.. पर काफी कोशिशों के बाद भी उसे निराशा ही हाथ लगी। दोनों के मन में "नादान और नासमझ" बनने की बड़ी तीव्र चूल उठ रही थी
एक रात को करीब दस बजे.. रोज की तरह कविता और वैशाली वॉक लेकर लौटे और कविता के घर की छत पर ठंडी हवा का आनंद ले रहे थे। घर के अंदर बैठे पीयूष का बड़ा मन कर रहा था की वो भी ऊपर छत पर उन दोनों के साथ बैठे। पर बिन बुलाए मेहमान की तरह जाना उसे पसंद नहीं था। मन तो वैशाली का भी बहुत था की पीयूष ऊपर उनके पास आए..
कविता और वैशाली की दोस्ती इतनी गाढ़ी हो छुकी थी की वो दोनों एक दूसरे को अपनी सारी बातें बताने से हिचकिचाते नहीं थे.. कविता ने अपने और पिंटू के बारे में सारी कथा सुनाई.. वैशाली ने भी अपने जीवन की कुछ ऐसी बातें बताई जो केवल वो ही जानती थी.. रात को देर तक बैठे बैठे वो दोनों दुनिया भर की बातें करती रहती.. उनकी दोस्ती से शीला भाभी या अनुमौसी को कोई हर्ज नहीं था.. आखिर दोनों लड़कियां थी
एक हफ्ता बीत गया पर ना संजय का फोन आया और ना ही वैशाली ने उसे फोन किया.. ये बात शीला को बहुत परेशान कर रही थी.. शीला को यकीन था की अगर वो वैशाली से इस बारे में पूछेगी तो वो सीधे सीधे जवाब नहीं देगी.. उससे असलियत उगलवाने का कोई तरीका ढूँढने लगी शीला
दूसरी रात जब वैशाली और कविता वॉक लेने गए तब शीला ने ही संजय को फोन लगा दिया.. बियर बार में बैठकर अपनी सहकर्मी प्रेमिला के साथ शराब पीते हुए और उसकी जांघों को सहलाता हुआ संजय, फ्लोर पर नाच रही अधनंगी डांसरों के लटके झटके देखकर ठंडी आहें छोड़ रहा था। सुंदर स्तनों को उछलती हुई एक बार डांसर संजय के करीब आई और झुककर अपनी गहरी गली दिखाकर टिप मिलने की आशा में खड़ी रही.. बियर बार की तमाम रस्मों से वाकिफ प्रमिला से संजय के हाथों में १०० का नोट थमा दिया जिसे संजय ने उस लड़की के दो स्तनों के बीच दबा दिया.. उसी वक्त उसका फोन बजा और स्क्रीन पर सासु माँ का नाम देखकर वो चोंक उठा
"एक्सकयुज मी डार्लिंग.. " प्रमिला का गाल को थपथपाकर संजय फोन पर बात करने के लिए बियर बार के कोलाहल से बाहर निकला और फोन उठाया
"हाँ मम्मी जी, कैसी हो आप?"
"मैं ठीक हूँ.. आप कैसे है? घर पर आपके मम्मी पापा की तबीयत कैसी है?"
"सब ठीक है.. आपकी तबीयत कैसी है? काफी दिन हो गए, व्यस्तता के कारण वैशाली को फोन नहीं कर पाया.. अभी फोन करता हूँ उसे" सिगरेट जलाते हुए संजय ने कहा
शीला: "हाँ हाँ कोई बात नहीं.. वैशाली आपको बहुत याद करती है.. कब आ रहे हो घर? वो तो कह रही थी की बस चार दिन का ही काम था.. अभी तक खतम नहीं हुआ?"
संजय: "अरे नहीं मम्मी जी, काम तो चार दिन का ही था पर जिस पार्टी को मुझे मिलना था वो कहीं बीजी है इसलिए अब तक मिलना नहीं हुआ.. और एक दो दिन लग जाएंगे मुझे "
काफी देर हो गई पर संजय लौटा नहीं इसलिए प्रमिला दरवाजा खोलकर बाहर निकली और पीछे से आवाज लगाई "संजु डार्लिंग, कितनी देर लगा रहे हो !! जल्दी आओ ना !!"
संजय ने चोंक कर पीछे देखा और अपने होंठ पर उंगली रखकर शशशशशश करते हुए प्रमिला को चुप रहने का इशारा किया और फिर शीला से बात करने लगा.. पर शीला ने प्रमिला की आवाज को साफ साफ सुन लिया था.. शीला अनुभवी थी.. उसने संजय से उस लड़की के बारे में कुछ भी नहीं पूछा.. संजय को यही प्रतीत हुआ की सासु माँ ने प्रमिला की आवाज नहीं सुनी होगी वरना वो इस बारे में जरूर पूछती..
शीला जानबूझकर यहाँ वहाँ की बातें कर रही थी.. और बेकग्राउंड की आवाज़ें सुनकर अनुमान लगा रही थी की संजय कहाँ होगा.. तभी संजय ने ये कहकर फोन काट दिया की उसका बॉस उसे बुला रहा था इसलिए उसे फोन काटना पड़ेगा। संजय की इस हरकत से शीला का शक यकीन में बदलने लगी.. कौन होगी वो लड़की जो संजय को डार्लिंग कह कर बुला रही थी?
वैशाली ने शीला को बताया था की संजय पैसे उड़ाता है और कुछ कमाता नहीं है.. सब से उधार लेकर गायब हो जाता है ये भी पता था.. लेकिन वैशाली ने कभी किसी पराई औरत के बारे में कभी कुछ नहीं कहा था.. हालांकि संजय की गंदी नजर का अनुभव तो ऐसे सालों पहले हो ही चुका था.. पर उसने ये सोचकर अपने मन को समझा लिया था की सारे मर्दों की नजर ऐसी ही होती है.. उसके पति की नजर भी वैसी ही थी
शीला दामाद को बेटे समान मानती थी.. फिर जिस तरह संजय उसके स्तनों को भूखी नज़रों से ताकता रहता.. शीला अस्वस्थ हो जाती.. इन मर्दों को बस एक ही बात समझ में आती है.. मौका मिलते ही स्त्री को फुसलाओ और उसकी टांगें खोलकर चोद दो.. मन ही मन में वो दुनिया के सारे मर्दों को गालियां दे रही थी.. कौन होगी वो लड़की जिसने संजय को डार्लिंग कहकर पुकारा था??
वो लड़की जो भी हो.. उस लड़की से उलहकर संजय वैशाली का जीवन बर्बाद करें वो शीला बर्दाश्त करने वाली नहीं थी.. साला समझता क्या है अपने आप को? उसका बस चलता तो संजय को दो चाटे लगाकर उसका दिमाग ठिकाने पर ले आती.. पर बात वैशाली के वैवाहिक जीवन की थी.. और उसे बचाने के लिए झगड़ा करना कोई उपाय नहीं था.. एक विचार ऐसा भी आया की कहीं दोष वैशाली का तो नहीं होगा ना !! ये जांच भी करना आवश्यक था। शीला ने वैशाली की सास को कलकत्ता फोन लगाया.. कैसे भी करके वो इस बात के मूल तक पहुंचना चाहती थी
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयादूसरे दिन वैशाली बड़ी जल्दी जाग गई.. ये देख शीला चोंक गई.. वैशाली को देर तक सोना बेहद पसंद था.. तो आज ये जल्दी क्यों उठ गई होगी?
"गुड मॉर्निंग" कहते हुए मुंह में ब्रश डालकर वैशाली सीधे छत पर चली गई... सुबह के साढ़े छह बजे थे.. बाहर कोई खास चहल पहल नहीं थी.. थोड़ी सी ठंड थी और बड़ा आह्लादक वातावरण था.. निप्पल पर ठंडी हवा का स्पर्श होते ही वैशाली को झुरझुरी सी होने लगी.. सामने की छत पर पीयूष गुलाब के पौधों को पानी दे रहा था.. जिस काम के लिए वो जल्दी जागी थी वो मिशन सफल हो गया.. जो जागत है वो पावत है
वैशाली को देखते ही पीयूष के मन का मोर ताताथैया करने लगा.. उसने हाथ से इशारा करके वैशाली को गुड मॉर्निंग कहा.. वैशाली ने भी हाथ से इशारा किया.. वैशाली के नाइट ड्रेस से उभरकर नजर आ रहे बड़े बड़े स्तन देखकर पीयूष के लंड में झटका लगा.. क्या माल लग रही है यार !! पहले तो इतनी सुंदर नहीं थी ये.. शादी के बाद लंड के धक्के खा खा कर इसका रूप ही निखर गया है.. कविता भी चुद चुद कर कैसी खिल गई है.. जिस दिन ना चोदो उस दिन मुरझाई सी रहती है.. स्त्री का सबसे बेस्ट मेकअप है लंड.. रोज लंड मिले तो हर स्त्री सुंदर और खिली खिली ही रहेगी.. पीयूष वैशाली को ऐसे तांक रहा था जैसे वो नंगी खड़ी हो..
इन दोनों का नैन-मटक्का चल रहा था तभी कविता भी छत पर आई.. पीयूष की पतंग आसमान में उड़ने से पहले ही कट गई.. वैशाली भी ऐसे अस्वस्थ हो गई जैसे रंगेहाथों पकड़ी गई हो.. कविता की तरफ देखे बगैर ही वो सीढ़ियाँ उतर गई..
"आज तो बड़ी देर लगा दी तूने.. बहोत पानी पीला दिया क्या पौधों को?" कविता ने एसीपी प्रधयुमन की तरह पूछताछ शुरू की
"मैं.. नहीं वो.. वो तो जरा.. बात दरअसल ये है की.. " पीयूष बॉखला गया "तू समझ रही है ऐसा कुछ भी नहीं है.. मैं तो पौधों को पानी दे रहा था" पीयूष के शब्दों में सिमेन्ट कम और रेत ज्यादा थी..
कविता: "पर मैंने कब कहा की तू वैशाली को देख रहा था???? पर अच्छा हुआ जो तेरे दिल में था वो होंठों पर आ ही गया.. कर ले एक बार वैशाली के साथ.. तुझे भी चैन मिलेगा और वैशाली को भी !!" पीयूष की कमर पर चिमटी काटते हुए हंस रही थी कविता
"क्या सच में? क्या बात कर रही है तू?" पीयूष को समझ नहीं आया की वह क्या बोले.. बोलने के बाद उसे एहसास हुआ की "क्या सच में?" बोलकर उसने कितनी बड़ी गलती कर दी थी.. वो कविता को धमकाने लगा
"क्या तू भी.. कुछ भी बोलती रहती है.. तुझे तो मुझ पर विश्वास ही नहीं है.. जब देखों तब शक करती रहती है" मर्दों का ये हथियार है.. जब भी वो गलत हो तब पत्नी को धमका कर चुप करा देना.. !!
कविता भी कुछ कम नहीं थी.. उसे इस बात का गुस्सा आया की रंगे हाथों पकड़े जाने के बावजूद पीयूष उसे धमका रहा था
"अब रहने भी दे पीयूष.. ज्यादा शरीफ मत बन समझा.. सालों पहले तूने और वैशाली ने क्या गुल खिलाए थे मुझे सब पता है"
अरे बाप रे.. पीयूष की गांड ऐसे फटी की सिलवाने के लिए दर्जी भी काम न आए
"क्या कुछ भी बकवास कर रही है.. कोई काम-धाम है नहीं बस पूरे दिन बातें करा लो.. मुझे ऑफिस जाने में देर हो रही है.. टिफिन तैयार किया या नहीं? बड़ी मुश्किल से मिली है ये नौकरी.. तू ये भी छुड़वा देगी " गुस्से से पैर पटकते हुए पीयूष ने कहा.. कविता को लगा की आज के लिए इतना डोज़ काफी था.. पर जाते जाते उसने सिक्सर लगा दी
"हाँ हाँ टिफिन तो कब से तैयार है.. ये तो तुझे आने में इतनी देर हुई इसलिए मैं ऊपर देखने चली आई.. तुम्हें डिस्टर्ब करने का मेरा कोई इरादा नहीं था.. तुम शांति से पौधों को जितना मर्जी पानी पिलाते रहो.. सारे पौधे तृप्त हो जाए बाद में नीचे चले आना" कविता गुस्से से सीढ़ियाँ उतर गई
"ये कविता साली मुझे आराम से देखने भी नहीं देती.. तो चोदने कैसे देगी? भेनचोद ये पत्नीयों को कैसे समझाए? पति थोड़ा बहुत फ्लर्ट करें तो इसमें कौनसा पहाड़ टूट पड़ता है ये समझ नहीं आता.. कोई कदर ही नहीं है कविता को मेरी.. बहोत गुस्सा आया उसे कविता पर.. लेकिन देश के अन्य मर्दों की तरह वो भी अपनी पत्नी के सामने लाचार था.. जीरो पर आउट होकर पेवेलियन में जिस तरह बेट्समेन नीची मुंडी करके लौटता है वैसे ही पीयूष सिर नीचे झुकाकर सीढ़ियाँ उतारने लगा
कविता को आज पीयूष की फिरकी लेने का मस्त मौका मिला था.. और कोई भी पत्नी ऐसे मौके को छोड़ती नहीं है। पीयूष को सीढ़ियाँ उतरते देख कविता ने कहा "नीचे ध्यान से देखकर उतरना.. कहीं गिर गया तो तेरी देखभाल करने कोई पड़ोसन नहीं आएगी.. वो तो मुझे ही करना होगा इतना याद रखना तुम"
पीयूष चुपचाप टिफिन लेकर ऑफिस के लिए रवाना हो गया.. वो गली के नुक्कड़ तक पहुंचा ही था की तभी उसने रिक्शा में बैठी वैशाली को देखा.. रोता हुआ बच्चा चॉकलेट को देखकर जैसे चुप हो जाता है.. वैसे ही वैशाली को देखकर पीयूष के मन का सारा गुस्सा भांप बनकर उड़ गया..वैशाली ने पीयूष को ऑटो में बैठने को कहा और ऑटोवाले से बोली की यहाँ से निकलकर ऑटो को आगे खड़ा करें.. ताकि इस इलाके से बाहर निकालकर आगे की योजना के बारे में सोच सकें।
"अब बता पीयूष.. किस तरफ लेने के लिए कहू?" वैशाली ने सीधे सीधे पूछ लिया.. पीयूष ने अपनी ऑफिस का पता बताया
"ऑफिस की बात नहीं कर रही.. अरे बेवकूफ तुझे नादान और नासमझ नहीं बनना है?? " वैशाली ने आँखें नचाते हुए नटखट आवाज में कहा
पीयूष हक्का बक्का रह गया.. अपनी माँ पर ही गई है ये लड़की.. बात को घुमाये बगैर सीधा सीधा बोलने की आदत दोनों को है.. पीयूष को ऑफिस में आज बेहद जरूरी काम था.. दूसरी तरफ वैशाली नाम का जेकपोट हाथ में आया था उसे भी जाने नहीं दे सकता था.. पीयूष उलझन में पड़ गया
स्किनटाइट जीन्स और व्हाइट केप्रि पहने बैठी वैशाली ने अपना एक हाथ पीयूष के कंधे पर रख दिया.. उसी के साथ वैशाली का एक तरफ के स्तन की झलक पीयूष को दिख गई.. ओह्ह। वैशाली ने एक ही पल में पीयूष के दिमाग को एक ही पल में बंद कर दिया
"अब जल्दी भोंक.. कहाँ जाना है?? ऑटोवाले भैया कब से पूछ रहे है"
"मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है वैशाली.. तू ही बता "
वैशाली को थोड़ा गुस्सा आया.. साथ ही साथ पीयूष के भोलेपन पर हंसी भी आई.. अभी भी ये पहले जैसा ही है.. लड़की को लेकर कहाँ जाते है वो तक पता नहीं है इसे..
"भैया.. अम्बर सिनेमा पर ऑटो ले लीजिए.. " ऑटो उस तरफ चलने लगी
"नहीं नहीं.. वहाँ नहीं.. उस सिनेमा की बिल्कुल बगल में मेरे दोस्त का घर है.. उसने देख लिया तो आफत आ जाएगी.. "
"तो फिर? कहाँ जाएंगे?" वैशाली सोचने लगी
"साहब, अगर आप लोगों को कोई सुमसान जगह की तलाश है तो मैं आपको ले जा सकता हूँ " ऑटो वाले ने कहा
"कहाँ पर?" वैशाली और पीयूष दोनों एक साथ बोले
"शहर के बाहर मेरा घर बन रहा है.. वहाँ कोई नहीं होता.. काम भी बंद है अभी.. मुझे जो ऊपर का खुशी से देना चाहते हो देना.. मेरी बीवी बीमार है.. मेरी भी थोड़ी मदद हो जाएगी.. " ऑटो वाले ने कहा
"ठीक है.. वहीं पर ले लो.. " वैशाली ने तुरंत फैसला सुना दिया..
लगभग पंद्रह मिनट में रिक्शा एक सुमसान खंडहर जैसी जगह पर आकर रुकी.. दीवारें थी पर प्लास्टर बाकी था.. अंदर कोई नहीं था.. आजूबाजू भी दूर दूर तक किसी का नामोनिशान नहीं नजर आ रहा था..
"आप वापिस कैसे जाओगे साहब? यहाँ ऑटो नहीं मिलेगी आपको.. "
"तुम दो घंटे बाद हमें लेने वापिस आना.. " वैशाली ने कहा
"मेरा नंबर सेव कर लीजिए.. फोन करेंगे तो १० मिनट में पहुँच जाऊंगा" ऑटो स्टार्ट कर वो निकल गया
वैशाली और पीयूष खंडहर के अंदर गए.. रेत के एक बड़े से ढेर पर वैशाली बैठ गई.. बिना अपने कपड़ों की परवाह कीये.. थोड़े संकोच के साथ पीयूष भी वैशाली के पास बैठ गया
काफी देर तक दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। थक कर आखिर वैशाली ने शुरुआत की
"पीयूष, २० मिनट से ज्यादा गुजर चुके है.. ऐसा ना हो की मुझे तुझ से जबरदस्ती करनी पड़े"
सुनते ही पीयूष ठहाका मारकर हंसने लगा.. "क्या यार वैशाली.. कुछ भी बोलती है... छोटी थी तब भी तू ऐसी ही नटखट थी"
"छोटी थी तब की बात है वो.. अब मैं बड़ी हो चुकी हूँ पीयूष.. मेरी पसंद.. मेरा टेस्ट अब बदल चुका है"
"मतलब?? " पीयूष को समझ नहीं आया
रेत के ढेर पर बैठे पीयूष को धक्का देकर सुला दिया वैशाली ने.. और उसके होंठों पर अपने होंठ लगाते हुए उसके लंड को पेंट के ऊपर से दबाने लगी और बोली "छोटी थी तब मुझे लोलिपोप चूसना बहुत पसंद था.. अब मुझे ये चूसना पसंद है"
माय गॉड.. वैशाली के इस कामुक रूप को देखकर पीयूष हक्का बक्का रह गया.. ये लड़की तो एटमबॉम्ब से भी ज्यादा स्फोटक है.. !!
इतना कहते ही वैशाली, पीयूष के लाल होंठों को चूमते हुए उसके लंड को मुठ्ठी में मसलने लगी..
"बड़ा भी हुआ है या उतना ही है जितना आखिरी बार देखा था??" कहते हुए वैशाली ने पेंट की चैन खोलकर अन्डरवेर में से लंड पकड़कर बाहर निकाला.. लंड की साइज़ देखकर उसने "वाऊ.. " कहा..
"पीयूष.. अब ज्यादा वक्त बर्बाद मत कर.. ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.. आज तुझे कलकत्ता का माल मिला है मजे करने के लिए.. ये देख मेरी रत्नागिरी आफुस.." भारी स्तनों वाली छाती को उभारते हुए दिखाकर वैशाली ने पीयूष को पागल बना दिया.. पीयूष बावरा होकर वैशाली के स्तनों को दबाने लगा.. "ओह्ह वैशाली.. पता है उस दिन जब हम होटल गए थे.. ये तेरे बड़े बड़े बबलों में ही मेरी जान अटक कर रह गई थी उस दिन.. जब हमने साथ में पहली बार किया तब तेरे कितने छोटे छोटे थे.. और जब बड़े हुए तब तू चली गई.. तुझे वो सब बातें याद भी है या भूल गई?"
"पीयूष, कोई भी लड़की अपना पहला किस कभी भूल नहीं सकती.. मुझे सब कुछ याद है.. तू बहोत पसंद था मुझे.. पर तू उस पिंकी के साथ ज्यादा खेलता था तब बड़ा गुस्सा आता था मुझे.. "
"कौन सी पिंकी यार??"
"एक नंबर का भुलक्कड़ है तू.. पीछे वाली गली में रहती थी.. रमणकाका की बेटी"
"अरे हाँ.. वो.. वो तो मुझे जरा भी पसंद नहीं थी.. पता नहीं यार तुझे उस समय क्यों ऐसा लगा की पिंकी मुझे पसंद थी.. मैं उस समय भी तुझसे बहोत प्यार करता था.. " दोनों बातें करते हुए एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे.. थोड़ी थोड़ी देर पर वैशाली घड़ी पर नजर डाल लेती थी..
वैशाली किसी परपुरुष के साथ ऐसा कभी न करती.. पर जब से उसे संजय के अवैध संबंधों के बारे में पता चला.. उसका दिमाग फट रहा था.. वो मादरचोद वहाँ मस्ती करे और मैं यहाँ गांड मराऊ ?? मैं भी बेशरम बन सकती हूँ.. और संजय के ऊपर आए गुस्से के कारण ही आज वो पीयूष का लंड पकड़कर रेत में लेटी थी..
"पीयूष.. ऐसे धीरे धीरे नहीं.. जरा जोर से दबा.. " वैशाली ने बड़ी ही धीमी कामुक आवाज में कहा। पीयूष वैशाली के गाल, गर्दन और कान को चूमते हुए उसके विशाल स्तनों को दबा रहा था.. वैशाली के टाइट टीशर्ट के ऊपर के बटन निकालकर उसने खजाना खोल दिया.. ब्रा के अंदर कैद दो खरबूजों के बीच की गोरी चीट्टी खाई.. आहहाहहाहहा.. ब्रा के ऊपर से उभर कर आए स्तनों के ऊपरी हिस्सों को वो चूमते हुए वैशाली के पेंट की चैन को खोलने लगा.. वैशाली की पेन्टी.. चुत का रस रिसने से पूरी तरह भीग चुकी थी
"ओह पीयूष.. बहुत खुजली हो रही है यार अंदर.. अपने हाथ से थोड़ा सहला उसे.. " लंड के ऊपर अपनी पकड़ को मजबूत करते हुए वैशाली ने कहा.. इतनी मजबूती से कभी कविता ने भी नहीं पकड़ा था पीयूष का.. कविता से हजार गुना ज्यादा हवस थी वैशाली में ..
"ओह्ह वैशाली.. मुझे एक बार तेरे ये दोनों बबले खोल कर देखने है यार.. " वैशाली ने टीशर्ट के बाकी बटन खोल दिए.. और ब्रा की कटोरियों में से दोनों मांस के पिंड को बाहर निकाला.. दूध जैसे गोरे भारी भरकम स्तनों को देखकर पीयूष कि आँखें फटी की फटी ही रह गई..
"कितने मस्त है यार तेरे बबले.. " दोनों लचकते स्तनों को हाथ में पकड़कर पीयूष दबाने मसलने लगा..
"तेरा स्पर्श मुझे पागल बना रहा है पीयूष.. मज़ा आ रहा है.. जोर से दबा.. क्रश इट.. ओ येह.. ओ गॉड.. आह्ह" अपने पति की बेवफाई का बदला लेने के लिए वैशाली पीयूष के शरीर फिर हाथ फेर रही थी.. वैशाली के खिले हुए गुलाब जैसे जिस्म को पीयूष रौंदने लगा..
"वैशाली.. तुझे कैसा लगा मेरा.. ??" अपने लंड की ओर इशारा करते हुए पीयूष ने वैशाली की जीन्स केप्रि को खींच कर उसके घुटनों तक ला दिया
"मस्त है तेरा पीयूष.. मज़ा आएगा"
"तेरे पति से बड़ा है ना !!!" संजय का जिक्र होते ही वैशाली के दिमाग के कुकर की सीटी बज गई..
"तू नाम मत ले उस भड़वे का.. मेरा मूड खराब हो जाएगा" वैशाली ने नीचे झुक कर पीयूष का पूरा लंड मुंह में लिया और चूसने लगी.. और बड़ी ही तीव्र गति से चूसने लगी..
"आह्ह वैशाली.. जरा धीरे धीरे.. निकल जाएगा मेरा" पीयूष के आँड़ों से खेलते हुए वैशाली बड़ी मस्ती से चूस रही थी
वैशाली की टाइट केप्रि को बार बार खींचने पर भी जब नहीं निकाल पाया पीयूष तब उसने परेशान होकर वैशाली से कहा
"अरे यार.. ये तेरी चुत के चारों तरफ जो किलेबंदी है उसे हटा.. मुझसे तो निकल ही नहीं रहा है.. कितना टाइट पहनती है तू?"
"मेरे पीयूष राजा.. ऐसे टाइट पेंट में ही हिप्स उभर कर बाहर दिखते है.. और में हॉट लगती हूँ.. समझा.. !!" वैशाली ने आँख मारते हुए कहा
"वो तो ठीक है मेरी रानी.. पर इसे खोलने में कितना वक्त बर्बाद होता है!! इससे तो देसी घाघरा ही अच्छा.. जो पहनने के भी काम आए और वक्त आने पर बिछाने के भी.. अब नखरे छोड़ और उतार ये तेरी केप्रि" अपने ठुमकते लोड़े को काबू में करने के लिए पीयूष ने उसे हाथ से पकड़ कर रखा था..
वैशाली रेत के ढेर से खड़ी हुई.. उसकी पीठ पर रेत लग गई थी.. वैशाली ने केप्रि और साथ में अपनी पेन्टी भी उतार दी.. और कमर से नीचे पूरी नंगी हो गई..
वैशाली की मोटी मोटी जांघें देख पीयूष उत्तेजित होकर उन्हे चूमने लगा.. हल्के झांटों वाली चुत पर हाथ फेरते हुए उसने चुत का प्रवेश द्वार ढूंढ निकाला.. और अपनी उंगलियों से उसकी क्लिटोरिस से जैसे ही उसने खेलना शुरू किया.. वैशाली सिहर उठी.. उसने पीयूष के सिर को पकड़ कर अपनी दो जांघों के बीच में दबा दिया.. सिसकियाँ लेते हुए वो अपने पैरों से पीयूष के लंड को रगड़ने लगी..
"ओह पीयूष.. चाट मेरी यार.. " तड़प रही थी वैशाली.. उसके स्तन फूल कर सख्त हो गए थे.. निप्पल उभर आई थी.. अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था उससे.. वो अपनी झांटों वाली चुत को पीयूष के चेहरे पर रगड़ने लगी.. लेकिन पीयूष अब भी सिर्फ चूम ही रहा था.. अपनी जीभ उसने वैशाली की चुत में नहीं डाली थी
चुत की खुजली से परेशान वैशाली ने पीयूष को धक्का देकर रेत के ढेर पर गिरा दिया.. और उसके चेहरे पर सवार हो गई.. दोनों तरफ अपने पैर जमाकर मदमस्त होकर अपनी चूचियाँ मसलते हुए वो आगे पीछे होने लगी.. वैशाली के जिस्म का वज़न आ जाने से पीयूष का चेहरा रेत में धंस गया.. उसने वैशाली की चुत की परतों के बीच अपनी जीभ फेरनी शुरू कर दी.. दोनों उत्तेजनावश वासना के महासागर में गोते खाने लगे.. हवस की आग में झुलस रही वैशाली पीयूष के सर के बाल पकड़कर अपनी चुत का दबाव बनाने लगी.. पीयूष ने अपने नाखून वैशाली के कोमल चूतड़ों में गाड़ दिए.. चुत का रस पीयूष के पूरे चेहरे पर सना हुआ था..
एक घंटा हो गया.. इन दोनों का फोरपले अब भी चल रहा था.. वैशाली पीयूष के स्पर्श की एक एक पल बड़े मजे से महसूस कर रही थी.. पीयूष की जीभ.. चुत के अंदर तक घुस चुकी थी और वैशाली को स्वर्ग की सैर करवा रही थी.. पीयूष ने अपने लंड को मुठ्ठी में पकड़कर हिलाना शुरू कर दिया.. उसे लंड हिलाता देख वैशाली ने उसका हाथ छुड़ाकर खुद हिलाना शुरू कर दिया
"हाये पीयूष.. ये तेरा खुरदरा लंड जब मेरी चुत की दीवारों पर घिसेगा तब कितना मज़ा आएगा यार.. !!" अब वैशाली को लंड लेने की इच्छा होने लगी.. वैशाली ने अपनी कमर को थोड़ा सा उठाया.. पीयूष अब रिसती हुई चुत को साफ देख पाया.. उसने अपनी जीभ को वैशाली के गांड के छेद से लेकर क्लिटोरिस तक चाटा.. और अंगूठे से क्लिटोरिस को कुरेदने लगा..
दो दो संवेदनशील जगहों पर जीभ का स्पर्श होते ही वैशाली बेहद उत्तेजित हुई.. और वो खुद झड़ जाए उससे पहले पीयूष के लंड के ऊपर बैठ गई.. जिस प्रकार से लंड घिसकर अंदर गया उससे वैशाली को यकीन हो गया की हिम्मत के लंड के मुकाबले पीयूष के लंड में ज्यादा मज़ा आएगा..
"आह्ह पीयूष.. ओह माँ.. फक मी.. येस.. ओह गॉड.. फक मी हार्ड.. " कराह रही थी वैशाली.. पीयूष भी नीचे से दमदार धक्के लगाए जा रहा था..
"ओह्ह वैशाली.. मेरा निकलने की तैयारी में है.. !! कितनी टाइट है तेरी चुत.. आह्ह.. !! लगता है काफी दिनों से बिना चुदे कोरी पड़ी है तेरी चुत.. "
"ओह्ह.. जोर से धक्के मार पीयूष.. स्पीड बढ़ा.. फाड़ दे मेरी चुत को.. बहुत भूखी हूँ.. ओह ओह्ह.. " पागलों की तरह कूद रही थी वैशाली.. खंडहर की दीवारों के बीच "फ़च फ़च" की आवाज़ें गूंज रही थी.. "पीयूष.. पानी अंदर मत निकालना.. नहीं तो भसड़ हो जाएगी.. पिछले एक साल से उस कमीने के साथ मैंने कुछ नहीं किया है"
"ओह्ह पीयूष.. आह्ह.. उईई माँ.. बहोत मस्त चोद रहा है यार.. आह्ह मैं गईईईई" कहते हुए वैशाली थरथराने लगी और झड़ गई.. झड़ते ही वो उसी अवस्था में पीयूष की छाती के ऊपर लेट गई.. पीयूष ने अपना लंड बाहर निकाल और वैशाली की गांड के इर्दगिर्द अपनी पिचकारी दे मारी.. गांड के छेद पर गरम गरम वीर्य का स्पर्श होती है वैशाली ने कहा "कितना गरम है यार.. पीछे जलने लगा मुझे.. "
वैशाली पीयूष के शरीर से उतर गई.. और बेफिक्र होकर उसके बगल में रेत पर लेट गई.. दोनों पसीने से सन चुके थे.. और पूरे शरीर पर रेत लग गई थी.. वासना का तूफान शांत हो गया था.. और दोनों धीरे धीरे वास्तविकता की दुनिया में कदम रख रहे थे.. पीयूष अब भी लेटे लेटे वैशाली के स्तनों को दबा रहा था
वैशाली: "तुझे इतने पसंद है मेरे स्तन?"
पीयूष: "हाँ डार्लिंग.. इन्हे देखते ही मैं बेकाबू हो जाता हूँ"
वैशाली: "मुझे भी तेरे साथ इत्मीनान से करवाने का बड़ा ही मन था.. इतना मज़ा आया है मुझे आज की क्या कहूँ.. आई वॉन्ट टू फ़ील दिस अगैन..वापिस कब मिलेगा मुझे?"
"तू यहाँ और कितने दिनों के लिए है?"
"कम से कम एक हफ्ते के लिए.. " पीयूष के नरम लंड से खेलते हुए वैशाली ने कहा
पीयूष: "तेरे शरीर इतना आकर्षक है की अगर दिन रात करता रहु तो भी मेरा मन नहीं भरेगा.. अगर तू तैयार हो तो अभी एक और बार करते है"
वैशाली मुस्कुराई और बोली "यहाँ इस अनजान जगह में खुले में करने में जो मज़ा आया.. मेरा भी दिल कर रहा है एक बार और करने के लिए... पर जल्दी करना पड़ेगा.. वक्त बहुत ही काम है.. और कल वापिस तू कुछ सेटिंग करना.. जहां बुलाएगा मैं आ जाऊँगी.. बहोत सह लिया संजय के साथ.. अब मैं ज़िंदगी का पूरा मज़ा लूँगी"
पीयूष ने करवट लेकर पास लेटी वैशाली के स्तन की निप्पल को चूसना शुरू किया.. इसी के साथ वैशाली की चुत में करंट दौड़ने लगा.. पीयूष का लंड भी जागृत हो गया.. वैशाली पीयूष के लंड पर अपनी छातियाँ रगड़कर उसे और सख्त करने लगी.. स्तनों के गरम नरम स्पर्श से लंड का सुपाड़ा खिल उठा..
पीयूष ने वैशाली को लंड से दूर किया और उसे रेत में उल्टा लेटा दिया.. और उसपर सवार होकर अपने लंड को उसके चूतड़ों पर चाबुक की तरह मारने लगा.. गोरे कूल्हे लाल लाल हो गए.. रेत के अंदर वैशाली के चुचे अंदर धंस गए.. गीली रेत की ठंडक अपने स्तनों पर महसूस कर रही थी वैशाली।
बगल में साइलेंट मोड पर रखा हुआ पीयूष का मोबाइल अविरत बजे जा रहा था.. उसके बॉस राजेश और सेक्रेटरी पिंटू के अनगिनत मिसकॉल थे स्क्रीन पर.. उतना ही नहीं.. कविता और शीला के भी मिसकॉल आए थे.. पर इस हवस के सागर में डूबे हुए जोड़े को दुनिया की परवाह न थी
वैशाली के भव्य चूतड़ों को चौड़ा कर पीयूष ने गांड के छेद पर अपनी जीभ फेरकर वैशाली को झकझोर दिया.. "माय गॉड पीयूष.. कहाँ जीभ फेर दी तूने.. तुझे घिन नहीं आई?"
"तुझे नहीं पसंद तो नहीं करूंगा डीयर.. "
"पसंद नापसंद की बात नहीं है यार.. नीचे जीभ से कोई चाटे तो मज़ा तो आता ही है.. मेरे कहने का ये मतलब था की ऐसी गंदी जगह तू कैसे चाट सकता है!!" वैशाली को जरा भी अंदाजा नहीं था की इस जगह भी कितना आनंद छुपा हो सकता है
"पीयूष प्लीज.. चाटना बंद कर.. मैं मर जाऊँगी.. "वैशाली से बर्दाश्त नहीं हो रहा था.. पीयूष चाट पीछे रहा था और आग लग रही थी वैशाली की चुत में.. जब रहा नहीं गया तब वैशाली ने रेत के ढेर में हाथ डालकर खुद ही अपनी चुत को ढूंढ निकाला.. और क्लिटोरिस को पकड़कर दबा दिया.. तब उसे चैन आया.. चुत की खुजली थोड़ी शांत होने पर अब वह आराम से गांड चटाई का मज़ा ले पा रही थी
पीयूष अब उठा और दोनों हाथों से वैशाली को जांघों से पकड़कर खिंचकार थोड़ा सा ऊपर कर दिया.. और अपने सुपाड़े को गांड के छेद पर रख दिया.. वैशाली को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके छेद पर किसी ने कोयले का अंगारा रख दिया हो.. इतना गरम लग रहा था पर मज़ा भी आ रहा था.. गर्मी का एहसास होते ही उसकी गांड का वाल्व सिकुड़कर बंद हो गया। पर पीयूष बेहद उत्तेजित था.. या यूं कहो की निरंकुश सा हो चुका था.. उसने अपने लंड को जोर से अंदर धकेला.. वैशाली तो यही सोच रही थी की पीयूष उसकी गांड के साथ बस छेड़छाड़ कर रहा था.. लेकिन उस अत्यंत कोमल और संकरी गांड के मुकाबले काफी बड़े सुपाड़े के अंदर घुसते ही उसकी चीख निकल गई
"ओओईईई माँ.. मर गई मैं.. नालायक.. क्या किया तूने? निकाल बाहर.. " पीयूष वैशाली की चीखो को अनसुना करते हुए अंदर धकेलता गया. उसका आधा लंड अंदर घुस गया.. वैशाली को चक्कर आने लगे.. आँखों के सामने अंधेरा छा गया.. पीयूष की पकड़ से छूटने के लिए वो उछलने लगी.. पर जरा सी भी हलचल करने पर उसे तीव्र पीड़ा हो रही थी.. इसलिए उसने प्रतिकार या विरोध करना बंद कर दिया
टाइट गांड के अंदर पीयूष के लंड की चमड़ी भी छील गई थी.. उसे भी जल रहा था.. बहोत टाइट था वैशाली की गयंद का छिद्र
थोड़ी देर तक बिना हिलेडुले पीयूष स्थिर पड़ा रहा.. वैशाली की जान में जान आई "प्लीज पीयूष.. बाहर निकाल दे यार.. किसी और दिन ट्राय करेंगे.. अभी मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ.. " दर्द से कराहते हुए वैशाली ने कहा
पीयूष ने बड़े ही प्यार से वैशाली की गर्दन को चूमते हुए कहा "वैशाली.. "
उसने जवाब नहीं दिया
पीयूष ने फिर से कहा "सुन रही हो डीयर??"
"हाँ बॉल.. क्या है?"
"तूने पहले कभी पीछे करवाया है? मतलब किसी गांड मरवाई है क्या कभी?"
"नहीं.. कभी नहीं.. बहोत दर्द होता है.. तू कभी अंदर लेगा तो पता चलेगा तुझे"
"मैं क्या होमो लगता हूँ तुझे.. जो किसी की अंदर लूँगा??" गुस्से से पीयूष ने लंड को फिर से दबाया.. वैशाली के कंठ से दबी हुई चीख निकल गई.. "बस कर यार.. मुझसे अब बर्दाश्त नहीं होता"
पीयूष: "वैशाली.. जीवन में हर तरह के अनुभव करने चाहिए.. ये अनुभव भी जरूरी है"
"भेनचोद.. चूल मची है चुत में.. और तू गांड के पीछे पड़ा है?" वैशाली अब गुस्सा हो गई.. भोसड़े की खुजली बर्दाश्त नहीं हो रही थी उससे.. पीयूष ने लंड को बाहर खींचा.. वैशाली को राहत मिली.. "गुड बॉय.. अब मैं घूम जाती हूँ.. फक मी इन द फ्रंट"
पीयूष ने फिर लंड को दबाया.. "उईई माँ.. क्या कर रहा है तू? मुझे बहोत दर्द हो रहा है यार.. कब से बॉल रही हूँ समझता क्यों नहीं?"
पीयूष ने धीरे से लंड बाहर निकाल लिया... गांड आजाद होते ही वैशाली की जान में जान आई.. वो पलट गई और बोली "बहोत वक्त जाया किया है तूने.. अब जल्दी कर.. " वैशाली ने पीयूष का लंड पकड़कर खुद ही अपनी चुत में डाल दिया.. और अपनी कमर उठा ली.. शताब्दी एक्स्प्रेस की गति से पीयूष ने चुत चुदाई शुरू कर दी.. वैशाली भी चूतड़ उछालकर उसके धक्कों का माकूल जवाब दे रही थी
कुछ ही मिनटों की चुदाई के बाद वैशाली झड़ गई.. पीयूष ने भी लंड बाहर निकालकर वैशाली के गद्देदार पेट पर वीर्य की पिचकारी छोड़ दी.. दोनों अब शांत हो गए.. वैशाली पूरी तरह से तृप्त हो चुकी थी.. रेत से घिसकर उसने अपने पेट पर लगा वीर्या साफ कर लिया.. दोनों इतने गंदे हो चुके थे जैसे मजदूरी करके वापिस लौटे हो.. वैशाली की चुत तो शांत हो गई पर उस मादरचोद ने जो गांड में लंड डाला था.. वहाँ जलन हो रही थी और दर्द भी..
"ये कपड़े तो देख और हमारा हाल देख.. ऐसे कैसे घर जाएंगे हम दोनों??" वैशाली को चिंता होने लगी..
पीयूष भी सोच में पड़ गया.. कहीं थोड़ा पानी मिल जाएँ तो सफाई हो सकती है.. पीयूष ढूँढने लगा.. मकान का काम चल रहा था मतलब कहीं न कहीं टंकी जरूर होगी.. पीछे की तरफ टंकी नजर आई.. पर उसमें बहोत दिने से भरा हुआ गंदा पानी था..
"ऐसे गंदे पानी में मैं अपने पैर नहीं साफ करूंगी" वैशाली ने मना कर दिया
"कोई बात नहीं महारानी.. अभी तेरे पापा विदेश से मिनरल वॉटर भेजेंगे.. उससे साफ कर लेना.. ठीक है !! नखरे छोड़ और साफ कर" वैशाली ने जैसे तैसे अपने कपड़े साफ किए और शरीर पर लगी रेत को झटक दिया
"अब जल्दी करते है पीयूष.. एक घंटे के लिए सहेली को मिलने के बहाने निकली थी.. घर से निकले हुए साढ़े तीन घंटे हो गए है.. मम्मी चिंता कर रही होगी.. अब भागना पड़ेगा"
अब पीयूष की भी फटी.. ऑफिस का काम छोड़कर आया था.. कितनी जरूरी डिलीवरी करनी थी आज.. राजेश सर क्या सोचेंगे.. बिना कहे ही छूटी मार दी!! पर कोई फोन ही कहाँ आया है किसी का.. फिर तो कोई टेंशन नहीं है..
तभी अचानक उसे याद आया की चुदाई शुरू करने से पहले उसने फोन को साइलन्ट मोड पर रख दिया था.. रेत के ढेर से थोड़े दूर उसने मोबाइल रखा हुआ था.. फोन हाथ में लेते ही उसके होश उड़ गए.. उसके चेहरे पर शिकन आ गई
"क्या हुआ??" चिंतित पीयूष को देखकर वैशाली ने पूछा
"अरे यार.. मेरे बॉस के दस मिसकॉल आ गए है.. घर से कविता के और तेरी मम्मी के मिसकॉल भी है.. कहीं बॉस ने घर पर तो फोन नहीं किया होगा?? घर पर फोन किया होगा तो कविता ने तो यही कहा होगा की मैं ऑफिस के लिए निकल चुका हूँ!! बाप रे !!"
वैशाली को भी याद आया.. उसका फोन भी पर्स के अंदर था.. पर्स से फोन निकालकर उसने देखा तो मम्मी के बीस मिसकॉल थे और संजय के भी काफी कॉल आकर चले गए थे.. इस मादरचोद को भी आज ही मेरी याद आनी थी!! जैसे इतना काफी नहीं था.. वैशाली को कविता का मेसेज भी आया था "कहाँ है तू? कहीं पीयूष के साथ तो नहीं है.. प्लीज कॉल अरजेंट" इसका मतलब तो ये हुआ की दोनों के घर पर प आता चल चुका था.. कोई भी समस्या हो कविता सब से पहले शीला को बताती थी ये बात पीयूष को पता थी
दोनों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी.. वैशाली खड़ी हुई और बोली "कुछ भी हो जाएँ पीयूष.. पर हमें इसी बात पर अड़े रहना है की हम साथ नहीं थे.. हम दोनों को साथ जाते हुए किसी ने देखा तो नहीं होगा ना??"
पीयूष के पास इसका कोई जवाब नहीं था.. दोनों सिर पकड़कर खड़े रहे.. "बुला लूँ ऑटो वाले को?" पीयूष ने कहा
"नहीं.. मुझे सोचने दे कुछ.. अब जो भी होगा देखा जाएगा.. " वैशाली ने कहा
"हम जब सोसायटी के नुक्कड़ से ऑटो में बैठे तब किसी न किसी ने हमे देखा ही होगा.. " पीयूष की गांड फट कर फ्लावर हो गई
"अब मजे किए है तो थोड़ा भुगतना भी पड़ेगा.. हम ये कहेंगे की हम ऑटो में साथ निकले औ मैंने तुम्हें बस स्टेंड पर छोड़ दिया था" वैशाली का दिमाग काम पर लग गया
"मैं बॉस को फोन करता हूँ.. पर क्या कहूँगा उनसे?"
"अरे यार.. बोल देना की रास्ते में एक बाइक वाले का एक्सीडेंट हुआ था तो तू उसे लेकर अस्पताल गया था.. इसलिए ऑफिस नहीं आ सका"180
"यार तू कितनी आसानी से जूठ बोल सकती है.. मुझसे तो बोला ही नहीं जाता.. एक काम कर.. तू ही बात कर ले मेरे बॉस से"
"ठीक है.. फोन लगाकर दे.. मैं बात करती हूँ"
पीयूष ने राजेश सर को फोन लगाकर वैशाली को दिया। राजेश बहोत गुस्से में था.. पर सामने पीयूष के बजाए किसी लड़की की आवाज सुन कर वो भी ठंडा हो गया.. वैशाली ने पट्टी पढ़ाकर राजेश को चोदू बना दिया..
"हो गया प्रॉब्लेम सॉल्व? अब तू कविता को फोन लगा" वैशाली ने पीयूष से कहा
"कविता को? पर क्यों?"
"तुझे जो कहा वो कर.. लगा फोन" वैशाली ने कहा
"अरे पर फोन मिलाकर क्या बात करू?"
"अभी तेरे बॉस को एक्सीडेंट वाला बहाना दिया ना हमने.. तो घर पर भी वही कहना है.. इतना भी नहीं समजता तू बेवकूफ?"
पीयूष ने कविता को फोन किया और जो बात वैशाली ने राजेश से कही थी वही बात उसने कविता को बोल दी.. फिर रिक्शा वाले को फोन करके बुलाया.. और ऑटो में अपने घर के एरिया तक पहुँच गए.. वैशाली ने अपने पर्स से 500 का एक नोट निकालकर ऑटो वाले को दे दिया... वो खुश होकर चला गया
"तू भी यार.. इतने पैसे भी कोई देता है क्या??" पीयूष को ५०० रुपये बहोत ज्यादा लगे.. उसके हिसाब २००-२५० में काम बन जाता
वैशाली: "यार.. तूने आज मुझे जो ऑर्गजम दिए है.. उसके सामने ५०० रुपये की कोई कीमत नहीं है.. और देख.. जब गैरकानूनी हरकतें कर रहे हो तब रिश्वत देने में कभी कंजूसी नहीं करनी चाहिए.. " गुरुमंत्र दिया पीयूष को वैशाली ने
"तू फिर कब मिलेगा मुझे??" वैशाली ने पूछा
"तू मुझे मोबाइल कर देना.. जहां कहेगी मैं आ जाऊंगा.. " ऐसे व्यभिचारी मामलों में जगह की व्यवस्था करना पुरुष की जिम्मेदारी होती है.. पीयूष में इतनी हिम्मत नहीं थी इसलिए परोक्ष रूप से उसने वैशाली पर ही वो जिम्मेदारी डाल दी
वैशाली: "ठीक है.. लेकिन जब बुलाऊ.. जहां बुलाऊ.. पहुँच जाना वरना तू जहां भी होगा पहुँच जाऊँगी और वहीं खड़े खड़े चोद दूँगी.. समझा!!"
इतनी रंगीन धमकी सुनकर पीयूष पानी पानी हो गया.. उसने चुपके से वैशाली के हाथ को दबा दिया.. और दोनों अलग अलग रास्ते चल निकले
पीयूष के लिए तुरंत घर जाना मुमकिन नहीं था.. अगर दोनों एक साथ ही सोसायटी में प्रवेश करते तो जिस बात का सब को शक था वो यकीन में बदल जाता..
शीला अपने घर चिंता से पागल हुई जा रही थी.. जवान लड़की देर तक घर ना लौटे.. फोन पर कॉन्टेक्ट न हो पाए.. कोई अता-पता न हो.. तो कोई भी माँ का चिंतित होना काफी स्वाभाविक है..
वैशाली को देखते ही शीला मशीनगन की तरह फायरिंग करने लगी "कहाँ थी तू? एक घंटे का बोलकर गई थी अभी चार चार घंटे हो गए और तेरा कुछ पता ही नहीं.. !! एक फोन तक नहीं कर सकती थी?? कितनी चिंता हो रही थी मुझे.. कहाँ गई थी तू?"
वैशाली: "मेरी बात तो सुनो मम्मी.. वो मेरी फ्रेंड है ना.. सुमन.. ?? उसके घर गई थी.. उसके घर मेहमान आए हुए थे.. और वो बेचारी अकेली थी.. सब के लिए खाना बनाना था तो मैं उसे मदद कर रही थी.. अब उसे भला कैसे मना करती? थोड़ी देर में काम खतम कर के निकल जाऊँगी ऐसा सोचते सोचते इतना टाइम निकल गया.. फोन मेरा पर्स के अंदर था.. और वो मेहमान ऊंची आवाज पर टीवी देख रहे थे इसलिए मैं फोन की रिंग सुन नहीं पाई.. तूने खाना खाया की नहीं?"
शीला: "मैंने तो खाना कहा लिया.. पर तेरे कपड़ों पर इतनी रेत क्यों लगी है?" शीला की शातिर आँखों से कुछ भी बच नहीं सकता
"मम्मी.. ऑटो से उतरकर मैं चलते चलते सुमन के घर की तरफ जा रही थी.. तभी मेरे आगे एक रेत से भरा ट्रेक्टर जा रहा था.. आगे एक खड्डा आया और ट्रेक्टर से रेत उछल कर आजू बाजू चल रहे सब के ऊपर गिरी.. मैं नहाने जाती हूँ" शीला ओर कोई प्रश्न पूछती उससे पहले वैशाली भागकर बाथरूम में घुस गई.. शावर लेने के बाद उसे एहसास हुआ की साफ कपड़े तो लेना भूल ही गई थी.. अपने स्तनों को ऊपर तोलिया बांधकर वो बाहर निकली और बेडरूम के अंदर अपने कपड़े लेने के लिए उसने दरवाजा खोलने की कोशिश की..
दरवाजा अंदर से लोक था.. वैशाली ने शीला को आवाज दी.. "मम्मी.. ये बेडरूम को लोक क्यों लगाया है?? मुझे मेरे कपड़े लेने है"
शीला भागकर आई और अपने होंठ पर उंगली रखते हुए वैशाली को चुप रहने के लिए कहा "अंदर संजयकुमार सो रहे है.. धीरे से बोल वरना जाग जाएंगे.. बहोत थक कर आए है.. मुझे कह रहे थे की कोई उन्हे डिस्टर्ब न करे.. इसलिए मैंने बाहर से दरवाजा लोक कर दिया... थोड़ी देर पहले वो कविता और मौसी ने आकर भूचाल मचा दिया था.. "
वैशाली: "क्यों? कविता और मौसी को क्या हुआ?"
शीला: "अरे हुआ कुछ नहीं.. पीयूष ऑफिस जाने के लिए निकला और समय पर पहुंचा नहीं.. उसके बॉस ने कविता को फोन किया इसलिए सब चिंता करने लगे.. मौसी ने तो ५ दिए जलाने की मन्नत भी मांग ली.. अब पीयूष कोई छोटा बच्चा है जो कहीं खो जाएगा !!! मैंने उसे समझाया की थोड़ी देर शांति रखें.. पीयूष का पता चल ही जाएगा.. और पीयूष कितना सुशील और संस्कारी लड़का है !! वो बिना बताए या घर वालों से छुपाकर कहीं जाने वालों में से नहीं है.. उलझ गया होगा बेचारा किसी काम में.. पर मेरी बात सुनता कौन!! तभी फोन आया की पीयूष का पता चल गया.. मौसी की जान में जान आई.. कविता तो रोने ही लग गई.. मैंने उनसे कहा की वो खोया ही नहीं था.. तुम लोग बेकार में टेंशन ले रहे थे.. अब इन सब शोर-शराबे से संजय की नींद खराब न हो इसलिए मैंने ही बाहर से ताला लगा दिया.. ये ले चाबी.. अंदर जाकर कपड़े बदल ले.. और हाँ.. वापिस वो अधनंगे कपड़े मत पहनना.. दामाद जी को बुरा लगेगा.. वो सोचेंगे की मायके में आकर तू आउट ऑफ कंट्रोल हो गई है.. जा अंदर.. और ब्लू कलर की साड़ी पहन कर आना.. मैंने तुझे दी थी न वो वाली.. बहुत जचेगी तुझ पर.. !!"
संजय का नाम सुनते ही वैशाली के मूड का सत्यानाश हो गया.. पीयूष के संग की चुदाई का जो भी नशा था वो एक ही पल में उतर गया.. संजय से वो अब नफरत करती थी.. आखिर एक औरत कब तक बर्दाश्त करेगी? मुंह बिगाड़कर वैशाली ने कहा "उसे जो सोचना हो सोचे.. मुझे कोई फरक नहीं पड़ता.. उसने मेरे कौन सी चिंता की है जो मैं उसकी परवाह करू? भाड़ में जाए संजय.. मैं तो आज मेरी पसंद के कपड़े ही पहनूँगी.. "
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गयासंजय का नाम सुनते ही वैशाली के मूड का सत्यानाश हो गया.. पीयूष के संग की चुदाई का जो भी नशा था वो एक ही पल में उतर गया.. संजय से वो अब नफरत करती थी.. आखिर एक औरत कब तक बर्दाश्त करेगी? मुंह बिगाड़कर वैशाली ने कहा "उसे जो सोचना हो सोचे.. मुझे कोई फरक नहीं पड़ता.. उसने मेरे कौन सी चिंता की है जो मैं उसकी परवाह करू? भाड़ में जाए संजय.. मैं तो आज मेरी पसंद के कपड़े ही पहनूँगी.. "
शीला बेबस हो गई.. आजकल की पीढ़ी को कुछ भी समझाना बड़ा ही कठिन है.. वो ओर कुछ कहती उससे पहले वैशाली ने दरवाजा खोल दिया.. अंदर गई.. और धड़ाम से दरवाजा बंद कर दिया..
शीला घबरा गई.. उसे यकीन था की दरवाजे की आवाज से संजय जाग जाएगा और दोनों के बीच झगड़ा होगा.. अब क्या करू? पति पत्नी के झगड़े के बीच में पड़ना भी ठीक नहीं होगा.. अरे, पति पत्नी के बीच तो मनमुटाव होता रहता है.. वैशाली बेकार में इतना गुस्सा कर रही है.. इतने दिनों के बाद आया है संजय.. पर वैशाली के चेहरे पर कोई खुशी ही नहीं थी..
काफी देर तक शीला बाहर सोच में डूबी खड़ी रही.. उसे आश्चर्य हुआ की अब तक वैशाली बाहर क्यों नहीं आई?? कुछ हुआ होगा क्या? कहीं संजय ने वैशाली पर हाथ तो नहीं उठाया होगा?? शीला कांप गई.. क्या करू!! अंदर जाऊ की नहीं?? शीला ने दरवाजे पर कान लगाकर सुनने का प्रयत्न किया लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई.. बहोत दिनों के बाद मिले है.. तो कुछ कर तो नहीं रहे होंगे? पर वैशाली तो कह रही थी की उसे संजय की परवाह ही नहीं है.. शीला का दिमाग तेजी से चल रहा था
तभी बाहर के दरवाजे पर दस्तक हुई.. शीला ने दरवाजा खोला तो उसकी सहेली चेतना खड़ी थी.. शीला का चिंतित चेहरा देखकर चेतना सकपका गई.. उसे लगा की शायद वो गलत वक्त पर आ गई.. शीला ने उसे अंदर तो बुलाया पर बिना किसी उत्साह के..
"क्या हुआ शीला?? तेरा चेहरा क्यों उतरा हुआ है?"
शीला: "अरे कुछ खास नहीं.. तू बता.. अचानक कैसे आना हुआ?"
चेतना: "यहाँ से गुजर रही थी.. सोचा तुझसे मिल लूँ.. "
शीला: "अच्छा किया.. आ बैठ.. मेरी बेटी वैशाली और दामाद आए हुए है एक हफ्ते से"
चेतना: "अच्छा!! कहाँ है वैशाली? बहोत सालों पहले देखा था.. तब तो वो छोटी सी थी.. अब तो मैं उसे पहचान भी नहीं पाऊँगी"
शीला: "अंदर रूम में है.. कपड़े बदल रही है.. अभी आएगी.. तू बता.. और सब ठीक ठाक? घर पर सब कैसे है?"
चेतना और शीला बातें कर रहे थे तभी बेडरूम के अंदर से वैशाली और संजय की जोर जोर से आवाज़ें आने लगी.. शीला समझ गई की दोनों के बीच झगड़ा हुआ था.. तभी वैशाली पैर पटकते बाहर आई.. वैशाली ने चेतना को पहचाना नहीं.. शीला ने उसकी पहचान करवाई "अरे बेटा.. याद है ये चेतना आंटी? हमारे बगल में रहते थे?"
वैशाली ने औपचारिकता से नमस्ते कहते हुए हाथ जोड़े और वहाँ से चली गई
शीला: "लगता है दोनों के बीच कोई कहा-सुनी हो गई है.. तू बुरा मत मानना चेतना.. "
चेतना: "कोई बात नहीं शीला.. बच्चे है.. ये सब तो चलता रहता है.. तू चिंता मत कर.. पति पत्नी का झगड़ा, रात होते ही बेडरूम में जाकर शांत हो ही जाता है.. " दिलासा देते हुए चेतना ने कहा
चेतना की बात सुनकर शीला को अच्छा लगा.. थोड़ी देर के बाद संजय बाहर के कमरे में आया.. और इन दोनों के सामने देखे बगैर ही बिना कुछ कहें वो भी घर के बाहर चला गया
चेतना: "शीला, ये है तेरे दामाद??"
चेतना के चेहरे के विचित्र हावभाव देखकर शीला घबरा गई "हाँ ये ही है.. क्यों क्या हुआ??"
चेतना: "नहीं नहीं.. कुछ नहीं.. नाम क्या है इनका??"
"संजय"
चेतना: "शीला, पता नहीं मैं सही हूँ या गलत.. पर इनको तो मैं रोज देखती हूँ" अपने दिमाग पर जोर डालते हुए उसने कहा
चिंतित चेहरे के साथ शीला चेतना को देखती रही..
शीला: "क्या?? क्या बात कर रही है तू? कहाँ देखा है इन्हें?"
चेतना: "सुबह मैं जब दूध लेने निकलती हूँ तब हमारे घर के सामने जो गेस्ट-हाउस हैं उसकी बालकनी में खड़े खड़े सिगरेट फूंकते हुए रोज देखती हूँ मैं.. पर यकीन नहीं हो रहा ये तेरा दामाद है !!"
शीला: "पक्का तू कुछ छुपा रही है.. क्या बात है चेतना?"
चेतना: "कुछ खास नहीं यार.. छोड़ ना.. बेकार में तेरा टेंशन बढ़ेगा.. "
शीला: "बता न यार.. तुझे मेरी कसम है"
चेतना सोच में पड़ गई.. फिर थोड़ी सी हिचक के साथ बोली "यार बुरा मत मानना.. पर इस आदमी की नजर ठीक नहीं है.. बहोत ही चालू किस्म का आदमी है ये"
शीला: "उसमें कोई नई बात नहीं है.. जो आदमी अपनी माँ समान सास की छातियों को बुरी नजर से तांकता हो.. वो और क्या नहीं कर सकता !!"
चेतना: "क्या सच में? मतलब उसने तुझे भी नहीं छोड़ा?"
शीला: "तुझे भी.. यानि तेरे साथ भी उसने.. !!"
चेतना: "रोज सुबह जब दूध लेने निकलती हूँ तब पूरा रोड सुमसान होता है.. तभी ये आदमी मुझे देखकर गंदे गंदे इशारे करता रहता है... कभी कभी तो उसके साथ एक औरत भी होती है.. उसकी रखैल होगी.. मेरे सामने ही वो उस औरत के बबले दबाता है और चुम्मा-चाटी भी करता है"
शीला: "इसी बात को लेकर मैं टेंशन में हूँ चेतना.. वैशाली और संजय की जरा भी नहीं बनती.. पूरा दिन दोनों झगड़ते रहते है.. लेकिन मुझे ये अंदाजा नहीं था संजय की ज़िंदगी में कोई ओर लड़की भी है !!"
चेतना: "देख शीला.. मैं ये दावे के साथ तो नहीं कह सकती की जो लड़की उसके साथ थी वो उसकी रखैल ही होगी.. पर जिस तरह का वो गेस्ट-हाउस है.. वहाँ शरीफ लोग नहीं जाते है.. सिर्फ ऐसे ही लफंगे लफड़ेबाज लोग जाते है.. उसी आधार पर मैं अंदाजा लगा रही हूँ"
शीला: "सही बोल रही है तू.. आज कल हॉटेलों और गेस्टहाउस में यही सब तो चलता है.. यार चेतना.. तू मेरा एक काम करेगी?"
चेतना: "हाँ हाँ बोल ना.. "
शीला: "तू मेरे दामाद के बारे में और जानकारी हासिल कर सकती है क्या? वो कितने दिनों से गेस्टहाउस में है.. वो लड़की कौन है... उसका संजय से क्या ताल्लुक है वगैरह वगैरह.. "
चेतना: "पर ये सब जानकार तू क्या करेगी शीला?"
शीला: "मुझे यकीन है की वैशाली को इसके बारे में सब पता है पर वो मुझे बता नहीं रही.. ये सब बातें जानना जरूरी है.. बता ना.. मेरी मदद करेगी ना?"
चेतना: "मदद तो करूंगी.. पर देखना यार.. कहीं मैं फंस न जाऊ.. मैं आई थी किस काम से और ये सब क्या हो रहा है"
शीला: "कुछ नहीं होगा.. तुझ पर आंच भी नहीं आने दूँगी.. ठीक है ना !! और तू किस काम से आई थी ये तो बता"
चेतना: "क्या बताऊ शीला.. !! उस दिन पिंटू के साथ प्रोग्राम करने के बाद मैं कोरी की कोरी ही हूँ.. मेरा पति मेरी एक नहीं सुनता.. खाना खाके सो ही जाता है.. अब इस सावन में मैं बिना भीगे तड़प रही हूँ.. कुछ सेटिंग कर यार.. पिंटू को वापिस बुला"
शीला: "अरे पगली.. पिंटू तो कविता का प्रेमी है.. वो ऐसे हमारे बुलाने से थोड़े ही आएगा.. !! उस दिन तो हमने उसे चुदाई सिखाने के बहाने चुदवा लिया था.. अब बार थोड़े ही बुला सकते है.. !!"
चेतन निराश हो गई.. "तो अब क्या करें?"
शीला: "देख यार चेतना.. मुझसे अगर कुछ बन पड़ता तो मैं जरूर करती.. पर तू देख रही है ना.. वैशाली की मौजूदगी में किसी को घर पर बुला नहीं सकती"
चेतना: "यहाँ न सही.. मेरे घर पर तो किसी को भेजना का कुछ सेटिंग करवा दे"
शीला हंस पड़ी.. कुहनी से चेतना की कमर पर धक्का लगाकर बोली "नालायक.. मैं कोई दल्ली हूँ जो तू मुझसे ऐसा पूछ रही है?"
चेतना: "शीला, मुझे पक्का यकीन है.. की तू ऐसे दो-तीन को तो जानती ही होगी.. तेरा स्वभाव पहले से ऐसा ही रहा है.. तू किसी एक के भरोसे कभी नहीं होती.. तेरे पास विकल्प होते ही है"
शीला ने जवाब नहीं दिया.. चेतना की बात भी सही थी.. शीला के भोसड़े के रजिस्टर में पिंटू के बाद और कितने नए नाम जुड़ चुके थे.. !! पीयूष, रसिक, जीवा और रघु..
शीला: "एक बात बता.. तेरे घर के आसपास का माहोल कैसा है? मतलब अगर किसी को भेजूँ तो कोई रिस्क तो नहीं है ना ??"
चेतना: "वैसे रिस्क तो कोई नहीं है.. पर हाँ अगर कोई अनजान आदमी अकेला आएगा तो अड़ोस पड़ोस वाले जरूर देखेंगे.. उससे अच्छा अगर तू भी साथ आए तो देखना वाला यही सोचेगा की कोई पति-पत्नी मिलने आए है.. फिर किसी को शक नहीं होगा"
चेतना की चुदने की इस तड़प को देखकर शीला को दया आ गई.. उसकी मदद तो करनी ही होगी.. पर वैशाली का क्या करू? चेतना के घर ही पूरा दिन निकाल जाएगा.. और अभी वैशाली और संजय के बीच जो हुआ उसके बाद उसे वैशाली को अकेला छोड़कर जाना ठीक नहीं लग रहा था.. ऊपर से पिछली बार जब वैशाली को अकेला छोड़ा था तब उसने हिम्मत को घर बुला लिया था
शीला चुपचाप ये सब सोचते हुए चेतना को देखती रही.. चेतना बड़ी ही बेसब्री से शीला के जवाब की प्रतीक्षा कर रही थी.. शीला उसके गोरे गोरे मम्मों को ब्लाउस के अंदर से ऊपर नीचे होते हुए देखती रही..
शीला: "ठीक है.. मैं कुछ जुगाड़ करती हूँ.. इतने दिन इंतज़ार किया है तो कुछ दिन ओर सही.. सब्र का फल मीठा होता है.. मुझे कुछ प्लान बनाने में वक्त लगेगा.. मैं कल तुझे फोन करती हूँ.. एक आदमी है मेरी नजर में.. तुझे मस्त कर देगा"
चेतना: "पर शीला तू भी साथ आना.. अकेले में मुझे बहुत डर लगेगा किसी अनजान मर्द के साथ"
शीला: "मैं जब भी उसे लेकर तेरे घर आऊँगी उसके 2 घंटे पहले तुझे फोन कर के बता दूँगी.. ठीक है!!"
चेतना: "ठीक है.. वैसे तो शाम तक रुकना था तेरे साथ.. पर वैशाली की मौजूदगी में कुछ हो नहीं पाएगा.. "
शीला: "और हाँ.. ये ले पिंटू का मोबाइल नंबर.. जब तक में कुछ सेटिंग करू तब तक तू फोन पर उसके साथ टाइमपास करना.. !!" कागज के एक छोटे से टुकड़े पर शीला ने पिंटू का नंबर लिखकर दिया.. चेतना ने कागज पर्स के अंदर रखा और खड़ी हो गई
शीला: "तेरा काम तो हो जाएगा.. पर तू मेरा काम मत भूलना"
चेतना: "कौन सा काम? अच्छा.. वो दामाद वाला.. हाँ हाँ नहीं भूलूँगी.. तू चिंता मत कर.. काम हो जाएगा"
चेतना के जाते ही शीला का दिमाग चलने लगा.. कहाँ गई होगी वैशाली?? संजय का उसके साथ किस बात को लेकर झगड़ा चल रहा होगा? चेतना ने जिस लड़की को संजय के साथ देखा है.. कौन होगी वो? प्रेमिका या रखैल? आज कल के मर्दों का कोई भरोसा नहीं.. हो सकता है कोई वेश्या हो.. यहाँ अपना ससुराल होने के बावजूद गेस्टहाउस में रहने का क्या मतलब? सब कुछ पता करने के बाद ही में कुछ कदम उठा सकूँगी..
दूसरे दिन वैशाली बड़ी जल्दी जाग गई.. ये देख शीला चोंक गई.. वैशाली को देर तक सोना बेहद पसंद था.. तो आज ये जल्दी क्यों उठ गई होगी?
"गुड मॉर्निंग" कहते हुए मुंह में ब्रश डालकर वैशाली सीधे छत पर चली गई... सुबह के साढ़े छह बजे थे.. बाहर कोई खास चहल पहल नहीं थी.. थोड़ी सी ठंड थी और बड़ा आह्लादक वातावरण था.. निप्पल पर ठंडी हवा का स्पर्श होते ही वैशाली को झुरझुरी सी होने लगी.. सामने की छत पर पीयूष गुलाब के पौधों को पानी दे रहा था.. जिस काम के लिए वो जल्दी जागी थी वो मिशन सफल हो गया.. जो जागत है वो पावत है
वैशाली को देखते ही पीयूष के मन का मोर ताताथैया करने लगा.. उसने हाथ से इशारा करके वैशाली को गुड मॉर्निंग कहा.. वैशाली ने भी हाथ से इशारा किया.. वैशाली के नाइट ड्रेस से उभरकर नजर आ रहे बड़े बड़े स्तन देखकर पीयूष के लंड में झटका लगा.. क्या माल लग रही है यार !! पहले तो इतनी सुंदर नहीं थी ये.. शादी के बाद लंड के धक्के खा खा कर इसका रूप ही निखर गया है.. कविता भी चुद चुद कर कैसी खिल गई है.. जिस दिन ना चोदो उस दिन मुरझाई सी रहती है.. स्त्री का सबसे बेस्ट मेकअप है लंड.. रोज लंड मिले तो हर स्त्री सुंदर और खिली खिली ही रहेगी.. पीयूष वैशाली को ऐसे तांक रहा था जैसे वो नंगी खड़ी हो..
इन दोनों का नैन-मटक्का चल रहा था तभी कविता भी छत पर आई.. पीयूष की पतंग आसमान में उड़ने से पहले ही कट गई.. वैशाली भी ऐसे अस्वस्थ हो गई जैसे रंगेहाथों पकड़ी गई हो.. कविता की तरफ देखे बगैर ही वो सीढ़ियाँ उतर गई..
"आज तो बड़ी देर लगा दी तूने.. बहोत पानी पीला दिया क्या पौधों को?" कविता ने एसीपी प्रधयुमन की तरह पूछताछ शुरू की
"मैं.. नहीं वो.. वो तो जरा.. बात दरअसल ये है की.. " पीयूष बॉखला गया "तू समझ रही है ऐसा कुछ भी नहीं है.. मैं तो पौधों को पानी दे रहा था" पीयूष के शब्दों में सिमेन्ट कम और रेत ज्यादा थी..
कविता: "पर मैंने कब कहा की तू वैशाली को देख रहा था???? पर अच्छा हुआ जो तेरे दिल में था वो होंठों पर आ ही गया.. कर ले एक बार वैशाली के साथ.. तुझे भी चैन मिलेगा और वैशाली को भी !!" पीयूष की कमर पर चिमटी काटते हुए हंस रही थी कविता
"क्या सच में? क्या बात कर रही है तू?" पीयूष को समझ नहीं आया की वह क्या बोले.. बोलने के बाद उसे एहसास हुआ की "क्या सच में?" बोलकर उसने कितनी बड़ी गलती कर दी थी.. वो कविता को धमकाने लगा
"क्या तू भी.. कुछ भी बोलती रहती है.. तुझे तो मुझ पर विश्वास ही नहीं है.. जब देखों तब शक करती रहती है" मर्दों का ये हथियार है.. जब भी वो गलत हो तब पत्नी को धमका कर चुप करा देना.. !!
कविता भी कुछ कम नहीं थी.. उसे इस बात का गुस्सा आया की रंगे हाथों पकड़े जाने के बावजूद पीयूष उसे धमका रहा था
"अब रहने भी दे पीयूष.. ज्यादा शरीफ मत बन समझा.. सालों पहले तूने और वैशाली ने क्या गुल खिलाए थे मुझे सब पता है"
अरे बाप रे.. पीयूष की गांड ऐसे फटी की सिलवाने के लिए दर्जी भी काम न आए
"क्या कुछ भी बकवास कर रही है.. कोई काम-धाम है नहीं बस पूरे दिन बातें करा लो.. मुझे ऑफिस जाने में देर हो रही है.. टिफिन तैयार किया या नहीं? बड़ी मुश्किल से मिली है ये नौकरी.. तू ये भी छुड़वा देगी " गुस्से से पैर पटकते हुए पीयूष ने कहा.. कविता को लगा की आज के लिए इतना डोज़ काफी था.. पर जाते जाते उसने सिक्सर लगा दी
"हाँ हाँ टिफिन तो कब से तैयार है.. ये तो तुझे आने में इतनी देर हुई इसलिए मैं ऊपर देखने चली आई.. तुम्हें डिस्टर्ब करने का मेरा कोई इरादा नहीं था.. तुम शांति से पौधों को जितना मर्जी पानी पिलाते रहो.. सारे पौधे तृप्त हो जाए बाद में नीचे चले आना" कविता गुस्से से सीढ़ियाँ उतर गई
"ये कविता साली मुझे आराम से देखने भी नहीं देती.. तो चोदने कैसे देगी? भेनचोद ये पत्नीयों को कैसे समझाए? पति थोड़ा बहुत फ्लर्ट करें तो इसमें कौनसा पहाड़ टूट पड़ता है ये समझ नहीं आता.. कोई कदर ही नहीं है कविता को मेरी.. बहोत गुस्सा आया उसे कविता पर.. लेकिन देश के अन्य मर्दों की तरह वो भी अपनी पत्नी के सामने लाचार था.. जीरो पर आउट होकर पेवेलियन में जिस तरह बेट्समेन नीची मुंडी करके लौटता है वैसे ही पीयूष सिर नीचे झुकाकर सीढ़ियाँ उतारने लगा
कविता को आज पीयूष की फिरकी लेने का मस्त मौका मिला था.. और कोई भी पत्नी ऐसे मौके को छोड़ती नहीं है। पीयूष को सीढ़ियाँ उतरते देख कविता ने कहा "नीचे ध्यान से देखकर उतरना.. कहीं गिर गया तो तेरी देखभाल करने कोई पड़ोसन नहीं आएगी.. वो तो मुझे ही करना होगा इतना याद रखना तुम"
पीयूष चुपचाप टिफिन लेकर ऑफिस के लिए रवाना हो गया.. वो गली के नुक्कड़ तक पहुंचा ही था की तभी उसने रिक्शा में बैठी वैशाली को देखा.. रोता हुआ बच्चा चॉकलेट को देखकर जैसे चुप हो जाता है.. वैसे ही वैशाली को देखकर पीयूष के मन का सारा गुस्सा भांप बनकर उड़ गया..वैशाली ने पीयूष को ऑटो में बैठने को कहा और ऑटोवाले से बोली की यहाँ से निकलकर ऑटो को आगे खड़ा करें.. ताकि इस इलाके से बाहर निकालकर आगे की योजना के बारे में सोच सकें।
"अब बता पीयूष.. किस तरफ लेने के लिए कहू?" वैशाली ने सीधे सीधे पूछ लिया.. पीयूष ने अपनी ऑफिस का पता बताया
"ऑफिस की बात नहीं कर रही.. अरे बेवकूफ तुझे नादान और नासमझ नहीं बनना है?? " वैशाली ने आँखें नचाते हुए नटखट आवाज में कहा
पीयूष हक्का बक्का रह गया.. अपनी माँ पर ही गई है ये लड़की.. बात को घुमाये बगैर सीधा सीधा बोलने की आदत दोनों को है.. पीयूष को ऑफिस में आज बेहद जरूरी काम था.. दूसरी तरफ वैशाली नाम का जेकपोट हाथ में आया था उसे भी जाने नहीं दे सकता था.. पीयूष उलझन में पड़ गया
स्किनटाइट जीन्स और व्हाइट केप्रि पहने बैठी वैशाली ने अपना एक हाथ पीयूष के कंधे पर रख दिया.. उसी के साथ वैशाली का एक तरफ के स्तन की झलक पीयूष को दिख गई.. ओह्ह। वैशाली ने एक ही पल में पीयूष के दिमाग को एक ही पल में बंद कर दिया
"अब जल्दी भोंक.. कहाँ जाना है?? ऑटोवाले भैया कब से पूछ रहे है"
"मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है वैशाली.. तू ही बता "
वैशाली को थोड़ा गुस्सा आया.. साथ ही साथ पीयूष के भोलेपन पर हंसी भी आई.. अभी भी ये पहले जैसा ही है.. लड़की को लेकर कहाँ जाते है वो तक पता नहीं है इसे..
"भैया.. अम्बर सिनेमा पर ऑटो ले लीजिए.. " ऑटो उस तरफ चलने लगी
"नहीं नहीं.. वहाँ नहीं.. उस सिनेमा की बिल्कुल बगल में मेरे दोस्त का घर है.. उसने देख लिया तो आफत आ जाएगी.. "
"तो फिर? कहाँ जाएंगे?" वैशाली सोचने लगी
"साहब, अगर आप लोगों को कोई सुमसान जगह की तलाश है तो मैं आपको ले जा सकता हूँ " ऑटो वाले ने कहा
"कहाँ पर?" वैशाली और पीयूष दोनों एक साथ बोले
"शहर के बाहर मेरा घर बन रहा है.. वहाँ कोई नहीं होता.. काम भी बंद है अभी.. मुझे जो ऊपर का खुशी से देना चाहते हो देना.. मेरी बीवी बीमार है.. मेरी भी थोड़ी मदद हो जाएगी.. " ऑटो वाले ने कहा
"ठीक है.. वहीं पर ले लो.. " वैशाली ने तुरंत फैसला सुना दिया..
लगभग पंद्रह मिनट में रिक्शा एक सुमसान खंडहर जैसी जगह पर आकर रुकी.. दीवारें थी पर प्लास्टर बाकी था.. अंदर कोई नहीं था.. आजूबाजू भी दूर दूर तक किसी का नामोनिशान नहीं नजर आ रहा था..
"आप वापिस कैसे जाओगे साहब? यहाँ ऑटो नहीं मिलेगी आपको.. "
"तुम दो घंटे बाद हमें लेने वापिस आना.. " वैशाली ने कहा
"मेरा नंबर सेव कर लीजिए.. फोन करेंगे तो १० मिनट में पहुँच जाऊंगा" ऑटो स्टार्ट कर वो निकल गया
वैशाली और पीयूष खंडहर के अंदर गए.. रेत के एक बड़े से ढेर पर वैशाली बैठ गई.. बिना अपने कपड़ों की परवाह कीये.. थोड़े संकोच के साथ पीयूष भी वैशाली के पास बैठ गया
काफी देर तक दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। थक कर आखिर वैशाली ने शुरुआत की
"पीयूष, २० मिनट से ज्यादा गुजर चुके है.. ऐसा ना हो की मुझे तुझ से जबरदस्ती करनी पड़े"
सुनते ही पीयूष ठहाका मारकर हंसने लगा.. "क्या यार वैशाली.. कुछ भी बोलती है... छोटी थी तब भी तू ऐसी ही नटखट थी"
"छोटी थी तब की बात है वो.. अब मैं बड़ी हो चुकी हूँ पीयूष.. मेरी पसंद.. मेरा टेस्ट अब बदल चुका है"
"मतलब?? " पीयूष को समझ नहीं आया
रेत के ढेर पर बैठे पीयूष को धक्का देकर सुला दिया वैशाली ने.. और उसके होंठों पर अपने होंठ लगाते हुए उसके लंड को पेंट के ऊपर से दबाने लगी और बोली "छोटी थी तब मुझे लोलिपोप चूसना बहुत पसंद था.. अब मुझे ये चूसना पसंद है"
माय गॉड.. वैशाली के इस कामुक रूप को देखकर पीयूष हक्का बक्का रह गया.. ये लड़की तो एटमबॉम्ब से भी ज्यादा स्फोटक है.. !!
इतना कहते ही वैशाली, पीयूष के लाल होंठों को चूमते हुए उसके लंड को मुठ्ठी में मसलने लगी..
"बड़ा भी हुआ है या उतना ही है जितना आखिरी बार देखा था??" कहते हुए वैशाली ने पेंट की चैन खोलकर अन्डरवेर में से लंड पकड़कर बाहर निकाला.. लंड की साइज़ देखकर उसने "वाऊ.. " कहा..
"पीयूष.. अब ज्यादा वक्त बर्बाद मत कर.. ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.. आज तुझे कलकत्ता का माल मिला है मजे करने के लिए.. ये देख मेरी रत्नागिरी आफुस.." भारी स्तनों वाली छाती को उभारते हुए दिखाकर वैशाली ने पीयूष को पागल बना दिया.. पीयूष बावरा होकर वैशाली के स्तनों को दबाने लगा.. "ओह्ह वैशाली.. पता है उस दिन जब हम होटल गए थे.. ये तेरे बड़े बड़े बबलों में ही मेरी जान अटक कर रह गई थी उस दिन.. जब हमने साथ में पहली बार किया तब तेरे कितने छोटे छोटे थे.. और जब बड़े हुए तब तू चली गई.. तुझे वो सब बातें याद भी है या भूल गई?"
"पीयूष, कोई भी लड़की अपना पहला किस कभी भूल नहीं सकती.. मुझे सब कुछ याद है.. तू बहोत पसंद था मुझे.. पर तू उस पिंकी के साथ ज्यादा खेलता था तब बड़ा गुस्सा आता था मुझे.. "
"कौन सी पिंकी यार??"
"एक नंबर का भुलक्कड़ है तू.. पीछे वाली गली में रहती थी.. रमणकाका की बेटी"
"अरे हाँ.. वो.. वो तो मुझे जरा भी पसंद नहीं थी.. पता नहीं यार तुझे उस समय क्यों ऐसा लगा की पिंकी मुझे पसंद थी.. मैं उस समय भी तुझसे बहोत प्यार करता था.. " दोनों बातें करते हुए एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे.. थोड़ी थोड़ी देर पर वैशाली घड़ी पर नजर डाल लेती थी..
वैशाली किसी परपुरुष के साथ ऐसा कभी न करती.. पर जब से उसे संजय के अवैध संबंधों के बारे में पता चला.. उसका दिमाग फट रहा था.. वो मादरचोद वहाँ मस्ती करे और मैं यहाँ गांड मराऊ ?? मैं भी बेशरम बन सकती हूँ.. और संजय के ऊपर आए गुस्से के कारण ही आज वो पीयूष का लंड पकड़कर रेत में लेटी थी..
"पीयूष.. ऐसे धीरे धीरे नहीं.. जरा जोर से दबा.. " वैशाली ने बड़ी ही धीमी कामुक आवाज में कहा। पीयूष वैशाली के गाल, गर्दन और कान को चूमते हुए उसके विशाल स्तनों को दबा रहा था.. वैशाली के टाइट टीशर्ट के ऊपर के बटन निकालकर उसने खजाना खोल दिया.. ब्रा के अंदर कैद दो खरबूजों के बीच की गोरी चीट्टी खाई.. आहहाहहाहहा.. ब्रा के ऊपर से उभर कर आए स्तनों के ऊपरी हिस्सों को वो चूमते हुए वैशाली के पेंट की चैन को खोलने लगा.. वैशाली की पेन्टी.. चुत का रस रिसने से पूरी तरह भीग चुकी थी
"ओह पीयूष.. बहुत खुजली हो रही है यार अंदर.. अपने हाथ से थोड़ा सहला उसे.. " लंड के ऊपर अपनी पकड़ को मजबूत करते हुए वैशाली ने कहा.. इतनी मजबूती से कभी कविता ने भी नहीं पकड़ा था पीयूष का.. कविता से हजार गुना ज्यादा हवस थी वैशाली में ..
"ओह्ह वैशाली.. मुझे एक बार तेरे ये दोनों बबले खोल कर देखने है यार.. " वैशाली ने टीशर्ट के बाकी बटन खोल दिए.. और ब्रा की कटोरियों में से दोनों मांस के पिंड को बाहर निकाला.. दूध जैसे गोरे भारी भरकम स्तनों को देखकर पीयूष कि आँखें फटी की फटी ही रह गई..
"कितने मस्त है यार तेरे बबले.. " दोनों लचकते स्तनों को हाथ में पकड़कर पीयूष दबाने मसलने लगा..
"तेरा स्पर्श मुझे पागल बना रहा है पीयूष.. मज़ा आ रहा है.. जोर से दबा.. क्रश इट.. ओ येह.. ओ गॉड.. आह्ह" अपने पति की बेवफाई का बदला लेने के लिए वैशाली पीयूष के शरीर फिर हाथ फेर रही थी.. वैशाली के खिले हुए गुलाब जैसे जिस्म को पीयूष रौंदने लगा..
"वैशाली.. तुझे कैसा लगा मेरा.. ??" अपने लंड की ओर इशारा करते हुए पीयूष ने वैशाली की जीन्स केप्रि को खींच कर उसके घुटनों तक ला दिया
"मस्त है तेरा पीयूष.. मज़ा आएगा"
"तेरे पति से बड़ा है ना !!!" संजय का जिक्र होते ही वैशाली के दिमाग के कुकर की सीटी बज गई..
"तू नाम मत ले उस भड़वे का.. मेरा मूड खराब हो जाएगा" वैशाली ने नीचे झुक कर पीयूष का पूरा लंड मुंह में लिया और चूसने लगी.. और बड़ी ही तीव्र गति से चूसने लगी..
"आह्ह वैशाली.. जरा धीरे धीरे.. निकल जाएगा मेरा" पीयूष के आँड़ों से खेलते हुए वैशाली बड़ी मस्ती से चूस रही थी
वैशाली की टाइट केप्रि को बार बार खींचने पर भी जब नहीं निकाल पाया पीयूष तब उसने परेशान होकर वैशाली से कहा
"अरे यार.. ये तेरी चुत के चारों तरफ जो किलेबंदी है उसे हटा.. मुझसे तो निकल ही नहीं रहा है.. कितना टाइट पहनती है तू?"
"मेरे पीयूष राजा.. ऐसे टाइट पेंट में ही हिप्स उभर कर बाहर दिखते है.. और में हॉट लगती हूँ.. समझा.. !!" वैशाली ने आँख मारते हुए कहा
"वो तो ठीक है मेरी रानी.. पर इसे खोलने में कितना वक्त बर्बाद होता है!! इससे तो देसी घाघरा ही अच्छा.. जो पहनने के भी काम आए और वक्त आने पर बिछाने के भी.. अब नखरे छोड़ और उतार ये तेरी केप्रि" अपने ठुमकते लोड़े को काबू में करने के लिए पीयूष ने उसे हाथ से पकड़ कर रखा था..
वैशाली रेत के ढेर से खड़ी हुई.. उसकी पीठ पर रेत लग गई थी.. वैशाली ने केप्रि और साथ में अपनी पेन्टी भी उतार दी.. और कमर से नीचे पूरी नंगी हो गई..
वैशाली की मोटी मोटी जांघें देख पीयूष उत्तेजित होकर उन्हे चूमने लगा.. हल्के झांटों वाली चुत पर हाथ फेरते हुए उसने चुत का प्रवेश द्वार ढूंढ निकाला.. और अपनी उंगलियों से उसकी क्लिटोरिस से जैसे ही उसने खेलना शुरू किया.. वैशाली सिहर उठी.. उसने पीयूष के सिर को पकड़ कर अपनी दो जांघों के बीच में दबा दिया.. सिसकियाँ लेते हुए वो अपने पैरों से पीयूष के लंड को रगड़ने लगी..
"ओह पीयूष.. चाट मेरी यार.. " तड़प रही थी वैशाली.. उसके स्तन फूल कर सख्त हो गए थे.. निप्पल उभर आई थी.. अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था उससे.. वो अपनी झांटों वाली चुत को पीयूष के चेहरे पर रगड़ने लगी.. लेकिन पीयूष अब भी सिर्फ चूम ही रहा था.. अपनी जीभ उसने वैशाली की चुत में नहीं डाली थी
चुत की खुजली से परेशान वैशाली ने पीयूष को धक्का देकर रेत के ढेर पर गिरा दिया.. और उसके चेहरे पर सवार हो गई.. दोनों तरफ अपने पैर जमाकर मदमस्त होकर अपनी चूचियाँ मसलते हुए वो आगे पीछे होने लगी.. वैशाली के जिस्म का वज़न आ जाने से पीयूष का चेहरा रेत में धंस गया.. उसने वैशाली की चुत की परतों के बीच अपनी जीभ फेरनी शुरू कर दी.. दोनों उत्तेजनावश वासना के महासागर में गोते खाने लगे.. हवस की आग में झुलस रही वैशाली पीयूष के सर के बाल पकड़कर अपनी चुत का दबाव बनाने लगी.. पीयूष ने अपने नाखून वैशाली के कोमल चूतड़ों में गाड़ दिए.. चुत का रस पीयूष के पूरे चेहरे पर सना हुआ था..
एक घंटा हो गया.. इन दोनों का फोरपले अब भी चल रहा था.. वैशाली पीयूष के स्पर्श की एक एक पल बड़े मजे से महसूस कर रही थी.. पीयूष की जीभ.. चुत के अंदर तक घुस चुकी थी और वैशाली को स्वर्ग की सैर करवा रही थी.. पीयूष ने अपने लंड को मुठ्ठी में पकड़कर हिलाना शुरू कर दिया.. उसे लंड हिलाता देख वैशाली ने उसका हाथ छुड़ाकर खुद हिलाना शुरू कर दिया
"हाये पीयूष.. ये तेरा खुरदरा लंड जब मेरी चुत की दीवारों पर घिसेगा तब कितना मज़ा आएगा यार.. !!" अब वैशाली को लंड लेने की इच्छा होने लगी.. वैशाली ने अपनी कमर को थोड़ा सा उठाया.. पीयूष अब रिसती हुई चुत को साफ देख पाया.. उसने अपनी जीभ को वैशाली के गांड के छेद से लेकर क्लिटोरिस तक चाटा.. और अंगूठे से क्लिटोरिस को कुरेदने लगा..
दो दो संवेदनशील जगहों पर जीभ का स्पर्श होते ही वैशाली बेहद उत्तेजित हुई.. और वो खुद झड़ जाए उससे पहले पीयूष के लंड के ऊपर बैठ गई.. जिस प्रकार से लंड घिसकर अंदर गया उससे वैशाली को यकीन हो गया की हिम्मत के लंड के मुकाबले पीयूष के लंड में ज्यादा मज़ा आएगा..
"आह्ह पीयूष.. ओह माँ.. फक मी.. येस.. ओह गॉड.. फक मी हार्ड.. " कराह रही थी वैशाली.. पीयूष भी नीचे से दमदार धक्के लगाए जा रहा था..
"ओह्ह वैशाली.. मेरा निकलने की तैयारी में है.. !! कितनी टाइट है तेरी चुत.. आह्ह.. !! लगता है काफी दिनों से बिना चुदे कोरी पड़ी है तेरी चुत.. "
"ओह्ह.. जोर से धक्के मार पीयूष.. स्पीड बढ़ा.. फाड़ दे मेरी चुत को.. बहुत भूखी हूँ.. ओह ओह्ह.. " पागलों की तरह कूद रही थी वैशाली.. खंडहर की दीवारों के बीच "फ़च फ़च" की आवाज़ें गूंज रही थी.. "पीयूष.. पानी अंदर मत निकालना.. नहीं तो भसड़ हो जाएगी.. पिछले एक साल से उस कमीने के साथ मैंने कुछ नहीं किया है"
"ओह्ह पीयूष.. आह्ह.. उईई माँ.. बहोत मस्त चोद रहा है यार.. आह्ह मैं गईईईई" कहते हुए वैशाली थरथराने लगी और झड़ गई.. झड़ते ही वो उसी अवस्था में पीयूष की छाती के ऊपर लेट गई.. पीयूष ने अपना लंड बाहर निकाल और वैशाली की गांड के इर्दगिर्द अपनी पिचकारी दे मारी.. गांड के छेद पर गरम गरम वीर्य का स्पर्श होती है वैशाली ने कहा "कितना गरम है यार.. पीछे जलने लगा मुझे.. "
वैशाली पीयूष के शरीर से उतर गई.. और बेफिक्र होकर उसके बगल में रेत पर लेट गई.. दोनों पसीने से सन चुके थे.. और पूरे शरीर पर रेत लग गई थी.. वासना का तूफान शांत हो गया था.. और दोनों धीरे धीरे वास्तविकता की दुनिया में कदम रख रहे थे.. पीयूष अब भी लेटे लेटे वैशाली के स्तनों को दबा रहा था
वैशाली: "तुझे इतने पसंद है मेरे स्तन?"
पीयूष: "हाँ डार्लिंग.. इन्हे देखते ही मैं बेकाबू हो जाता हूँ"
वैशाली: "मुझे भी तेरे साथ इत्मीनान से करवाने का बड़ा ही मन था.. इतना मज़ा आया है मुझे आज की क्या कहूँ.. आई वॉन्ट टू फ़ील दिस अगैन..वापिस कब मिलेगा मुझे?"
"तू यहाँ और कितने दिनों के लिए है?"
"कम से कम एक हफ्ते के लिए.. " पीयूष के नरम लंड से खेलते हुए वैशाली ने कहा
पीयूष: "तेरे शरीर इतना आकर्षक है की अगर दिन रात करता रहु तो भी मेरा मन नहीं भरेगा.. अगर तू तैयार हो तो अभी एक और बार करते है"
वैशाली मुस्कुराई और बोली "यहाँ इस अनजान जगह में खुले में करने में जो मज़ा आया.. मेरा भी दिल कर रहा है एक बार और करने के लिए... पर जल्दी करना पड़ेगा.. वक्त बहुत ही काम है.. और कल वापिस तू कुछ सेटिंग करना.. जहां बुलाएगा मैं आ जाऊँगी.. बहोत सह लिया संजय के साथ.. अब मैं ज़िंदगी का पूरा मज़ा लूँगी"
पीयूष ने करवट लेकर पास लेटी वैशाली के स्तन की निप्पल को चूसना शुरू किया.. इसी के साथ वैशाली की चुत में करंट दौड़ने लगा.. पीयूष का लंड भी जागृत हो गया.. वैशाली पीयूष के लंड पर अपनी छातियाँ रगड़कर उसे और सख्त करने लगी.. स्तनों के गरम नरम स्पर्श से लंड का सुपाड़ा खिल उठा..
पीयूष ने वैशाली को लंड से दूर किया और उसे रेत में उल्टा लेटा दिया.. और उसपर सवार होकर अपने लंड को उसके चूतड़ों पर चाबुक की तरह मारने लगा.. गोरे कूल्हे लाल लाल हो गए.. रेत के अंदर वैशाली के चुचे अंदर धंस गए.. गीली रेत की ठंडक अपने स्तनों पर महसूस कर रही थी वैशाली।
बगल में साइलेंट मोड पर रखा हुआ पीयूष का मोबाइल अविरत बजे जा रहा था.. उसके बॉस राजेश और सेक्रेटरी पिंटू के अनगिनत मिसकॉल थे स्क्रीन पर.. उतना ही नहीं.. कविता और शीला के भी मिसकॉल आए थे.. पर इस हवस के सागर में डूबे हुए जोड़े को दुनिया की परवाह न थी
वैशाली के भव्य चूतड़ों को चौड़ा कर पीयूष ने गांड के छेद पर अपनी जीभ फेरकर वैशाली को झकझोर दिया.. "माय गॉड पीयूष.. कहाँ जीभ फेर दी तूने.. तुझे घिन नहीं आई?"
"तुझे नहीं पसंद तो नहीं करूंगा डीयर.. "
"पसंद नापसंद की बात नहीं है यार.. नीचे जीभ से कोई चाटे तो मज़ा तो आता ही है.. मेरे कहने का ये मतलब था की ऐसी गंदी जगह तू कैसे चाट सकता है!!" वैशाली को जरा भी अंदाजा नहीं था की इस जगह भी कितना आनंद छुपा हो सकता है
"पीयूष प्लीज.. चाटना बंद कर.. मैं मर जाऊँगी.. "वैशाली से बर्दाश्त नहीं हो रहा था.. पीयूष चाट पीछे रहा था और आग लग रही थी वैशाली की चुत में.. जब रहा नहीं गया तब वैशाली ने रेत के ढेर में हाथ डालकर खुद ही अपनी चुत को ढूंढ निकाला.. और क्लिटोरिस को पकड़कर दबा दिया.. तब उसे चैन आया.. चुत की खुजली थोड़ी शांत होने पर अब वह आराम से गांड चटाई का मज़ा ले पा रही थी
पीयूष अब उठा और दोनों हाथों से वैशाली को जांघों से पकड़कर खिंचकार थोड़ा सा ऊपर कर दिया.. और अपने सुपाड़े को गांड के छेद पर रख दिया.. वैशाली को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके छेद पर किसी ने कोयले का अंगारा रख दिया हो.. इतना गरम लग रहा था पर मज़ा भी आ रहा था.. गर्मी का एहसास होते ही उसकी गांड का वाल्व सिकुड़कर बंद हो गया। पर पीयूष बेहद उत्तेजित था.. या यूं कहो की निरंकुश सा हो चुका था.. उसने अपने लंड को जोर से अंदर धकेला.. वैशाली तो यही सोच रही थी की पीयूष उसकी गांड के साथ बस छेड़छाड़ कर रहा था.. लेकिन उस अत्यंत कोमल और संकरी गांड के मुकाबले काफी बड़े सुपाड़े के अंदर घुसते ही उसकी चीख निकल गई
"ओओईईई माँ.. मर गई मैं.. नालायक.. क्या किया तूने? निकाल बाहर.. " पीयूष वैशाली की चीखो को अनसुना करते हुए अंदर धकेलता गया. उसका आधा लंड अंदर घुस गया.. वैशाली को चक्कर आने लगे.. आँखों के सामने अंधेरा छा गया.. पीयूष की पकड़ से छूटने के लिए वो उछलने लगी.. पर जरा सी भी हलचल करने पर उसे तीव्र पीड़ा हो रही थी.. इसलिए उसने प्रतिकार या विरोध करना बंद कर दिया
टाइट गांड के अंदर पीयूष के लंड की चमड़ी भी छील गई थी.. उसे भी जल रहा था.. बहोत टाइट था वैशाली की गयंद का छिद्र
थोड़ी देर तक बिना हिलेडुले पीयूष स्थिर पड़ा रहा.. वैशाली की जान में जान आई "प्लीज पीयूष.. बाहर निकाल दे यार.. किसी और दिन ट्राय करेंगे.. अभी मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ.. " दर्द से कराहते हुए वैशाली ने कहा
पीयूष ने बड़े ही प्यार से वैशाली की गर्दन को चूमते हुए कहा "वैशाली.. "
उसने जवाब नहीं दिया
पीयूष ने फिर से कहा "सुन रही हो डीयर??"
"हाँ बॉल.. क्या है?"
"तूने पहले कभी पीछे करवाया है? मतलब किसी गांड मरवाई है क्या कभी?"
"नहीं.. कभी नहीं.. बहोत दर्द होता है.. तू कभी अंदर लेगा तो पता चलेगा तुझे"
"मैं क्या होमो लगता हूँ तुझे.. जो किसी की अंदर लूँगा??" गुस्से से पीयूष ने लंड को फिर से दबाया.. वैशाली के कंठ से दबी हुई चीख निकल गई.. "बस कर यार.. मुझसे अब बर्दाश्त नहीं होता"
पीयूष: "वैशाली.. जीवन में हर तरह के अनुभव करने चाहिए.. ये अनुभव भी जरूरी है"
"भेनचोद.. चूल मची है चुत में.. और तू गांड के पीछे पड़ा है?" वैशाली अब गुस्सा हो गई.. भोसड़े की खुजली बर्दाश्त नहीं हो रही थी उससे.. पीयूष ने लंड को बाहर खींचा.. वैशाली को राहत मिली.. "गुड बॉय.. अब मैं घूम जाती हूँ.. फक मी इन द फ्रंट"
पीयूष ने फिर लंड को दबाया.. "उईई माँ.. क्या कर रहा है तू? मुझे बहोत दर्द हो रहा है यार.. कब से बॉल रही हूँ समझता क्यों नहीं?"
पीयूष ने धीरे से लंड बाहर निकाल लिया... गांड आजाद होते ही वैशाली की जान में जान आई.. वो पलट गई और बोली "बहोत वक्त जाया किया है तूने.. अब जल्दी कर.. " वैशाली ने पीयूष का लंड पकड़कर खुद ही अपनी चुत में डाल दिया.. और अपनी कमर उठा ली.. शताब्दी एक्स्प्रेस की गति से पीयूष ने चुत चुदाई शुरू कर दी.. वैशाली भी चूतड़ उछालकर उसके धक्कों का माकूल जवाब दे रही थी
कुछ ही मिनटों की चुदाई के बाद वैशाली झड़ गई.. पीयूष ने भी लंड बाहर निकालकर वैशाली के गद्देदार पेट पर वीर्य की पिचकारी छोड़ दी.. दोनों अब शांत हो गए.. वैशाली पूरी तरह से तृप्त हो चुकी थी.. रेत से घिसकर उसने अपने पेट पर लगा वीर्या साफ कर लिया.. दोनों इतने गंदे हो चुके थे जैसे मजदूरी करके वापिस लौटे हो.. वैशाली की चुत तो शांत हो गई पर उस मादरचोद ने जो गांड में लंड डाला था.. वहाँ जलन हो रही थी और दर्द भी..
"ये कपड़े तो देख और हमारा हाल देख.. ऐसे कैसे घर जाएंगे हम दोनों??" वैशाली को चिंता होने लगी..
पीयूष भी सोच में पड़ गया.. कहीं थोड़ा पानी मिल जाएँ तो सफाई हो सकती है.. पीयूष ढूँढने लगा.. मकान का काम चल रहा था मतलब कहीं न कहीं टंकी जरूर होगी.. पीछे की तरफ टंकी नजर आई.. पर उसमें बहोत दिने से भरा हुआ गंदा पानी था..
"ऐसे गंदे पानी में मैं अपने पैर नहीं साफ करूंगी" वैशाली ने मना कर दिया
"कोई बात नहीं महारानी.. अभी तेरे पापा विदेश से मिनरल वॉटर भेजेंगे.. उससे साफ कर लेना.. ठीक है !! नखरे छोड़ और साफ कर" वैशाली ने जैसे तैसे अपने कपड़े साफ किए और शरीर पर लगी रेत को झटक दिया
"अब जल्दी करते है पीयूष.. एक घंटे के लिए सहेली को मिलने के बहाने निकली थी.. घर से निकले हुए साढ़े तीन घंटे हो गए है.. मम्मी चिंता कर रही होगी.. अब भागना पड़ेगा"
अब पीयूष की भी फटी.. ऑफिस का काम छोड़कर आया था.. कितनी जरूरी डिलीवरी करनी थी आज.. राजेश सर क्या सोचेंगे.. बिना कहे ही छूटी मार दी!! पर कोई फोन ही कहाँ आया है किसी का.. फिर तो कोई टेंशन नहीं है..
तभी अचानक उसे याद आया की चुदाई शुरू करने से पहले उसने फोन को साइलन्ट मोड पर रख दिया था.. रेत के ढेर से थोड़े दूर उसने मोबाइल रखा हुआ था.. फोन हाथ में लेते ही उसके होश उड़ गए.. उसके चेहरे पर शिकन आ गई
"क्या हुआ??" चिंतित पीयूष को देखकर वैशाली ने पूछा
"अरे यार.. मेरे बॉस के दस मिसकॉल आ गए है.. घर से कविता के और तेरी मम्मी के मिसकॉल भी है.. कहीं बॉस ने घर पर तो फोन नहीं किया होगा?? घर पर फोन किया होगा तो कविता ने तो यही कहा होगा की मैं ऑफिस के लिए निकल चुका हूँ!! बाप रे !!"
वैशाली को भी याद आया.. उसका फोन भी पर्स के अंदर था.. पर्स से फोन निकालकर उसने देखा तो मम्मी के बीस मिसकॉल थे और संजय के भी काफी कॉल आकर चले गए थे.. इस मादरचोद को भी आज ही मेरी याद आनी थी!! जैसे इतना काफी नहीं था.. वैशाली को कविता का मेसेज भी आया था "कहाँ है तू? कहीं पीयूष के साथ तो नहीं है.. प्लीज कॉल अरजेंट" इसका मतलब तो ये हुआ की दोनों के घर पर प आता चल चुका था.. कोई भी समस्या हो कविता सब से पहले शीला को बताती थी ये बात पीयूष को पता थी
दोनों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी.. वैशाली खड़ी हुई और बोली "कुछ भी हो जाएँ पीयूष.. पर हमें इसी बात पर अड़े रहना है की हम साथ नहीं थे.. हम दोनों को साथ जाते हुए किसी ने देखा तो नहीं होगा ना??"
पीयूष के पास इसका कोई जवाब नहीं था.. दोनों सिर पकड़कर खड़े रहे.. "बुला लूँ ऑटो वाले को?" पीयूष ने कहा
"नहीं.. मुझे सोचने दे कुछ.. अब जो भी होगा देखा जाएगा.. " वैशाली ने कहा
"हम जब सोसायटी के नुक्कड़ से ऑटो में बैठे तब किसी न किसी ने हमे देखा ही होगा.. " पीयूष की गांड फट कर फ्लावर हो गई
"अब मजे किए है तो थोड़ा भुगतना भी पड़ेगा.. हम ये कहेंगे की हम ऑटो में साथ निकले औ मैंने तुम्हें बस स्टेंड पर छोड़ दिया था" वैशाली का दिमाग काम पर लग गया
"मैं बॉस को फोन करता हूँ.. पर क्या कहूँगा उनसे?"
"अरे यार.. बोल देना की रास्ते में एक बाइक वाले का एक्सीडेंट हुआ था तो तू उसे लेकर अस्पताल गया था.. इसलिए ऑफिस नहीं आ सका"180
"यार तू कितनी आसानी से जूठ बोल सकती है.. मुझसे तो बोला ही नहीं जाता.. एक काम कर.. तू ही बात कर ले मेरे बॉस से"
"ठीक है.. फोन लगाकर दे.. मैं बात करती हूँ"
पीयूष ने राजेश सर को फोन लगाकर वैशाली को दिया। राजेश बहोत गुस्से में था.. पर सामने पीयूष के बजाए किसी लड़की की आवाज सुन कर वो भी ठंडा हो गया.. वैशाली ने पट्टी पढ़ाकर राजेश को चोदू बना दिया..
"हो गया प्रॉब्लेम सॉल्व? अब तू कविता को फोन लगा" वैशाली ने पीयूष से कहा
"कविता को? पर क्यों?"
"तुझे जो कहा वो कर.. लगा फोन" वैशाली ने कहा
"अरे पर फोन मिलाकर क्या बात करू?"
"अभी तेरे बॉस को एक्सीडेंट वाला बहाना दिया ना हमने.. तो घर पर भी वही कहना है.. इतना भी नहीं समजता तू बेवकूफ?"
पीयूष ने कविता को फोन किया और जो बात वैशाली ने राजेश से कही थी वही बात उसने कविता को बोल दी.. फिर रिक्शा वाले को फोन करके बुलाया.. और ऑटो में अपने घर के एरिया तक पहुँच गए.. वैशाली ने अपने पर्स से 500 का एक नोट निकालकर ऑटो वाले को दे दिया... वो खुश होकर चला गया
"तू भी यार.. इतने पैसे भी कोई देता है क्या??" पीयूष को ५०० रुपये बहोत ज्यादा लगे.. उसके हिसाब २००-२५० में काम बन जाता
वैशाली: "यार.. तूने आज मुझे जो ऑर्गजम दिए है.. उसके सामने ५०० रुपये की कोई कीमत नहीं है.. और देख.. जब गैरकानूनी हरकतें कर रहे हो तब रिश्वत देने में कभी कंजूसी नहीं करनी चाहिए.. " गुरुमंत्र दिया पीयूष को वैशाली ने
"तू फिर कब मिलेगा मुझे??" वैशाली ने पूछा
"तू मुझे मोबाइल कर देना.. जहां कहेगी मैं आ जाऊंगा.. " ऐसे व्यभिचारी मामलों में जगह की व्यवस्था करना पुरुष की जिम्मेदारी होती है.. पीयूष में इतनी हिम्मत नहीं थी इसलिए परोक्ष रूप से उसने वैशाली पर ही वो जिम्मेदारी डाल दी
वैशाली: "ठीक है.. लेकिन जब बुलाऊ.. जहां बुलाऊ.. पहुँच जाना वरना तू जहां भी होगा पहुँच जाऊँगी और वहीं खड़े खड़े चोद दूँगी.. समझा!!"
इतनी रंगीन धमकी सुनकर पीयूष पानी पानी हो गया.. उसने चुपके से वैशाली के हाथ को दबा दिया.. और दोनों अलग अलग रास्ते चल निकले
पीयूष के लिए तुरंत घर जाना मुमकिन नहीं था.. अगर दोनों एक साथ ही सोसायटी में प्रवेश करते तो जिस बात का सब को शक था वो यकीन में बदल जाता..
शीला अपने घर चिंता से पागल हुई जा रही थी.. जवान लड़की देर तक घर ना लौटे.. फोन पर कॉन्टेक्ट न हो पाए.. कोई अता-पता न हो.. तो कोई भी माँ का चिंतित होना काफी स्वाभाविक है..
वैशाली को देखते ही शीला मशीनगन की तरह फायरिंग करने लगी "कहाँ थी तू? एक घंटे का बोलकर गई थी अभी चार चार घंटे हो गए और तेरा कुछ पता ही नहीं.. !! एक फोन तक नहीं कर सकती थी?? कितनी चिंता हो रही थी मुझे.. कहाँ गई थी तू?"
वैशाली: "मेरी बात तो सुनो मम्मी.. वो मेरी फ्रेंड है ना.. सुमन.. ?? उसके घर गई थी.. उसके घर मेहमान आए हुए थे.. और वो बेचारी अकेली थी.. सब के लिए खाना बनाना था तो मैं उसे मदद कर रही थी.. अब उसे भला कैसे मना करती? थोड़ी देर में काम खतम कर के निकल जाऊँगी ऐसा सोचते सोचते इतना टाइम निकल गया.. फोन मेरा पर्स के अंदर था.. और वो मेहमान ऊंची आवाज पर टीवी देख रहे थे इसलिए मैं फोन की रिंग सुन नहीं पाई.. तूने खाना खाया की नहीं?"
शीला: "मैंने तो खाना कहा लिया.. पर तेरे कपड़ों पर इतनी रेत क्यों लगी है?" शीला की शातिर आँखों से कुछ भी बच नहीं सकता
"मम्मी.. ऑटो से उतरकर मैं चलते चलते सुमन के घर की तरफ जा रही थी.. तभी मेरे आगे एक रेत से भरा ट्रेक्टर जा रहा था.. आगे एक खड्डा आया और ट्रेक्टर से रेत उछल कर आजू बाजू चल रहे सब के ऊपर गिरी.. मैं नहाने जाती हूँ" शीला ओर कोई प्रश्न पूछती उससे पहले वैशाली भागकर बाथरूम में घुस गई.. शावर लेने के बाद उसे एहसास हुआ की साफ कपड़े तो लेना भूल ही गई थी.. अपने स्तनों को ऊपर तोलिया बांधकर वो बाहर निकली और बेडरूम के अंदर अपने कपड़े लेने के लिए उसने दरवाजा खोलने की कोशिश की..
दरवाजा अंदर से लोक था.. वैशाली ने शीला को आवाज दी.. "मम्मी.. ये बेडरूम को लोक क्यों लगाया है?? मुझे मेरे कपड़े लेने है"
शीला भागकर आई और अपने होंठ पर उंगली रखते हुए वैशाली को चुप रहने के लिए कहा "अंदर संजयकुमार सो रहे है.. धीरे से बोल वरना जाग जाएंगे.. बहोत थक कर आए है.. मुझे कह रहे थे की कोई उन्हे डिस्टर्ब न करे.. इसलिए मैंने बाहर से दरवाजा लोक कर दिया... थोड़ी देर पहले वो कविता और मौसी ने आकर भूचाल मचा दिया था.. "
वैशाली: "क्यों? कविता और मौसी को क्या हुआ?"
शीला: "अरे हुआ कुछ नहीं.. पीयूष ऑफिस जाने के लिए निकला और समय पर पहुंचा नहीं.. उसके बॉस ने कविता को फोन किया इसलिए सब चिंता करने लगे.. मौसी ने तो ५ दिए जलाने की मन्नत भी मांग ली.. अब पीयूष कोई छोटा बच्चा है जो कहीं खो जाएगा !!! मैंने उसे समझाया की थोड़ी देर शांति रखें.. पीयूष का पता चल ही जाएगा.. और पीयूष कितना सुशील और संस्कारी लड़का है !! वो बिना बताए या घर वालों से छुपाकर कहीं जाने वालों में से नहीं है.. उलझ गया होगा बेचारा किसी काम में.. पर मेरी बात सुनता कौन!! तभी फोन आया की पीयूष का पता चल गया.. मौसी की जान में जान आई.. कविता तो रोने ही लग गई.. मैंने उनसे कहा की वो खोया ही नहीं था.. तुम लोग बेकार में टेंशन ले रहे थे.. अब इन सब शोर-शराबे से संजय की नींद खराब न हो इसलिए मैंने ही बाहर से ताला लगा दिया.. ये ले चाबी.. अंदर जाकर कपड़े बदल ले.. और हाँ.. वापिस वो अधनंगे कपड़े मत पहनना.. दामाद जी को बुरा लगेगा.. वो सोचेंगे की मायके में आकर तू आउट ऑफ कंट्रोल हो गई है.. जा अंदर.. और ब्लू कलर की साड़ी पहन कर आना.. मैंने तुझे दी थी न वो वाली.. बहुत जचेगी तुझ पर.. !!"
संजय का नाम सुनते ही वैशाली के मूड का सत्यानाश हो गया.. पीयूष के संग की चुदाई का जो भी नशा था वो एक ही पल में उतर गया.. संजय से वो अब नफरत करती थी.. आखिर एक औरत कब तक बर्दाश्त करेगी? मुंह बिगाड़कर वैशाली ने कहा "उसे जो सोचना हो सोचे.. मुझे कोई फरक नहीं पड़ता.. उसने मेरे कौन सी चिंता की है जो मैं उसकी परवाह करू? भाड़ में जाए संजय.. मैं तो आज मेरी पसंद के कपड़े ही पहनूँगी.. "
Shandaar updateसंजय का नाम सुनते ही वैशाली के मूड का सत्यानाश हो गया.. पीयूष के संग की चुदाई का जो भी नशा था वो एक ही पल में उतर गया.. संजय से वो अब नफरत करती थी.. आखिर एक औरत कब तक बर्दाश्त करेगी? मुंह बिगाड़कर वैशाली ने कहा "उसे जो सोचना हो सोचे.. मुझे कोई फरक नहीं पड़ता.. उसने मेरे कौन सी चिंता की है जो मैं उसकी परवाह करू? भाड़ में जाए संजय.. मैं तो आज मेरी पसंद के कपड़े ही पहनूँगी.. "
शीला बेबस हो गई.. आजकल की पीढ़ी को कुछ भी समझाना बड़ा ही कठिन है.. वो ओर कुछ कहती उससे पहले वैशाली ने दरवाजा खोल दिया.. अंदर गई.. और धड़ाम से दरवाजा बंद कर दिया..
शीला घबरा गई.. उसे यकीन था की दरवाजे की आवाज से संजय जाग जाएगा और दोनों के बीच झगड़ा होगा.. अब क्या करू? पति पत्नी के झगड़े के बीच में पड़ना भी ठीक नहीं होगा.. अरे, पति पत्नी के बीच तो मनमुटाव होता रहता है.. वैशाली बेकार में इतना गुस्सा कर रही है.. इतने दिनों के बाद आया है संजय.. पर वैशाली के चेहरे पर कोई खुशी ही नहीं थी..
काफी देर तक शीला बाहर सोच में डूबी खड़ी रही.. उसे आश्चर्य हुआ की अब तक वैशाली बाहर क्यों नहीं आई?? कुछ हुआ होगा क्या? कहीं संजय ने वैशाली पर हाथ तो नहीं उठाया होगा?? शीला कांप गई.. क्या करू!! अंदर जाऊ की नहीं?? शीला ने दरवाजे पर कान लगाकर सुनने का प्रयत्न किया लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई.. बहोत दिनों के बाद मिले है.. तो कुछ कर तो नहीं रहे होंगे? पर वैशाली तो कह रही थी की उसे संजय की परवाह ही नहीं है.. शीला का दिमाग तेजी से चल रहा था
तभी बाहर के दरवाजे पर दस्तक हुई.. शीला ने दरवाजा खोला तो उसकी सहेली चेतना खड़ी थी.. शीला का चिंतित चेहरा देखकर चेतना सकपका गई.. उसे लगा की शायद वो गलत वक्त पर आ गई.. शीला ने उसे अंदर तो बुलाया पर बिना किसी उत्साह के..
"क्या हुआ शीला?? तेरा चेहरा क्यों उतरा हुआ है?"
शीला: "अरे कुछ खास नहीं.. तू बता.. अचानक कैसे आना हुआ?"
चेतना: "यहाँ से गुजर रही थी.. सोचा तुझसे मिल लूँ.. "
शीला: "अच्छा किया.. आ बैठ.. मेरी बेटी वैशाली और दामाद आए हुए है एक हफ्ते से"
चेतना: "अच्छा!! कहाँ है वैशाली? बहोत सालों पहले देखा था.. तब तो वो छोटी सी थी.. अब तो मैं उसे पहचान भी नहीं पाऊँगी"
शीला: "अंदर रूम में है.. कपड़े बदल रही है.. अभी आएगी.. तू बता.. और सब ठीक ठाक? घर पर सब कैसे है?"
चेतना और शीला बातें कर रहे थे तभी बेडरूम के अंदर से वैशाली और संजय की जोर जोर से आवाज़ें आने लगी.. शीला समझ गई की दोनों के बीच झगड़ा हुआ था.. तभी वैशाली पैर पटकते बाहर आई.. वैशाली ने चेतना को पहचाना नहीं.. शीला ने उसकी पहचान करवाई "अरे बेटा.. याद है ये चेतना आंटी? हमारे बगल में रहते थे?"
वैशाली ने औपचारिकता से नमस्ते कहते हुए हाथ जोड़े और वहाँ से चली गई
शीला: "लगता है दोनों के बीच कोई कहा-सुनी हो गई है.. तू बुरा मत मानना चेतना.. "
चेतना: "कोई बात नहीं शीला.. बच्चे है.. ये सब तो चलता रहता है.. तू चिंता मत कर.. पति पत्नी का झगड़ा, रात होते ही बेडरूम में जाकर शांत हो ही जाता है.. " दिलासा देते हुए चेतना ने कहा
चेतना की बात सुनकर शीला को अच्छा लगा.. थोड़ी देर के बाद संजय बाहर के कमरे में आया.. और इन दोनों के सामने देखे बगैर ही बिना कुछ कहें वो भी घर के बाहर चला गया
चेतना: "शीला, ये है तेरे दामाद??"
चेतना के चेहरे के विचित्र हावभाव देखकर शीला घबरा गई "हाँ ये ही है.. क्यों क्या हुआ??"
चेतना: "नहीं नहीं.. कुछ नहीं.. नाम क्या है इनका??"
"संजय"
चेतना: "शीला, पता नहीं मैं सही हूँ या गलत.. पर इनको तो मैं रोज देखती हूँ" अपने दिमाग पर जोर डालते हुए उसने कहा
चिंतित चेहरे के साथ शीला चेतना को देखती रही..
शीला: "क्या?? क्या बात कर रही है तू? कहाँ देखा है इन्हें?"
चेतना: "सुबह मैं जब दूध लेने निकलती हूँ तब हमारे घर के सामने जो गेस्ट-हाउस हैं उसकी बालकनी में खड़े खड़े सिगरेट फूंकते हुए रोज देखती हूँ मैं.. पर यकीन नहीं हो रहा ये तेरा दामाद है !!"
शीला: "पक्का तू कुछ छुपा रही है.. क्या बात है चेतना?"
चेतना: "कुछ खास नहीं यार.. छोड़ ना.. बेकार में तेरा टेंशन बढ़ेगा.. "
शीला: "बता न यार.. तुझे मेरी कसम है"
चेतना सोच में पड़ गई.. फिर थोड़ी सी हिचक के साथ बोली "यार बुरा मत मानना.. पर इस आदमी की नजर ठीक नहीं है.. बहोत ही चालू किस्म का आदमी है ये"
शीला: "उसमें कोई नई बात नहीं है.. जो आदमी अपनी माँ समान सास की छातियों को बुरी नजर से तांकता हो.. वो और क्या नहीं कर सकता !!"
चेतना: "क्या सच में? मतलब उसने तुझे भी नहीं छोड़ा?"
शीला: "तुझे भी.. यानि तेरे साथ भी उसने.. !!"
चेतना: "रोज सुबह जब दूध लेने निकलती हूँ तब पूरा रोड सुमसान होता है.. तभी ये आदमी मुझे देखकर गंदे गंदे इशारे करता रहता है... कभी कभी तो उसके साथ एक औरत भी होती है.. उसकी रखैल होगी.. मेरे सामने ही वो उस औरत के बबले दबाता है और चुम्मा-चाटी भी करता है"
शीला: "इसी बात को लेकर मैं टेंशन में हूँ चेतना.. वैशाली और संजय की जरा भी नहीं बनती.. पूरा दिन दोनों झगड़ते रहते है.. लेकिन मुझे ये अंदाजा नहीं था संजय की ज़िंदगी में कोई ओर लड़की भी है !!"
चेतना: "देख शीला.. मैं ये दावे के साथ तो नहीं कह सकती की जो लड़की उसके साथ थी वो उसकी रखैल ही होगी.. पर जिस तरह का वो गेस्ट-हाउस है.. वहाँ शरीफ लोग नहीं जाते है.. सिर्फ ऐसे ही लफंगे लफड़ेबाज लोग जाते है.. उसी आधार पर मैं अंदाजा लगा रही हूँ"
शीला: "सही बोल रही है तू.. आज कल हॉटेलों और गेस्टहाउस में यही सब तो चलता है.. यार चेतना.. तू मेरा एक काम करेगी?"
चेतना: "हाँ हाँ बोल ना.. "
शीला: "तू मेरे दामाद के बारे में और जानकारी हासिल कर सकती है क्या? वो कितने दिनों से गेस्टहाउस में है.. वो लड़की कौन है... उसका संजय से क्या ताल्लुक है वगैरह वगैरह.. "
चेतना: "पर ये सब जानकार तू क्या करेगी शीला?"
शीला: "मुझे यकीन है की वैशाली को इसके बारे में सब पता है पर वो मुझे बता नहीं रही.. ये सब बातें जानना जरूरी है.. बता ना.. मेरी मदद करेगी ना?"
चेतना: "मदद तो करूंगी.. पर देखना यार.. कहीं मैं फंस न जाऊ.. मैं आई थी किस काम से और ये सब क्या हो रहा है"
शीला: "कुछ नहीं होगा.. तुझ पर आंच भी नहीं आने दूँगी.. ठीक है ना !! और तू किस काम से आई थी ये तो बता"
चेतना: "क्या बताऊ शीला.. !! उस दिन पिंटू के साथ प्रोग्राम करने के बाद मैं कोरी की कोरी ही हूँ.. मेरा पति मेरी एक नहीं सुनता.. खाना खाके सो ही जाता है.. अब इस सावन में मैं बिना भीगे तड़प रही हूँ.. कुछ सेटिंग कर यार.. पिंटू को वापिस बुला"
शीला: "अरे पगली.. पिंटू तो कविता का प्रेमी है.. वो ऐसे हमारे बुलाने से थोड़े ही आएगा.. !! उस दिन तो हमने उसे चुदाई सिखाने के बहाने चुदवा लिया था.. अब बार थोड़े ही बुला सकते है.. !!"
चेतन निराश हो गई.. "तो अब क्या करें?"
शीला: "देख यार चेतना.. मुझसे अगर कुछ बन पड़ता तो मैं जरूर करती.. पर तू देख रही है ना.. वैशाली की मौजूदगी में किसी को घर पर बुला नहीं सकती"
चेतना: "यहाँ न सही.. मेरे घर पर तो किसी को भेजना का कुछ सेटिंग करवा दे"
शीला हंस पड़ी.. कुहनी से चेतना की कमर पर धक्का लगाकर बोली "नालायक.. मैं कोई दल्ली हूँ जो तू मुझसे ऐसा पूछ रही है?"
चेतना: "शीला, मुझे पक्का यकीन है.. की तू ऐसे दो-तीन को तो जानती ही होगी.. तेरा स्वभाव पहले से ऐसा ही रहा है.. तू किसी एक के भरोसे कभी नहीं होती.. तेरे पास विकल्प होते ही है"
शीला ने जवाब नहीं दिया.. चेतना की बात भी सही थी.. शीला के भोसड़े के रजिस्टर में पिंटू के बाद और कितने नए नाम जुड़ चुके थे.. !! पीयूष, रसिक, जीवा और रघु..
शीला: "एक बात बता.. तेरे घर के आसपास का माहोल कैसा है? मतलब अगर किसी को भेजूँ तो कोई रिस्क तो नहीं है ना ??"
चेतना: "वैसे रिस्क तो कोई नहीं है.. पर हाँ अगर कोई अनजान आदमी अकेला आएगा तो अड़ोस पड़ोस वाले जरूर देखेंगे.. उससे अच्छा अगर तू भी साथ आए तो देखना वाला यही सोचेगा की कोई पति-पत्नी मिलने आए है.. फिर किसी को शक नहीं होगा"
चेतना की चुदने की इस तड़प को देखकर शीला को दया आ गई.. उसकी मदद तो करनी ही होगी.. पर वैशाली का क्या करू? चेतना के घर ही पूरा दिन निकाल जाएगा.. और अभी वैशाली और संजय के बीच जो हुआ उसके बाद उसे वैशाली को अकेला छोड़कर जाना ठीक नहीं लग रहा था.. ऊपर से पिछली बार जब वैशाली को अकेला छोड़ा था तब उसने हिम्मत को घर बुला लिया था
शीला चुपचाप ये सब सोचते हुए चेतना को देखती रही.. चेतना बड़ी ही बेसब्री से शीला के जवाब की प्रतीक्षा कर रही थी.. शीला उसके गोरे गोरे मम्मों को ब्लाउस के अंदर से ऊपर नीचे होते हुए देखती रही..
शीला: "ठीक है.. मैं कुछ जुगाड़ करती हूँ.. इतने दिन इंतज़ार किया है तो कुछ दिन ओर सही.. सब्र का फल मीठा होता है.. मुझे कुछ प्लान बनाने में वक्त लगेगा.. मैं कल तुझे फोन करती हूँ.. एक आदमी है मेरी नजर में.. तुझे मस्त कर देगा"
चेतना: "पर शीला तू भी साथ आना.. अकेले में मुझे बहुत डर लगेगा किसी अनजान मर्द के साथ"
शीला: "मैं जब भी उसे लेकर तेरे घर आऊँगी उसके 2 घंटे पहले तुझे फोन कर के बता दूँगी.. ठीक है!!"
चेतना: "ठीक है.. वैसे तो शाम तक रुकना था तेरे साथ.. पर वैशाली की मौजूदगी में कुछ हो नहीं पाएगा.. "
शीला: "और हाँ.. ये ले पिंटू का मोबाइल नंबर.. जब तक में कुछ सेटिंग करू तब तक तू फोन पर उसके साथ टाइमपास करना.. !!" कागज के एक छोटे से टुकड़े पर शीला ने पिंटू का नंबर लिखकर दिया.. चेतना ने कागज पर्स के अंदर रखा और खड़ी हो गई
शीला: "तेरा काम तो हो जाएगा.. पर तू मेरा काम मत भूलना"
चेतना: "कौन सा काम? अच्छा.. वो दामाद वाला.. हाँ हाँ नहीं भूलूँगी.. तू चिंता मत कर.. काम हो जाएगा"
चेतना के जाते ही शीला का दिमाग चलने लगा.. कहाँ गई होगी वैशाली?? संजय का उसके साथ किस बात को लेकर झगड़ा चल रहा होगा? चेतना ने जिस लड़की को संजय के साथ देखा है.. कौन होगी वो? प्रेमिका या रखैल? आज कल के मर्दों का कोई भरोसा नहीं.. हो सकता है कोई वेश्या हो.. यहाँ अपना ससुराल होने के बावजूद गेस्टहाउस में रहने का क्या मतलब? सब कुछ पता करने के बाद ही में कुछ कदम उठा सकूँगी..
Thanks bhabhiji for the lovely commentsSuper duper Sexy gazab update
Ab piyush sochta hai agar bta deta to acha tha