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Incest शरीफ बाप और उसकी शैतान बेटी

Ghosthunter

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पापा ने ज्यों ही हाथ ऊपर किया उनका हाथ मेरी चड्डी में ढकी हुई चूत पर आ गया.

(अब यह पापा को ही पता होगा की उन्होंने जानबूझ कर चूत पर हाथ डाला या अचानक पर उनके हाथ में मेरी चूत आ गयी )

जैसे ही पापा का हाथ मेरी चूत पर लगा, मैं उछल पड़ी. मैंने यह तो सोचा था कि पापा मेरे साथ शरारत करेंगे पर यह नहीं सोचा था की वे तो सीधा चूत पर ही हाथ रख लेंगे.

खैर ज्योंही मैं चूत पर हाथ लगने से उछली, पापा के हाथ अपने आप मेरी चूत पर कस गए और उन्होंने कच्छी समेत मेरी चूत अपनी महती में भर ली,

मैं भी डर सा गयी क्योंकि हालाँकि मैं तो यही चाहती थी कि पापा मुझे चोद दें पर अभी इतना हो जायेगा यह मन में भी नहीं था. मैं तो सिर्फ शरारत कर रही थी,

पापा को भी जब मेरी चूत अपनी मुठी में महसूस हुई तो अपने आप उनके हाथ की उंगलिया कस गयी और मेरी चूत उनके हाथ में दब गयी

पापा ने बात को संभाला और हँसते और बात को हलके मूड में लाते हुए बोले

"अरे सुमन! तूने तो सच में ही पैंटी नहीं पहनी है, मैं तो समझ रहा था की तू झूठ बोल रही है,"

पापा अब धीरे धीरे अपनी मुठी में मेरी चूत को मसल सा रहे थे,

मैं डर गयी, मैं पापा को कहना चाहती थी की अपने हाथ से मेरी चूत छोड़ दें पर शर्म के कारण मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे,
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मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ या क्या बोलूं,

इधर जब पापा ने मुझे जब कोई इंकार या इतराज़ करते न पाया तो उनका भी होंसला बढ़ गया और वो चुपचाप अपने हाथ मेरी चूत पर फेरते रहे और अब तो पापा ने अपनी एक ऊँगली मेरी चूत की दरार में फेरनी शुरू कर दी.

अब तक मेरी भी सांसे उखड़ने लगी थी, मैं दिल ही दिल में तो चाह रही थी कि पापा इसी तरह मेरी चूत को मसलते रहें क्योंकि चूत पर पापा का हाथ पहली बार पड़ा था.
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और अब तो इस से भी आगे बढ़ कर पापा मेरी चूत में ऊँगली उसकी दरार के साथ साथ सेहला रहे थे. जिस से मुझे बेपनाह आनंद आ रहा था.

यह तो मैं ही जानती हूँ की मैं किस तरह अपने को संभाले हुए थी,

तो मैंने भी पापा का हाथ नहीं हटाया या कोई इतराज़ दिखाया और पापा को बोली

"पापा आप ही मुझे झूटी कह रहे थे, मैं तो शुरू से ही कह रही थी कि मैंने पैंटी पहनी हुई है, आप ही मुझे नंगी सिद्ध करने पर तुले हुए थे. अब आप गलत सिद्ध हो गए न "

यह कह कर मैं पापा को देख कर मुस्कुराने लगी,

पापा को शायद डर था की मैं उनसे अपनी चूत न छुड़वा लूँ तो बाप को दूसरी ओर घुमाते हुए बोले

"सुमन! तुम्हारी कच्छी का कपडा तो बहुत ही अच्छा लग रहा है. मैं तो समझता था की तुम कोई सूती कपडे की कच्छी पहनती होगी पर यह तो कोई मखमली या रेशमी कपडा लगता है, इस को छूने में बहुत अच्छा लग रहा है, "
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(मैं जानती थी की पापा असल में बहाने से मेरी कच्ची को छूते रहना चाहते हैं. )

यह कहते हुए पापा ने फिर से मेरी चूत को अपनी मुठी में मसलना शुरू कर दिया.

अब मेरी चूत के लिए यह सब सहन करना बहुत भारी हो रहा था. पहली बार पापा का हाथ अपनी चूत पर पा कर मेरी चूत ने तो पानी छोड़ना शुरू कर दिया था. मेरी चूत पापा के हाथों में इतनी गीली हो गयी थी कि मुझे डर था की कहीं मेरा पानी पैंटी से बाहर आ कर पापा के हाथों पर न लग जाये।

वैसे भी मुझे समझ नहीं आ रही थी की अब क्या करूँ या अगला क्या कदम उठाऊं तो तो मैंने पापा के हाथों से अपनी चूत छुड़वाने के बहाने से ऐसे ही हिलना शुरू कर दिया. क्योंकि मुझे इतनी शरम आ रही थी की पापा को कैसे कहूं कि अब तो आप ने मेरी कच्छी को चैक कर लिया है तो अब अपना हाथ हटाइये।

मुझे कुछ न बोलते देख कर पापा का होंसला बढ़ गया और उन्होंने अपनी एक ऊँगली अब मेरी पैंटी की साइड से नंगी चूत पर घुसाने की कोशिश करी।
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ज्योंही पापा ने अपनी ऊँगली पैंटी की साइड से अंदर घुसाई और वो सीधे मेरे भगनासे पर लगी,

पापा की ऊँगली भगनासे पर पड़ते ही मैं जोर से उछल पड़ी और मेरे मुंह से अपने आप जोर की आह (आनंद पूर्ण )निकल पड़ी,

मैं इतनी जोर से उछल गयी की पापा की न केवल ऊँगली मेरी नंगी चूत से बहार आ गयी, बल्कि उनका हाथ ही मेरी पैंटी से निकल गया.

(हालाँकि पापा दुसरे हाथ से तो मेरी नंगी चूची सहलाते रहे और दबाते रहे )

(मैं मन ही मन बहुत पछतायी पर क्या हो सकता था. अब मैं अपने पापा को यह तो कह नहीं सकती थी की पापा फिर से अपनी ऊँगली मेरी नंगी चूत पर फेरिये )

पापा भी उदास से हे गये और बोले

"अरे बेटा क्या हुआ. उछल क्यों गयी. दर्द हुआ क्या ?"
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मुझे एकदम एक बहाना सा मिल गया और मैं सर हिलाते हुए बोली

"हाँ पापा. मेरी जांघों के जोड़ पर पैंटी की रगड़ से रशेस हो गए है और जांघों के जोड़ पर लाल लाल हो गया है, हाथ लगने पर दर्द होता है,"

पापा बोले "सुमन! यह सिंथैटिक पैंटी पहनने के कारण हैं. पैंटी के किनारे लग लग कर रेशेस हो जाते हैं। इस से बचने का एक ही इलाज है की तुम कच्छी न पहना करों और अपने शरीर के इस भाग को थोड़ी हवा लगने दिया करो।

मुझे कोई रेशेस तो थे नहीं. वो तो मैंने ऐसे ही बात बना दी थी, पर अब क्या करती यह तो कह नहीं सकती थी की पापा मैं तो झूठ बोल रही थी, सो ऐसे ही बात को आगे चलाते बोली

"पापा वो तो मैंने आज ही पैंटी पहन ली थी वरना तो मैं ऐसे ही रहती हूँ. खासकर घर में तो बहुत कम पैंटी पहनती हूँ. मैंने दवाई भी काफी लगाई है पर कोई फर्क नहीं पड़ा। आप ही बताइये की मैं इस का क्या इलाज़ करूँ?"

पापा ने थोड़ी देल सोचा. पता नहीं वो कोई दवा सोच रहे थे या कुछ और.

वैसे मुझे लगता है कुछ और ही सोच रह होंगे, अपनी जवान बेटी की नंगी चूत पर हाथ फेरने से किस मर्द को कोई दवाई ध्यान में आएगी, ऐसे मौके पर दवाई नहीं बल्कि चुदाई याद आती है,
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खैर। पापा को शायद कोई कामुक रास्ता सूझ गया और बोले

"सुमन! तुमने देखा होगा कि कई बार जानवरो को कोई जखम हो जाते है, अब वे बेचारे तो कोई दवाई नहीं ला सकते और न ही उन्हें कोई डॉक्टर मिलता है, तो दुनिया के सारे जानवर और पक्षी एक बड़ी ही आसानी से उपलब्ध दवा का इस्तेमाल करते हैं. जिस से वो शर्तिया ठीक हो जाते हैं और उनके बड़े से बड़े जख्म भी ठीक हो जाते हैं यह रेशेस तो उसके सामने क्या चीज है ?"

(यह सब कहते हुए भी पापा ने मेरी वो नंगी चूची न छोड़ी और उसे मसलते रहे. मैं भी चुपचाप उस का आनंद लेती रही, कि चूत मसलवाने का मजा तो गया पर यह मजा तो मिलता रहे.)
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मैंने हैरान हो कर पूछा

"पापा वो दवा क्या है,?"

पापा :- "बेटी वो दवा है मुंह की लार या थूक। तुमने देखा होगा की जानवर के जहाँ जख्म होता है, वो अपनी जीभ से उसे वहां पर चाटता रहता है, मुंह के लार में सबसे अच्छा एंटी सेप्टिक होता है जिस से जख्म भर जाता है, इंसान के मुंह के लार में भी वही गुण होता है, पर हम पढ़े लिखे लोग अपने जख्म को चाटना ठीक नहीं समझ कर बाज़ार से दवा खरीद कर ले आते है, जिस से पैसे भी बेकार खर्च होते हैं और दिक्कत भी ठीक नहीं होती. {"

मैं अभी भी पापा का प्लान नहीं समझ पाई थी, तो हैरानी से बोली

"पापा ऐसा तो मैंने कभी नहीं सुना. हाँ जानवरों को कई बार अपने जख्म चाटते देखा हैं पर मैं इसका कारण नहीं जानती थी, क्या इंसानो में भी ऐसा होता है,?"

पापा बात को आगे बढ़ाते बोले

"हाँ तो और क्या. तुम्हारी माँ को भी कई बार ऐसे ही रेशेस हो जाते हैं तो मैं तो कभी कोई दवाई नहीं ला कर देता. और उन्हें मुंह के लार या थूक से ही ठीक करने को बोलता हूँ. हालाँकि जांघो के रेशेस की जगह ही कुछ ऐसी है की इंसान का अपना मुंह वहां तक नहीं जा पाता, वो तो खैर मेरी बीवी है, तो जब भी तुम्हारी माँ को रेशेस होते है तो मैं तुम्हारी माँ की जांघें अपने मुंह से चाट देता हूँ जिस से उसकी रेशेस बहुत ही जल्दी ठीक हो जाती हैं तुम भी अपने मुंह की लार से उस जगह पर चाटो तो बहुत जल्दी ठीक हो जाएँगी,

मैं अभी भी पापा की चाल नहीं समझ पाई थी, तो पूछा

"पापा मेरे रेशेस मेरी जांघों के जोड़ पर हैं. वहां तो मेरा मुंह नहीं जा सकता. तो यह इलाज तो संभव नहीं हैं."

पापा मुझे समझने के दिखावे से बोले

"सुमन! हाँ यह तो एक समस्या है, यह तो जगह ही ऐसी है कि इंसान खुद तो चाट या चूस नहीं सकता. किसी दुसरे को ही करना पड़ेगा. अब तुम्हारी माँ तो है नहीं वरना वो ही तुम्हारी जांघों को चाट कर तुम्हारी तकलीफ ठीक कर देती. जैसे मैं उसकी ठीक करता था. तुम्हारी माँ तो मेरी बीवी है, तो मैं चाट लेता था पर तुम तो मेरी बेटी हो और वो भी जवान , तो मैं तो चाह कर भी तुम्हारी मदद नहीं कर सकता. वर्ना मैं ही तुम्हारी जाँघे चाट कर तुम्हारे रेशेस ठीक कर देता."

अचानक से जैसे मेरे दिमाग में बम सा फूटा, अब मैं समझ गयी की पापा तो इस बहाने जाँघे चाटने का इशारा कर रहे हैं और मैं बेवकूफ बात को समज ही नहीं रही,

यह तो पापा से अपनी नंगी जाँघे चटवाने का एक सुनहरी मोका और बहाना था.
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अब मैंने बात संभाली और बोली

"पापा मैं तो इस रेशेस से बहुत परेशान हूँ. कोई बात नहीं आप कोई गैर तो हैं नहीं. अब क्या करें मम्मी तो घर पर है नहीं तो आप ही मेरी मदद कर दीजिये और जैसे आप मम्मी की रेशेस चाट कर ठीक कर देते थे उसी तरह आप मेरी भी जांघें चाट दें. पर एक बात है की मुझे आपके सामने इस तरह अपनी जंघे नंगी करके लेटने में शर्म आएगी तो आप रात को अँधेरे में मेरी रेशेस चाट देना. ठीक है न ?"

असल में मैं जानती थी की चाहे हम बाप बेटी अपनी कामुकता में कितना भी आगे आ गए हों पर फिर भी रौशनी में मैं उनके आगे नंगी हो कर नहीं लेट सकती थी, और दुसरे मेरे मन में एक और भी बात थी की अँधेरे में यदि पापा मेरी जांघें चाटेंगे तो शायद अँधेरे के बहाने से मेरी चूत पर भी जीभ फेर दे. या फिर शायद आज ही मेरी पापा से चुदाई का शुभारम्भ हो जाये."

पापा को भी यह बात ठीक लगी,उनके लिए भी यह ही एक लॉटरी लगने की तरह था की मैं उनकी चाल में फंस रही थी और उनसे अपनी जाँघे चटवाने को तैयार हो गयी थी, पर उन्हें क्या पता था की यह तो मेरे लिए भी ऐसा था की जिसे कहते हैं न की बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना.
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पापा के मन में तो लड्डू फुट रहे थे की आज उन्हें अपनी बेटी की जांघों के जोड़ पर चाटने का मौका मिलेगा.

तो पापा ने सोचा की यह सब के लिए जब मैं तैयार हो ही गयी हूँ तो शायद मेरे मन में भी वही सब है जो उनके खुद के मन में है, तो मेरे को थोड़ा और टटोलते हुए बोले

"सुमन! अभी जब मैंने तुम्हारी कच्छी चेक करने के लिए तुम्हारे नीचे (पापा को चूत कहने में झिझक आ रही थी) हाथ लगाया था तो में पाया की तुम्हारे नीचे काफी बाल हैं.

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तो तुम एक काम करना कि अभी खाना बनाने के बाद अपने वो नीचे वाले बाल अच्छी तरह से साफ़ कर लेना क्योंकि वर्ना जब मैं रात अँधेरे में तुम्हारी जांघें चाटूँगा तो मेरे मुंह में तुम्हारे बाल न आ जाएँ या चुभ जाएँ. अब तुम्हारी माँ तो अपने नीचे के बालों को बिलकुल साफ़ रखती है तो यह दिक्कत नहीं आती. "
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मैं समज गयी की पापा रात में मेरी चूत चाटना चाहते हैं. मैं तो उन से भी ज्यादा तैयार थी,

मैं समझ गयी थी कि पापा इस मौके को किसी भी कीमत पैट छोड़ेंगे नहीं और न ही मैं इस मौके को हाथ से जाने देने वाली थी, पर पापा को छेड़ते हुए बोली

"पापा मेँ भी अपने नीचे के बाल साफ़ ही रखती हूँ. पर हाँ अभी चार पांच दिन हो गए हैं सफाई किये हुए. तो थोड़े थोड़े से बढ़ गए हैं. पर इतने ज्यादा नहीं की मुंह में आ जाएँ. और वैसे भी आपने तो मेरी टांगों के जोड़ पर यानि मेरी कमर के पास ही तो चेतना है तो वो वाले बाल साफ़ करने की क्या जरूरत है, वहां तो आपने मुंह लगाना नहीं है,"
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यह कहते हुए मैं शरारती सी मुस्कुरा रही थी, पापा समझ तो सब रहे थे. पर वो बोले

"सुमन यह ठीक है की मैंने तुम्हारी जांघों का जोड़ पर ही चाटना है पर तुम अँधेरा कर के चटवाने की बात कर रही हो. तुम्हारी माँ तो रौशनी में चटवाती है तो कोई दिक्कत नहीं. पर अँधेरे में दिखाई तो देगा नहीं. तो यदि अँधेरे में गलती से जीभ इधर उधर भी कहीं लग गयी तो बाल न चुभें तो इसलिए मैं कह रहा था की तुम नीचे वाले बाल भी साफ़ कर लो "

मैं मन ही मन बोली - पापा मैं जानती हूँ की जीभ मेरी जाँघों पर फिरे या न पर यह आपकी "इधर उधर" तो जरूर फिरेगी. और मैं भी यही चाहती हूँ। आप जांघों पर चाहे न चाटना या कम चाटना पर यह "इधर उधर " जरूर चाटना."
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तो मैं मुंह सा बना कर बोली "पापा मैं ब्लेड से सफाई नहीं करती बल्कि क्रीम से करती हूँ. और अभी मेरी क्रीम ख़तम है, मैं कल बाजार से लाने ही वाली थी. आज आप ऐसे ही काम चल लीजिये अगली बार मैं अच्छे से साफ़ करके रखूंगी,"

पापा की तो बांछें ही जैसे खिल गयी। यानि मैंने उन्हें खुद ही ऑफर कर दिया था की यह एक ही बार की चटवाई नहीं है, उन्हें अपनी बेटी की "इधर उधर" चाटने का मौके बाद में भी मिलेगा.
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हम दोनों के मन में लड्डू फुट रहे थे.

अब मुझे पापा से भी अधिक रात का इंतज़ार था और पापा को मेरे से ज्यादा रात की इंतजार।

मैंने पापा को कहा


"तो ठीक है पापा, हमारा रात का प्रोग्राम पक्का. अब मैं जल्दी से आटा गूंध लूँ, ताकि हम जल्दी से खाना खा कर आप मेरी रेशेस ठीक कर सकें.
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Absolutely exciting and interesting update with brilliant writing style!
 
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Ting ting

Ting Ting
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Awesome and exciting update
Thanks
I am writing the next episode .
Almost half is written, and I hope to upload tomorrow.
However pl give your suggestions to improve the sting of story. and to make it better and more erotic.
As it is not a copy paste story, so I will be able to incorporate your suggestions
 
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rajeshsurya

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Jhangon ka jod aaaahhhh kitna maza aata hain waha chaatne se. Uffff kaise Baap beti hain.bilkul ek dusre ke liye hi Bane hain.
Waiting for more. All the best keep it up
 
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