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Thriller शतरंज की चाल

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dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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कहानियां ही तो बनानी होती हैं उनको, लाइम लाइट, फेम, और पैसा अय्याशी, आज कल की जिन्दगी ही यही बन गई है। और जब लड़कियां इस गर्त में गिरती हैं न, तो वो लड़कों से भी ज्यादा बेशर्म और बेरहम हो जाती हैं।

बाकी कानून का नुनु तो स्त्री के लिए ही तड़पता है।
Sahi kaha aapne.
 

dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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कहानियां ही तो बनानी होती हैं उनको, लाइम लाइट, फेम, और पैसा अय्याशी, आज कल की जिन्दगी ही यही बन गई है। और जब लड़कियां इस गर्त में गिरती हैं न, तो वो लड़कों से भी ज्यादा बेशर्म और बेरहम हो जाती हैं।

बाकी कानून का नुनु तो स्त्री के लिए ही तड़पता है।
Yes story cook karne mein wo sabhi ka baap, maa, bhai, dada aur dadi sab hoti hain.
 

Napster

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#अपडेट २९


अब तक आपने पढ़ा -


न्यूज में से अब इस केस पर से धीरे धीरे लोग का इंटरेस्ट कम होने लगा था, और न्यूज वाले भी अब इस न्यूज को ज्यादा नहीं दिखते थे। शेयर मार्केट में भी मित्तल ग्रुप के शेयर अब स्टेबल हो रहे थे। श्रेय और महेश अंकल ने अब कुछ पकड़ बना ली थी कंपनी पर।


दिन ऐसे ही बीत रहे थे...


अब आगे -


एक दिन बाबूजी मेरे पास आए और ऐसे ही बातों बातों में मुझसे कहा कि दाढ़ी वगैरा बनवा लो, अच्छा नहीं लगता है। तभी उनको देख कर मेरे दिमाग में एक ख्याल आया और जॉली भैया को बुलवा कर मैने उनसे कुछ कहा, वो बोले थोड़ा टाइम दो। उसके कुछ समय बाद वो एक आदमी के साथ आए। वो उनका बहुत खास जानने वाला था। एक मेकअप आर्टिस्ट। उसने मेरे हुलिया को थोड़ा दुरुस्त करके एक पग पहना दी। फिर जॉली भैया और बाबूजी ने मुझे देख कर बहुत खुश हुए और मेरे सामने आईना कर दिया, एक बार तो मैं खुद को ही नहीं पहचान पाया। इन दिनों मेरा वजन भी कुछ कम हो गया था तो मैं थोड़ा दुबला भी हो गया था। और इस हुलिए में मैं एक 20 21 साल के सिख युवक की तरह दिखने लगा था।


जॉली भैया ने उससे पूछा, "रमेश ये मेकअप कितनी देर रहेगा?"


"अरे जॉली भैया, ये कोई मेकअप नहीं है, ये तो इनकी नेचुरल दाढ़ी मूंछ है, तो ये जब तक इस पग को लगाए रहेंगे तो ऐसे ही दिखते रहेंगे।"


"मतलब ये कितनी भी देर तक ऐसा रह सकता है?"


"हां बस जब नहाएंगे तो मैं कुछ क्रीम देता हूं वो जरूर लगा लेंगे, जिससे स्किन का कलर जरा बदला सा रहेगा।" ये बोल कर उस आदमी ने दो तरह की क्रीम मुझे दी और उसे लगाने का तरीका भी बता दिया।


मैं फिर भी बहुत कॉन्फिडेंट नहीं था ऐसे निकलने में, तो बाबूजी ने मुझे अपने साथ लिया और अपने ढाबे के गल्ले पर बैठा दिया। एक दो लोग ने मेरे बारे में पूछा तो मुझे अपना भतीजा बता दिया। कुछ देर वहां बिताने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आया और मैं अकेले ही पूरी मार्केट घूम आया।


शाम तक वैसे ही रहने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आ गया, और मैने बाबूजी और जॉली भैया से वापस जाने की बात की।

जॉली भैया ने मुझे कुछ दिन और रुकने कहा, और वो मेरी एक दो फोटो भी खींच कर ले गए। बाबूजी ने मुझसे समर से बात करने कहा। मेरे भी दिमाग में था कि किसी तरह से नेहा के मां पिताजी से मिला जाय, क्योंकि ये गुत्थी बस वही सुलझा सकते थे कि ये बिट्टू कौन है।


रात को समर ने फोन किया, वो हर 2 4 दिन में मुझे अलग अलग नंबरों से कॉल करता था। ये उसकी खुद की सुरक्षा के लिए भी जरूरी था।


"हां मनीष कैसा है भाई?"


"कैसा होऊंगा? अच्छा एक बात बता, क्या किसी तरह से मैं नेहा के मां बाप से मिल कर बात कर सकता हूं?"


"क्यों मिलना है उनसे? और कैसे मिलोगे भाई, तुम्हारी तलाश पुलिस को आज भी है।"


"देखो समर, इसके पीछे जो भी है, वो नेहा से ही जुड़ा है। तो नेहा का पूरा पास्ट आना जरूरी है हमारे सामने, तभी कुछ गुत्थी सुलझाने के आसार बनेंगे। ऐसे यहां बैठे बैठे पूरी जिंदगी तो नहीं निकाल सकता न भाई। और अपने ऊपर आए दाग को भी हटाना जरूरी है।"


"बिल्कुल, पर कहां मिलोगे और कैसे मिलोगे?"


"वापी में बुला सकता है उनको?"


"तुम वापी आओगे?"


"हां आना ही पड़ेगा।"


"लेकिन?"


"बिना रिस्क लिए तो कुछ भी सही नहीं होगा न?"


"हां वो तो है। अच्छा एक काम करता हूं, नेहा के पापा का नंबर है मेरे पास, वो जब नेहा की बॉडी क्लेम करने आए थे तब उनसे लिया था। उन्होंने कहा था कि कोई संजीव की बॉडी न क्लेम करे तो उनको बताने। पर मुझे उस केस से ही हटा दिया तो मेरे दिमाग से भी उतर गया। चल बात करके बताता हूं तुझको, फिर उनके हिसाब से प्लान बना। और भाई सावधान रहना।"


" हां भाई, देख भाल कर ही आऊंगा।"


अगले दिन जॉली भईया ने मुझे मेरी नई पहचान के कुछ दस्तावेज बना कर दे दिए। वो इन सब का ही काम करते थे तो जाली दस्तावेज बनाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं था। अब मैं 22 साल का हरप्रीत सिंह था और दिल्ली के प्रीतमपुरा का रहने वाला था।


दो दिन बार समर ने मुझे कॉल करके बताया कि नेहा के पिताजी एक सप्ताह बाद वापी आ कर संजीव का क्रियाकर्म कर देंगे। उसने बताया कि उनका यही अंदाजा था कि कोई संजीव की बॉडी क्लेम करने नहीं आएगा उसके परिवार से, वैसे भी उसका बस एक ही भाई था,और वो भी लंदन में था।


जॉली भैया ने मेरे लिए नए नाम से ट्रेन में रिजर्वेशन करवा दिया वापी जाने के लिए, उनके पहुंचने के एक दिन पहले ही मैं वहां पहुंच गया। रास्ते भर मुझे अपने पहचाने जाने का डर था, मगर इस घटना को लगभग 2 महीने बीत गए थे, और न्यूज वालों ने इतने दिनों में बहुत मसाला दे दिया था लोगों को, मेरे साथ हुई दुर्घटना को भूलने का।


सुबह वापी पहुंच कर मैं होटल अशोक में चला गया जिसे जॉली भैया ने ही मेरे नाम से ऑनलाइन बुक किया था। ये एक मिडिल बजट का अच्छा होटल था। मैं अपने रूम में पहुंच कर फ्रेश हुआ, और नीचे उतर कर मार्केट के एक रेस्टोरेंट में नाश्ता करने पहुंचा। असल में मेरे और समर की मीटिंग यहीं होनी थी। मैने पहुंच कर देखा तो समर पहले से ही एक टेबल पर था, वहां भीड़ ज्यादा थी तो लोग टेबल शेयर कर रहे थे। मैं भी एक अजनबी की तरह ही उसके टेबल पर बैठ गया, और अपना ऑर्डर दे दिया। कुछ देर रुकने के बाद जब हमने देखा किसी की नजर हमपर नहीं है तो समर और मैने कुछ बात की।


उसने कहा कि वो कल शाम को नेहा के पिताजी को मेरे ही होटल में लेकर आएगा, और वहीं कमरे में ही हम दोनो बात करेंगे।


अगले दिन मुझे कुछ काम नहीं था तो मैं ऐसे ही मित्तल सर के हॉस्पिटल की ओर चला गया। ये वापी का सबसे बड़ा प्राइवेट हॉस्पिटल था, और बहुत भीड़ रहती थी यहां पर।


वहां मैं कुछ देर बाहर खड़े हो कर नजर रख रहा था, तभी मुझे श्रेय की कार अंदर जाती दिखी तो मैं भी अंदर चला गया।


मेरे सामने लिफ्ट से श्रेय और शिविका ऊपर जाने वाले थे, लिफ्ट में और लोग भी थे, तो मैं भी उसी में चल गया। किस्मत से मैं और शिविका एक दूसरे के अगल बगल ही खड़े थे, मैं सामने देख रहा था, और उसकी नजर मुझ पर पड़ी, और वो मुझे ही देखती रही। फिर हम सब एक फ्लोर पर उतरे, ये हॉस्पिटल का आईसीयू फ्लोर था, इसमें दो तरफ आईसीयू यूनिट बने थे, दाईं तरफ जनरल आईसीयू, जहां साधारण लोग भर्ती होते थे, और बाएं तरफ VIP ward था, उसी में मित्तल सर को रखा गया था। उस तरफ पुलिस का पहरा था। मैं जनरल वार्ड की तरफ बढ़ गया। शिविका की नजर अभी भी मुझ पर ही थी।


जनरल वार्ड का वेटिंग हॉल सामने ही था, और वहां बैठ कर VIP वार्ड पर नजर रखी जा सकती थी। मैं ऐसी जगह देख कर बैठ गया जहां से मेरी नजर पूरे वार्ड पर रहती।


श्रेय और शिविका अंदर का चुके थे, मित्तल सर का कमरा सामने ही था। उनके कमरे के बाहर ही दो कांस्टेब तैनात थे और वो सबकी तलाशी ले कर ही अंदर जाने देते। श्रेय और शिविका की भी तलाशी हुई, ये मुझे कुछ अजीब लगा।


मैं वहां दोपहर तक बैठा रहा, श्रेय और शिविका आधे घंटे बाद चले गए थे। शिविका जाते समय भी इधर उधर सबको देख रही, शायद किसी को ढूंढ रही थी।


शायद मुझे?


दोपहर को मैं वहां से बाहर चला गया और खाना खा कर अपने होटल में जा कर आराम करने लगा। शाम 5 बजे मुझे समर ने फोन करके बताया कि वो नेहा के पापा को लेकर आ रहा है मेरे पास।


अंशुमान वर्मा, नेहा के पिता एक रिटायर सरकारी बैंक कर्मी थे। कोई 3 साल पहले ही वो रिटायर हुए थे, मतलब नेहा की शादी के एक साल बाद। समर मुझे उनसे एक दोस्त के रूप में, जो एक जर्नलिस्ट है, मिलवाने वाला था, ये बोलकर कि मैं इस घटना पर एक स्टोरी कर रहा हूं, उसी के सिलसिले में कुछ सवाल करने हैं।


एक घंटे बाद समर, अंशुमान वर्मा को लेकर मेरे रूम पर आ गया। मैने सबके लिए चाय का ऑर्डर किया, और कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद मैने उनसे ऐसे ही पूछ लिया


"सर, नेहा और संजीव की शादी तो आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी, फिर भी आप संजीव का अंतिम संस्कार करने क्यों आए।"


"किसने कहा कि संजीव और नेहा की शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई?".....

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
नेहा के पिता से पहला ही जवाब सकारात्मक मिला
तो देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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Sunli

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#अपडेट २९


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न्यूज में से अब इस केस पर से धीरे धीरे लोग का इंटरेस्ट कम होने लगा था, और न्यूज वाले भी अब इस न्यूज को ज्यादा नहीं दिखते थे। शेयर मार्केट में भी मित्तल ग्रुप के शेयर अब स्टेबल हो रहे थे। श्रेय और महेश अंकल ने अब कुछ पकड़ बना ली थी कंपनी पर।


दिन ऐसे ही बीत रहे थे...


अब आगे -


एक दिन बाबूजी मेरे पास आए और ऐसे ही बातों बातों में मुझसे कहा कि दाढ़ी वगैरा बनवा लो, अच्छा नहीं लगता है। तभी उनको देख कर मेरे दिमाग में एक ख्याल आया और जॉली भैया को बुलवा कर मैने उनसे कुछ कहा, वो बोले थोड़ा टाइम दो। उसके कुछ समय बाद वो एक आदमी के साथ आए। वो उनका बहुत खास जानने वाला था। एक मेकअप आर्टिस्ट। उसने मेरे हुलिया को थोड़ा दुरुस्त करके एक पग पहना दी। फिर जॉली भैया और बाबूजी ने मुझे देख कर बहुत खुश हुए और मेरे सामने आईना कर दिया, एक बार तो मैं खुद को ही नहीं पहचान पाया। इन दिनों मेरा वजन भी कुछ कम हो गया था तो मैं थोड़ा दुबला भी हो गया था। और इस हुलिए में मैं एक 20 21 साल के सिख युवक की तरह दिखने लगा था।


जॉली भैया ने उससे पूछा, "रमेश ये मेकअप कितनी देर रहेगा?"


"अरे जॉली भैया, ये कोई मेकअप नहीं है, ये तो इनकी नेचुरल दाढ़ी मूंछ है, तो ये जब तक इस पग को लगाए रहेंगे तो ऐसे ही दिखते रहेंगे।"


"मतलब ये कितनी भी देर तक ऐसा रह सकता है?"


"हां बस जब नहाएंगे तो मैं कुछ क्रीम देता हूं वो जरूर लगा लेंगे, जिससे स्किन का कलर जरा बदला सा रहेगा।" ये बोल कर उस आदमी ने दो तरह की क्रीम मुझे दी और उसे लगाने का तरीका भी बता दिया।


मैं फिर भी बहुत कॉन्फिडेंट नहीं था ऐसे निकलने में, तो बाबूजी ने मुझे अपने साथ लिया और अपने ढाबे के गल्ले पर बैठा दिया। एक दो लोग ने मेरे बारे में पूछा तो मुझे अपना भतीजा बता दिया। कुछ देर वहां बिताने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आया और मैं अकेले ही पूरी मार्केट घूम आया।


शाम तक वैसे ही रहने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आ गया, और मैने बाबूजी और जॉली भैया से वापस जाने की बात की।

जॉली भैया ने मुझे कुछ दिन और रुकने कहा, और वो मेरी एक दो फोटो भी खींच कर ले गए। बाबूजी ने मुझसे समर से बात करने कहा। मेरे भी दिमाग में था कि किसी तरह से नेहा के मां पिताजी से मिला जाय, क्योंकि ये गुत्थी बस वही सुलझा सकते थे कि ये बिट्टू कौन है।


रात को समर ने फोन किया, वो हर 2 4 दिन में मुझे अलग अलग नंबरों से कॉल करता था। ये उसकी खुद की सुरक्षा के लिए भी जरूरी था।


"हां मनीष कैसा है भाई?"


"कैसा होऊंगा? अच्छा एक बात बता, क्या किसी तरह से मैं नेहा के मां बाप से मिल कर बात कर सकता हूं?"


"क्यों मिलना है उनसे? और कैसे मिलोगे भाई, तुम्हारी तलाश पुलिस को आज भी है।"


"देखो समर, इसके पीछे जो भी है, वो नेहा से ही जुड़ा है। तो नेहा का पूरा पास्ट आना जरूरी है हमारे सामने, तभी कुछ गुत्थी सुलझाने के आसार बनेंगे। ऐसे यहां बैठे बैठे पूरी जिंदगी तो नहीं निकाल सकता न भाई। और अपने ऊपर आए दाग को भी हटाना जरूरी है।"


"बिल्कुल, पर कहां मिलोगे और कैसे मिलोगे?"


"वापी में बुला सकता है उनको?"


"तुम वापी आओगे?"


"हां आना ही पड़ेगा।"


"लेकिन?"


"बिना रिस्क लिए तो कुछ भी सही नहीं होगा न?"


"हां वो तो है। अच्छा एक काम करता हूं, नेहा के पापा का नंबर है मेरे पास, वो जब नेहा की बॉडी क्लेम करने आए थे तब उनसे लिया था। उन्होंने कहा था कि कोई संजीव की बॉडी न क्लेम करे तो उनको बताने। पर मुझे उस केस से ही हटा दिया तो मेरे दिमाग से भी उतर गया। चल बात करके बताता हूं तुझको, फिर उनके हिसाब से प्लान बना। और भाई सावधान रहना।"


" हां भाई, देख भाल कर ही आऊंगा।"


अगले दिन जॉली भईया ने मुझे मेरी नई पहचान के कुछ दस्तावेज बना कर दे दिए। वो इन सब का ही काम करते थे तो जाली दस्तावेज बनाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं था। अब मैं 22 साल का हरप्रीत सिंह था और दिल्ली के प्रीतमपुरा का रहने वाला था।


दो दिन बार समर ने मुझे कॉल करके बताया कि नेहा के पिताजी एक सप्ताह बाद वापी आ कर संजीव का क्रियाकर्म कर देंगे। उसने बताया कि उनका यही अंदाजा था कि कोई संजीव की बॉडी क्लेम करने नहीं आएगा उसके परिवार से, वैसे भी उसका बस एक ही भाई था,और वो भी लंदन में था।


जॉली भैया ने मेरे लिए नए नाम से ट्रेन में रिजर्वेशन करवा दिया वापी जाने के लिए, उनके पहुंचने के एक दिन पहले ही मैं वहां पहुंच गया। रास्ते भर मुझे अपने पहचाने जाने का डर था, मगर इस घटना को लगभग 2 महीने बीत गए थे, और न्यूज वालों ने इतने दिनों में बहुत मसाला दे दिया था लोगों को, मेरे साथ हुई दुर्घटना को भूलने का।


सुबह वापी पहुंच कर मैं होटल अशोक में चला गया जिसे जॉली भैया ने ही मेरे नाम से ऑनलाइन बुक किया था। ये एक मिडिल बजट का अच्छा होटल था। मैं अपने रूम में पहुंच कर फ्रेश हुआ, और नीचे उतर कर मार्केट के एक रेस्टोरेंट में नाश्ता करने पहुंचा। असल में मेरे और समर की मीटिंग यहीं होनी थी। मैने पहुंच कर देखा तो समर पहले से ही एक टेबल पर था, वहां भीड़ ज्यादा थी तो लोग टेबल शेयर कर रहे थे। मैं भी एक अजनबी की तरह ही उसके टेबल पर बैठ गया, और अपना ऑर्डर दे दिया। कुछ देर रुकने के बाद जब हमने देखा किसी की नजर हमपर नहीं है तो समर और मैने कुछ बात की।


उसने कहा कि वो कल शाम को नेहा के पिताजी को मेरे ही होटल में लेकर आएगा, और वहीं कमरे में ही हम दोनो बात करेंगे।


अगले दिन मुझे कुछ काम नहीं था तो मैं ऐसे ही मित्तल सर के हॉस्पिटल की ओर चला गया। ये वापी का सबसे बड़ा प्राइवेट हॉस्पिटल था, और बहुत भीड़ रहती थी यहां पर।


वहां मैं कुछ देर बाहर खड़े हो कर नजर रख रहा था, तभी मुझे श्रेय की कार अंदर जाती दिखी तो मैं भी अंदर चला गया।


मेरे सामने लिफ्ट से श्रेय और शिविका ऊपर जाने वाले थे, लिफ्ट में और लोग भी थे, तो मैं भी उसी में चल गया। किस्मत से मैं और शिविका एक दूसरे के अगल बगल ही खड़े थे, मैं सामने देख रहा था, और उसकी नजर मुझ पर पड़ी, और वो मुझे ही देखती रही। फिर हम सब एक फ्लोर पर उतरे, ये हॉस्पिटल का आईसीयू फ्लोर था, इसमें दो तरफ आईसीयू यूनिट बने थे, दाईं तरफ जनरल आईसीयू, जहां साधारण लोग भर्ती होते थे, और बाएं तरफ VIP ward था, उसी में मित्तल सर को रखा गया था। उस तरफ पुलिस का पहरा था। मैं जनरल वार्ड की तरफ बढ़ गया। शिविका की नजर अभी भी मुझ पर ही थी।


जनरल वार्ड का वेटिंग हॉल सामने ही था, और वहां बैठ कर VIP वार्ड पर नजर रखी जा सकती थी। मैं ऐसी जगह देख कर बैठ गया जहां से मेरी नजर पूरे वार्ड पर रहती।


श्रेय और शिविका अंदर का चुके थे, मित्तल सर का कमरा सामने ही था। उनके कमरे के बाहर ही दो कांस्टेब तैनात थे और वो सबकी तलाशी ले कर ही अंदर जाने देते। श्रेय और शिविका की भी तलाशी हुई, ये मुझे कुछ अजीब लगा।


मैं वहां दोपहर तक बैठा रहा, श्रेय और शिविका आधे घंटे बाद चले गए थे। शिविका जाते समय भी इधर उधर सबको देख रही, शायद किसी को ढूंढ रही थी।



शायद मुझे?


दोपहर को मैं वहां से बाहर चला गया और खाना खा कर अपने होटल में जा कर आराम करने लगा। शाम 5 बजे मुझे समर ने फोन करके बताया कि वो नेहा के पापा को लेकर आ रहा है मेरे पास।


अंशुमान वर्मा, नेहा के पिता एक रिटायर सरकारी बैंक कर्मी थे। कोई 3 साल पहले ही वो रिटायर हुए थे, मतलब नेहा की शादी के एक साल बाद। समर मुझे उनसे एक दोस्त के रूप में, जो एक जर्नलिस्ट है, मिलवाने वाला था, ये बोलकर कि मैं इस घटना पर एक स्टोरी कर रहा हूं, उसी के सिलसिले में कुछ सवाल करने हैं।


एक घंटे बाद समर, अंशुमान वर्मा को लेकर मेरे रूम पर आ गया। मैने सबके लिए चाय का ऑर्डर किया, और कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद मैने उनसे ऐसे ही पूछ लिया


"सर, नेहा और संजीव की शादी तो आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी, फिर भी आप संजीव का अंतिम संस्कार करने क्यों आए।"


"किसने कहा कि संजीव और नेहा की शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई?".....
Suprb apdet
 
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Localmusafir

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लगता है शिविका को शक का कीड़ा खा गया है,
कही ये गुड नाल इश्क़ मीठा वाला तो मामला नहीं।

नेहा की शुरुआत ही झूठ की बुनियाद पे थी तो उसके झूठ पे आश्चर्य कैसा।

समर सचमुच यारों का यार है,
जैसा पहले कहा था ये त्रिमूर्ति कमाल करेगी।

अपडेट शानदार है,
माफी चाहता हु विलंब से पढ़ने के लिए
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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लगता है शिविका को शक का कीड़ा खा गया है,
कही ये गुड नाल इश्क़ मीठा वाला तो मामला नहीं।

नेहा की शुरुआत ही झूठ की बुनियाद पे थी तो उसके झूठ पे आश्चर्य कैसा।

समर सचमुच यारों का यार है,
जैसा पहले कहा था ये त्रिमूर्ति कमाल करेगी।

अपडेट शानदार है,
माफी चाहता हु विलंब से पढ़ने के लिए
अब तक तो मैने त्रिमूर्ति बनाने का नहीं सोचा था, पर अब संभावना तलाश करनी पड़ेगी 😂
 
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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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#अपडेट २९


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न्यूज में से अब इस केस पर से धीरे धीरे लोग का इंटरेस्ट कम होने लगा था, और न्यूज वाले भी अब इस न्यूज को ज्यादा नहीं दिखते थे। शेयर मार्केट में भी मित्तल ग्रुप के शेयर अब स्टेबल हो रहे थे। श्रेय और महेश अंकल ने अब कुछ पकड़ बना ली थी कंपनी पर।


दिन ऐसे ही बीत रहे थे...


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एक दिन बाबूजी मेरे पास आए और ऐसे ही बातों बातों में मुझसे कहा कि दाढ़ी वगैरा बनवा लो, अच्छा नहीं लगता है। तभी उनको देख कर मेरे दिमाग में एक ख्याल आया और जॉली भैया को बुलवा कर मैने उनसे कुछ कहा, वो बोले थोड़ा टाइम दो। उसके कुछ समय बाद वो एक आदमी के साथ आए। वो उनका बहुत खास जानने वाला था। एक मेकअप आर्टिस्ट। उसने मेरे हुलिया को थोड़ा दुरुस्त करके एक पग पहना दी। फिर जॉली भैया और बाबूजी ने मुझे देख कर बहुत खुश हुए और मेरे सामने आईना कर दिया, एक बार तो मैं खुद को ही नहीं पहचान पाया। इन दिनों मेरा वजन भी कुछ कम हो गया था तो मैं थोड़ा दुबला भी हो गया था। और इस हुलिए में मैं एक 20 21 साल के सिख युवक की तरह दिखने लगा था।


जॉली भैया ने उससे पूछा, "रमेश ये मेकअप कितनी देर रहेगा?"


"अरे जॉली भैया, ये कोई मेकअप नहीं है, ये तो इनकी नेचुरल दाढ़ी मूंछ है, तो ये जब तक इस पग को लगाए रहेंगे तो ऐसे ही दिखते रहेंगे।"


"मतलब ये कितनी भी देर तक ऐसा रह सकता है?"


"हां बस जब नहाएंगे तो मैं कुछ क्रीम देता हूं वो जरूर लगा लेंगे, जिससे स्किन का कलर जरा बदला सा रहेगा।" ये बोल कर उस आदमी ने दो तरह की क्रीम मुझे दी और उसे लगाने का तरीका भी बता दिया।


मैं फिर भी बहुत कॉन्फिडेंट नहीं था ऐसे निकलने में, तो बाबूजी ने मुझे अपने साथ लिया और अपने ढाबे के गल्ले पर बैठा दिया। एक दो लोग ने मेरे बारे में पूछा तो मुझे अपना भतीजा बता दिया। कुछ देर वहां बिताने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आया और मैं अकेले ही पूरी मार्केट घूम आया।


शाम तक वैसे ही रहने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आ गया, और मैने बाबूजी और जॉली भैया से वापस जाने की बात की।

जॉली भैया ने मुझे कुछ दिन और रुकने कहा, और वो मेरी एक दो फोटो भी खींच कर ले गए। बाबूजी ने मुझसे समर से बात करने कहा। मेरे भी दिमाग में था कि किसी तरह से नेहा के मां पिताजी से मिला जाय, क्योंकि ये गुत्थी बस वही सुलझा सकते थे कि ये बिट्टू कौन है।


रात को समर ने फोन किया, वो हर 2 4 दिन में मुझे अलग अलग नंबरों से कॉल करता था। ये उसकी खुद की सुरक्षा के लिए भी जरूरी था।


"हां मनीष कैसा है भाई?"


"कैसा होऊंगा? अच्छा एक बात बता, क्या किसी तरह से मैं नेहा के मां बाप से मिल कर बात कर सकता हूं?"


"क्यों मिलना है उनसे? और कैसे मिलोगे भाई, तुम्हारी तलाश पुलिस को आज भी है।"


"देखो समर, इसके पीछे जो भी है, वो नेहा से ही जुड़ा है। तो नेहा का पूरा पास्ट आना जरूरी है हमारे सामने, तभी कुछ गुत्थी सुलझाने के आसार बनेंगे। ऐसे यहां बैठे बैठे पूरी जिंदगी तो नहीं निकाल सकता न भाई। और अपने ऊपर आए दाग को भी हटाना जरूरी है।"


"बिल्कुल, पर कहां मिलोगे और कैसे मिलोगे?"


"वापी में बुला सकता है उनको?"


"तुम वापी आओगे?"


"हां आना ही पड़ेगा।"


"लेकिन?"


"बिना रिस्क लिए तो कुछ भी सही नहीं होगा न?"


"हां वो तो है। अच्छा एक काम करता हूं, नेहा के पापा का नंबर है मेरे पास, वो जब नेहा की बॉडी क्लेम करने आए थे तब उनसे लिया था। उन्होंने कहा था कि कोई संजीव की बॉडी न क्लेम करे तो उनको बताने। पर मुझे उस केस से ही हटा दिया तो मेरे दिमाग से भी उतर गया। चल बात करके बताता हूं तुझको, फिर उनके हिसाब से प्लान बना। और भाई सावधान रहना।"


" हां भाई, देख भाल कर ही आऊंगा।"


अगले दिन जॉली भईया ने मुझे मेरी नई पहचान के कुछ दस्तावेज बना कर दे दिए। वो इन सब का ही काम करते थे तो जाली दस्तावेज बनाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं था। अब मैं 22 साल का हरप्रीत सिंह था और दिल्ली के प्रीतमपुरा का रहने वाला था।


दो दिन बार समर ने मुझे कॉल करके बताया कि नेहा के पिताजी एक सप्ताह बाद वापी आ कर संजीव का क्रियाकर्म कर देंगे। उसने बताया कि उनका यही अंदाजा था कि कोई संजीव की बॉडी क्लेम करने नहीं आएगा उसके परिवार से, वैसे भी उसका बस एक ही भाई था,और वो भी लंदन में था।


जॉली भैया ने मेरे लिए नए नाम से ट्रेन में रिजर्वेशन करवा दिया वापी जाने के लिए, उनके पहुंचने के एक दिन पहले ही मैं वहां पहुंच गया। रास्ते भर मुझे अपने पहचाने जाने का डर था, मगर इस घटना को लगभग 2 महीने बीत गए थे, और न्यूज वालों ने इतने दिनों में बहुत मसाला दे दिया था लोगों को, मेरे साथ हुई दुर्घटना को भूलने का।


सुबह वापी पहुंच कर मैं होटल अशोक में चला गया जिसे जॉली भैया ने ही मेरे नाम से ऑनलाइन बुक किया था। ये एक मिडिल बजट का अच्छा होटल था। मैं अपने रूम में पहुंच कर फ्रेश हुआ, और नीचे उतर कर मार्केट के एक रेस्टोरेंट में नाश्ता करने पहुंचा। असल में मेरे और समर की मीटिंग यहीं होनी थी। मैने पहुंच कर देखा तो समर पहले से ही एक टेबल पर था, वहां भीड़ ज्यादा थी तो लोग टेबल शेयर कर रहे थे। मैं भी एक अजनबी की तरह ही उसके टेबल पर बैठ गया, और अपना ऑर्डर दे दिया। कुछ देर रुकने के बाद जब हमने देखा किसी की नजर हमपर नहीं है तो समर और मैने कुछ बात की।


उसने कहा कि वो कल शाम को नेहा के पिताजी को मेरे ही होटल में लेकर आएगा, और वहीं कमरे में ही हम दोनो बात करेंगे।


अगले दिन मुझे कुछ काम नहीं था तो मैं ऐसे ही मित्तल सर के हॉस्पिटल की ओर चला गया। ये वापी का सबसे बड़ा प्राइवेट हॉस्पिटल था, और बहुत भीड़ रहती थी यहां पर।


वहां मैं कुछ देर बाहर खड़े हो कर नजर रख रहा था, तभी मुझे श्रेय की कार अंदर जाती दिखी तो मैं भी अंदर चला गया।


मेरे सामने लिफ्ट से श्रेय और शिविका ऊपर जाने वाले थे, लिफ्ट में और लोग भी थे, तो मैं भी उसी में चल गया। किस्मत से मैं और शिविका एक दूसरे के अगल बगल ही खड़े थे, मैं सामने देख रहा था, और उसकी नजर मुझ पर पड़ी, और वो मुझे ही देखती रही। फिर हम सब एक फ्लोर पर उतरे, ये हॉस्पिटल का आईसीयू फ्लोर था, इसमें दो तरफ आईसीयू यूनिट बने थे, दाईं तरफ जनरल आईसीयू, जहां साधारण लोग भर्ती होते थे, और बाएं तरफ VIP ward था, उसी में मित्तल सर को रखा गया था। उस तरफ पुलिस का पहरा था। मैं जनरल वार्ड की तरफ बढ़ गया। शिविका की नजर अभी भी मुझ पर ही थी।


जनरल वार्ड का वेटिंग हॉल सामने ही था, और वहां बैठ कर VIP वार्ड पर नजर रखी जा सकती थी। मैं ऐसी जगह देख कर बैठ गया जहां से मेरी नजर पूरे वार्ड पर रहती।


श्रेय और शिविका अंदर का चुके थे, मित्तल सर का कमरा सामने ही था। उनके कमरे के बाहर ही दो कांस्टेब तैनात थे और वो सबकी तलाशी ले कर ही अंदर जाने देते। श्रेय और शिविका की भी तलाशी हुई, ये मुझे कुछ अजीब लगा।


मैं वहां दोपहर तक बैठा रहा, श्रेय और शिविका आधे घंटे बाद चले गए थे। शिविका जाते समय भी इधर उधर सबको देख रही, शायद किसी को ढूंढ रही थी।



शायद मुझे?


दोपहर को मैं वहां से बाहर चला गया और खाना खा कर अपने होटल में जा कर आराम करने लगा। शाम 5 बजे मुझे समर ने फोन करके बताया कि वो नेहा के पापा को लेकर आ रहा है मेरे पास।


अंशुमान वर्मा, नेहा के पिता एक रिटायर सरकारी बैंक कर्मी थे। कोई 3 साल पहले ही वो रिटायर हुए थे, मतलब नेहा की शादी के एक साल बाद। समर मुझे उनसे एक दोस्त के रूप में, जो एक जर्नलिस्ट है, मिलवाने वाला था, ये बोलकर कि मैं इस घटना पर एक स्टोरी कर रहा हूं, उसी के सिलसिले में कुछ सवाल करने हैं।


एक घंटे बाद समर, अंशुमान वर्मा को लेकर मेरे रूम पर आ गया। मैने सबके लिए चाय का ऑर्डर किया, और कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद मैने उनसे ऐसे ही पूछ लिया


"सर, नेहा और संजीव की शादी तो आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी, फिर भी आप संजीव का अंतिम संस्कार करने क्यों आए।"


"किसने कहा कि संजीव और नेहा की शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई?".....
बढिया अपडेट रिकी भाई 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
ई तो फिर से पंगा हुई गवा ससुर :sigh: संजीव ओर नेहा कि शादी सबकी रजामंदी से हुई थी:?:
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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#अपडेट ३०


अब तक आपने पढ़ा -


"सर, नेहा और संजीव की शादी तो आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी, फिर भी आप संजीव का अंतिम संस्कार करने क्यों आए।"


"किसने कहा कि संजीव और नेहा की शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई?".....


अब आगे -


ये एक नया बम फूटा था मेरे ऊपर, मगर मैने कोई हैरत नहीं दिखाई। समर ने मुझे पहले ही समझा दिया था कि कुछ भी सुनने को मिल सकता है, सबके लिए तैयार रहना।


"अच्छा, हमने तो बस ऐसे ही सुना था कि नेहा और संजीव का लव अफेयर था, और इस शादी से आप खुश नहीं थे।" मैने बात सम्हालने की कोशिश की।


"संजीव से उसकी शादी हमने ही करवाई थी, और नेहा के लव अफेयर से अजीज आ कर ही हमने संजीव को चुना था उसके लिए।" अंशुमान जी ने कहा।


समर, "आप अपनी और अपने परिवार के बारे में अच्छे से बताइए, इससे बहुत कुछ क्लियर होगा।"


"हां, ये सही रहेगा।" मैने भी समर की बात का समर्थन करते हुए कहा।


"हम चार लोग का परिवार है, अब तो था हो गया है।" उन्होंने उदासी भरे अंदाज में कहना शुरू किया, "मैं, मेरी पत्नी रीमा, बड़ा बेटा निशांत और बेटी नेहा। छोटी होने के कारण वो बहुत लाड़ प्यार में पली, और शायद उसी से बिगड़ भी गई।"


नेहा का बड़ा भाई, एक और झूठ या कहीं की पूरा सच नहीं बताया।


"मेरा पुश्तैनी घर उज्जैन के पास ही एक गांव सेमरी में है, मेरी नौकरी तबादले वाली है तो जब दोनों बच्चे पढ़ने के काबिल हुए तो रीमा ने उज्जैन में रह कर दोनों को पढ़ने का निर्णय लिया। अब मैं अपनी नौकरी के सिलसिले में इधर उधर रहने लगा, और दोनो बच्चे रीमा के साथ रह कर पढ़ने लगे। फिर मैने दिल्ली में रह कर अपना प्रमोशन लेना बंद कर दिया, जिससे करीब 7 8 साल मैं वहीं रहा, उधर बच्चे बड़े हो रहे थे, निशांत और नेहा में 4 साल का अंतर है, जब नेहा बारवीं में आई, तब तक निशांत ग्रेजुएशन करके IIM इंदौर से MBA करना शुरू कर चुका था। उसी समय रीमा की तबियत अच्छी नहीं रहने लगी, उसे जोड़ों के दर्द की समस्या शुरू हो गई और कुछ सांस की दिक्कत भी होने लगी , जिससे वो नेहा पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती थी, पर दोनों बच्चे पढ़ने में बहुत काबिल थे, इसीलिए ज्यादा ध्यान की जरूरत भी नहीं लगी हमें। नेहा ने उसी कॉलेज में एडमिशन लिया जिसमें से निशांत ने graduation की थी। जब निशांत का MBA पूरा हुआ, तो उसकी नौकरी एक बड़ी फर्म में लग चुकी थी, और वो कुछ समय के लिए उज्जैन गया था, इस समय नेहा सेकंड ईयर में आ चुकी थी। निशांत के बहुत कॉन्टेक्ट थे उस कॉलेज में, तो एक दिन उसके किसी जानने वाले ने बताया कि नेहा कुछ गलत लोगों के संपर्क में आ गई है, और अच्छा होगा कि हम उसे उज्जैन से कहीं बाहर भेज दें। निशांत ने मुझसे बात की, और अब चूंकि बच्चे भी सैटल हो रहे थे, तो मैंने रीमा को बता कर अपना ट्रांसफर देहरादून ले किया, जिससे नेहा भी उस संगत से दूर हो, रीमा को भी अच्छी आबोहवा मिले, और मैं भी परिवार के साथ रहने लगूं।


नेहा ने पहले तो बहुत विरोध किया इस बात का, मगर निशांत के समझाने पर वो मान गई, इधर मेरी भी कई बड़े लोगों से जान पहुंच थी, बैंक में काम करने के कारण, तो मैने भी सोर्स लगवा कर नेहा का कॉलेज ट्रांसफर ले लिया। एक साल देहरादून में शांति से गुजरे, नेहा की भी कोई शिकायत नहीं आई।"


"पर कैसी गलत सोहबत में वो पड़ गई थी? निशांत ने कभी बोला नहीं आपको?" मैने टोकते हुए पूछा।


"वो कुछ आवारा दोस्त बन गए थे उसके, कुछ उसकी ही क्लास के कुछ सीनियर भी। और वो लोग शराब और पार्टी वगैरा भी करने लगे थे। कुछ तो गर्ल फ्रेंड बॉय फ्रेंड भी थे। मतलब आप समझ रहे हैं न?"


"जी, समझ गया, तो क्या नेहा का भी कोई बाय फ्रेंड था वहां?"


"पता नहीं, पर कोई खास दोस्त तो था, क्योंकि वो घर अक्सर लेट भी आती थी, और कई सारे गिफ्ट भी मिले थे उसे। लेकिन रीमा ने कभी किसी लड़के के साथ उसे आते जाते नहीं देखा था, बस एक लड़की ही हमेशा आती थी।"


"फिर क्या हुआ?"


"ग्रेजुएशन करने के बाद नेहा ने दिल्ली से MBA करने को कहा। लेकिन हमने उसका एडमिशन वहीं के एक अच्छे कॉलेज में करवा दिया। वो अक्सर प्रोजेक्ट्स और ट्रेनिंग के सिलसिले में दिल्ली आती जाती रहती थी। MBA खत्म होने से पहले निशांत भी दिल्ली आ चुका था, और वहां पर उसे फिर से नेहा की कुछ हरकतों का पता चला कि वो किसी दो तीन लोग के ग्रुप से ही मिलती है, और कोई ट्रेनिंग वगैरा नहीं होती। ये सुन कर पूरा परिवार एक बार फिर गुस्सा हो गया, और इस बार मैने उसकी शादी कराने की ही ठान ली। संजीव हमारे घर के पास ही रहता था, देखने में अच्छा और फौज की नौकरी भी थी उसकी। घर में कोई नहीं था, जब हम देहरादून गए थे तब उसकी मां थी वहां, मगर कुछ दिनों के बाद वो भी चल बसी। लेकिन हमारे संबंध अच्छे बन गए थे उनसे। बड़ा बेटा अलग हो चुका था, और संजीव ही उनके साथ था। वो भी नेहा को पसंद करता था।"


एक सांस ले कर उन्होंने आगे बोलना शुरू किया। "जब हमने उनकी शादी तय की तो नेहा ने बहुत तमाशा किया, लेकिन हम सबकी जोर जबरदस्ती से शादी हो गई। और संजीव उसे ले कर अपनी पोस्टिंग पर चला गया। अक्सर हमारी बात दोनो से होती थी और दोनों खुश ही लगे हमे। फिर करीब छह महीने बाद पता नहीं क्या हुआ कि संजीव को सेना से निकला बाहर कर दिया। और दोनो वापस देहरादून आ गए। यहां आ कर नेहा और संजीव छोटी मोटी नौकरी करने लगे। फिर कुछ दिन बाद दोनों की नौकरी उसी चिट फंड कंपनी में लग गई, और वो भी 3 4 महीने बाद फ्रॉड करके भाग गई। कंपनी का ऑफिस संजीव के ही नाम पर लिया गया था, और नेहा को मैनेजर बना दिया गया था। तो लोगों की कंप्लेन पर दोनो को पुलिस ने पकड़ लिया, नेहा एक महीने बाद ही बाहर निकल आई, कैसे वो हमको भी नहीं पता। लेकिन संजीव एक साल बाद बाहर हुआ, और उसके बाद से ही दोनों के बीच कुछ सही नहीं रहा। कुछ दिन पहले ही खुद नेहा ने मुझे मित्तल सर से बात करके यहां नौकरी के लिए बोला, तो मेरी बात पर उन्होंने उसे रख लिया। बाकी का तो आप सबको पता ही है।"। ये सब बोलते बोलते उनकी आंखे भीग चुकी थी।


मैने उनके हाथ को पकड़ लिया।


"बेटा जितना अच्छा निकला, बेटी ने मुझे उतना ही निराश किया। पता नहीं हम पति पत्नी ने कहां चूक कर दी उसके लालन पालन में। किसकी सोहबत में वो ऐसी बन गई कुछ समझ नहीं आता। संजीव भी बहुत अच्छा हुआ करता था, पर उसकी भी जिंदगी शायद मेरे ही कारण बर्बाद हुई।"


"संजीव को सेना से क्यों निकाला गया?" मैने फिर से उनसे पूछा।


"आरोप लगा कि उसने दारू पी कर अपने किसी सीनियर की बीवी के साथ बतमीजी कर दी थी, और बहुत नशे में था वो। पर जब मैने उससे पूछा, तो उसका कहना था कि उसने तो बस दो या तीन पैग ही पीए थे, जो नॉर्मल था, पर एकदम से क्या हुआ, उसे भी समझ नहीं आया। और उसे कुछ याद भी नहीं था कि क्या हुआ था उस समय।"


"और नेहा का क्या रिएक्शन था उस बात पर?" अब समर ने सवाल।किया।


"नेहा ने तो संजीव का बहुत साथ दिया। वो थी तो उस पार्टी में ही, मगर जब वो कांड हुआ, उस समय वो भी वाशरूम में थी। संजीव पर उसे भरोसा था। और उसने संजीव की ही बात मानी। उस बात से हम सबको बहुत राहत मिली कि अब दोनों के बीच सब सही रहेगा। फिर वो वापस देहरादून आ गए, वहां कुछ दिन बाद दोनों ने वो चिटफंड कंपनी ज्वाइन की, और वो जेल वाला कांड हुआ। संजीव का कहना था कि नेहा खुद तो एक महीने में ही बाहर हो गई, और उसको बाहर करने की कोई कोशिश नहीं की। इसी बात पर दोनो के बीच तनाव बढ़ा और बात तलाक तक पहुंच गई, इसी बीच नेहा ने ही मुझे एक दिन मित्तल साहब से बात करके यहां काम करने को कहा।"


" वो चिटफंड कंपनी किसकी थी?" समर ने पूछा


"पुलिस ये कभी पता ही नहीं कर पाई, संजीव का कहना था कि कोई सतनाम सिंह नाम का सरदार था, जिससे नेहा ने ही उसे मिलवाया था। और वही उसका मालिक था, मगर उसके कागजात फर्जी निकले, पैसा भी कई अकाउंट्स से घुमाया गया तो किसके पास गया वो पैसा, पता ही नहीं चल पाया।"


"उज्जैन में उसकी संगत किन लोगों के साथ थी वो नहीं पूछा आपने? और दिल्ली में किन लोग से मिलती थी, वो सब अपने नहीं पता किया?" इस बार मैने पूछा।


"बेटा मैं अपनी नौकरी में और मेरी पत्नी की बीमारी के चलते ज्यादा तो नहीं पता कर पाए, लेकिन निशांत को भी ये सारी जानकारी उसके बहुत अच्छे जानने वालों ने ही दी थी, और उसने नेहा से इस बारे में पूछा तो उसने अपनी गलती मानते हुए उससे माफी मांग ली, और दुबारा उन लोगों से न मिलने की कसम भी खाई। इसीलिए उसने भी ज्यादा जानकारी नहीं ली।"


अब हमारे पास ज्यादा कुछ पूछने को था नहीं। तो समर उनको लेकर चला गया।


नेहा ने मुझसे कितने झूठ बोले थे उसका कोई अंत नहीं था, न सिर्फ शादी, बल्कि अपने प्यार, और यहां तक की अपने भाई के बारे में भी। मैं यही सब विचार करते हुए डिनर का ऑर्डर दे दिया।


थोड़ी देर बाद समर भी वापस आया, और हम डिनर पर इस बात पर विचार करने लगे कि आगे क्या किया जाय।


समर ने कहा कि वो उज्जैन जाएगा, आगे का पता करने। उसने मुझे जाने से रोका, क्योंकि वो पुलिस वाला था, इसीलिए वो जानकारी आराम से निकलवा सकता था। दूसरा उसका घर भी इंदौर में ही था तो उसने छुट्टी भी ली हुई थी वहां जाने के लिए तो उसका भी उपयोग कर लेगा वो।




फिर यही तय हुआ, और अगले दिन शाम में उसको निकलना था। अगला दिन भी होटल में रह कर ही बिताया मैने, समर ने मुझे ज्यादा बाहर न घूमने की सलाह दी थी। शाम को जाने से पहले वो मुझसे मिलने आया, और जाते जाते उसने मुझे एक चिट्ठी पकड़ाई....
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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New update with new theory

Romanchak Pratiksha agle rasprad update ki

Bahut hi shaandar update diya hai Riky007 bhai....
Nice and lovely update....

अब परतें खुलनी शुरू हुई
नेहा का पहला झूठ कि पिता की मर्ज़ी के खिलाफ शादी हुई

देखते हैं और क्या पता चलता है नेहा के पिता से

Chalo bhesh badla hai to kuchh pata chal jaye ise, shivika ne ise lagbhag pahchaan hi liya hai bahut yarana lagta hai

Chalo ye to acha hua in 2 mahino me Manish ne shave na karke acha kia is bahane Manish ka get up acha ban gaya Sardar wala
.
New get ki wajh se ab Manish sbke samne reh ke bhi kisi ke samne nahi hai
Lekin Hospital me aane ke bad Shrey or Shivika ko dekh to leya Manish ne lekin esa lagata hai Jaise Shivika ne jis trh Manish ko dekha lift me sardar wale get up me shyad Shivika ya to use pechanne ki koshish kar rhe hai ya fir pechan gaye hai
Or agar pechan gaye hai shyad Shrey ke sath hone ki wajh se kuch bol nahi rhe
Ya
Esa ho sakta hai shyad ye mera dout ho
.
Kher ab dekhte hai Manish apne dost Samar ki help Neha ke Pita se milne jaa raha hai dekhte hai kya jankari milti hai Manish ko
.
Behtreen update Riky007 bhai
.
Such me jitne thinking 🤔 🤔 lagaooo is mamle me kam he hai

Awesome update
Manish वेश बदल कर वापी आ गया और छानबीन में।लग गया है और नेहा के पिता जी बात की शुरुआत में।ही पहला झटका दे दिया कि संजीव और नेहा के शादी उनकी रजामंदी के बिना नहीं हुई,

Nice update....

पहले ही कहा था - झूठ का पुलिंदा थी नेहा।
भोले बलम बोल बोल कर इस नाड़े के ढीले आदमी का चूतिया बना दीहीस।
बिट्टू जैसे चूतिया नाम वाले से जिसका चक्कर हो, वो औरत तो बहुत ही चूतिया होगी। लेकिन ये नेहा कमीनी भी थी।

Nice update....

Lagta hai aap bhi chot kha chuke hain, koi na main bhi kha chuka hoon, isliye maine ladki se dosti karna hi chhod diya.

Bahut hi badhiya update he Riky007

Manish bhesh badalkar wapis vapi aa gaya........

Neha ke pita ne to aaur bhi chauka diya.........Neha aur Sanjiv ki shadi unki hi marji se huyi thi..........

Na jaane aur kitne bomb fodne wali he ye neha ki story manish par.........

Keep rocking Bro

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
नेहा के पिता से पहला ही जवाब सकारात्मक मिला
तो देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

Suprb apdet

लगता है शिविका को शक का कीड़ा खा गया है,
कही ये गुड नाल इश्क़ मीठा वाला तो मामला नहीं।

नेहा की शुरुआत ही झूठ की बुनियाद पे थी तो उसके झूठ पे आश्चर्य कैसा।

समर सचमुच यारों का यार है,
जैसा पहले कहा था ये त्रिमूर्ति कमाल करेगी।

अपडेट शानदार है,
माफी चाहता हु विलंब से पढ़ने के लिए

बढिया अपडेट रिकी भाई 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
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अपडेट पोस्टेड 🙏🏼
 
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parkas

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#अपडेट ३०


अब तक आपने पढ़ा -


"सर, नेहा और संजीव की शादी तो आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी, फिर भी आप संजीव का अंतिम संस्कार करने क्यों आए।"


"किसने कहा कि संजीव और नेहा की शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई?".....


अब आगे -


ये एक नया बम फूटा था मेरे ऊपर, मगर मैने कोई हैरत नहीं दिखाई। समर ने मुझे पहले ही समझा दिया था कि कुछ भी सुनने को मिल सकता है, सबके लिए तैयार रहना।


"अच्छा, हमने तो बस ऐसे ही सुना था कि नेहा और संजीव का लव अफेयर था, और इस शादी से आप खुश नहीं थे।" मैने बात सम्हालने की कोशिश की।


"संजीव से उसकी शादी हमने ही करवाई थी, और नेहा के लव अफेयर से अजीज आ कर ही हमने संजीव को चुना था उसके लिए।" अंशुमान जी ने कहा।


समर, "आप अपनी और अपने परिवार के बारे में अच्छे से बताइए, इससे बहुत कुछ क्लियर होगा।"


"हां, ये सही रहेगा।" मैने भी समर की बात का समर्थन करते हुए कहा।


"हम चार लोग का परिवार है, अब तो था हो गया है।" उन्होंने उदासी भरे अंदाज में कहना शुरू किया, "मैं, मेरी पत्नी रीमा, बड़ा बेटा निशांत और बेटी नेहा। छोटी होने के कारण वो बहुत लाड़ प्यार में पली, और शायद उसी से बिगड़ भी गई।"


नेहा का बड़ा भाई, एक और झूठ या कहीं की पूरा सच नहीं बताया।


"मेरा पुश्तैनी घर उज्जैन के पास ही एक गांव सेमरी में है, मेरी नौकरी तबादले वाली है तो जब दोनों बच्चे पढ़ने के काबिल हुए तो रीमा ने उज्जैन में रह कर दोनों को पढ़ने का निर्णय लिया। अब मैं अपनी नौकरी के सिलसिले में इधर उधर रहने लगा, और दोनो बच्चे रीमा के साथ रह कर पढ़ने लगे। फिर मैने दिल्ली में रह कर अपना प्रमोशन लेना बंद कर दिया, जिससे करीब 7 8 साल मैं वहीं रहा, उधर बच्चे बड़े हो रहे थे, निशांत और नेहा में 4 साल का अंतर है, जब नेहा बारवीं में आई, तब तक निशांत ग्रेजुएशन करके IIM इंदौर से MBA करना शुरू कर चुका था। उसी समय रीमा की तबियत अच्छी नहीं रहने लगी, उसे जोड़ों के दर्द की समस्या शुरू हो गई और कुछ सांस की दिक्कत भी होने लगी , जिससे वो नेहा पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती थी, पर दोनों बच्चे पढ़ने में बहुत काबिल थे, इसीलिए ज्यादा ध्यान की जरूरत भी नहीं लगी हमें। नेहा ने उसी कॉलेज में एडमिशन लिया जिसमें से निशांत ने graduation की थी। जब निशांत का MBA पूरा हुआ, तो उसकी नौकरी एक बड़ी फर्म में लग चुकी थी, और वो कुछ समय के लिए उज्जैन गया था, इस समय नेहा सेकंड ईयर में आ चुकी थी। निशांत के बहुत कॉन्टेक्ट थे उस कॉलेज में, तो एक दिन उसके किसी जानने वाले ने बताया कि नेहा कुछ गलत लोगों के संपर्क में आ गई है, और अच्छा होगा कि हम उसे उज्जैन से कहीं बाहर भेज दें। निशांत ने मुझसे बात की, और अब चूंकि बच्चे भी सैटल हो रहे थे, तो मैंने रीमा को बता कर अपना ट्रांसफर देहरादून ले किया, जिससे नेहा भी उस संगत से दूर हो, रीमा को भी अच्छी आबोहवा मिले, और मैं भी परिवार के साथ रहने लगूं।


नेहा ने पहले तो बहुत विरोध किया इस बात का, मगर निशांत के समझाने पर वो मान गई, इधर मेरी भी कई बड़े लोगों से जान पहुंच थी, बैंक में काम करने के कारण, तो मैने भी सोर्स लगवा कर नेहा का कॉलेज ट्रांसफर ले लिया। एक साल देहरादून में शांति से गुजरे, नेहा की भी कोई शिकायत नहीं आई।"


"पर कैसी गलत सोहबत में वो पड़ गई थी? निशांत ने कभी बोला नहीं आपको?" मैने टोकते हुए पूछा।


"वो कुछ आवारा दोस्त बन गए थे उसके, कुछ उसकी ही क्लास के कुछ सीनियर भी। और वो लोग शराब और पार्टी वगैरा भी करने लगे थे। कुछ तो गर्ल फ्रेंड बॉय फ्रेंड भी थे। मतलब आप समझ रहे हैं न?"


"जी, समझ गया, तो क्या नेहा का भी कोई बाय फ्रेंड था वहां?"


"पता नहीं, पर कोई खास दोस्त तो था, क्योंकि वो घर अक्सर लेट भी आती थी, और कई सारे गिफ्ट भी मिले थे उसे। लेकिन रीमा ने कभी किसी लड़के के साथ उसे आते जाते नहीं देखा था, बस एक लड़की ही हमेशा आती थी।"


"फिर क्या हुआ?"


"ग्रेजुएशन करने के बाद नेहा ने दिल्ली से MBA करने को कहा। लेकिन हमने उसका एडमिशन वहीं के एक अच्छे कॉलेज में करवा दिया। वो अक्सर प्रोजेक्ट्स और ट्रेनिंग के सिलसिले में दिल्ली आती जाती रहती थी। MBA खत्म होने से पहले निशांत भी दिल्ली आ चुका था, और वहां पर उसे फिर से नेहा की कुछ हरकतों का पता चला कि वो किसी दो तीन लोग के ग्रुप से ही मिलती है, और कोई ट्रेनिंग वगैरा नहीं होती। ये सुन कर पूरा परिवार एक बार फिर गुस्सा हो गया, और इस बार मैने उसकी शादी कराने की ही ठान ली। संजीव हमारे घर के पास ही रहता था, देखने में अच्छा और फौज की नौकरी भी थी उसकी। घर में कोई नहीं था, जब हम देहरादून गए थे तब उसकी मां थी वहां, मगर कुछ दिनों के बाद वो भी चल बसी। लेकिन हमारे संबंध अच्छे बन गए थे उनसे। बड़ा बेटा अलग हो चुका था, और संजीव ही उनके साथ था। वो भी नेहा को पसंद करता था।"


एक सांस ले कर उन्होंने आगे बोलना शुरू किया। "जब हमने उनकी शादी तय की तो नेहा ने बहुत तमाशा किया, लेकिन हम सबकी जोर जबरदस्ती से शादी हो गई। और संजीव उसे ले कर अपनी पोस्टिंग पर चला गया। अक्सर हमारी बात दोनो से होती थी और दोनों खुश ही लगे हमे। फिर करीब छह महीने बाद पता नहीं क्या हुआ कि संजीव को सेना से निकला बाहर कर दिया। और दोनो वापस देहरादून आ गए। यहां आ कर नेहा और संजीव छोटी मोटी नौकरी करने लगे। फिर कुछ दिन बाद दोनों की नौकरी उसी चिट फंड कंपनी में लग गई, और वो भी 3 4 महीने बाद फ्रॉड करके भाग गई। कंपनी का ऑफिस संजीव के ही नाम पर लिया गया था, और नेहा को मैनेजर बना दिया गया था। तो लोगों की कंप्लेन पर दोनो को पुलिस ने पकड़ लिया, नेहा एक महीने बाद ही बाहर निकल आई, कैसे वो हमको भी नहीं पता। लेकिन संजीव एक साल बाद बाहर हुआ, और उसके बाद से ही दोनों के बीच कुछ सही नहीं रहा। कुछ दिन पहले ही खुद नेहा ने मुझे मित्तल सर से बात करके यहां नौकरी के लिए बोला, तो मेरी बात पर उन्होंने उसे रख लिया। बाकी का तो आप सबको पता ही है।"। ये सब बोलते बोलते उनकी आंखे भीग चुकी थी।


मैने उनके हाथ को पकड़ लिया।


"बेटा जितना अच्छा निकला, बेटी ने मुझे उतना ही निराश किया। पता नहीं हम पति पत्नी ने कहां चूक कर दी उसके लालन पालन में। किसकी सोहबत में वो ऐसी बन गई कुछ समझ नहीं आता। संजीव भी बहुत अच्छा हुआ करता था, पर उसकी भी जिंदगी शायद मेरे ही कारण बर्बाद हुई।"


"संजीव को सेना से क्यों निकाला गया?" मैने फिर से उनसे पूछा।


"आरोप लगा कि उसने दारू पी कर अपने किसी सीनियर की बीवी के साथ बतमीजी कर दी थी, और बहुत नशे में था वो। पर जब मैने उससे पूछा, तो उसका कहना था कि उसने तो बस दो या तीन पैग ही पीए थे, जो नॉर्मल था, पर एकदम से क्या हुआ, उसे भी समझ नहीं आया। और उसे कुछ याद भी नहीं था कि क्या हुआ था उस समय।"


"और नेहा का क्या रिएक्शन था उस बात पर?" अब समर ने सवाल।किया।


"नेहा ने तो संजीव का बहुत साथ दिया। वो थी तो उस पार्टी में ही, मगर जब वो कांड हुआ, उस समय वो भी वाशरूम में थी। संजीव पर उसे भरोसा था। और उसने संजीव की ही बात मानी। उस बात से हम सबको बहुत राहत मिली कि अब दोनों के बीच सब सही रहेगा। फिर वो वापस देहरादून आ गए, वहां कुछ दिन बाद दोनों ने वो चिटफंड कंपनी ज्वाइन की, और वो जेल वाला कांड हुआ। संजीव का कहना था कि नेहा खुद तो एक महीने में ही बाहर हो गई, और उसको बाहर करने की कोई कोशिश नहीं की। इसी बात पर दोनो के बीच तनाव बढ़ा और बात तलाक तक पहुंच गई, इसी बीच नेहा ने ही मुझे एक दिन मित्तल साहब से बात करके यहां काम करने को कहा।"


" वो चिटफंड कंपनी किसकी थी?" समर ने पूछा


"पुलिस ये कभी पता ही नहीं कर पाई, संजीव का कहना था कि कोई सतनाम सिंह नाम का सरदार था, जिससे नेहा ने ही उसे मिलवाया था। और वही उसका मालिक था, मगर उसके कागजात फर्जी निकले, पैसा भी कई अकाउंट्स से घुमाया गया तो किसके पास गया वो पैसा, पता ही नहीं चल पाया।"


"उज्जैन में उसकी संगत किन लोगों के साथ थी वो नहीं पूछा आपने? और दिल्ली में किन लोग से मिलती थी, वो सब अपने नहीं पता किया?" इस बार मैने पूछा।


"बेटा मैं अपनी नौकरी में और मेरी पत्नी की बीमारी के चलते ज्यादा तो नहीं पता कर पाए, लेकिन निशांत को भी ये सारी जानकारी उसके बहुत अच्छे जानने वालों ने ही दी थी, और उसने नेहा से इस बारे में पूछा तो उसने अपनी गलती मानते हुए उससे माफी मांग ली, और दुबारा उन लोगों से न मिलने की कसम भी खाई। इसीलिए उसने भी ज्यादा जानकारी नहीं ली।"


अब हमारे पास ज्यादा कुछ पूछने को था नहीं। तो समर उनको लेकर चला गया।


नेहा ने मुझसे कितने झूठ बोले थे उसका कोई अंत नहीं था, न सिर्फ शादी, बल्कि अपने प्यार, और यहां तक की अपने भाई के बारे में भी। मैं यही सब विचार करते हुए डिनर का ऑर्डर दे दिया।



थोड़ी देर बाद समर भी वापस आया, और हम डिनर पर इस बात पर विचार करने लगे कि आगे क्या किया जाय।


समर ने कहा कि वो उज्जैन जाएगा, आगे का पता करने। उसने मुझे जाने से रोका, क्योंकि वो पुलिस वाला था, इसीलिए वो जानकारी आराम से निकलवा सकता था। दूसरा उसका घर भी इंदौर में ही था तो उसने छुट्टी भी ली हुई थी वहां जाने के लिए तो उसका भी उपयोग कर लेगा वो।





फिर यही तय हुआ, और अगले दिन शाम में उसको निकलना था। अगला दिन भी होटल में रह कर ही बिताया मैने, समर ने मुझे ज्यादा बाहर न घूमने की सलाह दी थी। शाम को जाने से पहले वो मुझसे मिलने आया, और जाते जाते उसने मुझे एक चिट्ठी पकड़ाई....
Bahut hi badhiya update diya hai Riky007 bhai....
Nice and beautiful update....
 
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