#अपडेट ७
अब तक आपने पढ़ा -
"दोस्त कहती हो और बातें भी छुपाती हो?" मैने सपाट भाव से पूछा।
"कौन सी बात छुपाई मैने?" उसने भी आश्चर्य से कहा।
"यही की तुम शादीशुदा हो।"
ये सुन कर वो मुझे गौर से देखने लगी...
अब आगे -
फिर जो जोर जोर से हंसने लगी
"हाहाहा, तो इसलिए आप मुझसे नाराज थे? अच्छा एक बात बताइए, कभी हमारे बीच ऐसी कोई बात हुई क्या? कभी हमने एक दूसरे की निजी जिंदगी के बारे में पूछा कुछ एक दूसरे से? ऐसा नहीं है कि मैं ये बात छुपाना चाहती थी, बस कभी बात ही नहीं हुई अपनी इस बारे में।"
ये सुन कर मैं सोच में पड़ गया, वाकई कभी मैने उससे उसकी निजी जिंदगी के बारे में नहीं पूछा, फिर उसके छुपाने का तो कोई सवाल ही नहीं था, लेकिन सुहाग की निशानियों का क्या? या वो अल्ट्रा माडर्न है जो ये सब नहीं लगना चाहती?
"पर तुमको देख कर लगता भी नहीं कि तुम शादीशुदा हो, आई मीन कोई सुहाग की निशानी वगैरा?"
मेरा ये सवाल सुन कर उसके चेहरे पर एक दर्द सा उभरा, "दरअसल मनीष, मेरी शादी अब बस नाम की ही है, बल्कि शायद कुछ दिनों में तलाक भी फाइनल हो जाय।"
"क्या मतलब?"
"मेरे पापा बैंक में थे, वो पहले दिल्ली में पोस्टेड थे, फिर उनका ट्रांसफर देहरादून हो गया। जब हम वहां गए तो उस समय मेरी उम्र लगभग 17 साल थी, अल्हड़ उम्र थी वो, बड़ी जल्दी ही किसी के भी प्रति आकर्षित हो जाती है इस उम्र में लड़कियां। मेरे साथ भी ऐसा हुआ, कैप्टन संजीव जो हमारे घर के पास ही रहते थे, और उम्र में मुझसे लगभग 10 साल बड़े थे, मैं उनकी ओर ऐसा आकर्षित हुई कि तीन साल बाद उनसे शादी कर बैठी। मेरे घर वाले इसके खिलाफ थे, मेरे पापा तो खास कर। जैसा होता है, कुछ दिनों तक तो मैं इश्क की खुमारी में थी, कुछ पता ही नहीं चला। फिर धीरे धीरे पता चला कि संजीव को शराब पीने की लत थी, और साथ में वो बहुत ही शॉर्ट टेंपरेड थे। सेना में कई बार उनको वार्निंग मिल चुकी थी। फिर एक दिन वो अपने सीनियर की पत्नी के साथ नशे में बदतमीजी कर दिए, और साथ में उसी सीनियर से मार पीट भी कर ली, तो सेना ने उन्हें बर्खास्त करके निकल दिया। फिर घर पर भी उनका वही रवईया शुरू हो गया, शराब पीना, मुझ पर गुस्सा दिखाना, कुछ काम भी नहीं करना। घर खर्च के लिए मैने नौकरी भी की तो उसमें भी उनको गलत दिखने लगा।" अब उसकी आंखों में आंसु भर चुके थे, मैं भी उसकी ये बातें सुन कर अपना गुस्सा भूल चुका था।
"उसने मुझ पर बदचलनी का भी आरोप लगा दिया, मार पीट तो रोज का किस्सा बन चुकी थी। नर्क बना दी थी उसने मेरी जिंदगी। फिर एक दिन मैं पापा के घर वापस चली गई। लेकिन फिर भी उसने मेरा जीना हरम कर रखा था। पापा के कहने पर ही मैने उससे डाइवोर्स लेने का फैसला किया, पुलिस में कंप्लेन भी की, लेकिन वो पीछे ही पड़ा था मेरे फिर पापा ने मित्तल अंकल से बात करके मेरी जॉब यह करवा दी।।" अब तक वो सुबकने लगी थी।
मैं तुरंत अंदर से पानी लेकर उसे पिलाया, और उसके कंधे पर हाथ रख कर, "I'm sorry नेहा, मुझे नहीं पता था कि तुमने इतना झेला है।"
"सच बताऊं मनीष, पिछले एक हफ्ते से तुम्हारे साथ रह कर मैं अपनी उस नर्क जैसी जिंदगी को लगभग भूल ही गई थी। शायद इसी कारण मैं इस बात को नहीं बता पाई तुमको।" ये बोल कर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।
मैने भी भाववेश ने उसके गाल पर हाथ रख दिया।
"ओह सॉरी, गलती से हो गया ये।" मैने अपना हाथ वापस खींचते हुए कहा।
उसने मुस्कुराते हुए मेरे गालों को भी सहला दिया, "कोई बात नहीं, तुमको इतना फॉर्मल होने की जरूरत नहीं है।"
"वैसे अब भी जनाब को गुस्सा है क्या?"
"नहीं, अब कैसे गुस्सा हो सकता हूं? कितना झेल है तुमने।"
"नहीं, तुमको भी गुस्सा होने का पूरा हक है, आखिर हम दोस्त हैं। हैं न?" उसने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा, उसकी आँखें शरारत से चमक रही थी।
"बिलकुल दोस्त हैं।"
"बस, या दोस्त से भी बढ़ कर?"
"मतलब??" मैने थोड़ा आश्चर्य से उसकी ओर देखा।
"मतलब बेस्ट फ्रेंड। और क्या समझा तुमने बुद्धू?" उसने हंसते हुए कहा।
"हां बिल्कुल। हम बेस्ट फ्रेंड है अब से।"
"चलो अब सोते हैं। गुड नाइट।" उसने मेरे गाल को सहलाते हुए कहा।
"गुड नाइट।"
हम अपने अपने कमरों में जा कर सो गए। आज मुझे अच्छे से नींद आई, दिल से एक बोझ सा उतर गया था।
सुबह मेरी नींद जल्दी खुल गई, तो मैं जिम चला गया, एक घंटे पसीना बहाने के बाद जब मैं गार्डन में आया तो धूप खिली हुई थी आज, और मनोज जी, जो फॉर्महाउस के केयरटेकर थे, वो स्विमिंग पूल में ताजा पानी डाल रहे थे।
"गुड मॉर्निंग मनीष बाबा।" वो भी मुझे मित्तल सर के बच्चों जैसा ही मानते थे।
"गुड मॉर्निंग मनोज अंकल, कैसे हैं आप?"
"बढ़िया हूं मनीष बाबा, क्या आप पुल में नहाएंगे, पानी ताजा है, तो अभी गर्म ही है हल्का।"
"बिलकुल." ये बोल कर मैं अपने कपड़े निकाल कर एक अंडरवियर में पूल में उतर गया। तब तक मनोज अंकल भी टॉवेल और बाथ रोब रख कर अंदर के काम देखने चले गए। वैसे भी फॉर्महाउस में जब कोई स्विमिंग पूल में रहता था तो कोई भी स्टाफ का मेंबर इधर नहीं आता था।
थोड़ी देर के बाद ही नेहा भी गार्डन में आ गई, उसने अपने रात वाले कपड़े के ऊपर एक शॉल डाली हुई थी।
"गुड मॉर्निंग।"
"गुड मॉर्निंग नेहा, कैसी नींद आई रात को?"
"बिलकुल अच्छी नींद आई, मुझे मेरा बेस्ट फ्रेंड जो वापस मिल गया है।"
ये बोल कर वो पूल के किनारे ही टहलने लगी, मैं भी उसके साथ में चारों ओर तैरता हुआ उससे बातें करने लगा। एक दो बार मैने उससे भी पुल में आने को कहा, मगर उसने मना कर दिया।
ऐसे ही बातें करते कुछ समय बाद मैंने नेहा से हाथ देकर मुझे बाहर निकलने को कहा। और जैसे ही उसने मेरा हाथ पकड़ा, मैने उसे झटके से पूल में खींच लिया।
"ओह, मनीष क्या किया तुमने ये, मेरे पूरे कपड़े गीले कर दिए।"
"ओह सॉरी" कहते हुए मैने उसे पूल से बाहर कर दिया।
टीशर्ट गीले हो जाने के कारण उसका पूरा बदन मेरे सामने नुमाया हो गया। ठंड के कारण उसके निपल्स खड़े थे, और टीशर्ट पारदर्शी हो कर उसके बदन से चिपक गई थी, मुझे उसके स्तनों का पूरा आकर दिख रहा था। शायद रात को उसने अपने अंतर्वस्त्र उतार दिए होंगे। मेरे शरीर में उसे देख कर हलचल होने लगी। नेहा मुझे अपनी ओर ऐसे देखते हुए अपनी हालत पर गौर की और तेजी से पीछे मुड़ गई। लेकिन पीछे के हालात भी कुछ अच्छे नहीं थे। लेकिन उसके यूं पीछे मुड़ने से मेरे कुछ होशो हवास वापस आए।
"नेहा उधर एक बाथरॉब है, उसे पहन लो।"
ये सुन कर वो फौरन बाथरॉब पहन कर अंदर चली गई। मैं भी कुछ देर के बाद पूल से निकल कर अपने कमरे में चला गया।
डाइनिंग टेबल पर एक बार फिर से हम एक दूसरे के साथ बैठे थे, पूल वाली घटना से मैं खुद में बहुत असहज महसूस कर रहा था
"I'm sorry Neha."
"Sorry क्यों? मनीष हम अच्छे दोस्त है, ऐसा मजाक चलता रहता है। कोई बात नहीं।" उसने मेरा हाथ थपथपाते हुए कहा।
"मतलब तुम्हे बुरा नहीं लगा?"
"अगर तुम मुझे पूल में नहीं खींचते तो शायद बुरा लगता।" ये कह कर नेहा जोर से हंसने लगी। मैं भी मुस्कुरा दिया, मेरा गिल्ट अब जा चुका था।
नाश्ता करके हम लोग मीटिंग के लिए निकल गए। आज की मीटिंग जल्दी खत्म हो गई। लौटते हुए मैने नेहा से थोड़ा घूमने के लिए पूछा तो वो तैयार हो गई। मैने ड्राइवर को कार को सरदार जी के ढाबे की ओर ले चलने को कहा। कार को थोड़ा पहले रुकवा कर मैने ड्राइवर से कार की चाभी ले ली, और मैं नेहा को लेकर ढाबे पर गया।
"ये कहां लेकर आए हो मनीष?"
"कल तुमने अपना पास्ट बताया था मुझे, आज मैं तुमको अपने पास्ट से मिलवाने लाया हूं।"
इन तीन सालों में सरदार जी का ढाबा अब एक अच्छे रेस्टुरेंट में बदल चुका था। एक टेबल पर नेहा को बैठा कर मैं सरदार जी को ढूंढने लगा, वो किचेन में खुद लगे हुए थे आज और लोगों का ऑर्डर पहुंचने के लिए इंस्ट्रक्शन दे रहे थे।
मैं चुपचाप उनके पीछे पहुंच कर आवाज बदल कर बोला, "छह नंबर टेबल पर ग्राहक कह रहे हैं कि अब पहले जैसी सफाई नहीं रहती यहां।"
"नहीं रहती, क्यों क्या हो गया ऐसा जो उन्होंने ऐसा बोला?" बिना मेरी ओर देखे वो बोले।
"वो बोल रहे थे कि जब से मोनू गया है तबसे कोई और वैसी सफाई नहीं रखता अब।"
सरदार जी मेरी ओर मुड़े और बोले, "अच्छा, मेरी बिल्ली मुझसे ही म्याऊं?" बोल कर उन्होंने मुझे गले लगा लिया।
"कैसा है मेरा पुत्तर?"
"अच्छा हूं बाऊ जी।"
"अरे मुन्ना, जाकर जल्दी से जॉली को बुला ला, बोल कोई मिलने आया है बहुत दूर से।"
"पुत्तर तेरी तरक्की देख कर बहुत खुश हूं मैं, जब मित्तल साहब ने तुझे वाइस प्रेसिडेंट बनाया था, उसकी खबर टीवी पर आई तो मेरी छाती चौड़ी हो गई।"
"सब आपका ही आशीर्वाद और मार्गदर्शन है बाऊ जी, वरना मैं कौन सा इस काबिल था।"
"नहीं पुत्तर, सब तेरा भाग्य था, हम तो बस एक जरिया थे, सब रब दी मेहर है पुत्तर। ले जॉली भी आ गया।"
जॉली भैया भी मुझे देख कर बहुत खुश हुए। मैने उन लोग को नेहा से मिलवाया।
"इनसे मिलिए, ये हैं नेहा।"
"ओय खोते, तूने शादी कर ली, बिना हमे बताए।"
"बाऊ जी, ऐसा नहीं है, हम बस अच्छे दोस्त हैं।"
"ओय यार दिल तोड़ दिया तूने तो, मुझे लगा तेरी वोट्टी है ये।"
ये सुन कर हम सब हंसने लगे। बहुत देर तक हम चारों बातें करते रहे। जॉली भैया भी अपने काम में अब बहुत बदलाव कर चुके थे, अब मोबाइल रिपेयरिंग के साथ साथ साइबर कैफे और कंप्यूटर का काम भी शुरू कर दिया था, ऑनलाइन फॉर्म्स भी भरते थे वो। राजेंद्रनगर जैसी जगह में ये काम बहुत अच्छा चलता था।
देर रात हम वहां बैठे रहे और रात का खाना खा कर ही वहां से निकले। सरदार जी और जॉली भैया कई बार नेहा को मुझसे शादी करना का हिंट करके उससे हंसी मजाक करते रहे, वो भी खुल कर उनकी बातों में शामिल रही।
वापस लौटते समय कार में सिर्फ मैं और नेहा थे।
"तो नेहा, ये लोग ही हैं सिर्फ मेरे जीवन में मित्तल सर के अलावा।"
"बहुत अच्छे लोग हैं, कितने निस्वार्थ भाव से सब तुम्हारे साथ जुड़े हैं।"
"हां उनका बड़ापन ही है ये।"
"वैसे मनीष, क्या अब तक तुम्हारी जिंदगी में कोई लड़की नहीं आई? मतलब स्कूल, कॉलेज, वो भी फॉरेन में, जहां रिलेशनशिप में होना कोई ऐसी बड़ी बात नहीं है।"
"नेहा, मुझे ये सब करना ही नहीं था, क्योंकि जो मुझे मिला, इन सब लोगों से,मैं उसके लिए इनका न सिर्फ शुक्रगुजार हूं, बल्कि इनकी जो भी मुझसे एसपेक्टेशन थी, मैं उससे डिस्ट्रैक्ट नहीं होना चाहता था। इसीलिए पढ़ाई के समय मैने किसी की ओर नजर उठा कर देखा तक नहीं था। वैसे एक बात और भी थी, उस समय तक कोई मिली ही नहीं थी ऐसी कि मैं ध्यान देता उसकी ओर।"
"उस समय तक, और अब?"
"अब मिली तो है एक, लेकिन लगता नहीं मेरी दाल गलेगी वहां।" मैने कन्खियों से उसे देखते हुए मुस्कुरा कर कहा।
"कोशिश की है या नहीं, क्या पता कोशिश रंग लाए।" उसने भी बिना मेरी ओर देखे जवाब दिया।
"डर लगता है, अगर जो उसने मना कर दिया तो? वैसे भी वो किसी और से प्यार करती थी।"
इस बार उसने मेरी ओर देख कर कहा, "थी न, है तो नहीं। इसीलिए कोशिश तो करो पहले।"
उनका जवाब सुन कर मैं कुछ देर चुप हो गया।
अभी हम इंडिया गेट के सामने से निकल रहे थे, देर रात को वहां पर लगभग सन्नाटा ही था। मैने अपनी गाड़ी अंदर लेली, और गार्डन के पास लगा दी। अपना गेट खोल कर मैने उसकी ओर का गेट खोल कर उसकी ओर हाथ बढ़ा कर उसे बाहर निकाला।
उसके बाहर आते ही मैं अपने दाहिने घुटने पर बैठ कर, "नेहा, इस पूरी जिंदगी में सिर्फ एक तुम ही हो जिसे मैने अपनी जिंदगी में इतने करीब की जगह दी है। क्या तुम मेरी जिंदगी में हमेशा रहना चाहोगी? I love you Neha!"
ये सुन कर नेहा मेरे सामने अपने घुटनों पर आ गई, उसकी आंखे भी भरी हुई थीं।
"मनीष, मुझे पता है कि तुम एक बहुत ही अच्छे इंसान हो, और कोई भी औरत तुमको अपनाना चाहेगी। मैं भी तुम्हारी ओर आकर्षित हूं, लेकिन मुझे लगता है कि मुझे पहले अपनी बीती जिंदगी का फैसला पहले लेना चाहिए, उसके बाद ही इस बारे में मुझे कुछ सोचना चाहिए।"
"मैं समझ सकता हूं नेहा, तुम अपना पूरा समय लो। मुझे कोई जल्दी नहीं है।" ये बोलकर मैने उसका हाथ चूम लिया।
नेहा ने भी आगे बढ़ कर मेरे माथे को चूम लिया।
उसके बाद हम वापस फॉर्महाउस आ गए। जब हम अपने कमरों की ओर जा रहे थे तब मैने नेहा के चेहरे को पकड़ कर उसके होंठों पर गुड नाइट किस देनी चाही, लेकिन नेहा ने अपना हाथ बीच में का कर कहा, "मनीष अभी नहीं, थोड़ा सब्र रखो।"
मेरा मुंह थोड़ा उतर गया, ये देख हंसते हुए उसने मेरे गालों पर अपने लब लगा दिए, उसके तपते होंठो से मेरे दिल को एक अजीब सी ठंडक सी महसूस हुई।
"अब खुश? चलो अब सो जाते हैं, सुबह हमें देहरादून भी निकलना है।"
सुबह 9 बजे तक हम देहरादून पहुंच गए, नया साल तीन दिन बाद ही था, इसीूंलिए वहां का आम हमें आज ही खत्म करना था। देर रात तक काम करके हम अपने कमरों में जा कर सो गए। कुछ खास नहीं हुआ आज।
अगले दिन भी सुबह से ही मीटिंग थी, लेकिन हम आज 1 घंटे में ही फ्री ही गए। अब पूरा दिन खाली था हमारा। वैसे भी कल शाम की ही हमारी फ्लाइट थी शिमला की। तो मैने उससे पूछ कर अगले दिन का मसूरी का जाने का प्रोग्राम बना लिया और नेहा ने आज मुझे देहरादून घुमाने के लिए बोला। मीटिंग से ही हम सीधा तापकेश्वर महादेव मंदिर चले गए और वहां हमने दर्शन किए। ये द्रोण गुफा के नाम से भी प्रसिद्ध है। आसपास की सुंदरता को निहारते हुए हम फिर robber's Cave चले गए जिसे शिव के धाम के रूप में जाना जाता है। दोनों जगह घूमने के बाद हम वापस देहरादून में घंटाघर के पास बनी मार्केट में ऐसे ही घूमने लगे, वहां पर नेहा की बताई हुई कई स्ट्रीट फूड हमने खाई। ये सारी जगह हम हाथों में हाथ डाले ऐसे घूम रहे थे जैसे हमारी नई नई शादी हुई हो। कई जगह लोगों ने भी हमें ऐसा ही समझा। ऐसे ही घूमते हुए शाम हो चली थी।
"अब मैं जरा मां पापा से मिल लेती हूं।"
"मुझे नहीं मिलाओगी?"
"अभी नहीं मनीष, पहले ही वो मुझसे संजीव के कारण नाराज हैं, पहले वो वाली नाराजगी तो दूर होने दो।" उसने मेरा गाल सहलाते हुए मुझसे कहा।
"चलो मैं ड्रॉप कर देता हूं।"
हम दोनो कार से उसके घर की ओर चल दिए। एक गली के पास पहुंच कर उसने कार रुकवाई, और मुझसे कहा, "मेरा बैग तैयार है, तुम अभी होटल में जा कर अपनी तैयारी करो, मैं एक घंटे में कॉल करके बुलाती हूं, फिर हम मसूरी चलेंगे।
"कौन सा घर है तुम्हारा?"
उसने इशारा करके कहा, "ये गली ऊपर एक पहाड़ी पर जाती है, उसी में है मेरा घर, कार यहां से आगे नहीं जा पाएगी न, इसीलिए यहीं उतर जाती हूं।"
ये कह कर वो गली में चली गई, और मैने ड्राइवर को बोल कर होटल आ गया।
धीरे धीरे एक से दो घंटे हो गए, पर उसका की फोन नहीं आया, मैने एक दो बार उसका फोन लगाया भी तो वो आउट ऑफ नेटवर्क जा रहा था। ऐसे ही एक घंटा और बीत गया, मुझे चिंता होने लगी। समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे उससे संपर्क करूं, एक बार तो सोचा मित्तल सर की कॉल करके उसके पापा का नंबर ले लूं, लेकिन फिर सोचा कि क्या बोलूंगा उनसे, की अपने घर गई है और अभी तक वापस नहीं आई। मसूरी वाला प्लान तो हमारे टूर में था ही नहीं।
ऐसे ही उधेड़बुन में आधा घंटा और निकल गया। तभी मेरे फोन पर एक unknown नंबर से कॉल आया।
"हेलो?"
"मनीष, मैं नेहा बोल रही हूं, प्लीज तुम जल्दी से पेसिफिक मॉल में आ जाओ। मैं यहीं हूं।" उसने फुसफुसाते हुए कहा, और मेरे कुछ कहने से पहले ही कॉल कट गई....