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Fantasy विश्रनपुर खादर : परदे के पीछे का रहस्य

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Ben Tennyson

Its Hero Time !!
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आशा है आपको कहानी पसंद आयेगी.... असल जिंदगी की कहानियों से प्रेरित है आपके मेरे किसी के भी आस पास की कहानी है जुड़े और अपना अनुभव साझा करें !!!
 

Ben Tennyson

Its Hero Time !!
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अध्याय- २




कालेज की एडमिशन शुरू हो गई थी.... रज़िया और अंजलि ने एक ही क्लास में एडमिशन लिया...



कालेज शुरू हुए..... नई नई लूना और आसपास के पांच गांवों की पहली कालेजिएट लड़की होने का अलग सा एहसास.... तेज गति से चलती लूना और अठखेलियां करती हवा कभी कभी सर से दुपट्टा सरका देती....



अब बाप दादा का पूरे इलाके में नाम.... तो लूना रोककर दुपट्टा सही किया जाता.... और क्या पता कौन घर का शहर आया हो.... एक श्याम बाबा को छोड़कर सभी तो विरोध में थे.....



एक दिन कोई किताब लेने बाजार जाना पड़ा तो घर पहुंचने से पहले उसकी खबर पहुंच चुकी थी.... डांट तो नहीं पड़ी पर पूछताछ जरूर हुई... आखिरकार खानदान में पहली लड़की ने गांव से बाहर पैर रखा था...



रज़िया बहुतेरा कहती कि चलो बाजार घूमते हैं,खाते पीते मस्ती करते हैं..... पर संस्कार और घर वालों का खौफ ये सब नहीं करने देता......



उधर श्याम बाबा कभी कभार अपने दोस्त घनश्याम बनिए के यहां ईंट भट्ठे पर चले जाते... घनश्याम का घर शहर में ही था और कालेज प्रबंधन में भी अच्छी चलती थी तो उसे भी ताकीद कर रखा था कि बिटिया पढ़ने आती है तो ध्यान रखें.... दरअसल श्याम बाबा का घनश्याम पर विश्वास ही उनको अंजलि की पढ़ाई के पक्ष में कर पाया था.... दोनों में कुछ छुपा नहीं था... कभी कभी तो बाबा भट्ठे पर दो घूंट भी मार लेते..... सब को पता था कि बाबा घर के बाहर कहीं मिलेंगे तो भट्ठे पर...



बस ऐसे ही समय पंख लगा कर उड़ता रहा.....



और फिर एक दिन....



क्रमशः
 

Sanju@

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अध्याय - १


गंगा किनारे का अपने समय का उजाड़ इलाका.... खादर क्षेत्र... समय की चाल में आबाद हुआ.... राजाओं महाराजाओं द्वारा दी गई जमींदारियां... खेती के लिए सहायकों की बस्तियां.... वहीं के एक गांव बिश्नपुर की कहानी है ये....

"म्हारे खानदान में ना‌ गई कोई गांव से बाहर.... ये इब नवीं रीत चलाओगे का....???" राजीव बड़े भाई पे झल्लाते हुए बोला....

वो बड़ा भाई, जिसके सामने खानदान में कोई आंख ना उठाता था..... श्याम बाबा .... हां सारा इलाका इसी नाम से ही तो जानता था उनको .... बड़े से परिवार के मुखिया श्याम बाबा विधुर थे.... घर के सबसे बड़े.... पुश्तैनी जमींदार.... बाबा दादा की पीढ़ियों के बाकी परिवार भूमिहीन हो चुके थे अय्याशीयों में.... कोई कोई ही जमीन वाला बचा था....

छोटी उम्र में ही पिता चल बसे तो सारे परिवार की जिम्मेदारी नाज़ुक कंधों पर इन पड़ी.... मां की शिक्षा और संस्कारों की छाया ने पूरे परिवार को एकजुट रखा.... रोब इतना कि गांव के लौंडे लफाडे भी सामने से निकलने से डरते....

आज उन्हीं के एक फैसले का विरोध हो रहा था , अपने ही घर में.... मंझले भाई राजीव की बेटी अंजली आगे पढ़ने के लिए पास के कस्बे के कालेज में जाना चाहती थी.... जिस घर की बूढ़ी अम्मा भी किसी के साथ बिना बाहर ना निकली हो , वहां जवान बेटी को अकेले भेजने पर सवाल तो उठने ही थे....

"बबुआ ! जमाना बदल रहा है.... लड़कियों को भी पढ़ने का हक़ बनता है...."

"भाईजी!!! कोई ऊंच नीच हो गई, तो....?"

"कुछ नहीं होगा, इतना भरोसा है मुझे..... बाकी इस बारे में और कोई बात नहीं होगी...." शाम बाबा धीर गंभीर स्वर में बोले.... आगे विरोध का सवाल ही नहीं था......

उधर रिज्लट वाले दिन स्कूल में अंजलि अपनी सहेली रजिया से ख़ुश हो कर बता रही थी कि कैसे बड़े ताऊजी ने उसके लिए पूरे घर के विरोध की परवाह नहीं की....

" जाएंगे कैसे...?" रज़िया ने पूछा....

" लूना बुक करवा दी है.." अंजलि चहकते हुए बोली.... तब लड़कियों के लूना भी बड़ी बात हुआ करती थी...

" फिर तो पार्टी हो जाए...."

"पहले लूना तो आने दे......"

दोनों अपने अपने रिज्लट लेकर वापिस आ गईं.... कन्या पाठशाला के बाहर गेट पर अंजलि का चचेरा भाई स्कूटर लेकर इंतजार कर रहा था..... रज़िया अपने अब्बू की दुकान की तरफ चली गई और अंजलि भाई के साथ घर आ ली.......

क्रमशः
:congrats: start new story
 

Sanju@

Well-Known Member
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अध्याय- २




कालेज की एडमिशन शुरू हो गई थी.... रज़िया और अंजलि ने एक ही क्लास में एडमिशन लिया...



कालेज शुरू हुए..... नई नई लूना और आसपास के पांच गांवों की पहली कालेजिएट लड़की होने का अलग सा एहसास.... तेज गति से चलती लूना और अठखेलियां करती हवा कभी कभी सर से दुपट्टा सरका देती....



अब बाप दादा का पूरे इलाके में नाम.... तो लूना रोककर दुपट्टा सही किया जाता.... और क्या पता कौन घर का शहर आया हो.... एक श्याम बाबा को छोड़कर सभी तो विरोध में थे.....



एक दिन कोई किताब लेने बाजार जाना पड़ा तो घर पहुंचने से पहले उसकी खबर पहुंच चुकी थी.... डांट तो नहीं पड़ी पर पूछताछ जरूर हुई... आखिरकार खानदान में पहली लड़की ने गांव से बाहर पैर रखा था...



रज़िया बहुतेरा कहती कि चलो बाजार घूमते हैं,खाते पीते मस्ती करते हैं..... पर संस्कार और घर वालों का खौफ ये सब नहीं करने देता......



उधर श्याम बाबा कभी कभार अपने दोस्त घनश्याम बनिए के यहां ईंट भट्ठे पर चले जाते... घनश्याम का घर शहर में ही था और कालेज प्रबंधन में भी अच्छी चलती थी तो उसे भी ताकीद कर रखा था कि बिटिया पढ़ने आती है तो ध्यान रखें.... दरअसल श्याम बाबा का घनश्याम पर विश्वास ही उनको अंजलि की पढ़ाई के पक्ष में कर पाया था.... दोनों में कुछ छुपा नहीं था... कभी कभी तो बाबा भट्ठे पर दो घूंट भी मार लेते..... सब को पता था कि बाबा घर के बाहर कहीं मिलेंगे तो भट्ठे पर...



बस ऐसे ही समय पंख लगा कर उड़ता रहा.....



और फिर एक दिन....



क्रमशः
Nice and lovely update
 
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बहुत बढ़िया शुरुआत किया है आपने।
एक रूढ़िवाद और प्राचीन परम्परा को तोड़ने वाली कहानी प्रतीत हो रही है । लेकिन जब भी परम्परागत चीजें टूटती है तो इसका विरोध हमेशा होते आया है।
आउटस्टैंडिंग अपडेट भाई।
 

Ben Tennyson

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इंटरेस्टिंग कहानी है, शानदार शुरुवात,
नेक्स्ट अपडेट के इंतजार में,
धन्यवाद भाई अगला अपडेट दोपहर तक साथ बने रहें
 
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