अध्याय १
गंगा किनारे का अपने समय का उजाड़ इलाका.... खादर क्षेत्र... समय की चाल में आबाद हुआ.... राजाओं महाराजाओं द्वारा दी गई जमींदारियां... खेती के लिए सहायकों की बस्तियां.... वहीं के एक गांव बिश्नपुर की कहानी है ये....
"म्हारे खानदान में ना गई कोई गांव से बाहर.... ये इब नवीं रीत चलाओगे का....???" राजीव बड़े भाई पे झल्लाते हुए बोला....
वो बड़ा भाई, जिसके सामने खानदान में कोई आंख ना उठाता था..... श्याम बाबा .... हां सारा इलाका इसी नाम से ही तो जानता था उनको .... बड़े से परिवार के मुखिया श्याम बाबा विधुर थे.... घर के सबसे बड़े.... पुश्तैनी जमींदार.... बाबा दादा की पीढ़ियों के बाकी परिवार भूमिहीन हो चुके थे अय्याशीयों में.... कोई कोई ही जमीन वाला बचा था....
छोटी उम्र में ही पिता चल बसे तो सारे परिवार की जिम्मेदारी नाज़ुक कंधों पर इन पड़ी.... मां की शिक्षा और संस्कारों की छाया ने पूरे परिवार को एकजुट रखा.... रोब इतना कि गांव के लौंडे लफाडे भी सामने से निकलने से डरते....
आज उन्हीं के एक फैसले का विरोध हो रहा था , अपने ही घर में.... मंझले भाई राजीव की बेटी अंजली आगे पढ़ने के लिए पास के कस्बे के कालेज में जाना चाहती थी.... जिस घर की बूढ़ी अम्मा भी किसी के साथ बिना बाहर ना निकली हो , वहां जवान बेटी को अकेले भेजने पर सवाल तो उठने ही थे....
"बबुआ ! जमाना बदल रहा है.... लड़कियों को भी पढ़ने का हक़ बनता है...."
"भाईजी!!! कोई ऊंच नीच हो गई, तो....?"
"कुछ नहीं होगा, इतना भरोसा है मुझे..... बाकी इस बारे में और कोई बात नहीं होगी...." शाम बाबा धीर गंभीर स्वर में बोले.... आगे विरोध का सवाल ही नहीं था......
उधर रिज्लट वाले दिन स्कूल में अंजलि अपनी सहेली रजिया से ख़ुश हो कर बता रही थी कि कैसे बड़े ताऊजी ने उसके लिए पूरे घर के विरोध की परवाह नहीं की....
" जाएंगे कैसे...?" रज़िया ने पूछा....
" लूना बुक करवा दी है.." अंजलि चहकते हुए बोली.... तब लड़कियों के लूना भी बड़ी बात हुआ करती थी...
" फिर तो पार्टी हो जाए...."
"पहले लूना तो आने दे......"
दोनों अपने अपने रिज्लट लेकर वापिस आ गईं.... कन्या पाठशाला के बाहर गेट पर अंजलि का चचेरा भाई स्कूटर लेकर इंतजार कर रहा था..... रज़िया अपने अब्बू की दुकान की तरफ चली गई और अंजलि भाई के साथ घर आ ली.......
क्रमशः