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Fantasy विलासपुर राज्य ( क्रूर राजा और उसके राज्य की मजबूर औरतें )

Dear readers, kuch log chahte he ki me ye kahani hinglish me continue karu, aap sabhi ki kya ray he?


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विनम्र निवेदन
बहुत सारे पाठक कहानी को पढ़ कर बिना लाइक और कमैंट्स किये ही चले जाते हैँ, इस बात से हम लेखकों को बहुत हतोत्साहित महसूस होता है, कृपया आप ऐसा ना करें | हमारी आपसे विनम्र विनती है, की कहानी पढ़िए, आनंद लीजिये, फिर अपने कीमती कमैंट्स ज़रूर कीजिये, हमें बताइये आपको क्या पसंद और क्या नापसंद है | पाठकों की पसंद हमारे लिए सर्वोपरि है | हमारी कहानी के आने वाले भागों में और हमारी आने वाली नई कहानियों में, पाठकों की पसंद का खास ध्यान रखा जायेगा | धन्यवाद | 🙏
 
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RED Ashoka

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Hero ko jannne ke liye besabra hai
Hero kon hoga kya wo maan Singh ka beta hoga ya phir koi aur
 
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भाग -2

बादशाह कासिम अपने बिस्तर से उठ कर स्नान के लिए चले जाते हैं ।

बादशाह कासिम की खिदमत करने के बाद, मलिका फातिमा रुख कर लेती हैं अपनी लाड़ली बेटी के कमरे की ओर, जिसका नाम है, जन्नत । और नाम जन्नत हो भी क्यों ना। इस शहज़ादी के हुस्न को जो भी देखता है, उसे कुछ ऐसा एहसास होता है, की उसके सामने कोई आम लड़की नहीं, बल्कि जन्नत से उतर कर कोई परी आ गई हो।

मलिका जब शहज़ादी के कमरे में पंहुचती हैं, तो देखती हैं कि शहज़ादी वहां नहीं हैं। मलिका शहज़ादी के कमरे में मौजूद स्नानघर का दरवाजा खटखटाती हैं, तो एक दासी दरवाज़ा खोलती है। मलिका फातिमा को देखते ही दासी सलाम करती है, और उन्हें अंदर आने देती है। मलिका के अंदर आते ही, दासी तुरंत दरवाज़ा बन्द लेती है। मलिका फातिमा जब शहज़ादी जन्नत के स्नानघर में प्रवेश करती हैं, तो वह देखती हैं, कि शहज़ादी जन्नत, पानी से भरे स्नानकुण्ड में आराम से लेटी हुई हैं, शहज़ादी के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं है, और शहज़ादी की दासियां, शहज़ादी को बड़े प्यार से नहला रही हैं।



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सारी दासियां मलिका को देखते ही सलाम करती हैं। जन्नत भी अपनी माँ को मुस्कुरा कर सलाम करती है। मलिका फातिमा सभी दासियों को स्नानघर से बाहर जाने का इशारा करती हैं। सभी दासियां बाहर चली जाती हैं।

अब आगे पढ़िए मलिका फातिमा और शहज़ादी जन्नत के बीच की बात-चीत।





मलिका फातिमा : कैसी है हमारी जान?
( मुस्कुराते हुए )

शहज़ादी जन्नत : मै बहुत अच्छी हूं माँ। आप बताइए?

मलिका फातिमा : बस, आज अपनी बेटी के साथ स्नान करने का मन हुआ, तो आ गए आपके पास।

शहज़ादी जन्नत : अरे ये तो बहुत अच्छी बात है माँ, हमें भी आपकी बहुत याद आ रही थी, कितने दिन बीत गए, आपने हमें अच्छे से प्यार भी नहीं किया।
( मासूम सा चेहरा बनाती हुई )

मलिका फातिमा : आप तो जानती हैं जन्नत, आपके अब्बा जान की सेवा में हम कितने व्यस्थ रहते हैं।

शहज़ादी जन्नत : और हमें भूल जाती हैं।
( मासूम सा चेहरा बनाकर रूठने का नाटक करती हुई )

मलिका फातिमा : नहीं जान, आप तो हमारे जिगर का टुकड़ा हैं, आपको हम कैसे भूल सकते हैं ।
( शहज़ादी के गालों को सहलाते हुए मलिका कहती हैं )

मलिका फातिमा अब अपने कपड़े निकालना शुरू करती हैं। और एक एक करके सारे कपड़े उतार देती हैं। अब मलिका भी शहज़ादी की आंखों से सामने पूरी नंगी हैं। अपनी माँ को नंगी देख कर शहज़ादी की चूत में एक मीठी सी हलचल होती है।

धीरे से मलिका स्नानकुण्ड में कदम रखती हैं, और जन्नत के पास आकर प्यार से जन्नत को अपनी बाहों में भर लेती हैं।



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मलिका फातिमा : आज हम अपनी बेटी जान को इतना प्यार करेंगे, की उसकी सारी शिकायतें दूर हो जाएंगी।

यह कहकर मलिका फातिमा, शहज़ादी जन्नत के होंठों पर अपने होंठ रख देती हैं, और हल्के-हल्के मीठे-मीठे चुम्बन लेने लगती हैं।



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दोनों माँ बेटी के हाथ, एक दूसरे के सुकोमल नंगे बदन को सहलाने में व्यस्थ हो जाते हैं। मलिका फातिमा के हाथ, शहज़ादी जन्नत के जिस्म के सभी कोमल अंगों को सहला रहे थे। कभी वह शहज़ादी के नितंबों को मसलते, तो कभी स्तनों को दबाते। दोनों सुंदरियां, एक दूसरे के आलिंगन में मदमस्त हो चुकी थीं, तभी फातिमा बेग़म ने शहज़ादी की चूत पर अपना हाथ रख दिया, और धीरे धीरे चूत सहलाने लगीं। चूत पर स्पर्श पाते ही, जन्नत की आंखें बंद होने लगती हैं, और वह अपनी माँ की बाहों में मचलने लगती है।

मलिका फातिमा धीरे से अपनी एक उंगली, शहज़ादी की चूत के अंदर डाल देती हैं, और अंदर बाहर करने लगती हैं। कुछ ही देर में शहज़ादी स्नानकुण्ड में ही झड़ जाती हैं।

मलिका फातिमा धीरे से शहज़ादी जन्नत के कान में शहज़ादी को छेड़ते हुए कहती हैं, "अब तो नहीं कहोगी ना जान, की हम तुम्हें प्यार नहीं करते"। शहज़ादी शर्म के मारे अपना चेहरा अपने हाथों के पीछे छिपा लेती हैं। बस यूँही दोनों माँ बेटी कुछ देर स्नानकुण्ड में मस्ती करती हैं, फिर नहाकर बाहर आ जाती हैं। दोनों ही अपने अपने नंगे बदन को मखमली तौलिया से सुखा कर, साफ कपड़े पहन लेती हैं, और भोजन कक्ष की ओर प्रस्थान करती हैं, सुबह के नाश्ते के लिए।





अगला द्रश्य भोजनकक्ष का है। और द्रश्य बहुत रंगीन है। भोजन कक्ष में मौजूद दासियां, गहनों और श्रंगार से सुसज्जित हैं, बादशाह के इंतज़ार में सभी राह देख रही हैं।

तभी बादशाह का आगमन, भोजनकक्ष में होता है। बादशाह के साथ मलिका फातिमा, और शहज़ादी जन्नत भी नाश्ता करने के लिए वहां पहुंचती हैं। दासियां, बादशाह और मलिका को सलाम करती हैं। राजघराने के सभी लोग नाश्ता करने के लिए अपने अपने आसन पर बैठ जाते हैं। दासियां उनके सामने एक के बाद एक स्वादिष्ट पकवान पेश करना शुरू कर देती हैं। भोजनकक्ष में एक मंच भी बना होता है, जहां पर बादशाह के मनोरंजन के लिए, स्त्रियों का नाच गाना चल रहा होता है।



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तभी बादशाह आरती नाम की एक दासी, जो कि उन्हें नाश्ता परोस रही थी, उसका हाथ पकड़ कर, उसे अपनी गोद में बिठा लेते हैं। सबके सामने बादशाह की गोद में बैठने के कारण, आरती का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है। पर आरती एक आज्ञाकारी दासी की तरह, चुप चाप नज़रें झुका कर, होंठों पर हल्की सी मुस्कान लिए, बादशाह की गोद में बैठी रहती है। मलिका फातिमा और शहज़ादी जन्नत, यह सब देख रही होती हैं, और एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराती हैं।

बादशाह आरती से कहते हैं, की आज आरती उनकी गोद में बैठ कर उन्हें अपने हाथों से खाना खिलाये। आरती अपना सर झुकाकर हामी भरती है, और प्यार से बादशाह को अपने कोमल हाथों से खाना खिलाना शुरू कर देती है। इस दौरान बादशाह आरती के स्तनों को उसकी चोली के ऊपर से ही सहलाते रहते हैं। स्तनों से दिल भर जाता, तो आरती की जांघों पर हाथ रख लेते, कभी चिकनी कमर पर, तो कभी पेट पर सहलाने लगते। और बेचारी भोली भाली आरती, बादशाह को प्यार से खाना खिलाती रहती।



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पेट भर कर खाना खाने के बाद बादशाह तृप्त होकर, आरती के होंठों को चूम कर, उसे जाने को कहते हैं, और अपने दरबार की ओर चले जाते हैं।

दरबार में सेनापति इमरान अली खान, और महामंत्री अनवर बादशाह कासिम का इंतज़ार कर रहे होते हैं। अब पढ़िए बादशाह कासिम, उनके सेनापति इमरान अली खान, और महामंत्री अनवर के बीच का वार्तालाप ।






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सेनापति इमरान :
बादशाह कासिम को सेनापति इमरान का सलाम। आज आपके लिए एक खुशखबरी लेकर आया हूं जहांपनाह।

बादशाह कासिम :
( मुस्कुराते हुए ) क्या खुशखबरी है सेनापति?

सेनापति इमरान :
बादशाह, रौनकपुर राज्य, जिसे हम कई वर्षों से जीतने का प्रयास कर रहे हैं, पर हमेशा हमें असफलता ही मिलती आयी है, वहां का राजा मान सिंह, इस वक्त बहुत बीमार है। यह बहुत अच्छा मौका है महाराज, हम अभी वहां हमला कर दें, तो इस बार सफलता जरूर मिलेगी।

महामंत्री अनवर :
ये सुनहरा मौका हमें गंवाना नहीं चाहिये महाराज। इसबार तो रौनकपुर को कब्जे में कर ही लेना चाहिए हमें। उसके बाद राजा मान सिंह आपकी कालकोठरी में होगा, और उसकी पत्नी आपके कदमों में।

बादशाह कासिम :
( उठकर अपने सिंघासन से खड़े होते हुए कहते हैं ) तो फिर देर किस बात की। आज ही जाओ, वो भी रात में, जब सब चैन से सो रहे हों, और क़त्लेआम मचा दो। जो भी मर्द सामने आए, उसका सर कलम कर दो, और जो भी औरत नज़र आये, उसे बन्दी बना कर, जंजीरों से बांध कर अपने साथ ले आओ।
पर ध्यान रहे, रात से पहले किसी को भनक भी ना पड़े, की हमला होने वाला है, वो मान बीमार ज़रूर है, पर अभी मरा नहीं है। उसे कमज़ोर समझने की भूल हम पहले भी कर चुके हैं, इस बार कोई गलती नहीं होनी चाहिए। जाओ, हमले की तैयारी करो।

सेनापति इमरान :
कोई गलती नहीं होगी बादशाह, इस बार जीत हमारी होगी। ( यह कहकर सेनापति इमरान वहाँ से चले जाते हैं )






बादशाह कासिम की बातों से, आप ज़रूर समझ गए होंगे, की यह पहली बार नहीं था, जब बादशाह कासिम रौनकपुर को जीतने की कोशिश करने वाले थे। इससे पहले भी उन्होंने कई बार कोशिश की थी, पर हर बार राजा मान सिंह ने, उन्हें मुँह तोड़ जवाब दिया। इस कारण ही बादशाह भीतर से बदले की आग में जलते आ रहे थे, और मौके की तलाश में थे, की कब उन्हें मौका मिले, और कब वो राजा मान सिंह से अपना बदला लें। और वो मौका, आखिर उन्हें मिल गया। बल से नहीं, तो अब छल से, उन्होंने रौनकपुर पर हमले की योजना बनाई।

सूरज ढलते ही, सेनापति इमरान ने अपनी सेना सहित रौनकपुर पर हमला कर दिया। हालांकि रात को युद्ध नहीं लड़े जाते हैं, नियम के मुताबिक, पर छल कपट करने वाले नियमों का कहां सोचते हैं।



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रौनकपुर की सेना ने हमले का डट कर सामना किया, पर राजा मान सिंह के मार्ग दर्शन के अभाव में, रौनकपुर की सेना का बल पहले ही आधा हो चुका था। तभी रौनकपुर के सेनापति कलश को चारों ओर से इमरान और उसके सैनिकों ने घेर लिया। सेनापति इमरान जानते थे, की राजा मान सिंह तो लड़ने की हालत में हैं नहीं, और अगर सेनापति कलश की भी हत्या कर दी जाए, तो रौनकपुर राज्य का खात्मा निश्चित है। इमरान के 20 सैनिकों ने मिल कर, सेनापति कलश को मौत के घाट उतार दिया।

सेनापति इमरान, सेना की एक मुख्य औए प्रबल टुकड़ी के साथ राजमहल जा पहुंचे, वहां मौजूद सभी सैनिकों की हत्या करके पूरे महल में राजा मान सिंह को ढूंढने लगे। पर ना तो राजा कहीं मिले, और ना ही रानी, और ना ही उनके बच्चे।

अचानक से राजमहल के बाहर से एक आवाज़ आई, कुछ घोड़ों की। सेनापति इमरान ने सोचा कि राजा मान सिंह जान बचा कर भाग रहे हैं। इमरान तुरन्त अपनी सेना सहित बाहर उन घोड़ों के पीछे अपने घोड़े पर बैठकर निकल गया। सेनापति इमरान देख पा रहे थे कि उनके सामने 2 सफेद घोड़े भाग रहे हैं, पर रात होने के कारण साफ दिखाई नहीं दे रहा था, की उन घोड़ों पर कौन बैठा हुआ है।


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उन सफेद घोड़ों की गति इतनी ज्यादा थी, की उनका पीछा करना बहुत कठिन हो रहा था। पर आगे जाकर एक जगह पर रास्ता ही खत्म हो गया, एक गहरी नदी सामने आ गई, और वो दोनों सफेद घोड़े रुक गए।

इमरान ने सोचा कि पकड़ा गया मान, आज इसे जिंदा पकड़ कर लेकर जाऊंगा बादशाह कासिम के पास, इसे तो वही सज़ा देंगे। इमरान उन सफेद घोड़ों के नज़दीक जैसे ही पहुंचा, उसकी आंखें फटी रह गईं। राजा मान सिंह तो वहां थे ही नहीं। बल्कि 2 औरतें थी वहां। जिनमें से एक राजा मान सिंह की माँ शकुंतला देवी थीं, और दूसरी मान सिंह की बहन रति। यह देख कर सेनापति इमरान ने गुस्से से पूछा, कौन हो तुम दोनों, मान कहाँ है??

शकुंतला देवी ने हंस कर कहा, तुम्हारी पहुंच से बहुत दूर। हमारा बेटा अभी होश में नहीं था, हमले की खबर पाते ही, हमने कुछ सैनिकों सहित उसे यहां से बहुत दूर भेज दिया। और तुम लोग उनके पीछे ना जा सको, तो तुम्हें हम यहां ले आये, सैर कराने। कायरों, मेरे बेटे की बीमारी का फायदा उठा कर उसे मारने आये थे ना तुम लोग, शर्म नहीं आती अपने आप को मर्द कहते हुए तुम्हें। थू है तुम्हारी मर्दानगी पर।

यह सब सुनकर सेनापति इमरान का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया, कि बन्दी बना लो इन दोनों औरतों को, इनका क्या करना है, यह बादशाह कासिम ही तय करेंगे। राजमाता शकुंतला देवी और रति, दोनों को बंदी बना लिया गया।



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सेनापति इमरान ने राजमहल पर अपने पहरेदार लगा दिए और वहां पर अपना कब्जा कर लिया, और अपने सैनिकों को आदेश दिया, की वो राजा मान सिंह को ढूंढने के लिए चारों दिशाओं में फैल जाएं। सेनापति इमरान, राजा मान की माँ और बहन को बंदी बना कर, जीत का जश्न मनाते हुए, विलासपुर नगर की ओर वापस लौट जाता है।

वहीं दूसरी ओर, राजा मान सिंह को बेहोशी की हालत में लेकर उनके कुछ भरोसेमंद सैनिक रौनकपुर से दूर एक छोटे से गांव में पहुंचते हैं, एक वैद के पास। उनके साथ राजा मान सिंह की पत्नी इंदुमती, और छोटा सा बेटा राघव भी होता है, जिन्हें मान सिंह की माँ ने मान सिंह के साथ भेज दिया था। बुखार से राजा मान सिंह का बदन भट्टी की तरह तप रहा होता है, सभी को डर होता है, की कहीं सारी कोशिशें व्यर्थ ना चली जाएं, कहीं राजमाता शकुंतला और रति का बलिदान व्यर्थ ना चला जाये।



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पर नहीं, 2 दिन के इलाज के बाद, मौत के दरवाज़े को छू कर, राजा मान सिंह वापस लौट आते हैं, उनकी लंबी बेहोशी टूटती है, और वे अपनी आंखें खोलते हैं। आंखें खुलते ही वे अपने आप को एक अनजान जगह पर पा कर चौंक जाते हैं, और विचलित हो इधर उधर देखने लगते हैं। उनकी पत्नी उन्हें सारी बात बताती हैं। की कैसे सेनापति कलश ने अपनी जान कुर्बान कर, उनकी जान बचाई।

पूरी बात सुनकर, राजा की आंखों में खून उतर आता है, क्रोध के रक्तिम डोरे, उनकी आंखों में कुछ इस प्रकार दहकने लगते हैं, जिस प्रकार लावा में अग्नि दहकती है।

एक सिंह की तरह दहाड़ते हुए राजा मान सिंह कहते हैं, "कासिम, पिछली बार मैने तुझे माफ करके ज़िंदा छोड़ दिया था। वही मेरी सबसे बड़ी भूल थी। मुझे समझना चाहिए था, की तेरे जैसे नीच और अय्याश आदमी को, शांति की बात कभी रास आ ही नहीं सकती।
महादेव की सौगंद कासिम, जिस प्रकार चक्रवात के प्रभाव से वनों का विनाश हो जाता है, उसी प्रकार तेरे सम्पूर्ण साम्राज्य का, विध्वंस कर दूंगा मै।



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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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