तभी उस रूम का दरवाजा खुला और मुझे मेरी नानी की आकृति दिखी।
अब मेरा सक यकीन मैं बदल गया था।
अब माँ बेझिजक अपनी मादक अवाज निकाल रही थी।
और अपनी रफार भड़ाते हुए झाड़ गयी। और मेरी छाती को चूमते हुए , मेरे ऊपर ही लेट कर सो गयी।
इस दौरान नानी बहार ही खड़ी हुई थी।
कुछ समय बाद मैं भी सो गया।
करीब 4- बजे मुझे घर मैं खटपट सुनाई दी।
और नानी ने मुझे आकर जगाया।
नानी : बीटा जल्दी तैयार होजा आज हमे अपने पुस्तैनी गांव जाना है।
मैं : (आंखें मीड़ते हुए ) नानी सोने दो न। मैं नहीं जा रहा कहीं।
नानी : बीटा ज्यादा नखरे न करो बस मैं सो जाना। अब्ब तुम्हे सब कुछ बताने का समय आ गया है।
मैं : अच्छा नानी माँ कहाँ है।
नानी : (मुस्कुराते हुए ) वो नहाने गयी है , तू भी जाकर नाहा ले।
मैं : मम्मी के साथ ?
नानी : और नहीं तोह क्या, कल मैंने सब देख लिया , अब ज्यादा मासूम मत बन।
मैंने जाकर माँ के बाथरूम का दरवाजा खटखटाया।
मम्मी : क्या है।
मैं : मम्मी मैं हूँ।
मम्मी : क्या हुआ बीटा मैं नाहा रही हूँ।
मैं : नानी ने मुझे भी नहाने भेजा है , बोल रही है हमपे टाइम कम है।
मम्मी : अच्छा (दरवाजा खोलते हुए )
उन्होंने लाल टॉवल लपेट रखा था। और ऐसे वर्ताव कर रही थी जैसे हमारे बीच कुछ हुआ ही नहीं हो।
और ज्यादा कुछ न बोलकर बहार चली गयी।
