दोनो ही रातके अंधेरेमे गांवके बहारकी ओर पैदल चलने लगे.. दोनोमेसे कोइ कुछ नही बोल रहा था.. दोनो चलते गांवके काफी बहार नीकल गये.. ओर अेक पेडके नीचे खडे होकर देवायतका इन्तजार करने लगे.. रमेशने अेक बार फीर देवायतको फोन करदीया तभी देवायत नास्ता कर रहा था.. तो दोनो इनका इन्तजार करते रातके अंधेरेमे वही खडे रहे..
इधर हवेलीमे तीनोने चाइ नास्ता करलीया तो लखन मंजुके पैर छुने लगा.. तो नीलम भी मुस्कुराते मंजुके गले लग गइ.. तो मंजुने उनके गालको चुम लीया.. तो देवायत ओर लखन मंजुका नीलमके प्रती इतना प्यार देखकर आस्चर्यसे मंजुकी ओर देखते रहे.. फीर तीनो ही बहारकी ओर जाने लगे.. देवायत कारकी ओर चल पडा तभी पुनमके रुमका दरवाजा खुला ओर पुनम जटसे बहार आगइ..
तो वहा मंजुको देखकर सरमाते रुक गइ.. मंजु सब समज गइ.. फीर लखनकी ओर देखते हसने लगी.. ओर उसने लखनको आंखोके इसारोसे पुनमको मीलनेके लीये कहा तो लखन भी सरमा गया.. ओर मुस्कुराते पुनमकी ओर जाने लगा.. तो पुनमसे भी रहा नही गया.. ओर वो दोडकर लखनकी बाहोमे समा गइ.. लखनके सीनेमे सर रखते आंसु बहाने लगी.. तभी मंजु भी उनके पास आगइ.. ओर पुनमके सरको सहेलाने लगी..
मंजुला : (मुस्कुराते) मेरी बच्ची.. तु फीकर मत कर.. मे तुजे भी जल्द लखनके पास भेज दुगी.. क्या तुमने उस कुतीसे बात करली..?
पुनम : (सरमाते अलग होते) नही दीदी.. अभी वो जागेगी.. तो उनसे बात करलुगी.. लखन भैया वहा जाते ही उनको लेने जायेगे.. मेने सृतीदीदीको घर वापस लानेके लीये भैयाको केह दीया हे..
मंजुला : (मुस्कुराते) क्या अभी भी लखनको भाइ केह रही हो..? हें..हें..हें..
पुनम : (सर्मसार नजर जुकाते) हां दीदी.. मेने भाइसे प्यार कीया हे.. ओर लखन भैयाभी अपनी बहेनको प्यार करते हे.. तो मे इसे आपकी तराह भाइ ही कहुगी.. ओर लखन भैया भी वही चाहते हे..
मंजुला : (हसते) अच्छा..? तुजे तो पता हे हमारी कीस्मतमे भाइका प्यार ही लीखा हे.. ठीक हे मेरी बच्ची.. अब जानेदे इनको.. देर हो रही हे.. आज तेरा भाइ कीसीका उधार करने जा रहे हे.. तुजेतो सब पता हे..
पुनम : (सरमाकर हसते) जी दीदी.. बाय भैया.. बाय नीलु.. अपना खयाल रखना..
मंजुला : (लखन नीलमके जाते ही मुस्कुराते) अब भी नीलुसे इतना लगाव..?
पुनम : (मुस्कुराते) दीदी.. आपने भी तो उनको अपनी बेटी माना हे.. मे तो इस नीलुकी सुक्रगुजार हु.. जीनकी वजहसे मुजे भाइका प्यार मील गया.. बस.. कुछ देरके लीये अपनी मांकी बातोमे आगइ थी..
मंजुला : (मुस्कुराते) पुनो.. तुजे पता हेना.. ये भी लखनकी सीक्रेट बीवी होगी.. हंम..?
पुनम : (मुस्कुराते) हां दीदी.. आपकी कृपासे मुजे सब कुछ पता हे.. मुजे नीलुसे कोइ गीला सीकवा नही..
मंजुला : (मुस्कुराते सरपे हाथ रखते) अच्छा.. मुजे पता हे मेरा लखन बेटा ओर मेरी ये बहु.. सब अच्छेसे सम्हाल लेगे.. बेटा.. मुजे तुम दोनोपे बहुत नाज हे.. मेने सोचा तुम दोनो अेक दुसरेके बगैर नही रेह पाओगे.. लेकीन कल रात तुम दोनोने ही अपने आपपे बहुत कंट्रोल रखा.. चल जा नहाकर कंपलीट होजा.. ओर वो लताको भी जगादे.. मे भावुको जगाकर आती हु..
पुनम : (जोरोसे गले लगाते) मोम.. आइ लव यु..
मंजुला : (जोरोसे बाहोमे भीचते हसते धीरेसे) अच्छा..? दीदीसे अब सीधा मोम..? हें..हें..हें..
पुनम : (सरमाते मुस्कुराते) हां मोम.. आप मेरे लखनकी मां हो.. मेरी सांस.. अबसे मे आपको मोम ही कहुगी..
मंजुला : (प्यारसे गाल सहेलाते) ठीक हे मेरी बच्ची.. मे बहुत जल्द तेरी सादी मेरे बेटेसे करवा दुगी..
पुनम अपने रुममे चली गइ.. ओर मंजुला उपरकी ओर जाने लगी.. तबतक देवायत लखन ओर नीलम कारमे बैठकर नीकल चुके थे.. पुरे गांवमे इस वक्त सन्नाटा छाया हुआ था.. जैसे ही वो गांवके बहार नीकले.. दुर अेक पेडके नीचे देवायतने रमेश ओर जयाको खडे देखलीया.. तो देवायतने कारको वही उनके पास रोकदी तो दोनो अपना सामान लेकर कारमे बैठ गये.. तभी जया लखनको देखते ही थोडी डर गइ..
लखन : (मुस्कुराते) भाभी.. फीकर मत करो.. मुजे सब पता हे.. मे बंसीको कुछ नही कहुगा.. डरीये मत..
रमेश : (मुस्कुराते) हां भाइ.. ध्यान रखना.. जबतक हम दोनोकी सादी नही होजाती तबतक उसे कुछ मत कहेना.. हम जाते ही सादी करलेगे.. भाइ.. आप वहा रुकोगेनां..?
देवायत : (मुस्कुराते) नही रमेश.. मे तुम दोनोको छोडकर नीकल जाउगा.. ओर सुबह होनेसे पहेले वापस आजाउगा.. वहा सम्हालनेके लीये लखन हेनां.. अगर यहा कोइ जरुरत पडे तो तुम लखनको फोन करदेना.. वो वही हे.. पास हीकी सोसायटीमे.. ओर सुन.. कभी कभी लखनके घरपे आते जाते रहेना.. या फीर भाभीको वहा भेज देना.. ताकी इनको वहा अकेला ना लगे..
जया : (सरमाते धीरेसे) देवरजी.. आप जरा बंसीको सम्हाल लेना.. क्या हेना अभी तक उनको तो कुछ पता ही नही हे..
लखन : (मुस्कुराते) भाभी.. आप बंसीकी फीकर मत करो.. भैया उनसे बात करलेगे.. ओर मेभी उनको सब समजा दुगा.. वो आपको कुछ नही कहेगा..
रमेश : भाइ.. आप चारु ओर वंदुका भी खयाल रखना.. क्या वंदु आपसे सादी करना चाहती हेनां..?
देवायत : (मुस्कुराते) हां रमेश.. तु उन दोनोकी चीन्ता छोडदे.. अब वो दोनोकी सब जीम्वेवारी मेरी ओर लखनकी हे.. क्यु लखन..? रमेश.. अब तो वैसे भी गांवमे इस तराके बहुत बदलाव होने लगे हे.. तो तुम दोनो वहाकी कोइ चीन्ता मत करना.. बस.. दोनो वहा जाकर अच्छेसे अपना संसार चलाओ..
रमेश : (मुस्कुराते) चलो भाइ.. आज दिलको अेक तस्सली मील गइ.. अब मुजे वंदु चारुकी कोइ चीन्ता नही.. सायद आज कलमे वो तीनो लोग भी आजायेगे.. मेने कल ही सुधीरसे बातकी..
लखन : भैया.. तीनो बोम्बे गये हेनां..?
देवायत : (मुस्कुराते) हां लखन.. सायद आज कलमे ही आजायेगे.. सुधीरके बीना यहा डाक्टरकी बहुत तकलीफ हे.. अब तो आजाये तो अच्छा हे..
सब लोग बाते करते सहेर पहोंच गये.. तो देवायतने रमेश ओर जयाको उनके नये घरपे ड्रोप करदीया.. लखनने उनके घरको बरोबर याद रखा.. फीर देवायत अपने बंगलोपे आगया.. तो तीनो अंदर चले गये.. वहा रजीया ओर राधीका कीचनमे चाइ नास्ता बना रही थी.. जैसे ही दोनोने देवायतको देखा दोनो सरमसे पानी पानी होगइ.. ओर अपने सरको पलुसे ढक लीया.. तो लखनने देवायतको राधीकाका परीचय करवाया..